टेलीफोन की निरन्तर बजती घन्टी की आवाज से सुनील की नींद खुल गई । उसने हाथ बढा कर बैड स्विच को आन किया और फिर बड़े अनिच्छापूर्ण ढंग से उस टेलीफोन की ओर देखा जिसकी घन्टी बज रही थी । उसने एक सरसरी निगाह टेलीफोन की बगल में रखी घड़ी की ओर डाली और फिर रिसीवर की ओर हाथ बढा दिया ।
घड़ी में तीन बजे थे ।
आधी रात के बाद वह बुरी तरह थका हुआ यूथ क्लब से वापिस लौटा था । लगातार बारह घण्टे सोये रहने का इरादा करके वह बिस्तर में घुसा था लेकिन अभी वह मुश्किल से दो घण्टे सो पाया था कि टेलीफोन की घण्टी घनघना उठी थी ।
उसने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और उनींदे स्वर से बोला - “हल्लो ।”
“सुनील !” - दूसरी ओर से उसे बन्दर का तीव्र स्वर सुनाई दिया ।
“हां ।”
“मैं बन्दर बोल रहा हूं ।”
“लानत है तुम पर... रात के तीन बजे ही बोलना सूझा था तुम्हें !”
“बड़ा लफड़ा हो गया है... यार ! फौरन यहां आ जाओ ।”
“यहां कहां ?”
“यहां मेरे पास...”
“अबे ओ बन्दर के बच्चे ।” - सुनील चिल्ला कर बोला - “साले रात के तीन बजे क्या मसखरी मारने के लिए फोन किया है मुझे ?”
“नहीं तो । मैं एकदम गम्भीर हूं, भाई साहब !”
“तो फिर बताता क्यों नहीं है कहां से बोल रहा है ?”
“ओ हां । प्रिंस होटल से बोल रहा हूं मैं ! दरअसल सुनील भाई मैं बहुत बौखलाया हुआ हूं इसलिए मुझे पता नहीं लग रहा कि मैं क्या बक रहा हूं ।”
“प्रिंस होटल कहां है ?”
“रौनक बाजार में... चौराहे के पास ही है ।”
“हुआ क्या है ?”
“वह मैं तुम्हें यहां आने पर बताऊंगा ।”
“कोई लौंडिया का किस्सा तो नहीं है ?”
“हां !” - बन्दर हड़बड़ाए स्वर में बोला - “सुनील भाई, बदकिस्मती से इस बार एक ऐसी ऐन्टीफ्लोजिस्टीन लड़की से वास्ता पड़ गया है कि मेरा धड़नतख्ता हुआ जा रहा है ।”
“ऐन्टीफ्लोजिस्टीन लड़की कैसी होती है ?”
“यहीं आकर देख लेना न सुनील भाई !” - बन्दर याचनापूर्ण स्वर में बोला - “ज्यों-ज्यों देर होती जा रही है मेरा दम खुश्क होता जा रहा है ।”
“अभी निकल तो नहीं रहा है न ?”
“यार मजाक मत करो ।”
बन्दर गम्भीर था ।
“ओके... आता हूं !”
“मैं दूसरी मंजिल के बीस नम्बर कमरे में हूं ।”
“अच्छा ।”
“कितनी देर लगाओगे ?”
“फौरन आ रहा हूं ।”
“थैंक्यू वैरी मच ! भगवान तुम्हें जीनत अमान जैसी बीवी दे ।”
सुनील ने रिसीवर को क्रेडिल पर रख दिया ।
उसने मुंह धोया, कपड़े बदले और फिर फ्लैट से बाहर निकल आया ।
इमारत से बाहर आकर उसने अपनी मोटर साईकिल सम्भाली और रौनक बाजार की ओर उड़ चला ।
बन्दर उसका दोस्त था । उसका वास्तविक नाम जुगल किशोर था । लेकिन अपनी मित्रता के दायरे में वह बन्दर के नाम से बेहतर जाना जाता था ।
राजनगर का बच्चा-बच्चा - विशेष रूप से खूबसूरत और नौजवान लड़कियां - बन्दर को जानती थीं । बन्दर की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण यह था कि वह एक करोड़पति बाप की बेहद गैरजिम्मेदार इकलौती औलाद थी । दोनों हाथों से रुपया लुटाता था इसलिए यार दोस्त उसके साथ यूं चिपके रहते थे जैसे गुड़ के साथ मक्खियां ।
सुनील का मित्र वह इसलिए था क्योंकि वह भी रमाकांत की यूथ क्लब का स्थायी सदस्य था ।
बन्दर का बाप बन्दर से हमेशा असंतुष्ट रहता था और कभी-कभी बेहद गुस्सा आ जाने पर वह बन्दर को खड़े पैर कोठी से निकाल देता था । लेकिन बन्दर ने आज तक अपने बाप की किसी हरकत से तौहीन महसूस नहीं की थी । वह कोठी से निकाला जाता था तो जाकर नौकरों के क्वार्टरों में रहने लगता था । पता लग जाने पर जब उसका बाप उसे वहां से भी निकाल देता था तो सीधा अपने किसी यार के यहां पहुंच जाता था और इस बात की प्रतीक्षा करने लगता था कि कब उसकी मां घर में हंगामा खड़ा करे, अपनी इकलौती औलाद के सुख-दुख की दुहाई दे और फिर उसका बाप उसकी तलाश में राजनगर का कोना-कोना छानता फिरे ।
रौनक बाजार पहुंचकर प्रिंस होटल तलाश करने में सुनील को कोई कठिनाई नहीं हुई । स्तर में प्रिंस होटल वैसा ही था जैसे होटल की रौनक बाजार जैसे पुराने और घनी आबादी वाले इलाके में अपेक्षा की जा सकती थी । उसने मोटर साईकिल को फुटपाथ पर चढा कर खड़ा कर दिया और फिर होटल की ओर बढा ।
होटल में प्रविष्ट होते ही उसका सामना रिसैप्शन के काउन्टर के साथ टेक लगाकर खड़े एक व्यक्ति से हुआ । वह एक लगभग चालीस वर्ष का आदमी था । उसके चेहरे से थकावट और चिड़चिड़ेपन के लक्षण स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहे थे । सुनील उसे देखकर ठिठका ।
“मेरा नाम गजाधर है !” - वह व्यक्ति काउन्टर का सहारा छोड़ता हुआ बोला - “मैं होटल का मैनेजर हूं ।”
“अच्छा ।” - सुनील बोला - “फिर ?”
मैनेजर के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे वह कोई बहुत कठोर बात कहने वाला हो लेकिन फिर सन्तुलित स्वर में बोला - “मिस्टर जुगल ने आपको फोन किया था ?”
“हां ।” - वह बोला ।
“मेरे साथ आइये ।”
सुनील उसके साथ हो लिया ।
मैनेजर उसे दूसरी मंजिल के एक कमरे में ले गया । उसने कमरे का द्वार खटखटाया । द्वार फौरन खुल गया । द्वार पर सुनील को बन्दर का चेहरा दिखाई दिया । सुनील को देखकर उसने शान्ति की गहरी सांस ली और फिर बोला - “भीतर आओ ।”
सुनील भीतर प्रविष्ट हो गया ।
मैनेजर ने सुनील के पीछे भीतर घुसने का प्रयत्न किया लेकिन बन्दर ने उसे बांह फैला कर रोक दिया और फिर रुष्ट स्वर में बोला - “अब आप फूटो, गजाधर महाराज ।”
गजाधर कसमसाया और फिर बोला - “ठीक है लेकिन निपटारा जल्द करो ।”
“जल्दी ही करेंगे ।”
गजाधर पीछे हट गया ।
बन्दर ने दरवाजा बन्द कर लिया और फिर कमरे में खड़े सुनील की बगल में आकर खड़ा हो गया ।
सुनील ने देखा कमरे में दो पलंग बिछे हुए थे जिसमें से एक पर एक लगभग बाईस वर्ष की बेहद सुन्दर युवती पड़ी थी । उसके कपड़े अस्त व्यस्त थे और चेहरा तमतमा रहा था । तेजी से चलती सांस के साथ उसका सीना जल्दी-जल्दी उठ गिर रहा था । सूरत और परिधान से वह किसी ऊचे परिवार का अंग मालूम हो रही थी । सुनील उसके समीप पहुंचा । लड़की की सांसों में विस्की की दुर्गन्ध बुरी तरह बसी हुई थी । सुनील ने उसे कन्धे से पकड़ कर हिलाया लेकिन लड़की पर उसकी कतई कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई ।
सुनील सीधा खड़ा हो गया और फिर कठोर स्वर में बन्दर से सम्बोधित हुआ - “यह लड़की कौन है ?”
“इसका नाम सरिता है ।” - बन्दर हड़बड़ाये स्वर से बोला ।
“मैंने नाम नहीं पूछा ।”
“लेकिन सुनील भाई, इसके नाम के अतिरिक्त मुझे और कुछ मालूम भी तो नहीं है ।”
सुनील ने उसे घूर कर देखा ।
“बाई गॉड, मैं सच कह रहा हूं ।”
“क्या किस्सा है ?”
“किस्सा कुछ भी नहीं है, सुनील भाई, लेकिन साली तकदीर ने ऐसी पटखनी दी है कि मेरा धड़नतख्ता हो गया है । अब मुझे क्या ख्वाब आना था कि...”
“अगर मुझे यहां बकवास सुनाने के लिए बुलाया है तो मैं जा रहा हूं ।”
“अरे नहीं, सुनील भाई !” - बन्दर हड़बड़ाकर बोला - “भगवान के लिए ऐसा मत करना । मेरा धड़नतख्ता हो जाएगा ।”
“तो फिर बकवास करनी बन्द करो और मतलब की बात करो ।”
बन्दर फौरन चुप हो गया । कुछ क्षण चुप रहने के बाद वह बोला - “यह लड़की मुझे क्लब में मिली थी । आज से पहले मैं इससे कभी नहीं मिला था । इसी ने मुझे लिफ्ट दी थी । पहले इसने मुझे डांस के लिए इनवाइट किया था । फिर इसने विस्की पीने की फरमायश की थी । और सुनील भाई क्लब में एक के बाद एक पांच पैग वह यूं गटागट पी गई थी जैसे विस्की नहीं पानी पी रही हो ।”
“तुमने इसे इतनी शराब पीने दी ?”
“मैं क्यों रोकता भला ? मुझे क्या ख्वाब आना था कि जितनी विस्की वह पी गई है उतनी वह हजम नहीं कर सकेगी । मैं इसे कोई आदी शराब पीने वाली लड़की समझा था ।”
“इसकी उम्र और सूरत शक्ल देखकर तुम्हें हैरानी नहीं हुई थी कि वह इतनी शराब पी गई ?”
“मेरी बला से चाहे वह बोतल पी जाती । उस समय मैं मन ही मन खुश हो रहा था कि खुदा की मेहरबानी से ऐसी अल्ट्रामाड्रन लौंडिया टकराई है जो इतनी ढेर सारी शराब पीने तक से कतई परहेज नहीं करती । मैं तो मन ही मन चाह रहा था कि इसे थोड़ा नशा हो जाये ताकि...”
“ताकि तुम इसके साथ गुलछर्रे उड़ा सको ।”
“हां !” - बन्दर शरमाता हुआ बोला ।
“लानत है तुम पर ।”
“वह तो है ही ।”
“खैर आगे बको ।”
“शराब के बाद फिर डांस का दौर चला । बाद में यह मुझसे बोली मैं इसे कहीं एकांत में ले चलूं । मैं चाहता ही यही था । मैं भला उसकी ऐसी किसी बात को क्यों न मानता ? मैं उसे क्लब से बाहर ले चला । क्लब से बाहर आकर मैंने इससे पूछा कि वह कहां जायेगी । उत्तर में यह बोली कि मैं इसे कहीं भी ले चलूं मैं... मैं...”
“तुम इसे यहां ले आये ।”
“हां ।”
“क्यों ?”
बन्दर एक क्षण चुप रहा और फिर बोला - “वजह तुम खुद नहीं सोच सकते क्या ?”
“यहां क्यों ?”
“क्योंकि आजकल मैं यहीं रह रहा हूं ।”
“क्यों ?”
“वो... वो... दरअसल डैडी से फिर थोड़ा मतभेद हो गया है ।”
“मतलब यह कि तुम फिर कोठी से निकाल दिये गये हो ?”
“हां । बाइज्जत ।”
“तुम्हें शर्म नहीं आती ?”
“इसमें शर्म की क्या बात है । ऐसे तो मैं कई बार निकाला गया हूं । फर्क सिर्फ इतना है कि डैडी ने इस बार मुझे नौकरों के क्वार्टरों में भी पड़ाव नहीं डालने दिया । और यार साले बेइज्जती करने पर उतारू हो जाते हैं इसलिए मैं यहां आ गया ।”
“खैर फिर ?”
