वही विज्ञापन उस दिन के ‘ब्लास्ट’ में भी छपा था ।
सुनील ने अखबार को उस स्थान से मोड़ लिया । वह अपने केबिन से निकलकर न्यूज एडीटर राय के कमरे में पहुंचा ।
“आओ ।” - राय उसे देखकर बोला ।
सुनील राय के सामने एक कुर्सी पर बैठ गया । उसने अखबार राय के सामने रख दिया ।
“क्या बात है ?” - राय ने पूछा ।
“बात कोई खास नहीं है” - सुनील बोला - “लेकिन मेरी उत्सुकता जाग रही है । यह विज्ञापन देखो ।”
राय ने अखबार उठा लिया । उसने सुनील का बताया विज्ञापन जोर से पढना आरम्भ कर दिया -
“पांच सौ रुपये नकद इनाम
चौदह नवम्बर शाम साढे तीन बजे के करीब लिटन रोड और जहांगीर रोड के चौराहे के समीप हुए मोटर एक्सीडेन्ट के चश्मदीद गवाह को पांच सौ रुपए नकद इनाम दिया जायेगा लिखिये बाक्स नम्बर 4694 ब्लास्ट, राजनगर ।”
राय ने अखबार रख दिया और बोला - “क्या विशेषता है इस विज्ञापन में ?”
“किसी को इस एक्सीडेन्ट के चश्मदीद गवाह की भारी जरूरत मालूम होती है” - सुनील बोला - “यह विज्ञापन पिछले पन्द्रह दिन से हर रोज छप रहा है । पहले इनाम की रकम ढाई सौ रुपये थी आज से इनाम पांच सौ कर दिया गया है ।”
“फिर ?”
“इनाम की रकम बढाने की नौबत क्यों आई ?”
“भई अभी तुमने खुद ही तो कहा है कि किसी को इस एक्सीडेन्ट के चश्मदीद गवाह की भारी जरूरत है ।”
“लेकिन विज्ञापन का अभी छपना और इनाम की रकम बढाई जाना यह जाहिर करता है, कि कोई चश्मदीद गवाह विज्ञापन दाता को मिला नहीं है ।”
“इत्तफाक की बात है । लिटन रोड और जहांगीर के रोड चौराहे के आसपास आबादी नहीं है । वहां ट्रेफिक भी कम ही रहता है इसीलिए यह जरूरी नहीं कि यह एक्सीडेन्ट सौ पचास आदमियों ने देखा हो । दो चार आदमियों ने यह एक्सीडेन्ट देखा होगा और संयोगवश उनकी निगाह विज्ञापन पर नहीं पड़ी होगी ऐसा आम हो जाता है ।”
“तुम्हें इस एक्सीडेन्ट की कोई जानकारी है ?”
“मामूली एक्सीडेन्ट था । मामूली न्यूज थी, कोई विशेष जानकारी क्या होनी है मुझे । कम-से-कम मैं उस एक्सीडेन्ट का चश्मदीद गवाह नहीं था । लेकिन शायद अर्जुन इसके बारे में ज्यादा जानता हो । मुझे याद है यह न्यूज वही लाया था ।”
अर्जुन ‘ब्लास्ट’ का एक अन्य रिपोर्टर था ।
“अर्जुन को बुलाओ ।” - सुनील बोला ।
राय ने अर्जुन को बुलाने चपरासी भेज दिया ।
सुनील ने अपनी जेब से ‘लक्की स्ट्राइक’ का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया ।
“तुम्हारी इस एक्सीडेन्ट में एकाएक इतनी दिलचस्पी क्यों पैदा हो गई है ?”
“कोई खास दिलचस्पी नहीं है । खाली दिमाग शैतान का घर वाली बात है । आजकल जिन्दगी बड़ी सुस्त रफ्तार गुजर रही है । नगर में काफी अरसे से कोई ऐसा कत्ल भी नहीं हुआ है जिसमें कि पुलिस मुझे सस्पैक्ट नम्बर वन मान रही हो । यह विज्ञापन तो मैं रोज ही देखा करता था लेकिन इनाम की रकम बढाई गई देखकर मेरी उत्सुकता जाग उठी है । आखिर कौन ऐसा बेकरार आदमी है जो उस एक्सीडेन्ट के चश्मदीद गवाह से सम्पर्क स्थापित करने की खातिर पांच सौ रुपये खर्च करने को तैयार है ।”
उसी क्षण अर्जुन भीतर प्रविष्ट हुआ ।
उसने सुनील से हाथ मिलाया और बगल में एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“कैसे याद फरमाया साहब ?” - वह राय से बोला ।
“तुम्हें चौदह नवम्बर शाम साढे तीन बजे लिटन रोड और जहांगीर रोड के चौराहे के समीप हुए एक्सीडेन्ट की याद है ?”
“जी हां वह खबर मैं ही तो लाया था ।” - अर्जुन बोला ।
“सुनील उसी बारे में तुमसे कुछ पूछना चाहता है ।” - राय बोला ।
“तुमने वह एक्सीडेन्ट देखा था ?” - सुनील ने पूछा ।
“गुरु जी” - अर्जुन हंसता हुआ बोला - “अगर मैंने वह एक्सीडेन्ट देखा होता तो क्या मैं अभी तक पांच सौ रुपये के इनाम का हकदार न बन गया होता ?”
“मेरा मतलब कि एक्सीडेन्ट के बाद तुम दुर्घटनास्थल पर तो गये थे ?”
“गया था लेकिन वह कोई ऐसा एक्सीडेन्ट नहीं था - जिसमें कोई मर गया हो या गम्भीर रूप से घायल हो । एक्सीडेन्ट की शिकार दोनों गाड़ियों को भी इतना नुकसान नहीं पहुंचा था कि उनके ड्राइवर उन्हें घटनास्थल से चलाकर ले जा न सकते हों ।”
“तो फिर इसमें महत्व की क्या बात थी ?”
“कुछ भी नहीं । यह तो एक रुटीन खबर थी जो रुटीन के तौर पर पन्द्रह नवम्बर के अखबार में छपी थी । सिटी न्यूज वाले पेज पर मुश्किल से छः लाइनों में तो यह खबर छपी थी ।”
“एक्सीडेन्ट हुआ कैसे था ?”
“रोशनलाल खुराना नाम के एक प्रापर्टी डीलर और कालोनाइजर की वजह से वह एक्सीडेन्ट हुआ था और उसने बड़ी शराफत से अपनी गलती स्वीकार भी कर ली थी । चौदह नवम्बर को साढे तीन बजे के करीब रोशनलाल खुराना अपनी एम्बैसेडर कार खुद चलाता हुआ जहांगीर रोड पर बढ रहा था । उसने खुद स्वीकार किया था कि वह अत्याधिक थकावट की वजह से उस समय किसी हद तक लापरवाह था । जिस समय वह लिटन रोड और जहांगीर रोड के क्रासिंग पर पहुंचा उस समय ट्रेफिक की बत्ती एकाएक हरी से लाल हो गई । उससे आगे एक फियेट गाड़ी थी जो बती लाल होते ही एकदम रुक गई । रोशनलाल से अपनी कार की रफ्तार चैक नहीं हुई और उसकी कार भड़ाक से फियेट के पिछले हिस्से से जा टकराई । फियेट का पिछला हिस्सा और एम्बैसेडर का सामने का हिस्सा एकदम चिपक गया ।”
“और रोशनलाल खुराना अपनी गलती मानता है ?”
“पहले तो उसने यह जाहिर करने की कोशिश की थी कि एक्सीडेन्ट अगली कार वाले की गलती से हुआ था यानी कि अगली कार वाले ने ही एकाएक बीच सड़क पर कार रोक दी थी लेकिन बाद में दबाव पड़ने पर उसने अनमने मन से मान लिया था शायद गलती उसी की थी ।”
“फियेट में कौन था ?”
“फियेट रवि कुमार नामक, एक नौजवान चला रहा था । दुर्घटना के समय तो दोनों ने एक-दूसरे का नाम पता नोट कर लिया था और छुट्टी कर दी क्योंकि दोनों कारों का बीमा हुआ था । कार की मरम्मत वगैरह तो बीमे वालों ने ही करवा कर देनी थी । लेकिन उसी रात को रवि कुमार ने यह दावा किया था कि एक्सीडेन्ट की वजह से उसकी गरदन को भारी झटका लगा है जिसकी वजह से उसका सिर का एकाएक चक्कर खाने लगता है, उसकी आंखों के सामने अन्धेरा छाने लगता है; उसको बेहोशी आने लगती है, वह गरदन नहीं घुमा पाता और उसकी रीढ की हड्डी में बहुत जोर की दर्द होती है ।”
“ये सब तो विपलैश इन्जरी के लक्षण हैं ।
“करैक्ट, रवि कुमार को रात को ही पता लगा कि उसकी गरदन को गम्भीर रूप से चोट पहुंची है । तभी उसके डाक्टर ने पुलिस को सूचना दी थी । पुलिस ने रोशनलाल खुराना से सम्पर्क स्थापित किया था । रोशनलाल खुराना ने बड़ी शराफत से अपनी सारी जिम्मेदारी कबूल कर ली थी । उसने कहा था कि उसकी कार और ऐसे मामलों में वह खुद बीमा कम्पनी द्वारा सुरक्षित है । इसलिये किसी भी प्रकार के हर्जे खर्चे की सारी जिम्मेदारी कम्पनी की है । और रवि कुमार ने यह भी कहा था कि अगर बीमा कम्पनी या खुद रोशनलाल खुराना उसे हरजाना दे दे तो वह केस नहीं चलायेगा ।”
“फिर ?”
“अगली सुबह पुलिस की मौजदूगी में रोशनलाल खुराना ने बीमा कम्पनी को सारे सिलसिले की जानकारी दी । बीमा कम्पनी के डाक्टर ने रवि कुमार का मुआयना किया और कहा कि रवि कुमार शायद विपलैश इन्जरी का शिकार था ।”
“शायद ?”
