सोमवार, 15 जनवरी

अलीशा अटवाल ने अपनी नई नकोर चमचमाती हुई अल्ट्रोज को पॉर्किंग में ले जाकर खड़ा किया, फिर पैसेंजर सीट पर पड़ा बैग उठाकर गाड़ी से नीचे उतर आई। कार की-लेस एंट्री वाली थी इसलिए उसके वहां से हटते के साथ ही दरवाजे ऑटोमैटिक ढंग से लॉक हो गये।

वह 28 साल की, साढ़े पांच फीट के कद वाली, बेहद खूबसूरत युवती थी। आंखें बड़ी और चमकीलीं, नाक एकदम सीधी, चेहरा हल्की गोलाई लिए हुए, गर्दन लंबी और रंगत गोरी थी। सूरत पर अक्सर सख्ती के भाव दृष्टिगोचर होते थे, जो उसकी खूबसूरती के लिए घातक ही कहे जायेंगे, मगर जब मुस्कराती, तो वह भाव पलक झपकते ही गायब हो जाते, फिर वह अपनी उम्र से कहीं ज्यादा छोटी दिखाई देने लगती थी।

छोटी, प्यारी और खूबसूरत।

असल में खोटी, खतरनाक और बेरहम।

सैक्टर 37 हुडा कांप्लेक्स, फरीदाबाद में एक बिल्डिंग की दूसरी मंजिल पर ‘फॉक्सी सर्विसेज’ नाम से उसका छोटा सा ऑफिस था जिसमें कुल जमा दो लोग काम करते थे। पहली वो खुद थी, जबकि दूसरे का नाम गजानन चौधरी था।

सीढ़ियां चढ़कर अलीशा अटवाल अपने ऑफिस के सामने पहुँची, फिर शीशे के अपारदर्शी दरवाजे को धकेलती हुई भीतर दाखिल हो गयी। गजानन चौधरी वहां पहले से मौजूद था, जो कि अक्सर होता ही था। कारण कि पौने दस बजे साफ-सफाई के लिए एक लड़का वहां पहुंचता था, जिसके लिए अलीशा या गजानन में से किसी एक का वहां होना जरूरी था।

“गुड मॉर्निंग अलीशा।”

“गुड मॉर्निंग, कैसे हो?”

“एकदम मस्त।”

सुनकर वह हौले से हंसी फिर दाईं तरफ को बने एक छोटे से केबिन में पहुंचकर बैग को मेज पर टिकाया और दूसरी तरफ जाकर अपनी रिवाल्विंग चेयर पर बैठ गयी।

चौधरी पहाड़ जैसे शरीर वाला भीमकाय युवक था, जो तीस की उम्र में पैंतीस से कहीं ज्यादा का दिखाई देता था। खास बात ये थी कि वह शख्स फरीदाबाद का एनसाइक्लोपीडिया था। उसे हर बात की खबर रहती थी, पुलिस महकमे से लेकर अपराधियों और लोकल नेताओं तक की अच्छी जानकारी रखता था।

“गजानन।” अलीशा ने जोर से आवाज लगाई।

“सुन रहा हूं, बहरा नहीं हूं।”

“चाय मिलेगी?”

“मिलेगी - कहकर उसने पूछा - मंगवानी है?”

“नहीं मुझे तो बस जानकारी चाहिए थी कि मेरे ऑफिस में चाय का इंतजाम हो सकता है या नहीं।”

“यानि नहीं मंगवानी?”

“अजीब आदमी हो यार तुम।”

“आप भी, सच पूछिये तो आपकी संगति ने ही मुझे बिगाड़ कर रख दिया है। वरना पहले जहां काम करता था वहां मालिक के ये पूछते ही कि चाय मिलेगी, मैं ऑर्डर कर दिया करता था।”

“बिगड़ जा भाई, खूब बिगड़ जा, इतना बिगड़ जा कि कहने पर भी कभी चाय मत मंगवाना।”

“ठीक है, बस एक चाय मंगाये लेता हूं।”

“तुम नहीं पिओगे?”

“अपने लिये ही मंगाने जा रहा हूं।”

सुनकर अलीशा हौले से हंसी, फिर मेज की दराज खोलकर इंसिग्निया का पैकेट निकाला और एक सिगरेट अपने होंठों के बीच दबाने के बाद लाईटर से सुलगाकर छोटे छोटे कश लगानी लगी।

पांच मिनट बाद 12-13 साल का एक लड़का उसके सामने चाय रख गया, जिसकी अलीशा ने पहली चुस्की ली ही थी गजानन की आवाज उसके कानों में पड़ी, “लवलेश भाटिया साहब लाईन पर हैं, फौरन आपसे बात करना चाहते हैं।”

“ठीक है ट्रांसफर कर दो।”

भाटिया पेशे से डॉक्टर था और उसी इलाके में एक नर्सिंग होम चलाता था। वह पहले भी दो बार उनकी सर्विसेज ले चुका था। आखिर वाला मामला ब्लैकमेलिंग का था, जो उसके गले की फांस बन चुका था, मगर अलीशा ने सब सैटल्ड कर दिया था, जिसके लिए भाटिया ने फीस के अलावा अलग से उसका शुक्रगुजार होकर दिखाया था। आदमी बढ़िया था, मुंहमांगी फीस चुकाई थी, इसलिए जल्दी ही दोनों में अच्छे ताल्लुकात कायम हो गये थे।

कुछ कुछ दोस्तों जैसे ताल्लुकात।

“हैलो।” उसने कॉल अटैंड की।

“हैलो अलीशा।”

“कैसे हैं डॉक्टर साहब?”

“अच्छा तो नहीं कह सकता।”

“अब क्या कर डाला आपने?”

“मर्डर...

“वॉव, बड़ी तेजी से तरक्की की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं। पहले एक पेशेंट को ऑपरेशन टेबल निबटा दिया, फिर ऐश के चक्कर में कातिल हसीना के जाल में जा फंसे, और अब मर्डर, मेरी मानिये तो कोई गैंग वैंग भी बना ही डालिये अब।”

....हुआ है।” डॉक्टर ने अपनी बात पूरी की।

“हुआ है! मतलब आपने नहीं किया?”

“अलीशा।” वह थोड़ा ऐतराज जताने वाले अंदाज में बोला।

“ओके, ओके, मैं समझ गयी कि आपने नहीं किया, अब बताईये कौन मरा है?”

“कोमल।”

“व्हॉट?” सुनकर वह बुरी तरह चौंक उठी। कोमल डॉक्टर लवलेश भाटिया की बीवी का नाम था, जिससे बीती रात ही उसकी मुलाकात होकर हटी थी।

“किसी ने खत्म कर दिया उसे।”

“आप ठीक तो हैं डॉक्टर साहब? मेरा मतलब है कहीं ऐसा तो नहीं कि रात की उतरी न हो अभी तक, वैसे भी कल रात काफी नशे में जान पड़ते थे।”

“मैं इतना कभी नहीं पीता अलीशा कि फोन पर किसी के साथ अनर्गल बातें करना शुरू कर दूं, इसलिए मेरे कहे पर ध्यान दो। ये सोचकर भी दो कि मैं कोमल के कत्ल की बात कर रहा हूं। उस कोमल की जो मेरी बीवी थी। जिसके साथ बीती रात मैंने, हमारी मैरिज एनिवर्सरी सेलिब्रेट की थी।”

“सॉरी, तो कोमल का कत्ल कर दिया आपने?”

“अरे मैं क्यों करूंगा?” वह झुंझलाता हुआ बोला।

“यानि किसी और ने कर दिया?”

“हां।”

“किसने?”

“क्या पता यार, डिटेक्टिव तुम हो या मैं?”

“वो तो खैर मैं ही हूं लेकिन खबर आप दे रहे हैं न, इसलिए सोचा क्या पता हत्यारे के बारे में भी जानते हों।”

“अगर जानता होता तो पुलिस को नहीं बता देता?”

“कब हुआ?”

“मुझे नहीं मालूम, लेकिन हुआ रात में ही किसी वक्त होगा।”

“कहां हुआ?”

“बेडरूम में।”

“ओह, पुलिस वहां पहुंच चुकी है?”

“अभी नहीं।”

“क्यों?”

“मैंने इत्तिला नहीं की अभी तक।”

“क्यों नहीं की?”

“क्योंकि यहां के हालात ऐसे हैं कि....कि....अब मैं क्या कहूं।”

“वे लोग आपको ही कातिल मान लेंगे, है न?”

“हां यही बात है।”

“मुझे फोन क्यों किया?”

“क्यों किया? - डॉक्टर एकदम से फट पड़ा - अरे मैं तुम्हें धंधा करने का मौका दे रहा हूं, और तुम पूछ रही हो कि फोन क्यों किया। सुबह सुबह भांग वांग तो नहीं खा ली है?”

“आज सोमवार है।”

“तो?”

“सोमवार के दिन लंच करने से पहले मैं भांग नहीं खाती।”

“तुम पक्का नशे में हो।”

“नशे में तो नहीं हूं लेकिन हैरान बराबर हूं, क्योंकि आपके कहे पर यकीन करना मुश्किल हो रहा है। अब साफ साफ बताईये कि असल माजरा क्या है?”

