देवराज चौहान की सिर कटी लाश, स्याह कालीन पर, पीठ के बल पड़ी थी।

दिल दहला देने वाला नजारा सामने था।

हर कोई कांपा सा, सहमा सा, गुस्से से भरा, बेबस सा लग रहा था।

नगीना की आंखें रो-रोकर सूज चुकी थीं। अब तो आंसू भी सूखते जा रहे थे। सुर्खी थी आंखों में। कटी गर्दन से चिपका रखा सिर जब भी अपनी जगह से हटता तो नगीना फौरन कटे सिर को पकड़ कर धड़ से लगा देती। मन में ये सोच बस चुकी थी कि, देवराज चौहान अभी या कभी भी जिन्दा होकर खड़ा हो जायेगा।

लेकिन देवराज चौहान तो मर चुका था।

जगमोहन और सोहनलाल बुत की भांति खड़े थे। उनकी आंखें अविश्वास के समन्दर से भरी हुई, आंसुओं से गीली थीं। रो-रोकर वो थक-हार चुके थे। जगमोहन फर्श पर बिछे कालीन पर लुटे-पुटे अंदाज में बैठा था। सूनी-गीली आंखें कुछ दूर पड़े देवराज चौहान की लाश पर थीं। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी जिन्दगी का समय चक्र ठहर गया हो। सब कुछ देवराज चौहान की मौत पर आकर समाप्त हो गया हो।

सोहनलाल, चंद कदमों के फासले पर शैतान के अवतार (पूर्वजन्म का द्रोणा) के बेड के कोने में बैठा, होंठों में गोली वाली सिगरेट फंसाये हुए था। उसका चेहरा निचुड़ा सा लग रहा था।

बार-बार उसकी निगाह देवराज चौहान की लाश पर जाती, फिर वो मुंह फेर लेता।

राधा ने कसकर, महाजन की बांह को थाम रखा था।

महाजन के चेहरे पर दुःख-अफसोस भरा नज़र आ रहा था।

देवराज चौहान बेशक उनका दुश्मन ही सही, परन्तु इस वक्त एक दोस्त-एक साथी की हैसियत से उनके साथ था। देवराज चौहान की मौत को वो सहन नहीं कर पा रहा था। उसे तो विश्वास ही नहीं आ रहा था कि देवराज चौहान अब नहीं रहा, परन्तु सच सामने था।

पक्की गारण्टी के साथ सच, देवराज चौहान की मौत पर मुहर लगा रहा था।

पारसनाथ का हाल भी जुदा नहीं था। आंखों में क्रोध भरी सुर्खी थी। रह-रहकर वो अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरता और उसकी निगाह इधर-उधर जाने लगती। उसके बाद सुर्खी लिए आंखें पुनः देवराज चौहान की लाश की तरफ उठ जातीं। उसके होंठ भींचने की मुद्रा बता रही थी कि वो बेहद बेचैन हुआ पड़ा है।

सरजू, दया और मिट्टी का बुत (युवती) दुःख में डूबे हुये थे।

सरजू और दया तो सहमे हुए थे।

मिट्टी के बुत से, देवराज चौहान की वजह से युवती बनी वो, बहुत ही परेशान लग रही थी। परन्तु उसके चेहरे पर दिखाई देती बेबसी, इस बात का एहसास दिला रही थी कि वो चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती, देवराज चौहान की मौत को लेकर। अपने जीवन-दाता की मौत पर, वो स्तब्ध सी हुई पड़ी थी।

मौत-भय-दुःख और क्रोध में डूबा वहां ऐसा सन्नाटा छाया हुआ था कि, उस छाये सन्नाटे में, जाने कैसे डर का एहसास हो रहा था।

कभी-कभार नगीना की सिसकी वहां गूंजती फिर थम जाती। हर कोई कहना-बोलना चाहता था, परन्तु उनके पास जैसे आवाज ही नहीं रही थी कि बोल पाते। शब्द थे कि होंठों से बाहर ही नहीं आ पा रहे थे। इस वक्त सिर्फ आंखों की भाषा ही काम कर रही थी। परन्तु आंखों ने भी शब्दों की कमी की वजह से बोलना बंद कर दिया था। कोई कुछ कहता भी तो क्या? सबके सामने शैतान के अवतार के शैतानी चक्र ने देवराज चौहान की गर्दन को काट कर अलग कर दिया था।

दहशत से भरा नजारा अभी तक उनकी आंखों के सामने नाच रहा था।

“नीलू...।” एकाएक राधा की चीख से भरी तेज आवाज वहां गूंजी-“ये क्या, बाहर किसी ने आग जलाई है, जो धुआं भीतर आ रहा है।”

पारसनाथ उसी पल एक खिड़की की तरफ दौड़ा।

तब तक ढेर सारी धुंध भीतर आ चुकी थी। वो धुआं या धुंध बढ़ती ही जा रही थी।

खिड़की पर पहुंचा तो पारसनाथ को तब तक खिड़की भी दिखाई देनी बंद हो गई थी। वो कोहरा हर पल गहराता जा रहा था। खिड़की के बाहर क्या है? ये नज़र आना तो सम्भव ही नहीं था।

“बाहर कुछ भी नज़र नहीं आ रहा।” पारसनाथ ने चीख कर कहा-“जो जहां है, वहीं रहे। इधर-उधर होना हमारे लिए खतरनाक...।”

“लेकिन ये सब है क्या?” जगमोहन भी चीखा।

वो हाल उसी सफेद कोहरे से भर्राता जा रहा था।

“ये धुआं नहीं है। कोहरे जैसा है ये सब। धुआं होता तो इसमें स्मैल होती।” जगमोहन का भिंचा स्वर सबके कानों में पड़ा-“इस कोहरे में अजीब सी ठण्डक का एहसास हो रहा है।”

“जो भी हो।” राधा गुस्से से भरे स्वर में कह उठी-“ये सब शैतान के अवतार की कोई नई चाल है। ऐसा करके वो हमें नई मुसीबत में डालना चाहता है। हो सकता है ये जहरीला धुआं हो।”

“लेकिन वो गया कहां?” मिट्टी के बुत वाली युवती कह उठी। अब वे सब कोहरे की वजह से एक-दूसरे को देख नहीं पा रहे थे। मिट्टी के बुत वाली युवती के बारे में जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का, रवि पॉकेट बुक्स के पूर्व सेट में प्रकाशित उपन्यास “दूसरी चोट”।

“शैतान का अवतार ऐसी जगह जाकर छिप गया होगा, जहां हमसे बच सके।” राधा ने पूर्ववतः स्वर में कहा।