“हां ! यह चीज ही ऐसी है कि जिसके बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं जा कहा जा सकता । कई बार तो आदमी एकदम स्वस्थ मालूम होता है और फिर एकाएक वह तीव्र वेदना से तड़पने लगता है । कई बार रीढ की हड्डी इस हद तक बिगड़ जाती है कि मरीज को महीनों तक बिस्तर पर रहना पड़ता है । बीमा कम्पनी के डाक्टर ने रवि कुमार का जो एक्सरे लिया था उसमें रीढ की हड्डी का गरदन के पास एक जोड़ अपने स्थान से हिला हुआ दिखाई देता था इसलिए डाक्टर ने कहा था कि शायद रवि कुमार विपलैश इन्जरी का शिकार था ।”
“और अगर एक्सरे ठीक होता तो ?”
“तो डाक्टर दावे से यह नहीं कह सकता था कि रवि कुमार झूठ बोल रहा है । मैं डाक्टर से मिला था वह कहता था कि विपलैश इन्जरी का सिलसिला तो सिर दर्द या पेट दर्द जैसा होता है । अगर मैं कहूं कि मेरे सिर में या पेट में दर्द है तो डाक्टर किसी टैस्ट की सहायता से यह नहीं जान सकता कि मेरे सिर या पेट में दर्द है या नहीं । उसे मेरी बात माननी ही पड़ेगी जबकि सम्भव यह भी है कि मैं झूठ बोल रहा हूं । यही बात विपलैश इन्जरी के साथ है ।”
“आई सी ।”
“रवि कुमार ने बीमा कम्पनी से पचास हजार रुपए के हरजाने की मांग की है । इतनी बड़ी रकम बीमा कम्पनी हरजाने में नहीं देना चाहती । इसलिए मैंने सुना है बीमा कम्पनी यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि रवि कुमार अपनी चोट को बेहद बढा-चढाकर बयान कर रहा है । यानी कि वास्तव में वह दुर्घटना में उतना घायल नहीं हुआ जितना कि वह सिद्ध करने की कोशिश कर रहा है ।”
“बीमा कम्पनी यह साबित कर सकती है ?”
“भगवान जाने । शायद कोई तरीका हो उनके पास ?”
“मैंने एक्सीडेन्ट की खबर तो पेपर में पढ़ी थी लेकिन यह बाकी का सिलसिला तो मेरी नजर से नहीं गुजरा ?”
“क्योंकि” - राय धीरे से बोला - “बाकी का सिलसिला अखबार में छपा नहीं था ।”
“क्यों ?”
“मुझे इसमें कोई न्यूज वैल्यू दिखाई नहीं दी थी । न्यूज के लिहाज से रवि कुमार और रोशनलाल खुराना दोनों ही मामूली आदमी थे । राजनगर में कौन जानता है उन्हें ।”
“अर्जुन” - सुनील अर्जुन की ओर घूमा - “तुम रोशन लाल खुराना और रवि कुमार से भी मिले थे ?”
“रोशनलाल खुराना से मिला था” - अर्जुन बोला - “लेकिन रवि कुमार से नहीं मिल पाया था ।”
“क्यों ?”
“वह पन्द्रह तारीख से ही गायब है । वह चेथम रोड पर स्थित चन्द्रकिरण नामक इमारत के पांच नम्बर फ्लैट में रहता था लेकिन पन्द्रह तारीख से वह वहां दिखाई नहीं दिया ।”
“फ्लैट में ताला लगा हुआ है ?”
“नहीं । वहां अनीता नाम की एक परम सुन्दरी रहती है ।”
“तुम उससे मिले थे ?”
“हां । मैंने उससे रवि कुमार के बारे में पूछा था । उसके कथनानुसार रवि कुमार बम्बई में है और किसी बड़े डाक्टर से अपना इलाज करवा रहा है ।”
“तुमने उससे यह भी पूछा था कि उसका रवि कुमार से क्या रिश्ता था ?”
“पूछा था । अगर मिस्टर राय यहां, मौजूद न होते तो उसका जवाब मैं तुम्हें तरन्नुम में सुनाता ।”
“क्या जवाब दिया उसने ?”
“जब मैं वहां पहुंचा था तो वह गोद में एक कैसेट टाइप टेपरिकार्डर लेकर बैठी हुई थी मेरे यह सवाल पूछते ही उसने टेपरिकार्डर ऑन कर दिया । एक गाना बज उठा - सूरज से जो किरण का नाता, सागर से जो लहरों का - उसने तुरन्त रिकार्डर बन्द किया मुझे देखकर मुस्कराई, बोली - समझे और फिर उसने मुझे दरवाजा दिखा दिया ।”
“अनीता के बारे में और क्या जानते हो ?”
“बाद में मैंने आस-पड़ोस से थोड़ी पूछताछ की थी । मुझे ऐसा आभास मिला था कि अनीता रवि कुमार की गर्लफ्रैंड है और दोनों की जल्दी ही शादी होने वाली है ।”
“और ?”
“और यह कि उस फ्लैट का किराया आठ सौ रुपये है । फ्लैट में सुख सुविधा के सारे साधन मौजूद हैं । वह फियेट कार जिसे एक्सीडेन्ट के समय रवि कुमार चला रहा था और जिसकी अब तक मरम्मत की जा चुकी है, भी रवि कुमार की अपनी है और जिसे रवि कुमार अनीता के इस्तेमाल के लिए पीछे छोड़ गया है । लेकिन यह कोई नहीं जानता कि रवि कुमार की आय का साधन क्या है ।”
“और ?”
“और यह कि एक दादा सा लगने वाला आदमी अनीता के प्लैट में अक्सर आता है । मैंने अनीता को उसे गौरी शंकर के नाम पुकारते सुना था । मैं यह मालूम नहीं कर सका कि वह रवि कुमार का दोस्त है या अनीता का दोस्त है या दोनों का दोस्त है ।”
“इस विज्ञापन के बारे में तुम्हारा क्या ख्याल है । एक्सीडेन्ट के चश्मदीद गवाह की जरूरत किसे पड़ गई है ? कौन पांच सौ रुपये का इनाम आफर कर रहा है ।”
“शायद बीमा कम्पनी ।”
“मेरे ख्याल से नहीं । विज्ञापन बाक्स नम्बर से छपा है । अगर यह विज्ञापन बीमा कम्पनी की ओर से होता तो नीचे बाक्स नम्बर के स्थान पर बीमा कम्पनी का नाम पता सब कुछ छपा होता ।”
“लेकिन ऐसे किसी गवाह की तलाश तो बीमा कम्पनी को ही हो सकती है । शायद वे लोग यह साबित करने की कोशिश करें कि दुर्घटना रवि कुमार की लापरवाही से हुई थी । शायद उसी ने एकाएक बिना सिग्नल दिये अपनी गाड़ी को ब्रेक लगा दी थी ।”
“लेकिन बीमा कम्पनी ने विज्ञापन में अपना पता क्यों नहीं दिया ?”
“होगी कोई वजह ।”
“अरे भाई” - राय एकाएक बीच में बोल पड़ा - “क्यों सिर खपाई कर रहे हो । विज्ञापनदाता का पता तो बड़ी आसानी से हासिल किया जा सकता है । आखिर विज्ञापन हमारे अखबार में छपा है । जाकर विभाग से पूछ लो कि इस बाक्स नम्बर का विज्ञापनदाता कौन है ।”
“राइट यू आर” - सुनील बोला - “अर्जुन जरा जाना तो ?”
अर्जुन उठकर कमरे से बाहर चला गया । सुनील का लाया हुआ अखबार वह अपने साथ लेता गया ।
पांच मिनट बाद अर्जुन फिर वापिस लौटा ।
“टांय-टांय फिस्स” - अर्जुन बोला - “यह विज्ञापन की कीमत के चैक के साथ डाक से आया था । विज्ञापनदाता कोई चमन लाल है और उसने यह निर्देश लिखकर भेजा है कि अगर विज्ञापन का कोई बाक्स नम्बर के पते जवाब आये तो यह जनरल पोस्ट आफिस के पते पर पोस्ट कर दिया जाये ।”
“कम से कम इससे यह तो सिद्ध हो ही गया कि विज्ञापनदाता बीमा कम्पनी नहीं है ।” - सुनील बोला ।
“जाहिर है । वे भला अपनी डाक केयर आफ जी पी ओ क्यों मंगायेंगे ।”
“राय” - सुनील राय से सम्बोधित हुआ - “आजकल मुझे कोई विशेष काम नहीं है । अगर मैं तीन-चार दिन इस एक्सीडेन्ट के बखिये उधेड़ने में लगाऊं तो तुम्हें कोई ऐतराज ?”
“क्या हासिल होगा !”
“कुछ तो हासिल होगा ही । मुझे तो हालात बहुत आशाजनक लग रहे हैं ।”
“और मेरा ख्याल है शुरुआत तुम अनीता से करोगे ?”
