सेन्ट्रल ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन के सुपरिटेन्डेन्ट रामसिंह ने अपनी जेब से एक असाधारण लम्बाई का सिगार निकाला, दांत से ही उनका कोना काटा, सिगार को अपने मुंह के कोने में लगाकर उसने माचिस से सुलगाया और फिर एक बेहद लम्बा कश लेकर उसे होंठों से हटा लिया और अपने विशिष्ट ढंग से उसे अपने अंगूठे और पहली उंगली में नचाता हुआ सुनील से सम्बोधित हुआ - “आज तुमको मेरे साथ प्रतिरक्षा मन्त्रालय में चलना है ।”
सुनील के माथे पर बल पड़े गये । ऐसे असाधारण निमन्त्रण की उसे स्वप्न में भी आशा नहीं थी ।
“घिस रहे हो क्या, सुपर साहब ?” - उसने उपहासपूर्ण स्वर से पूछा ।
लेकिन रामसिंह गम्भीर था ।
“प्रतिरक्षा मन्त्री व्यक्तिगत रूप से तुमसे मिलना चाहते हैं ।” - रामसिंह बोला ।
“लेकिन क्यों ?” - सुनील और भी हैरान हो उठा ।
“नरेश कुमार का नाम सुना है ?” - रामसिंह ने पूछा ।
“कौन नरेश कुमार ?” - सुनील अपने मस्तिष्क पर जोर देता हुआ बोला - “वही तो नहीं जिसका मृत शरीर मंगलवार की सुबह रेल की पटरी के किनारे पड़ा पाया गया था ?”
“बिल्कुल वही ।”
“लेकिन प्रतिरक्षा मन्त्री की इसमें क्या दिलचस्पी हो सकती है ? सीधी-सीधी एक दुर्घटना भर तो थी वह वह । ‘ब्लास्ट’ में हमने वह खबर छापी भी थी । कोई असाधारण बात तो थी ही नहीं उसमें । नरेश कुमार या तो चलती ट्रेन में से गिर गया था या फिर उसने स्वयं आत्महत्या के इरादे से छलांग लगा दी थी और अपनी जान गवां बैठा था । घटना से कहीं भी यह प्रकट नहीं होता था कि वह लूटा गया था या किसी के साथ उसका दंगा फसाद हुआ था और उसी चक्कर में किसी ने उसे ट्रेन में से धकेल दिया था । वह तो एक सीधी-सीधी दुर्घटना थी जिसमें उसकी जान चली गई ।”
“लेकिन अगर प्रतिरक्षा मन्त्री स्वयं इस दुर्घटना में दिलचस्पी ले रहे हैं तो इतना तो तुम्हारे दिमाग में आना चाहिये ही या नहीं कि कुछ तो असाधारण बात होगी ही इसमें ।”
“अब कुछ कहो भी, यार ।”
“तुम्हें मालूम है, नरेश कुमार प्रतिरक्षा मन्त्रालय में क्लर्क था ?”
“अच्छा !” - सुनील उस नये रहस्योद्घाटन से तनिक सतर्क हो उठा ।
“शायद तुमने वह खबर गौर से पढी नहीं ।”
“मैंने तो यूं ही नजर फिरा ली थी । भई, प्रेस रिपोर्टर होने का मतलब यह थोड़े ही है कि आप हर राम शाम हरनाम के जीवन-मरण का हिसाब रखा करें । नरेश कुमार की मृत्यु में दिलचस्पी वाली कोई बात नहीं थी इसलिए घटना दिमाग में टिक ही नहीं पाई ।”
“खैर, अब सुन लो ।” - रामसिंह सिगार का एक गहरा कश लेकर बोला - “सोमवार की रात को नरेश कुमार एकाएक नगर से गायब हो गया था । आखिरी बार उसे रमा नाम की एक लड़की ने देखा था । रमा से नरेश की सगाई हो चुकी थी और शीघ्र ही शादी होने वाली थी । दोनों के घर वाले स्वतन्त्र विचारों के थे इसलिए कोई शादी से पहले ही उनके मिलने-जुलने में एतराज नहीं करता था । सोमवार की रात को, तुम्हें याद होगा, इतना घना कोहरा छाया हुआ था कि तीन गज दूर की चीज भी दिखाई नहीं देती थी । ऐसे में रात को लगभग साढे सात बजे नरेश कुमार रमा को बीच सड़क पर छोड़कर गायब हो गया था । रमा के कथनानुसार उनमें कोई झगड़ा भी नहीं हुआ था । वह तो रमा के साथ बातें करता हुआ सड़क पर चल रहा था, फिर एकाएक वह थमक कर खड़ा हो गया था और फिर रमा को एक शब्द भी कहे बिना उसे वहीं छोड़कर भाग खड़ा हुआ था और दोबारा लौट कर नहीं आया था । रमा परेशान होकर घर चली आई थी । अगले दिन, यानी मंगलवार को, सुबह लगभग छः बजे राजनगर के रास्ते के एक छोटे से स्टेशन हरीपुर से कुछ आगे पटरियों के किनारे उसकी लाश पड़ी पाई गई थी । उसका सिर बुरी तरह कुचला हुआ था । वह चलती गाड़ी में से गिरा था और शायद सिर के बल कठोर जमीन से आ टकराया था । इस बात को जानने का कोई साधन नहीं है कि वह राजधानी से राजनगर को जा रहा था या राजनगर से राजधानी की ओर आ रहा था क्योंकि सोमवार की रात को साढे सात बजे से लेकर मंगलवार सुबह छः बजे तक वह कहां रहा, क्या करता रहा, कुछ पता नहीं है । सम्भव है, वह राजनगर जाता हुआ दुर्घटना का शिकार हुआ हो । सम्भव है, वह राजनगर तो सुरक्षित पहुंच गया हो लेकिन वहां से लौटता हुआ गाड़ी में से गिरा हो । और फिर यह जानने का भी तो कोई साधन नहीं है कि वह राजधानी और राजनगर के बीच कौन से स्टेशन से ट्रेन पर सवार हुआ था और वह कौन से स्टेशन तक जाना चाहता था ।”
“यह तो उसकी टिकट से पता चला सकता है ।”
“लेकिन तलाशी लेने पर उसकी जेब में से टिकट निकली ही नहीं थी ।”
“क्या ?” - सुनील ने आश्चर्यचकित स्वर से पूछा - “तो क्या वह बिना टिकट सफर कर रहा था ?”
“शायद ।” - रामसिंह बोला - “कई सम्भावनायें हैं । यह भी हो सकता है कि टिकट उसकी जेब में से कहीं गिर पड़ा हो । किसी ने टिकट उसकी जेब में से निकाल लिया हो इस बात की सम्भावना नहीं है ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि टिकट से अतिरिक्त हर चीज उसकी जेब में सही-सलामत मौजूद थी । उसकी जेब में लगभग नब्बे रुपये थे, नैशनल बैंक की चैक बुक थी । उस चैक बुक के कारण ही उसकी शिनाख्त हो पाई थी । सोमवार के नाइट शो के ढाई-ढाई रुपये के दो सिनेमा टिकट भी थे उसकी जेब में और सबसे अधिक हैरान कर देने वाली जो चीज उसकी जेब से निकली थी और जिसके कारण स्वयं प्रतिरक्षा मन्त्री को इस मामले में रुचि लेनी पड़ रही है वह थी टैकनीकल कागजों का एक पुलन्दा ।”
“कैसे टैकनीकल कागज ?”
“ये सब तुम्हें प्रतिरक्षा मन्त्रालय में चलकर ही पता लगेगा ।”
“लेकिन यह टैकनीकल कागजों वाली बात तो, मेरे ख्याल से, अखबार में नहीं थी ?”
“इसे फिलहाल रहस्य रखा जा रहा है ।”
“लेकिन मैं इस सारी तसवीर में कहां फिट होता हूं ? मैं तो एक सीधा-साधा सिविलियन हूं मिलिट्री एस्टब्लिशमेंट से मेरा क्या वास्ता है ?”
“देखो सुनील, कुछ कारण ऐसे भी हैं जिनके अन्तर्गत सीबीआई के आदमी इस मामले की ढंग से तफ्तीश नहीं कर सकते । वैसे तो हमारे भी प्रयास जारी ही हैं लेकिन कुछ अड़चनें ऐसी हैं जिनका सामना करने की सुविधा हमें नहीं है लेकिन एक सिविलियन को है ।”
“कैसे ?”
“जैसे मान लो सीबीआई के एक जासूस को किसी आदमी पर सन्देह है कि वह विदेशी एजेन्ट है और इस बात को सिद्ध करने के लिए उस आदमी की कोठी में से घुस जाने का हौसला वह कर नहीं सकता और डिपार्टमेंट केवल सन्देह के आधार पर इतना बड़ा कार्य करने की अनुमति देना पसन्द नहीं करेगा । मतलब यह कि जब तक उस बाबत प्रोसीजरल कार्यवाही पूरी होगी तब तक सांप निकल जाने पर लकीर पीटने वाली स्थिति रह जायेगी । जबकि किसी दूसरे आदमी को इस प्रकार का कोई भी बन्धन नहीं होगा । वह तो अगर चोर की तरह भी कोठी में घुस जायेगा तो बड़ी हद होगी वह चोरी के इलजाम में गिरफ्तार हो जायेगा जबकि अगर सी बी आई का जासूस यूं पकड़ा जाये और कहीं यह सिद्ध हो जाये कि वह सरकारी जासूस था तो हमारे देश के लिये उस बात की सफाई देनी मुश्किल हो जायेगी । इसीलिये प्रतिरक्षा मन्त्री ने किसी ऐसे आदमी की सहायता की इच्छा प्रकट की है जिसकी प्रतिभा अद्वितीय हो । मैंने तुम्हारा नाम प्रस्तावित किया था जो फौरन स्वीकार हो गया था ।”
सुनील विचारपूर्ण मुद्रा बनाये चुपचाप बैठा रहा ।
“लेकिन” - रामसिंह बोला - “इस काम के दौरान तुम्हें यह भूल जाना होगा कि तुम ब्लास्ट के रिपोर्टर भी हो । सारी कार्यवाही बहुत गोपनीय रखी जानी है ।”
“लेकिन मेरे कितने ही काम तो मेरे मित्र रमाकांत की यूथ क्लब करती है ।”
“इस बार तुम्हारे वे काम राम सिंह और उसके आदमी करेंगे । ओके ?”
“ओके ।” - सुनील बोला ।
***
प्रतिरक्षा मन्त्री कई क्षण आंखों-आंखों में ही सुनील को तोलते रहे और फिर गम्भीर स्वर से बोले - “भारी गडबड़ हो गई है, बेटा । उन कागजों के मारे खलबली मची हुई है । प्रधानमन्त्री भी चिन्ता प्रकट रहे हैं इस विषय में... केस तो मालूम है न तुम्हें ?”
“कई बातें नहीं मालूम हैं, सर ।” - सुनील शिष्ट स्वर से बोला - “जैसे वे टैक्नीकल पेपर क्या थे ?”
“उन्हीं का तो सारा बखेड़ा है ।” - मन्त्री जी के स्वर में चिन्ता का स्पष्ट पुट था - “वह तो सौभाग्य से उनके विषय में कोई बात प्रकाश में नहीं आई है वरना अखबार वालों ने बावेला मचा देना था । वे टैक्नीकल पेपर जो उस मरदूद की जेब में से निकले थे एक नये प्रकार के फाइटर हवाई जहाज के अविष्कार से सम्बन्धित थे । निर्माण के बाद वह नया हवाई जहाज न केवल हमारे शत्रु राष्ट्र को खैरात में मिले जैट विमानों से और स्वयं हमारे महान सफलता प्राप्त करने वाले जैट विमानों से कई गुणा बढिया होता बल्कि कई मामलों में यह रूस के मिग विमानों को भी पछाड़ सकता था । उस विमान के लिये एक नये प्रकार से इन्जन का अविष्कार किया गया था जिसकी सहायता से उसकी कार्य क्षमता संसार के किसी भी विमान से दुगनी हो सकती है । सुपर-सोनिक जेट विमानों से भी अधिक स्पीड थी उसकी । दो भारी विशेषतायें थीं उस प्लेन में । एक तो यह कि वह विमान लैंडिंग के लिये रन-वे का मोहताज नहीं था । किसी ऊबड़-खाबड़ मैदान में भी वह उतनी ही आसानी से उतारा जा सकता था जितना की हवाई अड्डे के साफ-सुथरे और लम्बे रन-वे पर । और दूसरी यह कि वह आकाश पर पूरी गति से उड़ते समय भी केवल एक बटन के आपरेशन द्वारा अपने प्लान से सामान्तर एकदम हजार फुट ऊंचा उठ जाता था । इस विशेषता के कारण हवाई युद्ध में उसकी क्षति की सम्भावना बहुत कम रह जाती थी । इतनी विशेषताओं के बावजूद पायलेट को उस विमान को चलाने के लिये मिग विमानों की तरह की विशेष प्रकार को प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं । कोई भी कैनबरा, हण्टर या मेट प्लेन चलाने वाला पायलेट इसे आसानी से उड़ा सकता था । हमारे देश के हित में इस विमान का अविष्कार कितना महत्वपूर्ण है यह खूब समझ सकते हो । यह अविष्कार भारत सरकार के सब से गुप्त रहस्यों में था । दो वर्ष से उन पेपरों पर काम हो रहा था । हमारी सरकार ने उस अविष्कार की खातिर विशेषज्ञों पर लाखों रुपया खर्च किया है । उस अविष्कार का किसी शत्रु के हाथ लग जाना भारी अहित का कारण बन सकता है । वे पेपर प्रतिरक्षा मन्त्रालय के ही एक आफिस की सेफ में रखे जाते थे, न तो वह सेफ तोड़ी जा सकती है और न ही उस कमरे के खिड़कियां-दरवाजे जिसमें कि वह सेफ रखी है । किसी भी स्थिति में बड़े से बड़े आफिसर को भी उन कागजात को सेफ में से बाहर निकाल ले जाने की आज्ञा नहीं है । यहां तक कि अगर वायु सेना का सबसे बड़ा अधिकारी एयर मार्शल या स्वयं प्रधान मन्त्री भी उन कागजों को देखना चाहें तो वे कागज उस दफ्तर में से निकाल कर उनके पास नहीं ले जाये जायेंगे बल्कि उन्हें ही वहां आना पड़ेगा । और इतनी हिफाजत के बाद भी, बेटा, वे कागज पाये गये हैं एक मामूली कलर्क की जेब में । मैं कहता हूं अगर यह बात जनता में फैल गई तो गजब हो जायेगा ।”
“लेकिन जब वे टैक्नीकल कागज वापिस मिल ही गये हैं तो...”
