बोरीबन्दर के इलाके में वो एक बार था जो कि सेलर्स क्लब के नाम से जाना जाता था । उस जगह का बम्बई के वैसे हाई क्लास ठिकानों से कोई मुकाबला नहीं था लेकिन हाई क्लास ठिकानों जैसा तमाम रख-रखाव - जैसे बैंड की धुन पर अभिसार के गीत गाने वाली हसीना पॉप सिंगर, चायनीज, कन्टीन्टल, मुगलई खाना - अलबत्ता वहां बराबर था । जगह बन्दरगाह से करीब थी इसलिये रात को वो खचाखच भरी पायी जाती थी ।
उस घड़ी रात के बारह बजे थे जब कि क्लब के धुएं से भरे हाल में बैंड बज रहा था, बैंड की धुन पर वहां की पॉप सिंगर टीना टर्नर भीड़ और कदरन शोर-शराबे से बेखबर मशीनी अंदाज में अपना अभिसार का गीत गा रही थी - गा क्या रही थी गाने की औपचारिकता निभा रही थी, गाने के बदले में क्लब के मालिक से मिलने वाली फीस को जस्टीफाई कर रही थी - और मालिक खरवडे बैंड स्टैण्ड के करीब एक खम्बे के सहारे खड़ा बड़े ही अप्रसन्न भाव से उसे देख रहा था ।
नहीं चलेगा । - वो मन-ही-मन भुनभुना रहा था - कैसे चलेगा ! साली उल्लू बनाना मांगती है । मैं नहीं बनने वाला । कैसे बनेगा ! नहीं बनेगा ।
टीना एक खूबसूरत, नौवजान लड़की थी लेकिन मौजूदा माहौल में ऐसा नहीं लगता था कि उसे अपनी खूबसूरती, अपनी नौजवानी, या खुद अपने आप में कोई रुचि थी ।
बैंड स्टैण्ड के करीब की एक टेबल पर चार व्यक्ति बैठे थे जिनमें से एक एकाएक मुंह बिगाड़कर बोला - “साली फटे बांस की तरह गा रही है ।”
“बाडी हाईक्लास है ।” - दूसरा अपलक टीना को देखता हुआ लिप्सापूर्ण स्वर में बोला - “नई ‘एस्टीम’ की माफिक । चमचम । चमचम ।”
“सुर नहीं पकड़ रही ।”
“बनी बढिया हुई है ।” - तीसरा बोला ।
“गला ठीक नहीं है ।”
“क्या वान्दा है !” - दूसरा फिर बोला - “बाकी सब कुछ तो ऐन फिट है । फिनिश, बम्फर, हैंडलाइट्स...”
“टुन्न है ।”
“इसीलिये” - चौथा बोला - “हिल बढिया रही है ।”
“लेकिन गाना...”
“सोले टपोरी ।” - दूसरा झल्लाकर बोला - “गाना सुनना है तो जा के रेडियो सुन, टेप बजा, तवा चला । इधर काहे को आया ?”
“मैं बोला इसका दिल नहीं है गाने में ।”
“गाने में नहीं है न ! लेकिन जिस कन्टेनर में है, उसे देखा ! उसकी बगल वाले को भी देखा ! दोनों को देख । क्या साला, मर्सिडीज की हैडलाइट्स का माफिक...”
तभी बैंड बजना बंद हो गया और टीना खामोश हो गयी । कुछ लोगों ने बेमन से तालियां बजायीं जिन के जवाब में टीना ने उस से ज्यादा बेमन से तनिक झुककर अभिवादन किया और फिर स्टेज पर से उतरकर लम्बे डग भरती हुई हाल की एक पूरी दीवार के साथ बने बार की ओर बढी ।
खरवडे खम्बे का सहारा छोड़कर आगे बढा । टीना करीब पहुंची तो उसने आग्नेय नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
केवल एक क्षण को टीना की निगाह अपने एम्पलायर से मिली, न चाहते हुए भी उसके चेहरे पर उपेक्षा के भाव आये और फिर वो बदस्तूर अपनी मंजिल की ओर बढती चली गयी ।
पहले से अप्रसन्न खरवडे और भड़क उठा । वो कुछ क्षण ठिठका खड़ा रहा और फिर बड़े निर्णायक भाव से टीना के पीछे बार की ओर बढा ।
“जॉनी ! माई लव !” - टीना बार पर पहुंचकर बारमैन से सम्बोधित हुई - “गिव मी ए लार्ज वन ।”
“यस, बेबी ।” - बारमैन उत्साहपूर्ण स्वर में बोला, फिर उसे टीना के पीछे खरवडे दिखाई दिया तो उसका लहजा जैसे जादू के जोर से बदला - “यस, मैडम । राइट अवे, मैडम ।”
बारमैन ने उसके सामने विस्की का गिलास रखा और सोडा डाला । फिर उसने सशंक बढकर टीना के पहुंचा और बोला - “ये ड्रिंक मेरी तरफ से है । जॉनी ! क्या !”
“यस, बॉस ।” - जॉनी बोला - “ऑन दि हाउस ।”
“मैडम से फेयरवैल ड्रिंक का पैसा नहीं लेने का है ।”
टीना का गिलास के साथ होंठों की ओर बढता हाथ ठिठका, उसने सशंक भाव से खरवडे की ओर देखा ।
“क्या बोला ?” - वो बोली ।
“अभी कुछ नहीं बोला । अभी बोलता है ।” - वो जॉनी की तरफ घूमा - “जॉनी !”
“यस, बॉस !”
“गल्ले में से दो हजार रुपये निकाल ।”
बारमैन ने गल्ले में से पांच-पांच सौ के चार नोट निकाले और खरवडे के इशारे पर उन्हें टीना के सामने एक ऐश-ट्रे के नीचे रख दिया ।
“अब बोलता है ।” - खरवडे बोला - “अभी वीक का दूसरा दिन है । फुल वीक का पैसा तेरे सामने है । अब मैं तेरे को फेयरवैल बोलता है ।”
“खरवडे, तू मेरे को, अपनी टीना को, इधर से नक्की होना मांगता है ?”
“हमेशा के लिये । मैं इधर बेवड़ा पॉप सिंगर नहीं मांगता । इधर तेरा काम गाना है, ग्राहकों का काम पीना है । मैं तेरे को अपना काम छोड़कर ग्राहकों का काम करना नहीं मांगता । इसलिये फेयरवैल । गुडबाई । अलविदा । दस्वीदानिया ।”
“ऐसा ?”
“हां, ऐसा ।”
“ठीक है ।” - टीना ने एक ही सांस में अपना गिलास खाली किया - “अपुन भी इधर गाना नहीं मांगता । अपुन भी इधर तेरे फटीचर क्लब में अपना गोल्डन वायस खराब करना नहीं मांगता ।”
“फिर क्या वान्दा है ! फिर तो तू भी अलविदा बोल ।”
“बोला ।” - उसके अपना खाली गिलास जॉनी की तरफ सरकाया जिसमें झिझकते हुए जॉनी ने फिर जाम तैयार कर दिया - “और अपुन तेरा फ्री ड्रिंक नहीं मांगता । जॉनी !” - उसने ऐश-ट्रे समेत दो हजार के नोट जॉनी की तरफ सरका दिये - “ये ड्रिंक्स का पैसा है । बाकी का रोकड़ा मैं तेरे को टिप दिया । मैं । टीना टर्नर । क्या !”
बारमैन ने उलझनपूर्ण भाव से पहले टीना को और फिर अपने बॉस की तरफ देखा ।
“मेरे को क्या देखता है ?” - खरवडे भुनभुनाया - “इसका रोकड़ा है । चाहे गटर में डाले, चाहे तेरे को टिप दे ।”
“यस ।” - टीना दूसरा जाम भी खाली करने के उपक्रम में बोली - “अपुन का रोकड़ा है । अपुन कमाया । अपुन साला इधर अक्खी रात गला फाड़-फाड़कर कमाया । अपुन इसे गटर में डाले, चाहे टिप दे । अपुन जॉनी को टिप दिया । जॉनी !”
“यस, मैडम ।”
“अपुन क्या किया ?”
“मेरे को टिप दिया ।”
“तो फिर रोकड़ा इधर क्या करता है ?”
“पण, मैडम...”
“ज्यास्ती बात नहीं मांगता । अपुन इधर कभी तेरे को टिप नहीं दिया । आज देता है । आज पहली और आखिरी बार इधर अपुन तेरे को टिप देता है । और तेरे को गुडबाई बोलता है । तेरे को जॉनी, तेरे बॉस को नहीं । क्या !”
जॉनी ने सहमति में सिर हिलाया लेकिन नोटे की तरफ हाथ न बढाया ।
“जॉनी ?” - टीना भर्राये कण्ठ से बोली - “तू अपुन का दिल रखना नहीं मांगता ?”
जॉनी ने हौले से ट्रे के नीचे से नोट खींच लिये ।
“दैट्स लाइक ए गुड ब्वाय ।” - टीना हर्षित स्वर में बोली ।
“टीना” - खरवडे ने हौले से उसके कन्धे पर रखा और कदरन जज्बाती लहजे से बोला - “तू सुधर क्यों नहीं जाती ?”
टीना ने तत्काल उत्तर न दिया । उसने गिलास से विस्की का एक घूंट भरा और धीरे से बोली - “अब उम्र है मेरी सुधरने की !”
“क्या हुआ है तेरी उम्र को ? बड़ी हद बत्तीस होगी ।”
“उनत्तीस । ट्वन्टी नाइन ।”
“तो फिर ?”
“तो फिर ?” - टीना ने दोहराया - “तो फिर ये ।”
उसने एक सांस में अपना विस्की का गिलास खाली कर दिया ।
खरवडे ने असहाय भाव से गरदन हिलायी और फिर बदले स्वर में बोला - “लॉकर की चाबी पीछे छोड़ के जाना ।”
वो बिना टीना पर दोबारा निगाह डाले लम्बे डग भरता वहां से रूख्सत हो गया ।
टीना भी वहां से हटी और पिछवाड़े में उस गलियारे में पहुंची जहां क्लब के वर्करों के लिये लॉकरों की कतार थी । उसने चाबी लगाकर अपना लॉकर खोला और फिर वहीं अपना सलमे सितारों वाला झिलमिल करता स्किन फिट काला गाउन उतारकर उसकी जगह एक जीन और स्कीवी पहनी । लॉकर का सारा सामान एक बैग में भरकर उसने बैग सम्भाला और पिछवाड़े के रास्ते से ही क्लब की इमारत से बाहर निकल गयी । इमारत के पहलू की एक संकरी गली के रास्ते इमारत का घेरा काटकर वो सामने मुख्य सड़क पर पहुंची ।
रोशनियों से झिलमिलाती उस सड़क पर आधी रात को भी चहल-पहल की उसके लिये क्या अहमियत थी ! वो तो भीड़ में भी तनहा थी ।
बैग झुलाती वो फुटपाथ पर आगे बढी ।
“टीना !”
वो ठिठकी, उसने घूमकर पीछे देखा ।
बारमैन, जॉनी उसकी तरफ लपका चला आ रहा था ।
टीना असमंजसपूर्ण भाव से उसे देखती रही ।
जॉनी उसके करीब आकर ठिठका ।
“क्या बात है ?” - टीना बोली ।
“मैं सोचा था” - जॉनी तनिक हांफता हुआ बोला - “कि तू बार पर से होकर जायेगी । मैं तेरे वास्ते ड्रिंक तैयार करके रखा । वन फार दि रोड । लास्ट वन फार दि रोड ।”
“ओह ! हाऊ स्वीट ! बट नैवर माइन्ड । आई हैड ऐनफ । रादर मोर दैन ऐनफ । जरूरत से ज्यादा । तभी तो नौकरी गयी ।”
“अब तू क्या करेगी ?”
“पता नहीं ।”
“कहां जायेगी ?”
उसे उस टेलीग्राम की याद आयी जो उसे शाम को मिली थी और जिसे वो पता नहीं कहां रख के भूल गयी थी । ‘माई डियर डार्लिंग टीना’ से शुरु होकर जो ‘ओशंस एण्ड ओशंस ऑफ लव फ्रॉम युअर बुलबुल’ पर जाकर खत्म हुई थी ।
“गोवा ।” - वो बोली ।
“कब ?” - जॉनी बोला ।
“फौरन ।”
“वहां क्या है ? कोई नयी नौकरी ?”
“नहीं ।”
“तो ?”
“पुरानी यादों के खंडहर । खलक खुदा का । हुक्म बादशाह का ।”
“बादशाह !”
“और मैं रिआया । चन्द दिन की मौजमस्ती, चन्द दिन की रंगरेलियां । फिर वही अन्धेरे बन्द कमरे, तनहा सड़कें, बेसुरे गाने, हारी-थकी गाने वाली और फेयरवैल ड्रिंक ।”
“तेरी बातें मेरी समझ से बाहर हैं । पण मैं गॉड आलमाइटी से तेरे लिये दुआ करेगा । मैं इस सन्डे को चर्च में तेरे वास्ते कैंडल जलायेगा । आई विश यू आल दि बैस्ट इन युअर कमिंग लाइफ । आई विश यु ए हैप्पी जर्नी, टीना ।”
“ओह, थैंक्यू । थैंक्यू सो मच, जॉनी । मुझे खुशी हुई ये जानकर कि मेरे लिये विश करने वाला कोई तो है इस दुनिया में । थैंक्यू, जॉनी । एण्ड गॉड ब्लैस यू ।”
“और ये ।”
जॉनी ने उसकी तरफ एक बन्द लिफाफा बढाया ।
“ये क्या है ?” - टीना सशंक भाव से बोली ।
“कुछ नहीं । गुड बाई, टीना । एण्ड गुड लक ।”
वो घूमा और लम्बे डग भरता हुआ वापिस क्लब की ओर बढ गया ।
टीना तब तक उसे अपलक देखती रही जब तक कि वो क्लब में दाखिल होकर उसकी निगाहों से ओझल न हो गया । फिर उसने हाथ में थमे लिफाफे को खोला और उसके भीतर झांका ।
लिलाफे में पांच-पांच सौ के चार नोट थे ।
आंसुओं की दो मोटी-मोटी बूंदें टप से लिफाफे पर टपकीं ।
***
कनाट प्लेस की एक बहुखंडीय इमारत की दूसरी मंजिल पर वो अत्याधुनिक, वातानुकूलित ऑफिस था जो कि विकास निगम का लक्ष्य था । हमेशा की तरह वो ऑफिस के शीशे के प्रवेशद्वार पर ठिठका जिस पर सुनहरे अक्षरों में अंकित था -
एशियन एयरवेज
ट्रैवल एजेन्ट्स एण्ड टूर ऑपरेटर्स
एन्टर
वो ऑफिस सुनेत्रा निगम को मिल्कियत था जिसका कि वो लाडला पति था ।
एक कामयाब, कामकाजी महिला का निकम्मा, नाकारा पति ।
सुनेत्रा उसका वहां आना पसन्द नहीं करती थी लेकिन आज उसके पास उस टेलीग्राम की सूरत में बड़ी ठोस वजह थी जो कि निजामुद्दीन में स्थित उनके फ्लैट पर उस रोज सुनेत्रा की गैरहाजिरी में पहुंची थी ।
वो ऑफिस में दाखिल हुआ । रिसैप्शनिस्ट को नजरअन्दाज करता हुआ वो ऑफिस के उस भाग में पहुंचा जहां एशियन एयरवेज की मैनेजिंग डायरेक्टर सुनेत्रा निगम का निजी कक्ष था ।
“मैडम बिजी हैं ।” - सुनेत्रा की प्राइवेट सैक्रेट्री उसे देखते ही सकपकायी-सी बोली ।
“हमेशा ही होती हैं ।” - विकास बोला और रिसैप्शनिस्ट के मुंह खोल पाने से पहले वो दरवाजा खोलकर भीतर दाखिल हो गया जिस पर कि उसकी बीवी के नाम के पीतल के अक्षरों वाली नेम प्लेट लगी हुई थी ।
सुनेत्रा फोन पर किसी से बात करने में व्यस्त थी ।
विकास उसकी कुर्सी के पीछे पहुंचा और बड़े दुलार से उसके भूरे रेशमी बालों में उंगलियां फिराने लगा । सुनेत्रा ने अपने खाली हाथ से उसके हाथ परे झटके और अपनी विशाल टेबल के आगे लगी विजिटर्स चेयर्स की तरफ इशारा किया । विकास ने लापरवाही से कन्धे झटकाये और बेवजह मुस्कराता हुआ परे हटकर एक कुर्सी पर ढेर हो गया । टेलीग्राम जेब से निकालकर उसने हाथ में ले ली । फिर वो अपलक अपनी खूबसूरत बीवी का मुआयना करने लगा जो कि उसी की उम्र की, लगभग तीस साल की, साढे पांच फुट से निकलते कद की, छरहरे बदन वाली गोरी-चिट्टी युवती थी । उसके चेहरे पर एक स्वाभाविक रोब था जो - सिवाय विकास के - हर किसी पर अपना असर छोड़ता था ।
खुद विकास भी कम आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी नहीं था । फैशन माडल्स जैसी उसकी चाल थी और फिल्म स्टार्स जैसा वो खूबसूरत था लेकिन अपनी पोशाक के मामले में वो आदतन लापरवाह रहता था । उस घड़ी भी वो एक घिसी हुई जीन और गोल गले की काली टी-शर्ट के साथ उससे ज्यादा घिसी हुई बिना बांहों की जैकेट पहने था ।
सुनेत्रा ने रिसीवर फोन पर रखा और उसकी तरफ आकर्षिक होती हुई अप्रसन्न भाव से बोली - “यहां क्यों चले आये ? मैंने कितनी बार बोला है कि...”
“जरूरी था, हनी ।” - विकास मीठे स्वर में बोला ।
“जरूरी था तो हुलिया तो सुधार के आना था । ढंग के कपड़े तो पहनकर आना था ।”
“टाइम कहां था ! ये अर्जेंट टेलीग्राम थी तुम्हारे नाम । मिलते ही दौड़ा चला आया मैं यहां ।”
“टेलीग्राम !”
“अर्जेंट । हेयर ।”
सुनेत्रा ने उसके हाथ से टेलीग्राम का लिफाफा ले लिया जो कि खुला हुआ था । उसने घूरकर अपने पति को देखा ।
“मैंने नहीं खोला ।” - विकास जल्दी से बोला - “पहले से ही खुला था । ऐसे ही आया था ।” - उसने अपने गले की घण्टी को छुआ - “आई स्व‍ियर ।”
सुनेत्रा को उसकी बात पर रत्ती-भर भी विश्वास न आया लेकिन उसने उस बात को आगे न बढाया । उसने लिफाफे में से टेलीग्राम का फार्म निकाला और सबसे पहले उस पर से भेजने वाले का नाम पढा । तत्काल उसके चेहरे पर बड़ी मधुर मुस्कराहट आयी । फिर उसने जल्दी-जल्दी टेलीग्राम की वो इबारत पढी जिसे कि वो सालों से पढती आ रही थी । केवल आखिरी फिकरा उस बार तनिक जुदा था जिसमें लिखा था: ‘आगमन की पूर्वसूचना देना ताकि मैं पायर से तुम्हें पिक करने के लिये गाड़ी भिजवा सकूं । विद माउन्टेंस आफ लव, यूअर्स बुलबुल’ ।
“फिदा है तुम पर ।” - विकास धीरे-से बोला ।
“कौन ?” - सुनेत्रा टेलीग्राम पर से सिर उठाती हुई बोली ।
“बुलबुल ।”
“यानी कि टेलीग्राम पढ चुके हो ?”
