बेल बजने पर मोना चौधरी ने दरवाजा खोला तो सामने पारसनाथ को खड़े पाया । पारसनाथ के चेहरे पर गंभीरता थी । मोना चौधरी दरवाजे के पास से हटती हुई शांत स्वर में बोली ।
“सॉरी पारसनाथ ! मैं नहीं आ सकी । काम बहुत जरूरी था । लेकिन आज नहीं हो पायेगा ।”
पारसनाथ ने भीतर प्रवेश करके दरवाजा बन्द किया और पलटकर मोना चौधरी से कहा ।
“मैं जानता हूँ, तुम क्यों नहीं आई । आज का अखबार देख लिया है मैंने ।”
मोना चौधरी की गंभीर व्याकुल नजरें पारसनाथ के खुरदुरे चेहरे पर जा टिकीं ।
“वो विचित्र जीव दिल्ली आ पहुँचा है ।” पारसनाथ ने भिंचे स्वर में कहा, “आश्रम चौक पर उसने रात को तीन व्यक्तियों को चीड़-फाड़कर बुरी मौत मार दिया ।”
मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया ।
“गुजरात के कोटेश्वर बीच से रहस्यमय जीव का यहाँ-दिल्ली तक आ पहुँचना, हैरान कर देने वाली बात... ।”
मोना चौधरी के शब्द अधूरे रह गए ।
कॉलबेल की आवाज गूँज उठी ।
खुरदुरे चेहरे पर हाथ फेरते पारसनाथ ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला । आने वाला महाजन था । वह पारसनाथ को एक तरफ करता हुआ भीतर आया । सामने मोना चौधरी को देखकर गहरी साँस ली ।
“तुम ठीक हो बेबी ? मुझे तुम्हारी चिंता हो रही थी कि कहीं रहस्यमय जीव यहाँ तक न आ पहुँचा हो ।”
पारसनाथ ने दरवाजा बन्द कर लिया ।
“महाजन !” मोना चौधरी के होंठों पर बरबस ही मुस्कान उभरी, “तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे रहस्यमय जीव का मुकाबला करके मुझे बचा लोगे, अगर वो दिल्ली तक मेरी जान लेने पहुँचा है तो ।”
महाजन ने पैंट में फँसी बोतल निकालकर घूँट भरा ।
“तुम्हें बचाने की कोशिश तो कर सकता हूँ ।”
“वो कितना खतरनाक है ! कितना ताकतवर है ! कितना दरिंदा-वहशी है और कितना बड़ा जल्लाद है, ये तुम अपनी आँखों से देख चुके हो । ये भी जानते हो कि उसका मुकाबला नहीं किया जा सकता ।” गंभीर स्वर में कहते हुए मोना चौधरी सोफा चेयर पर जा बैठी, “वो सबसे बड़ा पागल है ।”
होंठ भींचें महाजन कुर्सी पर जा बैठा ।
पारसनाथ ने सिगरेट सुलगाई और दोनों को देखा ।
“तुम दोनों ने मुझे बताया था कि दरिंदा-जल्लाद बने विचित्र जीव को ठीक कर दिया है । अब वो किसी को नहीं मार रहा । लोगों ने सामान्य ढंग का व्यवहार कर रहा है ।” पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा, “लेकिन ये अब अचानक... अचानक वो दिल्ली आ पहुँचा और यहाँ तीन लोगों को मार दिया ।”
मोना चौधरी और महाजन की कठोर नजरें मिलीं ।
“तुम्हारा आदमी गौरी को पैसे देने गया था ।” मोना चौधरी बोली, “तुमने ही बताया था कि कोटेश्वर बीच के पास उसे गोलियाँ मारी पुलिस वालों ने । उसके बाद ही वो फिर से लोगों को मारने लगा ।”
“हाँ !”
“मैं पुलिस वालों को कहकर आई थी कि उसके साथ छेड़छाड़ मत करना वरना फिर से उसे संभालना असंभव होगा । लेकिन मेरी बात नहीं मानी गई और नतीजा सामने है ।” मोना चौधरी का चेहरा कठोर हो गया ।
“ये सारी गड़बड़ इंस्पेक्टर हरीश दुलानी की वजह से हुई है ।” महाजन के दाँत भिंच गए, “इस कमीने ने उसे खत्म करना चाहा होगा ।”
मोना चौधरी, महाजन को देखते हुए सिर हिलाकर कह उठी ।
“दुलानी ने जो किया, वो किया ही ।” मोना चौधरी ने कहा, “अब हमें रहस्यमय जीव की हरकत के बारे में सोचना चाहिए । उसे गोलियाँ लगी हैं । उसके बाद उसने क्या-क्या किया ?”
महाजन और पारसनाथ की निगाहें मोना चौधरी पर जा टिकीं ।
“सोचकर क्या करेंगे ?” महाजन के होंठों से निकला ।
“ये जानने की कोशिश करेंगे कि वो दिल्ली क्यों आ पहुँचा है, लम्बा रास्ता तय करके ।” मोना चौधरी ने धीमे और गंभीर स्वर में कहा, “रहस्यमय जीव का दिल्ली आ पहुँचना महज इत्तफाक नहीं है ।”
“बेबी !” महाजन ने गंभीर स्वर में कहा, “मैं सच कह रहा हूँ कि वो हमारे पीछे-पीछे ही दिल्ली आया है । तुम्हारी जान के पीछे है वो । क्योंकि... ।”
तभी पारसनाथ ने शांत स्वर में टोका ।
“विचित्र जीव को कैसे मालूम कि मोना चौधरी दिल्ली में रहती है ?”
महाजन ने पारसनाथ को देखा । कहा कुछ नहीं ! होंठ भींचकर रह गया ।
“महाजन !” मोना चौधरी बोली, “हमारे आने के बाद उसे पुलिस वालों ने गोलियाँ मारीं । उसके बाद रहस्यमय जीव ने क्या किया ?”
महाजन ने घूँट भरा ।
पारसनाथ खुरदुरे गालों पर उंगलियाँ रगड़ता कह उठा ।
“विचित्र जीव के बारे में अखबारों में पढ़ता आ रहा हूँ । मेरा आदमी भी कोटेश्वर बीच से खबरें लाया है । बहुत हद तक उसकी हरकतों के बारे में जानता हूँ कि वो क्या करता रहा ?”
“बता ।” महाजन बोला ।
“पुलिस वालों ने जब उस विचित्र जीव को गोलियाँ मारीं तो वो पुलिस वालों पर झपट पड़ा । कई पुलिस वालों को मार दिया । वहाँ बहुत खून-खराबा हुआ । जब वहाँ उसे कोई न मिला तो गाँव में पहुँचा । गाँव में उसे देखते ही लोग घरों में जा छिपे । मिनटों में ही गाँव सूना-सा लगने लगा और उस विचित्र जीव ने किसी को कुछ नहीं कहा । गुस्से से भरा वो सीधा गौरी के घर पर रुका ।”
“गौरी के घर ?” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी ।
“हाँ !” पारसनाथ ने मोना चौधरी को देखा, “जहाँ तुम महाजन के साथ ठहरी हुई थीं ।”
“बेबी !” महाजन कह उठा, “वो हमारे लिए ही वहाँ आया होगा ।”
“लेकिन उसे कैसे मालूम कि हम गौरी के यहाँ ठहरे हैं ?” मोना चौधरी शब्दों पर जोर देकर कह उठी, “फिर वो सीधा गौरी के घर पर कैसे आ गया ? उसे कैसे पता चला कि कौन-सा घर गौरी का है ?”
महाजन की आँखें सिकुड़ीं । नजरें मोना चौधरी पर थीं ।
“मोना चौधरी की बात सोचने वाली है ।” पारसनाथ बोला, “कि विचित्र जीव को कैसे पता चला कि फलां-फलां घर गौरी का है ? गाँव में तो सैकड़ों घर हैं ।”
“विचित्र जीव पहले कभी गौरी के घर में नहीं आया था ।” महाजन ने कहा ।
“तब तो ये सवाल महत्वपूर्ण है कि रहस्यमय जीव को कैसे पता चला कि वो गौरी का घर है ?”
अजीब-सी चुप्पी छा गई वहाँ !
महाजन ने घूँट भरा ।
पारसनाथ ने सिगरेट सुलगा ली ।
“इसका तो फिर एक ही जवाब है ।”
“क्या ?” महाजन की आँखें सिकुड़ीं ।
मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा ।
“वो मोना चौधरी के जिस्म की खुशबू से वाकिफ था ?”
“हाँ !” महाजन का सिर हिला ।
“तो उस विचित्र जीव की सूँघने की शक्ति बहुत तेज है ।” पारसनाथ ने गंभीर स्वर में कहा, “गौरी के घर में मोना चौधरी के जिस्म की महक मौजूद होगी । जिसका एहसास पाकर वो गौरी के घर में घुस गया होगा ।”
मोना चौधरी के दाँत भिंच गए ।
महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।
“क्यों बेबी ! पारसनाथ की बात मेरी समझ से तो बाहर है ।” महाजन ने अनमने मन से कहा ।
“मेरे ख्याल में पारसनाथ ठीक कहता है ।” शब्दों को चबाकर कह उठी मोना चौधरी ।
“ठीक कहता है !” महाजन के होंठों से निकला, “वो कैसे ?”
“बताऊँगी । पहले हम आगे की बात कर लें ।” मोना चौधरी ने पारसनाथ को देखा, “आगे कहो फिर क्या हुआ ?”
