आतंक की छाया ने लगभग आधे घंटे में ही समस्त राजनगर को आगोश में ले लिया । भय की लहर राजनगर के निवासियों में कुछ इस तीव्रता और भयानकता के साथ व्याप्त हुई- मानो प्लेग का रोग रहा हो । जिस चेहरे पर दृष्टि जाती, वही पीला नजर आता । प्रत्येक मुखड़े पर भय एवं आश्चर्य के संयुक्त भाव दृष्टिगोचर होते...।


राजनगर का समस्त कार्य अस्त-व्यस्त हो गया। लोगों का ध्यान अपने कर्तव्यों से हटकर इस विचित्र - आश्चर्यजनक और भयावह घटना की ओर हो गया। जहां देखो एक ही चर्चा- जिधर जाओ डरावने चेहरे दीखते ।


स्थान-स्थान लोगों के जत्थे, जगह-जगह आदमियों की भीड़, भिन्न-भिन्न आयु के बच्चे, बूढ़े, जवान, स्त्री, पुरुष, बहादुर व कायर इत्यादि सभी इस विचित्र से चैलेंज के विषय में सोच रहे थे । तर्क वितर्क कर रहे थे ।


घड़ी की सुइयां तेजी के साथ बढ़ रहीं थीं। साथ ही बढ़ रही थी लोगों की उत्सुकता । साथ ही उनके दिल तीव्र वेग के साथ धड़क रहे थे । वे देखना चाहते थे उस विचित्र और साहसी चैलेंज का परिणाम - चैलेंज... समस्त राजनगर को भयानक चैलेंज...!


अभी !


अब से ठीक एक घंटा पहले-- यानी साढ़े ग्यारह बजे तक तो कुछ सामान्य था । उसी प्रकार सामान्य--जैसे प्रतिदिन रहता था। सभी अपने कार्यों में व्यस्त थे किंतु ठीक बारह बजे...!


आज का बारह बजना मानो कहर था ।


बात का श्रीगणेश भी कम आश्चर्यजनक नहीं था । सर्वप्रथम भय और आतंक की इस लहर ने जन्म लिया था रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से । यह बैंक राजनगर का सर्वसुरक्षित बैंक था और चैलेंज था न सिर्फ उसकी सुरक्षा को बल्कि समस्त सरकारी अफसरों और राजनगरवासियों को ।


ठीक उस समय जब रिजर्व बैंक का मैनेजर अपने कमरे में बैठा एक मोटे-से रजिस्टर को ध्यान से देख रहा था कि एक मधुर ध्वनि ने उसकी तंद्रा भंग की - "मे आई कम इन सर ?"


मैनेजर महोदय की उंगलियों में फंसा सिगार का टुकड़ा गिरते -गिरते बचा | चौंककर उन्होंने दरवाजे पर देखा तो सामने एक हसीन युवती को मुस्कराते हुए पाया । उसके मुस्कराने के अंदाज से लगता था - "मानो वह अब भी अंदर आने की आज्ञा चाहती हो । उसकी आयु बीस और बाईस के बीच थी । जिस्म पर एक मिनी स्कर्ट-जिसमें से उसकी गोरी और गोल जंघाएं स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। मैनेजर ने स्वयं को संभाला और बोला- "आइए-आइए...!"


कमर को लचकाती हुई वह कमरे में प्रविष्ट हो गई ।


मैनेजर ने अपनी नाक पर रखे चश्मे को निश्चित स्थान पर जमाते हुए कहा- "बैठिए!"


वह इठलाती-सी बैठ गई ।


"कहिए, आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?


