आतंक की छाया ने लगभग आधे घंटे में ही समस्त राजनगर को आगोश में ले लिया । भय की लहर राजनगर के निवासियों में कुछ इस तीव्रता और भयानकता के साथ व्याप्त हुई- मानो प्लेग का रोग रहा हो । जिस चेहरे पर दृष्टि जाती, वही पीला नजर आता । प्रत्येक मुखड़े पर भय एवं आश्चर्य के संयुक्त भाव दृष्टिगोचर होते...।
राजनगर का समस्त कार्य अस्त-व्यस्त हो गया। लोगों का ध्यान अपने कर्तव्यों से हटकर इस विचित्र - आश्चर्यजनक और भयावह घटना की ओर हो गया। जहां देखो एक ही चर्चा- जिधर जाओ डरावने चेहरे दीखते ।
स्थान-स्थान लोगों के जत्थे, जगह-जगह आदमियों की भीड़, भिन्न-भिन्न आयु के बच्चे, बूढ़े, जवान, स्त्री, पुरुष, बहादुर व कायर इत्यादि सभी इस विचित्र से चैलेंज के विषय में सोच रहे थे । तर्क वितर्क कर रहे थे ।
घड़ी की सुइयां तेजी के साथ बढ़ रहीं थीं। साथ ही बढ़ रही थी लोगों की उत्सुकता । साथ ही उनके दिल तीव्र वेग के साथ धड़क रहे थे । वे देखना चाहते थे उस विचित्र और साहसी चैलेंज का परिणाम - चैलेंज... समस्त राजनगर को भयानक चैलेंज...!
अभी !
अब से ठीक एक घंटा पहले-- यानी साढ़े ग्यारह बजे तक तो कुछ सामान्य था । उसी प्रकार सामान्य--जैसे प्रतिदिन रहता था। सभी अपने कार्यों में व्यस्त थे किंतु ठीक बारह बजे...!
आज का बारह बजना मानो कहर था ।
बात का श्रीगणेश भी कम आश्चर्यजनक नहीं था । सर्वप्रथम भय और आतंक की इस लहर ने जन्म लिया था रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से । यह बैंक राजनगर का सर्वसुरक्षित बैंक था और चैलेंज था न सिर्फ उसकी सुरक्षा को बल्कि समस्त सरकारी अफसरों और राजनगरवासियों को ।
ठीक उस समय जब रिजर्व बैंक का मैनेजर अपने कमरे में बैठा एक मोटे-से रजिस्टर को ध्यान से देख रहा था कि एक मधुर ध्वनि ने उसकी तंद्रा भंग की - "मे आई कम इन सर ?"
मैनेजर महोदय की उंगलियों में फंसा सिगार का टुकड़ा गिरते -गिरते बचा | चौंककर उन्होंने दरवाजे पर देखा तो सामने एक हसीन युवती को मुस्कराते हुए पाया । उसके मुस्कराने के अंदाज से लगता था - "मानो वह अब भी अंदर आने की आज्ञा चाहती हो । उसकी आयु बीस और बाईस के बीच थी । जिस्म पर एक मिनी स्कर्ट-जिसमें से उसकी गोरी और गोल जंघाएं स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। मैनेजर ने स्वयं को संभाला और बोला- "आइए-आइए...!"
कमर को लचकाती हुई वह कमरे में प्रविष्ट हो गई ।
मैनेजर ने अपनी नाक पर रखे चश्मे को निश्चित स्थान पर जमाते हुए कहा- "बैठिए!"
वह इठलाती-सी बैठ गई ।
"कहिए, आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?