“नहीं, बेटा” - “मन्त्री जी हाथ उठा कर उसे रोकते हुए बोले - “अगर सारे पेपर वापिस मिल गये होते तो हम इस बात को प्रकट भी नहीं होने देते कि वे कभी चुराये भी गये थे । दफ्तर में से दस पेपर चुराये गये थे जिन में से सात नरेश कुमार नाम के उस कलर्क की जेब में से निकले थे । तीन बेहद महत्वपूर्ण पेपर गायब हैं और वे पेपर वापिस मिलने ही चाहियें । तुम अगर यह काम कर सको तो यह देश की एक अमूल्य सेवा होगी ।”
“जी, मैं पूरी कोशिश करूंगा ।”
“कोशिश नहीं” - मन्त्री जी जोर देकर बोले - “यह काम करना ही है तुमने । कुछ आवश्यक बातें मैंने इस कागज पर लिख दी हैं, उसे तुम रख लो । ये जानकारी तुम्हारे काम आयेगी ।”
सुनील ने कागज ले लिया ।
“सरकारी तौर पर उन कागजों के संरक्षण की जिम्मेदारी अन्डर सैक्रैट्री कर्ण सिंह की थी ।” - मन्त्री जी बोले - “कर्ण सिंह पर किसी प्रकार का सन्देह करना मूर्खता है । वह पक्का देशभक्त है । मन्त्रालय की सेवा में ही उसके बाल सफेद हो गये हैं । सोमवार को शाम के तीन बजे तक प्रमाणिक रूप से पेपर सेफ में थे । कर्ण सिंह ने स्वयं अपने हाथों से सेफ को बन्द किया था । उसी शाम को लगभग साढे तीन बजे कर्ण सिंह राजनगर के लिये रवाना हो गया था । चाबियां सुरक्षित रूप से उसकी जेब में थीं । इसी दुर्घटना के दौरान वह राजनगर मेजर वर्मा के साथ रहा था ।”
“क्या इस बात की सत्यता की तफ्तीश करवा ली गई है ?”
“हां । सोमवार को साढे तीन बजे कर्ण सिंह का छोटा भाई नरेन्द्र सिंह उसे राजधानी के स्टेशन से राजनगर के लिये सी आफ कर के आया था और मेजर वर्मा इस बात का गवाह है कि सोमवार की रात को और मंगलवार की सुबह कर्ण सिंह राज नगर में ही था अर्थात् घटना के समय घटना स्थल से बहुत दूर था ।”
“मिस्टर कर्ण सिंह के अतिरिक्त और भी किसी के पास चाबी होती है ?”
“हां, आफिस सुपरिन्टेन्डेंट के पास । वह बाल-बच्चों वाला बेहद शरीफ आदमी है । अब तक नौकरी का बड़ा शानदार रिकार्ड है उसका । उसका कथन है कि सोमवार को दफ्तर से लौटने के बाद वह एक क्षण के लिये भी घर से बाहर नहीं निकला था और उसकी चाबी भी सुरक्षित रूप से उसके पास ही रही थी इस कथन की पुष्टि उसकी पत्नी और पड़ोसियों ने की है ।”
“नरेश कुमार के विषय में कुछ और बताइये ।”
“बताने लायक है ही क्या उसके विषय में ?” - मन्त्री जी हाथ फैला कर बोले - “दस साल से वह सर्विस में था । ढंग से काम करने वाला सीधा-सादा ईमानदार आदमी था । दस साल की सर्विस में एक बार भी उसके विरुद्ध कोई शिकायत नहीं आई थी । आफिस सुपरिन्टेन्डेंट सोहन लाल उस पर पूरा भरोसा रखता था ।”
“उस रात को सेफ और दफ्तर के ताले किसने बन्द किये थे ?”
“सोहन लाल ने ।”
“इस विषय में तो कोई सन्देह नहीं दिखाई देता, सर” - सुनील विचारपूर्ण स्वर से बोला - “कि पेपर नरेश कुमार ने निकाले थे, क्योंकि वे उसकी जेब में पाये गये थे ।”
“ठीक है । लेकिन सवाल तो यह है कि उसने ऐसा किया क्यों ?”
“अवश्य ही वह पेपर उसने किसी विदेशी एजेन्ट को बेचने के लिये चुराये होंगे ।”
“लेकिन पेपर चुराने के लिये उसके पास नकली चाबी होनी चाहिये ।” - राम सिंह बोला ।
“एक नकली चाबी क्यों, कम से कम तीन नकली चाबियां होनी चाहियें” - मन्त्री जी बोले - “एक मुख्य बिल्डिंग के द्वार के लिये, दूसरी आफिस के उस कमरे के लिये और तीसरी सेफ खोलने के लिये ।”
“तो फिर उसके पास तीन नकली चाबियां प्राप्त कर लेने के साधन होंगे और अब बहस के लिये मान लीजिये कि नरेश कुमार वह रहस्य राजनगर में किसी के हाथ बेचना चाहता था और यह काम वह रातोंरात ही कर लेना चाहता था ताकि अगली सुबह वह पेपर वापिस सेफ में रख सके और किसी को खबर भी न हो । लेकिन राजनगर जाते समय या वहां से लौटते समय किसी दुर्घटना या किसी झगड़े के परिणामस्वरूप वह मारा गया । शायद ट्रेन में ही उसे वह आदमी मिल गया हो जिसके हाथ नरेश रहस्य को बेचना चाहता था और उसी ने नरेश को गाड़ी में से धकेल दिया हो या नरेश बचाव के प्रयत्न में खुद गिर गया हो ।” - राम सिंह ने अपनी राय दी ।
“सम्भव है ।” - मन्त्री जी ने अनुमोदन किया ।
“राम सिंह की थ्योरी में दो गड़बड़ हैं ।” - सुनील विचारपूर्ण स्वर से बोला - “अगर सोमवार की रात को नरेश प्लेन का रहस्य किसी विदेशी एजेंट के हाथ बेचने के लिये राजनगर जा रहा था तो फिर उसी शाम के लिये उसने सिनेमा के दो टिकट क्यों खरीदे ? उसको उस रात स्वयं को पूरी तरह खाली रखना चाहिये था जबकि उसने सोमवार की ही रात के सिनेमा के दो टिकट लिये और जब वह रमा के साथ सिनेमा की ओर जा रहा था तो वह एकाएक आधे रास्ते से गायब हो गया । अगर रात को उसने किसी को वे पेपर बेचने जाना था तो उसने रमा को सिनेमा ले जाने की मुसीबत अपने सिर क्यों ली ?”
“नम्बर दो” - सुनील क्षण भर रुक कर बोला - “क्षण भर के लिये मान लीजिये कि नरेश राजनगर पहुंच जाता है और विदेशी एजेन्ट से मिल लेता है । उसने अगली सुबह पेपर सेफ में लाकर रख देने हैं नहीं तो उसकी चोरी पकड़ी जायेगी । वह दस पेपर लेकर गया था लेकिन लाश मिलने पर उसकी जेब में सात ही पाए गए थे । आखिर बाकी तीन पेपर कहां गये ? अपनी राजी से तो वह तीन पेपर छोड़ेगा नहीं और फिर अगर उसने वे पेपर किसी विदेशी एजेंट को बेचे हैं तो उसकी जेब में ढेर सारा रुपया होना चाहिये था । अगर वह एजेंट से मिलने से पहले ही रेल दुर्घटना का शिकार हो गया होगा तो दस पेपर उसकी जेब में मिलने चाहिये थे और अगर वे पेपर किसी ने उसके बलपूर्वक छीनकर उसे गाड़ी में से धकेल दिया था तो उसकी जेब से एक भी पेपर नहीं मिलना चाहिये था ।”
“मेरे ख्याल से घटना यूं घटी होगी ।” - राम सिंह जल्दी से बोला - “नरेश रहस्य बेचने के सिलसिले में विदेशी एजेन्ट से मिला होगा । कीमत पर उनका समझौता नहीं हुआ होगा । इसलिए नरेश रहस्य बेचे बिना ही वापिस राजधानी की ओर चल दिया होगा । विदेशी एजेन्ट ने उसका पीछा किया होगा । गाड़ी में एजेंट ने नरेश की हत्या कर दी होगी और सबसे अधिक महत्वपूर्ण तीन पेपर उसकी जेब में से निकाल कर लाश उसने गाड़ी से बाहर फेंक दी होगी ।”
“लेकिन नरेश की जेब में से रेल की टिकट क्यों नहीं निकली ?” - सुनील ने प्रश्न किया ।
“टिकट एजेन्ट ने निकाल ली होगी ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि टिकट से यह प्रकट हो जाने की सम्भावना थी कि विदेशी एजेंट राजनगर और राजधानी के बीच कौन से शहर में रहता था ?”
“बहुत अच्छे !” - सुनील प्रशंसापूर्ण स्वर से बोला - “तुम्हारी थ्योरी एकदम ठीक मालूम होती है । लेकिन इसका तो यह मतलब हुआ कि केस खत्म । देशद्रोही नरेश कुमार मृत्यु का शिकार हो गया । विमान के अविष्कार का रहस्य विदेशी एजेंटों के हाथों जहां पहुंचना था, पहुंच गया । इसमें मेरे करने के लिये क्या रखा है ?”
“बहुत कुछ ।” - मन्त्री जी बेसब्री से बोले - “मेरा दिल इस थ्योरी को स्वीकार नहीं करता । सुनील, तुम केस की तहकीकात करो । अपनी सारी शक्ति लगा दो इसमें । घटना स्थल पर जाओ । इस केस से सबन्धित लोगों से मिलो । कोई कोशिश उठा मत रखो । मुझे विश्वास है कि सारी घटना में कोई ऐसी बात जरूर है जो किसी की नजर में नहीं आई है । सुनील बेटे, कुछ करो ? कुछ सोचो ।”
“जी, मैं पूरी कोशिश करूंगा ।” - सुनील बोला ।
***
लगभग एक घन्टे बाद सुनील और राम सिंह रेल की पटरियों पर उस स्थान पर खड़े थे जहां नरेश की लाश पड़ी पाई गई थी । उस स्थान के पास रेलवे लाइन एक दम एक गहरा मोड़ काटती थी ।
“एक नई बात प्रकाश में आई है ।” - राम सिंह बोला - “सोमवार की रात को एक आदमी रेलवे लाइन के साथ-साथ चलता हुआ घर लौट रहा था । उसका कथन है कि रात के लगभग पौने बारह बजे उसने गाड़ी में से रेलवे लाइन पर धम्म से कोई भारी चीज गिरने की आवाज सुनी थी लेकिन घना कोहरा छाया होने के कारण उसे कुछ दिखाई नहीं दिया था । उस रात उसने बात को कोई महत्व नहीं दिया था लेकिन अगली सुबह जब नरेश की लाश मिली थी तो उसने उस घटना की पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दी थी ।”
सुनील गम्भीर मुद्रा बनाये रेल की पटरियों को घूरता रहा ।
“लाश कहां मिली थी ?” - उसने पूछा ।
राम सिंह ने पटरियों के मोड़ पर एक स्थान की ओर संकेत कर दिया ।
“यहां खून का तो कोई निशाना नहीं दिखाई देता ।”
“खून बहा ही नहीं था ।”
“यह कैसे हो सकता है ? मेरे विचार से तो उसके शरीर के हर भाग में से खून बहा होगा ।”
“वैसे तो उसके सारे शरीर का भुरता हो गया था लेकिन एक्सटर्नल हैमरेज बहुत कम हुआ था ।”
“लेकिन फिर भी कुछ तो खून बहा ही होगा !” - सुनील के स्वर में असन्तुष्टि की स्पष्ट झलक थी । प्रत्यक्ष था कि उसे राम सिंह की दलील पसन्द नहीं आई थी ।
राम सिंह चुप रहा ।
“चलो यहां से ।” - कुछ क्षणों बाद सुनील बोला - “यहां अब कुछ करना बाकी नहीं रह गया है ।”
हरीपुर स्टेशन पर आकर सुनील ने प्रतिरक्षा मन्त्री को एक तार भेजी । लिखा था:
अन्धकार में प्रकाश की एक मध्यम सी किरण दिखाई तो दी है । कृपया किसी आदमी के हाथ बैंक स्ट्रीट स्थित मेरे निवास स्थान पर उन सारे विदेशी जासूसों और अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्टों की लिस्ट भेज दीजिये जिनकी जानकारी हमारी सरकार को है
- सुनील
“यह अन्धकार मे प्रकाश की कौन सी किरण दिखाई दी है तुम्हें ?” - राम सिंह ने पूछा ।
“एक नया तथ्य ।”
“क्या ?”
“यह कि नरेश की हत्या कहीं और की गई थी और...”
“और फिर उसकी लाश को रेलवे कम्पार्टमेंट में से बाहर फेंक दिया गया था ।” - राम सिंह एकदम कूद कर नतीजे पर पहुंचता हुआ बोला ।
“नहीं ।” - सुनील ने शान्त स्वर से कहा ।
“तो फिर ?”
“लाश रेलवे कम्पार्टमेंट की छत पर थी ।”
“क्या ?” - राम सिंह हैरान होकर चिल्लाया ।
“है न मजेदार बात ? लेकिन सारे तथ्य इसी बात की ओर संकेत करते हैं । तुमने नोट किया होगा कि लाश वहां पाई गई थी जहां पर रेलवे लाइन एक दम मोड़ काटती है । अगर कम्पार्टमेंट की छत पर कोई चीज पड़ी होगी तो यह निश्चित है कि तेजी से जाती हुई गाड़ी के मोड़ पर घूमते समय वह नीचे आ गिरेगी । इसी कारण उस गाड़ी के किसी कम्पार्टमेंट में से किसी प्रकार की हाथपाई के चिन्ह नहीं मिले थे । दूसरी बात यह है कि पटरियों पर पड़ी नरेश की लाश में से जरा भी खून नहीं बहा था । यह तभी सम्भव हो सकता है जबकि लाश में से खून पहले ही कहीं किसी और स्थान पर बह चुका हो । इस थ्योरी से यह प्रश्न भी हल हो जाता है कि नरेश की जेब में टिकट क्यों नहीं थी । वह गाड़ी पर सवार ही नहीं हुआ तो टिकट कहां से होती !”
“अगर वास्तव में ऐसा ही हुआ है” - राम सिंह बोला - “तो अब उसकी हत्या एक रहस्य के रूप में सामने आ खड़ी हुई है ।”
सुनील चुप रहा । हरीपुर से वापिस राजधानी पहुंच जाने तक उसने एक भी बात नहीं की ।
“सबसे पहले मैं अन्डर सैक्रेट्री कर्ण सिंह से मिलना चाहता हूं ।” - राजधानी पहुंचकर सुनील बोला ।
“बेहतर ।” - राम सिंह बोला और उसे अन्डर सैक्रेट्री की कोठी पर ले गया ।
कोठी पर पहुंचकर उन्होंने कर्ण सिंह के विषय में पूछा ।
“साहब” - एक नौकर ने उदास स्वर से बताया - “साहब तो आज सुबह स्वर्ग सिधार गए ।”
“क्या ?” - सुनील हैरान चिल्लाया - “कैसे ?”