“कोई अपनी जगह से न हिले। नीचे ही बैठ जाये।” पारसनाथ की आवाज आई।

“लेकिन ऐसा कब तक चलेगा?” महाजन का स्वर सबके कानों में पड़ा।

“मालूम नहीं। ये कोहरा बहुत घना है। जाने कहां से आया है? क्यों आया है? शैतान का अवतार, देवराज चौहान की हत्या करने के बाद अब क्या करना चाहता है? यही जानना है हमें।” पारसनाथ का सपाट स्वर कानों में पड़ा।

“जो भी हो, हम शैतान के अवतार का कुछ नहीं बिगाड़ सकते।” जगमोहन का सुलगता स्वर सबके कानों में पड़ा-“वो असीमित, अद्भुत शक्तियों का मालिक है। शैतानी शक्तियों की उसे कोई कमी नहीं और हम खाली हाथ हैं। काला महल में हम अपनी मौत की तलाश में आये थे और वो हमें बारी-बारी मिलती चली जायेगी।”

“ऐसा नहीं होगा।” महाजन गुर्रा उठा।

“गुस्सा नहीं नीलू। मैं तुम्हारे साथ हूं-।” राधा कह उठी।

“ऐसा ही होगा महाजन।” जगमोहन की आवाज में गुर्राहट आ गई थी-“ऐसा न होना होता तो वो शैतानी चक्र कभी भी देवराज चौहान की गर्दन न काट पाता। हम देवराज चौहान को बचाकर, शैतानी चक्र को तबाह कर देते। लेकिन उसका मुकाबला करना हमारे बस का नहीं है। मुकाबला करने की सोचेंगे तो खुद को धोखा देने वाली बात होगी। सच बात तो यह है कि हमें अपनी मौत को स्वीकार कर लेना चाहिये, जो कि आने वाली है। जिसे हम रोक नहीं सकते।”

“तुम हताश हो चुके हो जगमोहन-।” महाजन ने कठोर-गुस्से से भरे स्वर में कहा।

“ये हताशा नहीं, बल्कि ऐसा सच है, जिससे तुम भागने की चेष्टा कर रहे हो महाजन। क्या तुम सोचते हो कि हम शैतान के अवतार का मुकाबला कर सकते हैं?” जगमोहन चीख ही उठा-“अगर कर सकते हैं तो किस बूते पर कर सकते हैं। छोटा-सा भी कोई शैतानी हथियार है जिसे थामकर, शैतान के अवतार के मुकाबले पर एक मिनट भी खड़ा रहा जा सके?” महाजन की जवाब में आवाज नहीं आई।

खिड़कियों से भीतर आकर कोहरा वहां के जर्रे-जर्रे पर फैल चुका था। किसी को देख पाना तो दूर, अपने ही हाथ की उंगलियां नहीं दिख पा रही थीं।

चुभन से भरी चुप्पी छा चुकी थी वहां।

☐☐☐

जगमोहन किसी तरह, वहां फैले घने कोहरे में अंदाजा लगाकर वहां पहुंच गया। जहां, शैतान के अवतार के विशाल बेड के कोने पर सोहनलाल बैठा था।

“सोहनलाल-।” पास पहुंचकर जगमोहन गम्भीर-परेशान स्वर में कह उठा-“कहां है तू-?”

“आ-। आ-जा-।” सोहनलाल ने कहने के साथ ही जगमोहन की कलाई हाथ बढ़ाकर पकड़ी और उसे पास ही बेड पर बिठा लिया।

“क्या-क्या कर रहा है।” जगमोहन ने थके से लहजे में कहा-“तू-तू कुछ बोल नहीं रहा।”

“कहने को कुछ नहीं बचा।” सोहनलाल चुप-चुप सा था।

“कहने को कुछ नहीं।” जगमोहन का स्वर कांपा-“देवराज चौहान...हमारा साथी-दोस्त-भाई अब इस दुनिया में नहीं रहा और तू कहता है कि कहने को कुछ नहीं बचा।” जगमोहन की आंखों में आंसू भी छलछला उठे।

गहरे कोहरे की वजह से दोनों एक-दूसरे को देख नहीं पा रहे थे।

“देवराज चौहान की मौत के बारे में सोचना बंद कर दिया है मैंने।” सोहनलाल का स्वर गम्भीर था-“मैं तो अब सबकी मौत के बारे में सोच रहा हूं। हम यहां मरने आये थे और मर जायेंगे। जिन्दा लोग, दूसरों की मौत का अफसोस करते हैं। जो खुद ही मौत की कश्ती में सवार हों, उन्हें भला दूसरों की मौत का दुःख क्या होगा?”

जवाब में जगमोहन ने होंठ भींच लिए।

चुप्पी ही रही उनके बीच।

“मोना चौधरी, बांके, रुस्तम राव आये नहीं अभी तक।” सोहनलाल ने धीमे स्वर में कहा।

“मोना चौधरी, शैतान के अवतार के पीछे गई थी, शक्तियों से भरी तलवार लेकर।” जगमोहन भावहीन स्वर में बोला-“उन तीनों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता कि...।”

“शैतान के अवतार के हाथों मर गये होंगे।” सोहनलाल बोला-“या जल्दी मर जायेंगे। यहां पर हम अपनी सुरक्षा नहीं कर सकते। तुम ठीक कहते हो। हम यहां मौत पाने ही आये थे और शुरुआत हो चुकी है। सब मरेंगे। देवराज चौहान की मौत के बाद तो जैसे मैं खुद को ही मरा हुआ महसूस कर रहा हूं। अब तो मौत के आने का भी इन्तजार नहीं रहा।”

जगमोहन होंठ भींचकर रह गया।

बीस मिनट लगे वो कोहरा, उस धुंध को छंटने में।

धीरे-धीरे कोहरा कम हुआ और फिर छंटता चला गया।

सब की निगाहें एक-दूसरे पर जाने लगीं।

नगीना अभी भी, रोने से हुई लाल सुर्ख आंखों से, पास बैठी देवराज चौहान की लाश को देखे जा रही थी। उसका कटा सिर उठाकर अपनी गोद में रख लिया था अब। सिर के बालों में प्यार से, धीरे-धीरे हाथ फेर रही थी। कभी-कभार आंखों से आंसू मोती के रूप में बूंद बनकर नीचे गिर जाता।

नगीना की हालत देखकर दिल दहल में रहे थे सबके।

“राधा!” महाजन होंठ भींचे गम्भीर स्वर में कह उठा-“नगीना भाभी को संभालो।”

“कितना बुरा हुआ।” राधा ने तड़प भरे ढंग में कहकर महाजन को देखा।

पारसनाथ जो खिड़की से टेक लगाये खड़ा था। कोहरा छंटते ही पलट कर खिड़की से बाहर देखा तो चिहुंक पड़ा। आंखें हैरानी से फैल कर फटती चली गईं।

बाहर का नजारा ही ऐसा था।

नीचे धुंध ही धुंध-सफेद कोहरा ही था।

ऊपर, बहुत ऊपर छोटा सा नीला चमकदार आसमान नज़र आ रहा था।

काला महल से दूरी पर बस्ती-मकान-पेड़ कई चीजें नज़र आ रही थीं। परन्तु अब सिर्फ कोहरा ही था। जो कि नीचे दिखाई दे रहा था। या फिर ऊपर-दूर नीला, छोटा सा आसमान।

पारसनाथ हक्का-बक्का सा, आंखें फाड़े ये सब देखता रहा।

कुछ भी समझ में नहीं आया कि ये सब क्या है, कैसे हुआ? क्यों हो रहा है?