“फिर क्या ? यहां कमरे में आते ही यह पलंग पर लेट गई और उसके बाद से ही अपने होश हवास खोये पड़ी है । विस्की इस पर इस बुरी तरह हावी हो चुकी है कि मेरे लाख प्रयत्न करने पर भी इसे होश नहीं आ रहा है । और वह साला गजाधर का बच्चा कहता है कि अगर मैं इसे यहां से नहीं ले गया तो वह पुलिस को फोन कर देगा ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वह समझता है कि मैं आधी रात को किसी पेशेवर लड़की को अपने कमरे में ले आया हूं और ऊपर से लड़की शराब के नशे में एकदम धुत है । उसकी निगाह में ऐसी घटनायें उसके हाई क्लास होटल को बदनाम कर सकती हैं ।”
“यह हाई क्लास होटल है ?” - सुनील बुरा सा मुंह बना कर बोला ।
“वह गजाधर का बच्चा तो यही समझता है ।”
“लेकिन समस्या क्या है ? तुम गजाधर की बात मान क्यों नहीं लेते ? तुम इस लड़की को ले क्यों नहीं जाते यहां से ?”
“मैं इसे ले कहां जाऊं ? मुझे मालूम तो हो कि साली कौन है कहां रहती है ?”
“जानने की जरूरत क्या है ? तुम इसे होटल से निकालकर सड़क पर कहीं भी डाल दो और फूट जाओ यहां से ।”
“हीं... हीं... हीं, सुनील भाई । भला ऐसा भी कहीं हो सकता है ?”
“तुम मुझसे क्या चाहते हो ?”
“अभी यह बताना बाकी रह गया है ।” - बन्दर आंखें निकाल कर बोला - “इसे बखेड़े में से मुझे निकालो मेरे बाप ।”
“ओके । ओके ।” - सुनील बोला । वह कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “तुमने यह जानने की कोशिश की है कि वास्तव में सरिता है कौन ?”
“कैसे जानता ?”
“इसका पर्स पड़ा है ।” - सुनील पलंग पर सरिता के शरीर के पास पड़े चमड़े के लाल बैग की ओर संकेत करता हुआ बोला - “इस टटोलो ! शायद सरिता के बारे में कुछ मालूम हो सके ।”
“नहीं, मैं कैसे कर सकता हूं यह... किसी लड़की की इजाजत के बिना उसके पर्स में हाथ डालना शराफत के खिलाफ है । तुम टटोलो...”
“यानी कि मैं शरीफ आदमी नहीं हूं ?” - सुनील आंखें निकाल कर बोला ।
“मैंने यह कब कहा ?” - बन्दर हड़बड़ाया ।
“मतलब यह कि तुम सिर्फ बन्दर ही नहीं गधे भी हो जो अपनी कही बात का मतलब खुद नहीं समझते हो ?”
“हां बाबा... हां, मैं गधा हूं । तुम मुझे मारो और जरा जल्दी एक्शन लो ।”
सुनील ने आगे बढकर पर्स उठा लिया । उसने पर्स खोला और उसके भीतर के सामान को टटोलने लगा । पर्स में ढेर सारे सौन्दर्य प्रसाधनों और दल और सौ के मिले जुले कर्ई नोटों के अतिरिक्त उसे दो चिट्ठियां दिखाई दीं । सुनील ने वे चिट्ठियां बाहर निकाल लीं । उन दोनों पर पते के स्थान पर लिखा था ।
कुमारी सरिता
द्वारा ठाकुर हरनाम सिंह
हरनाम सिंह पैलेस
लिटन रोड, राजनगर
“अबे बन्दर !” - सुनील बोला - “यह तो किसी ठाकुर हरनाम सिंह की होती-सोती मालूम होती है ।”
“ठाकुर हरनाम सिंह !” बन्दर बोला - “कैसे जाना ?”
सुनील ने चिट्ठियां उसके सामने कर दीं ।
बन्दर ने चिट्ठियां देखीं और फिर दहशत भरे स्वर से बोला - “मारे गए ।”
“क्या हुआ ?”
“मैं ठाकुर हरनाम सिंह को जानता हूं । वह मेरे डैडी का बड़ा गहरा दोस्त है ।”
“ठाकुर हरनाम सिंह को जानते हो लेकिन सरिता को नहीं जानते ?”
“नहीं जानता कभी वास्ता ही नहीं पड़ा । लेकिन मैंने ठाकुर हरनाम सिंह की एक जवान लड़की के बारे में सुना जरूर है । सरिता जरूर ठाकुर हरनाम सिंह की लड़की है । हे भगवान ! अगर डैडी को आज के किस्से की खबर हो गई तो वे मेरी खाल खिंचवा देंगे । सुनील भगवान के लिए जल्दी कुछ करो ।”
“क्या करूं ?”
“इसे जल्दी यहां से निकालो ।”
“और निकालकर कहां ले जाऊं ?”
“कहीं ले जाओ । अपने घर ले जाओ । हरनाम सिंह पैलेस ले जाओ । हस्पताल ले जोओ । पुलिस स्टेशन ले जाओ लेकिन यहां से निकालो इसे ।”
“कैसे ? सवारी का क्या इन्तजाम होगा ? मैं तो मोटर साईकिल पर आया हूं । इसको इस हालात में मोटर साईकिल पर कैसे लादा जा सकता है ।”
“मेरी कार बाहर खड़ी है !”
“बन्दर भगवान के लिए अपने उस कबाड़ को कार मत कहा करो । इससे कार की भारी तौहीन हो जाती है ।”
“अब तुम तो खामखाह कीड़े डाल रहे हो उसमें । इतनी बुरी गाड़ी तो नहीं है वह...”
“अच्छा... अच्छा ! तुम कार को होटल के दरवाजे के सामने लाओ । मैं लड़की को लेकर नीचे आता हूं ?”
“उठा लोगे ?”
“किसे ? कार को ?”
“नहीं... लड़की को !”
सुनील ने एक नजर सरिता पर डाली और फिर बोला - “उम्मीद तो है ।”
“ध्यान से उठाना । कहीं कोई पसली मत चटखा देना बेचारी की...”
“जैसे अगर उसकी पसली चटख गई तो तुम्हारा कलेजा साथ फट जायेगा ।”
“और नहीं तो क्या ?”
“अब खिसको यहां से...”
बन्दर एक हसरत भरी निगाह लड़की पर डालता हुआ कमरे से बाहर निकल गया ।
बन्दर की बाबा आदम के जमाने की खटारा सी कार सारे शहर में मशहूर थी । हार्न को छोड़कर कार के हर हिस्से में से आवाज निकलती थी । स्पीडोमीटर कई सालों से बेकार हो चुका था । कार की स्पीड जानने का तरीका यह होता था कि पन्द्रह मील प्रति घण्टा पर दाहिना मडगार्ड हिलता था, बीस मील प्रति घण्टा पर दांया और बांया दोनों मडगार्ड हिलते थे । पच्चीस मील पर फुटबोर्ड थरथराने लगता था । तीस मील पर कार की छत हिलती थी और इन्जन का एक-एक पुर्जा लड़खड़ा जाता था । तीस मील प्रति घण्टा से अधिक तेज वह कार चलती ही नहीं थी ।
बन्दर के डैडी की गिनती नगर के इने-गिने रईसों में होती थी । बढिया से बढिया मॉडल की कारें उनकी कोठी पर मौजूद थीं लेकिन बन्दर को तो अपना खटारा ही पसन्द था । बन्दर को वह खटारा पसन्द आने की एक वजह और भी थी । उसके ख्याल से लड़कियां उससे अधिक उसके खटारे से प्रभावित होती थीं ।
सुनील ने लड़की को कार की पिछली सीट पर लिटा दिया और स्वयं ड्राईविंग सीट पर आ बैठा ।
बन्दर खिड़की के समीप आ खड़ा हुआ ।
“ध्यान से ले जाना !” - बन्दर यूं बोला जैसे अपनी नवविवाहिता पत्नी को विदा कर रहा हो ।
“सुबह मेरी मोटर साईकिल बैंक स्ट्रीट में पहुंच जानी चाहिए !” - सुनील उसकी बात को अनसुना करता हुआ बोला ।
“पहुंच जाएगी । आखिर मैंने अपनी कार लेने भी तो आना है ।”
सुनील ने एक निगाह होटल के मुख्य द्वार की ओर डाली । द्वार की चौखट का सहारा लिए वहां गजाधर खड़ा था । वह उन्हीं की ओर देख रहा था ।
“और बन्दर !” - सुनील बोला - “तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा यही होगा कि अब तुम इस होटल में से अपना बोरिया बिस्तर समेट लो ।”
“वह तो करना ही पड़ेगा ।”- बन्दर बोला - “यह मैनेजर का बच्चा तो मुझे यूं घूरता है जैसे मैं कोई इश्तिहारी मुजरिम होऊं या इसकी लड़की को भगा कर ले गया होऊं ।”
“मैं चला !” - सुनील कार स्टार्ट करने का प्रयत्न करता हुआ बोला ।
“हां जरूर और तकलीफ माफ ! जो हुआ उसका मुझे अफसोस है और जो नहीं हो सका उसका मुझे और भी ज्यादा अफसोस है ।”
“यह खटारा तो साला स्टार्ट नहीं हो रहा । साला घर्र-घर्र करके रह जाता है ।”
“ओह, सॉरी !” - बन्दर बोला और फिर उसने आगे बढकर अपने पांव की एक भरपूर ठोकर कार के बोनट की साइड में जमा दी ।
कार फौरन स्टार्ट हो गई ।
सुनील ने हैरानी से बन्दर की ओर देखा ।
“यही एक नुक्स है इसमें !” - बन्दर बोला - “साली, डण्डे की यार है । बिल्कुल सिर चढी बीवी की तरह...”
सुनील उसे टोकता हुआ बोला - “एक आखिरी बात और बताओ ।”
“पूछो ।”
“अगर झूठ बोला तो हुलिया बिगाड़ दूंगा ।”
“अरे बाबा, पूछो न ?”
“तुमने इस लड़की के साथ कोई ऐसी वैसी हरकत तो नहीं की ?”
बन्दर ने एक गहरी सांस ली और फिर बड़े अरमान भरे स्वर में बोला - “इरादे तो बहुत बुलन्द थे, प्यारे भाई, लेकिन क्या करूं ? नौबत ही नहीं आई... मेरे भाई, कोई ऐसी वैसी हरकत कर पाने से पहले ही साली का फ्यूज उड़ गया । इसी लिए तो अभी मैंने कहा था कि जो नहीं हो सका, उसका मुझे और भी ज्यादा अफसोस है ।”
“आनेस्ट ?”
“आनेस्ट ।”
“तुम अपनी करतूत से शर्मिंदा हो ?”
“मैंने तो, भाई साहब, कोई करतूत की ही नहीं । करतूत तो इस लड़की ने की है जो आधी बोतल शराब पी गई और फिर एक भले घर के बहू-बेटे को उल्टे-सीधे आइडिए देने लगी । सुनील भाई, अगर यह होश में आ जाए तो इससे पूछना कि यह अपनी करतूत से शर्मिन्दा है या नहीं ।”
सुनील ने कार को गियर में डाल दिया ।
कार लड़खड़ाती हुई सड़क पर दौड़ चली ।
सुनील ने कार को लिटन रोड की ओर भगा दिया ।
लिटन रोड रौनक बाजार से दस मील दूर थी । सुनील जानता था कि रास्ते सुनसान होने के बावजूद भी बन्दर के खटारे पर वह पच्चीस-तीस मिनट से पहले लिटन रोड नहीं पहुंच सकता था ।
वह शान्तिपूर्वक गाड़ी चलाता रहा ।
एकाएक उसे पिछली सीट से हल्की सी कराह की आवाज सुनाई दी ।
सुनील ने घूम कर देखा । लड़की सीट पर से उठकर बैठ गई थी । शायद सर्दियों की रात की ठण्डी हवा के तेज झौंके उसे होश में ले आये थे ।
“मैं कहां हूं ?” - वह कम्पित स्वर से बोली ।
“कार में ।” - सुनील ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया ।
“वह तो मुझे भी दिखाई दे रहा है लेकिन...” - एकाएक उसने एक जोर की उबकाई ली और फिर जल्दी से बोली - “गाड़ी रोको ।”
“लेकिन...”
