फिर तेरी कहानी याद आई -1
माया वीर की बाँहो में थी। दोनों एक-दूसरे को अपलक देखे जा रहे थे। दोनों एक-दूसरे को महसूस कर रहे थे। दोनों एक-दूसरे में खोए हुए थे। वीर ने अपने हाथ की अँगुलियाँ माया के चेहरे पर घुमाईं और उसके होठों के नीचे तिल के पास ले जाकर रोक दिया।
“तुम्हारा तिल कितना ख़ूबसूरत है, माया ! दिल करता है इसे चूम लूँ।‘’ वीर ने शरारती लहज़े में कहा।
“अच्छा। कितनी बार चूमोगे इसे?”
“अनगिनत बार, जब तक मेरे सीने में दिल धड़कता रहेगा तब तक तुम्हें, तुम्हारे तिल, होंठ, जिस्म सभी को चूमता रहूँगा।” वीर ने माया के कान में धीरे-से कहा।
“बस-बस हो गया तुम्हारा मक्खन लगाना, अब मुझे छोड़ो।” माया ने वीर की मज़बूत बाँहों की जकड़ से छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा।
“नहीं, प्लीज़ अब यह दूरी बर्दाश्त के बाहर है।” वीर ने माया को अपने और करीब खींचकर कहा।
“बर्दाश्त के बाहर तो मेरे भी है, मगर समझा करो।” माया ने कहा।
लेकिन वीर उसे छोड़ना नहीं चाहता था। वो चाहता था कि माया उसकी बाँहों में जीवन भर ऐसे ही रहे, वो बस उसे देखता रहे, महसूस करता रहे ,प्यार करता रहें।
“माया, तुम बहुत ख़ूबसूरत हो। दिल करता है तुम हमेशा मेरी बाँहो में ऐसे ही रहो। ऐसे ही हम एक-दूसरे को देखते रहें। ड़र लगता है कि अगर मैंने अपनी पकड़ ढ़ीली की तो तुम मुझसे दूर न हो जाओ। मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं। आई लव यू यार माया।” वीर ने अपना हाथ माया की कमर से नीचे ले जाते हुए कहा।
“आई लव यू टू बाबा, पर अब छोड़ो मुझे........”
लेकिन माया अपनी बात पूरी कह पाती, उससे पहले ही वीर ने अपने होंठों से माया के होंठों को सिल दिया। माया अब वीर की बाँहों में पिघल रही थी। वीर का स्पर्श माया को बहका रहा था। दोनों एक-दूसरे को किस करते हुए बिस्तर तक जा पहुँचे। अब बिस्तर पर सिलवटें पड़ रही थीं और कमरे में पिन ड्रॉप ख़ामोशी ने अपने पैर पसार लिए थे।
दूसरे कमरे में मोबाइल बज रहा था। फ़ोन की आवाज़ से वीर अपनी पुरानी यादों से बाहर निकला और वो पल धुंएँ की तरह उसकी आँखों के सामने से ग़ायब हो गया। उस पल को सोचते हुए वीर के चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान तैर गई।
वीर अपने सोफ़े पर बैठा अपनी पुरानी यादों की गलियों से गुज़रकर वापिस वास्तविकता के शून्य में ताक रहा था। रात के ग्यारह बज रहे थे। बाहर बहुत ज़ोरों से बारिश हो रही थी। कमरे में हल्की रौशनी थी। सोफे के सामने मेज़ पर एक व्हिस्की की बोतल जो अपना आधा नशा उतार चुकी थी, दो सिगरेट के पैकेट, ऐश-ट्रे जो सिगरेट के ठूँठों से भरा पड़ा था और एक प्लेट में मसालेदार मूँगफली रखी हुई थी। कमरे में धीमा इंस्ट्रूमेंटल म्यूज़िक बज रहा था और चारों तरफ़ कमरे में तन्हाईं पसरी हुई थी।
वीर अपनी टेबल की तरफ़ आगे आया और अपने ख़ाली गिलास में व्हिस्की डाली और उसे एक झटके-से गले में धकेल दिया। फिर उसने एक सिगरेट जला ली और खिड़की की तरफ़ बाहर देखने लगा। बारिश मस्त होकर बरस रही थी । खिड़की पर बारिश की कुछ बूँदें पसरी हुई थीं, जो लगातार अन्दर ताँक-झाँक कर रही थीं।
व्हिस्की अपना काम कर रही थी। वीर की आँखों के आगे हल्का-हल्का धुंधलापन छा रहा था। वीर ने अपनी आँखों को बन्द किया और ख़ुद को फिर से उन्ही यादों की गलियारो में खड़ा पाया जहाँ वो जाना नहीं चाहता था, लेकिन न चाहते हुए भी वो वहा पहुँच जाया करता था।
“प्लीज़, वीर मुझे वो सब वापिस चाहिए जो मैंने तुम्हें दिया था।” माया ने गुस्से से कहा।
“वो सब क्या, क्या दिया है तुमने मुझे? मेरे पास तो तुम्हारा केवल प्यार है और वो भी अब मुझसे दूर जा रहा है जानबूझ कर। कहाँ है तुम्हारा प्यार, जो मैं तुम्हारी आँखों में देख नहीं पा रहा हूँ। कहीं खो गया है या तुमने ही उसे बाहर निकाल कर फेंक दिया? कहाँ निकाल कर फेंक दिया? किसी कचरे के ड़ब्बे में या अपने पैरो से रौंद दिया? ज़रा दिखाओं तो अपने कठोर पैर, जिनसे तुमने मेरे नाजुक प्यार को चींटी की तरह मसल कर रख दिया।” वीर ने माया की आँखों में अपने उस खोए हुए प्यार को ढूंढ़ते हुए कहा।
वीर अब थोड़ा भावुक हो चला था।
“मुझे तुम्हारी कोई बकवास नहीं सुननी। मैं इसके लिए तुमसे मिलने नहीं आई हूँ, मुझे वो सब वापिस चाहिए, बस !”
