एक भयानक रात

रात के साढ़े दस बजने को थे।

अप्रैल महीने का शुरूआती दिन था, इसलिए सुबह शाम हल्की ठंड अभी भी महसूस हो जाया करती थी। खासतौर से तब जब आप रात के वक्त सिटी से बाहर दोपहिया वाहन की सवारी कर रहे हों और दिन में तेज बारिश होकर हटी हो, तब सरसराती हुई तेज और ठंडी हवा आपकी मांसपेशियों को सिकुड़ने, कंपकंपाने पर मजबूर कर देती है।

उन दोनों का भी उस वक्त कुछ कुछ वैसा ही हाल हो रहा था।

आकाश राजपूत गोरखपुर-दोहरीघाट-आजमगढ़ रोड पर पचास-साठ की स्पीड में बाईक ड्राईव कर रहा था। रास्ता एकदम खाली था इसलिए चाहता तो सत्तर-अस्सी की स्पीड में भी मोटरसाईकिल चला सकता था, मगर पीछे उसकी बहन अराध्या बैठी थी, जो स्पीड बढ़ती देखकर बार बार उसे धीरे चलने के लिए कहना शुरू कर देती और तब तक चुप नहीं होती थी, जब तक की वह अपनी रफ्तार घटा नहीं लेता था।

उस किचकिच से आकाश तंग आ गया था, इसलिए स्पीडोमीटर की सुई जब भी साठ पार करती दिखाई देती वह खुद ही एक्सीलेटर कम कर देता था।

दोनों भाई बहन आज सुबह गोरखपुर गये थे, जहां अराध्या ने बी.एड. का इंट्रेंस देना था। एग्जाम के बाद दोनों वहां रहती अपनी मौसी के घर चले गये, और बाद में तेज बारिश शुरू हो गयी, जिसकी वजह से वक्त उनके हाथ से फिसलता चला गया।

आखिरकार शाम छह बजे बारिश बंद हुई तो दोनों वहां से घर के लिए निकल पड़े, बावजूद इसके कि मौसी उन्हें बार बार रात को वहीं रुक जाने के लिए कहती रही थी। आगे मुसीबत ये आई कि रास्ते में बाईक बंद हो गयी।

आकाश ने पहले तो खुद ही कोशिश करते हुए उसका प्लग वगैरह खोलकर साफ किया मगर बाईक स्टार्ट नहीं हुई। तब उसने मैकेनिक खोजना शुरू किया जिसके लिए दो किलोमीटर का सफर पैदल और बाईक को धक्का लगाते हुए तय करना पड़ा।

फिर सड़क किनारे दुकान लगाकर बैठा एक मैकेनिक उन्हें मिल गया, जिसने महज दस मिनट में बाईक को रनिंग पोजिशन में पहुंचा दिया। मगर उस दस मिनट के चक्कर में उनके पूरे दो घंटे बर्बाद हो चुके थे। लिहाजा गोरखपुर से आजमगढ़ का जो सफर ढाई तीन घंटे में पूरा हो जाने वाला था, वह पांच घंटे से कहीं ज्यादा का बनकर रह गया।

अब साढ़े दस बजने को थे और वे लोग अभी भी अपने घर से अठारह किलोमीटर दूर थे, जो कि आजमगढ़ के बलरामपुर क्षेत्र में स्थित था। अलबत्ता आकाश को पूरी पूरी उम्मीद थी कि अब बीस पच्चीस मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगने वाला था।

मगर उसकी सोच, उसकी उम्मीद गलत साबित हुई।

उस वक्त वह जियापुर से गुजर रहा था, जहां दोनों तरफ दूर दूर तक बस खेत खलिहान फैले हुए थे, मतलब रिहाईशी इलाके का नामोनिशान नहीं दिखाई दे रहा था। सड़क पर कहीं कोई बल्ब जल रहा था तो कहीं नहीं जल रहा था, वैसे ज्यादातर अंधेरा ही फैला था। हां सड़क की हालत अच्छी थी क्योंकि हाल ही में बनकर हटी थी इसलिए ड्राईविंग में कोई समस्या नहीं आ रही थी।

थोड़ा आगे जाने के बाद सड़क पर एक बोलेरो प्रगट हुई और बाईक की रफ्तार से रफ्तार मिलाती हुई उसके पीछे पीछे चलने लगी।

गाड़ी में चार लड़के सवार थे जिनकी सूरत पर साफ साफ लिखा नजर आ रहा था कि वे सभ्य लोग नहीं थे। ऊपर से नशे में भी जान पड़ते थे क्योंकि आवाज लड़खड़ा रही थी, बातचीत का स्तर एकदम घटिया दर्जे का था।

“एक बात कहें चंदू भईया?” अनोखेलाल बोला जो उस वक्त बोलेरो की ड्राईविंग सीट पर सवार था। चंदू जो उस ग्रुप में लीडर की हैसियत रखता था, पैसेंजर सीट पर बैठा था, जबकि सरयू शाह और रमन यादव नाम के दो लड़के पिछली सीट पर मौजूद थे।

“जो बोलना है बोलते काहे नाहीं हो मादर..., इजाजत काहे मांग रहे हो?”

“मजा नहीं आया।”

“ससुर के एक चौथाई बोतल गटककर कह रहे हो कि मजा नहीं आया, अब का पूरी बोतल थमा देते तुम्हें? फिर होता ये कि तुम साले पीकर वहीं पड़ रहते और कलंकी भईया सुबह मार मारकर हमारा पूतर लाल कर देते।”

सुनकर पीछे बैठे दोनों लड़कों ने जोर का ठहाका लगा दिया।

“मजा से हमारा मतलब कुछ और था चंदू भईया।”

“बयान करो।”

“चमकी के पास ले चलते तो...

“जुबान खींच लेंगे साले तुम्हारी, भूल गये कि चमकी किसकी है?”

“आपकी है भईया हम कहां भूले हैं।”

“फिर बकचोदी काहे कर रहे हो?”

“काहे कि वह आपकी हैं इसलिए हमारी भाभी हैं, और भाभी देवर का ख्याल तो रखती ही है न, जैसे वह पिछली बार हम तीनों का रखी थीं इमली, सुथरिया और दमयंती को बुलाकर। वैसा ही बंदोबस्त आज रात के लिए करा देते तो मां कसम मजा आ जाता।”

“अनोखे एकदम सही कह रहा है भईया - पिछली सीट पर बैठा रमन यादव बोला - मन तो हमारा भी खूबे हो रहा है।”

“तब चमकी को हम एडवांस में खबर किये थे, इसलिए उसने सबकुछ पहले से सेट कर रखा था। अभी रात का बखत है कैसे कर पायेगी? इसलिए अपने मन को काबू में करो। हां इतना वादा किये देते हैं हम कि एक दो दिन में तुम्हारी ऐश का इंतजाम जरूर कर देंगे।”

“आप चाहें तो अभी भी हो सकता है भईया।” अनोखे लाल आगे आगे चली जा रही बाईक पर बैठी अराध्या पर निगाहे गड़ाता हुआ बोला।

“कैसे?”

“एकदम लाजवाब माल है, माने सील पैक।”

“का बकते हो साले।”

“सामने बाईक पर बैठी लड़की को देखिये, ऐसा लगता है जैसे आसमान से कोई अप्सरा नीचे उतर आई हो, रह रहकर उजियारा सा फैल जा रहा है उसके रूप रंग से।”

“भोस....के - चंदू हंसता हुआ बोला - वह उजियारा तुम्हारी अम्मा के रूप रंग से नहीं फैल रहा है, सड़क पर कहीं कहीं लाईटें जल रही हैं, उसकी वजह से फैल रहा है। ढंग से दिखाई नहीं दे रहा तो कल सुबह जाकर किसी डॉक्टर से मिलना, बोलना तुम्हारी आंख में बवासीर हो गया है।”

“आंख में बवासीर! - सरयू शाह ने जोर का ठहाका लगाया - क्या बात कहे भईया, बड़े बड़े डॉक्टर लोगों की खोपड़िया उलट जायेगी सुनकर, माने एकदम नया ईजाद कर के रख दिये आप।”

“चुपकर साले - अनोखेलाल ने उसे जोर से घुड़का फिर चंदू से बोला - ऊ का है न भईया कि हमारी तबियत थोड़ी शायराना है, इसलिए कल्पना कर रहे हैं कि इहां सड़क पर जो जगह जगह रोशनी हो जा रही है, वह आगे आगे चली जा रही लड़की की वजह से फैल रही है। वह लड़की जो राजा इंद्र के दरबार से घरती पर परगट हुई है। जिसे मोटरसाईकिल चला रहा एक राक्षस भगाये ले जा रहा है। अब ऐसी लड़की की मदद आप नहीं करेंगे तो कौन करेगा।”

“बहन.... शेर तो आज तक तुम एक भी नहीं बोले, फिर तुम्हारी तबियत शायराना कैसे हुई?”

“उसमें कौन सी बड़ी बात है भईया, आप कहें तो एक ठो शेर अबहियें सुनाये हैं, ऊ भी ऐसा जिसे तुरत फुरत तैयार किये हैं हम।”

“तुरत फुरत, मतलब ड्राईविंग पर ध्यान नहीं है तुम्हारा?”

“काहे जूता मार रहे हैं भईया, एक्सीडेंट किये हम, नहीं किये न? माने ड्राईविंग में कोई गड़बड़ी नहीं है।”

“ठीक है शेर सुनाओ।”

“सुनाते हैं पहले कहिए ‘इरशाद’।”

“इरशाद।”

“एक बकलोल सा लड़का है, एक हुस्न की मल्लिका है...

“वाह-वाह, वाह-वाह...

“एक बकलोल सा लड़का है, एक हुस्न की मल्लिका है...

“वाह-वाह...

“एक बकलोल सा...

“साले आगे काहे नहीं बोलते?”

“काहे कि शेर कहने का अंदाज यही है।”

“ठीक है बोल।”

“एक बकलोल सा लड़का है, एक हुस्न की मल्लिका है, लड़के को मार दें गोली और लड़की के साथ करें जोराजोरी।”

“वाह-वाह।” पिछली सीट पर बैठे सरयू और रमन जोर से बोल पड़े।

“शुक्रिया, शुक्रिया।”

“साले ई तुम शेर कहे हो या अपनी तमन्ना जाहिर किये हो?” चंदू हंसता हुआ बोला।

“भईया तो मन का हाल जान लेते हैं, तो क्या हमारी तमन्ना भी पूरी करेंगे?”

“करेंगे बालक, काहे नहीं करेंगे, ओवरटेक करो बकलोल लड़के और परम सुंदरी लड़की को, फिर देखो हम कैसे आज रात हम तुम तीनों को ऐश कराते हैं।”

सुनते के साथ ही अनोखे ने बोलेरो की स्पीड बढ़ाई और बाईक को क्रॉस करने के बाद स्टेयरिंग को दायें काटकर एकदम से गाड़ी रोक दी।

आकाश ने बुरी तरह हड़बड़ाते हुए बाईक को पूरी ताकत से ब्रेक लगाया, और टक्कर भी बचा ले गया, लेकिन मोटरसाईकिल स्लिप मार गयी जिसके कारण दोनों भाई बहन सड़क पर गिर गये। मगर तब तक बाईक गतिशून्य हो चुकी थी इसलिए उन्हें कोई खास चोट नहीं आई।

“भोस...के पीकर गाड़ी चला रहे हो क्या?” सड़क से उठता हुआ आकाश गुर्राकर बोला।

“क्या कर रहे हो भईया - अराध्या फुसफुसाती हुई बोली - बाईक उठाओ और चलो यहां से।”

तभी गाड़ी के अगले पिछले दरवाजे एक साथ खुले और चारों नीचे उतर आये।

“का अंग्रेजी झाड़ रहे हो बे?” अनोखे गुर्राता हुआ बोला।

“अंग्रेजी नहीं हिंदी में पूछ रहे हैं कि गाड़ी का पीकर चला रहे हो क्या, या नौसिखुआ ड्राईवर हो, अभी हमारी जान ले ली होती तुमने।”

“एकदम सही समझे पूरा बोतल गटककर आये हैं, तुम्हें कोई प्रॉब्लम है?”

“पी रखी है तो कहीं जाकर पड़ क्यों नहीं रहते, सड़क पर काहे निकल आये गाड़ी लेकर?”

“तुम हमपर हुक्म चलाओगे ससुर के?”

“नहीं समझा रहे हैं, अब गाड़ी हटाओ हमारे आगे से।”

“नहीं हटायेंगे तो का कर लोगे?” कहते हुए चारों थोड़ा उसकी तरफ बढ़ आये।

आराध्या डर के मारे भाई के पीछे हो गयी।

“पुलिस को फोन करेंगे, जिसके बाद तुम लोग जेल जाओगे।”

“बीस मिनट।”

“क्या बीस मिनट?”