प्रत्युत्तर में उस युवती ने कुछ नहीं कहा - बल्कि चुपचाप, किंतु लापरवाही का प्रदर्शन करते हुए उसने एक सिगरेट निकाली और अधरों के बीच फंसाकर इस प्रकार मैनेजर से माचिस मांगी, मानो उसने मैनेजर द्वारा पूछे गए प्रश्न को सुना ही न हो ।


मैनेजर ने भी चुपचाप लाइटर उसकी ओर बढ़ा दिया । माचिस के स्थान पर लाइटर देखकर युवती के अधरों पर एक विचित्र - सी मुस्कान ने जन्म लिया, किंतु उसने चुपचाप सिगरेट सुलगाकर लाइटर उसकी ओर बढ़ाया।


लाइटर हाथ में लेते ही मैनेजर चौक पड़ा । उसके भीतर हल्का-सा भय उजागर हुआ । लाइटर के चारों ओर एक लाल-सुर्ख कागज लिपटा हुआ था। मैनेजर ने कागज को देखकर प्रश्नवाचक निगाहों से युवती को देखा, किंतु देखते ही उसके मस्तिष्क में खतरे की घंटियां घनघनाने लगी । वह आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगा। उसने गौर से सामने बैठी युवती को देखा--आश्चर्य से उसकी आंखें फैल गई । उसका चेहरा पीला पड़ गया था ।


उसके सामने कुर्सी पर बैठी युवती के जिस्म के पोर-पोर से धुआं निकल रहा था । नीले और सुनहरे रंग का एक विचित्र-सा संयुक्त धुआं । कुछ इस तरह की धीमी आवाज कमरे में आने लगी-मानो अनेक मक्खियां संयुक्त रूप से भिनभिना रही हों । भिनभिनाहट कुछ तेज होती जा रही थी और साथ ही युवती के जिस्म से निकलने वाला धुआं भी तेज होता जा रहा था। मैनेजर के आश्चर्य की कोई सीमा नहीं थी । वह अवाक्-सा, जीती-जागती युवती को धुएं में परिवर्तित होते देख रहा था । उसके लिए क्या, बल्कि सारे साधारण  मानवों के लिए यह विश्व का महानतम आश्चर्य था ।


मैनेजर के देखते-ही-देखते वह लड़की धुएं में परिवर्तित हो गई । अब उसके सामने वाली कुर्सी पर उस युवती के स्थान पर धुएं की मानव आकृति विराजमान थी। मैनेजर के मुंह से एक आवाज तक न निकली उसके देखते ही देखते विचित्र धुएं की मानव आकृति कुर्सी से उठी और वायु की भांति तैरती-सी दरवाजे की ओर बढ़ी । 


एकाएक मैनेजर को जैसे होश आया । वह भी तुरंत अपनी कुर्सी से उछल पड़ा और भयभीत होकर भयानक तरीके से चीखा- "भूत... भूत... बचाओ...!"


वह चीखता हुआ वायु में तैरते धुएं की ओर लपका । तब तक धुआं कमरे से बाहर जा चुका था । मैनेजर की चीख-पुकार सुनकर सारे बैंक में हंगामा-सा मच गया । बंदूकधारी मैनेजर के कमरे की ओर लपके । कैशियर के कान खड़े हो गए ।


तभी चीखता हुआ मैनेजर अपने कमरे से बाहर आ गया । उसकी स्थिति पागलों जैसी हो गई थी । वह वायु में तैरते उस धुएं को देखकर चीखा- "ये वही लड़की है, जो अभी मेरे कमरे में आई थी - गोली चलाओ ।" 


बंदूकधारी ही नहीं, बल्कि सभी आश्चर्यचकित रह गए क्योंकि किसी ने भी किसी युवती को मैनेजर के कमरे में प्रविष्ट होते नहीं देखा था और दूसरी बात ये कि मैनेजर धुएं में लड़की की संज्ञा दे रहा था । एक बार को तो सबके मस्तिष्क में आया कि कहीं ये मैनेजर पागल तो नहीं हो गया है? किंतु ये विचार अधिक समय तक उनके मस्तिष्क में न रह सका, क्योंकि उस धुएं का रंग और वायु में तैरने का ढंग कुछ विचित्र - सा था । उपस्थित तमाम लोग आश्चर्य के साथ उस धुएं को देख रहे थे। तभी मैनेजर चीखा- "गोली चलाओ...! -


बंदूकधारी मानो अभी तक अचेत थे उनकी चेतना वापस आई, उन्होंने बंदूकें सीधी कीं- 'धायं... धायं...!'