“अपने पाँच साल के रिलेशन में तुम्हारी यादें हैं केवल मेरे पास, तुम्हारा स्पर्श है, तुम्हारी ख़ुशबू है और तुम्हारे अनगिनत किस हैं। अगर इन्हें मेरे से जुदा कर सकती हो तो ले जाओ, लेकिन तुम इन सब यादों और पलों को मुझसे छीनकर क्या करोगी? फिर इन्हें भी रौंद दोगी तुम।”
“वीर, प्लीज़ मुझे ज़्यादा गुस्सा मत दिलाओ। ये यादें, पल और किस तुम अपने पास रखो। मुझे इनमें से कुछ भी नहीं चाहिए। मुझे अपनी तस्वीरें, लव लैटर्स और गिफ़्ट्स वापिस चाहिए जो मैंने तुम्हें इन पाँच सालों में दिए हैं। मैं तुम्हारे पास अपना कुछ भी नहीं छोड़ना चाहती, कुछ भी नहीं।”माया ने अपनी आवाज़ को थोड़ा तेज़ करते हुए कहा।
“नहीं, वो सब तो मैं तुम्हें नहीं दे सकता। इन सब पर तो केवल मेरा ही हक़ है। यही कहा था न तुमने जब मुझे यह सब दिया था। फिर आज तुम क्यों इन्हें मुझसे वापस करने को कह रही हो?” वीर ने सड़क की दूसरी तरफ़ देखते हुए कहा।
दोनों सड़क के एक तरफ़ खड़े होकर कभी धीमे तो कभी चिल्लाकर बातें कर रहे थे। वीर से बार-बार ‘न’ सुनने पर माया का गुस्सा तेज़ होता जा रहा था और उसने अचानक वीर का कॉलर पकड़ लिया।
“मुझे अपना सब कुछ वापिस चाहिए, बस। मुझे तुम पर अब बिल्कुल भी यक़ीन नहीं है। मेरी आगे की ज़िंदगी में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है और उसे तुम बर्बाद कर सकते हो। वो सब मुझे लौटा दो, नहीं तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ।”माया का गुस्सा अब अपनी पराकाष्ठा पर था।
वीर माया को अचंभित होकर देख रहा था। उसे बिल्कुल भी यक़ीन नहीं हो रहा था कि माया उसके साथ इस तरह का बर्ताव करेगी। उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। अब वीर को भी गुस्सा आने लगा था, लेकिन उसने अपने गुस्से पर कण्ट्रोल किया। वीर ने माया का हाथ अपने कॉलर से हटाया और अपनी कमर के दोनों तरफ़ हाथ रखकर सड़क के दूसरी तरफ़ किनारे पर लगे पेड़ को देखने लगा, जिसके सूखे पत्तें पेड़ से अलग होकर नीचे ज़मीन पर गिर रहे थे। वो सोच रहा था कि इस पेड़ और उन पत्तों को भी तकलीफ़ होती होगी जो एक-दूसरे से जुदा हो रहे हैं।
कुछ सोचने के बाद वीर ने माया की तरफ़ देखा और वो सब कुछ देने से मना कर दिया जिसके लिए माया उससे मिलने आई थीं।
माया ने गुस्से से वीर की तरफ़ देखा और कहा कि ठीक है रखो तुम अपने पास उन्हें, लेकिन अब जो होगा उसके ज़िम्मेदार तुम ख़ुद होगे। इतना कहते ही माया वहाँ से जाने लगी।
माया जब भी मुलाक़ात के बाद बस स्टॉप तक जाती थी तो वीर हमेशा उसके साथ जाता था, लेकिन आज वो नहीं गया और न ही उसने माया को जाते हुए देखना चाहा। वीर माया को रोक लेना चाहता था। वह उसे कह देना चाहता था कि मत जाओ, मेरी धड़कन हो तुम, लेकिन अब उसे यह नहीं मालूम था कि वो माया को किस हक़ से रोकता? वह सड़क के दूसरे किनारे लगे उस पेड़ के पास गया और उसने ज़मीन पर गिरा एक सूखा पत्ता उठाया और पेड़ की तरफ़ देखने लगा।
दोबारा फ़ोन की आवाज़ के साथ वीर अपने अतीत की गहराई से बाहर आया। उसकी अँगुली में फँसी सिगरेट पूरी तरह राख बनकर फ़र्श पर पसर चुकी थी। उसने महसूस किया कि उसकी आँखों से आँसुओं की दो बूँदे उसके चेहरे पर लुढ़क गई थीं।
