देवराज चौहान हैरानी से बबूसा को देखे जा रहा था।

जगमोहन कभी देवराज चौहान को देखता तो कभी बबूसा या धरा को देखने लगता।

बबूसा का चेहरा खुशी से चमक रहा था। जबकि धरा के चेहरे पर व्याकुलता थी।

“तुम्हें यकीन है कि ये ही देवराज चौहान है?” धरा, बबूसा से कह उठी।

“ये ही राजा देव है।” बबूसा मुस्कराकर सिर हिलाते कह उठा –“राजा देव की गंध पहचानने में मुझसे कभी भूल नहीं हो सकती। मेरे जन्म के समय महापंडित ने वो शक्ति मुझमें डाल दी थी जिससे कि मैं दूसरों को गंध से भी पहचान सकूं। कितने जन्मों के बाद मैंने करीब से राजा देव की गंध ली है। मुझे बहुत चैन मिला। आज कितना खुश हूं मैं कि राजा देव मुझे मिल गए। सदूर ग्रह पर बिछड़े राजा देव पृथ्वी पर मिले।” बबूसा ने कहते हुए देवराज चौहान का हाथ पकड़ा और चूम लिया।

देवराज चौहान के चेहरे पर छाई हैरानी कम नहीं हो रही थी।

रेस्टोरेंट में रात के साढ़े ग्यारह बजे काफी भीड़ थी। रह-रहकर चम्मच या प्लेटों की आवाजें कानों में पड़ रही थीं। मध्यम-सी आवाजें उठ रही थीं।

वर्दीधारी वेटर तेजी के साथ ग्राहकों की तरफ आ-जा रहे थे।

“राजा देव।” बबूसा पुनः बोला –“क्या आप अपने बबूसा को देखकर खुश नहीं हैं?”

“तुम-तुम बबूसा हो?” देवराज चौहान के होंठों से निकला।

“आपने अभी तक मुझे पहचाना नहीं क्या?”

“तुम्हारी आवाज वो ही है, जब तुम कहते थे कि समाधि लगाकर मुझसे बात कर रहे हो।” देवराज चौहान ने कहा।

“वो तो अब की बात है राजा देव। मैं ढाई सौ बरस पहले की बात कर रहा हूं, जब मैं आपका सेवक, आपका सच्चा सलाहकार हुआ करता था। मैं आपके लिए ही जीता, आपके लिए ही मरता था। आप भी मेरे बिना नहीं रहते थे। मुझे हमेशा अपने साथ रखते थे। मैंने हमेशा आपको राजा देव ही समझा, परंतु आप मेरे साथ दोस्तों की तरह व्यवहार करते थे।” बबूसा ने खुशी से कहा।

देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता थी।

“क्या बात है राजा देव। आप खामोश क्यों हो गए?” बबूसा पुनः कह उठा।

“बैठ जाओ।” देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में, चेयर की तरफ इशारा करते हुए कहा।

“जो आज्ञा राजा देव।” बबूसा तुरंत जगमोहन के बगल वाली चेयर पर, देवराज चौहान के सामने की तरफ बैठ गया। बीच में टेबल थी।

देवराज चौहान ने धरा को भी बैठने का इशारा किया।

धरा देवराज चौहान के बगल वाली कुर्सी पर जा बैठी।

“राजा देव...।” बबूसा ने कहना चाहा।

“डिनर लोगे?” देवराज चौहान ने पूछा।

“मेरी तो भूख ही खत्म हो गई। आपको सामने क्या देखा राजा देव कि पुराने दिन याद आ गए।” बहुत खुश था बबूसा –“कितना अच्छा था वो वक्त। अब तो सदूर ग्रह बहुत बदल गया है तब से। कुछ तरक्की की है, परंतु धीमी गति से। आप होते तो आज सदूर का रूप ही दूसरा होता।”

एकाएक बबूसा की आंखें गीली हो गई थीं।

“डिनर लोगे?” देवराज चौहान ने पुनः पूछा।

“नहीं।” आंखें साफ करते बबूसा ने कहा।

“मैं लूंगी।” धरा कह उठी।

देवराज चौहान ने वेटर को बुलाकर धरा के लिए डिनर का ऑर्डर दिया। देवराज चौहान और जगमोहन ने डिनर कर लिया था। वेटर ने बर्तन उठा ले जाने वाले को भेजा जो कि बर्तन ले गया और टेबल साफ कर दी।

इस दौरान देवराज चौहान की गम्भीर निगाह बबूसा पर जाती रही।

वेटर के जाते ही बबूसा ने जल्दी से कहा।

“राजा देव, अब...।”

“मुझे देवराज चौहान कहो।”

“ये कैसे हो सकता है। आप राजा देव हैं तो आपको राजा देव ही कहूंगा। देवराज चौहान कैसे कह सकता हूं।”

“मैं राजा देव नहीं, देवराज चौहान हूं।”

“आप राजा देव हैं।” बबूसा ने दृढ़ स्वर में कहा –“मैं आपका सेवक बबूसा हूं।”

“देवराज चौहान कहने में तुम्हें क्या दिक्कत है।” जगमोहन बोला।

“तुम चुप रहो।” बबूसा ने जगमोहन से कहा –“मेरे और राजा देव के बीच मत बोलो।”

जगमोहन मुस्कराया और सामने बैठी धरा से कहा।

“तुम्हारे गले पर क्या हुआ?”

“डोबू जाति के लोगों ने मुझ पर हमला किया था। मेरी गर्दन कटते-कटते बची।”

“उसी चौकोर पत्ती जैसे हथियार से?”

धरा ने सहमति से सिर हिला दिया। (जगमोहन और धरा के विषय में विस्तार से जानने के लिए राजा पॉकेट बुक्स से अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास ‘बबूसा’ अवश्य पढ़ें।)

“मैं तो मर ही जाती। मेरा गला कट जाता।” धरा सिहर उठी –“ये तो बबूसा ने बचा लिया।” धरा ने बबूसा को देखा।

“तुम्हें कुछ नहीं होने दूंगा।” बबूसा बोला –“पूरी कोशिश करूंगा कि डोबू जाति वाले तुम्हारी जान न ले सकें।” फिर बबूसा ने देवराज चौहान से कहा –“राजा देव, आज रात रानी ताशा आ रही है या आ चुकी होगी। हालात खतरनाक होने लगे हैं।”

“तुम्हारी ये सब बातें मैं सुन चुका हूं।” देवराज चौहान ने कहा –“मैं तुमसे मिलना चाहता था।”

“परंतु आपने तो मिलने से मना कर दिया था।”

“उसके बाद सोचा कि एक बार तुमसे मिल लेना ही ठीक रहेगा। मैं तुम्हें देखना चाहता था।”

“तो आपको मेरी बातों का विश्वास आ गया कि मैं सच कह रहा...।”

“जरा भी भरोसा नहीं तुम्हारी बातों पर।”

“नहीं!”

“बिल्कुल नहीं।”

बबूसा ने बेचैनी से पहलू बदलकर कहा।

“राजा देव आप बबूसा की बातों पर विश्वास नहीं कर रहे।”

“मैं तुम्हें नहीं जानता।” देवराज चौहान गम्भीर था।

“ऐसा मत कहिए राजा देव। मैं आपका सेवक बबूसा हूं। मुझे पहचानिए। मैं वो हूं जो आपके लिए जान भी देने को तैयार रहता है। सच तो ये है कि मैं ही आपका हूं। मेरे अलावा सब धोखेबाज हैं। रानी ताशा ने आपको धोखा दिया और...”

“ऐसी बातें कहने का क्या फायदा जो मैं समझ न सकूँ। मैं तुम्हें नहीं जानता। रानी ताशा को नहीं जानता।”

“आप भूल चुके हैं सब कुछ। मैं आपको याद दिलाता हूं...”

तभी वेटर टेबल पर डिनर सर्व कर गया।

धरा ने बबूसा को देखकर कहा।

“तुम मेरे साथ थोड़ा-बहुत खा लो।”

बबूसा ने धरा की बात की तरफ ध्यान न देकर, देवराज चौहान से कहा।

“आप सदूर ग्रह के मालिक हैं राजा देव। वहां के...”

“मैं सदूर ग्रह को नहीं जानता।”

“सब कुछ बता रहा हूं आपको कि...”

“मुझे तुम्हारी बातों पर भरोसा नहीं है।”

बबूसा ने देवराज चौहान को देखा फिर गम्भीर स्वर में कह उठा।

“नहीं भरोसा तो न सही। पर आप मेरी बात सुनिए राजा देव। सुन-सुनकर आपको भरोसा आने लगेगा।”

देवराज चौहान मुस्करा पड़ा।

धरा खाने में व्यस्त हो चुकी थी।

जगमोहन का पूरा ध्यान बबूसा की बातों पर था।

“सदूर ग्रह पर आपका राज्य चलता था राजा देव। आप ग्रह के भले के लिए काम करते थे। जनता का बहुत ख्याल रखते थे। हर कोई आपको पसंद करता था। मैं आपका सेवक हर पल आपके पास ही रहा करता था। आपके सारे काम-काज मैं देखता था। आपको जो भी समस्या होती, उसका हल निकालता था। ग्रह बहुत फल-फूल रहा था फिर एक दिन-वो बुरा दिन था मैं तो ऐसा ही मानता हूं-उस बुरे दिन आपकी नजर ताशा पर पड़ी जो कि एक गरीब आदमी की बेटी थी। परंतु जवान थी। अथाह खूबसूरत थी। लाजवाब थी। तब मैं भी आपके साथ था और मैंने ही आपसे कहा था कि ये ग्रह की सबसे सुंदर युवती है। आप तो ताशा के दीवाने हो गए। उस पर ऐसा मोहित हुए कि मेरा कुछ कहना इस वक्त ठीक नहीं होगा। ताशा से आपको प्यार हो गया। ताशा भी आपको प्यार करने लगी परंतु उसका बाप आपके इस प्यार से खुश नहीं था। लेकिन आपने उसे संभाल लिया। आप ताशा को अपनी रानी बनाना चाहते थे। आपने मेरे से राय मांगी परंतु मैंने राय देने की अपेक्षा टाल दिया। जाने क्यों मुझे आपका फैसला सही नहीं लग रहा था। उसके बाद मैंने आपको समझाने की चेष्टा की परंतु आपको तो मेरी बात सुनना भी गंवारा नहीं था और आपने रानी ताशा के साथ ब्याह कर लिया। गरीबी से उठकर ताशा सदूर ग्रह की रानी बन गई। रानी ताशा बन गई। याद आया कुछ राजा देव?”