“आई से स्टाप दी कार, डैम यू ।”
सुनील ने गाड़ी रोक दी ।
सरिता ने जल्दी से कार का दरवाजा खोला और लड़खड़ाती हुई कार से बाहर निकल गई । वह फुटपाथ पर पहुंची और खम्बे का सहारा लेकर खड़ी हो गई । उसका सिर नीचे झुका हुआ था और मुंह से गों-गों की आवाज निकल रही थी ।
सुनील भी कार से बाहर निकल आया ।
वह उल्टियां कर रही थी ।
वातावरण में विस्की की दुर्गन्ध फैल गई ।
सुनील चुपचाप खड़ा रहा ।
जब वह सीधी हुई तो सुनील ने अपना रूमाल निकाल कर उसकी ओर बढा दिया ।
सरिता ने रूमाल से मुंह पोंछा और फिर रूमाल को फुटपाथ पर फेंक दिया ।
“पांच रुपये !” - सुनील धीरे से बोला ।
“तुमने मुझसे कुछ कहा ?” - सरिता तीव्र स्वर में बोली ।
“जी नहीं, मैं इस बार बिजली के खम्बे को बता रहा था कि वह रूमाल पांच रुपये का था ।”
सरिता ने उत्तर नहीं दिया । वह डगमगाते कदमों से कार की ओर बढी । वह कार का सहारा लेकर खड़ी हो गई और फिर लम्बी-लम्बी सांसें लेने लगी ।
“अगर आप कार के भीतर बैठकर आराम फरमा लें तो हम आगे बढें ।”
सरिता ने सिर उठाया... वह कुछ क्षण गौर से सुनील की सूरत को देखती रही और फिर बोली - “तुम वो नहीं हो ।”
“वो कौन ?” - सुनील बोला ।
“या फिर तुमने चश्मा उतार लिया है ।”
सुनील समझ गया कि सरिता को बन्दर का ख्याल आ रहा था । वह बोला - “आपका पहला ही ख्याल ठीक था, मैडम । मैं वो नहीं हूं ।”
“तो फिर तुम कौन हो ?”
“मेरा नाम सुनील है ।”
“मैंने नाम नहीं पूछा था ।”
“तो फिर और क्या पूछा था ?”
सरिता चुप रही जैसे उसे कहने के लिए कुछ सूझ न रहा हो ?
“मैं इस कार में थी ?” - वह फिर बोली ।
“जी हां !”
“तुम मुझे भगाकर ले जा रहे हो ।”
“मेम साहब, मैं आपको आपके घर ले रहा हूं ।”
“नहीं तुम झूठ बोल रहे हो, तुम जरूर मुझे भगाकर ले जा रहे हो । मैं तुम्हें गिरफ्तार करवा दूंगी । जानते नहीं हो मैं कौन हूं ? मैं ठाकुर हरनाम सिंह की बेटी हूं ।”
“आपने बहुत ज्यादा शराब पी ली है । इसलिए आप नशे में बहक रही हैं । कार में तशरीफ रखिए वर्ना ठण्ड लग जाएगी ।”
“मैंने शराब पी है ?”
“हां ! बहुत ज्यादा । आपको ऐसा नहीं करना चाहिए था ।”
सरिता ने दांत भींच लिए और कार की बाडी पर घूंसे बरसाती हुई बोली - “यह सब उस रवि के बच्चे की वजह से हुआ ।”
“कार बड़ी नाजुक है । मार खाने के काबिल तन्दरुस्ती नहीं है इसकी और हमने इसी कार पर हरनाम सिंह पैलेस पहुंचना है ।”
सरिता कुछ नहीं बोली ।
“रवि कौन है ?” - सुनील ने मीठे स्वर में पूछा ।
“रवि !” - सरिता भड़ककर बोली - “मेरे सामने नाम मत लो उस हरामजादे का । साले सब मर्द एक जैसे होते हैं । कमीने, धोखेबाज, हरजाई...”
“आपका गालियां देने का ढंग बहुत शानदार है । कहां से सीखा ?”
सरिता चुप रही ।
“कार में बैठिए ।”
सरिता ने कांपते हाथों से कार का दरवाजा खोला और भीतर बैठ गई । सुनील ड्राईविंग सीट पर आ बैठा । उसने कार आगे बढ़ायी ।
“रवि कौन है ?” - थोड़ी देर वाद सुनील ने मीठे स्वर में फिर पूछा ।
“रवि !” - वह बोली - “रवि मेरा... लेकिन तुम कौन होते हो मुझसे पूछने वाले ? रवि कोई हो तुम्हें क्या ? तुम गाड़ी चलाओ जो तुम्हारा काम है वर्ना ठाकुर साहब से कहकर नौकरी से निकलवा दूंगी ।”
“आप फिर बहक रही हैं, मेम साहब ! मैं आपका ड्राइवर नहीं हूं और न ही यह कार आपकी है ।”
“मैं बहक रही हूं ?” - सरिता चिल्ला कर बोली - “क्या मतलब ? मैंने शराब पी है ?”
“और नहीं तो क्या गंगाजल पिया है ?”
“गंगाजल ! गंगाजल तो मरे हुए आदमी पीते हैं ।”
“आपने स्काटलैण्ड का गंगाजल पिया है । विलायती शराब ।”
“तुमने पिलाई ?”
“नहीं, आपने अपनी मर्जी से पी ।”
“मैंने अपनी मर्जी से पी ?”
“हां ।”
एकाएक उसने अपने हाथों से अपना मुंह छिपा लिया और फिर हिचकियां ले लेकर रोने लगी ।
सुनील चुपचाप गाड़ी चलाता रहा ।
थोड़ी देर बाद सरिता ने हिचकियां लेनी बन्द कर दीं । वह थोड़ी देर सुवकती रही और फिर चुप हो गई ।
“आपने इतनी शराब क्यों पी ?” - सुनील ने धीरे पूछा - “क्या आप हमेशा ही शराब पी कर यूं होश खो बैठती हैं ?”
“नहीं...!” - सरिता भर्राए स्वर से बोली ।
“तो फिर ?”
सरिता चुप रही ।
“रवि कौन है ?”
सरिता ने उत्तर नहीं दिया ।
सुनील ने एक गहरी सांस ली और फिर अपना सारा ध्यान कार चलाने पर लगा दिया ।
कई क्षण कोई कुछ नहीं बोला ।
“सुनो !” - थोड़ी देर बाद सरिता बोली । इस बार उसकी आवाज बहुत सुसंयत थी । उल्टी के रास्ते पेट में से शराब निकल जाने के बाद अब धीरे-धीरे उसका नशा उतर रहा था ।
“फरमाइए ।” - सुनील बोला ।
“तुम मुझे कहां से लाए हो ?”
“आप क्लब के पिछले कम्पाउन्ड के एक बैंच पर बेहोश पड़ी थीं ।”
“लेकिन मैं तो क्लब से बाहर निकल गई थी और जहां तक मुझे याद है मैं बाद में एक दूसरी इमारत में प्रविष्ट हुई थी । मैं सीड़ियां भी चढी थी । मेरे साथ एक युवक था । वह एक मोटा सा चश्मा लगाता था लेकिन वह तुम नहीं थे । क्योंकि तुम चश्मा नहीं लगाते हो ।”
“आप ख्वाब देख रही हैं । क्लब में आप किसी चश्मे वाले युवक से मिली जरूर थीं लेकिन उसके साथ कहीं गई नहीं थीं । आप क्लब के पिछले दरवाजे से बाहर निकली थीं और पिछले कम्पाउन्ड के एक बैंच पर जा बैठी थीं । वहीं आप पर शराब का नशा हावी हो गया था और आप होश खो बैठी थीं ।”
“फिर ?”
“संयोग से मैंने आपको वहां पड़ा देख लिया था । मैं आपको जानता नहीं था । आपका पर्स खुला हुआ नीचे जमीन पर पड़ा था । मैंने पर्स उठा लिया था । उसमें पड़ी दो चिट्ठियों से मुझे मालूम हुआ था कि आपका नाम सरिता है । आप ठाकुर हरनाम सिंह से सम्बन्धित हैं और हरनाम सिंह पैलेस में रहती हैं ।”
“मैं उनकी बेटी हूं ।”
“मेरा भी यही ख्याल था ।”
“फिर ?”
“फिर बस... मैंने आपको अपनी इस गाड़ी में लाद लिया और अब हम हरनास सिंह पैलेस जा रहे हैं ।”
“सच बोल रहे हो ?”
“जी हां । शत प्रतिशत !”
“तुम बहुत भले आदमी हो ।”
“थैंक्यू !”
“लेकिन अच्छा होता तुम मुझे वहीं पड़े रहने देते । क्लब के और लोग भी मेरा तमाशा देखते और फिर रवि के बच्चे को कुछ तो शर्म आती ।”
“लेकिन मेम साहब, यह रवि का बच्चा है कौन ?”
“लेकिन तुमने अच्छा ही किया जो मुझे वहां से उठा लाए ।”
सरिता अपनी ही झोंक में बोलती रही - “अगर क्लब के लोग मुझे क्लब के पिछले कम्पाउन्ड में उस हालत में देखते तो ठाकुर साहब की भी तो तौहीन होती । मिस्टर... आई एम थैंकफुल टू यू !”
“वह तो हुआ लेकिन आप मेरे कम से कम एक इकलौते सवाल का तो जवाब दे दीजिए ।”
“कौन सा सवाल ?”
“वही जो पहले भी आपसे दस बार पूछ चुका हूं । रवि कौन है ?”
“रवि का नाम मत लो । नाम मत लो उस नीच आदमी का ।” - सरिता कड़वे स्वर में बोली - “वह जिक्र के काबिल इन्सान नहीं ।”
“लेकिन...”
“ले आफ मैन !”
सुनील चुप हो गया ।
सुनील ने कार को हरनाम सिंह पैलेस के सामने लाकर रोका ।
उसी क्षण मोड़ से एक कार घूमी और उसकी हैडलइट्स का तेज प्रकाश सुनील और सरिता पर पड़ा ।
एक विशाल शेवरलेट गाड़ी सुनील की कार की बगल में आकर रुकी । कार की ड्राइविंग सीट पर एक लगभग अट्ठाइस वर्ष का युवक बैठा था । युवक की बगल में एक अधेड़ आयु का व्यक्ति बैठा था । दोनों योरोपियन परिधान पहने हुए थे ।
ड्राइविंग सीट पर बैठे युवक की दृष्टि सुनील की कार की पिछली सीट पर पड़ी और फिर उसके मुंह से निकल गया - “सरिता !”
सरिता का चेहरा पीला पड़ गया ।
युवक की बगल में बैठा अधेड़ उम्र का व्यक्ति हड़बड़ा कर कार से बाहर निकला और सुनील की कार की ओर लपका ।
युवक भी उसके पीछे था ।
“सरिता !” - अधेड़ उम्र का व्यक्ति कठिन स्वर में बोला ।
“डैडी !” - सरिता बोली और उसने सिर झुका लिया ।
अधेड़ उम्र का व्यक्ति सुनील से सम्बोधित हुआ - “मिस्टर अपनी गाड़ी को आगे बढा कर पोर्टिको में ले चलो ।”
“लेकिन...” - सुनील ने प्रतिवाद करना चाहा ।
“सुना नहीं ठाकुर साहब ने क्या कहा ?” - युवक कड़क कर बोला ।
“मैंने सुन लिया है ।” - सुनील रुक्ष स्वर में स्वर में बोला - “मैं आपके शराब के पीपे को यहां तक ले आया हूं इसी को गनीमत समझिए । अब आप लोग अपनी चहेती को कहिए कि वह गाड़ी से बाहर निकले और फिर मुझे आज्ञा दीजिए ।”
“साले ! बदमाश !” - युवक दांत पीस कर बोला - “मैं अभी मजा चखाता हूं तुम्हें ।”
और वह सुनील की ओर बढ़ा ।
“रवि !” - अधेड़ उम्र का व्यक्ति घुड़क कर बोला ।
युवक ठिठक गया ।
“पीछे हटो ।”
युवक एक कदम पीछे हट गया ।
“ओह !” - सुनील बोला - “तो आप हैं रवि साहब । रास्ते में बहुत तारीफ सुनता आ रहा था मैं आपकी । सरिता जी तो आपको कई नामों से पुकारती हैं । जैसे साला, हरामजादा, कमीना, धोखेबाज, हरजाई वगैरह ।”
रवि ने एक कहर भरी दृष्टि सुनील पर डाली और फिर बड़े आहत भाव से सरिता की ओर देखने लगा । सरिता ने निगाहें दूसरी ओर फेर लीं । रवि ने आगे बढकर सुनील के खटारे का पिछला दरवाजा खोला । उसने हाथ बढाकर सरिता की बांहे थाम लीं और मीठे स्वर से बोला - “आओ, सरिता ।”
सरिता ने एक झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया और चिल्ला कर बोली - “हाथ मत लगाओ मुझे ।”
“रवि !” - दूसरा व्यक्ति बोला ।
रवि सकपका कर पीछे हट गया ।
“गाडी में बैठो जाकर ।”
रवि अनिच्छापूर्ण ढंग से घूमा और जाकर शेवरलेट की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया ।
“मिस्टर !” - अधेड़ आयु का व्यक्ति सुनील से सम्बोधित हुआ - “क्या नाम है तुम्हारा ?”
