भयंकर मूर्ती
वह एक बहुत ही विचित्र दिन था जब मेजर वलवन्त और सोनिया बम्बई से दिल्ली पहुंचे। नई दिल्ली रेलवे स्टेशन टैक्सी में साउथ एक्सटेंशन तक आते हुए उन्हें एहसास ही नहीं हुआ था कि वह दिल्ली के सामाजिक इतिहास का एक भयानक दिन था। मेजर को उस दिन की भयानकता का अहसास सोनिया के चाचा लाला केदारनाथ वर्मा, पंजाब हाईकोर्ट के अवकाश प्राप्त जज, की कोठी में पहुंचने पर हुआ।
'लाला केदारनाथ वर्मा ने सोनिया के साथ मेजर वलवन्त को देखा तो उनके चेहरे पर छाई हुई मुर्दनी ताजगी में बदल गई और जब नमस्ते आदि के बाद सोनिया ने बताया कि वे पन्द्रह दिन के लिए दिल्ली आए हैं तो लाला केदारनाथ वर्मा का चेहरा एक अज्ञात सन्तोष के प्रकाश से चमक उठा ।
अब उन्होंने चिल्लाकर आवाज दी, "रीटा, रूबी, नीचे आओ । देखो तो कौन आया है !” और फिर उन्होंने स्वर बदलते हुए धीमी आवाज में पुकारकर कहा, " तुम भी आओ। घर में दो मेहमान आए हैं।" यह आवाज उन्होंने अपनी पत्नी को दी थी ।
दो लड़कियां, जिनकी आयु में मुश्किल से एक वर्ष का अन्तर होगा, दौड़ती हुई आईं और सोनिया की टांगों से लिपट गई । सोनिया ने झुककर बारी-बारी उनके सिर पर चुम्बन दिया। फिर सोनिया से अलग होकर उन्होंने हाथ जोड़कर मेजर को नमस्ते की ।
इतने में बन्द दरवाजे का कमरा खुला और एक अधेड़ आयु और ऊंचे कद की स्त्री बाहर निकली । वह सोनिया की चाची सरस्वती थी । सरस्वती की नजर सोनिया पर पड़ी तो वह बाहें फैलाकर उसकी ओर बढ़ी, "ओह, मेरी बेटी सोनिया ! वैसे तो यह तुम्हारा घर है, लेकिन कोई सूचना तो दी होती ! "
सोनिया पांव छूने के लिए झुकी, लेकिन सरस्वती ने उसे छाती से लगा लिया और उसके गालों पर चुम्बनों की वर्षा कर दी। सोनिया का गुलाबी रंग अंगारे की ...तरह दहकने लगा । जब वे एक-दूसरी से अलग हुईं तो मेजर ने बढ़कर चाची के पांव छू लिए । सरस्वती प्यार से मेजर के बालों में उंगलियां फेरने लगी।
"तुमने अच्छा किया कि दोनों साथ आए हो..." सरस्वती वोली, "तुम दोनों को साथ देखकर जी बहुत खुश होता है| जाओ, जाकर मुंह-हाथ धो लो। में अभी नाश्ता तैयार कर देती हूं।" सरस्वती दायीं ओर बढ़ी |
"क्यों, रतन कहां है ?" सोनिया ने पूछा
"उसे तो कल से, जवाब दे दिया है। बहुत बुरा जमाना जा रहा है बेटी ! पहले तुम्हारा नाश्ता तैयार कर दूं, फिर सारी बात सुनाऊंगी ।" कहकर सरस्वती चली गई ।