“खुली थी इसलिये गुस्ताखी हुई ।”
“जब पढ ही ली थी तो यहां दौड़े चले आने की क्या जरूरत थी ? फोन पर मुझे भी पढकर सुना देते ।”
“फोन खराब था ।”
“अच्छा ।”
“यू नो दीज महानगर निगम टेलीफोन्स । अपने आप बिगड़ जाते हैं, अपने आप चले पड़ते हैं ।”
“आटोमैटिक जो ठहरे ।” - सुनेत्रा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली ।
“वही तो ।” - वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “इस आदमी का तो जुनून बन गया है पार्टियां देना ।”
“हां । लेकिन उसकी ये गोवा की पार्टी कम और पुनर्मिलन समारोह ज्यादा होता है ।”
“हर साल । सालाना प्रोग्राम । जिसमें कि तुम हमेशा शामिल होती तो ।”
“अब तक तो ऐसा ही था लेकिन अपनी मौजूदा मसरूफियात में लगता नहीं कि इस बार मैं गोवा जाने के लिये वक्त निकाल पाऊंगी ।”
“क्यों नहीं निकाल पाओगी ? जरूर निकाल पाओगी । निकालना ही पड़ेगा । हर वक्त काम काम काम काम भी ठीक नहीं होता । वो ‘आल वर्क एण्ड नो प्ले’ वाली मसल सुनी है न तुमने ?”
“हां ।” - वो अनमने स्वर में बोली ।
“तुम्हें जरूर आना चाहिये । इसी बहाने चन्द रोज की तफरीह हो जायेगी और... पुनर्मिलन भी हो जायेगा ।”
“किस से ?”
“मेहमानों से । मेजबान से ।”
“विकी, तुम भूल रहे हो कि बुलबुल ब्रान्डो छप्पन साल का है ।”
“आई अन्डरस्टैण्ड । वो छप्पन का हो या छब्बीस का, यू मस्ट गो ।”
“मेरी तफरीह में तुम्हारी कुछ खास ही दिलचस्पी लग रही है ।”
“खास कोई बात नहीं ।”
“कहीं ऐसा तो नहीं कि मुझे तफरीह के लिए भेजकर तुम पीछे खुद तफरीह करने के इरादे रखते होवो ।”
“कैसी तफरीह ?”
“वैसी तफरीह जिसके लिये मुझे यकीन है तुम कम-से-कम कोई छप्पन साल की औरत नहीं चुनोगे ।”
“ओह नो । नैवर ।”
“ऐसा कोई इरादा हो तो एक वार्निंग याद रखना । मैं बड़ी हद सोमवार तक वापिस आ जाऊंगी ।”
“जब मर्जी आना । मैं खुद ही तुम्हारी गैर-हाजिरी में यहां नहीं होऊंगा ।” - वो एक क्षण ठिठका और बोला - “कर्टसी माई लविंग वाइफ ।”
“क्या मतलब ? कहीं तुम्हें भी तो कहीं किसी बुलबुल का बुलावा नहीं है ?”
“नो सच थिंग । वो क्या है कि अख्तर ने आज आगरे से फोन किया था ।”
“किस बाबत ?”
“उस टयोटा की बाबत जिसका मैंने तुमसे जिक्र किया था । वाइट टयोटा । एक्सीलेंट कंडीशन । वैरी लो माइलेज । ओनर ड्रिवन । ऐज, गुड ऐज न्यू । लॉट आफ असेसिरीज । कीमत सिर्फ छ: लाख रुपये ।”
“छ... छ: लाख !”
“मालिक पौने सात मांगता था । अख्तर ने बड़ी मुश्क‍िल से छ: पर पटाया है ।”
“लेकिन छ:...”
“मैं कुछ नहीं जानता । मुझे ले के दो ।” - विकास ने यूं मुंह बिसूरा जैसे कोई बच्चा किसी पसन्दीदा खिलौने के लिये मचल रहा हो ।
“अच्छी बात है ।”
“ओह डार्लिंग” - विकास उछलकर कुर्सी से उठा और बांहें फैलाया उसकी तरफ बढा - “यू आर ग्रेट । आई लव यू । आई...”
“खबरदार ! वहीं बैठे रहो ।”
विकास के जोश को ब्रेक लगी ।
“ये ऑफिस है । मालूम !”
“ओह !”
“सुनो । मैं चाहती हूं कि तुम अभी भी अपने फैसले के बारे में फिर से सोच लो । तुम जानते हो कि मौजूदा हालात में हम वो कार अफोर्ड नहीं कर सकते ।”
“यानी कि तुम मुझे अफोर्ड नहीं कर सकतीं !”
“वो बात नहीं लेकिन वो क्या है कि...”
“क्या है ?”
“कुछ नहीं ।”
“डार्लिंग, मुझे पूरा यकीन है कि तुम मुझे मायूस नहीं करोगी । नहीं करोगी न !”
“यानी कि अपनी जिद छोड़ने को तैयार नहीं हो ?”
“मेरी जिद की क्या कीमत है !” - वो यूं बोला जैसे अभी रो देने लगा हो - “लेकिन तुम इनकार करोगी तो मेरी जिद तो अपने आप ही छूट जायेगी । लेकिन फिर मेरा तुम्हें चान्दनी, रात में चान्दनी जैसे सफेद टयोटा पर आगरा घुमाकर लाने का सपना भी टूट जायेगा और फिर...”
“ओके । ओके । मैं करती हूं कोई इन्तजाम ।”
“आज ही ?”
“हां, भाई । आज ही ।”
“बढिया । फिर तो मैं कल सुबह सवेरे ही आगरे के लिए रवाना हो जाऊंगा और फिर हमारी सफेद टयोटा पर मैं सीधा गोवा तुम्हारे पास पहुचूंगा और आगरे के ही रास्ते - आई रिपीट, आगरे के ही रास्ते - शाहजहां और मुमताज महल को विशी-विशी करते तुम्हें वापिस लेकर आऊंगा । हमारी सफेद टयोटा पर । नो ?”
“यस ।” - सुनेत्रा उत्साहहीन स्वर में बोली ।
“डार्लिंग, आई लव यू । आई अडोर यू । आई वरशिप दि ग्राउन्ड यू वाक आन ।”
***
बैंगलोर एयरपोर्ट के वेटिंग लाउन्ज के एक कोने में भुनभुनाती-सी शशिबाला बैठी थी और बार-बार बेचैनी से पहलू बदल रही थी । उसकी बगल में एक ठिगना-सा, लम्बे बालों वाला और बड़े-बड़े शीशों वाले चश्मे वाला, सिग्रेट के कश लगाता एक व्यक्ति बैठा था जो कि लोकेशन शूटिंग पर बम्बई से बैंगलौर आयी शशिबाला का सैक्रेट्री था ।
शशिबाला हिन्दी फिल्मों की मशहूर हीरोइन थी ।
जिस प्लेन के इन्तजार में वो बैठे थे, उसने गोवा से आना था और फिर तत्काल लौटकर गोवा जाना था । प्लेन अभी गोवा से ही नहीं आया था इसलिये जाहिर था कि उसकी रिटर्न फ्लाइट काफी लेट होने वाली थी जिसकी वजह से कि शशिबाला का मूड उखड़ा जा रहा था ।
“आ गया ।” - एकाएक सैक्रेट्री बोला ।
“कौन ?” - हीरोइन भुनभुनायी ।
“प्लेन । अब बड़ी हद आधा घण्टा और लगेगा ।”
“शुक्र है ।”
“पीछे शूटिंग का हर्जा होगा ।”
हीरोइन के गुलाब की पंखड़ियों से खूबसूरत होंठों से भद्दी गाली निकली ।
“गोवा जाना टल नहीं सकता ?”
“नहीं । पहले ही बोला । सौ बार ।”
“ये ब्रान्डो तुम्हारा कोई सगेवाला निकल आया मालूम पड़ता है ।”
“हां । बाप है मेरा । हाल ही में पता चला ।”
वो हंसा ।
“हंसो मत ।” - हीरोइन डपटकर बोली ।
सैक्रेट्री की हंसी को तत्काल ब्रेक लगी । वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “बाप है या बड़ा बाप है ?”
“बड़ा बाप ?”
“शूगर डैडी ?”
“वो कौन हुआ ?”
“वाह मेरी भोली मलिका । फिल्मों की दुनिया में बसती हो । बड़ा बाप नहीं जानतीं । शूगर डैडी नहीं जानतीं ।”
“धरम” - वो उसे घूरती हुई बोली - “तुम मेरा इम्तहान ले रहो हो !”
“ओह नो, बेबी । नैवर ।”
“तो बोलो क्या फर्क हुआ ?”
“बाप जिन्दगी देता है । बड़ा बाप उर्फ शूगर डैडी जिन्दगी को जीने लायक बनाकर देता है । गाड़ी, बंगला, बैंक बैलेंस, ऐशोइशरत से नवाजता है ।”
“ओह, शटअप । ब्रान्डो ऐसा आदमी नहीं । उसने मेरे पर क्या, कभी किसी भी लड़की पर नीयत मैली नहीं की । ही इज वैरी स्ट्रेट, वैरी आनरेबल, वैरी लवेबल ओल्डमैन । वो तो कोई पीर पैगम्बर है ।”
“चिकनी सूरत पर पीर-पैगम्बर का भी ईमान डोल जाता है ।”
“अरे, मैं कोई पहली चिकनी सूरत नहीं जो उसने देखी है । ब्रान्डो की तमाम बुलबुलें एक से एक बढकर खूबसूरत हैं । मेरे से तो यकीनन सब की सब ज्यादा खूबसूरत हैं ।”
“फिर भी हीरोइन सिर्फ तुम बनीं ।”
“इसमें मेरा क्या कमाल है ! सब बन सकती थीं । तुम्हीं कान्ट्रैक्ट लेकर उनके पीछे-पीछे घूमा करते थे । खास तौर से मोहिनी पाटिल के पीछे । बाकी न मानीं, मैं मान गयी । वो मान जातीं तो वो भी बन जातीं ।”
“यानी कि तुम्हारे और उस बुलबुल बान्ड्रो के बीच में ऐसा-वैसा कुछ नहीं ?”
“नहीं । न है, न था, न कभी होगा ।”
“बेबी, वो तुम्हारा गॉडफादर नहीं, तुम्हारा शूगर डैडी नहीं, तुम्हारा शैदाई नहीं, फिर भी उसमें ऐसी क्या खूबी है जो कि टेलीग्राम के जरिये उसकी एक पुकार पर गोवा दौड़ी चली जाती हो । शूटिंग छोड़कर । हर साल !”
“तुम नहीं समझोगे ।”
“लेकिन शूटिंग...”
“मैं सोमवार तक लौट आऊंगी ।”
“तब तक प्रोड्यूसर मेरा कीमा बना देगा ।”
“कोई बात नहीं । मैं कोई दूसरा सैक्रेट्री ढूंढ लूंगी ।”
सैकेट्री ने आहत भाव से उसकी तरफ देखा ।
तत्काल हीरोइन के चेहरे पर एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट आयी ।
“सारी ।” - वो अपने सैक्रेट्री का हाथ अपने हाथ में लेकर दबाती हुई बोली - “मेरा ये मतलब नहीं था । तुम जानते हो मेरा ये मतलब नहीं था ।”
“जानता हूं ।”
“ऐसे मुंह सुजाकर मत कहो । जरा हंस के बात करो अपनी हीरोइन से ।”
“जानता हूं ।” - वो यूं मुस्कराता हुआ बोला जैसे इतने से ही निहाल हो गया हो ।
“से यू लव मी ।”
“आई लव यू ।”
“टैल मी टु हैव फन ।”
“हैव लाट्स एण्ड लाट्स ऑफ फन, हनी ।”
“दिल से कहो ।”
“दिल से ही कहा है ।”
“मैं सोमवार तक हर हाल में लौट आऊंगी ।”
“बढिया ।”
“तुम्हें ब्रान्डो से जलन तो नहीं हो रही ?”
“ज्यादा नहीं हो रही । बस उतनी ही हो रही है जितनी किसी को गोली मार देने का इरादा कर लेने के लिए काफी होती है ।”
“ओह नो । नॉट अगेन । धरम, प्लीज । नाट अगेन ।”
“मैं मजाक कर रहा था ।”
“मजाक कर रहे थे तो ठीक है ।”
“तुम्हारी फ्लाइट की अनाउन्समैंट हो रही है ।”
“शुक्र है ।”
वो उठकर खड़ी हुई तो सैक्रेट्री भी उठा । शशिबाला इतनी लम्बी थी और पिद्दी-सा सैक्रेट्री इतना ठिगना था कि आमने-सामने खड़े होने पर वो शशिबाला की ठोड़ी तक भी नहीं पहुंचता था । शशिबाला ने झुककर उसके एक गाल पर चुम्बन अंकित किया, दूसरे गाल पर चिकोटी काटी और फिर बड़े अनुरागपूर्ण भाव से उसके कान में फुसफुसाई - “सी यू, डार्लिंग ।”
फिर वो उससे परे हटकर लाउन्ज के रन वे की तरफ खुलने वाले दरवाजे की ओर दौड़ चली ।
सैक्रेट्री उदास-सा पीछे खड़ा उसे मुसाफिरों की भीड़ में विलीन होता देखता रहा ।
***
चण्डीगढ में वहां के भीड़ भरे इलाके सैक्टर सत्तरह पर स्थ्‍िात ‘लीडो’ नामक कैब्रे जायन्ट में आधी रात को वैसी ही भीड़ थी जैसी कि वहां हमेशा होती थी । जो कैब्रे डांसर ‘लीडो’ की स्टार अट्रैक्शन थी उसका असली नाम फौजिया खान था लेकिन वो वहां प्रिंसेस शीबा के नाम से जानी जाती थी और ऐन काहिरा से आयातित बतायी जाती थी । उस घड़ी स्टेज पर उसका उस रात का आखिरी डांस चल रहा था जिसमें उसके साथ तीन पुरुष-डांसर भी डांस कर रहे थे । बैंड की ऊंची धुन पर अपने सह-नर्तकों के बीच उसका गोरा, लम्बा, भरपूर जिस्म नागिन की तरह बल खाता लग रहा था । शोर-शराबे का ये आलम था कि कितनी ही बार उसमें बैंड की आवाज भी दब जाती थी । प्रिेंसेस शीबा झूम-झूमकर नाच रही थी, दर्शक तालियां बजा रहे थे, पैरों से फर्श पर बैंड के साथ थाप दे रहे थे और जोश में आपे से बाहर हुए जा रहे थे । फौजिया के उस आखिरी डांस में उसके साथ तीन युवा नर्तकों की ये भी अहमियत थी कि वो केवल नर्तक ही नहीं थे, बड़े हट्टे-कट्टे कड़ियल जवान थे जो कि किसी दर्शक के सच में ही आपे से बाहर हो जाने की सूरत में फौजिया की हर तरह से हिफाजत कर सकते थे । यानी कि रात की उस आखिरी परफारमेंस के दौरान उनका रोल सह-नर्तकों वाला कम था और बॉडी-गार्ड्स वाला ज्यादा था । नशे में या जोश में फौजिया पर झपट पड़ने वाला कोई भी शख्स वहां हाथ-पांव तुड़ा सकता था ।
बैंड की तेज धुन पर तेज रफ्तार डांस के दौरान फौजिया के हाथ उसकी पीठ पीछे पहुंचे और फिर उसने अपनी अंगिया उतारकर दर्शकों के बीच हवा में उछाल दी । उसके उन्नत उरोज अंगिया के बन्धन से मुक्त होते ही यूं झूमकर उछले कि दर्शकों की सांसें रुकने लगीं, आंखें फटने लगीं ।
फिर बैंड ड्रम्स के फाइनल रोल के साथ फौजिया ने कमर तक झुककर दर्शकों का अभिवादन किया और दौड़कर शनील के भारी पर्दे के पीछे पहुंच गयी । उसके सह-नर्तकों ने उसका अनुसरण किया ।
हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा ।
पर्दे के पीछे वस्तुत: एक ड्रैसिंग रूम था । फौजिया ने वहां से एक तौलिया उठाया और हांफती हुई जिस्म का पसीना और चेहरे का मेकअप पोंछने लगी । उसके नग्न शरीर से न केवल वो खुद बेखबर थी उसके सह-नर्तक भी बेखबर थे । आखिर वो रोज की बात थी, रोजमर्रा का नजारा था ।
“शीबोजान” - एक नर्तक बोला - “आज तो तूने कमाल कर दिया !”
“अच्छा !” - फौजिया निर्विकार भाव से बोली ।
“आज तो बाहर हाल में सैलाब आ सकता था लोगों की टपकती लार की वजह से ।”
“यू आर रीयल हॉट स्टफ, बेबी ।” - दूसरा बोला ।
“सैन्सेशनल !” - तीसरा बोला ।
फौजिया मशीनी अंदाज से मुस्कराई और फिर कपड़े पहनने लगी ।
“प्रोपराइटर कह रहा था” - पहला बोला - “कि तू कहीं जा रही है ?”
“हां ।” - फौजिया बोली - “कुछ दिनों के लिये ।”
“वो तो होगा ही ।” - दूसरा बोला - “हमेशा के लिये क्या हम तुझे कहीं जाने देंगे ?”
“ऐसा करेगी भी” - तीसरा बोला - “तो हम भी तेरे साथ चलेंगे ।”
“कहां ?” - फौजिया विनोदपूर्ण स्वर में बोली ।
“जहां कहीं भी तू जायेगी ।”
“वैसे तू जा कहां रही है ?” - पहला उत्सुक भाव से बोला ।
“गोवा ।”
“क्यों जा रही है ?”
“वहां एक पार्टी है जिसमें मैं भी इनवाइटिड हूं ।”
“कोई खास ही पार्टी होगी !”
“हां । खास ही है ।”
“मेजबान भी खास ही होगा !”
“हां । बुलबुल ब्रान्डो । नाम सुना होगा ।”
“नहीं । कभी नहीं सुना ।”
“नैवर माइन्ड ।”
“कब जा रही है ?” - दूसरा बोला ।
“कल । सुबह-सवेरे । बाइस सैक्टर में मेरे घर के करीब से ही सुबह छ: बजे एक डीलक्स टूरिस्ट बस चलती है । उसमें मेरी सीट बुक है ।”
“तू गोवा तक बस पर जायेगी ?”
“ईडियट ! दिल्ली तक बस पर जाऊंगी । आगे आई.जी. एयरपोर्ट से पणजी की फ्लाइट पकडूंगी ।”
“वहां पार्टी में तेरी कैब्रे परफारनेंस है ?” - तीसरा बोला ।
“नैवर ।” - फौजिया आंखें तरेरकर उसको घूरती हुई बोली - “वो एक इज्जतदार आदमी की इज्जतदार पार्टी है और मैं वहां की इज्जतदार मेहमान हूं । समझे !”
“अपनी प्रिंसेस शीबा ! लीडो की कैब्रे डांसर ! इज्जतदार मेहमान !”
“नो शीबा । लीडो । नो कैब्रे । नो नथिंग । सिर्फ फौजिया खान ।” - वो गर्व से बोली - “फौजिया खान । ब्रान्डो की खास मेहमान । जिसे उसने स्पेशल अर्जेन्ट टेलीग्राम देकर इनवाइट किया । मेरा दर्जा उधर गोवा में वी.वी.आई.पी. का है । समझे तुम उछलने-कूदने वाले बंदर लोग !”
तत्काल सबको सांप सूंघ गया । फौजिया के मिजाज में आया वो बदलाव उनके लिए अप्रत्याशित था ।
फिर सिर झुकाये, एक-एक करके वो वहां से खिसकने लगे ।
***
फर्स्ट क्लास के कम्पार्टमैंड में संयोगवश वो वृद्धा अकेली बैठी थी जब कि फिल्म अभिनेत्रियों जैसी चकाचौंध वाली एक युवती पूना स्टेशन से उस कम्पार्टमैंट में सवार हुई थी । स्टेशन पर जो शख्स उसे छोड़ने आया था, वो ट्रेन की रवानगी से पहले उससे गले लगकर मिली थी और गाड़ी की रफ्तार पकड़ लेने के बाद काफी देर तक भावविह्रल नेत्रों से पीछे स्टेशन की ओर देखती रही थी ।
युवती तनिक सैटल हुई तो वृद्धा मीठे स्वर में बोली - “मैं सांगली तक जा रही हूं ।”
“मैं आखिर तक ।” - युवती धीमे किन्तु मीठे स्वर में बोली - “वास्को-डि-गामा ।”
“सैर करने जा रही हो ?”