“भीतर आ जाइये, साहब ।” - नौकर बोला - “उनके भाई नरेन्द्र सिंह जी भीतर हैं, उनसे बात कर लीजिये ।”
नौकर उन्हें ड्राईंगरूम में ले गया । थोड़ी देर बाद लगभग चालीस वर्ष की आयु का एक हट्टा-कट्टा पुरुष कमरे में प्रविष्ट हुआ ।
“मैं नरेन्द्र सिंह हूं ।” - वह बोला ।
“सैक्रेट्री साहब की मृत्यु का बड़ा दुख हुआ ।” - सुनील ने अवसादपूर्ण स्वर से कहा ।
“उन टैक्नीकल पेपरों की चोरी जान ले बैठी भाई साहब की ।” - नरेन्द्र सिंह बोला - “भाई साहब तीस वर्ष से इस विभाग में अपनी प्रतिष्ठा बनाये हुए थे । इस चोरी का उन्हें भारी सदमा पहुंचा । उन्हें अपने विभाग की कार्यदक्षता पर बड़ा मान था उन्हें अपने नीचे काम करने वालों पर भारी भरोसा था । एक कर्मचारी की ऐसी घृणित हरकत ने उनका दिल तोड़ दिया जिस दिन उन्होंने यह सूचना सुनी थी, उस दिन उन्हें बड़ा सीरियस हार्ट अटैक हुआ था । दूसरा अटैक आज सुबह हुआ और वे स्वर्ग सिधार गये ।
“हमने तो सोचा था कि उनसे इस मामले को रफादफा करने में कोई सहायता मिलेगी ।”
“अगर भाई साहब जीवित होते तो भी वे शायद ही आपके लिए कुछ कर पाते ।” - नरेन्द्र सिंह बोला - “जो कुछ उन्हें मालूम था वह वे पहले ही पुलिस को बता चुके थे । उनके विचार से तो यह सारा किया धरा नरेश कुमार का ही था ।”
“आप इस घटना पर कोई प्रकाश डाल सकते हैं ?”
“मैं क्या कर सकता हूं ?” - नरेन्द्र सिंह असहाय स्वर में बोला - “मुझे तो केवल वही मालूम है जो मैंने सुना है या अखबार से पढा है ।”
“आप...”
“देखिये, मेरे पास अधिक समय नहीं है । अगर इस समय आप लोग मुझे क्षमा करें तो बड़ी कृपा होगी ।”
सुनील और राम सिंह उठ खड़े हुए और एक-दो औपचारिक बातें करके बाहर निकल आये ।
“सुपर साहब” - बाहर आकर सुनील बोला - “यह तो बड़ी जासूसी उपन्यासों जैसी घटना घटी है ।”
“क्या मतलब ?”
“ऐसा तो जासूसी उपन्यासों में ही होता है कि जासूस साहब तफ्तीश के सिलसिले में किसी के घर पहुंचे और वहां जाकर पता लगा कि जिससे वे बात करने आये थे वे वहां पहुंच गया था जहां जाने का हौसला जासूस साहब के फरिश्ते नहीं कर सकते ।”
“लेकिन सुनील” - राम सिंह बोला - “जासूसी उपन्यास किसी लेखक की कल्पना का फल होता है । जासूसी उपन्यास में लेखक ऐसी अप्रत्याशित मृत्यु का वर्णन रहस्य उत्पन्न करने के लिये करता है और सौ में से नब्बे मामलों में उपन्यास का जासूस अन्त में यह सिद्ध कर देता है कि वह आदमी अपनी स्वाभाविक मौत नहीं मरा था बल्कि उसे अपराधियों द्वारा केवल इसलिए कत्ल कर दिया गया था कि जासूस कहीं चालीसवें पृष्ठ पर ही सारे तथ्यों को जानकर उपन्यास का वह पटाक्षेप ही न कर दे । जब कि वास्तविक जीवन में ऐसा बहुत कम होता है ।”
“कम ही सही बहरहाल होता तो है ।”
“कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाहते कि अण्डर सैक्रेट्री कर्णसिंह हार्ट अटैक के शिकार नहीं हुए बल्कि उनकी हत्या की गई है ।”
“ऐसा नहीं हो सकता क्या, सुपर साहब ?” - सुनील ने भोलेपन से पूछा ।
राम सिंह कई क्षण चुप रहा और फिर धीरे से बोला - “हो तो सकता है ।”
सुनील चुप रहा ।
“सैक्रेट्री साहब की हत्या भला क्यों करना चाहेगा कोई ?” - राम सिंह विचारपूर्ण स्वर से बोला ।
“तथ्यों को छुपाने के लिये । शायद सैक्रेट्री साहब अनजाने में ही उन कागजों की चोरी के विषय में कुछ जान गये हों और फंस जाने के खतरे में किसी ने सदा के लिये उनका मुंह बन्द कर दिया हो ।”
“लेकिन किस ने ?”
“यही पता लग जाये तो खेल ही खत्म न हो जाये ।”
“अब जा कहां रहे हो ?” - राम सिंह बात बदलता हुआ बोला ।
“नरेश कुमार के घर चलो ।” - सुनील बोला ।
***
नरेश कुमार का दो कमरों का छोटा सा घर था । उसकी मां दुख और अवसाद की साक्षात प्रतिमा बनी बैठी थी । जवान बेटे की मौत से वृद्धा को ऐसा सदमा पहुंचा था कि उसके मुंह से बात नहीं निकलती थी । सुनील को उससे कोई लाभदायक बात मालूम नहीं हो सकी ।
वृद्धा की बगल में एक सुन्दर युवती बैठी थी जो, वृद्धा ने बताया, नरेश कुमार की मंगेतर रमा थी - रमा, जो सोमवार की शाम के साढे सात बजे तक नरेश के साथ थी ।
घटना के विषय में उसकी राय पूछे जाने पर वह बोली - “मैं क्या बताऊं, मिस्टर सुनील । मुझे तो विश्वास ही नहीं होता कि नरेश मर गया है । उसकी इस ट्रेजिक मौत के बाद से क्षण भर के लिए भी तो मेरी पलक नहीं झपकी है । हर समय एक ही विचार दिमाग में घूमता रहता है कि नरेश ने वाकई चोरी की थी । उस जैसा सीधा-साधा, ईमानदार और पक्का देशभक्त तो चिराग लेकर ढूंढे नहीं मिल सकता । देश का कोई रहस्य चुराकर किसी विदेशी एजेन्ट के हाथों बेचने से पहले तो वह मर जाना पसन्द करेगा । मिस्टर सुनील, नरेश देशद्रोही, नहीं हो सकता । वह चोरी नहीं कर सकता । वह तो अवश्य ही किसी बहुत बड़े कुचक्र का शिकार होकर जान दे बैठा है ।”
“लेकिन तथ्य तो, मिस रमा, इसी बात की ओर संकेत करते हैं कि यह काम नरेश ने ही किया है ।”
“मैं जानती हूं ।” - रमा धीरे से बोली ।
“रुपये-पैसे के मामले मे उसकी स्थिति कैसी थी ?”
“ठीक ही थी । अच्छा खासा वेतन मिलता था उसे । कुछ रुपया भी जमा कर रखा था उसने । और फिर वह तो बड़ा संतोषी जीव था । थोड़े में ही प्रसन्न रहने का तो स्वभाव बना लिया था उसने । अगर आपका ख्याल हो कि वे टैक्नीकल पेपर बेचकर रुपया प्राप्त करने के लालच में उसने चोरी की थी तो यह असम्भव है ।”
“उसकी मृत्यु से पहले के कुछ दिनों मे क्या आपने उसे किसी प्रकार की मानसिक उत्तेजना का शिकार पाया था ?”
रमा हिचकिचाई ।
“हिचकिचाइये नहीं, मिस रमा ।” - सुनील उसे प्रोत्साहन देता हुआ बोला - “आपकी बताई हुई कोई भी बात नरेश की निर्दोषिता सिद्ध करने में सहायक हो सकती है ।”
“मैंने अनुभव किया था ।” - रमा धीरे से बोली - “कि पिछले कुछ दिनों वह अपने दिमाग पर किसी प्रकार के बोझ का अनुभव करता रहा था । वह हर समय चिन्तित दिखाई दिया करता था । एक बार मैंने बहुत जोर दिया था तो उसने कहा था कि दफ्तर के किसी मामले में भारी गड़बड़ होने की आशंका था उसे । वह कहता था कि बात इतनी गम्भीर है कि किसी को बताई भी नहीं जा सकती । मुझे भी नहीं ।”
“और कुछ ?”
“वह और कुछ बताता ही नहीं था । एक-दो बार वह परेशान होकर सब कुछ मुझे कह ही देने वाला था लेकिन उसने स्वयं को नियंत्रित कर लिया था । हां, इतना जरूर एक बार उसके मुंह से निकल गया था कि प्रतिरक्षा मन्त्रालय के किसी रहस्य विशेष को प्राप्त करने के लिये विदेशों के जासूस करोड़ों रुपया खर्चने से भी नहीं हिचकेंगे ।”
सुनील के चेहरे पर गहरी गम्भीरता के लक्षण परिलक्षित होने लगे ।
“एक बार उसने कहा था कि कोई देशद्रोही बड़ी आसानी से उस रहस्य को हथिया सकता था ।”
“यह कब की बात है ?”
“नरेश की मृत्यु से दो या तीन दिन पहले की ।”
“अब सोमवार की शाम के विषय में कुछ बताइये ?”
“सोमवार की शाम को हम दोनों नाइट शो देखने जाने वाले थे । उस दिन शाम से ही घना कोहरा छाना शुरू हो गया था । सात बजे तक तो कोहरा इतना घना हो गया था कि हाथ को हाथ सुझाई नहीं देता था । क्योंकि समय बहुत था इसलिए हम पैदल ही सिनेमा की ओर जा रहे थे । जिस समय हम प्रतिरक्षा मन्त्रालय की इमारत के सामने से गुजर रहे थे, उस समय नरेश ने न जाने क्या देखा लिया कि उसके मुंह से एक हैरानीभरा स्वर निकला और वह गोली की तरह अन्धकार में एक ओर भागा । मैं काफी देर वहां प्रतीक्षा करती रही लेकिन वह लौट कर नहीं आया । थक कर मैं घर आ गई । अगले दिन के अखबार मे उसकी मृत्यु का समाचार था ।”
सुनील ने सहयोग के लिये रमा का धन्यवाद किया और वहां से भी बाहर निकल आया ।
“कुछ समझ में नहीं आ रहा है ।” - बाहर वह राम सिंह से वोला - “जहां से चलते हैं घूम-फिर कर वहीं पहुंच जाते हैं ।”
राम सिंह चुप रहा ।
“अब ?” - कुछ क्षण बाद राम सिंह ने पूछा ।
“अब यह ।” - सुनील ने अपनी जेब में से अपने प्रिय सिगरेट लक्की स्ट्राइक का पैकेट निकाला और उसमें से एक सिगरेट निकालकर अपने होंठों में लगाता हुआ बोला - “माचिस दो ।”
माचिस देने से पहले राम सिंह ने भी अपना आधा फुट लम्बा एक सिगार निकाल लिया ।
“सिगरेट पियो ।” - सुनील उसकी ओर पैकेट बढाता हुआ बोला ।
“शटअप ।” - राम सिंह बोला । उसे सिगरेट पीने से बड़ी चिड़ थी । उसके विचार से सिगरेट तो कालिज के जमाने में पीने लायक चीज होती थी ।
राम सिंह ने सुनील का सिगरेट और अपना सिगार सुलगाया और अपना पुराना प्रश्न फिर दोहरा दिया - “अब ?”
“बैक टू पैविलियन ।” - उत्तर मिला ।
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प्रतिरक्षा मन्त्रालय में वे आफिस सुपरिन्टेन्डेन्ट सोहन लाल से मिले । सुनील को यह सुनकर बड़ा विचित्र सा लगा कि सोहन लाल निर्विवाद रूप से नरेश को ही अपराधी समझ रहा था । एक बात और भी स्पष्ट हो गई थी कि स्वयं अंडर सैक्रेट्री कर्ण सिंह को छोड़र कोई भी ताला तोड़े बिना या नकली ताली की सहायता बिना कागजों तक नहीं पहुंच सकता था । सोहनलाल के पास केवल सेफ की चाबी थी । अत: चोरी नरेश ने या जिसने भी की थी उसके पास हर हाल में तीन नकली चाबियां होनी जरूरी थीं ।
“एक बात और बताइये मिस्टर सोहन लाल” - सुनील ने पूछा - “अगर इस आफिस का कोई क्लर्क विमान के नक्शे चुरा कर बेचना चाहता ही है तो उसके लिये क्या यह ज्यादा आसान नहीं है कि वह असली नक्शे चुराने की जगह उन्हें नकल कर ले ?”
“सम्भव तो है लेकिन इस काम के लिये टैक्नीकल जानकारी की आवश्यकता है ।”
“क्या नरेश को कोई ऐसी टैकनीकल जानकारी थी ?”
“थी ।” - सोहन लाल ने स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाते हुए कहा ।
“फिर भी उसने असली नक्शे चुराने का रिस्क लिया जबकि वह उनकी नकल भी कर सकता था ?”
सोहन लाल ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
“और फिर दस में से केवल तीन पेपर ही लापता हैं । क्या केवल तीन नक्शों की सहायता से विमान बनाया जा सकता है ?”
“नहीं । दस के दस नक्शे होने जरूरी हैं ।”
“तो फिर केवल तीन नक्शों से किसी विदेशी एजेन्ट को क्या लाभ होगा ?”
“यह भी तो सम्भव है” - सोहन लाल ने राय दी - “कि बाकी के सात नक्शों में निहित सामग्री किसी शत्रु राष्ट्र ने स्वयं अविष्कार कर ली हो और बाकी के तीन सबसे अधिक महत्वपूर्ण नक्शे उन्हें नरेश द्वारा प्राप्त हो गये हों ।”
सुनील चुप रहा । फिर उसने वह कमरा देखने की इच्छा व्यक्त की जहां सेफ रखी थी ।
उस कमरे में एक खिड़की थी जो बाहर सड़क की ओर खुलती थी । सुरक्षा के लिए उस खिड़की पर लोहे के भारी दरवाजे लगे थे । सुनील ने उन्हें दो-तीन बार बन्द किया और खोला ।
“देखो, राम सिंह !” - सुनील राम सिंह का ध्यान खिड़की के दरवाजे की ओर आकर्षित करता हुआ बोला - “खिड़की के पल्ले पूरी तरह बन्द हो जाने के बाद भी इनमें थोड़ी सी झिरी रह जाती है । अगर कोई आदमी चाहे तो सड़क पर खड़ा होकर इस झिरी में से कमरे में बड़ी आसानी से झांक सकता है ।”
राम सिंह ने खिड़की देखी और फिर सहमति प्रकट की ।
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राजधानी के रेलवे स्टेशन से एक नई बात का पता लगा । रेलवे का एक बुकिंग क्लर्क नरेश को शक्ल से पहचानता था और अच्छी तरह याद था कि सोमवार की रात को लगभग आठ बजे नरेश ने राजधानी से राजनगर जाने वाली लाइन पर स्थित एक उपनगर प्रतापगढ का थर्ड क्लास का टिकट खरीदा था । क्लर्क को यह बात इसलिये याद रह गई थी क्योंकि टिकट लेते समय नरेश उत्तेजना और घबराहट का ऐसा भारी प्रदर्शन कर रहा था कि टिकट लेकर उससे काउन्टर पर से बाकी पैसा नहीं उठाये जा रहे थे ।
प्रतापगढ हरीपुर से दो स्टेशन पहले आता था ।
“अगर नरेश को निर्दोष मानकर विचार किया जाये तो एक थ्योरी है जो केस के सारे टेढ़े सवालों का उत्तर दे सकती है ।” - सुनील ने कहा ।
“क्या ?” - राम सिंह बोला
“नरेश की रमा से कही कई बातों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उसे कागजों के चोरी चले जाने की आशंका थी और उसे किसी आदमी पर विदेशी एजेन्ट या उसका सहयोगी होने का सन्देह भी था । उस रात शायद रमा के साथ सिनेमा देखने जाते समय उसे वह आदमी आफिस की इमारत में घुसता दिखाई दे गया । वह रमा को वहीं छोड़कर एक शब्द भी कहे बिना इमारत की ओर भागा और उसने सड़क की ओर वाली खिड़की के लोहे के पटों की झिरी में से चोर को सेफ में से पेपर निकालते देख लिया ।”
“फिर ?”