"चलो, मैं तुम्हें ज्यादा देर तक परेशान नहीं करना चाहती।" सोनिया ने कहा और फर्श पर पड़े हुए अपने और मेजर के सूटकेसों की ओर देखा। लाला जी सूटकेसों की ओर बढ़े तो मेजर ने लपककर दोनों सूटकेस उठा लिए और सोनिया की ओर देखा जैसे पूछ रहा हो कि किधर चलना होगा। सोनिया को अपने चाचा की कोठी के हर भाग की जानकारी थी। उसे मालूम था कि उसके चाचा ने मेहमानों के लिए दो कमरे बनवाए थे जो हर प्रकार से मुकम्मिल थे, सोनिया मेहमानखाने की ओर चल दी। मेजर उसके पीछे-पीछे हो लिया। वे दोनों कमरे आपस में मिले हुए थे। बीच की दीवार का दरवाजा दोनों कमरों में खुलता था। मेजर ने अपना सूटकेस एक कमरे में और सोनिया का दूसरे कमरे में रख दिया। वह सोनिया को इस बात का समय देने के लिए कि वह रीटा और रूबी की चीजें उन्हें दे सके, पुनः लाला जी के पास आ गया जो पूर्ववत् बढ़इयों के पास खड़े थे।
"मैंने आपसे पूछा था कि मखमल में टाट के ये पैबंद क्यों लगवाए जा रहे है। इतनी सुन्दर खिड़कियों का हुलिया क्यों विगाढ़ा जा रहा हैं ?" मेजर ने कहा ।
"मैं ही इन खिड़कियों का हुलिया नहीं बिगाड़ रहा, अगर आप बाहर जाएं और घूम-फिरकर देखें तो आपको अधिकतर बंगलों और कोठियों में अब ऐसी ही खिड़कियां नजर आएंगी और ऐसी खिड़कियां पिछले दो दिनों में बनवाई गई है !"
"पिछले दो दिनों में !" मेजर ने आश्चर्य से कहा, "सैनिक स्तर पर ऐसी खिड़कियां बनवाने का मतलब मेरी समझ में नहीं आ रहा ।'
"आप बम्बई से आ रहे है इसलिए आप नहीं जानते कि इस शहर पर भय का भूत मंढरा रहा है। हर आदमी, जिनके घर में एक या दो छोटी बेटियां हैं, भयभीत है। मैं तो सोच भी नहीं सकता कि मनुष्य इतना पत्थरदिल और जालिम भी हो सकता है। मैंने सैकड़ों क़ातिलों और डाकुओं के मुकदमों के फैसले सुनाए है। ह्त्या की वारदातों का मेरे दिल पर कुछ कम ही असर होता है। लेकिन इस घटना ने तो मेरे भी होश उड़ा दिए है। परसों सुबह से मैं भी जब अपनी आधुनिक किस्म की खिड़कियों की तरफ देखता था तो मेरी नसों में खून जमने लगता था। आखिर मैंने भी यही फैसला किया कि इनमें लोहे के सीखचों वाले चौखटे फिट करवा लेने चाहिए।"
"मैं आपकी बातों से अभी तक कोई परिणाम नहीं निकाल सका कि पूरे शहर के भय का क्या कारण है !"