“अरे मैं अपनी बीवी के कत्ल की झूठी खबर दूंगा तुम्हें? फिर तुम्हारे साथ क्या मेरा कोई मजाक वाला रिश्ता है, बल्कि होता भी तो इतना घटिया मजाक शायद ही करता मैं।”

“ओके ओके, लेकिन चाहते क्या हैं?”

“तुम्हें पांच मिनट के अंदर यहां देखना चाहता हूं।”

“बड़े उतावले हो रहे हैं, कहीं मुझसे मोहब्बत तो नहीं हो गयी डॉक्टर साहब? जो एक के बाद एक नया केस पैदा किये जा रहे हैं मेरे लिये। ताकि इसी बहाने मेरा दीदार होता रहे आपको।”

“अलीशा।” वह गुर्रा सा उठा।

मगर लड़की के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। वह ऐसी थी, इमोशन से तो जैसे उसका दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं था। पहले कभी रहा भी हो तो अब नहीं था। दुनिया में अकेली थी, इसलिए बिंदास लाईफ जीती थी, और क्लाइंट को भगवान मानना तो जैसे उसने सीखा ही नहीं था। कुल मिलाकर अजीब लड़की थी, अजीब बातें करती थी, और हरकतें भी अजीब ही थीं उसकी, मगर डिटेक्टिव बढ़िया थी, और धंधा भी उसका बहुत अच्छा चल रहा था।

“ठीक है आती हूं।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर के मेज पर रखे कप से चाय की दूसरी चुस्की ली और सिगरेट के बचे हुए हिस्से को होंठों के बीच दबाये केबिन से बाहर निकल गयी।

पॉर्किंग में पहुंचकर कार में सवार हुई और भाटिया के घर की तरफ चल पड़ी जो वहां से बामुश्किल डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर अशोका इंक्लेव के इलाके में था।

बीती रात डॉक्टर की मैरिज एनिवर्सरी की पार्टी में वह खुद भी शामिल हुई थी, इसलिए जानती थी कि कुल जमा दस मेहमान वहां पहुंचे थे, जिनमें से चार डॉक्टर के दोस्त थे, जिन्होंने अपने बीवी बच्चों के साथ हाजिरी लगाई थी। तब वह कोमल से भी मिली थी, जो पार्टी के दौरान उसे उखड़ी उखड़ी सी नजर आई थी।

पिछले छह महीनों में वह कई बार उन दोनों से मिल चुकी थी, इसलिए जानती थी कि मियां बीवी में पटरी नहीं बैठ रही थी, अलबत्ता दूसरों के सामने खुद को खुशहाल कपल साबित करने की पूरी कोशिश किया करते थे। मगर बस कोशिश ही करते थे, कामयाब नहीं हो पाते थे क्योंकि उनके चेहरे के भाव दिल का हाल बयान करने के लिए काफी थे।

अशोका इंक्लेव पहुंचकर अलीशा ने अपनी कार डॉक्टर भाटिया के घर के सामने खड़ी की, फिर नीचे उतरकर वहां खड़े गार्ड मोहित साहा की तरफ देखकर मुस्कराई, जिसने उसपर निगाह पड़ते ही दरवाजा खोल दिया, क्योंकि उसे पहचानता था।

अंदर दाखिल होकर वह ड्राईंरूम में पहुँची तो लवलेश भाटिया सोफे पर बैठा सिगरेट फूंकता दिखाई दिया। हॉल में अभी भी बीती रात पार्टी के दौरान फैला कूड़ा करकट ज्यों का त्यों मौजूद था, मतलब साफ-सफाई नहीं की गयी थी।

लवलेश भाटिया 35 साल का, पांच फीट ग्यारह इंच के कद वाला हैल्दी युवक था। शक्लो सूरत ऐसी कि साक्षात कामदेव भी लजा उठें। वह किसी को कह देता कि मॉडलिंग के धंधे में है, या फिल्मों में काम करता है, तो सामने वाले ने सहज ही उसकी बात पर यकीन कर लेना था। एक लाईन में उसके लुक को बयान करना हो तो ये कह देना पर्याप्त होता कि लवलेश भाटिया ऐसा हैंडसम युवक था, जिसे अपना बना देखकर किसी भी लड़की को खुद पर रश्क हो आता।

अलीशा ने एक टक डॉक्टर को देखा, जो उस घड़ी यूं शांत बैठा था जैसे बीवी की मौत का कोई गम ही न हो उसे। अलीशा को बड़ी हैरानी हुई, क्योंकि उसके हिसाब से तो भाटिया को एकदम बदहाल अवस्था में मिलना चाहिए था। एक ऐसे शख्स की तरह जिसके होश उड़े हुए हों, आंखें रो रोकर लाल हो चुकी हों, मगर वो तो सोफे पर बैठा आराम से सुट्टे लगा रहा था।

“आने के लिए थैंक यू।”

“मेंशन नॉट डॉक्टर साहब - वह खड़े खड़े बोली - क्या हुआ था?”

“पता नहीं क्या हुआ था? ये भी नहीं जानता कि कैसे हुआ, क्योंकि दरवाजा तो भीतर से बंद था, और मैं उसके साथ एक ही बेड पर सो रहा था।”

“फिर भी कोई आपकी बीवी का कत्ल कर गया?”

“हां यही हुआ दिखता है।”

“दिखता है?”

“हुआ भी है, वरना मर कैसे जाती वह।”

“ठीक है, पहले लाश दिखाइये चलकर।”

सुनकर वह उठा और अलीशा को साथ लेकर सीढ़ियों की तरफ बढ़ गया जो कि हॉल के बाईं तरफ एकदम आखिर में बनी हुई थीं। चुभने वाली बात ये थी कि सीढ़ियों की रेलिंग कंक्रीट से बनाई गयी थी, जो वहां की साज सज्जा से जरा भी मैच नहीं करती थी। भला आज के जमाने में कौन ऐसा होगा जो करोड़ों की कीमत वाले घर में सीढ़ियों की रेलिंग पर कंक्रीट की दीवार खड़ी दे।

पहली मंजिल पर पहुंचकर डॉक्टर एक दरवाजे के आगे ठिठक गया। फ्लोर पर बस दो ही कमरे थे, जिनमें से एक उसका बेडरूम था। जबकि दूसरे का इस्तेमाल कुछ कुछ स्टोर रूम की तरह किया जाता था।

लाश बेड के दायें हिस्से में पड़ी थी। सीने में खंजर घुसा हुआ था, और जैसा कि होना ही था, बिस्तर मरने वाली के खून से तरबतर दिखाई दे रहा था। थोड़ा खून नीचे फर्श पर भी फैला था, जो दूर से ही जम चुका मालूम पड़ता था।

“दरवाजे पर ही रुकिये प्लीज।”

सुनकर डॉक्टर ने सहमति में सिर हिला दिया।

अलीशा ने भीतर पहुंचकर डेडबॉडी का मुआयना किया तो पाया कि मरने वाली के चेहरे पर जगह जगह खरोंच के निशान बने हुए थे, जैसे मौत से पहले हत्यारे के साथ जमकर संघर्ष किया हो। फिर उसका खास ध्यान इस तरफ गया कि तमाम निशान बस चेहरे पर ही थे, यहां तक कि गर्दन पर भी कोई खरोंच नहीं दिखाई दे रही थी।

क्या माजरा था?

मरने वाली पिंक कलर का गाऊन पहने थी, जिसमें से उसकी एक टांग जांघ तक बाहर झांक रही थी, क्योंकि वह मुड़ी हुई थी, जिसके कारण गाऊन का उस तरफ का हिस्सा काफी ऊपर तक उठ गया था। जबकि दूसरा पैर घुटने तक कंबल से ढका हुआ था।

“ये कंबल पहले से हटा था डॉक्टर साहब, या आपने हटाया?”

“मैंने हटाया था, तब जब कई बार आवाज लगाने के बाद भी इसने कोई रिस्पांस नहीं किया। उससे पहले तो मैं यही सोच रहा था कि गहरी नींद में सो रही थी।”

अलीशा कमरे में इधर उधर निगाहें दौड़ाने लगी। फिर खिड़की तक पहुंची जो बेड के सिरहाने की तरफ, उससे दो ढाई फीट की दूरी पर मौजूद दीवार में स्थित थी। उसमें चार पल्ले लगे थे, और सबकी सिटकनी चढ़ी हुई थी, फिर बाहर की तरफ स्टील की ग्रिल भी लगी थी, जिसके कारण कातिल के उधर से अंदर आया होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

बेड के दाईं तरफ दीवार के साथ सटाकर रखे एक स्टूल पर नाईटलैंप रखा था, जो उस वक्त बंद पड़ा था। उसके बगल में फर्श पर पानी की बोतल और कांच का एक गिलास मौजूद था। बोतल पूरी की पूरी भरी हुई दिख रही थी और गिलास भी लुढ़का नहीं पड़ा था।

इतनी बातों पर गौर करने के बाद वह दाईं तरफ को स्थित वॉल माउंटेड आलमारी तक पहुंची, जो बंद दिखाई दे रही थी। जींस की पिछली जेब से एक रुमाल निकालकर उसने हैंडल पर रखा और उसे नीचे की तरफ पुश करते हुए अपनी तरफ खींचा तो दरवाजा खुलता चला गया।

भीतर कपड़ों की भरमार थी, जिनमें से अधिकतर अव्यवस्थित ढंग से रखे हुए थे। इसके अलावा दूसरी कोई बात वह नोट नहीं कर पाई। सबसे आखिर में उसने कमरे के दरवाजे का मुआयना किया फिर भाटिया की तरफ देखकर बोली, “चलिए नीचे चलकर बात करते हैं।”

तत्पश्चात दोनों ड्राईंगरूम में आमने सामने बैठ गये।

“कुछ समझ में आया?”