“अब सवाल यह उठता है कि नरेश ने चोर को देखकर शोर क्यों नहीं मचाया ? उसे पकड़ क्यों नहीं लिया ? इसका एक ही उत्तर हो सकता है कि चोर कोई सीनियर आफिसर था और नरेश यह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि वह चोरी से कागज निकाल रहा था या आफिशियल जरूरत के लिये कागजों को कहीं ले जा रहा था । इसलिये शायद नरेश ने उस आदमी का पीछा किया । अपन कार्य की गम्भीरता के कारण वह रमा को भी नहीं बता सका है कि कहां जा रहा था क्योंकि अगर वह रमा को बताने जाते तो उतनी देर में तो चोर के घने कोहरे में गायब हो जाने की पूरी सम्भावना थी । यहां तक तो ठीक है । इससे आगे इस थ्योरी की टांग टूट जाती है । आखिर नरेश मारा कैसा गया ? उसका मृत शरीर ट्रेन की छत पर कैसे पहुंचा ? और फिर उसकी जेब में रखे सात पेपर ! मेरा तो सिर घूम गया है इस केस के कारण ।”
***
जब सुनील बैंक स्ट्रीट स्थित अपने फ्लैट पर पहुंचा तो प्रतिरक्षा मंत्रालय का एक आदमी उसकी प्रतीक्षा कर रहा था । वह विदेशी जासूसों और अन्तर्राष्ट्रीय एजेन्टों की एक लिस्ट लेकर आया था ।
सुनील ने लिस्ट ले ली । लिखा था:
छोटे-छोटे विदेशी एजेन्ट तो हजारों हैं लेकिन जो इतना बड़ा काम करने का साहस कर सकते हैं, वे कुछ ही है ।
नीचे पांच-छः नाम और पते लिखे थे, जिनमें से एक था: सलामत अली
25 - रेलवे रोड, प्रतापगढ
सलामत अली सोमवार तक तो नगर में ही था लेकिन अब उसका पता नहीं लग रहा है कि वह कहां चला गया है ।
यह जानकर खुशी हुई कि तुम सफलता की ओर अग्रसर हो रहे हो । स्वयं प्रधान मन्त्री तुम्हारी रिपोर्ट की बड़ी उत्कंठा से प्रतीक्षा कर रहे हैं । किसी प्रकार की कठिनाई हो तो लिखो । देश की सारी शक्तियां तुम्हारी पीठ पर हैं ।
नीचे प्रतिरक्षा मन्त्री के हस्ताक्षर थे ।
सुनील ने पत्र को एक बार फिर पढा और फिर उसे टुकड़े-टुकड़े करके आग के हवाले कर दिया ।
रात को लगभग दस बजे राम सिंह को सुनील का टेलीफोन आया ।
“राम सिंह” - सुनील कह रहा था - “मैं प्रतापगढ के प्रताप होटल से बोल रहा हूं । तुम फौरन यहां चले आओ । साथ में एक टार्च और रिवाल्वर लाना न भूलना ।”
लगभग दो घन्टे बाद राम सिंह प्रतापगढ में सुनील के साथ था ।
“राम सिंह” - सुनील बोला - “यह बात तो निर्विवाद है कि नरेश का मृत शरीर ट्रेन की छत पर से गिरा था ।”
“लेकिन वह ट्रेन की छत पर रखा कैसे गया था ?” - राम सिंह ने पूछा ।
“इसी प्रश्न के उत्तर में तो मैं दिन भर झक मारता रहा हूं । राम सिंह, तुमने देखा होगा कि राजधानी से राजनगर तक के रास्ते में कई मकान रेलवे लाइन के एकदम साथ-साथ बने हुये हैं । अगर ट्रेन सिगनल न मिलने के कारण या किसी अन्य कारणवश किसी ऐसे मकान के पास रुक जाये तो क्या उस मकान में से लाश ट्रेन की छत पर रखी जा सकती है ?”
“लेकिन राजधानी से लेकर राजनगर तक तो ऐसी स्थिति के सैकड़ों मकान होंगे ?”
“जरूर होंगे । लेकिन उन सैकड़ों मकानों में से ऐसे मकान तो एक-दो ही होंगे जिनमें कोई बड़ा विदेशी एजेन्ट रहता हो । मैंने रेलवे रोड पर स्थित सलामत अली के घर की स्थिति देखी है । जिस इमारत में वह रहता है उसके पिछवाड़े से रेलवे लाइन गुजरती है, इमारत की एक खिड़की के साथ ही लगा हुआ एक पुल है जिसके नीचे से गाड़ी निकलती है और मैंने यह भी पता लगा लिया है कि आगे सिंगल लाइन होने के कारण गाड़ियों को अक्सर उस स्थान पर रुक जाना पड़ता है । उस खिड़की में से लाश को पुल और पुल पर से ट्रेन की छत पर बड़ी आसानी से रखा जा सकता है । पहले तो मकान के पिछवाड़े की ओर कोई आदमी होता ही नहीं है और अगर उस रात वहां कोई आदमी रहा भी होगा तो उस रात के घने कोहरे में उसे कुछ दिखाई नहीं दिया होगा ।”
“वन्डरफुल, सुनील !” - राम सिंह उत्साह के आधिक्य के कारण सिगार पीना भूला गया ।
“मैं इमारत का चक्कर लगा आया हूं ।” - सुनील प्रशन्सा की ओर तनिक भी ध्यान दिये बिना बोला - “पंछी तो उड़ चुका है, लेकिन मैं घर में घुस कर तलाशी लेना चाहता हूं ।”
“तलाशी के लिये तो वारन्ट की जरूरत होगी !” - राम सिंह बोला ।
“लेकिन सलामत अली के विरुद्ध कुछ सिद्ध करने के लिये सबूत कहां है हमारे पास ?”
“तो फिर ?”
“फिर यह कि इमारत तो खाली है । मैं उसमें अनाधिकार प्रवेश करूंगा । तुम गली में पहरा देना । कोई खतरा हो तो मुझे सिग्नल दे देना । ओके ?”
“ओके ।”
“कम आन दैन ।”
होटल से निकलकर वे रेलवे रोड पर पहुंच गये । पहले वे पुल की ओर गये । पुल के साथ ही लगती हुई इमारत की खिड़की थी, खिड़की के प्रोजेक्शन पर इंजन के धुयें की कालिख बढी हुई थी । एक स्थान से कालिख एकदम पुंछ गई थी । सुनील उस स्थान की ओर राम सिंह का ध्यान आकर्षित करता हुआ बोला - “देखो राम सिंह, पुल पर उतारते समय यहां शायद क्षण भर के लिये नरेश की लाश टिकाई गई थी और अगर तुम जरा गौर से देखोगे तो तुम्हें सूख चुके रक्त के भूरे-भूरे निशान भी खिड़की पर दिखाई दे जायेंगे ।”
उसी समय एक गाड़ी पुल के नीचे आकर रुकी ।
राम सिंह ने देखा कम्पार्टमेंट की छत पुल से तीन या चार फुट से अधिक दूर नहीं थी ।
गाड़ी गुजर जाने के बाद सुनील ने खिड़की के पल्लों पर चोटें मारनी आरम्भ कर दीं । दस बारह करारे हाथ पड़ने पर ही खिड़की चरमरा गई ।
सुनील उसी खिड़की द्वारा इमारत में घुस गया ।
“मैं भी आ रहा हूं ।” - उसे पीछे से राम सिंह का स्वर सुनाई दिया ।
“मर्जी तुम्हारी ।”
राम सिंह भी भीतर आ गया ।
घन्टे भर में उन्होंने इमारत का एक-एक कमरा देख डाला लेकिन एक भी ऐसा सूत्र नहीं मिला जो उन्हें आगे बढने में सहायता दे सकता ।
अन्त में बैडरूम की एक छोटी सी अलमारी में पुराने अखबारों के बीच सुनील को एक लिफाफा दिखाई दिया । उसने बड़ी उत्सुकता से लिफाफे को खोला । भीतर ‘ब्लास्ट’ की कुछ कतरनें रखी हुई थीं । कतरनों में विज्ञापन के रूप में किसी व्यक्ति विशेष के लिये सन्देश छपे हुए थे ।
सुनील ने कतरनें पढनी शुरू कर दीं । एक में लिखा था:
सब शर्तें मन्जूर हैं । कार्ड पर दिये पते पर सारी बात लिख भेजो ।
- एस
दूसरी कतरन थी:
जबानी जिक्र करना बहुत पेचीदा काम है । हमारे पास पूरी रिपोर्ट होनी चाहिये । पेपर मिलते ही रुपया दे दिया जायेगा ।
- एस
एक और कतरन में लिखा था:
हालात नाजुक होते जा रहे हैं । कान्ट्रैक्ट पूरा हो जाने से पहले रुपया नहीं दिया जायेगा । इस अखबार के इसी स्थान पर विज्ञापन देखते रहा करो ।
- एस
आखिरी कतरन में लिखा था:
सोमवार की रात को । नौ बजे । द्वार पर दो दस्तक । केवल हम ही हम होंगे । संदिग्ध होने की आवश्यकता नहीं है पेपर मिलते ही फौरन भारतीय करेंसी में पूरी रकम अदा कर दी जायेगी । सोना भी मिल सकता है ।
- एस
“अब ?” - राम सिंह ने उतावले स्वर से पूछा ।
“अब यह कि कल के ‘ब्लास्ट’ में ‘एस’ की ओर से एक और विज्ञापन छपेगा और अपराधी हमारे हाथ में होगा ।” - सुनील ने कहा ।
“तुम्हें कैसे मालूम कि कल कोई विज्ञापन छपेगा ?”
“देखना तो सही, सुपर साहब ।” - सुनील लापरवाही से बोला ।
***
अगले दिन सुनील और राम सिंह फिर 25 रेलवे रोड पर मौजूद थे । उनके साथ सादी वर्दियों में दो और पुलिस आफिसर भी थे ।
सुनील के हाथ में ‘ब्लास्ट’ की प्रति थी ।
“एस का नया विज्ञापन देखा है तुमने ?” - सुनील अखबार को एक स्थान पर मोड़ कर राम सिंह के सामने करता हुआ बोला ।
“क्या !” - राम सिंह हैरान होकर बोला - “फिर छपा है कुछ ?”
“हां । यहां से पढो ।”
राम सिंह ने विज्ञापन पढा । लिखा था :
आज रात को । उसी समय । उसी स्थान पर । द्वार पर दो दस्तक । बहुत आवश्यक काम है । तुम्हारी अपनी सुरक्षा दांव पर लगी हुई है - एस ।
“यह विज्ञापन...”
“मैंने दिया है इसे पढकर अपराधी जरूर यहां पहुंचेगा ।”
राम सिंह का चेहरा सन्तोष और उत्साह से दमक उठा ।
रात को नौ बजे सलामत अली के मकान के भीतर चारों आदमी सांस लेकर कर बैठे हुये थे । वातावरण ब्लेड की धार की तरह पैना हो उठा था । राम सिंह हर एक मिनट में दो बार बड़ी देख रहा था ।
“वह आ रहा है ।” - एकाएक सुनील चौकन्ने स्वर से बोला ।
सब सम्भल कर बैठ गये । फिर द्वार पर किसी के रुकने का स्वर सुनाई दिया और फिर किसी ने दो बार द्वार खटखटाया । सुनील चुपचाप उठा और उसने जाकर दरवाजा खोल दिया । एक छाया सी द्वार पर प्रकट हुई ।
“इधर ।” - सुनील फुसफसाता हुआ छाया से बोला ।
अगले ही क्षण वह छाया राम सिंह वैगरह के सामने खड़ी थी ।
सुनील ने बिजली का स्विच आन कर दिया ।
कमरे में प्रकाश फैलते ही छाया के मुख से एक आश्चर्य भरी चीख निकली और वह उल्टे पांव भागी लेकिन सुनील ने उसका कालर पकड़कर उसे वापिस राम सिंह वगैरह के सामने धकेल दिया । सुनील ने द्वार बन्द कर दिया और अपनी पीठ उसके साथ लगाकर खड़ा हो गया । छाया ने एक बार आंखें फैला कर चारों ओर देखा, फिर वह लड़खड़ाई और उसका चेतनाहीन शरीर फर्श पर लुढक गया । नीचे रिम वाला उसका हैट उसके सिर से उतर कर दूर जा गिरा और अन्डर सैक्रेट्री कर्ण सिंह के छोटे भाई नरेन्द्र सिंह का घबराया हुआ चेहरा सब के सामने प्रकट हो गया ।
सुनील के मुंह से आश्चर्यपूर्ण घरघराहट सी निकल गई ।
“मुझे तो स्वप्न में भी आशा नहीं थी” - वह बोला - “कि हमारा शिकार नरेन्द्र सिंह निकलेगा ।”
“तुम्हें किसका इन्तजार था ?” - राम सिंह ने पूछा ।
“सोहन लाल का ।”
“वह होश में आ रहा है ।” - एक पुलिस आफिसर बोला ।
नरेन्द्र सिंह ने आंखें खोल दीं और उठ कर बैठ गया । उसकी दहली हुई निगाहें मशीन की तरह चारों ओर घूम रही थीं । फिर वह स्वयं को नियन्त्रित करने की चेष्टा करने लगा ।
“यह क्या तमाशा है ?” - वह ऐसे स्वर में बोला जिसमें अधिकार का सर्वदा अभाव था - “मैं यहां सलामत अली से मिलने आया था ।”
“कोई फायदा नहीं है, नरेन्द्र जी ।” - सुनील कठोर स्वर से बोला - “सब कुछ जाहिर हो चुका है । मैं तो स्वप्न में भी नहीं सोच सकता था कि कोई भारतीय अपने देश के साथ इस प्रकार का विश्वासघात कर सकता है । सलामत अली से आपके सम्बन्ध प्रकट हो चुके हैं और नरेश कुमार की मृत्यु भी अब कोई रहस्य नहीं रह गई है । कम से कम अब तो पश्चाताप के रूप में आपको अपनी आत्मा के साथ थोड़ा न्याय करना चाहिये । अब तो आपको सत्य को स्वीकार कर ही लेना चाहिये ।”
नरेन्द्र सिंह ने अपना चेहरा हाथों से ढक लिया । सब उसके बोलने की प्रतीक्षा करते रहे, लेकिन वह चुप रहा ।
“मैं आपको विश्वास दिलाता हूं” - सुनील फिर बोला - “कि कोई बात हमसे छुपी नहीं है । आपको धन की सख्त आवश्यकता थी, इसलिये आप यह सब करने के लिये तैयार हो गये थे । आपने अपने भाई कर्ण सिंह की चाबियों का सांचा लेकर नकली चाबियां तैयार की थीं । आपने हमारे पड़ोसी शत्रु राष्ट्र के एजेन्ट सलामत अली से पत्र व्यवहार किया जिसने आपके पत्रों का उत्तर अखबार में विज्ञापन के रूप में दिया । हमें यह भी मालूम है कि सोमवार की रात को आप घने कोहरे का लाभ उठाकर प्रतिरक्षा मन्त्रालय के दफ्तर में घुसे थे लेकिन आपको नरेश कुमार ने देख लिया था । नरेश कुमार शायद पहले से ही आप पर सन्देह करता था । उसने खिड़की में से आपको सेफ में से कागज चुराते देखा लेकिन उसने शोर नहीं मचाया क्योंकि सम्भावना यह भी थी कि वे कागज आपके भाई साहब ने ही मंगवाये हों और आप अपने भाई साहब के ही निर्देश पर कागज सेफ में से निकाल कर राजनगर ले जाने वाले हों । आपको कागज ले जाते देखकर एक सच्चे देशभक्त की तरह नरेश कुमार अपने सारे निजी काम छोड़कर आपके पीछे लग गया। उसने अपनी मंगेतर को भी इस बात की सूचना नहीं दी ताकि कहीं उतने समय में आप कोहरे में गायब न हो जायें । नरेश ने इस घर तक आपका पीछा किया । आपको इस घर में घुसता देखकर वह समझ गया कि आप वे कागजात अपने भाई के पास राजनगर नहीं ले जा रहे थे इसलिये उसने आपको द्वार पर ही पकड़ लिया और आपने अपनी चोरी पकड़ी जाती देखकर हत्या जैसा जघन्य अपराध कर डाला ।”
“नहीं-नहीं, यह झूठ है ।” - नरेन्द्र सिंह एकाएक चिल्ला पड़ा - “मैं भगवान की सौगन्ध खाकर कहता हूं, मैंने हत्या नहीं की ।”
“तो फिर नरेश कुमार कैसे मरा ?”