“क्यूँ मैं माया की यादों के पिंजरे को तोड़ नहीं पा रहा हूँ? क्यूँ हर रात वो मुझे दिखती है और मेरा हाथ पकड़कर उस अतीत के गलियारे में ले जाती है, जिसमें मैं जाना ही नहीं चाहता और हमेशा की तरह वहाँ अकेला तन्हा छोड़कर चली जाती है? इस तकलीफ़ से मुझे कब छुटकारा मिलेगा? मैं अब थक चुका हूँ उसकी यादों और उसके चेहरे को सिगरेट के धुँए के पीछे छुपाते-छुपाते।” वीर अपने अंतर्मन में ही बातें कर रहा था।
बाहर फ़ोन लगातार बज रहा था। वीर ने उठकर कमरे में चल रहे म्यूज़िक को बन्द किया और दूसरे कमरे मे जाकर फ़ोन देखा तो सत्रह मिस्ड कॉल किसी नए नम्बर से फ़ोन की स्क्रीन पर फ़्लैश हो रहे थे। फ़ोन पर वापिस कॉल करने का वीर का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था। उसने फ़ोन को वहीं टेबल पर रखा और वापिस अन्दर कमरे मे जाने लगा कि तभी फ़ोन दोबारा बजा। उसी नए नम्बर से कॉल फिर से आ रहा था। वीर ने फ़ोन रिसीव किया।
“अरे, बेवक़ूफ़ है क्या तू? कितनी देर से तुझे कॉल कर रही हूँ, उठा क्यूँ नहीं रहा?”
“कौन बोल रहा है?”
“माधवी बोल रही हूँ, पहले यह बता अभी कहाँ पर है तू।”
“मैं तो दिल्ली में हूँ, लेकिन तुझे मेरा नम्बर कहाँ से मिला?”
“तूने तो अपना पुराना नम्बर बन्द किया हुआ है, तो अजय के पास कॉल किया था। उसी ने तेरा नम्बर दिया है, उसी से पता चला कि तू दिल्ली में है।”
“ठीक है, मुझसे क्या काम है? क्यूँ फ़ोन किया है?” वीर ने थोड़ा कठोर बनते हुए कहा।
“बकवास ना कर। मैं अभी दिल्ली एयरपोर्ट पर हूँ और मेरी दस बजे की ऑस्ट्रेलिया के लिए फ़्लाइट थी। लेकिन अब तेज़ बारिश और तूफ़ान के कारण फ़्लाइट डिले हो गई है और सुबह से पहले कोई फ़्लाइट भी नहीं है, तो सोचा कि तेरे पास सुबह तक रुक जाती हूँ।” माधवी ने एक साँस में सब कह दिया।
“लेकिन तू वहीं एयरपोर्ट के वेटिंग रूम में इन्तज़ार कर सकती हैं, यहाँ आकर क्या करना है। परेशान हो जाएगी और वैसे भी बारिश हो रही है।” वीर ने स्थिति को टालते हुए कहा।
“हाँ, पता है मुझे वेटिंग रूम का, ज़्यादा ज्ञान न दे। मेरे साथ टिप्सी भी है, तो मैं यहाँ कम्फ़र्टेबल फ़ील नहीं कर रही हूँ। इसलिए तुझे फ़ोन किया है। चल बता कहाँ पर आना है? अपना पता दे, मैं कैब करके आती हूँ।”
वीर ने बिना कोई रिप्लाई किए फ़ोन रख दिया और कमरे की दीवार पर टँगी एक तस्वीर को देखने लगा, जिसमें वीर, माधवी और अजय तीनों एक-दूसरे के कंधों पर हाथ रखकर खड़े थे। वीर को माधवी से बात किए हुए तीन साल हो चले थे। माधवी अपनी शादी के बाद अपने पति के साथ ऑस्ट्रेलिया में सैटल हो गई थी। उनके बीच में कभी कोई ऐसी बात या घटना नहीं घटी थी कि तीनों आपस में नाराज़ रहें। बस, वीर ने ही धीरे-धीरे उन दोनों से दूरियाँ बना ली थीं। हालांकि अजय से कभी–कभी बात हो जाती थी और उसी से वीर को माधवी का पता चला था कि वो अपनी शादी के कुछ महीनों बाद विदेश में सैटल हो गई है। उसका पति अब वहीं जॉब करने लगा था।
“ये टिप्सी कौन है, जिसका नाम माधवी ने फ़ोन पर लिया? शायद वो उसकी बेटी होगी। उस लगा कि माधवी के साथ इस तरह का बर्ताव नहीं करना चाहिए था । वो और उसकी बेटी परेशान हो रही होगी।” वीर ने यही सोचकर अपना फ़ोन उठाया और अपना पता माधवी के नम्बर पर मैसेज कर दिया।