“सुनील ।” - सुनील बोला ।
“मेरा नाम ठाकुर हरनाम सिंह है । सरिता मेरी बेटी है । भीतर चलो । मैं तुमसे कुछ बातें करना चाहता हूं ।”
सुनील तनिक हिचकिचाया और उसने अपने खटारे को गियर में डाल दिया । खटारा हरनाम सिंह पैलेस के अर्धवृताकार ड्राइव वे पर बढ चला ।
ठाकुर हरनाम सिंह शेवरलेट में रवि की बगल में जा बैठा रवि ने गाड़ी को तत्काल सुनील के खटारे के पीछे डाल दिया । सुनील ने गाड़ी को पोर्टिको में ले जाकर रोक दिया ।
लगभग उसी समय शेवरलेट भी पीछे आकर रुकी और उस में से रवि और ठाकुर हरनाम सिंह बाहर निकले ।
सुनील भी कार से बाहर निकल आया ।
रवि ने आगे बढकर कार का दरवाजा खोला और सरिता की ओर अपना हाथ बढाया । सरिता ने उसका हाथ झटक दिया और कार से बाहर निकल आयी । वह सुनील के कन्धे का सहारा लेकर खड़ी हो गई ।
रवि बौखलाया सा कभी सुनील को और कभी सरिता को देख रहा था ।
उसी क्षण एक दरवाजा खुला और इमारत के बाहरी बरामदे में एक युवती प्रकट हुई । युवती सूरत में ऐंग्लो इण्डियन लग रही थी और वह सरिता से तीन चार साल से अधीक बड़ी नहीं मालूम हो रही थी ।
“सूसन !” - ठाकुर बोला - “सरिता को सम्भालो ।”
सूसन के नाम से पुकारी जाने वाली ऐंग्लो इण्डियन युवती आगे बढी ।
“आपको सरिता कहां मिली ?” - उसने पूछा ।
“हमें नहीं मिली !” - ठाकुर बोला - “सरिता इस युवक के साथ आई है । हम तो सरिता को हर जगह तलाश कर चुकने के बाद निराश वापिस लौट रहे थे । उसी क्षण सरिता इस युवक के साथ यहां आई थी । फाटक पर हमारा इनसे आमना सामना हो गया था ।”
सूसन ने यूं सुनील की ओर देखा जैसे राजमहल में कोई चोर घुस आया हो ।
“ये कौन साहब हैं ?” - वह बोली ।
“अभी हमने इनसे कुछ पूछा नहीं है ।” - ठाकुर बोला - “तुम सरिता को भीतर ले जाओ ।”
सुनील फौरन सरिता से अलग हट गया । सूसन सरिता को सहारा देकर भीतर की ओर ले चली ।
“आओ ।” - ठाकुर बोला ।
सुनील ठाकुर के साथ हो लिया । रवि उनके पीछे था । ठाकुर उसे एक विशाल कमरे में ले आया ।
“बैठो ।” - वह बोला ।
सनील बैठ गया ।
“तुम” - ठाकुर गम्भीर स्वर से बोला - “सरिता को कब से जानते हो ?”
सुनील ने घड़ी देखी ओर फिर शांत स्वर से बोल -“लगभग पचास मिनट पहले से ।”
रवि ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन ठाकुर ने उसे हाथ उठाकर रोक दिया ।
“सरिता कहां मिली तुम्हें ?”
“क्लब के पिछले कम्पाउन्ड के एक बैंच पर ।” - सुनील बोला । और उसने दुबारा वही कहानी दोहरा दी जो वह पहले सरिता को भी सुना चुका था ।
“तुम झूठ बोल रहे हो ।” - रवि क्रोधित स्वर में बोला ।
“रवि !” - ठाकुर उसे डपटता हुआ बोला ।
रवि फिर चुप हो गया । उसके नेत्रों से बेवसी टपक रही थी ।
“मूर्ख मत बनो,रवि ।” - ठाकुर सुसंयत स्वर में बोंला - “तुमने मुझे खुद बताया था कि क्लब में जो आदमी सरिता के साथ फ्लर्ट कर रहा था वह एक दुबला पतला सा बड़े भारी फ्रेम और मोटे-मोटे शीशों का चश्मा लगाने वाला व्यक्ति था । वह आदमी सुनील नहीं हो सकता ।”
“तो वह सुनील का साथी था । ठाकुर साहब, मुझे इस आदमी की बात पर विश्वास नहीं । मेरा दावा है कि सरिता क्लब में नहीं थी । इस आदमी ने और इसके चश्मे वाली साथी दोनों ने मिल कर जरूर कोई गड़बड़ की है । आप इसके साथ बहुत नर्मी से पेश आ रहे हैं । मैं इससे कबुलवा कर छोडूंगा कि यह सरिता को कहां ले गया था ।”
“कैसे कबूलवाओगे ?” - सुनील ने शान्ति से पूछा ।
“मुझे तुम जैसे बदमाश लोगों की जुबान खुलवाने के बहुत तरीके आते हैं ।”
सुनील अपने स्थान से उठा । वह रवि के एकदम सामने जा कर तन कर खड़ा हो गया और फिर पूर्ववत् शान्त स्वर में बोला - “जरा एक आध तरीका आजमा कर देखो तो !”
रवि उससे निगाह नहीं मिला सका । वह कसमसा कर एक कदम पीछे हट गया । फिर वह ठाकुर की ओर घूम कर बोला - “ठाकुर साहब, इसे पुलिस में दे देना चाहिए ।”
“तुम्हारा सिर फिर गया है ।” - ठाकुर तनिक चिड़े स्वर से बोला - “पुलिस को बीच में लाने का पता है क्या मतलब होगा ? सारी दुनिया को मालूम हो जाएगा कि ठाकुर हरनाम सिंह की बेटी पूरी रात कहीं गायब रही थी और सुबह साढे चार बजे जब वह घर वापिस लौटी थी तो उसके मुंह से शराब के भभूके छूट रहे थे ।”
रवि ने सिर झुका लिया ।
“वह तो अब भी मालूम हो जाएगा ।” - सुनील धीरे से बोला ।
“क्या मतलब ?” - ठाकुर चौंक कर बोला ।
उत्तर देने के स्थान पर सुनील ने जेब से अपना एक विजीटिंग कार्ड निकाल कर ठाकुर की ओर बढा दिया ।
ठाकुर ने कार्ड ले लिया और पढने लगा - सुनील कुमार चक्रवर्ती, स्पेशल कारस्पान्डेन्ट ‘ब्लास्ट’ ।
ठाकुर ने दुबारा से सिर से पांव तक सुनील को देखा और फिर विस्मयपूर्ण स्वर में बोला - “तुम ‘वह’ सुनील हो ?”
सुनील चुप रहा ।
ब्लास्ट में छपी तुम्हारी रिपोर्ट मैं बहुत दिलचस्पी से पढता हूं ।”
रवि ने ठाकुर के हाथ से कार्ड ले लिया । उसने कार्ड को पढा और फिर कार्ड को फर्श पर फैंकता हुआ गर्ज कर बोला - “अगर तुमने सरिता के बारे में एक शब्द भी ‘ब्लास्ट’ में छापा तो मैं तुम्हारी हड्डी पसली एक कर दूंगा ।”
“अगर तुम मुझे यूं ही धमकियां देते रहे” - सुनील उसके स्वर की नकल करता हुआ बोला - “तो मैं यह सारी रिपोर्ट ‘ब्लास्ट’ में जरूर छापूंगा ।’
रवि मुट्ठियां भींचे उसकी ओर बढा ।
“रवि !” - ठाकुर गर्ज कर बोला - “आदमी बनो ।”
रवि ठिठक गया ।
“रवि की बात का बुरा मत मातना, बेटे ।” - ठाकुर मीठे स्वर में बोला - “रवि सरिता का होने वाला पति है । सरिता के साथ जैसी घटना घटी है उसकी वजह से रवि का क्रोधित होना स्वाभाविक ही है ।”
“लेकिन मुझे तो सारे बखेड़े की वजह ही रवि मालूम होता है ।”
“तुम्हें सरिता ने कुछ बताया है ?” - ठाकुर संशक स्वर में बोला ।
“नहीं । कुछ उखड़ी-उखड़ी बातों से मैंने अनुमान लगाया है ।”
“तुम क्या इस घटना को वाकई ‘ब्लास्ट’ में छापोगे ?”
सुनील के होठों के कोरों पर एक मुस्कराहट आ गई । वह नकारात्मक ढंग से सिर हिलाता हुआ बोला - “किसी के निजी जीवन पर कीचड़ उछालना हमारे अखबार का सिद्धान्त नहीं है ।”
ठाकुर ने शान्ति की गहन निःश्वास ली ।
“इस सन्दर्भ में तुम हमें और कुछ बताना चाहते हो ?”
“और बताने लायक कुछ है ही नहीं ।” - सुनील बोला ।
“फिर बहुत-बहुत धन्यवाद । मैं तुम्हारा आभारी हूं कि तुम मेरी बेटी को सुरक्षित घर लौटा लायें !”
सुनील मुस्कराया और फिर उसने बड़े विनीत भाव से हाथ जोड़ दिए ।
“रवि !” - ठाकुर बोला - “सुनील का शुक्रिया अदा करो ।”
“थैंक्यू !” - रवि यूं बोला जैसे सुनील का अहसान स्वीकार करते हुए उसका कलेजा फटा जा रहा हो ।
सुनील ने एक बार फिर ठाकुर का अभिवादन किया और फिर हरनाम सिंह पैलेस से बाहर की ओर चल दिया ।
***
सुनील ने कार को बैंक स्ट्रीट की तीन नम्बर इमारत के सामने लाकर रोक दिया । सवा पांच बज चुके थे, वातावरण में अभी भी रात का अन्धेरा फैला हुआ था । चौकीदार जा चुका था । गली में कभी-कभार इक्का-दुक्का राहगीर चलता दिखाई दे जाता था ।
इमारत के सामने उसे अपनी मोटर साईकिल कहीं दिखाई नहीं दी । इसका मतलब था कि बन्दर अभी वहां नहीं आया था ।
उसने कार का इन्जन बन्द किया और बाहर निकल आया ।
दरवाजे के समीप एक ठिगना सा आदमी खड़ा था । उसने एक उड़ती सी दृष्टि सुनील पर डाली और फिर दूसरी ओर देखने लगा ।
सुनील सीटी बजाता हुआ इमारत में प्रविष्ट हुआ । वह सीढियों की ओर बढ गया ।
ठिगने ने तीन नम्बर इमारत से लगभग बीस गज दूर बिजली के खम्बे का सहारा लेकर खड़े एक लम्बे ओवरकोट वाले आदमी को संकेत किया और फिर दवे पांव सुनील के पीछे सीढियां चढने लगा ।
सुनील ने अपने फ्लैट का ताला खोला । उसने दरवाजे को धक्का दिया और भीतर प्रविष्ट हो गया । उसने भीतर की बत्ती जलाई और फिर घूम कर दरवाजा बन्द कर दिया लेकिन इससे पहले कि वह दरवाजे की चिटकनी लगा पाता, किसी ने बाहर से दरवाजे को जोर का धक्का दिया । दरवाजे का पल्ला भड़ाक से सुनील के चेहरे से टकराया । सुनील लड़खड़ा कर पीछे हट गया ।
ठिगना फ्लैट में प्रविष्ट हो गया । उसके हाथ में एक साइलेंसर लगी रिवाल्वर चमक रही थी । रिवाल्वर की नाल का रुख सुनील की ओर था और ठिगने की उंगली ट्रिगर पर कसी हुई थी । उसने अपने होठों पर उंगली रखकर सुनील को चुप रहने का संकेत किया । फिर उसने सावधानी से द्वार को भीतर से बन्द कर लिया । उसने सुनील को आगे बढने का संकेत किया । ठिगने के संकेत पर वह एक कुर्सी पर बैठ गया । ठिगना उसके सामने बैठ गया । वह सुनील के प्रति पूर्णतया सावधान था । रिवाल्वर अब भी सुनील की ओर तनी हुई थी ।
सुनील धीरे से खांसा और फिर नर्वस स्वर में बोला - “भाई साहब...”