प्रत्युत्तर में उस युवती ने कुछ नहीं कहा - बल्कि चुपचाप, किंतु लापरवाही का प्रदर्शन करते हुए उसने एक सिगरेट निकाली और अधरों के बीच फंसाकर इस प्रकार मैनेजर से माचिस मांगी, मानो उसने मैनेजर द्वारा पूछे गए प्रश्न को सुना ही न हो ।
मैनेजर ने भी चुपचाप लाइटर उसकी ओर बढ़ा दिया । माचिस के स्थान पर लाइटर देखकर युवती के अधरों पर एक विचित्र - सी मुस्कान ने जन्म लिया, किंतु उसने चुपचाप सिगरेट सुलगाकर लाइटर उसकी ओर बढ़ाया।
लाइटर हाथ में लेते ही मैनेजर चौक पड़ा । उसके भीतर हल्का-सा भय उजागर हुआ । लाइटर के चारों ओर एक लाल-सुर्ख कागज लिपटा हुआ था। मैनेजर ने कागज को देखकर प्रश्नवाचक निगाहों से युवती को देखा, किंतु देखते ही उसके मस्तिष्क में खतरे की घंटियां घनघनाने लगी । वह आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगा। उसने गौर से सामने बैठी युवती को देखा--आश्चर्य से उसकी आंखें फैल गई । उसका चेहरा पीला पड़ गया था ।
उसके सामने कुर्सी पर बैठी युवती के जिस्म के पोर-पोर से धुआं निकल रहा था । नीले और सुनहरे रंग का एक विचित्र-सा संयुक्त धुआं । कुछ इस तरह की धीमी आवाज कमरे में आने लगी-मानो अनेक मक्खियां संयुक्त रूप से भिनभिना रही हों । भिनभिनाहट कुछ तेज होती जा रही थी और साथ ही युवती के जिस्म से निकलने वाला धुआं भी तेज होता जा रहा था। मैनेजर के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी । वह अवाक्-सा, जीती-जागती युवती को धुएं में परिवर्तित होते देख रहा था । उसके लिए क्या, बल्कि सारे साधारण मानवों के लिए यह विश्व का महानतम आश्चर्य था ।
मैनेजर के देखते-ही-देखते वह लड़की धुएं में परिवर्तित हो गई । अब उसके सामने वाली कुर्सी पर उस युवती के स्थान पर धुएं की मानव आकृति विराजमान थी। मैनेजर के मुंह से एक आवाज तक न निकली उसके देखते ही देखते विचित्र धुएं की मानव आकृति कुर्सी से उठी और वायु की भांति तैरती-सी दरवाजे की ओर बढ़ी ।
एकाएक मैनेजर को जैसे होश आया । वह भी तुरंत अपनी कुर्सी से उछल पड़ा और भयभीत होकर भयानक तरीके से चीखा- "भूत... भूत... बचाओ...!"
वह चीखता हुआ वायु में तैरते धुएं की ओर लपका । तब तक धुआं कमरे से बाहर जा चुका था । मैनेजर की चीख-पुकार सुनकर सारे बैंक में हंगामा-सा मच गया । बंदूकधारी मैनेजर के कमरे की ओर लपके । कैशियर के कान खड़े हो गए ।
तभी चीखता हुआ मैनेजर अपने कमरे से बाहर आ गया । उसकी स्थिति पागलों जैसी हो गई थी । वह वायु में तैरते उस धुएं को देखकर चीखा- "ये वही लड़की है, जो अभी मेरे कमरे में आई थी - गोली चलाओ ।"
बंदूकधारी ही नहीं, बल्कि सभी आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि किसी ने भी किसी युवती को मैनेजर के कमरे में प्रविष्ट होते नहीं देखा था और दूसरी बात ये कि मैनेजर धुएं में लड़की की संज्ञा दे रहा था । एक बार को तो सबके मस्तिष्क में आया कि कहीं ये मैनेजर पागल तो नहीं हो गया है? किंतु ये विचार अधिक समय तक उनके मस्तिष्क में न रह सका, क्योंकि उस धुएं का रंग और वायु में तैरने का ढंग कुछ विचित्र - सा था । उपस्थित तमाम लोग आश्चर्य के साथ उस धुएं को देख रहे थे। तभी मैनेजर चीखा- "गोली चलाओ...! -
बंदूकधारी मानो अभी तक अचेत थे उनकी चेतना वापस आई, उन्होंने बंदूकें सीधी कीं- 'धायं... धायं...!'