“इधर आओ।” बाहर देखते हुए पारसनाथ अजीब-से ऊंचे स्वर में कह उठा-“य-यहां देखो।”

सबसे पहले जगमोहन वहां पहुंचा और बाहर का नजारा देखते ही ठगा सा रह गया।

“ये-ये क्या हो रहा है?” जगमोहन के होंठों से निकला।

“मा-मालूम नहीं।” पारसनाथ ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी-“मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा।”

एक-एक करके सब वहां आ पहुंचे।

बाहर देखा। नगीना, देवराज चौहान की गर्दन गोदी में रखे, मृत शरीर के पास ही बैठी थी।

हैरानी के सागर में डूबने के लिये बाहरी मंजर को देखना ही बहुत था। किसी को कुछ भी समझ में नहीं आया, बाहरी नजारा क्यों बदल गया? नज़र आने वाली जमीन, वो बस्ती, पेड़-पौधे अचानक कहां चले गये और ये नीचे और हर तरफ फैला कोहरा कहां से आ गया?

“उस हरामी शैतान के अवतार की ही कोई चाल है नीलू...।” राधा कह उठी-“वो कमीना हम सबको खत्म कर देना चाहता है।”

सबके मस्तिष्क में सवाल था कि ये सब क्या है?

परन्तु जवाब किसी के भी पास नहीं था।

“मुझे लग रहा है, जैसे ये महल बहुत ही धीमे से हिल रहा है।” सोहनलाल ने गम्भीर स्वर में कहा।

“क्या?” जगमोहन के होंठों से निकला-“महल हिल रहा है?”

“हां-।” पारसनाथ के होंठों से बरबस ही निकला-“शायद-शायद...।”

तभी कदमों की आहट उनके कानों में पड़ी।

पाठकों, उपन्यास का पूरा मजा लेने के लिये पूर्व प्रकाशित उपन्यास “पहली चोट” और “दूसरी चोट” पढ़ना जरूरी है। दोनों उपन्यासों की मुख्य घटनाएं इस प्रकार थीं-पहले “पहली चोट” में-अपने कामों में उलझा देवराज चौहान ऐसे हालातों में फंस जाता है कि राकेशनाथ नाम के व्यक्ति से उसे वायदा करना पड़ता है कि वो मोना चौधरी की हत्या कर देगा, परन्तु फकीर बाबा, (पेशीराम) आकर देवराज चौहान को रोकता है कि आगामी दो महीनों में वो मोना चौधरी के सामने न पड़े, वरना दोनों में झगड़े की शुरूआत होने पर, सितारों के हिसाब से उसकी मौत निश्चित है। जगमोहन, नगीना, बांकेलाल राठौर, सोहनलाल और रुस्तम राव इसे रोकने की भरपूर कोशिश करते हैं, परन्तु देवराज चौहान मोना चौधरी को खत्म करने के लिये दिल्ली रवाना हो जाता है। तब नगीना देवराज चौहान के साथ हो जाती है। कुछ हादसों के बाद जब फकीर बाबा (पेशीराम) महसूस करता है कि झगड़ा टलने वाला नहीं तो उन्हें कहता है कि अगर मरना ही है तो गुरुवर की सहायता करते हुए जान दो गुरुवर को शैतान का अवतार परेशान कर रहा है। गुरुवर ऐसे यज्ञ में बैठे हैं, जिसे अधूरा छोड़कर उठ नहीं सकते। अपनी सारी शक्तियां बाल में समेट कर कहीं छिपा दी हैं गुरुवर ने। और शैतान के अवतार शक्तियों से भरी बाल की तलाश कर रहा है। अगर बाल उसे मिल गई तो शैतान की ताकतें बढ़ जायेंगी। किन्हीं कारणों से, गुरुवर की आज्ञा न होने के कारण, वो स्वयं इन मामलों में दखल नहीं दे सकता। आखिरकार देवराज चौहान और मोना चौधरी व अन्य सब गुरुवर की सहायता के लिये तैयार हो जाते हैं, तो फकीर बाबा उन सबको ना-मालूम जगह पर शैतान के अवतार की शैतानी जमीन पर पहुंचा देता है। जहाँ मायावी-जादुई-तिलस्मी जिन्न प्रेत-प्रेतनी का बोल-बाला है। “दूसरी चोट” की मुख्य घटनाएं इस प्रकार थीं-शैतान के अवतार की दुनिया में पहुंचकर वे इधर-उधर भटकने लगते हैं। लोग तो वहां वे मिलते हैं, परन्तु रास्ता दिखाने वाला कोई नहीं मिलता। तभी एक जगह पर नन्हीं सी चिड़िया घायल पड़ी नजर आती जिसमें माचिस की तीली जैसा तीर धंसा है। राधा यूं ही उसे उठाकर तीर निकाल देती है। चिड़िया को एक तरफ रख देती है। तभी वो चिड़िया परी के रूप में बदल जाती है। खुद को भामा परी बताती है और बताती है कि अस्सी बरस पहले कैसे कारी राक्षस ने उसे अपने तीर से घायल कर दिया था, परन्तु चिड़िया का रूप बनाकर बच गई। उधर कारी राक्षस को मालूम हो जाता है कि भामा परी के शरीर में धंसा तीर किसी ने निकाल दिया है, तो वो फौरन वहां आ पहुंचता है। कारी राक्षस के साथ दिलचस्प लड़ाई होती है। कारी राक्षस के खरा होने पर भामा परी राहत की सांस लेती है, फिर उन सबसे पूछती है कि पृथ्वी लोक छोड़कर तुम मनुष्य यहां क्या कर रहे हो? भामा परी सबका एहसान मानती है कि कारी राक्षस के तीर से उसे अस्सी बरस के बाद इन्हीं मनुष्यों ने मुक्ति दिलाई है। वो मनुष्यों की सहायता करना चाहती है इसी प्रकार कहानी आगे बढ़ती है। भामा परी शैतान के अवतार की दुनिया के भीतरी हिस्से में सबको ले जाती है। वहां तरह-तरह के हादसे और मांगा तथा जिन्न-बाधात से वास्ता पड़ता है। जादुई और मायावी हादसों का मुकाबला करते हैं। खतरनाक रास्तों में फंसते भी हैं। कई तरह की चालबाजियां सामने आती हैं। आखिरकार भामा परी की सहायता से, रोमांच से भरे अथाह खतरे से खेलने के पश्चात वो सब एक ऐसे काला महल में पहुंच जाते हैं, जहां शैतान का अवतार आता रहता है। जहां एक हादसे का शिकार होकर नगीना पहले से ही कैद है। नगीना उन्हें मिल जाती है, परन्तु शैतान का अवतार नहीं मिलता। वो शैतान के हुक्म से गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल को तलाश करने नगरी में गया हुआ है। वो परेशान है कि गुरुवर की शक्तियों से भरी बाल की तलाश नहीं कर पा रहा। उन सबके साथ मिट्टी के बुत वाली युवती भी है। शैतान के तिलस्म में वो मिट्टी का बुत थी, परन्तु देवराज चौहान के हाथ में दबी शक्तियों से भरी तलवार से उसे छुआ तो वो उसे मनुष्यों जैसा साधारण शरीर प्राप्त हो गया। शरीर में जान आ गई। यही वजह रही कि देवराज चौहान को अपना जीवनदाता मानने लगी। उसके साथ सरजू और दया भी थे। वो शैतान की धरती पर अपने छोटे से गांव के अन्य लोगों के साथ रह रहे थे। कभी पृथ्वी पर, हिन्दुस्तान की जमीन पर उनका गांव था। परन्तु शैतान के अवतार की शैतानी दुनिया में खेती-बाड़ी और अनाज पैदा करने के लिये लोगों की जरूरत थी। ऐसे में शैतान ने अपनी शक्ति से सारा गांव ही अपनी धरती पर ले आया था। उन्हें ज्यादा देर इन्तजार न करनी पड़ी। शैतान का अवतार जल्दी ही काला महल में पहुंचा। उसे पहले ही खबर थी कि मनुष्य उसके महल में पहुंचे हुए हैं। देवराज चौहान के हाथ में मुद्रानाथ की शक्तियों से भरी तलवार थी। ऐसे में शैतान ने सबसे पहले देवराज चौहान को मारने के लिये शैतानी चक्र छोड़ा। शैतानी चक्र अपनी प्यास खून से बुझाकर ही लौटता है। यही हुआ। शैतानी चक्र ने देवराज चौहान