समस्त वातावरण गोलियों की आवाज से थर्रा गया, किंतु परिणाम देखकर सभी लोगों की आंखें हैरत से फैल गई । चेहरे बर्फ की भांति सफेद पड़ गए । धुएं पर गोलियों का कोई प्रभाव न था । गोलियां धुएं के बीच से बिना रुकावट के पार हो गई ।


किसी ने छत पर लगी रॉड तोड़ी तो कोई दीवार से लगकर शहीद हो गई ।


- सारे बैंक में हंगामा खड़ा हो गया । फायरों की आवाज ने सड़क पर जाते लोगों के पैरों में बेड़ियां डाल दीं । सभी लोग बदहवास से हो गए । मैनेजर तो पागलों की भांति चीख रहा था । आश्चर्य और भय यूं ही व्याप्त रहा और अजीब रंग का वह अजीब धुआं बैंक के सदर द्वार से यूं ही वायु में तैरता हुआ बाहर आ गया। हजारों लोगों ने हैरत के साथ उस धुएं को देखा । कुछ शरारती युवकों ने अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए उस धुएं पर कुछ पत्थर फेंके, किंतु परिणाम वही ढाक के तीन पात!


लोगों के देखते-ही-देखते धुआं वायुमंडल में ऊंचा उठता चला गया और कुछ ही क्षणों में वह लोगों की आंखों से ओझल हो गया । अब धुआं नजर नहीं आ रहा था ।


उपस्थित व्यक्तियों के चेहरे पर हैरत के भाव थे । सब लोगों ने आश्चर्यपूर्ण निगाहों से एक-दूसरे को देखा-मानो एक-दूसरे से पूछ रहे हों कि क्या तुम धुएं का मतलब समझते हो? किंतु प्रत्येक चेहरा सिर्फ पूछ रहा था, उत्तर देना किसी के बस का रोग नहीं था ।


मैनेजर तो मानो पागल हो गया था। पागलों की भांति दौड़ता हुआ वह अपने कमरे में पहुंचा, तुरंत पुलिस स्टेशन से संबंध स्थापित करके हड़बड़ाते हुए टूटे-फूटे शब्दों में समस्त घटना संक्षेप में बताईदूसरी ओर वाले रघुनाथ को लगा कि या तो यह मैनेजर पागल हो गया अथवा कोई भयानकतम अपराधी सामने आ रहा है । खैर, मैनेजर को कुछ सांत्वना दी और घटनास्थल पर पहुंचने के लिए संबंध-विच्छेद कर दिया ।


मैनेजर को दूसरी ओर से फोन रखने की ध्वनि ऐसी लगी-मानो कहीं आसपास बम गिरा हो । तभी उसके कानों में बाहर से तेज शोर की ध्वनि पड़ी । वह भी फुर्ती के साथ कमरे से बाहर निकलकर सदर दरवाजे की ओर लपका । बाहर लोगों की भीड़ बैंक के अंदर प्रविष्ट होना चाहती थी, लेकिन बैंक के बंदूकधारी उन्हें रोकने का प्रयास कर रहे थे । इस विरोध में लोगों की भीड़ एक तेज शोर की उत्पत्ति कर रही थी ।


मैनेजर का समस्त जिस्म पसीने से लथपथ हो गया । एक तो वैसे ही युवती के धुएं में परिवर्तित होने वाली घटना से बदहवास था - ऊपर से लोगों की इस बेवकूफी ने उसकी बदहवासी को यौवन पर पहुंचा दिया ।


लोगों का शोर क्षण-प्रतिक्षण तीव्र रूप धारण करता जा रहा था ।


घटना के केवल पांच मिनट पश्चात रघुनाथ सज-धजकर घटनास्थल पर पहुंच गया और उफनती भीड़ पर काबू पाया । जब रघुनाथ मैनेजर के पास पहुंचा- उस समय उसकी स्थिति पागलों जैसी हो रही थी। रघुनाथ को इस बात में कोई संदेह नहीं रह गया था कि वास्तव में यहां वह अनहोनी घटना घटी है । मैनेजर उसे अपने कमरे में ले गया । रघुनाथ सामने उसी कुर्सी पर बैठता हुआ बोला, जिस पर वह युवती आकर बैठी थी- जो बाद में एक आश्चर्य बन गई ।


" अब आप मुझे सारी घटना विस्तारपूर्वक बताइए।"


मैनेजर अब तक स्वयं पर संयम पा चुका था । जेब से रूमाल निकालकर उसने पसीना पोंछा और फिर रघुनाथ के प्रश्न के उत्तर में लहजे को संतुलित करने का प्रयास करते हुए बोला-''मैं बैठा हुआ था कि अचानक वह युवती आई...!