“नहीं । वहां एक पार्टी है ।”
“वास्को-डि-गामा में ?”
“नहीं । आगे फिगारो आइलैंड पर ।”
“पार्टी रिश्तेदारी में होगी ?”
“नहीं । वो एक री-यूनियन पार्टी है ।”
“ओह ! कालेज के पुराने सहपाठियों की ?”
“नहीं । वो क्या है कि कालेज तक तो मैं पहुंची ही नहीं थी ।”
“पहले ही शादी हो गयी होगी ?”
“नहीं । शादी तो अभी सिर्फ चार साल पहले हुई है ।”
“वो सजीला-सा नौजवान जो तुम्हें गाड़ी पर चढाने आया था, जरूर तुम्हारा पति होगा ?”
“हां ।”
“अभी कोई” - वृद्धा उसके एकदम पीठ से लगे सुडौल पेट को निहारती हुई बोली - “बच्चा हुआ नहीं मालूम होता ।”
“ठीक पहचाना ।” - युवती तनिक हंसती हुई बोली ।
“फिगर खराब हो जाती है, इसलिये ?”
“नहीं, नहीं । वो बात नहीं ।”
“तुम कोई फिल्म स्टार हो ?”
“नहीं ।”
“तो जरूर को फैशन माडल हो ।”
“कभी थी । सात-आठ साल पहले तक । अब तो सब छोड़-छाड़ दिया ।”
“पति ने छुड़वा दिया होगा !”
“नहीं, वो बात नहीं । माडलिंग का एक दौर था जो एकाएक शुरु हुआ था और फिर कोई सात-आठ साल पहले एकाएक ही खत्म हो गया था ।”
“अच्छा !”
“हां । वो क्या है कि तब फैशन गारमैंट्स के क्रिश्च‍ियन डायोर, पियरे कार्दिन, जियानी वरसाचे जैसे प्रसिद्ध विदेशी व्यापारियों का और उनके संसार प्रसिद्ध ब्रांड नेम्स का ताजा-ताजा ही भारत में आगमन हुआ था । उन विदेशी कम्पनियों के बनाये गारमैंट्स की तब दो साल तक भारत के तमाम बड़े शहरों में फैशन परेड हुई थीं । तब हम आठ लड़कियां थीं जो उन फैशन परेडों में हिस्सा लिया करती थीं । बहुत मशहूरी हुई थी हमारी । हम ब्रांडो की बुलबुलें कहलाती थीं और तब भारत का बच्चा-बच्चा हमें जान गया था ।”
“ब्रान्डो की बुलबुलें ! - वृद्धा ने मन्त्रमुग्ध भाव से दोहराया - “अजीब नाम है ।”
“ब्रान्डो की जिद थी कि हम इसी नाम से जानी जायें ।”
“ब्रान्डो कौन ?”
“बुलबुल ब्रान्डो । बहुत रईस आदमी है । पार्टियां देना उसका खास शौक है । फैशन शोज का वो सिलसिला तो कब का खत्म हो चुका है लेकिन वो आज भी हर साल आजकल के सुहाने मौसम में हम सबको यूं फिगारो आइलैंड पर स्थ‍ित अपने मैंशन में इनवाइट करता है जैसे वो अपने परिवार के नजदीकी रिेश्तेदारों का पुनर्मिलन आयोजित कर रहा हो । आठ साल से मुतवातर चल रहा है ये सालाना सिलसिला । कभी ब्रेक नहीं आया ।”
“ओह ! तो पुरानी तमाम सहेलियां अपने वाली हैं !”
“उम्मीद तो है ।”
“ये बुलबुल ब्रान्डो गोवा में ही रहता है ?”
“सिर्फ दो महीने । बाकी अरसा इटली, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, जर्मनी वगैरह में गुजारता है ।”
“बहुत रईस आदमी होगा !”
“हां । बहुत रईस । फिल्दी रिच ।”
“कारोबार क्या है उसका ?”
“ऐश करना । देश-विदेश की सैर करना । पार्टियां आयोजित करना ।”
“ये तो शौक हुए न ! मेरा सवाल कारोबार की बाबत था ।”
“कारोबार भी यही है । खानदानी रईस है । करोड़ों, अरबों की दौलत का इकलौता वारिस है ।”
“तभी तो ।”
“वो दौलत को ऐसी निकम्मी चीज मानता है जिसको अगर और दौलत कमाने के लिये इस्तेमाल न किया जाये तो जिसका कोई इस्तेमाल नहीं । और और दौलत कमाने की उसकी कोई मर्जी नहीं क्योंकि जितनी दौलत उसके पास है, वो कहता है कि उससे वो ही नहीं सम्भलती ।”
“ऐसे रंगीले राजा के यहां तुम्हारे पति ने तुम्हें अकेले भेज दिया ?”
“ब्रान्डो बहुत भला आदमी है । उसने अपनी किसी बुलबुल से कभी कोई गलत व्यवहार नहीं किया । तब नहीं किया जब कि फैशन शोज के दौरान हम तमाम लड़कियां पूरी तरह से उसके हवाले थीं और उसके एक इशारे पर उसके लिये कुछ भी करने के लिये बेताब रहती थीं ।”
“यानी कि” - वृद्धा हंसी - “बुलबुलों से बहेलिये को कोई खतरा हो तो ही, बहेलिये से बुलबुलों को कोई खतरा नहीं था । न था, न है ।”
“यही समझ लीजिये ।”
“तभी तुम्हारे पति ने तुम्हें अकेले भेजा वर्ना तुम्हारे साथ आता ।”
युवती हंसी ।
“नाम क्या है तुम्हारा ?”
“आलोका । आलोका बालपाण्डे ।”
“नौ-दस साल पहले के उन फैशन शोज की कुछ-कुछ याद अब मुझे आ रही है जिनमें विदेशी डिजाइनरों के परिधान प्रदर्शित किये जाते थे । मुझे याद पड़ता है कि तब पोशाकों की उतनी वाहवाही नहीं हुई थी जितनी पोशाकें पहनने वाली लड़कियों की ।”
“ठीक याद पड़ता है आपको । तब छा गयी थीं सारे भारत के फैशन सीन पर हम ब्रान्डो की बुलबुलें ।”
“अब तो ये नाम भी मुझे परिचित-सा जान पड़ता है ।” - वृद्धा के माथे पर यूं बल पड़े जैसे वो अपनी याददाश्त पर जोर दे रही हो - “कहीं आज की मशहूर फिल्म स्टार शशिबाला भी तो पहले कभी तुम लोगों में से एक नहीं थी ?”
“थी । वो भी ब्रान्डो की बुलबुल थी ।”
“तो आज की मशूहर फिल्म स्टार कभी तुम्हारी सहेली थी । फैलो बुलबुल थी ।”
“थी । लेकिन तब मेरी उससे ज्यादा नहीं बनती थी । मेरी ज्यादा बनती थी मारिया से । या फिर आयशा से । आयशा से सब की बढिया बनती थी ।”
“यह अब कहां हैं ?”
“आयशा तो अहमदाबाद में है । मेरे से पहले शादी कर ली थी उसने लेकिन घर बसा नहीं बेचारी का । ट्रेजेडी हो गयी ।”
“अरे ! क्या हुआ ?”
“अभी कुछ साल पहले उसके पति की डैथ हो गयी । हार्टफेल हो गया बेचारे का ।”
“ओह !” - वृद्धा विषादपूर्ण स्वर में बोली - “औरत के साथ इस से बड़ा जुल्म और क्या हो सकता है कि उसके सिर पर उसे उसके मर्द का साया उठ जाये !”
आलोका ने सहमति में सिर हिलाया ।
“और वो दूसरी लड़की !” - वृद्धा उत्सुक भाव से बोली - “मारिया !”
“उसने एक अनिवासी भारतीय से शादी कर ली थी जो उसे अपने साथ कैनेडा ले गया था । शादी के बाद से वो एक बार भी इन्डिया वापिस नहीं लौटी ।”
“खुशकिस्मत निकली । आजकल दौलतमंद पति कहां मिलते हैं ।”
“हमें मिलते थे । ब्रान्डो की बुलबुलों के तो पीछे भागते थे दौलतमंद लोग ।”
“फिर तो तुम्हारा पति भी दौलतमंद होगा ?”
“है तो सही ।”
“बिजनेस में है ?”
“हां । कपड़े का बिजनेस है ।”
“नाम क्या है उसका ?”
“रोशन बालपाण्डे । मैं रोशी बुलाती हूं ।”
“सुन्दर नाम है । वो खुद भी बहुत सुन्दर था । मैंने देखा था पूना स्टेशन पर ।”
आलोका मुदित मन में मुस्कराई ।
“एक और भी लड़की थी जो कि, बकौल तुम्हारे, ब्रान्डो की बुलबुल कहलाती थी और जिसका जिक्र मैंने काफी बार अखबारों में पढा था । जहां तक मुझे याद पड़ता है, किसी बड़े मशहूर घराने में उसकी शादी हुई थी । उसके पति के पूर्वजों को, कहते थे कि, प्रीवी पर्स मिलता था ।”
“आप शायद मोहिनी पाटिल की बात कर रही है ।”
“हां, वही । यही नाम था । मोहिनी । मोहिनी पाटिल ।”
“मोहिनी हम सबमें सबसे ज्यादा खूबसूरत थी ।”
“अब भी मिलती है ?”
“नहीं । अब तो सालों से उसकी सूरत नहीं देखी मैंने ।”
“ओह !”
“लेकिन जितनी वो खूबसूरत थी, उतनी ही अभागी निकली ।”
“क्यों, क्या हुआ ?”
“विधवा हो गयी । शादी के थोड़े ही अरसे बाद ।”
“हे भगवान ? क्या हुआ ?”
“एक्सीडेंट । समुद्र में डूब मरा उसका पति । लाश तक बरामद न हुई ।”
“तौबा !”
“आंटी, अब आप अपने बारे में भी तो कुछ बताइये ।”
“हां । जरूर ।”
वृद्धा ने अपने परिचय का एल.पी. शुरु किया तो वो उसकी मंजिल आ जाने पर ही बन्द हुआ ।
***
वो फिगारो आइलैंड के फैरी पायर पर खड़ी उस स्टीमर को देख रही थी जो कि पणजी के कलगूंट बीच और फिगारो आइलैंड के बीच चलता था और अब सवारियां उतारकर वापिस लौटा जा रहा था । स्टीमर काफी दूर निकल गया तो उसके उधर से अपनी तवज्जो हटाई और घूमकर पायर पर रही मौजूद एक टेलीफोन बूथ में दाखिल हो गयी । उसने हुक पर से रिसीवर उतारकर कान से लगाया तो उसे आपरेटर की आवाज सुनायी दी - “नम्बर प्लीज ।”
“बुलबुल ब्रान्डो के बंगले में लगा दो ।” - नम्बर बताने के स्थान पर वो बोली ।
तत्कान नम्बर मिला ।
ब्रान्डो का ऐसा ही प्रताप था उस आइलैंड पर ।
उसे ब्रान्डो के आवाज सुनायी दी तो उसने तत्काल कायन बाक्स में सिक्का डाला और फिर घण्टी जैसी खनकती आवाज में बोली - “हल्लो !”
“बोलिये ।” - उसे ब्रान्डो की आवाज सुनाई दी ।
“डार्लिंग, मैंने कहीं तुम्हें सोते से तो नहीं जगा दिया ! अभी सिर्फ बारह ही बजे हैं न ।”
“हू इज स्पीकिंग, प्लीज ।”
“हनी” - उसने शिकवा किया - “घर आये मेहमान को कहीं ‘हू इज स्पीकिंग’ बोलते हैं ।”
“मोहिनी !” - एकाएक ब्रान्डो के मुंह से आश्चर्चभरी सिसकरी निकली - “मोहिनी ! क्या सच मैं तुम बोल रही हो ?”
“मैं तो हूं, मोहिनी । तुम अपनी बोलो, ब्रान्डो ही हो न ?”
“एट युअर सर्विस, माई हनीपॉट । हमेशा की तरह ।”
“थैक्यू ।”
“मोहिनी ! इतने सालों बाद ! एकाएक ! तुम्हारी आवाज सुनी तो सन्नाटे में आ गया मैं । मैं बयान नहीं कर सकता मुझे कितनी खुशी हुई है तुम्हारी आमद की । लेकिन देख लो, इतने सालों बाद भी मैंने तुम्हारी आवाज फौरन पहचानी है ।”
“फौरन तो नहीं पहचानी, डार्लिंग ।”
“एक-दो सैकंड की देरी हुई जिसकी कि मैं माफी चाहता हूं । वो क्या है कि सच में ही तुम्हारी फोन काल ने ही मुझे जगाया है ।”
“फिर तो मैं माफी चाहती हूं ।”
“ओह, नो । नैवर । यू आर मोस्ट वैलकम । इतने सालों बाद तुमने मेरा न्योता कबूल किया, मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा हूं । बोल कहां से रही हो ?”
“फैरी पायर से ।”
“पायर से ! यानी कि स्टीमर पर पहुंची हो ?”
“हां ।”
“कैसी हो ? कहां थी इतना अरसा ? इतने साल मेरे न्योते पर आना तो दूर, जवाब तक न दिया । इतने साल... नैवर माइन्ड । तुम फौरन यहां पहुंचो, फिर दिल से दिल की बातें होंगी ।”
“डार्लिंग, वो क्या है कि...”
“मुझे मालूम है वो क्या है । अब तुम मेरे आइलैंड पर हो और मेरे कब्जे में हो । तुम पायर से एक टैक्सी पकड़ो और फौरन यहां पहुंचो । मैं तुम्हें दरवाजे पर आरती लिये खड़ा मिलूंगा ।”
“आई, ब्रान्डो !”
“मैं सच कह रहा हूं । तुम मेरी स्पेशल बुलबुल हो । इतने सालों बाद तुमने मुझे अपनी आमद से नवाजा है । पता नहीं मैं तुम्हें पहचान भी पाउंगा या नहीं ।”
“अच्छा ! आवाज पहचान सकते हो ! सूरत नहीं पहचान सकते ?”
“ये भी ठीक है । मोहिनी तुम बदली तो नहीं ?”
“जरा भी नहीं बदली ।”
“वैसी ही हो न जैसी सात साल पहले तब थीं जब आखिरी बार मिली थीं ?”
“ऐन वैसी ही हूं ।”
“दैट्स, गुड न्यूज । मुझे तुम्हारे में एक छटांक की घट-बढ भी बर्दाश्त नहीं होगी ।”
“रैस्ट अश्योर्ड, डार्लिंग । तुम्हे यूं लगेगा जैसे अभी कब ही तुम मेरे से मिले थे ।”
“आई एम रिलीव्ड । चैन पड़ गया मेरे मन को ।”
“तुम्हारी बाकी बुलबुलें पहुंच गयीं !”
“जिनकी आमद की उम्मीद थी वो आ गयी हैं । मेरा मतलब है सिवाय तुम्हारे और आयशा के ।”
“मारिया ?”
“वो तो कब ही कैनेडा माइग्रेट कर गयी । अब तो वो इन्डिया ही नहीं आती, गोवा क्या आयेगी ।”
“ओह !”
“मोहिनी डार्लिंग, तुम ऐसा करो, तुम टैक्सी न पकड़ो । तुम थोड़ी देर वहीं ठहरो । मेरी हाउसकीपर वसुन्धरा अभी गाड़ी लेकर पायर की तरफ ही रवाना हुई है । आयशा ही रिसीव करने के लिये । वो साढे बारह बजे वाले स्टीमर पर पहुंच रही है । तुम मेरी हाउसकीपर को तो नहीं पहचानती होगी लेकिन आयशा को तो पहचना ही लोगी । तुम आयशा के साथ ही यहां चली आना । तुम्हें थोड़ी देर इन्तजार तो करना पड़ेगा लेकिन टैक्सी के पचड़े से बच जाओगी ।”
“ब्रान्डो, वो क्या है कि...”
“वैसे तो तुम वसुन्धरा को भी पहचान लोगी । वो कोई एक क्विंटल की ड्रम जैसी औरत है जो...”
“...मैं फौरन वहां नहीं आ रही हूं ।”
“फौरन नहीं आ रही हो । क्या मतलब ?”
“मुझे यहां एक काम है ।”
“काम है ? यहां काम है ?”
“हां ।”
“यहां कहां ? पायर पर ?”
“पायर पर नहीं, ईस्टएण्ड पर ।”
“लेकिन...”
“निहायत जरूरी काम है डार्लिंग । मैं उससे निपटकर ही तुम्हारे पास आ पाउंगी । मैं मरी जा रही हूं ब्रान्डो से और ब्रान्डो की बुलबुलों सें मिलने को । लेकिन क्या करूं ! मजबूरी है । काम बहुत जरूरी है । काम से फारिग हो जाने के बाद में चाहे बड़े थोड़े अरसे के लिए सबसे मिलने जाऊं, लेकिन आऊंगी जरूर ।”
“थोड़े अरसे के लिये ! वाट डू यू मीन थोड़े अरसे के लिये ! माई हनी चाइल्ड तुम भूल रही हो कि अब तुम ब्रान्डो की टैरीटेरी में हो । तुम अपने आपको यहां गिरफ्तार समझो । इतने सालों के बाद मुलाकात और वो भी थोड़े अरसे के लिये ! नो...।”
“मेरी बात तो सुनो ।”
“...नैवर ।”
“मेरा कल दोपहर तक वापिस चले जाना जरूरी है ।”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । तब तक तो अभी पार्टी ठीक से शुरु भी नहीं हुई होगी ।”
“मैं शर्मिंदा हूं लेकिन मेरी मजबूरी है । यकीन जानो मेरी मजबूरी है । इतना टाइट शिड्यूल है मेरा कि मेरे पास दूसरा रास्ता ये ही था कि मैं तुम्हारी पार्टी में आने की सोचती ही न ।”
“ओ, नो । ये तो तुमने बहुत अच्छा किया कि दूसरा रास्ता अख्तियार न किया ।”
“तभी तो मैं कहती हूं कि...”
“आल राइट । तुमने जल्दी जाना है तो अभी का अभी यहां पहुंचो ।”
“ये नहीं हो सकता । मेरा काम बहुत देर रात में जाकर मुकम्मल होगा ।”
“यूं तो तुम आधी रात को यहां पहुंचोगी ।”
“उसके भी बाद ।”
“फिर क्या मजा आया ? ये तो सजावार काम कर रही हो तुम । यानी कि तुम्हारी सूरत तक देखने के लिये मुझे सारा दिन तरसना पड़ेगा । ब्रान्डो की कोई बुलबुल ब्रान्डो पर ऐसा जुल्म क्यों कर ढा सकती है !”
“मुझे आने तो दो, डार्लिंग । रूबरू हो होने दो । फिर मैं तुम्हारे तमाम गिले-शिकवे दूर कर दूंगी ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“अब बोलो क्या कहती हो ?”
“जैसे तुमने अपनी हाउसकीपर को... क्या नाम है उसका ?”
“वसुन्धरा । वसुन्धरा पटवर्धन ।”
“जैसे तुमने उसे आयशा को लिवा लाने के लिये गाड़ी लेकर पायर पर भेजा है, वैसे ही क्या वो मेरे लिये भी आ सकती है ?”
“बिल्कुल आ सकती है । क्यों नहीं आ सकती ?”
“गुड । उसे बोल देना कि रात को दो बजे वो मुझे पायर पर बुकिंग ऑफिस के सामने मिले ।”
“रा... रात के दो बजे ?”
“हां ।”
“इतनी देर बाद । ये तो कल ही हो गयी ।”
“आई एम सारी आलरेडी, डार्लिंग ।”
“तुम वाकेई अभी नहीं आ सकती हो ?”
“डार्लिंग, तुम मेरे सब्र का इम्तहान ले रहे हो ।”
“ऐसी कोई बात नहीं लेकिन अगर तुम अभी...”