“अभी नहीं, लेकिन तब जरूर आ जायेगा, जब आप बिना कुछ छिपाये सारी सच्चाई बयान कर देंगे, क्योंकि अभी तक तो यही लग रहा है कि ये किसी बाहरी आदमी का किया धरा नहीं हो सकता।”

“जानता हूं, तभी तो पुलिस को कॉल करने से पहले तुमसे सलाह मशविरा कर लेना जरूरी दिखाई देने लगा था मुझे।”

“हालांकि आपको सबसे पहले पुलिस को ही इंफॉर्म करना चाहिए था, मगर जब अभी तक नहीं किया तो थोड़ी देर और सही, उतने में कयामत थोड़े ही टूट पड़ेगी - कहकर उसने पूछा - क्या हुआ था डॉक्टर साहब?”

“कत्ल के बारे में मैं कुछ नहीं जानता।”

“चलिए ऐसा ही सही, बाकी बातों की जानकारी दीजिए। बीती रात साढ़े दस से थोड़ा पहले मैं यहां से निकल गयी थी, उसके बाद से शुरू कीजिए। कोई भी बात - चाहे वह कितनी भी मामूली क्यों न हो - छूटनी नहीं चाहिए।”

“तुम्हें लगता है कत्ल रात को किया गया होगा?”

“हां यही लगता है, अगर अंदाजे से कहूं तो कत्ल हुए कम से कम भी पांच छह घंटे गुजर चुके हैं। मगर आप डॉक्टर हैं, इसलिए मुझसे बेहतर नतीजे निकाल सकते हैं। बताईये आपके हिसाब से हत्या कब की गयी होगी?”

“अपने अंदाजे में दो घंटे और जोड़ दो।”

“यानि सात आठ घंटे पहले, इस हिसाब से देखें तो कत्ल का वक्त हुआ रात दो बजे के आस-पास का, जबकि घर में मौजूद मेहमान तो बहुत पहले ही लौट गये होंगे, है न?”

“हां ग्यारह बजे हॉल खाली हो गया था।”

“सिलसिलेवार ढंग से बताईये, प्लीज।”

“तुम्हारे जाने के तुरंत बाद कोमल ये कहकर बेडरूम में सोने के लिए चली गयी कि उसके सिर में दर्द हो रहा था। जाने से पहले उसने मेहमानों को सॉरी भी बोला था।”

“तब कितने लोग मौजूद थे यहां?”

“आठ दस तो रहे ही होंगे।”

“आठ या दस?”

“दस, लेकिन उसमें दो छोटे बच्चे थे।”

“यानि तब तक कोई पार्टी छोड़कर नहीं गया था?”

“नहीं गया था।”

“ओके बच्चों को भूलकर, बाकी सबके नाम नोट कराईये।”

“मर्दों के बताये देता हूँ।”

“जबकि पता तो आपको औरतों के नाम भी बखूबी होंगे डॉक्टर साहब। बल्कि मर्दों से ज्यादा उनको जानते होंगे। कल पार्टी में मैंने ये बात खास कर के नोट की थी कि आप हर वक्त किसी न किसी औरत के साथ चिपके रहे थे।”

“अरे मेहमानों का स्वागत करना पड़ता है, या नहीं?”

“स्वागत दूर दूर से किया जाता है, जबकि आप तो लगता था वहीं उन्हें धर दबोचना चाहते थे, और जिस तरह आप उनके साथ घुट घुटकर बातें कर रहे थे, उसे देखकर साफ समझ में आ रहा था कि उनसे बहुत अच्छे से वाकिफ हैं। इसलिए दाई से पेट छिपाना बंद कीजिए, क्योंकि आपकी स्थिति इस वक्त बहुत खराब है। इतनी खराब कि गिरफ्तार तक हो सकते हैं।”

“देखो ये सच है कि मैं औरतों के साथ ज्यादा घुल मिल रहा था, मगर उसका मतलब ये नहीं हो जाता कि उनके साथ मेरा कोई चक्कर भी था। फिर सबके साथ वैसा कुछ होना कैसे मुमकिन है?”

“मर्द अगर आप जैसा हैंडसम हो, और तबियत रंगीन हो डॉक्टर साहब तो सबकुछ मुमकिन हो सकता है। अब उन सबके नाम नोट कराईये, क्योंकि पुलिस को जितनी देर से मामले की खबर करेंगे, उतनी बड़ी प्रॉब्लम में फंस जायेंगे आप।”

“यानि खबर करनी पड़ेगी?” वह चेहरा लटकाकर बोला।

“और क्या नहीं करेंगे?”

“मैंने सोचा था तुम सब संभाल लोगी।”

“अच्छा, तो क्या चाहते हैं आप? आपकी बीवी की डेडबॉडी यहां से कंधे पर उठाकर ले जाऊं और कहीं दफना आऊं, किसी ऐसी जगह पर जहां से वह कभी बरामद न होने पाये?”

“चाहता तो मैं यही हूं।”

“मतलब खुद की बला मेरे सिर मढ़ना चाहते हैं?”

“कोई तो रास्ता होगा?”

“हां है न, एक काम कीजिए, मेरे जाने के बाद लाश के टुकड़े कर के कूकर में आठ दस सीटियां लगाईये, फिर थोड़ा थोड़ा कर के जंगल में फेंक आईये, नहर में बहा दीजिए। या एक डीप फ्रीजर खरीद लाईये और लाश के टुकड़े उसमें रख दीजिए, आगे उन्हें बड़े आराम से कहीं ठिकाने लगा सकते हैं, वैसे भी इस तरह के मामले ट्रेंड में हैं आजकल।”

“नहीं मेरे बस का नहीं है, हां तुम हैल्प करने को तैयार हो जाओ तो एक बार को सोच सकता हूं।”

अलीशा ने हैरानी से उसकी तरफ देखा।

“अकेले नहीं कर पाऊंगा, हिम्मत ही नहीं होगी।”

“जबकि आप डॉक्टर हैं, आये दिन इंसानी बॉडी की चीर फाड़ करते रहते होंगे?”

“वह मेरी बीवी थी अलीशा।”

“शुक्र है आपको याद तो आया।”

“मैं भूला ही कब था?”

“अगर नहीं भूले थे तो ऐसी बात क्यों कर रहे हैं जैसे बेडरूम में पड़ी लाश आपकी बीवी की न होकर किसी दूसरी औरत की हो?”

“तुम उसे पहचानता होने के बावजूद ऐसा कह रही हो?”

“नहीं आपकी बातें सुनकर कह रही हूं, जरा सा भी गम नहीं दिखता आपके चेहरे पर कोमल की मौत का, जबकि दुनियादारी दिखाने को ही सही, पड़ोसी भी मातमी सूरत बना लिया करते हैं।”

“मैं शॉक में हूं इसलिए नहीं दिख रहा।”

“चलिए वही सही, अब नाम बताईये सबका।”

“अमन सिंह और उसकी बीवी मीनाक्षी, जिसे प्यार से सब मीनू बुलाते हैं। दूसरा अभिराज त्रिपाठी और उसकी वाईफ मुक्ता, तीसरा...

“मुक्ता को प्यार से नहीं बुलाता कोई?”

...तीसरा राशिद शेख और उसकी बेगम नूरजहां - डॉक्टर उसके व्यंग्य को नजरअंदाज कर के बोला - चौथा सूरज चौधरी और उसकी बीवी सुकन्या। दोनों बच्चों के नाम तो मुझे इस वक़्त याद नहीं आ रहे, लेकिन इतना मालूम है कि उनमें से एक त्रिपाठी की बेटी थी, जबकि दूसरा अमन सिंह का बेटा था।”

“चारों का एड्रेस भी बताईये।”

डॉक्टर ने बताया, जिसे हाथ के हाथ अलीशा ने अपने मोबाईल में ही नोट कर लिया।

“चारों आपके दोस्त हैं?”

“हां हैं, लेकिन पेशेंट पहले बने फ्रैंड बाद में। तुम जानती हो कि मुझे इस इलाके में रहते ज्यादा वक्त नहीं गुजरा है। इसलिए दोस्तों के नाम पर बस वही चारों हैं।”

“साथ में उनकी बीवियां भी।”

सुनकर भाटिया ने बड़े ही आहत भाव से अलीशा की तरफ देखा।

“ये भी गौर करने वाली बात है डॉक्टर साहब कि चारों औरतें खूबसूरत थीं, नौजवान थीं, और खासा मॉर्डन भी दिखती थीं। खासतौर से नूरजहाँ को देखकर तो लगता ही नहीं था कि वह शादीशुदा है।”

“तुम्हें क्या पता कि चारों में से नूरी कौन थी?”

