संयोगवश ही सुनील की दृष्टि तारकपुर के पहाड़ी इलाके के घुमावदार रास्तों की निचली सड़क पर पड़ गई थी । जो उसने देखा था वह ऐसा नहीं था जिसकी कोई युक्तिसंगत वजह उसकी समझ में आ सकती ।
तीन आदमी एक वाले रंग की कार को सड़क से नीचे गहरे खड्ड में धकेल रहे थे ।
सुनील वैसे उनसे एकदम ऊपरली सड़क पर था लेकिन उन तक पहुंचने के लिये सड़क पर काफी आगे जाकर एक लम्बा मोड़ काट कर आना आवश्यक था ।
रात अन्धेरी थी । रास्ते सुनसान थे । ट्रैफिक के नाम पर सुनील की मोटर साईकिल और निचली सड़क पर एक अन्य कार के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था ।
सुनील विशालगढ से वापस लौट रहा था । रास्ते में मोटर साईकिल खराब हो जाने के कारण उसे देर हो गयी थी और यही वजह थी कि जिस समय उसे राजनगर में अपने फ्लैट में आराम से सोया हुआ होना चाहिये था उस समय वह अपनी साढे सात हार्स पावर के शक्तिशाली इंजन वाली मोटर साईकिल पर अभी तारकपुर की पहाड़ियों की घुमावदार सड़कों से ही गुजर रहा था ।
नीचे तीन व्यक्ति पूर्ववत काली कार को गहरे खड्ड में धकेलने में लगे हुए थे ।
वे लोग कार के खड्ड में क्यों धकेल रहे थे ?
सुनील के खुराफती दिमाग ने फौरन यह फैसला कर लिया कि जरूर कहीं दाल में काला था ।
उसने जोर से अपनी मोटर साईकिल का हार्न बजाया । लेकिन निचली सड़क पर मौजूद लोगों के एक्शन से ऐसा नहीं लगा जैसे उनके कानों में हार्न की आवाज या सुनील की मोटर साईकिल के शक्तिशाली इंजन की गर्जन पड़ी हो ।
सुनील ने मोटर साईकिल की रफ्तार बढा दी ।
उसके मोड़ पर पहुंचने तक कार सड़क के नीचे धकेली जा चुकी थी । कार कुछ फासला सीधी ढलान से नीचे उतर गई फिर उसने एक बड़े से पत्थर से ठोकर खाई और एकदम उलट गई । उसके बाद पत्थरों के साथ टकरा-टकरा कर भारी शोर उत्पन्न करती हुई वह लुढकनियां मारती हुई खड्ड में गिरने लगी ।
एकाएक गहरे खड्ड की सतह तक पहुंचने से पहले ही कार एक बड़ी सी चट्टान से टकराई और फिर वहीं अटकी खड़ी रह गई ।
तब तक कार को खड्ड में धकेलने वाले आदमी सड़क पर खड़ी दूसरी कार में सवार हो चुके थे । सुनील के देखते-देखते वह कार स्टार्ट हुई और फर्राटे भरती हुई राजनगर की दिशा में भाग चली ।
सुनील ने मोटर साईकिल का एक्सीलेटर और ज्यादा घुमा दिया ।
कार अगला मोड़ काट कर थोड़ी देर के लिये दृष्टि से ओझल हो गई लेकिन सुनील को मालूम था कि वह और नीचे की किसी सड़क पर फिर दिखाई देने वाली थी ।
लेकिन जब सुनील उस स्थान पर पहुंचा जहां पहली कार खड्ड में धकेली गई थी तो उसका कार को खड्ड में धकेलने वालों का पीछा करने का इरादा बदल गया । उसने अपनी मोटर साइकिल को सड़क पर एक किनारे करके रोक दिया ।
मोटर साईकिल की साइड लगे बक्से में से उसने टार्च निकाल ली । वह सड़क के किनारे पर आ खड़ा हुआ । शक्ति शाली टार्च का प्रकाश उसने नीचे खड्ड में डाला ।
कार लगभग पचास फुट नीचे चट्टान के साथ अटकी खड़ी थी वह एक पुरानी फोर्ड गाड़ी थी और उसके पहिये आसमान की ओर उठे हुए थे ।
सुनील को लगा कि कार के अन्दर कोई था ।
सुनील ने टार्च का प्रकाश कार ओर सड़क के बीच की ऊबड़-खाबड़ ढलान पर डाला । वह एक क्षण के लिये हिचकिचाया और फिर उसने ढलान पर नीचे उतरना आरम्भ कर दिया ।
नीचे कार में जो कोई भी यह वह निश्चय ही मर चुका था । रास्ते में आधी दर्शन भयंकर कलाबाजियां खाने के बाद कार जिस रफ्तार के साथ चट्टान से जाकर टकराई थी और वहीं अटकी रह गयी थी उस हालत में कार के और कार में मौजूद किसी भी आदमी के परखच्चे उड़ जाना स्वभाविक था ।
लेकिन फिर भी करिश्मा हो ही जाता है । शायद कार में मौजूद इन्सान अभी मरा न हो । शायद उसे बचाया जा सकता हो या शायद वह मरने से पहले कोई महत्वपूर्ण बात बता सकता हो ।
सुनील पूरी सावधानी के साथ पत्थरों पर पांव टिकाता हुआ नीचे उतरता गया ।
एक पत्थर उसके पांव के नीचे हिला और उखड़ा और फिर रात के सन्नाटे में जोर की आवाज करता हुआ नीचे खड्ड की तह में कहीं जाकर गुम हो गया ।
सुनील के पांव उखड़ गये । वह एकदम नीचे को फिसल गया लेकिन उससे पहले कि छाती के बल घिसटता हुआ वह भी पत्थर की तरह खड्ड की तलहटी में पहुंच जाता, एक मजबूत पत्थर पर उसका हाथ पड़ गया ।
वह सम्भल गया । टार्च उसके हाथ में छूटती-छूटती बची । कुछ क्षण वह वहीं खड़ा हांफता रहा । फिर उसने एक गहरी सांस ली और टार्च का प्रकाश नीचे की ओर डाला ।
विशाल चट्टान के साथ अटकी हुई फोर्ड कार से वह अभी भी लगभग बीस फुट दूर था ।
उसने पहले से कहीं ज्यादा सावधानी से ढलान पर उतरना आरम्भ कर दिया ।
लगभग पांच मिनट बाद वह कार के समीप पहुंच गया । कुछ क्षण वह कार का सहारा लेकर अपनी उखड़ी हुई सांस को व्यवस्थित करने का प्रयत्न करता रहा, फिर वह सावधानी से घूमा और उसने उलटी हुई कार की खिड़की में से टार्च का प्रकाश भीतर डाला । हालांकि ऐसा कुछ अपेक्षित ही था लेकिन फिर भी सुनील के नेत्र फैल गये और उसका मुंह खुल गया ।
कार के भीतर अगले भाग में लगभग बाईस साल की एक निहायत खूबसूरत लड़की पड़ी थी । उसके कपड़े खून से तर थे । हाथ-पांव बड़े विचित्र आकार में मुड़े हुए थे जैसे शरीर की कई हड्डियां टूट गई हों लेकिन उसका चेहरा एकदम साफ था । एक-दो खरोंच के निशान में अलावा दुर्घटना से चेहरे को किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंची थी । उसके विलायती ढंग से कटे हुए भूरे बाल उसके खूबसूरत चेहरे पर बिखरे हुये थे ।
उसे छूकर देखने की जरूरत नहीं थी, वह निश्यच ही मर चुकी थी ।
उसी क्षण कोई भारी चीज सनसनाती हुई सुनील के सर के ऊपर से गुजर गई । सिर के दस फुट नीचे कहीं से पत्थर झनझनाने की आवाज आई, एक क्षण निस्तब्धता रही और फिर एकाएक जोर का धमाका हुआ । नीचे खड्ड में से आसमान की ओर एक शोला सा लपका और साथ ही पत्थरों के छोटे-छोटे टुकड़े कार तक उछल आये ।
सुनील के घबराकर ऊपर की ओर देखा ।
ऊपर सड़क पर वही पहले वाली कार फिर आ खड़ी हुई थी । कार से बाहर एक आदमी सड़क के किनारे पर खड़ा था तभी उसका हाथ हवा में घूमा ।
सुनील बिजली की फुर्ती से उस चट्टान की साईड में कूद गया जिसके साथ कार अटकी खड़ी थी ।
इस बात में सन्देह की गुंजायश नहीं थी कि ऊपर सड़क पर खड़ा आदमी नीचे हथगोला फेंक रहा था ।
हथगोला सनसनाता हुआ समीप पहुंचा, जमीन से टकराया और सीधा उलटी हुई कार के बोनट के निचले हिस्से में रुक गया ।
एक जोरदार धमाका हुआ ।
पैट्रोल की टंकी, जो कार के ढलान पर इतनी कलाबाजियां खा चुकने के बाद भी फटी नहीं थी, अब फट गई ।
कार को आग लग गई ।
आग के गोलों से आस-पास का वातावरण जगमगा गया ।
सुनील चकित हो उठा । वहां उस रोशनी में ऊपर खड़े लोगों को कार के समीप मौजूद सुनील दिखाई दे सकता था ।
लेकिन शायद ऐसा नहीं हुआ । शायद न उन्हें सुनील दिखाई दिया और न उसका ध्यान ऊपर सड़क पर खड़ी सुनील की मोटर-साईकिल की ओर गया ।
कार में से आग के शोले निकलने की देर थी कि ऊपर खड़ा आदमी वापिस कार में जा बैठा और कार दोबारा बन्दुक से छुटी गोली की तरह तड़फ कर दौड़ चली ।
सुनील लपक कर जलती कार के समीप पहुंचा । आग से अभी कार का अगला भाग ही जल रहा था । आग ने अभी सारी कार को नहीं लपेटा था । गोलों की गर्मी सुनील के चेहरे को झुलसाये दे रही थी लेकिन फिर भी सुनील ने जल्दी से उलटी खड़ी कार का अगला एक दरवाजा खोला और लड़की की लाश को टांग पकड़ कर बाहर घसीट लिया ।
उसी क्षण न जाने कैसे कार चट्टान के समीप से सरक गई और फिर एक आग के गोले की तरह लुढकनियां खाती हुई नीचे खड्ड की ओर गिरने लगी ।
खड्ड की तह में कार के पहुंचते ही एक गगनभेदी धमाका हुआ और समूची कार धू-धू करके जलने लगी ।
सुनील ने टार्च का प्रकाश लाश पर डाला ।
लाश पर निगाह पड़ते ही उसका जी मिचलाने लगा । उसके गले में गोला सा उठने लगा । बड़ी मुश्किल से वह अपनी निगाहें लाश पर टिकाये रह सका ।
उस थोड़े समय में ही लाश बुरी तरह झुलस गई थी । चेहरा इतना जल गया था कि अब उसका पहचाना जाना असम्भव था । लगता था कि कार की पैट्रोल की टंकी फटने के बाद जलते हुए पैट्रोल के छींटे सीधे लड़की के चेहरे और शरीर के अन्य अंगों पर आकर पड़े थे । उसकी दांई बांह अभी भी जल रही थी जिसकी वजह से चमड़ी जलने की दुर्गन्ध सारे वातावरण में फैल रही थी । उसके कपड़े जल कर लगभग गायब ही हो गये थे और शरीर के कई स्थानों से चमड़ी इस हद तक जल गयी थी कि भीतर से सफेद-सफेद हड्डियां झलकने लगी थीं ।
एकाएक सुनील को एक जोर की उबकाई आई और उसका सारा खाया पिया मुंह को उछल पड़ा । उसने टार्च बुझा दी और लाश की तरह से मुंह फेर लिया ।
वह वापिस चढाई चढने लगा ।
***
सुनील पुलिस हैडक्वार्टर के वेटिंग रूम में एक बेंच पर सोया था । उसके जूते बेंच के नीचे पड़े थे । अपनी टाई उतार कर उसने कोट की जेब में ठूंस ली थी और कोट को उतार कर अपने ऊपर चादर की तरह ओढा हुआ था ।
पुलिस इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल ने उसे झिंझोड़ कर जगाया ।
सुनील आंखें मलता हुआ उठ बैठा । उसने आंख मिचमिचा कर प्रभूदयाल की ओर देखा और फिर बोला - “कितने बजे हैं ?”
“घड़ी तुम्हारी कलाई पर भी बन्धी हुई है ।” - प्रभूदयाल बोला । उसने सुनील को थोड़ा सा धकेल कर बेंच पर अपने लिये जगह बनायी और अपने सामने पांव फैलाकर बैठ गया ।
“मुझे दिखाई नहीं दे रहा है । मैं अंधा हो गया हूं ।”
“अगर तुम अंधे हो जाओ तो मैं हनुमान मंजिर में जा कर एक हजार रुपये का प्रसाद चढाऊं ।”
“अगर तुम यूं ही मेरे लिये बदुआयें मागते रहे तो मैं अंधा तो क्या बहरा, लूला, लंगड़ा भी हो जाऊंगा ।”
“गूंगा रह गया ।”
“यह भी हो जाऊंगा । यूं ही दुआयें मांगते रहो । खुदा कभी तो तुम्हारी सुनेगा ही ।”
“तुम...”