“गौरी के घर जाकर वो किसी को जैसे तलाश करता रहा । देखने वालों का कहना है कि वो गुस्से में था । घर में उसे कोई नहीं मिला, परन्तु घर से बाहर निकलते वक्त उसे एक जगह छिपी गौरी नजर आई, उसने गौरी को बुरी मौत मार दिया । फिर गाँव से बाहर निकल गया । उसके बाद किसी ने विचित्र जीव की खबर नहीं सुनी ।”
“कहीं तो वो दिखा होगा ?” महाजन बोला ।
“नहीं ! वो किसी को नहीं दिखा । यहाँ तक कि दस दिन तक हथियारबंद पुलिस की टुकड़ियाँ उसे ढूँढ़ती रही थीं ।”
महाजन की निगाह पारसनाथ पर थी ।
मोना चौधरी के दाँत भिंचें हुए थे । आँखों में गंभीरता और सोच दिखाई दे रही थी ।
“गौरी के मरने के पच्चीस मिनट बाद ।” पारसनाथ ने दोनों को देखकर गंभीर स्वर में कहा, “रहस्यमय जीव को जयपुर में देखा गया । वहाँ उसने एक या दो लोगों की जानें लीं । जयपुर में वो एक-दो बार ही दिखा । उसके बाद वो किसी को नहीं दिखा । जयपुर की घटना के दस-ग्यारह दिन बाद यानी कि बीती रात वो दिल्ली के आश्रम चौक पर दिखा । वहाँ आग सेंकते तीन आदमियों को विक्षिप्त ढंग से मार दिया । कुछ लोगों ने उसे देखा भी । वो अँधेरे में लुप्त हो गया और दिल्ली के संस्करण वाले अखबार के एडिशन में विचित्र जीव के बारे में, उसके दिल्ली पहुँचने की खबर दे दी गई ।”
महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।
पारसनाथ ने पुनः कहा ।
“पुलिस वालों की गोलियाँ जब विचित्र जीव को लगीं, उसके बाद से उसके बारे में मोटी-मोटी खबरें यही थीं जो मैंने बताई । इस वक्त वो दिल्ली में ही कहीं है ।”
कुछ पलों के लिए चुप्पी-सी छा गई ।
पारसनाथ सिगरेट के कश लेता गंभीर निगाहों से कभी महाजन को देखता तो कभी मोना चौधरी को ।
“बेबी !” महाजन बोला, “तुम रहस्यमय जीव के सूँघने की शक्ति के बारे में कह रही थी कि... ।”
“हाँ !” मोना चौधरी शांत-गंभीर स्वर में कहते हुए सिर हिलाने लगी, “पारसनाथ की बताई बातों से पहला सवाल तो यह उठता है कि रहस्यमय जीव को कैसे पता चला कि मैं गौरी के घर गाँव में ठहरी हूँ और गौरी का घर कहाँ है ? तो इसका जवाब यही है कि वो मेरी और महाजन के शरीर की खुशबू से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हो चुका था । मेरे शरीर की महक की वजह से ही, वो गौरी के घर तक पहुँच सका । यानी कि उसकी सूँघने की शक्ति बहुत तेज है ।”
“ये बात तो मेरे गले से नीचे नहीं उतरती ।” महाजन बोला ।
“आगे सुन लो ।”
“क्या ?”
“रहस्यमय जीव दिल्ली तक कैसे पहुँचा ?” मोना चौधरी ने दोनों को देखा ।
महाजन और पारसनाथ की आँखें मिलीं ।
“यही तो उलझन हैं बेबी कि उसे कोई रास्ता दिखाने वाला भी नहीं था । ऐसे में... ।”
“ओह !” पारसनाथ के होंठों से निकला, “मैं समझ गया ।” दोनों की निगाह पारसनाथ की तरफ उठी ।
“क्या समझ गया ?”
“विचित्र जीव की सूँघने की शक्ति वास्तव में बहुत तेज है ।” पारसनाथ ने गहरी साँस ली, “तुम और मोना चौधरी जिस रास्ते से वापस आये, उसी रास्ते को पार करके विचित्र जीव दिल्ली पहुँचा । तुम दोनों ने वापसी में जयपुर पार... ।”
“हाँ ! जयपुर की तरफ से ही हम आये थे ।” महाजन के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे, “तुम कहीं ये तो नहीं कहना चाहते कि हमारे जिस्मों की महक के पीछे-पीछे वो दिल्ली आ पहुँचा !”
“मैं यही कहना चाहता हूँ ।”
महाजन ने मोना चौधरी को देखा ।
“सुना, पारसनाथ क्या कहता है ?”
“ठीक कह रहा है ।” मोना चौधरी गंभीर थी, “रहस्यमय जीव हमारे जिस्मों की महक के दम पर सीधा गौरी के घर तक पहुँच सकता है तो दिल्ली तक क्यों नहीं आ सकता ? वो हमारे पीछे-पीछे ही दिल्ली आया है ।”
महाजन के चेहरा चिंता से भर उठा ।
तभी पारसनाथ ने कहा ।
“लेकिन उसने गौरी को क्यों मारा ?”
“वो गौरी को नहीं, मुझे और महाजन को मारने आया था ।” मोना चौधरी शब्दों को चबाकर कह उठी, “हम नहीं मिले । गुस्से में था वो । गौरी नजर आई तो उसे मार दिया ।”
“तुम दोनों को क्यों मारने आया था विचित्र जीव ?” पारसनाथ की नजरें मोना चौधरी के चेहरे पर थीं ।
“इसकी वजह थी उसके पास ।” मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी, “मैंने रहस्यमय जीव को इस बात का विश्वास दिलाया था कि हम उसके दोस्त हैं । कोई भी उसका बुरा नहीं चाहता । एक बार उसे गोली मारी गई तो वो भूल थी । बहुत बड़ा खतरा उठाकर मैंने उसका गुस्सा उतारा था । यही वजह थी कि वो हम इंसानों के करीब आया था; और ऐसे में उस पर गोलियाँ चला दी जाये तो वो गुस्से में आयेगा ही । मेरी हर बात को वो धोखा समझेगा । मुझसे भी बदला लेना चाहेगा । मुझे मारने के लिए ही वो गौरी के घर पहुँचा और मुझे मारने के लिए वो दिल्ली तक आ पहुँचा है ।”
महाजन व्याकुलता से भर उठा ।
“ये तो बहुत बुरा हुआ ।” पारसनाथ अपने खुरदुरे चेहरे पर हाथ फेरने लगा, ''शरीर की महक के दम पर वो कभी भी मोना चौधरी तक पहुँच सकता है और फिर कुछ भी हो सकता है ।”
“बेबी ! पारसनाथ सच कहता है । वो रहस्यमय जीव कभी भी तुम तक पहुँचकर तुम्हें मार देगा ।”
“हाँ !” मोना चौधरी ने सख्त हुआ पड़ा चेहरा हिलाया, ''ऐसा कभी भी हो सकता है ।”
“वो रात से दिल्ली में है ।” महाजन दाँत भींचकर कह उठा, “अब तक उसे यहाँ पहुँच जाना चाहिए ।”
“कहीं छिपा होगा ।” पारसनाथ बोला, “शायद वो जानता है कि खुले में नजर आना खतरनाक है ।”
महाजन ने घूँट भरा और उठकर टहलने लगा ।
“बेबी !” महाजन ने ठिठककर मोना चौधरी की आँखों में झाँका, “तुम्हें किसी ऐसी सुरक्षित जगह पर छिप जाना चाहिए जहाँ वो रहस्यमय जीव न पहुँच सके ।”
“वो इतना ताकतवर है कि उसे कहीं भी पहुँचने से रोका नहीं जा सकता ।”
“शायद ।” मोना चौधरी को देखते महाजन ने दाँत भिंच गए, “तुम ठीक कहती हो ।”
तीनों एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे ।
“वो अवश्य ही कहीं छिपा होगा ।” मोना चौधरी ने कहा, “और कभी भी यहाँ, मुझ तक पहुँच सकता है ।”
पारसनाथ ने सिगरेट सुलगा ली ।
चुप्पी लम्बी होने लगी ।
“सवाल ये पैदा होता है कि अब क्या किया जाये ?” महाजन ने पूछा ।
“सोचना ये है कि विचित्र जीव से मोना चौधरी और तुम, खुद को कैसे बचा पाओगे ?” पारसनाथ ने कहा ।
महाजन ने पारसनाथ की आँखों में देखा ।
“रहस्यमय जीव में बहुत ताकत है । उसका मुकाबला नहीं किया जा सकता ।” महाजन गंभीर और व्याकुल स्वर में कह उठा, “अभी भी उसके जिस्म में पुलिस वालों की चलाई गोलियाँ धँसी हैं और वो अपनी हरकतें जारी रखे हैं ।”
“जिस्म में धँसी गोलियों से उसे दर्द हो रहा होगा ।” मोना चौधरी ने गहरी साँस ली ।
महाजन की नजरें मोना चौधरी पर जा टिकीं ।
“तुम कहीं फिर से उसे, दर्द से छुटकारा तो नहीं दिलाना चाहतीं, पहले की तरह ।”
मोना चौधरी ने महाजन को देखा फिर मध्यम-सी मुस्कान उभर आई चेहरे पर ।
“ऐसा तो मेरा इरादा नहीं है । वो मुझे पास आने से पहले ही खत्म कर देगा । मुझे मार देगा ।” मोना चौधरी सिर हिलाकर कह उठी, “अब वो मेरे झाँसे में नहीं आएगा, जबकि मैंने उसे झाँसा नहीं दिया । साफ़ मन से उसका भला चाहा था । मुझे समझ नहीं आ रहा कि पुलिस वालों ने जाने क्या सोचकर उस पर गोलियाँ चलाईं ?”
“दुलानी उसे खत्म कर देना चाहता होगा ।” महाजन कड़वे स्वर में कह उठा, “उसे समझाकर आये थे कि वो ऐसा कोई काम न कर दे, वरना दोबारा रहस्यमय जीव नहीं संभलेगा । लेकिन उसने हमारी बात नहीं मानी ।”
“महाजन !” मोना चौधरी ने सोच भरे स्वर में कहा, “तुम मालूम करो कि पुलिस इस मामले में क्या कर रही है ।”
“क्यों ?” महाजन के होंठों से निकला, “तुम क्यों जानना चाहती हो ?”
“मालूम तो हो कि रहस्यमय जीव कहाँ है । वो... ।”
“वो जहाँ भी होगा, तुम्हारे शरीर की महक से तुम्हें तलाश करके यहाँ तक आ जायेगा ।” पारसनाथ ने कहा ।
“ऐसा होने को हम रोक नहीं सकते पारसनाथ !” मोना चौधरी ने गंभीर स्वर में कहा, “और उसके आने के इंतजार में बैठे भी नहीं रह सकते । हालातों के बारे में पूरी तरह मालूम हो जाये तो बचने का रास्ता भी सोचेंगे ।”
“बचने का रास्ता ?”
“हाँ ! अपनी मौत के इंतजार में रहस्यमय जीव के यहाँ तक पहुँचने के इंतजार में बैठे तो नहीं रह सकते ।”
“ठीक कहती हो बेबी !” महाजन बोला, “मैं मालूम करता हूँ कि पुलिस इस मामले में क्या कर रही है ।”
“और पारसनाथ, तुम मालूम करने की कोशिश करो कि दिल्ली में उसे अब उसे किस जगह पर देखा गया है । रात से अब तक किसी ने तो उसे देखा होगा । मालूम तो हो कि वो अब दिल्ली में किस तरफ है ।”
“मैं ऐसी कोई खबर पाने की कोशिश करता हूँ ।”
“बेबी !” महाजन के होंठों से निकला, “पीछे से वो तुम्हारे पास आ पहुँचा तो ?”
