“तुम्हारे मुंह से हाथ हटाने जा रहे हैं।” सोहन गुप्ता ने बेवू से कहा –“अगर तुम चिल्लाए तो तुम्हें शूट कर देंगे।” इसके साथ ही सोहन गुप्ता ने रिवॉल्वर निकालकर हाथ में ले ली –“मैं तुम्हें फिर कहता हूं बेवू हम तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं। तुम भी ऐसी कोई हरकत मत करना कि हम तुमसे दुश्मनों जैसा व्यवहार करना पड़े।”

बेवू, सोहन गुप्ता को देखता रहा।

“तुम्हारे होंठों से हाथ हटाएं?” सोहन गुप्ता ने पुनः कहा।

बेवू ने आंखें झपककर सहमति दी।

सोहन गुप्ता के इशारे पर बेवू के होंठों से हाथ हटा लिया गया। टांगों को भी आजाद कर दिया गया।

बेवू ने कुछ गहरी सांसें ली।

“आवाज ऊंची मत निकालना।” सोहन गुप्ता के हाथ में अभी भी रिवॉल्वर दबी।

“कौन हो तुम लोग?” बेवू का स्वर गम्भीर था।

“ये बात तुम कभी भी नहीं जान सकते।” सोहन गुप्ता ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तुम...।” बेवू ने कहना चाहा।

“जुबान बंद रखो।” सोहन गुप्ता बोला –“हमने तुम्हें यहां से बाहर ले जाना है, हमें सहयोग दोगे या हम कुछ सोचें कि...।”

“तुमने किसी और को बेवू बनाकर, गनमैनों के पास भेजा है न? वो-वो मेरा हमशक्ल...।”

“हां। सही समझे।”

“उसका मेकअप अच्छा था। मेरी तरह लग रहा...।”

“उसका चेहरा तुमसे मिलता है। मुझे पता चला कि दो दिन की कोशिश में, वो तुम जैसा बन गया।”

“तुम लोग जो भी हो, बेवकूफ हो। कोई भी इस्टेट में मेरी जगह नहीं ले सकता। पापा एक नजर में ही पहचान जाएंगे कि वो उनका बेटा बेवू नहीं है। बाकी लोग भी पहचान जाएंगे कि...।”

“इस बात की तुम चिंता मत करो और मुंह बंद रखो। यहां से निकलने में हमें सहयोग दोगे कि नहीं?”

“मैं तैयार हूं।” बेवू ने गम्भीर स्वर में कहा –“क्या चाहते हो?”

सोहन गुप्ता ने एक तरफ रखा लिफाफा उठाकर उसकी तरफ बढ़ाया।

“इसमें तुम्हारे नाप का काला सूट है, पहन लो। एक कैप है जो तुम्हें सिर पर लगानी होगी और तुम्हारे होंठों के ऊपर मूंछे चिपकाई जाएंगी। तुम्हें यहाँ से पार्किंग तक ले जाना है। मैं नहीं चाहता कि कोई तुम्हें बेवू के तौर पर पहचाने। अगर तुमने कहीं भी चालाक बनने की चेष्टा की तो तुम्हें उसी वक्त शूट कर दिया जाएगा। हमारे और लोग भी हैं। वो हर तरफ फैले हैं। बाहर जिन दो लोगों को तुमने लड़ते देखा, वो हमारे ही लोग थे।”

“समझा।” बेवू ने गम्भीर भाव में सिर हिलाया –“अच्छा काम किया तुम लोगों ने।”

“इसे कपड़े पहनने को तैयार करो। कड़ी नजर रखो इस पर।”

दोनों एजेंटों ने अपना ध्यान बेवू पर लगा दिया।

तीसरा एजेंट सतर्क मुद्रा में खड़ा था।

सोहन गुप्ता ने मोबाइल निकाला और पार्किंग में मौजूद एजेंट को कॉल की।

“बेवू गया?” सोहन गुप्ता ने पूछा।।

“वो जा रहे हैं। उनकी कारें स्टार्ट हो रही हैं।” उधर से आवाज आई।

“हम अभी बाहर आ रहे हैं। सबको सतर्क करो और चलने की तैयारी करो।”

“काम हो गया?”

“हो गया।”

☐☐☐

इस्टेट में भरपूर रोशनी थी।

विशाल गेट पर दो गनमैन टहलते नजर आ रहे थे। भीतर की तरफ पास में ही गनमैनों के लिए बड़ा-सा कमरा बना हुआ था। जहां से भीतर बात करने का इंतजाम था। भीतर से बाहर भी देखा जा सकता था। उस कमरे के भीतर रोशनी नहीं थी, परंतु बाहर की सारी रोशनी थी। कमरे के भीतर एक गनमैन मौजूद था और वहां से बाहर पैनी निगाह रख रहा था। उसे कोई नहीं देख सकता था पर वो सबको देख सकता था। उस कमरे की दीवार में पारदर्शी शीशे की खिड़कियां थीं कि जिसके द्वारा भीतर से बाहर देखा जा सकता था। उस कमरे की एक दीवार चारदीवारी वाली दीवार थी। इसका ये फायदा था कि कमरे से ही गेट के बाहर दूर तक आने वालों पर नजर रखी जा सकती थी।

इस जगह को जगवामा इस्टेट कहा जाता था।

वोमाल जगवामा!

जो कि बर्मा में नाम रखता था। जिसके एक इशारे पर सत्ता बदल जाती थी। जिसके एक इशारे पर पुलिस खड़ी हो जाती थी। वो दीवार के पीछे बैठा, बर्मा के राजा की तरह था। वोमाल जगवामा के लोग पूरे बर्मा और बर्मा के बाहर भी मौजूद थे। जगवामा इतना क्रूर था कि किसी को भी अपने सामने सिर उठाने का मौका नहीं देता था। जरा-सी गलती पर भी अपने आदमियों को शूट कर देता था। ये ही वजह थी कि उसके लिए काम करने वाले लोग हर समय सतर्क रहते थे। दिल से जगवामा का काम करते थे। जगवामा उन्हें मोटी तनख्वाह देता था। पैसा खुले दिल से देता था।

जगवामा की इस्टेट चालीस हजार गज में फैली थी। या यूं समझ लें कि इस्टेट के भीतर उसने छोटा-सा शहर बसा रखा था। नौकरों के लिए खाना, बंगले के पीछे, दूर, फ्लैटों के पास, वहां के बड़े-से किचन में बनता था और बीस लोगों के जिम्मे ये ही काम था। दिन में दो बार खाना बनता था। सुबह आठ बजे और शाम आठ बजे। खाना सर्व नहीं किया जाता था। जिसे खाना होता, वो उस किचन में जाकर कहता और किचन के साथ लगे डायनिंग हॉल में खाने को बैठ जाता। वहां उसे खाना सर्व कर दिया जाता। फ्लैटों में ही एक डॉक्टर, नर्स चौबीस घंटे रहते थे कि वहां कोई बीमार हो तो उनसे जाकर दवा ले सकता था।

जगवामा इस्टेट में पचास के करीब गनमैन थे। दिन में सिर्फ पंद्रह गनमैन ही ड्यूटी देते और रात को पच्चीस गनमैन ड्यूटी पर होते। दस तो महल जैसी छत पर तैनात रहकर हर दिशा को कवर करते। तीन मुख्य बाहरी गेट पर रहते। बाकी के बारह महल जैसे बंगले के गिर्द इस तरह फैल जाते कि हर तरफ निगाह रख सकें। जगवामा के दुश्मन बहुत थे। आज तक दो बार ही इस्टेट पर हमला किया गया था कि वोमाल जगवामा की जान ले सके। इस बात को भी सालों बीत चुके हैं। परंतु कोई भी कामयाब नहीं हो सका। हमला करने वाले मारे गए और जिस-जिसने हमला करवाया, वोमाल ने उसके पूरे परिवार को खत्म करवा दिया। वोमाल इस बात का बहुत ध्यान रखता था कि कोई उस पर हमला करने में कामयाब न हो सके। इन गनमैनों को संभालने वाला, सिक्योरिटी चीफ हूसल था। पचास वर्षीय हूसल उसका तीस साल पुराना वफादार था। वोमाल जानता था कि हूसल अपना काम बढ़िया ढंग से करता है। हूसल सख्त मिजाज व्यक्ति था और किसी तरह की लापरवाही पसंद नहीं करता था। वो ड्यूटी देने वाले गनमैनों पर पैनी नजर रखता था। अगर कोई ढीला या लापरवाह दिख जाए तो उसे फौरन नौकरी से निकाल देता था, इस बात का उसके पास पूरा अधिकार था। ऐसा कम ही हुआ कि किसी को नौकरी से निकालना पड़ा। कोई भी मोटी तनख्वाह नहीं खोना चाहता, ऐसे में अपना काम हर कोई बढ़िया करता था। इस्टेट की सिक्योरिटी के प्रति वोमाल जगवामा काफी हद तक निश्चिंत रहता था।

वो वैन और उसके पीछे दोनों कारें गेट के मुख्य द्वार पर आ रुकी। उन्हें पहचानते ही गनमैन सिक्योरिटी रूम के पास पहुंचा और भीतर बैठे गनमैन से गेट खोलने को कहा।

भीतर बैठे गनमैन ने दीवार पर लगे बटनों के बोर्ड में से एक बटन दबा दिया।

अगले ही पल वो लोहे का विशाल गेट बिना आवाज के खुलने लगा। बाहर खड़ी गाड़ियों की रोशनी गेट पर पड़ रही थी। ढाई मिनट लगे और गेट पूरा खुल गया।

वैन और दोनों कारें भीतर प्रवेश करती चली गईं। दोनों कारें वैन के पीछे थी। गेटों से उस महल जैसे बंगले तक घूमती हुई पक्की सड़क जा रही थी। जो कि शानदार पोर्च से होती हुई, दूसरी तरफ से वापस गेट पर आकर पुनः सड़क से मिल जाती थी। नाशपाती जैसा घेरा था सड़क का और बीच में रंग-बिरंगे फूलों का छोटा-सा बाग था। इस वक्त इस्टेट में पूरी तरह शांति छाई हुई थी।