तत्पश्चात मैनेजर ने संपूर्ण घटना विवरण सहित रघुनाथ को सुना दी । जिसे सुनकर स्वयं रघुनाथ को ऐसा लगा जैसे उसकी खोपड़ी हवा में चक्कर लगा रही हो । सारी घटना आश्चर्य से परिपूर्ण थी ।


समस्त घटना सुनाने के बाद मैनेजर स्वयं ही आश्चर्य के साथ बोला- "लेकिन एक अन्य बात ने मुझे हैरत में डाल दिया है ।"


"वह क्या? " रघुनाथ उसकी ओर देखकर बोला ।


"यही कि बैंक के बंदूकधारी ही नहीं, समस्त कर्मचारियों के बयान ये है कि उन्होंने किसी लड़की को मेरे कमरे में प्रविष्ट होते हुए नहीं देखा ।"


"क्या तुम उस लड़की का हुलिया बता सकते हो ?


उत्तर में मैनेजर ने हुलिया बताना शुरू किया तो जनाब हुलिए के स्थान पर उसके सौंदर्य का गुणगान अधिक करने लगे । जब रघुनाथ ने अनुभव किया कि अगर उसने न टोका तो मैनेजर महोदय उस लड़की की इतनी प्रशंसा करेंगे कि अगर इस समय वह कहीं भी होगी तो वहीं बैठी-बैठी पानी हो जाए । अत: रघुनाथ ने बुरा-सा मुंह बनाया और मैनेजर से बोलती पर ढक्कन लगाने के लिए कहा ।


मैनेजर की चोंच एकदम बंद हो गई ।


रघुनाथ ने मैनेजर से अगला प्रश्न किया- "वह लाइटर कहां है... जिस पर उस लड़की ने लाल कागज लपेटकर तुम्हें वापस किया था ? "


"जी...ऽऽऽ... !" मैनेजर एकदम चौंका- ''उसे तो मैं बिल्कुल ही भूल गया... घबराहट में वह कहीं गिर गया... यही कहीं होगा ।" मैनेजर कुर्सी से एकदम उठता हुआ बोला । रघुनाथ ने भी मेज के नीचे झांककर देखा । तभी उसकी दृष्टि सिगरेट पर पड़ गई-जो लगभग पूरी थी और अब बुझ चुकी थी । रपुनाथ ने उसे सावधानी के साथ रूमाल से उठाया और ध्यान से देखा तो पाया कि सिगरेट के फिल्टर वाले भाग पर लिपस्टिक के चिह्न थे ।


- "ये सिगरेट यहां किसने पी? " रघुनाथ ने पूछा ।


- "ये उसी लड़की ने पी थी ।" मैनेजर के चेहरे पर सिगरेट को देखते ही फिर पसीने की बूंदें उभर आई। रघुनाथ ने चुपचाप वह सिगरेट जेब में रख ली, फिर लाइटर की खोज जारी हो गई । अधिक कठिनाई उठाए बिना ही दरवाजे के पास पड़ा लाइटर मिल गया । लाल कागज अभी तक उसके चारों ओर लिपटा हुआ था। रघुनाथ ने वह कागज उठाया और पढ़ा । पढ़ते-पढ़ते ही रघुनाथ की आखों में गहन आश्चर्य उभर आया । ऐसा लगता था जैसे वह अत्यंत परेशान हो गया हो । वह उस पत्र को देखता ही रह गया । सबसे अधिक आश्चर्य उसे पत्र में लिखे नीचे वाले शब्द पर हो रहा था । यह पत्र भेजने वाले का नाम था जो आश्चर्य से परिपूर्ण था । वह उन्हीं शब्दों को घूरे जा रहा था और कोई अर्थ निकालने की चेष्टा कर रहा था, किंतु वह कुछ समझ नहीं पा रहा था ।