“श.. श... श..” - ठिगना रिवाल्वर की नाल को उंगली की तरह अपने होठों के आगे करता हुआ बोला ।
सुनील फौरन चुप हो गया ।
ठिगना उसके सामने बैठा रहा ।
दस मिनट गुजर गए ।
बीच में सुनील ने एक दो बार बोलने का प्रयत्न किया । लेकिन ठिगने की चेतावनीपूर्ण निगाहों ने उसकी हिम्मत पस्त कर दी ।
उसी क्षण किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी ।
ठिगना अपने स्थान से उठा और बिना एक क्षण के लिए भी सुनील से दृष्टि हटाए द्वार के पास पहुंचा ।
“कौन ?” - वह द्वार के समीप जाकर बोला ।
“मैं !” - बाहर से आवाज आई ।
ठिगना शायद बाहर से आने वाली आवाज पहचानता था । उसने सावधानी से द्वार खोल दिया ।
लम्बे ओवरकोट वाला भीतर प्रविष्ट हुआ । उसने द्वार फिर भीतर से बन्द कर दिया । दोनों की निगाहों मिलीं । लम्बे ओवरकोट वाले ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया और फिर बड़े अर्थपूर्ण ढंग से सुनील की ओर देखा ।
ठिगने ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
ओवरकोट वाला सुनील की ओर बढा ।
“क्या चाहते हो, भाई लोगो ?” - सुनील बोला ।
ओवरकोट वाले ने अपनी जेब में से एक सिल्क की पतली सी डोरी निकाल ली ।
ठिगना आगे बढा और उसने रिवाल्वर की नाल सुनील की कनपटी से सटा दी । सुनील को यह बताने की जरूरत नहीं थी कि शरारत करने पर उसका क्या परिणाम हो सकता था ।
लम्बे ओवरकोट वाले ने बड़ी दक्षता से कुर्सी की टांगों के साथ सुनील की टांगें बांध दीं और उसके हाथ कुर्सी की पीठ के पीछे ले जाकर उसकी कलाइयों को रस्सी से जकड़ दिया ।
फिर ओवरकोट वाला बड़ी बारीकी से सुनील के कपड़ों की तलाशी लेने लगा ।
“क्या तलाश कर रहे हो, प्यारे लाल ?” - सुनील बोला ।
लम्बे ओवरकोट वाले का भारी हाथ सुनील के चेहरे से टकराया । सुनील फौरन चुप हो गया । पीड़ा से उसका चेहरा विकृत हो उठा ।
लम्बे ओवरकोट वाला उसके शरीर के एक-एक इन्च भाग को बड़ी बारीकी से टटोल चुकने के बाद सीधा खड़ा हो गया । उसके चेहरे पर निराशा की झलक थी । प्रत्यक्ष था कि जो कुछ वह ढूंढ रहा था, वह उसे मिला नहीं था । उसकी निगाहें ठिगने से मिली । लम्बे ओवरकोट वाले ने फिर नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
कुछ क्षण दोनों चुपचाप खड़े रहे ।
फिर ठिगने ने दुबारा लम्बे ओवरकोट वाले को संकेत किया । लम्बे ओवरकोट वाले ने अपनी जेब से डाक्टरों द्वारा ड्रेसिंग के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले प्लास्टर टेप का एक बड़ा टुकड़ा निकाला और उसने सुनील के मुंह पर एक कान से दूसरे कान तक चिपका दिया । प्लास्टर टेप ने सुनील का मुंह पूरी तरह सील कर दिया ।
ठिगना और लम्बे ओवरकोट वाला लम्बे डग भरते हुए फ्लैट से बाहर निकल गए ।
सुनील ने अपनी टांगों और कलाइयों को ऐंठ कर सिल्क की डोरी की मजबूती को परखा । डोरी बेहद मजबूत थी, सुनील की उस पर जोर आजमायश का नुकसान यह हुआ कि डोरी की गांठे और ज्यादा कस गयीं । उसने अपने जबाड़े की इधर-उधर हिलाकर और मुंह को छाती पर रगड़कर मुंह पर से प्लास्टर टेप की पट्टी सरकाने की कोशिश की लेकिन पट्टी अपने स्थाने से हिली भी नहीं ।
सुनील ने बन्धनमुक्त होने के लिए प्रयत्न करने का ख्याल छोड़ दिया ।
अब उसकी मुक्ति तभी सम्भव थी जब कि या तो उसका कोई पड़ोसी उसे पुकारता हुआ फ्लैट में घुस आए और या फिर बन्दर आ जाए ।
वह मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगा कि बन्दर उसकी मोटर साईकिल को लौटाने जल्दी से जल्दी वहां आ पहुंचे ।
भगवान ने उसकी प्रार्थना सुनी ली ।
बन्दर लगभग आठ बजे उसके फ्लैट पर पहुंच गया जबकि सम्भावना इस बात की भी थी कि बन्दर को सुनील को मोटर साईकिल लौटने का ख्याल अगले सोमवार तक न आता ।
पहले फ्लैट की घन्टी बजी ।
उत्तर में सुनील मुंह से किसी प्रकार की आवाज निकालने का प्रयत्न करने लगा लेकिन सफल नहीं हो सका । प्लास्टर टेप बड़ी मजबूती से उसके होठों पर आस-पास की खाल पर चिपका हुआ था ।
उसे मुंह खोलने का प्रयत्न करने पर ऐसा अनुभव होता था जैसे प्लास्टर तो अपने स्थान से हिलेगा भी नहीं और उसके चेहरे की खाल उधड़ती चली जाएगी । वह धड़कते दिल से दरवाजा खुलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
सुनील को चिन्ता होने लगी कि कहीं घन्टी का उत्तर न मिलने पर बन्दर फ्लैट बन्द समझकर वापिस न लौट जाए । फ्लैट के मुख्य द्वार में स्प्रिंग लॉक लगा हुआ था इसलिए केवल देखने से यह नहीं जाना जा सकता था कि दरवाजा भीतर से बन्द था या अन्दर से ।
बन्दर के भीतर प्रविष्ट करने पर ही उसका जीवन निर्भर करता था ।
उसी क्षण उसे एक ख्याल आया । उसने अपने शरीर को जोर से दांयी ओर झटका दिया, परिणाम स्वरूम वह कुर्सी समेत दायीं ओर उलट गया । उलटने कि क्रिया में उसकी कुर्सी की पीठ शीशे के टाप वाली मेज से टकराई । मेज के शीशे के परखचे उड़ गए और शीशे की खनखनाहट की आवाज वातावरण में गूंज उठी ।
शीशा टूटने की आवाज शायद बाहर भी पहूंची क्योंकि तभी उसके कानों में बन्दर की आवाज पड़ी - “अरे सुनील भाई, भीतर बैठे क्या कर रहे हो । साले, दरवाजा क्यों नहीं खोलते हो ।”
और तभी शायद उसे द्वार भड़भड़ाने का ख्याल आया । दरवाजे पर पहला हाथ पड़ते ही दरवाजा भड़ाक से खुल गया ।
बन्दर कमरे में प्रविष्ट हुआ ।
फर्श पर पड़े सुनील पर दृष्टि पड़ते ही उसके नेत्र फैल गए ।
“अरे, सुनील भाई, मर गए हो गया ?” - हड़बड़ाहट में उसके मुंह से निकला और वह तेजी से आगे बढा ।
बड़े यत्न से सुनील मुंह से गों गों की आवाज निकालने लगा ।
बन्दर ने आगे बढकर बड़ी मुश्किल से सुनील की कुर्सी को सीधा किया और फिर उसकी कलाइयों पर बन्धी सिल्की की डोरी को खोलने का प्रयत्न करने लगा ।
“अरे सुनील भाई ।” - वह बोला - “यह तो खुलती नहीं रेशम की डोरी ।”
सुनील फिर गों गों करने लगा ।
“अरे यह गों गों कर रहे हो । इन्सानों की तरह बोलो न ।” - बन्दर झल्लाये स्वर में बोला ।
सुनील ने अपना मुंह ऊपर उठाया और गरदन हिला-हिला कर बन्दर का ध्यान अपने मुंह पर चिपकी प्लास्टर की पट्टी की ओर आकर्षित करने का प्रयत्न करने लगा ।
“अरे !” - बन्दर बोला - “तुम्हारी बोलती तो बन्द है । आवाज कैसे निकले ।”
उसने प्लास्टर हटाया ।
सुनील हांफता हुआ लम्बी-लम्बी सांसें लेने लगा ।
बन्दर पलकें झपकता हुआ उसके सामने खड़ा रहा ।
“किचन में से चाकू लेकर आओ ।” - सुनील बोला ।
थोड़ी देर बाद वह हाथ में चाकू लेकर वापिस लौटा । जल्दी ही उसने सुनील को बन्धन मुक्त कर दिया ।
सुनील ने कुर्सी से उठने का प्रयत्न किया लेकिन उसकी टांगों ने उसका साथ नहीं दिया । वह वहीं फर्श पर ढेर हो गया ।
“अबे क्या हो गया ?” - बन्दर घबरा कर बोला ।
“कुछ नहीं !” - सुनील उठने का प्रयत्न करता हुआ बोला - “काफी देर तक बन्धे रहने की वजह से हाथ पैरों में खून की हरकत बन्द हो गई है ।”
“अब शुरू कैसे होगी वह ?”
“तुम जरा मेरी कलाइयां मसल दो ।”
बन्दर फौरन उसकी कलाइयां मसलने लगा ।
“अब अपनी टांगों पर हाथ खुद चलाओ ?” - थोड़ी देर बाद बन्दर बोला - “मेरी सिंगल सिलेंडर की बाडी में इतना ही दम था ।”
सुनील अपनी टांगें मसलने लगा । थोड़ी देर बाद वह उठकर खड़ा हो गया और लड़खड़ाता हुआ कमरे में टहलने लगा ।
“सुनील !” - बन्दर गहरी सांस लेकर बोला - “चालीस लाख की आबादी वाले इस शाहर में बदमाशों को तुम्हारे से ही इतना लगाव क्यों है कि हर कोई तुम्हारे फ्लैट पर ही चढ दौड़ता है और फिर जंगली हाथियों की तरह तुम्हें रौंदता हुआ गुजर जाता है ।”
“क्योंकि राजनगर की चालीस लाख आबादी में मैं ही एक ऐसा अक्ल का अन्धा हूं जो बिना सोचे समझे दूसरे लोगों के फटे में टांग अड़ाता फिरता हूं ।”
“इस बार तुमने किसके फटे में टांग अड़ाई है ?”
“तुम्हारे ?”
“मेरे ! तुम्हारी इस दुर्गति से मेरा क्या वास्ता है ?”
“रात के तीन बजे तुम्हारे बुलाने पर मैं प्रिंस होटल पहुंचा । वहां से सरिता को लेकर मैं हरनाम सिंह पैलेस गया । वहां से लौटकर अपने फ्लैट पर आया तो फौरन मुझे कुछ बदमाशों ने आ दबोचा । उन्होंने मेरी तलाशी ली और फिर निराश होकर चले गए । इन तमाम बातों में कुछ तो सम्बन्ध होना ही चाहिये ।”
“और मैं समझ रहा था ।” - बन्दर धीरे से बोला - “कि तुम्हारी अक्ल खराब हो गई है । तुमने मेरी प्यारी कार से दुश्मनी निकाली है । तुम्हीं ने उसके बखिए उधेड़े हैं ।”
“क्या बक रहे हो ?”
“भाई साहब, नीचे खड़ी मेरी कार की ऐसी तैसी हुई पड़ी है । साली की गद्दियां उखड़ी पड़ी हैं । स्टैपनी की हवा निकली पड़ी है । पैट्रोल की टंकी का ढक्कन सड़क पर कार से दस गज दूर पड़ा था । मैंटिंग उधड़ी पड़ी है । पहले मैं इस तुम्हारी कोई बदमाशी समझा था लेकिन अब लगता है कि यह हरकत भी उन बदमाशों की ही जो तुम्हें यहां बांधकर छोड़ गए थे ।”
“अब तो तुम मानते हो कि इस सारे बखेड़े का सम्बन्ध तुमसे और सरिता से है ?”
“सिर्फ सरिता से, मेरे से नहीं ।”
सुनील ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला लेकिन उसी क्षण फ्लैट की घन्टी बज उठी ।
द्वार पर सरिता खड़ी थी । उस समय वह बड़ी शान्त और सौम्य युवती मालूम हो रही थी । सुनील को देखकर वह मुस्कराई और फिर मीठे स्वर से बोली - “क्या मैं अन्दर आ सकती हूं ।”
“एक मिनट प्लीज !” - सुनील हड़बड़ाये स्वर में बोला - “एक्सक्यूज मी ।”
सरिता के चेहरे पर उलझन के चिन्ह उभरे लेकिन उसने प्रतिवाद नहीं किया ।
सुनील लपकता हुआ ड्राइंग रूम में पहुंचा और धीमे स्वर में बन्दर से बोला - “अबे, बन्दर के बच्चे । तेरी अम्मा आ गई ।”
“कौन ?” - बन्दर हड़बड़ाया - “सोफिया लॉरेन ।”
“सोफिया लॉरेन नहीं ! सरिता ।”
“सरिता ! कौन सरिता ? ...सरिता ! अरे वो लड़की ? हे भगवान, ये कहां से टपक पड़ी । मैं भागता हूं यहां से ।”
और बन्दर उठकर फ्लैट के मुख्य द्वार की ओर लपका ।
“उधर कहां जा रहा है ?” - सुनील ने उसे बांह पकड़कर वापिस खींच लिया ।
“मैं तुम्हारे फ्लैट से खिसक रहा हूं ।”
“लेकिन मुख्य द्वार पर तो सरिता खड़ी है ।”
“तो फिर मैं क्या करूं ?”
“खिड़की के रास्ते नीचे कूद जाओ ।”
“हां, यह ठीक रहेगा ।” - बन्दर बोला और फिर एकदम हड़बड़ाया - “मुझे ऊटपटांग राय मत दो । मैं बैडरूम में जाकर छुप जाता हूं ।”
“बड़ी देर में अक्ल आयी ?”