वैन और कारें पोर्च में जा रुकी। इंजन बंद हुए।

तभी वैन का दरवाजा खुला और एक गनमैन बाहर निकलकर खड़ा हो गया।

बेवू के रूप में जगमोहन बाहर निकला। एक मिनट भी नहीं रुका वहां और सामने नजर आ रहे मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ गया। दरवाजा खुला था। भीतर रोशनी हो रही थी। जगमोहन के हाव-भाव में ये बात झलक रही थी जैसे ये जगह उसके लिए पुरानी हो। ऐसा ही तो दर्शाना था उसे। मन-ही-मन वो इस विशाल बंगले के भीतर के नक्शे को याद कर रहा था कि भीतर प्रवेश करते ही उसे कहां-किधर जाना है उसका कमरा किस तरफ है।

जगमोहन अभी दरवाजे पर पहुंचा कि पीछे से वैन और कारों के स्टार्ट होने और जाने की आवाज आई। तभी सामने से आता नौकर दिखा। वो चालीस की उमर का स्वस्थ व्यक्ति था। वो पास से निकलता कह उठा।

“गुड नाइट सर।”

जगमोहन ने सिर हिलाया और आगे बढ़ गया।

ये बहुत ही खूबसूरत और काफी बड़ा हॉल था। इतना बड़ा कि दौड़ लगाई जा सके। पूरे हॉल को बहुत ही खूबसूरती के साथ सजा रखा था, कीमती-बेशकीमती चीजों से। यहां का हाल देखते ही बनता था। आगे बढ़ते हुए जगमोहन छिपी निगाहों से हर तरफ देख रहा था कि दाईं तरफ से एक आदमी अपनी तरफ आता दिखा। वो पैंतीस-चालीस के बीच का था और फौरन उसे पहचाना गया। तस्वीर देखी थी उनकी। वो मोहम्मद रजा मिर्जा था।

वो पास पहुंचा और आदर भरे स्वर में बोला।

“गुड नाइट सर। शादी में काफी देर हो गई। वरना इस वक्त तक तो आप नींद में होते हैं।”

“मिर्जा हो।” जगमोहन के चेहरे पर मुस्कान बिखरी थी।

“आपका गुलाम हूं सर।”

“मुझे मेरे कमरे तक ले चलो।” जगमोहन का स्वर धीमा था।

“उसी के लिए तो आया हूं सर, आइए।” कहने के साथ ही मिर्जा आदर भाव से आगे बढ़ा।

जगमोहन उसके साथ चल पड़ा।

“रात को बंगले में कितने नौकर होते हैं?” जगमोहन ने दबे स्वर में पूछा।

“दस के आसपास।” मिर्जा धीमे स्वर में बोला।

“वोमाल के पास?”

“छ: नौकर अलग से। वो वोमाल के बगल वाले कमरे में मौजूद रहते हैं, जरूरत पड़ने पर वोमाल बेल बजाकर बुला लेता है।”

“इस वक्त वोमाल नींद में होगा?”

“जी।”

“तुम्हें किसने खबर दी अदला-बदली की?”

“गुप्ता ने।”

वो अब हॉल को पार करके एक बड़े-से दरवाजे से पीछे की तरफ आ गए थे। यहां आने-जाने के रास्ते और कमरों की भरमार थी। बीच-बीच में छोटे-छोटे फूलों के बाग भी थे। बागों में रोशनी फैली हुई थी।

“यहां की कोई नई खबर?”

“सब ठीक है। कोई खबर नहीं।”

“बेवू सुबह कितने बजे उठता है?”

“उसके मूड पर है। कभी जल्दी तो कभी आराम से। सुबह नौ बजे

तक उठ जाता है। नाश्ता वो बारह बजे करता है। लंच नहीं करता। उसके बाद रात को ही खाना खाता है।” मिर्जा ने बताया।

“सिगरेट–शराब?”

“सिगरेट नहीं पीता। व्हिस्की कभी-कभी ले लेता है। वो भी थोड़ी ही। उसके कमरे में बार है।”

“वोमाल को क्या कहकर पुकारता है?”

“पापा।”

दोनों आगे बढ़ते रहे। रास्ते पार होते रहे।

जगमोहन हर रास्ते को समझ रहा था। पहचान रहा था।

“यहां बेवू की कितनी चलती है?”

“पूरी चलती है। परंतु वोमाल के ऑर्डर के सामने नहीं चलती।”

“मतलब?”

“वोमाल का हुक्म, तुम्हारे हुक्म से बड़ा होता है। उसकी बात फौरन मानी जाती है।”

“मतलब कि यहां का असली मालिक वोमाल है, बेवू नहीं।”

“बेवू भी असली मालिक है। परंतु जैसे कि वोमाल कहता है कि आप अकेले इस्टेट से बाहर नहीं जाएंगे तो नहीं जा सकते। गेट पर मौजूद गनमैन आपको नहीं जाने देंगे। आपके साथ गनमैन होंगे तो जाने देंगे। वोमाल नहीं चाहता कि बेवू फिर से भाग जाए। वो बेवू को बहुत चाहता है। वो ही तो उसका वारिस है। परंतु बेवू से नाराज भी है कि वो उसके काम को नहीं संभाल रहा। संगठन को बेचने का इरादा रखता है।”

“इसके बावजूद भी बाप-बेटे में अच्छे सम्बंध हैं?”

“हां। बेवू वोमाल को पिता के नाते पूरी इज्जत देता है। वो कभी भी बदतमीजी से पेश नहीं आता। वोमाल कई बार उस पर नाराज हो जाता है परंतु बेवू बुरा नहीं मानता। बीमारी के बाद से तो वोमाल चिड़चिड़ा हो गया। ये बात सब जानते हैं। हर समय बिस्तरे पर पड़े रहना, वहीं पर जीवन बिताना आसान भी तो नहीं होता।”

“क्या बीमारी है उसे?”

“कमर में समस्या है। यूं समझो कि रीढ़ की हड्डी बहुत कमजोर हो गई है। वो शरीर का बोझ नहीं संभाल पाती। जैसे कि वोमाल को अगर बिना सहारे के बैठाए जाए तो वो कमर से मुड़कर सिर घुटनों में आ जाता है। डॉक्टर कबका जवाब दे चुके हैं। वोमाल को अब बाकी की जिंदगी, इसी तरह बेड पर ही बितानी होगी।”

“संगठन कहां है?”

“पूरे बर्मा (म्यांमार) में फैला है। जगह-जगह ठिकाने हैं। जगवामा के एक इशारे पर हजारों आदमी खुले में आ जाएंगे। वैसे संगठन के काम ठीक से चल रहे हैं। ड्रग्स की सप्लाई बराबर होती रहती है। हथियार दूसरे देशों में भेजे जाते हैं। मशीनी अंदाज में संगठन के काम पूरे हो जाते हैं। वोमाल जगवामा के जिम्मेदार आदमी इन कामों को पूरा करते हैं। पैसे का हिसाब-किताब रखते हैं। उनके ऊपर जगवामा के वफादार लोग नजर रखते हैं और जगवामा को मिनट-मिनट की रिपोर्ट मिलती रहती है।”

“हेराफेरी तो वो करते ही होंगे।”

“मुझे नहीं लगता कि उन्हें इस बात का मौका मिलता है। जगवामा के काम करने का ढंग बहुत सख्त है।”

“वोमाल अपने कमरे से बाहर नहीं निकलता?”

“कभी-कभी व्हील चेयर जैसी आरामदेह कुर्सी पर बैठकर, उसे बंगले में, बंगले से बाहर खुले आसमान के नीचे घुमाया जाता है। ऐसा तभी होता है जब जगवामा ऐसा करने को कहता है। वो शेर था। शेर है। बीमारी से उसे सिर्फ इतना ही फर्क पड़ा है कि उसका चलना-फिरना बंद हो गया। वैसे वो पूरी तरह ठीक है।”

“वो मरने वाला है?”

“कह नहीं सकता। पहले से वो, अब काफी कमजोर हो गया है। डॉक्टर कह चुके हैं कि कोई भरोसा नहीं वो कब तक रहे, परंतु जगवामा को अभी तक कुछ नहीं हुआ। दो बार वो गम्भीर रूप से बीमार हुआ, परंतु ठीक हो गया।” कहते हुए मिर्जा एक बंद दरवाजे के सामने ठिठका। दरवाजा भिड़ा हुआ था। उसने जगमोहन को देखा।

“ये मेरा कमरा है।” जगमोहन ने कहते हुए दरवाजे पर हाथ रखा, उसे धकेला, वो खुल गया।

जगमोहन भीतर प्रवेश कर गया।

मिर्जा भी भीतर आया।

जगमोहन की निगाह हर तरफ घूमने लगी।

ये कमरा कुछ बड़ा था और ड्राइंग रूम की तरह सजा हुआ था। दीवारों पर कीमती पेंटिग्स की सजावट थी। सोफे गद्देदार और विदेशी थे। कीमती पर्दे थे। हर चीज देखते-ही-देखते बनती थी।

“ऐसे चार कमरे हैं जो कि भीतर से जुड़े हुए हैं। इनमें बेवू की इजाजत के बिना कोई नहीं आ सकता। आओ तुम्हें दिखाता हूं।” मिर्जा ने धीमे स्वर में कहा और आगे बढ़ गया। कोने में मौजूद दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गया।

जगमोहन उसके पीछे था।

उसने चारों कमरे देखे।

एक कमरे में दो बड़े वार्डरोब थे। जूतों के स्टैंड थे जिनमें तीस जोड़ी से ऊपर जूते थे। वार्ड रोब कपड़ों से ठसाठस भरे हुए थे। तीसरा कमरा सीटिंग रूम था। वहां शैल्फ में किताबें थीं। हर तरफ बार काउंटर था, जहां शैल्फों में दुनिया की महंगी शराब की बोतलें लगी थीं। वहां एक टेबल और चार कुर्सियां थीं। सजावट थी। दीवार पर लगा टी.वी. था। चौथा कमरा बेडरूम था। आठ फुट, लम्बा चौड़ा बेड लगा था। एक तरफ की पूरी दीवार पर शीशा लगा हुआ था। दीवार पर टी.वी. था। खिड़कियां थी। जरूरत की हर चीज मौजूद थी और पैसे की महक आ रही थी।

“इन चारों कमरों के बाहरी दरवाजे भी हैं, परंतु बेवू सिर्फ वो ही दरवाजा इस्तेमाल करता है, जहां से हम आए हैं। वैसे वो कोई भी दरवाजा खोल सकता है। उसकी मर्जी है। मालिक है वो। नौकरों से बहुत प्रेम भाव से बात करता है। दौलतमंद होने का उसे कोई घमंड नहीं है। सुबह उठते ही बेवू बेड पर लगी बेल बजाता है तो नौकर दस मिनट में चाय लेकर आ जाता है। बेवू बेड टी लिए बिना नहीं रहता। तुम्हें नौकरों को पहचानना होगा कि कौन...।”

“मैं उनकी तस्वीरें देख चुका हूं।”

“नाम याद है?”

