फुटपाथ पर चलते चलते एकाएक मोना चौधरी के कदम जड़ हो गए। उसने आगे बढ़ना चाहा। परंतु कदम थे कि जैसे जमीन से चिपक गए थे। मोना चौधरी ने पुरजोर कोशिश की कि कदमों को उठाकर आगे बढ़ाए। लेकिन टांगे हिलने का नाम तक नहीं ले रही थीं। उसे क्या हो
मोना चौधरी बौखला उठी। वह समझ न पाई कि गया है। आस-पास जाते लोगों पर निगाह मारी। लोग अपने काम में व्यस्त तेजी से आ-जा रहे थे।
मोना चौधरी ने पुनः पांव उठाने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सकी। वो उसी तरह जड़ खड़ी रही। हाथ, सिर, गर्दन हर हिस्सा जिस्म का हिल रहा था, परंतु कदम हिलने उठने को तैयार नहीं थे। मोना चौधरी के चेहरे पर से कई रंग आकर गुजर गए। मस्तिष्क ने जैसे काम करना बंद कर दिया। कोई सामान्य बात-हादसा होता तो वो निपट लेती। लेकिन ये तो सरासर असामान्य बात थी। जैसे चुम्बक के साथ लोहा चिपक जाता है, कुछ ऐसे ही उसके पांव, जमीन से चिपक गए थे।
मोना चौधरी ने गर्दन घुमाकर पीछे सड़क के किनारे पर खड़ी कार पर निगाह मारी। जिसमें से वो निकलकर आगे बढ़ी थी और जिसकी ड्राइविंग सीट पर नीलू महाजन मौजूद था।
महाजन की निगाह भी उस पर पड़ चुकी थी। मोना चौधरी के रुकने को उसने कोई खास तवज्जो नहीं दी थी। होगी कोई वजह, रुकने की। उसने सिगरेट सुलगाई। दो तीन कश लिए तो मोना चौधरी को पुनः वहीं खड़े पाया। इस बार वो गर्दन घुमाकर उसकी तरफ देख रही थी।
महाजन की आंखें सिकुड़ीं।
वो कार से बाहर निकला। नजरें मोना चौधरी की तरफ थीं। उसे अपनी तरफ देखते पाकर मोना चौधरी ने हाथ के इशारे से उसे पास आने का इशारा किया।
हैरत और उलझन में पड़ा महाजन जल्दी से मोना चौधरी के पास पहुंचा- "क्या बात है वेबी, तुम...।" महाजन ने कहना चाहा।
"महाजन।"- मोना चौधरी होंठ सिकोड़कर अजीब से लहजे में कह उठी- "मुझसे चला नहीं जा रहा।"
"क्या?" महाजन के चेहरे पर अजीब से भाव आए।
"मेरे कदम जड़ हो गए हैं। जैसे जमीन से चिपक गए हों।" मोना चौधरी के चेहरे पर उलझन भरे भाव नाच रहे थे— "मैं चल नहीं पा रही।"
"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है वेबी। ऐसा कैसे हो सकता है। " महाजन मुस्कराया ।
मोना चौधरी ने उखड़े अंदाज में, महाजन को घूरा ! "मैं जो कह रही हूं। उस पर विश्वास करो।" मोना चौधरी की आवाज में तीखापन था।
महाजन ने होंठ सिकोड़कर मोना चौधरी को सिर से पांव तक देखा। मोना चौधरी इस वक्त स्कर्ट और टॉप में थी और बेइंतहा खूबसूरत लग रही थी। मोना चौधरी के हाव-भाव से उसे ऐसा नहीं लगा जैसे वो मजाक कर रही हो। महाजन ने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया।
“मेरा हाथ पकड़ो बेबी।"
मोना चौधरी ने उसका हाथ पकड़ा।
महाजन ने मोना चौधरी को आगे खींचा, लेकिन वो आगे तो झुकी परंतु पांव वहीं, वैसे ही फुटपाथ की जमीन पर चिपके रहे। महाजन ने पुनः कोशिश की, परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। हक्के बक्के से महाजन की आंखें फैल गई।
करीब से गुजरते लोगों ने यह सब देखा तो वो भी रुककर मामला समझने लगे।