“नहीं।” देवराज चौहान गम्भीर था।

बबूसा ने सिर हिलाया फिर कहा।

“उसके बाद तो आप रानी ताशा को दीवानगी की हद तक चाहने लगे। रानी ताशा के पास ही रहते हरदम। सदूर राज्य के जरूरी काम मैं करने लगा। आप तो जैसे सदूर को भूल ही गए। बहुत लम्बा वक्त आपने रानी ताशा के साथ बिताया। फिर मैंने ही आपको कहकर-समझाकर, सदूर के कार्यों की तरफ ध्यान देने को कहा। इसका ये फायदा हुआ कि आप थोड़ा-बहुत फिर से सदूर के कार्यों की तरफ ध्यान देने लगे। किले से बाहर निकलने लगे। कई बार आप कामों को बीच में ही छोड़कर किले पर रानी ताशा के पास चले जाते थे। मैं आपके व्यवहार से काफी परेशान था मन ही मन।”

बबूसा ठिठका तो देवराज चौहान उसे ही देख रहा था।

“आप पोपा बनाने की बहुत चाहत रखते थे।”

“पोपा?” देवराज चौहान बोला।

“अंतरिक्ष यान।” खाते-खाते धरा कह उठी।

“आप सदूर ग्रह के मालिक थे परंतु जबर्दस्त वैज्ञानिक भी थे। इन चीजों की आपको बहुत जानकारी थी। आप चाहते थे कि पोपा बनाकर, दूसरे ग्रहों पर जाया जाए और अगर वहां लोग रहते हैं तो उनसे मिला जाए। इसलिए आपने पोपा बनाने के लिए हर जरूरी चीज तैयार कर ली थी परंतु पोपा की बाहरी बॉडी के लिए आपको विशेष और मजबूत धातु नहीं मिल रही थी। तो ऐसे में आपके निर्देशन में जम्बरा उस विशेष धातु को तैयार करने में लगा था।”

“जम्बरा कौन?”

“वो भी आपकी तरह वैज्ञानिक था और आपके कामों में सहायक था कि पोपा बनाया जा सके। फिर एक दिन जम्बरा ने आपके पास खबर भेजी कि वो उस खास धातु को बनाने में सफल हो गया है। पोपा की बाहरी परत उस धातु की बनाई जाएगी तो उससे तब पोपा को कोई नुकसान नहीं होगा, जब वो अंतरिक्ष की सैर पर निकलेगा। परंतु आप तो रानी ताशा में गुम थे। जम्बरा की खबर आती रही वो आपको बुलाता रहा। मैं भी आपको अक्सर कहता कि आपको पोपा का निर्माण शुरू कर देना चाहिए। काफी लम्बे वक्त के बाद आप जम्बरा के पास जाने को तैयार हुए। आपकी हालत ये थी कि रानी ताशा पर ज्यादा भरोसा था और मेरे पे कम। पहले आप मुझ पर बहुत भरोसा करते थे। रानी ताशा का मोहक रूप हमेशा आपके सिर चढ़ा रहता था। हम जम्बरा के पास पहुंचे। आपने धातु को देखा, चेक किया तो आपकी कसौटी पर खरी उतरी। तो आप जम्बरा और अन्य लोगों के साथ पोपा का बाहरी कवच तैयार करने में लग गए। वहां आपको वक्त लगने लगा। रानी ताशा किले के आदमी को भेजती रही कि, आपको किले पर रानी ताशा याद कर रही है। परंतु तब आप पोपा का कवच बनाने में जुट चुके थे। किले के आदमी को हमेशा ही ये कहकर वापस भेज देते कि रानी ताशा से कहो कि मैं जल्दी किले पर पहुंच जाऊंगा। परंतु आप गए नहीं, पोपा तैयार करने में ही व्यस्त रहे। धीरे-धीरे किले से बुलावा आना बंद हो गया। आप ढाई साल तक पोपा बनाते रहे, किले पर एक बार भी नहीं गए और आपने पोपा बनाकर तैयार कर दिया। वो खुशी का दिन था आपके लिए। जम्बरा ने पोपा उड़ाकर देखा तो वो ठीक से काम कर रहा था। परंतु कुछ चीजें और बेहतर बनानी थीं। आपने जम्बरा को उन चीजों को बेहतर बनाने के निर्देश दिए और मुझे पहले ही किले पर रवाना कर दिया कि मैं रानी ताशा को आपके आने की खबर दे दूं। परंतु किले में प्रवेश करते ही मुझे बदली फिजा का एहसास हुआ। सच बात तो ये थी कि रानी ताशा ने इन ढाई सालों में किले पर अपना प्रभाव जमा लिया था। किले का हर कर्मचारी रानी ताशा के आदेशों को मानता था। मैंने बहुत कुछ देखा और समझा। सेनापति धोमरा को हमेशा ही मैंने रानी ताशा के इर्द-गिर्द देखा। मेरी पत्नी सोमारा ने मुझे रानी ताशा की कई नई बातें बताई जिन्हें सुनकर मुझे बहुत तकलीफ हुई। तब मैं महापंडित के पास गया जो सबके कर्मों का हिसाब रखता था। मैंने उसे कहा कि किले में मुझे कुछ अच्छा नहीं लगा। परंतु महापंडित खामोश रहा। उसने मेरी किसी बात का जवाब नहीं दिया तो वहां से चला आया। सोचा जब आप वापस लौटेंगे तो इस बारे में आपसे बात करूंगा। महल गया और अपनी पत्नी सोमारा से मिला। तब तक सोमारा और रानी ताशा में अच्छी पहचान थी। दोनों में दोस्ती हो चुकी थी। मैंने सोमारा से रानी ताशा के बारे में बात की कि धोमरा मुझे अच्छा नहीं लग रहा। तो सोमारा ने मुझे कहा कि किले के भीतर की बातों की मुझे परवाह नहीं करनी चाहिए। परंतु राजा देव, मैं किसी भी तरफ से आपका अहित नहीं देख सकता था। मैं वापस किले पर जा पहुंचा। रानी ताशा से मिला और स्पष्ट बात की। परंतु रानी ताशा का नया ही रूप मेरे सामने आया। उसने मुझे कैद में डालने की धमकी दे डाली। गुस्से से भरा मैं किले से बाहर आ गया। मुझे महसूस हो गया था कि रानी ताशा बेहद खूबसूरत सही, परंतु वो बुरी है। मन में सोचा कि ये बात राजा देव को मैं किस तरह कह पाऊंगा। हकीकत जानकर राजा देव का दिल टूट जाएगा। रानी ताशा की मुझे परवाह नहीं थी। एक तो वो बुरी थी दूसरे मैं राजा देव का सेवक था। फिर मैं राजा देव के किले पर आ पहुंचने का इंतजार करने लगा।”

बबूसा के खामोश होते ही जगमोहन ने कहा।

“फिर?”

देवराज चौहान की निगाह बबूसा पर थी।

धरा का ध्यान, खाते समय, पूरी तरह बबूसा की बातों पर था।

“अगले दिन राजा देव ने आना था। आप आए जरूर राजा देव, परंतु किले तक न पहुंच सके।” बबूसा के चेहरे पर दुख उमड़ा।

“क्यों?”

“मैंने सब कुछ देखा, रानी ताशा ने सेनापति धोमरा और कुछ खास सैनिकों के साथ मिलकर आपको ग्रह से बाहर फेंक दिया है।” बबूसा की आंखें गीली हो गईं।

“ग्रह से बाहर-वो कैसे?” देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े।

“कुछ याद नहीं आया आपको?” बबूसा ने पूछा।

“नहीं।”

“मैं आपको याद दिलाने की कोशिश में ही ये सब बातें बता रह हूं...”

“मुझे कुछ याद आएगा भी नहीं।” देवराज चौहान ने कहा –“क्योंकि तुम्हारी बातों में कोई दम नहीं है। मैं राजा देव नहीं हूं।”

“आप राजा देव ही हैं।”

“नहीं। मैं नहीं मानता।” देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा।

“तुम आगे कहो।” जगमोहन बोला।

बबूसा ने गीली आंखों को साफ किया और बोला।

“यह खबर लगते ही मैं परेशान हो गया। पागल हो गया। भागा-भागा महापंडित के पास गया। महापंडित परेशान नजर आ रहा था। मैंने उससे बात की तो महापंडित ने कहा, उसे सब खबर है। उसने कहा आने वाले वक्त में रानी ताशा बहुत पछताएगी। मेरा तो बुरा हाल हो रहा था राजा देव। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने मेरा अंग काट दिया हो। मैं बहुत गुस्से में किले पर पहुंचा तो वहां सोमारा को, रानी ताशा के साथ पाया। मैंने रानी ताशा से राजा देव के बारे में पूछा तो वो हंस पड़ी। मेरा खून खौल उठा। मैंने एक पहरेदार की तलवार ली और रानी ताशा पर झपट पड़ा। परंतु सैनिक बीच में आ गए। मुझसे तलवार छीन ली गई। अगर मेरी पत्नी सोमारा उस वक्त वहां मौजूद नहीं होती तो यकीनन बात बढ़ जानी थी, रानी ताशा ने मेरे बारे में भी कोई बुरा फैसला ले लेना था। सोमारा, रानी ताशा को शांत करके मुझे किले के ऊपर कमरे में-वहीं मैं और सोमारा रहते थे-ले गई। मेरी हालत पागलों की तरह हो चुकी थी। उसके बाद मैं कमरे में ही बंद रहा। सोमारा ने मुझे इस डर से बाहर न जाने दिया कि कहीं मैं फिर रानी ताशा को सख्त बात न कह दूं, सोमारा मुझे कमरे से ही बाहर न निकलने देती थी। कुछ दिन बीते, शायद दो या तीन दिन कि सोमारा ने मुझे बताया कि रानी ताशा ने तलवार से धोमरा को मार दिया है। रानी ताशा रो रही है। पछतावा हो रहा है कि उसने राजा देव को मार दिया है। उसने खाना-पीना छोड़ दिया है। ये सुनकर मुझे थोड़ा-सा सुकून तो मिला कि उस धोखेबाज औरत को पछतावा तो हुआ। अपनी गलती का पता तो चला। सोमारा दो दिन बाद रानी ताशा से मिलने गई तो वापस आकर मुझे बताया कि धोमरा रानी ताशा से ब्याह करके राजा बनना चाहता था इस ग्रह का। रानी ताशा ने धोमरा से शादी करने के लिए किले के भीतर तैयारियां शुरू कर दीं, परंतु ठीक शादी से पहले रानी ताशा ने एक सैनिक की तलवार ली और धोमरा का गला काटकर अलग कर दिया। सोमारा ने बताया कि ऐसा उसने इसलिए किया कि धोमरा किसी तरफ से भी राजा बनने के लायक नहीं था और उसे राजा देव याद आने लगे थे। परंतु राजा देव को वापस पाने का कोई उपाय नहीं था। आपको तो उसने सैनिकों और धोमरा के साथ मिलकर ग्रह से बाहर फेंक दिया था।” बबूसा ने गम्भीर और परेशान स्वर में कहने के पश्चात देवराज चौहान को व्याकुल निगाहों से देखा।