कुछ समय बाद ‘ओके, मैंने कैब ले ली है।मैं आ रही हूँ।’ का रिप्लाई आया।
वीर ने अपना फ़ोन वापिस टेबल पर रख दिया और खिड़की से बाहर बारिश को देखने लगा। वो अजय और माधवी के बारे में सोचने लगा। कितनी गहरी दोस्ती थी हमारी और आज केवल मेरे ही कारण हम न कभी मिल पाते हैं और न कभी बातें हो पाती है। वो हमारी दोस्ती के भी क्या दिन थे जब हम छुप-छुप कर बीयर और सिगरेट पीते थे, साथ घूमने निकल जाते थे, मस्ती करते थे, फिल्में देखते थे। एक बार तो हम तीनों व्यस्क फ़िल्म देखने के लिए थियेटर में चले गए थे, फिर हमें बीच में ही वापिस आना पडा था। वो दिन कितने मस्ती भरे और सुकून वाले पल थे, लेकिन आज यह दोस्ती की नाव कितने ही किनारों से टकराकर बिखर गई थी, जिसका कारण कोई और नहीं केवल मैं था।
वीर ने अपना एक पैग बनाया और वापिस खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया।
तक़रीबन चालीस मिनट के बाद दरवाज़े पर घंटी बजी। वीर ने घड़ी की तरफ़ देखा 12:10 का समय हो रखा था। उसने जाकर दरवाज़ा खोला तो सामने माधवी खडी थी। उसने ब्लैक कलर की जींस और पिंक कलर का टॉप पहना हुआ था। पैरो में स्पोर्ट शूज़ और बाल खुले हुए थे। गोद में उसने टिप्सी को लिया हुआ था, जो उसके कंधे पर सर रखकर सोई हुई थी।
“हे... कैसा है? ”
“मैं ठीक हूँ, तुझे आने में कोई दिक़्क़त तो नहीं हुई।”
“नहीं, कोई दिक़्क़त नहीं हुई.... बस बारिश के कारण सड़को पर थोड़ा ट्रैफिक ज़्यादा था।”
“ओके.... प्लीज़ अन्दर आ ना।”
बड़े शहरों और क़स्बों का एक फ़र्क़ यह भी होता है कि शहरों की बारिश इतनी शांति से होती है कि कुछ भी रोक नहीं पाती है और गांव में जब बारिश होती है तो सब कुछ रुक जाता है, सिर्फ़ बारिश होती है।
माधवी अन्दर आई। उसने अपना ट्रॉली बैग दीवार के साथ खड़ा कर दिया और अपना हैंड़बैग सामने टेबल पर रख दिया। टिप्सी को माधवी ने बेड़ पर सुला दिया और वीर की तरफ़ मुस्कुराते हुए देखने लगी।
“क्या हुआ?” वीर ने पूछा।
“कुछ नहीं”
“यह तुम्हारी बेटी बहुत क्यूट है।”
“हम्ममम.... अपनी मम्मा पर गई है ना। इसलिए बहुत क्यूट है।” माधवी ने जवाब दिया।
“कितने साल की हो गई है टिप्सी?” वीर ने टिप्सी को देखते हुए पूछा।
“अगले महीने पूरे दो साल की हो जाएगी।” माधवी ने टिप्सी के जूते उतारते हुए कहा।
माधवी जूते उतारने के बाद वहीं बैड़ पर बैठी वीर को ताक रही थी। वीर उसके सामने खड़ा था। वो बेड़ से खडी हुई और वीर के पास आकर सीधे उसे गले से लगा लिया। वीर ने अपना चेहरा दाईं तरफ़ घुमा लिया ताकि उसे व्हिस्की की बदबू ना आ जाए।
बहुत अच्छा लगता होगा जब कोई पुराना दोस्त काफ़ी समय बाद मिलता है। कुछ अलग ही फ़ीलिंग्स होती होंगी। लेकिन वीर को कुछ भी ऐसा महसूस नहीं हो रहा था। शायद, उसमें अब किसी भी प्रकार की फ़ीलिंग्स बची ही नहीं थीं। एक ज़िन्दा इंसान के लिए इससे भयावह स्थिति क्या हो सकती है, जब वो किसी रिश्ते को महसूस ही न कर पाए। वह एक ऐसी सूखी नदी की तरह होता है, जिसमें पानी बहना बरसों पहले बन्द हो चुका हो।
“और कैसा है तू।” माधवी ने पूछा?