“मेरे सबसे पहले सवाल का जवाब तुमने अभी भी न दिया ।”
“जैसे मैं तुम्हारे बाबा का नौकर हूं ।”
“यार, कभी तो मुहब्बत की बात किया करो । टाईम बताने में भी कोई किसी के बाबा का नौकर हो जाता है ।”
“हो जाता है ।”
“अगर यही सवाल तुम से राजनगर की किसी रइसजादी ने पूछा होता तो तुम उसके कदमों बिछ कर और अपने एक कान से दूसरे कान तक मुस्कराहट खींचकर न सिर्फ टाइम बताते बल्कि यह भी बताते कि मौसम सुहावना है लेकिन शाम को गर्ज के साथ छींटे पड़ेंगे, रात को थाली जितना बड़ा चांद निकलेगा और...”
“बकवास बंद करो ।”
“जितने शब्दों में तुमने मुझे बकवास बन्द करने के लिये कहा है, उतने में तो तुम टाइम बता देते ।”
“अगर तुम भौंकना बंद करके टाइम खुद देख लो तो कैसा रहे ।”
“मैं तो गधा हूं जो ऐसा नहीं करता । क्या तुम भी गधे हो जो मुझे टाइम नहीं बता रहे हो ?”
“हां ।”
“बड़े ढीठ हो, यार ।”
सुनील ने अपनी बांई कलाई पर से कमीज का कफ सरका कर घड़ी देखी । उसने दो तीन बार आंख मिचमिचा कर यूं डायल को देखा जैसे टाइम उसकी समझ में न आ रहा हो ।”
“तीन बजे हैं ।” - अन्त में वह बोला ।
“मुझे मालूम है । और अब तुम होश में आ जाओ । मैं इस वक्त होमीसाईड के आफिसर की हैसियत से तुम से बात कर रहा हूं ।”
“किसी भी हैसियत से बात करो, प्यारे भाई, मुझे तो होश में आना ही पड़ेगा ।”
“मतलब ?”
“ब्लास्ट’ का सिटी एडीशन चार बजे छपना शुरू होता है । अगर मुझ पर मेहरबानी करके तुम उससे पहले ही मेरी खलासी कर दोगे तो यह खबर आज ही के अखबार में चली जायेगी ।”
“मुझे तुम्हारे अखबार से कोई मतलब नहीं है । मैं...”
“और मुझे मालूम है कि तुम्हारी तस्वीर का ब्लाक ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर में कहां रखा है इसीलिये उसे तलाश करने में या तुम्हारी नई तस्वीर खींचने में वक्त बरबाद नहीं होगा ।”
प्रभूदयाल के चेहरे पर नर्मी आ गयी । उसे अखबार में अपनी तस्वीर छपवाने का बहुत शौक था । सुनील ने साफ साफ उसे संकेत कर दिया था कि रिपोर्ट के साथ इन्स्पैक्टर प्रभूदयाल की तस्वीर तभी छप सकती थी जब वह सुनील को जल्दी खलासी कर दे ।
“वैसे सुनील” - प्रभूदयाल एकाएक गम्भीर स्वर में बोला - “तुमने कभी हिसाब लगाया कि आज तक हमारे विभाग को कितनी हत्याओं की सूचना केवल तुम्हारे माध्यम से मिल चुकी है ?”
“मेरे ख्याल से गोल्डन जुबली तो हो ही गई होगी ।” - सुनील बड़ी शराफत से बोला ।
“और तुम इसे अपने लिये बड़े अभिमान का विषय मानते हो ।”
“एक नागरिक होने के नाते तो नहीं मानता लेकिन एक अखबार का रिपोर्टर होने के नाते तो मानता ही हूं । आखिर मुझे तनख्वाह किस बात की मिलती है ।”
“गुरु जी ठीक कह रहे हैं ।”
सुनील और प्रभूदयाल ने एक साथ पीछे घूमकर देखा ।
बेंच के पीछे ‘क्रानिकल’ का रिपोर्टर ललित खड़ा था ।
“अगर इजाजत हो तो मैं भी अपनी तशरीफ का टोकरा यहां रख लूं ।” - ललित बोला ।
“हां, हां, क्यों नहीं ?” - प्रभूदयाल बोला - “मेरे सिर पर आकर बैठो ।”
“हें, हें, हें ।” - ललित ने खीसे निपोरी - “यह कैसे हो सकता है ? मैं तो आपके चरणों में ही शोभा देता हूं ।”
और ललित सचमुच ही आलथी पालथी मारकर उन दोनों के सामने फर्श पर बैठ गया ।
“तुम कहां से टपक पड़े ?” - सुनील बोला ।
“कहीं से सूंघ लग ही गई, गुरु देव ।” - ललित बोला ।
“तुम इतनी रात गये तारकपुर के उस पहाड़ी रास्ते पर क्या कर रहे थे ?” - प्रभूदयाल ने सुनील से पूछा ।
“मैं...” - सुनील ने कहना चाहा ।
“दरोगा जी, दरोगा जी” - ललित जल्दी से प्रभूदयाल के घुटने दबाता हुआ बोला - “भगवान के लिये किस्सा जरा शुरू से हो जाये । दरोगा जी, प्लीज आई अपील टू यू । नहीं तो यह ‘ब्लास्ट’ का घोड़ा रेस में क्रानिकल से आगे निकल जायेगा ।”
प्रभूदयाल ने सुनील की ओर देखा ।
सुनील ने अपनी जेब से लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला । उसने पैकेट झटक कर दो सिगरेट निकाले । उसने एक सिगरेट अपने होंठों में दबाया और दूसरा ललित की ओर बढा दिया ।
प्रभूदयाल सिगरेट नहीं पीता था ।
“अंग्रेजी है न ?” - ललित सिगरेट लेता हुआ बोला - “विलायत में बना है न ?”
“नहीं, घोड़े की लीद से चहेडू में बना है ।” - सुनील बोला ।
“हें, हें, हें ।”
सुनील ने पहले ललित का और फिर अपना सिगरेट सुलगा लिया । फिर सिगरेट के छोटे छोटे कश लगाते हुए सुनील ने सारी घटना कह सुनाई ।
“...और यह इन्सपेक्टर साहब की मेहरबानी है कि इन्होंने यह नहीं सोच लिया कि उस लड़की की हत्या मैंने की है ।” - अन्त में सुनील बोला ।
“वजह ।” - ललित बोला - “तुम क्यों करोगे उस लड़की की हत्या ?”
“वजह कुछ भी हो सकती है । जैसे उसने मेरी मोटर साईकिल को आंख मार दी हो, और मुझे गुस्सा आ गया हो कि वह भले घर की मोटर साईकिल को क्यों छेड़ती है या मैंने उसके सामने शादी का प्रस्ताव रखा हो और वह मान गई हो या शायद वह हमेशा ‘ब्लास्ट’ के उसी पेज में लपेट कर दफ्तर खाना लाती हो जिस पर मेरी रिपोर्ट और कभी-कभी मेरा चौखटा भी छपता हो ।”
“बकवास बन्द करो ।” - प्रभूदयाल बोला - “तुम उतने बड़े गधे हो नहीं जितने कि अपने आपको साबित करने की कोशिश कर रहे हो ।”
“यानी कि गधा तो मैं हूं ही । सिर्फ साइज पर बहस है ।”
“मुझे पूरा विश्वास है कि जब तुम अपनी खातिर किसी लड़की की हत्या करोगे तो महीनों तो उसके मां-बाप को यह पता नहीं लगेगा कि अपने किन्हीं रिश्तेदारों के पास मुरादनगर गई है, या एक्ट्रेस बनने के शौक में बम्बई भाग गई है या मर गई है ।”
“कत्ल के मामले में मेरी काबलियत पर तुम्हें इतना विश्वास है और फिर भी हर बार तुम सबसे पहले मुझ ही पर शक करते हो कि कत्ल मैंने किया है ।”
“तब कहानी और होती है । तब कहानी यह नहीं होती कि कत्ल तुमने अपनी खातिर किया है । अपनी खातिर कत्ल तो तुम पूरी योजना बना कर करोगे, लेकिन दूसरे की खातिर तो सम्भव है तुम झोंक में ही किसी दूसरे का काम तमाम कर दो । जैसे कोई लड़की तुम्हारे गले में बांहें डाल कर और अपनी आवाज में जमाने भर का सैक्स घोलकर तुम से कहे कि सुनील जी जरा मेरा, मेरे पति का कत्ल कर दो न, बड़ी मेहरबानी होगी ।”
“और मैं कर दूंगा ?”
“बिल्कुल ! छोकरी के कहने पर तो तुम खुद अपना भी कत्ल कर लोगे ।”
“दरोगा जी ।” - ललित बीच में बोल पड़ा - “दास्तान तो आगे बढाइये ।”
प्रभूदयाल कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “लड़की कार के खड्ड में धकेली जाने से पहले ही मर चुकी थी ।”
सुनील एकदम सजग हो गया ।
“पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के अनुसार” - प्रभूदयाल कहता रहा - “उसकी हत्या एक बहुत तेज धार वाले पतले फल वाले लम्बे चाकू से हुई है । चाकू किसी दक्ष हाथ द्वारा चलाया गया था । चाकू नीचे से ऊपर की ओर उसकी बांयी पसलियों को चीरता हुआ सीधा दिल में घुस गया था । डाक्टर के अनुसार लड़की की मौत लगभग फौरन हो गई थी । बाद में हत्या को दुर्घटना का रूप देने के लिये लाश को कार में रखकर तारकपुर के पहाड़ी रास्ते से नीचे खड्ड में धकेल दिया गया था । हत्यारों को आशा थी कि कार की पैट्रोल की टंकी पत्थरों की चोट से ही फट जायेगी लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उन्होंने हथगोलों का इस्तेमाल किया । जाहिर था कि वे लोग यह नहीं चाहते थे कि लड़की की लाश शिनाख्त के काबिल रह जाये । और हुआ भी यही । कार को आग लग जाने की वजह से लाश इस हद तक जल चुकी है कि उसकी शिनाख्त होनी असम्भव है ।”
“सिर्फ मैंने लड़की की सूरत देखी है ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“हां...” - प्रभूदयाल बोला - “और इसीलिये तुम लड़की की शिनाख्त के सिलसिले में बहुत महत्वपूर्ण हो रहे हो । और इसीलिये मैं तुम्हें पुलिस इन्क्वायरी की फर्स्ट हैंड जानकारी दे रहा हूं ताकि पुलिस को सहयोग देने के काम में तुम्हारी नीयत में फर्क न आ जाये ।”
“और...” - ललित व्यग्र स्वर में बोला ।
“और यह कि यह लड़की कुंआरी नहीं थी ।”
“यानी कि शादीशुदा थी ।” - ललित कूदकर नतीजे पर पहुंचता हुआ बोला ।
“हो सकता है, नहीं भी हो सकता । वह कुमारी नहीं थी, यह मैंने इस लिहाज से कहा था कि वह पुरुषों से यौन सम्बन्ध स्थापित कर चुकी थी लेकिन कभी उसने बच्चे को जन्म नहीं दिया था ।”
“डाक्टर ने उसकी हत्या के समय का कोई अनुमान लगाया ?” - सुनील ने पूछा ।
“हां ।” - प्रभूदयाल बोला - “डाक्टर के अनुसार उसकी हत्या रात के ग्यारह और एक बजे के बीच में किसी समय हुई थी ।”
“और मेरा उन लोगों से टकराव लगभग डेढ बजे के करीब हुआ था ।” - सुनील बड़बड़ाया - “इसका मतलब यह हुआ कि वे लोग लड़की को फौरन ही तारकपुर की पहाड़ियों में फेंकने के लिये ले आये थे ।”
“जाहिर है कि तुमने कार धकेलते लोगों को देखा था । तुमने उनमें से किसी की सूरत नहीं देखी थी ।”
“नहीं । सूरत देख पाने का सवाल ही नहीं पैदा होता था । मैं उनसे बहुत दूर था और वहां बहुत अन्धेरा था । मैंने तो केवल इतना देखा था कि वे सब लम्बे ओवरकोट और फ्लैट हैट पहने हुये थे और उनके पास गहरे नीले रंग की फियेट गाड़ी थी ।”
“लड़की का हुलिया तो बयान करो गुरू जी ।” - ललित बोला ।
सुनील जितनी बारीकी से लड़की का हुलिया बयान कर सकता था, उसने कर दिया ।
“और कुछ, दरोगा जी ।”
“और यह कि उसके दांये घुटने पर चोट का बड़ा सा निशान था । और उसके बांये कान के पीछे एक काला तिल था ।”
“और...”
“और यह कि तुम मुझे दरोगा जी मत कहा करो ।”
“बहुत अच्छा, साहब ।” - ललित बोला - “अब एक तस्वीर हो जाये ।”
प्रभूदयाल तन कर बैठ गया । एक सैकिण्ड के नोटिस पर उसने अपना चेहरा बेहद रोबीला और तत्पर बना लिया ।
ललित उठ कर खड़ा हो गया । उसने अपना कैमरा सम्भाला ।
फ्लैश लाइट का बल्ब चमका, प्रभूदयाल का फोटो खिंच गया ।
ललित ने फिल्म आगे बढाई और फिर उसने एक तस्वीर सुनील की भी खींच ली ।
ललित उसकी तस्वीर खींच रहा था यह बात सुनील को तभी सूझी जब ललित उसकी तस्वीर खींच चुका ।
“यह क्या हरकत हुई ?” - सुनील तनिक नाराजगी भरे स्वर में बोला ।
“वाह, गुरू जी ।” - ललित हंसता हुआ बोला - “इस सारे केस के सबसे महत्वपूर्ण आदमी तो आप ही हैं, आप ही तो वह इकलौती हस्ती हैं जिसने कि मरने वाली की सूरत देखी है ।”
सुनील चुप हो गया ।
“बन्दा चला ।” - ललित बोला - “थैंक्स फॉर ऐवरीथिंग ।”
सुनील भी उठ खड़ा हुआ ।
“तुम कहां चले ?” - प्रभूदयाल ने उसकी बांह थाम ली ।
“दफ्तर !” - सुनील बोला ।
“अभी नहीं । अभी तुम मेरे साथ रिकार्ड रूम में चलोगे ।”
“किस लिये ?”