“आई तो सही ।” - बन्दर बोला और तेजी से बैडरूम में घुस गया । उसने बैडरूम का दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया ।
सुनील वापिस फ्लैट के मुख्य द्वार पर पहुंचा ।
“तशरीफ लाइए ।” - वह जबरदस्ती मुस्कराता हुआ सरिता से बोला । सरिता फ्लैट में प्रविष्ट हो गई ।
“यहां बैठिए !” - सुनील एक कुर्सी सरिता की दिशा में सरकाता हुआ बोला - “आगे फर्श पर शीशे बिखरे हुए हैं । आज सुबह मेरी शीशे की मेज टूट गई है ।”
सरिता सुनील द्वारा निर्देशित कुर्सी पर बैठ गई ।
सुनील उसके सामने एक स्टूल पर बैठ गया और बोला - “फरमाइए ।”
सरिता कुछ क्षण चुप रही और फिर झिझकती हुई बोली - “पिछली रात को आप ही मुझे हरनाम सिंह पैलेस छोड़कर आए थे न ?”
“आपको कोई सन्देह है ?” - सुनील ने मुस्काराते हुए पूछा ।
“नहीं !” - सरिता बोली - “मिस्टर सुनील आप जानते ही हैं कि पिछली रात मैं किस हालत में थी । दरअसल... गुस्ताखी माफ... मुझे आपकी कोई विशेष याद नहीं है । मैं उस समय कुछ याद रख पाने की स्थिति में नहीं थी ।”
“फिर आपको कैसे मालूम हुआ कि पिछली रात को मैं आप को आपके घर छोड़ कर आया था ?”
“मुझे सूसन ने बताया था ।”
“सूसन !” - सुनील बोला और फिर उसे ऐंग्लो इण्डियन युवती का ख्याल आया जिसे पिछली रात ठाकुर हरनाम सिंह ने सूसन के नाम से पुकारा था ।
“जी हां, सूसन मेरी सौतेली मां है ।”
“सूसन वे एंग्लो इण्डियन महिला हैं न जो पिछली रात आपको पैलेस के भीतर ले गई थी ?”
“जी हां !”
“वे आपकी सौतली मां हैं ?”
“जी हां ।” - सरिता यूं बोली जैसे सूसन का उस ढंग से जिद आने हर वह कुछ असुविधा का अनुभव कर रही हो ।
“आई सी !”
“आप डैडी के पास अपना विजिटिंग कार्ड छोड़ आये थे । उसी पर आपके घर का पता भी था । सो मैं...”
सरिता ने जान-बूझकर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।
“कैसे कष्ट किया ?” - सुनील ने शिष्ट स्वर में पूछा ।
“मैं आपका धन्यवाद करने आई हूं और... और...”
“और ?”
“और मैं अपना नैकलेस वापिस लेने आई हूं ।”
“नैकलेस !” - सुनील हैरानी से बोला ।
“जी हां, मेरा नैकलेस पिछली रात को शायद आपकी कार में रह गया था ।”
“क्या आपका नैकलेस ऐसा था जो आसानी से आपकी जानकारी के बिना गले से उतर जाये ?”
“नहीं ।” - सरिता कठिन स्वर से बोली ।
“तो फिर भला वह कार में कैसे रह गया होगा ?”
“मेरा मतलब था कि शायद... शायद आपने... आपने...”
“शायद मैंने उसे आपके गले में से उतार लिया हो ?”
सरिता निगाहें चुराने लगी ।
“देवी जी !” - सुनील गम्भीर स्वर में बोला - “ऐसा ख्याल मन से निकाल दीजिए । मैंने आपका नैकलेस नहीं उतारा और अगर वह आसानी से गले से निकल नहीं सकता था तो वह कार में भी नहीं गिरा ।”
“तो फिर नैकलेस कहां गया ?”
“शायद वह नैकलेस कल आपने पहना ही न हो ।”
“नहीं, मुझे अच्छी तरह याद है । जब मैं क्लब में गई तो वह नैकलेस मेरे गले में था ।”
“आप मुझ पर इल्जाम लगाना चाहती हैं कि आपका नैकलेस मैंने चुरा लिया है ।”
“मैंने यह कब कहा है !”
“आपकी बातों से ऐसा ही आभास मिल रहा है मुझे ।”
“देखिये सुनील साहब, नाराज मत होइए । जरा मेरी बात को समझने की कोशिश कीजिए । आपके कथनानुसार पिछली रात को आप मुझे क्लब के पिछले कम्पाउन्ड की एक बैंच पर से बेहोश पड़ी उठा कर लाए थे । लेकिन बुरा मत मानिए, मुझे आपकी बात पर कतई विश्वास नहीं । मैं नशे में जरूर थी लेकिन फिर भी बहुत सी बातें मुझे याद हैं । जैसे मुझे याद है कि क्लब में या पिछली रात से पहले मैंने कभी भी आपकी सूरत नहीं देखी थी । जैसे मुझे यह याद है कि क्लब में जिस युवक के सम्पर्क में मैं थी वह दुबला-पतला सुन्दर युवक था और चेहरे एक भारी फ्रेम का और मोटे-मोटे शीशों का चश्मा लगाता था । जैसे मुझे यह याद है कि वह मुझे क्लब से निकाल कर किसी ऐसी इमारत में लेकर गया था जहां मुझे सीढियां भी चढनी पड़ी थीं । आप इस तस्वीर में मुझे इसी रूप में फिट होते दिखाई देते हैं कि वह युवक आपका मित्र था और उसी के अनुरोध पर आप मुझे हरनाम सिंह पैलेस छोड़ने गए थे । मिस्टर सुनील, क्लब में वह नैकलेस मेरे गले में था । वह नैकलेस गले में से खुद-ब-खुद नहीं निकला सकता । अगर आपको उस नेकलेस के बारे में की जानकारी नहीं है तो निश्चय ही वह नैकलेस उस चश्मे वाले युवक ने मेरे गले से उतारा है ।”
“मैंने आपके गले में नैकलेस नहीं देखा था । मुझे अच्छी तरह याद है ।”
“तो फिर नैकलेस उस चश्मे वाले युवक के पास है । लगता है कि किसी वजह से आप उस युवक को तस्वीर से बाहर ही रखना चाहते हैं । आप ऐसा कीजिए, मुझे कोई एतराज नहीं । लेकिन आप उससे नैकलेस के बारे में पूछिए जरूर नैकलेस जरूर उसी के पास है ।”
“मैं पूछूंगा ।” - सुनील के मुंह से अपने आप निकल गया ।
“यानी कि आप स्वीकार करते हैं कि ऐसे किसी युवक का अस्तित्व है और यह कि मैं आपको क्लब के पिछवाड़े की बैंच पर पड़ी नहीं मिली थी ?”
सुनील ने उसकी बात का उत्तर नहीं दिया । वह बात बदल कर बोला - “क्या वह नैकलेस बहुत कीमती था ?”
“वह असली हीरों का नैकलेस था और उसकी कीमत कम से कम पचास हजार रुपये थी ।”
सुनील के मुंह से सीटी निकल गयी ।
सरिता उद्विग्न मुद्रा बनाये उसका मुंह देखती रही ।
“आपने नैकलेस का बीमा करवाया हुआ था ?”
“जी हां ।”
“तो फिर आपको नैकलेस की इतनी चिन्ता क्यों है ? आप नैकलेस की कीमत को बीमा कम्पनी से क्लेम कर सकती हैं ।”
“लेकिन मैं ऐसा नहीं करना चाहती ।”
“क्यों ?”
“सूसन कहती है कि उस सूरत में नैकलेस के चोरी हो जाने कि रिपोर्ट पुलिस को भी लिखवानी होगी । फिर तफ्तीश होगी और तफ्तीश में यह भी पूछा जाएगा कि नैकलेस किस हालात में गुम हुआ था और मैं नहीं चाहती कि मेरे पिछली रात के कुकृत्य की जानकारी हर किसी को हो ।”
“आपको मेरे पास आने का ख्याल कैसे आया ?”
“सूसन कहती थी कि कोई भी अगला कदम उठाने से पहले मुझे आपसे सम्पर्क जरूर स्थापित करना चाहिए । अगर नैकलेस आपके पास होगा तो आप उसे मुझे दे ही देंगे और अगर नैकलेस आपके पास न हुआ तो भी सूसन कहती थी कि आपके माध्यम से नैकलेस प्राप्त हो जाने का काफी सम्भावना है । सूसन आप की बहुत तारीफ कर रही थी । वह नियमित रूप से ‘ब्लास्ट’ पढती है और आपके कारनामों से पूरी परिचित है ।”
“कहीं आपने यह सोचकर कि नैकलेस मेरे ही पास है, किसी दूसरे तरीके से तो मुझसे नैकलेस हासिल करने की कोशिश नहीं की ?”
“दूसरा तरीका कौन सा ?”
“जैसे आपने हरनाम सिंह पैलेस के दो मजबूत कर्मचारी मेरे पीछे भेजे हों जो मुझे अपने अधिकार में कर लें और मेरी कार की तलाशी लेकर नैकलेस खुद ही वसूल कर लें और जब उन्हें इस तरीके से नैकलेस हासिल न हो सका तो आप मुझसे नैकलेस मांगने खुद चली आई हों ?”
“मिस्टर सुनील !” - सरिता नेत्र फैलाकर बोली - “यू आर टाकिंग नानसेंस ।”
“हां, शायद !” - सुनील बोला ।
“तो फिर ?”
“फिर यह कि आप शाम को मुझे फोन कीजिए या मुझसे मिलिए । तब तक मैं आपको आपके नैकलेस के बारे में कोई निश्चित उत्तर देने में सफल हो जाऊंगा ।”
“आप अपने उस चश्मे वाले मित्र से अभी सम्पर्क स्थापित नहीं कर सकते ?”
“मैंने अपने ऐसे किसी मित्र का अस्तित्व स्वीकार नहीं किया है ।”
“स्पष्ट शब्दों में नहीं किया है ।”
सुनील चुप रहा ।
“खैर !” - सरिता उठती हुई बोली - “मैं शाम को आपसे सम्पर्क स्थापित करूंगी ।”
सुनील भी उठ खड़ा हुआ ।
“एक आखिरी बात और बताइए ।” - द्वार के समीप पहुंचकर सुनील बोला ।
“पूछिए ।”
“ठाकुर साहब को नैकलेस गुम हो जाने की जानकारी है ?”
“नहीं !”
“रवि को ?”
“रवि को भी नहीं !”
“पिछली रात को आपने इतनी शराब क्यों पी थी और आप रवि को इतनी गालियां क्यों दे रही थीं ?”
“नमस्ते, सुनील साहब !” - उत्तर में सरिता बोली - “मैं शाम को आपसे फिर मिलूंगी ।”
और सरिता एड़ियां ठकठकाती हुई सीढियों की ओर बढ गई । सरिता के दृष्टि से ओझल होने तक सुनील वहीं खड़ा रहा । फिर उसने कन्धे उचकाए और वापिस फ्लैट में आ गया ।
बन्दर बैडरूम से बाहर निकल आया ।
“हाय !” - बन्दर ने दिल पर हाथ रखकर इतनी लम्बी आह भरी कि सुनील हैरानी से उसका मुंह देखने लगा ।
“हाय !” - वह बोला - “आज तो यह सोफिया लारेन से भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी ।”
“अच्छा !” - सुनील बोला ।
“और नहीं तो क्या ? साली की आंखों पर तो मैं हजार जान से कुर्बान हो उठा हूं ।”
“वैसे वे खूबसूरत आंखें तुम्हें जेल भिजवाने की फिराक में हैं ।”
“क्या मतलब ?” - बन्दर चौंककर बोला ।
“तुम सुन नहीं रहे थे ?”
“नहीं मैं सिर्फ देख रहा था । मैं एक वक्त में एक ही महत्वपूर्ण काम कर सकता हूं, जब मैं किसी हसीना की कातिल आंखों को ललचाई निगाहों से देख रहा होऊं तो मेरे कान काम नहीं करते ।”
“तो अब सुन लो ।” - सुनील बोला और उसने बन्दर को सारी बात कह सुनाई ।
“लेकिन सुनील भाई, यह सरासर झूठ है ।” - बन्दर भड़ककर बोला - “मैंने नैकलेस नहीं चुराया । मैं भला उसका नैकलेस क्यों चुराता ? मैं कोई चोर हूं ?”
“तो फिर नैकलेस कहां गया ?”
“मुझे क्या मालूम कहां गया ?”
“जब तुम उससे क्लब में मिले थे तो नैकलेस उसके गले में था ?”
“था ।” - बन्दर सोचकर बोला ।
“अच्छी तरह याद है ?”
“हां हां अच्छी तरह याद है । वह हीरों का झिलमिलाता हुआ नैकलेस था ।”
“जब तुम उसे प्रिंस होटल में लाए थे तो नैकलेस उसके गले में था ।”
“हां था ।”
“श्योर ?”
“श्योर ।”
“और वहां से तुम सीधे होटल के कमरे में चले गए थे ?”
“हां !”
“उसके बाद मेरे आने तक तुमने सरिता को अकेला छोड़ा था ?”
“टेलीफोन करने मैं एक दो मिनट के लिए जरूर नीचे गया था ।”
“उस समय ऊपर कमरे में सरिता अकेली थी ?”
“हां... नहीं वहां होटल का मैनेजर गजाधर था ।”
“यानी कि तुम गजाधर को सरिता के पास अकेला छोड़कर नीचे टेलीफोन करने गए ?”