“जाहिर है । उसके बिना तो रवि कुमार का पता नहीं लगा पायेगा ।”
“लड़की के दो-दो चाहने वाले तो पहले ही दिखाई दे रहे हैं कहीं ऐसा न हो कि कोई तुम्हारा कत्ल कर दे ।”
“कुछ नहीं होगा जिसके दो चाहने वाले हो सकते हैं, उसके तीन भी हो सकते हैं ।”
“अच्छी बात है ।” - राय अनमने स्वर में बोला ।
“एक बात और” - सुनील सिगरेट का आखिरी कश लगाकर उसे ऐश ट्रे में झोंकता हुआ बोला - “कोई ऐसा इन्तजाम कर दो कि अगर पांच सौ रुपये के इनाम वाले विज्ञापन का कोई जवाब आये तो उसकी सूचना तुम्हें अवश्य मिल जाये ।”
“वह तो हो जायेगा लेकिन हम जवाब को खोल कर नहीं देख सकते ।”
“अरे बाबा खोल के देखने को कौन कह रहा है । मुमकिन है जवाब पोस्टकार्ड पर ही आये ।”
“लेकिन पोस्टकार्ड पढना भी नैतिकता के खिलाफ है ।”
“तुम अपनी नैतिकता अपनी जेब में रखो, अगर कोई जवाब आये तो सिर्फ इतना मुझे बता देना कि जवाब आया है । तुम मुझे जवाब की सूरत मत दिखाना ।”
“ठीक है ।” - राय बोला ।
सुनील उठ खड़ा हुआ ।
अर्जुन भी उठा ।
दोनों बाहर आ गये ।
“एक बात और याद आई है गुरु जी” - अर्जुन बोला - “अनीता रोज शाम को चार बजे के करीब सुपर बाजार खरीददारी के लिये जाती है और उसकी फियेट का नम्बर आर जे एल 3232 है ।”
“लड़की का हुलिया बताओ ।”
“यह मुश्किल काम है । खूबसूरत लड़की का भी कोई हुलिया होता है । मुझे तो सारी खूबसूरत लड़कियां एक जैसी लगती हैं । हां, अगर वह बदसूरत होती तो मैं बता सकता था कि उसकी आंख भैंगी है या नाक चपटी है या दांत बाहर को निकले हुए हैं या कान कार के खुल दरवाजे की तरह खड़े हैं, या कद ठिकना है या...”
“बस बस बस ।”
अर्जुन चुप हो गया ।
“मैं उसे पहचानूंगा कैसे ?”
“कार से । शाम को चार बजे सुपर बाजार के सामने जो खूबसूरत लड़की आर जे एल 3232 नम्बर की फियेट से बाहर निकले वही अनीता होगी । वैसे वह अपने बायें हाथ की दूसरी उंगली पर लाल पत्थर की अंगूठी पहनती है ।”
“ओके । थैंक्यू !”
अर्जुन फिर नहीं बोला ।
***
उसी शाम को साढे तीन बजे सुनील अपनी मोटर साइकल पर चेथम रोड पर स्थित चन्द्रकिरण के सामने पहुंचा ।
आर जे एल 3232 फियेट गाड़ी पार्किंग में खड़ी थी । गाड़ी के पृष्ठ भाग की ठोकर को पीटकर डैन्ट तो निकाले जा चुके थे लेकिन पेन्ट वगैरह अभी उखड़ा हुआ था ।
सुनील ने एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा ।
ठीक पौने चार बजे एक बेहद खूबसूरत लड़की इमारत से बाहर निकली । वह एक नाभि प्रदर्शनी साड़ी पहने हुई थी और उसके बायें हाथ की दूसरी उंगली पर एक लाल पत्थर की अंगूठी दिखाई दे रही थी । वह छोटे-छोटे कदम भरती हुई फियेट की ओर बढ रही थी । वह फियेट पर सवार हुई और उसे पार्किंग से निकालकर सड़क पर ले आई ।
कार आगे बढ गई ।
सुनील मोटर साइकिल पर बड़ी सावधानी से उसका पीछा करने लगा ।
वह सीधी सुपर बाजार पहुंची ।
उसने अपनी कार को सुपर बाजार के कार पार्क में खड़ा किया और फिर इमारत में प्रविष्ट हो गई ।
सुनील ने उसके पीछे जाने का उपक्रम नहीं किया ।
वह वापिस लौटा ।
अगले दिन शाम को चार बजे वह अनीता के वहां पहुंचने से पहले ही सुपर बाजार के सामने की सड़क पर मौजूद था । आज वह अपनी मोटर साइकिल पर नहीं, रमाकांत की शानदार इम्पाला कार पर आया था । उसने रमाकांत से कार मांगने की भी तकलीफ नहीं की थी । रमाकांत यूथ क्लब की पहली मंजिल पर स्थित अपने बैडरूम में सोया पड़ा था । चाबियां मेज पर पड़ी थीं । सुनील ने चुपचाप उठा ली । रिसैप्शनिस्ट को कह आया कि जब रमाकांत जागे तो उसे बता दिया जाये कि कार सुनील ले गया है ।
अपनी मोटर साइकिल वह यूथ क्लब में ही खड़ा कर आया था ।
आज सुनील अपने शानदार सूट के स्थान पर एक घिसा हुआ कोट और बेहद पुरानी पतलून पहने हुए था । उसकी कमीज का कालर खुला हुआ था और जूतों को देखकर यूं लगता था जैसे उन्होंने मुद्दत से पालिश को सूरत नहीं देखी थी । बाल रूखे और उलझे हुए थे और उसने जान-बूझकर शेव नहीं की थी ।
चार बजकर पांच मिनट पर अनीता फियेट कार पर सुपर बाजार के कम्पाउन्ड में प्रविष्ट हुई । पार्किंग में बहुत भीड़ थी उसने अपनी कार यूं पार्क की, कि कार की दाईं साइड कम्पाउन्ड की दीवार के साथ लगभग सट गई । वह बाईं ओर के दरवाजे के कार से बाहर निकली और उसे ताला लगाकर सुपर बाजार की इमारत की ओर बढ गई ।
सुनील ने अपनी कार आगे बढाई । वह भी सुपर बाजार के कम्पाउन्ड में प्रविष्ट हुआ ।
अनीता की कार की बगल में कार खड़ी करने की जगह थी ।
सुनील ने कार को बैक करते हुए उसे बिल्कुल अनीता की कार की बगल में ला खड़ा किया । अब स्थिति यह थी कि सुनील के अपनी कार हटाये बिना अनीता अपनी कार का दरवाजा नहीं खोल सकती थी और दूसरी ओर दरवाजा वैसे ही नहीं खुल सकता था क्योंकि उधर कार एकदम दीवार के साथ लगी हुई थी ।
सुनील पार्किंग से काफी परे हटकर खड़ा हो गया । उसने एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा ।
तीसरी सिगरेट के दौरान अनीता इमारत से बाहर आती दिखाई दी । वह सामान से भरे हुए दो लिफाफे सम्भाले हुए थी ।
वह अपनी कार के सामने पहुंची । उसने पहले एक निगाह दीवार वाली दिशा में डाली । उधर से कार का दरवाजा खोल पाना असम्भव था । दूसरी ओर सुनील की कार खड़ी होने के कारण यही हालत उधर भी थी ।
सुनील ने सिगरेट फेंक दिया और टहलता हुआ आगे बढा ।
अनीता ने अपना सामान कार के हुड पर रख दिया । वह इम्पाला की ओर बढी । सुनील जानबूझकर कार के शीशे नहीं चढाकर गया था । अनीता ने खिड़की में से हाथ डालकर इम्पाला का हार्न बजाना शुरू कर दिया । वह बेहद क्रोधित दिखाई दे रही थी ।
सुनील उसके समीप पहुंचा ।
“यह कार तुम्हारी है ?” - वह झल्लाये स्वर में बोली ।
“इज्जत अफजाई का शुक्रिया” - सुनील तनिक सिर नवाकर मीठे स्वर में बोला - “कि बन्दे को आपने इस काबिल समझा ।”
“क्या मतलब ?”
“मैडम, जरा एक बार फिर मेरी सूरत पर गौर फरमाइये और फिर सोचिये कि क्या आपको लगता है कि यह कार मेरी हो सकती है ?”
“तो फिर यहां खड़े क्या कर रहे हो ! फूटो यहां से ?”
सुनील ने हिलने का उपक्रम नहीं किया ।
अनीता ने फिर कई बार जोरों से हार्न बजाया लेकिन नतीजा न निकलना था न निकला ।
क्रोध और विवशता से वह पैर पटकने लगी ।
“हरामजादे, गधे” - अनीता भुनभुना रही थी - “कार को पार्क करने तक का शऊर नहीं है ।”
सुनील दूसरी ओर देखने लगा ।
“ऐ, तुम !” - अनीता बोली ।
“आपने मुझसे कहा कुछ ?” - सुनील बेहद शिष्ट स्वर में बोला ।
“हां, हां, तुम्हीं से कहा है । खड़े-खड़े मुंह देख रहे हो । मेरी मदद करो न ।”
“क्या मदद करूं ?”
“जरा कार को पीछे से धकेलकर आगे बढा दो ताकि यह मेरी कार के दरवाजे के आगे से हट जाये ।”
“मैडम, यह बहुत बड़ी गाड़ी है । इसको धकेलने के लिये मेरे जैसे कम से कम चार आदमी चाहिये ।”
“तो फिर कुछ और करो ।”
“आप कार के मालिक का इन्तजार क्यों नहीं करतीं ?”
“पता नहीं वह कम्बख्त कब आये और मेरे पास इन्तजार करने का वक्त नहीं है ।”
सुनील इम्पाला के समीप पहुंचा । उसने दरवाजे का हैंडल ट्राई किया ।
“दरवाजा तो खुला है ।” - वह बोला ।
“इससे क्या होता है ?”
“आपको वाकई बहुत जल्दी है ?”
“हां !”
“आपकी खातिर मैं...”
“हां, हां क्या कह रहे थे तुम ?”
“खतरे का काम है । अगर कार के मालिक ने देख लिया तो...”
“क्या कहना चाहते हो तुम ?” - अनीता आशापूर्ण स्वर से बोली ।
“मैं इग्नीशन को शार्ट सर्कट करके कार चला सकता हूं ।”
अनीता ने एक बार सुनील को सिर से पांव तक देखा और फिर अपने चेहरे पर एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट लाती हुई बोली - “तो करो न ?”
“लेकिन...”
“ओह प्लीज ।”
“अगर मैं पकड़ा गया तो मैं दुबारा वहीं पहुंच जाऊंगा जहां से मैं आया हूं ।”
“अरे कुछ नहीं होता” - अनीता चिकने-चुपड़े स्वर से बोली - “मैं देखती रहूंगी । कितना वक्त लगेगा ?”