“पुलिस को यहां आने में कम से कम भी बीस मिनट लग जायेंगे, उतनी देर में हम तुम्हें कहां से कहां पहुंचा देंगे, तुम सोच भी नहीं सकते।”

“अरे क्यों भले इंसान को परेशान कर रहे हो - चंदू अनोखे को घुड़कता हुआ बोला - एक तो तुम्हारी वजह से बिचारा मरते मरते बचा और अब तुम इसपर ही धौंस जमा रहे हो - फिर उसने आकाश की तरफ देखा - गर्लफ्रैंड तो बहुते खूबसूरत है तुम्हारी यार, कहां से मारे हो, या अभी अभी सीधा घर से भगाकर ला रहे हो?”

“होश में बातकर साले, ये मेरी बहन है।”

“ओह बहन है - कहकर उसने अराध्या से सवाल किया - मैडम जी तुम्हारा कोई ब्वॉयफ्रैंड है या नहीं, होगा ही आखिर इतनी खूबसूरत दिख रही हो, बल्कि कई होंगे, है न?”

“जुबान संभाल कर बात कर कमीने।” आकाश गुर्रा उठा।

“कुंवारी तो हो न?”

जवाब में आकाश चंदू पर झपटने ही लगा था कि अराध्या ने हाथ पकड़कर रोक लिया और रो देने वाले स्वर में धीरे से बोली, “इनके मुंह मत लग भाई चल यहां से।”

जवाब में बुरी तरह तिलमिलाता हुआ वह बाईक उठाने लगा।

“एक काम करो - चंदू फिर से बोल पड़ा - अपनी बहन को यहीं छोड़कर अकेले निकल जाओ। मैडम जी को हम सकुशल घर पहुंचा देंगे। तुम्हारे साथ बाईक पर गयीं तो निमोनिया हो जायेगा।”

आकाश ने फिर भी कुछ नहीं कहा और बाईक उठाकर उसपर बैठने के बाद सेल्फ मारा तो वह तुरंत स्टार्ट हो गयी, अराध्या पीछे बैठ गयी। मगर वहां से जा तो नहीं ही पाये।

“सुने नहीं चंदू भईया का बोले हैं, बहन को छोड़कर जाओ यहां। बहुते ठंड है आज, हमारे साथ रहेंगी तो थोड़ी गरमाहट मिल जायेगी। तुम नसीब वाले हो जो एक की बजाये चार बहनोई मिल रहे हैं तुम्हें।” कहते हुए अनोखे ने जोर का ठहाका लगाया तो बाकी तीनों भी हंस पड़े।

अब आकाश का धैर्य जवाब दे गया, वह बाईक को स्टैंड पर लगाकर नीचे उतरा और आगे बढ़कर अनोखे को इतनी जोर का मुक्का मारा कि उसके मुंह से चींख निकल गयी, नाक फूट गयी, होंठ कट गये, चेहरा लहूलुहान हो गया।

बाकी तीनों ने बेशर्मों की तरह फिर से ठहाका लगा दिया।

“तुम तो अपने जीजा का मुंह तोड़ दिये यार - चंदू हंसता हुआ बोला - पहले बहन से पूछ तो लिया होता कि इसे पसंद आयेगा या नहीं। कहीं क्रोधित होकर मायके आना ही न छोड़ दे बेचारी।”

जवाब में आकाश ने उसके पेट में जोर की लात जमाई और बाकी तीनों के साथ भिड़ गया। एक और चार के बीच मार कुटाई शुरू हो गयी। लड़का हट्टा कट्टा था इसलिए काफी देर तक मैदान में डंटा रहा। ऊपर से वो सब नशे में भी थे इसलिए आकाश उनपर भारी पड़ रहा था, मगर वैसा चलता नहीं रह सकता। रमन यादव ने मौका पाकर उसकी टांग पकड़ी और जोर से खींच दिया, जिसके बाद आकाश पीठ के बल सड़क पर गिरा फिर दे लात, दे घूंसे।

जल्दी ही उसकी चींखें गूंजने लगीं, जो रात्रि के सन्नाटे में बहुत ही भयानक महसूस हो रही थीं, मगर उन चींखों को सुनकर उसे बचाने वाला तो आस-पास कोई भी नहीं था। सड़क पर इक्का दुक्का वाहन बराबर नजर आ जा रहे थे, मगर रुकने की कोशिश किसी ने नहीं की। पराई आग में भला अपने हाथ जलाने की कोशिश कौन करता।

हां अराध्या जरूर भाई को बचाने के लिए कई बार आगे आई मगर हर बार उसे दूर धकेल दिया। वह सिलसिला बस दो से तीन मिनट चला, फिर चंदू ने गन निकाल ली और गुर्राता हुआ बोला, “बस बहुत हो चुका, अब अपनी प्यारी बहनियां को छोड़कर यहां से फौरन दफा नहीं हुए तो गोली मार देंगे हम तुम्हें।”

बाकी तीनों ने भी उसे पीटना बंद कर दिया।

आकाश को मौका मिला तो उठकर चंदू के रिवाल्वर पर झपट पड़ा। छीना झपटी में गोली चल गयी, जो सीधा उसकी गर्दन में जा घुसी और पलक झपकने से भी पहले वह काल का ग्रास बन गया। यूं बन गया जैसे अभी जिंदा था और अभी मर गया।

आराध्या जोर से चींखी और खड़े खड़े कांपने लगी।

“साला, बेवकूफ - चंदू तिरस्कार भरे लहजे में बोला - कितना समझाने की कोशिश किये हम, लेकिन ये तो जैसे जान देने पर ही उतारू था - फिर उसने अपने तीनों साथियों की तरफ देखा - मैडम को गाड़ी में बैठाओ फिर निकलते हैं यहां से।”

अराध्या को जैसे बिजली का झटका लगा हो, पलक झपकते ही वह शॉक की उस स्थिति से बाहर निकल आई। फिर पलटकर जी जान से विपरीत दिशा में दौड़ पड़ी।

चारों तुरंत उसके पीछे लग गये।

फासला बस पंद्रह-बीस मीटर का था मगर जान पर बनी थी इसलिए अराध्या ने उसे कम नहीं होने दिया। मगर वैसा कब तक चल सकता था। दो सौ मीटर लगातार दौड़ते रहने के बाद उसकी हिम्मत जवाब देने लगी। लेकिन कोशिश जारी रखी।

चंदू एंड पार्टी नशे में थी, इसलिए भी लड़की उनके हाथ से फिसली जा रही थी, या यूं कह लें कि चारों उस रफ्तार से नहीं दौड़ पा रहे थे, जितना आम हालात में दौड़ सकते थे। बस अराध्या को उसी बात का फायदा पहुंच रहा था।

दूरी ना तो बढ़ रही थी ना ही घट रही थी।

सिलसिला करीब पांच सौ मीटर तक ज्यों का त्यों चलता रहा, फिर अराध्या के सांसे फूलने लगीं, पांव डगमगाने लगे, हिम्मत जवाब देने लगी, और एक वक्त वह भी आया जब वह मुंह के बल सड़क पर गिर पड़ी और गिरकर दोबारा नहीं उठ पाई।

गिद्ध उसे घेरकर खड़े हो गये।

“जरा देख तो अनोखे कहीं मैडम बेहोश तो नहीं हो गयी हैं?”

सुनकर वह नीचे झुका और अराध्या को पलटकर सीधा कर दिया, उसकी नाक से खून निकल रहा था लेकिन आंखें खुली हुई थीं, सूरत पर भय के बड़े ही भयानक भाव थे, सांसें तेज गति से चल रही थीं, और दिल रबर के बाल की मानिंद उछलता प्रतीत हो रहा था।

“बेहोश नाहीं हैं भईया, बस नाक फुड़वा बैठी हैं, बाकी सब ठीक है।” कहता हुआ अनोखे सीधा खड़ा हो गया।

“बढ़िया, वैसे भी हमें इनकी नाक से क्या मतलब है?”

सुनकर बाकी तीनों ने जोर का ठहाका लगाया।

“आपने तो एकदम वही बात कह दी चंदू भईया।”

“कौन सी बात?”

“एक जोक बुक में पढ़े थे हम, सुनायें।”

“हंसी आयेगी?”

“पक्का आयेगी।”

“ठीक है सुना काहे कि मूड बहुते खराब हो गया है हमारा।”

“हुआ ये भईया कि एक आदमी बाजार में मुर्गा खरीदने गया तो ये देखकर हैरान रह गया कि एक तरफ रखे मुर्गे दस-दस रुपये के मिल रहे थे जबकि दूसरी तरफ वालों की कीमत दो सौ रुपये थी।”

“बकवास - अनोखे बोला - ऐसा भी कहीं होता है।”

“अरे आगे तो सुन।”

“ठीक है सुना।”

“वह आदमी भी तेरी ही तरह चौंक पड़ा, मगर जब उसने दुकानदार से उस बारे में सवाल किया तो वह बोला कि दस रुपये वाले मुर्गों को एड्स है।”

सुनकर सब हंस पड़े।

“तब जानते हैं चंदू भईया ग्राहक ने क्या कहा?”

“क्या कहा?”

“यही कि तू दस वाले ही चार दे दे भाई, मुझे चिकन बनाना है सेक्स थोड़े ही करना है इनके साथ।”

सुनकर सब जोर जोर के ठहाके लगाने लगे।

“ठीक वैसे ही जैसे आप कहे कि नाक का क्या करना है हमें।”

फिर से ठहाके लगाये गये। तब तक अराध्या उठकर बैठ गयी थी, मगर इतनी ताकत शेष नहीं बची थी कि एक बार फिर वहां से भाग निकलने की कोशिश कर पाती।

“इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है मैडम जी - चंदू बड़े ही प्यार से बोला - काहे कि हम सब जेंटलमैन हैं - कहकर उसने अपने साथियों की तरफ देखा - बोलते क्यों नहीं सालों?”

“हां हां, हम वही हैं जो भईया कहे हैं।”

“और क्या कहे हम?”

“यही कि हम सब जेल के मैन हैं।”

“साले भोस...के, जेल के मैन नहीं जैंटलमैन।”

“वही तो हम भी कहे हैं भईया।”

“जिसका मतलब ये बनता है मैडम जी कि हम तुम्हारे साथ बहुत अच्छे से पेश आयेंगे, और को ऑपरेट करोगी तो जरा भी परेशानी नहीं होने देंगे, बल्कि तुम्हारी जान भी बख्श देंगे - कहकर उसने एक बार फिर अनोखे की तरफ देखा - क्या करना है मैडम को?”

“इनको आपको रेट करना है, मगर करेंगी कैसे भईया, आप कहीं बिकते थोड़े ही हैं।”

“साले काहे अंग्रेजी का सत्यानाश लगा रहे हो, हम को ऑपरेट करने को कह रहे हैं।”

“ऊ कैसे होता है चंदू भईया।”

“जरा हमारी पीठ खुजला दे।”

“अभी लीजिए।” कहकर अनोखे उसकी पीठ खुजलाने लगा।

“बस यही को ऑपरेट है, का समझे?”

“यही कि आप मैडम को अपने साथ ले जाकर पीठ खुजलवाना चाहते हैं।”

“तेरे से तो बात करना ही बेकार है साले, एकदम मंद बुद्धि है तू।”

“सही कहा भईया, एकदम बुड़बक है ये।” रमन यादव बोला।

“तू समझदार है?”

“हां भईया, बहुते ज्यादा।”

“ठीक है फिर को ऑपरेट का मतलब बता।”

“आप मैडम जी से कहेंगे कि ये आपकी पीठ खुजलायें, फिर आप इनकी पीठ खुजलायेंगे, मतलब दोनों एक दूसरे की...

“चुपकर साले।”

“हम कुछ गलत कह दिये भईया?”

“जुबान बंद रखो तुम सब और ऊ करो जो कर सकते हो।”

“यहीं सड़क पर, घुटना छिल जायेगा भईया।”

“भोस...के हम मैडम को गाड़ी तक ले जाने के लिए कह रहे हैं।”

तभी अराध्या ने झपटकर चंदू के पांव पकड़ लिये और गिड़गिड़ाती हुई बोली, “हमें छोड़ दो, जाने दो इहां से, हमारे भाई को तो मार ही दिये तुम लोग, अब हमपर काहे जुल्म ढाते हो?”