“याद है।”

मिर्जा कुछ पलों तक जगमोहन को देखता रहा फिर बोला।

“तुम एकदम बेवू लग रहे हो।”

“मैं उस जैसा ही हूं।”

“वोमाल के खास-खास लोगों की तस्वीरें देखी हैं? वो कभी-कभार वोमाल के बुलावे पर यहां आते हैं।”

“मुझे बहुत लोगों की तस्वीरें दिखाई गईं। मैं सब कुछ संभाल लूंगा।” जगमोहन गम्भीर था।

“हूं।” मिर्जा ने सिर हिलाया।

“तुम चले जाओ सुबह मिलेंगे।”

“तुम भी चेंज करके सो जाओ। बेवू को रात देर तक जागने की आदत नहीं है।”

जगमोहन ने सिर हिलाया।

“मैं कल जाकर तुम्हारे लिए कपड़ों से भरा सूटकेस लाऊंगा। समझ गए। वैसे तो कोई पूछेगा नहीं, पूछे तो कह देना कि तुमने ही मुझे शॉप से कपड़े लेने भेजा है।” मोहम्मद मिर्जा ने कहा।

“बाद में तुम वैसा ही सूटकेस यहां से कपड़ों का भरकर ले जाना, वैसे ही कपड़े, जैसे तुम लाओगे।” जगमोहन बोला।

“ऐसा ही करूंगा गुड नाइट, अब मैं जाऊंगा।” मिर्जा कहकर पलटा और दरवाजे की तरफ बढ़ा फिर ठिठककर बोला –“बेवू कभी भी कमरे का दरवाजा भीतर से बंद नहीं करता। जरूरत हो तो पल्ले भिड़ा देता है।”

जगमोहन ने कुछ नहीं कहा।

“वोमाल से सतर्क रहना। वो बहुत खतरनाक है। तुम सोच भी नहीं सकते।”

मिर्जा के जाने के बाद जगमोहन ने वार्डरोब से नाइट सूट निकालकर पहना। बाथरूम जाकर हाथ-मुंह धोया। इसके बाद बेड पर जाने का विचार कर रहा था कि तभी दरवाजा थपथपाया गया।

जगमोहन ठिठक गया।

इस वक्त बेवू से मिलने कौन आ सकता है।

उसने खुद को सामान्य किया और आगे बढ़कर दरवाजा खोला।

सामने किचन का नौकर तौंगी खड़ा था। जिसकी रात को ड्यूटी होती थी। जगमोहन ने उसे तुरंत पहचान लिया, क्योंकि उसकी तस्वीर देख चुका था। होंठों पर मुस्कान उभर आई।

“खाना लाऊं सर?” तौंगी कह उठा।

“शादी में खाना खा लिया तौंगी। मेरी चिंता मत करो।” जगमोहन बेवू की आवाज में बोला।

“चाय-कॉफी या...।”

“कुछ नहीं। अब मैं सोने जा रहा हूं। गुड नाइट।”

☐☐☐

बेवू को टारो के ठिकाने तक ले जाने में कोई समस्या नहीं आई। बेवू ने ऐसा कुछ भी नहीं किया कि सख्ती करनी पड़ती। उसे जैसा कहा गया वो वैसा ही करता रहा। आधी रात के वक्त ट्रेवल्स एजेंसी वाली बिल्डिंग भी सुनसान थी। तीन वाचमैन अवश्य वहां तैनात थे परंतु बेवू को वो नहीं पहचान सके। क्योंकि उसके होंठों पर मूंछे चिपकी थी और रात का वक्त था। वहां रोशनी भी ज्यादा नहीं थी।

सोहन गुप्ता, रोशन भसीन के साथ बेवू ट्रेवल्स एजेंसी के पीछे बने कमरे में जा पहुंचा। बेवू गम्भीर नजर आ रहा था और चुप था। रास्ते में उसने कोई भी बात करने की चेष्टा नहीं की थी।

“अब तुम आराम से बैठ सकते हो।” भसीन ने कहा।

बेवू ने तीनों का देखा और कोट उतारकर एक तरफ उछाल दिया। सोफे पर जा पसरा।

“कुछ लेना पसंद करोगे?” रोशन ने पूछा।

“कॉफी मिल जाए तो ठीक रहेगा।” बेवू बोला।

“मिल जाएगी।” कहकर रोशन उस कमरे से बाहर निकल गया।

सोहन गुप्ता उसके सामने वाले सोफे पर बैठा और उसे देखकर मुस्कराया।

“कौन हो तुम लोग?” बेवू ने पूछा।

सोहन गुप्ता चुप रहा।

“मेरे पापा के दुश्मन हो?”

“नहीं। हम न तो तुम्हारे दुश्मन हैं, न ही वोमाल के।” सोहन गुप्ता ने कहा।

“मेरा हमशक्ल बहुत कमाल का था। बिल्कुल ही मेरे जैसा। तुम लोगों ने तो कमाल कर दिया।” बेवू ने उसे देखा।

सोहन गुप्ता ने कुछ नहीं कहा।

बेवू ने भसीन पर नजर मारी और बोला।

“तुम लोग गुंडे-बदमाश तो नहीं लगते।”

“हम गुंडे-बदमाशों से भी खतरनाक हैं। किसी भूल में मत रहना।” सोहन गुप्ता ने शांत स्वर में कहा –“तुमने हमारा काम तो देख ही लिया है। उससे तुम्हें अंदाजा हो गया होगा कि हम सब कुछ कर सकते हैं। वोमाल जगवामा के बेटे को उठा लाए, ये बात बहुत बड़ी है। जबकि कोई तुम लोगों के खिलाफ सोच भी नहीं सकता।”

“मुझमें और पापा में फर्क है।” बेवू हालात को समझने की चेष्टा कर रहा था।

“हम सब जानते हैं। समझाओ मत। बताओ मत। हमारे पास सब जानकारी है।”

“मेरे बारे में क्या जानकारी है?”

“ये ही कि तुम वोमाल के कामों में दिलचस्पी नहीं लेते। तुम्हारी अपनी ही दुनिया है। तुम अपने ढंग से अपना जीवन बिताना चाहते हो। दो बार यहां से भागकर पूर्व के जंगलों की एक बस्ती में चले जाते हो। वहां की एक लड़की से तुम्हें प्यार है तुम उसके साथ रहते हो। उसके खेतों में भी काम करते हो। वहां तुम खुश रहते हो। अब फिर वहां जाना चाहते हो। लेकिन वोमाल तुम्हें अपने पास ही देखना चाहता है। उसने तुम पर पहरा बैठा रखा है। ढाई सालों में तुमने दो बार भागने की चेष्टा की परंतु तुम्हारे कोशिश को, तुम्हारे पिता के गनमैनों ने सफल नहीं होने दिया।”

“गुड।” बेवू मुस्करा पड़ा –“तुम तो मेरे बारे में काफी कुछ जानते हो।”

“हम और भी बातें जानते हैं मिस्टर बेवू। हम बहुत कुछ जानते हैं।”

“क्या?”

“पता चल जाएगा। हममें बहुत बातें होने वाली हैं। हमारा साथ लम्बा रहेगा।”

“लम्बा रहेगा। मतलब कि तुम मुझे यहां कैद रखोगे?”

सोहन गुप्ता के होंठ भिंच गए।

“तुम लोग हो कौन?”

“इस सवाल का जवाब तुम्हें नहीं मिलेगा। ये बात पहले भी कह चुका हूँ।”

“अपने बारे में क्यों नहीं बताना चाहते?”

“नहीं बताना चाहते तो नहीं बताएंगे।”

“किसी गैंग से वास्ता है तुम लोगों का?”

“हमारा कोई गैंग–कोई संगठन नहीं। हमें जानने के बारे में दिमाग मत लगाओ सफल नहीं हो सकोगे।”

बेवू ने सोहन गुप्ता की आंखों में झांका।

“मैं अपने पापा के काम नहीं करता, लेकिन मेरे से झगड़ा लेना भी ठीक नहीं।”

“ये भी हमें पता है कि तुम हिम्मती हो।”

तभी रोशन ट्रे में कॉफी के चार प्याले ले आया। सबने कॉफी के प्याले थामे। बेवू ने घूंट भरा और बोला।

“तुम लोग हिन्दुस्तानी लगते हो। कॉफी अच्छी बनाई।” उसने मुस्कराकर रोशन को देखा।

रोशन खामोश ही रहा।

बेवू ने बारी-बारी तीनों को देखा और कह उठा।

“मैं नहीं जानता कि तुम लोग कौन हो और क्या चाहते हो, परंतु इतना जरूर कहूंगा कि पापा के गनमैनों के घेरे से निकलकर मैं खुश हूं। तुम लोगों ने मेरा हमशक्ल तैयार किया और जगवामा इस्टेट में पहुंचा दिया। मैं ठीक कह रहा हूं न, मेरा हमशक्ल इस वक्त जगवामा इस्टेट में पहुंच चुका होगा मेरे कमरों में। मेरी जगह पर।”

“तुम्हारा खयाल सही है।” सोहन गुप्ता ने कठोर स्वर में कहा।

“एक खयाल और सही है।” बेवू मुस्कराया –“कहो तो बता दूं?”