“मैंने नहीं मारा ।” - वह बोला - “आपने घटना को जैसे बयान किया है, वास्तव में सब कुछ वैसे ही हुआ था । मेरे ऊपर बहुत कर्ज चढा हुआ था । मुझे धन की सख्त जरूरत थी । उन कागजों के बदले में मुझे सलामत अली ने एक लाख रुपये देने का वायदा किया था । अपने को तबाह होने से बचने के लिये मैंने उसकी आफर स्वीकार कर ली थी । लेकिन जहां तक हत्या का प्रश्न है, मैं एकदम निर्दोष हूं ।”
“तो फिर नरेश को किसने मारा ?”
“सलामत अली ने । जैसा आपने कहा है, वैसे ही नरेश मेरा पीछा करता हुआ यहां पहुंच गया था । घने कोहरे के कारण मुझे पता नहीं लगा था कि मेरा पीछा किया जा रहा था । मैंने इस घर के द्वार पर पहुंच कर दो दस्तक दीं । सलामत अली ने द्वार खोला । उसी समय नरेश मेरे सामने आ खड़ा हुआ और मुझसे पूछने लगा कि मैं पेपरों का क्या करने जा रहा था ! मैंने कोई उत्तर नहीं दिया । नरेश मुझसे जबरदस्ती कागज छीनने लगा । उसी समय सलामत अली ने एक लोहे का पाइप उसके सिर में दे मारा । नरेश के फौरन प्राण निकल गये । फिर सलामत अली ने ही लाश से पीछा छुड़ाने के लिये यह तरीका सुझाया था कि लाश को जब गाड़ी पुल के नीचे रुके तो उसकी छत पर रख दिया जाये । लेकिन पहले सलामत अली ने मेरे द्वारा लाये गये पेपर देखे । वह केवल तीन पेपर ले जाना चाहता था क्योंकि उसके कथनानुसार बाकी सात पेपरों की डिजाइनिंग में उसका देश भी सफल हो गया था । मैं असली पेपर उसके पास छोड़ना नहीं चाहता था क्योंकि मैं सुबह होने से पहले ही सारे पेपर सेफ में रख आना चाहता था लेकिन वह कहता था कि पेपर इतने अधिक टैक्नीकल थे कि उसके लिये उन्हें नकल कर पाना असम्भव था । अन्त में यह फैसला हुआ कि तीन पेपर सलामत अली अपने पास रख लेगा और बाकी के सात नरेश कुमार की जेब में डाल दिये जायेंगे ताकि सब इसी भ्रम में रहें कि सारा किया-धरा नरेश कुमार का ही था मैं तो अपनी पोजीशन साफ रखना चाहता था इसलिये मैंने झिझकते हुये हामी भर दी थी । फिर जो पहली गाड़ी पुल पर रुकी, हमने उसकी छत पर नरेश की लाश रख दी और मैं अपनी ओर से समझ बैठा कि मामला समाप्त हो गया ।”
“और आपके भाई साहब की मृत्यु कैसे हुई ?”
“विश्वास कीजिये, वे स्वाभाविक मौत ही मरे थे । उनका दिल इस घटना का सदमा सहन नहीं कर सकता था ।”
सुनील कई क्षण चुप रहा और फिर बोला - “नरेन्द्र सिंह जी, इतना बड़ा देशद्रोह का काम करके आपको पश्चाताप नहीं हो रहा है ?”
नरेन्द्र सिंह की आंखें फर्श पर टिकी रहीं ।
“अगर आप चाहें तो अभी भी न केवल आप अपनी अन्तरात्मा की तुष्टि के लिये कुछ कर करते हैं बल्कि किसी हद तक अपने अपराध की गम्भीरता भी कम कर सकते हैं ।”
“कैसे ?”
“आपको मालूम है अब सलामत अली कहां है ?”
“नहीं ।”
“आपको उसने कोई पता नहीं दिया ?”
“उसने कहा था कि अगर हांगकांग की चायना क्लब के पते पर उसे पत्र लिखा जायेगा तो वह उसके पास पहुंच जायेगा ।”
“तो फिर यह कागज और पैन लीजिये, उस कोने वाली मेज के सामने बैठ जाइये और जो कुछ मैं कहता हूं, उसे लिखते जाइये । ऊपर पता लिखिये - सलामत अली, केयर आफ चायना क्लब, हांगकांग । लिखिये - डियर सर, जो पेपर आपको मैंने दिये हैं, उन के सन्दर्भ में मुझे मालूम हुआ है कि एक बहुत महत्वपूर्ण ड्राइंग आप तक नहीं पहुंची है । मैंने उस ड्राइंग की नकल तैयार कर ली है । क्योंकि आपके इस काम के लिये मुझे भारी कठिनाई और खतरे का सामना करना पड़ा है इसलिये मैं समझता हूं कि मुझे कम से कम बीस हजार रुपये और मिलने चाहियें । वह ड्राइंग मैं आपके पास लेकर हांगकांग भी आ सकता हूं लेकिन उस सूरत में मेरे पकड़े जाने की बहुत सम्भावनायें हैं इसलिये बेहतर यही है कि आप ही मुझसे इस शनिवार की शाम के सात बजे राजनगर के होटल एम्बेसेडर में मिल लें । बीस हजार रुपये भारतीय करेंसी या सोने के रूप में होने चाहियें । अब नीचे अपने हस्ताक्षर कर दीजिये । ...बस ...मेरे विचार से इतना पर्याप्त होगा ...मुझे सख्त हैरानी होगी, राम सिंह, अगर सलामत अली इस पत्र को पढकर वापिस भारत न खिंचा चला आया ।”
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शनिवार की शाम ।
होटल एम्बेसेडर में सदा की तरह खूब धूमधाम थी । लोग शाम की रंगीनियों में डूबे हुये थे । सुनील राम सिंह और सी.बी.आई. के कम से कम बीस आदमी किसी न किसी रूप में होटल में घुसे हुये थे लेकिन फिर भी होटल के वातावारण में किसी प्रकार की अस्वभाविकता के लक्षण परिलक्षित नहीं हो रहे थे ।
नरेन्द्र सिंह मेन हाल के कोने की मेज पर बैठा था । वह अपनी मेज पर अकेला था । उसके सामने एक विस्की का गिलास रखा हुआ था जिसमें से वह कभी-कभी एक आध घूंट भर लेता था । वह अपनी उद्विग्नता को छिपाने का भरसक प्रयत्न कर रहा था ।
राम सिंह नरेन्द्र सिंह से तीन-चार मेजें परे एक मेज पर अपने दो-तीन साथियों के साथ जमा हुआ था । प्रत्यक्ष में वह कोई बिजी आफिसर लग रहा था जो दिन भर अपने काम में व्यस्त रहने के बाद शाम को मनोरंजन के लिये होटल में चला आया हो लेकिन वास्तव में उसकी तमाम मानसिक शक्तियां नरेन्द्र सिंह पर नजर रखने में रत थीं ।
सुनील एक वेटर के रूप में हाल में सर्व कर रहा था ।
सात बजे गये ।
नरेन्द्र सिंह के हाथ विस्की के गिलास पर कांप-कांप जाते थे ।
राम सिंह एकदम सतर्क हो उठा था ।
सुनील ने भी अपनी सरविस का दायरा घटा कर नरेन्द्र सिंह की मेज के आस-पास की चार-पांच मेजों तक ही सीमित कर लिया था ।
सलामत अली के अभी तक दर्शन नहीं हुये थे ।
सवा सात बज गये ।
राम सिंह चिन्तित हो उठा ।
नरेन्द्र सिंह की व्यग्रता बढती जा रही थी ।
सुनील ने एक नजर नरेन्द्र सिंह को देखा और फिर बड़ी तत्परता में उसकी ओर बढा । मेज के समीप पहुंचकर उसने खाली प्लेटें उठा कर ट्रे में रखनी आरम्भ कर दीं और फिर मेज पर ही दृष्टि जमाये नीचे झुक कर धीरे से बोला - “बी बोल्ड, मिस्टर, नरेन्द्र सिंह । आपकी सूरत देखकर सलामत अली तो क्या, अंधा भी भांप जायेगा कि कोई गड़बड़ है ।”
नरेन्द्र सिंह सम्भल कर बैठ गया ।
सुनील प्लेटें उठा कर वहां से हट गया ।
“वेटर !” - राम सिंह ने उसे पुकारा ।
“यस, सर !” - सुनील राम सिंह की टेबल के समीप आकर आदरपूर्ण ढंग से झुकता हुआ बोला ।
राम सिंह ने मीनू खोल लिया और एक स्थान पर उंगली रख कर इस ढंग से बोला जैसे कोई आर्डर दे रहा हो - “कहीं तुम्हारा अनुमान अनुमान ही तो नहीं रह गया है ? सलामत अली की तो परछाई भी नहीं दिखाई दी है अभी और मुझे भय है कि उत्कंठा के अधिक्य से कहीं नरेन्द्र सिंह का हार्ट फेल न हो जाये ।”
“सुपर साहब, तेल देखो और तेल की धार देखो । अभी तो साढे सात ही बजे हैं ।”
सुनील वहां से हट कर पैन्ट्री में घुस गया ।
ट्रे खाली करके वह फिर हाल में वापिस आ गया और बड़ी व्यस्तता से इधर-उधर घूमने लगा ।
आठ बज गये ।
उसी समय सुनील की दृष्टि हाल में प्रविष्ट होते हुये एक व्यक्ति पर पड़ी । उस व्यक्ति ने स्टीवर्ट के पास रुक कर कोई बात पूछी जिसके उत्तर में स्टीवर्ट ने नरेन्द्र सिंह की मेज की ओर संकेत कर दिया ।
एक वेटर उस आदमी को नरेन्द्र सिंह की मेज पर छोड़ गया । फिर सुनील ने उस आदमी को नरेन्द्र सिंह से हाथ मिलते देखा और फिर वह आदमी नरेन्द्र सिंह के सामने वाली सीट पर बैठा गया ।
फिर सुनील ने नरेन्द्र सिंह के हाथ से एक रुमाल हाल के फर्श पर गिरते देखा ।
यह इस बात का संकेत था कि उस समय उसके सामने सलामत अली बैठा हुआ था ।
सुनील स्वभाविक गति से चलता हुआ नरेन्द्र सिंह के साथ वाली मेज पर पहुंच गया और वहां से प्लेटें उठाने लगा ।
“बाकी पेपर लाये हो ?” - नरेन्द्र सिंह पूछ रहा था ।
“नहीं ।” - सलामत अली ने उत्तर दिया ।
“क्यों ?” - नरेन्द्र सिंह व्यग्र स्वर से बोला - “मैंने तो तुम्हें कहा था कि वे पेपर साथ लाना ।”
“वे पेपर अब वापिस नहीं आ सकते ।” - सलामत अली बोला - “वे जिन हाथों में पहुंचने थे, पहुंच चुके हैं । तुम बताओ उस ड्राइंग का क्या किस्सा है ?”
“एक महत्वपूर्ण ड्राइंग रह गई थी - वह मैंने प्राप्त कर ली है - लेकिन पहले पेपर किस के पास पहुंच गये हैं ?”
“तुम से मतलब ? तुम्हें उनका रुपया मिल चुका है या नहीं ? तुम ड्राइंग की बात करो । कहां है वह ?
“मेरे पास ।”
“निकालो ।”
“और रुपया ?”
“वह भी मिल जायेगा, ड्राइंग तो दिखाओ ।”
“यहीं ?”