“पागल हो गयी हो, उसे कोई जानबूझकर थोड़े ही मारे हम, अब झगड़ा लड़ाई में इतना तो चलता ही है। फिर भाई के लिए तुम्हारा कोई फर्ज वर्ज है या नहीं, मतलब जिस कारण से वह मारा गया, उसे पूरा नहीं करेगी तो क्या उसकी आत्मा प्रेत योनि में नहीं भटकेगी, इसलिए भलाई इसी में है कि चुपचाप, पूरी शांति के साथ हमारे साथ चलो, वरना कहीं हम सड़क पर ही अपनी मनमानी करने लगे तो तुम्हारा नाजुक बदन जगह जगह से छिल जायेगा, जिससे हमें बहुते तकलीफ होगी, काहे कि हम जेंटलमैन हैं।”

“हमें छोड़ दो प्लीज, तुम्हारी भी तो कोई बहन होगी?”

“हां है क्यों नहीं, लेकिन बहन के साथ सैक्स करना घोर पाप होता है, जो हम नहीं कर सकते। का इतना भी नहीं समझतीं तुम? जबकि सूरत से पढ़ी लिखी लगती हो।”

“तो समझ लो हम तुम्हारी बहन हैं, जाने दो इहां से हमें।”

“क्या बुड़बक जैसी बात कर रही हो मैडम, कहीं हमारे बाप को पता लग गया कि हमारी मां ने एक लड़की भी जन रखी है तो वह ससुरा फौरन हमारी मां का गला घोंट देगा। हमारे घर में आग लगाना चाहती हो तुम?”

“हम तुम्हें पैसे दे देंगे, जितना कहोगे उतना दे देंगे, बस हमें जाने दो यहां से, तुम्हारे पांव पड़ते हैं हम।”

“पैसा नहीं चाहिए, काहे कि हमारा तुमपर दिल आ गया है - कहकर उसने अनोखे की तरफ देखा - मैडम को उठाता क्यों नहीं है बहन..., का पूरी रात हम यहीं खड़े रहेंगे?”

“अभी लीजिए भईया।” कहते हुए उसने अराध्या को जबरन अपने कंधे पर टांग लिया, उसने कोई विरोध नहीं किया। हाथ पांव तक चलाते नहीं बना जो ऐसे हालात में लोग चला ही बैठते हैं। फिर सब वापिस पांच सौ मीटर की दूरी पर खड़ी बोलेरो की तरफ बढ़ चले।

मगर सौ मीटर भी नहीं जा पाये थे कि तभी विपरीत दिशा से चली आ रही एक बाईक उनसे कुछ दूरी पर पहुंचकर रुक गयी, हैडलाईट की रोशनी आंखों पर पड़ती होने की वजह से उन्हें सवार की सूरत तो नहीं दिखाई दी, मगर इतना अंदाजा फौरन हो गया कि आगंतुक ने वर्दी पहन रखी थी।

लेकिन क्या मजाल जो पुलिस की उपस्थिति को महसूस कर के उनके चेहरे के भावों में लेश मात्र को भी अंतर आया हो, उल्टा वह चारों ज्यों के त्यों उसकी तरफ बढ़ते रहे।

मोटरसाईकिल पर सब इंस्पेक्टर अनुराग पांडे सवार था, जो उन्हें अपने करीब आते देखकर इंजिन बंद कर के नीचे उतरा, और अपनी सर्विस रिवाल्वर उनकी तरफ तानकर खड़ा हो गया।

चारों उसके करीब पहुंचकर रुक गये, फिर दरोगा पर निगाह पड़ते ही चंदू बोला, “काहे अपना कीमती टाईम बर्बाद कर रहे हैं सर, जबकि इहां कुछ गलत भी नहीं हो रहा। घरेलू मामला है जिसे हम संभाल लेंगे, आप रुककर क्या करियेगा?”

“लड़की कौन है?”

“लड़की नहीं औरत है, माने हमारी जोरू है। घर छोड़कर भागी जा रही थी इसलिए दौड़ाकर पकड़ लिये मादर...को, अब वापिस ले जाकर इतनी ठुकाई करेंगे कि फिर से ऐसा कदम उठाने की जुर्रत नहीं कर पायेगी।”

“ये झूठ बोल रहा है इंस्पेक्टर साहब, हमारी तो अभी शादी भी नहीं हुई है - अराध्या गला फाड़कर चिल्लाई - ये लोग हमारा अपहरण कर के ले जा रहे हैं, हमारे भाई को भी मार दिये, प्लीज बचा लीजिए हमें।” आखिरी शब्द कहकर वह जोर जोर से रोने लगी।

“अरे काहे झूठ बोलती है टिंकू की अम्मा - चंदू हंसता हुआ बोला - गिला शिकवा घर चलकर दूर करते हैं। आपस के झगड़े में पुलिस को क्या बीच में लाना।”

“ज्यादा होशियार बनने की कोशिश मत करो - दरोगा गुर्रा उठा - लड़की को नीचे उतारो।”

“काहे?”

“काहे कि हमारे हाथ में रिवाल्वर है।”

“ऊ तो हमारे पास भी है दरोगा जी, वो भी एक नहीं चार।”

“बकचोदी मत कर, लड़की को नीचे उतार।”

“ठीक है उतारे देते हैं।” कहकर उसने अनोखे को इशारा कर दिया।

अगले ही पल अराध्या सड़क पर खड़ी थी।

“अब दफा हो जाओ, ये सोचकर कि जान बख्शे दे रहे हैं तुम्हारी।”

“अरे आप तो एकदम सीरियस दिख रहे हैं दरोगा जी, जबकि हम समझे कि हमें पहचानकर मजाक कर रहे हैं, या सही समझे हम? मतलब मजाके कर रहे हैं आप।”

“चिलम फूंक रखी है क्या सालों, दफा क्यों नहीं होते यहां से?”

“हम तो हो जायेंगे, लेकिन बाद में आपका क्या होगा सर?”

“क्या बकता है बहन...?”

“यानि सच में नहीं पहचाने?”

“तुम जानते हो मुझे?” दरोगा थोड़ा सकपकाकर बोला।

“अच्छे से, जाने कितनी बार चौकी में कलंकी भईया के साथ आपसे मिलने आये होंगे, दरोगा अनुराग पांडे हैं आप। हैरानी है कि आपको याद नहीं आ रहा।”

“तुम लोग अतीक भईया के आदमी हो?”

“अब सही पहचाने आप।” चंदू मुस्कराता हुआ बोला।

दरोगा के मुंह से गहरी आह निकल गयी, फिर थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोला, “ससुर के पहले नहीं बता सकते थे, खामख्वाह इहां खड़े होकर हमारे साथ बकचोदी कर के अपना और हमारा टाईम खराब कर दिये।”

“काहे कि हम समझे अपने दरोगा जी आज मजाक के मूड में हैं।”

“कहां से आ रहे हो?”

“धरहरा गये थे, वापिस लौटने लगे तो ये मैडम जी दिखाई दे गयीं, अब रात का टाईम ऊपर से थोड़ा पी भी रखी है, तो आगे मन बहलाने के लिए कुछ तो चाहिए न।”

“हमें भी शामिल कर लो।”

“अरे इसमें कहने की क्या बात है, दो किलोमीटर आगे हमारा एक ठिकाना है, वहीं चलते हैं। बल्कि आप चाहेंगे तो सबसे पहले भोग लगाने का मौका भी आपको ही मिलेगा।”

अराध्या को काटो तो खून नहीं। कहां तो उसने सोचा था कि अब बला टल जायेगी, और कहां अब दरोगा भी उनकी टीम में शामिल दिखाई दे रहा था।

चंदू की बात पर पांडे ने जोर का ठहाका लगाया फिर बोला, “नहीं अभी हम एक खास काम से गोरखपुर जा रहे हैं, इसलिए तुम्हारे साथ नहीं चल सकते, वरना मैडम जी को देखकर लार तो हमारी टपकने ही लगी है।”

“अरे तो आधा घंटा का वक्त निकाल लीजिए, पांचों भाई मिलकर ऐश करते हैं।”

“नहीं एक ईनामी बदमाश की खबर मिली है, उसी को दबोचने जा रहे हैं, बल्कि खतमें कर देंगे साले को, काहे कि बहुते खतरनाक आदमी है।”

“अगर ऐसा है तो हम आपके साथ चल लेते हैं।”

“जरूरत नहीं, लेकिन एक बात का ध्यान रखना।”

“हुक्म कीजिए।”

“लड़के की लाश भी अपने साथ ले जाओ और काम हो जाये तो मैडम जी को भी निबटा देना, जिंदा छोड़ दोगे तो मुसीबत आ सकती है, समझ गये?”

“आप ना भी कहते तो हम यही करते दरोगा जी।”

“ठीक है अब निकलो यहां से, हम भी जाते हैं।”

“कमीने, भड़वे - अराध्या गुर्राती हुई बोली - वर्दी पहनकर मुजरिमों का साथ दे रहा है तू, थू है तुझपर, बल्कि तू तो इनसे भी ज्यादा गिरा हुआ आदमी है।”

दरोगा ने जोर का ठहाका लगाया।

“अब चलते हैं दरोगा जी, नमस्कार।”

“जरा रुको।”

“कहिए।”

“हम चौकी से निकलते वक्त दूसरी कोई गन साथ लाना भूल गये, आगे इंतजाम करने में प्रॉब्लम आ सकती है, क्योंकि एनकांउटर हम अपनी सर्विस रिवाल्वर से तो नहीं कर सकते न? अगर तुम्हारे पास हो तो दे दो। चाहो तो अतीक भईया या कलंकी से परमिशन ले लो, लेकिन चाहिए हमें अभी, नहीं देना चाहते तो बेशक मना कर दो।” कहते हुए उसने अपनी सर्विस रिवाल्वर होलस्टर में रख ली।

“अरे गन की क्या कमी है दरोगा जी, कहिये तो दर्जन भर दिये देते हैं। और इसमें इजाजत लेने जैसी भी कोई बात नहीं है - कहकर उसने अपनी रिवाल्वर उसके हवाले कर दी फिर बोला - पांच गोलियां हैं, एक्सट्रा राउंड चाहिए तो हमारी गाड़ी में है चलकर ले लीजिए।”

“नहीं बहुत है - कहते हुए उसने रिवाल्वर का चैंबर चेक किया फिर पूछा - चलती तो ढंग की है न, माने ऐन वक्त पर धोखा तो नहीं देगी?”

“चलाकर चेक कर लीजिए सरकार, विदेशी माल है।”

सुनते के साथ ही दरोगा ने गोली चला दी जो सीधा चंदू के माथे में जा घुसी, बाकी के तीनों समझ ही नहीं पाये कि वहां हो क्या गया था, और समझने के बाद जब तक अपनी अंटी में खुंसी रिवाल्वर निकालकर दरोगा पर फायर करते, उसने एक एक कर के तीनों को गोली मार दी। फिर लड़की के पास पहुंचा जिसे देखकर यूं लग रहा था जैसे खड़े खड़े मर गयी हो।

अनुराग पांडे ने उसका कंधा पकड़कर जोर से झकझोरा तो वह एकदम से उससे लिपट गयी, लिपटकर फूट फूटकर रो पड़ी, बहुत देर तक रोती रही।

“शांत हो जाओ, जो होना था वह हो चुका है।”

“हमारे भाई को मार दिये कमीने।”

“जानता हूं, लाश देख चुका हूं।”

“उसका कोई कसूर नहीं था।”

“नहीं था, लेकिन तुम्हारे रोने धोने से वह उठकर नहीं बैठ जायेगा। इसलिए अपनी फिक्र करो, अपने परिवार की फिक्र करो। अतीक को पता लग गया कि उसके चार आदमियों की जान तुम्हारी वजह से गयी है, या उन्हें हमने शूट किया है तो तुम और हम दोनों सपरिवार तुम्हारे भाई के पास पहुंच जायेंगे।”

“आप दरोगा हैं।”

“हां बस दरोगा ही हूं, इसलिए कुछ नहीं कर सकता। कोई और भी नहीं कर सकता क्योंकि हमारे साहब लोग उसे सलाम ठोंकना अपने लिए फख्र की बात समझते हैं। मुख्यमंत्री तक उसकी सीधी पहुंच बताई जाती है। ऐसे आदमी का एक दरोगा चाहकर भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इसलिए खुद को शांत करो, क्योंकि हमें फौरन यहां से निकलना होगा।”

लड़की ने रोना बंद कर दिया, फिर पांडे से अलग होकर खड़ी हो गयी।

“कहां रहती हो?”

“बलरामपुर में।”

“घर में और कौन कौन हैं?”