की गर्दन काट दी। परन्तु तब तक देवराज चौहान अपने हाथ में दबी पवित्र शक्तियों से भरी तलवार, शैतान के अवतार की तरफ फेंक चुका था, जो कि शैतान के अवतार के पेट में धंस कर, पीठ की तरफ से बाहर आ गई थी। शैतानी चक्र से गर्दन कटते ही देवराज चौहान की मौत हो गई। हर कोई स्तब्ध था। उधर पेट में धंसी तलवार को शैतान का अवतार खींचकर बाहर न निकाल सका। क्योंकि वो पवित्र शक्तियों से भरी तलवार थी। उसे शैतान ही अपनी शक्ति से निकाल सकता था। ऐसे में शैतान के पास जाना जरूरी था जो कि जमीन से चार आसमान ऊपर रहता था। शैतान का अवतार वहां से निकलकर महल के खास हिस्से में पहुंचा और एक तरफ मौजूद अजीब-सी मशीन को जाने कहां-कहां से छेड़ा उसने। जाने कौन-कौन सा स्विच दबाया। तभी काला महल को हल्का-सा झटका लगा और वो जमीन छोड़कर आसमान की तरफ बढ़ने लगा। तभी मोना चौधरी, बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव वहां आ पहुंचे। शैतान का अवतार निश्चिंत था कि उसकी मौत शैतानी शक्ति वाले हथियार से ही होगी और ऐसा हथियार उन मनुष्यों के पास नहीं है। परन्तु मोना चौधरी के पास प्रेतनी चंदा का शैतानी खंजर था। मोना चौधरी उस शैतानी खंजर से शैतान के अवतार को मार देती है। उसके बाद उन्हें मालूम होता है कि काला महल तो जमीन से बहुत ऊपर आ चुका है और चार आसमान पार, शैतान की जमीन पर ही जाकर रुकेगा। देवराज चौहान की लाश वहां पड़ी थी। अनहोनी पर अनहोनी हो रही थी। काला महल को वापस कैसे ले जाना है। ये नहीं मालूम था उन्हें। तभी काला महल की खिड़कियों से धुंध-सी भीतर प्रवेश करने लगी। मध्यम-सी ठण्डक महसूस हुई। चार आसमान पार जाते काला महल ने पहले आसमान में प्रवेश कर लिया था। यहां तक आपने “दूसरी चोट” में पढ़ा और अब पढ़ते हैं आगे, “तीसरी चोट” में।

सब उसी पल घूमे और उधर देखने लगे, जिधर से आहटें आ रही थीं।

देखते ही देखते सामने की गैलरी से मोना चौधरी, बांकेलाल राठौर और रुस्तम राव, आते दिखे। रुस्तम राव के हाथ में देवराज चौहान वाली, पवित्र शक्तियों वाली तलवर थमी थी, जो कि खून से सनी स्पष्ट नज़र आ रही थी। बांकेलाल राठौर के चेहरे पर दुःख और पागलपन जैसे भाव थे।

मोना चौधरी गम्भीर और गुस्से में नज़र आ रही थी।

☐☐☐

“देवराज चौहान-।” बांकेलाल राठौर की नज़रें देवराज चौहान की लाश पर गईं तो वो गला फाड़कर चीख पड़ा-“यो थारे को का हो गयो म्हारे भाई। वड दयो थारे को, शैतान के अवतारो ने। अंम भी शैतान के अवतारो को ‘वड’ दयो। पर का फायदा होते। तंम तो मर गयो। जिन्दा न हो सको।” वो रो पड़ा। करीब पहुंच कर देवराज चौहान के मृत शरीर के पास बैठा और जगह-जगह से उसे छूने लगा। उसकी आंखों से बहते आंसू देवराज चौहान के मृत शरीर पर गिर रहे थे।

नगीना के थम चुके आंसू पुनः बह निकले। वो फफक पड़ी।

रोते हुए बांकेलाल राठौर ने नगीना की गोद में पड़े देवराज चौहान की गर्दन को देखा।

रुस्तम राव भी तलवार थामे पास आ पहुंचा।

वहां के माहौल में दिल और दिमाग को तकलीफ देने वाली हवा फैल गई थी।

“बहना!” बांकेलाल राठौर फफकते हुए कह उठा-“थारा भी भायो कुछो न कर सको। देवराज चौहान को न बचा सको। मोना चौधरी ने शैतान के अवतारो को ‘वड’ दयो। यो तलवार देखो। शैतान के अवतारो का ही ब्लड लगो हो। इससे फायदो का हौवे। अपणो तो देवराज चौहान गयो।”