“नूरी! ओह ओह।”

“ज्यादा ओह ओह करने की जरूरत नहीं है, उसका पति उसे इसी नाम से बुलाता है। अब बताओ तुम्हें कैसे पता कि उनमें से नूरी कौन थी? जबकि उसका पहनावा और मेकअप भी दूसरों जैसा ही था।”

“इसलिए पता है क्योंकि वह बुर्का पहनकर यहां पहुंची थी, जिसे उतार दिया तो जींस और टॉप वाली हो गयी। अब बाकी सब क्योंकि हिंदू थे तो जाहिर है उनकी बीवियां बुर्के में तो नहीं ही आई होंगी। और सौ बातों की एक बात ये कि सूरत देखकर मैं अगर हिंदू और मुस्लिम महिला में फर्क भी न कर सकूं तो डिटेक्टिव क्या खाक हुई। इसलिए मुझे पता है कि उन चारों अप्सराओं में से नूरजहां नाम की अप्सरा कौन थी?”

“ओह।”

“अब आगे बताईये।”

“ग्यारह बजे सब लोग वापिस लौट गये, फिर मैं भी हॉल का दरवाजा बंद कर के बेडरूम में सोने के लिए चला गया। और आज सुबह नौ बजे के करीब जब सोकर उठा तो कोमल की लाश देखकर एकदम से घबरा गया। उसके बाद मैं काफी देर तक सोच विचार करता रहा, जिसके बाद तुम्हें फोन करने का ख्याल आ गया।”

“रात को जब आप बेडरूम में पहुंचे थे तो उस वक्त कोमल जग रही थी, या सो चुकी थी?”

“मेरे ख्याल से तो सो गयी थी। वैसे मैंने बस एक बार उसका नाम पुकारा था जिसका जवाब नहीं मिला तो दोबारा आवाज ये सोचकर नहीं लगाई कि सिर में दर्द बता रही थी, ऐसे में उसकी नींद में खलल डालना ठीक नहीं था।”

“भीतर पहुंचकर कमरे की बत्ती जलाई थी?”

“नहीं।”

“किसी दूसरे जरिये से प्रकाश रहा हो वहां?”

“नहीं, लेकिन भीतर दाखिल होकर कुछ सेकेंड्स के लिए मैंने मोबाईल का टॉर्च जरूर जलाया था, उसके बाद रोशनी बंद कर के बिस्तर पर लेट गया। आगे नींद आते ज्यादा देर नहीं लगी।”

“और सोकर उठे तो उसे मरा पाया?”

“हां।”

“दरवाजा खुला छोड़कर सोये थे आप?”

“नहीं अंदर से चिटखनी चढ़ा दी थी।”

“जो सुबह लाश देख चुकने के बाद आपको खुली मिली थी?”

“नहीं।”

“नहीं?”

“चिटखनी बदस्तूर बंद थी अलीशा, तभी तो ये सोचकर मेरा सिर चकराये जा रहा है कि कातिल भीतर बाहर करने में कामयाब कैसे हो गया।”

“एक नौकरानी काम करती है यहां, दिखाई क्यों नहीं दे रही?”

“आज छुट्टी पर है।”

“जो आपने लाश देख चुकने के बाद उसे दे दी, है न?”

“नहीं, उसने दो दिन पहले ही बता दिया था कि मकर सक्रांति वाले दिन काम पर नहीं आ पायेगी, क्योंकि अपने हस्बैंड के साथ गंगा स्नान के लिए गढ़ मुक्तेश्वर जा रही थी।”

“बाद में पूछे जाने पर वह भी यही कहेगी न डॉक्टर?”

“और क्या झूठ बोल देगी?”

“सिखाई पढ़ाई बात हो तो बोल भी सकती है।”

“नहीं, आज मेरी उससे कोई बात नहीं हुई है।”

“आपके माता पिता घर में नहीं हैं, कल पार्टी में भी नहीं दिखाई दिये थे, जबकि कुछ दिनों पहले आपने बताया था कि वह दोनों आपके साथ ही रहते हैं।”

“मां बाप घर में नहीं थे तभी तो मैरिज एनिवर्सरी पर पार्टी करना सूझ गया मुझे, वरना तो दोनों को ऐसी बातों से सख्त चिढ़ है। खासतौर से ड्रिंक से।”

“कहां गये हैं?”

“गांव।”

“कब गये?”

“एक सप्ताह पहले, बीस तारीख को वापिस लौटेंगे।”

“मौका बढ़िया चुना था बीवी को ठिकाने लगाने के लिए, मां बाप गांव में, नौकरानी छुट्टी पर, बाहर एक गार्ड है भी तो उसे भला क्या खबर लगने दी होगी आपने।”

“मैंने कोमल का कत्ल नहीं किया।”

“दरवाजा भीतर से बंद होने, और आपके उसी बेड पर सोया होने की स्थिति में कोई आपके कहे पर यकीन नहीं करने वाला, पुलिस तो हरगिज भी नहीं।”

“तुम तो यकीन करो।”

“डोंट वरी, मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कत्ल आपने किया, या काले चोर ने। अब दो टूक बताईये कि मुझसे क्या चाहते हैं? हां इतना अभी कहे देती हूं कि लाश गायब नहीं की जा सकती। यानि पुलिस को आपने हर हाल में इत्तिला करनी ही पड़ेगी। आप अपने बूते पर भी उसे शिफ्ट नहीं कर सकते, करेंगे तो बुरे फंसेंगे। मरने वाली आपकी बीवी थी डॉक्टर साहब, जिसकी मौत को ज्यादा दिनों तक राज नहीं रखा जा सकता।”

“मेरा वैसा कोई इरादा भी नहीं है, हालात से डरकर पीठ दिखाने वालों में से नहीं हूं मैं।”

“दैट्स गुड।”

“असल गुड तो तब होगा अलीशा, जब तुम वक्त रहते पता लगा सको कि कोमल को किसने मारा और क्यों मारा?”

“अगर आपने नहीं मारा तो यकीनन पता लगा लूंगी, लेकिन मारा है तो खामख्वाह मेरी फीस पर अपने पैसे जाया करने का आपको कोई फायदा नहीं पहुंचेगा। मतलब आप चाहें तो मैं अभी यहां से उठकर जा सकती हूं, यूं जैसे कभी आई ही नहीं थी। बाकी का मामला पुलिस भी बखूबी हैंडल कर सकती है, मुझसे कहीं ज्यादा बेहतर ढंग से कर सकती है।”

“तुम सिर्फ इतना बताओ कि चार्ज क्या करोगी?”

“मेरे ख्याल से तीन लाख काफी होंगे।”

“काफी से बहुत ज्यादा हैं, जबकि तुम्हें मेरा लिहाज करना चाहिए, आखिर रेग्युलर क्लाइंट हूं तुम्हारा।”

“हां रेग्युलर क्लाइंट तो आप बराबर हैं डॉक्टर, ऐसा क्लाइंट जो पिछले डेढ़ महीनों के वक्फे में दो बड़े झमेलों में गिरफ्तार होने से बस बाल बाल बचा था, हैरानी है आपने फिर भी कोई प्रीकॉशन नहीं लिया।”

“यार तुम अपने हर क्लाइंट से ऐसे ही पेश आती हो - डॉक्टर झुंझलाता हुआ बोला - या खास मेरे साथ आ रही हो?”

“आपके साथ ही आ रही हूं डॉक्टर साहब, इसलिए क्योंकि आप खास हैं। ठीक है ढाई लाख में डन कीजिए और एक लाख एडवांस थमाईये, ताकि मैं फौरन काम शुरू कर सकूं।”

“चेक दूंगा।”

“मैं अपना मेहनताना चेक में ही लेना पसंद करती हूं।”

“ठीक है, वेट करो मैं अभी आता हूं।” कहकर वह स्टडी में गया और थोड़ी देर बाद एक लाख रूपये का चेक बना लाया।

“थैंक यू - अलीशा उसके हाथों से चेक लेती हुई बोली - अब ये बताईये कि कत्ल अगर आपने नहीं किया तो किसने किया? या ये कि किसने किया हो सकता है?”

“सवाल मुश्किल है लेकिन एक जवाब फिर भी सूझ रहा है मुझे।”

“ये तो बहुत अच्छी बात है।”

“कोमल की लाश देखने के बाद से ही मेरा ध्यान बार बार विधायक चरण सिंह की तरफ जा रहा है। कत्ल उसने खुद भले ही न किया हो, लेकिन कराया बराबर हो सकता है।”

“इलाके के एमएलए ने आपकी बीवी को खत्म करवा दिया - अलीशा बुरी तरह हैरान होती हुई बोली - क्यों? भला कोमल के साथ उसकी क्या दुश्मनी रही हो सकती है?”

“दुश्मनी मेरे साथ थी, जिसका बदला उसने मेरी बीवी को खत्म कर के लिया, या यूं कह लो कि मुझपर अपना रौब गालिब करने के लिए उसने कोमल का कत्ल करवा दिया हो सकता है।”

“अरे कोई वजह भी तो रही होगी?”

“हां है।”

“क्या?”