‘मैं ठीक हूँ।”
“लग तो नहीं रहा।” माधवी ने कमरे में चारों तरफ़ देखते हुए कहा।
“नहीं, बिल्कुल ठीक हूँ मैं।”
“अच्छा, तेरे जैसे ठीक होते हैं क्या? हुलिया देखा है तुमने अपना? किसी अघोरी साधु की तरह दाढ़ी बढा रखी है, बाल बढ़ा रखे है, शराब पी रखी है, सिगरेट पीकर होंठों की सतह काली पड़ चुकी है, होंठों में दरारें आ चुकी हैं और फ़्लैट तो माशाअल्लाह ग़ज़ब का बना रखा है तूने। सफ़ाई किए हुए लगता है कि महीनों हो गए हैं। कमरे में एक तरफ़ शराब की ख़ाली बोतलें पडी हुई हैं। कुछ कपड़े बेड़ पर बिखरे हुए हैं। मोजे बिस्तर के नीचे पड़े हुए हैं। अगर ऐसे ठीक होते हैं तो फिर तो बहुत ठीक है तू।”
“अच्छा, चल छोड़ ना। तू फ्रेश हो ले। काफ़ी थकी हुई लग रही है। तब तक मैं क़ॉफी बनाता हूँ तेरे लिए।” वीर ने बात काटते हुए कहा।
माधवी बस खड़े-खड़े वीर को घूरे जा रही थी। शायद कहना चाहती थी कि इतने सालों के बाद मिलेगा तो ऐसा मिलेगा, यह कभी सोचा नहीं था। हाँ, यह भी सच है कि वीर का हुलिया किसी विलेन की तरह लग रहा था और वैसे भी हीरो टाइप बनना तो वीर को कभी पसन्द ही नहीं था। वीर उससे अपनी तारीफ़े और नहीं सुनना चाहता था, इसलिए उसने अपने क़दम क़ॉफी बनाने के लिए किचन की तरफ़ बढ़ा लिए।
“मैं क़ॉफी नहीं पीती, अदरक वाली चाय बना ले।” माधवी ने अपने ट्रॉली बैग से तौलिया निकालते हुए कहा।
“हाँ, ठीक है। तू फ्रेश हो ले तब तक, मैं चाय बनाता हूँ।” वीर ने भगौने में पानी डालते हुए कहा।
“अच्छा, सुन। एक टी-शर्ट और लॉवर दे अपना। जींस में मुझे कम्फर्ट फील नहीं हो रहा है।” माधवी ने कहा।
“हाँ ज़रूर। फ्रिज में होंगे, ले ले।”
“फ्रिज में।” माधवी ने अचंभित होकर किचन के दरवाजे पर आकर कहा।
“हाँ, वो दरअसल मेरे पास करीने से कपड़े रखने के लिए अलमारी तो है नहीं और वैसे भी मैंने बीयर पीनी छोड़ रखी है तो फ्रिज को भी तो किसी काम में लेना था।” वीर ने अदरक कूटते हुए कहा।
“फ्रिज में कपड़े कौन रखता है? हद है,यार तेरी भी।” माधवी ने दायाँ हाथ अपनी कमर पर रखते हुए कहा।
माधवी ने फ्रिज से टी-शर्ट और लॉवर लिए और वॉशरूम में फ्रेश होने चली गई। वीर वहीं किचन में चाय को उबलते हुए देखता रहा।
माधवी वॉशरूम से फ्रेश होकर बाहर आ गई थी।
“यह लो तुम्हारी अदरक वाली चाय।” वीर ने कहा।
“थैंक्यू।”
“तुम्हारी चाय किधर है?” माधवी ने वीर के ख़ाली हाथों को देखते हुए कहा।
“मैं रात को चाय नहीं पीता।”
“अच्छा, देखा मैंने , तुम तो रात को शराब पीते हो।” माधवी ने चाय का पहला सिप लेते हुए कहा।
शायद उसको वीर के मुँह से बदबू आ गई होगी या फिर उसने अन्दर कमरे में टेबल पर रखी शराब की बोतल को देख लिया होगा।
“हाँ... कभी-कभी। जब-जब रात मुझ पर भारी होने लगती है तो फिर इस शराब का ही सहारा लेता हूँ। यह दिल का भारीपन थोड़ा कम महसूस होने देती है और फिर रात मुझे कम दर्द देकर जाती है।” वीर ने अन्दर वाले कमरे में जाते हुए कहा।
वीर सामने सोफ़े पर बैठ गया और माधवी उसके सामने बैड़ पर बैठ चुकी थी। माधवी चाय पीते हुए बिना कुछ कहे वीर को देखे जा रही थी।
“अगर तुम कम्फ़र्टेबल हो तो क्या मैं एक-दो पैग ले सकता हूँ?” वीर ने अपनी तलब को काबू न करते हुए पूछा।