“चलो, अभी मालूम हो जायेगा ।”
सुनील ने जूते पहने, कोट पहना और बड़े अनिच्छापूर्ण ढंग से प्रभूदयाल के साथ हो लिया ।
प्रभूदयाल उसे पुलिस हैडक्वाटर की तीसरी मंजिल पर स्थित रिकार्ड के रूम में ले गया । वहां उसने सुनील को बीस बाईस साल की उम्र की कई गुमशुदा लड़कियों की तस्वीरें दिखाई । सुनील ने बड़े गौर से सब तस्वीरें देखी और फिर प्रभूदयाल के सामने मेज पर रख दिया ।
“नहीं ?” - प्रभूदयाल निराशा पूर्ण स्वर में बोला ।
“नहीं !” - सुनील ने उत्तर दिया ।
“ऑल राइट ।” - प्रभूदयाल पटाक्षेट करता हुआ बोला - “लेकिन उस लड़की की शिनाख्त के सिलसिले में तुम्हें कभी भी दुबारा यहां बुलाया जा सकता है इसलिये कहीं गायब मत हो जाना ।”
“धमकी दे रहे हो ?”
“हां ।”
“ऑल राइट ।”
और सुनील रिकार्ड रूम से बाहर निकल आया ।
थका हारा परेशान हाल प्रभूदयाल वहीं बैठा रहा । उसके बाल बिखरे हुए थे । उसकी शेव बढी हुई थी । उसे भूख लगी हुई थी । उसकी यूनीफार्म में हजारों सलवटें पड़ी हुई थी और मन ही मन उस मनहूस दिन को कोस रहा था जब उसने पुलिस की नौकरी जॉइन की थी ।
***
सुनील की भरपूर कोशिशों के बावजूद भी उसी रात को छप रहे अखबार में केस का विवरण नहीं जा सका । जब तक सुनील पुलिस हैडक्वाटर से ब्लास्ट के दफ्तर में पहुंचा, तब तक अखबार छपना आरम्भ हो चुका था ।
अगले दिन ‘ब्लास्ट’ में हल्का सा विवरण छपा । साथ ही प्रभूदयाल की तस्वीर और मरने वाली लड़की का हुलिया भी छपा । अखबार में पुलिस की ओर से अपील छपी कि जो भी आदमी किसी उस हुलिये की गुमशुदा लड़की की जानकारी रखता हो वह फौरन पुलिस हैडक्वार्टर में इन्स्पेक्टर प्रभूदयाल से सम्पर्क स्थापित करे ।
ललित की वजह से हत्या का जो विवरण ‘क्रानीकल’ में छपा था, उसके साथ सुनील की तस्वीरें भी छपी थी और साथ ही इस बात पर विशेष जोर दिया गया था कि सुनील ही इकलौता आदमी था जिसने मरने वाली की सूरत अच्छी तरह देखी थी ।
उस दिन सुबह सुनील तैयार होकर अपने फ्लैट से निकलने ही वाला था कि टेलीफोन की घण्टी बज उठी ।
सुनील ने बड़े अनिच्छापूर्ण ढंग से टेलीफोन का रिसीवर उठाया और माउथपीस में बोला - “हल्लो ।”
“मिस्टर सुनील ?” - दूसरी ओर किसी ने घरघराती हुई आवाज में पूछा ।
“यस ।” - सुनील ने उत्तर दिया - “आप कौन बोल रहे हैं ?”
“मैं तुम्हारा एक हितचिंतक बोल रहा हूं । मैंने आज के अखबार में तुम्हारी तस्वीर देखी है और पढा है कि तारकपुर में कार एक्सीडेन्ट में मरने वाली लड़की की सूरत सिर्फ तुमने देखी है । मैं तुम्हें सीधी, सच्ची और दोस्ती भरी राय देना चाहता हूं ।”
“क्या ?”
“अभी इसी वक्त भूल जाओ कि लड़की की सूरत कैसी थी ?” - स्वर एकदम बेहद कर्कश हो उठा ।
“भूल जाने के बदले में मुझे क्या मिलेगा ?” - सुनील ने शान्ति से पूछा ।
“बदले में तुम्हें तुम्हारी जिन्दगी मिलेगी और दूसरी सूरत में तुम्हें एक 45 कैलीबर की रिवाल्वर की गोली मिलेगी जो तुम्हारे माथे में रिवाल्वर की नाल जैसा ही शानदार सुराख कर देगी ।”
“कहीं मिल क्यों नहीं जाते हो, प्यारे लल ?” - सुनील मीठे स्वर में बोला - “फिर हम दोनों यार आमने-सामने बैठकर बड़े प्यार से बात करेंगे ।”
“बात हो चुकी और ज्यादा होशियार बनने की कोशिश मत करो । मैं फिर दोहरा रहा हूं कि भूल जाओ कि लड़की की सूरत कैसी थी । दूसरे के फटे में टांग अड़ाने वाला आदमी गधा होता है । तुम्हें फायदा तो कुछ होगा नहीं । उल्टे अपनी जान से हाथ धो बैठोगे और तुम्हारे जैसे मच्छर की जान लेना हमारे लिये बहुत मामूली काम होगा, तुम्हें पता भी नहीं लगेगा और तुम दूसरी दुनियां में पहुंच जाओगे ।”
“आप बोल कौन रहे हैं ?”
“तुम्हारा बाप । हरामजादे ।” - दूसरी ओर से बेहद क्रोधित स्वर में सुनाई दिया ।
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
सुनील ने धीरे से रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
फ्लैट को ताला लगाकर वह बाहर निकल आया ।
अपनी मोटर साईकिल पर सवार होकर वह सीधा पुलिस हैडक्वाटर पहुंचा ।
एक सिपाही उसे प्रभूदयाल के कमरे में छोड़ आया ।
“आओ ।” - प्रभूदयाल उसे देखते ही बोला - “मैं तुम्हें बुलवाने ही वाला था ।”
“क्यों ?” - सुनील एक कुर्सी घसीटकर प्रभूदयाल के समीप बैठता हुआ बोला ।
“जरा यह तस्वीर देखो ।”
“और प्रभूदयाल ने एक खूबसूरत लड़की की तस्वीर उसके सामने रख दी ।”
“तस्वीर बाद में देखूंगा । पहले मेरी बात सुनो ।”
“कोई खास बात हो गई है ?”
सुनील ने सुबह फोन पर मिली धमकी की दास्तान उसे कह सुनाई ।
“यानी कि अब तुम्हारा पुलिस को सहयोग देने का इरादा नहीं है ?” - प्रभूदयाल सशंक स्वर में बोला ।
“मैंने यह कब कहा है ?”
“तो फिर ?”
“मैंने यह बात तुम्हें इसलिये नहीं बताई कि मैं धमकी से डर गया हूं और मैं उस लड़की की सूरत वाकई भूल जाना चाहता हूं । मैंने यह बात तुम्हें यह जताने के लिये बताई है कि यह किसी छोटी मोटी पार्टी का काम नहीं । सारे मामले में मुझे राजनगर के किसी बड़े और समर्थ दादा का हाथ दिखाई देता है ।”
“मैं सबको चैक करवाऊंगा ।”
“अच्छा करोगे ।”
“तुम तस्वीर देखोगे ।”
सुनील ने तस्वीर उठाई । वह एक बेहद खूबसूरत ‘क्रैब्रे डान्सर’ की तस्वीर थी जो अपने पेशे के अनुकूल न होने जैसा परिधान पहने हुए थी । उसने अपने चेहरे पर भारी मेकअप किया हुआ था । कई तरह के रंग रोगनों के अलावा उसने पलकें तक नकली लगाई हुई थी । मोटे तौर पर यह तस्वीर उस लड़की से मिलती थी जिस की सूरत जलने से पहले देखी थी विशेष रूप में चेहरे का कटाव और नाक तो बिल्कुल वैसी थी ।
प्रभूदयाल आशापूर्ण नेत्रों से उसकी ओर देख रहा था ।
“हो सकती है ।” - सुनील बोला ।
“यानी कि नहीं भी हो सकती है ?” - प्रभूदयाल सशंक स्वर में बोला ।
“हां ! मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि यह वही लड़की है । तस्वीर और भारी मेकअप की वजह से सूरत का कुछ अन्दाजा नहीं लग रहा लेकिन फिर भी वही होने की सम्भावना है ।”
“सिर्फ सम्भावना से तो बात नहीं बनती मिस्टर ।”
“वैसे यह है कौन ?”
“इसका नाम लोलिता है । यह मैजेस्टिक सरकल पर स्थित ब्लू रूम नाम के रेस्टोरेन्ट की कैब्रे डान्सर है । लोलिता और रोजी नाम की ‘ब्लू रूम’ की एक अन्य कैब्रे डान्सर 24 लिटन रोड पर ही एक फ्लैट में रहती है । हमारे पास लोलिता की यह तस्वीर रोजी लाई है । रोजी के कथनानुसार लोलिता मंगलवार से गायब है और आज हो गया है वीरवार । आज के अखबार में उसने तारकपुर की पहाड़ियों में जली हुई लाश का विवरण पढा तो वह लोलिता की तस्वीर लेकर यहां आ पहुंची ।”
“डाक्टर की रिपोर्ट के अनुसार उस लड़की की हत्या भी मंगलवार की रात को ही ग्यारह और एक बजे के बीच में किसी समय हुई थी । इस हिसाब से मरने वाली लड़की लोलिता हो सकती है ।”
“भई, मरने वाली की सूरत तो सिर्फ तुमने देखी है न, और तस्वीर देखकर तुम यह कह रहे हो कि शायद लोलिता मरने वाली लड़की न हो ।”
“यह वह लड़की हो सकती है लेकिन यह वह लड़की है ही, ऐसा मैं कोई दावा नहीं कर सकता ।”
प्रभूदयाल चिन्तित मुद्रा में बैठा रहा ।
“तुमने रोजी से और बातें भी पूछी होंगी ?” - सुनील बोला ।
“हां ।” - प्रभूदयाल ने उत्तर दिया - “जैसे मैंने उससे पूछा था कि क्या उसके ख्याल से कोई ऐसी बात हुई थी, जिसकी वजह से कोई उसकी हत्या कर दे ? वह बोली नहीं ।”
“तो फिर वह तुम्हारे पास क्यों आई ?”
“क्योंकि अखबार में मरने वाली का जो हुलिया छपा था, वह लोलिता से मिलता था ।”
“उसने आखिरी बार लोलिता को कब देखा था ?”
“मंगलवार रात को ही । ब्लू रूम में अपने डान्स के बाद ही वह कहीं गायब हो गई थी । उसके बाद ही वह 24 लिटन रोड पर स्थित अपने फ्लैट में नहीं आई थी । बुधवार सुबह भी लोलिता का कोई पता नहीं था । फिर रोजी कहीं चली गई थी । शाम को जब वह वापिस आई तो फ्लैट में से लोलिता का सारा सामान गायब था ।”
“सामान कौन ले गया ?”
“हो सकता है लोलिता खुद ही ले गई हो । मेरा तो यह ख्याल है कि लोलिता को किसी अन्य शहर के किसी बड़े होटल में कैब्रे डान्स करने की तगड़ी ऑफर मिल गई होगी और वह रोजी को बिना बताये नगर से खिसक गई होगी । कैब्रे डांसरों के धन्धे मे ऐसा काम होता है । होटल वाले एक दूसरे की आर्टिस्टों को ज्यादा पैसा देकर पटाते ही रहते हैं । शायद लोलिता पर कोई कलकत्ता या बम्बई जैसे किसी राजनगर से ज्यादा बड़े शहर के होटल का मालिक फिदा हो गया हो और लोलिता ज्यादा पैसे के लालच में चुपचाप उसके साथ खिसक गई हो ।”
“हो सकता है ।”
“लेकिन रोजी कहती है कि लोलिता ऐसी लड़की नहीं है । दोनों की आपस में बहुत बनती है । रोजी कहती है कि यह सम्भव नहीं है कि लोलिता उसे कुछ बताये बिना यूं एकाएक कहीं चली जाये । इसलिये आज का अखबार पढकर वह हमारे पास आई और मैंने तो इस रहस्य को हल करने के लिये एक बड़ी अमानवीय हरकत भी की ।”
“क्या ?”
“मैं रोजी को मार्ग में ले गया । वहां मैंने उसे लड़की की जली हुई लाश दिखाई । मैंने सोचा शायद वह लाश को उसकी उस हालत में ही पहचान जाये ।”
“कोई बात बनी ?”
“रोजी ने लाश पर एक निगाह डाली और चीख मारकर बेहोश हो गई । होश में आने पर मैंने उससे पूछा कि क्या लाश लोलिता की थी लेकिन वह इस बारे में कुछ न बता सकी ।”
“तुमने उससे मरने वाली के घुटने के चोट के निशान और कान के पीछे के काले तिल के बारे में नहीं पूछा ?”