नगीना फफकती जा रही थी।

“दीदी!” तलवार थामे रुस्तम राव गुर्रा उठा। जालिम छोकरे का नज़र आने वाला रूप, दिल को कंधा देने वाला था-“आपुन किसी को जिन्दा नेई छोडेला। शैतान का एक-एक जर्रा आपुन उधेड़ेला। देवराज चौहान की मौत का पक्का बदला लेईला। आपुन सब को जलाकर राख करेला दीदी।”

“छोरे-।” बांकेलाल राठौर ने रोते हुए आंसुओं भरी आंखें उठाईं-“कछो न होने का। शैतान अंम सबो को ‘वड’ दयो। म्हारो पासो कुछो भी न हौवे शैतान का मुकाबलो करनो वास्ते...।”

“बांके! आपुन किसी को भी जिन्दा नेई छोड़ेला।” जालिम छोकरा दांत किटकिटा कर गुर्रा उठा।

बांकेलाल राठौर की निगाह पुनः नगीना पर जा टिकी।

“बहना! हौसलो रखो हो। अंम थारे को तसल्ली दयो तो म्हारे को कौन तसल्ली दयो। यो वकत तो अंम सबो पर ही भारी पड़ो हो। म्हारे को तो लगो कि म्हारी जान ही निकल गयो।”

तभी मोना चौधरी पास पहुंची और घुटनों के बल नीचे बैठते हुए, नगीना के कंधे पर हाथ रखा।

“नगीना!” एकाएक मोना चौधरी की आंखों में आंसू चमक उठे-“देवराज चौहान का मरना, सिर्फ तेरे लिये ही दुःख की बात नहीं है। सबके लिये ही दिल पर तकलीफ देने वाली चोट है ये। मानती हूं कि जो दर्द तुम्हें है, उसका एहसास दूसरों को दूर-दूर तक नहीं हो सकता। लेकिन ये वक्त ऐसा है कि हम सबको सब्र रखना पड़ेगा। हमारे हाथ में इस वक्त कुछ भी नहीं है। सच पूछो तो मुझे अभी तक यकीन नहीं आ रहा कि देवराज चौहान अब जिन्दा नहीं रहा।” मोना चौधरी की आंखों से बहते आंसू, गालों से होकर नीचे गिर पड़े थे।

तलवार थामे रुस्तम राव ने सुलगती निगाहों से मोना चौधरी को देखा।

“देवराज चौहान तो तुम्हारा दुश्मन होएला मोना चौधरी।” रुस्तम राव ने दांत भींचकर कहा-“तुम्हें काये को-।”

“दुश्मनी तभी तक होती है, जब हम आमने-सामने हों।” मोना चौधरी ने आंसुओं भरी आंखों से रुस्तम राव को देखा-“जब कंधे से कंधा मिलाकर साथ चलना शुरू कर दें तो, दुश्मनी बहुत पीछे छूट जाती है। इस वक्त हम शैतानी ताकतों का मुकाबला कर रहे थे। देवराज चौहान का बहुत सहारा था मुझे। वो मेरी दूसरी बांह था और इन हालातों में शायद मैं भी उसकी दूसरी बांह थी। इस वक्त हम जिन हालातों में हैं, इनका मुकाबला करने के लिये मुझे देवराज चौहान की सख्त जरूरत थी। देवराज चौहान की मौत के बाद मुझे अपना लक्ष्य धुंधला सा महसूस होने लगा है। मैं खुद को थकी और कमजोर महसूस कर रही हूं-।”

रुस्तम राव विवशता भरे ढंग से दांत पीसकर रह गया।

मोना चौधरी ने पुनः भीगी आंखों से नगीना को देखा।

“मैं तुम्हें तसल्ली नहीं दे रही। क्योंकि ऐसे वक्त के लिये कहने को कोई शब्द नहीं होता।” मोना चौधरी के स्वर में दर्द से भरी भर्राहट थी-“इतना अवश्य कह रही हूं कि अपने पर काबू रखो। हमारे बस में कुछ नहीं है। जो होना है वो ही होता है। हम बहती हवा का रूख नहीं मोड़ सकते। खासतौर से उस हवा का जो दुनिया को चलाने वाली शक्ति ने बहा रखी है। लेकिन कोशिश करके, शायद उस हवा से बचने की चेष्टा कर सकते हैं।” नगीना फफक उठी।

“भगवान के लिये अपने पर काबू रखो। तुम्हें ऐसी हालत में देखकर, कोई भी थोड़ा-बहुत सामान्य नहीं हो पायेगा। जबकि ये वक्त बहुत ही नाजुक और खतरनाक है। आओ, उठो और...।”

“मुझे यहीं रहने दो।” नगीना आंसुओं भरे स्वर में कह उठी-“इनकी मौत के बाद मैं टूट गई हूं। मेरा वजूद मिट गया है। मैं अब, मैं नहीं रही। मैं इनके पास हूं। इनका सिर मेरी गोद में है। तुम नहीं जानतीं कि मरने के बाद भी इनकी आत्मा को कितनी शान्ति मिल रही होगी कि, नगीना ने इनका साथ नहीं छोड़ा।”

मोना चौधरी ने होंठ भींचकर मुंह फेर लिया। आंखों से पुनः आंसू बह निकले।

जालिम छोकरे की अंगारों से भरी सुलगती आंखों से एकाएक आंसू बह निकले। वो रोता-फफकता तलवार थामे, पांव पटकता वहां से दूर हो गया।

बांकेलाल राठौर दोनों हाथों से चेहरा ढांपे फफक-फफक कर रो पड़ा।

पास आ पहुंचा जगमोहन खुद पर काबू नहीं रख पाया और दोनों हाथों से चेहरा ढांप लिया।

हर किसी को लग रहा था कि देवराज चौहान नहीं मरा, बल्कि उनकी खुद की मौत हो गई है।

☐☐☐

मोना चौधरी की बात सुनते ही जगमोहन, महाजन, पारसनाथ, सोहनलाल और राधा चिहुंक पड़े। अजीब-से ढंग से फैली आंखों से वो मोना चौधरी के गम्भीर चेहरे को देखने लगे। हैरानी से भरी ठगी सी हालत में हो गये थे सब। कुछ पलों के लिये मौत से भरा सन्नाटा वहां फैल गया।

नगीना चंद कदमों की दूरी पर, देवराज चौहान के शरीर के पास ही बैठी थी, उसका कटा सिर गोद में रखे। उसकी तो दुनिया  ही वहीं तक सीमित होकर रह गई थी।

“असम्भव।” जगमोहन के होंठों से निकला-“ये नहीं हो सकता। चार आसमान पार-पार जा रहे हैं हम।”

बांकेलाल राठौर गीली आंखों को हथेली से साफ करता कह उठा।

“थारे को म्हारी बात यकीन करनो चाहिये। यो बातें शैतान का अवतार बोल्लो हो मोना चौधरी को। वो तो यो भी बोल्लो हो कि शैतान खुदो ही आयो हो, उसो की आत्मो को लेने वास्ते।”