“कुछ दिनों पहले उसके चार आदमियों के साथ मेरी अनबन हो गयी थी। फिर किसी ओमकार सिंह नाम के आदमी से मेरी बात कराई गयी जिसने फोन पर धमकी दी कि ‘तालाब में रहकर मगर से बैर पालने की हिमाकत की है मैंने, तो अब उसकी सजा भुगतने को भी तैयार रहूं’, जिसके बाद गुस्से में आकर मैंने पुलिस बुला ली।”

“और हिमाकत क्या थी?”

“पता नहीं तुम्हें खबर है या नहीं, लेकिन सच यही है कि विधायक चरण सिंह ने गुंडों की एक बड़ी फौज पाल रखी है, जिनके जरिये वह अपने काले कारनामों को अंजाम देता है।”

“ये कोई नई बात नहीं है। नेतागिरी, खास कर के एमएलए स्तर की नेतागिरी दबंगई के बूते पर ही आगे बढ़ती है, और उसके लिए गुंडे पालने भी जरूरी होते हैं, वरना दबदबा कैसे स्थापित होगा? कोई विधायक खुद थोड़े ही किसी से लड़ने झगड़ने या उसपर लठ बरसाने पहुंच जायेगा।”

“ऐसी फौज अलीशा जो उसके विधान सभा क्षेत्र में कारोबार करने वाले लोगों से प्रोटक्शन मनी के नाम पर दबंगई वसूलती है, वह भी हजारों की बजाये लाखों में।”

“आप मजाक कर रहे हैं?”

“नहीं, यकीन न आ रहा हो तो इलाके में थोड़ा फुट वर्क कर के देखो। तब तुम्हें पता लगेगा कि कहीं अवैध ढंग से पॉर्किंग वसूल की जा रही है, तो कहीं रेहड़ी पटरी वालों से हफ्ता लिया जा रहा है। मगर वह सब छोटे स्तर की वसूली है। बड़ी रकम वह मुझे जैसे बिजनेसमैन से वसूलते हैं। बारह लाख सलाना, यानि हर महीने एक लाख रूपये की मांग कर रहे थे। सुनकर मुझे बड़ी हैरानी हुई, और जब मैंने उनकी बात मानने से साफ इंकार कर दिया तो उसके भेजे चारों गुंडे पसरने लगे, तरह तरह की धमकियां देने लगे। एक तो यहां तक कह बैठा कि ‘जिंदगी बची रहेगी डॉक्टर साहब तो पैसा बहुत कमाओगे, इसलिए हम जो कह रहे हैं कर के दिखाओ।’ तब गुस्से में आकर मैंने पुलिस को फोन कर दिया, ये सोचकर कि मामूली गुंडे थे जो पुलिस का नाम सुनकर वहां से खिसक लेंगे, मगर वैसा नहीं हुआ। वह चारों के चारों आराम से मेरे केबिन में बैठे पुलिस का इंतजार करते रहे।”

“पुलिस पहुंची?”

“हां पहुंची।”

“फिर तो गिरफ्तारी भी हुई होगी?”

“हुई, मगर बस दिखावे को, मेरी कॉल पर जो सब इंस्पेक्टर दो सिपाहियों के साथ वहां पहुंचा था, चारों उसे बहुत अच्छे से जानते थे। उनके बीच दुआ सलाम हुई, फिर वह उन्हें अपने साथ लेकर मेरे नर्सिंग होम से चला गया। बाद में पता लगा कि उन लोगों को थाने ले जाने की बजाये, रास्ते में ही आजाद कर दिया गया था। मैंने आईओ से बात की तो कहने लगा चारों शरीफ लोग थे, जिनपर मैं खामख्वाह के इल्जाम लगा रहा था। या फिर मैंने उनके कहे का कुछ और मतलब निकाल लिया था। मतलब मैं गायब ख्याल था, झूठा था।”

“आपने एफआईआर दर्ज नहीं कराई?”

“की ही नहीं गयी, थाने से मुझे बैरंग लौटा दिया गया, ये कहकर कि मेरे पास अगर उनसे बातचीत की कोई रिकॉर्डिंग वगैरह हो तो पेश करूं वरना सिर्फ मेरे कहने भर से उनके खिलाफ वसूली का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता। इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि वह विधायक चरण सिंह के आदमी थे।”

“कमाल है, आप किसी बड़े अफसर से क्यों नहीं मिले जाकर?”

“वैसा कुछ करने की बजाये मैंने इंतजार करने का फैसला किया, ये देखने के लिए कि वे लोग दोबारा वसूली के लिए पहुंचते हैं या नहीं, अगर पहुंच गये होते तो मैंने कुछ न कुछ तो जरूर कर के रहना था।”

“आपको पक्का पता है कि वसूली करने वाले एमएलए के ही आदमी थे? मेरा मतलब है कहीं उन्होंने महज आपको धमकाने के लिए तो विधायक का नाम नहीं उछाल दिया था।”

“उसी के आदमी थे, नहीं होते तो पुलिस ने यूं आसानी से छोड़ नहीं दिया होता उन्हें। मत भूलो कि मैं कोई ऐरा गैरा आदमी नहीं हूं जिसकी कंप्लेन को वे लोग इतनी आसानी से नजरअंदाज कर जाते।”

“उनके आजाद होने की वजह रिश्वत भी तो रही हो सकती है।”

“ओमकार सिंह नाम के जिस आदमी ने मुझे फोन पर ‘मगर से बैर’ वाली धमकी दी थी, उससे बात कराने से पहले मुझसे कहा गया था कि ‘लो डॉक्टर ओमकार भाई से बात करो, नेता जी का सारा कामकाज वही देखते हैं’ बाद में मैंने पता किया तो सहज ही मालूम पड़ गया कि ओमकार सिंह एमएलए का राईट हैंड है।”

“आप इस बात की गारंटी भी कैसे कर सकते हैं कि फोन पर दूसरी तरफ ओमकार सिंह ही मौजूद था। आप उसकी आवाज थोड़े ही पहचानते थे। यानि जिससे भी आपकी बात कराई गयी आपने उसे ओमकार तसलीम कर लिया।”

“लगता है वाकिफ हो उससे?”

“नाम जानती हूं, ये भी पता है कि वह नेता का खास है।”

“फोन पर चाहे ओमकार रहा हो या न रहा हो अलीशा लेकिन ये बात मैं गारंटी के साथ कह सकता हूं कि मेरे नर्सिंग होम में पहुंचे गुंडे नेता के ही आदमी थे।”

“कैसे कह सकते हैं?”

“जब मैं एफआईआर दर्ज कराने में नाकाम होकर थाने से निकल रहा था, तो एक सिपाही ने मुझे रोककर सलाह दी थी कि मेरे जैसे शरीफ और इज्जतदार आदमी को विधायक जी से पंगा नहीं लेना चाहिए, वरना उसके आदमियों का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, लेकिन मेरा सबकुछ बर्बाद हो जायेगा। वह बात भी साबित करती है कि वसूली के लिए विधायक के आदमी ही पहुंचे थे मेरे पास। खैर उसके बाद मैंने चरण सिंह के बारे में पता लगाना शुरू किया तो...

“किससे पता लगाया?”

...अपने नर्सिंग होम के स्टॉफ से पूछा, कुछ लोकल लोगों से बात की। हर किसी ने उसे गुंडा बताया, भू माफिया बताया, ये भी कि इलाके में जितनी भी इललीगल एक्टीविटीज होती हैं, सबके पीछे उसी का हाथ होता है। और तो और लास्ट इलैक्शन में उसने अपना एक कॉम्पिटीटर भी मार गिराया था, जिसके बाद कुछ रोज मीडिया में उसके नाम के चर्चे होते रहे, फिर पता नहीं क्या हुआ कि उस बारे में न्यूज आनी ही बंद हो गयी।”

“एनी वे चरण सिंह चाहे जैसा भी आदमी हो, भले ही उसके आदमियों ने आपसे बारह लाख रूपये ऐंठने की कोशिश की हो। मगर सवाल ये है डॉक्टर साहब कि उसके गुंडे आपके घर तक कैसे पहुंच गये? गेट पर एक गार्ड होता है, और मकान इतना बड़ा भी नहीं है कि गार्ड की निगाहों में आये बिना कोई बाउंड्री लांघकर भीतर दाखिल हो जाये, फिर भी किसी तरह हो गया था, तो वह भीतर से बंद आपके बेडरूम में दाखिल होकर, कोमल का कत्ल करने के बाद, फिर से दरवाजे को अंदर से चिटखनी चढ़ाने में क्योंकर कामयाब हो गया? दूसरा सवाल ये कि वैसे किसी आवागमन की आपको खबर क्यों नहीं लगी?”

“तुम्हारे दूसरे सवाल का जवाब ये है कि मैं नशे में था और बिस्तर पर लेटते के साथ ही गहरी नींद सो रहा था। हो सकता है हत्यारे ने छुरा चलाने से पहले कसकर उसका मुंह दबा लिया हो, जिसके कारण वह चींख नहीं पाई, और ऐन उसी वजह से मुझे कत्ल की कोई खबर नहीं लगी। बाकी कातिल बंद कमरे में कैसे दाखिल हुआ, वो मैं नहीं जानता।”

“छुरे को ध्यान से देखा था आपने?”

“हां देखा था।”

“जाना पहचाना नहीं लगा?”

“लगा, वैसा एक छुरा मेरे किचन में भी मौजूद था, जो अब नहीं है, ये बात मैं पहले ही चेक कर चुका हूं।”

“मीट काटने वाला छुरा?”