“सब कुछ पूछा, भाई, लेकिन रोजी कहती है कि उसे लोलिता के जिस्म के ऐसे किन्हीं निशानों की जानकारी नहीं ।”
“तूम्हें ‘ब्लू रूम’ से भी पूछताछ करनी चाहिये थी ।”
“तुम क्या मुझे पागल समझते हो ?” - प्रभूदयाल झल्लाये स्वर में बोला - “मैं इतने साल से पुलिस की नौकरी कर रहा हूं, कोई भाड़ नहीं झोंक रहा । रोजी के जाते ही मैंने राजपाल नाम के उस आदमी से बात की कि जो ‘ब्लू रूम’ चलाता है । वह कहता है कि लोलिता ने बुधवार को उसे फोन किया था और कहा था कि वह ‘ब्लू रूम’ से काम छोड़ रही है । वह तो लोलिता पर बड़ा लाल पीला हो रहा था । वह कहता था कि लोलिता का उसके रेस्टोरेन्ट से छः महीने का कान्ट्रेक्ट था और उस समय में से एक महीना अभी बाकी था । वह तो लोलिता का पता मिलते ही उसे कोर्ट का नोटिस देने की फिराक में है ।”
“अगर लोलिता ने बुधवार को राजपाल से बात की थी तो मरने वाली ललिता कैसे हो सकती है ।”
“नहीं हो सकती ।”
“बशर्ते कि राजपाल झूठ न बोल रहा हो ।”
“मुझे तो वह झूठ बोलता लगा नहीं और न ही मुझे उसके झूठ बोलने की कोई वजह दिखाई दे रही है । हां, अगर तुम यह तस्वीर देखकर दावे के साथ कहो कि मरने वाली लोलिता है तो मैं राजपाल की ऐसी तैसी कर सकता हूं ।”
“मैं ऐसा कोई दावा नहीं कर सकता ।”
“फिर छुट्टी ।”
सुनील ने एक गहरी सांस ली और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ ।
“अखबार में मरने वाली का हुलिया पढकर अभी और लोगों के आने की भी सम्भावना है । तुम्हें फिर यहां आना पड़ेगा ।”
“आ जाऊंगा ।”
“और होशियार रहना । तुम्हें टेलीफोन पर दी गई धमकी सच्ची भी हो सकती है ।”
“होशियार तो रहना ही पड़ेगा । मुझे अपनी जान प्यारी है ।”
“रिवाल्वर रखते हो ?”
“नहीं । लाइसेंस है लेकिन रिवाल्वर नहीं है ।”
“खरीद लो । काम आयेगी ।”
“कुछ दिन के लिये तुम अपनी उधार दे दो
प्रभूदयाल ने आंखें निकालकर उसे घूरा ।
“ओके, ओके । नैवर माइन्ड ।”
सुनील प्रभूदयाल के कमरे से बाहर निकल आया ।
पुलिस हैडक्वार्टर की इमारत से बाहर आकर उसने मन में एक ख्याल आया ।
प्रभूदयाल ने उसे जो लोलिता की तसवीर दिखाई थी उसमें सूरत पर मेकअप बहुत था और वह पूरे जिस्म की थी । सुनील ने सोचा शायद रोजी के पास कोई लोलिता का बिना मेकअप या कम मेकअप का क्लोज अप निकल आये । ऐसी कोई तस्वीर हासिल हो जाने पर वह दावे के साथ कह सकता था कि मरने वाली लोलिता थी या नहीं ।
वह अपनी मोटर सार्ईकिल पर सवार हुआ और लिटन रोड की ओर उड़ चला ।
लिटन रोड पर चौबीस नम्बर इमारत तलाश करने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई । वह एक तीन मंजिल इमारत थी । इमारत के मुख्य द्वार पर कई नेम प्लेट लगी हुई थीं । जिनमें से एक के अनुसार लोलिता और रोजी का फ्लैट दूसरी मंजिल पर था ।
सुनील सीढियों के रास्ते दूसरी मंजिल पर पहुंचा । कैब्रे डान्सरों का फ्लैट सीढियों से एकदम सामने वाला ही था ।
सुनील ने द्वार खटखटाया ।
भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला ।
सुनील ने फिर द्वार खटखटाया ।
भीतर से उत्तर नहीं मिला और न ही किसी प्रकार की हलचल की आवाज आवाज आई ।
शायद रोजी फ्लैट में नहीं थी ।
मन ही मन रोजी से ब्लू रूम में ही मिलने का फैसला करके वह वापिस घूम पड़ा । उसने एक कदम सीढियों की ओर बढाया ही था कि वह एकदम ठिठक कर खड़ा हो गया ।
सीढियों पर एक आदमी खड़ा था । उसके हाथ में 45 कैलीबर की रिवाल्वर थी और नाल का रुख सुनील की ओर था ।
सुनील ने होठों पर जुबान फेरते हुए रिवाल्वर की नाल की ओर देखा । फिर उसकी निगाह रिवाल्वर वाले हाथ से होती हुई उसके चेहरे और शरीर पर पड़ी ।
वह एक बेहद लम्बा चौड़ा आदमी था । साढे छः फुट से कम उसका कद नहीं था और उसके कन्धे सीढियों की एक दीवार से लेकर दूसरी दीवार पर फैले हुए थे । वह यूं दीवार की तरफ सीढियों के दहाने को घेरकर खड़ा था कि उसके हिले बिना उसकी बगल से एक बच्चे का गुजर पाना भी असम्भव था । वह एक काले रंग का सूट पहने हुए था जो उसके शरीर पर इतना टाइट था कि वो अपने शरीर को जोर से अकड़ाता तो छः जगह से सूट के टांके उधड़ जाते । अपने इतने विशाल आकार से बावजूद भी उसका चेहरा बहुत सुन्दर था और उस पर वह कठोरता नहीं थी जो ऐसे देव समान आदमी से अपेक्षित थी । उसके विशाल हाथ में पैंतालीस कैलिबर की रिवाल्वर बच्चे कि खिलौने जैसी लग रही थी ।
“भीतर चलो ।” - वह आदमी भावहीन स्वर में बोला ।
“भीतर कहां ?” - सुनील असमंजस पूर्ण स्वर में बोला ।
“नंगी मेम साहबों के फ्लैट में ।”
“नंगी मेम साहब !”
“हां, हां । कब्रे डान्सर सही ।”
“लेकिन भीतर कोई नहीं है । मैंने दो बार दरवाजा खटखटाया है । मुझे कोई जवाब नहीं मिला ।”
“दरवाजा खुला है । थोड़ी देर पहले मैंने फ्लैट का ताला तोड़कर भीतर झांका था । दरवाजा खोलकर भीतर चलो और कोई शरारत करने की कोशिश मत करना ।”
आखरी वाक्य उसने धमकी के तौर पर नहीं कहा था ।
कहने का ढंग ऐसा था जैसे वह सुनील की कोई नेक राय दे रहा हो ।
सुनील वापिस घूमा । उसने द्वार को धक्का दिया और फ्लैट में घुस गया । वह आदमी उसके पीछे-पीछे भीतर आ गया । उसने पांव की ठोकर से द्वार बन्द कर दिया । उसने एक बार सिर से पांव तक सुनील को देखा ।
सुनील उसके सामने यूं खड़ा रहा जैसे हैड मास्टर के सामने चौथी क्लास का बच्चा खड़ा रहता है । उस आदमी के हाथ में रिवाल्वर सुनील को एक बेकार की चीज मालूम हो रही थी । उसे देखकर तो ऐसा मालूम होता था जैसे अगर वह दीवार में घूंसा मार देता तो उसकी कलाई दीवार से आर-पार गुजर जाती । ऐसे आदमी के हाथ में रिवाल्वर न होती तो भी सुनील की अपने स्थान से हिलने की हिम्मत न होती ।
“तुम किसके यार हो ?” - वह आदमी बोला - “लोलिता के या रोजी के ?”
“किसी का भी नहीं ।” - सुनील एक आज्ञाकारी बालक की तरह बड़े अदब से बोला ।
“झूठ मत बोलो ।” - वह गुर्राया - “और जो बोलो ठीक बोलो । अगर मुझसे झूठ बोलोगे तो मार-मारकर भुर्ता बना दूंगा । बाई गॉड इतना मारूंगा कि तुम्हारी सगी मां नहीं पहचान पायेगी तुम्हें ।”
सुनील चुप रहा ।
“लोलिता कहां है ?” - उसने पूछा ।
“मुझे नहीं मालूम ।” - सुनील बोला ।
“देखो, मुझे ऐसा कोई काम करन के लिये मजबूर मत करो जो तुम्हें नुकसान पहुंचा सकता हो । मेरे सब्र का प्याला पहले ही भर चुका है । जो बात तुम मुझे बताना नहीं चाहते वह मैं जबरदस्ती तुम्हारे हलक से निकलवा लूंगा । मैं दो दिन से इस इमारत की निगरानी कर रहा हूं, लेकिन मुझे लोलिता दिखाई नहीं दी है । आखिर वह कहां मर गई है ।”
“लेकिन कल दोपहर में किसी समय तो वह यहां से अपना सामान लेकर गई है ।”
“नामुमकिन । लोलिता कल यहां आई हो और मुझे खबर न हुई हो, यह नहीं हो सकता, दो दिन से मैं बिजली के खम्बे की तरह इस इमारत के सामने खड़ा रहा हूं । उसके इन्तजार में दो दिन से मैंने पलक नहीं झपकी है । वह यहां नहीं आई । यह मेरा दावा है ।”
“शायद वह पिछले दरवाजे से इमारत में घुसी हो ।”
“इस इमारत का कोई पिछला दरवाजा नहीं है ।”
“लेकिन रोजी कहती है कि कल दिन में उसकी गैरहाजिरी में लोलिता अपना समान ले गई है ।”
“लोलिता नहीं आई । सामान एक आदमी लेकर गया था । कल दोपहर मैंने एक आदमी को इस फ्लैट में घुसता देखा था । वह फ्लैट से दो भारी सूटकेस लेकर बाहर निकला था । लेकिन मुझे लोलिता के यारों में या उसके सामान में नहीं लोलिता में दिलचस्पी है । लोलिता कहां है ?”
“मुझे वाकई नहीं मालूम, भाई साहब । लेकिन ‘ब्लू रूम’ का मालिक राजपाल कहता है कि वह उसके साथ कान्ट्रैक्ट तोड़ कर किसी दूसरे होटल वाले के साथ बम्बई या कलकत्ता चली गई है ।”
“और मोटरबोट कहां छोड गई है वो ?”
“मोटरबोट... कौन सी मोटरबोट ?”
“अगर तुम लोलिता को जानते हो तो तुम्हें मोटरबोट की भी जानकारी होगी ।”
“मैं लोलिता को नहीं जानता ।”
“तो फिर तुम रोजी के यार हो ?”
“नहीं ।”
“तो फिर तुम यहां क्या कर रहे हो ?”
“मैं रोजी से कुछ पूछने आया था ।”
“क्या ?”
“मुझे परसों एक जली हुई लाश मिली थी । मुझे सन्देह है कि वह लाश लोलिता की है ।”
“यानी कि लोलिता मर चुकी है ।”
“मैंने कहा है मुझे जो लड़की मरी मिली है मुझे उसके लोलिता होने का सन्देह है ।”
“लेकिन थोड़ी देर पहले तो तुम कह रहे थे कि वह बम्बई या कलकत्ता चली गई है ।”
“मैं नहीं कह रहा था । मैंने कहा था कि यह ‘ब्लू रूम’ के मालिक राजपाल का ख्याल है ।”
“तुम कौन हो ?”
“मेरा नाम सुनील है । मैं ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर हूं ।”
“तुम्हारी किसी अखबार में तसवीर छपी थी । तुम वह आदमी हो जिसे तारकपुर की पहाड़ियों में जली हुई लाश मिली थी...”
“हां... लेकिन लाश मिली पहले थी और जली बाद में थी...”
“और तुम्हारे ख्याल से वह लाश लोलिता की हो सकती है...”
“हो सकती है । नहीं भी हो सकती । इसी सिलसिले में मैं रोजी से मिलने आया था । मैंने सोचा था कि रोजी के पास शायद लोलिता की कोई साफ सी तसवीर हो ।”
“तुम लोलिता या मोटरबोट के बारे में वाकई कुछ नहीं जानते ?” - इस बार वह बहुत नर्मी से बोला ।
“मैं वाकई कुछ नहीं जानता, लेकिन अगर तुम मुझे यह बताओ कि तुम कौन हो और लोलिता और मोटरबोट का क्या किस्सा है तो शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं ।”
“तुम मेरी कोई मदद नहीं कर सकते । मुझे रोजी को पकड़ना पड़ेगा । लेकिन अगर मुझे पता लगा कि तुमने मुझसे झूठ बोला है तो बाई गॉड मैं तुम्हारे हाथ-पांव जड़ से अलग कर दूंगा और विश्वास रखो तुमको तलाश करने में कोई दिक्कत नहीं होगी ।”
“आज सुबह मुझे तुमने फोन किया था ?”