धरा ने खाना समाप्त कर लिया था।

“ग्रह से बाहर कैसे फेंका जाता है किसी को?” जगमोहन ने पूछा।

“सदूर ग्रह इस पृथ्वी की तरह बड़ा ग्रह नहीं है। वो गोल भी नहीं है। चपटे जैसा है। परंतु वो गोल है। सिर्फ दो सौ किलोमीटर के घेरे जितना वो ग्रह है। वो ज्यादा मोटा भी नहीं है। राजा देव को बुरे लोगों की हत्या करना पसंद नहीं था। ऐसे में राजा देव ने तरकीब निकाली कि ग्रह में छेद करके एक मोटा पाइप आर-पार डाल दिया जाए। ऐसा ही किया गया। खुदाई के पश्चात ऊपर से पाइप डाला और ग्रह के नीचे से निकाल दिया। पाइप के मुहाने पर एक कमरा बनाकर दरवाजा लगा दिया और दरवाजे पर एक पहरेदार खड़ा कर दिया गया कि कोई अंजाने में भीतर न गिर सके। उसके बाद तो ग्रह पर जिसे मरने की सजा देनी होती तो उसे उस पाइप में फेंक दिया जाता, जिससे कि वो नीचे से ग्रह से बाहर निकल जाता।”

“सदूर ग्रह कितना मोटा है?”

“सिर्फ एक किलोमीटर ही मोटा है वो।” बबूसा ने बताया।

देवराज चौहान शांत और गम्भीर दिख रहा था।

जगमोहन भी गम्भीर था।

“तुम इसकी बातों का भरोसा नहीं कर रहे?” एकाएक धरा ने देवराज चौहान से कहा।

देवराज चौहान ने इंकार में कहा।

“पर ये जो भी कह रहा है सच कह रहा है।”

“तुम्हें कैसे पता?”

“मैं इसके साथ काफी दिन से हूं और इसे जाना है। बबूसा की कोई भी बात अभी तक मुझे गलत या झूठी नहीं लगी। मेरी मानो तो इसकी बात पर भरोसा कर लो। मुझे तो ये सच्चा इंसान लगा है।” धरा ने गम्भीर स्वर में कहा।

“अगर ये तुम्हें कहता कि तुम सदूर ग्रह की रानी हो तो तुम मान लेती?” देवराज चौहान मुस्कराया।

“फौरन मान लेती। मान लेने में मेरा जाता ही क्या है।”

“परंतु मैं इस तरह किसी के हाथों बेवकूफ बनना पसंद नहीं करता।” देवराज चौहान बोला।

“राजा देव। मैं बबूसा हूं बबूसा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“आपको सदूर ग्रह वाला जन्म तब याद आएगा, जब रानी ताशा का चेहरा आप देखेंगे। ये बात महापंडित ने मुझे बताई थी।”

“महापंडित सदूर ग्रह पर क्या हैसियत रखता है?” जगमोहन ने पूछा।

“वो विद्वान है। जीवन-मरण का और इंसान के कर्मों का हिसाब रखता है। उसके पास शक्तियां हैं और वो भविष्य में भी झांकने की कला जानता है। वो ग्रह के लोगों का दोबारा से जन्म कराता है। उनमें इंसानी असर डालता है। महापंडित में और भी कई तरह के गुण हैं। वो तारों और धातु के आदमी (रोबोट) भी बनाता है।”

“तो क्या तब महापंडित ने ये नहीं जाना कि रानी ताशा, राजा देव को ग्रह से बाहर फेंकने जा रही है?” जगमोहन ने पूछा।

“मैं नहीं जानता कि महापंडित को ये बात पता थी या नहीं। इस बारे में उसने हमेशा अपना मुंह बंद रखा। वो अपनी मर्जी का मालिक है। राजा देव और रानी ताशा की जरूर इज्जत करता है। उनकी बात मानता है।” बबूसा ने कहा।

“रानी ताशा ने राजा देव को ग्रह से बाहर फेंका, तब भी वो रानी ताशा की बात मानता है।” जगमोहन बोला।

बबूसा के चेहरे पर गुस्सा दिखने लगा।

“महापंडित के लिए सबसे जरूरी राजा देव है। परंतु वो रानी ताशा का साथ देने पर लगा हुआ है।”

“वो कैसे?”

“रानी ताशा, राजा देव को वापस सदूर ग्रह पर ले जाना चाहती है। रानी ताशा का इरादा है कि चाहे जबर्दस्ती ही सही, राजा देव को सदूर ग्रह पर वापस ले जाना है। महापंडित इसमें रानी ताशा का साथ दे रहा है।”

“और तुम रानी ताशा के साथ नहीं हो?”

“मैं राजा देव के साथ हूं।”

“रानी ताशा कुछ बुरा तो नहीं चाह रही। वो राजा देव को वापस ग्रह पर ले जाना चाहती...।”

“रानी ताशा इस काम में बहुत चालाकी इस्तेमाल कर रही है। वो राजा देव को इस बात का एहसास होने से पहले ही ग्रह पर ले जाना चाहती है कि उसने कभी राजा देव को धोखा दिया था। जबकि मैं ऐसा नहीं चाहता। मैं चाहता हूं कि राजा देव को तब का रानी ताशा का चरित्र ठीक से याद आ जाए और तब राजा देव, रानी ताशा के बारे में फैसला लें।”

“तुमने अभी कहा कि रानी ताशा को देखने के बाद राजा देव को अपना वो जन्म याद आ जाएगा।”

“तो?”

“फिर क्यों चिंता करते हो। रानी ताशा को आने दो, उसे देखते ही देवराज चौहान को वो जन्म...।”

“अगर तुम समझते हो कि खड़े पांव, उसी पल राजा देव को सब कुछ याद आ जाएगा तो ये सम्भव नहीं। याद आने में कुछ वक्त तो लगेगा ही। जबकि मुझे किसी और बात का डर है।” बबूसा गम्भीर होता दिखा।

“किस बात का?”

“राजा देव, रानी ताशा के दीवाने रहे हैं। अगर इस बार भी रानी ताशा को देखने पर राजा देव उसके दीवाने हो गए तो इन्हें सदूर ग्रह का जन्म याद आने में परेशानियां आने लगेंगी। ज्यादा वक्त लग सकता है और तब तक रानी ताशा चालाकी से राजा देव को पोपा तक ले जाएगी। और पोपा में पहुंच जाने के बाद तो राजा देव कुछ भी नहीं कर पाएंगे। महापंडित ने बताया कि उसने सोमाथ नाम के आदमी को बनाकर (रोबोट) रानी ताशा के साथ भेजा है। महापंडित कहता है कि सोमाथ बहुत ताकतवर है और उसकी मृत्यु भी नहीं हो सकती। ऐसे में रानी ताशा अपनी ताकत का भरपूर इस्तेमाल कर सकती है। राजा देव अगर रानी ताशा के दीवाने हो गए तो रानी ताशा के सारे काम आसान हो जाएंगे। मैं चाहता हूं कि राजा देव, रानी ताशा को उस जन्म में किए गए धोखे की सजा दें। सजा न भी दें तो जो भी फैसला लें, वो सोच-समझकर लें। मैं राजा देव का सेवक हूं। जो भी करूंगा राजा देव के भले के लिए करूंगा। रानी ताशा और महापंडित बेईमानी पर उतर आए हैं। अगर वो सच्चे होते तो सबसे पहले वो राजा देव को उस जीवन की याद कराते। उसके बाद रानी ताशा उनके सामने आती तो बात बनती। परंतु रानी ताशा तो गुपचुप ही सारा काम कर जाना चाहती है। वो राजा देव को जैसे भी हो सदूर ग्रह पर ले जाना चाहती है। हो सकता है वहां महापंडित चालाकी कर दे और राजा देव के दिमाग में ऐसा कुछ कर दे कि राजा देव को कुछ याद ही नहीं आए कि उस जन्म में उनके साथ रानी ताशा ने क्या किया था।”

“महापंडित ऐसा कर सकता है?”

“ऐसा कर देना उसके लिए मामूली बात है।”

“तो अब वो ऐसा क्यों नहीं कर रहा?”

“मैं नहीं जानता। महापंडित से मेरी ज्यादा बात नहीं होती। वो मुझे

कुछ नहीं बताता।”

“तुमने।” देवराज चौहान बोला –“डोबू जाति क्यों छोड़ी?”