"ये क्या हुआ बेबी?" महाजन के होंठों से किसी तरह निकला। मैं खुद नहीं समझ पा रही कि मेरे कदम जमीन से क्यों चिपक हैं। " बेबसी से मोना चौधरी के होंठ भिंच गए- "पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ।"
महाजन को तो ये भी समझ में नहीं आया कि जवाब में क्या कहे।
आसपास बढ़ रही भीड़ में से एक व्यक्ति कह उठा।
"इस पर कोई भूत-प्रेत का साया आ गया है ।“
कितनी खूबसूरत है।" एक युवक बोला—"भूत-प्रेत तो
पकड़ेंगे ही। "
मोना चौधरी और महाजन की नजरें मिलीं। दोनों सकते की सी हालत में थे कि यह क्या हो गया है और अब क्या किया जाए।
"वो सड़क पार एक तांत्रिक का ठिकाना है।" अन्य आवाज आई- "तांत्रिक को बुला लाओ। शायद वो ठीक कर दे। मुझे तो ये ऊपरी हवा लग रही है। "
जितने मुंह उतनी बातें ।
ज्यादातर लोग मोना चौधरी की खूबसूरती देखने में व्यस्त थे।
“लाऊं बेबी, तांत्रिक को।
"क्या पागलों वाली बातें कर रहे हो"- मोना चौधरी झल्लाई- मैं नहीं मानती, इन सब बातों को क्यों मेरा तमाशा बनाने की कोशिश कर रहे हो। "
“तमाशा तो तुम बन चुकी हो। " महाजन ने वहां इकट्ठी होती जा रही भीड़ को देखा—"अभी तो यह शुरुआत है। अगले दस मिनटों में यहां इतने लोग इकट्ठे हो जाएंगे कि सड़क का ट्रैफिक जाम हो जाएगा। फिर पुलिस आएगी भीड़ को हटाने के लिए। उसके बाद क्या होगा, तुम समझ ही सकती हो। बात विश्वास या न विश्वास की नहीं है। बात तो मामला ठीक होने की है। "
मोना चौधरी होंठ भींचकर रह गई।
"अभी आया। " कहते हुए महाजन ने भीड़ में से रास्ता बनाया और निकल गया।
मोना चौधरी भीड़ की चुभती निगाहों को बर्दाश्त करने लगी। लोग खुद हैरान थे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि पांव जमीन से चिपक जाएं और उठें नहीं।
दस मिनट बाद नीलू महाजन लौटा। उसके साथ बूढ़ा व्यक्ति था, करीब अस्सी बरस का। जिसने गले में कई तरह की मालाएं डाल रखी थीं। सिर और दाढ़ी के बाल सफेद थे। माथे पर राख का तिलक लगा रखा था। बदन पर धोती के अलावा कुछ नहीं था। उसकी आंखों में अजीब तरह का 'तेज' महसूस हो रहा था।
उसके आते ही लोग पीछे हो गए।
तांत्रिक ने मोना चौधरी के पांवों को घूरा। करीब आधा मिनट इसी में गुजर गया। फिर वो आगे बढ़ा और नीचे झुकते हुए मोना चौधरी के पांवों को सूंघा। उसके बाद सीधा खड़ा हुआ तो उसका चेहरा सुर्ख बना धधक रहा था।
"लड़की। तेरे पांवों को मंत्रों से बांध दिया है किसी शैतान ने।" तांत्रिक की आवाज मोटी और सख्त थी।
मोना चौधरी की आंखें सिकुड़ीं।
"हो सकता है तुम झूठ कह रहे हो। " मोना चौधरी बोली।
"बेवकूफ!" तांत्रिक दहाड़ा- "मुझ पर शक मत कर'
तभी महाजन कह उठा।
"तांत्रिक बाबा। आप इसे ठीक कर दीजिए। "
“ये तो करूंगा। अभी करूंगा। " तांत्रिक की आवाज में गरज थी— "मैं इसके पांवों से मंत्रों के बंधन खोल दूंगा और ऐसा तावीज दूंगा कि फिर कोई ये काम न कर सके।"
कहने के साथ ही तांत्रिक ने अपना हाथ आसमान की तरफ उठाया और आंखें बंद करके बड़बड़ाने लगा।
लोग हैरानी और उत्सुकता से यह सब देख रहे थे। जो हो रहा था, वो उनके लिए तो अजब तमाशा ही था। ऐसी बातें किताबों में पढ़ी थी, परन्तु आंखों के सामने पहली बार हो रहा था।