“अगर वो तुम्हारे होते आ गया तो तुम क्या कर लोगे ? खुद या मुझे, उससे बचा लोगे ?”
महाजन जवाब में होंठ भींचकर रह गया ।
“जो कहा है, वो करो ।” मोना चौधरी गंभीर स्वर में कह उठी ।
महाजन और पारसनाथ बाहर निकले ।
मोना चौधरी होंठ भींचें, कमर पर हाथ बाँधे, सोचों में डूबी टहलने लगी ।
☐☐☐
फोन की घण्टी बजने पर उस व्यक्ति की आँख खुली । वह लक्स या वी.आई.पी. का अंडरवियर डाले नींद में डूबा हुआ था । उसके बाकी के कपड़े कुर्सी पर फेंके गए अंदाज में पड़े थे ।
हाथ बढ़ाकर उसने रिसीवर उठाया ।
“हैलो !” कानों में मर्दाना स्वर पड़ा ।
“राबर्ट !” उस व्यक्ति के होंठों से निकला ।
वह सीधा होकर बैठ गया ।
“हैरान क्यों हो गए श्याम बाबू ।” शांत-सा स्वर कानों में पड़ा ।
“हैरान !” खुद पर काबू पाते श्याम बाबू कह उठा, “नहीं, नहीं ! ऐसी कोई बात नहीं है । हॉन्गकॉन्ग से कब आये ?”
“मैं हाँगकांग से ही बोल रहा हूँ ।” राबर्ट का शांत स्वर उसके कानों में पड़ा ।
“याद है, महीना पहले मैंने तुमसे एक काम के बारे में कहा था ? लेकिन तुमने मना कर दिया ।”
“काम ? वो रहस्यमय जीव वाला काम ?” श्याम बाबू के होंठों से निकला ।
“हाँ !” गुजरात के अखबारों में रहस्यमय जीव की जो तस्वीर छपी थी, वो अखबारें मैंने तुम तक पहुँचा दी थी ।” राबर्ट के स्वर में किसी तरह का भाव नहीं था, “आज का अखबार देखा ?”
“नहीं ! रात भर से व्यस्त था । अभी घर पर पहुँचा हूँ । थका हुआ था, सो गया ।”
“अखबार देख लेना । वही रहस्यमय जीव तुम्हारे दिल्ली में आ पहुँचा है ।”
“दिल्ली में !”
“हाँ !”
श्याम बाबू के होंठ भिंच गए ।
“पहले तो तुमने रहस्यमय जीव वाले काम से इंकार कर दिया था । तब भी मुझे इस बात का एहसास था कि इंकार करके तुम मोटी रकम गँवा रहे हो ।” राबर्ट के स्वर में किसी तरह के भाव नहीं थे, “अब क्या कहते हो ? रहस्यमय जीव को पकड़कर मेरे हवाले करते हो ? उसे पकड़ने के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़ेगा ।अब तो वो तुम्हारे पास, दिल्ली में है ।”
“सोचूँगा ।” श्याम बाबू के होंठ हिले ।
“सोचने की क्या बात है ?”
“मुझे अपने साथियों से बात करनी पड़ेगी ।”
“कर लो ।”
“मेरे साथी मुझसे ये बात अवश्य पूछेंगे कि रहस्यमय जीव में राबर्ट की क्या दिलचस्पी है ?” श्याम बाबू ने कहा, “जो हीरे-जवाहरात या ड्रग्स के कामों में लगा हो । उसे जीव-जानवरों में क्यों दिलचस्पी हो गई ?”
कुछ पलों की चुप्पी के बाद राबर्ट का गम्भीर स्वर कानों में पड़ा ।
“श्याम बाबू ! तुम तो जानते हो कि अमेरिका में जॉन को ड्रग्स देता हूँ । पुराना सम्बन्ध है उससे मेरा । जॉन का गुप्त तौर से वास्ता अमेरिकन सरकार से भी है । अमेरिकन सरकार, जॉन को बहुत मोटी रकम दे रही है रहस्यमय जीव के बदले । अमेरिकन सरकार, रहस्यमय जीव की डिलिवरी हिन्दुस्तान से बाहर कहीं भी चाहती है ।”
“अमेरिकन सरकार जानना चाहती है कि वो रहस्यमय जीव हमारी दुनिया का नहीं है । पृथ्वी ग्रह का नहीं है । वो कहाँ से आया और कैसा है ? यानी कि अमेरिकन सरकार बहुत-सी बातें जानना चाहती है ।” राबर्ट का स्वर श्याम बाबू के कानों में पड़ रहा था “और हिन्दुस्तान सरकार सीधे-सीधे कभी भी रहस्यमय जीव को अमेरिका के हवाले नहीं करेगी । जबकि अमेरिकन सरकार, रहस्यमय जीव को अपने पास देखना चाहती है । इसलिए तुमसे ये काम कह रहा हूँ ।”
“हूँ ।” श्याम बाबू के माथे पर बल उभर आये थे, “अमेरिकन सरकार, जॉन को कितनी कीमत दे रही है इस काम की और जॉन तुम्हें क्या दे रहा है ?”
“ये बात जानने की तुम्हें जरूरत नहीं !”
“राबर्ट !” श्याम बाबू ने शांत स्वर में कहा, “इस बात को जानने की जरूरत इसलिए है कि मैं अपने साथियों का सारा मामला बता सकूँ । उनके किसी भी सवाल पर ये काम रुक सकता है । तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं अपने साथियों पर हुक्म नहीं चलाता । उनसे बातचीत करके उनकी रजामन्दी पर ही काम करता हूँ । उनके हर सवाल का जवाब देना मेरा फर्ज है । और ये सवाल वो अवश्य पूछेंगे ।” श्याम बाबू के चेहरे पर गंभीरता थी ।
“श्याम बाबू !” राबर्ट के शब्द कानों में पड़े, “तुम ये बात करो कि तुम्हें कितना मिलेगा ?”
“कितना मिलेगा, ये सवाल भी मेरे साथी करेंगे ।”
“रहस्यमय जीव की डिलिवरी हिन्दुस्तान के बाहर कहीं भी होगी ।”
“सुन चुका हूँ । रकम बोलो, क्या मिलेगी ?”
“तुम क्या चाहते हो ?”
“मेरे चाहने से तुम रकम दे दोगे ?”
“बोलो ।”
दो पल की सोच के बाद कहा श्याम बाबू ने ।
“इस मामले में अमेरिकन सरकार है तो पैसे की कोई कमी नहीं होगी । मैं जानता हूँ कि जॉन को और तुम्हें बहुत मोटी रकम मिल रही है अमेरिकन सरकार से । लेकिन मैं सिर्फ पचास करोड़ ही लूँगा ।”
“पचास करोड़ डॉलर ?”
“घबराओ मत, मैं पचास करोड़ हिन्दुस्तानी रुपये की बात कर रहा हूँ ।”
“मंजूर है ।” राबर्ट की आवाज आई, “काम कब तक पूरा होगा ?”
“जल्दबाजी मत करो । मुझे अपने साथियों से बात कर लेने दो ।”
“कब जवाब दोगे मुझे ?”
“कल फोन करना ।” कहने के साथ ही श्याम बाबू ने रिसीवर रखा और फोन के पास पड़े पैकिट में से निकालकर सिगरेट सुलगा ली ।
दो-चार मिनट तक श्याम बाबू सोचों में डूबा रहा फिर अपने साथियों को फोन करने लगा ।
☐☐☐
श्याम बाबू की उम्र पचास बरस के आसपास थी । दो नम्बर के कामों से बहुत पैसा कमा लिया था । कितना पैसा पास में था, वो नहीं जानता था, परन्तु रहने का ढंग साधारण था और मध्यम वर्गीय कॉलोनी के मकान में रहता था । अपने कामों को वह बहुत ही सोच-समझकर ढंग से करता था ।
श्याम बाबू के चार साथी थे ।
शंकर, सोनी, मोती और राहुल आर्य ।
शंकर भी श्याम बाबू के बराबर की उम्र का ही था । उसका अपना परिवार था । उसके घर वाले नहीं जानते थे कि असल में शंकर क्या काम करता है । घर वाले यही जानते थे कि वह शेयर दलाल और दूसरे के बिजनेस के लिए टूर लगाकर पैसा लेता है । टूर का उसने घर में इसलिए कह रखा था कि कभी-कभी काम के सिलसिले में शहर से बाहर जाना पड़ता था ।
सोनी तीस बरस की तीखे नैन-नक्श वाली खूबसूरत युवती थी । वह चुस्त-चालाक और अपना मतलब निकालने वाली थी । आठ बरस से वह श्याम बाबू के साथ काम कर रही थी । कभी वह गरीब घर की थी, लेकिन अब अमीर थी । बंगला, कार, हर ऐशो-आराम उसके पास था । वह जानती थी, वह खूबसूरत है । उस पर नजर रखने वाले कई थे । लेकिन शादी के बारे में उसके विचार जुदा थे । वह ऐसे इंसान से शादी करके अपनी जवानी कैश करना चाहती थी, जिसके पास बेपनाह दौलत हो और उसकी निगाहों में ऐसा इंसान एक ही था, जिस तक उसकी पहुँच थी ।
वह था श्याम बाबू ।
सोनी जानती थी कि श्याम बाबू के पास बेहिसाब दौलत है । बेशक उसकी उम्र पचास बरस की हो रही थी, परन्तु इस बात से सोनी को कोई एतराज नहीं था । क्योंकि उसकी निगाहों में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ दौलत थी और वह दौलत श्याम बाबू के पास थी । वैसे सोनी ने आज तक श्याम बाबू के सामने अपनी इच्छा नहीं रखी थी ।
राहुल आर्य अट्ठाइस बरस का था ।
छः साल से वह श्याम बाबू के साथ था । तब वह पढ़ा-लिखा बेरोजगार था । कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी । बस का किराया तक नहीं होता था जेब में । चूँकि तब वह दो-तीन सालों से बेरोजगार था । ऐसे में घर वाले उसे बोझ समझने लगे थे । ठीक से व्यवहार नहीं करते थे । धीरे-धीरे तो ये स्थिति आ गई कि खाना बचता तो उसे मिल जाता नहीं तो नहीं मिलता । ये हरकत उसके भाई-भाभी ज्यादा कर रहे थे । उन्हीं के दम पर घर का पूरा खर्च होता था । ऐसे में माँ-बाप भी उनके साथ ही थे ।
आखिरकार तंग आकर राहुल आर्य ने घर छोड़ दिया । मन में ठान ली थी कि जो भी हो वापस नहीं लौटेगा और कोई भी काम करके अपना खर्चा चला लेगा । उसी दिन, जब वह एक चौराहे पर खड़ा सोच रहा था कि किधर जाये, तभी श्याम बाबू उसके पास आकर खड़ा हो गया । उससे बात की कि उसे क्या काम करना होगा । पूछने पर श्याम बाबू ने बताया कि वह या उसके आदमी दो महीनों से उसकी हरकतों पर नजर रख रहे हैं । इसलिए उसकी हालत बखूबी जानते हैं । राहुल आर्य को तो खुद सहारे की जरूरत थी । उसने गैरक़ानूनी काम करना स्वीकार कर लिया । जल्दी ही उसे ये काम पसन्द आने लगा । इस काम में खतरा भी था । रोमांच भी और पैसा भी ।
आज राहुल आर्य के पास सब चैन-आराम था ।
मोती पैंतीस बरस का खूबसूरत-सा दिखने वाला व्यक्ति था ।
दस सालों से वह श्याम बाबू के साथ काम कर रहा था । कॉलेज के दिनों में नेतागिरी करता था । उसके बाद दादागिरी पर आ गया । श्याम बाबू को मोती काम का लगा तो उसे अपने साथ मिला लिया था । श्याम बाबू की आशा के अनुरूप मोती खरा उतरा था । मोती, सोनी पर नजर रखता था ।
इन चारों साथियों के दम पर श्याम बाबू हर काम अच्छे ढंग से कर रहा था ।
किसी काम में ज्यादा आदमियों की जरूरत होती तो बाहर से ही उनका इंतजाम कर लिया जाता ।
श्याम बाबू ने चारों पर नजर मारी ।
सोनी राइटिंग टेबल पर बैठी थी । उसने स्कर्ट और टॉप पहन रखा था । उसका गदराया जिस्म बहुत हद तक झलक रहा था । इस समय उस कमरे में वह बहार के रूप में मौजूद थी ।
“क्या बात श्याम बाबू ?” शंकर ने कहा, “अचानक सबको क्यों बुलवा लिया ?”