“हाँ-हाँ, ले लो। जब मन में तलब उठ ही रही है तो पीना भी चाहिए। जब तबाह होने की ठान रखी है तो पूरी तरह से हो। वैसे भी इस शराब और सिगरेट की वजह से बहुत ज़िंदगी धुआँ होती है। लत बुरी चीज़ है चाहे सिगरेट की हो, शराब की या इश्क़ की। और तुझे तो तीनों की ही लत है।” माधवी ने ताना मारते हुए कहा।
ऐसा नहीं है कि वीर शराब का आदी हो चुका था कि अगर उसके सामने कोई बैठा हो तो भी उसे पीना पड़े, लेकिन माधवी के आने के कारण वीर का नशा आज उतर चुका था और रात अभी बाक़ी थी।
वीर ने अपना एक पैग बनाया और एक सिगरेट जला लीऔर अपने फ़ोन में कुछ देखने लगा। माधवी ने चाय ख़त्म की और कप सामने टेबल पर रख दिया। वीर ने माधवी की तरफ़ देखा तो वो उसे ही देख रही थी। शायद पूछना चाहती थी कि यह क्या कर रहा हूँ मैं, ऐसा भी क्या जीवन से निकल गया जो उस खालीपन को शराब से भर रहा है? और आखिरकार माधवी ने पूछ ही लिया।
“तो अपने ऐसे हालात क्यूँ बना रखे हैं तूने?” माधवी ने वीर के दोनों हाथों को देखते हुए कहा, जहाँ एक हाथ में सिगरेट जल रही थी और दूसरे हाथ में शराब से आधा भरा गिलास था।
“कैसे हालात? मैं तो एकदम मस्त हूँ।” वीर ने कहा।
“अगर मस्त लोग तेरे जैसे होते हैं तो हम तो इस दुनिया में exist ही नहीं करते। हालात देख तू अपने, ख़ुद से दूर हो चुका है। दोस्तों से तेरा कोई contact नहीं है। ना कभी बातें करता है, ना मिलता है, ना मेरी और अजय की शादी में आया। क्या चाहता है तू? क्यूँ हमारी दोस्ती में अब वो बात नहीं रहीं? मैं और अजय तुझे कितना मिस करते है; ये तो तुझे पता भी नहीं होगा। जब भी मैं अजय से बात करती हूँ तो तेरे बारे में ज़रूर पूछती हूँ कि कैसा है वो? लेकिन अब उसे भी इतना कहाँ पता होता है तेरा? वो बस कह देता है कि हाँ, ठीक है वो। आज आके देखा कि तू तो अपनी मस्त दुनिया में मर रहा है। हाँ, जीना तो नहीं कह सकती इसे, पर बस इतना कहती हूँ कि तू यह ठीक नहीं कर रहा है। न ख़ुद के साथ, न अपने परिवार के साथ और न ही अपने दोस्तों के साथ। ये उसी माया के कारण है न?”
माया का नाम सुनते ही वीर ने माधवी की तरफ़ देखा और उसी पल नज़रें चुराकर खिड़की से बाहर देखने लगा। माधवी लगातार बोले जा रही थी और वीर चुपचाप उसे सुन रहा था । वीर को अपनी आँखों में कुछ गीलापन महसूस हुआ और वो खिड़की के पास जाकर खड़ा हो गया, लेकिन माधवी का लगातार सुनाए जाना जारी था।
“वीर, अब तू समझ, वो तुझे छोड़ के जा चुकी है। अब ख़त्म कर ये सब । निकल उसकी यादों से बाहर और ध्यान दे अपने ऊपर। जब वो अपनी शादीशुदा लाइफ़ में मस्त है तो तू भी अपनी ज़िंदगी जी ना, अब कोई तू अकेला तो है नहीं इस दुनिया में जिसके साथ ऐसा हुआ है। अनगिनत लोग ऐसे हैं जिनके साथ ऐसा हुआ है और आगे भी होता रहेगा, लेकिन वो जीना थोड़े ना छोड़ देते हैं। जब एक लड़की किसी लड़के को इन हालात में छोड़ती है तो कोई दूसरी लड़की ही उसे इन हालात से निकाल सकती है। तो तू भी अब इस पागलपन से बाहर निकल और किसी लड़की को पसन्द कर, उससे मिल, शादी कर। याद रख,मोहब्बत उससे भी हो जाएगी एक दिन, समझा।”
वीर बस खिड़की से बाहर की तरफ़ देखे जा रहा था, और बिना कुछ कहे माधवी की बातों को सुन रहा था।
“वीर, बोल न कुछ, चुपचाप सुने जा रहा है, बस।” माधवी ने कहा।
“क्या बोलूं सब देख ही रही है तू तो, तुझसे अब कुछ छुपा तो है नहीं” वीर ने कहा।