“ओके ! नाओ हैल विद यू एण्ड विद युअर इनवीटेशन एण्ड विद युअर रीयूनियन पार्टी । मेरी गुडबाई अभी कबूल करो । मैंने भूल की तुम्हें फोन करके ।”
“माई हनी चाइल्ड । तुम तो जरा नहीं बदलीं । गुस्सा पहले की तरह आज भी तुम्हारी नाक की फुंगी पर रखा रहता है ।”
“कैन इट, मैन । सीधा जवाब दो ।”
“वसुन्धरा पहुंच जायेगी । जब कहोगी, जहां कहोगी, पहुंच जायेगी ।”
“रात दो बजे । पायर के बुकिंग आफिस के सामने । तब तक के लिए नमस्ते ।”
“अरे, सुनो-सुनो । मोहिनी, माई डार्लिंग, अभी लाइन न काटना अभी...”
लेकिन वो पहले ही रिसीवर वापिस हुक पर टांग चुकी थी । उसने टेलीफोन बूथ का दरवाजा खोला और फंसकर उसमें से बाहर निकली । उसकी खनकती आवाज से मैच करते चुलबुलाहट के जो भाव उसकी सूरत पर प्रकट हुए थे, वो एकाएक गायब हो गये थे और अब वो एक निहायत संजीदा-सूरत महिला लग रही थी । फिर वो लम्बे डग भरती पायर पर उस स्थान की ओर बढी जहां कि स्टीमर आकर लगता था ।
***
लंच से लौटे मुकेश माथुर ने मैरीन ड्राइव की एक बहुमंजिला इमारत में स्थित आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स के आफिस में कदम रखा । वो वकीलों की एक बड़ी पुरानी फर्म थी जिसके ‘एण्ड एसोसियेट्स’ वाले हिस्से का प्रतिनिधित्व युवा मुकेश माथुर करता था जो कि अपनी बद्किस्मती और अपने दिवंगत पिता की जिद की वजह से वकील था ।
“आपको बड़े आनन्द साहब याद कर रहे हैं ।” - उसके भीतर कदम रखते ही चपरासी बोला ।
मुकेश ने सहमति में सिर हिलाया और फिर अपने कबूतर के दड़बे जैसे केबिन में जा बैठने की जगह उसने बड़े आनन्द, नकुल बिहारी, के विशाल सुसज्जित आफिस में कदम रखा ।
“आपने याद किया, सर ! - मुकेश बड़े अदब से बोला ।
बड़े आनन्द साहब ने आदतन उसे अपने बाइफोकल्स में से घूरा और फिर बोले - “आजकल क्या कर रहो हो ?”
“खास कुछ नहीं, सर ।”
“खास कुछ कब करोगे ?”
मुकेश से उस नाजायज सवाल को जवाब देते न बना ।
“तुम्हारे पिता तो अब रहे नहीं लेकिन तुम्हारी मां फर्म में तुम्हारी प्रॉग्रेस के बारे में अक्सर सवाल पूछती है । वो चाहती है कि हम उसे ये गुड न्यूज दें कि अब तुम यहां अपने काम को पिकअप कर रहे हो । जिस दिन हम उसे ये खबर देंगे कि तुम अपने पिता के मुकाबले में एक चौथाई काबिल वकील भी बन गये हो तो वो तुम्हारी शादी कर देगी ।”
“मुझे शादी की जल्दी नहीं, सर ।”
“यानी कि तुम्हें तरक्की की जल्दी नहीं । अपने पिता से एक चौथाई ही सही लेकिन काबिल बनने की जल्दी नहीं ।”
“सर, मेरा वो मतलब नहीं था । मेरा तो सिर्फ ये मतलब था कि मैं अभी शादी...”
“तुम्हारी शादी की जल्दी तुम्हारी मां को है । मां को । समझे ।”
“ज... जी... जी हां ।”
“तीन साल से तुम अपने पिता की जगह यहां हो । अभी तक का तुम्हारा ट्रैक रिकार्ड ये समझ लो कि ‘जस्ट एवरेज’ है ।”
“सर, वो क्या है कि...”
“सुनते रहो । बीच में मत टोको ।”
“यस, सर ।”
“मैं तुम्हें एक जिम्मेदारी का काम सौंपने जा रहा हूं । मैं तुम्हें अपनी काबलियत दिखाने का, अपनी उम्दा काबलियत दिखाने का, एक सुनहरा मौका देने जा रहा हूं ।”
मुकेश का दिल डूबने लगा । क्या कराना चाहता था बूढा उससे ?
“यंग मैन, आई हैव ए स्पेशल असाइनमैंट फार यू ।” - वृद्ध बोले - “आर यू रेडी फार इट ?”
“यस, सर । आफकोर्स, सर ।”
“तुम्हें गोवा जाना है ।”
“क... कब ?”
“आज ही । शाम ही फ्लाइट से । तुम्हारी टिकट मैंने मंगवा ली है ।”
“ग... गोवा कहां, सर ?”
“फिगारो आइलैंड पर । ये कोई ढाई सौ किलोमीटर के क्षेत्रफल वाला छोटा सा आइलैंड है । पणजी से सोलह किलोमीटर दूर कलंगूट बीच है, उससे वाकिफ हो ?”
“यस, सर ।”
“फिगारो आइलैंड वहां से पचास किलोमीटर दूर है जहां के लिये कलंगूट बीच से स्टीमर मिलता है । वहा तुम्हें मिस्टर ब्रान्डो नाम के एक साहब के यहां पहुंचना है । मिस्टर ब्रान्डो वहां की मशहूर हस्ती है । आइलैंड पहुंचने पर कोई भी टैक्सी वाला तुम्हें वहां पहुंचा देगा । ओके ?”
“यस, सर ।”
“मिस्टर ब्रान्डो को तुम्हारी आमद की खबर कर दी जायेगी । वहां तुम्हारा पूरा स्वागत होगा इसलिये बेखौफ जाना ।”
“थैक्यू, सर । लेकिन काम क्या है ?”
“यंग मैन, ऐसा सवाल नहीं करना चाहिये जिसका जवाब वैसे ही सामने आने वाला हो । मैं तुम्हें यही बताने जा रहा था कि तुमने बीच में टोक दिया ।”
“आई एम सॉरी, सर ।”
“बुरी आदत होती है अपने सीनियर को बीच में टोकना ।”
“आई विल रिमेम्बर, सर ।”
“तुम शायद नाडकर्णी के नाम से वाकिफ हो ?”
“जी हां । वो एक रईस आदमी था और अपनी जिन्दगी में हमारी फर्म का क्लायन्ट था ।”
“करैक्ट । मुझे खुशी है कि तुम कभी-कभार कोई अहम बात याद भी रख पाते हो ।”
कमीना ! खामखाह मिर्ची लगाता है !
“तुम्हारी आगे जानकारी के लिये उसकी दुर्घटनावश हुई मौत के बाद कोर्ट ने हमें उसकी तमाम चल और अचल सम्पति का, जिसकी वैल्यू आज की तारीख में ढाई करोड़ रुपये के करीब है, ट्रस्टी नियुक्त किया था । उस सम्पति पर मरने वाले की विधवा ने अपना क्लेम पेश किया था लेकिन अदालत को वो क्लेम मंजूर नहीं हुआ था क्योंकि श्याम नाडकर्णी की दुर्घटना के बाद लाश बरामद नहीं हुई थी इसलिये कानूनी तौर पर उसे मृत करार नहीं दिया जा सकता था । इस नुक्ते पर कौन-सा कानून लागू होता है, जानते हो ?”
“यस, सर ।” - मुकेश तनिक उत्साहपूर्ण स्वर में बोला - “ऐसे हालात में वारदात के कम-से-कम सात साल बाद ही मरने वाले को कानूनी तौर पर मर चुका करार दिया जाता है ।”
“ऐग्जैक्टली । पिछले महीने की पहली तारीख को सात साल का वो वक्फा मुकम्मल हो चुका है, अब श्माम नाडकर्णी की विधवा कानूनी तौर से उसकी सम्पति की, यानी कि ढाई करोड़ रुपये की विपुल धनराशि की स्वामिनी बन चुकी है और अब हम वो रकम उसे सौंपकर अपनी ट्रस्टी की जिम्मेदारी से मुक्त हो सकते हैं । लेकिन हमारी प्राब्लम ये है कि हमें दिवंगत श्याम नाडकर्णी की विधवा ढूंढे नहीं मिल रही । कई सालों से हमारा उससे कोई सम्पर्क बाकी नहीं रहा है । उसे तलाश करने का अपना फर्ज निभाने की कोशिश में हमने कर्ई सम्भावित स्थानों पर ये सन्देशा छोड़ा हुआ है कि अगर कहीं किसी का मिसेज नाडकर्णी से कोई सम्पर्क हो या किसी को उसका कोई अता-पता मालूम हो तो उसी की भलाई में वो इस बात की खबर हमें करे । मुझे खुशी है कि अभी एक घण्टा पहले टेलीफोन पर ऐसी एक खबर यहां पहुंची है ।”
वृद्ध खामोश हो गया ।
कमीना ! सस्पेंस फैलाता है । पूरी बात कहके नहीं चुकता ।
“मुझे मिस्टर ब्रांडो ने खुद फोन करके खबर दी है कि मिसेज नाडकर्णी, जो हमें ढूंढे नहीं मिल रही, इस घड़ी फिगारो आइलैंड पर मौजूद है ।”
“ओह !”
“अब आगे तुमने क्या करना है, ये समझते हो या मुझे समझाना पड़ेगा ?”
“समझता हूं । मैंने वहां जाकर मिसेज नाडकर्णी से सम्पर्क करना है और...”
“बस-बस । बात को खुद समझो । मुझे न समझाओ ।”
“यस, सर ।”
“और कहने की जरूरत नहीं कि अपनी प्रॉगेस के बारे में तुमने मुझे रेगुलर रिपोर्ट करना है ।”
“आई अन्डरस्टैण्ड, सर । कहने की जरूरत नहीं ।”
“नाओ गैट अलांग ।”
छुटकारे की सांस लेता मुकेश वहां से रुख्सत हुआ ।
***
वसुन्धरा ने बड़ी दक्षता से अपने एम्पलायर की सीडान स्टेशन वैगन को पायर की ढलुवां साइड रोड से उतारा और उसे उस मेन रोड पर डाला जिसके सिरे पर, आइलैण्ड के लगभग दूसरे पहलू में उसके एम्पलायर का दौलतखाना था । उसके पहलू में अगली सीट पर दो सूटकेस पड़े थे और पीछे सूटकेसों की मालकिन ब्रान्डो की वो मेहमान पसरी बैठी थी जिसे साढे बारह के स्टीमर पर से रिसीव करने के लिये वो वहां पहुंची थी । उसने मेहमान में और मेहमान के सामान में कोई फर्क किया हो, ऐसा कतई नहीं लगता था । जिस मेहमान से सम्भवतः पार्टी की रौनक में चार चांद लग जाने वाले थे, उसके लिये वो भी ‘सामान’ ही था जिसे उसने बंगले तक स्टेशन बैगन में ढोना था ।
मिसेज मानक लाल चावरिया उर्फ आयशा को वसुन्धरा का सर्द व्यवहार खटका तो था लेकिन अपनी आदतन खुशमिजाज तबीयत की वजह से जल्दी ही उसने उस बात को नजरअन्दाज कर दिया था । पायर पर उसे स्वभाविक तौर पर लगा था कि वसुन्धरा उसका सामान पिछली सीट पर ढेर करेगी और उसे आगे पैसेंजर सीट पर बैठने के लिये आमन्त्रित करेगी । जब ऐसा नहीं हुआ था तो उसने यही समझा था कि वसुन्धरा कोई आदतन गैरमिलनसार महिला थी लेकिन अब वो खुश थी कि वो पीछे बैठी थी क्योंकि मोटापे के मामले में उसमें और वसुन्धरा में उन्नीस-बीस का ही फर्क था । दोनों आगे बैठतीं तो एक का सांस लेना भी दूसरे को महसूस होता ।
“मेरा नाम आयशा है ।” - एकाएक वो मीठे स्वर में बोली - “तुम भी मुझे इसी नाम से पुकारना । मिसेज मानकलाल चावरिया के नाम से नहीं, जैसा कि तुमने मुझे स्टीमर से रिसीव करते वक्त पुकारा था, या मिसेज चावरिया के नाम से नहीं ।”
वसुन्धरा ने बिना सड़क पर से निगाह हटाये सहमति में गरदन हिलायी ।
“तुम पिछले साल तो यहां नहीं थीं ?”
वसुन्धरा ने इनकार में गरदन हिलायी ।
“ब्रान्डो ने पिछले साल की पार्टी के बाद ही एंगेज किया मालूम होता है तुम्हें !”
वसुन्धरा की गरदन सहमति में हिली ।
“शीदीशुदा हो ?”
गरदन इनकार में हिली ।
“उम्र तो ज्यादा नहीं मालूम होती तुम्हारी । बड़ी हद पैंतीस होगी ।”
सहमति ।
“फिर भी जिस्म का ये हाल है ! जरूर जन्म से ही ऐसी हो ।”
सहमति ।
नब्बे से कम वजन नहीं होगा - इस बार आयशा मन-ही-मन बोली, वो बदमजा बात हाउसकीपर के मुंह पर कहना गलत होता - मेरा तो अभी तिरासी ही है । अब तो यकीन नहीं आता कि जब मैं ब्रान्डो के शो की बुलबुल थी तो मेरा वजन पचपन किलो था और मैं ब्रान्डो की आठ बुलबुलों में सबसे छरहरी, सबसे चुलबुली मानी जाती थी ।
“खुद मेरा वजह तिरासी किलो है ।” - वो एकाएक यूं बोली जैसे वसुन्धरा को तसल्ली दे रही हो - “लेकिन मुझे तो शादी और शादी की आराम तलबी ने बरबाद कर दिया । पांचवी बीवी थी मैं अपने उम्रदाज पति की । मैंने तो कोई देखी नहीं लेकिन वो कहता था कि उसकी पहली चारों बीवियां सूखी टहनी जैसी थीं जो कि उसके जिस्म को तो क्या, निगाह को भी चुभती थीं । वो अपने पहलू में गोल-मटोल गुलगुली औरत पसन्द करता था इसलिये जब मेरा वजन बढना शुरु हुआ तो वो खुश होने लगा । इसी वजह से मैंने भी परवाह नहीं की, नतीजतन मेरी छत्तीस चौबीस छत्तीस फिगर आखिरकार चालीस छत्तीस ब्यालीस हो गयी । - वो हंसी - “मेरा वजन बढता था तो वो खुश होता था और बिस्तर में ज्यादा जोशोखरोश से कलाबिजयां खाता था । फिर एक रोज उसी जोश ने बेचारे की जान ले ली । बासठ साल की उम्र में । और यूं मेरे मन की मुराद पूरी हुई ।” - वो फिर हंसी - “धनवान विधवा बनने की । पहली चार मिसेज चावरियाओं के नसीब न जागे, मेरे जाग गये । मालदार सेठ मानकलाल का सारा माल मेरे हवाले । भगवान ऐसी विधवा सबको बनाये । नहीं ?”
वसुन्धरा ने सहमति में सिर हिलाया ।
“आजकल मैं अहमदाबाद के फाइव स्टार होटल में हैल्थ क्लब और ब्यूटी पार्लर चलाती हूं । मेरे पास आना, मैं तुम्हारा कायापलट कर दूंगी ।”
वसुन्धरा ने जवाब न दिया ।
“अब ये न कहना कि पहले मैं खुद अपना कायापलट क्यों नहीं करती ? असल बात ये है कि मुझे ऐसी मोटी सेठानी बनके रहना रास आ गया है जिसकी सूरत से ही लगता हो कि उसकी थैली में दम था ।” - वो जोर से हंसी - “अलबत्ता मैं अपने हैल्थ क्लब के मेम्बरों के सामने नहीं पड़ती ।”
वसुन्धरा के मुंह से ऐसी घरघराती-सी आवाज निकली जैसै उसने हंसी में आयशा का साथ देने की कोशिश की हो ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
उस दौरान आयशा कभी रियर व्यू मिरर से झांकती उसकी सूरत का तो कभी उसकी गरदन के पृष्ठ भाग का मुआयना करती रही ।
चश्मा उसे जंचता था - उसने सोचा - लेकिन स्टाइलिश नहीं था, फैशनेबल नहीं था । आजकल काले रंग के मोटे फ्रेम और मोटी कमानियों का कहां रिवाज था । कान्टैक्ट लैंस लगवा ले तो पीछ ही छूट जाये चश्मे का । बाल ऐसे रूखे थे जैसे कभी शैम्पू का नाम ही नहीं सुना था । ऊपर से उन्हें रंगती भी थी । खुद ही । किसी एक्सपर्ट से या काम करवाती तो काले बालों की जड़ें भूरी न दिखाई दे रही होतीं, एक लट पूरी-की-पूरी ही भूरी न दिखाई दे रही होती । जाने से पहले इसका फ्री फेशियल तो कर ही जाऊंगी, थ्रेडिंग भी कर दूंगी और आई ब्रो भी बना दूंगी । तब अक्ल होगी तो चश्मे और बालों की जून खुद संवार लेगी । कभी अहमदाबाद आयेगी तो फ्री स्लिमिंग कोर्स भी करा दूंगी । याद रखेगी पट्टी कि किसी मारवाड़ी सेठानी से पाला पड़ा था । तब इसकी वही साड़ी जो इस वक्त किसी खम्बे के गिर्द लिपटा रंगीन कपड़ा लग रही है, सच में साड़ी लगेगी । तब शायद ये भी किसी मारवाड़ी सेठ की निगाहों में चढ जाये और इसकी तकदीर जाग जाये ।
“तुम गूंगी तो नहीं हो ?” - एकाएक वो बोली ।
“नहीं तो ।” - तत्काल जवाब मिला - “ऐसा कैसे सोच लिया आपने ?”
तौबा ! आवाज भी फटे बांस जैसी । और ऐसी जैसी नाक से निकल रही हो ।
“तो जरूर बोलने में तकलीफ होती होगी ।”
“आप जरूर ये बात मजाक में कह रही हैं लेकिन दरअसल है यही बात । मुझे थॉयरायड की गम्भीर शिकायत है । जब ये शिकायत बढ जाती है तो मुझे बोलने में तकलीफ होती है ।”
“फिर तो तुम्हारे बढते वजन की वजह भी थॉयरायड ही होगी ।”
“वो भी है । पैदायशी भी है । थॉयरायड ठीक हो जाने पर काफी सारा वजन अपने आप घट जाता है लेकिन वो जल्दी ही फिर बढ जाता है ।”
“इसका कोई स्थायी इलाज नहीं ?”
“नहीं ।”
“ब्रान्डो से पूछना था । वो सारी दुनिया घूमता है । भारत में नहीं तो शायद किसी और मुल्क में कोई ऐसी दवा हो जो...”
“मैं बॉस से अब बात करूंगी इस बाबत । पहले कभी मुझे सूझी नहीं थी ये बात ।”
“कब से हो ब्रान्डो की मुलाजमत में ?”
“तीन महीने से ।”
“काम क्या करती हो ?”
“सभी काम करती हूं । हाउसकीपर का, ड्राइवर का, सैक्रेटी का, जनरल असिस्टेंट का ।”
“पगार अच्छी मिलती होगी ?”
“बहुत अच्छी । उम्मीद से ज्यादा ।”
“अपना ब्रान्डो ऐसा ही जनरस आदमी है । रहने वाली कहां की हो ?”
“शोलापुर की ।”
“तुम मुझे पसन्द आयी हो ।”
“थैंक्यू, मैडम ।”
“मैडम नहीं, आयशा । आज से हम फ्रेंड हुए । ओके ?”