समस्त वातावरण गोलियों की आवाज से थर्रा गया, किंतु परिणाम देखकर सभी लोगों की आंखें हैरत से फैल गई । चेहरे बर्फ की भांति सफेद पड़ गए । धुएं पर गोलियों का कोई प्रभाव न था । गोलियां धुएं के बीच से बिना रुकावट के पार हो गई ।
किसी ने छत पर लगी रॉड तोड़ी तो कोई दीवार से लगकर शहीद हो गई ।
- सारे बैंक में हंगामा खड़ा हो गया । फायरों की आवाज ने सड़क पर जाते लोगों के पैरों में बेड़ियां डाल दीं । सभी लोग बदहवास से हो गए । मैनेजर तो पागलों की भांति चीख रहा था । आश्चर्य और भय यूं ही व्याप्त रहा और अजीब रंग का वह अजीब धुआं बैंक के सदर द्वार से यूं ही वायु में तैरता हुआ बाहर आ गया। हजारों लोगों ने हैरत के साथ उस धुएं को देखा । कुछ शरारती युवकों ने अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए उस धुएं पर कुछ पत्थर फेंके, किंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात!
लोगों के देखते-ही-देखते धुआं वायुमंडल में ऊंचा उठता चला गया और कुछ ही क्षणों में वह लोगों की आंखों से ओझल हो गया । अब धुआं नजर नहीं आ रहा था ।
उपस्थित व्यक्तियों के चेहरे पर हैरत के भाव थे । सब लोगों ने आश्चर्यपूर्ण निगाहों से एक-दूसरे को देखा-मानो एक-दूसरे से पूछ रहे हों कि क्या तुम धुएं का मतलब समझते हो? किंतु प्रत्येक चेहरा सिर्फ पूछ रहा था, उत्तर देना किसी के बस का रोग नहीं था ।
मैनेजर तो मानो पागल हो गया था। पागलों की भांति दौड़ता हुआ वह अपने कमरे में पहुंचा, तुरंत पुलिस स्टेशन से संबंध स्थापित करके हड़बड़ाते हुए टूटे-फूटे शब्दों में समस्त घटना संक्षेप में बताईदूसरी ओर वाले रघुनाथ को लगा कि या तो यह मैनेजर पागल हो गया अथवा कोई भयानकतम अपराधी सामने आ रहा है । खैर, मैनेजर को कुछ सांत्वना दी और घटनास्थल पर पहुंचने के लिए संबंध-विच्छेद कर दिया ।
मैनेजर को दूसरी ओर से फोन रखने की ध्वनि ऐसी लगी-मानो कहीं आसपास बम गिरा हो । तभी उसके कानों में बाहर से तेज शोर की ध्वनि पड़ी । वह भी फुर्ती के साथ कमरे से बाहर निकलकर सदर दरवाजे की ओर लपका । बाहर लोगों की भीड़ बैंक के अंदर प्रविष्ट होना चाहती थी, लेकिन बैंक के बंदूकधारी उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे थे । इस विरोध में लोगों की भीड़ एक तेज शोर की उत्पत्ति कर रही थी ।
मैनेजर का समस्त जिस्म पसीने से लथपथ हो गया । एक तो वैसे ही युवती के धुएं में परिवर्तित होने वाली घटना से बदहवास था - ऊपर से लोगों की इस बेवकूफी ने उसकी बदहवासी को यौवन पर पहुंचा दिया ।
लोगों का शोर क्षण-प्रतिक्षण तीव्र रूप धारण करता जा रहा था ।
घटना के केवल पांच मिनट पश्चात रघुनाथ सज-धजकर घटनास्थल पर पहुंच गया और उफनती भीड़ पर काबू पाया । जब रघुनाथ मैनेजर के पास पहुंचा- उस समय उसकी स्थिति पागलों जैसी हो रही थी। रघुनाथ को इस बात में कोई संदेह नहीं रह गया था कि वास्तव में यहां वह अनहोनी घटना घटी है । मैनेजर उसे अपने कमरे में ले गया । रघुनाथ सामने उसी कुर्सी पर बैठता हुआ बोला, जिस पर वह युवती आकर बैठी थी- जो बाद में एक आश्चर्य बन गई ।
" अब आप मुझे सारी घटना विस्तारपूर्वक बताइए।"
मैनेजर अब तक स्वयं पर संयम पा चुका था । जेब से रूमाल निकालकर उसने पसीना पोंछा और फिर रघुनाथ के प्रश्न के उत्तर में लहजे को संतुलित करने का प्रयास करते हुए बोला-''मैं बैठा हुआ था कि अचानक वह युवती आई...!