“हां ।”
“जब तुम वापिस लौटे थे तो गजाधर कहां था ?”
“वहीं कमरे में था ।”
“उस समय सरिता के गले में नैकलेस था ?”
“मुझे याद नहीं । मैं हड़बड़ाया हुआ था । मैंने ध्यान नहीं दिया था ।”
“याद करने की कोशिश करो ।”
बन्दर कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “मुझे याद नहीं आ रहा ।”
“टेलीफोन करके लौटने के बाद तो तुम एक क्षण के लिए भी सरिता के पास से नहीं हटे थे ?”
“नहीं ।”
“श्योर ?”
“श्योर ।”
“लेकिन जब मैं सरिता को उठाकर नीचे ला रहा था, उस समय उसके गले में नैकलेस नहीं था । इसका एक मतलब हो सकता है कि नैकलेस होटल में ही गायब हुआ था और उन चार मिनटों में ही गायब हुआ था जबकि तुम नीचे फोन करने गए थे और उस समय केवल गजाधर सरिता के पास था ।”
“फिर तो नैकलेस जरूर गजाधर ने चुराया है ।” - बन्दर उत्तेजित स्वर से बोला - “तभी अगली सुबह साला मुझे जबरदस्ती होटल से निकाल रहा था ।”
“शाबाश मेरे शरलाक होम्ज !” - सुनील बोला - “क्या नतीजा निकाला है । क्या उठाकर पटका है ! क्या खोदकर निकाला है ।”
“मजाक कर रहे हो ?” - बन्दर आंखें निकालकर बोला ।
“नहीं, मैं तुम्हारी तारीफ कर रहा हूं ।”
“फिर ठीक है । थैंक्यू !” बन्दर शरमाता हुआ बोला ।
“अच्छा” - सुनील बोला - “अब जबकि हमें पता लग गया है कि नैकलेस गजाधार के पास है, तो अब हमें क्या करना चाहिए ?”
“हमें जाकर गजाधर से नैकलेस मांगना चाहिए ।” - बन्दर बड़ी संजीदगी से बोला ।
“गजाधर के पास चलते हैं । शायद तुम्हारी यह तरकीब काम कर जाये । शायद मांगने पर वह नैकलेस दे दे ।”
बन्दर ने अनिश्चित भाव से सिर हिला दिया ।
***
सुनील ने प्रिंस होटल के सामने मोटर साईकिल रोकी । वह बन्दर को साथ लेकर होटल में प्रविष्ट हो गया ।
काउन्टर पर एक दुबला-पतला व्यक्ति बैठा था ।
“गजाधर कहां है ?” - सुनील ने अधिकारपूर्ण स्वर में पूछा ।
“अपने कमरे में ।” - क्लर्क जल्दी से बोला । सुनील के व्यक्तित्व और उसके अधिकारपूर्ण स्वर से वह पर्याप्त प्रभावित हुआ था ।
काउन्टर के पीछे एक कमरा था जिस पर ‘मैनेजर’ लिखा था । सुनील उस ओर बढा ।
“यहां नहीं साहब ।” - क्लर्क जल्दी से बोला ।
“तो फिर ?” - सुनील ने कहा ।
“तीसरी मंजिल के पांच नम्बर कमरे में ।”
“गजाधर ने होटल में अपने लिए दो-दो कमरे रखे हुए हैं ?”
“यह तो दफ्तर है । ऊपर गजाधर साहब रहते हैं ।”
“बड़े ठाठ हैं मैनेजर के !”
“इस होटल के मालिक भी वही हैं ।”
सुनील ने बन्दर को संकेत किया और सीढियां चढने लगा ।
वे तीसरी मंजिल पर पहुंचे । बन्दर ने पांच नम्बर कमरे का दरवाजा खटखटाया ।
“कौन है ?” - भीतर से गजाधर की आवाज आई ।
“जरा दरवाजा खोलिए साहब ।” - सुनील आदरपूर्ण स्वर में बोला ।
द्वार खुला और उन्हें गजाधर के दर्शन हुए । गजाधर ने उन दोनों को देखा और फिर बन्दर से बोला - “तुम फिर आ गये ?”
“मैं अभी गया ही कहां हूं ?”
“क्या चाहते हो ?”
“रास्ता छोड़ो ।” - सुनील जबरदस्ती गजाधर को एक ओर धकेलता हुआ बोला - “हमें भीतर जाने दो ।”
गजाधर लड़खड़ाकर पीछे हट गया ।
“यह क्या बदतमीजी है !” - वह क्रोधित स्वर में बोला ।
सुनील ने बन्दर को संकेत किया । बन्दर ने बड़े ड्रामेटिक ढंग से लात मारकर दरवाजा बन्द कर दिया ।
सुनील गजाधर के सामने जा खड़ा हुआ और फिर उसने अपना खुला हुआ हाथ गजाधर की ओर बढा दिया ।
“क्या है ?” - गजाधर बोला ।
“नैकलेस निकालो ।” - सुनील कठोर स्वर में बोला ।
“कौन सा नैकलेस ?”
“वही नैकलेस जो कल रात तुमने उस लड़की के गले में से निकाला था जो बन्दर के साथ आई थी ।”
“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया । मैंने कोई नैकलेस नहीं निकाला ।”
“यूं झूठ बोलने से काम नहीं चलेगा, गजाधर ! नैकलेस तुमने निकाला है ।”
“कौन कहता है ?”
“मैं कहता हूं ।”
“लेकिन यह झूठ है । जब मैंने लड़की को देखा था, तब उसके गले में नैकलेस नहीं था । लड़की नशे में धुत थी । वह जरूर नैकलेस को रास्ते में कहीं गिरा आई थी ।”
“नहीं !” - बन्दर जोर देकर बोला - “जब वह होटल में प्रविष्ट हुई थी तब नैकलेस उसके गले में था ।”
“तुम्हें धोखा हुआ होगा ।”
“अच्छा मुझे धोखा हुआ होगा । लेकिन क्या उस टैक्सी ड्राईवर को भी धोखा हुआ था जो हमें होटल तक लाया था ।”
“टैक्सी ड्राईवर !”
“हां । उसका नाम झण्डा सिंह है और टैक्सी का नम्बर आर पी एल दो सौ बत्तीस है । मैंने सबसे पहले उस टैक्सी ड्राईवर को ही तलाश किया था कि कहीं नैकलेस टैक्सी में न गिर गया हो । और झण्डासिंह को अच्छी तरह याद है कि जब हम लोग टैक्सी से उतर कर होटल में प्रविष्ट हुए थे, उस समय नैकलेस लड़की की गरदन में था ।
सुनील हैरानी से बन्दर का मुंह देखने लगा ।
गजाधर के चेहरे पर बौखलाहट के चिन्ह दिखाई देने लगे ।
“हार देते हो या दूसरा तरीका इस्तेमाल किया जाये ।” - बन्दर अकड़ कर बोला ।
गजाधर चुप रहा ।
सुनील ने बन्दर को चुप रहने का संकेत और फिर गजाधर से बोला - “गजाधर, वह हार तुम हजम नहीं कर सकते । जिस लड़की का वह हार है । तुम उसके बाप को जानते नहीं हो । वह नगर का बहुत बड़ा आदमी है । अगर तुमने हार न लौटाया तो वह तुम्हारी ऐसी तैसी करके रख देगा ।”
“लेकिन वह हार मैंने नहीं लिया है ।” - गजाधर मरे स्वर में बोला - “तुम लोग खामखाह मुझ पर इल्जाम लगा रहे हो ।”
“झूठ बोलने से कई फायदा नहीं । हार तुम्हारे पास है ।” - सुनील ने अपनी जेब से अपना विजिटिंग कार्ड निकाला और उसे जबरदस्ती गजाधर के हाथ में ठूंसता हुआ बोला - “इस कार्ड पर मेरा पता लिखा है । मैं तुम्हें शाम तक का समय देता हूं । अगर अपनी खैरियत चाहते हो तो शाम तक वह हार मेरे पास पहुंचा दो वरना बहुत पछताओगे । मैं तुम्हें हार लौटाने का बड़ा इज्जत वाला तरीका बता रहा हूं । अगर शाम तक हार मेरे पास पहुंच गया तो मैं इस बात की परवाह नहीं करूंगा कि हार तुम्हारे पास था या काले चोर के पास । अगर शाम तक हार मेरे पास न पहुंचा तो फिर पुलिस तुम्हारे और तुम्हारे इस घुड़साल जैसे होटल के बखिए उधेड़ कर रख देगी । समझे ।”
“लेकिन नैकलेस मैंने नहीं लिया है ।”
“इतनी जल्दी जवाब मत दो । मैंने तुम्हें शाम तक का वक्त दिया है । जरा बात को ठण्डे दिमाग से सोचना । तुम्हें यह मालूम होगा कि तुम्हारा कल्याण हार लौटा देने में ही है । आओ, बन्दर !”
और सुनील बिना दुबारा गजाधर पर दृष्टिपात किये द्वार की ओर बढ गया । बन्दर उसके पीछे हो लिया ।
सुनील ने एक झटके से दरवाजा खोला और सीधा एक आदमी से जा टकराया । वह एक काले रंग का सूट पहने हुए था उसके सिर पर एक काली फैल्ट हैट थी जो उसके माथे पर आंखों तक झुकी हुई थी । सुनील को ऐसा लगा जैसे वह आदमी बाहर खड़ा दरवाजे से कान लगाकर भीतर की बातें सुन रहा था ।
“सॉरी !” - वह होठों में बुदबुदाया और जल्दी से गलियारे में आगे बढ गया ।
“तुम इस आदमी को जानते हो ?” - सुनील ने गजाधर से पूछा ।
गजाधर ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
“क्या यह इस होटल में नहीं ठहरा हुआ है ?”
“नहीं ।”
“तो फिर यहां क्या कर रहा है ?”
“होटल में ठहरे किसी व्यक्ति से मिलने आया होगा ।”
गलियारे के सिरे पर मौजूद सीढियों के समीप पहुंच कर वह व्यक्ति दृष्टि से ओखल हो गया ।
सुनील तेजी से उसके पीछे लपका । बन्दर उसके पीछे हो लिया ।
“मुझे लगा था यह आदमी दरवाजे के बाहर कान लगाकर बातें सुन रहा था ।” - सुनील सीढियां उतरता हुआ बोला ।
“शायद तुम्हें वहम हुआ हो ।” - बन्दर बोला ।
“हो सकता है ।” - सुनील बोला - “वह झण्डा सिंह की टैक्सी वाला क्या किस्सा था ?”
“वह चक्कर मार दिया था ।” - बन्दर शान से बोला - “तुम समझते हो तुम्हीं बड़े जासूस हो । मैं होटल तक टैक्सी में आया ही नहीं था । मैं तो अपने खटारे पर आया था । टैक्सी का तो मैंने कोरा ब्लफ मार दिया था और तुमने देखा ही था झण्डासिंह और उसकी आर पी एल दो सौ बत्तीस नम्बर की टैक्सी का जिक्र भर सुनने से साले गजाधर के बच्चे का धड़नतख्ता हो गया था ।”
“तू तो बन्दर वाकई बड़ा होशियार हो गया है ।” - सुनील प्रशन्सात्मक स्वर में बोला ।
बन्दर लड़कियों की तरह शरमाया ।
“अगर ऐसी ही होशियारी एक बार और दिखा दे तो मैं तुझे मान जाऊं ?”
“क्या करना होगा ?”
“तुम्हें शाम तक गजाधर की निगरानी करनी होगी । बस साए की तरह उसके पीछे लग जाओ ।”
“मरवा दिया ना !” - बन्दर बोला ।
“बस ! निकल गया दम ! प्यारेलाल, जरा यह सोचो जब सरिता को मालूम होगा कि नैकलेस के मामले में जासूसी झाड़ने के नाम पर तुमने शरलाक होम्ज की टांग तोड़कर रख दी थी तो वह कुर्बान नहीं हो जायेगी तुम पर ।”
सरिता का जिक्र आते ही बन्दर खुश हो गया ।
“आलराइट !” - वह जोश भरे स्वर में बोला ।
“शाबाश !” - सुनील बोला - “तुम होटल पर निगाह रखो । मैं इस काली फैल्ट वाले के पीछे जा रहा हूं ।”
“ओके !”