पत्र मैनेजर ने भी पढ़ लिया था और उसकी स्थिति तो उस बालक जैसी थी, जिसे किसी हाथी ने सूंड से लपेट लिया हो । उसे लगा जैसे यह सब यथार्थ नहीं, बल्कि वह कोई भयानक स्वप्न देख रहा है। उसकी निगाह भी पत्र के अंतिम शब्दों पर ही स्थिर होकर रह गई थी । मस्तिष्क में बार-बार वही शब्द टकरा रहे थे, किंतु उनका अर्थ मीलों दूर था । वास्तव में शब्द आश्चर्यपूर्ण थे ।

रघुनाथ ने पत्र से दृष्टि हटाकर तुरंत घड़ी पर निगाह मारी और फोन उठा लिया, तुरंत शहर के इंस्पेक्टर जनरल ठाकुर साहब से संबंध स्थापित करके उसने उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया और अंत में सारा पत्र पढ़कर सुनाया तो वे भी आश्चर्यचकित रह गए और उन्होंने तुरन्त रघुनाथ को चेतावनी दी कि वह स्वयं वहीं रहे ।

उसके बाद...! राजनगर के सरकारी महकमों की घंटियां घनघनाने लगी । जो सुनता-आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगता -समस्त समाचार प्लेग की भांति ही राजनगर के कोने-कोने में व्याप्त हो गया । चारों तरफ भय और आतंक छा गया । जो पहली बार सुनता- सबसे पहले वह घड़ी देखता और फिर रिजर्व बैंक की ओर का रुख करता । शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा रहा हो जिसने ये समाचार इस एक घंटे के अंतर्गत सुन न लिया हो और ऐसा व्यक्ति भी शायद ही कोई हो जिसने सुनते ही दांतों तले उंगली न दबा ली हो ।

समस्त राजनगर बुरी तरह आतंकित हो गया । भय और आतंक का साम्राज्य फैल गया । एक विचित्र-सा आतंक छा गया चारों ओर । राजनगर के समस्त बाजार बंद होने लगे थे । लोग वास्तव में अत्यंत भयभीत हो चुके थे । सबकी निगाहें घड़ियों पर जमी हुई थीं ।

फोन की घंटियां रंग लाई। देखते ही देखते सेना के ट्रक राजनगर की सड़कों को रौंदने लगे। सैनिक-ही-सैनिक सारे राजनगर पर छा गए । रिजर्व बैंक के चारों ओर सैनिक कुछ इस प्रकार छितरे हुए थे-मानो शहर के चारों ओर मधुमक्खियां । बैक के अंदर-बाहर चारों ओर सैनिक-ही-सैनिक | 

ऐसा प्रतीत होता था-मानो किसी भयानक युद्ध की तैयारी चल रही हो । ऐसा लगता था जैसे घड़ी की सुइयां इस समय निरंतर और तीव्र वेग से आगे बढ़ रही हों ।

पिछले कुछ ही क्षणों में भयानक कहानी ने जन्म लिया था और आने वाले कुछ ही क्षण मानो मौत का पैगाम देना चाहते थे, भयानक खतरों के प्रतीक थे। आने वाले कुछ क्षण मानो भयानकता की चरम सीमा को स्पर्श कर जाएंगे। भयानक चैलेंज, किंतु चैलेंज का परिणाम?