“हां । तुम मुझे ड्राइंग दो, मैं उसे क्लाक रूम में ले जा कर देख लूंगा । रुपया तुम्हें थोड़ी देर बाद यहीं मिल जायेगा ।”
“अच्छा ।” - नरेन्द्र सिंह ने कहा और फिर उसने नीचे झुक कर फर्श पर गिरा रुमाल उठा लिया ।
राम सिंह, जिसकी गिद्ध दृष्टि रुमाल पर ही टिकी हुई थी, नरेन्द्र सिंह को रुमाल उठाते देखकर अपनी मेज से उठा और तेज कदमों से नरेन्द्र सिंह की ओर बढा ।
राम सिंह के साथ ही उसके साथ बैठे हुए उसके मित्र भी उठ खड़े हुए । नरेन्द्र सिंह की मेज पर आसपास की मेजों से कुछ और लोग भी उठे और नरेन्द्र सिंह की मेज के आसपास घेरा सा बना कर खड़े हो गये । सब का दायां हाथ अपनी पैंट की जेब में रखी रिवाल्वर की मूठ पर था ।
सलामत अली चौंककर उठ खड़ा हुआ ।
राम सिंह ने आगे बढ कर अपना पहाड़ जैसा शरीर उसके रास्ते में खड़ा कर दिया और धीमे स्वर में बोला - “मिस्टर सलामत अली, यू आर अन्डर अरैस्ट ।”
सलामत अली बेचैनी में अपने चारों ओर देखने लगा ।
“हंगामा खड़ा करने की कोशिश मत कीजियेगा ।” - राम सिंह ने चेतावनीपूर्ण स्वर से कहा - “आप हर ओर से घिरे हुए हैं । आपकी किसी भी गलत हरकत के जवाब में कम से कम बीस रिवाल्वरों की गोलियां, आप के शरीर में झरोखे बना रही होंगी ।”
सुनील उन लोगों में दूर क्राकरी से भरी ट्रे उठाये खड़ा था ।
“मूव ।” - राम सिंह ने आर्डर दिया ।
उसी समय एक अप्रत्याशित घटना घटी ।
सुनील के हाथ में थमी क्राकरी से भरी ट्रे के परखचे उड़ गये ।
सुनील ने एकदम घूमकर पीछे देखा । आर्केस्ट्रा के प्लेटफार्म के पास काला सूट पहने एक आदमी खड़ा था, उसके दांये हाथ में थमी एक छोटी सी साइलेन्सर लगी रिवाल्वर में से धुआं निकल रहा था ।
सुनील एक दम पीछे हटा और एक खम्बे की ओट में हो गया ।
“राम सिंह !” - वह चिल्लाया ।
उसी समय एक और गोली चली और सलामत अली को घेर कर खड़े हुए आदमियों में से एक आदमी एक लम्बी चीख के साथ फर्श पर ढेर हो गया ।
“राम सिंह” - सुनील फिर चिल्लाया - “सलामत अली को सम्भालो ।” - और उसने मेज पर रखा पीतल का गुलदस्ता उठा कर पूरी शक्ति से काले कोट वाले के हाथ का निशाना बना कर फेंका ।
लेकिन इससे पहले कि राम सिंह स्थिति को समझ पाता, काले सूट वाले की रिवाल्वर से निकली गोली सलामत अली के माथे में झरोखा बना चुकी थी । उसके माथे से खून का फव्वारा छुट पड़ा और वह फर्श पर लुढक गया ।
उसी समय सुनील का फेंका हुआ भारी गुलदस्ता काले सूट वाले के हाथ से जा टकराया । रिवाल्वर उसके हाथ से छिटक कर दूर जा गिरी । अगले ही क्षण वह कम से कम बीस हाथों की पकड़ में मछली की तरह तड़प रहा था ।
“हथकड़ियां डालो ।” - राम सिंह चिल्लाया ।
किसी ने काले सूट वाले के हाथ में हथकड़ियां भर दीं ।
सुनील लपक कर सलामत अली के पास पहुंचा और उसने उसके कोट के बटन खोलकर उसके दिल पर हाथ रख दिया ।
सलामत अली मर चुका था ।
नरेन्द्र सिंह लाश की तरह सफेद चेहरा लिये हुये अपनी कुर्सी पर जड़-सा बैठा था ।
राम सिंह काले सूट वाले को और नरेन्द्र सिंह को लेकर अपने विभाग के कुछ कर्मचारियों के साथ होटल से बाहर निकल गया । कुछ लोग सलामत अली की लाश उठाकर बाहर ले गये । अगले ही क्षण फ्लाइंग स्क्वायड की गाड़ियों के सायरन की दूर होती हुई आवाज सुनाई दी ।
सब कुछ इतनी तेजी से हो गया था कि हाल में बैठे कई लोगों को पता ही नहीं लगा था कि वास्तव में हुआ क्या था ।
लेकिन फिर भी होटल का वातावरण अस्त-वयस्त हो गया था ।
सुनील भी चुपचाप बाहर निकल गया ।
राम सिंह और सुनील को फौरन प्रतिरक्षा मन्त्री के कक्ष में पहुंचा दिया गया ।
मन्त्री जी कुछ कागजों पर अपने हस्ताक्षर करने में व्यस्त थे ।
“बैठो ।” - उन्हें देख कर वे बोले ।
मन्त्री जी फिर हस्ताक्षर करने में व्यस्त हो गये ।
राम सिंह ने कई बार अपना हाथ सिगार के लिये जेब की ओर बढाया लेकिन फिर वापस खींच लिया । उसे सिगार का अभाव बुरी तरह खल रहा था ।
लगभग दस मिनट बाद सैक्रेट्री ने मन्त्री जी के सामने से सारे कागज समेट लिये । मन्त्री जी ने पैन रख दिया और सैक्रेट्री से बोले - “किसी को भीतर मत आने देना ।”
मन्त्री की कुछ क्षण सैक्रेट्री के बाहर निकल जाने की प्रतीक्षा करते रहे और फिर द्वार बन्द होते ही व्यग्र स्वर से बोले - “पेपर मिले ?”
“नहीं ।” - राम सिंह धीरे से बोला
“ओह !” - मन्त्री के मुख से हताशापूर्ण स्वर निकला ।
कोई कुछ नहीं बोला ।
“सलामत अली के पास नहीं थे वे ?” - कुछ क्षण रुक कर उन्होंने फिर पूछा ।
“जी नहीं ।” - राम सिंह ने बताया - “उसकी हत्या के बाद उसकी एक-एक चीज की भरपूर तलाशी ली गई थी लेकिन पेपर उनमें नहीं थे । उसके सामान की तलाशी लेने पर कुछ उसे सूत्र प्राप्त हुए हैं जिनमें हांगकांग की चायना क्लब से उसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध प्रकट होता है । उसका पेपर साथ न लाना भी इस ओर संकेत करता है कि सलामत अली किसी और के लिये काम कर रहा है अर्थात् वह हमारे पड़ोसी शत्रु राष्ट्र का सीधा एजेन्ट नहीं है ।”
“जिस आदमी ने होटल में सलामत अली की हत्या की थी, उसने कुछ बताया है ?”
“बहुत कुछ ।” - राम सिंह बोला - “साधारणतया इस प्रकार के लोग मर जाते हैं लेकिन जुबान नहीं खोलते । लेकिन वह इस मामले में बहुत कच्चा आदमी निकला । उसे केवल दो घन्टे टार्चर किया गया था कि वह सब बक गया था । उसका नाम माइकल है । वह ऐंग्लो इन्डियन है । वह भारत में किसी शत्रु राष्ट्र का एजेन्ट है लेकिन किस राष्ट्र का है, यह उसे स्वयं भी मालूम नहीं है । उसे हांगकांग से निर्दोश प्राप्त होते हैं । आज तक उसने उन लोगों की सूरत नहीं देखी है जो उसे निर्देश देते हैं और उसे रुपया भिजवाते हैं । उसका काम था सलामत अली पर नजर रखना । आज से चार महीने पहले जब सलामत अली ने पहली बार टैक्नीकल पेपर हासिल करने के लिये नरेन्द्र सिंह से सम्बन्ध स्थापित किया था तभी से वह सलामत अली की निगरानी कर रहा था । उसे निर्देश था कि अगर सलामत अली भारतीय पुलिस के हाथ पड़ता दिखाई दे या टैक्नीकल पेपर प्राप्त करने के बाद सीधा हांगकांग की ओर प्रस्थान न करे तो वह गोली मार दे । इससे सिद्ध होता है कि वे लोग सलामत अली का अधिक भरोसा नहीं करते थे । शायद सलामत अली डबल एजेन्ट था । टैक्नीकल पेपर को प्राप्त करने के लिये वह दो राष्ट्रों से धन प्राप्त कर रहा था । इसलिये शायद जो लोग उसे हांगकांग से निर्देश देते थे, वे उसका विश्वास नहीं करते थे ।”
“खैर, फिर ?”
“इस बार शनिवार सुबह माइकल को निर्देश मिले थे कि सलामत अली फिर भारत लौट रहा था । नरेन्द्र सिंह ने उसे सूचित किया था कि टैकनीकल पेपर अभी भी सम्पूर्ण नहीं थे । एक महत्व पूर्ण ड्राईंग रह गई है । शनिवार की शाम को नरेन्द्र सिंह वह ड्राईंग सलामत अली को एम्बैसेडर होटल में देने वाला था । लेकिन वह सलामत अली को फंसाने के लिये पुलिस का जाल भी हो सकता था अत: माइकल को साये की तरह सलामत अली के पीछे लगे रहने के लिये कहा गया था । कि अगर सलामत अली पुलिस के हाथ पड़ता दिखाई दे तो माइकल अपनी सुरक्षा की तनिक भी परवाह किये बिना उसे गोली मार दे । ऐसा ही उसने किया भी लेकिन दुर्भाग्य से वह हमारे हाथ में पड़ गया ।”
“फिर ।”
“अब स्थिति यह है कि आज शाम तक माइकल ने हांगकांग की चायना क्लब में यह सूचना भिजवानी है कि सलामत अली अपने मिशन में सफल हो गया है या माइकल सूचना नहीं भेजता है या वह सूचना भेजता है कि सलामत का खेल खत्म हो गया है तो वे लोग जितने पेपर उन्हें मिल गये हैं उतने ही पेपर लेकर अपने राष्ट्र की ओर प्रस्थान कर जायेंगे लेकिन अगर सलामत अली को नरेन्द्र सिंह से ड्राईंग प्राप्त हो जाती है तो वे सलामत अली की प्रतीक्षा करें ।”
“कब तक ?” - मन्त्री जी ने व्यग्रता से पूछा ।
“माइकल के कथानुसार पांच दिन तक ।”
“अगर माइकल झूठ बोल रहा हो तो ?”
“उसे बहुत चैक कर लिया गया है । जिस स्थिति में वह इस समय हैं, उसमें शैतान भी झूठ बोलने का हौसला नहीं करेगा ।”
“लेकिन अगर माइकल ने सूचना नहीं भिजवाई तब तो वे लोग पांच दिन भी प्रतीक्षा नहीं करेंगे ?” - मन्त्री जी ने चिन्ता प्रकट की ।
“उसका इन्तजाम हो गया है ।” - राम सिंह ने बताया ।
“क्या ?”
“माइकल द्वारा हांगकांग की चायना क्लब को यह सूचना भिजवा दी गई है कि सलामत अली ड्राईंग प्राप्त करने में सफल हो गया है और वह पहला अवसर मिलते ही हांगकांग की ओर कूच कर देगा ।”
“माइकल ये सूचनायें कैसे भेजता है ?”
“ट्रांसमीटर द्वारा ।”
“किसके नाम ?”
“वही तो उसे मालूम नहीं है । हांगकांग में उसकी रिपोर्ट रिसीव कौन करता है, उसे मालूम नहीं है । वह तो कोई कोड शब्द कहता हैं और पहले से निर्धारित उत्तर मिलते ही वह अपनी रिपोर्ट दे देता है ।”
“लेकिन कोई उसे निर्देश तो देता होगा !”
“वह कहता है निर्देश के नाम पर उसे एक रिकार्ड की हुई आवाज सुना दी जाती है और रिकार्डिंग इतनी खराब होती है कि उसे आज तक यह मालूम नहीं हो सका है कि वह आवाज किसी औरत की है या आदमी की ।”
“लेकिन इस बात की क्या गारन्टी है कि वे पेपर चायना क्लब हांगकांग में ही किसी के पास हैं ?”
“कोई गारन्टी नहीं है ।” - राम सिंह धीरे से बोला - “लेकिन वर्तमान स्थिति में यही सबसे उचित दिखाई दे रहा है कि इस लाइन पर काम किया जाये । पेपर तो हाथ से निकल ही गये हैं । अगर याचना क्लब हांगकांग में वे अभी किसी के पास हैं और हमारा कोई आदमी उन्हें प्राप्त करने में सफल हो जाता है तो हमारी किस्मत वर्ना...”
राम सिंह ने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
“लेकिन कौन ? कौन कर सकता है यह ?”
राम सिंह ने अर्थपूर्ण दृष्टि से सुनील की ओर देखा ।
“मुझे कोई एतराज नहीं है ।” - सुनील संकेत समझ कर बोला ।
“लेकिन सी.बी.आई. के लोग ये काम क्यों नहीं करते ?” - मन्त्री जी ने पूछा ।
“सी.बी.आई. के लोग तो अपने प्रयत्न कर ही रहे हैं । नरेन्द्र सिंह के पकड़े जाने के फौरन बाद ही मैंने सी.बी.आई. का एक बहुत योग्य जासूस हांगकांग भेज दिया था । लेकिन दोहरा प्रयत्न कर लेने में क्या हर्ज है ! शायद जो काम सी.बी.आई. का आदमी न कर सके, वह सुनील कर ले या जो सुनील न कर सके उसे करने में सी.बी.आई. का आदमी सफल हो जाये ।”
मन्त्री जी कई क्षण चुप रहे और फिर बोले - “सुनील कब जायेगा ?”
“आज ही ।” - राम सिंह ने तत्परता से उत्तर दिया - “इसका पासपोर्ट वगैरह तैयार हो गया है ।”
“हांगकांग में इसकी सुरक्षा का क्या प्रबन्ध है ?”
राम सिंह चुप रहा ।
“हांगकांग में सुनील की सुरक्षा का क्या प्रबन्ध है, राम सिंह ?” - मन्त्री जी ने फिर पूछा ।
“फिलहाल कोई प्रबन्ध नहीं है ।” - राम सिंह ने दबे स्वर से उत्तर दिया ।
मन्त्री जी के चेहरे पर चिन्ता के लक्षण और गहरे हो उठे ।
“कोई फर्क नहीं पड़ता है, सर ।” - सुनील जल्दी से बोला ।
मन्त्री जी चुप रहे ।
“आरम्भ में तो सुनील को अरक्षित ही जाना पड़ेगा ।” - राम सिंह बोला - “लेकिन बाद में काफी कुछ किया जा सकता है ।”
“ठीक है ।” - मन्त्री जी हाथ फैला कर बोले - “जैसा ठीक समझो, करो ।”
राम सिंह और सुनील उठ खड़े हुए ।
“सुनील” - मन्त्री सुनील से हाथ मिलाते हुए बोले - “यू आर ए ब्रेव यंग मैन ।”
“थैंक्यू, सर ।” - सुनील शिष्ट स्वर से बोला ।
“प्लीज टेक गुड केयर आफ युअरसैल्फ ।”
“आई विल डू दैट, सर ।”
दोनों प्रतिरक्षा मन्त्रालय से बाहर निकल आये ।
“राम सिंह” - सुनील ने बाहर आकर पूछा - “तुमने कहा था...”
“एक मिनट चुप रहो, यार ।” - राम सिंह हाथ उठा कर बोला, फिर उसने अपनी जेब से एक सिगार निकाला और उसे सुलगा कर पांच-छः लम्बे कश लेने के बाद बोला - “राम सिंह की जिन्दगी के लिये सिगार इतना ही जरूरी है जितनी कि हवा ।”
“लानत है तुम पर ।” - सुनील होंठ सिकोड़ कर बोला ।
“वो तो ही है । तुम कहो क्या कर रहे थे ?”