जरा ठहरिए, में अखबारों की कतरनें लाता हूं। उन्हें पढ़कर आप सच कुछ जान जाएंगे।" यह कहकर लाला केदारनाथ वर्मा ड्राइंग रूम की ओर बढ़े और कुछ क्षणों के बाद पीले रंग की फाइल उठा लाए। उस फाइल में पिछले दो दिन के समाचारपत्रों को कतरनें हरे रंग की डोरी से बंधी हुई थीं। उन्होंने वह फाइल खोलकर मेजर के हाथ में दे दी और बोले, "पुलिस अभी तक अंधेरे में कलावाजियां खा रही है और अपराधी कहीं आजाद बैठा नये अपराध की योजना बना रहा है।"
मेजर ने फ़ाइल में लगी अखबारों की कतरनें पढ़नी शुरू कर दी। पहली कतरन में एक ऐसा समाचार था जो कहानी के रूप में प्रकाशित किया गया था, " सुन्दर नगर के डी ब्लाक में ११२ नम्बर के दो मंजिला मकान की ऊपर की मंजिल में एक इंजीनियर श्री दयानारायण निगम रहते हैं । ११२ नम्बर का मकान सुन्दर नगर के पिछवाड़े के जंगल के बिल्कुल सामने है और शेष मकानों से अलग-थलग है | श्री दयानारायण निगम को उस मकान की ऊपर की मंजिल किराए पर लिए सत्रह दिन हो चुके हैं। वे झांसी से तब्दील होकर अपनी पत्नी और दस वर्षीय इकलौती बेटी मृणालिनी के साथ यहां आए थे । कल शाम उन्होंने मृणालिनी का जन्मदिन मनाया । अपने दफ्तर के अफसरों को अपने यहां बुलाया जो मृणालिनी के लिए तरह-तरह के उपहार लेकर आए । रात के दस बजे तक खूब हंगामा रहा । श्री दयानारायण निगम को अंग्रेजी ढंग का जीवन पसन्द है; इसलिए मृणालिनी को एक अलग कमरे में सुलाया जाता था जो पति-पत्नी के सोने के कमरे के साथ का कमरा है। किसी नौकर या नौकरानी का अभी कोई प्रबंध नहीं हो पाया था। निगम बाबू की पत्नी बेटी को सुलाने के बाद सोया करती थीं । कल रात मृणालिनी बड़ी देर तक अपने उपहारों से खेलती रही । ग्यारह बजे उसकी मां उसे सुलाकर अपने बिस्तर पर चली गई । साढ़े ग्यारह बजे मृणालिनी की मां उसके कमरे में रोशनी पाकर यह देखने के लिए आई कि कहीं मृणालिनी जागकर फिर अपने उपहारों से तो नहीं खेलने लग गई। लेकिन मृणालिनी के कमरे में कदम रखते ही उसके पैरों तले से जमीन निकल गई । आंखों के सामने अंधेरा छा गया । मृणालिनी अपने बिस्तर पर नहीं थी और खिड़की खुली हुई थी । उसके मुंह से एक हल्की सी चीख निकल गई और वह पछाड़ खाकर गिर पड़ी । उसके धम् से गिरने की आवाज सुनकर निगम बाबू हड़बड़ाकर उठे और मृणालिनी के कमरे की ओर भागे। भीतर का दृश्य देखकर उनका दिल भी धक से रह गया और टांगें कांपने लगीं। मृणालिनी अपने बिस्तर पर नहीं थी और पत्नी फर्श पर निश्चेष्ट पड़ी थी । एकाएक यह विचार उनकी छाती को छुरी की तरह चीरता चला गया कि वे 'बेटी और पत्नी दोनों से हाथ धो बैठे हैं। लेकिन वे तुरन्त ही संभल गए और झुककर अपनी पत्नी की कनपटियां और तलुए सहलाने लगे । जब पत्नी ने कराहते हुए आंखें खोल दीं तो वे खुली खिड़की की ओर लपके | उन्होंने खिड़की के नीचे दीवार से एक सीढ़ी टिकी हुई देखी | सारी बात उनकी समझ में आ गई । मुणालिनी का अपहरण कर लिया गया था ।