“क्योंकि मैं रानी ताशा को पसंद नहीं करता। रानी ताशा ने राजा देव को जबर्दस्त धोखा दिया था। मैं नहीं जानता अभी कि आपको ग्रह से बाहर फेंके जाने के बाद भी कैसे बच गए। कैसे पृथ्वी ग्रह पर आ गए (इस बारे में पाठकों को कहानी में आगे बताया जाएगा) जबकि ग्रह से बाहर फेंके जाने पर इंसान की मृत्यु हो जाती है।”

“बात ये हो रही थी कि तुमने डोबू जाति क्यों छोड़ दी?” देवराज चौहान ने कहा।

“क्योंकि मेरा जन्म ही, रानी ताशा के कहने पर इस मकसद से कराया गया था कि जब रानी ताशा, राजा देव को वापस ले जाने के लिए पृथ्वी ग्रह पर आए तो मैं इस काम में रानी ताशा की सहायता करूं। मुझे आपकी तरह ताकतवर बनाया गया है। आप ग्रह पर सबसे ताकतवर थे राजा देव। जब मेरा जन्म कराने के लिए, रानी ताशा का मकसद बताकर, महापंडित ने मुझसे बात की तो तब मैं खुशी से तैयार हो गया था। क्योंकि आपको फिर पाने की सोचकर मैं खुश हो गया था। तब महापंडित ने आप जैसी ताकत के साथ मेरा जन्म कराया और पोपा मुझे डोबू जाति में छोड़ गया। ऐसा इसलिए कि मैं पृथ्वी के लोगों की तरह ही परवरिश पाऊं और यहां के माहौल को समझूं। मैंने ऐसे ही परवरिश पाई। बड़ा हो गया । डोबू जाति का सबसे खतरनाक योद्धा मैं ही बना। मेरा मुकाबला कोई नहीं कर सकता। परंतु पृथ्वी पर भेजे जाने का मेरा मकसद क्या है, ये बात महापंडित ने जन्म के समय ही मेरे दिमाग में डाल दी थी और मुझे याद रही। बड़ा हुआ तो मुझे महसूस हुआ कि रानी ताशा, राजा देव को ले जाने के लिए आने वाली है, जबकि उसने राजा देव के साथ बुरा व्यवहार किया था। रानी ताशा तो सजा की हकदार है और मैं रानी ताशा का साथ देने वाला हूं इस काम में। राजा देव का सेवक होकर, राजा देव के खिलाफ ही काम कर रहा हूं। जबकि रानी ताशा ने मुझे भी धमकियां दी थीं जब मैं राजा देव के आने की सूचना लेकर किले पर गया था। जो भी हो मेरा मन बदलता चला गया कि मैं रानी ताशा का साथ नहीं दूंगा। मैं तो राजा देव के लिए बना हूं। तब रानी ताशा के आने की तैयारियां सदूर ग्रह पर चल रही थीं। मुझे सब खबर थी। डोबू जाति के सरदार ओमारू की यंत्रों पर, सदूर ग्रह से बात होती रहती थी। आखिरकार मैंने फैसला किया कि मैं डोबू जाति छोड़कर, आपको तलाश करूंगा। आपसे मिलूंगा और सारी बातें कह दूंगा आपसे। मैंने डोबू जाति छोड़ दी। मेरा ये फैसला आसान नहीं था। डोबू जाति वालों ने मुझे रोकना चाहा तो मैंने कई योद्धाओं की जाने ले लीं। मैं सबसे बेहतर योद्धा था। महापंडित ने मुझमें आपके गुण डाले थे। ओमारू ने मेरे विद्रोह को पहचाना तो उसने अपने योद्धाओं को आगे से हट जाने को कहा। मैं वहां से चला आया। इतना तो मैं सुन चुका था कि आप मुम्बई में कहीं पर हैं तो मैं यहां मुम्बई आ गया। पैसे की मेरे पास कमी नहीं थी। डोबू जाति से मैं कीमती पत्थर ले आया था जिन्हें यहां बेचने पर बहुत पैसे मिल जाते हैं। साथ में मैं डोबू जाति के हथियार भी ले आया, जो कि इस वक्त उस होटल के वेटर के घर रखे हुए हैं, जिस होटल में मैं ठहरा था। छः महीने तक मैं उसी होटल में रुका रहा और आपको ढूंढ़ता रहा, परंतु नहीं ढूंढ सका। आपकी गंध महापंडित ने मेरे दिमाग में, मेरी सांसों में जन्म के समय ही डाल दी थी। एक दिन मैं समाधि लगाकर गंध के सहारे आपको तलाश कर रहा था कि एक जगह मैंने आपकी गंध पा ली और तब आपसे बात की और आज मैंने आपको ढूंढ़ लिया। इस वक्त आप मेरे सामने हैं राजा देव।” बबूसा गम्भीर था।

देवराज चौहान की निगाह बबूसा के चेहरे पर थी।

जगमोहन और धरा गम्भीर दिख रहे थे।

तभी बर्तन उठाने वाला टेबल से बर्तन ले गया और वेटर ने पास पहुंचकर पूछा।

“कुछ और लाऊं सर?”

“चार कॉफी ले आओ।” जगमोहन बोला।

वेटर चला गया।

“खतरा सिर पर आ पहुंचा है राजा देव।” बबूसा गम्भीर स्वर में बोला –“रानी ताशा आज रात पोपा में सवार हुई, डोबू जाति में पहुंच जाएगी। वो आपको वापस सदूर ग्रह ले जाना चाहती है। आपको बहुत  सतर्क रहने की जरूरत है। रानी ताशा कभी भी मुम्बई पहुंच सकती है और वो मेरी तरह आपको नहीं ढूंढ़ेगी कि उसे आप तक पहुंचने में महीनों का वक्त लग जाए। महापंडित उसे बता देगा कि आप कहां पर मौजूद हैं और वो सीधी आप तक पहुंचेगी। रानी ताशा आपके सामने आई नहीं कि उसका और महापंडित का खेल शुरू हो जाएगा। सब कुछ सोच-समझकर हो रहा है। आप हर बात से अंजान हैं राजा देव जबकि रानी ताशा को हर बात की खबर है। मुझे पूरा यकीन है कि अगर आप नहीं संभले तो रानी ताशा को कोई परेशानी नहीं आएगी आपको सदूर ग्रह ले जाने में। एक बार आप सदूर ग्रह पहुंच गए तो फिर आपकी एक नहीं चलेगी। महापंडित रानी ताशा की हर बात मानता जा रहा है। क्या पता वो आपके दिमाग को ऐसा बना दे कि उस जन्म की आपको याद ही न आए और रानी ताशा बिना सजा पाए अपना सिर आपकी गोद में रख दे। मैं अच्छी तरह समझ सकता हूं कि रानी ताशा आपको पाने के लिए, महापंडित से कुछ भी करा सकती है। महापंडित चाहता है कि आप फिर से सदूर ग्रह संभाल ले। क्योंकि रानी ताशा बेहतर ढंग से ग्रह के कामकाज नहीं संभाल पा रही है। मैं भी ऐसा ही चाहता हूं राजा देव, परंतु रानी ताशा और महापंडित की चालों को फेल कर देना चाहता हूं। आपको एकदम चौकस कर देना चाहता हूं कि रानी ताशा को आप वक्त आने पर सजा दे सकें। मैं राजा देव का वो ही रूप देखना चाहता हूं जो मैंने पहले देखा है, परंतु मुझे डर है कि रानी ताशा को देखते ही आप उसपर पहले की तरह मोहित न हो जाएं। मुझे पूरा यकीन है कि एक बार आपको वो जन्म याद आ गया तो फिर आप सब कुछ ठीक से संभाल लेंगे।”

“मुझे रानी ताशा में कोई दिलचस्पी नहीं। यहां मेरी पत्नी है, वो ही है मेरे लिए।” देवराज चौहान ने कहा।

“मुझे आपके शब्दों पर भरोसा है राजा देव, परंतु इस बात का क्या होगा कि महापंडित ने इस बार रानी ताशा का जन्म कराते समय उसके चेहरे पर ऐसा कुछ असर डाल दिया था कि आप उसे देखते ही मोहित ही जाएं।”

“ऐसा नहीं होगा।” देवराज चौहान ने दृढ़ स्वर में कहा।

बबूसा, देवराज चौहान को देखने लगा।

तभी धरा कह उठी।

“तो देवराज चौहान साहब, आपकी बात से लगता है कि आप बबूसा की बातों पर अब यकीन करने लगे हैं।”

“ये बात नहीं।”

“मुझे तो ये बात ही लगती है।” धरा ने कहा।

“मैं तो बबूसा की सिलसिलेवार बातों का जवाब दे रहा हूं कि कोई औरत मुझ पर हावी नहीं हो सकती।” देवराज चौहान बोला।

“वक्त का पता नहीं चलता कि कब क्या हो जाए।” धरा ने सोच भरे स्वर में कहा –“बबूसा की बातों को मानने में आपको क्या परेशानी है, क्या ये आपको झूठा लगता है?”

“मुझे सिर्फ इतना पता है कि इसकी कही बातों से मेरा कोई मतलब नहीं है।”

“मतलब कि आप उस जन्म के राजा देव नहीं हैं?”

“नहीं।” देवराज चौहान ने होंठ भींचकर कहा।

तभी वेटर आया और चार कॉफी सबके सामने रखकर चला गया।

“सुना तुमने।” धरा, बबूसा से कह उठी –“देवराज चौहान साहब क्या कह रहे हैं।”

“इनके कहने से कुछ नहीं होगा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“जो भी सच है, वो सामने आने वाला है। रानी ताशा जल्दी ही राजा देव के सामने होगी और तब वो सब कुछ होगा, जिसकी राजा देव कल्पना भी नहीं कर सकते। मैं राजा देव को सब कुछ पहले बताकर सतर्क कर रहा हूं क्या पता उस वक्त क्या हो जाए। ज्यादा कुछ नहीं तो राजा देव को मेरी बातें तो याद आएंगी ही और अपने को संभाले रखेंगे।”

“मुझे सिर्फ अपने तीन जन्म याद हैं।” देवराज चौहान ने बबूसा को देखा –“एक ये जन्म जी रहा हूं। पहला जन्म मेरा किसी रहस्यमय धरती पर हुआ था, जो कि आज जमीन के भीतर कहीं पर आज भी रहस्य बनी हुई है और वक्त का चक्रव्यूह मुझे कई बार उस जमीन पर ले जा चुका है। दूसरा जन्म लुधियाना में हुआ था और तब मेरी पत्नी मोना चौधरी बनी थी और बहुत सुख से मैंने और मोना चौधरी ने वो जन्म जिया था।”

“ये बातें आपको किसने बताई?” बबूसा ने पूछा।

“पेशीराम (फकीरबाबा) ने।”

“आपने पेशीराम की इन असामान्य बातों पर यकीन किया तो मेरी बातों पर यकीन क्यों नहीं कर लेते?” बबूसा बोला।

“पेशीराम की बातों पर यकीन करने की मेरे पास वजह है। इस जन्म में जीते हुए भी मैं उस पहले जन्म में जा चुका हूं जहां पेशीराम रहता है। वहां पर सब कुछ मैंने अपनी आंखों से देखा है। उस पहले जन्म के कुछ और लोग भी हैं यहां जो मेरे साथ ही उस पहले जन्म की जमीन पर गए हैं जो आज भी यहीं मौजूद है। अगर मैं वहां नहीं गया होता और पेशीराम मुझे आकर ये बात कहता तो मैं कभी भी उसकी बात पर यकीन नहीं करता।”