एक प्रश्नचिह्न बनकर सभी के मस्तिष्क पर मानो चिपक गया था ।

"सर, यह है वह लाल कगज-जो उस लड़की ने बैंक मैनेजर को लाइटर के ऊपर लपेटकर दिया था ।" सीक्रेट सर्विस के चीफ ब्लैक बॉय ने वही लाल कागज विजय की ओर बढ़ाते हुए कहा ।

- "वो तो ठीक है प्यारे काले लड़के, लेकिन सवाल ये है कि क्या मामला वास्तव में इतना गंभीर है कि विजय दी ग्रेट यानी हमारी आवश्यकता आ पड़ी ?" विजय लाल कागज हाथ में लेता हुआ बोला ।

"आप तो सब कुछ जानते ही है... । ब्लैक बॉय आगे बोला"अभी केवल एक घंटे पूर्व से ही राजनगर में किस प्रकार आतंक छा गया है? सर, वास्तव में यह घटना अपने ढंग की एकदम नई और अनोखी घटना है । इस पत्र को पढ़कर आप भी उस अपराधी के साहस की दाद देंगे और सबसे अधिक आश्चर्यजनक तो इस पत्र में लिखे अंतिम शब्द हैं । इस पत्र के प्राप्त होते ही समस्त राजनगर में सैनिक तैनात कर दिए गए है। लोग भयभीत है । गृह मंत्रालय से स्वयं गृहमंत्री ने सीक्रेट सर्विस से संबंध स्थापित किए और उन्होंने स्पष्ट कहा कि संपूर्ण सीक्रेट सर्विस अपराधी के इस साहसी चैलेंज का मुकाबला करे । विशेषतया यह केसर मिस्टर विजय को यानी आपको सौंपा जाए।"

-"देखो प्यारे काले लड़के ।" विजय अकड़कर सीना फुलाता हुआ बोला- "देखो विजय दी ग्रेट की शोहरत-स्वयं गृहमंत्री ने हमें इस केस पर लगाया है । "

ब्लैक ब्वॉय के अधरों पर मुस्कान उभर आई ।

विजय ने लाल कागज खोलकर पढ़ना प्रारम्भ किया | लिखे हुए शब्द कुछ इस प्रकार थे... ।

प्यारे राजनगरवासियों एवं पुलिस अधिकारियों, हमें कुछ इस प्रकार के समाचार मिले हैं कि आजकल रिजर्व बैंक ऑफ इडिया की मुद्रा की संख्या कई करोड़ तक पहुंच गई है । अधिकारीगण जरा हमारी बात को गहराई से सोचें । वास्तविकता यह है कि हम लोग हमेशा जनकल्याण के लिए तत्पर रहे हैं। हमारा अभी तक का जीवन जनकल्याण में ही व्यतीत हुआ है और उम्मीद करते हैं कि अगर आप लोगों का सहयोग रहा तो जीवनपर्यंत हम लोग इसी प्रकार परहिताय के लिए प्रयत्नशील रहेंगे। अभी तक हम लोग जनकल्याण के छोटे-छोटे कार्य करते रहते थे- हमने देखा कि भारत कुछ इतनी परेशानियों में घिरा है कि अगर हमारी यह जनकल्याण की भावना इतनी धीमी रही तो हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे और हमारा जीवन एक प्रकार से निरर्थक-सा ही हो जाएगा । अत: अब हम लोग खुलकर सामने आ रहे हैं ।

हाँ, तो मैं उस विषय पर लिख रहा था - जो जनकल्याण का कार्य हम अभी कुछ ही समय बाद करने जा रहे हैं । हम एक बार फिर कहते हैं कि हमें समझने का प्रयास करें...। बात ये है कि रिजर्व बैंक में मुद्रा आवश्यकता से अधिक हो है । अब जरा आप लोग दिमाग से सोचें कि बड़ी रकम का लालच किसके दिमाग में नहीं आएगा...? आजकल भारत में भ्रष्टाचार, धोखा, चोरी, लूट जोरों पर है। अब जरा आप सोचिए कि क्या किसी भी समय वे लुटेरे रिजर्व बैंक की दस करोड़ की जायदाद जो भारतीय प्रजा की है, को लूट नहीं सकते...? आपको हो अथवा न हो, लेकिन हम लोग तो क्योंकि जनकल्याण के लिए जीते है । अत: प्रजा की सुरक्षा का ध्यान लगा रहता है । प्रजा के इस धन को अत्यंत सुरक्षित रखने के लिए हम लोग ठीक दो बजे आकर यह सब धन ले जाएंगे, ताकि अत्यंत सुरक्षा के साथ रखा जा सके । शायद आप लोग हमारे इस कार्य की निंदा करें, किंतु हम फिर कहेंगे कि हमें समझने का प्रयास किया जाए। अगर यह धन यहां रहा तो हमेशा चोरी का भय लगा रहेगा? संभव है कि इस प्रयास में किसी की हत्या भी हो जाए और हमारे होते हुए यह सब हो जाए तो हम किस बात के जनकल्याणी है? इस बात की संभावना ही समाप्त हो जाए, इसलिए हम ठीक दो बजे आएंगे ।