“उतना बड़ा नहीं था।”

“फिर कितना बड़ा था?”

“लगभग छह इंच के फल वाला, जिसका खुरदरा दस्ता प्लॉस्टिक का बना हुआ था। ठीक वैसा जैसा कि तुम ऊपर कोमल की लाश में घुसा हुआ देखकर आई हो। बल्कि मेरा दिल कह रहा है कि हत्यारे ने उसे मेरे किचन से ही उठाया होगा।”

“मुझे तो वह खूब बड़ा लगा था डॉक्टर साहब, मीट काटने वाले छुरे के साईज का।”

“अगर ऐसा है तो वह मेरे किचन का हरगिज भी नहीं हो सकता। हम लोग प्योर वेजिटेरियन हैं, इसलिए मीट काटने वाले छुरे का हमारे घर में कोई काम नहीं है।”

“मैंने कहीं पढ़ा था कि वेजिटेरियन लोगों को जिस्मानी भूख कम सताया करती है, नॉन वेजिटेरियंस के मुकाबले। तो क्या आपको उसका अपवाद मान लिया जाये?”

डॉक्टर ने उसे कड़ी निगाहों से घूरा।

“कोई फायदा नहीं, मैं यूं जलकर भस्म होने वालों में होती तो अब तक हजार बार जलकर खाक हो गयी होती। और ना ही आपकी निगाहों में वैसी कोई स्पेशल पॉवर हो सकती है, इसलिए अपनी बड़ी बड़ी सजीली आंखों को कष्ट देना बंद कीजिए।”

“बात ही ऐसी करती हो कि गुस्सा आ जाता है। और कुछ नहीं तो कम से कम इसी का कुछ ख्याल कर लो कि ऊपर कोमल की लाश पड़ी है।”

“जब आपको ही उसकी मौत का कोई गम नहीं है, तो मैं भला मातम क्यों मनाने लगी?”

“कौन कहता है कि मुझे कोमल की मौत का गम नहीं है?”

“दिखाई तो यही दे रहा है।”

“अगर ऐसा है तो जाकर अपनी आंखों का इलाज कराओ।”

“मैं सोचूंगी।”

“अच्छा करोगी।” वह भुनभुनाता हुआ बोला।

“अब आप पुलिस को फोन कर के घटना की जानकारी दीजिए, और उनके यहां पहुंचने पर बताईयेगा कि आप दस बजे सोकर उठे थे, उठते के साथ ही लाश पर आपकी निगाह पड़ गयी, जिसके कारण थोड़ी देर के लिए आप शॉक जैसी स्थिति में पहुंच गये, और जब कुछ सोचने समझने के काबिल हुए तो पुलिस को फोन कर दिया। मतलब आपने अपने बयान में बस इतनी हेर फेर करनी है कि नौ बजे की बजाये दस बजे सोकर उठे थे, बाकी बातें पुलिस को ज्यों की त्यों बता देनी हैं।”

“तुम्हारे आगमन की बात नहीं बतानी है?”

“जरूर बतानी है, क्योंकि गार्ड की वजह से वह छिपी नहीं रहने वाली, मगर ध्यान रहे कि मुझे आपने पुलिस को इत्तिला करने के बाद कॉल किया था, ना कि पहले।”

“वो लोग चेक भी तो कर सकते हैं।”

“जब करेंगे तब देखी जायेगी, वैसे हो सकता है उस बात का कोई जिक्र ही न उठे, इसलिए अभी से उसपर दिमाग खपाना बेकार होगा।”

“वे लोग मुझे पकड़कर हवालात में तो नहीं डाल देंगे?”

“डाल सकते हैं, लेकिन फौरन वैसा नहीं करेंगे, क्योंकि आप हैसियतमंद आदमी हैं। ऐसे में सबसे पहले पुलिस इस बात का पता लगाने की कोशिश करेगी कि कहीं आप मियां बीवी के बीच कोई अनबन तो नहीं थी, अगर निकल आयी तो आपकी गिरफ्तारी होकर रहेगी - कहकर उसने पूछा - क्या कोई अनबन चल रही थी डॉक्टर साहब?”

“थोड़ी बहुत कहासुनी तो रोज ही हो जाती थी, मगर बड़ी अनबन जैसी कोई बात नहीं थी। मतलब ऐसा कुछ नहीं था जिसकी खबर दूसरों के कानों तक पहुंच गयी हो।”

“ठीक है फोन कीजिए।”

“सच में कोई हेर फेर नहीं करनी? जैसे कि मैं कह दूं कि रात को बेडरूम का दरवाजा बंद करना भूल गया था, क्योंकि नशे में था। उस स्थिति में पुलिस का पूरा शक मेरी तरफ नहीं जायेगा।”

“कत्ल आपने किया है?”

“नहीं।”

“आप मेरी राय के मुताबिक चलना चाहते हैं?”

“हां।”

“तो फिर सच बोलिये, क्योंकि उससे ज्यादा अपना इस दुनिया में कोई नहीं होता। सच सच होता है जिसे झूठा साबित करने में लोगों के पसीने छूट जाते हैं। आपका भी अला भला उसी में छिपा हुआ है, समझ में आई मेरी बात?”

“मैं तो ये सोचकर कह रहा हूं कि दरवाजा अंदर से बंद होने की बात पुलिस को बताई, तो वे लोग कूद कर इस नतीजे पर पहुंच जायेंगे कि कत्ल मैंने ही किया था। क्योंकि बेडरूम में दाखिल होने का दूसरा कोई रास्ता नहीं है।”

“है, बस आपको दिखाई नहीं दे रहा।”

“क्या कह रही हो?”

“फोन लगाईए डॉक्टर साहब, पहले ही बहुत देर हो चुकी है।”

“ठीक है, लगाता हूं।” कहकर उसने बड़े ही बेमन भाव से सेंटर टेबल पर रखा अपना मोबाईल उठाया और 100 नंबर डॉयल करने के बाद कॉल कनैक्ट होने का इंतजार करने लगा।

“गुड मॉर्निंग दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम, बताईये मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूं?”

“सॉरी मैम - डॉक्टर हकबकाया सा बोला - मैंने तो फरीदाबाद से 100 नंबर डॉयल किया है, कॉल दिल्ली पुलिस के पास कैसे पहुंच गयी?”

“आपका नंबर दिल्ली का होगा सर इसलिए पहुंच गयी। अब कॉल डिस्कनैक्ट कर के लोकल एसटीडी कोड के साथ 100 डॉयल कीजिए फिर आपकी बात फरीदाबाद पुलिस से हो जायेगी।”

“ठीक है थैंक यू।” कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट की फिर 100 की बजाये 0129100 डॉयल कर दिया। तत्काल रिंग जाने लगी और क्षण भर बाद दूसरी तरफ से कॉल अटैंड कर ली गयी।

सब इंस्पेक्टर जयंत शुक्ला उस वक्त थाना इंचार्ज मंजीत सिंह के कमरे में उसके सामने बैठा चाय पी रहा था, जब एक सिपाही ने आकर कंट्रोल रूम की कॉल के बारे में बताया, फिर कंप्लेनर का पता लिखा एक कागज एसओ के सामने मेज पर रखकर वापिस लौट गया।

“लो हो गयी बोहनी - मंजीत सिंह थोड़ा हंसकर बोला - सर्दी के मौसम में भी चैन नहीं है कमीनों को, और एक हम हैं कि मजबूरी न हो तो थाने से बाहर कदम भी न रखें।”

“क्या पता कत्ल करना भी अपराधी की मजबूरी ही रही हो सर। उसने जो किया वह उसकी जरूरत थी या मजे के लिए कर बैठा, अभी उस बारे में कैसे कहा जा सकता है।”

“मजे के लिए सर्दी में बाहर कौन जाता है यार? अभी तुम इंवेस्टिगेशन के लिए निकलोगे तो क्या उसमें किसी आनंद की अनुभूति होगी तुम्हें? जाहिर है ड्यूटी की मजबूरी वहां खींच ले जायेगी।”

“यानि जाना मुझे ही पड़ेगा?”

“और है ही कौन इस वक्त थाने में, मेरा मतलब है ऑफिसर कोई नहीं है, और कत्ल की इंवेस्टिगेशन के लिए मैं किसी सिपाही या हवलदार को तो भेजने से रहा। पता लगा किया धरा कुछ नहीं, उल्टा क्राईम सीन का बेड़ा गर्क कर आये सो अलग।”

“ठीक है जाता हूं।” वह उठ खड़ा हुआ।

“अरे चाय खत्म कर के जा यार, लाश क्या कहीं भागी जा रही है?”

“क्या पता लगता है सर, वैसे भी लोग बाग आजकल बहुत सयाने हो गये हैं, पुलिस दस पंद्रह मिनट में ना पहुंच जाये तो दोबारा 100 नंबर डॉयल कर देते हैं।”

“इतनी परवाह मत किया कर, चाय खत्म कर के जा।”

सुनकर शुक्ला वापिस बैठ गया।

“ये डॉक्टर लवलेश भाटिया का नाम कुछ सुना सुना सा लग रहा है।”

“क्या पता भाटिया नर्सिंग होम का ऑनर हो?”