तांत्रिक ने बड़बड़ाना बंद किया। आंखें खोलीं। आसमान की तरफ उठा रखा हाथ नीचे किया तो मुट्ठी में राख दबी हुई थी। इस वक्त उसकी आंखें लाल सुर्ख हो रही थीं। उसकी निगाह मोना चौधरी के पांवों पर जा टिकी और धीमे स्वर में वो बड़बड़ाने लगा।
दूसरे ही पल मुट्ठी में दबी राख को मोना चौधरी के पांवों की तरफ फेंक दिया।
मोना चौधरी को अपने शरीर में करंट जैसा जबर्दस्त झटका लगा। वो जोरों से हिली परंतु फौरन ही संभल गई। साथ ही उसे लगा जैसे पांव जमीन से अलग हो गए हों। मोना चौधरी ने अपना पांव उठाया तो उठ गया। दूसरा भी उठाया तो वो भी ठीक था। मोना चौधरी दो कदम आगे बढ़ी।
सब कुछ ठीक हो चुका था।
यहां खड़े लोगों के स्वर गूंजने लगे। शोर सा पड़ गया।
मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब से भावों के साथ मुस्कान उभरी। खुशी की वजह से महाजन के होंठों से हंसी निकल पड़ी।
"लड़की मेरे साथ आ डेरे पर, तेरे को तावीज देता--।"
तांत्रिक अपने शब्द पूरे नहीं कर सका।
ऐसा लगा जैसे हवा का तेज झोंका आया हो। तांत्रिक अपनी जगह से उछला और छः सात कदम दूर लोगों की भीड़ पर जा गिरा।
वहां चीखों-पुकार सी मच गई।
इसके साथ ही मोना चौधरी के पांव पुनः जड़ हो गए।
"महाजन। " - मोना चौधरी तेज स्वर में बोली- "मेरे कदम फिर जमीन से चिपक गए हैं। "
महाजन चौंका। दूसरे ही पल नीचे गिरे पड़े तांत्रिक की तरफ लपका।
पलों में ही वहां का माहौल अजीब सा हो गया।
तभी मोना चौधरी को लगा उसकी दोनों बांहें भी जड़ हो गईं हैं। फिर उसने महसूस किया कि उसकी गर्दन नहीं हिल रही। उसने मुंह खोलना चाहा तो जबड़ा भी अपनी जगह स्थिर हो चुका था। सिर्फ आंखें थीं जो हिल रही थीं। सब कुछ देख रही थीं और दिमाग काम कर रहा था।
दूसरे ही क्षण लोगों ने जो देखा, वो उनकी रूह फना कर देने के लिए काफी था।
जैसे धुआं हवा में घुलकर, गुम हो जाता है।
ठीक उसी तरह मोना चौधरी का शरीर धुआं बनते-बनते सैकिंडों में हवा में घुलकर गायब होता चला गया। मोना चौधरी का शरीर गायब हो चुका था।
जहां वो अभी खड़ी थी। वो जगह खाली थी।
लोगों के मुंह से चीखें तक निकल गईं।
सब हैरानी से उस जगह को देखते रहे। जहां मोना चौधरी खड़ी थी।
महाजन हक्का-बक्का, अजीब सी हालत में, आंखें फाड़े रह गया।
तांत्रिक के चेहरे पर अजीब से भाव आकर ठहर गए थे।
"वो लड़की कहां गई?'
गायब हो गई।" हे भगवान, मैं घर जाकर अपनी बीवी को बताऊंगा तो वो मुझे पागल कहने लगेगी। पहले ही वो बात-बात पर मुझे पागल कहती है आज तो उसे विश्वास ही हो जाएगा कि मैं पक्का पागल हूं।"
जितने मुंह उतनी बातें फिर सुनाई देने लगीं।
महाजन ने घबराकर तांत्रिक को देखा। "वो कहां गई?" महाजन के होंठों से निकला।
"कह नहीं सकता। " तांत्रिक गंभीर था।
"क्या मतलब?"
"वो, जिसने उस लड़की पर 'वार' किया है, वो बहुत बड़ी ताकत का मालिक है। बड़ी शक्तियों का मालिक है। कमजोर होता तो मेरी काट के बाद वो कुछ न कर पाता। अपनी जादुई शक्तियों के दम पर उसने लड़की को गायब कर दिया है।" तांत्रिक शांत-गंभीर स्वर में बोला— "माफ करना नौजवान। मैं लड़की को बचा नहीं सका। मेरी ताकत उस 'वार' करने वाले से बहुत कम है।"
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