“खास ही काम होगा ।” सोनी ने शांत स्वर में कहा ।
राहुल आर्य ने सिगरेट सुलगा रखी थी । वह चुप बैठा कश ले रहा था ।
मोती इस ढंग से बैठा था कि टेबल पर बैठी सोनी की टाँगें ज्यादा से ज्यादा देख सके ।
“तुम लोगों ने आज के पेपर में रहस्यमय जीव के बारे में पढ़ा ? उसकी तस्वीरें देखीं ?” श्याम बाबू ने पूछा ।
चारों ने सहमति भाव में सिर हिलाया ।
“अजीब-सा है वो ।” सोनी कह उठी, “मैं तो फैसला नहीं कर सकी कि वो इंसान है या जानवर ?”
“कभी वो इंसान जैसा लगता है तो कभी जानवर जैसा ।” राहुल आर्य ने गंभीर स्वर में कहा, “मैंने तो ऐसा कोई जीव न देखा, न सुना । एक-डेढ़ महीना पहले खबर थी कि वो गुजरात के कोटेश्वर बीच पर है ।”
“हाँ !” श्याम बाबू ने कहा, “अब वो दिल्ली आ पहुँचा है ।”
“इतना लम्बा रास्ता जाने कैसे तय किया उसने ?” मोती बोला ।
“लेकिन तुम रहस्यमय जीव का जिक्र क्यों कर रहे हो ?” शंकर ने श्याम बाबू को देखा, “खास बात है क्या ?”
“खास बात है तभी तो बात कर रहा हूँ ।”
“मतलब कि तुमने रहस्यमय जीव के सिलसिले में हमें बुलाया है ।” सोनी की आँखें सिकुड़ीं ।
“हाँ !”
“कमाल है ।” राहुल आर्य बोला, “रहस्यमय जीव से हमारा क्या वास्ता जो... ।”
“सुन लो । समझ जाओगे ।” श्याम बाबू ने कहा और सब पर निगाह मारी, “राबर्ट से तुम लोग एक बार मिले थे ।”
“राबर्ट, वो हाँगकांग वाला ।” मोती के होंठों से निकला ।
“हाँ ! मैं उसी की बात कर रहा हूँ । वही राबर्ट । गुजरात में जब रहस्यमय जीव की तस्वीरें अखबारों में छपीं तो उसके दो दिन बाद राबर्ट ने फोन पर मुझसे बात की थी कि वो कोटेश्वर बीच पर दिखाई देने वाले रहस्यमय जीव को चाहता है । वो उसे सौंपा जाये तो अच्छा पैसा देगा, परन्तु मैंने इसे बेकार काम समझकर मना कर दिया ।”
“राबर्ट को भला रहस्यमय जीव में क्या दिलचस्पी ?” सोनी के माथे पर बल पड़े ।
“यही सोचकर राबर्ट को पहले मना कर दिया था ।” श्याम बाबू ने कहा, “परन्तु दो घण्टे पहले राबर्ट का हाँगकांग से फोन आया था । वो जानता है कि रहस्यमय जीव को दिल्ली में देखा गया है । राबर्ट, रहस्यमय जीव की डिलिवरी हिन्दुस्तान से बाहर चाहता है । क्योंकि अमेरिकन सरकार ने इस काम के लिए जॉन से बात की है और जॉन ने राबर्ट से ये काम पूरा करने को कहा है ।”
“और राबर्ट ने तुमसे ।” शंकर बोला ।
“हाँ !”
“अमेरिकन सरकार इस काम में है तो काम की कीमत बढ़िया होनी चाहिए ।” राहुल आर्य कह उठा ।
“हाँ !” श्याम बाबू ने चारों को देखा, “जाहिर है कि जॉन को खूब पैसा मिला होगा इस काम को करने के लिए और उसने राबर्ट को भी खूब दिया होगा कि वो इस काम को पूरा करे ।”
“अगर हम रहस्यमय जीव की डिलिवरी राबर्ट को दे दें तो हमें क्या मिलेगा ?” सोनी ने कहा ।
“तुम्हारा क्या ख्याल है कि हमें क्या मिलना चाहिए ?” श्याम बाबू ने कहा, “चारों फैसला करो ।”
पाँच मिनट बीत गए । वह किसी नतीजे पर नहीं पहुँच सके ।
इस बीच श्याम बाबू खामोश रहे ।
“तुम ही कहो कि हमें कितना मिलना चाहिए ?” शंकर ने श्याम बाबू से कहा ।
श्याम बाबू के चेहरे पर शांत-सी मुस्कान उभरी ।
“राबर्ट से इस काम की कीमत मैंने पचास करोड़ रुपए कही है । अगर कीमत कम है तो राबर्ट से फिर बात की जा सकती है ।”
“पचास करोड़ ?” मोती ने मुँह फाड़कर श्याम बाबू को देखा । उसकी नजरें सोनी की टाँगों से हट गई थीं ।
सोनी टेबल से नीचे उतरकर खड़ी हो गई ।
“ये बड़ी रकम है ।” राहुल आर्य के होंठों से निकला ।
“मतलब कि किसी को एतराज नहीं !”
“एतराज होने का कोई कारण नहीं !” सोनी ने लम्बी साँस ली ।
“कल राबर्ट का फोन आएगा ।” श्याम बाबू बोला, “मैं हाँ कर दूँगा ।”
“कर देना ।” शंकर ने सिर हिलाया ।
“सबका हिस्सा बराबर होगा ?” मोती ने श्याम बाबू को देखा ।
“हमेशा की तरह सब का हिस्सा बराबर ही रहेगा ।” श्याम बाबू ने कहा, “अब हमें रहस्यमय जीव के बारे में बात करनी चाहिए । उसके बारे में हम वही जानते हैं, जो अखबारों में लिखा है ।”
“तो ?”
“किसी को कोटेश्वर बीच जाकर जानकारी हासिल करनी चाहिए रहस्यमय जीव के बारे में । वो दिल्ली में है तो जाहिर है कि पुलिस उस पर काबू नहीं पा सकी । क्यों नहीं पा सकी ? ये मालूम करना है । पुलिस की भागदौड़ जानने के बाद ही हम ये सोच पाएँगे कि रहस्यमय जीव को कैसे पकड़ा जाये ।”
“दिल्ली में तो उसके पीछे पुलिस भी होगी । बहुत सावधानी से हमें ये काम करना होगा ।”
“परवाह नहीं ! जब हम काम करेंगे तो बढ़िया ढंग से करेंगे ।”
“कोटेश्वर बीच रहस्यमय जीव के बारे में खबर पाने कौन जायेगा ?” सोनी ने श्याम बाबू को देखा ।
राहुल आर्य कह उठा ।
“मैं जाऊँगा । आज ही मैं कोटेश्वर बीच के लिए रवाना हो जाता हूँ ।”
“जल्दी जाकर, जल्दी वापस आना ।” श्याम बाबू ने कहा, “कहीं ऐसा न हो कि हमसे पहले रहस्यमय जीव को पुलिस पकड़ ले या उसे गोलियों से मार दे । ऐसा हुआ तो हमारे हाथों से पचास करोड़ निकल जायेगा ।”
“मैं जल्दी वापस लौटूँगा । अभी जा रहा हूँ ।” कहने के साथ ही राहुल आर्य बाहर निकलता चला गया ।
श्याम बाबू ने अन्य सभी को देखा ।
“तुम लोग दिल्ली के हर हिस्से पर नजर रखो । हमें हर हाल में रहस्यमय जीव पर काबू पाना है और उसे राबर्ट के हवाले करके पचास करोड़ लेना है ।” श्याम बाबू ने धीमे स्वर में कहा, “जैसा कि मैं पहले भी सबसे कह चुका हूँ कि इन काम-धंधों से अलग हो जाना चाहता हूँ । इन सब कामों से थक चुका हूँ । तुम में से किसी को अपनी जगह दे दूँगा ।”
“जैसा ठीक समझो ।” शंकर बोला, “हम तो पहले ही कह चुके हैं कि तुम्हारे अलग होने पर हमें कोई एतराज नहीं !”