“मां, बाऊजी और एक छोटी बहन।”

“ठीक है तो अब हम सीधा तुम्हारे घर चलेंगे। ये बताओ कि क्या अपने भाई की लाश पकड़कर मोटरसाईकिल पर बैठ सकती हो। क्योंकि उसे यहां छोड़ा तो तुम्हारा भेद खुलकर रहेगा। फिर अतीक जैसे लोगों को किसी सबूत की जरूरत थोड़े ही होती है, उन्हें शक होना भर काफी है, सबको मार गिरायेंगे, मतलब चार निर्दोष भी मारे जायें तो उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा।”

“बैठ जायेंगे सर।” वह व्यथित लहजे में बोली।

“बढ़िया अब चलो यहां से।” तत्पश्चात दरोगा ने उसे अपनी मोटरसाईकिल पर बैठाया और दोनों कुछ दूरी पर मौजूद बोलेरो के पास पहुंचे। तब सबसे पहले उसने अपनी बाईक को बाईं तरफ दिखाई दे रहे खेतों के बीच ले जाकर यूं खड़ा कर दिया कि अब सड़क पर खड़े होकर किसी को दिखाई नहीं देने वाली थी। उसके बाद बोलेरो में बैठकर दोनों फिर से वहां पहुंचे जहां चार लाशें पड़ी थीं। पांडे ने सभी को उठाकर गाड़ी के पिछले हिस्से में एक के ऊपर एक लाद दिया। इसलिए क्योंकि आगे जो कुछ वह करने जा रहा था, उसमें सड़क पर पड़ी लाशें उसके लिए प्रॉब्लम खड़ी कर सकती थीं।

उस काम से फारिग होकर वह बोलेरो को वापिस आकाश की लाश के पास लेकर गया, और वहां सड़क किनारे थोड़ा कच्चे में उतारकर खड़ा कर दिया। फिर अंदाजे से अपने और अराध्या के फिंगर प्रिंट्स साफ करने के बाद गेट भी लॉक कर दिये। आगे उसने आकाश की लाश को उठाकर जैसे तैसे उसकी बाईक पर टिकाया और अराध्या को इशारा किया तो पीछे बैठकर उसने दोनों हाथों से कसकर भाई की डेडबॉडी थाम ली। उसके बाद पांडे ने बाईक आगे बढ़ा दी।

“तुम्हें अपने मां बाप को समझाना होगा लड़की - रास्ते में वह थोड़ा उच्च लहजे में बोला - मतलब किसी को भी इस बात का पता नहीं लगना चाहिए कि आकाश पर हमला कहां हुआ था, किन परस्थितियों में हुआ था और किसने तुम्हारी मदद की थी।”

“हम समझा लेंगे सर।”

“मौत गोली लगने से हुई है इसलिए पुलिस में कंप्लेन करनी पड़ेगी, मगर उन्हें भी बस यही बताना कि लाश तुम्हारे घर से थोड़ी दूरी पर पाई गयी थी, उस जगह जहां ले जाकर हम अभी इसे छोड़ने वाले हैं।”

“कोशिश करेंगे सर।”

“कोशिश नहीं लड़की, हर हाल में करना है - फिर थोड़ी देर की चुप्पी के बाद बोला - रहने दो हम खुद चल लेते हैं क्योंकि और भी बहुत सी बातें समझानी हैं, जो पता नहीं हमसे समझने के बाद तुम अपने परिवार को समझा पाओगी या नहीं।”

“ये तो बहुत अच्छा रहेगा सर।”

तत्पश्चात दरोगा ध्यान से, सड़क के गड्ढे बचाते हुए बाईक चलाने लगा। बलरामपुर पहुंचने में उन्हें आधा घंटा लगा जिसके बाद बाहर सड़क किनारे आकाश की लाश डालने के बाद बाईक को वहीं छोड़कर दोनों पैदल चलते हुए अराध्या के घर पहुंचे।

दरवाजा उसकी मां ने खोला जो बेटी को खून से लथपथ देखकर खड़े खड़े बेहोश होकर गिर पड़ी। फिर पांडे ने लड़की को पानी लाने को कहा, तभी अराध्या का बाप और बहन भी वहां पहुंच गये।

“क्या हो गया दरोगा जी, एक्सीडेंट हुआ है क्या?”

“नाम क्या है आपका?”

“मयंक राजपूत।”

“क्या करते हैं?”

“सिविल अस्पताल में एमआरडी इंचार्ज हूं।”

“बात ये है मयंक जी कि मामला आपकी सोच से भी कहीं ज्यादा भयानक है। कुछ बुरा घटित हुआ है आपके बच्चों के साथ, लेकिन आगे जो उससे ज्यादा बुरा हो सकता है, उसे रोकना है आपको।”

तभी अराध्या पानी ले आई और मां के मुंह पर छींटे मारने लगी।

“आप तो डरा रहे हैं सर।”

“हां क्योंकि मैं खुद भी डरा हुआ हूं, इसलिए सबसे पहले वादा कीजिए कि मेरी बात सुनकर रोना धोना या चींखना चिल्लाना नहीं शुरू कर देंगे, अपनी छोटी बेटी को भी समझा दीजिए बाकी अराध्या को तो पहले से सब पता है।”

“सुन लिया मुन्नी?”

“हां सुन लिया।”

तभी अराध्या की मां भी उठ बैठी और तरह तरह के सवाल करने लगी।

“इन्हें भी शांत कराइये वरना आपकी पूरी फेमिली खत्म हो जायेगी।”

“ऐसा क्या हो गया है?”

“सब बतायेंगे, बताने के लिए ही आये हैं, लेकिन आप लोगों के लिए खुद को काबू में रखना बहुत जरूरी है, वरना आगे जो होगा वह किसी के लिए भी अच्छा नहीं होगा।”

जवाब में मयंक राजपूत ने बीवी और बेटी को सख्त हिदायत दे दी कि दरोगा जी की बात सुनकर रोना नहीं है, चिल्लाना नहीं है और कोई सवाल भी नहीं करना है।

उसके बाद पांडे ने पूरी घटना संक्षेप में उन्हें कह सुनाई। सुनकर चिल्लाया तो कोई नहीं, मगर आंखों से बहते आंसूओं को भला कैसे काबू में किया जा सकता था। लिहाजा सब रोने लगे, मगर अपने मुंह को हथेलियों से दबाकर ताकि आवाज घर से बाहर न जाने पाये।

थोड़ी देर बाद जब सब रो धोकर शांत हो गये तो दरोगा अनुराग पांडे अराध्या के पिता मयंक राजपूत की तरफ देखता हुआ बोला, “अतीक अंसारी से पूरा जिला वाकिफ है, इसलिए आप भी नावाकिफ नहीं हो सकते, सही कहा न?”

“जी जानते हैं।”

“फिर तो इस बात का भी अंदाजा लगा सकते हैं कि अपने चार आदमियों के मौत की वजह जानने के बाद वह क्या करेगा, मतलब कुछ भी सलामत नहीं बचेगा, ना आप न मैं और ना ही हमारा परिवार।”

“मैं जानता हूं, एकदम राक्षस है वह कमीना।”

“लेकिन हमें उस राक्षस का आहार नहीं बनना है, और वैसा तभी होगा जब आप लोग मेरी बात मानेंगे, मैं जो कहूंगा उसे कर के दिखायेंगे, समझ गये?”

“जी हां, आप बताइये क्या करना है?”

“आकाश और अराध्या को वापिस लौटने में देर हो रही थी, तो आप लोगों ने इन्हें फोन क्यों नहीं किया?”

“कई बार किये थे दरोगा जी, लेकिन दोनों में से किसी ने फोन नहीं उठाया।”

“बाईक पर थे न - अराध्या बोली - इसलिए घंटी बजने का पता नहीं लगा होगा।”

“क्या आप लोगों के अलावा किसी और को भी पता है कि आकाश और अराध्या दोनों एक साथ गोरखपुर गये थे?”

“बस मेरी मौसी जानती है जो गोरखपुर में रहती है।”

“ओह।”

“हम उसे कह देंगे कि किसी को उस बारे में नहीं बताये।”

“नहीं, इतनी बड़ी बात छिप नहीं सकती, फिर किसी पड़ोसी ने भी दोनों को सुबह साथ जाते देखा हो सकता है - कहकर उसने सवाल किया - आपने आकाश के नंबर पर आखिरी कॉल कितने बजे की थी?”

जवाब में मयंक राजपूत ने अपना मोबाईल चेक किया फिर बोला, “दस बजे।”

“और उससे पहले?”

“साढ़े नौ बजे।”

“दस बजे के बाद कोई कॉल नहीं की?”

“अराध्या को की, अभी आपके आने से पांच मिनट पहले भी की थी।”

“ठीक है तो अब अराध्या को भूल जाइये। मतलब सुबह आपका बेटा इसे पेपर दिलाने के लिए गोरखपुर लेकर गया था, जहां से दोनों अपनी मौसी के घर चले गये। वहां से छह बजे बलरामपुर के लिए निकले और साढ़े नौ बजे यहां पहुंच भी गये थे, समझ गये?”

“जी हां।”

“अराध्या?”

“जी?”

“बाईक खराब नहीं हुई थी, मतलब उसका जिक्र तक नहीं करना है। फिर बड़ी आसानी से सबको ये बात हजम हो जायेगी कि तुम दोनों साढ़े नौ बजे तक घर वापिस लौट आये थे, समझ गयीं?”

“जी समझ गयी।”

“घर लौटने के बाद आकाश थोड़ी देर में आने की कहकर उल्टे पांव कहीं चला गया था, मतलब घर में वह मिनट भर के लिए भी नहीं रुका था। मगर जब दस बजे भी वह वापिस नहीं आया तो आपको चिंता हुई और आपने उसे फोन किया, जिसका जवाब उसने नहीं दिया। आगे आपने एक घंटा और वेट किया फिर बेटे को खोजने के लिए निकल गये। सड़क पर मैंने कई दुकाने देखी थीं। आप कहेंगे कि वह अक्सर रात को अपने दोस्तों के साथ वहां वक्त बिताया करता था। इसलिए आपने सबसे पहले वहीं चेक करने का फैसला किया। मगर आकाश वहां नहीं मिला तो आप यूं ही थोड़ा आगे बढ़ते चले गये, जहां सड़क किनारे पड़ी उसकी लाश आपको दिखाई दे गयी, जिसके बाद आपने पुलिस को फोन कर दिया, जो कि अभी मेरे जाने के बाद आप वहां पहुंचकर करने वाले हैं। फिर दूसरा फोन आप अपने घर में करेंगे, उसके बाद ही बाकी का परिवार वहां पहुंचेगा, समझ गये?”

“जी हां।”

“इसके अलावा पूरे मामले में आपको किसी भी प्रकार की कोई जानकारी नहीं है। इस बयान पर टिके रहेंगे तो आपका परिवार बच जायेगा, मैं और मेरा परिवार भी सही सलामत रहेंगे।”

“आप हमारी मदद क्यों कर रहे हैं?”