“कहो।”

“मेरा हमशक्ल वहां पर पहचाना जाएगा। तुम अभी शायद ठीक से मेरे पापा को नहीं जानते। उनके सामने कोई भी चालाकी नहीं चल सकती। वो एक नजर में ही पहचान लेंगे कि वो, उनका बेटा नहीं है।”

“पहचान लेंगे?” सोहन गुप्ता मुस्कराया।

“पक्का!”

“शायद ऐसा न हो सके। क्योंकि हमारा आदमी बहुत चालाक है।”

“वो बेशक कितना भी चालाक हो, लेकिन हम बाप-बेटे के रिश्ते को वो नहीं समझ सकता।”

सोहन गुप्ता उसे कुछ पल घूरता रहा।

“मेरे हमशक्ल का खेल सुबह होते ही खुल जाएगा। इसका मुझे अफसोस भी होगा, क्योंकि मैं ज्यादा देर आजाद नहीं रह पाऊंगा। पापा के लोग मेरी तलाश में लग जाएंगे और एक मुझे ढूंढ ही लेंगे। तुम यकीन करो मेरा कि ये सब चल नहीं सकेगा। अगर मेरे पापा को ठीक से समझते तो ऐसा न करते।”

भसीन और रोशन कॉफी के प्याले थामे बेवू को ही देख रहे थे।

“तुम्हारे व्यवहार से यकीन नहीं होता कि तुम उसी वोमाल जगवामा के बेटे हो जो दहशत के रूप में जाना जाता है।”

“मैं उसी का बेटा हूं पर उससे अलग हूं। मैं अपनी जिंदगी खुद जीना चाहता हूं। मुझे पैसे और हुकूमत की इच्छा नहीं है। अब काम की बात पर आओ और मुझे बताओ कि तुम लोग क्या चाहते हो । क्यों किया ये सब?”

सोहन गुप्ता की निगाह बेवू पर थी ।

रोशन और भसीन की निगाह भी बेवू पर थी।

“क्या मेरे पापा की जान लेना चाहते हो? मेरा हमशक्ल पापा की हत्या करेगा?”

“नहीं।”

“तो?”

“हमें सिर्फ एक सवाल का जवाब चाहिए। उसके अलावा हमें कुछ नहीं चाहिए।”

“मेरे से जवाब चाहिए?”

“हां।”

“हैरानी है कि मैं किसी सवाल का जवाब दे सकता हूं –पूछो, क्या जानना चाहते हो?”

“वोमाल की मौत के बाद तुम वोमाल का संगठन, पाकिस्तान के लोगों को बचने का इरादा रखते हो?”

“ये बात किससे पता लगी?”

“सिर्फ काम की बात करो बेवू।”

“तुम्हारी बात सही है। मैं संगठन नहीं चलाना चाहता। परंतु ये भी नहीं चाहता कि पापा की मौत के बाद संगठन से जुड़े लोग, अपना परिवार न चला सकें। उन्हें पैसा मिलना बंद हो जाए। इसलिए अच्छा यही है कि मैं संगठन किसी और के हवाले कर दूं। मैंने सही सोचा है, इसमें कुछ भी गलत नहीं है।”

“पाकिस्तान के वो लोग कौन हैं, जो वोमाल के संगठन को खरीद लेना चाहते हैं?” सोहन गुप्ता ने पूछा।

“तुम ये बात क्यों जानना चाहते हो?”

“ये ही बात जाननी है हमें । इसीलिए हमने ये सब किया बेवू।” सोहन गुप्ता का स्वर कठोर हो गया।

बेवू के चेहरे पर सोच के भाव उभरे। कुछ पल रुककर बोला।

“ये मैं नहीं बता सकता।”

“क्यों?”

“मेरा उनसे वादा है कि संगठन उनके हवाले करने तक मुंह बंद रखूंगा। वो ये ही चाहते हैं।”

“तुम अपना मुंह बंद नहीं रख सकते। क्योंकि ये बात जानना, हमारे लिए बहुत जरूरी है।”

“क्यों जरूरी है?”

“इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं।”

“क्यों मतलब नहीं। तुम एक बात मुझसे जानना चाहते हो तो मुझे भी पता हो कि क्यों जानना चाहते हो?”

“तुम पाकिस्तान के उन लोगों का नाम बताओ जो...।”

“पहले तुम अपने बारे में बताओ।”

सोहन गुप्ता होंठ भींचकर बेवू को देखने लगा।

“मैं जानना चाहता हूं कि तुम लोग कौन हो और क्यों ये बात पूछ रहे हो। उसके बाद ही फैसला ले सकूँगा कि मेरा मुंह खोलना ठीक होगा या नहीं।” बेवू ने गम्भीर स्वर में कहा।

“तो तुम सीधी तरह नहीं मानोगे?” सोहन गुप्ता के स्वर में खतरनाक भाव उभरे।

“मैं किसी तरह भी नहीं मानूंगा। मैं वो ही करता हूं जो मेरा मन चाहता है।”

तभी भसीन बोला।

“ये सीधी तरह नहीं मानेगा। इसका कोई इंतजाम करना होगा।”

“इसे पीछे वाले कमरे में ले चलते हैं।” रोशन ने कहा।

बेवू ने मुस्कराकर दोनों को देखा।

“इन बातों से मैं डरने वाला नहीं। ये ठीक है कि मुझे अपने पापा के संगठन में दिलचस्पी नहीं है, परंतु मैं डरपोक नहीं हूं। मैं जरा भी परवाह नहीं करता। जो भी करना चाहो, मेरे साथ कर लो।”

“हमें पता है कि तुम जिद्दी हो।” भसीन ने तीखे स्वर में कहा –“पर हम तुम्हारा मुंह खुलवा लेंगे।”

“तो कोशिश शुरू कर दो।” बेवू ने कड़वे स्वर में कहा।

“वो भी जरूर की जाएगी।” भसीन सख्त स्वर में बोला –“तुम्हें यूं ही नहीं उठा लाए।”

“मेरे ख्याल में तो अब तुम लोगों की खैर नहीं।”

“क्यों?”

“पापा के लोग बहुत जल्दी मुझे ढूंढ़ निकालेंगे और तुम लोगों को मार देंगे।”

“तुम्हें कोई क्यों ढूंढ़ेगा। तुम तो अपनी इस्टेट में मौजूद हो।”

“वो नकली है। मेरा बहुरूप है। पापा एक ही नजर में जान जाएंगे कि वो बेवू नहीं। पापा को बेवकूफ बनाना आसान होता तो मैं कब का यहां से दूर निकल गया होता। वो एक अच्छा बाप है परंतु मेरे उसके विचार नहीं मिलते। इस पर भी मैं उसे पसंद करता हूं और पापा को मुझसे प्यार है। पापा के दिमाग का मुकाबला, उन्हें समझना आसान नहीं। तुम लोगों ने एक आदमी को बेवू बनाया और पापा के सामने भेज दिया। लेकिन पापा इस चक्कर में नहीं फंसने वाले।”

“तुम जो भी कह रहे हो, हमें उसकी परवाह नहीं।”

“सब कुछ तुम लोगों के सामने आ जाएगा।” बेवू मुस्करा पड़ा।

“तब तक ।” रोशन कड़वे स्वर में बोला –“तुम्हारा वो हाल कर देंगे कि...।”

“रुको-रुको।” सोहन गुप्ता उसी पल कह उठा –“हम झगड़ा नहीं करना चाहते। ऐसी बातें बंद कर दो। और बेवू तुम्हें हमारी बात मान लेनी चाहिए। सिर्फ उन लोगों का नाम ही तो बताना है जो तुम्हारे पापा की मौत के बाद संगठन को...।”

“पहले अपने बारे में बताओ कि कौन हो तुम लोग?”

“हम हिन्दुस्तान की सरकारी गुप्त संस्था के लोग हैं।” सोहन गुप्ता ने कहा।

“गुप्त संस्था –मतलब कि जासूस?”

“हाँ।”

“हिन्दुस्तान के जासूसों से मेरा या पापा का क्या मतलब है?”

“कोई मतलब नहीं, अगर तुम पाकिस्तान के संगठन को, अपने पापा का संगठन बेचने की न सोचते।”

“मैंने अगर ऐसा सोचा है तो उससे हिन्दुस्तान को क्यों एतराज हो रहा है?” बेवू उलझन में कह उठा।

“हमें खबर मिली है कि पाकिस्तान के वो लोग, वोमाल के संगठन को हिन्दुस्तान के खिलाफ इस्तेमाल करेंगे।”

“गलत खबर है ये।”

“क्यों?”