"अब उनकी पत्नी पूरी तरह होश में आ चुकी थी और अपनी छाती पर दोहत्थड़ मार-मारकर रो रही थी । पड़ोसी एकत्र हुए तो उन्होंने देखा कि निगम बाबू को गहरी चुप्पी लग गई थी। उनकी पत्नी ही हिचकियां ले-लेकर सारी कहानी सुनाती थी। एक पड़ोसी ने पुलिस को फोन किया। पुलिस आई और एक घण्टे तक छानबीन करती रही। उसे मृणालिनी के बिस्तर पर एक लिपस्टिक मिली जो मृणालिनी की मां की थी । लिपस्टिक पर मृणालिनी की उंगलियों के निशान थे । खिड़की के नीचे एक पुराना शेफील्ड का बना हुआ पेंसिल शार्पनर पड़ा था और सीढ़ी के पैरों के पास एक रबड़-पेंसिल पड़ी थी । निगम बाबू का बयान है कि दोनों चीजें मृणालिनी की नहीं थीं। पुलिस उन मामूली चीजों के आधार पर किसी परिणाम तक नहीं पहुंच सकी। पुलिस का मत है कि आक्रमणकारी दस्ताने और फ्लीट बूट पहनकर आया था भोर मृणालिनी को सोते में या किसी दवा से बेहोश करके ले गया । मृणालिनी के कुछ कपड़े भी गायब थे, जिससे मालूम होता था कि आक्रमणकारी उसे उन्हीं कपड़ों में लपेटकर ले गया था...।”
मेजर ने अखबार की दूसरी कतरन पढ़ी- वह समाचार पहले समाचार ही की एक कड़ी थी । इसे भी कहानी का रूप दिया गया था, "मृणालिनी का अभी तक कोई पता नहीं चला। पुलिस अब इस परिणाम पर पहुंची है कि मृणालिनी का अपहरण किसी संगठित गिरोह का काम है क्योंकि निगम बाबू ने कागज का एक पुर्ज़ा पुलिस को दिया है। लिपस्टिक से मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा हुआ है कि अगर बेटी की जीवित पाना चाहते हो तो बीस हजार रुपये लेकर पुराने किले के बड़े फाटक के सामने बरगद के पेड़ के नीचे कल शाम को छः बजे पहुंच जाओ। अगर पुलिस को सूचना दी तो बेटी की जीवित नहीं पाओगे। पुलिस के ख्याल से लिखावट से यह सिद्ध होता है कि अपहरणकर्ता अधिक पढ़ा-लिखा नहीं है। कोई कारीगर या मजदूर है। निगम बाबू को कागज का वह पुर्जा परसों ही मिल गया था उन्होंने पुलिस से इसका भेद छुपाया था। वे बीस हजार रुपये देकर अपनी बेटी को प्राप्त करना चाहते थे। वे रुपया लेकर पुराने किले के सामने पहुंचे थे। लेकिन वहां कोई भी नहीं आया। उनकी नजरें अपनी बेटी को ढूंढती रहीं। उन्होंने दो घण्टे तक प्रतीक्षा की और जब कोई भी गृणालिनी को वहां न लाया तो निराशा उनके हृदय को नश्तर की तरह कचोटने लगी | वे सीधे पुलिस थाने पहुंचे और कागज का वह पुर्जा इंस्पेक्टर धर्मवीर के हवाले कर दिया।"
मेजर ने फाइल लाला केदारनाथ वर्मा को लौटा दी और मुस्कराते हुए बोला, "अब मैं समझा कि आपने अपने नौकर रतन को कटों जवाब दे दिया है और इन खिड़कियों में लोहे के सीखचें क्यों लगवाए जा रहे हैं। लेकिन परेशान होने की जरूरत नहीं । मेरे विचार में तो यह एक साधारण सी घटना है जो हर शहर में होती रहती है।"