“आप सही कह रहे हैं राजा देव। मुझे आपके इन तीनों जन्मों की जानकारी है। ये बात मुझे महापंडित ने बताई थी। परंतु महापंडित ने ही मुझे ये भी बताया था कि पृथ्वी के पहले जन्म से पहले आप सदूर ग्रह पर राजा देव बनकर रहे हैं। आपको मुझ पर यकीन बेशक न हो, परंतु मुझे महापंडित की बातों पर पूरा यकीन है।” बबूसा गम्भीर था –“आपको मेरी बातों पर यकीन कर लेना...।”

“नहीं।” देवराज चौहान ने स्पष्ट तौर पर इंकार किया –“तुम्हारी बात पर यकीन करना, मेरे बस में नहीं है।”

“यकीन तो आपको करना ही होगा राजा देव। अब नहीं तो तब करेंगे, जब रानी ताशा से आपका सामना होगा।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“परंतु मुझे डर है कि तब कहीं वक्त हाथ से न निकल जाए। आप रानी ताशा पर मोहित न हो जाएं। उसके दीवाने न बन बैठें पहले की तरह। आपने सुध-बुध खो दी तो मेरी सारी मेहनत बेकार हो जाएगी।”

जगमोहन ने कॉफी का घूँट लेने के बाद देवराज चौहान से कहा।

“कुछ देर के लिए इसकी बात मान लें तो क्या हर्ज है?”

“क्या तुम्हें इसकी बातों पर यकीन है?” देवराज चौहान ने पूछा।

“सच तो ये है कि कभी यकीन आता है तो कभी नहीं। परंतु मन में ये ही आता है कि इसकी बात मान लें तो क्या हर्ज है।”

“मैं यकीन नहीं कर सकता।”

“जैसे कि ये कहता है कि कोई रानी ताशा है, अगर वो सच में हो और तुम्हारे सामने आ जाए तो?”

“परवाह नहीं।” देवराज चौहान के चेहरे पर सख्त मुस्कान उभरी –“मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।”

“देवराज चौहान जी।” धरा बोली –“मैं बबूसा की बातों को झूठ नहीं मानती।”

“मैं भी यही कहता हूं कि कुछ देर के लिए बबूसा की बातों को सच मान लेना चाहिए।” जगमोहन ने कहा।

“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है जो तुम इसकी बातों में आ गए।”

देवराज चौहान ने बबूसा के चेहरे पर नजर मारी –“इससे पहले कि तुम्हारा दिमाग पूरी तरह खराब हो, हमें चलना चाहिए।” देवराज चौहान ने वेटर को इशारे से बुलाया।

वेटर करीब पहुंचा।

“बिल ले आओ।” देवराज चौहान ने कहा।

वेटर चला गया।

धरा ने बबूसा को देखा। जगमोहन को देखा।

बबूसा चेहरे पर उलझन समेटे, देवराज चौहान से कह उठा।

“आप कहां जा रहे हैं राजा देव?”

“अपने घर।”

“ये ठीक है।” बबूसा ने सिर हिलाया –“मैं काफी थक गया हूं। धरा को भी आराम की जरूरत है। बाकी बातें वहीं पर...”

“तुम मेरे घर पर नहीं चलोगे बबूसा।” देवराज चौहान बोला।

“नहीं चलूंगा?” बबूसा ने हैरानी से कहा-“क्यों?”

“मैं तुम्हें अपने घर क्यों ले जाऊं?”

“राजा देव, मैं बबूसा हूं, आपका सेवक। सेवक तो आपके साथ ही रहेगा न?”

“नहीं तुम...”

“इन हालातों में मैं आपको अकेला छोड़ने का खतरा नहीं ले सकता।” बबूसा गम्भीर था।

“तुम मेरी फिक्र मत करो, मैं...”

“बबूसा राजा देव की फिक्र नहीं करेगा तो कौन करेगा। महापंडित का कहना है कि पृथ्वी ग्रह पर जन्म लेते-लेते आपकी ताकत कम हो गई है। आपमें पहले जैसी ताकत नहीं रही जबकि महापंडित ने मुझे ताकतवर बनाया...”

तभी वेटर बिल ले आया।

देवराज चौहान ने बिल दिया और उठ खड़ा हुआ।

जगमोहन, बबूसा और धरा भी खड़े हो गए।

“तुम्हारी बातें मैंने बहुत सुन ली बबूसा। समझ भी ली। अब तुम्हें चले जाना चाहिए।”

“आपको मुझ पर भरोसा नहीं, तभी ऐसा कह रहे हैं। परंतु मैं आपके साथ ही रहूंगा।”

देवराज चौहान के चेहरे पर कठोरता उभरी।

“नाराज मत होइए राजा देव।” बबूसा व्याकुल स्वर में कह उठा –“आप हालातों को समझ नहीं रहे हैं। बहुत खराब वक्त आने वाला है। रानी ताशा पृथ्वी ग्रह पर पहुंच चुकी होगी और वो आपकी तरफ आने ही वाली होगी। महापंडित पूरी तरह रानी ताशा का साथ दे रहा है आपके खिलाफ। वरना वो सोमाथ को नहीं बनाता। आप बुरी तरह घेरे जाने वाले हैं। ऐसे मौके पर मैं ही आपकी सहायता कर सकता हूं क्योंकि मुझे तो हर चीज का पता है।”

देवराज चौहान पलटा और रेस्टोरेंट के बाहर की तरफ बढ़ गया।

बबूसा के चेहरे पर चिंता नाच उठी।

“देवराज चौहान तो तुम्हारी बात सुनने को भी तैयार नहीं।” धरा कह उठी।

जगमोहन भी आगे बढ़ा तो बबूसा उसके साथ चलता कह उठा।

“तुम्हारा नाम जगमोहन है न?”

“हां।”

“तुम राजा देव के साथी हो इस जन्म में।”

“हां।”

“सुनो। मेरी बातें सच्ची हैं। मैं झूठ नहीं कह रहा। राजा देव बहुत बड़े खतरे में पड़ने वाले हैं। रानी ताशा बहुत बड़ी चालबाज है। वो राजा देव को बड़ी आसानी से सदूर ग्रह वापस ले जाएगी और महापंडित राजा देव के दिमाग का वो हिस्सा ही साफ कर देगा कि पहले बिताया, सदूर ग्रह वाला जन्म या रानी ताशा के धोखे वाली बात राजा देव को याद ही न आए। तुम मेरी बात समझो और राजा देव को समझाओ।”

“तुम जो कहना चाहते थे वो देवराज चौहान ने सुन लिया है। अब ये

उस पर है कि...”

“तुम सच्चे मन से राजा देव का भला नहीं चाहते।” बबूसा ने नाराजगी से कहा।

“देवराज चौहान का जितना भला मैं चाहता हूं, उतना तुम नहीं चाह सकते।” जगमोहन बोला।

“गलत। राजा देव के लिए मैं अपनी जान भी दे सकता हूं। तुम ऐसा नहीं कर सकते।” बबूसा ने कहा।

“मैं ऐसा कर सकता हूं।”

“मैं तुम्हारी बात का यकीन नहीं कर सकता। अगर तुम राजा देव का

भला चाहते तो उन्हें कहते कि बबूसा सही कह रहा है। उसकी बात सुनो और यकीन करो फिर आने वाले हालातों से बचने का रास्ता ढूंढ़ो, लेकिन तुम...”

“तुम्हारी बातों का तो मुझे भी पूरी तरह यकीन नहीं।”

“अभी तो तुम कह रहे थे राजा देव को कि मेरी बातों पर यकीन कर

लेना...”

“तुम मेरा दिमाग खा रहे हो बबूसा।” जगमोहन गम्भीर स्वर में कह उठा –“तुमने जो कहना था वो देवराज चौहान ने सुन लिया है। तुम्हें सामने भी देख लिया है। अब कम-से-कम उसे सोचने का वक्त तो दो।”

“राजा देव बेशक सोच लें। परंतु वो मुझे साथ क्यों नहीं ले जा रहे। मैं

तो उनका सेवक हूं।”

“पर उसे याद नहीं कि कभी तुम उसके सेवक थे।” जगमोहन ने चलते

हुए कहा।

पीछे आती धरा कह उठी।

“बबूसा, मुझे तो लगता है जैसे तुम पहाड़ से सिर टकरा रहे हो।

तुम्हारी बातों का इन पर कोई असर नहीं हुआ।”

बबूसा के चेहरे पर परेशानी के भाव आ गए।

“तुम अपने घर जाओ। जरूरत पड़ी तो देवराज चौहान तुम्हें फोन कर...” जगमोहन ने कहना चाहा।

“पर मेरे पास तो न घर है, न फोन।”

“कहीं तो इस वक्त रह रहे हो?”

“होटल में।”

“वहीं रहो। धरा के पास फोन है, उसके फोन पर फोन कर देंगे।”

“तुम भी ये ही चाहते हो कि मैं तुम लोगों के साथ न रहूं। चला जाऊं।” बबूसा ने खिन्नता भरे स्वर में कहा।

“मेरे चाहने न चाहने से कुछ नहीं होता। फैसला तो देवराज चौहान ही लेगा।”

“तुम राजा देव को समझाओ।”

“वो बच्चा नहीं है कि मैं उसे समझाऊं। तुम्हारी बातों को पूरी तरह उसने सुन...”