“अब तुम लोग दिल्ली पर नजर रखो । रहस्यमय जीव के बारे में खबरें मालूम करो ।” श्याम बाबू ने सब पर नजरें मारीं, “ये मेरा आखिरी काम है । इसके बाद मैं इन कामों से खुद को अलग कर लूँगा । जाओ ।”
एक-एक करके सब बाहर निकल गए ।
सोनी नहीं गई । वह आगे बढ़ी और कुर्सी पर इस अंदाज में बैठ गई कि उसके जिस्म के हिस्से ज्यादा-से-ज्यादा दिखें और ज्यादा-से-ज्यादा आकर्षक दिखें ।
श्याम बाबू ने तबीयत से सोनी को सिर से पाँव तक देखा ।
सोनी आँखों-ही-आँखों में मार देने वाले ढंग से श्याम बाबू को देखती रही ।
“तुम गयीं नहीं !” श्याम बाबू की निगाह सोनी के चेहरे पर जा टिकीं, “कोई बात ?”
“मैं कुछ देर यहाँ रहूँ तो तुम्हें एतराज है श्याम बाबू ?” सोनी मुस्कराकर बोली ।
“कोई एतराज नहीं !” श्याम बाबू के चेहरे पर शांत-सी मुस्कान उभरी ।
“लंच मैं तैयार करूँ तो मनाही है क्या ?”
“यूँ ही तकलीफ करोगी ?” श्याम बाबू ने कहा, “लंच बाहर से आ जायेगा ।”
“अपनों के लिए काम करने में तकलीफ कैसी । मेरे हाथ का बना भी खाकर देखो ।” सोनी हौले से हँसी, “तुम्हारे पास बेशुमार दौलत है, फिर तुम ऐसी जगह पर क्यों रह रहे हो ?”
श्याम बाबू कुछ पलों तक खामोश रहा, फिर कह उठा ।
“जब तक मैं गैरकानूनी काम करता रहूँगा, बंगला नहीं ले सकता । कई निगाहें मेरी तरफ उठ जाएँगी कि साधारण से मकान में रहने वाले ने बंगला कैसे खरीद लिया ?”
“इसी कारण तुम धंधे से अलग हो रहे हो ।”
“ऐसा ही समझ लो । बहुत पैसा हो गया है मेरे पास ।” श्याम बाबू कह उठा, “काम की भागदौड़ से थक चुका हूँ । अच्छा यही है कि कहीं दूर जाकर, शानदार जिंदगी बिताऊँ ।”
“सोच अच्छी है ।” सोनी बोली, “मेरे पास भी बहुत पैसा है, परन्तु तुम्हारी तरह इतना नहीं कि निश्चिन्त हो सकूँ । इसलिए अभी काम से अलग नहीं हो सकती ।”
सिर हिलाकर श्याम बाबू, सोनी को देखता रहा ।
सोनी ने अपनी टाँगें इस ढंग से फैला ली कि श्याम बाबू की निगाह बार-बार उधर ही उठने लगी । स्कर्ट कुछ ऊपर सरक गई थी । नग्न टाँगों की खूबसूरती देखते ही बनती थी ।
“किसी दूसरे शहर जाकर बंगला खरीदोगे ।” सोनी के चेहरे पर मुस्कान थी, “बड़े बंगले में अकेले रहना अजीब-सा लगेगा श्याम बाबू । तुमने अभी तक शादी भी नहीं की । दौलत और औरत का मजा नहीं लूटा तुमने अभी तक ।”
“सच कहती हो सोनी !” श्याम बाबू मुस्कुरा पड़ा, “दौलत पास है लेकिन उसको इस्तेमाल करने का वक्त नहीं मिल पाया । न ही औरत के साथ रहने का मजा मिल पाया ।”
सोनी ने श्याम बाबू की आँखों में झाँका ।
“कभी औरत को सिर से पाँव तक बिना कपड़ों के देखा है ?”
“देखा है, लेकिन तसल्ली के साथ नहीं ! पराई औरतों को परायों की तरह ही देखा जाता है ।”
“किसी औरत को अपना बना लो ।”
“बंगला खरीदने के बाद शादी करूँगा ।” श्याम बाबू की निगाह अभी भी उसकी टाँगों पर फिर रही थी ।
“किसे ?”
“ढूँढ़ लूँगा । कोई मिल ही जायेगी ।”
“मुझसे शादी कर लो ।”
“तुमसे ?” श्याम बाबू की निगाह सोनी के चेहरे पर जा टिकी ।
“क्या मैं इस लायक नहीं कि तुम मुझसे शादी कर सको ?” सोनी जानलेवा ढंग से मुस्कुरा पड़ी, “तुम्हें औरत के सहारे की तलाश है और मुझ जैसी औरत को मर्द का सहारा लेना ही पड़ता है । मैं तुम्हें पसंद करती हूँ ।”
“मेरी उम्र पचास की हो रही है और तुम तीस की हो ।”
“क्या फर्क पड़ता है । घोड़ा कभी बूढ़ा नहीं होता ।” सोनी ने कहा, “रहस्यमय जीव को राबर्ट के हवाले करने के बाद, दस करोड़ तुम्हारे हिस्से आएगा । दस मेरे को मिलेगा । बहुत दौलत हो जायेगी हम दोनों की मिलाकर । मौज-मस्ती में जिंदगी बीतेगी । मैं तुम्हें खाना बनाकर खिलाया करूँगी । तुम्हारे बच्चों की माँ बनूँगी । तुम्हारी और मेरी जिंदगी में जो खालीपन रहा है, वो दूर हो जायेगा ।”
श्याम बाबू के चेहरे में अब बदलाव आ गया था । उसकी निगाह पुनः सोनी की टाँगों में गई ।
सोनी मुस्कुरा पड़ी ।
“मेरी टाँगों को बार-बार क्या देख रहे हो । मुझे ठोक-बजाकर देख लो । खरी हूँ । मायूसी नहीं होगी ।” सोनी हौले से हँसकर कह उठी, “तसल्ली कर । अच्छी लगूँ तो ब्याह करना ।”
श्याम बाबू कुर्सी से उठा और सोनी के पास बेड पर जा बैठा । उसके चेहरे के भाव पूरी तरह बदल चुके थे । अपना हाथ उसने सोनी की टाँग पर रखा । साँसें तेज चलने लगी थीं ।
“मुझसे अच्छे मिल जायेंगे तुम्हें शादी के लिए ।” श्याम बाबू के होंठों से निकला ।
“जानती हूँ ।”
“फिर मुझ पर ही ये मेहरबानी क्यों ?”
“श्याम बाबू !” सोनी ने अपने टाँग पर पड़े उसके हाथ पर हाथ रख दिया, “तुम मुझे हमेशा अच्छे लगते रहे हो ।”
दोनों की आँखें मिलीं ।
“मैं तुम्हें अच्छी नहीं लगती श्याम बाबू ?” सोनी अपना चेहरा उसके करीब ले आई ।
“बहुत अच्छी लगती हो ।” श्याम बाबू की साँसें उखड़ गयीं, “बहुत अच्छी लगती हो ।”
सोनी ने अपना हाथ उसके गाल पर रखा और धीरे-धीरे सहलाने लगी ।
तभी श्याम बाबू ने सोनी पर ऐसा झपट्टा मारा जैसे वह भागी जा रही हो ।
“धीरे । धीरे श्याम बाबू ।”
श्याम बाबू रुकने वाले कहाँ थे । सोनी के कपड़े फौरन ही अलग हो गए ।
“तुम मर्दों में यही खराबी होती है । औरत के मामले में कभी भी सब्र से काम नहीं लेते ।”
श्याम बाबू के पास कहने-सुनने की फुर्सत ही कहाँ थी ।
सोनी भी तैयार हो गई । वह श्याम बाबू को दिखा देना चाहती थी कि आज पहली बार उसे बढ़िया औरत मिली है । श्याम बाबू को दीवाना बनाना जरूरी था । तभी तो उससे शादी करके उसकी दौलत की मालकिन बन सकेगी ।
☐☐☐
पुलिस कमिश्नर रामकुमार ने टेबल पर मौजूद कुर्सियों पर बैठे चारों इंस्पेक्टरों पर निगाह मारी । चारों इंस्पेक्टरों में इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी भी मौजूद था ।
“मैंने उन तीनों विक्षिप्त लाशों को देखा है ।” कमिश्नर रामकुमार ने कहा, “उन्हें मारकर, लाशों को जिस तरह उधेड़ा गया है, वो किसी जानवर का या इंसान का काम नहीं लगता । समझ में नहीं आता कि जिसने ये सब किया । उसके भीतर दिल भी है या नहीं !”
“सर !” एक इंस्पेक्टर कह उठा, “मैंने उसकी तस्वीरें देखी हैं । वो इंसान नहीं है । तस्वीरें देखकर ही भय महसूस होता है । मुझे तो विश्वास ही नहीं आया कि... ।”
“वो इंसान नहीं है तो जानवर भी नहीं है ।” दूसरा इंस्पेक्टर कह उठा ।
“हैरानी की बात ये है कि वो जो भी है, कोटेश्वर बीच पर था । उसके आसपास के इलाकों में उसे देखा गया है ।” विमल कुमार मोदी ने गंभीर स्वर में कहा, “ऐसे में वो सैकड़ों मील दूर यहाँ दिल्ली में कैसे आ पहुँचा ? रास्ते में जयपुर के अलावा किसी दूसरी जगह पर उसे नहीं देखा गया । इतना लम्बा रास्ता तय करने के दौरान किसी ने उसे देखा तक नहीं !”
“वो रास्ते में भी कहीं रुक सकता था । दिल्ली ही क्यों आया ?”
“क्या मालूम वो दिल्ली से भी आगे किसी दूसरे शहर में निकल जाये ।”
“ऐसा हो सकता है ।” चौथे इंस्पेक्टर ने सोच भरे स्वर में कहा, “रात के बाद अभी तक उसके कहीं पर मौजूद होने की खबर नहीं मिली । शायद वो आगे ही निकल गया होगा ।”
कमिश्नर साहब ने गंभीर निगाहों से सबको देखा ।
“अगर वो दिल्ली से बाहर भी निकल जाता है तो केस खत्म नहीं !”