उसने जैसे सुनील का प्रश्न सुना ही नहीं । वह बोला - “मैं जा रहा हूं । मेरे फ्लैट से निकलने के एक मिनट बाद बाहर निकलना ।”
और वह बगौले की तरह फ्लैट से बाहर निकल गया ।
सुनील की एक मिनट से पहले फ्लैट से बाहर कदम रखने का ख्याल करने की भी हिम्मत नहीं हुई ।
जब तक वह बाहर निकला तब तक उस आदमी का कहीं नामोनिशान भी दिखाई नहीं दे रहा था ।
***
सुनील ‘ब्लू रूम’ में पहुंचा ।
‘ब्लू रूम’ बाहर से छोटा लगने वाला था, लेकिन वास्तव में एक काफी बड़ा रेस्टोरेन्ट था । हाल के एक कोने में पांच पीस का आर्केस्ट्रा था और वहीं छोटा सा स्टेज था । एक पूरी दीवार की लम्बाई के साथ बार बना हुआ था । ऐसे अन्य स्थानों के मकाबले में ‘ब्लू रूम’ में रागरंग की महफिल लगता था, जल्दी शुरू हो जाती थी । अभी आठ ही बजे थे और स्टेज पर कैब्रे चालू था । एक लम्बे छरहरे बदन वाली लड़की आर्केस्ट्रा की धुन पर स्टेज पर नाच रही थी । उसके लम्बे काले बाल उसके नंगे कन्धों पर बिखरे हुए थे और वह केवल एक अन्डरवियर और ब्रा पहने हुये थी जिस पर कि चमकीले सितारे जड़े हुए थे ।
सुनील को ऐसे स्थानों की काफी जानकारी थी । यहां ऐसे स्थानों पर अव्वल तो आदमी अकेला आता नहीं था और अगर अकेला आता था तो अधिक देर अकेला रहता नहीं था । ऐसे रेस्टोरेन्टों के मालिक ऐसी होस्टेसों का इन्तजाम रखते थे जो अकेले आये ग्राहकों की दिलजोई कर सकें ।
हाल में अभी काफी मेजें खाली थीं, लेकिन फिर भी सुनील बार के काउन्टर के आगे रखे कई स्टूलों में से एक पर आ बैठा ।
उसने बारटेन्डर को विस्की का आर्डर दे दिया ।
अभी उसे वहां बैठे तीन मिनट भी नहीं हुए थे कि एक युवती उसके समीप आ खड़ी हुई । वह एक बहुत छोटा सा ब्लाऊज और नाभी प्रदर्शनी साड़ी पहने हुये थी । उसके बाल कटे हुये थे और चेहरे पर जरूरत से थोड़ा कम ही मेकअप था और शायद इसीलिये वह खूबसूरत लग रही थी ।
कुछ क्षण वह आंखों-आंखों में सुनील को परखती रही और फिर अपने होंठों पर एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट लाती हुई बोली - “हल्लो ।”
“हल्लो ।” - सुनील भी मुस्कराया ।
“अलोन ( अकेले हो ) ?”
सुनील ने बड़े असमर्थतापूर्ण ढंग से कन्धे झटकाये और फिर सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“लुकिंग फार कम्पनी ? ( साथी की तलाश है )”
“लुकिंग फार रोजी ( रोजी की तलाश है  )”
“वह तो अभी बिजी है ।”
“क्या कर रही है ?”
“स्टेज पर डांस कर रही है । तुम्हारे कहने के ढंग से तो ऐसा लगता था जैसे तुम उसे जानते हो ।”
“जानता हूं ।” - सुनील सरासर झूठ बोलता हुआ बला ।
“फिर तुमने मुझसे क्यों पूछा कि वह क्या कर रही है ।”
“क्योंकि मैंने स्टेज की ओर झांका ही नहीं था ।”
“क्यों नहीं झांका था ?”
“क्योंकि तुम जो आ गई थी ।”
“मैं तुम्हें रोजी से ज्यादा पसन्द हूं ?”
“हां ।”
“फिर भी तुम्हें रोजी की ही तलाश है ?”
“वह इसलिये क्योंकि अभी मैं तुम्हें जानता नहीं ।”
“जान जाओगे - मेरा नाम नीना है ।”
तब तक वह सुनील के बगल वाले स्टूल पर बैठ चुकी थी ।
“क्या लोगी ?”
“जो तुम ले रहे हो ।”
सुनील ने अपना गिलास खाली किया और बार टेण्डर को संकेत किया ।
बार टेन्डर उनका आर्डर सर्व कर गया ।
“चियर्स ।” - दोनों ने जाम टकराये ।
“रोजी डांस अच्छा करती है ।” - सुनील स्टेज की ओर देखता हुआ बोला - “कलेजा निकाल कर रख देती है ।”
“अभी तुमने मुझे नहीं देखा है ।”
“लेकिन फिर भी रोजी लोलिता का मुकाबला नहीं कर सकती है ।”
“तुम तो यहां की बहुत लड़कियों को जानते हो ?”
“अब तो पहले से एक ज्यादा को जानता हूं ।” - और सुनील ने अपनी दाई आंख दबा दी ।”
नीना हंसी और उसके साथ सट गई ।
“आजकल लोलिता दिखाई नहीं देती ?” - सुनील सहज स्वर में बोला ।
“अब दिखाई देगी भी नहीं ।”
“क्यों ?”
“उसे कोई बड़ी पार्टी टकरा गई है । कल वह ‘ब्लू रूम’ और राजनगर से सदा के लिये पीछा छुड़ा कर किसी के साथ कहीं चली गई है ।”
“किस के साथ ?”
“मालूम नहीं ।”
“कहां ?”
“मालूम नहीं ।”
“अपने दोस्तों में से ही किसी के साथ गई होगी । उसके तो कई दोस्त थे ।”
“यहीं तो लोग धोखा खा जाते हैं, मिस्टर...”
“क्या मतलब ?”
“उसका कोई दोस्त नहीं था । सब उसके जानकार ही थे । तुम भी उसे अपना दोस्त समझते हो, लेकिन जब यह राजनगर से गायब हुई तो क्या तुम्हें खबर लगी ?”
“नहीं ।”
“डैनी के सिवा उसका कोई दोस्त नहीं था । डैनी के अलावा हर किसी को वह धन्धे की निगाह से देखती थी । सिर्फ धन्धे की निगाह से । लेकिन डैनी पर वह जान छिड़कती थी ।”
“डैनी कौन ?”
“तुम डैनी को नहीं जानते ? डैनी ऐसी चीज है कि देखने से ताल्लुक रखती है । राजेश खन्ना क्या बेचता है उसके सामने ।”
“अच्छा ।”
“हां ।”
“फिर भी वह डैनी को छोड़कर किसी और के साथ चली गई है ।”
“मैंने यह कब कहा है कि वह किसी के साथ चली गई है । हो सकता है वह डैनी के ही साथ हो । कल से मैंने डैनी को भी तो नहीं देखा है ।”
“लेकिन राज पाल तो कहता है कि उसे कोई कलकत्ता या बम्बई के होटल वाला अपने होटल के लिये अपने साथ ले गया है ।”
“अपना-अपना ख्याल है । शायद जिस बड़ी पार्टी के बारे में मैंने कहा है, वह कोई होटल वाला ही हो ।”
उसी क्षण डांस बन्द हो गया और संगीत भी बन्द हो गया । लोगों ने तालियां बजायीं । रोजी स्टेज के पीछे कहीं गुम हो गई ।
“मैं चली ।” - नीना अपना गिलास खाली करते हुए बोली - “मैं रोजी को तुम्हारे पास भेजती हूं ।”
“थैंक्यू ।”
“और अगर कभी रोजी का बुखार उतर जाये तो मुझे बताना ।” - वह स्टूल से उतरते हुये बोली ।
“जरूर बताऊंगा ।”
नीना ने एक बार जोर से उसका हाथ दबाया और फिर मेजों के बीच में से गुजरती हुई वहां से विदा हो गई ।
लगभग पांच मिनट बाद रोजी वहां आई । उस समय वह एक गले से लेकर टखनों तक का लम्बा चांदी के रंग का झिलमिलाता हुआ गाऊन पहने हुये थी ।
“हैल्लो ।” - वह आकर नीना द्वारा खाली किये स्टूल पर पर बैठती हुई बोली - “मुझे मालूम था कि तुम दोबारा मेरे पास जरूर जाओगे ।”
रोजी समझ रही थी कि सुनील पहले उसके संसर्ग में आ चुका था और इसीलिये वह नीना से उसके बारे में पूछ रहा था । ऐसी लड़कियों को आदमी कोई याद नहीं रहता था, लेकिन वे ऐसी बात कहने में होशियार होती थीं जिस से सुनने वाले को यह लगे कि वे उसे भूली नहीं थी ।
“मेरा नाम सुनील है ।” - सुनील अर्थपूर्ण स्वर में बोला - “मैं ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर हूं ।”
“बड़ा अच्छा नाम है ।” - रोजी बोली । जाहिर था कि सुनील के नाम की उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई थी ।
“मंगलवार की रात को तारकपुर की पहाड़ियों में जो जली हुई लाश मिली थी, उसकी सूचना पुलिस को मैंने दी थी और जलने से पहले लाश की सूरत मैंने ही देखी थी ।”
रोजी के चेहरे से व्यवसायसुलभ मुस्कराहट गायब हो गई । वह यूं सुनील को देखने लगी जैसे उसके सिर पर सींग उग आये हों । फिर वह गम्भीर स्वर में बोली - “ओह !”
सुनील ने फिर दो ड्रिंक्स का आर्डर दे दिया । बार टेण्डर आर्डर सर्व कर गया, लेकिन इस बार दोनों में से किसी ने अपने गिलास को छुआ भी नहीं ।
“तुमने लोलिता की तस्वीर देखी है ?” - रोजी ने पूछा ।
“देखी है लेकिन वह तस्वीर इस काबिल नहीं थी कि उसके दम पर मैं कोई पक्की राय कायम कर सकता । तुम्हारे पास कोई और तस्वीर नहीं है ?”
“नहीं । मेरे पास लोलिता की यही एक तस्वीर थी, लेकिन अब इस सारे सिलसिले को कुरेदने की कोई जरूरत नहीं रह गई है । लोलिता सही सलामत है । वह सिर्फ राजनगर से बाहर चली गई है । मैं खामखाह उतावली हो उठी थी और पुलिस हैडक्वार्टर जाने की गलती कर बैठी थी ।”
“तुम्हें यह किसने बताया है कि लोलिता कहीं राजनगर से बाहर चली गई है ?”
“मिस्टर राजपाल ने । वे ब्लू रूम के मालिक हैं ।”
“कब ?”
“आज शाम को और वे इस बात से मुझ पर बहुत नाराज हैं कि मैं लोलिता की तस्वीर लेकर पुलिस हैडक्वार्टर गई ।”
“नाराजगी की वजह ?”
“वे कहते हैं कि जैसा उनका धन्धा है, उसमें पुलिस जितनी दूर रहे उतना ही अच्छा है । मैंने पुलिस के पास जाकर बिना मतलब बखेड़े का काम कर दिया और मेरा ख्याल है कि वे ठीक भी कहते हैं । लोलिता ने खुद उन्हें कल फोन करके बताया था कि वह ‘ब्लू रूम’ छोड़ रही है और राजनगर भी छोड़कर जा रही है ।”
“कहां ?”
“मालूम नहीं ।”
“किसके साथ ?”
“यह भी उसने नहीं बताया ।”
“उसका पक्का बॉय फ्रेंड तो डैनी ही है । वह उसके साथ गई होगी ।”
“किसी बहम में मत पड़ो मिस्टर, डैनी और लोलिता का तो एक तरफा मामला है । लोलिता ही डैनी पर जान छिड़कती है लेकिन डैनी लोलिता की कोई खास परवाह नहीं करता है ।”
“डैनी है कौन ? और क्या करता है ?”
“तुमने कभी जगत नारायण का नाम सुना है ।”
जगत नारायण का नाम राजनगर में किसने नहीं सुना था ! जगत नारायण राजनगर का बहुत बड़ा और सामर्थ्यवान दादा था । जुये के अड्डे चला-चलाकर और विलायती शराब की समगलिंग करके उसने लाखों रुपये कमाये थे । फिर एक बार न जाने कैसे वह सी आई डी की गिरफ्त में आ गया था और उसे चार साल की कैद की सजा हो गई थी । जेल से निकलने के बाद उसके कल पुर्जे ढीले हो गये थे और वह दादागिरी से रिटायर हो गया था । पैसा तब भी उसके पास बहुत था जिससे उसने बीच रोड पर एक बंगला खरीद लिया था और आराम की जिन्दगी बसर कर रहा था । पुलिस की निगाह में वह सुधर गया था लेकिन सुनील को अपने मित्र फ्रैंक के माध्यम से कई बार यह संकेत मिला था कि जगत नारायण ने दादागिरी के शत-प्रतिशत अपना हाथ नहीं खींचा था ।
“सुना है ।” - सुनील बोला ।
“डैनी जगत नारायण से सम्बन्धित है ।” - रोजी बोली - “वह उससे किस रूप से सम्बन्धित है यह मुझे मालूम नहीं ।”
“आज मैं तुम्हारे फ्लैट पर भी गया था, वहां मुझे एक लम्बा चौड़ा पहाड़ जैसा आदमी मिला था ।” - सुनील ने बड़े विस्तार से उस देव जैसे आदमी का हुलिया बयान कर दिया । वह लोलिता को पूछ रहा था - “तुम ऐसे किसी आदमी को जानती हो ?”
“नहीं, मैंने लोलिता से सम्बन्धित ऐसा कोई आदमी कभी नहीं देखा ।”
“क्या लोलिता के पास कभी कोई मोटरबोट थी ?”
“हां... एक मोटरबोट थी उसके पास लेकिन लगभग दो महीने पहले उसका कल्याण हो गया था ।”
“क्या हुआ था ?”
“मोटरबोट समुन्द्र में डूब गई थी ।”
“कैसे ?”