“बबूसा।” एक कदम पीछे से धरा बोली –“तुम्हारा राजा देव तो एकदम फुस्स निकला। तुम्हारी बातों का उस पर कोई असर नहीं हो रहा। वो तो तुम्हें झूठा मान रहा है।”

वे रेस्टोरेंट से बाहर आ गए।

मध्यम-सी बहती हवा उनके चेहरों से टकराई।

बाईं तरफ रेस्टोरेंट की पार्किंग में खड़ी कारें नजर आईं। आगे जाता देवराज चौहान उन्हीं कारों की तरफ बढ़ गया था। वहां की हल्की रोशनी में बबूसा के चेहरे पर व्याकुलता दिखी। धरा पास आती कह उठी।

“मेरी बात मानो तो देवराज चौहान को उसके हाल पर छोड़ दो।”

“मैं ऐसा नहीं कर सकता। राजा देव को मुसीबतों से बचाए रखना मेरा फर्ज है।” बबूसा बोला।

“पर वो तो तुम्हारी बात समझ नहीं रहा। तुम्हें झूठा मानकर, चले जाने को कह रहा है।”

“ये सब इसलिए हो रहा है कि राजा देव को कुछ याद नहीं आ रहा उस जन्म का।” बबूसा का लहजा चिंता से भरा था –“रानी ताशा ने आज रात पृथ्वी पर डोबू जाति में पहुंच जाना है। राजा देव के लिए मुसीबत खड़ी हो जाएगी।”

“तुम कर भी क्या सकते हो?” धरा बोली।

“मैं बहुत कुछ कर सकता हूं। मेरे सामने होते रानी ताशा अपनी नहीं कर पाएगी। क्योंकि मैं रानी ताशा का सारा खेल जानता हूं, वो राजा देव को, उस जन्म की याद आने से पहले ही, सदूर ग्रह पर ले जाना चाहती है। वहां महापंडित राजा देव के दिमाग को कुछ ऐसा कर देगा कि उन्हें कभी अपना वो जन्म याद आएगा ही नहीं। याद आएगा तो रानी ताशा के धोखे वाली बात कभी याद नहीं आएगी। ऐसे में राजा देव एक बार फिर धोखेबाज रानी ताशा के दीवाने होकर जीवन बिताने लगेंगे। जबकि मैं रानी ताशा को उस धोखे की सजा दिलवाना चाहता हूं राजा देव से। मैं चाहता हूं कि धोखेबाज रानी ताशा को राजा देव ऐसी सजा दे कि रानी ताशा का अंत पृथ्वी ग्रह पर ही हो जाए और रानी ताशा फिर कभी सदूर ग्रह पर जन्म न ले सके।”

“जरूरी तो नहीं कि देवराज चौहान रानी ताशा को मौत की सजा दे।” धरा बोली।

“राजा देव कैसी भी सजा दें, मुझे इसकी चिंता नहीं है। पर राजा देव को सब कुछ याद आ जाना चाहिए।”

“ऐसा कैसे होगा?”

“सब हो जाएगा। वक्त करेगा। परंतु इसके लिए मुझे राजा देव के करीब रहना होगा कि उन्हें रानी ताशा से बचाता रहूं।”

“तुम सोमाथ के बारे में बता रहे थे कि वो ताकतवर है। उसकी मृत्यु नहीं होगी। वो रानी ताशा के साथ है, ऐसे में तुम देवराज चौहान को रानी ताशा से कैसे बचा सकते हो। तुम उसके रास्ते में आए तो सोमाथ तुम्हें मार देगा।”

“वो मैं नहीं जानता कैसे होगा। सोमाथ के बारे में महापंडित ने बताया है, पर सोमाथ से मेरा सामना नहीं हुआ। ये ठीक है कि अगर सोमाथ शक्तिशाली है तो मैं भी कम नहीं। मेरा मुकाबला कर पाना उसके लिए आसान नहीं होगा। ये बाद की बात है, अभी मसला तो ये है कि राजा देव मुझे अपने करीब तो रखे।”

जगमोहन भी साथ चलता, उसकी बातें सुन रहा था। उसने देखा आगे देवराज चौहान अपनी कार के पास पहुंचकर रुक चुका है। जगमोहन के चेहरे पर गम्भीरता झलक रही थी। वो देवराज चौहान के पास पहुंचकर रुका।

बबूसा और धरा भी वहां रुक गए।

देवराज चौहान की निगाह बबूसा पर थी।

“देवराज चौहान साहब।” धरा नाराजगी से बोली –“बबूसा तुम्हारे भले के लिए सूखा जा रहा है और तुम हो कि इसकी बातों को सच भी नहीं मान रहे। ये कहां की शराफत है। तुम्हारे तक पहुंचने में इसे महीनों लग गए। तुम मानो या न मानो परंतु ये जो कह रहा है, सच कह रहा है। जब से मैं इसके साथ हूं मैंने इसे झूठ बोलते नहीं देखा। हो सकता है, मैं भी तुम्हारी तरह इसकी बातों का यकीन नहीं करती, परंतु मैंने डोबू जाति को करीब से देखा है। वहां होकर आ चुकी हूं और उसके बाद डोबू जाति वाले जिस तरह मेरी जान के पीछे पड़े, जिस तरह बबूसा ने मुझे बचाए रखा अभी तक, इस बात का एहसास सिर्फ मैं ही कर सकती हूं परंतु तुम्हें नहीं एहसास करा सकती। मेरा यकीन करो, बबूसा झूठ नहीं बोलता।”

देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाकर कश लिया।

“तुम्हें मान लेना चाहिए कि किसी दूसरे ग्रह पर तुम कभी राजा देव थे और बबूसा तुम्हारा सेवक था।” धरा पुनः बोली।

जगमोहन चुप था।

“ये भी मान लेना चाहिए कि रानी ताशा वाली बात सच है। वो तुम्हें लेने पृथ्वी पर पहुंच रही है। आने वाले वक्त में रानी ताशा की वजह से तुम मुसीबतों में फंस सकते हो। बबूसा सच कहता है।”

बबूसा ने फौरन सहमति से सिर हिलाया।

“ये तुम्हारे पास रहना चाहता है तो इसमें बुरा ही क्या है।”

“मैं आपका सेवक हूं राजा देव। जो करूंगा आपके भले के लिए ही करूंगा।”

“तुम खुद को मेरा सेवक कहते हो, परंतु मेरी बात नहीं मान रहे।” देवराज चौहान बोला।

“कौन-सी बात राजा देव?”

“मैंने तुम्हें जाने के लिए कहा है।”

“आपकी गलत बात मैं कैसे मान लूं। आपसे दूर जाने में, आपका ही नुकसान है राजा देव। मैं आपका नुकसान नहीं देख सकता। मैं आपके करीब रहूं तो इसी में आपका भला है।” बबूसा ने कहा।

“क्या पता तुम किस मन से मेरे पास रहना चाहते हो।”

“राजा देव। अब आप मुझसे जुदा नहीं हो सकते। कोशिश करके देख लीजिए। आप जिस-जिस रास्ते से जाएंगे, मैं आपकी गंध के द्वारा वो रास्ता पा लूंगा और आप तक पहुंच जाऊंगा। मेरे लिए ये साधारण काम होगा। आप अगर घर के भीतर नहीं आने देंगे तो मैं बाहर ठहर जाऊंगा पर आपको अकेला नहीं छोड़ सकता। रानी ताशा की चालाकी मैं अब सफल नहीं होने दूंगा। आपका ध्यान रखना मेरा फर्ज है। तब पोपा बनाने के बाद आपने मुझे खुशी-खुशी में एक दिन पहले वहां से भेज दिया कि मैं जाकर रानी ताशा को आपके आने की खबर दे सकूँ। और जब आप आए तो रानी ताशा, सेनापति धोमरा और सिपाहियों ने रास्ते में ही आपको पकड़ लिया कि किसी को कानों कान खबर न हुई।”

“तब मैं अकेला आ रहा था?” देवराज चौहान ने पूछा।

“नहीं राजा देव। पांच सैनिक आपके साथ थे और उन सबको मार दिया गया था।” बबूसा ने कहा।

तभी जगमोहन आगे बढ़ा और देवराज चौहान की बांह पकड़कर एक तरफ ले जाकर बोला।

“जाने क्यों मुझे इसकी बातों पर यकीन होता जा रहा है कि ये सच कह रहा है। कोई बात तो है जरूर।”

“ये हर बात सच कह रहा है।” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा।

“क्या?” जगमोहन चौंका –“तुम मानते हो?”

“हां। इसके कहने के दौरान मैं इसके चेहरे और शरीर के हाव-भावों को नोट करता रहा हूं। एक बार भी मुझे ऐसा नहीं लगा कि ये झूठ कह रहा हो। मेरे ख्याल में इसने जो कहा है, वो हर बात सच है।” देवराज चौहान बोला।

जगमोहन हक्का-बक्का सा देवराज चौहान को देखने लगा।

“इसकी बातें सुनकर मैं गहरी उलझन में पड़ गया हूं कि ये मेरे साथ क्या हो रहा है।” देवराज चौहान ने जगमोहन को देखा।

“तुम इसे अपने साथ रखना नहीं चाहते?” जगमोहन ने पूछा।

देवराज चौहान चुप रहा।

“ये रानी ताशा को पहचानता है। हालातों को समझता है। जबकि हमारे लिए ये सब कुछ नया है।”

“ठीक है।” देवराज चौहान ने सहमति से सिर हिलाया –“इसे साथ ले लेते हैं।”

“और वो लड़की–धरा?”

“उसके बारे में बबूसा ही फैसला करेगा।”

जगमोहन बबूसा के पास पहुंचता कह उठा।

“तुम हमारे साथ चल सकते हो, परंतु धरा कहां रहेगी?”