“क्योंकि मैं इंसान हूं।” कहकर वह बड़े ही भारी मन के साथ उठा और बाहर की तरफ बढ़ चला। अराध्या उसे छोड़ने गेट तक पहुंची फिर धीरे से बोली, “हम आपका एहसान कभी नहीं भूलेंगे दरोगा जी।”

“और मुझे जीवन भर इस बात का अफसोस रहेगा लड़की कि मैं वहां थोड़ी देर पहले क्यों नहीं पहुंच गया। चाय क्या इतनी जरूरी थी जिसे पीने के लिए मैं रास्ते में एक दुकान पर रुक गया था।” कहकर वह पैदल आगे बढ़ गया।

इतनी रात को कोई सवारी मिलने की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी, मगर वह दरोगा था इसलिए सड़क से गुजरते किसी ट्रक में सवार होकर भी घटनास्थल तक पहुंच सकता था।

वैसे भी वह इलाका उसकी चौकी के अंडर में आता था इसलिए पूरे मामले को अपने मन मुताबिक हैंडल करने में कोई समस्या उसके आड़े नहीं आने वाली थी। हां मन ही मन भगवान से इतनी प्रार्थना जरूर कर रहा था कि उसके वहां पहुंचने से पहले कोई पुलिस कंट्रोल रूम को खबर न कर बैठे।

पुलिस क्रिमिनल गठबंधन

तमसा नदी के तट पर स्थित आजमगढ़ जिला उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह प्रदेश के पूर्वी भाग में गंगा और घाघरा नदी के मध्य स्थित है। मऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, जौनपुर, सुल्तानपुर और अम्बेडकर नगर के साथ सीमायें साझा करता यह जिला यहां घटित होने वाले अपराधों और बड़े बड़े अपराधियों के कारण हमेशा से विवादों के घेरे में रहा है।

आजमगढ़ की स्थापना विक्रमजीत सिंह गौतम के पुत्र आजम शाह ने शाहजहां के शासनकाल के दौरान 1665 ई. में की थी। इसी कारण इस जगह को आजमगढ़ के नाम से जाना जाता है। यहां आठ तहसीलें, बाईस ब्लॉक, दस विधानसभा, दो लोकसभा सीट, तीन नगरपालिका और 10 नगर पंचायत हैं।

कहानी इसी आजमगढ़ की है।

वैसे तो इस जिले में एक से बढ़कर एक अपराधी हुए हैं, लेकिन अभी जिन चार लोगों की बात हम करने जा रहे हैं वह हैं अतीक अंसारी, अमरजीत त्रिपाठी, अनल सिंह और चंगेज खान। चारों दुर्दांतता की हदें लांघ जाने वाले ऐसे क्रिमिनल हैं जिनके लिए देश का कानून कोई मायने नहीं रखता।

एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं, तो एक जिले में चार बड़े अपराधियों के बीच अमन चैन का माहौल कैसे कायम हो सकता है। लिहाजा आये दिन चारों गुटों के बीच भयंकर बवेले हुआ करते हैं। कभी अंसारी गैंग ने त्रिपाठी के चार आदमी मार गिराये तो कभी अनल सिंह ने चंगेज के छह मार दिये। मतलब गैंगवार जारी थी, खून खराबा बेहिसाब चला आ रहा था। जिसकी अहम वजह ये थी कि चारों महंत जिले पर अपना एकछत्र अधिकार कायम करना चाहते थे।

हथियार, ड्रग्स, अतिक्रमण, किडनैपिंग, वसूली और डकैती सब धड़ल्ले के साथ चल रहा था, और जिले में घटित होने वाला कोई एक अपराध भी ऐसा नहीं था जिसमें इस चौकड़ी का हाथ न हो। मगर सबसे खास बात ये थी कि सरकार चारों को एक साथ बढ़ावा दे रही थी। कारण कि वह उनका ट्रम्प कार्ड थे, ऐसे कार्ड जो इलेक्शन की रूप रेखा बदल देने का माद्दा रखते थे।

देखते ही देखते इनमें से एक अनल सिंह को राजनीति में आना सूझा। उसने इलैक्शन लड़ा और जीतकर एमएलए बन गया। मतलब करेला अब नीम चढ़ चुका था। उस वक्त सबको यही लगा कि अब पूरे आजमगढ़ पर उसका साम्राज्य कायम हो जायेगा, मगर वैसा हो नहीं पाया, जिसकी अहम वजह बना अतीक अंसारी, जो पहले से ही बाकी तीनों पर भारी था और आगे भी भारी ही रहा।

वक्त के साथ अतीक अंसारी का रुतबा बढ़ता चला गया और एक समय वह भी आया जब उसने खुलेआम ऐलान कर दिया कि आजमगढ़ का बाप एक ही था, और आगे भी एक ही रहने वाला था। एमएलए बन जाने के कारण अनल सिंह पर उसका दबाव थोड़ा कम हो गया था, मगर अमरजीत त्रिपाठी और चंगेज खान पर तो ऐसी दहशत कायम हुई कि किसी एक जगह पर टिक कर बैठना छोड़ दिया और खानाबदोशों जैसी जिंदगी गुजारने लगे। मगर धंधा फिर भी कर रहे थे, और एक दूसरे को गाहे बगाहे चोट पहुंचाने में भी कामयाब हो ही जाते थे। चारों की बस एक ही ख्वाहिश थी कि बाकी तीनों या तो उसके रास्ते से हट जायें या फिर उसके अंडर में काम करना कबूल कर लें, जो कि किसी भी हाल में संभव नहीं था इसलिए जंग जारी थी।

करीब दस साल पहले जिले के नये एसपी के रूप में अनंत सिंह ने अपना पदभार ग्रहण किया, और आजमगढ़ को अपराधमुक्त कराने की मुहिम छेड़ दी, मगर जल्दी ही उसे एहसास हो गया कि वह काम इतना आसान नहीं था।

अनगिनत अपराध चारों के खाते में दर्ज थे मगर किसी एक में भी पुलिस उन्हें सजा नहीं दिलवा सकती थी क्योंकि एविडेंस नहीं थे, गवाह नहीं थे, बीच में एक दो लोगों को उसने खोजकर गवाही के लिए तैयार कर भी लिया तो वैसा गवाह कभी कोर्ट नहीं पहुंच पाया। बावजूद इसके अपराध और अपराधियों पर बहुत हद तक अंकुश लगाने में वह कामयाब रहा। मतलब अब पहले जैसी खुल्लम खुल्ला गुंडागर्दी बंद हो चुकी थी। बदमाश जो कुछ करते रात के अंधेरे में लुक छिपकर किया करते थे और पुलिस से यथासंभव दूरी बनाकर रहना पसंद करते थे।

एसपी अनंत सिंह ने दो महीनों के भीतर बीस लोगों को जेल पहुंचाया और तेरह अपराधी मार गिराये, लेकिन वह सब ऐसे अपराधी थे जो अतीक, त्रिपाठी, अनल सिंह और चंगेज खान के सामने किसी गिनती में नहीं आते थे, मगर उसने कोशिशें नहीं छोड़ी।

शायद कामयाब भी हो जाता, मगर उन्हीं दिनों इलैक्शन की घोषणा हो गयी और सरकार की तरफ से उसपर प्रेशर पड़ने लगा, क्योंकि जीतने के लिए उन चारों का खुले में आना जरूरी था जो कि अनंत सिंह के कारण नहीं हो पा रहा था। लिहाजा गर्वनमेंट की तरफ से एसपी को स्पष्ट चेतावनी दे दी गयी कि वह अपनी गुंडों जैसी फितरत पर अंकुश लगाये वरना ट्रांसफर के लिए तैयार रहे।

उसने ट्रांसफर कबूल कर लिया।

वर्ष 2013 के दो महीने ऐसे रहे जब जिले का एसपी ऑफिस खाली पड़ा रहा, उसके बाद जयवर्धन शुक्ला को आजमगढ़ का नया एसपी नियुक्त किया गया और चार्ज देने से पहले ही उसे उसकी हदें अच्छी तरह से समझा दी गयीं। वैसे भी अनंत सिंह के मुकाबले शुक्ला ज्यादा समझदार था। अपनी कई सालों की नौकरी में उसने बस इतना ही सीखा था कि बदलाव की कोशिश मत करो, सुधार पर ध्यान दो, और अपने किये को कई गुना साबित कर के दिखाओ। यही वजह रही कि जिले का चार्ज लेते ही उसने एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और बड़े ही जोर शोर से दावा कर दिया कि आजमगढ़ जिले से अपराध का नामोनिशान मिटाकर रख देगा।

अपने कहे को साबित करने के लिए उसने महीने भर खूब धड़ पकड़ की, दस बदमाशों का एनकाउंटर कर दिया, तेरह लोगों को जेल पहुंचा दिया, मगर वह सब ऐसे बदमाश थे जो किसी गिनती में नहीं आते थे। ये अलग बात थी कि किसी को अंसारी गैंग का बता दिया तो किसी को त्रिपाठी का आदमी साबित कर दिखाया, जबकि सच ये था कि चारों दबंगों में से किसी एक के खिलाफ भी उंगली उठाने की उसने कोई कोशिश नहीं की। उल्टा निरंतर मेल मुलाकात करके उनका विश्वास जीतने की कोशिश करता रहा और आखिरकार कामयाब भी हो गया। मतलब अब चारों ही बड़े महंत जयवर्धन शुक्ला पर पूरा पूरा भरोसा करने लगे थे।

तब उसने एसपी ऑफिस में एक मीटिंग रखी, और चारों को निमंत्रण भेज दिया, इस बात का भरोसा दिलाते हुए कि वहां पहुंचे किसी शख्स को ना तो गिरफ्तार किया जायेगा, ना ही उन्हें एक दूसरे पर हमला करने का कोई मौका मुहैया कराया जायेगा। उन्हें क्योंकि एसपी के कहे पर यकीन था इसलिए सहर्ष हाजिरी भरने को तैयार हो गये।

मीटिंग की तारीख थी 16 नवंबर 2013। जिले के चारों कुख्यात अपराधी सुबह दस बजे एसपी ऑफिस पहुंच गये। जहां मीटिंग शुरू करने से पहले शुक्ला ने उनके साथ जलपान किया, फिर कुछ देर इधर उधर की बातें करने के बाद मुद्दे पर आता हुआ बोला, “आप लोग क्या करते हैं, कैसे करते हैं, उसपर हम चर्चा नहीं करेंगे, क्योंकि आपके बारे में ऐसा कुछ नहीं है जिसकी जानकारी पुलिस को पहले से न हो। चर्चा इस बात पर होगी कि आगे आप क्या करेंगे, कहां करेंगे और आप चारों की लिमिटेशन क्या होंगी। और उस बात का फैसला सिर्फ और सिर्फ मैं करूंगा।”

“क्या कह रहे हैं एसपी साहब? - चंगेज खान हंसता हुआ बोला - कहीं आप हमारा धंधा टेकओवर करने की योजना तो नहीं बना रहें? वैसे अगर बना भी रहे हैं तो कम से कम मुझे उस बात से कोई ऐतराज नहीं है। समझ लीजिए मैंने आपको अभी से अपना बॉस तस्लीम कर लिया।”

“शुक्रिया लेकिन ऐसा कुछ नहीं है - शुक्ला मुस्कराता हुआ बोला - मुझे आप लोगों के धंधे में कोई दिलचस्पी नहीं है क्योंकि मैं अपनी पुलिस की नौकरी से खुश हूं। मगर आप सभी के साथ पिछले चार-पांच महीनों में बहुत अच्छे संबंध बन गये हैं, इसलिए मैं नहीं चाहता कि आप में से कोई एक या सभी पुलिस की गोली का शिकार बन जायें, या मजबूरन पुलिस को आपके खिलाफ जंग का ऐलान करना पड़े, जो कि आप लोगों ने कुत्ते बिल्लियों की तरह आपस में झगड़ना बंद नहीं किया तो हमें करना ही पड़ेगा। किसी भुलावे में भी रहने की जरूरत नहीं है, क्योंकि सच यही है कि आप चाहकर भी कानून से पार नहीं पा सकते, कोई नहीं पा सकता। मतलब पुलिस जब चाहे आपको नेस्तनाबूद कर सकती है, मगर मैं वैसा वक्त नहीं आने देना चाहता।”

“यानि आपको हमारे गैरकानूनी धंधों से कोई ऐतराज नहीं है?” अनल सिंह ने पूछा।

“है क्यों नहीं, वह तो हमेशा रहेगा। क्योंकि मैं एक पुलिस ऑफिसर हूं इसलिए अपराध को शह नहीं दे सकता, आपसे ये नहीं कह सकता कि जो मन आये करिये हम आपके साथ हैं। नहीं, ऐसा कुछ ना तो पहले हुआ था ना ही आगे होगा।”

“फिर इस मीटिंग की वजह?”