तभी फोन की बेल बजी ।
“हैलो !” कमिश्नर साहब ने रिसीवर उठाया ।
दूसरे ही पल रामकुमार के चेहरे पर घबराहट के भाव उभरे ।
“किसी को खबर की ? गुड ! मैं आता हूँ ।” उसने रिसीवर रखा । माथे पर पसीने की बूँदें दिखाई देने लगीं ।
“क्या हुआ सर ?”
पुलिस कार में कमिश्नर रामकुमार और चारों इंस्पेक्टर वहाँ पहुँचे ।
वहाँ बहुत भीड़ थी ।
पुलिस ने लोगों की भीड़ को दूर कर रखा था । हर तरफ पुलिस की वर्दियाँ ही नजर आ रही थीं । इसके अलावा कुछ और नजर नहीं आ रहा था ।
कमिश्नर रामकुमार वहाँ मौजूद पुलिस वालों के पास पहुँचे । चारों इंस्पेक्टर उनके साथ थे । पुलिस वालों ने कमिश्नर रामकुमार को सैल्यूट किया ।
“कहाँ है वो जीव ?” कमिश्नर ने पूछा ।
“उस तरफ है सर !” पुलिस वाले ने एक तरफ इशारा किया, “वो सड़क के किनारे फुटपाथ पर बैठ गया है । पहले से झूमने के से अंदाज में आगे बढ़ रहा था । पुलिस मौके पर पहुँची और दूर रहकर ही उसे घेर लिया गया । बहुत बार उसे चेतावनी दी गई कि वो खुद को कानून के हवाले कर दे, परन्तु... ।”
“वो सुनना-बोलना जानता है ?” मोदी ने कहा ।
“मालूम नहीं ! हम तो खुद ये सब बातें जानने की चेष्टा कर रहे हैं । उसका रंग-रूप बनावट इतनी भयानक है कि कोई उसके करीब जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा ।” पुलिस वाले ने कहा ।
“उसने किसी की जान ली ?” कमिश्नर साहब ने पूछा ।
“नहीं कमिश्नर साहब ! उसने किसी की जान नहीं ली । लेकिन हाथों से मारकर दो कारों को इस तरह चूर-चूर कर दिया है कि अब उन कारों को देखकर लगता है, जैसे उनके ऊपर पहाड़ आ गिरा हो । वो बहुत ताकतवर है । उफ़्फ़, माथे के बीचोबीच उसकी आँख देखते ही शरीर में झुरझुरी-सी दौड़ जाती है ।”
“उसे निशाना बनाने की चेष्टा की किसी ने ?”
“नहीं सर ! अभी तो घेरा ही हुआ है उसे । कमिश्नर साहब कोई ऑर्डर नहीं दे रहे ।”
कमिश्नर रामकुमार, चारों इंस्पेक्टरों के साथ उधर बढ़ गए, जिधर उसके होने के बारे में कहा था ।
कुछ आगे पुलिस वालों का जमघट दिखाई दे रहा था ।
“उस अजीब से जीव को घेर रखा है ।” चलते-चलते इंस्पेक्टर ने कहा ।
करीब पहुँचकर पुलिस वालों के बीच में से रास्ता बनाकर वे आगे पहुँचे ।
तभी वे सब ठिठक गए ।
नजरें उस पर जा टिकीं । वह करीब दौ सौ फ़ीट दूर फुटपाथ पर बैठा था । उसके शरीर की बनावट स्पष्ट दिखाई दे रही थी । उस पर निगाह पड़ते ही एक इंस्पेक्टर के होंठों से निकला ।
“ओफ्फ, कैसा भयानक है !”
“मैंने ऐसा जीव पहले कभी नहीं देखा ।” दूसरा बोला, “क्या ये हमारी दुनिया का है ?”
“नहीं ! ये जो है हमारी दुनिया का नहीं है ।” मोदी ने होंठ भींचें कहा ।
“तो फिर कहाँ से आया ?”
कमिश्नर रामकुमार की नजरें दूर बैठे रहस्यमय जीव पर टिक चुकी थीं ।
पाँच फ़ीट का सेहतमंद-सा था वह । शरीर की खाल किसी गैंडे की तरह थी । खाल में कई जगह मोटे-मोटे बल थे । उसके हिलने पर कभी वह बाल नजर आने बन्द हो जाते तो कभी दिखाई देने लगते । वह इंसान की तरह भी चलता था और हाथ जमीन पर रखकर जानवरों की तरह भी । उसकी हथेलियाँ छोटी और उंगलियाँ लम्बी थीं । उँगलियों के नाखून तीखे और आगे को बढ़े हुए थे । कोई भी नाखून सीधा नहीं था । इधर-उधर मुड़ा हुआ था । उसके पैर भी हाथों की तरह ही छोटे ही थे और नाखून टेड़े से । उसके शरीर की खाल का हिस्सा कमर के पास से उभरकर, हिलाता हुआ कूल्हों वाले, आगे-पीछे के हिस्से को ढाँप रहा था । सिर पर फोड़ो की भाँति बालों के चंद गुच्छे नजर आ रहे थे । उसके एक कान से लेकर, माथे से होकर दूसरे कान तक जाती करीब इंच भर चौड़ी पट्टी थी । आधा इंच गहरी पट्टी, जिसके बीच एक रुपये के सिक्के के साइज की आँख फँसी हुई थी जो कि दायें से बाएँ फिर रही थी । वह जिधर देखना चाहता, उधर देख लेता ।
बहुत ही अजीब और दिल की धड़कने बढ़ा देने वाला हुलिया था उसका ।
“मुझे तो डर लग रहा है सर !” एक इंस्पेक्टर ने कहा, “कैसा है ये ।”
मोदी की सिकुड़ी निगाह रहस्यमय जीव पर टिक चुकी थी ।
“ये इंसान नहीं है ! जानवर भी नहीं है !” दूसरा इंस्पेक्टर कह उठा ।
तभी लाउडस्पीकर पर गूँजती आवाज कानों में पड़ी ।
“कानून के नाम पर हम तुम्हें कह रहे हैं कि खुद को पुलिस के हवाले कर दो, वरना गोलियों से भून दिया जायेगा ।”
“ये भाषा समझता नहीं है तो इसे चेतावनी देने का क्या फायदा ?” मोदी कह उठा ।
“कोशिश करके देख लेने में क्या हर्ज है । इस बात पर चलकर, उसे चेतावनी दी जा रही होगी ।”
तभी एक कमिश्नर, कमिश्नर रामकुमार के पास पहुँचा ।
“हैलो कमिश्नर रामकुमार !” वह बोला, “अच्छा हुआ तुम आ गए । मैं परेशान हुआ पड़ा हूँ ।”
“क्या हुआ भाटिया ?” रामकुमार, रहस्यमय जीव को देखते होंठ सिकोड़कर कह उठा ।
“वो अजीब-सी शक्लों-सूरत वाला जो जीव है, उसकी खबर मिलते ही मैं पच्चीस-तीस पुलिस वालों के साथ यहाँ आ गया । पहले तो ये सड़क पर जा रहा था । लोग सहमे से इसे रास्ता दे रहे थे, परन्तु हम लोगों के यहाँ पहुँचने पर ये रुक गया । आसमान की तरफ मुँह करके चीखा । फिर हमें घूरने लगा ।”
“पुलिस वालों को ?” रामकुमार ने भाटिया को देखा ।
“हाँ !”
“ये पहचानता है पुलिस वालों को । उनकी वर्दी को ।” रामकुमार होंठ सिकोड़कर कह उठा, “कोटेश्वर बीच पर इसने पुलिस वालों को देखा था ।”
“कोटेश्वर बीच पर ?”
“हाँ, पहली बार ये वहीं दिखा था ।”
“वहाँ क्या हुआ था ?”
“पूरी तरह नहीं मालूम क्या हुआ था ।” रामकुमार की नजरें रहस्यमय जीव की तरफ थीं ।
“ये बातें तो हम बाद में भी कर लेंगे ।” कमिश्नर भाटिया व्याकुल स्वर में कह उठा, “अब क्या किया जाये, ये बात मुझे समझ नहीं आ रही । इसे शूट के ऑर्डर दूँ या गिरफ्तार करने की कोशिश करूँ ? पुलिस वाले इसके पास जाने से डर रहे हैं । वास्तव में ये भयानक है ।”
“जो ठीक समझो करो ।”
“मैं तुमसे राय माँग रहा हूँ कि... ।”
कमिश्नर भाटिया के शब्द मुँह के मुँह में ही रह गए ।
सबको देखते-ही-देखते वह रहस्यमय जीव उठा और पलटकर सड़क की उल्टी दिशा में चलने लगा । उधर मकान और गलियाँ थीं ।
“वो... वो जा रहा है ।” एक इंस्पेक्टर के होंठों से निकला ।
वहाँ फैले पुलिस वालों में हलचल-सी पैदा हो गई ।
“रामकुमार !” कमिश्नर भाटिया कह उठा, “वो जा रहा है । फायरिंग का ऑर्डर... ।”
“मेरे ख्याल में ऐसा करना ठीक नहीं होगा ।” रामकुमार ने गंभीर स्वर में कहा ।
“क्यों ?”
“वो अजीब-सा जीव है । ऐसा जीव पहले कभी किसी ने नहीं देखा ।” रामकुमार ने भाटिया को देखा, “इसे जान से खत्म करना ठीक नहीं होगा । जिन्दा पकड़ने की कोशिश करो ।”
“तब तक तो कई लोगों को मार देगा ये । कल रात ही तीन को मारा ।”
“अगर ये जीव जनता के लिए ज्यादा खतरा बनने लगे तो फिर बेशक इसे खत्म कर देना ।”
पास पहुँचने वाले, पुलिस वाले कह उठे ।
“सर, वो जा रहा है ! किसी को मार देगा । उसे शूट कर दें ?”
“नहीं !” कमिश्नर भाटिया के होंठ भिंच गए ।
“उसके पीछे जाओ । उसे जिन्दा पकड़ने की कोशिश... ।”
“जिन्दा... ?”
“ओके सर !”
वह पुलिस वाले वापस पुलिस वालों की तरफ दौड़े ।
“रामकुमार !” कमिश्नर भाटिया कह उठा, “अब उसे जिन्दा गिरफ्तार कर लिया जायेगा ।”
कमिश्नर साहब की निगाहें दूर, रहस्यमय जीव पर थीं ।
“सर !” इंस्पेक्टर विमल कुमार मोदी जल्दी से बोला, “मैं... मैं उधर जाऊँ ?”