हमने अब बहुत कुछ लिख दिया है- आशा करते हैं कि हमारे कार्यों में बाधा डालने के स्थान पर हमें सहयोग देंगे । किंतु अंत में यह लिखना भी अपना कर्तव्य समझते हैं कि अगर हमारे इस उपकारकार्य में कोई हमारे विरुद्ध आया तो दोस्तों ये याद रखना कि जो कार्य जनकल्याण के लिए किए जाते है, कर्यकर्ता उन सभी रोड़ों को ठिकाने लगाता हुआ अपनी मंजिल तक पहुंचता है, जो मार्ग में आते हैं ।

यूं तो हमारे अत्यंत सुरक्षित रखने पर भी चोरी इत्यादि का भय तो लगा ही रहेगा--स्वयं हमारी जान भी जा सकती है, किंतु हमें अपनी चिंता नहीं हैहमें चिंता है तो आप लोगों की । कहीं आप लोगों को किसी प्रकार का कष्ट न हो । अत: हम इस मुसीबत को अपने साथ ले जाने के लिए ठीक दो बजे आ रहे हैं । इस धन की सुरक्षा में अगर हम लोगों की जान भी चली जाए तो हम अपना परहिताय जीवन सफल समझेंगे । अच्छा, अब दो बजे मिलेंगे ।

जनकल्याणकारी, आप ही के दोस्त

आग के बेटे।

विजय ने संपूर्ण कागज पढ़ा-वास्तव में सारा पत्र एक विचित्र ढंग से लिखा गया था | प्यार भरे शब्दों में ही एक खतरनाक चैलेंज दे दिया था - अंतिम शब्दों पर तो वास्तव में उसकी निगाहें जमकर रह गई । उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये 'आग के बेटे' क्या बला है? आग के बेटे कैसे होंगे? आग के बेटों का आखिर मतलब क्या है?

उसने चौंककर घड़ी देखी- जो ठीक सवा बजने का संदेश दे रही थी । घड़ी देखकर उसने विचित्र ढंग से मुंह बिचकाया और फिर ब्लैक-बॉय की ओर देखकर बोला ।

-"तो प्यारे चीफ मियां, इसमें परेशानी क्या है? ये साले आग के बेटे तो जनकल्याणकारी हैं। जो कर रहे हैं, जनता के लाभ के लिए ही कर रहे हैं । हम क्यों बेकार में इनके रास्ते में रोड़े बनें ? "

- "सर यह जानते हुए भी कि परिस्थिति कितनी गंभीर है -आप मजाक कर रहे हैं... शीघ्रता से सोचिए कि हमें करना क्या चाहिए? समय कम है सर ।" ब्लैक ब्वॉय चिंतित स्वर में बोला ।

- "खैर प्यारे - अगर तुम कहते हो तो हम इन्हें रोकने का प्रयास करेंगे। वैसे हमें लगता है कि ये साले आग के बेटे किसी हरामी की औलाद हैं.. . हमारे रोकने से रुकेंगे नहीं, लेकिन वो अगर आग के लौंडे हैं तो हम भी ठाकुर के पूत है । साले इस तरह नहीं रुके तो दो-चार झकझकियां सुनाकर धाराशायी कर देंगे।'' विजय सीना फुलाता हुआ बोला ।

-"सर!" ब्लैक ब्वॉय उसी प्रकार गंभीरता के साथ बोला- "मेरे ख्याल में क्यों न राजनगर में तीन बजे तक के लिए कर्फ्यू लगा दिया जाए ?"