“ओके ।”
“ब्रान्डो मौसम बदलने तक ही गोवा में रहता है । वो अपने फॉरेन ट्रिप पर निकल जाये तो मेरे पास अहमदाबाद आना । एक महीने में मैं न तुम्हें माधुरी दीक्षित बना दूं तो कहना ।”
“आप मजाक कर रही हैं ।”
“तुम आना तो सही । फिर देखना क्या होता है ।”
“ओके ।”
एकाएक वसुन्धरा ने स्टेशन वैगन को इतना तीखा लैफ्ट टर्न दिया कि आयशा का बैलेंस बिगड़ गया और उसके मुंह से चीख निकल गयी । उसे ऐसा लगा जैसे गाड़ी सड़क के किनारे उगे पेड़ों से जा टकराने लगी हो लेकिन गाड़ी पेड़ों में घुस गयी तो उसे अहसास हुआ कि वहां पेडों के बीच से गुजरती एक पगडण्डी से जरा बड़ी राहदारी थी जिस पर कि स्टेशन वैगन हिचकोले लेती दौड़ रही थी ।
“इस रास्ते की” - आयशा तनिक उखड़े स्वर में बोली - “मुझे तो खबर नहीं थी ।”
“शार्टकट है । मैंने ढूंढा है । आगे झड़ियां थीं जिसकी वजह से दिखाई नहीं देता था । मैंने झाड़ियां कटवा दीं । हम सीधे सड़क पर जाते तो बॉस की एस्टेट अभी एक मील दूर थी । इस शार्टकट से तो देखिये हम पहुंच भी गये ।”
गाड़ी जैसे घने जंगल से निकलकर खुले में पहुंची ।
आयशा ने नोट किया कि वो जगह इतनी उंची थी कि वहां से आगे ब्रान्डो के किले जैसे मैंशन का और उससे आगे समुद्र का निर्विघ्न नजारा किया जा सकता था । अब गाड़ी के ढलुवां रास्ते पर एक फूलों से लदे खूबसूरत उद्यान के बीच से गुजर रही थी और अब ब्रान्डो का दौलतखाना करीब तर-करीब होता जा रहा था ।
कई एकड़ हरियाली में फैली उस एस्टेट में जो विशाल इमारत खड़ी थी, वो गोवा की आजादी के बाद ब्रान्डो के स्वर्गीय पिता ने बनवाई थी और भव्यता और ऐश्वर्य में अपनी मिसाल खुद थी । उसमें जो विशाल स्विमिंग पूल था, वो अनोखे तरीके से बना हुआ था । वो आधा खुले आसमान के नीचे था और आधा इमारत के रेलवे प्लेटफार्म जैसे विशाल लाउन्ज की छत के नीचे तक यूं फैला हुआ था कि वहां सोफे पर बैठा कोई शख्स इच्छा होने पर सोफे पर से ही स्विमिंग पूल में छलांग लगा सकता था ।
ब्रान्डो उसे बुलबुल का बंगला कहता था लेकिन राजप्रासाद नाम भी उसके लिए छोटा पड़ता था । जैसी कमाल की वो इमारत थी, वैसी ही कमाल की वहां फरनिशिंग और बाकी सुख-सुविधाएं थी । ऐसा था ब्रान्डो का वैभवशाली रहन-सहन जिसमें वो पिछले आठ सालों से अपनी बुलबुलों के साथ सालाना पुनर्मिलन समारोह करता आ रहा था ।
टेनिस कोर्ट और मिनी गोल्फ कोर्स के समीप से गुजरती स्टेशन वैगन मैंशन की पोर्टिको में पहुंची ।
“आए चलिये” - वसुन्धरा बोली - “मैं आपके सूटकेस लेकर आती हूं ।”
सहमति में सिर हिलाती हूई आयशा गाड़ी से निकली और लम्बे डग भरते हुए उसने चिर-परिचित इमारत के भीतर कदम रखा । आगे लाउन्ज था जहां से अट्टहासों की आवाजें आ रही थीं । कई जनाना आवाजों के बीच गुंजती ब्रान्डो की आवाज सबसे ऊंची थी । तत्काल प्रत्याशा में उसका चेहरा खिल उठा, उसका मन उत्साह से झूमने लगा ।
ब्रान्डो की पुनर्मिलन पार्टी का जादुई असर उस पर होने भी लगा था । उसने आगे बढकर लाउन्ज का दरवाजा खोला और भीतर कदम रखा । तत्काल अट्टहास के स्वर नयी हर्ष ध्वनि करने लगे ।
“आयशा । आयशा । आयशा आ गयी । आयशा आ गयी ।”
***
मुकेश माथुर बुलबुल ब्रान्डो के आलीशान लाउन्ज में मौजूद था और ऐसी निगाहों से ब्रान्डो के साथ वहां मौजूद परीचेहरा हसीनाओं को देख रहा था जैसे जो वो देख रहा हो, उसे उस पर यकीन न आ रहा हो । एक नहीं, दो नहीं, पूरी छः परियां । सबका शाही कद काठ, सब हसीन, सब जवान, सबके बाल सुनहरापन लिये हुए भूरे, सब हंसती-खिलखिलातीं मौज मनातीं उसके इर्द-गिर्द । थोड़ी कमीबेशी के साथ सबकी एक ही उम्र ।
उसकी जिन्दगी का वो पहला मौका था जबकि वो जबरदस्ती गले पड़े अपने वकालत के पेशे के लिये अपनी तकदीर को कोस नहीं रहा था ।
छः । छः स्वर्ग की अप्सरायें वहां मौजूद थीं और अभी एक और - मोहिनी पाटिल - वहां पहुंचने वाली थी ।
क्या पता उसका हुस्न इन छः से भी ज्यादा तौबाशिकन हो ?
उसने फ्रांस से आयातित गिलास में सर्व की गयी विस्की की एक चुस्की ली । वैसे ही गिलास बाकी सबके हाथों में, हाथों की पहुंच के भीतर मौजूद थे ।
आठ बजे वो वहां पहुंचा था तो ब्रान्डो उससे - एक नितान्त अजनबी से, एक मामूली हैसियत वाले युवा वकील से - बड़े प्रेम-भाव से यूं बगलगीर होकर मिला था जैसे वो ब्रान्डो का पुराना वाकिफ था और अक्सर वहां आता-जाता रहता था और उसने बारी-बारी एक-एक का हाथ पकड़कर सबका उससे परिचय कराया था ।
मुकेश उस वक्त महसूस कर रहा था कि उसके कदम स्वर्ग में राजा इन्द्र के दरबार में पड़े थे और वो युवतियां उर्वशी, रम्भा, मेनका वगैरह को भी मात करने वाली अप्सरायें थीं । अलबता एक, जिसका नाम, उसे आयशा चावरिया बताया गया था और जो धनकुबेर मानकलाल चावरिया की बेवा थी, जरा लार्ज इकानमी साइज अप्सरा मालूम होती थी । फिर भी जिस्म भारी हो गया हो जाने के अलावा उसके हुस्न में अभी भी कोई खोट नहीं थी । बल्कि वो सबसे ज्यादा खुशमिजाज थी और जब भी हंसती थी तो मुक्त कण्ठ से अट्टहास करती थी ।
शशिबाला को वो बिना परिचय के भी पहचानता था क्योंकि उसने उसकी कई फिल्में देखी थीं । उसने महसूस किया कि फिल्मों से ज्यादा हसीन वो साक्षात दिखाई देती थी जो कि नकली चमक-दमक वाले फिल्मी कारोबार में लगी किस युवती के लिये बहुत बड़ी बात थी ।
शशिबाला मशहूर फाइनांसर, प्रोड्यूसर डायरेक्टर दिलीप देसाई की करोड़ों की लागत वाली फिल्म ‘हारजीत’ की हीरोइन थी जो कि तीन चौथाई बन चुकी बताई जाती थी और जिसकी एडवांस पब्लिसिटी इतनी धांसू थी कि हर सिने दर्शक को बड़ी बेसब्री से उसका इन्तजार था । शशिबाला कितने मनोयोग से ‘हारजीत’ में काम कर रही थी, उसका ये भी पर्याप्त सबूत था कि उन दिनों वो कोई और फिल्म साइन नहीं कर रही थी ।
जिस सुन्दरी का नाम उसे टीना टर्नर बताया गया था, वो कदरन खामोश मिजाज की थी और एक तरफ बैठ ‘विस्की आन राक्स’ चुसक रही थी । जैसा उसका ड्रिंक करने का स्टाइल था, उसे देखते हुए मुकेश को यकीन था कि वो बहुत जल्द टुन्न हो जाने वाली थी ।
फिर वो कारपोरेट टॉप ब्रास जैसे रोब वाली सुन्दरी थी जिसका नाम सुनेत्रा निगम था और जो ‘एशियन एयरवेज’ की सोल प्रोपराइटर थी ।
और वो सदा मुस्कराती आलोका बालपाण्डे जो कि कपड़े के किसी बड़े व्यापारी की पत्नी बताई जाती थी ।
और छटी और आखिरी वो फौजिया खान जो अपनी शिफॉन की साड़ी के साथ कलाई तक आने वाली आस्तीनों वाला स्किनफिट ब्लाउज पहने थी जिसका जिस्म पर वक्त पारे की तरह थिरकता था, जिसके जिस्म की स्थायी, शाश्वत थिरकन किसी को भी दीवाना बना सकती थी ।
दस साल पहले की फैशन की दुनिया की सुपर माडल्स अब समृद्ध गृहणियां थीं, कामकाजी महिलायें थीं, फिर भी ब्रान्डो की बुलबुलें थीं ।
उस घड़ी ब्रान्डो लाउन्ज से ऊपर को जाती कालीन बिछी अर्धवृताकार सीढियों से होता हुआ ऊपर बालकनी पर पहुंच गया था और एक विडियो कैमरे को दायें-बायें पैन करता हुआ सब को शूट कर रहा था ।
क्या किस्मत पायी थी पट्ठे ने - मुकेश ने मन-ही-मन सोचा - सच में ही राजा इन्द्र था । उम्रदराज आदमी था, फिर भी तन्दुरुस्ती का बेमिसाल नमूना था और शहनशाहों की तरह सजधज कर रहता था । तमाम सुन्दरियां उसकी बुलबुलें थीं और सबको वो दर्जा कबूल था ।
वाह ।
तभी उसने महसूस किया कि टीना अपने स्थान से उठकर उसके करीब आ बैठी थी ।
“हल्लो !” - मुकेश जबरन मुस्कराता हुआ बोला ।
“हल्लो ।” - वो भी मुस्कराई, वो एक क्षण ठिठकी और फिर बोली - “कबूतर ।”
“क... क्या ।”
“ब्रान्डो को देर से सूझा लेकिन सूझा कि इतनी बुलबुलों के बीच एक कबूतर भी होना चाहिये । वेरायटी की खातिर ।”
“ओह । लेकिन मैं... मैं तो...”
“इस बार की पार्टी के लिये ब्रान्डो की सरप्राइज आइटम हो ?”
“नहीं । मैं... मैं आइटम नहीं हूं । मैं तो...”
“आइटम भी नहीं हो !” - टीना की भवें कमान की तरह तनीं - “फिर कैसे बीतेगी ।”
“वो क्या है कि मैं...”
तभी फौजिया भी अपने स्थान से उठी और आकर उसके दूसरे पहलू में बैठ गयी । वो मुकेश को देखकर मुस्कराई । वो सहज मुस्कराहट भी मुकेश को ऐसा लगा जैसे थिरकन बनकर उसके पूरे जिस्म में दौड़ गयी हो ।
“मक्खियां भिनभिनाने लगीं ।” - टीना धीरे-से बोली ।
“पहले से ही भिनभिना रही थीं ।” - फौजिया खनकती आवाज में बोली ।
“पहले भिनभिनाहट का सोलो चल रहा था । अब डुएट हो गया है ।”
“बहुत जल्दी कोरस बन जायेगा, हनी । क्योंकि ब्रान्डो से तो कोई उम्मीद की नहीं जा सकती । तुम्हें तो मालूम ही होगा, टीना !”
टीना ने मुंह बिचकाया ।
“मैंने” - मुकेश फौजिया से बोला - “तुम्हें पहले भी कहीं देखा है ।”
“ऐसे नहीं कहते, बच्चे ।” - टीना बोली - “अहम बात को तरन्नुम में कहते हैं । खासतौर से जब वो बात किसी लड़की को कहनी हो । ‘मैंने शायद तुम्हें पहले भी कहीं देखा है, अजनबी-सी हो मगर गैर नहीं लगती हो’ वगैरह । लाइक फिल्म्स ।”
“ऐसे ही कह रहे हो ।” - फौजिया बोली - “फैमिलियर होने की बुनियाद बनाने कि लिये । लेकिन मुझे कोई एतराज नहीं ।”
“मुझे मुकेश माथुर कहते हैं ।”
“मुझे याद है । ब्रान्डो ने बताया था ।”
“तुम फौजिया हो ।”
“शहजादी शीबा कहो” - टीना बोली - “जिसको बड़ी शिद्दत से बादशाह सोलोमन की तलाश है ।”
“टीना डार्लिंग ।” - फौजिया मीठे स्वर में बोली ।
“यस, माई लव ।” - टीना बोली ।
“अप युअर्स ।”
टीना के चेहरे पर क्रोध के भाव आये ।
“पिछले साल मैं अपनी फर्म के काम से दिल्ली गया था । वहां हमारा कल्यान्ट मुझे ड्रिंक डिनर के लिये एक ऐसे बड़े होटल में ले गया था जो कि कैब्रे के लिये मशहूर था । वहां जो मेन डांसर थी, मिस फौजिया, उसकी शक्ल हूबहू आपसे मिलती थी ।”
“क्या बात करते हो ।” - टीना जलकर बोली - “ऐसी शक्ल कहीं दूसरी हो सकती है ।”
“तो... तो...”
तभी लाउन्ज में ताली की आवाज गूंजी ।
मुकेशा ने सिर उठाया तो पाया कि ब्रान्डो बाल्कनी से नीचे उतर आया था और अब वो अपने मेहमानों से सम्बोधित था ।
“मेरी बुलबुलो ।” - वो उच्च स्वर में बोला - “जरा इधर मेरी तरफ तवज्जो दो क्योंकि मेरे पास तुम्हारे लिये एक बहुत खास खबर है ।”
“क्या खास खबर है ?” - युवतियां लगभग सम्वेत् स्वर में बोलीं ।
“मैं अभी जारी करता हूं लेकिन पहले एक और खबर । कैनेडा से मारिया ने फैक्स भेजा है और अफसोस जताया कि वो इस बार भी नहीं आ सकती ।”
“बहाना वही पुराना होगा” - सुनेत्रा नाक चढाकर बोली - “कि वो ‘एक्सपैक्ट’ कर रही है ।”
“हां ।”
“ये उसका चौथा बच्चा होगा या पांचवा ?”
“चौथा ।”
“कैनेडा बड़ी उपजाऊ जगह मालूम होती है । चार साल में चार बच्चे ।”
“लेकिन उसने लिखा है कि अब वो आखिरी है । लिहाजा अगले साल वो मेरी पार्टी में जरूर आयेगी । माई हनी पॉट्स, उसने तुम्हें अपना प्यार भेजा है ।”
“सारा ही भेज दिया होगा” - शशिबाला बोली - “पीछे हसबैंड के लिये कुछ भी नहीं छोड़ा होगा । तभी तो उसे गारन्टी है कि अब पांचवा बच्चा नहीं होगा ।”
जोर का अट्टहास हुआ ।
“अब खास खबर तो जारी करो ।” - आलोका बोली ।
“हां । जरूर ।” - ब्रान्डो बोला - “खबर सच में ही बहुत खास है, और बहुत फड़कती हुई भी, जो कि तुम सबको भी फड़का देगी ।”
“हम तैयार बैठी हैं फड़कने के लिये ।” - फौजिया बोली - “खबर तो बोलो ।”
“स्वीटहार्टस” - तब ब्रान्डो बड़े नाटकीय अन्दाज से बोला - “अपनी मोहिनी आ रही है ।”
लाउन्ज में सन्नाटा छा गया । खबर इतनी अप्रत्याशित थी कि एक बारगी किसी बुलबुल के मुंह से बोल नहीं फूटा था । सात साल बाद मोहिनी आ रही थी । अब जब कि हर कोई उसकी आमद की आखिरी उम्मीद भी छोड़ चुका था तो वो आ रही थी ।
फिर जैसे एकाएक सन्नाटा हुआ था, वैसे ही एकाएक हाल में खलबली मच गयी और मोहिनी की आमद के बारे में ब्रान्डो पर सवालों की बौछार होने लगी ।
“मेरी बुलबुलो” - ब्रान्डो उच्च स्वर में बोला - “तुम सबका कल का ब्रेकफास्ट सुपर बुलबुल मोहिनी पाटिल के साथ होगा ।”
हर्षनाद हुआ ।
तभी मुकेश ने अपने पहलू में हरकत महसूस की । उसने उधर सिर उठाकर देखा तो पाया कि टीना कि आंखें बन्द थीं, उसके चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी और उसका शरीर एकाएक धनुष की तरह तन गया था ।
क्या माजरा था ? - मुकेश ने मन-ही-मन सोचा - ये लड़की ‘खास खबर’ से खौफजदा थी या मोहिनी से इसे इतनी नफरत थी कि इसे उसकी आमद गवारा नहीं थी ?
एकाएक टीना एक झटके से उसके पहलू से उठी और लम्बे डग भरती हुई बार की तरफ बढ चली । वहां पहुंचकर उसने विस्की की एक बोतल उठाई और उससे एक गिलास तीन चौथाई भर लिया । बाकी की खाली की जगह को उसने बर्फ से भरा और गिलास को अपनो होंठों से लगाया । फिर कुछ सोचकर बिना चुस्की मारे ही उसने गिलास को वापिस काउन्टर पर रख दिया । फिर वो लम्बे डग भरती हुई अर्धवृताकार सीढियों की ओर बढी और ऊपर कहीं जाकर निगाहों से ओझल हो गयी ।
किसी की उसकी तरफ तवज्जो नहीं थी ।
फिर लाउन्ज में धीरे-धीरे वातावरण शान्त होने लगा । बुलबुलें खास खबर के जलाल से उबरने लगीं ।
“अब ये तो बताओ” - शशिबाला बोली - “तुम्हें खास खबर की खबर कैसे है ? कैसे मालूम है कि रानी मक्खी आ रही है ?”
“उसने खुद खबर की है ।” - ब्रान्डो बोला - “आज दोपहर को उसने खुद मुझे पायर के पब्लिक टेलीफोन से फोन किया था ।”
“यानी कि” - फौजिया बोली - “वो आइलैंड पर पहुंच भी चुकी है ?”
“हां । लेकिन उसे ईस्ट एण्ड पर कोई इन्तहाई जरूरी काम था जिसकी वजह से वो फौरन यहां नहीं आ सकती थी । कहती थी वो अपने उस काम से आधी रात से पहले फारिग नहीं होने वाली थी ।”
“उसे यहां आइलैंड पर काम था ।” - आलोका हैरानी से बोली - “यानी कि उसे तुम्हारी पार्टी का दावतनाम यहां नहीं लाया था ?”
“वो भी लाया था लेकिन उसे कोई और भी निहायत जरूरी काम यहां था ।”
“दैट्स ऐग्जैक्टली लाइक अवर गुड ओल्ड मोहिनी पाटिल ।” - सुनेत्रा तनिक तल्खी से बोली - “हमेशा एक पंथ दो काज की फिराक में रहने की उसकी आदत लगता है आज भी नहीं बदली ।”
“उसकी कोई भी आदत नहीं बदली ।” - ब्रान्डो बोला - “वही बात करने का तुनकमिजाज अन्दाज । वही घण्टी-सी बजाती खनकती आवाज । वही मेरी बला से एण्ड हैल विद एवरीबाडी वाला रवैया । सब कुछ वही । कहती थी सात साल में उसकी सूरत-शक्ल तक में कोई तब्दीली नहीं आयी ।”
“लक्की बिच !” - आयशा ईर्ष्यापूर्ण स्वर में होंठों में बुदबुदाई ।
“मोहिनी कहती थी” - ब्रान्डो बोला - “कि वो अपने जरूरी काम से आधी रात के बात किसी वक्त फारिग होगी लेकिन रात दो बजे वो निश्चित रूप से पायर के बुकिंग आफिस के सामने मौजूद होगी जहां से कि मेरी हाउसकीपर वसुन्धरा उसे लिवा लायेगी ।”
“फिर तो” - सुनेत्रा बोली - “रात ढाई बजे से पहले तो वो क्या यहां पहुचंगी ?”