“जिले में शांति व्यवस्था स्थापित करना।”

“कैसे करेंगे?” अतीक अंसारी ने पूछा।

“बताता हूं उसी लिए तो आप सब आज यहां हैं। आगे मैं जो कुछ भी कहने जा रहा हूं उसे ध्यान से सुनिये, ये सोचकर सुनिये कि मैं आपका शुभचिंतक हूं, इसलिए जो कह रहा हूं आपकी भलाई के लिए कह रहा हूं।”

“सुनने के अलावा हम कर भी क्या रहे हैं एसपी साहब, आप आगे बताइये।” अमरजीत त्रिपाठी बोला।

“हम चाहते हैं कि आप लोगों के बीच की आपसी जंग हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जाये।”

“ई कैसे पॉसिबल है एसपी साहब - चंगेज खान बोला - हां अतीक, त्रिपाठी और अनल सिंह धंधे से किनारा करने के लिए तैयार हो जायें तो और बात है।”

“हमारे दामाद लगे हो तुम? - अनल सिंह गुर्राता हुआ बोला - या ये सोचते हो कि तुम्हारे अंदर हमसे ज्यादा जिगरा है। ससुर के जब चाहें तुम्हें चींटी की तरह मसल सकते हैं हम।”

“डॉयलाग अच्छा था लेकिन हम डरे नहीं सिंह साहब, काहे कि गीदड़ भमकियों का हमपर कोई असर नहीं होता। चाहें तो दो ठो और बोल लीजिए।”

“तुम्हारी कतरनी भी बस कुछ दिनों की ही मेहमान है चंगेज खान।”

जवाब में उसने जोर का ठहाका लगा दिया।

“शांत हो जाइये प्लीज।” एसपी बोला।

सुनकर दोनों एक दूसरे पर निगाहों से भाले बर्छियां बरसाते हुए खामोश हो गये।

“बस यही वह इकलौती समस्या है जिसे हम जड़ समेत उखाड़ फेंकना चाहते हैं। आज के बाद आप लोग आपस में नहीं लड़ेंगे। एक दूसरे के आदमियों पर वार नहीं करेंगे। धंधे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी नहीं करेंगे। फिर भी करेंगे तो यकीन जानिये आप सबका सर्वनाश तय है, क्योंकि हमें ऊपर से ऑर्डर हैं।”

“किस बात के ऑर्डर?” अंसारी ने पूछा।

“डीआईजी साहब चाहते हैं कि मैं या तो आप चारों को काबू में रखूं या फिर आप लोगों का नामोनिशान मिटा दूं। अभी मैं पहले रास्ते पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा हूं। मेरी बात आप लोगों की समझ में आ जायेगी तो दूसरा रास्ता अपनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।”

“मतलब आपकी बात पर हामी भरे बिना हम यहां से नहीं जा सकते - अमरजीत त्रिपाठी बोला - अच्छा प्लॉनिंग किये हैं एसपी साहब। पुच पुच कर के, अपने विश्वास में लेकर हमें इहां बुला लिये और अब धमका रहे हैं।”

“मैं ऐसा कुछ नहीं कर रहा, और जैसा कि फोन पर मैंने वादा किया था, आप मेरी बात मानें या न मानें आज की तारीख में हम आपके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करेंगे। मतलब जिस तरह इज्जत के साथ आपको बुलाये हैं, उसी तरह बाईज्जत आपको वापिस भी जाने देंगे।”

“आप अपनी बात पूरी कीजिए फिर सोचते हैं हम।” अनल सिंह बोला।

“शुक्रिया, आप लोगों की आपसी रंजिश खत्म करने के लिए हम एक रास्ता निकाले हैं, और वह रास्ता है आजमगढ़ का बंटवारा। मतलब हम पूरे जिले को चार टुकड़ों में बांटकर एक एक टुकड़ा आपके हवाले कर देंगे। अब कहिये कि आपको हमारी बात मंजूर है।”

“अरे पहले कुछ समझ में तो आये एसपी साहब - अतीक अंसारी बोला - आपकी बात तो हमारी खोपड़िया में घुसी ही नहीं, फिर मंजूरी कैसे दे सकते हैं।”

“सीधी सी तो बात है अतीक अंसारी। आजमगढ़ को ईस्ट, वेस्ट, नॉर्थ और साउथ जोन में बांटने जा रहे हैं हम। यानि आगे से आप चारों की हदें मुकर्रर होंगी, और आप में से कोई भी उस सीमा रेखा का उलंघन नहीं करेगा, ना ही एक दूसरे का धंधा बिगाड़ने की कोशिश करेगा। फिर शांति व्यवस्था अपने आप स्थापित हो जायेगी, काहे कि जिले में नब्बे फीसदी बवेले तो आप चारों के आपसी टकराव के कारण ही होते हैं।”

कमरे में थोड़ी देर के लिए सन्नाटा पसर गया।

“यकीन जानिये ऐसा करना बहुत जरूरी है, आप तैयार नहीं होंगे तो आगे जो होगा वह आप सबपर बहुत भारी गुजरने वाला है, इसलिए हमारी बात पर दिल से नहीं दिमाग से विचार कीजिए।”

सन्नाटा!

“हमें मंजूर है।” सबसे पहले त्रिपाठी बोला।

“हमें भी।” चंगेज खान बोला।

“विधायक जी?” एसपी ने पूछा।

“सोचना पड़ेगा एसपी साहब, ऐसे बड़े फैसले तुरत फुरत कैसे लिए जा सकते हैं?”

“वक्त नहीं है सर, फिर ये भी तो देखिये कि दो लोग पहले ही हामी भर चुके हैं, इसलिए आपका योगदान भी बहुते जरूरी है, वरना बात कैसे बनेगी?”

“त्रिपाठी और चंगेज इसलिए तुरंत हां कर दिये, क्योंकि कमजोर हैं, बुजदिल हैं, हमसे और अतीक से फटती है इनकी, यानि हामी भर कर एक तरह से अपने ऊपर उपकार ही कर रहे हैं।”

“जुबान संभालकर बात करो अनल सिंह - चंगेज खान गरजा - हम एसपी साहब की बात रखते हुए हां कह दिये तो इसका मतलब ये नहीं है कि तुमसे डरते हैं, आखिर तुम हो क्या चीज?”

“फुचकी हो अनल सिंह - त्रिपाठी हंसता हुआ बोला - इधर मुंह में रखा नहीं कि उधर सब खत्म। इसलिए ज्यादा फड़फड़ाने की कोशिश मत करो, एमएलए बन गये तो कोई तमगा हासिल नहीं हो गया तुम्हें।”

“बहुत बोल रहे हो त्रिपाठी, मत भूलो कि सरकार हमारी पार्टी की है।”

“मुझे भी मंजूर है।” अब तक खामोश बैठा अतीक अंसारी अचानक बोल पड़ा।

अनल सिंह ने हैरानी से उसकी तरफ देखा क्योंकि उसकी हामी सुनने की उसे जरा भी उम्मीद नहीं थी, लेकिन अब हां कहना उसकी मजबूरी बन चुकी थी।

“ठीक है - वह गहरी सांस लेकर बोला - जब तीन लोग मंजूरी दे ही दिये हैं तो हम कौन होते हैं मीन मेख निकालने वाले, आप आगे बताइये, हमारे धंधे का बंटवारा कैसे करने वाले हैं आप, क्योंकि वह तो चारों के एक जैसे ही हैं। नहीं होते तो टकराव की नौबते नहीं आती।”

“नहीं धंधे का बंटवारा नहीं कर रहे हम, बस आप लोगों की हदें मुकर्रर कर रहे हैं। आजमगढ़ ईस्ट अतीक अंसारी के कब्जे में, वेस्ट आपके, नॉर्थ त्रिपाठी जी के और साउथ जोन चंगेज खान के आधीन होगा। मतलब वही इलाके आपके पास होंगे, जो आपकी गढ़ हैं, जहां आप लोग पहले से हुकूमत करते आ रहे हैं।”

“ठीक है, समझ लीजिए कि हम यहां बैठे बाकी तीन महानुभावों को अभी और इसी वक्त अपने दुश्मनों की लिस्ट से निकाले दे रहे हैं।” अनल सिंह बोला।

“गुड, अब एक आखिरी चेतावनी और सुन लीजिए उसके बाद आप सभी यहां से जा सकते हैं।”

“क्या?”

“ये मीटिंग डीआईजी साहब के संज्ञान में है, और उन्हें इस समझौते के लिए हमने कैसे तैयार किया है, वह हम ही बेहतर जानते हैं। अब चेतावनी ये है कि जिसने भी अपनी सीमा रेखा का उल्लंघन किया, आजमगढ़ में बस उसका नाम ही रह जायेगा। और बुरा मानने की भी जरूरत नहीं है क्योंकि हमारी अपनी गर्दन भी इस फैसले पर ही टंगी हुई है। आगे आप चारों में से किसी ने भी एक दूसरे से टकराने की कोशिश की, तो आपके साथ साथ हमारा भी बुरा होना तय है। इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि हमारे विश्वास की आप सब लाज रखेंगे और आजमगढ़ से गैंगवार जैसा शब्द हमेशा हमेशा के लिए विलुप्त हो जायेगा।”

जवाब में चारों ने सहमति में गर्दन भर हिला दी।

मीटिंग के चार महीने बाद

एक बोलेरो में सवार कलंकी शाम छह बजे के करीब निजामाबाद पहुंचा। उसके साथ रमेश और जयकांत नाम के दो लड़के थे, जो गाड़ी रुकते ही नीचे उतरे और सामने दिखाई दे रहे एक झोपड़ेनुमा मकान में दाखिल हो गये।

कलंकी इंतजार करने लगा।

मिनट भर बाद उसके आदमी ड्राईवर सुखदेव को दायें बायें से थामें बाहर निकले, तो उनके पीछे हाथ जोड़े गिड़गिड़ाते हुए दो महिलायें और तीन बच्चे भी गाड़ी तक पहुंच गये और कलंकी से सुखदेव को छोड़ देने की गुजारिश करने लगे।

“अरे काहे परेशान हो रहे हैं आप लोग, सुखदेव को अतीक भईया बुलाये हैं, इसलिए हम लिवाने आ गये। शाम तक वापिस आ जायेगा, इसलिए आराम से घर में बैठिये।” कहकर उसने अपने आदमियों को इशारा किया तो दोनों ने जबरन ड्राईवर को गाड़ी में धकेला और खुद भी उसमें सवार हो गये।

कलंकी ने तुरंत बोलेरो आगे बढ़ा दी।

उनके पीछे दोनों औरतें छाती पीट पीटकर रोने लगीं, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता था कि सुखदेव अब वापिस नहीं लौटने वाला था। क्यों नहीं लौटने वाला था वह बात भी उन्हें बहुत अच्छे से पता थी।

निजामाबाद से मेहनगर की दूरी करीब 25 किलोमीटर थी, जहां से सुखदेव की ही तरह उन लोगों ने रतन नाम के एक आदमी को उठाया, जो उस ट्रक पर खलासी था जिसे सुखदेव चलाया करता था। तत्पश्चात सब तमसा नदी की तरफ रवाना हो गये, जो वहां से करीब करीब पचास किलोमीटर दूर थी।

सवा घंटे के सफर के बाद जब वे लोग नदी तक पहुंचे तो अंधेरा घिर चुका था। वहां दोनों कैदियों को गाड़ी से नीचे उतारा गया फिर तीनों उन्हें जबरन अपने साथ चलाते हुए घाट की तरफ बढ़ चले।

“माफ कर दीजिए भईया।” खुद को छुड़ाते हुए सुखदेव ने झुककर कलंकी के पैर पकड़ लिये।

“किसी बात की माफी मांग रहे हो, कौनो गलती किये हो क्या?”

“जी भईया, बड़ी गलती किये, हमें ट्रक छोड़कर नहीं भागना चाहिए था। मगर पुलिस ने हर तरफ से घेर लिया था, हम वहां रुके भी रहते तो माल नहीं बचा सकते थे, ऊपर से डर भी गये इसलिए भाग निकले, माफ कर दीजिए, दोबारा गलती नहीं होगी।”

कलंकी ने रतन की तरफ देखा, “तुम भी कुछ कहना चाहते हो?”

“हमारी तो कोई गलती ही नहीं है भईया, हम ठहरे खलासी आदमी, ड्राईवर बोले भागो तो हम उहां से इनके पीछे पीछे भाग लिए, रुककर भी क्या कर लेते?”

“बात तो सही कह रहे हो यार, मतलब अतीक भईया खामख्वाह तुमपर खफा हो रहे हैं, अच्छा तुम्हें गोली मारने के बाद हम जाकर उन्हें समझा देंगे कि तुम दोनों की कोई गलती नहीं थी।”

“रहम करो कलंकी भईया।”

“नहीं कर सकते, काहे कि भईया का हुक्म नहीं टाल सकते।” कहकर उसने सुखदेव को इतनी जोर का धक्का दिया कि वह दो तीन फीट दूर जा गिरा, फिर कमर में खुंसी रिवाल्वर निकालकर उसने दोनों को शूट कर दिया।

“लाशों को नदी फेंककर आओ।”

सुनकर दोनों आदमियों ने एक एक लाश अपने कंधे पर उठा ली और आगे बढ़ गये। फिर कमर तक पानी में उतरने के बाद उन्हें नीचे फेंका और नदी से बाहर निकल आये।

दस मिनट बाद तीनों बोलेरो में सवार शहर की तरफ उड़े जा रहे थे। मगर उनका काम पूरा नहीं हुआ था, क्योंकि एक शिकार अभी बाकी था। ऐसा शिकार जो पूरे फसाद की जड़ बना था।

वह सूर्यकांत यादव नाम का पुलिस का एक मुखबिर था, जिसकी खबर उन्हें बस इत्तेफाक से लग गयी, इसलिए लग गयी क्योंकि उसे दरोगा अनुराग पांडे से बात करते एक आदमी ने देख लिया था। आगे ईनाम के लालच में उसने यादव की खबर कलंकी को दे दी थी, जिसके बाद वह सारा माजरा पलक झपकते ही समझ गया।

ड्राईवर और खलासी की तरह यादव भी उन्हें घर पर ही मिल गया। मगर उसे पकड़ना पहले जैसा आसान काम साबित नहीं हुआ। कलंकी पर निगाह पड़ते ही सूर्यकांत ने जोर से उसे धक्का दिया और वहां से भाग खड़ा हुआ।

कलंकी उसके पीछे दौड़ा और जोर से चिल्लाया, “रुक जा मादर... नहीं तो पिछवाड़े में गोली मार देंगे हम।”

मगर यादव नहीं रुका, क्योंकि वह जानता था कि अंत पंत उसका अंजाम वही होने वाला था, इसलिए बचने की कोई कोशिश उठा नहीं रखना चाहता था।

जबकि कलंकी उससे सवाल जवाब करना चाहता था इसलिए गोली मारने की बजाये उसे जिंदा पकड़ने की कोशिश में उसके पीछे दौड़ता चला गया। देखते ही देखते यादव एक घर में दाखिल हो गया। कलंकी उसके पीछे घुसा। यादव छत पर पहुंचा और छलांग लगाकर करीब के दूसरे मकान पर, फिर तीसरे पर उसके बाद चौथे पर...