“पन्द्रह सैकेण्ड ।”
“बस ! इतनी देर में कुछ नहीं होने वाला । मैं देखती रहूंगी ।”
सुनील कुछ क्षण हिचकिचाता रहा और फिर बोला - “मैं आपकी खातिर रिस्क ले रहा हूं ।”
“बड़ी मेहरबानी है तुम्हारी ।”
“आप सुपर बाजार के दरवाजे की ओर देखती रहिये । अगर कोई आदमी इधर बढता दिखाई दे तो...”
“हां, हां, मैं ध्यान रखूंगी ।”
सुनील फुर्ती से कार में प्रविष्ट हुआ ।
अनीता सुपर बाजार के मुख्य द्वार की ओर देख रही थी । सुनील ने इग्नीशन में चाबी लगाकर इन्जन चालू किया । कार को गीयर में डालकर फुर्ती से आगे बढाया ।
अनीता अपनी कार में प्रविष्ट हो गई ।
सुनील ने इम्पाला को वापिस यथास्थान पर कर दिया । उसने इग्नीशन में से चाबी निकालकर जेब में डाली और जल्दी से बाहर निकल आया । उसने शान्ति की एक मील तक सुनाई दे सकने वाली लम्बी और ऊंची सांस ली ।
अनीता पर उसका उचित प्रभाव पड़ा ।
अनीता के सुपर बाजार से खरीदे सामान के लिफाफे अभी भी उसकी कार के हुड पर पड़े थे । सुनील ने लिफाफे उठा लिये । अनीता ने कार बढाकर खड़ी कर दी । उसने कार का शीशा गिराया ।
सुनील कार के समीप आ खड़ा हुआ । उसने खिड़की के रास्ते लिफाफे कार की अगली सीट पर रख दिये ।
“बिना चाबी के इग्नीशन कैसे आन कर लिया तुमने ?” - वह अपने चेहरे पर एक चित्ताकर्षक मुस्कराहट लाती हुई बोली ।
“गर्दिश के दिनों में सीखा था कहीं से, मैडम ।” - सुनील झिझकता हुआ बोला ।
“क्या नाम है तुम्हारा ?”
“सुनील ।”
“क्या करते हो ?”
“अब कुछ करूंगा मैडम !”
“यानी अब तक कुछ नहीं करते थे ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“कल तक मैं जैसी जिन्दगी जी रहा था उसमें कुछ करने की जरूरत नहीं थी ।”
“तुम जेल से छूटे हो ?”
सुनील ने ऐसी सूरत बनाई जैसे यह बात सुनकर उसके दिल को बहुत चोट पहुंची हो ।
“ओह, आई एम सारी सुनील” - वह खेदपूर्ण स्वर में बोली - “मेरा मतलब तुम्हारी भावनाओं को चोट पहुंचाना नहीं था । मेरा मतलब था क्या मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकती हूं ।”
“आप कोई नौकरी दिलवा सकती हैं मुझे ?”
“मेरे साथ मेरे कमरे पर चलो । मेरे एक जानकार हैं । वे इस सिलसिले में तुम्हारी मदद पूरी कर सकते हैं ।”
“वे मुझे आपके साथ देखकर बुरा तो नहीं मानेंगे ।”
“नहीं मानेंगे ।”
“कहीं कोई गड़बड़...”
“कुछ नहीं होगा, तुम कार में बैठो ।”
सुनील झिझकता हुआ कार के पिछले द्वार की ओर बढा ।
“पीछे नहीं” - अनीता जल्दी से बोली - “आगे ।”
सुनील कार में अनीता की बगल में बैठ गया ।
“मेरा नाम अनीता है ।” - अनीता कार आगे बढाती हुई बोली ।
सुनील झिझकता हुआ मुस्कराया ।
“सूरत-शक्ल से तो तुम किसी अच्छे घर के चिराग मालूम होते हो ।”
“था ।”
“अब क्या हो गया है ?”
“अब तो सब कुछ खत्म हो गया” - सुनील ठण्डी सांस लेकर बोला - “अब तो मैं इस दुनिया में एकदम तनहा इन्सान हूं ।”
“तुम जेल किस अपराध में गये थे ?”
सुनील खिड़की से बाहर देखने लगा ।
“आल राइट, सॉरी ।”
अनीता काफी देर कुछ नहीं बोली ।
सुनील का ध्यान एकाएक रियर व्यू मिरर की ओर गया । एक काले रंग की कार बड़ी देर से उसे अपने पीछे दिखाई दे रही थी ।
“मेरी वजह से तुमने बहुत बड़ा रिस्क लिया । अगर तुम पकड़े जाते तो लोग यही समझते कि तुम कार चुराने की कोशिश कर रहे थे ।”
सुनील चुप रहा ।
“तुमने ऐसा क्यों किया ?”
“आपकी खातिर !”
“मेरी खातिर क्यों ?”
“क्योंकि मैं किसी खूबसूरत लड़की को मुश्किल में नहीं देख सकता ।”
“मैं खूबसूरत लड़की हूं ?”
“जी हां ! बहुत ।”
“मैं तुम्हें खूबसूरत लगी हूं या हूं ही खूबसूरत !”
“आप हैं ही खूबसूरत ।”
“थैंक्यू ।” - अनीता चित्ताकर्षक स्वर में बोली ।
“मुझे यहीं उतार दीजिए ।” - एकाएक सुनील बोला ।
“यहां !” - अनीता हैरानी से बोली । उसने कार रोकने का उपक्रम नहीं किया - “क्यों ?”
“मुझे एक काम बाद आ गया है ।”
तब तक सुनील को पूरी तरह विश्वास हो चुका था कि पीछे आ रही काली कार उन्हीं का पीछा कर रही थी । इसलिए वक्ती तौर पर उसे अनीता से अलग हो जाना ही मुनासिब लग रहा था ।
“क्या वह काम नौकरी हासिल करने से ज्यादा जरूरी है ?”
उसी क्षण कार एक सिग्नल पर आ खड़ी हुई । अनीता के कुछ कह पाने से पहले ही वह कार का अपनी ओर का दरवाजा खोलकर सड़क पर आ खड़ा हुआ ।
उसी क्षण सिग्नल की बत्ती हरी हो गई । अनीता को मजबूरन कार आगे बढानी पड़ी । उनका पीछा करती हुई काली कार भी आगे बढ गई ।
एक स्कूटर पर सुनील वापिस सुपर बाजार पहुंचा । वहां से वह अपनी इम्पाला पर सवार हुआ और ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में पहुंच गया ।
‘ब्लास्ट’ की टेलीफोन आपरेटर-कम-रिसैप्शनिस्ट रेणु ने उसे देखा तो हैरानी से बोली - “अरे मैं तो फूल भी भिजवा चुकी थी ।”
“क्या मतलब ?” - सुनील भी हैरानी से बोला ।
“इतने दिनों में दफ्तर में तुम्हारा थोबड़ा दिखाई नहीं दिया तो मैं समझी कि तुम मर गये हो, इसलिए फूल भिजवाना मैंने अपना फर्ज समझा ।”
“और फूल कहां भिजवाये तुमने ?”
“यतीमखाने में और कहां ! साथ में एक चिट्ठी लिख दी थी कि तुम्हारी शक्ल सूरत की कोई लावारिस लाश अगर यतीमखाने वालों को मिले तो वे लोग उस पर मेरे भेजे फूल चढा दें ।”
“अब तो मायूसी हो रही होगी ?”
“क्यों ?”
“कि मैं मरा नहीं और तुम्हारे फूल बेकार गये ।”
“क्या फर्क पड़ता है । यार दोस्तों के लिए ऐसी कुर्बानी करनी ही पड़ती है ।”
“मैं तुम्हारा यार दोस्त हूं ।”
“और क्या दुश्मन हो ?”
“जो मेरी मौत की कामना करे वह मेरा दुश्मन ही हुआ ।”
“बहुत नाशुक्रे इन्सान हो । तुम्हारी मौत की कामना कौन कर रहा है ? मैंने तो मर चुकने के बाद की स्टेज के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाई थी । जैसे मैं तुम्हारी जिन्दगी में तुम्हारी मुनासिब इज्जत करती हूं वैसे ही क्या मैं तुम्हारी लाश की नाकद्री होती देखना पसन्द करूंगी ।”
“बहुत इज्जत कर रही हो । मेमसाहब । ऐसी इज्जत से तो भगवान बचाये । वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए मैं सुबह भी यहां था ।”
“सुबह मैं देर से आई थी ।”
“क्या रात भर जागती रही थी क्या ?”
“मैं भला क्यों जागने लगी रात भर ?”
“यह तो तुम्हें ही मालूम हो । शायद पिछली रात आहें भरते और सितारे गिनते गुजरी हो ।”
“किस खुशी में !”
“खुशी में नहीं फिक्र में । कहीं मुझे कुछ हो तो नहीं गया ।”
“हो जाये तुम्हें कुछ । मेरी बला से ।”
“यानी कि तुम्हें मेरी कोई फिक्र नहीं ।”
“सवाल नहीं पैदा होता ।”
“तो फिर यह फूल भिजवाने की मेहरबानी क्यों की जा रही थी ?”
“सिर्फ इसलिए कि आशिक का जनाजा है जरा धूम से निकले ।”
“बोर्ड पर काल आ रही है ।”
“मुझे मालूम है । और सुनाओ क्या हाल है ?”
“दुआ है कद्रदानों की ।”
“बड़ी मुद्दत हो गई तुमने मुझे किसी बढिया जगह काफी के लिए निमन्त्रण नहीं दिया ।”
“अब दूंगा ।”
“कब ?”
“पहली तारीख को ।”
“पहली को क्यों ?”
“दरअसल मैं तुम्हें अपनी मुकम्मल मुहब्बत और सारी तनख्वाह के साथ इन्वाइट करना चाहता हूं ।”
“एक बार काफी पिलाने के लिए सारी तनख्वाह की जरूरत होती है ।”
“काफी के लिए नहीं लेकिन मुमकिन है काफी के बाद हनीमून का प्रोग्राम बन जाये ।”
“यानी कि शादी से पहले हनीमून !”
“क्या हर्ज है शादी एक अलहदा चीज है और हनीमून एक अलहदा चीज है । तुम दो जुदा-जुदा कामों को एक निगाह से क्यों देखती हो ?”