“मुझे तो विश्वास नहीं आ रहा कि शैतान का अवतार मर गया है।” महाजन ने गहरी सांस लेकर कहा।

“वो मरेला बाप। आपुन तेरे को लाश दिखा डाला।” रुस्तम राव के होंठों से सुलगता स्वर निकला।

होंठ भींचे पारसनाथ, अपने खुरदरे गालों पर हाथ फेरता कह उठा।

“ये बात मेरी समझ से बाहर है कि शैतान के अवतार का इतना भारी महल, हवा में आसमानों का रास्ता पार करके, चार आसमान ऊपर कैसे जा सकता है। ये तो...।”

“जा सकता है।” महाजन शब्दों को चबाकर कह उठा।

“नहीं।” सोहनलाल ने दांत भींचे इन्कार में सिर हिलाया-“ये नहीं हो सकता।”

“शैतान के अवतार का कहना था कि ये काला महल, शैतान ने उसे तोहफे में दिया है। जब भी शैतान के पास जाना होता है तो वो इसी तरह, इसी महल में सवार होकर चार आसमान पार शैतान से मिलने जाता था।” मोना चौधरी ने उन्हें देखते हुए गम्भीर स्वर में कहा-“यानि कि इस महल का असली काम तो चार आसमान ऊपर जाना है। यही वजह है कि शैतान ने उसे ये महल दिया था कि इसे सवारी के तौर पर इस्तेमाल किया जा सके।”

“मतलब कि दिखाने को ये महल है।” बोली राधा-“वैसे सवारी के लिये है।”

“हां।”

“लेकिन इतने भारी महल का आसमान में ठहर पाना। इतना ऊपर जाना...।” पारसनाथ ने कहना चाहा।

“ये कोई बड़ी बात नहीं।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी-“शैतान जैसी शख्सियत के लिये तो वैसे भी ये काम बेहद मामूली होगा। हमारी दुनिया में इतने भारी विमान पूरा-पूरा दिन आसमान में उड़ते हैं। बिना किसी सहारे के ठहरे रहते हैं। तो इस महल को भी विमान के रूप में ही लो। विमान तेज चलता है। क्योंकि वो हर तरफ से बंद होता है। उसके भीतर बाहरी हवा नहीं आती। उसकी रफ्तार बनी रहती है। लेकिन इस महल में दरवाजे-खिड़कियां खुले हैं। ऐसे में हवा इसकी रफ्तार को रोक रही है और ये धीमी चाल से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहा है।”

“शैतान को प्लेन बनानो भी आवो का?”

“वो शैतान है। शक्तिशाली है। उसके लिये कोई भी चीज असम्भव नहीं। उसका साम्राज्य दुनिया और दुनिया से बाहर, जर्रे-जर्रे पर फैला है। उसके लिये कोई काम, उसकी हद से बाहर नहीं है।” मोना चौधरी के चेहरे पर कठोरता उभर आई थी-“महल जैसा विमान तैयार करना उसके लिये मामूली काम है।”

सबकी निगाह मोना चौधरी पर टिक चुकी थी।

“मोना चौधरी ठीक कह रही है।”

सबकी नज़रें आवाज की तरफ उठीं।

एक कोने में भामा परी मौजूद थी। चेहरे पर दुःख के भाव। आंखों में ठहरे हुए आंसू चमक रहे थे।

जब से देवराज चौहान की मौत हुई थी, तब से किसी का ध्यान भामा परी की तरफ गया ही नहीं था और न ही भामा परी ने उनकी बातों में दखल दिया था। भामा परी को तो वे सब जैसे भूल ही चुके थे।

“तुम?” राधा के होंठों से निकला।

“तुम कहां थीं?” जगमोहन उलझा-सा बोला-“तुम्हें तो हम भूल ही गये थे।”

“मैं यहीं थी।” भामा परी आंसुओं भरी आंखों से उसे देखती कह उठी-“देवराज चौहान की मौत की वजह से मुझे ऐसा दुःख पहुंचा कि कुछ भी कहने का मन नहीं हुआ। यहीं खड़ी तुम लोगों को देखते-सुनते रही।”

“बहुत आसान मौत मर गया देवराज चौहान।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठीं।

भामा परी अपनी जगह से हिली और उनकी तरफ बढ़ने लगी।

“देवराज चौहान को मरना ही था।” भामा परी करीब पहुंचते हुए कह उठी।

“क्या मतलब?” पारसनाथ उसे देखते हुए स्पाट स्वर में बोला-“क्यों मरना था उसे?”

भामा परी तीन कदम पहले ही रुक गई।

“शैतान के अवतार ने देवराज चौहान के नाम पर मंत्र मार कर चक्र को उसे खत्म करने के लिए छोड़ा था। वो खूनी चक्र देवराज चौहान के नाम की मूठ थी। ऐसी चीजें कभी भी खाली हाथ वापस नहीं लौटतीं। जिसका नाम लेकर ऐसी चीजों को भेजा गया होता है, उसे खत्म करके ही वापस लौटती हैं। यही देवराज चौहान के साथ हुआ।” आंखों में चमकते आंसू साफ करते हुए भामा परी तकलीफ भरे स्वर में कह रही थी-“उस चक्र को देखते ही मैं समझ गई थी कि देवराज चौहान किसी भी हालत में बच नहीं सकेगा। लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हुई तब, तुम लोगों को ये बात बताने की। तब चक्र के हर वार से लग रहा था कि इस बार देवराज चौहान मरा। दो बार उसने चक्र को धोखा अवश्य दे दिया लेकिन अंत यही होना था।”

कोई गम्भीर तो कोई क्रोध में धधकता एक-दूसरे का चेहरा देखने लगा। नज़रें देवराज चौहान की लाश की तरफ उठने लगीं। नगीना को देखा, जिसने कटा सिर अपनी गोद में रखा हुआ था। रो-रोकर आंखें लाल थीं।

लम्बे पलों तक उनके बीच सन्नाटा छाया रहा।

दुःख की इन लहरों के बीच किसी से कुछ कहते न बन पा रहा था।

“तो अब हम शैतान के यहां जा रहे हैं।” जगमोहन दांत भींचकर बोला-“ये महल शैतान की दुनिया में ही जाकर रुकेगा।”

“हां-।” भामा परी की आंखों में पुनः आंसू चमक उठे-“और मैं जानती हूं कि वहां तुम सब मारे जाओगे। शैतान की शक्ति से मुकाबला करने के लिये अद्भुत और ताकतवर शक्तियां चाहिये। इस सृष्टि की शैतानियत का मालिक है वो। शैतान कोई मामूली शक्ति नहीं है। भगवान की शक्ति के बराबर वो शक्ति रखता है। भगवान की शक्तियां अच्छे के लिये हैं और शैतान की शक्तियां बुराई फैलाने के लिये हैं। दोनों में कोई भी कमजोर नहीं और तुम लोग तो मामूली, साधारण इन्सान हो। शैतान के सामने ऐसी हैसियत है तुम लोगों की, जैसे तुम लोगों के सामने चींटी।”

जगमोहन दांत पीसकर रह गया। गुस्से से भरी नज़रें भामा परी पर थीं।

“भामा परी-।” मोना चौधरी गुर्रा उठी-“तुम हमें कोई रास्ता बताओ कि कैसे हम शैतान का मुकाबला कर सकते हैं?”