दोनों होटल से बाहर निकल आये ।
काली फैल्ट वाला लम्बे डग भरता हुआ रौनक बाजार में एक ओर बढ़ा जा रहा था ।
सुनील बन्दर को पीछे फुटपाथ पर छोड़कर आगे बढ गया, वह बड़ी सावधानी से काली फैल्ट वाले के पीछे-पीछे चलने लगा । काली फैल्ट वाला आगे बढता रहा । उसने एक बार भी पीछे घूमकर नहीं देखा । वह सुनील से एकदम बेखबर मालम होता था । सुनील उसका पीछा फरता रहा ।
रौनक बाजार के मोड़ पर पहुंच कर वह दांयीं ओर घूम गया ।
उसी क्षण सामने से आता हुआ एक दुबला-पतला आदमी सुनील से टकरा गया । उसके मुंह से एक कराह निकली । वह लड़खड़ाया और फिर उसने सहारे के लिए सुनील का कन्धा थाम लिया ।
“सॉरी !” - वह सुनील के कन्धे का सहारा लिए बड़े दयनीय स्वर में बोला - “मुझे चक्कर आ गया था ।”
सुनील ने जबरदस्ती अपने कन्धे से उसका हाथ हटाया और तेजी से रौनकर बाजार के मोड़ की ओर लपका ।
काली फैल्ट वाला उसे कहीं दिखाई नहीं दिया । जितना समय सुनील उस दुबले-पतले आदमी से उलझा रहा था, उतने समय में काली फैल्ट वाला कहीं गायब हो गया था ।
सुनील वापिस प्रिंस होटल के सामने पहुंचा ।
वहां बन्दर नहीं था और न ही होटल के सामने सुनील की मोटर साईकिल खड़ी थी ।
उसने काउन्टर क्लर्क से गजाधर के बारे में पूछा । उसे मालूम हुआ कि गजाधर कुछ ही देर पहले कहीं बाहर गया था । सुनील ने रौनक बाजार से एक टू सीटर पकड़ा और ‘ब्लास्ट’ के दफ्तर की ओर चल दिया ।
***
ढाई बजे के करीब सुनील के पास बन्दर का टेलीफोन आया ।
“ऐसी की तैसी में घुस गई साली जासूसी ।” - बन्दर का भड़का हुआ स्वर सुनाई दिया - “मैं तो बोर हो गया ।”
“क्या हुआ ?” - सुनील ने पूछा ।
“तुम्हारे जाने के थोड़ी देर बाद ही गजाधर होटल के बाहर निकला था । एक घन्टे बाद वह वापिस आ गया था । तब से वह होटल में घुसा बैठा है और मुझे दुबारा एक बार भी उसके दर्शन नहीं हुए हैं ।”
“अब वह होटल में है ?”
“और कहां जायेगा ? मैंने उसे बाहर निकलते तो देखा नहीं ।”
“होटल का कोई ऐसा दरवाजा है जो पिछवाड़े में खुलता हो ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“तुम्हें नहीं मालूम ! भई, तुम तो उस होटल में रहते रहे हो ।”
“मैंने ध्यान नहीं दिया ।”
“सुबह गजाधर होटल से निकल कर कहां गया था ?”
“सर्राफा बजार में । मेहरचन्द एण्ड सन्स नाम के जौहरी की दुकान पर ।”
“जौहरी की दुकान पर ।” - सुनील चौंककर बोला - “कहीं उसने नैकलेस बेच तो नहीं दिया ?”
“मुझे क्या मालूम ? मैं कोई उसके पीछे दुकान में थोड़े ही घुसा था ।”
“तुम्हें कैसे मालम है कि गजाधर इस वक्त होटल में है ? सम्भव है वह पिछले दरवाजे से बाहर निकल गया हो और तुम्हें इस बात की खबर भी न हुई हो ।”
“सम्भव है । लेकिन एकाएक तुम पिछले दरवाजे का राग क्यों अलापने लगे हो ? अगर गजाधर की तुम्हें इतनी चिन्ता थी तो पिछले दरवाजे के बारे में तुम्हें पहले सोचना चाहिए था । मैं एक ही समय में दो दरवाजों पर निगाह कैसे रख सकता हूं ।”
“बड़े अक्लमन्द हो गए हो यार ।”
“मेरी अक्ल को मारो गोली और भगवान के लिए मुझे मुक्ति दो ।”
“मैं आता हूं ।” - सुनील बोला ।
उसने रिसीवर को क्रेडिल पर रखा, अपने पीछे खूंटी पर टंगा कोट उतारा और उसे पहनता हुआ वह केबिन से बाहर निकल आया ।
रिसैप्शन डेस्क के सामने से वह यूं तेजी से गुजर गया जैसे एक ही सैकेन्ड में वहां बम फटने वाला हो ।
रिसेप्शनिस्ट कम स्विच बोर्ड आपरेटर रेणु उसे आवाजें ही देती रह गई ।
‘ब्लास्ट’ की इमारत के सामने से उसने टू सीटर लिया और सीधा प्रिंस होटल पहुंच गया ।
बन्दर फौरन उसके सामने आ खड़ा हुआ ।
“आओ ।” - सुनील बोला ।
“कहां ?” - बन्दर ने पूछा ।
“भीतर ! गजाधर से पता लगाने की कोशिश करते हैं कि कहीं वह नैकलेस बेच तो नहीं आया ।”
बन्दर उसके साथ ही हो लिया ।
“वह ऊपर होगा ।” - होटल में घुसता हुआ बन्दर बोला - “रिसेप्शन डैस्क के पीछे वाला कमरा सड़क से दिखाई देता है । मैंने उसे वहां घुसते नहीं देखा ।”
“वेरी गुड !” - सुनील बोला ।
दोनों रिसेप्शन पर बिना रुके सीढियों की ओर बढ गए ।
तीसरी मंजिल पर पहुंच कर सुनील ने गजाधर के कमरे का दरवाजा खटखटाया ।
भीतर से कोई उत्तर नहीं मिला ।
“गजाधर !” - सुनील ने जोर से आवाज दी ।
भीतर से कोई नहीं बोला ।
“गजाधर !” - सुनील ने फिर आवाज दी और जोर से दरवाजे को पांव की ठोकर मारी ।
दरवाजे का एक पल्ला भड़ाक से खुल गया ।
सुनील ने कमरे के भीतर कदम रखा और फिर फौरन ठिठक कर खड़ा हो गया । उसके नेत्र फैल गए ।
“क्या हुआ ?” - बन्दर ने पूछा ।
सुनील ने दूसरा दरवाजा भी खोल दिया और स्वयं एक ओर हट गया । उसने कमरे के भीतर की ओर संकेत कर दिया ।
बन्दर ने भीतर झांका और फिर उसके चेहरे का रंग उड़ गया ।
“अरे बाप रे !” - वह फुसफुसा कर बोला ।
भीतर कमरे का बुरा हाल था । कमरे की बुरी तरह तलाशी ली गई थी । कोई चीज, कोई जगह, ऐसी नहीं थी जिसे पूरी बारीकी से टटोला नहीं गया था । कमरे की एक-एक चीज की ऐसी गत बनी हुई थी जैसे वहां कोई जंगली जानवरों का झुंड हांक दिया गया हो ।
कमरे में बेतरतीबी से बिखरी हुई चीजों के बीच में खून के तालाब में डूबी हुई गजाधर की लाश पड़ी थी । वह पीठ के बल फर्श पर पड़ा था । रिवाल्वर की गोली ने उसका भेजा उड़ा दिया था ।
बन्दर के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे वह चिल्लाने लगा हो । सुनील ने झपट कर उसके मुंह पर हाथ रख दिया और उसे कमरे से बाहर गलियारे में खींच लिया ।
बन्दर गहरी-गहरी सांसें लेने लगा । रह-रह कर उसकी दहशत से भरी निगाहें कमरे के भीतर की ओर उठ जाती थीं ।
“तुमने होटल का कमरा अभी छोड़ा है या नहीं ?” - सुनील ने पूछा ।
बन्दर ने नकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया ।
सुनील ने अपने फ्लैट की चाबी निकाल कर जबरदस्ती उसके हाथ में ठूंसी और बोला - “यह मेरे फ्लैट की चाबी सम्भालो, अपना बोरिया बिस्तर लपेटो और फौरन यहां से कूच कर जाओ ।”
“इसका क्या होगा ?” - बन्दर कमरे के भीतर की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
“तुम इसकी चिन्ता छोड़ो । इसे मैं सम्भाल लूंगा । तुम फौरन फूटो यहां से ।”
बन्दर तत्काल सीढियों की ओर बढ गया ।
बन्दर के दृष्टि से ओझल होते ही सुनील दुबारा कमरे में घुस गया । उसने धीरे से गजाधर की लाश को छुआ ।
लाश अभी गर्म थी ।
फर्श पर फैला हुआ खून अभी गीला था और उसका रंग चमकदार लाल था ।
गजाधर की हत्या हुए पन्द्रह बीस मिनट से अधिक नहीं हुए थे ।
गजाधर के दायें हाथ में एक रिवाल्वर थमी हुई थी । सुनील ने नीचे झुककर रिवाल्वर की नाल को सूंघा ।
नाल में से बारूद की गन्ध आ रही थी जिसका मतलब था कि रिवाल्वर से थोड़ी देर पहले फायर किया गया था ।
सुनील ने कमरे की छत, फर्श और दीवारों का निरीक्षण करना आरम्भ कर दिया ।
उसे कहीं गोली का निशान नहीं दिखाई दिया ।
इसका एक ही मतलब हो सकता था ।
गजाधर की रिवाल्वर से निकली गोली हत्यारे को लगी थी ।
सुनील ने आखिरी दृष्टि लाश पर डाली और कमरे से बाहर निकल आया । उसने धीरे से कमरे का द्वार बन्द कर दिया ।
वह सीढियों की ओर बढा ।
पहली मंजिल पर पहुंच कर वह ठिठका ।
वहां सीढियों की साईड में एक गलियारा था जो इमारत के पृष्ठ भाग की ओर जाता था । सुनील उस गलियारे में आगे बढा ।
गलियारे के दूसरे सिरे पर लकड़ी की गोल सीढियां थी । सुनील उन सीढियों के रास्ते नीचे उतर आया । सीढियां होटल की इमारत के पिछले दरवाजे के समीप आकर खुलती थीं । दरवाजे के आसपास कोई नहीं था । सुनील उस दरवाजे से बाहर निकल गया ।
पिछवाड़े में एक पतली-सी गन्दी गली थी । गली को पार करके वह वापिस घूमकर मुख्य सड़क पर आ गया ।
रौनक बाजार के एक रेस्टोरेन्ट पर उसे पब्लिक टेलीफोन की सूचना देने वाला डाक-तार विभाग का नीला बोर्ड लगा दिखायी दिया ।
वह रेस्टोरेन्ट में घुस गया ।
कायन बाक्स से उसने पुलिस हैडक्वाटर का नम्बर डायल कर दिया ।
दूसरी ओर से उत्तर मिलते ही उसने कायन बाक्स में सिक्का डाला और मशीन जैसे स्वर में जल्दी-जल्दी बोलने लगा - “रौनक बाजार में स्थित, प्रिंस होटल की तीसरी मंजिल के पांच नम्बर कमरे में एक हत्या हो गयी है, फौरन पहुंचिये ।”
“आप कौन साहब बोल रहे हैं ?” - दूसरी ओर से किसी का व्यग्र स्वर सुनाई दिया ।
“नेहरू !” - सुनील बोला ।
“कौन नेहरू ?”
“जवाहर लाल नेहरू, ईडियट !”
और उसने धीरे से रिसीवर को हुक पर लटका दिया ।
वह रेस्टोरेन्ट से निकल गया और एक ऐसे स्थान पर आ खड़ा हुआ जहां से प्रिंस होटल का मुख्य द्वार साफ दिखाई देता था ।
उसने लक्की स्ट्राइक का एक सिगरेट सुलगा लिया और प्रतीक्षा करने लगा ।
लगभग पांच मिनट बाद वातावरण फ्लाईंग स्कवायड के सायरन की आवाज से गूंज उठा । अगले ही क्षण उसे पुलिस की दो तीन गाड़ियां प्रिंस होटल के दरवाजे पर आकर खड़ा होती दिखाई दीं ।
सुनील चुपचाप वहां से खिसक गया ।
उसने एक टू सीटर लिया और सीधा बैंक स्ट्रीट पहुंच गया । वह अपने फ्लैट में पहुंचा ।
बन्दर पहले ही वहां पहुंच चुका था ।
“क्या हुआ ?” - बन्दर ने व्यग्र स्वर से पूछा ।
“अभी कुछ नहीं मालूम ।” - सुनील बोला - “पुलिस के वहां पहुंचते ही मैं खिसक आया था ।”
“तुम्हारे नाम एक पार्सल आया है ।”
“पार्सल !”
“हां, छोटा सा पार्सल है । तुम्हारे आने से दस मिनट पहले डाकिया देकर गया है ।”
“कहां है ?”
बन्दर ने एक छोटा सा पार्सल उसे थमा दिया ।
सुनील ने पार्सल खोला ।
पार्सल में झिलमिलाते हुए हीरों का नैकलेस पड़ा था ।
सुनील ने डिब्बे में से नेकलेस निकाल लिया ।
बन्दर ने नैकलेस देखा और फिर वह जल्दी से बोला - “सुनील यह वही नैकलेस है जो मैंने सरिता के गले में देखा था ।”
“श्योर ?”
“श्योर । यह जरूर गजाधर ने ही तुम्हें भेजा है । लगता है वह हमारी धमकी में आ गया था ।”
सुनील चुप रहा ।
“सुनील भाई, कहीं इस नैकलेस की वजह से ही तो गजाधर की हत्या नहीं हुई ?” - बन्दर बोला ।
“सम्भव है ।” - सुनील गम्भीर स्वर में बोला ।
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