“तभी तो बोला कि तुम लोगों से उसकी मुलाकात कल सुबह ब्रेकफास्ट पर ही हो पायेगी ।”
“जब आ ही रही है” - आयशा लापरवाही से बोली - “तो मुलाकात की जल्दी क्या है । भले ही वो ब्रेकफास्ट की जगह लंच पर हो या डिनर पर हो ।”
“वो कहती है वो यहां रुक नहीं सकती, दोपहर तक उसने वापिस लौट जाना है ।”
“कमाल है !” - शशिबाला बोली - “इतनी बिजी कैसे हो गयी हमारी मोहिनी, जो घण्टों में अप्वायन्टमैंट देने लगी ।”
“घन्टों में कहां” - सुनेत्रा बोली - “मिनटों में ।”
“यानी कि वो बुलबुलों की अपनी पुरानी टोली से मिलने नहीं” - फौजिया बोली - “हमें अपने दर्शनों से कृतार्थ करने आ रही है ।”
“अवर ओन क्वीन विक्टोरिया ।” - आलोका बोली ।
“वो हमारे साथ ऐसे पेश नहीं आ सकती ।” - ब्रान्डो बोला - “जरूर सच में ही उसकी कोई प्राब्लम होगी जिसकी बाबत कल ब्रेकफास्ट पर हम उससे पूछेंगे ।”
“यानी कि” - आयाशा बोली - “रात को जागकर उसका कोई इन्तजार नहीं करेगा ?”
“वो किसलिये ?” - ब्रान्डो बोला ।
“उसकी आरती उतारने के लिये ।”
“ख्याल बुरा नहीं ।” - सुनेत्रा बोली - “अब क्योंकि सुझाव तुम्हारा है इसलिये तुम्हीं आरती लेकर तैयार रहना रात ढाई बजे ।”
“उहूं ।” - आयशा ने उपेक्षा से मुंह बिचकाया ।
“कोई और वालंटियर बुलबुल” - ब्रान्डो उपहासपूर्ण स्वर में बोला - “जो इस सर्विस के लिये खुद को आफर करना चाहती हो ?”
किसी ने जवाब न दिया ।
“नैवर माइन्ड ।” - ब्रान्डो हंसता हुआ बोला - “मेरी नाजुक बदन बुलबुलें कितनी आरामतलब हैं, मैं क्या जानता नहीं ! बहरहाल स्वागत की तमाम औपचारिकतायें अपनी वसुन्धरा बखूबी निभा लेगी ।”
सब ने चैन की सांस ली ।
“अब मैं अपने स्पैशल गैस्ट मिस्टर मुकेश माथुर की बाबत भी आपका सस्पेंस दूर कर देना चाहता हूं ।”
“उसमें क्या सस्पेंस है, ब्रान्डो !” - सुनेत्रा बोली - “तुमने बताया तो था कि मिस्टर माथुर वकील हैं ।”
“हां । लेकिन ये नहीं बताया था कि वो यहां क्यों आये हैं ? माई स्वीट हार्ट्स, तुम लोगों की जानकारी के लिये मिस्टर माथुर सालीसिटर्स की उस फर्म के प्रतिनिधि हैं जो कि दिवगंत श्याम नाडकर्णी की एस्टेट के ट्रस्टी हैं ।”
“तो ?”
“तो ये कि इन पर मोहिनी को ढाई करोड़ रुपये की ट्रस्ट की रकम सौंपने की जिम्मेदारी है ।”
फौजिया के मुंह से सीटी निकल गयी, फिर वो नेत्र फैलाकर बोली - “सात साल में ट्रस्ट की रकम बढ़कर ढाई करोड़ हो गयी है ?”
“हां ।”
“ये रकम” - आलोका हैरानी से बोली - “मिस्टर माथुर साथ लाये हैं ?”
“साथ नहीं लाये” - ब्रान्डो बोला - “लेकिन मोहिनी को मिस्टर माथुर वो रकम इनके बम्बई में स्थित आफिस में आकर कलैक्ट करने की पेशकश करेंगे ।”
तभी जैसे जादू के जोर से एकाएक तेज हवायें चलने लगीं और बरसात होने लगी ।
ब्रान्डो उछलकर खड़ा हुआ । वो लपककर एक दीवार के करीब पहुंचा जहां उसने बिजली का एक स्विच आन किया । तत्काल स्विमिंग पूल के लाउन्ज की छत से ढंके आधे हिस्से के और आगे के आकाश के नीचे खुले हिस्से के बीच में पारदर्शक शीशे की एक दीवार सरक आयी । अब पानी की तेज बौछार भीतर लाउन्ज के कीमती फर्नीचर पर आकर पड़ने की जगह शीशे की दीवार से टकरा रही थी ।
बादलों ने गम्भीर गर्जन किया ।
“अच्छा है” - आयशा बोली - “कि मोहिनी अभी ही यहां नहीं है ।”
सबने सहमति में सिर हिलाया ।
“क्यों ?” - मुकेश उत्सुक भावा से करीब बैठी फौजिया से बोला - “क्यों अच्छा है ?”
“वो यहां होती” - फौजिया हंसती हुई बोली - “तों अभी किसी सोफे के नीचे घुस गयी होती या दौड़कर किसी क्लोजेट या बाथरूम में घुस गयी होती । बादलों की गर्ज से और बिजली की कड़क से वो बहुत खौफ खाती है ।”
“हां ।” - शशिबाला बोली - “हम सब हमेशा उसके उस खौफ की वजह से उसकी खिल्ली उड़ाया करते थे ।”
“मिस्टर माथुर” - आलोका बोली - “वैसे मोहिनी बहुत हौसलामन्द लड़की है जो किसी भी और बात का खौफ नहीं खाती । लेकिन वो कहती है कि बादल बिजली का गर्जना-कड़कना बचपन से ही उसके होश उड़ाता चला आ रहा था ।”
“हर किसी को किसी न किसी बात की दहशत होती है ।” - मुकेश दार्शनिकता-भरे अन्दाज से बोला - “कोई अन्धेरे से डरता है तो कोई पानी से । कोई लिफ्ट से डरता है तो कोई हवाई जहाज के सफर से । कई लोग ऊंचाई से ऐसा घबराते हैं कि स्टूल पर भी खड़े हो जायें तो उन्हें चक्कर आने लगते हैं । कइयों को खून की शक्ल देखना बर्दाश्त नहीं होता । अपना हो या किसी और का एक बूंद भी टपकती देख लें तो उनके होश फाख्ता हो जाते हैं ।”
“यू आर राइट देयर ।” - सुनेत्रा सहमति में सिर हिलाती हुई बोली ।
“मोहिनी नहीं खौफ खाती ऐसी बातों का ।” - आलोका बोली - “मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब हम शो के लिये पटना गये थे तो बाथरूम में फिसल गयी थी और धड़ाम से एक गिलास पर जाकर गिरी थी, गिलास उसके भार से नीचे टूट गया था और एक बड़ा-सा कांच का टुकड़ा उसकी दायीं जांघ में घुस गया था । इतना खून बहा था कि तौबा भली लेकिन मिस्टर माथुर, यकीन जानिये, तब मोहिनी ने उफ तक नहीं की थी । डाक्टर ने आकर जब उसके जख्म को सिया था तो तब भी वो हंस रही थी और डाक्टर को साथ हंसा रही थी, कह रही थी डाक्टर साहब, टांके ही लगाने हैं एम्ब्रायड्री नहीं करनीं । बाद में डाक्टर ने खुद उसके जब्त और दिलेरी की तारीफ की थी ।”
“आई सी ।” - मुकेश प्रभावित स्वर में बोला ।
“और याद है ।” - शशिबाला बोली - “जब वो भोपाल में किसी की गलती से थियेटर के चूहों, छिपकलियों, काकरोचों से भरे अन्धेरे गोदाम में बन्द हो गयी थी...”
“टीना के साथ ।” - आलोका बोली ।
“हां । बाई दि वे, टीना कहां गयी ?”
“पड़ी होगी कहीं टुन्न हो के ।” - सुनेत्रा उपेक्षापूर्ण स्वर में बोली ।
“बहुत पीती है ।” - आयशा हमदर्दी-भरे स्वर में बोली - “क्यों पीती है इतनी ?”
“भई रिलैक्स कर रही है ।” - आलोका बोली - “मौज मार रही है । पार्टी में ये सब न करे तो और क्या करे ! बोर होकर नींद की गोली खाये और सो जाये ?”
“वो तो मैं नहीं कहती लेकिन... पहले ऐसी नहीं थी वो ।”
“एन्जाय कर रही है ।”
“मुझे तो नहीं लगता कि एन्जाय कर रही है । वो तो महज एक काम कर रही है ड्रिंक करने का । विस्की को बस उंडेल रही है हलक में ।”
एकाएक बिजली कड़की । साथ में इस बार बादल यूं गर्जे कि सबने इमारत की दीवारें हिलती महसूस की । साथ ही एक तीखी चीख वातावरण में गूंजी । चीख ऐसी हौलनाक थी कि एक बार तो उसने जैसे सब का खून जमा दिया । बादलों की गर्ज और बिजली की कड़क धीमी पड़ जाने के बाद भी चीख की गूंज अभी वातावरण में मौजूद थी ।
फिर सबसे पहले मुकेश सकते की हालत से उबरा और उधर भागा जिधर से चीख की आवाज आयी थी ।
एक-दूसरे की देखा-देखी बाकी सब लोग भी उसके पीछे लपके ।
चीख का सम्भावित साधन इमारत के बाहर पोर्टिको में था जहां कि उस घड़ी नीम अन्धेरा था । तभी बिजली फिर कड़की तो उसकी क्षणिक चकाचौंध में जमीन पर से उठने को उपक्रम करती हुई हाउसकीपर वसुन्धरा दिखाई दी ।
“वसुन्धरा !” - ब्रान्डो आन्दोलित स्वर में बोला - “ठीक तो ही न ?”
उसने जवाब न दिया । लड़खड़ाती-सी वो पूर्ववत उठने की उपक्रम करती रही ।
मुकेश और ब्रान्डो ने आगे बढकर उसे दायें-बायें से थामा और उसे उसके पैरों पर खड़ा किया । उसके होश उड़े हुए थे । उसकी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी और दांत बज रहे थे । रह-रहकर उसके सारे शरीर में सिहरन दौड़ जाती थी ।
“क्या हुआ ?” - ब्रान्डो व्यग्र भाव से बोला - “क्या हुआ, वसुन्धरा ?”
“प... पत नहीं ।” - वो बड़ी कठिनाई से बोल पायी - “किसी ने मुझे जोर से पीछे से धक्का दिया था ।”
“क्या !”
“कोई मेरे पीछे था । झाड़ियों में से निकला था । उसकी आहट सुनकर मैं घूमी ही थी कि उसने जोर से मुझे धक्का दिया था और मैं धड़ाम से जमीन पर जा गिरी थी ।”
“था कौन वो ?”
“पता नहीं ।”
“कोई आदमी था या औरत ?”
“पता नहीं । मैं देख न सकी ।”
“गया किधर ?”
“उधर गार्डन की तरफ । मुझे उधर से ही उसके भागते कदमों की आवाज आयी थी ।”
“कमाल है ! कौन होगा ?”
“शायद कोई चोर ।” - मुकेश बोला - “जो इत्तफाक से पोर्टिको से आगे न पहुंच पाया ।”
“लेकिन... लेकिन... वसुन्धरा, तुम पोर्टिको में क्या कर रही थीं ?”
“स्टेशन वैगन की खिड़कियां खुली रह गयी थीं । बारिश आती देखकर मैं उन्हें बंद करने आयी थी ।” 
“ओह !”
“मिस्टर ब्रान्डो” - मुकेश बोला - “हमें इन्हें भीतर ले के चलना चाहिये ।”
“हां । हां । जरूर । अभी । और मैं फ्लड लाइट्स भी चालू करवाता हूं ।”
फिर वो वसुन्धरा को सम्भाले उसे भीतर को ले चला ।
तत्काल उसकी बुलबुलें उसके पीछे हो लीं ।
मुकेश विचारपूर्ण मुद्रा बनाये पीछे अकेला खड़ा रहा ।
फिर कुछ सोचकर वो उद्यान की तरफ बढा ।
उसने उद्यान में फूलों से लदी झाड़ियों से गुजरती राहदारी में अभी कदम ही रखा था कि उसे अपने पीछे कदमों की आहट सुनायी दी । उसने सशंक भाव से घूमकर पीछे देखा तो उसे टीना दिखाई दी ।
“तुम कहां थीं ?” - वो बोला ।
“हल्लो !” - वो मुस्कराती हुई बोली - “कबूतर !”
“बारिश हो रही है । भीतर जाओ ।”
“मुझे बारिश में भीगना पसन्द है ।”
“लेकिन...”
“वैसे भी अब बारिश रुकने के आसार लग रहे हैं ।”
“फिर तो जरूर ही भीतर जाओ । भीगने में जो कसर रह गयी हो, उसे शावर बाथ के नीचे खड़ी होकर पूरी कर लेना ।”
“यहां मेरी मौजूदगी से तुम्हें एतराज है ?”
“एतराज तो नहीं है लेकिन...”
“ये गार्डन भूल-भुलैया जैसा है । भटक गये तो कहीं के कहीं निकल जाओगे इस खराब मौसम में । तुम्हारे साथ इस घड़ी कोई” - उसने बड़ी शान से अंगूठे से अपनी छाती को टहोका - “गाइड होना चाहिये ।”
“गाइड तुम ?”
“हां, मैं ।”
“तुम्हें भूल-भुलैया के रास्ते कैसे आते हैं ?”
“ब्रान्डो ने बताये ।”
“जरूर कभी तुम उसकी फेवरेट बुलबुल रही होगी ।”
“यही समझ लो ।”
तभी इमारत की बाहरी दीवारों पर लगी तीखी फ्लड लाइट्स जल उठीं और सारा वातावरण प्रकाश में नहा गया ।
“तुम हो किस फिराक में ?” - टीना बोली ।
“जिस आदमी ने - या औरत ने - हाउसकीपर पर हमला किया था, हो सकता है वो अभी भी गार्डन में ही कहीं छुपा बैठा हो ।”
“तो ?” 
“तो क्या ?”
“कहीं तुम ये तो नहीं समझ रहे हो कि तुम उसे अकेले ही काबू में कर लोगे ?”
“मैं इस काबिल नहीं दिखाई देता तुम्हें ?”
“काबिल तो तुम मुझे बहुत दिखाई देते हो । इस काबिल भी और... उस काबिल भी ।”
“उस काबिल भी ! क्या मतलब ?”
“जिसके पीछे तुम पड़े हो, वो हथियारबन्द हो सकता है, ये तो सूझा नहीं होगा ?”
“सूझा तो सच में ही नहीं था । फिर तो तुम्हें जरूर ही वापिस इमारत की सुरक्षा में चले जाना चाहिये ।”
“मुझे नहीं, तुम्हें । मेरे ख्याल से बुलबुलों को उसके हथियार से” - वो होंठ दबाकर हंसी” - वो होंठ दबाकर हंसी - “कोई खतरा नहीं । उन्हें वो सिर्फ धक्का देता है । बिना हथियार के । तुम्हारे पर वो - ईडियट - अपना हथियार आजमा सकता है।”
“लेकिन...”
“तुम लेकिन लेकिन बहुत करते हो । गाड़ी छूट जाती है लेकिन-लेकिन में ।” - टीना ने उसका हाथ थमा लिया - “आओ चलो ।”
वो उसे फिर से ऊंची झाड़ियों के बीच से गुजरते रास्तों पर ले चली । उन रास्तों के हर मोड़ पर जमीन के लैवल पर लाइट लगी हुई थी और उन पर तीखी फ्लड लाइट भी खूब प्रतिबिम्बित हो रही थी जिसकी वजह से दिन की रोशनी जैसी सहूलियत से ही वो आगे बढते रहे ।
“गार्डन के भीतर” - टीना ने बताया - “तुम देख ही रहे हो कि इसका भूल-भूलैया नाम सार्थक करने के लिये कई रास्ते हैं लेकिन इसमें दाखिल होने का और बाहर निकलने का वो एक ही रास्ता है जिस पर से कि अभी हम यहां आये हैं और जिसके आगे हाउसकीपर गिरी पड़ी थी ।”
“आई सी ।”
“तुम्हारे ख्याल से होगा कौन वो जिसने कि हाउसकीपर को धक्का दिया था ?”
“मेरे ख्याल से तो कोई पीपिंग टॉम ही होगा ।” - मुकेश सोचता हआ बोला ।
“कौन-सा टॉम !”
“पीपिंग टॉम । ताक-झांक करने वाला । दर्शन प्यासा । नयनसुख रसिया । ब्रान्डो के शाही मिजाज से, उसकी शाही पार्टियों से और उसके शाही मेहमानों से यहां क्या कोई बेखबर होगा । ब्रान्डो की सारी बुलबुलें आकर उतरती तो पायर पर ही हैं । इतनी परियों को यहां पहुंचती देखकर - खासतौर से शशिबाला को देखकर जो कि फिल्म स्टार है - कोई आपा खो बैठा होगा और रात के अन्धेरे में ताक-झांक करने यहां चला आया होगा...”
“ओह माई गॉड ! मुझे खबर होगी तो मैं जरा मेकअप वगैरह ही सुधार लेती और कोई ज्यादा बढिया पोशाक पहन लेती । वैसे ऐसे भी तो बुरी तो नहीं लग रही मैं ?”
“हाउसकीपर उसे देखकर शोर मचा सकती थी” - मुकेश अपनी ही धुन में कहता रहा - “इसलिये उसे देकर वो भाग खड़ा हुआ होगा ।”
“मिस्टर” - टीना ने उसकी पसलियों में कोहनी चुभोई - “मैंने तुमसे एक सवाल पूछा था ।”
“सवाल ? क्या ?”
“कैसी लग रही हूं मैं ?”
मुकेश ने उसके भीगे चेहरे पर निगाह डाली और बोला - “बढिया ।”
“बस ! सिर्फ बढिया ।”
“बहुत बढिया ।”
“अभी तो कुछ भी नहीं” - वो उत्साह से बोली - “कभी मेरी पूरी सज-धज के साथ मुझे देखना, गश खा जाओगे ।”
“अभी भी खस्ता ही है मेरी हालत” - मुकेश एक सरसरी निगाह उसके भीगे जिस्म पर डालता हुआ बोला - “इसीलिये तुम्हारी तरफ निगाह उठाने से परहेज कर रहा हूं ।”
“सच कह रहे हो ?”
“हां ।”
“थैंक्यू ।” - वो एक क्षण ठिठकी और फिर बोली - “तो तुम्हारी फर्म का नाम आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स है और वो बम्बई में मेरिन ड्राइव पर स्थित है ?”
“हां ।”
“इतने सारे आनन्द ! बहुत आनन्द होता होगा वहां ?”
वो हंसा ।
“मैं भी उधर फोर्ट में हो रहती हूं । बोरीबन्दर के करीब ।”
“आई सी ।”
“कमाल है ये भी ।”
“क्या ?”
“यही कि हम एक ही शहर के रहने वाले हैं, शहर के एक ही इलाके में पाये जाते हैं, फिर भी कभी मिले नहीं । “
“क्या बड़ी बात है ! लोग एक इमारत में रहते नहीं मिल पाते ।”
“ठीक कहा तुमने ।” - वो आह भरकर बोली ।
तभी सामने चारदीवारी की ऊंची दीवार आ गयी । दोनों उसके सामने ठिठके, फिर मुकेश ने टीना की तरफ देखा ।
“इसका मतलब ये न समझना” - टीना कदरन संजीदगी से बोली - “कि हाउसकीपर का हमलावार यहां नहीं हो सकता । इतना बड़ा गार्डन है, वो इस घड़ी इसके किसी और भाग में छूपा बैठा हो सकता है । हम उस भाग में पहुंचेंगे तो वो यहां सरक आयेगा क्योंकि इस भाग को हम खंगाल चुके हैं इसलिये हम यहां तो वापिस क्या लौटेंगे ।”
“हूं ।”
“कहने का मतलब ये है वकील सहब कि सारे गार्डन को एक ही वक्त में कवर करने को दर्जन-भर आदमी चाहियें जब कि हम तो बस दो ही हैं ।”
“पहले क्यों नहीं बोला ?”