“एग्जैक्टली - एसओ ने चुटकी बजाई - उसी का नाम लवलेश भाटिया है।”

“जानते हैं उसे?”

“मिल चुका हूं।”

“किस सिलसिले में?”

“कुछ दिनों पहले नेता जी के आदमियों की कंप्लेन की थी उसने। कहता था वे लोग उससे प्रोटेक्शन मनी मांग रहे थे, जिसे ना देने की सूरत में जान से खत्म करने की धमकी दी गयी थी।”

“कोई गिरफ्तारी हुई?”

“कहां हुई यार, एसआई अनूप दलाल गया था मौके पर, चार लोगों को हिरासत में भी ले लिया, तभी उसके पास ओमकार सिंह का फोन पहुंच गया, जिसके बाद उसने मुझसे सवाल किया कि क्या करना है? और मेरा जवाब क्या रहा होगा, तुम जानते ही हो। इसलिए भी क्योंकि डीसीपी साहब का स्पष्ट आदेश है कि विधायक जी के किसी भी आदमी को हिरासत में ना लिया जाये, और कभी वैसा करने की मजबूरी आन ही पड़े तो पहले हम उन्हें इत्तिला करें।”

“आपने इत्तिला किया?”

“नहीं, क्योंकि उनका जवाब मुझे पहले से पता था, मैं फोन करता तो कोई बड़ी बात नहीं होती कि चार बातें मुझे ही सुना देते। इसलिए मैं अपनी इज्जत बचा गया।”

“मतलब दलाल को उन्हें छोड़ देने का हुक्म दे दिया?”

“हां छोड़ना पड़ा था।”

“हम लोग कितने मजबूर हैं सर, नहीं?”

“वो तो बराबर हैं, अपने अफसरों के साथ साथ ऐसे लोगों की भी चाकरी करनी पड़ती है, जिनकी औकात हमारे सामने बैठकर बात करने लायक भी न हो। और वैसा सिर्फ हमीं थोड़े ही करते हैं, एसीपी, डीसीपी साहब भी तो गाहे बगाहे विधायक जी की हाजिरी भरते रहते हैं। ऐसे इंसान से हम भला कैसे पंगा ले सकते हैं, और सौ बातों की एक बात ये कि नेता जी से पंगा लेने की औकात हमारी नहीं है।”

“यानि उस मामले में कोई रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की गयी थी?”

“ना, वह तो हाथ के हाथ रफा दफा हो गया था, रिपोर्ट दर्ज करनी होती तो गिरफ्तार किये गये लोगों को छोड़ क्यों देते? हां इस बात का यकीन जरूर दिलाया था ओमकार सिंह ने कि दोबारा डॉक्टर की तरफ से कोई कंप्लेन हमें सुनने को नहीं मिलेगी।”

“मतलब उससे वसूली का विचार त्याग दिया गया?”

“नहीं यार, वैसा करेंगे तो उनकी साख नहीं डूब जायेगी? एक भाटिया को नजरअंदाज करने का मतलब है कल को दस पैदा हो जायेंगे, बीस हो जायेंगे, मतलब धंधा ठप्प, कैसे विधायक जी वैसा होने दे सकते हैं?”

“और किस तरह ओमकार गारंटी कर सकता था कि कल को डॉक्टर फिर से उनकी कंप्लेन नहीं करेगा?”

“होगा कोई रास्ता उसके जेहन में, वे लोग या तो डॉक्टर को ढंग से धमकाने की सोचे बैठे होंगे, या फिर उसे निबटा देंगे, जिससे बाकी के कारोबारियों को सबक मिलेगा और कल को उनमें से कोई दूसरा डॉक्टर भाटिया बनने की हिमाकत नहीं कर पायेगा।”

“हैरानी की बात है न सर, कि एक एमएलए जिसके पास अकूत संपत्ति है, वह गुंडे मवालियों जैसे काम करता है, करवाता है। समझ में नहीं आता कोई इतनी दौलत बटोरकर क्या करेगा?”

“बात सिर्फ दौलत की नहीं है मेरे भाई, दबदबे की भी है, जो एमएलए साहब अपने इलाके में हमेशा से कायम रखे हुए हैं। और वह काम लठ के जोर पर ही किया जा सकता है।”

“कहीं डॉक्टर की वाईफ को नेता जी ने ही तो ठिकाने नहीं लगवा दिया, उसे चेतावनी देने के लिए?”

“ऊपर वाले से दुआ करो कि तुम्हारा अंदेशा गलत साबित हो जाये, वरना तो कर चुके केस सॉल्व। मतलब एमएलए साहब से किसी पूछताछ की हिम्मत हम कर नहीं पायेंगे, और उसके बिना मामले का कोई ओर छोर समझ में नहीं आयेगा। बल्कि उनकी मर्जी के बिना उनके आदमियों को भी कहां इंटेरोगेट कर सकते हैं।”

“ठीक है सर - चाय का कप खाली करता हुआ वह बोला - मैं जाकर देखता हूं कि क्या माजरा है।”

तत्पश्चात वह कमरे से बाहर निकला और ड्यूटीरूम में अपनी तथा वहां मौजूद दो अन्य सिपाहियों की रवानगी रोजनामचा रजिस्टर में दर्ज करवाकर घटनास्थल के लिए रवाना हो गया।

अशोका इंक्लेव थाने से एक किलोमीटर की दूरी पर था, इसलिए पांच मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगा, पांच भी इसलिए क्योंकि उधर पहुंचकर एड्रेस तलाशने में थोड़ा वक्त लग गया।

घर के सामने पहुंचकर सिपाही ने जीप रोकी फिर तीनों नीचे उतर आये। गेट पर खड़े गार्ड ने शुक्ला को ठोंककर सेल्यूट किया और तनकर खड़ा हो गया।

“नाम क्या है तुम्हारा?”

“जी मोहित साहा।”

“रहने वाले कहां के हो?”

“आसाम का सर।”

“उधर नौकरी नहीं मिली, जो इतनी दूर आ गये?”

“इधर पैसे ज्यादा मिलते हैं सर।”

“भई कमरे का किराया और खाने पीने का खर्चा भी तो वहां की अपेक्षा ज्यादा ही होता होगा।”

“साले के घर में रहता हूं सर, इसलिए किराया नहीं देना पड़ता, और खाना पीना भी साथ में ही है इसलिए सस्ते में निबट जाता है, मतलब तनख्वाह का बड़ा हिस्सा बचाने में कामयाब हो जाता हूं। फिर यहां से पहले एक होटल में पोस्टेड था जहां खाना पीना भी मुफ्त में हो जाता था। इसलिए नौकरी मजे में चल रही है।”

“चलो बढ़िया है, इंसान को संतुष्टि होनी चाहिए, जो अगर ना हो तो लाखों रुपये भी कम पड़ जायें - कहकर उसने सवाल किया - ये बताओ कि अंदर जो घटित हुआ है वह कब हुआ था?”

“मैं समझा नहीं सर?”

“मैं कोमल भाटिया के कत्ल के बारे में पूछ रहा हूं।”

“कोमल मैडम का कत्ल हो गया?” गार्ड की आंखें जैसे फट सी पड़ीं।

“तुम्हें नहीं पता?”

“नहीं सर।”

“कमाल है, कैसे गार्ड हो भाई?”

“क्या पता रात में हुआ हो सर - वह अभी भी बौखलाया हुआ था - मेरी दिन की ड्यूटी है, सुबह आठ बजे पहुंचा था। डॉक्टर साहब भी अभी तक बाहर नहीं निकले हैं, इसलिए नहीं जानता कि अंदर क्या हो गया है।”

“ठीक है तुम दरवाजा खोलो, बाकी बातें हम खुद पता लगा लेंगे।”

“साहब को इंफॉर्म करना पड़ेगा सर।”

“करो।”

जवाब में उसने मोबाईल पर भाटिया से बात की फिर इजाजत मिलने के बाद दरवाजा खोल दिया।

सिपाहियों के साथ चलते हुए शुक्ला ने कंपाउंड में कदम रखा, जो चौड़ाई में घर के एक छोर से दूसरे छोर तक फैला था, जबकि गहराई बीस फीट से ज्यादा नहीं थी।

तीनों ड्राईंरूम में पहुंचे, जहां अलीशा अटवाल पर निगाह पड़ते के साथ ही शुक्ला चौंक उठा, फिर बड़े ही अजीब लहजे में पूछा, “यहां भी पहुंच गयीं आप?”

“यानि पहचान लिया?”

“आपको कैसे भूल सकता हूं, वह भी तब जबकि डिटेक्टिव के धंधे में दूसरी कोई लड़की पूरे फरीदाबाद में नहीं होगी। बल्कि दिल्ली में भी शायद ही हो।”

“हैं, लेकिन मेरी तरह अकेले काम नहीं करतीं।”

“फिर तो आप यूनिक हुईं मैडम, और यूनिक चीजें इंसान को हमेशा याद रह जाया करती हैं।”

“मैं चीज नहीं हूं शुक्ला जी।”

“ठीक कहा आप तो चील हैं, बल्कि आपके ऑफिस के बाहर लगे बोर्ड पर गौर कर के कहूं तो लोमड़ी हैं। फॉक्सी सर्विसेज! वाह क्या खूब नाम रखा है अपने धंधे का।”

“थैंक यू।”

“यहां आपकी मौजूदगी की वजह जान सकता हूं?”