तत्पश्चात मैनेजर ने संपूर्ण घटना विवरण सहित रघुनाथ को सुना दी । जिसे सुनकर स्वयं रघुनाथ को ऐसा लगा जैसे उसकी खोपड़ी हवा में चक्कर लगा रही हो । सारी घटना आश्चर्य से परिपूर्ण थी ।
समस्त घटना सुनाने के बाद मैनेजर स्वयं ही आश्चर्य के साथ बोला- "लेकिन एक अन्य बात ने मुझे हैरत में डाल दिया है ।"
"वह क्या? " रघुनाथ उसकी ओर देखकर बोला ।
"यही कि बैंक के बंदूकधारी ही नहीं, समस्त कर्मचारियों के बयान ये है कि उन्होंने किसी लड़की को मेरे कमरे में प्रविष्ट होते हुए नहीं देखा ।"
"क्या तुम उस लड़की का हुलिया बता सकते हो ?
उत्तर में मैनेजर ने हुलिया बताना शुरू किया तो जनाब हुलिए के स्थान पर उसके सौंदर्य का गुणगान अधिक करने लगे । जब रघुनाथ ने अनुभव किया कि अगर उसने न टोका तो मैनेजर महोदय उस लड़की की इतनी प्रशंसा करेंगे कि अगर इस समय वह कहीं भी होगी तो वहीं बैठी-बैठी पानी हो जाए । अत: रघुनाथ ने बुरा-सा मुंह बनाया और मैनेजर से बोलती पर ढक्कन लगाने के लिए कहा ।
मैनेजर की चोंच एकदम बंद हो गई ।
रघुनाथ ने मैनेजर से अगला प्रश्न किया- "वह लाइटर कहां है... जिस पर उस लड़की ने लाल कागज लपेटकर तुम्हें वापस किया था ? "
"जी...ऽऽऽ... !" मैनेजर एकदम चौंका- ''उसे तो मैं बिल्कुल ही भूल गया... घबराहट में वह कहीं गिर गया... यही कहीं होगा ।" मैनेजर कुर्सी से एकदम उठता हुआ बोला । रघुनाथ ने भी मेज के नीचे झांककर देखा । तभी उसकी दृष्टि सिगरेट पर पड़ गई-जो लगभग पूरी थी और अब बुझ चुकी थी । रपुनाथ ने उसे सावधानी के साथ रूमाल से उठाया और ध्यान से देखा तो पाया कि सिगरेट के फिल्टर वाले भाग पर लिपस्टिक के चिह्न थे ।
- "ये सिगरेट यहां किसने पी? " रघुनाथ ने पूछा ।
- "ये उसी लड़की ने पी थी ।" मैनेजर के चेहरे पर सिगरेट को देखते ही फिर पसीने की बूंदें उभर आई। रघुनाथ ने चुपचाप वह सिगरेट जेब में रख ली, फिर लाइटर की खोज जारी हो गई । अधिक कठिनाई उठाए बिना ही दरवाजे के पास पड़ा लाइटर मिल गया । लाल कागज अभी तक उसके चारों ओर लिपटा हुआ था। रघुनाथ ने वह कागज उठाया और पढ़ा । पढ़ते-पढ़ते ही रघुनाथ की आखों में गहन आश्चर्य उभर आया । ऐसा लगता था जैसे वह अत्यंत परेशान हो गया हो । वह उस पत्र को देखता ही रह गया । सबसे अधिक आश्चर्य उसे पत्र में लिखे नीचे वाले शब्द पर हो रहा था । यह पत्र भेजने वाले का नाम था जो आश्चर्य से परिपूर्ण था । वह उन्हीं शब्दों को घूरे जा रहा था और कोई अर्थ निकालने की चेष्टा कर रहा था, किंतु वह कुछ समझ नहीं पा रहा था ।
पत्र मैनेजर ने भी पढ़ लिया था और उसकी स्थिति तो उस बालक जैसी थी, जिसे किसी हाथी ने सूंड से लपेट लिया हो । उसे लगा जैसे यह सब यथार्थ नहीं, बल्कि वह कोई भयानक स्वप्न देख रहा है। उसकी निगाह भी पत्र के अंतिम शब्दों पर ही स्थिर होकर रह गई थी । मस्तिष्क में बार-बार वही शब्द टकरा रहे थे, किंतु उनका अर्थ मीलों दूर था । वास्तव में शब्द आश्चर्यपूर्ण थे ।
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