“वो लोग पापा के संगठन को इसी तरह चलाएंगे जैसे कि पापा चला रहे हैं। मेरी उनसे इस बारे में खुलकर बात हुई है। वो पापा की तरह ही हथियार और ड्रग्स का काम करेंगे। पापा के काम की सारी चेन, उन लोगों को संगठन के साथ ही सौंपी जाएगी कि कहां से माल आता है और कहां भेजा जाता है। इन सब बातों से हिन्दुस्तान का तो कोई मतलब ही नहीं है। संगठन जैसे अब काम कर रहा है, तब भी वैसे ही काम करेगा।”

“हमें।” सोहन गुप्ता होंठ भींचकर बोला –“गलत खबरें नहीं मिलतीं।”

“पागल हो तुम लोग जो...।”

“मैंने कहा न, हमें गलत खबरें नहीं मिला करतीं। हम जो कहते हैं, तभी कहते हैं जब हमें विश्वास होता है।”

“बेवकूफी वाली बातें मत करो। वो लोग संगठन का इस्तेमाल ड्रग्स और हथियारों के लिए ही करेंगे। इस बारे में मेरी उनके साथ कई मीटिंग हुई थी। वो बर्मा में ही काम करने वाले...।”

“तुम गलत हो।” सोहन गुप्ता ने सर्द लहजे में कहा –“हमारे पास पक्की खबर है।”

“किसने दी पक्की खबर?” बेवू व्यंग्य से बोला।

“पाकिस्तान स्थित हमारे एजेंट ने हमें ये खबर भेजी कि वोमाल जगवामा के संगठन को इसलिए खरीदा जा रहा है कि हिन्दुस्तान में बर्मा की तरफ से भी आतंक फैलाया जा सके।” सोहन गुप्ता ने कहा।

“तुम्हारे आदमी ने गलत खबर दी।”

“खबर सही है।”

“तो फिर उससे ही क्यों नहीं पूछ लेते कि पाकिस्तान के कौन लोग, पापा के बाद, संगठन को खरीदेंगे।”

“उसे बताने और हमें पूछने का मौका नहीं मिला। इतना बताने के चार घंटों बाद ही उसकी लाश इस्लामाबाद की एक सड़क पर मिली। वो कार की स्टेयरिंग सीट पर बैठा था और गोलियों से भून दिया गया। उसे इतनी ज्यादा गोलियां मारी गईं कि उसका शरीर सिर्फ मांस का लोथड़ा बनकर रह गया था। हमारी एजेंसी को पूरा यकीन है कि उसे इसलिए मार दिया गया कि वो लोग जान गए थे कि वो एजेंट है, वहां पाकिस्तान में क्या हुआ तब उसके साथ हम नहीं जानते, परंतु पूरा भरोसा है कि उसकी मौत ये ही खबर देने की वजह से हुई।”

“तुम्हारा एजेंट वहां क्या कर रहा था?”

“वो इस्लामाबाद का रहने वाला, स्थानीय व्यक्ति था और हमारे लिए काम करता था।”

“उसके मारे जाने की कोई भी वजह हो सकती है।”

“तुम हमें मत समझाओ कि हमारा नेटवर्क कैसे चलता है या हम उसे कैसे चलाते हैं।” सोहन गुप्ता ने शुष्क स्वर में कहा –“मैंने तुम्हें सब कुछ बता दिया है जो तुम जानना चाहते थे। अब तुम हमें वो बताओ, जो हम जानना चाहते हैं। उन लोगों के बारे में बताओ जो तुम्हारे पापा का संगठन खरीदने में दिलचस्पी ले रहे हैं।”

बेवू के चेहरे पर गम्भीरता दिखने लगी।

सोहन गुप्ता, भसीन, रोशन की निगाह उस पर थी।

“बोलो।”

“मेरे हमशक्ल को तुम लोगों ने मेरी जगह पर क्यों भेजा?” बेवू ने पूछा।

“इसकी दो वजह थी। पहली तो ये कि जब हम तुमसे बात कर रहे हों तब तुम्हारे पापा तुम्हें तलाश न करवाएं। हमें आराम से तुमसे बात कर सकें। दूसरी वजह ये थी कि हमारा आदमी तुम्हारी जगह पर पहुंचकर, इसी सवाल का जवाब ढूंढ़ने की चेष्टा करेगा कि पाकिस्तान के कौन लोग हैं जो वोमाल के संगठन को खरीदना चाहते हैं। हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है। इस काम पर हम पहले ही बहुत वक्त बर्बाद कर चुके हैं। डेढ़ साल से हमारे एजेंट बर्मा में ये ही काम कर रहे हैं। अब तुम्हारा हमशक्ल तैयार हुआ तो हम तुम पर हाथ डाल सके।”

“मैं तुमसे फिर कहूंगा कि पाकिस्तान के वो लोग बर्मा में ही संगठन को चलाना चाहते हैं।”

“इस बात की हम जांच कर लेंगे। तुम उन लोगों की पहचान बताओ।”

“मैं नहीं बता सकता।” बेवू ने दृढ़ स्वर में कहा।

“नहीं बताओगे?”

“कभी नहीं।”

“तुम इसलिए उनके बारे में नहीं बता रहे कि तुम बहुत बड़ी रकम में उन्हें संगठन बेच रहे हो। ऐसे में हम कहीं तुम्हारी ये ‘डील’ गड़बड़ न कर दें। तभी तुम...।”

“ये बात नहीं।” बेवू बोला –“पर मुझे पता है कि वो संगठन को बर्मा में ही...।”

तभी सोहन गुप्ता का हाथ घूमा और बेवू के गाल पर जा पड़ा।

‘तड़ाक’ की आवाज वहां गूंजी।

बेवू सोफे पर लुढ़का, पर तुरंत ही संभला लेकिन जब तक भसीन और रोशन ने उसे थाम लिया। बेवू ने क्रोध भरी निगाहों से सोहन को घूरा । सोहन गुप्ता के चेहरे पर कठोरता दिख रही थी।

“इसे पीछे वाले कमरे में ले जाओ और बेशक जो भी करो, इसका मुंह खुलवाने के लिए। ये मर भी जाए तो परवाह नहीं। परंतु कोशिश यही करना कि इसके मुंह से अपने मतलब की बात निकलवा सको।”

☐☐☐

जगमोहन रात भर सोया नहीं था। उसकी पहली कोशिश यही थी कि अपने काम की बात मालूम करे और यहां से निकल जाए। दरवाजा बंद करने के बाद, वो उन चारों कमरों की तलाश लेने में लग गया। चारों कमरों को अच्छी तरह खंगाला। हर खाने, हर अलमारी, हर ड्राअर को देखा। मिली दो डायरियों को चेक किया। एक-एक पन्ने को देखा। हर तरह के सामान को देखा कि कहीं पर से बेवू का लिखा कुछ मिल जाए। डायरियों में कुछ हिसाब-किताब के अलावा कुछ नहीं था। बेडरूम की अलमारी की चाबी ड्राअर से मिली तो उसे खोलकर एक-एक जगह चेक की। यहां तक कि बार काउंटर के खाने भी चेक किए। जरूरत से ज्यादा कोशिश की जगमोहन ने परंतु कोई फायदा नहीं हुआ। वो नहीं जान सका कि पाकिस्तान के कौन लोग वोमाल का संगठन खरीदेंगे। इसी में ही सुबह के साढ़े पांच बज गए। आंखों में नींद भरी पड़ी थी। वो बेड पर जाकर नींद में डूब गया।

अगले दिन ग्यारह बजे उसकी आंख खुली। उठ बैठा। कुछ देर तो सोचों में डूबा रहा फिर बेड की पुश्त पर लगी बेल का बटन दबा दिया। रात मिर्जा ने बताया कि बेवू बेड टी लेता है और ये बटन दबाता है। उसके बाद जगमोहन बेड से उतरा और कमरे में नजरें दौड़ाने लगा। चेहरे पर गम्भीरता थी। बाहर धूप निकली हुई थी। बंद खिड़कियों के बाहर की रोशनी ये एहसास करा रही थी। बाथरूम में जाकर उसने हाथ-मुंह धोया और वापस आकर एक खिड़की के पास पहुंचा और उसे खोलकर देखा।

उस खिड़की के सामने, दूर गेट नजर आ रहा था। जहां तीन गनमैन टहलते दिख रहे थे। चार गनमैन उसे अन्य जगहों पर दिखे। माली फूलों की क्यारियों में काम कर रहे थे। दो नौकर इधर-से-उधर जाते दिखे। तगड़ा पहरा था हर तरफ। जगमोहन ने एक चीज नोट की कि एक तरह का काम करने वालों के कपड़े एक जैसे ही थे। जैसे कि गनमैनों के शरीर पर काले कपड़े थे। जो माली काम कर रहे थे वो हल्के-पीले रंग की कमीज में थे और नौकर सफेद कपड़ों में थे। ऐसा इसलिए कि दूर से ही कपड़ों का रंग देखकर ये समझा जा सके कि वो कौन-सा आदमी है।

तभी जगमोहन को अपने पीछे आहट उभरती लगी। वो पलटा।

पीछे चाय का प्याला ट्रे में लिए नौकर आता दिखा।

जगमोहन ने उसकी तस्वीरें देखी थीं। उसका नाम लोएस था।

“सर।” वो करीब आकर बोला –“चाय।”

जगमोहन ने चाय का प्याला उठा लिया।

“कैसे हो लोएस?”

“अच्छा हूं सर। बड़े सर आपको पूछ रहे थे। मैंने बताया कि आप नींद में हैं।”

जगमोहन का दिल धड़का कि वोमाल जगवामा उसे पूछ रहा था।

सामान्य रहते जगमोहन ने सिर हिलाया।

“आज नाश्ते में क्या लेंगे आप?” लोएस ने पूछा।

“आज तुम अपनी पसंद का नाश्ता मुझे दोगे।”

“ठीक है सर।” लोएस मुस्कराया और बाहर निकल गया।

जगमोहन ने खिड़की के बाहर नजर मारी फिर एक तरफ पड़ी कुर्सी पर जा बैठा और चाय के घूंट भरने लगा। वो सोच रहा था कि नाश्ते के बाद बेवू का मोबाइल चेक करेगा कि सम्भव है पाकिस्तान के उन लोगों का फोन नम्बर बेवू ने मोबाइल में फीड कर रखा हो। इस बात की ज्यादा आशा थी।

फिर वोमाल जगवामा की तरफ ध्यान भटक गया।

क्या वोमाल से मिलना होगा आज?