-"नहीं... नहीं प्यारे !" विजय एकदम सतर्क होकर बोला- "भूलकर भी ऐसा पवित्र कार्य न कर बैठना । इस समय अगर कर्फ्यू लगाया गया तो जनता भड़क उठेगी और एक नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी। इस समय प्रत्येक कदम सोच-समझकर उठाओ ।"

-"तो फिर क्या किया जाए सर ?"

- "तुम अशरफ इत्यादि सभी को वहां पर भेज दो। तब तक हम भी पहुंच रहे है ।" विजय ने कहा और पड़ी को देखता हुआ तुरंत सीक्रेटरूम से बाहर निकल आया । घड़ी डेढ़ बजने का संदेश दे रही थी ।

- ठीक पौने दो बजे विजय रिजर्व बैंक पहुंचा। वहां उसके पिता राजनगर के आई. जी. के नेतृत्व में काफी भारी संख्या में पी. ए. सी. के जवान उपस्थित थे, जो उमड़ती भीड़ पर काबू पाने का प्रयास कर रहे थे। काफी हद तक वे अपने प्रयास में सफल भी थे । नेतृत्व क्योंकि ठाकुर साहब कर रहे थे, अत: काफी सुदृढ़ था । रिजर्व बैंक के चारों ओर कुछ इस तरह के चक्रव्यूह का निर्माण किया गया था मानो महाभारत को दोहराना चाहते हो । रघुनाथ ने स्वयं एक ओर का मोर्चा संभाल लिया था । विजय ने देखा कि सीक्रेट सर्विस के अन्य सदस्य विभिन्न मेकअपों में वहां उपस्थित थे । आशा इस समय किसी चिड़चिड़ी और बदसूरत-सी बुढ़िया के मेकअप में थी-जिसके काले, भद्दे और चेचक के दाग वाले चेहरे की लम्बी और टेढ़ी-मेढ़ी नाक पर एक ऐनक लगभग लटक-सी रही थी। उसके मोटे लटके हुए होंठों से पान की पीक बह रही थी । बाल पक चुके थे... उसके हाथ में एक लठिया थी और वह अपने हुलिए के अनुसार कुशाल अभिनय करने में सफल थी ।

विजय इस समय स्वयं मेकअप में था ताकि ठाकुर साहब न पहचान सकें । इस समय वह ऐसे मेकअप में था कि उसे पहचानना कठिन ही नहीं, असंभव था । उसको कुछ शरारत सूझी । अत: उसने आशा की ओर देखा और आंख मार दी ।

उत्तर में जो हरकत आशा ने की उससे वह मान गया कि आशा कमाल का अभिनय करती है। उसके आंख मारते ही आशा ने ठीक किसी बुढ़िया की भांति तेवर बदले और दो-चार गालियों से विभूषित कर दिया । यह एक अलग बात है कि इस बीच पान की पीक ने होंठों के बीच से निकलकर मैली-कुचैली धोती पर एक सुंदर-सा प्रिंट बना दिया था । वैसे प्रिंट बनाना भी बाकायदा आशा के अभिनय का एक भाग था ।

विजय तुरंत भीड़ में विलुप्त हो गया । वह यह न जान सका कि आशा ने भी उसे पहचाना है अथवा नहीं । वह भीड़ में घुस गया और एक स्थान पर आराम से खड़ा होकर बैंक के उस चौपाले को देखने लगा-जहां सिर्फ सरकारी कर्मचारी ही खड़े थे ।

अभी वह ध्यान से सब कुछ देख ही रहा था कि वह चौक पड़ा-न सिर्फ चौंक पड़ा, बल्कि उछल पड़ा, जब भीड में से किसी ने ये बेहूदा हरकत की।

हुआ ये कि विजय की कमर में किसी ने बहुत जोर की चूंटी काटी । परिणामस्वरूप वह उछल पड़ा और अपने चारों ओर का निरीक्षण किया, किंतु वह न जान सका कि ये हरकत किसकी है । जब उसे काफी प्रयासों के बाद भी असफलता ही हाथ लगी तो वह शांत खड़ा हो गया और अपना ध्यान 'आग के बेटों' की ओर लगाने का प्रयास कर ही रहा था कि एक बार वह फिर चौक पड़ा ।