“लोलिता मुझे और ‘ब्लू रूम’ की तीन चार और लड़कियों को मोटरबोट में समुन्द्र की सैर कराने ले गई थी । अन्धे टापू के पास मोटरबोट एक चट्टान से टकरा गई थी और डूब गई थी । हमारी तकदीर अच्छी थी कि हम सभी लड़कियों को तैरना आता था । हम अन्धे टापू तक तैरकर पहुंच गई थी और इसलिये मरने से बच गई थी । वहां से पुलिस वालों की एक लांच गुजरी थी । उनकी हम पर निगाह पड़ गई थी और वही लोग हमें अन्धे टापू से राजनगर लेकर आये थे ।”
अन्धा टापू राजनगर से दस मील दूर समुन्द्र के बीच में एक छोटा सा टापू था । वहां कोई रहता नहीं था और मछलीमारों के सिवा कोई आता जाता भी नहीं था ।
“लोलिता के पास मोटरबोट कहां से आई ?”
“उसके एक दोस्त ने उसे दी थी ।”
“डैनी ने ?”
“डैनी ! डैनी लोलिता को अपना बुखार नहीं देता, तुम मोटरबोट की बात कर रहे हो । वह तो लेना जानता है देना कुछ नहीं जानता । पहले वह लोलिता पर जी-जान से फिदा था उतना जितना कि लोलिता डैनी पर फिदा थी लेकिन डैनी की अपने प्रति लापरवाही की वजह से एक बार लोलिता को गुस्सा आ गया था और उसने डैनी को जलाने के लिये सुखवीर को ज्यादा लिफ्ट देनी शुरु कर दी थी । उन्हीं दिनों सुखवीर ने लोलिता को मोटरबोट दी थी ।”
“तुमने सुखवीर को देखा है ?”
“नहीं... और उसकी वजह यह है कि मैं और लोलिता केवल पिछले छः महीने से एक साथ रह रही हैं और एक साल से सुखवीर जेल में है । यानी कि सुखवीर मेरी और लोलिता की मुलाकात से पहले की बात है । वह या तो अभी भी जेल में होगा और या हाल ही में जेल से छूटने वाला होगा और या फिर जेल से छूट चुका होगा ।”
“उस मोटरबोट के बारे में और लोग भी जानते हैं ?” - सुनील उस देव जैसे आदमी को याद करता हुआ बोला ।
“जरूर जानते होंगे । वह मोटरबोट थी ही इतनी लाजवाब कि लोलिता के सारे जानकार उससे जलते थे कि कोई उन्हें इतनी शानदार चीज प्रेजेन्ट क्यों नहीं देता ?”
“सुखवीर को जेल किस लिये हुई थी ?”
“उसने कहीं एक जौहरी की दुकान लूटने की कोशिश की थी ।”
“यानी कि वह गुन्डा था ।”
“हां... लोलिता कहती थी कि सब लोग उससे डरते थे - डैनी भी । सिर्फ वह नहीं डरती थी । लोलिता का तो वह गुलाम था ।”
“अब तुम्हें पूरा विश्वास है कि लोलिता मरी नहीं है केवल उसके तुम्हें बिना बताये कहीं चले जाने की वजह से तुमने उसे मरा समझ लिया था ?”
“हां ।”
“लेकिन पुलिस हैडक्वार्टर तुम यही सोचकर गई थी कि जलकर मरने वाली लड़की लोलिता थी ।”
“मेरा सिर फिर गया था । मैं बौखला गई थी ।”
“तुमने लोलिता को आखरी बार कब और कहां देखा था ?”
“मंगलवार की रात को । यहीं रत्ना देवी के घर पार्टी थी, वहां डैनी और मिस्टर राजपाल भी आमन्त्रित थे । वे लोलिता को अपने साथ ले गये थे ।”
रत्ना देवी को राजनगर का बच्चा-बच्चा जानता था । वह एक लगभग तैंतीस साल की बेहद खूबसूरत, बेहद रईस और बेहद ऐय्याश औरत थी । बाईस साल की उम्र में उसने एक पैंसठ साल के रुई के व्यापारी से विवाह किया था । बूढे का अगले साल ही हार्ट फेल हो गया था और रत्ना देवी उसकी लाखों करोड़ों की सम्पत्ति की मालकिन बन गई थी । इसके बाद उसने तीन बार और शादी की थी लेकिन कोई भी शादी दो या तीन साल से ज्यादा नहीं चली थी । एक पति ने आत्महत्या कर ली थी और दो से उसका तलाक हो गया था । बीच रोड पर उसका बहुत बड़ा बंगला था । जहां वह आये दिन पार्टियां देती थी और सारे शहर को आमन्त्रित करती थी । पार्टियों में शराब और शबाब का बोलबाला होता था । लोग गले-गले तक मुफ्त की शराब पीते थे और फिर ऐसी घिनोनी हरकतें करते थे जिनका जिक्र सुनकर भी किसी भले आदमी की आत्मा कांप जाये । रत्ना देवी की पार्टियों में इतने लोग आते थे कि उसे या किसी को यह पता नहीं लगता था कि कौन तो आमन्त्रित है और कौन यूं ही घुसा चला आया है ? वहां अकसर ऐसे लोग आ जाते थे जो वास्तव में बुलाये नहीं गये होते थे । रत्ना देवी खुद ढेर सारी शराब पीती थी और फिर पार्टी को वेटरों के हवाले करके बाकी की रात के लिये किसी नये नौजवान आदमी की गोद में सिमट जाती थी । कोई सही मायनों में शरीफ आदमी आमन्त्रित किये जाने पर भी रत्ना देवी की पार्टी में शामिल होना पसन्द नहीं करता था । रत्ना का सामाजिक स्तर इसी बात से जाना जा सकता था कि लोलिता जैसी कैब्रे डांसर, डैनी जैसा प्ले बॉय और राजपाल जैसा ऊंचे दरजे के चकलों जैसा रेस्टोरेन्ट चलाने वाला आदमी रत्ना के यहां सम्मानित अतिथि होता था लेकिन फिर भी अपनी करोड़ों की सम्पत्ति के दम पर रत्ना देवी जैसी गिरी हुई औरत समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा की आधार स्तम्भ बनी हुई थी ।
“उस पार्टी में तुम गई थी ?” - सुनील ने पूछा ।
“नहीं ।” - वह बोली ।
“उसके बाद तुमने लोलिता को देखा था ?”
“नहीं ।”
“यानी कि पार्टी के बाद वह आज तक फ्लैट पर वापिस आई ही नहीं ?”
“एक बार तो जरूर आई होगी । कल दोपहर के बाद किसी समय वह अपना सामान जो लेकर गई है ।”
“तुम्हारी जानकारी के लिये फ्लैट में से अपना सामान लेने के लिये लोलिता नहीं आई थी । फ्लैट से लोलिता का सामान कोई आदमी लेकर गया था । तुम राजपाल से...”
एक भारी हाथ सुनील के कन्धे पर पड़ा । वह बोलता-बोलता रुक गया । सुनील ने पीछे घूमकर देखा ।
पीछे एक शानदार डिनर सूट पहने एक ठिगना सा आदमी खड़ा था ।
“मेरा नाम राजपाल है ।” - वह आदमी बोला - “इस लड़की से मेरे बारे में क्या पूछ रहे थे तुम ?”
सुनील ने बड़ी मजबूती से अपने कन्धे पर पड़ा राजपाल का हाथ पकड़ा और उसे अलग झटक दिया ।
“मिस्टर राजपाल !” - रोजी जल्दी से बोली - “यह सुनील है, यह ‘ब्लास्ट’ का रिपोर्टर है । यही वह आदमी है जिसने तारकपुर की पहाड़ियों में हुए कार एक्सीडेंट में जलकर मरी लड़की की सूचना पुलिस को दी थी ।”
राजपाल के चेहरे ने फौरन रंग बदला । उसने नये सिरे से सिर से पैर तक सुनील को देखा ।
“यहां कैसे आये ?” - वह कठोर स्वर में बोला ।
“मनोरंजन के लिये ।” - सुनील मुस्कराता हुआ बोला ।
“क्या मनोरंजन में मेरे बारे में सवाल पूछना भी शामिल है ।”
“मनोरंजन का अपना-अपना तरीका होता है, मिस्टर राजपाल । मुझे नंगी औरतों को नाचते देखकर उतना मजा नहीं आता जितना मजा ठिगने आदमियों के बारे में बात करके आता है ।”
राजपाल का चेहरा कानों तक लाल हो गया ।
“तुम यहां अपने अखबार के लिये खबरें सूंघने आये हो ।” - वह अपने को भरसक सन्तुलित करता हुआ बोला ।
“यही समझ लो । मुझे जहां खबर की सूंघ मिलती है वहीं तो पहुंचूंगा ।”
“तुम मेरे बारे में जो जानना चाहतो हो, मुझसे पूछो । मेरी होस्टेस से मेरे बारे में बात मत करो ।”
“आल राईट । कल तुमने लोलिता को देखा था ?”
“नहीं, उसने मुझे टेलीफोन किया था ।”
“तुम्हें पूरा विश्वास हैं कि टेलीफोन पर लोलिता ही बोल रही थी, कोई और लड़की नहीं ?”
“मैं लोलिता को मुद्दत से जानता हूं । मैं उसकी आवाज को अच्छी तरह पहचानता हूं ।”
“बुधवार को यानी कि कल तुम्हें उसका यूं एकाएक ‘ब्लू रूम’ छोड़ देने का फैसला कर लेना अजीब नहीं लगा ?”
“बहुत अजीब लगा था ।”
“मंगलवार रात को वह तुम्हारे और डैनी के साथ रत्ना देवी के बंगले पर पार्टी में गई थी । तब उसने इस बारे में कोई बात की थी कि वह ब्लू रूम छोड़ रही है ।”
“नहीं ।”
“फिर भी बुधवार को उसने कहीं से एकाएक टेलीफोन करके यह कह दिया कि तुम्हारा और उसका धन्धे का रिश्ता खत्म ।”
“करैक्ट ।”
“बात गले से उतरी नहीं ।”
“एक घूंट विस्की पियो, शायद उसके साथ उतर जाये ।”
“मंगल की रात को पार्टी के बाद लोलिता कहां गई ?”
“मुझे क्या मालूम ?”
“अपने फ्लैट पर तो वह पहुंची नहीं ?”
“तो मैं क्या करूं ?”
“तुम उसे वहां छोड़कर नहीं आये थे ?”
“नहीं !”
“तुम...”
“अब खतम करो । तुम मूर्खतापूर्ण सवाल पूछ पूछ कर अपना भी वक्त बरबाद कर रहे हो और मेरा भी । भगवान के लिये या तो महफिल के रंग में रंग जाओ और या फिर दफा हो जाओ ।”
सुनील चुप रहा ।
“और रोजी ।” - राजपाल के स्वर में भारी अधिकार का पुट था - “तुम इस आदमी से कोई बात मत करना ।”
रोजी ने सहमति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
अब और अधिक ठहरने से फायदा नहीं था सुनील स्टूल के नीचे उतर आया ।
“मुझे तुम्हारे घर का पता मालूम है ।” - वह रोजी से बोला -“मैं तुम्हारे घर जाऊंगा । वहीं और बातें होंगी । वहां कबाब में कोई हड्डी नहीं होगी ।”
“रोजी तुमसे वहां भी बात नहीं करेगी ।” - राजपाल तीव्र स्वर में बोला ।
“प्यारे लाल !” - सुनील बोला - “तुम तेल देखो तेल की धार देखो ।”
सुनील ने काउन्टर पर कुछ नोट फेंक दिये ।
“सी यू, रोजी डार्लिंग ।” - वह रोजी से यूं बोला जैसे उसे वर्षों से जानता हो - “एण्ड टू यू टू अन्डर रूट थ्री ।”
अण्डर रूट थ्री का मतलब राजपाल को समझ नहीं आ सका । लेकिन सुनील को अपने कालेज के जमाने की एक बात याद आ गई थी । उन दिनों वह हर ठिगने आदमी को अण्डर रूट थ्री कहा करता था और हर लम्बे पतले आदमी को एक बटा ग्यारह कहा करता था ।
सुनील बाहर की ओर चल दिया । उस समय स्टेज पर नीना नाच रही थी और रोजी से दस गुणा ज्यादा गन्दे हाव-भाव का प्रदर्शन कर रही थी ।
सुनील ‘ब्लू रूम’ से बाहर आ गया ।
बाहर आकर उसे पहली बार याद आया कि जितना अरसा वह भीतर रहा था, उसने एक भी सिगरेट नहीं पी थी, उसका हाथ अपने आप ही कोट की उस जेब की ओर बढ गया जिसमें लक्की स्ट्राइल का पैकेट पड़ा था ।
***
समुद्र के किनारे के साथ सटी बीच रोड पर स्थित रत्ना देवी का स्पेनिश ढंग से बना बंगला इतना बड़ा था कि उसके आसपास के और लोगों के बंगले नौकरो के क्वार्टरों जैसे लगते थे ।
उस रात बंगले में सन्नाटा था । उस रात लगता था, रत्ना देवी ने किसी हंगामाखेज पार्टी का आयोजन नहीं किया था ।
सुनील ने मोटर साइकिल का हार्न बजाया । गेट कीपर ने बिना किसी हुज्जत के लोहे का विशाल फाटक खोल दिया । सुनील ने मोटर साईकिल को ड्राइव वे पर आगे बढा दिया ।
उसने मोटर साईकिल को बंगले के सामने खड़ा किया और फिर एक दर्जन सीढियां चढकर इमारत के मुख्य द्वार पर पहुंचा ।
एक वर्दीधारी नौकर वहां पहले से ही खड़ा था ।
“मुझे रत्ना देवी से मिलना है !” - सुनील अधिकार पूर्ण स्वर से बोला ।
“इस वक्त...” - नौकर ने कहना चाहा ।
“वक्त के बारे में सोचना तुम्हारा काम नहीं है, ईडियट ।”
“साहब का नाम ?” - नौकर बौखलाकर बोला ।
सुनील ने अपना एक विजिटिंग कार्ड उसकी तरफ बढा दिया ।
नौकर कार्ड लेकर चला गया ।
सुनील ने घड़ी देखी । दस बज चुके थे । लेकिन रत्ना देवी के यहां तो रात के दस बजे दिन शुरू होता था । अभी सन्नाटा तो क्या हुआ ।
थोड़ी देर बाद नौकर वापिस लौटा ।
“तशरीफ लाईये ।” - वह बोला ।
सुनील उसके साथ हो लिया ।
नौकर उसे एक सिनेमा हाल जितने बड़े कमरे में छोड़ गया ।
थोड़ी देर बाद रत्ना देवी ने कमरे में यूं कदम रखा जैसे कोई महारानी राज दरबार में कदम रख रही हो । पैंतीस साल की उम्र और भरपूर एय्याशी भरी जिन्दगी के बाद भी रत्ना देवी अनिद्य सुन्दरी थी । सफेद रंग के सीधे-सीधे परिधान के बावजूद भी उसमें फिल्म अभिनेत्रियों जैसी चमक दमक थी ।
“मिस्टर सुनील !” - वह अपने चेहरे पर सरासर नकली मुस्कराहट लाती हुई बोली ।
“दि सेम, मैडम ।” - सुनील सिर नवा कर बोला ।
“तशरीफ रखिये ।”
“पहले आप ।”
रत्ना देवी सोफे पर बैठ गई ।
सुनील उसके सामने बैठ गया ।
“कैसे आये ?” - और साथ ही रत्ना देवी ने अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर दृष्टिपात किया यूं जैसे वह सुनील को जताना चाहती हो कि उसने उस समय सुनील से मिलकर भारी अहसान किया था ।
“मैं आपका अधिक समय नहीं लूंगा ।” - सुनील जल्दी से बोला - “आपने अखबार में पढा होगा कि मंगलवार की रात को तारकपुर की पहाड़ियों में मुझे एक लड़की मिली थी । जिसकी हत्या को दुर्घटना का रूप देने की कोशिश की गई थी ।”
“मैंने नहीं पढा ।” - रत्ना देवी तनिक रूखे स्वर में बोली - “मैं अखबार कभी-कभार पढती हूं ।”
सुनील एक क्षण सकपकाया और फिर वार्तालाप का रुख बदलता हुआ बोला - “मंगलवार की रात को यहा एक पार्टी हुई थी...”