बेवू अपने बाप से कब मिलता है। वोमाल उसे बुलाता है या वो ही उसके पास चला जाता है। क्या ये जरूरी है कि बेवू और वोमाल रोज मिलें? ये सब बातें उसे मिर्जा ही बता सकता था। जगमोहन ये भी सोच रहा था कि वोमाल उसे बेवू ही समझेगा। इतना आसान नहीं है कि वो समझ जाए कि वो बेवू नहीं है।

☐☐☐

नहा-धोकर जगमोहन ने दूसरे कपड़े पहने। 12.30 बज रहे थे। वो खुले दरवाजे से बाहर निकला और ठिठककर गैलरी के दोनों तरफ देखा। तीन नौकर आते-जाते दिखे। एक गनमैन जाता दिखा। जगमोहन वापस कमरे में आ गया। अभी खुले में जाना ठीक नहीं था। कम लोगों के सामने जाया जाए तो ठीक है। उसकी लम्बाई बेवू से आधा-पौना इंच कम थी। ये बात कोई भी नोटिस कर सकता था। आज का दिन अहम था उसके लिए। बेवू के ढंग को समझना होगा कि वो कैसे अपना दिन बिताता था। मिर्जा को अब तक उसके पास आना चाहिए। ये उसके नाश्ता करने का वक्त होना चाहिए। जगमोहन बेडरूम में जाकर बेल बजाना चाहता था कि लोएस नाश्ता लाए कि तभी दरवाजे पर मिर्जा दिखा। जगमोहन ठिठककर उसे देखने लगा।

“गुड मॉर्निंग सर।” मिर्जा ने सामान्य स्वर में कहा।

जगमोहन ने सिर हिला दिया।

मिर्जा चार कदम भीतर आ गया।

“मेरे लिए कोई सर्विस सर?” मिर्जा ने पूछा।

“मैं –लोएस को नाश्ते के लिए कहने वाला था।”

मिर्जा कुछ और पास आकर धीमे स्वर में बोला।

“आपके बेडरूम में इंटरकॉम है। एक नंबर दबाकर लोएस से किचन में बात कर सकते हैं। बेवू ऐसे ही करता है।”

“बेवू और क्या करता था, अपना दिन कैसे बिताता था?” जगमोहन ने पूछा।

“वो अपने कमरे में ही रहता है। कभी-कभार बाहर भी आता है, बंगले में घूमता है या बंगले के बाहर भी।”

“बेवू को यहां से बाहर, बाहर मतलब कि बाहर जाना हो तो क्या करता है?”

“वे इंटरकॉम पर कारों के विभाग से बात करता है। कारों के विभाग का नम्बर तीन है। तीन दबाकर उससे बात करके बता सकते हैं कि आपको कितने बजे जाना है।” मिर्जा बोला।

“बेवू कहां-कहां जाता है?”

“वो कहीं भी चला जाता था। लंच-डिनर करने किसी होटल में, तो कभी वी-लोला क्लब में। कभी यूं ही कार पर घूमता रहता था और वापस आ जाता था। बेवू के बाहर जाने पर, कारों का विभाग ही उन गनमैनों को सूचना देता है जो बेवू की निगरानी और रक्षा के लिए साथ जाते हैं।”

“बेवू का कोई दोस्त नहीं?”

“नहीं। उसे दोस्त पसंद नहीं। वैसे मिलने वाले लोगों से वो अच्छी तरह बात करता है।” मिर्जा ने बताया।

“वोमाल से बेवू कब और कैसे मिलता है?”

“वोमाल जब उसे बुलाता है तब या जब बेवू का मन करे वो स्वयं ही वोमाल के पास चला जाता है।”

“बाप-बेटे की मुलाकात रोज ही होती है?”

“जरूरी नहीं। कोई दिन खाली भी चला जाता है।”

“तुम यहां पर क्या काम करते हो?”

“मेरा काम बंगले के कामों को ठीक से होते देखना है। मैं हर काम पर नजर रखता हूं और और कोई समस्या हो तो उसे ठीक कर देता हूं। मुझे ये भी देखना पड़ता है कि वोमाल की देखभाल ठीक हो रही है। बेवू के पास भी दिन में तीन बार जरूर आता हूं कि सब ठीक चल रहा है।” मिर्जा ने कहा।

“हमारे दो लोग और भी हैं यहां। वो कहां हैं?”

“एक किचन में सब्जी काटने और अन्य छोटे-मोटे काम करता है। उसका नाम यहां पर कालू है। दूसरा माली है और महंत कहते हैं उसे। वो खबर इकट्ठी करते हैं और मुझे देते हैं।”

“वोमाल मुझे कैसे बुलाता है?”

“वो किसी को भी तुम्हारे पास भेज देगा।”

“बेवू ने मुंह खोला उन पाकिस्तानी लोगों के बारे में?” जगमोहन ने आहिस्ता से पूछा।

“मालूम नहीं। खोला होता तो मुझे खबर मिल...।”

तभी दरवाजे पर आहट हुई।

लोएस एक अन्य नौकर के साथ भीतर आया। लोएस ने पानी का जग और गिलास थामा था।

“सर नाश्ता।” उसने कहा।

दूसरे नौकर ने दोनों हाथों से बड़ा-सा थाल थाम रखा था।

“मैं तुम्हें इंटरकॉम करने ही वाला था लोएस।” जगमोहन ने मुस्कराकर कहा।

“सर।” मिर्जा कह उठा –“मैं चलता हूं।” कहकर वो चला गया।

टेबल पर खाने का थाल रख दिया गया। लोएस ने जग और गिलास रखा।

“आज मैं तुम्हारी पसंद का नाश्ता करूंगा लोएस।”

“आपको जरूर अच्छा लगेगा।”

नौकर चला गया। लोएस वहीं रुका रहा।

खाने में कई तरह की चीजें थीं। कुछ जगमोहन को अच्छी लगी तो कुछ नहीं। खाने के दौरान वो थोड़ी-बहुत लोएस से बातें भी करता रहा। आधा घंटा इसी में बीत गया। उसके बाद लोएस खाली बर्तन लेकर चला गया। जगमोहन के पास अब फुर्सत थी। उसने बेवू का मोबाइल उठाया और उसमें फीड नम्बरों को चेक करने लगा। अगले दो घंटे वो इसी काम में लगा रहा। व्यस्त रहा।

तीन नम्बर ऐसे लगे जो पाकिस्तान के हो सकते थे। जगमोहन ने उन नम्बरों को कागज पर लिखा और मिर्जा को देने के लिए कागजों को जेब में रख लिया।

दोपहर के 3.30 बजे रहे थे।

जगमोहन के पास करने को कुछ नहीं था। चाहता तो वो बंगले में या बाहर घूम सकता था। लेकिन उसने भीतर रहना ही ठीक समझा और चार बजे लोएस को इंटरकॉम पर कॉफी लाने को कहा। सोचने लगा कि कैसे पता करें कि पाकिस्तान के कौन लोग, वोमाल की मौत के बाद उसका संगठन बेवू से खरीदेंगे? जगमोहन ने एक बार फिर बेवू की चीजों की तलाशी लेने की सोची। वो उठा और आगे बढ़कर दरवाजे के पल्ले भिड़ा दिए। उसके बाद वो सिटिंग रूम में पहुंचा और टेबल की ड्राअर खोली। भीतर दो डायरियां पड़ी थीं। इससे पहले कि जगमोहन उन्हें बाहर निकाल पाता, दरवाजे पर होती थपथपाहट उसके कानों में पड़ी।

जगमोहन ने फौरन ड्राअर बंद कर दिया।

कौन आया है? क्या मिर्जा?

सीटिंग रूम से निकलकर, जगमोहन दूसरे कमरे के दरवाजे पर पहुंचा। दरवाजा खोला तो सामने खड़े आदमी को देखते ही, फौरन उसे पहचाना। वो अराकान था जो वोमाल जगवामा की देखभाल में लगे लोगों में से एक था।

“आपको बड़े सर बुला रहे हैं।”

वोमाल जगवामा?

जगमोहन का दिल जोरों से धड़का।

“आता हूं।” शांत-से जगमोहन ने कहा।

अराकान चला गया।

तो अब वोमाल जगवामा से उसका सामना होने जा रहा है।

उससे बातें होंगी।

क्या बातें होंगी? वोमाल उसे क्या कहेगा और जवाब में उसे क्या कहना होगा? कहीं उसकी बातचीत सुनकर वोमाल को किसी तरह का उस पर शक न हो जाए।

वोमाल जगवामा को भला क्या शक होगा।

उसके सामने उसका बेटा बेवू खड़ा है। बस उसे जरा समझदारी से काम लेना होगा। बिना घबराए उसे वोमाल के सामने ठहरना होगा। परंतु उसकी बातचीत से वोमाल समझ भी तो सकता था कि कहीं गड़बड़ है। जगमोहन ने गहरी सांस लेकर, फ्रिज में से बोतल निकालकर पानी पीया और खुद को समझाया कि सब ठीक है। कुछ नहीं होगा। बस उसे जरा सतर्क रहना होगा। वोमाल से संभलकर बात करनी होगी। वो बेवकूफ नहीं है। इतने खतरनाक संगठन को बेड पर लेटे ही लेटे संभाल रहा है। कुछ तो खास होगा ही उसमें।

जगमोहन ने खुद को संयत किया। सामान्य किया फिर दरवाजे की तरफ बढ़ा कि ठिठक गया। दो पल सोचने के बाद पलटकर दूसरे कमरे में गया और जब वापस आया तो हाथ में रिवॉल्वर थी। बेवू के पास से बरामद हुई, बेवू की रिवॉल्वर, जिसे उसने कपड़ों के भीतर छिपा लिया। इस तरह कि जरूरत पड़ने पर उसे फौरन निकाल सके। वोमाल के पास से, कोई खतरा आया तो वोमाल के सिर पर रिवॉल्वर लगाकर खुद को बचा सकता है। तरह-तरह के शक जगमोहन के मस्तिष्क में आ रहे थे। फिर भी उसे यकीन था कि सब ठीक रहेगा। जगमोहन ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला और बाहर निकलकर गैलरी में आगे बढ़ गया। यहां के नक्शे पर ध्यान देने लगा कि उसने सब रास्ते देखे थे और इस बात को तो खास ध्यान से देखा था कि वोमाल जगवामा के कमरे की तरफ कौन-सा रास्ता जाता है। आगे गैलरी खत्म हुई तो वो दाईं तरफ मुड़ गया। रास्ते में एक नौकर के अलावा, दो गनमैन भी आते दिखे। सबने उसे ‘सर’ कहकर नमस्कार किया। जवाब में जगमोहन ने मुस्कराकर उन्हें जवाब दिया था।

तभी सामने से मिर्जा एक नौकर के साथ आता दिखा।

जगमोहन कुछ धीमा हो गया। मिर्जा पर निगाह मार लेता था।

पास पहुंचने पर मिर्जा ने नौकर से कुछ कहा तो नौकर आगे बढ़ गया। मिर्जा ठिठक गया।

“वोमाल ने मुझे बुलाया है।” जगमोहन धीमे स्वर में कहा। साथ ही जेब से कागज निकालकर उसे दिया –“इस कागज पर बेवू के फोन में फीड, कुछ नम्बर लिखे हैं, इन नम्बरों को चेक करो कि ये पाकिस्तान के तो नहीं।”

मिर्जा ने कागज जेब में रख लिया।

“बेवू और वोमाल की मुलाकात के बारे में कुछ बताओगे कि बाप बेटे कैसे मिलते हैं?”