“लानत है ।”
“वह तो है ही वर्ना मैं इतनी देर से यहां खड़ा बकवास नहीं कर रहा होता ।”
“बहरहाल जिन्दा हो, जानकर खुशी हुई । कभी-कभार राजी खुशी की लिखते रहा करो ।”
“बेहतर ।”
सुनील रेलिंग लगे उस गलियारे में आगे बढ गया जिसमें उसका केबिन था ।
रास्ते में वह चपरासी को अर्जुन को बुलाने के लिए कहता गया ।
“मैंने पांच सौ रुपए इनाम वाला विज्ञापन देने वाले की हकीकत जानने की एक तरकीब सोची है ।” - सुनील अर्जुन से बोला ।
“क्या करूं ?” - अर्जुन बोला ।
“क्यों न मैं ही विज्ञापनदाता को लिखूं कि मैं एक्सीडेन्ट का चश्मदीद गवाह हूं । इससे विज्ञापनदाता खुद मुझसे सम्पर्क स्थापित करेगा ।”
“तब क्या होगा ?”
“तब की तब देखी जाएगी । पहले पता तो लगे कि विज्ञापनदाता है कौन ? और वह पांच सौ रुपए क्यों खर्चना चाहता है और वह अपनी हकीकत को राज क्यों रखना चाहता है ?”
“ठीक है । लिख देना ।”
सुनील ने एक कोरा कागज अपने सामने खींच लिया । उस ने कागज पर लिखा ।
महोदय,
चौदह नवम्बर साढे तीन बजे शाम लिटन रोड और जहांगीर रोड के क्रासिंग के समीप हुआ एक्सीडेन्ट मेरी आंखों के सामने हुआ था । कृपया मुझसे टेलीफान नम्बर 212079 पर सम्पर्क स्थापित करें ।
उसने पत्र को लपेट कर एक कोरे लिफाफे में रखा और लिफाफे पर पता लिख दिया - विज्ञापनदाता, बाक्स नम्बर 4694, ब्लास्ट राजनगर ।
लिफाफा उसने अर्जुन को सौंप दिया । अर्जुन लिफाफा लेकर चला गया ।
सुनील ने एक और कोरा कागज अपने सामने खींचा और उस पर लिखना शुरू किया ।
आदरणीय नानी जी,
सादर प्रणाम ।
यहां सब कुशल है और आपकी कुशलता परमपिता परमात्मा से शुभ चाहता हूं । सूचनार्थ निवेदन है कि मैं आपके रिसैप्शन डैस्क से अपने केबिन तक सुरक्षित पहुंच गया हूं और एक आज्ञाकारी बालक की तरह मैंने गलियारे की रेलिंग से एक बार भी नीचे नहीं झांका था । आशा है इसके बदले में आप मुझे इनाम में वह चुम्बन अवश्य देंगी जिसका आपने मुझसे सन सत्तर में वादा किया था ।
योग्य सेवा लिखें ।
आपका आज्ञाकारी
सोनू
उसने वह पत्र भी लिफाफे में बन्द किया, उस पर रेणु का नाम लिखा और चपरासी के हाथ वह लिफाफा रेणु को भिजवा दिया ।
***
अगले दिन शाम को चार बजे सुनील सुपर बाजार के सामने फाउन्टेन और बाल प्वायन्ट पैन बेच रहा था । कपड़े पिछले दिन वाले ही थे लेकिन चेहरे पर एक दिन की शेव और बढ गई । दस-पन्द्रह पैन उसके कोट की जेब में लगे हुए थे और दस-पन्द्रह वह अपने हाथ में थामे हुए था ।
चार बजकर दस मिनट पर अनीता अपनी कार पर सुपर बाजार आई ।
लेकिन उसकी निगाह सुनील पर नहीं पड़ी ।
वह सुपर बाजार में प्रविष्ट हो गई ।
सुनील बड़े धैर्य से उसके लौटने की प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग आधे घण्टे बाद अनीता इमारत से बाहर निकली वह अपनी कार में सवार हो गई ।
सुनील कार पार्क के बाहर जाने वाले रास्ते के सामने आ खड़ा हुआ ।
कनखियों से उसने अनीता की कार को अपनी ओर बढते देखा ।
“एक-एक रुपया ! एक-एक रुपया !” - वह सड़क की ओर मुंह करके चिल्लाने लगा ।
अनीता की कार एकदम उसकी बगल में आकर रुकी ।
“सुनील !” - अनीता खिड़की से सिर निकालकर बोली ।
सुनील ने आवाज जान-बूझकर अनसुनी कर दी । वह पूर्ववत् जोर-जोर से चिल्लाता रहा - “एक-एक रुपया ! एक-एक रुपया ।”
“सुनील !” - इस बार अनीता उच्च स्वर में बोली ।
सुनील हड़बड़ाकर कार की ओर घूमा । अनीता पर निगाह पड़ते ही वह सकपका गया ।
“कार में बैठो ।” - वह बोली ।
“हां ।” - सुनील झिझकता हुआ बोला ।
पीछे से किसी ने हार्न बजाया ।
“अरे बैठो न” - वह तनिक झुंझलाकर बोली - “क्यों तमाशा बना रहे हो ? ट्रैफिक जाम हो रहा है, मुझे गाड़ी आगे बढानी है ।”
सुनील कार के आगे से घूमकर दूसरी ओर पहुंचा और अनीता की बगल में बैठा ।
कार आगे बढ गई ।
“अजीब आदमी हो ।” - वह बोली - “उस दिन भाग क्यों खड़े हुए थे ?”
“जी वो, वो... दरअसल मैं डर गया था ।”
“किस बात से ?”
“आपसे ।”
“मुझसे ।”
“जी हां ।”
“मैं क्या हौवा हूं ।”
“मैडम, यह बात...”
“मेरा नाम अनीता है ।”
“यह बात नहीं है जी । दरअसल आप जैसी खूबसूरत लड़की के पास बैठने का मुझे जिन्दगी में पहले कभी मौका नहीं मिला था, मुझे डर था कि कहीं मुझसे कोई बेअदबी न हो जाये ।”
“अभी भी तुम्हें डर है ?”
“जी हां ।”
“तो क्या फिर भाग खड़ा होने का इरादा है ।”
सुनील चुप रहा ।
तब तक सुनील को यह आभास मिल चुका था कि आज फिर पिछले दिन वाली काली कार उनका पीछा कर रही थी ।
“आज फाउन्टेन पैन बेच रहे थे ?” - अनीता बोली ।
“जी हां ।” - सुनील शर्माकर बोला ।
“पैसा कहां से आया ?”
“पैसा मैंने नहीं लगाया । मैं तो सिर्फ कमीशन पर काम कर रहा हूं ।”
“ये सारे पैन बिक जाये तो तुम्हें कितनी कमीशन मिलेगी ?”
“दो रुपये ।”
“इतने कम पैसों से क्या बनेगा तुम्हारा ?”
“कुछ न होने से तो अच्छा ही है ।”
“मैं समझ गई । तुम दोबारा जरायमपेशा जिन्दगी में कदम नहीं रखना चाहते । तुम नहीं चाहते कि तुम्हें फिर जेल की चारदीवारी का मुंह देखना पड़े । इसलिए तुम कोई भी ईमानदारी का काम करने के लिए तैयार हो ।”
“आप बहुत समझदार है ।”
“क्या पहले तुम कारें चुराया करते थे ?”
सुनील ने उत्तर नहीं दिया ।
“क्या इसी अपराध में तुम जेल गए ?”
सुनील खिड़की से बाहर देखने लगा ।
“अच्छा ठीक है अगर तुम्हें बुरा लगता है तो हम इस बारे में कोई बात नहीं करेंगे ।”
कार के चेथम रोड पर पहुंचने तक कोई बात नहीं हुई ।
उसने कार चन्द्रकिरण के कम्पाउन्ड में जाकर खड़ी कर दी ।
सुनील ने कनखियों से देखा, जो काली कार उनका पीछा कर रही थी, वह बाहर सड़क पर ही रुक गई थी । कोई कार में से बाहर नहीं निकला ।
“तुम सामान उठा लो ।” - अनीता बोली ।
सुनील ने फाउन्टेन पैन जो उसने अभी भी अपने हाथ में थामे हुए थे अपने कोट की जेब में डाले और अनीता की आज खरीदारी सम्भाल ली ।
अनीता उसे अपने फ्लैट में ले आई । उसका फ्लैट इमारत की तीसरी मंजिल पर था ।
“सामान किचन में रख आओ ।”
सुनील ने आज्ञा का पालन किया ।
“कुछ खाओगे ।”
“जी.. जी...”
“ठहरो, आज खाना खाया तुमने ?”
सुनील निगाहें चुराने लगा ।
“हे भगवान ! कब से खाना नहीं खाया तुमने ? मैं अभी तुम्हारे लिए कुछ बनाकर लाती हूं ।”
“जरूरत नहीं ।”
“तकल्लुफ मत करो । जरूरत है ।”
“आप मुझ पर इतनी मेहरबानी क्यों कर रही हैं ?”
“इसमें मेहरबानी की क्या बात है । आखिर इन्सान ही इन्सान के काम आता है ।”
“फिर भी...”