“मैं सदके जाऊं । पहले बोलती तो सुनते ! अभी तो अकेले रवाना हो रहे थे !”
“हूं ।”
“मेरे ख्याल से तो हमारी पीठ पीछे वो कब का यहां से खिसक गया होगा ।”
“तुम इस गार्डन को भूल-भुलैया बता रही थीं । क्या पता अभी वो भटक ही रहा हो भूल-भुलैया में !”
“रास्तों का ज्ञाता होगा तो नहीं भटक रहा होगा ।”
“लेकिन तुम तो इस ज्ञान को बड़ा दुर्लभ और गोपनीय बता रही थीं ।”
“ब्रान्डो बड़ा मेहरबान मेजबान है । उसकी बुलबुलों के लिये उसकी कोई चीज दुर्लभ नहीं ।”
“यानी कि बाकी बुलबुलें भी इस भूल-भुलैया के रास्तों से वाकिफ होंगी !”
“हो सकती हैं ।”
“लेकिन हाउसकीपर की हमलावार कोई बुलबुल कैसे हो सकती है ? सब तो लाउन्ज में थीं उस घटना के वक्त ।” - मुकेश एकाएक एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “सिवाय तुम्हारे ।”
“इज्जत अफजाई का शुक्रिया । लेकिन अभी मेरे हवास इतने बेकाबू नहीं हुए कि मैं मेजबान के नौकरों-चाकरों पर झपटने लगूं ।”
“ओह, सारी । तुमने हाउसकीपर की दिल दहला देने वाली चीख सुनी थी ?”
“हां, सुनी थी । कैसे न सुनती ! मेरे ख्याल से तो सारे आइलैंड पर सुनी गई होगी वो चीख ।”
“तब तुम कहां थीं ?”
“अपने कमरे में । मैं चीख की आवाज सुनकर ही वहां से निकली थी ।”
“आई सी । आओ चलें ।”
वो वापिस लौट पड़े ।
“एक सवाल पूछूं ?” - रास्ते में एकाएक मुकेश बोला ।
“मुझे कोई एतराज नहीं ।” - टीना मधुर स्वर में बोली - “मैं तैयार हूं ।”
“तैयार हो !” - मुकेश सकपकाया - “किस बात के लिये ?”
“उसी बात के लिये जिसकी बाबत तुम सवाल पूछने जा रहे थे ।”
“ओह, कम आन । बी सीरियस ।”
“ओके, माई लार्ड एण्ड मास्टर ।”
“मोहिनी के आगमन की खबर सुनकर तुम्हारे चेहरे का रंग क्यों उड़ गया था ?”
“ऐसी तो कोई बात नहीं थी ।”
“बिल्कुल थी । मैंने खुद नोट किया था । तुम्हारे तो छक्के छूट गये थे । कोई यमराज के आगमन की खबर सुरकर इतना नहीं दहलता होगा जितना कि तुम...”
“बोला न ऐसी कोई बात नहीं थी ।”
“लेकिन मैंने खुद...”
“कोई और बात करो । प्लीज ।”
“और क्या बात करूं ?”
“कुछ भी ।”
“ओके । तुम करती क्या हो ? मेरा मतलब है मिस्टर ब्रान्डो की पुनर्मिलन पार्टियां अटेण्ड करने के अलावा ?”
“फरेब करती हूं । धोखा देती हूं दुनिया को और अपने-आप को कि मैं पॉप सांग्स गा सकती हूं ।”
“ओह ! पॉप सिंगर हो तुम ?”
“हां । वैसे पापी सिंगर भी बोलो तो चलेगा ।”
“कहां गाती हो ?”
“जहां चांस लग जाये । किसी कबूतरों के दड़वे में । किसी चूहों के बिल में । किसी सूअरों के बाड़े में । कहीं भी ।”
“बहुत रहस्यमयी बातें करती हो ।”
जवाब में वो कुछ न बोली ।
“और वो फौजिया ! वो कैब्रे डांसर है ?”
“मिस्टर, जिसके साथ हो, उसकी बातें करो ।”
“तुम बातें कहां करती हो ? तुम तो पहेलियां बुझाती हो । कुछ पूछो तो जवाब नहीं देती हो ।”
“मैंने तुम्हारी हर बात का जवाब दिया है ।”
“कहां दिया है ? मसलन, तुमने जवाब दिया कि मोहिनी के आगमन की खबर सुनकर तुम्हारा फ्यूज क्यों उड़ गया था ?”
“वो देखो मालती की झाड़ियों में जुगनू चमक रहे हैं ।”
“बढिया । जुगनू ही देखने तो आया हूं मैं यहां इतनी दूर से । जीवन सफल हो गया ।” 
वो हंसी ।
“पॉप सिंगर्स का तो बड़ा नाम होता है । उनके कैसेट्स बनते हैं, कम्पैक्ट डिस्क बनती हैं, रिकार्ड बनते हैं । मैंने तुम्हारा नाम कभी क्यों नहीं सुना ?”
“हाय ! दो-चार जुगनू पकड़ के ला दो न ? बालों में लगाऊंगी । जगमग-जगमग हो जायेगी ।”
“मैं समझ गया ।”
“क्या ? क्या समझ गये ?”
“वही जो तुम जुबानी नहीं कहना चाहतीं ।”
“गुड ।”
“तुम्हारी सब फैलो बुलबुलों ने जिन्दगी में तरक्की की, तुमने नहीं की ऐसी क्यों ?”
“क्योंकि” - वो धीरे-से बोली - “मेरे से कम्प्रोमाइज नहीं हुआ । मैं किसी को अपना गॉडफादर न बना सकी । मैं किसी मालदार बूढे को अपने पर आशिक न करा रुकी । वगैरह-वगैरह । अब आगे बात न हो इस बाबत । प्लीज ।”
“बेहतर ।”
वो इमारत में वापिस लौटे तो ब्रान्डो उन्हें लाउन्ज में स्विमिंग पूल के करीब खड़ा मिला ।
“कोई मिला ?” - वो उत्सुक भाव से बोला ।
मुकेश ने इनकार में सिर हिलाया ।
“ओह ! नैवर माइन्ड । मैंने पुलिस को फोन कर दिया है । वो लोग बस-पहुंचते ही होंगे । फिर जो करना होगा वो खुद कर लेंगे ।”
“आपकी हाउसकीपर अब कैसी है ?”
“अभी सदमे की हालत में है । मैंने उसे उसके कमरे में भेज दिया है । आराम कर रही है । ठीक हो जायेगी ।”
“गुड !”
“दोनों भीगकर आये हो । जाकर पहले कपड़े बदल लो । तब तक मैं तुम्हारे लिये ड्रिंक बनाता हूं । ओके ।”
दोनों के सिर सहमति में हिले ।
***
डिनर तक ब्रान्डो के दौलतखाने का माहौल न केवल पहले जैसा सहज हो गया बल्कि मौसम भी पूरी तरह से शान्त हो गया । तब तक हाउसकीपर वसुन्धरा अपने शॉक से पूरी तरह से उबर चुकी थी - खुद अपनी देख-रेख में उसने मेहमानों को डिनर सर्व कराया था - जो कि अच्छी बात थी, आखिर उस पर पायर से मोहिनी पाटिल को लिवा लाने की जिम्मेदारी थी ।
तब तक पुलिस वहां आकर जा चुकी थी और उन्होनें भी अपनी तफ्तीश से यही नतीजा निकाला था कि आततायी कोई नयनसुख अभिलाषी ही था ।
“नयनसुख अभिलाषी” - फौजिया ने कहा - “और गामा पहलवान ?”
“वो कैसे ?” - ब्रान्डो ने पूछा ।
“अदद तो देखो अपनी हाउसकीपर का ! क्विंटल के ड्रम को धक्का देकर लुढकाना क्या किसी दुबले-पतले मरघिल्ले आदमी के बस का काम था !”
बुलबुलें हंसी ।
“मजाक मत उड़ाओ उसका ।” - ब्रान्डो बोला - “बेचारी को थायरायड की गम्भीर शिकायत है । उसी की वजह से मोटापा है । वो कोई” - ब्रान्डो ने एक गुप्त निगाह आयशा पर डाली - “खा-खा के नहीं मुटियाई हुई ।”
आयशा तत्काल परे देखने लगी ।
शुक्र था कि फौजिया के उस अप्रिय आक्षेप के वक्त हाउसकीपर करीब नहीं थी ।
डिनर के बाद जब काफी और ब्रान्डी का दौर चलना शुरु हुआ तो मुकेश चुपचाप इमारत से बाहर खिसक आया ! इतना लाजवाब डिनर उसने पहले कभी किया नहीं था इसलिये जोश में उसका खाना-पीना कुछ ज्यादा ही हो गया था जिसकी वजह से अब वो असुविधा का अनुभव कर रहा था और महसूस कर रहा था कि थोड़ा चलने-फिरने से, थोड़ी ठण्डी समुद्री हवा खाने से उसकी हालत उसके काबू में आ सकती थी ।
अर्धवृताकार ड्राइव वे पर चलता हुआ वो बाहर सड़क पर पहुंचा तो ड्राइव वे के दहाने के करीब झाड़ियों के पीछे दो तिहाई छुपी खड़ी एक कार उसे दिखाई दी । वो हाथ से ही कई रंगों में रंगी हुई एक बहुत ही पुरानी, एकदम खटारा फियेट थी । उसके बोनट पर चढा बैठा एक नामालूम उम्र का पिद्दी-सा आदमी सिग्रेट के कश लगा रहा था । वो कार की हालत जैसी नीली जीन और उसके कई रंगों जैसी टी-शर्ट पहने था ।
मुकेश को देखकर वो सकपकाया और फिर बोनट पर से फिसलकर जमीन पर खड़ा हो गया ।
“हल्लो ।” - मुकेश बोला ।
वो जबरन मुस्कराया । उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
“इन्तजार है किसी का ?” - मुकेश ने पूछा ।
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“किसका ?”
“कुक का । भीतर अभी डिनर निपटा या नहीं ?”
“अभी नहीं ।”
कुक का नाम रोजमेरी था, खाना पकाने में उसकी दक्षता के सुबूत के तौर पर ही मुकेश उस घड़ी सड़क पर विचर रहा था । 
“बीवी है तुम्हारी ?” - मुकेश ने पूछा ।
“अभी नहीं ।” - वो जबरन मुस्कराता हुआ बोला ।
“बनने वाली है ?”
“हां ।”
“खुशकिस्मत हो । आजकल ऐसी बीवी कहां मिलती है जिसे बढिया खाना पकाना आता हो ! रोज लेने आते हो ?”
“हां ।”
“यहां झाड़ियों में छुप के क्यों खड़े हो ?”
“मैं नहीं, मेरी कार छुप के क्यों खड़ी है ।”
“क्या मतलब ?”
“उसकी हिदायत है कि मेरी ये खटारा कार ब्रान्डो साहब की एस्टेट के आसपास न दिखाई दे ।”
“ओह !”
“कहती है इसमें बैठकर वो कार्नीवाल की झांकी लगती है । बस वापिसी में ही बैठती है क्योंकि वापिसी उसकी हमेशा काफी रात गये होती है । आती बार या पैदल आती है या अर्जेंसी हो तो यहां से कोई उसे कार पर लिवाने आ जाता है ।”
“भई” - मुकेश हंसा - “वैसे कार है तो तुम्हारी झांकी ही ।”
“चलती बढिया है । वफादार बहुत है । कभी रास्ते में धोखा नहीं देती ।”
“क्या कहने ! ऐसी क्वालीफिकेशन वाली तो आजकल बीवी नहीं मिलती ।”
वो हंसा ।
मुकेश ने क्षण-भर को हंसी में उसका साथ दिया और फिर वो आगे समुद्र तट की तरफ बढ चला । उधर ब्रान्डो का प्राइवेट बीच था जहां कि किसी गैर-शख्स की आमद पर पाबन्दी थी ।
वो खुश था कि मोहिनी पाटिल उसी रोज वहां नहीं आ टपकी थी और यूं उसे ब्रान्डो की शाही मेहमाननवाजी का लुत्फ उठाने का मौका मिल गया था ।
भले ही अभी भी न आये कम्बख्त !
आधे घण्टे की वाक के बाद जब वो वापिस लौट तो उसने पाया कि ब्रान्डो और उसकी बुलबुलें तब भी अभी जश्न के मूड में थीं और ब्रान्डी चुसक रही थीं । मुकेश ने उन्हें बारी-बारी घोषणा करते पाया कि वो सब की सब मोहिनी को रिसीव करने पायर पर जायेंगी लेकिन एक बजे के करीब जबकि जश्न का माहौल ठण्डा पड़ने लगा तो उनका वो जोश भी ठण्डा पड़ने लगा ।
वसुन्धरा समझदार थी जो कि उसने ‘बुलबुलों’ की घोषणाओं को गम्भीरता से नहीं लिया थी और वो अपने निर्धारित प्रोग्राम का ही अनुसरण करने के लिये कटिबद्ध रही थी ।
एक बजे उन सबने उस शाम का आखिरी जाम टकराया तो तब तक ब्रान्डो की हालत ऐसी हो चुकी थी कि उस जाम को होंठों से लगाते ही वो कीमती गिलास उसके हाथ से फिसलकर टूट गया था, वो अचेत होकर एक सोफे पर लुढककर तत्काल खर्राटे भरने लगा था और फिर उसकी बुलबुलें उसे उठाकर उसके बैडरूम में पहुंचने गयी थीं ।
“लक्की डाग !” - अपने लिए निर्धारित कमरे की ओर बढता मुकेश ईर्ष्यापूर्ण भाव से बुदबुदाया ।
फिर सारे दिन का थका-हरा वो बिस्तर के हवाले हो गया ।
***
एकाएक मुकेश की नींद खुली । उसे ऐसा लगा जैसे उसके कमरे के प्रवेशद्वार पर दस्त्क पड़ी हो । वो उठकर बैठ गया और आंखों से नींद झटकता कान लगाकर सुनने लगा ।
दस्तक दोबारा न पड़ी लेकिन बाहर गलियारें में निश्चय ही कोई था । उसनें अपनी रेडियम डायल वाली कलाई घड़ी पर निगाह डाली तो पाया तीन बजे थे । वो उठकर दरवाजे पर पहुंचा, दरवाजा खोलकर उसने बाहर झांका । गलियारे में घुप्प अंधेरा था लेकिन वहां निश्चय ही कोई था । कोई गलियारे में चल रहा था और उसकी पदचाप रात के सन्नाटे में उसे सुनायी दे रही थी ।
“कौन है ?” - वो सावधान स्वर में बोला ।
“मिस्टर माथुर ?” - उसे हाउसकीपर की फटे बांस जैसी खरखराती आवाज सुनाई दी ।
“यस ।”
“आई एम सारी, मिस्टर माथुर, कि मैंने आपको डिस्टर्ब किया । अन्धेरे में अनजाने में आपके दरवाजे से मेरा कन्धा भिड़ गया था ।”
क्विंटल की औरत का कन्धा था - मुकेश ने मन-ही-मन सोचा - कोई मजाक था ।
“इट्स आल राइट ।” - प्रत्यक्षत: वो बोला - “नो प्रॉब्लम । मोहिनी को ले आईं आप ?”
“जी हां ।” - वो तनिक उत्साह से बोली - “मैं लेट हो गयी थी वहां पहुंचने में । पूरे तीस मिनट लेट पहुंची थी लेकिन मोहिनी मेरे से भी लेट वहां पहुंची थी । अच्छा हुआ मेरी लाज रह गयी ।”
“आप लेट क्योंकर हो गयी ?”
“रास्ते में पंचर हो गया था । मेरा ईश्वर जानता है कि मैंने इतनी बड़ी गाड़ी का पहिया अकेले बदला । पूरा आधा घण्टा लगा इस काम में मुझे ।”
“ओह ! कैसे पेश आयी मोहिनी आपसे ?”
“बहुत अच्छे तरीके से । लेट आने के लिये सौ बार सारी बोला, जबकि मैं खुद लेट थी । मैं बोली भी । वो बोली फिर भी उससे तो मैं पहले ही पहुंची थी । बहुत अच्छा लगा मेरे को ।”
“बढिया छाप छोड़ी मालूम होती है मोहिनी ने आप पर !”
“बहुत ही अच्छी लड़की है । इतनी खूबसूरत ! इतनी मिलनसार ! इतनी खुशमिजाज ! वो जानती थी कि मैं महज हाउसकीपर हूं और मालिक के हुक्म की गुलाम हूं फिर भी उसने दस बार मेरा शुक्रिया अदा किया कि मैंने इतनी रात गये उसे पायर पर लेने आने की जहमत गवारा की ।”
“अब कहां है वो ?”
“अपने कमरे में । अभी छोड़कर आयी हूं । बहुत थकी हुई थी बेचारी । सो गयी होगी ।”
“सो गयी होगी ! आपने उसे बताया नहीं कि खास उससे मिलने की खातिर ही मैं यहां आया बैठा था ?”
“नहीं । मैं क्यों बताती !”
“लेकिन आपको मालूम तो था मैं...”
“ओह मिस्टर माथुर, ये कोई टाइम है किसी से कोई बात करने का ! जो बात करनी हो, सुबह कर लीजियेगा । कुछ ही घण्टों की तो बात है । नहीं ?”
“हां ।”
“मैं शर्मिंदा हूं कि मैंने आपकी नींद में बाधा डाली ।”
“नैवर माइन्ड । गलियारे में अन्धेरा क्यों है ?”
“रात को यहां की बत्ती जलाने पर, मिस्टर ब्रांडो कहते हैं कि, मेहमानों को असुविधा होती है । आप कहें तो जला देती हूं ।”
“नहीं, जरूरत नहीं । थैंक्यू । एण्ड गुड नाइट ।”
“गुड नाइट, सर ।”
मुकेश ने दरवाजा बन्द किया और वापिस पलंग पर पहुंच गया लेकिन अब नींद उसकी आंखों से उड़ चुकी थी । उसने करीब पड़ी शीशे की सुराही में से एक गिलास पानी पिया और सोचने लगा । मोहिनी पाटिल उर्फ मिसेज श्याम नाडकर्णी को ये गुड न्यूज देने के बाद कि वो अब ढाई करोड़ रुपये की विपुल धनराशि की मालकिन थी, उसका काम खत्म था । कितना अच्छा होता कि कल खड़े पैर उस काम में कोई घुंडी पैदा हो जाती और उसे बड़े आनन्द साहब का ये हुक्म हो जाता कि वो अभी वहीं ठहरे ।
छ: - अब सात - स्वर्ग की अप्सराओं के साथ ।
उसका दिमाग बड़े रंगीन सपनों में डूबने-उतराने लगा ।
गलियारे में एकाएक फिर आहट हुई ।
उसके कान खड़े हो गए ।
इस बार आहट किसी के उसके दरवाजे से टकराने से नहीं हुई थी । इस बार आहट ऐसी थी जैसे कोई दीवार टटोलता दबे पांव गलियारे में चल रहा था ।
कौन था ? कोई चोर ? नहीं, अभी तो वसुन्धरा वहां से गुजरकर गयी थी, इतनी जल्दी कोई चोर कहां से आ टपकेगा ?
तो फिर कौन ?
देखना चाहिये ।
वो पलंग पर से उठा और दरवाजे पर पहुंचा । उसने दरवाजे की आधा खोलकर बाहर झांका । बाहर पूर्ववत अन्धेरा था । वो कान लगाकर आहट लेने लगा ।
कोई आहट न मिली लेकिन फिर भी उसे बड़ी शिद्दत के साथ ये अहसास हुआ कि गलियारे में कोई था जो उससे परे जा रहा था ।
“कौन है ?” - हिम्मत करके वो दबे स्वर में बोला ।
“लता ।” - वैसी ही दबी आवाज आयी ।
“लता कौन ?”