“सामान्य ढंग से। ज्यादा खुशी नहीं। दुख भी नहीं। दोनों मुस्कराकर बात करते हैं। मेरे खयाल में तो तुम्हें कोई भी समस्या नहीं आने वाली। दोनों की मुलाकातें साधारण-सी होती हैं।”

“मुझे ये नहीं पता कि आखिरी बार उनमें क्या बात हुई थी?” जगमोहन बोला।

“कल वोमाल ने बेवू को बुलाया था। पांच मिनट ही मिले वो। मेरे खयाल में वोमाल ने उसे शादी में जाने को कहा होगा।”

जगमोहन मिर्जा को देखता रहा।

“मेरा तुम्हारे साथ ज्यादा देखा जाना ठीक नहीं। तुम थोड़ा सतर्क रहना। सब ठीक है।” कहकर मिर्जा आगे बढ़ गया।

जगमोहन भी चल पड़ा। मिर्जा की बातों से उसे हौसला मिला कि सब ठीक रहेगा।

दो-तीन मोड़ काटने के बाद जगमोहन एक दरवाजे से भीतर प्रवेश कर गया।

ये वोमाल जगवामा का कमरा था।

जगमोहन की निगाह बेहद तेजी के साथ सारे कमरे में घूमती चली गई। सब कुछ जैसे अपनी आंखों में कैद कर लिया। यहां की एक-एक चीज जैसे उसके जेहन में आ बसी। वोमाल जगवामा एक तरफ सिंहासन जैसे बेड पर लेटा था। उसके शरीर के आसपास तकियों के द्वारा सहारा दे रखा था। वो बहुत पतला और कमजोर-सा लग रहा था। उसके शरीर पर कमीज और पायजामा था। सिर दो तकियों के ऊपर था और उसे आसानी से देख पा रहा था। वो विशाल बेड पर छोटा-सा हिस्सा लग रहा था। उसके सिर की तरफ एक टेबल थी ऊंची थी, जिस पर दवाइयां और अन्य सामान रखा हुआ था।

कमरे में दो अन्य लोग मौजूद थे।

एक आदमी एक तरफ कुर्सी पर बैठा था जो कि उसके आते ही उठ खड़ा हुआ था। जगमोहन उसे पहचान गया था। वो सिटवी था। जगवामा के संगठन का पॉवरफुल आदमी जो कि अपना ज्यादा समय जगवामा के पास ही बिताता था और दोनों संगठन के कामों में विचार-विमर्श करते थे। वोमाल सिटवी को ऑर्डर देता था और सिटवी उस ऑर्डर को आगे भेजता था। परंतु काम की सारी रिपोर्ट वोमाल ही फोन पर रिसीव करता था। सिटवी पर वो अंधा भरोसा नहीं करता था कि सिटवी अपने मनमाने ऑर्डर संगठन को दे सके। वैसे वोमाल सिटवी से दिल की बात भी कर लेता था।

दूसरा जो आदमी वहां था, जगमोहन ने उसकी तस्वीर नहीं देखी थी कि वो कौन है। परंतु उसके शरीर पर सफेद कपड़े से इतना तो अंदाजा लगा लिया था कि वो वोमाल की देखरेख करने वालों में से एक होगा।

जगमोहन सीधा वोमाल के बेड के पास जा पहुंचा।

वोमाल जगमोहन को ही देख रहा था। देखे जा रहा था एकटक।

“कैसे हो पापा?” जगमोहन ने बेवू की आवाज में पूछा।

वोमाल जगवामा की निगाह अभी भी बेवू पर थी।

“पापा।” जगमोहन ने पुनः आवाज दी।

वोमाल की पलकें हिलीं। सिर हिला। फिर बांहें हिली और बोला।

“बामो। मुझे बिठाओ।” वोमाल की आवाज में भरपूर दम था। वो किसी स्वस्थ व्यक्ति की आवाज लग रही थी।

सफेद कपड़े पहने व्यक्ति तुरंत पास पहुंचा।

जगमोहन शांत-सा खड़ा रहा।

बेड के पास पहुंचे व्यक्ति ने जगमोहन को देखा।

जगमोहन ने उसे देखा।

कई पलों तक खामोशी रही।

वोमाल की निगाह सीधी जगमोहन पर थी।

जगमोहन को लगा कि कुछ गड़बड़ हो रही है। कुछ ऐसा हो रहा है, जो नहीं होना चाहिए।

“देख क्या रहा है।” वोमाल बोला –“आज मुझे उठाएगा नहीं?”

जगमोहन के मस्तिष्क को झटका लगा कि तो ऐसे मौके पर बेवू अपने बाप को उठाता है।

एकाएक जगमोहन शांत भाव से मुस्कराया और तकियों को एक तरफ करके दोनों बांहें वोमाल के कमजोर शरीर के नीचे घुसेड़ी और उसे उठा लेने का उपक्रम किया। लेकिन अगला पल जैसे कयामत से भरा था। जगमोहन वोमाल को इस तरह उठा रहा था जैसे स्वस्थ व्यक्ति को उठाया जाता है। वो नहीं जानता था कि वोमाल को कैसे उठाना है। इस बात पर चूक गया जगमोहन और उठाने की चेष्टा में वोमाल का शरीर कमर से इकट्ठा हुआ और उसका सिर अपने ही घुटनों से जा लगा और जगमोहन के हाथों से फिसल कर बेड पर ही गुड़मुड़ पड़ गया।

“पापा।” जगमोहन हुई गड़बड़ की वजह से हक्का-बक्का रह गया।

सफेद कपड़े पहने खड़े व्यक्ति ने फुर्ती से वोमाल को सीधा किया।

सीधा होकर वोमाल गहरी-गहरी सांसें लेने लगा।

तभी सिटवी पास आ पहुंचा जल्दी से।

“ये आपने क्या किया बेवू सर।” सिटवी बोला।

“म–मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं।” जगमोहन के होंठों से बेवू की आवाज निकली।

“आप पीछे हटिए।”

जगमोहन पीछे हटा।

सिटवी बेड के करीब आकर वोमाल से बोला।

“मैं आपको उठाता हूं सर।”

वोमाल की निगाह जगमोहन पर टिकी थी।

सिटवी ने वोमाल को दोनों बांहों में उठाया। उसका एक हाथ वोमाल की गर्दन पर था और दूसरा हाथ ठीक कमर के नीचे था। कमर के नीचे वाले हाथ ने, वहां से हड्डी मुड़ने को रोक रखा था।

ये देखकर जगमोहन समझ गया कि उठाने में उससे कहां गलती हुई।

सिटवी के उठाते ही नौकर ने तकियों को ढंग से लगाया फिर सिटवी ने वोमाल को तकियों की टेक के सहारे इस तरह बिठा दिया कि वो अधलेटा पर हो गया। जैसे टेक लगा रखी हो। इसके बाद सिटवी वापस अपनी कुर्सी पर जा बैठा। नौकर एक तरफ हट कर खड़ा हो गया।

वोमाल जगवामा जगमोहन को देखकर मुस्कराया।

जगमोहन पास आ पहुंचा।

“क्या हुआ तेरी तबीयत को?” वोमाल ने स्वस्थ स्वर में पूछा।

“रात नींद नहीं आई।” जगमोहन ने सामान्य स्वर में कहा।

“और कोई परेशानी तो नहीं?”

“नहीं पापा। मैं बिल्कुल ठीक हूं।”

“सुबह तू बहुत देर से उठा।”

“बोला तो, नींद नहीं आई।”

तभी नौकर ने एक ऊंचा स्टूल जगमोहन के पास रख दिया।

जगमोहन ने स्टूल को अपनी तरफ खींचा और बैठ गया।

“आज तूने मुझे गिरा दिया।” वोमाल मुस्कराकर बोला।

“यूं ही, मेरा ध्यान कहीं और था।”

बातों के दौरान वोमाल जगवामा की निगाह सीधी जगमोहन के चेहरे पर टिकी थी।

“शादी में क्या हुआ?”

“सब अच्छा रहा। मैं वहां से खाना खाकर ही लौटा।” जगमोहन ने कहा।

“अच्छा किया। वो मेरा बचपन का दोस्त है। तेरे को वहां कोई लड़की पसंद आई?” वोमाल हंस पड़ा।

“मैं वहां लड़की पसंद करने नहीं गया था।” जगमोहन नहीं मुस्कराया इस बात पर।

“उस जंगली लड़की में क्या है जो तू उसे पसंद करता है।”

“वो जंगली नहीं है।” जगमोहन के होंठों से निकला।

“अपनी हैसियत देख बेवू और उस जंगली लड़की की हैसियत...।”

“मैं इस बारे में बात नहीं करना चाहता।”

“तू मेरी मौत का इंतजार कर रहा है कि कब वोमाल मरे।”

“नहीं पापा। ऐसी बात नहीं है।”

“ऐसा ही है। मेरे मरते ही तू दो काम करेगा। पहला काम संगठन को बेच देने का और दूसरा काम उस लड़की के पास चले जाने का। मैंने ठीक कहा न बेवू, तू ये ही करने वाला है न?”