“अपने मन में बसा ये वहम निकाल दो कि तुम साधारण मनुष्य शैतान का मुकाबला कर सकते हो। तुम लोग कुछ नहीं कर सकोगे शैतान के सामने। तुम सब के जीवन का अंत करीब है। उसके बाद मैं वापस अपने परी लोक चली जाऊंगी ये दुःख लेकर कि तुम मनुष्यों को मैं बचा न सकी। ये दुःख मुझे हमेशा रहेगा।” भामा परी ने अपनी गीली आंखों को साफ करते हुए कहा।

“शैतान कोई भगवान तो है नहीं कि हम उसका मुकाबला न कर सकें।” राधा हाथ हिलाकर कह उठी।

“शैतानों का भगवान ही है वो। अपनी शैतानियत से उसने मनुष्यों के भगवान को भी परेशान कर रखा है। उसकी ताकत असीमित है और तुम लोगों के भगवान की ताकत सीमित है। क्योंकि अपनी अच्छाइयों की वजह से भगवान, अपने दायरे से बाहर नहीं जा सकता। यही वजह है कि दुनिया में शैतान की शैतानियत हावी रहती है।”

“हमारो भगवान अपणो सीमा रेखो से बाहर क्यों नहीं जावे?”

“क्योंकि तुम लोगों की भगवान के पास पवित्र शक्तियां हैं।

शैतान का मुकाबला करने के लिये उसने भी शैतानियत के मैदान में पांव रख दिया तो फिर शैतान और भगवान में फर्क ही क्या रह जायेगा। सृष्टि का ही बनाया ये फर्क है शैतान और भगवान में। शैतान ने बुराई फैलानी है और भगवान ने उस फैली बुराई को समाप्त करने की हर सम्भव कोशिश करनी है। भगवान, शैतान से कमजोर नहीं है, परन्तु अपने सीमित दायरे की वजह से, वो शैतान के मुकाबले पर नहीं उतर पाता।” तभी महाजन बोला।

“तुमने बताया था कि तुम भगवान के यहां से कुछ दूर, अन्य आसमान पर बसे, अपने परीलोक में रहती हो।”

“हां। हमारी पवित्र दुनिया है वहां-।”

“फिर तो तुम भगवान की दुनिया में भी गई होंगी?”

“नहीं।” भामा परी ने गम्भीरता से, इन्कार में सिर हिलाया-“हम इतने पवित्र नहीं कि वहां जा सकें। वैसे भी परीलोक के किसी बाशिन्दे को स्वर्गलोक की तरफ या फिर भगवान के घर की तरफ जाने की इजाजत नहीं है।”

“अगर कोई चला जाये तो?”

“परीलोक के किसी बाशिन्दे ने आज तक ऐसी हिम्मत नहीं की। कोई करेगा तो उसे बेहद कठोर सजा दी जायेगी। हमें जो हुक्म मिलता है, हम उसका पालन अवश्य करते हैं।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तुमने कहा कि स्वर्गलोक की तरफ या फिर भगवान के घर जाने की तरफ इजाजत नहीं है।” जगमोहन कह उठा-“तो क्या स्वर्गलोक और भगवान का घर अलग-अलग जगह पर हैं?”

“हां।” भामा परी ने जगमोहन को देखा-“भगवान स्वर्गलोक में नहीं रहते। उनकी अलग ही दुनिया है।”

“कहां रहते हैं भगवान?”

“इस बारे में मनुष्यों या शैतानों से बात नहीं की जाती?” भामा परी ने इन्कार भरे ढंग में कहा।

“नरकलोक किधर होएला?” रुस्तम राव ने पूछा।

“स्वर्गलोक में ही नरकलोक है।” भामा परी ने कहा-“यूं समझो कि एक ही जगह में दो तरह की दुनिया बसती है। कर्मों के हिसाब से, लेखा-जोखा होने के बाद ही धर्मराज फैसला करते हैं कि आत्मा को कौन सा स्थान देना चाहिये। ये बातें बहुत गहरी हैं। साधारण मनुष्य तो क्या, बड़े-बड़े ज्ञानी भी नहीं समझ सकते कि भगवान की माया क्या है?”

“शैतान समझता है, भगवान की माया को?” सोहनलाल ने पूछा।

“हां। भगवान और शैतान तो एक-दूसरे के भेद से भली-भांति वाकिफ हैं। क्योंकि दोनों ही विद्वान और शक्तिशाली हैं। उनसे क्या छिपा हो सकता है? कुछ भी नहीं।” भामा परी बोली-“अब तुम लोगों को अपने बारे में सोचना है। तुम मनुष्यों की मौत के साथ-साथ मुझे इस बात का भी दुःख रहेगा कि मरने के बाद तुम लोगों की आत्माएं, शैतान के बस में हो जायेंगी।”

“क्या मतलब?” पारसनाथ के माथे पर बल दिखाई देने लगे।

“भगवान और शैतान की शक्तियों का अपना-अपना दस्तूर है।” भामा परी कह उठी-“जो अच्छे कर्मों के साथ या फिर सामान्य या अपनी मौत मरता है, तो उसकी आत्मा पर भगवान का अधिकार होता है। धर्मराज के यमराज उसे अपने साथ ले जाते हैं। और जो मनुष्य शैतान के इशारे पर शैतानी कर्मों की वजह से मरता है, तमाम उम्र मनुष्य के रूप में शैतानी कामों को अंजाम देता है तो वो शैतान की पनाह में जाता है। या फिर जिसकी मौत शैतान के इशारे पर होती है तो उसकी आत्मा पर शैतान का अधिकार होता है। तुम लोग शैतान की दुनिया में शैतान के इशारे पर मरोगे तो ऐसे में तुम सब की आत्माएं शैतान की पनाह में चली जायेंगी। फिर शैतान ही तुम सबका मालिक होगा।”

भामा परी की बात सुनकर वो एक-दूसरे को देखने लगे।

“मरनो का तो कोई गमो न होवे।” बांकेलाल राठौर का हाथ मूंछ पर जा पहुंचा और वो धीमे स्वर मे बोला-“ईब तो नया गमो ही सतानो लगो कि शैतान म्हारी सबो की आत्माओं का मालिक बन जायो। बादो में वो म्हारो से शैतानी कर्मों करायो। म्हारी

आत्माओं को वो बोत मैला कर दयो।”

“बाप-” रुस्तम राव के दांत भिंच गये-”आपुन मुद्रानाथ

की पवित्र शक्तियों वाली तलवार से शैतान को खत्म करेला।”

“भ्रम में मत रहो।” मोना चौधरी गम्भीर स्वर में कह उठी-“शैतान की असीमित शक्तियों के सामने ये तलवार कोई अहमियत नहीं रखती।”

“तुम्हारा मतलब कि हम शैतान का मुकाबला नहीं कर सकते।” जगमोहन ने सुलगती निगाहों से मोना चौधरी को देखा।

“हर बात की तरफ ध्यान दिया जाये तो हम शैतान के सामने कुछ भी नहीं हैं।”

“तो फिर हम शैतान की दुनिया में क्यों जा रहे हैं?”