कमिश्नर साहब ने मोदी को देखा ।
“तुम... क्यों ?”
“उसे करीब से देखना चाहता हूँ ।”
“ज्यादा करीब मत जाना ।” कमिश्नर साहब ने गम्भीर स्वर में कहा ।
“यस सर !” कहने के साथ ही मोदी उधर दौड़ा, जिधर रहस्यमय जीव था ।
वह दोनों बाँहों को आगे-पीछे करता आगे बढ़ा जा रहा था । एक कान से दूसरे कान की पट्टी तक उसकी आँख रह-रहकर घूम रही थी । रास्ते में आने वाले लोग घबराकर पहले से ही उसके लिए रास्ता छोड़ रहे थे । कुछ तो उसका रूप-आकार देखकर दहशत से चीख उठते ।
अजीब-सी सनसनी माहौल में फैल चुकी थी ।
सड़क पर जाता ट्रैफिक दूर-दूर तक जाम हो चुका था ।
अभी वह कुछ आगे ही गया था कि एकाएक ठिठक गया । उसकी गर्दन इधर-उधर घूमने लगी । आँख तेजी से हरकत करती माथे से गुजरती पट्टी में घूमने लगी । उसने अपने आसपास पुलिस वालों की बढ़ती मौजूदगी को महसूस कर लिया था ।
पुलिस वालों ने उससे पंद्रह-बीस कदमों की दूरी पर खड़े, हाथों में थाम रखी गनों का रुख उसकी तरफ कर लिया था ।
ये सब देखकर उसके चेहरे पर गुस्सा नजर आने लगा । उसने अपना चेहरा आसमान की तरफ उठाया और होंठों से ऐसी आवाज निकाली, जैसे चीख रहा हो ।
उसकी इस आवाज को सुनकर, दूर खड़े कई लोगों की चीखें निकल गयीं ।
तभी दो इंस्पेक्टर उसके सामने दस कदम की दूरी पर आ खड़े हुए । उनके हाथों में दबी रिवॉल्वरों का रुख उसकी तरफ था । उनके चेहरों पर सख्ती के साथ घबराहट-सी थी ।
“खबरदार, जो अपनी जगह से हिले !” एक इंस्पेक्टर रिवॉल्वर वाला हाथ हिलाकर बोला ।
रहस्यमय जीव के मोटे भद्दे होंठ भिंच गए । आँखों में सुर्खी-सी दिखने लगी ।
“गिरफ्तार कर लो इसे ।” दूसरा इंस्पेक्टर चीखा ।
कुछ दूरी पर एक कॉन्स्टेबल हथकड़ी थामे दिखा । उसका चेहरा फक्क हुआ पड़ा था ।
“आगे बढ़ो !” इंस्पेक्टर चीखा, “इसके हाथों में हथकड़ी डालो ।” कॉन्स्टेबल एक कदम आगे बढ़ा और भय से भरी झुरझुरी लेकर रुक गया ।
“बेवकूफ !” इंस्पेक्टर दाँत भींचकर कह उठा, “तुम पुलिस में नौकरी करने के काबिल नहीं हो ।” इसके साथ ही वह तेज-तेज कदमों से कॉन्स्टेबल की तरफ बढ़ गया ।
दूसरे इंस्पेक्टर ने सावधानी से रहस्यमय जीव की तरफ रिवॉल्वर किये रखा ।
इंस्पेक्टर ने कॉन्स्टेबल से हथकड़ी ली और दाँत भींचें सावधानी से रहस्यमय जीव की तरफ बढ़ने लगा ।
साँसें रोककर हर कोई ये सब देख रहा था ।
देखने वालों की भीड़ में इंस्पेक्टर मोदी भी खड़ा था ।
रहस्यमय जीव की नजरें पास आते इंस्पेक्टर पर थीं ।
दूर खड़े लोग धड़कते दिल के साथ ये सब देख रहे थे ।
रहस्यमय जीव की आँख लाल सुर्ख-सी होने लगी थी । मोटे-भद्दे होंठ गुस्से से भिंच चुके थे ।
वह एकटक पास आते इंस्पेक्टर को देखे जा रहा था । दूसरा इंस्पेक्टर दस कदमों की दूरी पर रिवॉल्वर का रुख उसकी तरफ किये खड़ा था । परन्तु उसके चेहरे पर बेचैनी थी ।
हथकड़ी थामे इंस्पेक्टर तीन कदमों की दूरी पर रुक गया ।
“हाथ आगे करो ।” इंस्पेक्टर ने स्वर को सख्त बनाने की चेष्टा की, परन्तु स्वर में कम्पन था ।
वह इतने करीब था कि उसके रूप-आकार ने उसके मन में दहशत फैला दी थी ।
रहस्यमय जीव की सुर्ख आँख इंस्पेक्टर पर टिकी रही ।
“ह... हाथ आगे करो ।” इंस्पेक्टर सूखे होंठों पर जीभ फेरकर बोला । दोनों हाथों में हथकड़ी और रिवॉल्वर थाम रखी थी, “वरना तुम्हें शूट कर दिया जायेगा । तुम कानून से बच नहीं सकते ।”
इंस्पेक्टर के शब्द पूरे ही हुए थे कि एकाएक रहस्यमय जीव उस पर झपट पड़ा ।
वह ऐसा भी कर सकता है । इंस्पेक्टर ने कभी सोचा नहीं था ।
रहस्यमय जीव का हाथ सीधा उसके रिवॉल्वर पर पड़ा । रिवॉल्वर छीनकर उसे हथेली में मसला तो वह बुरी तरह टेड़ी हो गई । उसने रिवॉल्वर एक तरफ फेंकी । इंस्पेक्टर हक्का-बक्का खड़ा था । खौफ ने उसे सकते की-सी हालत में डाल दिया था । हथकड़ी नीचे जा गिरी थी । रहस्यमय जीव ने उसे बाँह से पकड़कर झटका दिया । इंस्पेक्टर जोरों से लड़खड़ाकर रहस्यमय जीव से टकराया और होंठों से भय भरी चीख निकल गई ।
तभी गोली चलने की तीव्र आवाज वहाँ गूँजी । दस कदमों की दूरी पर खड़े इंस्पेक्टर ने रहस्यमय जीव पर गोली चलाई थी, लेकिन इंस्पेक्टर के आगे आ जाने की वजह से गोली इंस्पेक्टर की कमर में लगी । इंस्पेक्टर गला फाड़कर चीखा । उसका शरीर और भी जोरों से रहस्यमय जीव के साथ टकराया, परन्तु वह अपनी जगह पर स्थिर रहा । उसकी इकलौती सुर्ख आँख गोली चलाने वाले इंस्पेक्टर पर जा टिकी ।
उसकी लाल सुर्ख आँख का रुख अपनी तरफ पाकर गोली चलाने वाला सूखे होंठों पर जीभ फेरते घबराकर दो कदम पीछे हटा ।
रहस्यमय जीव ने तुरन्त पास के इंस्पेक्टर को कमर से थामा और खिलौने की तरह गोली चलाने वाले इंस्पेक्टर की तरफ उछाल दिया । दोनों इंस्पेक्टर के शरीर टकराये और वे नीचे जा गिरे ।
रिवॉल्वरें हाथ से छूटकर दूर जा गिरीं ।
तभी रहस्यमय जीव चेहरा आसमान की तरफ करके चीखा और उसी पल दोनों हाथ जमीन पर टिकाये, चीते की तरह भागा और नीचे पड़े गोली चलाने वाले इंस्पेक्टर पर छलाँग लगा दी ।
रहस्यमय जीव का जानवरों वाला ये रूप देखकर लोगों के होंठों से चीखें निकल गईं ।
वह चीखते हुए वहाँ से भागने लगे । हथियारबंद पुलिस वाले भी सहमे-से पीछे हटने लगे । वे रहस्यमय जीव पर गोली नहीं चला सकते थे । उनकी चलाई गोली इंस्पेक्टर को लगने का पूरा-पूरा खतरा था ।
रहस्यमय जीव नीचे पड़े इंस्पेक्टर पर जा गिरा । इंस्पेक्टर के होंठों से तेज चीख निकली ।
जिस इंस्पेक्टर को गोली लगी थी, वह तीन कदमों की दूरी पर नीचे पड़ा था ।
रहस्यमय जीव ने गोली चलाने वाले इंस्पेक्टर को गर्दन से थामा और खड़ा होकर, उसे जोरों से जमीन पर पटका ।
उसका सिर नीचे लगा और फट गया । वहाँ पर खून-ही-खून दिखने लगा । रहस्यमय जीव के होंठों से अजीब-सी आवाज निकली और उसी पल झुकते हुए उसने इंस्पेक्टर के मृत शरीर की टाँग पकड़ी और दूसरी टाँग पर पाँव रखकर तीव्रता से उसे झटका दिया और टाँगों को चीरता चला गया ।
ये खौफनाक नजारा देखकर नीचे पड़ा इंस्पेक्टर, जिसके कमर में गोली लगी थी, अपनी हिम्मत इकट्ठी करके किसी तरह उठा और जैसे-तैसे घबराकर दूर भागने लगा ।
लोगों की चीखें गूँज उठी ये देखकर ।
वह पलटकर इस तरह भागने लगे ,जैसे पाँवों के नीचे अचानक साँप आ गया हो ।
चीखो-पुकार का माहौल गर्म हो उठा ।
भगदड़-सी मच गई वहाँ ।
हथियारबंद पुलिस वाले भी पीछे हटने लगे ।
इन सब बातों से बेखबर रहस्यमय जीव पागलों की तरह इंस्पेक्टर की लाश को बुरे हाल करने में व्यस्त था । टाँगों से पेट तक चीरने के बाद वह बाँहें उखाड़ने में व्यस्त था । आस-पास खून-ही-खून बहता नजर आ रहा था । दिल दहला देने वाला नजारा सामने था ।
इंस्पेक्टर मोदी होंठ भींचें ये सब देख रहा था । वह भी पीछे हो चुका था ।
तभी दूर से एक पुलिस वाले ने रहस्यमय जीव पर गोली चला दी । गोली उसे तो नहीं लगी, परन्तु वह पास जाकर जमीन पर धँस गई । गुस्से से भरे रहस्यमय जीव ने गर्दन घुमाकर सुर्ख आँख से दूर खड़े उस पुलिस वाले को देखा, जिसने गोली चलाई थी । अगले ही पल वह पलटा और दोनों हाथ आगे टिकाये, तेजी से गोली चलाने वाले पुलिस वालों की तरफ दौड़ा । उसकी रफ़्तार बेहद तेज थी ।
वह पलों में ही करीब पहुँचकर उस पुलिस वाले पर चीते की तरह छलाँग लगा चुका था । उससे टकराकर नीचे गिरा और फिर उसके शरीर को चीरने-फाड़ने लगा ।
यह देखकर तो दहशत का माहौल और भी गर्म हो उठा ।
जिसे जिधर जगह मिली उधर ही भागा ।
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अजीब-सी सनसनी और दहशत वहाँ फैल चुकी थी । सैकड़ों लोग वहाँ कुछ देर पहले मौजूद थे, परन्तु अब इक्का-दुक्का लोग ही थे वहाँ ! वे भी उचित दूरी पर छिपे रहस्यमय जीव को देख रहे थे ।
इंस्पेक्टर मोदी भी पीछे हट चुका था । उसके होंठ भिंचे हुए थे । आँखें रहस्यमय जीव पर लगी हुई थी, जिसने गोली चलाने वाले पुलिस वाले के शरीर को भी उधेड़ दिया था ।
घेरा-बन्दी किये पुलिस वाले अब दूर हो चुके थे ।
तभी दूर से गोली चलने की आवाज सुनाई दी । इसके साथ ही रहस्यमय जीव का शरीर फुर्ती से हिला । वह पलटा और गोली उसकी कलाई पर आ लगी थी । रहस्यमय जीव की सुर्ख आँख इधर-उधर देखने लगी, जहाँ से गोली आई थी । कई पलों तक वहाँ सनसनी फैली रही । जो भी रहस्यमय जीव को देख रहा था, वह इस इंतजार में था कि रहस्यमय जीव अब क्या करता है ?