“आप जो भी कहें, पर मैं आपके मरने का इंतजार नहीं कर रहा।” जगमोहन को ये कहना ही ठीक लगा।

वोमाल कुछ पल चुप रहकर बोला।

“मेरे को देख, मेरी आंखों में देख।”

जगमोहन ने वोमाल की आंखों में आंखें डाल दीं।

दोनों एक-दूसरे की आंखों में देखते रहे।

“अपना चेहरा मेरे पास ला।”

जगमोहन ने अपना चेहरा कुछ आगे किया।

“बहुत दिनों से तुझे जी-भरकर देखा नहीं। सिटवी, मेरा चश्मा दे।”

सिटवी तुरंत उठा और टेबल से चश्मा उठाकर वोमाल को दिया।

वोमाल ने चश्मा अपने आंखों पर लगाया। जगमोहन को देखा।

जगमोहन की एकटक नजर वोमाल पर थी।

एकाएक वोमाल ने चश्मा आंखों से हटाया और सिटवी को थमा दिया।

सिटवी ने चश्मा वापस रखा और अपनी कुर्सी पर जा बैठा। जगमोहन पुनः पीछे होकर बैठ गया। वो वोमाल जगवामा की आंखों में उभरी उस व्याकुलता को नहीं पहचान सका, जो अब उसकी आंखों में आ बसी थी।

“आपने मुझे बुलाया पापा?”

“शादी के बारे में पूछने को बुलाया था।” वोमाल मुस्कराया –“अपना हाल सुना।”

“मुझे क्या होना है।”

“मेरी बात पर तूने क्या विचार किया?” एकाएक वोमाल बोला।

“कौन-सी बात?” जगमोहन ने बेहद सब्र के साथ पूछा।

“वो ही जो कल सिटवी के सामने कही थी।” वोमाल जगवामा ने गर्दन घुमाकर सिटवी को देखा; कहा –“बता सिटवी इसे कि कल मैंने क्या कहा था, चल मैं फिर से कह देता हूं। तू उस जंगली लड़की के साथ तभी शादी कर सकता है, जब तू संगठन संभाले। मरने से पहले मैं देखना चाहता हूं कि तूने सब कुछ संभाल लिया।”

जगमोहन वोमाल को देखने लगा।

सिटवी कुर्सी छोड़कर खड़ा हो चुका था।

जगमोहन ने बात को समझा और धीमे-से सिर हिलाता कह उठा।

“मुझे आपके संगठन, आपके कामों से कोई मतलब नहीं है।”

वोमाल जगवामा सिटवी को देखकर बोला।

“तूने सुना सिटवी। बेवू संगठन संभालने को तैयार नहीं। कल कहता था कि सोचकर बताऊंगा।”

सिटवी बेहद शांत खड़ा बेवू को देख रहा था।

वोमाल ने जगमोहन को देखा।

“सोचना बेवू। अभी और सोचना। मेरे को शांति मिलेगी जब तू मेरा काम आगे बढ़ाएगा।” वोमाल कह उठा।

जगमोहन को जाने क्यों कुछ बेचैनी-सी हुई। एकाएक वो उठ खड़ा हुआ।

“मैं अब चलूंगा पापा। तबीयत कुछ ठीक नहीं।” जगमोहन ने कहा।

वोमाल जगमोहन को देखकर हल्के-से मुस्कराया।

जगमोहन पलटा और दरवाजे की तरफ बढ़ गया।

वोमाल जगवामा जगमोहन को तब तक देखता रहा। जब तक कि वो बाहर न निकल गया।

“सर, ये...।” सिटवी ने कहना चाहा।

वोमाल ने हाथ उठाकर चुप रहने को कहा फिर नौकर से बोला।

“तुम जाओ।”

नौकर ने सिर हिलाया और वहां से बाहर निकल गया।

वोमाल जगवामा ने गर्दन घुमाकर सिटवी को देखा। आंखों में परेशानी मचल उठी थी।

सिटवी वोमाल को माथे पर बल डाले देख रहा था।

“इधर आ। इसी स्टूल पर बैठ।” वोमाल ने सिटवी से कहा।

सिटवी पास आकर स्टूल पर आ बैठा।

“अब बोल।” वोमाल जगवामा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“सर, सर कल तो मैं व्यस्तता के कारण आ ही नहीं सका था मेरे सामने आपने बेवू सर से कोई बात नहीं की थी।”

“तुमने ठीक कहा कि तुम कल आए नहीं और मैंने कोई बात नहीं की थी। पर बेवू ने तो इससे इंकार नहीं किया।”

“ये ही तो मुझे हैरानी है सर कि...।”

“हैरान तो मैं तुम्हें अब करूंगा। ये कहकर करूंगा कि जो अभी-अभी मेरे पास आया वो मेरा बेटा बेवू नहीं है।” वोमाल जगवामा के लहजे में सर्द भाव आ गए –“समझे तुम, ये बेवू नहीं था।”

सिटवी की आंखें सिकुड़ी। वो वोमाल को देखता रहा गया।

कुछ पलों तक खामोशी रही।

“ये आप क्या कह रहे हैं सर?” सिटवी बोला।

“विश्वास नहीं हो रहा होगा मेरी बात पर।”

“आपकी बात विश्वास के लायक ही नहीं है। वो बेवू सर ही तो थे।”

"नहीं था। मेरी बात का भरोसा...।”

“असम्भव सर। आप अजीब-सी बातें कर रहे हैं।”

“ये पहली बार है कि तुम मेरी कही बात को मान नहीं रहे।” वोमाल मुस्कराया।

“क्योंकि आपकी बात गलत है।”

“जो अभी आया था, वो मेरा बेटा बेवू नहीं था। तुम्हें मेरी बात मान लेनी चाहिए। वो कोई और था।”

“नहीं सर। मैं नहीं मान...।”

“अभी मान जाओगे। मेरी सुनो सिटवी, पहली बात तो ये बेवू मुझे गोद में उठाने की गलती नहीं कर सकता। वो सबको बार-बार बताता है कि पापा को कैसे उठाना है। सबको समझाता है। परंतु आज उसने ही मुझे गलत ढंग से उठा लिया, इस तरह कि जैसे किसी को सामान्य ढंग से उठाया जाता है।”

“उसकी तबीयत ठीक नहीं।”

“तबीयत कितनी भी खराब हो, मुझे उठाने के बारे में वो भूल नहीं सकता, अगर वो बेवू ही होता तो कभी भी गलती नहीं करता। वो बेवू है ही नहीं। मैंने पहचान लिया है कि वो कोई दूसरा है। दूसरी बात सुनो उसकी आंख की पुतली के सफेद हिस्से में बचपन से ही लाल रंग के बिंदु जैसा निशान है, जो कि हट नहीं सकता। जब उसने मुझे गलत ढंग से उठाया तो अपने शक की तस्दीक करने की खातिर मैंने उसकी आंखों में देखा, उसे करीब बुलाकर अच्छी तरह देखा, लेकिन वो लाल बिंदु वाला निशान उसकी आंख में –पुतली में नहीं दिखा। तब मेरा विश्वास पक्का हो गया कि ये बेवू है ही नहीं। तीसरी बात तो तुम्हारे सामने की मैंने कि उसे झूठ कहा, कल तुम्हारे सामने उसकी मेरी बात थी जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ था। परंतु बेवू बना वो इंसान माना कि ऐसी बात हुई थी। मतलब कि वो बेवू है ही नहीं।”

सिटवी वोमाल को व्याकुल निगाहों से देखता रहा।

“मैं जब भी उस लड़की को जंगली लड़की कहता हूं तो बेवू नाराजगी से उठकर चला जाता है। लेकिन आज नहीं गया। क्योंकि वो बेवू नहीं था। मैंने स्पष्ट महसूस किया कि आज उसका व्यवहार बदला-बदला-सा था। उसके हाव-भाव में हिचक थी। क्योंकि वो बेवू था ही नहीं।” वोमाल ने गम्भीर स्वर में कहा –“क्या तुम्हें मेरी बातें जंची?”

“ठीक...ठीक है सर।” सिटवी ने व्याकुल ढंग से कहा –“पर वो बेवू ही लगा मुझे।”

“अगर तुममें मेरा दिमाग होता तो तुम आज मेरे संगठन को चला रहे होते सिटवी।”

दोनों के बीच खामोशी आ ठहरी।

कुछ देर बाद सिटवी ने ही कहा।

“वो बेवू नहीं था तो आपने उसे जाने क्यों दिया?”

“जाने क्यों दिया?” वोमाल जगवामा मुस्कराया –“बेवू मेरे साथ खेल खेलने की कोशिश में है। वो पहरे में है और उस जंगली लड़की के पास नहीं जा पा रहा तो उसने ये चाल चली। जाने कैसे उसने अपना हमशक्ल तैयार करवाया और अपनी जगह पर भेज दिया। सोचा कि बाप धोखा खा जाएगा। लेकिन वोमाल जगवामा कभी भी धोखा नहीं खाता। ये बात जानते हुए भी बेवू ने चालाकी की। बच्चा है अभी।”

“आपका मतलब कि बेवू सर पूर्व के जंगलों की बस्ती में, लड़की के पास चले गए होंगे।”

“हर हाल में।”

सिटवी कुछ कह नहीं सका।

“इस नकली बेवू को ऐसे ही यहां बना रहने दो। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम मुमरी माहू को तुरंत आने को कहो।”

“तो मुमरी को आप बेवू सर के पीछे पूर्व के जंगलों की बस्ती में भेज रहे हैं।”

“हां। दो बार मुमरी वहां से बेवू को वापस ला चुका है। अब फिर वो ही उसे लाएगा।”

सिटवी तुरंत अपने फोन के पास पहुंचा और उठाकर फोन करने लगा।

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