"आप इसे साधाराण सी घटना कहते हैं और यहां लोगों की जान पर बनी हुई है। अगर पुलिस के बयान को सही समझ लिया जाए कि यह एक संगठित गिरोह का काम है, तो फिर कोई भी घर सुरक्षित नहीं है। इस गिरोह का दूसरा हमला किसी पर भी हो सकता है।" लाला जी ने तर्क प्रस्तुत किया।
"मैं समझता हूं कि पुलिस के गैरजिम्मेदाराना बयान और अखबारों की अटकलों ने भय और आतंक को बढ़ावा दिया है। मैंने जो कुछ पढ़ा है उससे मैं अनुमान लगा सकता हूं कि मृणालिनी का अपहरण करने वाले व्यक्ति का किसी भी गिरोह से कोई संबंध नहीं है, इसका कारण यह है कि कोई संगठित गिरोह बच्चे का अपहरणकरने के बाद इस भौंडे तरीके से बच्चे को छोड़ने के पैसे नहीं मांगता | मेरे विचार में जिस व्यक्ति ने मृणालिनी का अपहरण किया है। वह एक ऐसा व्यक्ति है जो कोई पुराना क्लर्क है और चाइल्ड फिक्सेशन का शिकार है। इसकी व्याख्या यूँ की जा सकती है कि कुछ लोगों के दिल-दिमाग में अपने किसी बच्चे का ख्याल हमेशा के लिए जमकर रह जाता है। वह कोई ऐसी स्त्री या ऐसा पुरुष हो सकता है जिसका पति या जिसकी पत्नी मृत्यु के बाद बच्चा छोड़ जाती है और फिर यह वच्चा भी मर जाता है। उस बच्चे का खयाल उस स्त्री या पुरुष के दिल-दिमाग से किसो तरह भी नहीं निकल पाता। वे अपने बच्चे का बदला प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। मृणालिनी के अपहरण के मामले में भी चाइल्ड फिक्सेशन का शिकार एक पुरूष है और क्लर्क है। उसकी पत्नी अपने पीछे एक बच्ची छोड़ गई होगी और वह बच्ची भी मर गयी होगी। उसे मृणालिनी के रूप में अपनी बच्ची का प्रतिरूप मिल गया होगा। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि मृणालिनी इस समय झांसी में होंगी।"
"मैं समझा नहीं कि सृणालिनी झांसी में क्यों होगी !" लाला जी ने आश्चर्य से पूछा |
मेजर मुस्कुराया और बोला, "आप मेरी बात मान लीजिए कि मृणालिनी झांसी में है। उसे झांसी में निगम बाबू के दफ्तर का वह क्लर्क उठा ले गया है जो दफ्तर के समय के बाद मृणालिनी को पढ़ाने भी जाता होगा। पुलिस यदि झांसी जाए और यह पता लगाए कि वहां निगम बाबू के दफ्तर का कौन-सा क्लर्क मृणालिनी को पढ़ाया करता था, तो उसे मृणालिनी उसके यहां मिल जाएगी। अवश्य ही उस क्लर्क ने मृणालिनी को कहीं छिपाकर रखा होगा। अब मृणालिनी उस से ऊब भी चुकी होगी और अपने माता-पिता के पास आने के लिए बेचैन होगी । वह उसे कोई लालच या दिलासा देकर रोक रहा होगा ।" यह कहकर मेजर मेहमानखाने की ओर चला गया ।
मेहमानखाने में सोनिया अकेली थी । वह अपना लिबास बदल चुकी थी । सोनिया ने उसकी छाती पर सिर रखते हुए कहा, "हम यहां पन्द्रह दिन की छुट्टी पर आए हैं । कई सालों के बाद मनोरंजन की ये घड़ियां मिली हैं । "