“मेरे साथ ही रहेगी।” बबूसा ने गम्भीर स्वर में कहा –“डोबू जाति वाले इसे मार देना चाहते हैं। मैं इसे बचाने की कोशिश कर रहा हूं।”

qqq

पोपा (अंतरिक्ष यान) पहाड़ के सामने जमीन पर उतर चुका था। सामने कुछ दूरी पर एक ओर बर्फ से ढका पहाड़ था। दोनों पहाड़ों के बीच की, काफी बड़ी खाली जगह पर पोपा उतरा था। रात के इस वक्त उसका रंग-रूप स्पष्ट नजर नहीं आ रहा था और बड़े से स्याह धब्बे की तरह दिख रहा था। नीचे उतरने से पहले पोपा के नीचे वाले हिस्से से लेजर जैसी जो नीली रोशनी निकल रही थी, वो बंद हो चुकी थी। पोपा काफी फैलावट में था, परंतु उसकी ऊंचाई तीस फुट के करीब थी। पोपा के इंजन से उठती मध्यम-सी आवाजें बंद हो चुकी थीं।

डोबू जाति के लोगों में सन्नाटा छाया हुआ था। हर कोई अपनी जगह खड़ा स्तब्ध-सा पोपा को देख रहा था। जो लोग पोपा के उतरते वक्त, डरकर पहाड़ के भीतर जा घुसे थे वो अब बाहर निकलना शुरू हो गए थे। सनसनाहट-सी वातावरण में मौजूद थी। कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। सब टकटकी बांधे पोपा को देखते इस बात का इंतजार कर रहे थे कि कब भीतर से रानी ताशा बाहर निकलती है। रानी ताशा को देखने को हर कोई उत्सुक था। ढाई सौ बरस से सदूर ग्रह से उनके सम्पर्क बने हुए थे। पोपा पहले भी कुछ बार आ चुका था सदूर ग्रह के महत्वपूर्ण व्यक्तियों को लेकर, परंतु रानी ताशा कभी नहीं आई थी। वो सदूर ग्रह से यंत्रों के माध्यम से ही बात करती रही थी। पहली बार रानी ताशा अब आई है।

डोबू जाति का सरदार गम्भीर-सा एक तरफ खड़ा पोपा को सोच भरी निगाहों से देख रहा था। उसका दिमाग भारी तौर पर उलझन में था। उसे होम्बी (जादूगरनी) पर पूरा भरोसा था और अभी होम्बी से बात करके आया था। होम्बी ने ही उसे बुलाया था। होम्बी ने ओमारू के सामने अपने विचार रखे थे कि रानी ताशा का आना उसके लिए सुखदायक नहीं होगा। ओमारू के पूछने पर भी होम्बी जवाब नहीं दे पाई कि, ऐसा क्यों? परंतु होम्बी ये ही कहती रही कि उसे आने वाले वक्त की सूचनाएं नहीं मिल रहीं। कुछ भी आभास नहीं हो पा रहा। भविष्य की घटनाओं का हमेशा ही उसे पहले पता चल जाता है परंतु इस बार भविष्य की धुंधली आकृतियां ही नजर आ रही हैं। ऐसे में होम्बी को ‘बुरे’ की आशंका हो गई थी। ओमारू होम्बी की बातों को सुनकर उलझन में पड़ गया था कि आज होम्बी को भविष्य की घटनाओं का एहसास क्यों नहीं हो पा रहा? होम्बी से अंतिम बात ये ही हुई थी कि वो सामान्य बन कर रानी ताशा का स्वागत करे और वो पुनः कोशिश करती है कि भविष्य की घटनाओं को स्पष्ट देख सके। तब ओमारू बाहर आ गया था।

पोपा जमीन पर रुक चुका था।

वक्त बीतने लगा। इंतजार का ये पल-पल भारी था।

तभी बोबला, ओमारू के पास आया। बोबला ही वो इंसान था जो डोबू जाति के योद्धा तैयार करता है। युद्ध कला में सबको एक्सपर्ट बनाता है। बोबला का बेहद खास स्थान था डोबू जाति में।

“हमारे दोस्त आ गए ओमारू।” बोबला बोला।

“हां।” ओमारू ने शांत स्वर में कहा।

“रानी ताशा को हम पहली बार देखने जा रहे हैं।” वो पुनः बोला।

“हां।” ओमारू ने छोटा-सा जवाब दिया।

“क्या तुम खुश नहीं हो?”

“खुश हूं।”

“नहीं। तुम मुझे खुश नहीं लग रहे। क्या बात है?”

“कुछ नहीं। मैं सोच रहा हूं कि रानी ताशा, अपने राजा देव को वापस ले जाने के लिए आई है, जो इस पृथ्वी पर कहीं रहता है। क्या रानी ताशा के लिए आसान होगा, राजा देव को वापस अपने सदूर ग्रह पर ले जाना?”

“आसान क्यों नहीं होगा।” बोबला ने कहा –“रानी ताशा के साथ हमारे योद्धा होंगे जो कि रानी ताशा के कहने पर राजा देव को उठाकर पोपा में बिठा देंगे और पोपा चला जाएगा।”

ओमारू चुप रहा।

“रानी ताशा अपने ग्रह से हमारे लिए उपहार लाई होगी। वो हमारी दोस्त है।” बोबला पुनः कह उठा।

“होम्बी ने बताया कि रानी ताशा के साथ सोमाथ नाम का व्यक्ति आया है। वो कृत्रिम मानव है। बिजली की तारों और धातु का बना हुआ है। उसका दिमाग भी नकली है। परंतु वो सामान्य मानवों की तरह दिखता है। वो इतना शक्तिशाली है कि हमारे योद्धा भी उसके सामने नहीं ठहर सकते। वो सिर्फ रानी ताशा का हुक्म मानता है।” ओमारू ने कहा।

“तो सोमाथ से हमें चिंता कैसी?” बोबला बोला।

“होम्बी ने इशारा दिया है कि रानी ताशा से हमें नुकसान हो सकता है।”

“इशारा दिया है, मैं समझा नहीं ओमारू?”

“होम्बी हमेशा की तरह भविष्य में स्पष्ट नहीं झांक पा रही है। आने वाले वक्त को वो समझ नहीं पा रही। ये उसके लिए आश्चर्य की बात है कि इस बार ऐसा क्यों हो रहा है, पोपा के आने पर उसकी शक्तियां कमजोर क्यों पड़ गई हैं। होम्बी कहती है कि ऐसा होना, बुरे संकेत की निशानी है।” ओमारू बेचैन हो उठा।

“होम्बी बूढ़ी हो चुकी है। शायद उसकी शक्तियां कमजोर पड़...।”

“मैंने जब से होश संभाला, होम्बी ऐसी ही थी। वो बूढ़ी नहीं हो सकती। उसकी शक्तियां उसे जिंदा रखती हैं। वो हमेशा ही डोबू जाति के भले का काम करती है, परंतु इस बार वो खुद को बेबस क्यों महसूस कर रही है।”

“होम्बी थक गई है। उसे आराम की जरूरत है।” बोबला ने कहा –“होम्बी ठीक हो जाएगी, ये तो...”

तभी पोपा (अंतरिक्ष यान) के बाहर से एक रोशनी निकलने लगी, जो कि धीरे-धीरे तेज होती चली गई। मिनट भर में वो रोशनी आस-पास इतनी फैल गई कि सब कुछ स्पष्ट देखा जा सके। अब डोबू जाति के लोग एक-दूसरे को स्पष्ट देख पा रहे थे। पोपा का एक बड़ा हिस्सा भी रोशनी में चमक रहा था। दो मिनट बीते कि पोपा के बाहरी दीवार में एक दरवाजा-सा दिखा, फिर भीतर से धातु की बनी सीढ़ी बाहर आकर जमीन से टिक गई। सीढ़ी चार फुट चौड़ी थी और नीले रंग की थी। तभी भीतर से निकलकर एक युवक सीढ़ी पर आ पहुंचा। रोशनी में वो स्पष्ट दिखा। उसने कपड़ों जैसा कुछ पहन रखा था, जो कि सफेद जैसा था और वहां से चमक उठ रही थी। सिर के बाल छोटे थे।

“स्वागत।”

“स्वागत।” डोबू जाति के लोगों की आवाजें उठीं।

जवाब में उस युवक ने हाथ हिलाया। तभी वो सीढ़ी के एक तरफ हो गया। भीतर से और लोग बाहर निकलने लगे और सीढ़ी उतरते नीचे आने लगे। ओमारू तुरंत सीढ़ी के पास जा पहुंचा।

“मैं ओमारू, डोबू जाति का सरदार आप सबका स्वागत करता हूं।” ओमारू ने खुशी भरे स्वर में कहा।

उन लोगों ने कुछ कहने की अपेक्षा ओमारू के कंधे पर बारी-बारी हाथ रखने लगे। शायद ये किसी से मिलने का उनका तरीका था। वो सब सीढ़ी के आसपास खड़े हो गए। उनकी संख्या उन्नीस थी।

ओमारू सीढ़ी के पास मुस्कराता हुआ खड़ा था।

ऊपर सीढ़ी में खड़ा युवक, अपनी जगह पर ही मौजूद था।

तभी पोपा के दरवाजे से वो हसीन युवती निकली, जो कि रानी ताशा थी। बेहद सुंदर, जैसे कि कयामत सुंदरता में लिपटकर आ गई हो। उसका रंग-रूप देखते ही सब भौंचक्के से रह गए। उसने टांगों से लिपटता ऐसा कपड़ा पहन रखा था जो कि कमर तक जा रहा था और दोनों टांगें अलग-अलग नजर आ रही थीं। कमर पर भी वो कपड़ा टाइट-सा लिपटा हुआ था। फिर ऊपर वक्षों पर ब्लाउज जैसा कोई कपड़ा बंधा था। कपड़ों का रंग हल्का गुलाबी था और वो चमक मार रहा था। सिर के बालों को गूंथकर पीछे जूड़े जैसे बांध रखा था। वो तीखे नैन-नक्श की खूबसूरती में बेहद असाधारण युवती थी। उसका नाक, गाल, ठोड़ी, आंखें, होंठ, हर चीज बेहद लाजवाब थीं। उसकी आंखों में हल्का नीला पन था। चेहरा ऐसे मासूमियत से भरा दिखता था जैसे कि कभी कोई गुनाह किया ही न हो। पांवों में कुछ खास ऐसा पहन रखा था कि पांव उस पर टिके थे और उसे डोरियों के साथ, पांव से बांध रखा था। गले में आभूषण के तौर पर जाने क्या डाला हुआ था, जो कि रह-रहकर चमक उठता था। कलाइयों में भी कोई चमकदार चीज पहनी हुई थी। उसने हाथ में ट्रांजिस्टर जैसा, छोटा-सा कोई यंत्र थाम रखा था, जिसमें से बार-बार सफेद रोशनी चमक रही थी बुझ रही थी।

रानी ताशा ने पहली सीढ़ी पर खड़े होकर सब तरफ नजर मारी। फिर मुस्करा पड़ी। मुस्कराते ही उसके दांत मोतियों जैसे चमके और उसकी सुंदरता में चार चांद लग गए। फिर उसने दोनों हाथ उठाकर हिलाए।

रानी ताशा के ऐसा करते ही डोबू जाति के लोगों की आवाजें उठीं।

“स्वागत है।”

“स्वागत है।”

(रानी ताशा, सोमाथ और सदूर से आए लोगों की गर्दनों के पीछे ऑपरेशन करके चने के दाने के आकार का यंत्र (ट्रांसलेटर) लगाया हुआ था, जिसका सीधा कनेक्शन दिमाग से था। किसी अनजानी भाषा में बात होने पर वो ट्रांसलेटर फौरन उन्हें अपनी भाषा में ही शब्दों को ट्रांसलेट करके कानों और दिमाग तक पहुंचाता था। और जब वे अपनी बात सामने वाले से कहते तो ट्रांसलेटर से उसी भाषा में ही शब्द बदलकर सुनाई देते थे।)

तभी रानी ताशा का मदहोश कर देने वाला स्वर गूंजा।

“हम आपके कौन हैं?”