“हम नहीं जा रहे बल्कि शैतान के अवतार (द्रोणा) ने मरते वक्त चालाकी दिखा दी। हमें शैतान की दुनिया की तरफ रवाना कर दिया। उस मशीन का सिस्टम हमें मालूम नहीं, जिससे कि इस काला महल को वापस ले जाया जा सके। मशीन के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ की तो कहीं आसमान में उड़ता ये काला महल नीचे न गिर पड़े।” मोना चौधरी ने होंठ चबाकर कहा।

सोहनलाल ने भामा परी को देखा।

“क्या तुम उस मशीन को कंट्रोल करने का सिस्टम जानती हो?”

“नहीं।” भामा परी ने सोहनलाल को देखा-“इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं-।”

महाजन ने मिट्टी के बुत से बनी युवती को देखा।

“तुम मशीन के बारे में जानती हो?”

“नहीं।” उसने गम्भीर स्वर में कहा।

महाजन के दांत भिंच गये।

सोहनलाल हद से ज्यादा गम्भीर था।

जगमोहन अपने आप में सुलग रहा था।

“अब क्या करेला बाप?” रुस्तम राव ने बांकेलाल राठौर को देखा।

“छोरे! मोरे बस में तो कुछो हौवे ना। थारे को कछो करनो हौवे तो करो ले-।”

रुस्तम राव के चेहरे पर दरिन्दगी नाच उठी।

“भामा परी-।” मोना चौधरी गम्भीर और क्रोध भरे स्वर में बोली।

“कहो मोना चौधरी?”

“हमें बताओ कि हम क्या कर सकते हैं?”

भामा परी के चेहरे पर दुःख-अफसोस आ ठहरा।

“तुम मनुष्य कुछ नहीं कर सकते। शैतान के सामने ठहरने के लिए तुम लोगों को बहुत बड़ी शक्ति की जरूरत है। जो कि तुम मनुष्यों को हासिल हो ही नहीं सकती।” भामा परी ने गम्भीर स्वर में कहा।

“क्या भगवान यहां आकर हमारी सहायता नहीं कर सकता?” राधा बोली।

“भगवान के मन में क्या है, मैं नहीं जानती।” भामा परी ने कहा-“लेकिन ये बात पहले भी कह चुकी हूं कि भगवान अपनी सीमा लांघ कर, शैतान की दुनिया में पांव नहीं रखता। भगवान की निगाहों में ये बुरी बात है। स्पष्ट बात तो ये है कि भगवान से इस वक्त सहायता की उम्मीद मत करना। अगर भगवान ने इस वक्त तुम लोगों को बचाने के लिये कुछ किया तो शैतान और भगवान में सीधे-सीधे लड़ाई हो जायेगी। ऐसा होने पर सृष्टि के हिल जाने की संभावना पैदा हो जायेगी। बहुत कुछ तहस-नहस हो जायेगा।”

“फिर तो जिन्दगी के आखिरी वक्त, राम-नाम जपने की जरूरत भी नहीं है।” जगमोहन कड़वे स्वर में कह उठा।

काला महल मध्यम गति से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ा जा रहा था।

हर कोई खुद को बेबस महसूस कर रहा था।

सरजू और दया एक-दूसरे का हाथ पकड़े सहमे से खड़े थे।

“सरजू-।” दया के होंठों से घबराहट से भरा सूखा-सा स्वर निकला।

“हां-।” सरजू ने सूखे होंठों पर जीभ फेरी।

“हम मर जायेंगे?” दया तो मरो की तरह लग रही थी।

सरजू ने होंठ भींच लिए।

“बता सरजू-! हम दोनों अब मर जायेंगे ना?”

“पहले कौन से जिन्दा थे। हमारी पूरी बस्ती को शैतान के अवतार ने जमीन से उठाकर, अपनी शैतानी जमीन पर ला पटका था और हमें उनके लिये अन्न की खेती करनी पड़ रही थी। शैतान के अवतार के गुलाम थे हम। इन्कार हम कर नहीं सकते थे कि शैतान का अवतार हमारी जान ले लेगा। दबी-कुचली जिन्दगी को मैं जिन्दगी नहीं कहता दया।” सरजू भय से भरा हुआ था, परन्तु उसके चेहरे पर विद्रोह के भाव थे। गुस्से के भाव थे।

“हमारी-हमारी शादी होने वाली...।”

“इस जन्म में तो हमारा ब्याह होगा नहीं।” सरजू शब्दों को चबाकर बोला-“अगले जन्म में फेरे जरूर लेंगे दया।”

“सरजू-।” दया की आंखों से आंसू बह निकले-“बस्ती वाले हमें ढूंढ रहे होंगे। वो हमारी तलाश...।”

“जब थक जायेंगे तो ढूंढना बंद कर देंगे।” सरजू की आंखों में आंसू चमके-“समझ जायेंगे कि हम नहीं रहे। शैतान के अवतार की धरती पर किसी हादसे का शिकार होकर अपनी जान गंवा बैठे होंगे। धीरे-धीरे हमें भूल जायेंगे।”

दया दोनों हाथों से चेहरा ढांपे फफक उठी।

भामा परी ने उन्हें रोते देखा तो कह उठी।

“मौत के डर से रो रहे हो तो रोना बंद कर दो। मौत, नये जीवन का दूसरा नाम है। तुम्हारी आत्मा को नया शरीर मिलेगा। लेकिन शैतान के प्रभाव की वजह से, नया शरीर तुम्हारी आत्मा से शैतानी कर्म करायेगा। दुःख की बात सिर्फ यही है।” भामा परी ने कहते हुए गहरी सांस ली-“तब मैं तुम लोगों के सामने आऊंगी तो मुझे पहचानते हुए भी तुम सब मुझे अपनी शैतानी चालों में फंसाना चाहोगे। क्योंकि तब शैतानी कर्म करना ही, तुम सबका धर्म होगा।”

☐☐☐