“मंगेशकर ।”
“कौन ?”
“मदर टैरेसा ।”
“कौन हो, भाई ।”
“मदाम बावेरी ।”
इस बार कदमों की आहट उसे स्पष्ट सुनायी दी । किेसी के पांव गलियारे से निकलकर पहले बाल्कनी पर और फिर नीचे को उतरती अर्धवृत्ताकार सीढियों पर पड़े ।
दरवाजे की ओट छोड़कर उसने गलियारे में कदम रखा और आगे बढा ।
नीचे लाउन्ज में से उसे रोशनी का आभास मिला ।
वो नीचे पहुंचा ।
बार पर टीना मौजूद थी । उसके एक हाथ में विस्की की बोतल थी और दूसरे में एक गिलास था ।
वो करीब पहूंचा ।
“वैलकम !” - टीना तनिक झूमती हुई बोली ।
“जल्दी जाग गयीं !” - वो बोला ।
“आओ, मेरे साथ एक जाम पियो और मर जाओ ।”
“ऊपर अन्धेरे में चोरों की तरह क्यों चल रही थीं ? कहीं ठोकर खा जातीं तो जरूर गरदन तुड़ा बैठी होती ।”
वो हंसी ।
“वापिस अपने कमरे में जाओ और सो जाओ । ये कोई टाइम है ड्रिंक का ?”
“क्या खराबी है इस टाइम में । माई डियर एडवोकेट साहब, शराब पीने के दो ही बेहतरीन टाइम होती हैं । एक अभी और एक ठहर के । नाओ एण्ड लेटर । ये ‘अभी’ है । दिस इज नाओ ।”
“तुम अपने आप से ज्यादती कर रही हो । तुम...” 
“ओह, शटअप ।”
“टीना, तुम...”
“मिस्टर लॉमैन, या तो मेरे साथ शराब में शिरकत करो या दफा हो जाओ ।”
“ठीक है ।” - वो असहाय भाव से कन्धे उचकाता हआ बोला - “मैं दफा ही होता हूं ।”
“और सुनो ।”
“बोलो ।”
“ब्रांडो के जागने से पहले यहां से मेरी लाश उठवाने का इन्तजाम कर देना ।”
“जान देने के आसान तरीके भी हैं ।”
“अच्छा ! मसलन बताओ कोई ।”
“सामने स्वीमिंग पूल है । डूब मरो । पूल का पानी कम पड़ता हो तो करीब ही समुद्र भी है ।”
“मैं सोचूंगी इस बाबत । नाओ गैट अलांग ।”
भारी कदमों से वो वापिस लौटा । सीढियां तय करके वो बाल्कनी में पहुंचा और अन्धेरा गलियारा पर करके अपने कमरे में वापिस लौटा । वो अपने पलंग के करीब पहुंचा तो उसने पाया कि वो खाली नहीं था । कोई वहां पहले ही पसरा पड़ा था ।
हड़बड़ाकर उसने बत्ती जलाई ।
पलंग पर उसे फौजिया खान पसरी पड़ी दिखाई दी । उसके सुनहरे बाल तकिये पर उसके चांद जैसे चेहरे के गिर्द बिखरे हुए थे । उसकी आंखें बन्द थीं और गुलाब की पंखड़ियों जैसे होंठ यूं आधे खुले हुए थे कि कामातुर लग रहे थे । उसका उन्नत वक्ष उसकी सांसों के साथ बड़े तौबाशिकन अन्दाज से उठ-गिर रहा था ।
मुकेश ने थूक निगली और बड़े नर्वस भाव से हौले से खांसा ।
फौजिया की पलकें फड़फड़ाती हुई खुलीं ।
“नहीं मांगता ।” - मुकेश अप्रसन्न भाव से बोला ।
“क... क्या !” - फौजिया के मुंह से निकला ।
“ये कोई वक्त है !”
“किस बात का ?”
“उसी बात का जिसके लिये तुम मेरे बिस्तर पर मौजूद हो । “
“तुम्हारे बिस्तर पर ?”
“और नहीं तो क्या ?”
“यू सन आफ बिच !” - एकाएक वो एक झटके के उठकर बैठ गयी - “गैट आउट आफ माई रूम ।”
“युअर रूम !” - वो भौचक्का-सा बोला - “ये तुम्हारा कमरा है ?” 
“अब तुम कहोगे ‘मैं कौन हूं । मैं कहां हूं । मेरा नाम क्या है । राजकुमार फागुन बनकर दिखओगे । याददाश्त चली गयी होने का बहाना करोगे । मैं सब जानती हूं ।”
उसने घबराकर चारों तरफ निगाह दौड़ाई तो पाया कि वो वाकेई उसका कमरा नहीं था ।
“सारी !” - वो हकलाता-सा बोला - “गलती हो गयी ।”
“सम्भाल नहीं सकते तो कम पिया करो । नशा उतर जाये तो खबर करना ।”
“खबर ! वो किसलिये ।”
“क्या पता” - एकाएक वो मुस्कराई - “गलती न हुई हो !”
वो सरपट वहां से भागा और अपने कमरे में जाकर पलंग पर ढेर हो गया ।
उसके होश ठिकाने आये तो वो टीना के बारे में सोचने लगा ।
किस फिराक में थी वो लड़की !
***
खिड़की से छनकर आती धूप जब मुकेश के चेहरे से टकराने लगी तो वो नींद से जागा । उसने आंखें मिचमिचाकर अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली तो पाया कि नौ बज चुके थे । वो जल्दी से बिस्तर में से निकला और बाथरूम में दाखिल हो गया ।
लगभग आधे घण्टे बाद मोहिनी पाटिल उर्फ मिसेज नाडकर्णी के रूबरू होने के लिये तैयार होकर जब वो नीचे पहुंचा तो उसने स्विमिंग पूल के किनारे लगी एक टेबल के गिर्द बाकी लोगों को मौजूद पाया ।
उसकी निगाह पैन होती, टीना और फौजिया पर तनिक ठिठकती, तमाम सूरतों पर फिरी ।
अपेक्षित सूरत वहां नहीं थी ।
“गुड मार्निंग, ऐवरीबाडी ।” - फिर वो टेबल के करीब पहुंचकर मुस्कराता हुआ बोला ।
सबने उसके अभिवादन का जवाब दिया ।
“आओ” - ब्रान्डो बोला - “इधर आकर बैठो ।”
उसके पहलू में दो कुर्सियां खाली थीं जिनमें से एक पर वो जा बैठा ।
“मोहिनी कहां है ?” - वो उत्सुक भाव से बोला ।
“मोहिनी आलिया अभी ख्वाबगाह में ही है ।” - फौजिया व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली ।
“लेकिन” - शशिबाला बोली - “यकीनन ख्वाब नहीं देख रही होगी । वो बड़े यत्न से अपनी यहां ड्रामेटिक ऐन्ट्री की तैयारी कर रही होगी ।” 
“उसकी हमेशा की आदत है ।” - फौजिया बोली ।
“ब्रांडो डार्लिंग्र” - शशिबाला बोली - “आज ऐग परांठा तो कमाल का बना है ।”
“सच कह रही हो ?” - ब्रान्डो सन्दिग्ध भाव से बोला ।
“लो ! ये भी कोई झूठ बोलने की बात है ।”
“फिर तो शुक्रिया ! शुक्रिया । शुक्रिया ।”
“इतना ढेर शुक्रिया किसयलिये ?”
“क्योंकि ये ऐग परांठा मैंने बनाया है ।” - ब्रान्डो खुशी से दमकता हुआ बोला - “आज ब्रेकफास्ट मैंने तैयार किया है ।”
“तुमने, ब्रान्डो !”
“आफकोर्स सर्वेन्ट्स की मदद से । लेकिन कुक मैं था ।”
“क्यों ? कुक कहां चली गयी ?”
“कहीं चली नहीं गयी, यहां पहुंच नहीं सकी । वो क्या है कि सुबह वसुन्धरा को उसे गाड़ी पर उसके घर से लेकर आना था लेकिन आज मेरा दिल न माना वसुन्धरा को जगाने को । मोहिनी को पायर से लिवा लाने के चक्कर में बेचारी रात को कितनी देर से तो सोई होगी ।”
“रात को” - आलोका बोली - “कितने बजे लौटी थी वो मोहिनी को लेकर ।”
“पता नहीं । मैं तो सो गया था ।”
“तीन बजे के करीब ।” - मुकेश बोला - “तब मेरी वसुन्धरा से बात हुई थी । तब वो बस लौटी ही थी मोहिनी को ले के ।”
“फिर तो खूब सो ली वो ।” - आलोका बोली - “हमें जा के जगाना चाहिये उसे ।”
“अरे, मैंने बोला न वो सो नहीं रही है ।” - फौजिया बोली - “वो अपने कमरे में बैठी सज रही है । वो हमें तपा रही है । यहां जब हवा से उड़-उड़कर हमारे बाल बिगड़कर हमारी आंखों में पड़ रहे होंगे और हमारा मेकअप बर्बाद हो रहा होगा तो वो ताजे गुलाब-सी खिली, खुशबू के झोंके की तरह लहराती यहां कदम रखेगी और हम सबकी पालिश उतार देगी ।”
“दस बजने वाले हैं ।” - ब्रान्डो घड़ी देखता हुआ बोला - “और वो कहती थी कि दोपहर को उसने चले भी जाना है । यही हाल रहा तो वो हमसे अभी ठीक से हल्लो भी नहीं कह पायेगी कि उसका जाने का वक्त हो जायेगा ।”
“मैं ले के आती हूं उसे ।” - आलोका उठती हुई बोली ।
“हां । जरूर ।” - आयशा बोली - “बस ले आना उसे । भले ही उसके जिस्म पर अभी नाइटी ही हो ।”
“भले ही” - आलोका दृढ स्वर से बोली - “उसके जिस्म पर नाइटी भी न हो ।” 
“बिल्कुल ठीक । हम क्या पागल हैं जो यहां बैठे इन्तजार कर रहे है कि वो प्रकट भये और हमें दर्शन दे !”
“यही तो । मैं बस गयी और आयी ।”
वो घूमी और लम्बे डग भरती इमारत के भीतर की ओर बढ चली ।
मुकेश अपलक उसे जाता देखता रहा ।
खूबसूरती में वो बाकियों से उन्नीस कही जा सकती थी लेकिन उसकी उस कमी को पूरा करने के लिये उसमें बला की ताजगी और जीवन्तता थी ।
बगल में बैठी टीना ने उसे कोहनी मारी । उसने उसकी तरफ देखा तो उसने दूर जाती आलोका की तरफ निगाह से इशारा करके इनकार में सिर हिलाया और फिर निगाहें झुकाकर हामी भरी ।
मुकेश ने इशारे से ही उसे समझया कि वो उसका मन्तव्य समझ गया था । वो उसे कह रही थी कि देखना था तो वो आलोका को नहीं, उसे देखे।
“ब्रान्डो, तुम कहते हो मोहिनी जरा नहीं बदली ।” - आयशा अरमानभरे स्वर से बोली - “लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है ? सात साल में किसी में जरा भी तब्दीली न आये, ऐसा कैसे हो सकता है ?”
“तुम ऐसा अपनी वजह से सोच रही हो ।” - फौजिया बोली ।
“अच्छा-अच्छा ।” - आयशा भुनभुनाई - “मेरी वजह से ही सही ।”
“माई हनी चाइल्ड” - ब्रान्डो बोला - “आज की तारीख में तुम पहले से कहीं ज्यादा दिलकश हो । तुम सिर्फ मूलधन ही नहीं, ब्याज भी हो । मूलधन में ब्याज जमा हो जाये तो मूलधन की कीमत बढती है, घटती नहीं है । हनी, आई लव यू दि वे यू आर ।”
“हौसलाअफजाई का शुक्रिया ।” - आयशा उत्साहहीन स्वर में बोली ।
“आज की तारीख में वो देखने में कैसी है, ये अभी सामने आ जायेगा ।” - शशिबाला बोली - “लेकिन वो सुनने में कैसी है ये मुझे पहले ही मालूम है ।”
“कैसी है ?” - टीना बोली ।
“वैसी ही जैसी वो हमेशा थी । कोई फर्क नहीं । कतई कोई फर्क नही । “
“मैंने भी तो ये ही कहा था ।” - ब्रान्डो बोला ।
“ठीक कहा था ।”
“तू उससे मिली थी ?” - सुनेत्रा बोली ।
“मिली नहीं थी, लेकिन बात हुई थी ।” - शशिबाला बोला - “रात तीन बजे के बाद किसी वक्त मेरी नींद खुली थी । तब मेरे से ये सस्पेंस बर्दाश्त नहीं हुआ था कि मोहिनी मेरे इतने करीब मौजूद थी । तब मैं उससे मिलने चल गयी थी ।”
“उसके कमरे में ?”
“और कहां ?” 
“सोते से तो जगाया नहीं होगा उसे ।” - टीना बोली - “वर्ना वो जरूर तेरा गला घोंट देती ।”
“मालूम है । मैं भूली नहीं हूं कि कोई उसे सोते से जगाता था तो वो उसका खून करने पर आमादा हो जाती थी । लेकिन इत्तफाक से वो अभी सोई नहीं थी । मेरे उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक देते ही उसने फौरन जवाब दिया था ।”
“लेकिन दरवाजा नहीं खोला होगा ।” - आयशा बोली - “रात के वक्त पलंग से उठकर दरवाजे तक आना तो उसे पहाड़ की चोटी चढने जैसा शिद्दत का काम लगता था ।”
“हां । बहरहाल बन्द दरवाजे के आर-पार से ही बीते जमाने की तरह थोड़ी गाली-गुफ्तार हुई, थोड़ी हंसी-ठठ्ठा हुआ और फिर मैं उसे गुडनाइट बोलकर अपने कमरे में लौट आयी ।”
“बाई दि वे” - सुनेत्रा बोली - “उसे पता होगा कि तू अपनी तमाम फिल्मों में उसके मैनेरिज्म की नकल करती है ?”
“तुझे पता है ?” - शशिबाला बोली ।
“हां ।”
“यानी कि तू मेरी हर फिल्म देखती है ?”
“हां, जब कभी भी मेरा अपने आप को सजा देने का, सताने का दिल करता है तो मैं तेरी फिल्म देखने चली जाती हूं ।”
“अकेले ही जाती होगी । तेरे हसबैंड विकास को तो तेरे साथ कहीं जाना गवारा होता नहीं होगा ।”
सुनेत्रा के मुंह से बोल न फूटा ।
“सुनेत्रा डार्लिंग” - टीना बोली - “अब तेरी बारी है ।”
सुनेत्रा खामोश रही ।
“बुरा मान गयी मेरी बन्नो ।” - शशिबाला हंसती हई बोली ।
“नहीं-नहीं । बुरा मानने की क्या बात है !” - सुनेत्रा निगाहों से उस पर भाले-बर्छियां बरसाती हुई बोली - “तू जो मर्जी कह ।”
“तू तो जानती है कि मैं तो मरती हूं तेरे पर । लेकिन फिर भी कैसा इत्तफाक है कि हम यहां एक मिनट भी इकट्टे नहीं गुजर पाये ! मैं तेरे से ये तक न पूछ सकी कि तू अभी भी कुमारी कन्या है न ?”
“ममी, कुमारी कन्या क्या होती है ?” - टीना बोली ।
“कुमारी कन्या वो होती है, बिटिया रानी, जो विकास निगम से विवाहित हो ।”
सुनेत्रा के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे वो रोने लगी हो ।
“गर्ल्स ! गर्ल्स !” - तत्काल ब्रान्डो ने दखल दिया - “बिहेव । माहौल न बिगाड़ो । प्लीज । आई बैग आफ यू ।”
तत्काल खामोशी छायी । 
“गर्ल्स” - ब्रान्डो फिर बोला - “अब बोलो क्या कल तुम में से किसी और ने भी मोहिनी के यहां पहुंचने के बाद उससे मिलने की कोशिश की थी ?”
मुकेश ने टीना की तरफ देखा ।
तत्काल टीना परे देखना लगी ।
“मैंने की थी ।” - फौजिया बोली - “शशिबाला की तरह रहा मेरे से भी रहा नहीं गया था । कोई फर्क है तो ये कि ये कहती है कि ये तीन बजे के करीब सोते से जागी थी जब कि मैं सोई ही नहीं थी ।”
“क्या नतीजा निकला तुम्हारी मुलाकात की कोशिश का ?” - आयशा उत्सुक भाव से बोली - “शशिबाला जैसा ही या उससे बेहतर ?”
“उससे बेहतर । मैं जब उसके दरवाजे पर पहुंची थी तो वो भीतर वसुन्धरा को किसी बात पर डांट रही थी । वसुन्धरा कुछ कहने की कोशिश करती थी तो वो उसे बीच में ही टोक देती थी और फिर उस पर बरसने लगती थी । मैं तो चुपचाप लौट आयी वापिस ।”
“अच्छा किया ! वर्ना वो तुझे भी फिट कर देती ।”
“वही तो ।”
“ऐग्जेक्टली ऐज आई सैड ।” - ब्रान्डो - “हमारी मोहिनी आज भी पहले ही जैसी गुस्सैल और तुनकमिजाज है ।”
“अजीब बात है” - मुकेश बोला - “कि वो हाउसकीपर पर बरस रही थी ।”
“अजीब क्या है इसमें ?”
“जनाब, हाउसकीपर तो उसकी इतनी तारीफ कर रही थी । उसे निहायत मिलनसार, निहायत खुशमिजाज बता रही थी । जो लड़की उस के साथ पायर से यहां के रास्ते में इतना अच्छा पेश आयी थी, उसके यहां आते ही ऐसे तेवर क्योंकर बदल गये थे कि वो हाउसकीपर पर बरसने लगी थी ? ऐसा बरसने लगी थी कि उसे अपनी सफाई का कोई मौका नहीं दे रही थी ?”
“दैट इज अवर मोहिनी वर हण्ड्रड पर्सेंट । माई डियर यंग मैन, मौसम जैसा मिजाज सिर्फ हमारी मोहिनी ने ही पाया है । अभी लू के थपेड़े तो अभी ठण्डी हवायें । अभी चमकीली धूप तो अभी गर्ज के साथ छींटे । अभी...”
तभी वातावरण एक चींख की तीखी आवाज से गूंजा ।
सब सन्नाटे में आ गये ।
“ये तो” - फिर ब्रान्डो दहशतनाक लहजे से बोला - “आलोका की आवाज है ।”
“ऊपर से आयी है ।” - मुकेश बोला ।
तत्काल सब उठकर ऊपर को भागे ।
चीख की आवाज फिर गूंजी ।
आलोका उन्हें मोहिनी के कमरे के खुले दरवाजे की चौखट से लगी खड़ी मिली । उसके चेहरे पर दहशत के भाव थे और वो चौखट के साथ लगी-लगी जड़ हो गयी मालूम होती थी ।
ब्रान्डो, जो सबसे आगे था, सस्पेंसभरे स्वर में बोला - “आलोका ! क्या हुआ, हनी ?”
आलोका के मुंह से बोल न फूटा । उसने अपनी एक कांपती हुई उंगली कमरे के भीतर की ओर उठा दी ।
मुकेश लपककर अपने मेजबान के पहलू में पहुंचा और उसने कांपती उंगली द्वारा इंगित दिशा का अपनी निगाहों से अनुसरण किया ।
कमरे के कालीन बिछे फर्शे पर हाउसकीपर वसुन्धरा की लाश पड़ी थी । उसकी छाती में गोली का सुराख दिखाई दे रहा था जिसके इर्द-गिर्द और नीचे कालीन पर लाश के पहलू में बहकर जम चुका खून दिखाई दे रहा था । उसकी पथराई हुई आंखें छत पर कहीं टिकी हुई थीं ।
वो निश्चित रूप से मर चुकी थी ।