“तुम कह रहे थे कि सी.बी.आई. का भी कोई जासूस हांगकांग गया हुआ है ?”
“हां, मैं बताना भूल गया था तुम्हें । उसका नाम गौतम है । वह तुम्हें पहचानता है । मैं उसे सूचना भिजवा दूंगा । वह तुम्हें एयरपोर्ट पर लेने आ जायेगा । तुम्हारे वहां पहुंचने तक वह चायना क्लब के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त कर चुका होगा ।”
“फाइन ।”
“तुम्हारे हांगकांग पहुंचने के लगभग छत्तीस घन्टे बाद मैं भी वहां पहुच जाउंगा । मैं हांगकांग में इन्टरनेशनल पुलिस इन्टरपोल की सहायता का इन्तजाम करना चाहता हूं ।”
“ओके ।”
“सुनील” - राम सिंह भावनापूर्ण स्वर से बोला - “तुम भी क्या सोचते होंगे कि राम सिंह ने कहां फंसा दिया तुम्हें !”
“ओ, शटअप ।”
“एनी वे, विश यू बेस्ट आफ दी लक ।”
“थैंक्स, ओल्ड बॉय ।”
***
हांगकांग के कोलून क्षेत्र में स्थित कोई ताक एयरपोर्ट पर उतरते ही सुनील को गौतम मिल गया । गौतम ने ही सुनील को पहचाना था ।
“वैलकम टू हांगकांग ।” - गौतम उससे हाथ मिलाता हुआ बोला ।
“वैलकम !” - सुनील बोला - “सेव इट फार सम अदर टाइम । नाउ टाक बिजनेस ।”
“ओके” - गौतम बोला - “होटल में चलते हैं ।”
“कहां ठहरे हो ?”
“रायल होटल में ।”
“चलो ।”
वे एक टैक्सी लेकर रायल होटल जा पहुंचे ।
“ड्रिंक !” - होटल की लॉबी में प्रवेश करते हुए गौतम ने पूछा ।
“यस ।”
गौतम उसे होटल के बार में ले आया ।
वे एक अकेले कोने में बैठ गये । ड्रिंक्स सर्व हो जाने के बाद सुनील बोला - “अब शुरू हो जाओ ।”
“कहां से ?”
“चायना क्लब से ।”
“सुनील साहब” - गौतम बोला - “यह समझ लीजिये कि आपने मुझे स्वर्ग को बयान करने के लिये कह दिया है । ऐसी रंगीन जगह मैंने ख्वाब में भी नहीं देखी थी । क्या ठाठ हैं ! क्या रंगीनियां हैं ! क्या नहीं होता वहां ! वहां जैसी खूबसूरत लड़कियां सारी दुनिया में नहीं होंगी । और वहां के फ्लोर शो ! अमेरिका और पेरिस के कैब्रे डांस उनके सामने दो कौड़ी की चीज मालूम होते हैं । कोई ख्वाब में नहीं सोच सकता कि ऐसी रंगीन जगह एक विदेशी जासूसों का अड्डा है और चायना क्लब की सारी रंगीनियां उनकी सरगर्मियों पर पर्दा डालने के लिये हैं । संसार के हर देश में से वहां की ए-वन लड़कियां भगाकर या फुसलाकर यहां लाई जाती है जिनका काम...”
“कहां बहक रहे हो !” - सुनील उसे टोक कर बोला - “चायना क्लब की रंगीनियां ही बयान करते जाओगे या कुछ और भी कहोगे ?”
“सारी, मैं वाकई बहक गया था ।”
“काम क्या किया है तुमने यहां ?”
“मैं तीन-चार बार चायना क्लब गया हूं । मेरे पास माचिस की डिबिया के साईज का एक मिनियेचर कैमरा है । उसकी सहायता से मैंने चायना क्लब के दो-तीन मुख्य लोगों की तस्वीरें खींची है । चायना और वहां से सम्बन्धित कुछ और लोगों जैसे भी तस्वीरें लेने में मैं सफल हो गया हूं । वे तस्वीरें...”
“कहां हैं ?” - सुनील ने पूछा ।
“मेरे कमरे में । तुम यहीं ठहरो मैं अभी लेकर आता हूं ।”
गौतम चला गया ।
सुनील ने एक पैग और लगाया । उसने अपनी जेब से उसकी स्ट्राईक का एक सिगरेट निकाला और उसे सुलगा कर गौतम की प्रतीक्षा में लम्बे-लम्बे कश लेने लगा ।
सुनील ने दूसरा पैग भी समाप्त कर लिया ।
उसने सिगरेट का आखिरी कश लेकर सिगरेट को ऐश ट्रे में डाल दिया ।
उसने घड़ी देखी । गौतम को गये हुए लगभग पन्द्रह मिनट हो गये थे ।
वह चिन्तित हो उठा ।
अन्त में वह उठ कर बारटेन्डर के पास पहुंचा ।
“मिस्टर गौतम का कमरा नम्बर मालूम है ?” - उसने इंगलिश में पूछा ।
“कौन मिस्टर गौतम ?”
“वही जो अभी थोड़ी देर पहले मेरे साथ ड्रिंक ले रहे थे ।” - सुनील ने बताया ।
“जी हां, जानता हूं । रूम नम्बर पांच सौ सात ।”
सुनील लिफ्ट द्वारा पांचवीं मंजिल पर पहुंच गया । पांच सौ सात नम्बर कमरा कारीडोर के सिरे पर था ।
सुनील ने द्वार खटखटाया ।
कोई उत्तर नहीं मिला ।
उसने दो-तीन बार और द्वार खटखटाया लेकिन जब फिर भी कोई उत्तर नहीं मिला तो उसने द्वार को जोर का धक्का दिया ।
द्वार भड़ाक से खुला गया ।
गौतम का मृत शरीर कमरे के फर्श पर पड़ा था । उसके गले के इर्द-गिर्द गहरे लाल रंग की एक लकीर खिंची हुई थी । किसी ने रस्सी से उसका गला घोंट दिया था । कमरे की पिछवाड़े की ओर खुलने वाली खिड़की खुली हुई थी और उसके रास्ते पिछली सड़क के शोर की आवाज सुनाई दे रही थी ।
सुनील एक-दो कदम खिड़की की ओर बढा और फिर रुक गया । वह फिर द्वार के पास वापिस आ गया ।
सुनील ने द्वार भीतर से बन्द कर दिया और ताला लगाकर चाबी जेब में रख ली । खुली खिड़की देखकर जो पहला ख्याल उसके मन में उपजा था वह यही था कि हत्यारा हत्या करके खिड़की के रास्ते से बाहर निकल गया है । लेकिन फौरन ही उसे अपनी मूर्खता का भान हो गया था । वह कोई घर नहीं, एक नगर के मध्य में बसा हुआ होटल था और कमरा होटल की पांचवीं मंजिल पर था । जब तक खुली खिड़की के पास पहुंच कर उसने बाहर झांका होता तब तक हत्यारा कमरे से बाहर निकल कर उसे गौतम की लाश के साथ भीतर बन्द कर गया होता ।
हत्यारा निश्चय ही अब भी कमरे में था ।
सुनील कमरे के बीच में आ खड़ा हुआ ।
उसे अधिक देर प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी ।
वार्डरोब का द्वार खुला और वह बाहर निकल आया ।
वह एक लम्बा-चौड़ा चीनी था । उसका सिर घुटा हुआ था और उसने सारे शरीर पर एक पांवों तक आने वाला चोगा पहना हुआ था । उसने एक हिंसक निगाह सुनील पर डाली और फिर बिजली की तेजी से उसने चोगा उतार कर जमीन पर फेंक दिया । उसके शरीर पर अन्डरवियर के अतिरिक्त कोई और कपड़ा नहीं था और उसके सारे शरीर पर ग्रीज की मोटी परत चढी हुई थी । वह पूर्ण विश्वास के साथ हाथ फैलाये सुनील की ओर बढा जैसे उसे पहले ही पता था कि सुनील उसका मुकाबला नहीं कर सकता ।
जब चीनी उससे दो या ढाई फुट दूर रह गया तो सुनील ने झपट कर अपने दोनों हाथों से उसकी दाईं कलाई थाम ली और फिर अपनी एड़ियों पर घूमकर उसे धोबी पाट देने की चेष्टा की । लेकिन चीनी के धराशायी होने के स्थान पर वह खुद ही फर्श पर आ गिरा । चीनी के सार शरीर पर ग्रीज मली होने के कारण उसकी कलाई सुनील की पकड़ में नहीं आ पाई थी ।
इससे पहले कि सुनील उठ पाता, चीनी के पांव की भरपूर ठोकर उसके पेट में पड़ी । सुनील लम्बी हाय के साथ उलट कर दूर जा गिरा ।
लेकिन दूर जा गिरना ही उसके लिये लाभदायक सिद्ध हुआ । इससे पहले कि चीनी उस तक पहुंच पाता, सुनील उठ खड़ा हुआ । इस बार उसने चीनी के शरीर के किसी अंग पर हाथ डालने की चेष्टा नहीं की । वह सतर्क खड़ा चीनी के वार की प्रतीक्षा करता रहा ।
चीनी का सीधा तना हुआ दायां हाथ तलवार की तरह उसकी गरदन की ओर घूमा । सुनील एकदम नीचे झुक गया और उसके दायें हाथ का भरपूर पंच चीनी के जबड़े पर पड़ा । इससे पहले कि चीनी सम्भल पाता सुनील के दोनों पांव एक दुलत्ती की शक्ल में उसके पेट से टकराये । चीनी फरनीचर से टकराता हुआ फर्श पर जा गिरा ।
चीनी की भावभंगिमा में से आत्मविश्वास के लक्षण उड़ गये और उसका स्थान भय ने ले लिया ।
गिरे हुये चीनी पर झपटने के स्थान पर सुनील निश्चिंत-सा अपने स्थान पर खड़ा रहा क्योंकि उसे पता था कि अगर चीनी ने उसे दबोच दिया तो बचना कठिन हो जायेगा ।
चीनी लड़खड़ाता हुआ उठा और एक बार फिर सुनील की ओर झपटा लेकिन जितनी तेजी से वह आगे झपटा था उससे चौगुनी तेजी से वह वापिस फर्श पर जा गिरा । फिर सुनील एकदम अपने स्थान से उछला और उसका शरीर पांव के बल पहाड़ की तरह चीनी के पेट पर गिरा । वह एक बार तड़फड़ाया और फिर फिर पिचके हुए गुब्बारे की तरह शांत हो गया ।
सुनील ने उसका गन्दा सा चोगा उठा लिया और उसकी जेबें टटोलने लगा ।
भीतर की जेब में उसे एक लगभग चार फुट लम्बी सिल्क की रस्सी और कुछ मिनियेचर कैमरे से लिये चित्र मिले । उस सिल्क की रस्सी से ही शायद गौतम का गला घोंटा गया था ।
सुनील ने गौतम की जेब में से उसका पर्स निकाला और नोटों के अतिरिक्त उसमें जो कुछ भी था वह उसने अपनी जेब में भर लिया । फिर उसने गौतम की घड़ी उतारी और पर्स और घड़ी दोनों उसने चीनी के चोगे की उसी जेब में डाल दिये जिसमें सिल्क की रस्सी रखी हुई थी ।
तसवीरें सुनील ने अपनी जेब में डाल लीं ।
फिर वह कमरे से बाहर निकल आया और गला फाड़ कर चिल्लाया - “खून ! खून !”
आस-पास के द्वार भड़ाक से खुलने लगे और लोग कारीडोर में इकट्ठे होने लगे । सुनील जल्दी-जल्दी से हिन्दी में बोलने लगा ताकि कोई कुछ समझ न सके । उसने किसी को गौतम के कमरे में नहीं घुसने दिया ।
सुनील तब तक उसी प्रकार चिल्लाता रहा जब तक होटल का अंग्रेज मैनेजर वहां न पहुंच गया । सुनील उसकी बांह पकड़ कर उसे भीतर ले गया और उसे सारी घटना कह सुनाई ।
“मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं ।” - वह सिर हिलाता हुआ बोला ।
लेकिन शायद यह काम पहले ही कोई कर चुका था ।
मैनेजर ने अभी कमरे से बाहर कदम रखा ह था कि एक पुलिस इन्स्पेक्टर दो सिपाहियों के साथ भीतर घुस आया ।
मैनेजर ने सारा किस्सा सुनाया ।
इन्स्पेक्टर ने एक दृष्टि चीनी के चेतनाहीन शरीर पर डाली और फिर उसका चोगा उठा लिया । चोगे में से उसे गौतम का पर्स, घड़ी और चार फुट लम्बी सिल्क की रस्सी बरामद की । उसने संतुष्टि के भाव से सिर हिलाया जैसे सब कुछ समझ गया हो ।
उसी समय एक वेटर की नजर चीनी पर पड़ी जो न जाने कब होश में आ गया और धीरे-धीरे खिड़की की ओर बढ रहा था ।
“होल्ड हिम ।” - वेटर चिल्लाया ।
लेकिन इससे पहले कि कोई चीनी को पकड़ पाता वह खिड़की से बाहर छलांग लगा चुका था ।
इन्स्पेक्टर और सिपाही नीचे भागे ।
सुनील ने खिड़की में से नीचे झांका । चीनी का क्षत-विक्षत शरीर सड़क पर पड़ा था
उसी समय होटल की पार्किंग में से एक स्टेशन वैगन निकली और तेजी से चीनी के शरीर की बगल में आ खड़ी हुई । बड़ी फुर्ती से दो आदमी स्टेशन वैगन में से बाहर निकले । उन्होंने चीनी का शरीर उठा कर स्टेशन वैगन में डाला और अगले ही क्षण स्टेशन वैगन खुली सड़क पर पूरी रफ्तार से फर्राटे भरती हुई गायब हो गई ।
पूरी घटना के कम से कम एक मिनट बाद इन्स्पेक्टर सिपाहियों के साथ घटना स्थल पर दिखाई दिया ।
सुनील एक गहरी सांस खींच कर वहां से हट गया ।
शुरुआत ही गलत हुई थी ।
***
सुनील ने रायल होटल से ही एक कमरा ले लिया और गौतम की जेब में से निकले मिनियेचर कैमरे के चित्रों को जेब में डाल कर होटल से बाहर निकल आया ।
उस समय सुनील के लिये एयरपोर्ट के बाहर से खरीदा हुआ हांगकांग का नक्शा बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहा था । रायल होटल कोलून में कोई ताक एयरपोर्ट से लगभग दो मील दूर विक्टोरिया हार्बर से जिनड्रिंकर बे तक समुद्र के साथ-साथ बनी सड़क पर स्थित था । विक्टोरिया हार्बर कोलून को मुख्य हांगकांग से अलग करता था । नौ पहाड़ियों के आंचल में बसे कोलून में मुख्यता चीनियों की आबादी थी ।
सुनील को तलाश थी किसी फोटोग्राफर की दुकान की जहां से वह मिनियेचर चित्रों को एनलार्ज करवा सके ।
सुनील ने देखा कि कोलून का कोई भी बाजार एक लैवल में नहीं था । पहाड़ी इलाका होने के कारण बाजार तीस अंश के कोण पर बने हुए थे और बाजार के एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचने तक कई सीढियां चढनी पड़ती थीं । अपनी इसी विशेषता के कारण ऐसे बाजारों में सबसे लम्बा लैडर स्ट्रीट (सीढियों वाला बाजार) के नाम से जाना जाता था । लैडर स्ट्रीट के एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक लगभग दो सौ पत्थर की सीढियां थीं । और पांच-पांच छः-छः मन्जिल की इमारतें थीं जिनके नीचे बनी दुकानों पर चीनी में लिखे बड़े-बड़े साइन बोर्ड लटक रहे थे ।
सुनील लैडर स्ट्रीट में किसी फोटोग्राफर की दुकान तलाश करता फिर रहा था ।
उसी समय सुनील ने अपने कोट की जेब में किसी का हाथ महसूस किया । सुनील ने झपट कर हाथ पकड़ लिया और घूम कर देखा । एक लगभग पन्द्रह वर्ष की आयु का लड़का उसकी जेब काटने की चेष्टा कर रहा था । सूरत से वह चीनी नहीं लगता था ।
सुनील ने उसका हाथ छोड़कर उसकी गर्दन दबोच ली लेकिन भयभीत होने के स्थान पर वह बड़ी बेशर्मी से हंस दिया ।
“नो इंगलिश ?” - सुनील ने पूछा ।
“यस ।” - वह बोला ।
“अभी क्या कह रहे थे ?” - सुनील ने इंगलिश में पूछा ।
“आपकी जेब काट रहा था ।” - वह शांत स्वर से बोला ।
सुनील को ऐसे उत्तर की आशा नहीं थी । कुछ क्षण चुप रहने के बाद वह बोला - “अगर मैं पुलिस में दे दूं तो ?”