“पार्टी तो यहां रोज होती है ।”
“आप लोलिता को जानती हैं ?”
“कौन है वो ?”
“वह ‘ब्लू रूम’ की कैब्रे डान्सर है । मंगलवार रात को वह राजपाल और डैनी के साथ यहां आई थी ।”
“मैं लोलिता को जानती हूं । शायद वह पार्टी में आई हो । यहां तो साहब इतने लोग आ जाते हैं कि मैं चाहकर भी यह ध्यान नहीं रख सकती कि कौन आया था, कौन नहीं आया था ।”
“लोलिता यहां से किस वक्त गई थी ?”
“एक मिनट” - रत्ना देवी उठती हुई बोली - “फोन की घन्टी बज रही है । मैं अभी आई ।”
और वह लम्बे डग भरती हुई कमरे से बाहर निकल गई ।
सुनील असमंजसपूर्ण मुद्रा बनाये बैठा रहा । उसने फोन के बजने की आवाज नहीं सुनी थी और फिर नौकरों के होते हुये उसे खुद जाकर फोन अटैण्ड करने की क्या जरूरत थी ?
रत्ना देवी पांच मिनट बाद वापिस लौटी ।
“हां !” - वह वापिस अपने स्थान पर बैठती हुई बोली - “क्या कह रहे थे आप ?”
“मैं लोलिता के बारे में पूछ रहा था ?”
“कि वह पार्टी में से किस वक्त गई थी ?”
“जी हां ।”
“पहली बात तो यह है कि मुझे यही ठीक से याद नहीं कि वह पार्टी में आई भी थी या नहीं और अगर वह आई थी तो भीड़-भाड़ में क्या पता लगता है कि वह कब गई, किसके साथ गई और फिर महफिल जवान हो जाने के बाद तो मुझे खुद अपनी होश नहीं रहती मैं औरों का क्या ख्याल करूं ।”
“शायद आपको राजपाल या डैनी का ध्यान हो । क्या वह उनमें से किसी के साथ...”
“आपको इस आदमी के किसी सवाल का जवाब देने की जरूरत नहीं है, मैडम ।” - एक भारी आवाज कमरे में गूंज गई ।
सुनील घूमा ।
“कोई शरारत मत करना ।” - एक पतली आवाज ने चेतावनी दी - “वर्ना भेजा उड़ा दिया जायेगा ।”
रत्ना देवी हड़बड़ाकर उठ खड़ी हुई ।
“उठकर खड़े हो जाओ !” - आदेश मिला - “अपने हाथ सिर से ऊपर उठा लो और घूम जाओ ।”
सुनील ने आदेश का तत्काल पालन किया ।
द्वार के पास दो आदमी खड़े थे । एक चेहरे पर चेचक के दागों वाला पतला सा आदमी था और दूसरा बाक्सरों जैसा गठा हुआ, भारी डील-डौल वाला आदमी था । दोनों के हाथों में 45 कैलिबर की रिवाल्वरें थी जिनके रुख सुनील की ओर थे ।
“देखो ।” - रत्ना देवी याचनापूर्ण स्वर में बोली - “मुझे यह सब पसन्द नहीं । यहां कोई हंगामा नहीं होना चाहिये ।”
“आप घबराईये नहीं, मैडम !” - मोटी आवाज मोटे व्यक्ति की ही थी - “सब ठीक हो जायेगा ।”
मोटी आवाज वाला आगे बढा । उसने बड़े तजुर्बेकार ढंग से सुनील की तलाशी ली । उस दौरान पतली आवाज वाला बड़ी तत्परता से सुनील को कवर किये रहा । सुनील के पास कोई हथियार न पाकर वह सन्तुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाया हुआ उससे अलग हट गया ।
“चलो ।” - आदेश मिला ।
“मैडम” - सुनील रत्ना देवी से बोला - “आपको फोन आया नहीं था । आप इन गुण्डों को बुलाने के लिये फोन करने गई थीं ।”
“शटअप !” - मोटी आवाज वाला गर्जा और साथ ही उसका रिवाल्वर वाला हाथ भड़ाक से सुनील के चेहरे से टकराया ।
भारी रिवाल्वर की पक्के लोहे की नाल सुनील के चेहरे को बांई आंख से लेकर ठोड़ी तक काटती चली गई ।
रत्ना के मुंह से सिसकारी निकल गयी ।
“आग बढो ।” - मोटी आवाज वाला गर्जा ।
सुनील अपने हाथ सिर से ऊपर उठाये आगे बढा । उसके चेहरे से खून टपक रहा था लेकिन वह उसे पोंछ नहीं सकता था ।
“मोटर साइकिल तुम्हारी है ?” - बंगले से बाहर आकर मोटी आवाज वाले ने पूछा ।
“हां ।” - सुनील बोला ।
“देवी ।” - वह पतली आवाज वाले से बोला - “इसकी मोटर साइकिल को भी ठिकाने लगाना होगा ।”
“मामूली काम है ।” - देवी बोला ।
“चलो ।” - मोटी आवाज वाला बोला ।
“तुम मुझे कहां ले जा रहे हो ?”
“अभी मालूम हो जायेगा ।”
सुनील सीढियां उतरने लगा ।
वे ड्राइव वे पर आगे बढने लगे ।
आधे रास्ते में एकाएक मोटी आवाज वाला बोला - “हाथ नीचे गिरा लो और चेहरे को साफ करो ।”
सुनील ने जेब से रुमाल निकाल कर चेहरे पर लगे खून को अच्छी तरह पोंछा । उन दोनों ने अपने रिवाल्वरों वाले हाथ अपनी जेबों में छुपा लिये थे ।
वे गेट से बाहर निकले । गेट कीपर ने उनकी ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया । वह तत्परता से द्वार खोले खड़ा रहा ।
सड़क पर वे दांई और घूम गये और बगल के बंगले में प्रविष्ट हो गये । उनके रिवाल्वरों वाले हाथ फिर प्रकट हो गये थे ।
उस बंगले में जिस आदमी के पास उसे ले जाया गया, सुनील उसे फौरन पहचान गया ।
वह अपने वक्त का सबसे बड़ा दादा जगत नारायण था ।
जगत नारायण बंगले के पिछवाड़े में बने लॉन में बैठा था । उसके एक हाथ में विस्की का गिलास था । उन्हें देखकर वह विस्की का गिलास हाथ में थामे उठ खड़ा हुआ ।
“ठाकुर ।” - जगत नारायण बोला ।
“यह बॉस !” - मोटी आवाज वाला तत्पर बोला ।
“इसकी तलाशी ली ?”
“यस बास । इसके पास कोई हथियार नहीं है ।”
“यानी कि अब तुम्हारे में खाली हाथ एक निहत्थे आदमी को सम्भालने की भी काबलियत नहीं रही है ।”
ठाकुर ने फौरन रिवाल्वर जेब में डाल ली । देवी ने उसका अनुकरण किया ।
“तुम” - जगत नारायण सुनील के सामने आ खड़ा हुआ - “रत्ना देवी को तंग कर रहे थे ?”
सुनील ने उत्तर नहीं दिया ।
“जानते हो रत्ना देवी कितनी बड़ी औरत है और समाज में उनका कितना बड़ा रुतबा है और तुम दो टके के आदमी उनसे ऊट-पटांग सवाल पूछने के लिये उनके बंगले में घुस आये ।”
“मैं जबरदस्ती नहीं घुसा था ।”
“तुम हल्के आदमी हो । तुम्हारा बड़े लोगों से मतलब क्या ? रत्ना देवी मेरी मित्र हैं । मैं यह पसन्द नहीं करता कि मेरे होते हुये कोई उन्हें परेशान करे ।”
“जैसी रुह वैसे फरिश्ते ।” - सुनील धीरे से बोला - “रत्ना देवी का स्टैण्डर्ड तो इसी बात से जाहिर हो जाता है कि आप जैसे महानुभाव उसके दोस्त हैं ।”
जगत नारायण का चेहरा कानों तक लाल हो गया । उसके मुंह से एक गुर्राहट निकली और उसने हाथ में थमे गिलास की विस्की सुनील के चेहरे पर फेंक मारी ।
विस्की सुनील की आंखों में घुस गई और उसके गाल पर ताजे लगे जख्म पर पड़ी । जलन से उसका चेहरा विकृत हो उठा । सुनील अपनी जेब से रुमाल निकाल कर अपना चेहरा पोंछने लगा कितनी ही देर वह आंखें मिचमिचाता रहा ।
“जगत नारायण !” - अन्त में वह बोला - “मैंने तो सुना था कि तुम दादागिरी से रिटायर हो गये हो ?”
“ठीक सुना है तुमने । इस समय रत्ना देवी जैसे लोगों के पड़ोस में रहता हूं और इज्जत की जिन्दगी जी रहा हूं । मैं रिटायर हो गया हूं, इसलिये तुम अभी तक जिन्दा खड़े हो, वर्ना मैंने अभी तक तुम्हारी हड्डी-बोटी अलग कर दी होती, लेकिन मेरे रिटायर होने न होने से तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता है । देवी और ठाकुर रिटायर नहीं हुये हैं ।”
सुनील चुप रहा ।
“रत्ना देवी के पास क्या करने गये थे तुम ?” - जगत नारायण कठोर स्वर में बोला ।
“मंगलवार रात को लोलिता नाम की एक कैब्रे डांसर रत्ना देवी के बंगले पर पार्टी में आई थी” - सुनील बड़ी शराफत से बोला - “मैं सिर्फ यह जानना चाहता था कि वह पार्टी से वापिस कब गई थी और किसके साथ गई थी ।”
“रत्ना देवी ने कुछ बताया ?”
“नहीं । लेकिन शायद तुम्हें मालूम हो ।”
“मेरा एक मामूली कैब्रे डान्सर से क्या वास्ता ?”
“लेकिन उस मामूली कैब्रे डान्सर के मामूली बॉय फ्रैंड से तो तुम्हारा वास्ता है । उसी को बुलाकर पूछ लो । शायद वह जानता हो ।”
“तुम किसकी बात कर रहे हो ?”