“और फिर शायद मुझे भी कभी तुम्हारी जरूरत पड़े ।”
“जान हाजिर है ।”
“जान भी लेंगे” - अनीता बड़े चित्ताकर्षक ढंग से मुस्कराती हुई बोली - “और काम भी लेंगे ।”
“मैं पागल हो जाऊंगा ।” - सुनील बौखलाए स्वार में बोला ।
“पहले कुछ खा लो । भूखे पेट पागल होना मुश्किल होता है ।”
अनीता किचन की ओर बढ गई ।
कुछ ही देर बार सारे फ्लैट में आमलेट बनने की गन्ध फैल गई ।
लगभग पांच मिनट बाद अनीता कई स्लाइसों के साथ आमलेट और एक काफी का मग लेकर लौटी । उसने सारा सामान सुनील के सामने रख दिया ।
“खाओ ।” - वह बोली ।
“आप ?” - सुनील ने पूछा ।
“मेरी फिक्र मत करो, मुझे भूख नहीं है ।”
सुनील ने सकुचाते हुए आमलेट की ओर हाथ बढा दिया ।
उसी क्षण फ्लैट की कालबैल बज उठी । साथ ही किसी ने द्वार भी खटखटाया ।
“हे भगवान !” - अनीता हड़बड़ाकर बोली - “यह जरूर गौरीशंकर होगा । वही इतना उतावला है कि उसे सिर्फ घन्टी बजाकर ही सब्र नहीं होता ।”
“गौरीशंकर कौन है ?” - सुनील ने भयभीत होने का अभिनय करते हुए पूछा ।
“मेरा एक दोस्त है ।” - अनीता बोली और द्वार की ओर बढ गई । उसने दरवाजा खोला ।
शक्ल सूरत से ही दादा लगने वाले आदमी ने कदम रखा ।
“ये गौरीशंकर है” - अनीता बोली - “और यह सुनील है जिसके बारे मैं मैंने तुम्हें बताया था । बेचारे को किसी अच्छी नौकरी की तलाश है ।
“हूं ।” - गौरीशंकर बोला । वह सुनील के सामने एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“आमलेट खाओ ।” - वह बोला ।
“मुझे भूख नहीं रही ।” - सुनील बोला ।
“हा हा हा” - गौरीशंकर ने ठहाका लगाया - “मेरी सूरत देखते ही भूख उड़ गई ।”
सुनील ने व्याकुल नेत्रों से अनीता की ओर देखा । अनीता ने उसे आश्वस्त रहने का संकेत किया ।
“हूं - गौरीशंकर फिर बोला । हर फिकरा ‘हूं’ से शुरू करने की उसकी आदत मालूम होती थी - “तो तुम्हारा नाम सुनील है ।”
“जी हां ।” - सुनील बोला ।
“जेल से कब छूटे ?”
“मैं कभी जेल गया ही नहीं । इससे छूटने का सवाल ही नहीं पैदा होता ।”
“हूं । दाई से पेट छुपाते हो ?”
सुनील चुप रहा ।
“अच्छा ठीक है । तुम जेल कभी नहीं गये । तुम बहुत ही शरीफ और ईमानदारी आदमी हो लेकिन आजकल कड़के हो और किसी अच्छे काम की तलाश में हो जिससे तुम अच्छा पैसा कमा सको । करैक्ट ?”
“करैक्ट ।”
“मैं तुम्हें काम दे सकता हूं ।”
“थैंक्यू ।” - सुनील उठता हुआ बोला - “लेकिन मुझे आपसे काम नहीं लेना मुझे आपकी सूरत से ही डर लगता है अगर मुझे मालूम होता कि मिस अनीता मेरा आमना-सामना आपसे करवाने वाली है तो मैं यहां हरगिज नहीं आता । मैं जा रहा हूं ।”
और सुनील लम्बे डग भरता हुआ दरवाजे की ओर बढा ।
“वापस आओ ।” - गौरीशंकर कर्कश स्वर में बोला ।
सुनील ठिठक गया ।
“तुमने यह तो पूछा ही नहीं कि मैं तुम्हें क्या काम दे सकता हूं ।”
“मुझे पूछने की जरूरत ही नहीं । मैं आपके साथ काम करना नहीं चाहता ।”
“मेरे साथ भी नहीं ?” - अनीता बोली ।
“आपकी बात अलग है” - सुनील बोला - “लेकिन क्योंकि आपका सम्बन्ध इस आदमी से है इसलिए आपके साथ भी नहीं ।”
“बहुत नफरत है तुम्हें मुझसे ?” - गौरीशंकर विषैले स्वर से बोला ।
सुनील चुप रहा ।
“मैं तुम्हारी हड्डी-पसली अलग कर सकता हूं ।”
सुनील ने आतंकित नेत्रों से अनीता की ओर देखा । अनीता ने उसे फिर निगाहों से आश्वासन दिया ।
“और मैं तुम्हें फिर जेल भिजवा सकता हूं ।” - गौरीशंकर बोला ।
“जेल !” - सुनील के मुंह से निकला ।
“हां जेल । तुम्हारी जानकारी के लिए कल शाम को सुपर बाजार के सामने जिस इम्पाला कार के इग्नीशन को शॉर्ट सर्कट करके तुमने उसे अपनी जगह से हटाया था, वह कार मेरी है । वह कार मैंने अभी कल ही खरीदी है और अनीता को भी उसके बारे में जानकारी है । मैंने तुम्हें अपनी कार में घुसकर इग्नीशन की तारें छीनकर उन्हें शॉर्ट सर्कट करते देखा था और मेरे साथ मेरा एक दोस्त भी था जो कि इस बात का गवाह है कि तुम कार चुराने की कोशिश कर रहे थे । मैं तुम्हें आसानी से जेल भिजवा सकता हूं ।”
“लेकिन मैं कार चुराने की कोशिश नहीं कर रहा था ।” - सुनील तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोला - “मैं तो केवल इन देवी जी की सहायता कर रहा था ।”
“मुझे मालूम है लेकिन पुलिस वाले तुम्हारी बात पर कभी विश्वास नहीं करेंगे और अनीता मेरी मुट्ठी में है । मैं इसे मजबूर कर दूंगा कि यह तुम्हारे खिलाफ गवाही दे ।”
“आप ऐसा करेंगी ?” - सुनील अनीता की ओर घूमा ।
“मैं मजबूर हूं” - अनीता बोली - “लेकिन सुनील, तुम कम से कम सुन तो लो कि गौरी शंकर तुमसे क्या काम करवाना चाहता है । शायद तुम्हें उसकी आफर पसन्द ही आ जाये ।”
सुनील चुप रहा ।
“और मेरी इम्पाला कार में तुमने अपनी उंगलियों के निशान भी छोड़े हैं ।” - गौरीशंकेर धमकी भरे स्वर में बोला ।
प्रत्यक्षत: सुनील गम्भीर था और भयभीत होने का अभिनय कर रहा था । लेकिन मन की स्थिति का भरपूर आनन्द ले रहा था । गौरीशंकर रमाकान्त की इम्पाला कार को अपनी कार बता रहा था और उसे बड़े बचकाने ढंग से धमका रहा था । वैसे अभी तक वही कुछ हो रहा था जो कि सुनील चाहता था कि हो । अनीता उसे जेल से छूटा अपराधी समझ रही थी और उसे अपना कोई उल्लू सीधा करने के लिए बहुत उपयुक्त आदमी मान रही थी । इसलिए वह उसे अपने फ्लैट पर लेकर आई थी । अब केवल यह देखना बाकी रह गया था कि वे लोग उससे करवाना क्या चाहते थे ।
“तुम...” - वह हकलाता हुआ बोला - “तुम क्या चाहते हो मुझसे ?”
“हूं ।” - गौरीशंकर ने एक विजेता की तरह लम्बी हुंकार भरी - “अब आये न रास्ते पर । हो तो समझदार आदमी लेकिन लगता है तुम्हें कभी-कभी हिमाकत का दौरा पड़ता है ।”
“क्या चाहते हो मुझसे ?”
“काम मामूली है लेकिन उसमें थोड़ी दिलेरी, थोड़ी होशियारी और थोड़ी समझदारी की जरूरत है ।”
“कोई खतरे का काम है ?”
“खतरा एक प्रतिशत का भी नहीं है । और अगर तुम काम को ठीक से अंजाम देने में कामयाब हो जाओगे तो मैं तुम्हें उचित मेहनताना भी दूंगा ।”
“कितना ?”
गौरीशंकर एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “पांच सौ रुपये । दो सौ रुपये अभी और तीन सौ काम हो जाने के बाद ।”
“काम बोलो ।”
गौरीशंकर ने अपनी जेब से एक अखबार की कटिंग निकाली और उसे सुनील के सामने कर दिया ।
सुनील ने देखा वह उसी विज्ञापन की कटिंग थी जिसमें चौदह नबम्बर साढे तीन बजे लिटन रोड और जहांगीर रोड के चौराहे के पास हुए एक्सीडेन्ट के चश्मदीद गवाह को पांच सौ रुपये इनाम देने की घोषणा की गई थी ।
“इसे पढो ।” - गौरीशंकर बोला ।
“पढ लिया है मैंने ।” - सुनील बोला ।
“यह एक्सीडेन्ट तुम्हारे सामने हुआ था ।”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । मैं तो...”
“सुनते रहो । बीच में मत बोलो । यह एक्सीडेन्ट तुम्हारी आंखों के सामने... हुआ था । ...तुम... इसके चश्मदीद गवाह हो ।”
“अच्छा हूं फिर !”
“चौदह नवम्बर की शाम को साढे तीन बजे के करीब तुम जहांगीर रोड पर फुटपाथ पर चल रहे थे । तुमने सड़क पर चौराहे की ओर बढती हुई एक एम्बैसेडर कार देखी जिसका ड्राइवर निहायत लापरवाही से कार चला रहा था । वह एक लगभग पैंतालीस साल का मोटा ताजा आदमी था, मूंछें रखता था और सिर से काफी हद तक गंजा था । उससे आगे एक फियेट थी जिसे एक खूबसूरत नौजवान चला रहा था । दोनों कार ड्राइवरों का हुलिया मैं तुम्हें बात में बारीकी से समझा दूंगा । तुमने दोनों को तब देखा था जब वे एक्सीडेन्ट के बाद अपनी-अपनी कारों से निकले थे ।”
“अच्छा ।”
“एम्बैसेडर के ड्राइवर की गलती से उसकी गाड़ी आगे जाती फियेट के पृष्ठ भाग से जा टकराई थी । एक्सीडेन्ट की वजह से एम्बैसेडर का अगला भाग और फियेट का पिछला भाग बुरी तरह पिचक गया था और एक्सीडेन्ट से ऐसा नहीं लगता था कि किसी को कोई चोट पहुंची हो । तुमने फियेट के ड्राइवर के सिर के एक्सीडेन्ट के समय जोर से झटका खाते देखा था लेकिन बाद में एम्बैसेडर के ड्राइवर से बात करने के लिये खुद कार से बाहर निकला था जिससे जाहिर होता था कि उसे कोई खास चोट नहीं पहुंची थी । समझ गये ?”