तभी रहस्यमय जीव ने अपने आगे के दोनों हाथ नीचे टिकाये और किसी चीते की तरह फुर्ती से भागता हुआ, वहाँ मौजूद लोगों की निगाहों से ओझल होता चला गया । उसकी रफ़्तार इतनी तेज थी कि कोई भी उसके पीछे न जा सका । उसे इस तरह भागते पाकर हर कोई हक्का-बक्का रह गया । होश तब आया जब वह दिखाई देना बन्द हो गया । पुलिस वालों और वहाँ छिपे लोगों में हलचल पैदा हो गई ।
हर कोई दहशत में डूबा लग रहा था । इंस्पेक्टर मोदी होंठ भींचें, आँखें सिकोड़े उधर ही देखे जा रहा, जिधर रहस्यमय जीव गया ।
मोती के हाथ में पकड़ा कैमरा बराबर इस्तेमाल हो रहा था ।
वह रहस्यमय जीव की तस्वीरें ले रहा था, जो कि दूर से नजर आ रहा था । पास खड़ा शंकर गंभीर निगाहों से रहस्यमय जीव को देख रहा था । रहस्यमय जीव अभी-अभी दोनों इंस्पेक्टरों को खत्म करके हटा था । दूर-दूर बिखरी भीड़, छिपने के से अंदाज में खड़ी इधर ही देख रही थी ।
तभी देखते-ही-देखते रहस्यमय जीव दौड़ता हुआ नजरों से ओझल हो गया ।
कई लोग उस तरफ दौड़े, जिधर रहस्यमय जीव गया था । पुलिस कारें भी तेजी से उस तरफ चली गई ।
मोती ने कैमरा नीचे करते हुए गम्भीर निगाहों से शंकर को देखा ।
दोनों जब श्याम बाबू के यहाँ से निकलकर कार में पाँच-सात किलोमीटर आगे गए तो शंकर ने सिगरेट का पैकिट लेने के लिए कार रोकी । तब दुकानदार ने बताया की इधर रहस्यमय जीव होने की खबर मिली हैं । बहुत-सी पुलिस की गाड़ियाँ भी उधर गई हैं । ये सुनते ही दोनों ने कार उस तरफ दौड़ा दी । यहाँ आकर रहस्यमय जीव की मौजूदगी का पता चला तो पास की दुकान से मोती ने जल्दी से कैमरा खरीद लिया था और श्याम बाबू को फोन पर खबर कर दी थी ।
मोती और शंकर भीड़ से हटकर एक तरफ आ गए ।
रहस्यमय जीव के चले जाने के बाद वहाँ हलचल पैदा हो गई थी । छिपे लोग अब बाहर अपने-अपने विचारों की लम्बी-लम्बी हाँकने लग गए थे । पुलिस वालों ने घटना स्थल को घेर लिया था ।
“श्याम बाबू को फोन किया ?” शंकर ने पूछा ।
“हाँ !” मोती का स्वर तीखा-सा हो गया, “सोनी वहीं थी ।”
“सोनी ।” शंकर ने मोती को देखा ।
“श्याम बाबू के बेड पर ।” मोती ने शब्दों को चबाकर कहा, “श्याम बाबू ने रिसीवर उठाया तो सोनी उसके साथ चिपकी हुई थी । फोन पर कुछ ऐसी आवाजें मुझे सुनने को मिलीं, जैसे... ।”
“छोड़ो । हमें क्या । वो जो भी करे ।” शंकर ने कहा ।
“मैं सोनी को पसन्द करता हूँ शंकर !”
शंकर ने मोती को देखा ।
“सोनी, श्याम बाबू के पास है तो स्पष्ट है कि वो तुम्हें पसंद नहीं करती ।” शंकर ने गंभीर स्वर में कहा ।
“लेकिन मैं सोनी को पसंद करता हूँ । उससे शादी की सोच रखी है मैंने ।”
शंकर ने मोती के गुस्से से भरे चेहरे पर नजर मारी ।
“ये बातें फिर कर लेना ।” शंकर ने बात टालते हुए कहा, “रहस्यमय जीव को हमने अपनी आँखों से देखा है । उसके बारे में क्या विचार है तुम्हारा ?”
मोती ने गुस्से से भरे ढंग से गहरी साँस ली और अपने पर काबू पाने की चेष्टा करने लगा ।
शंकर ने सिगरेट सुलगा ली ।
“क्या उस जीव को पकड़ा जा सकता है ?” शंकर ने मोती को देखा ।
“कोई भी काम कठिन नहीं होता ।” मोती ने धीमे स्वर में कहा ।
“तुमने देखा ही है कि वो बहुत ताकतवर है । गोली भी उस पर कोई असर नहीं करती ।”
“पचास करोड़ का सवाल है ।” मोती ने कहा, “दस मेरे हिस्से आएगा ।”
“ऐसा तभी होगा, जब हम उसे पकड़कर राबर्ट को उसकी डिलिवरी हिन्दुस्तान से बाहर दें ।”
“पकड़ लेंगे उसे ।”
“ढेर सारे पुलिस वाले भी उस पर काबू न पा सके ।” शंकर गंभीर था, “वो जाने क्या है ! इन्सानों की तरह भी चलता है और जानवरों की तरह बहुत तेजी से दौड़ भी जाता है । मुझे तो आसान नहीं लगता उसे पकड़ पाना ।”
तभी मोती की आँखें सिकुड़ गयीं ।
“वो देखो, श्याम बाबू और सोनी । कैसे एक-दूसरे का हाथ पकड़ रखा है ।” मोती ने कड़वे स्वर में कहा ।
शंकर ने उधर देखा ।
श्याम बाबू और सोनी किसी को ढूँढ़ते से लग रहे थे ।
“वो हमें ही तलाश कर रहे हैं ।” कहने के साथ ही शंकर उनकी तरफ बढ़ गया ।
मोती आँखों में गुस्सा समेटे सोनी को देखे जा रहा था ।
दोनों को शंकर ले आया ।
“किस्मत हमारा साथ दे रही है ।” पास पहुँचकर श्याम बाबू मुस्कुराया, “जो इतनी जल्दी रहस्यमय जीव दिखाई दे गया है । कहाँ है वो ?”
“चला गया ।” मोती ने अपने भावों पर काबू पाता हुआ था ।
“किधर ?”
शंकर ने बताया कि क्या हुआ । रहस्यमय जीव ने क्या किया ।
“आओ, देखते हैं कि उसके बारे में पुलिस वाले क्या सोच रहे हैं ।”
श्याम बाबू और शंकर उस तरफ बढ़ गए, जिधर पुलिस वाले नजर आ रहे थे ।
मोती ने कठोर निगाहों से सोनी को देखा ।
“क्या बात है मोती ?” सोनी कह उठी ।
“तू श्याम बाबू के साथ बेड पर थी, जब मैंने फोन किया ।” मोती एकाएक दाँत भींचकर कह उठा ।
सोनी की आँखें सिकुड़ीं फिर अजीब से लहजे में बोली ।
“मैं कब कहाँ, क्या कर रही थी, तेरे को क्या ?”
“मेरे को नहीं तो और किसे होगा ।”
“साफ़ बोल ।” सोनी ने उसकी आँखों में झाँका ।
“तेरे को अच्छी तरह मालूम है, मैं तेरे को पसंद करता हूँ ।” मोती की आवाज में सख्ती थी ।
“मेरे को नहीं मालूम । मालूम है तो सिर्फ इतना कि तू मुझे आँखें फाड़कर देखता रहता है ।”
“सोनी !” मोती के दाँत भिंच गए ।
“मेरे पर चिल्ला मत ।” सोनी का लहजा सख्त हो गया ।
मोती सख्त निगाहों से उसे देखता रहा फिर खुद पर काबू पाने लगा ।
“सोनी !” अपने पर काबू पाकर मोती धीमे और मीठे स्वर में कह उठा, “तू अच्छी तरह जानती है कि मैं तेरे को पसंद करता हूँ और तेरे से शादी भी करना चाहता हूँ । श्याम बाबू के पास क्या है, वो तो बूढ़ा हो रहा है ।”
“मुझे बूढ़े अच्छे लगते हैं ।” सोनी ने व्यंग्य भरे, तीखे स्वर में कहा ।
“समझने की कोशिश करो, सोनी ! मैं... ।”
“मोती !” सोनी ने उसकी आँखों में झाँका, “मेरा ख्याल निकाल दे । श्याम बाबू के साथ मैं शादी करने जा रही हूँ ।”
“सोनी !”
“आवाज नीची रख ।” सोनी ने दाँत भींचकर कहा और पलटकर उधर बढ़ गई, जिधर शंकर और श्याम बाबू थे ।
मोती की कहर भरी नजरें, जाती सोनी पर टिकी रहीं ।
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