“मनोरंजन ! कैसा मनोरंजन ? मैं एक जरूरी काम से आया हूं - एक लड़की की तलाश में । सोनिया ! तुम अभी टेलीफोन डायरेक्टरी लेकर बैठ जाओ। इस शहर में अमूल्य और अलभ्य या यों कहो कि प्राचीन काल की बहुमूल्य और दुर्लभ चीजें बेचने वाली जितनी दुकानें हैं, उनके पते नोट कर लो । अगर जरूरत समझो तो इस काम में अपने चाचा की भी सहायता ले सकती हो । मैं जब तक तैयार हो जाऊं । नाश्ते के बाद हम लोग ऐसी चीजें वेचने वाली दुकानों के चक्कर लगाएंगे।" मेजर .. बाथरूम की ओर बढ़ा और सोनिया टेलीफोन डायरेक्टरी लेकर बैठ गई।
मेजर और सोनिया रात के दस बजे वापस आए। दोनों बहुत थके हुए मालूम हो रहे थे। मेजर के चेहरे से प्रकट होता था कि उसे अभीष्ट वस्तु प्राप्त नहीं हुई थी । मेजर बलवंत सुबह आठ बजे जगा तो सोनिया ने उसे बताया कि उसका चाचा इधर के तीन-चार चक्कर लगा गया था। लेकिन उसे सोया हुआ देखकर बड़ी निराशा के साथ वापस चला गया था । वह शायद उससे मिलने के लिए बहुत ही बेचैन था । मेजर सोनिया के चाचा के पास जाने के लिए उठा तो दरवाजे के बाहर उसे कदमों की आहट सुनाई दी । दरवाजा बहुत धीरे से खुला और लाला केदारनाथ वर्मा दबे पांव ... भीतर आ गए। उन्होंने मेजर को जगा हुआ देखा तो उनकी बाछें खिल गई। निकट आकर उन्होंने मेजर के कन्धे पर थपकी दी और बोले, 'आप जैसे इन्सान इस संसार को कभी-कभी ही मिलते हैं। मैं तो सुबह से ही दंग हूं और वाह-वाह कर रहा हूं ।
मैं तो सोच-सोचकर हार गया हूं कि आपने कल कैसे एक फिल्म की तरह वह बात देख ली, जो पुलिस हजार कोशिश करने पर भी न देख सकी थी । मृणालिनी मिल गई है और आपके कहने के मुताबिक झांसी में ही उस क्लर्क के यहां मिली है जो उसे रोज पढ़ाया करता था ।"
- “इसका मतलब है कि दिल्ली की पुलिस काफी होशियार है | उसने भी मेरी तरह ठीक अनुमान लगाया, तभी तो वह तुरन्त झांसी पहुंच गई । " मेजर ने कहा ।
दिल्ली पुलिस की होशियारी की बात रहने दीजिए।" लाला जी ने कहा, "यह तो आपकी कृपा है । इन्स्पेक्टर धर्मवीर सलूजा की प्रशंसा हो रही है और मेरे सिवा कोई नहीं जानता कि इन्स्पेक्टर धर्मवीर के सिर पर सफलता का सेहरा आपने बांधा है | इन्स्पेक्टर साहब हमारे पड़ोस में रहते हैं । कल सुबह जब आपने मृणालिनी के अपहरण की व्याख्या की तो मैं तुरन्त उनके यहां पहुंचा। मैंने उन्हें आपसे हुई बातें बताई तो वे उसी समय तैयार होकर हवाई अड्डे पर जा पहुंचे। आज सुबह उन्होंने झांसी से फोन किया है कि मृणालिनी मिल गई है और क्लर्क सत्यनारायण शुक्ला के यहां मिली है । इन्स्पेक्टर धर्मवीर सलूजा बहुत प्रसन्न हैं। दिल्ली के पुलिस अधिकारियों में उनकी धाक जम गई है। वे आपसे मिलने के लिए बेचैन हैं। आज दोपहर तक अपराधी को अपने साथ लेकर दिल्ली पहुंच जाएंगे, और मुझे आशा है कि आते ही आपका धन्यवाद करने यहां आएंगे।"
"यह आपने अच्छा नहीं किया। हम यहां छुट्टियां बिताने आए हैं। मैं किसी को भी यह नहीं बताना चाहता था कि मैं दिल्ली में हूं।"
लाला जी चले गए तो सोनिया ने कहा, "आपने वेकार में अंकल का दिल तोड़ दिया । वे तो दूसरों को यह बताकर गौरव अनुभव करना चाहते हैं कि आप उनके यहाँ ठहरे हुए हैं और आप हैं कि..."