“समझ गया ।”
“यह बात बहुत महत्वपूर्ण है कि तुमने फियेट के ड्राइवर के सिर को बुरी तरह झटका खाते देखा था ?”
“क्या महत्वपूर्ण है यह ?”
“वजह तुम्हारी समझ में नहीं आयेगी ।”
सुनील ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला और फिर चुप हो गया ।
“अब एक चिट्ठी लिखो ।” - वह बोला ।
“लिखवाओ ।” - सुनील बोला ।
“लिखो । माननीय महोदय । मेरा नाम सुनील कुमार है । अखबार में विज्ञापित एक्सीडेन्ट मेरी आंखों के सामने हुआ था आप मुझसे टूरिस्ट होटल में सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं । लिख लिया ?”
“हां ।”
“नीचे साइन करो ।”
सुनील ने साइन कर दिये ।
गौरीशंकर ने कागज उसके हाथ से ले लिया और उसे तह करके जेब में रख लिया ।
“तुम लोग मुझे किसी बखेड़े में तो नहीं फंसा रहे हो ?” - सुनील बोला ।
“घबराओ नहीं” - गौरीशंकर बोला - “तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा ।”
सुनील ने अनीता की ओर देखा ।
“गौरीशंकर ठीक कह रहा है” - अनीता बोली - “उस पर नहीं तो मुझ पर भरोसा रखो ।”
“इस चिट्ठी का क्या होगा ?”
“यह चिट्ठी” - गौरीशंकर बोला - “मैं मुनासिब हाथों में पहुंचा दूंगा । फिर कोई तुमसे सम्पर्क स्थापित करेगा और एक्सीडेंट के बारे में पूछेगा । तुम उसे वही कहानी सुना दोगे जो मैंने अभी तुम्हें सुनाई थी ।”
“अगर उसे मुझ पर शक हो गया कि मैं झूठ बोल रहा हूं ।”
“उसको विश्वास दिलाना तुम्हारा काम है । इसी के तुम्हें पांच सौ रुपये मिल रहे हैं । अगर उसे तुम्हारी कहानी पर शक हो गया तो मैं तुम्हारी हड्डी पसली अलग कर दूंगा ।”
सुनील भयभीत होने का अभिनय किया ।
“याद रखो, एक्सीडेन्ट एम्बैसेडर वाले की गलती से हुआ था वह सूरत से ही बहुत थका हुआ और लापरवाह लग रहा था । शायद वह नशे में भी था । उसने पहले अपनी गाड़ी फियेट से आगे निकालने की कोशिश की थी लेकिन वह जब कामयाब नहीं हो पाया था तो उसने गाड़ी को फिर फियेट के पीछे लगाना चाहा था, गाड़ी उससे सम्भली नहीं थी ओर एक्सीडेन्ट हो गया था ।”
“अगर किसी ने मुझसे पूछा कि एक्सीडेन्ट के समय मैं कहां खड़ा था और क्या कर रहा था तो मैं क्या बताऊंगा ?”
“अभी मैं तुम्हें जहांगीर रोड पर लेकर चलता हूं । ये सारी बातें मैं तुम्हें वहां चलकर बताऊंगा ।”
“बेहतर ।”
“और उसके बाद मैं तुम्हें टूरिस्ट होटल में एक कमरा दिलवा दूंगा और कुछ कपड़े और रोजमर्रा का जरूरी सामान दिलवा दूंगा । तुम्हारे पास तो कुछ होगा नहीं ।”
“मेरे पास कुछ नहीं है ।”
“कोई फर्क नहीं पड़ता ।”
“होटल में मैं क्या करूंगा ?”
“होटल में तुम तब तक ठहरोगे जब तक कि कोई तुमसे एक्सीडेन्ट के बारे में सम्पर्क स्थापित नहीं करता ।”
“यह गारन्टी है कि कोई मुझसे सम्पर्क स्थापित करेगा ?”
“गारन्टी है ।”
“कोई फंसने वाली बात तो नहीं !”
“नहीं भरोसा रखो ।”
“तुमने दो सौ रुपये एडवांस का जिक्र किया था ।”
“वे भी मिल जायेंगे अब उठो और चलो मेरे साथ ।”
सुनील एक आज्ञाकारी बालक की तरह उठकर खड़ा हो गया ।
***
अगले दिन दो बजे के करीब वह टेलीफोन काल आई जिसका टूरिस्ट होटल में बैठा सुनील इन्तजार कर रहा था ।
“मिस्टर सुनील ?” - दूसरी ओर से एक भारी आवाज सुनाई दी ।
“बोल रहा हूं ।” - सुनील बोला ।
“मेरा नाम रोशनलाल खुराना है । मैं खुराना एण्ड चोपड़ा प्रापर्टी डीलर्स एण्ड कालोनाइजर्स का सीनियर पार्टनर हूं ।”
“फरमाइये ?”
“मुझे पता लगा है कि आपने चौदह नवम्बर को शाम साढे तीन बजे के करीब लिटन रोड और जहांगीर रोड के क्रॉसिंग के समीप हुआ मोटर एक्सीडेन्ट देखा है ।”
“आपको कैसे मालूम हुआ ?”
“हो गया किसी तरह से । मैं उस एक्सीडेन्ट के बारे में आप से बात करना चाहता हूं लेकिन इस वक्त मैं काम में इतना बिजी हूं कि मैं खुद आपके पास हाजिर नहीं हो सकता हूं । क्या आप यहां आने की तकलीफ कर सकते हैं ?”
“कहां आना होगा ?”
“खुराना एण्ड चोपड़ा के ऑफिस में । मैं आपके होटल में गाड़ी भेज देता हूं । मेरी सेक्रेटरी आपको यहां ले आयेगी ।”
“उसको यहां आने में कितनी देर लगेगी ?”
“हद से हद पन्द्रह मिनट ।”
“ठीक । पन्द्रह मिनट बाद मैं होटल के सामने फुटपाथ पर खड़ा मिलूंगा ।”
“थैंक्यू वेरी मच मिस्टर सुनील । मैं फौरन गाड़ी भेज रहा हूं ।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
पन्द्रह मिनट बाद सुनील होटल के सामने फुटपाथ पर खड़ा सिगरेट के कश लगा रहा था ।
एक एम्बैसेडर कार होटल के सामने आकर रुकी । ड्राइविंग सीट पर एक खूबसूरत लड़की मौजूद थी ।
सुनील ने देखा, कार का अगला हिस्सा मरम्मत हो चुकने के बावजूद भी साफ जाहिर कर रहा था कि उसका एक्सीडेन्ट हुआ था ।
लड़की कार से बाहर निकली । उसने अपने दायें-बायें देखा फुटपाथ पर उस समय सुनील के अतिरिक्त कोई दूसरा आदमी मौजूद नहीं था इसलिए गलतफहमी की कोई गुंजाइश ही नहीं थी । वह लम्बे डग भरती हुई सुनील के सामने आ खड़ी हुई ।
“आपका नाम मिस्टर सुनील है ?” - वह तत्पर स्वर से बोली ।
सुनील ने स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“खुराना एण्ड चोपड़ा प्रापर्टी डीलर्स एण्ड कालोनाइजर्स के मिस्टर खुराना ने अभी आपको टेलीफोन किया था ?”
“हां ।”
“नमस्कार । मेरा नाम वीणा है । मैं मिस्टर खुराना की सेक्रेट्री हूं । मैं आपको लेने आई हूं । तशरीफ लाइये ।”
सुनील ने सिगरेट फेंक दिया और वीणा के साथ गाड़ी की ओर बढा । दोनों गाड़ी में सवार हो गये । वीणा ने गाड़ी आगे बढा दी ।
“हम कहां जा रहे हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“अशोका एन्क्लेव । खुराना एण्ड चोपड़ा के दफ्तर में ।”
“अशोका एन्क्लेव कहां हुई ?”
“नगर से बाहर केरी रोड पर । नई कालोनी बन रही है । सारे प्लाट चोपड़ा एण्ड खुराना कम्पनी ही बेच रही है । आप इस शहर में नये आये हैं ?”
“जी हां । सिर्फ एक महीने से यहां रह रहा हूं ।”
“चौदह नवम्बर को आपने एक्सीडेन्ट देखा था ?”
“जी हां ।”
“आपकी जानकारी के लिये एक्सीडेन्ट इसी कार से हुआ था जिसमें आप बैठे हैं ।”
“अच्छा !”
“हां । आप काम क्या करते हैं, मिस्टर सुनील ?”
“बेकार हूं ।”
“कमाल है । फिर आप होटल का खर्चा कैसे उठाते हैं ?”