“तभी कह रही हूँ कि शादी कर ले। फिर यह सब ख़त्म हो जाएगा और दोबारा वो दिन लौट आएँगे।” माधवी ने वीर को समझाते हुए कहा।
“हमने तो एक ही शख़्स पर चाहत ख़त्म कर दी। मोहब्बत किसे कहते हैं, हमें मालूम ही नहीं, और वैसे भी दूसरी या तीसरी मोहब्बत पहली मोहब्बत के अवशेषों पर बनी ऐसी इमारत होती है, जिसकी बुनियाद खोखली होती है।” वीर ने बारिश की बूँदों से अपने चेहरे पर आई आँसुओं की बूँदों से मिलाते हुए कहा।
“तुझे समझाना तो बेकार है।”
“अच्छा सुन, कुछ खाने को है क्या? भूख लग रही है।” माधवी ने माहौल को हल्का करते हुए कहा।
“हम्ममम.. अभी खाना ऑर्डर कर देता हूँ।” वीर ने फ़ोन उठाते हुए कहा।
“अब रात के एक बज रहा है। खाना मिल जाएगा क्या?” माधवी ने घड़ी की तरफ़ देखते हुए कहा।
“हाँ, मिल जाएगा। यही नीचे गली में एक होटल है, वो दे जाएगा।” वीर ने फ़ोन पर नम्बर डायल करते हुए कहा।
माधवी ने खाना खा लिया था। वो अब बाहर वाले कमरे में टिप्सी को दूध पिला रही थी। वीर ने अब तक कुछ नहीं खाया था।उसे शायद भूख नहीं लग रही थी क्योंकिं अभी उसे और पीना था। वीर को लग रहा था कि ऐसे तो माधवी उसका पीछा नहीं छोड़ने वाली है तो अच्छा है कि पूरा नशे में टल्ली होकर गिर जाए। जब तक माधवी बाहर टिप्सी को दूध पिला रही थी तब तक वीर दो-तीन पैग ओर लगा चुका था।
कुछ समय बाद माधवी अन्दर कमरे में आई।
“टिप्सी सो गई क्या?” वीर ने पूछा
“हा, वो सो गई है। रात को उसे दो बार दूध पिलाना पड़ता है।” माधवी ने वीर के साथ सोफ़े पर बैठते हुए कहा।
“वैसे वीर, माया ने तेरे साथ ग़लत किया। लगता है उसे वफ़ा रास नहीं आई जो उसने बेवफ़ाई चुनी। सब कुछ गड़बड़ कर दिया उसने। क्या उसे दिखा नहीं कि तू उससे कितना प्यार करता है और उसके बिना रह ही नहीं सकता? पर वो मतलबी अपना मतलब निकाल कर चली गई। तेरा सब कुछ बर्बाद कर दिया उसने।” माधवी ने वीर को देखते हुए कहा।
वीर थोड़ी देर चुप रहा और लगातार खिड़की से बाहर देखता रहा। उसे माधवी से ‘बेवफ़ा’ और ‘मतलबी’ शब्द सुनकर बुरा लगा। वो माया के लिए किसी से भी ग़लत नहीं सुन सकता था, लेकिन माधवी काफ़ी साल बाद उससे मिली थी, इसलिए वीर ने माधवी को कुछ नहीं कहा। चुपचाप खड़ा होकर बस माधवी को सुनता रहा। माधवी लगातार बोले जा रही थी। वीर ने अपना एक हाथ खिड़की से बाहर निकाला तो बारिश की कुछ बूँदें उसकी हथेली पर गिर गईं। वीर हथेली को अपने चेहरे के पास लेकर आया और धीरे-से बड़बड़ाया ‘बारिश की तरह था हमारा प्यार।’ वीर माधवी की तरफ़ मुड़ा और उसने कहा
“माधवी, तुझे पता है बारिश की तरह था हमारा प्यार। सुकून भी दिया और फिर कीचड़ भी किया। सारा दोष माया का ही नहीं था। हम दोनों बराबर के दोषी हैं इस स्थिति के लिए। कुछ ग़लतियाँ मैंने भी की है तो कुछ गुनाह उसने भी किए हैं। हाँ, फ़र्क़ बस इतना है कि एक इश्क़ निभा ना सका और दूसरा भुला ना सका। मैं तो अभी तक उन दोषों की सज़ा काट रहा हूँ और माया अब अपनी दुनिया में खुश हो चुकी है। मैं अब तक यह समझना ही नहीं चाहता कि कुछ चीज़े जीवन में पागलों की तरह चाहते हुए भी नहीं मिलतीं और माया को जो मिला, वो उसमें अपना सामंजस्य बैठा चुकी है। और वैसे भी तो इस दुनिया में यही तो चलता है कि वफ़ा गुनाह है और धोखा बाइज़्ज़त बरी है। तुझे क्या लगता है, मैंने उसे भुलाने की कोशिश नहीं की? हर रोज़ करता हूँ, लेकिन जितनी बार भी उसे भुलाने की कोशिश करता हूँ, उतना ही उसके प्यार के समुन्दर में ख़ुद को ज़्यादा डूबा हुआ पाता हूँ। प्रेम में अक्सर यही तो होता है, कई बार प्रेम छूट जाता है, वह छूटता हुआ दिखता भी है, मगर छूट कभी नहीं सकता बस, केवल रूप बदल लेता है। कभी घृणा, कभी चिढ़, कभी शिकायत बनकर रहता है।