कलंकी बदस्तूर उसके पीछे लगा रहा।

आखिरकार एक वक्त वह भी आया जब छलांग लगाने के लिए नजदीक में कोई छत नहीं थी। यादव ने व्याकुल भाव से अपने अगल-बगल देखा। बचने का कोई रास्ता नहीं था, इसलिए वह बाउंड्री से लटक कर नीचे कूद गया।

मगर कलंकी उस खेल में यादव से हजार गुणा माहिर था। इसलिए छत से नीचे कूदने में एक पल को भी नहीं हिचकिचाया। और इत्तेफाक ऐसा हुआ कि वह सीधा नीचे पड़े यादव के ऊपर जा गिरा।

वह जोर से चींखा, उसकी रही सही ताकत भी खत्म हो गयी। अधमरा तो वह छत से कूदकर ही हो गया था, मगर कलंकी के अपने ऊपर गिरने की वजह से तो एकदम निढाल ही हो गया, अलबत्ता सांसे अभी चल रही थीं।

“काहे फड़फड़ा रहे हो यादव, तुम क्या हमसे बच कर निकल जाओगे?”

“ह...हम कुछ नहीं किये हैं भईया।” वह कराहता हुआ बोला।

“नहीं किये तो भाग काहे रहे थे?”

“आपको देख के डर गये थे।”

“अच्छा किये मौत सामने हो तो डरने में ही भलाई होती है, अब चलो इहां से।” कहकर उसने यादव का दाहिना हाथ थामा और उसे घसीटता हुआ गली के बाहर ले गया। फिर अपने आदमियों को फोन कर के गाड़ी वहां बुलाई और यादव को लेकर तीनों वहां से निकल गये।

रामपुर डिगिया में अतीक ने एक कट्टा फैक्ट्री लगा रखी थी। तीनों यादव को लेकर वहां पहुंचे। अगले ही पल उसे एक कुर्सी के साथ बांध दिया गया, फिर कलंकी ने पूछताछ करनी शुरू कर दी।

“हम बस एक सवाल करेंगे तुमसे मादर... जवाब सही दे दिये तो तुम्हारे बाल बच्चे जिंदा बच जायेंगे, क्योंकि तुम्हारा मरना तो तय है। इसलिए सोच समझकर मुंह खोलना।”

“क...कैसा सवाल भईया?”

“हमारे ट्रक की इंफॉर्मेशन तुम्हें कहां से मिली थी?”

“कौन सा ट्रक भईया?”

जवाब में कलंकी ने अपनी जेब से उस्तरा निकाला और बिना किसी चेतावनी के एक गहरा कट उसके दायें बाजू पर मार दिया। इतने अप्रत्याशित तरीके से कि यादव को फौरन समझ में ही नहीं आया कि उसने क्या किया था, मगर जब खून बहता देखा तो जोर जोर से चिल्लाने लगा।

“किसने बताया था सूर्यकांत?”

“हम उसका नाम नहीं जानते भईया, और हमें तो ये भी नहीं मालूम था कि ट्रक आपका है, जानते होते तो इतनी हिम्मत नहीं कर पाते, इसलिए हमें माफ कर दीजिए।”

“भोस...के तुम जाने बूझे बिना ही आगे वह इंफॉर्मेशन पुलिस को दे दिये, या तुम सोचते हो कि तुम्हारे और दरोगा अनुराग पांडे की सांठ गांठ की खबर नाहीं है हमें?”

“हम कहां इंकार कर रहे हैं भईया, लेकिन कसम से हमें ये नहीं पता था कि माल अतीक भईया का है, भला उनके खिलाफ जाने की हिम्मत हम कैसे कर पाये होते।”

“चलो तुम्हारी इस बात पर हम यकीन किये लेते हैं कि माल के मालिक का पता ठिकाना तुम्हें नहीं मालूम था, मगर ये तो तुम्हें बताना ही पड़ेगा कि उसके बारे में जानकारी तुम्हें कहां से हासिल हुई थी? नहीं बताओगे तो तुम्हारा पूरा खानदान साफ कर देंगे हम। इसलिए आखिरी मौका दे रहे हैं उसका नाम बता दो।”

“हम नहीं जानते भईया, वह तो हमसे राह चलते टकरा गया था।”

“और उसे सपना आ गया कि तुम पुलिस के लिए मुखबिरी करते हो, है न?”

यादव से जवाब देते नहीं बना।

गुस्से में पगलाये कलंकी ने उसकी गर्दन के पिछले हिस्से पर उस्तरा फेर दिया। इस बार गहरा कट लगा, दर्द भी खूब हुआ और उसी हिसाब से यादव के हलक से चींख भी भयानक ही निकली थी।

“इंफॉर्मेशन तुम्हें किसने दी थी सूर्यकांत?”

“कहे तो वह लड़का हमें राह चलते मिल गया था भईया। हम नाम पूछे भी थे मगर उसने नहीं बताया, फिर हम ई सोचकर ज्यादा पीछे नहीं पड़े कि हमें उसका नाम पता जानकर क्या करना था।”

जबकि असल बात ये थी कि जानकारी उसे अपने साले से मिली थी, ऐसा साला जो अतीक के गैंग में ही काम करता था। उसने जो कुछ बताया वह इंटेंशनली नहीं बताया बल्कि शराब के नशे में बहक कर यादव के सामने मुंह फाड़ बैठा था। यादव अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मौत पक्की थी, इसलिए साले का नाम जुबान पर लाकर वह कलंकी को और ज्यादा नहीं भड़काना चाहता था। अभी उसे उम्मीद थी कि कलंकी उसके परिवार पर जुल्म ढाने की कोशिश नहीं करेगा, मगर ये पता लगने के बाद कि उसका साला उनके ही गैंग में था, जो न कर गुजरता वही कम होता।

“जब तुम मरने पर ही तुले हो भोस... के तो हम कौन होते हैं तुम्हें बचाने वाले।” कहकर कलंकी ने यादव की गर्दन पर सामने की तरफ उस्तरा रखा ही था कि वह घबराता हुआ बोला, “त्रिपाठी जी, त्रिपाठी जी का आदमी था, अनुज चौहान। उसी ने बताया था कि एक ट्रक रात ग्यारह बजे के करीब बिहार से चलकर आजमगढ़ पहुंचेगा जिसमें हथियार लोड होंगे, लेकिन ये नहीं बताया कि माल....

कलंकी ने उसका गला रेत दिया।

यादव फड़फड़ाया, दर्द का एहसास तो उसे कोई ज्यादा नहीं हो रहा था लेकिन सांस लेना मुश्किल हो गया, फिर तड़पते हुए कुछ ही देर में उसने प्राण त्याग दिये।

अपराधियों के खिलाफ राजनैतिक षड़यंत्र

डीआईजी भगवंत सिंह उस वक्त मुख्यमंत्री दामोदर राय के सामने बैठा था। मिनिस्टर के पीए ने दो घंटा पहले ही उसे खबर दी थी कि मंत्री जी उससे फौरन मिलना चाहते थे। किसलिए मिलना चाहते थे, उसका अंदाजा तो भगवंत सिंह नहीं लगा पाया, लेकिन इतना फिर भी उसकी समझ में आ गया कि मामला गंभीर ही होगा वरना यूं शॉर्ट नोटिस पर उसे नहीं बुलाया गया होता।

बारह बजे के करीब वह चीफ मिनिस्टर के निवास पर पहुंचा, तो उसे इंतजार करने को कह दिया गया। जिसके करीब पंद्रह मिनट बाद दामोदर राय का पीए उसे अपने साथ लिवा ले गया।

“बैठो भगवंत सिंह - अभिवादन का जवाब देने के बाद मिनिस्टर बड़े ही गंभीर लहजे में बोला - बैठकर हमारी बात ध्यान से सुनो, काहे कि अब पानी सिर के ऊपर पहुंचता दिखाई देने लगा है।”

“हम समझे नहीं सर।”

“प्रदेश में गुंडा राज बहुत बढ़ता जा रहा है - कहकर उसने मेज पर रखा पानी का गिलास उठाया और एक सांस में खाली करने के बाद बोला - आये दिन राहजनी, किडनैपिंग, गैंगवार, वसूली, और भी जाने क्या क्या! ऐसा लगने लगा है जैसे प्रदेश हम नहीं ये चंद अपराधी मिलकर चला रहे हैं, जिसको चाहा मार गिराया, जिसको चाहा उठा लिया। मतलब जो मन आये करते हैं, और पुलिस बस तमाशा देखती रहती है। हम पूछते हैं कोई कायदा कानून रह गया है या नहीं उत्तर प्रदेश में।”

भगवंत सिंह को उन बातों का कोई मतलब समझ में नहीं आया इसलिए फौरन जवाब देने की भी कोई कोशिश नहीं की। हां थोड़ा हैरान जरूर था ये सोचकर कि मंत्री जी ऐसी बातों का जिक्र क्यों कर रहे हैं, जिनका जवाब उनसे बेहतर कोई नहीं जानता।

“हमने फैसला किया है कि - दामोदर राय आगे बोला - यूपी में राम राज भले ही कायम न हो लेकिन इतना फिर भी होना चाहिए कि गुंडे बदमाश पुलिस को देखकर अपने बिल में जा घुसें, ना कि सीना ठोंककर उनके सामने किसी अपराध को अंजाम दें और बचकर निकल भी जायें। यानि अब लगाम कसने का वक्त आ गया है। फिर हाई कमान से भी बहुते दबाव पड़ रहा है, इतना ज्यादा कि डर है हम कहीं मारे प्रेशर के फट न पड़ें, क्या समझे?”

“समझ गया सर, लेकिन ये कोई बड़ी प्रॉब्लम नहीं है। आप हुक्म देंगे तो चौबीस घंटे भी नहीं लगेंगे सबकी सल्तनत को जड़ समेत उखाड़ फेंकने में। सबको उनके बिल से खींच खींचकर मारेंगे। कोई एक भी बचा रह जाये तो कहियेगा।”

“अरे क्या कह रहे हैं भाई, आप सबको मार गिरायेंगे तो सरकार जिंदा कैसे रहेगी? आप हमारे मित्र हैं, ऊपर से बहुत काबिल और जिम्मेदार ऑफिसर भी हैं, तो क्या आप जानते नहीं हैं कि जिन लोगों की हम बात कर रहे हैं, उन्हीं के सहारे सरकारें चला करती हैं। चुनाव में ये लोग अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं, पार्टी फंड में करोड़ों की डोनेशन देते हैं, जिसकी हर सरकार को जरूरत होती है, चाहे कोई कबूल करे या न करे। हम कर रहे हैं क्योंकि आप डीआईजी बाद में हैं और हमारे मित्र पहले हैं।”

“थैंक यू सर, लेकिन करना क्या है?”

“कुछ अपराधियों को जहन्नुम या जेल का रास्ता दिखायेंगे और कुछ को शह देंगे। आप बात को यूं समझिये कि पांच भाईयों में से चार को खत्म कर के एक को पूरी सल्तनत का मालिक बनाना है। इस तरह जनता की निगाहों में हमारी पार्टी की छवि भी सुधरेगी और हमारा काम भी ज्यों का त्यों चलता रहेगा। मतलब जिस एक आदमी को हम जिंदा छोड़ेंगे वही कल को हमारा चाहा पूरा कर के दिखायेगा। और जब किसी एक से काम बनता हो तो भगवंत सिंह तो दस की भीड़ इकट्ठा करने वाला मूर्ख होता है, क्या समझे?”