“डैनी की ।”
जगत नारायण की निगाहें ठाकुर और देवी की निगाहों से मिली ।
कई क्षण कोई कुछ नहीं बोला ।
“देखो ।” - जगत नारायण नम्र स्वर से बोला - “मैं तुम्हें एक बड़ी सीधी, सच्ची और दोस्ती भरी राय देता हूं । इस सारे मामले से अपना हाथ खींच लो । इसी में तुम्हारी भलाई है ।”
“ऐसी सीधी सच्ची और नेक राय मुझे आज सुबह किसी ने टेलीफोन पर भी दी थी । वह भी तुम्हीं तो नहीं थे ।”
“समझ नहीं आती तुम्हारे जैसा कम अक्ल इन्सान आज तक जिन्दा कैसे रह गया ।” - जगत नारायण बड़बड़ाया । फिर वह ठाकुर और देवी की ओर मुड़ा और भावहीन स्वर में बोला - “साहब को जरा फुटबाल खिलवाओ ।”
“यस बास ।” - ठाकुर यूं बोला जैसे उसे अपना मनपसन्द आदेश मिल गया हो ।
जगत नारायण वापिस कुर्सी पर बैठ गया और अपने लिये नया पैग बनाने लगा ।
ठाकुर ने देवी को इशारा किया ।
देवी ने सहमति सूचक ढंग से सिर हिलाया ।
दोनों अपने खाली हाथ लटकाये भारी कदम रखते हुये सुनील की ओर बढे ।
सुनील ने एकदम छलांग लगाई । वह दोनों के बीच में से अलग हो गया । फिर वह बिजली की फुर्ती से देवी पर झपटा । उसने अपने भारी बूट की भरपूर ठोकर देवी की टांग पर घुटने के नीचे जमाई । देवी दर्द से बिलबिला उठा । साथ ही सुनील के दांये हाथ का भरपूर घूंसा देवी के पेट में पड़ा । देवी दोहरा हो गया ।
तभी ठाकुर उसके सिर पर आ धमका । उसके दांये हाथ का भारी घूंसा सुनील की खोपड़ी पर गिरा, लेकिन ऐन मौके पर सुनील एक ओर हट गया । ठाकुर का वार खाली गया । सुनील ने अपने बांये हाथ की कोहनी जोर से पीछे को घुमाई । कोहनी ठाकुर के पेट में लगी । उसके मुंह से सिसकारी तो जरूर निकली, लेकिन वह चट्टान की तरह अडिग अपने स्थान पर खड़ा रहा ।
सुनील घूमा और बैल की तरह सिर नीचा किये सीधा ठाकुर की छाती से जाकर टकराया ।
ठाकुर जरा सा डगमगाया और सम्भल गया ।
जगत नारायण अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ था । वह विस्की पीना भूल गया था और उसके नेत्र चिन्ता से सिकुड़ गये थे । शायद उसे सुनील से इतने तगड़े विरोध की आशा नहीं थी । फिर उसका हाथ अपने कोट की उस जेब की ओर सरक गया जिसमें रिवाल्वर थी ।
तभी ठाकुर ने सुनील के अपनी छाती से टकराये सिर से थाम लिया । उसका दांया घुटना बिजली की तरह ऊपर उठा और सीधा सुनील के चेहरे से जाकर टकराया । उसी क्षण उसने सुनील का सिर छोड़ दिया ।
सुनील के आंखों के सामने सितारे नाच गये । वह एकदम पीछे को उलट गया । उसे यूं लगा जैसे उसके चेहरे से हजार मन का पत्थर आ टकराया था ।
तब तक देवी भी सम्भल चुका था । उसने अपने पांव की भरपूर ठोकर सुनील की पसलियों में जमाई ।
सुनील एकदम उलटकर जमीन पर औंधा जा गिरा । उसकी आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा ।
देवी ने दुबारा लात घुमाई, लेकिन इस बार उसका पांव सुनील के हाथ में आ गया । सुनील ने उसके पांव को एक बार मरोड़ा और फिर पूरी शक्ति से उसे पीछे को धकेला दिया ।
देवी फिर मुंह के बल घास में जा गिरा ।
ठाकुर दांत भीचे सुनील की ओर बढ़ा ।
सुनील उठने का प्रयत्न कर रहा था । अभी वह सीधा भी नहीं हो पाया था कि उसके पांव की मजबूत ठोकर ने उसे फुटबाल की तरह परे उछाल दिया ।
सुनील देवी के समीप जाकर गिरा । तब तक देवी अपने पांव पर उठ खड़ा हुआ था । उसने भी सुनील के शरीर को यूं किक जमाई जैसे वह वाकई फुटबाल हो ।
सुनील उलटा और ठाकुर के पैरों में जा गिरा । उस पर बेहोशी छाने लगी थी । अब उसमें विरोध की शक्ति नहीं रही थी ।
जगत नारायण के चेहरे से चिन्ता के भाव गायब हो गये ।
उसने एक गहरी सांस ली और अपने कोट की जेब में से अपना हाथ बाहर खींच लिया । उसने उस ओर से पीठ फेर ली और वापिस कुर्सी पर बैठ गया । विस्की का गिलास उसके होंठों से जा लगा ।
दो तीन बार यूं ही सुनील फुटबाल की तरह ठाकुर और देवी के बीच में उछाला गया । अन्त में ठाकुर की एक भरपूर ठोकर सुनील की खोपड़ी में लगी और सुनील की चेतना लुप्त हो गई ।
फुटबाल का खेल बन्द हो गया ।
***
जब सुनील को होश आया तो उसने अपने आप को बीच रोड के सिरे पर वहां से थोड़ा हटकर रेत में पड़ा पाया । उसके शरीर का पोर-पोर दुख रहा था और उसके सारे कपड़ों में से और मुंह में विस्की की दुर्गन्ध फूट रही थी । किसी की अच्छी तरह ठुकाई करके उसके मुंह में जबरदस्ती ढेर सारी विस्की उडैल कर उसे कहीं फेंक आना बदमाशों की आम ट्रिक थी । बाद में जब पिटाई का शिकार रिपोर्ट करने जाता था तो पुलिस यही समझती थी कि या तो वह शराब के नशे में किसी दुर्घटना का शिकार हो गया था और या खुद ही कहीं मार-पीट कर बैठा था ।
यह पहला मौका नहीं था जब सुनील इस ट्रिक का शिकार हुआ था ।
उसने अपनी घड़ी पर दृष्टिपात किया ।
एक बजने को था ।
इसका मतलब यह था कि वह कम से कम ढाई घन्टे बेहोश रहा था ।
सुनील लड़खड़ाता हुआ अपने स्थान से उठा, लेकिन उसकी टांगे उसका वजन नहीं सम्भाल सकीं । वह भरभरा कर फिर रेत पर ढेर हो गया ।
कितनी ही देर यू ही रेत में पड़ा लम्बी-लम्बी सांसे लेता रहा । अन्त में वह अपने शरीर की सारी शक्ति का संचय करके फिर उठा और लड़खड़ाता हुआ सड़क की ओर बढा । उसकी आंखों के सामने रह-रह कर अंधेरा छा जाता था । बड़ी मुश्किल से रुकता, अटकता, पेड़ों का सहारा लेता हुआ वह सड़क पर पहुंचा ।
सड़के के किनारे पर उसकी मोटर साइकिल खड़ी थी । लेकिन मोटर साइकिल को चला पाना तो दूर उसको तो किक मारके स्टार्ट कर पाने की हिम्मत भी उसमें नहीं थी ।
सुनील मोटर साइकिल का सहारा लेकर खड़ा हो गया और लम्बी-लम्बी सांसे लेने लगा । रह-रहकर उसकी आंखों के सामने अन्धकार का परदा आ जाता था जिसे वह बड़ी कठिनाई से सिर झटक कर दूर करता था ।
एकाएक दूर से आती हुई एक कार की हैडलाइट्स से सड़क चमक उठी ।
सुनील ने जोर से चिल्लाना चाहा, लेकिन उसके मुंह से बोल नहीं फूटा । वह मोटर साइकिल से अलग हटा और लड़खड़ाता हुआ चल कर सड़क के बीच में आ खड़ा हुआ । वह अपने दोनों हाथों को सिर से ऊपर उठाकर जोर-जोर से हिलाने लगा ।
कार एकदम उसके सामने आकर रुकी ।
वह एक टैक्सी थी और खाली थी ।
सुनील ने एक बार फिर मुंह खोलकर कुछ कहना चाहा, लेकिन वह असफल रहा । फिर उसका शरीर एक बार लहराया और फिर वह टैक्सी के हुड पर ढेर हो गया ।
टैक्सी ड्राइवर जल्दी से टैक्सी से बाहर निकल कर उसके पास आया ।
“ए मिस्टर...” - टैक्सी वाला तीव्र स्वर में बोला - “क्या घोटाला है ?”
सुनील के मुंह से हल्की सी कराह निकली ।
टैक्सी वाला उसके और समीप आया और फिर नाक सिकोड़कर एकदम पीछे हो गया ।
लम्बी सांसों के साथ सुनील के मुंह से शराब के झमूके छूट रहे थे ।
“साला शराबी ।” - टैक्सी वाला बड़बड़ाया ।
सुनील खामोश खड़ा हांफता रहा ।
“ऐ बाबू” - टैक्सी वाले ने उसे गिरेबान पकड़ कर झिंझोड़ा - “घर जाना है ?”
सुनील बड़ी मुश्किल से स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला पाया ।
“मीटर से दस रुपये ज्यादा लूंगा ।”
सुनील ने फिर हामी भर दी । उसमें केवल इतनी ही हिम्मत थी कि वह अपनी गरदन हिला सकता । वह चाहकर भी बोल नहीं पा रहा था ।
“टैक्सी में बैठो ।”
सुनील अपने स्थान से हिल भी नहीं पाया ।
टैक्सी ड्राइवर ने उसे बांहों से भर लिया और उसे घसीटता हुआ टैक्सी के पिछले द्वार के पास ले आया । उसने टैक्सी का दरवाजा खोला और रेत के बोरे की तरह उसे टैक्सी की पिछली सीट पर धकेल दिया । वह खुद ड्राइविंग सीट पर आ बैठा ।
“जाना कहां है ?” - ड्राइवर ने पूछा - “घर कहां है तुम्हारा ?”
लेकिन तब तब सुनील के नेत्र फिर बन्द हो गये थे और वह टैक्सी की आरामदेय सीट पर पड़ा खर्राटे भरने लगा था ।
“हे भगवान !” - टैक्सी वाला बोला - “अब इसके घर का पता भी मुझे ही मालूम करना पड़ेगा ।”
टैक्सी ड्राइवर ने उसके कोट की ऊपरी जेब में हाथ डाला, उस जेब में कागज का वह छोटा सा पुर्जा पड़ा था जिस पर सुनील ने याददाश्त के लिये रोजी और लोलिता का 24 लिटन रोड का पता लिख लिया था । टैक्सी ड्राइवर ने समझा कि वह या तो सवारी का अपना पता था और या उसके किसी दोस्त या रिश्तेदार का पता था । उसने पर्चा वापिस सुनील की जेब में खोंस दिया और टैक्सी को लिटन रोड की ओर दौड़ा दिया ।
लिटन रोड पर उस समय एकदम उजाड़ थी । उसने टैक्सी को चौबीस नम्बर इमारत के सामने रोक दिया ।
उसने सुनील को झिंझोड़ कर जगाया और उसे सहारा देकर टैक्सी से निकाला । सुनील उसके कन्धे के साथ लगा झूमता खड़ा रहा ।
“चलो तुम्हें तुम्हारे फ्लैट के दरवाजे तक छोड़कर आऊं ।” - टैक्सी ड्राईवर बोला ।
सुनील फिर केवल सिर ही हिला पाया ।
बड़ी मुश्किल से टैक्सी ड्राइवर सुनील को दूसरी मन्जिल तक पहुंचा पाया ।
“अब पैसे निकालो और मेरी जान छोड़ो ।” - टैक्सी ड्राइवर बोला ।
सुनील ने कांपते हाथों से पर्स निकाला और उसे टैक्सी ड्राइवर की ओर बढा दिया ।
टैक्सी ड्राइवर ने पर्स में से दस-दस के दो नोट निकाले और पर्स वापस सुनील की जेब में डाल दिया । फिर वह दो-दो सीढियां फांदता हुआ इमारत से बाहर निकल गया ।
सुनील कितनी ही देर दीवार के साथ लगकर खड़ा रहा । फिर उसने आंख मिचमिचा कर अपनी बगल के दरवाजे को देखा । दरवाजे पर लगी नेम प्लेट पर रोजी और लोलिता का नाम लिखा हुआ था । उसने अपने सिर को जोर से झटका दिया । वह यहां कैसे पहुंच गया ? फिर उसने यह सोचकर कि चलो कहीं तो पहुंचा, द्वार खटखटाया और उसके साथ कंधा लगाकर खड़ा हो गया । द्वार जो कि बन्द नहीं था सुनील के शरीर के भार से भड़ाक करके खुल गया और वह धड़ाम से कमरे के भीतर फर्श पर जा गिरा । नई चोट लगने से उसकी थोड़ी खुमारी उतरी, उसका थोड़ा सा नशा छंटा । वह सम्भल कर उठा । फिर उसकी निगाह कमरे की दाईं दीवार के पास पड़ी और उसके नेत्र फैल गये ।
वहां रोजी की लाश पड़ी थी । उसके नेत्र कटोरियों से बाहर निकल पड़े थे और चेहरा बेहद भयानक लग रहा था ।
सुनील लड़खड़ाता हुआ एकदम आगे बढा । फिर जैसे उसकी टांगों ने उसके शरीर का वजन सम्भालने से इन्कार कर दिया । उसके घुटने मुड़े और वह भरभरा कर रोजी की लाश की बगल में ढेर हो गया ।
उसी क्षण कहीं दूर से पुलिस के फ्लाईंग स्कवायड का सायरन बजने की आवाज आई ।
***