“मैं अब बेकार हूं । हमेशा बेकार नहीं था । मैंने काफी पैसा जमा कर रखा है और मुझे जल्दी ही नौकरी मिल जायेगी ।”
“ओह ! आई एम सारी ।”
उस समय सुनील एक सस्ता लेकिन नया सूट पहने हुए थे । वह सूट उसे गौरीशंकर ने दिलवाया था । उसी ने उसे जबरदस्ती शेव करने को मजबूर किया था । उसके बाल सलीके से संवरे हुए थे और उस समय वह एक मध्यम वर्ग का सभ्रान्त व्यक्ति लग रहा था ।
वीणा ने कार एक मंजिली इमारत के सामने रोक दी । उस इमारत के आस-पास दूर-दूर तक कोई इमारत नहीं थी । इमारत पर खुराना एण्ड चोपड़ा प्रापर्टी डीलर्स एण्ड कालोनाइजर्स का बोर्ड लगा हुआ था ।
तीन सीढियां चढ कर वे आफिस में प्रविष्ट हुए । आफिस में एक हाल था जिसमें कई लोग मौजूद थे । वीणा उसे हाल के सिरे पर ले आई । एक दरवाजा खोलकर वे भीतर प्रविष्ट हुए । वह एक छोटा-सा आफिस था जिसमें एक टाइपिस्ट बैठी हुई थी । उस आफिस की एक दीवार के साथ दो बन्द दरवाजे दिखाई दे रहे थे । एक पर रोशनलाल खुराना का नाम लिखा था तथा दूसरे पर रामप्रकाश चोपड़ा लिखा था ।
वीणा उसे रोशनलाल खुराना के आफिस में ले आई ।
खुराना का आफिस बाहरी आफिस से दुगना बड़ा था । दाईं ओर एक विशाल मेज थी जिस पर कालोनी का लकड़ी और दफ्ती का बना हुआ माडल पड़ा था । माडल में कालोनी का सारा इलाका, कटे हुए प्लाट, इक्के-दुक्के बने हुए मकान, सड़कें, पेड़ और बिजली के खम्बे वगैरह बड़े सलीके से दिखाये गये थे ।
एक अन्य मेज के पीछे एक लगभग पैंतालीस साल का मोटा-ताजा तन्दुरुस्त आदमी बैठा था । उसके चेहरे पर बड़े सलीके से तराशी हुई मूछें थीं और वह सिर से काफी हद तक गंजा था ।
वह रोशनलाल खुराना था ।
गौरीशंकर ने उसका हुलिया बड़ी बारीकी से बयान किया था इसलिये सुनील को उसे पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हुई ।
“मिस्टर सुनील, सर ।” - खुराना अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ - “हल्लो मिस्टर सुनील, ग्लैड यू हैव कम ।”
खुराना ने बड़ी गर्मजोशी से उससे हाथ मिलाया ।
“तशरीफ रखिये ।”
सुनील एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“क्या पीजियेगा ?”
“जो आप पिलायें ।”
“वैरी गुड । कोका कोला ?”
“ओ के बाई मी ।”
वीणा ने फोन उठाया, एक बटन दबाया और फिर फोन में कहा - “कोका कोला ।”
“कालोनी देखी आपने ?” - खुराना बोला ।
“जी हां, देखी ।” सुनील बोला ।
“चार साल बाद यह राजनगर की सबसे शानदार कालोनी होगी ।”
“मुमकिन है ।”
“यह हकीकत है साहब । मैं आपको एक नेक राय दे रहा हूं । एक प्लाट खरीद डालिये यहां । बहुत पैसे कमायेंगे आप ।”
“कितने ?”
“इस वक्त हम चालीस रुपये गज जमीन बेच रहे हैं यानी कि दो सौ गज के प्लाट की कीमत आठ हजार रुपये । चाल साल बाद, मेरे से स्टाम्प पेपर पर लिखवा लीजिये, प्लाट की कीमत चालीस हजार रुपये होगी । चार साल में आप नगद छत्तीस हजार रुपया कमा लेंगे ।”
“सारी । मैं गरीब आदमी हूं । मेरे पास आठ हजार रुपये नहीं हैं ।”
“अगर आप आधी पेमेंट एडवांस कर सकें तो मैं विशेष रूप में आपके लिये बाकी के चार हजार रुपये की किश्तें करा दूंगा ।”
“सॉरी । मेरी हैसियत नहीं ।”
“या फिर सारी ही रकम किश्तों में...”
“माफ कीजिये । मेरी दिलचस्पी नहीं । मैं लैंडलार्ड नहीं बनना चाहता ।”
“हा-हा-हा ।” - खुराना खोखली-सी हंसी हंसा - “जैसा आप मुनासिब समझें ।”
एक चपरासी कोका कोला सर्व कर गया ।
“अगर आप इजाजत दें तो हम एक्सीडेन्ट पर आयें ?” - खुराना बोला ।
सुनील ने वीणा की ओर देखा ।
खुराना ने खंखार कर गला साफ किया और बोला - “मेरी सेक्रेट्री हम दोनों का वार्तालाप शार्टहैंड में नोट करेगी । मुझे उम्मीद है आपको कोई ऐतराज नहीं होगा ।”
“मुझे कोई एतराज नहीं । हकीकत तो हकीकत ही है ।” - सुनील बोला ।
“जी हां । जी हां । तो आपने एक्सीडेन्ट देखा था ?”
“जी हां ।”
“क्या देखा था साहब आपने ?”
“चौदह नवम्बर शाम को लगभग साढे तीन बजे का वक्त था । मैं जहांगीर रोड पर जा रहा था और...”
और सुनील ने एक्सीडेन्ट का ठीक उसी तरह बयान कर दिया जैसे गौरीशंकर ने उसे बताया था ।
“आई सी ।” - सारी बात सुन चुकने के बाद खुराना बेहद गंभीर स्वर में बोला - “अगली कार के ड्राइवर को आपने देखा था !”
“जी हां । वह एक खूबसूरत नौजवान था ।”
“उसको किसी प्रकार की कोई चोट आई थी ?”
“मुझे नहीं मालूम लेकिन एक्सीडेन्ट के समय मैंने उसकी गरदन को जोर से झटका खाते देखा था ।”
“पिछली कार के ड्राइवर की भी आपने सूरत देखी थी ।”
“जी हां !”
“आप उसे पहचानते हैं ।”
“तब नहीं पहचानता था । अब पहचानता हूं ।”
“कौन था वह ?”
“आप थे ।”
“श्योर ?”
“वैरी ।”
“एक्सीडेन्ट में गलती किसकी थी ?”
सुनील झिझका ।
“आप बेहिचक हकीकत बयान कीजिये, साहब । यह कोई अदालत में बयान थोड़े ही हो रहा था । यहां कोई फर्क नहीं पड़ता है ।”
“गलती सरासर आपकी थी, मिस्टर खुराना ।” - सुनील बोला - “आपका ध्यान ड्राइविंग की ओर नहीं था । आप फियेट के एकदम सिर पर पहुंच गये थे तो तब कहीं जाकर आपको खबर हुई थी कि आगे सिग्नल लाल हो जाने की वजह से ट्रैफिक रुक चुका था । आपने पहले फियेट से आगे निकलने की कोशिश की लेकिन तब तक विपरीत दिशा से गाड़ियां आने लगी थीं । अगर आप फौरन फियेट के पीछे अपनी कार न लगाते तो आप सामने से आती किसी गाड़ी के साथ सीधे जा टकराते । अपनी कार को फियेट के पीछे लाने के चक्कर में आपसे ठीक से ब्रेक लगी नहीं और भड़ाक से अपनी कार फियेट के पृष्ठ भाग में दे मारी ।”
“एक्सीडेन्ट के बाद क्या हुआ था ?”
“आप दोनों कार से निकले थे । आप दोनों ने एक-दूसरे के नाम पते और कार नम्बर वगैरह नोट किये थे ।”
“उस दौरान में फियेट वाले युवक की स्थिति कैसी थी ?”
“वह बेहद बौखलाया हुआ लग रहा था और बार-बार अपने हाथ से अपनी गरदन के पृष्ठ भाग को मसल रहा था ।”
“एक्सीडेन्ट के बाद क्या हुआ ?”
“आप दोनों अपनी-अपनी कारों में सवार होकर वहां से रवाना हो गये । उस समय फियेट का पिछला भाग और आपकी कार का अगला भाग बुरी तरह चिपके हुए थे लेकिन प्रत्यक्षत दोनों कारें चल पाने की स्थिति में थी ।”
“आई सी ।” - खुराना बोला । वह कई क्षण चुप रहा और फिर बोला - “आई सी । मिस्टर सुनील, जो कुछ आपने कहा है, मेरी सेक्रेट्री उसे बयान की सूरत में टाइप कर लाती है । आप उस पर साइन कर देंगे ?”
“क्यों नहीं ?” - सुनील बोला - “मैंने कोई झूठ थोड़े ही बोला है । जो कुछ मैंने आपके सामने कहा है वह मैं सारी दुनिया के सामने दोहराने के लिये तैयार हूं ।”
“जाहिर है ।”
खुराना ने वीणा को संकेत किया । वीणा कमरे से बाहर निकल गई ।
वीणा ने सुनील का बयान टाइप कर लाने तक कोई कुछ नहीं बोला ।
खुराना के संकेत पर वीणा ने दो फुल स्केप टाइप किये हुए कागज सुनील के सामने रख दिये । सुनील ने बयान पढा और फिर चुपचाप उस पर साइन कर दिये ।
वीणा ने उस पर गवाह के तौर पर साइन कर दिये ।
“थैंक्यू वैरी मच, मिस्टर सुनील ।” - खुराना अपने स्थान से उठता हुआ बोला - “बड़ी मेहरबानी की आपने यहां आकर । वीणा आपको वापिस आपके होटल छोड़ आयेगी ।”
सुनील ने खुराना से हाथ मिलाया ।
“यहां प्लाट खरीदने के बारे में फिर सोच लीजिये मिस्टर सुनील, गारन्टीड फायदे का धन्धा है यह । मैं आपके लिये किश्त इतनी छोटी कर सकता हूं कि आपको पेमेन्ट में कोई दिक्कत न हो ।”
“मेरी कोई दिलचस्पी नहीं ।”
“लेकिन...”
“किसी गलतफहमी में मत पड़िये मिस्टर खुराना, एक्सीडेन्ट सरासर आपकी गलती से हुआ था । मैं आपका प्लाट खरीदूं या न खरीदूं हकीकत तो हकीकत ही रहेगी ।”
खुराना का चेहरा उतर गया ।
“सो लॉन्ग मिस्टर सुनील ।” - वह प्रभावहीन स्वर से बोला ।
“गुड नाइट ।” - सुनील बोला और खुराना के आफिस से बाहर निकल गया ।
रामप्रकाश चोपड़ा के आफिस का दरवाजा अभी भी बन्द था ।