यहां मेजर ने बात काटते हुए कहा, "मुझे डर है कि यह मोहव्वत मुझे यहां किसी मुसीबत में न डाल दे । इस तरह मेरा काम अधूरा रह जाएगा और हमें पन्द्रह दिन से अधिक रुकना पड़ जाएगा।"
"यह लड़की कौन है, जिसकी तलाश में आप यहां आए हैं ? और दुर्लभ चीजों की दुकानों की खाक क्यों छानी जा रही है ? " सोनिया ने बात का रुख बदलते हुए कहा।
"इस सवाल का जवाब मैं उस समय दूंगा जब अपनी तलाश में सफल हो जाऊंगा ।" दोपहर बाद साढ़े तीन बजे मेजर अपने काम पर जाने के लिए तैयार हो गया। सोनिया अभी तक यह तय नहीं कर पाई थी कि उसे कौन-सी साड़ी पहनकर बाहर निकलना चाहिए। इतने में कदमों की आहट सुनाई दी और लाला जी ने हांफते हुए प्रवेश किया।
"आपको इन्स्पेक्टर धर्मवीर फोन पर बुला रहे हैं। " लाला जी ने मेजर से कहा।
"मुझे ? क्या आपने...?"
"मैने थोड़ी देर पहले उनको सारा मामला समझा दिया था, लेकिन वे आपको एक बहुत ही जरूरी काम से फोन पर बुला रहे हैं।"
लाला जी और मेजर साहब चले गए तो सोनिया जल्दी से साड़ी बांधकर बैठक में जा पहुंची, जहां टेलीफोन रखा था।
मेजर फोन का चोंगा उठाकर कान से लगा चुका था।
"मेजर साहब, नमस्ते ।" दूसरी ओर से पुलिस इन्स्पेक्टर धर्मवीर की आवाज नाई, "आप चुपके से दिल्ली चले आए। लेकिन सुगंध कहीं छिपी रहती है ! देखिए, आपके आने का पता चल गया है। मैं झांसी से मृणालिनी और सत्यनारायण के साथ यहां पहुंचा तो एक नया ही गुल खिल चुका था। आप यहां छिपकर नहीं रह सकते। आप दिल्ली में हैं, सबको इसकी खबर हो जाएगी।"
"जी हां, दुनिया में कोई बदनाम न हो बदनाम आदमी से उसकी बदनामी पहले उधर पहुंच जाया करती है।" मेजर ने कहा ।
"नहीं-नहीं, यह तो हमारा सौभाग्य है कि आप हमारे शहर में आए नहीं तो बहार वीराने में कहां आती है !"
“कहिए मुझसे क्या काम है ?"
"मेजर साहब, आप भी क्या कहेंगे, सिर मुंडाते ही ओले पड़े। एक घण्टा हुआ, इण्टरनेशनल म्यूजियम, सुन्दर नगर के मालिक दीवान सुरेन्द्रनाथ अफ्रीकी देवी-देवताओं की मूर्तियों वाले कमरे में मृत पाए गए। मैं यहां, यानी इण्टरनेशनल म्यूजियम में आधे घंटे से हूं। अब तक की परिस्थितियों से में इस परिणाम पर पहुंचा हूं कि यह हत्या की वारदात है। दीवान सुरेन्द्रनाथ की मृत्यु दुर्घटना से, यानी सिर पर भारी मूर्ति गिरने से नहीं हुई। खोजबीन के बावजूद कोई सुराग नहीं मिल सका, इसलिए दीवान साहब की हत्या को दुर्घटना मान लेने के सिवा और कोई चारा नहीं। मैं बहुत सिर मार चुका हूं। कृपा कर मेरी सहायता कीजिए। बस, आधे घण्टे के लिए चले आइए।"
"यह इण्टरनेशनल म्यूजियम क्या चीज है ? "
"यहां प्राचीन देवी-देवताओं की मूर्तियां उनके मूल रंग-रूप के अनुसार तैयार की जाती हैं। उन्हें यहां भी बेचा जाता है और विदेशों में भी वेचा जाता है। " इंस्पेक्टर ने उत्तर दिया।
"मेरा इन्तजार कीजिए, मैं आ रहा हूं।" मेजर ने यह कहकर फोन रख दिया ।
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