“वही जो आप समझा रहे हैं सर।”

“हमें बस संतुलन कायम करना है, क्राईम रेट गिरते हुए दिखाना है, चाहे गिरे या न गिरे। ना कि प्रदेश से अपराध को जड़ समेत उखाड़ फेंकने का कोई ठेका लिए बैठे हैं हम। इसलिए आपने जो करना है इस बात को ध्यान में रखते हुए करना है कि उससे जनता की निगाहों में हमारी पार्टी की अच्छी छवि बने, आखिर छह महीना बाद इलेक्शन हैं। चाहें तो मीडिया के सामने स्टेटमेंट दिलवा दीजिएगा कि सरकार ने प्रदेश को अपराधमुक्त बनाने का फैसला कर लिया है। घोषणा कर दीजिए कि समाज के तमाम अराजक तत्व या तो सरेंडर कर दें या अपनी जान गंवाने को तैयार हो जायें, क्योंकि सरकार किसी एक अपराधी को भी बख्शने के मूड में नहीं है, क्या समझे?”

“यही कि जितना करना है उससे ज्यादा का दिखावा करना है।”

“एकदम सही समझे - दामोदर राय हंसता हुआ बोला - काहे कि दिखावे में बहुत असर होता है। शुरूआत के लिए हम आजमगढ़ को छांटे हैं। वहां नया एसपी नियुक्त कीजिए, ऐसा एसपी जिसे कुछ आता हो या न आता हो लेकिन हुक्म बजाना जानते हों, मतलब आप जो कहें, यानि हमारे जरिये उन्हें जो हुक्म दें उसे बिना सवाल किये पूरा कर के दिखायें, क्या समझे?”

“सब समझ गया सर, जल्दी ही रिजल्ट भी हासिल कर के दिखा दूंगा।”

“उसके बाद हम बाकी के जिलों के बारे में सोचेंगे, क्योंकि करना तो हर जगह यही है। एक साथ इसलिए नहीं करेंगे क्योंकि वह पुलिस कार्रवाई कम और अपराधियों का कत्ल ज्यादा दिखने लगेगा, यानि विपक्ष को बैठे बैठाये हमारा नाम खराब करने का मौका हासिल हो जायेगा - कहकर उसने पूछा - अब आप हमें ये बताइये कि आजमगढ़ के बारे में ताजा अपडेट क्या है आपके पास?”

“आपसे ज्यादा जानकारी थोड़े ही है सर।”

“तो भी बताइये।”

“मूलरूप से वहां अतीक अंसारी का वर्चस्व है सर, दबंगई उसे अपने भूतपूर्व एमपी बाप तौफीक अंसारी से विरासत में हासिल हुई है। बल्कि कई मामलों में तो वह बाप के भी कान कुतरता जान पड़ता है। लेकिन उसके अलावा तीन बड़े गैंग और हैं जो उसकी बराबरी करने की अभी हैसियत तो नहीं रखते मगर कोशिश अतीक अंसारी को मार गिराने की ही है। आये दिन उनके बीच खून खराब होता रहता है। अभी छह महीने पहले ही त्रिपाठी गैंग के मुखिया अमरजीत त्रिपाठी ने जो खुद को नार्थ आजमगढ़ का बादशाह समझता है, अतीक के एक आदमी को मार गिराया, जिसके बदले में अतीक के लोगों ने उसके दर्जन भर लड़कों को सरे राह गोली से उड़ा दिया। इसी तरह वेस्ट में एमएलए अनल सिंह कब्जा किये बैठे हैं जो ताकत के मामले में अतीक से कमतर तो नहीं हैं लेकिन अभी तक उसकी लाश गिराने में कामयाब तो नहिये हो पाये हैं। बाकी बचा साउथ आजमगढ़ तो वह पूरी तरह चंगेज खान के कब्जे में है। मगर अतीक की हर चंद कोशिश यही है कि तीनों को खत्म कर के आजमगढ़ पर अपना साम्राज्य कायम कर लिया जाये।”

“जो कि हम होने देंगे, ये बताओ कि और क्या जानते हो उनके बारे में?”

“अतीक अंसारी कभी छिपकर नहीं रहता, क्योंकि चारों में सबसे ज्यादा पॉवरफुल वही है, ऊपर से जो करता है खुल्लमखुल्ला करता है। हमारे किसी ऑफिसर की मजाल नहीं होती कि उसके खिलाफ कोई कदम उठा सके। अनल सिंह का भी कुछ कुछ ऐसा ही खौफ है, फिर वह तो आपकी ही पार्टी से हैं, इसलिए धड़ल्ले से घूमते हैं, लेकिन त्रिपाठी और चंगेज खान कब कहां होंगे कहना मुहाल है। बल्कि घर पर तो शायद ही कभी पाये जाते हों, क्योंकि खौफ के साये में जीते हैं, और उस स्तर पर उन्हें सबसे बड़ा खतरा अतीक अंसारी से ही है। लेकिन आजकल हालात थोड़े अच्छे हैं। तीन महीने पहले एसपी जयवर्धन शुक्ला ने उनके बीच समझौता करा दिया था, जिसके बाद गैंगवार जैसी कोई बात अभी तक सामने नहीं आई है। लेकिन गिरफ्तारी की कोशिश की तो सबसे ज्यादा मुश्किल चंगेज और त्रिपाठी के मामले में आयेगी क्योंकि दोनों ज्यादातर अंडरग्राउंड ही रहते हैं। जबकि अतीक और अनल सिंह को तो हम जब चाहे उठा सकते हैं, मतलब जैसे ही आप उनके सिर से अपना हाथ हटायेंगे वह दोनों हमारी गिरफ्त में होंगे।”

“एक काम कीजिए अनल सिंह को छोड़कर बाकी तीनों को निबटा दीजिए।”

“अतीक अंसारी को भी?” डीआईजी ने हैरानी से पूछा, क्योंकि कल तक बाकी तीनों को तो सरकार बस शह दे रही थी लेकिन अंसारी को तो दामोदर राय ने अपनी गोद में बैठा रखा था। वह तो ये सोच रहा था कि मुख्यमंत्री साहब कहेंगे कि अतीक को छोड़कर बाकी सबको खत्म कर दिया जाये, मगर यहां तो उल्टी गंगा बहती दिखाई दे रही थी।

“हां भई - दामोदर राय बोला - दोनों अंसारी बाप बेटे बहुत ऐश कर लिये, अब वक्त आ गया है कि उन्हें उनकी औकात दिखा दी जाये। इसी तरह अमरजीत त्रिपाठी और चंगेज खान भी ज्यादा पसरने लगे हैं। इस भुलावे में आ गये हैं कि उनके बिना हम सरकार चलाइये नहीं सकते। अब ऐसे लोगों की गलतफहमी दूर करना तो जरूरी है न, क्या समझे?”

“माफी के साथ कहते हैं सर कि चार में से तीन लोगों को निशाना बनाया गया तो हाहाकार मच जायेगा, मीडिया तुरंत इस बात को कैच कर लेगी कि पुलिस जानबूझकर अनल सिंह का फेवर करते हुए उसके विरोधियों को चुन चुनकर खत्म कर रही है।”

“अरे तो कुछ जुगाड़ लगाईये, चाहें तो किसी गिनती में न आने वाले अनल सिंह के आदमियों को खत्म करवा दीजिए, जिनका नाम पता हम खुद आपको मुहैया करा देंगे - फिर थोड़ा ठहरकर बोला - अब जिस इंसान को हम ऊंचा उठाना चाहते हैं, अपने बराबर में बैठाना चाहते हैं, उसके हाथ पांव पूरी तरह तो नहीं काट सकते न? काट देंगे तो वह भला हमारे किस काम आयेगा, फिर हमें इस बात का भी तो ख्याल रखना है कि अनल सिंह हमारी ही पार्टी के एमएलए हैं। अब कहिये कि काम पूरा हो जायेगा।”

“आप चाहेंगे सर तो काहे नहीं होगा, बस जरूरत होगी एक नये एसपी की जिसे सुपरपॉवर देनी पड़ेगी। मतलब वह जो भी करे उसके किये पर कोई सवाल न उठाया जाये। फिर कोई मतलब ही नहीं बनता कि वह अपने काम में फेल हो जाये।”

“तो भेजिये किसी डेयर डेविल ऑफिसर को उहां। ऐसा ऑफिसर जो पहले भी ऐसे मामले हैंडल कर चुका हो, और उसका अब तक का रिकॉर्ड बेदाग रहा हो। ताकि कोई उसकी ईमानदारी पर शक न कर सके। है कोई ऐसा आपकी निगाहों में?”

“सुखवंत सिंह, मुजफ्फरपुर में वह कमाल का काम किये थे सर, जिसकी देश भर में बहुते प्रशंसा हुई थी। ऐसे ऑफिसर को थोड़ी एक्स्ट्रा पॉवर देकर भेजेंगे तो असल बात की तरफ किसी का ध्यान भी नहीं जायेगा और मीडिया भी उंगली नहीं उठा पायेगी क्योंकि उन्हें हर तरफ से सराहना ही हासिल हुई थी।”

“हमने तो सुना है कि सरदार साहब बड़े सनकी आदमी हैं।”

“हां सनकी तो वह बराबर हैं सर, लेकिन जो काम आप कराना चाहते हैं उसमें वैसे ही किसी ऑफिसर की जरूरत है। वह दबना नहीं जानते, मिठाई बटोरकर किसी का फेवर करना नहीं जानते, और मुजरिमों को बख्शना तो बिल्कुल भी नहीं सीखा है। इसलिए आज की तारीख में हमारे काम के लिए सुखवंत सिंह से बेहतर कोई नहीं है।”

“ठीक है अगर आपको मंजूर है तो हमें भी मंजूर है। दीजिए आजमगढ़ का चार्ज उन्हें, लेकिन अच्छी तरह समझा बुझाकर। मतबल उन्हें मालूम होना चाहिए कि दोस्त कौन है और दुश्मन कौन है, क्योंकि मुजरिम तो सब हैं। खासतौर से अनल सिंह के बारे में उन्हें जरूर बता दीजिएगा कि पूरे ऑपरेशन में उनका बाल भी बांका नहीं होना चाहिए।”

“यस सर।”

“अब आप जा सकते हैं।”

तत्पश्चात डीआईजी भगवंत सिंह ने उठकर मुख्यमंत्री को सेल्यूट किया और वहां से निकल गया। पांच मिनट बाद दामोदर राय ने अपने पीए अजय चौबे को फोन कर के कोई निर्देश दिया, जिसके जवाब में वह एमएलए अनल सिंह को लेकर उसके कमरे में पहुंच गया।

“बैठिये।”

दोनों बैठ गये।

“सब इंतजाम हो गया अनल सिंह, चाहो तो अभी से खुद को आजमगढ़ का बादशाह समझना शुरू कर दो। थोड़ा वक्त लगेगा लेकिन जल्दी ही आपके दुश्मनों का नामोनिशान मिट जायेगा।”

“सब आपकी मेहरबानी है मुख्यमंत्री साहब।”

“नहीं इसमें मेहरबानी जैसा कुछ नहीं है, सब सियासी खेल है भाई जो आप न समझते हों हम मानिये नहीं सकते। छह महीने बाद इलेक्शन है, मतलब मेहरबानी चुकता करने का एक अच्छा मौका होगा आपके पास, समझ गये?”

“जी अच्छी तरह से।”

“अब जाइये और जाकर नोट बटोरना शुरू कर दीजिए, जो आपके तो जरूरी है ही, पार्टी के लिए उससे कहीं ज्यादा जरूरी है। लेकिन जब तक तीनों का खात्मा नहीं हो जाता, या वे लोग जेल नहीं पहुंच जाते, इंतजार करियेगा, खुद को अपने लिए ना सही हमारे लिये बचाकर रखियेगा। काहे कि आपसे बहुते उम्मीद लगाये बैठे हैं हम।”

“हम आपकी उम्मीद पर पूरी तरह खरे उतरकर दिखायेंगे सर।” कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ।

दोनों मीटिंग्स बहुत गोपनीय ढंग से अंजाम दी गयी थीं। मगर वहां एक शख्स ऐसा भी था जिसने डीआईजी और मुख्यमंत्री की बातें तो सुनी ही सुनीं, अनल सिंह के साथ हुआ वार्तालाप भी दरवाजे के बाहर खड़े होकर साफ सुना था। फिर जैसे ही उसे अनल सिंह बाहर आता लगा, गेट से दूर होकर अपने मोबाईल पर एक खास नंबर डॉयल कर दिया। ऐसा नंबर जहां कॉल कर के वह मालामाल हो जाने वाला था।

भेदिये सिर्फ लंका में ही थोड़े होते थे।

विभीषण तो हर जगह पाये जाते हैं।