“तो क्या ?” - वह बोला - “पुलिस वाले मुझे मार-पीटकर भगा देंगे । वापिस आकर मैं फिर विदेशियों की जेबें काटूंगा ।”
“कुछ काम क्यों नहीं करते हो ?”
“हांगकांग में यह ही बहुत बड़ा काम है, मास्टर ।” - वह बोला ।
“क्या नाम है तुम्हारा ?”
“मुहम्मद ।”
“क्या !”
“मैं अरब का हूं, मास्टर । एक कार्गो-शिप में काहिरा से भाग कर हांगकांग आया हूं । यहां मेरा एक बड़ा भाई और एक बहन भी रहती है ।”
सुनील कुछ क्षण सोचता रहा, फिर उसने अपने पर्स में से एक दस हांगकांग डालर का नोट निकाला और उसे मुहम्मद की ओर बढा दिया ।
“यह किस खुशी में ?” - मुहम्मद नोट लेकर बोला ।
“जब तक मैं हांगकांग में हूं तुम मेरे साथ रहोगे ?” - सुनील ने पूछा ।
“इस दस डालर के नोट के बदले में ?”
“नहीं । ऐसा एक नोट रोज दूंगा ।”
“सच ?”
“बिल्कुल सच ।”
“मास्टर” - वह खुश होकर बोला - “यू आर ग्रेट ।”
सुनील को मुहम्मद बड़ा चालाक लग रहा था और दस डालर रोज में उसे सहज ही एक गाइड हासिल हो गया था ।
“लैडर स्ट्रीट में कहीं किसी फोटोग्राफर की दुकान है ?” - उसने मुहम्मद से पूछा ।
“है ।” - वह बोला - “चलो, मैं दिखाता हूं ।”
मुहम्मद उसे एक फोटोग्राफर की दुकान पर ले आया ।
सुनील ने गौतम की जेब से निकले मिनियेचर चित्र फोटोग्राफर को एनलार्ज करने के लिये दे दिये ।
एक घन्टे बाद उसे प्रिंट मिल गये ।
दो-तीन चित्र किसी तड़क-भड़क वाली क्लब के भीतरी भाग के थे जो शायद चायना क्लब था । एक चित्र में हार्बर के साथ खड़ी एक शानदार हाउसबोट दिखाई दे रही थी । एक अन्य चित्र एक बुलडाग जैसी सूरत वाले लम्बे-चौड़े आदमी का था जो नाक-नक्श से अंग्रेज लगता था । उसके दांये गाल पर आंख से लेकर ठोढी तक खिंचा हुआ चोट का निशान था जिसके कारण उसके चेहरे के भावों में भयानकता का समावेश हो गया था । अगला चित्र सलामत अली का था ।
अन्तिम चित्र को सुनील देखता ही रह गया । वह चित्र एक बेहद सुन्दर युवती का था जिसके नाक-नक्शों में चीनी और योरोपियन ढंग का समावेश था । उसकी बड़ी-बड़ी आंखें, उत्तेजक होंठ, गहरे काले बाल और संतुलित शरीर संसार की किसी भी सुन्दरी के लिसे स्पर्धा का विषय हो सकता था ।
सुनील ने सारी तसवीरें मुहम्मद को दिखाई ।
“इन तसवीरें में से किसी व्यक्ति को या किसी स्थान को पहचानते हो ?” - सुनील ने पूछा ।
मुहम्मद कई क्षण तसवीरों को देखता रहा फिर हाउसबोट वाली तसवीर की ओर संकेत करता हुआ बोला - “यह हाउसबोट यामाती एंकरेज पर खड़ी है ।”
“यामाती एंकरेज क्या बला है ?” - सुनील ने पूछा ।
“विक्टोरिया हार्बर की कोलून वाली साइड में एक स्थान है जहां अमीर लोगों के निजी स्टीमर और हाउसबोट खड़े रहते हैं ।”
“वहां जाने का रास्ता मालूम है तुम्हें ?”
“मालूम है । आप कोलून में कहां ठहरे हैं ?”
“रायल होटल में ।”
“यामाती एंकरेज जाने के लिये मुझे एक शार्ट कट मालूम है ।”
“चलो ।” - सुनील बोला ।
लगभग पन्द्रह मिनट में मुहम्मद उसे यामाती एंकरेज ले आया । वहां सैकड़ों छोटे-बड़े स्टीमर और हाउसबोट खड़े थे ।
“तसवीर वाली हाउसबोट वह है ।” - मुहम्मद किनारे के साथ लगी एक हाउसबोट की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“हूं ।” - सुनील बोला ।
उसके दिमाग में कई विचार चक्कर काट रहे थे । आखिर गौतम ने उस हाउसबोट का चित्र क्यों लिया था ? उस हाउसबोट से ऐसी महत्वपूर्ण क्या बात सम्बन्धित थी ?
“सुनो, महम्मद” - वह मन ही मन कुछ निश्चय करके बोल पड़ा - “मैं इस हाउसबोट भीतर जाना चाहता हूं और इसके लिये तुम्हारी सहायता बहुत जरूरी है ।”
“एनी सर्विस, मास्टर ।” - मुहम्मद बोला ।
“यह मेरा पर्स लो ।” - सुनील उसे अपना पर्स थमाता हुआ बोला - “इसे लेकर भागो और हाउसबोट में घुस जाओ । मैं तुम्हें पकड़ने के लिये तुम्हारे पीछे भागूंगा । हमें यह प्रकट करना है कि तुम मेरी जेब काट कर भाग रहे हो । ओके ?”
“ओके ।”
“तो फिर भागो ।”
अगले ही क्षण मुहम्मद पूरी शक्ति से हाउसबोट की ओर भाग रहा था । सुनील भी उसके पीछे भागा ।
मुहम्मद भागता हुआ हाउसबोट में घुस गया । सुनील भी उसके पीछे था ।
हाउसबोट में बने केबिनों के बीच के गलियारे में सुनील ने मुहम्मद को दबोच लिया मुहम्मद उसकी बांहों में यू तडफड़ा रहा था जैसे वाकई वह चोरी करके भागा हो ।
“मुझे छोड़ दो, मुझे छोड़ दो, प्लीज ।” - वह हाथ-पांव झटक कर चिल्ला रहा था - “प्लीज, माफ कर दो मुझे ।”
उसी समय एक केबिन का द्वार खुला और मुहम्मद चुप हो गया ।
सुनील ने उस ओर देखा ।
द्वार पर बुलडाग के चेहरे वाला वह लम्बा-तड़ंगा अंग्रेज खड़ा था जिसका चित्र वह गौतम के चित्रों में देख चुका था । उसके दायें गाल पर काला सा चोट का लम्बा निशान कृत्रिम प्रकाश में अलग ही चमक रहा था ।
उसके हाथ में एक रिवाल्वर थी जिसका निशाना सुनील और मुहम्मद की ओर था ।
सुनील ने एक नजर रिवाल्वर थामे अंग्रेज पर डाली । जिस केबिन के द्वार पर अंग्रेज खड़ा था उसके भीतर एक कुर्सी पर एक युवती बैठी हुई थी लेकिन सुनील को स्पष्ट रूप से उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था ।
रिवाल्वर की परवाह किये बिना सुनील मुहम्मद से तब उलझा रहा जब तक कि उसने मुहम्मद की जेब से अपना पर्स निकाल नहीं लिया । मुहम्मद जोर-जोर से प्रार्थनापूर्ण ढंग से कैंटोनीज (हांगकांग में बोली जाने वाली चीनी से मिलती-जुलती भाषा) में कुछ कह रहा था जिसका एक भी शब्द सुनील के पल्ले नहीं पड़ा रहा था ।
“बेटा” - सुनील पर्स जेब में रखता हुआ बोला - “तुम्हारी बकवास तो मेरी समझ में नहीं है लेकिन अपनी जेब से काटने का मजा तो मैं तुम्हें चखाऊंगा ही ।”
अंग्रेज कुछ क्षण सोचता रहा फिर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कराहट फुट पड़ी और उसने रिवाल्वर जेब में रख ली ।
सुनील की चाल काम कर गई थी ।
“लड़का आपसे कह रहा है” - अंग्रेज बोला - “कि उसके मां-बाप अपाहिज हैं उसके तीन छोटे भाई हैं, इसीलिये इसे जेब काटने जैसा काम करना पड़ा है । वह आपसे प्रार्थना कर रहा है कि आप उसे पुलिस में न दें ।”
“आपका क्या ख्याल है” - सुनील मित्रतापूर्ण स्वर से बोला - “छोड़ दूं इसे ?”
“छोड़ ही दीजिये ।” - अंग्रेजी बोला - “आपका कोई नुकसान तो हुआ नहीं है । यह तो अभी बच्चा है । अगर आप इसे पुलिस में देंगे तो वे लोग भी इसे मार-पीट कर भगा देंगे ।”
“ओके ।” - सुनील ने कहा और फिर मुहम्मद की खोपड़ी पर एक चपत जमाता हुआ बोला - “स्क्रैम ।”
मुहम्मद खूंटा तुड़ाई गाय की तरह भाग खड़ा हुआ ।
उसी समय केबिन में से निकलकर एक युवती बाहर आया । सुनील ने देखा । वह वही युवती थी जिसकी तस्वीर गौतम की जेब में से निकली थी । सुनील हैरान था कि गौतम ने उस हाउसबोट की और उन लोगों की तस्वीर क्यों ली थीं । आखिर उन लोगों का टैक्नीकल पेपरों की चोरी से या चायना क्लब से क्या सम्बन्ध था ।
सुनील ने युवती का अभिवादन किया ।
“परमिट मी टू इन्ट्रोड्यूस माईसैल्फ, मिस ।” - वह बोला - “मेरा नाम कमाल है । मैं पाकिस्तानी हूं ।”
पाकिस्तानी शब्द सुनते ही युवती ने तपाक से सुनील के साथ हाथ मिलाया और चीनी मिश्रित अंग्रेजी उच्चारण से बोली - “मेरा नाम चिन ली है । ये लार्ड गोल्डस्मिथ हैं ।”
सुनील ने लार्ड का भी अभिवादन किया ।
“आपने तो मुझे भी चोर ही समझा था, शायद ।” - सुनील बोला - “आप रिवाल्वर दिखा रहे थे मुझे ।”
“वाट टु डू ।” - गोल्डसस्मिथ बोला - “यह चोर उचक्कों का शहर है । यहां बहुत सावधान रहना पड़ता है ।”
“आप टुरिस्ट हैं ?” - सुनील ने चिन ली से बेकार सा प्रश्न किया ।
“नहीं ।” - वह मधुर स्वर से बोली - “मैं चायना क्लब में काम करती हूं । लार्ड भी चायना क्लब से ही सम्बन्धित हैं ।”
सुनील का दिल धड़क उठा । तो गौतम खामखाह ही इन लोगों की तस्वीरें नहीं खींचता फिर रहा था ।
“आप चायना क्लब में क्या काम करती हैं ?” - उसने पूछा ।
“मैं स्ट्रिपटीज डान्सर हूं ।” - वह बोली - “आइये न कभी !”
“जरूर आऊंगा ।” - सुनील उत्साह का प्रदर्शन करता हुआ बोला - “आज ही आऊंगा आप जैसी अद्वितीय सुन्दरी का नृत्य देखना तो मेरे लिये सौभाग्य की बात होगी ।”
“जरूर आइयेगा ।” - गोल्डस्मिथ बोला - “चायना क्लब जैसा मनोरंजन आपको सारे हांगकांग में कहीं भी नहीं मिल सकता ।”
सुनील दोनों का अभिवादन करके बोट से बाहर निकल आया और किनारे पर आ गया ।
मुहम्मद कहीं दिखाई नहीं दे रहा था ।
स्पष्ट था कि गौतम चायना क्लब के विषय में बहुत कुछ जान गया था लेकिन कोई ऐसी गलती कर बैठा था जिसके कारण उसकी हत्या करवा दी गई थी ।
उसी समय मुहम्मद सुनील के पास आ खड़ा हुआ ।
“शाबाश, मुहम्मद ।” - सुनील ने कहा और उसे एक नोट और दिया ।
मुहम्मद ने चुपचाप नोट अपनी जेब में रख लिया ।
“अब एक काम और करो ।” - सुनील बोला ।
“क्या ?”
“कल शाम तक तुम्हें इस हाउसबोट पर नजर रखनी है । तुम्हें इस हाउसबोट से बाहर निकलने और भीतर जाने वाले हर आदमी पर नजर रखनी है । कर सकोगे ?”
“श्योर ।” - वह पूर्ण आत्मविश्वास से बोला ।
“फाइन । अब यह बताओ कि चायना क्लब कहां है ?”
“चायना क्लब” - वह बोला - “हार्बर के दूसरी ओर विक्टोरिया पार्क के एरिया में पौटिंगर स्ट्रीट के सबसे ऊपर वाले सिरे पर है ।”
“सबसे ऊपर वाले सिरे पर ? क्या मतलब ?”
“पौटिंगर स्ट्रीट भी सीढियों वाला बाजार है । उसकी दो सौ से अधिक सीढियां चढने के बाद ही आप चायना क्लब पहुंच सकेंगे ।”
“ओके ।”
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