प्रेम पहले अंधा करता है फिर दृष्टि देता है। यहाँ जो सँभल जाता है, उसे उजाला नसीब होता है और जो ड़गमगाता है, वो मोहब्बत की अँधेरी गलियों में भटकता रहता है रोज़ हर दिन, हर पल। प्रेम कई मौतें मर सकता है, लेकिन किसी भी एक पक्ष द्वारा संबंध का तोड़ा जाना इतना दर्द और घृणा पैदा कर सकता है कि अनुमान नहीं लगाया जा सकता। लेकिन ख़ैर छोड़ो, अब तो यह रिश्ता उस मोड़ तक पहुँच चुका है, जहाँ न उसको आए शर्म और न मुझको आए मौत। ख़ैर, कुछ भी होता, लेकिन मैंने कभी भी यह उम्मीद नहीं की थी कि वो इतनी जल्दी अपनी दुनिया में खुश हो जाएगी। ऐसी दुनिया, जहाँ मेरा नाम तक नहीं है। मेरी मोहब्बत का यह अंजाम तो जायज़ नहीं कि मेरे बिस्तर की सिलवटों में उसका नाम नहीं।”
वीर इतना बोलकर चुप हो गया था। शायद अब वो इसके आगे बोलना ही नहीं चाहता था। माधवी वीर की तरफ़ सारी कहानी जानने की उत्सुकता से देखे जा रही थी।
“वीर, जो तेरे अन्दर भरा हुआ है न, वो निकाल दे अब। तभी तुझे थोड़ा सुकून मिलेगा इस तकलीफ़ से। मुझे बता कब, कैसे, क्या हुआ था तुम दोनों के बीच? हालांकि मुझे थोड़ा-बहुत अजय से इस बारे में पता चला था, लेकिन उसने भी मुझे कभी पूरी बात बताई ही नहीं कि कैसे तुम दोनों अलग हुए? ऐसी क्या परिस्थितियाँ हो गईं जो वो तुझको छोड़ के चली गई।” माधवी ने वीर के हाथों को अपने हाथों में लेते हुए कहा।
“नहीं यार, मैं उसके बारे में कुछ भी बात नहीं करना चाहता हूँ। एक तो मैं उसे रोज़ भूलने की नाकाम कोशिश करता हूँ और तू फिर से मुझे वो सब बात करने को मत बोल। प्लीज़, छोड़ इस बात को। बचपन में हम सोचते थे कि याद कैसे किया जाए, याद करना कितना मुश्किल है लेकिन अब समझ में आया कि भूलना याद करने से भी ज़्यादा मुश्किल है, और वैसे भी तेरी कल सुबह की फ़्लाइट है तो तुझे सो जाना चाहिए। सुबह जल्दी निकलना होगा तुझे।” वीर ने कहा।
“हाँ, सो जाऊँगी, पर पहले तुझे अपनी कहानी बतानी होगी।”
“नहीं, प्लीज़ ऐसा मत कर। मैं बिल्कुल भी उन पलों को याद नहीं करना चाहता।”
“नहीं, बताना तो होगा। कम-से-कम मैं बाद में टिप्सी को बता तो सकूँगी कि मेरा एक दोस्त ऐसा भी है जो सच्चा आशिक़ टाइप है।” माधवी ने सुनने के लिए सोफ़े पर बैठते हुए कहा।
वीर थोड़ी देर तक दीवार की तरफ़ शून्य में देखता रहा और उसने अपने गिलास में बची शराब को एक बार में ही गले में उडेल दिया और वहीं खिड़की से सटकर खड़ा हो गया। वीर को अब न चाहते हुए भी माधवी को बताना पड़ रहा था क्योंकि उसे पता था कि माधवी अब अपनी ज़िद को पूरा करवा कर ही मानेगी। बिना पूरी बात सुने वो पीछा छोड़ने वाली नहीं थी। वीर ने माधवी की तरफ़ देखा, जिसकी आँखों में इस नाकाम, अधूरी प्रेम कहानी को जानने की लालसा साफ़-साफ़ दिख रही थी। वीर ने बोलना शुरू किया।
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