पल भर के लिए वहां चुप्पी छा गई।

नीचे सीढ़ी के पास खड़ा ओमारू मुस्कराकर कह उठा।

“आप हमारी दोस्त हैं रानी ताशा।”

“हमारी दोस्ती अटूट है।” रानी ताशा ने ऊंचे स्वर में कहा –“दोस्ती के नाम पर मैं अपने ग्रह से पोपा में भरकर उपहार लाई हूं। तुम सबकी जगह मेरे दिल में है। हम एक-दूसरे के काम आए हैं और आते रहेंगे। हम तुम्हारी बात मानेंगे तुम हमारी बात मानोगे। ये ही खास रिश्ता है हम में। मैं इतना लम्बा सफर तय करके तुम लोगों के पास क्यों आई, क्योंकि हम दोस्त हैं। तुम लोग मुझे मेहमान मत समझना। जिस तरह ये जगह तुम लोगों का घर है उसी तरह ये मेरा भी घर है। मैं अपने घर में आई हूं।”

“हां रानी ताशा।” ओमारू बोला –“यहां जो कुछ भी है उस पर आपका पूरा हक है।”

“तुमने अपना परिचय नहीं दिया?” रानी ताशा ने ओमारू से कहा।

“मैं डोबू जाति का सरदार...।”

“तो ओमारू हो तुम। हमारे सच्चे दोस्त।” कहने के साथ ही रानी ताशा सीढ़ियां उतरी और ओमारू के पास पहुंच गई। रानी ताशा ने ओमारू के कंधे पर हाथ रखा और मुस्कराकर बोली –“तुम्हें मैं बहुत याद करती हूं ओमारू। यंत्रों के द्वारा हमने कई बार बात की। तुम्हारी आवाज मुझे बहुत अच्छी लगती है।”

“मैं भी आपको हमेशा याद करता हूं।”

रानी ताशा ने उसके कंधे से हाथ हटाया और सामने फैले पहाड़ को निहारा।

“तो इस पहाड़ के भीतर रहते हो तुम लोग।” रानी ताशा बोली।

“ये ही हमारा घर है।”

“सुंदर है। मैं ऐसी जगह पर कभी नहीं रही, पर अब रहूंगी।” फिर रानी ताशा वहां लगी डोबू जाति की भीड़ की तरफ हाथ हिलाकर ऊंचे स्वर से कह उठी –“तुम सब कैसे हो?”

“ठीक हैं।”

“अच्छे हैं।”

“आपको देखकर बहुत अच्छा लगा।” ऐसी आवाजें उठने लगीं।

रानी ताशा ने पीछे देखा। सीढ़ी पर खड़ा युवक अब दो पायदान पीछे खड़ा था।

“तुम मेरे साथ रहो सोमाथ।”

“जो हुक्म रानी ताशा।”

ओमारू ने गहरी निगाहों से सीमाथ को देखा।

“ओमारू अब हमें पहाड़ के भीतर ले चलो।”

“आइए रानी ताशा। मैं तो कब से आपके चलने का इंतजार कर रहा हूं।” ओमारू पलटता हुआ कह उठा।

ओमारू और रानी ताशा साथ-साथ पहाड़ी के द्वार की तरफ चल पड़े।

पीछे सोमाथ था।

उसके पीछे वो उन्नीस लोग जो रानी ताशा के साथ आए थे।

उसी पल पोपा की सीढ़ियां जैसे खुली थीं, वैसे ही सिमटकर वापस चली गईं और पोपा का खुला दरवाजा भी बंद होता चला गया। उसके बाद पोपा की साइड से जो रोशनी की किरण प्रकाश फैला रही थी, वो भी बुझ गई।

वहां पर पुनः पहले की तरह अंधेरा छा गया। उनके पीछे-पीछे डोबू जाति के सब लोग पहाड़ के भीतर प्रवेश करने लगे थे।

साथ चलता प्रभावित-सा दिखता ओमारू कह उठा।

“तुमसे मिलने की इच्छा बहुत थी रानी ताशा। अब तुम्हें देखा तो मन को चैन मिला।”

“मैं तुम सबको चैन देने ही आई हूं ओमारू।” रानी ताशा कदम उठाती बोली।

“आप बेहद खूबसूरत हैं।”

“हम जानते हैं।” रानी ताशा मुस्कराई।

“क्या सदूर ग्रह पर हर औरत आपकी तरह सुंदर है?”

“नहीं। पर क्या तुम सदूर ग्रह की औरत को प्राप्त करना चाहते हो अपने लिए?”

“क्यों नहीं रानी ताशा।”

“अगली बार जब पोपा आएगा तो तुम्हें भेंट करने के लिए अपने साथ सदूर ग्रह की खूबसूरत युवती भी लाएगा।”

ओमारू का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा।

“तुम हमारे दोस्त हो ओमारू।”

“हां। हम दोस्त हैं।”

“और दोस्त की इच्छा को पूरा करना एक-दूसरे का फर्ज है। मैंने ठीक कहा या गलत?”

“ठीक कहा।”

“मुझे राजा देव को वापस पाना है ओमारू।”

“मेरी सेवाएं हाजिर हैं।”

आगे बढ़ते रानी ताशा की निगाह हर तरफ जा रही थी।

“राजा देव मेरे सब कुछ हैं। वो मुझे सबसे प्यारे हैं।”

“परंतु वो आपको छोड़कर इस धरती पर क्यों आ गए?”

रानी ताशा ने ओमारू को देखा फिर सामने देखती कह उठी।

“हमसे कुछ गलती हो गई थी और अब राजा देव को वापस ले जाकर उस गलती को सुधारना है। हम इतनी दूर से पोपा में बैठकर आए हैं तो तुम समझ सकते हो कि राजा देव हमारे लिए कितने जरूरी हैं।”

“तुम हमें बता देती कि राजा देव कहां पर हैं तो हम उन्हें यहां ले आए होते।”

“ये इतना भी आसान नहीं रहेगा ओमारू।”

“क्यों?”

“महापंडित कहता है कि हमें राजा देव को वापस लाने में, ढेर सारी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।”

“महापंडित तो सदूर ग्रह का विद्वान है।”

“महापंडित की कही बात को हम गलत नहीं कह सकते। वो जो कहेगा, सच कहेगा। अब इन बातों को छोड़ो ओमारू, मैं और मेरे साथ आए आदमी तुम्हारा ये ठिकाना पूरी तरह देखना चाहते हैं। वो दिखाओ हमें।”

“तुम सफर से थक गई होगी। आराम कर लो, कुछ खा लो...।”

“हम कभी नहीं थकते। पोपा में सफर करते वक्त तो किले में बैठने जैसा ही महसूस होता है। तुम हमें यहां की सारी जगह दिखाओ।” रानी ताशा ठिठकी। यहां डोबू जाति के लोगों की भीड़ थी। सब कौतूहल से उसे ही देख रहे थे। ये जगह वो थी जहां चबूतरे पर मूर्ति लगी थी –“ये मूर्ति कैसी है?” रानी ताशा ने पूछा।

“हम इस मूर्ति की पूजा करते हैं। इसके आगे सिर झुकाते हैं।” ओमारू बोला।

“पत्थर की मूर्ति के आगे सिर झुकाते हो, हैरानी की बात है।” रानी ताशा ने मूर्ति को गहरी निगाहों से देखा –“तुम लोग इतने ताकतवर हो और मूर्ति के आगे सिर झुकाते हो। ये बात मुझे पसंद नहीं आई।”

“हमारी आस्था है ये मूर्ति । इसे हम देवी कहते हैं।”

“ये मूर्ति तो टूट-फूट चुकी है।” रानी ताशा ने कहा –“इसकी जगह तुम्हें नई मूर्ति लगवा लेनी चाहिए। मैं तुम्हें अपने ग्रह से मूर्ति बनवाकर यहां भेजूंगी कि उसे यहां लगा सको। वो मूर्ति खूबसूरत भी होगी और बड़ी भी होगी।”

ओमारू, रानी ताशा को देखता रहा, कुछ कह न सका।

“तुम मुझे होम्बी की बात बताया करते थे। वो कहां है?”

“जादूगरनी? वो आराम कर रही है।”

“आराम?” रानी ताशा ने ओमारू को देखा।

“हां।”

“ऐसा भी क्या आराम कि वो हमारे स्वागत को भी सामने नहीं आए?” रानी ताशा शांत भाव में बोली।

“वो हम लोगों में से नहीं है। वो हमारे कामों में कभी भी दखल नहीं देती। परंतु जाति की बेहतरी की खातिर वो हमें बुरी खबरें पहले ही बता देती है और हम खतरे से निबटने को तैयार हो जाते हैं।”

“क्या अब भी बुरी खबर बताई उसने?”

“कैसी बुरी खबर?”

“हमारे बारे में कुछ कहा हो?”

“आपका आना तो अच्छी खबर है रानी ताशा। आपके बारे में जादूगरनी क्या कहेगी?”

रानी ताशा ओमारू को देखती रही फिर कह उठी।

“होम्बी को जादू नहीं आता।”

“क्या?”

“होम्बी को अगर जादू आता होता तो वो बुरी खबर तुम्हें जरूर बता देती।”

एकाएक रानी ताशा मुस्करा पड़ी –“मुझे तो होम्बी के बारे में चिंता हो रही थी कि कहीं वो सच में जादूगरनी न हो। परंतु अब मेरी चिंता दूर हो गई।”

“मैं समझा नहीं रानी ताशा कि तुम क्या कहना चाहती हो।”

“होम्बी जब आराम कर ले तो मैं उससे मिलूंगी।”

“ठीक है।”

“अब मुझे यहां की सारी जगह दिखाओ।” कहने के साथ रानी ताशा इस तरह आगे बढ़ गई जैसे यहां सब कुछ उसका हो।

ओमारू उसके पीछे चल पड़ा।

उनके पीछे बाकी सब लोग थे।

qqq