“क्लाईंट के बुलावे पर आई हूं, जिन्हें मैं पर्सनली भी जानती हूं।”

“यानि पुलिस पर यकीन नहीं है डॉक्टर साहब को?”

“यकीन जैसा काम करेंगे तब यकीन बनेगा न।” डॉक्टर बोला।

“अरे ऐसी क्या गुस्ताखी हो गयी हमसे?”

“जाकर वो काम कीजिए इंस्पेक्टर साहब, जिसके लिए यहां पहुंचे हैं, गड़े मुर्दे उखाड़ेंगे तो दुर्गंध ही फैलेगी।”

“हां ये बात तो आपने एकदम सही कही। अब उठिये और चलकर डेडबॉडी दिखाईये ताकि मैं अपना काम कर सकूं। वो काम जिसके लिए आपकी निगाहों में मैं यहां आया हूं।”

सुनकर वह उसके साथ हो लिया।

उनके जाने के बाद अलीशा ने सिगरेट सुलगाया और छोटे छोटे कश लगाती हुई पूरे मामले पर विचार करने लगी। वह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक कि पुलिस और भाटिया वापिस ड्राइंगरूम में पहुंचकर बैठ नहीं गये।

“कुछ समझ में आया इंस्पेक्टर साहब?” उसने पूछा।

“सब इंस्पेक्टर जयंत शुक्ला मैडम।”

“वो क्या है न कि ‘इंस्पेक्टर’ के आगे ‘सब’ लगाकर बोलने में थोड़े अटपटा लगता है, इसलिए इंस्पेक्टर साहब ही ठीक है, जो आज नहीं तो कल आप बना ही दिये जायेंगे।”

“थैंक यू, नहीं अलग से कुछ पता नहीं लगा। हां इतने की गारंटी है कि कातिल दरवाजे से ही अंदर दाखिल हुआ था।”

“जबकि डॉक्टर साहब कहते हैं कि रात को अंदर पहुंचने के बाद भीतर से चिटखनी चढ़ा दी थी, जो सुबह लाश देख चुकने के बाद भी बंद ही मिली थी।”

“हैरानी की बात है, ऐसा चमत्कार भला क्योंकर मुमकिन हुआ?”

“आप बताइये।”

“मेरा कहा आप दोनों को पसंद नहीं आयेगा।”

“लिहाज मत कीजिए।”

“ठीक है फिर कहता हूं, और बात ये है कि डॉक्टर साहब झूठ बोल रहे हैं।”

“खामख्वाह?” भाटिया तुनककर बोला।

“पहले सुन तो लीजिए कि आपकी कौन सी बात झूठी है?”

“ये कि दरवाजा अंदर से बंद था।”

“नहीं, उस बात पर मैं यकीन किये लेता हूं। झूठ आप ये बोल रहे हैं कि आपको कुछ नहीं पता, जबकि जानते सब हैं। इसलिए जानते हैं क्योंकि अपनी वाईफ का मर्डर आपने ही किया था।”

“अरे मैं क्यों मारूंगा उसे?”

“अगर नहीं मारा तो कोई एक रास्ता बता दीजिए, जिससे चलकर कातिल बंद कमरे में पहुंचने और कत्ल के बाद बाहर खड़े होकर अंदर से दरवाजे की चिटखनी चढ़ाने में कामयाब हो गया था, मैं मान लूंगा कि आप सच बोल रहे हैं।”

“मैं नहीं जानता कि जो हुआ वह कैसे मुमकिन हो पाया, लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि मैंने कोमल का कत्ल नहीं किया है। फिर जरा सोचकर देखिये कि कातिल अगर मैं होता तो आपसे ये क्यों कहता कि दरवाजा भीतर से बंद था? इंकार कर देता तो आपको क्या पता लगता उस बारे में।”

“बहस अच्छी कर लेते हैं, मगर उसका जवाब ये है कि उन हालात में भी मेरी निगाहों में प्राईम सस्पेक्ट आप ही होते, ना कि कोई और, भला ये मानने वाली बात है कि आपके बगल में लेटी बीवी के सीने में कोई खंजर भोंक गया और आपको उसकी भनक तक नहीं लगी।”

“नहीं लगी।”

“कहते रहिये किसे फर्क पड़ता है?”

“आप कहीं मुझे गिरफ्तार करने की फिराक में तो नहीं हैं?”

“अभी नहीं, जरा फॉरेंसिक वाले अपने काम से निबट लें, तब मैं सोचूंगा कि आपके साथ कैसा सलूक करना है, मतलब ‘मार दिया जाये या छोड़ दिया जाये’ का फैसला पूरी तरह फॉरेंसिक की प्रथम दृष्टया रिपोर्ट पर मुनहसर होगा। हां पूर्वानुमान लगाकर कहूं तो आपका अगला कदम हवालात में और बाकी की जिंदगी जेल में ही कटने वाली है।”

“जबकि मैंने कुछ नहीं किया।”

“आपने ही किया है, इस बात पर मैं शर्त लगाने को तैयार हूं।”

“कितने पैसे खाये हैं शुक्ला जी?” भाटिया दांत पीसता हुआ बोला।

“क्या बक रहे हैं आप?” उसका चेहरा कानों तक सुर्ख हो उठा।

“बक नहीं रहा पूछ रहा हूं कि मुझे कातिल साबित करने के लिए एमएलए चरण सिंह ने कितनी रिश्वत दी है आपको?”

“ये बीच में एमएलए साहब कहां से आ गये?”

“वहीं से आये जहां से आना चाहिए, कोमल का कत्ल उसके अलावा किसी ने नहीं कराया हो सकता, ये बात मैं अभी लिखकर देने को तैयार हूं।”

“वजह?”

जवाब में भाटिया ने वही कहानी उसके आगे दोहरा दी जो अलीशा अटवाल को पहले ही सुना चुका था, या जिसके बारे में संक्षेप में ही सही थाना इंचार्ज मंजीत सिंह उसे बता चुका था।

“आपको लगता है अपनी धमकी पर खरा उतरने के लिए नेता जी ने आपकी बीवी का कत्ल करवा दिया, ताकि आपको हत्या के इल्जाम में फंसाया जा सके?”

“हां मुझे यही लगता है।”

“अगर वाकई में ऐसा ही हुआ है डॉक्टर साहब, तो मैं यही कहूंगा कि जेल जाने से अब आपको साक्षात भगवान भी नहीं बचा सकते, किसी पुलिस वाले या डिटेक्टिव की तो बिसात ही क्या है।”

“हैरानी की बात है कि एक पुलिस ऑफिसर ऐसा कह रहा है?”

“जी हां कह रहा है, क्योंकि मैं एक मामूली सा सब इंस्पेक्टर हूं ना कि सुपरमैन, और इस बात में कोई दो राय नहीं है कि नेता जी के कहर से आपको या तो सुपरमैन बचा सकता है, या फिर खुद नेता जी।”

“मतलब कानून उसके बाप की जागीर बनकर रह गया है?”

“फिल्मी डॉयलाग मत बोलिये, क्योंकि उससे आपका कोई अला भला नहीं होने वाला। अपनी खैर चाहते हैं तो उन्हें फोन लगाईये और अपनी हर गलती की माफी मांगिये, चाहे कोई गलती की हो या न की हो, वरना तो आप गये काम से।”

“ये...ये... क्या कह रहा है अलीशा?” डॉक्टर बौखलाया सा बोला।

“प्रैक्टिकल बात कह रहे हैं शुक्ला जी, इसलिए इनपर नाराज होने से कुछ नहीं होगा। बल्कि राय भी एकदम माकूल दे रहे हैं। क्योंकि इस बात में कोई शक नहीं कि आप चरण सिंह से पार नहीं पा सकते।”

“मतलब तुम दोनों मुझे उस शख्स के आगे गिड़गिड़ाने को कह रहे हो, जो सुना है पांचवी क्लास के बाद कभी स्कूल तक नहीं गया था। जो गुंडा है, भू माफिया है, समाज का अराजक तत्व है, या यूं कह लो कि सोसाइटी के लिए नासूर है।”

“वह एमएलए है, दौलतमंद है, इलाके पर उसकी मजबूत पकड़ है। पुलिस के बड़े बड़े अफसर उसकी देहरी पर सिर झुकाना फख्र की बात समझते हैं।” शुक्ला उसी की टोन में बोला।

“जरूर समझते होंगे, लेकिन मैं तो उसके आगे गिड़गिड़ाने से रहा, फिर इस बात की भी क्या गारंटी कि मेरे झुके हुए सिर पर वह जोर से एक लात नहीं जमा देगा? नहीं मैं अपने आत्मसम्मान को इतना नीचे गिरते नहीं देख सकता।”

“बर्बाद हो जायेंगे डॉक्टर साहब - शुक्ला बोला - कुछ भी सलामत नहीं बचेगा, इसलिए झुक जाने में कोई बुराई नहीं है। मैं जानता हूं मुझे ऐसी राय देने का कोई हक नहीं पहुंचता, मगर अभी मेरा इतना पतन भी नहीं हुआ है कि किसी भले इंसान को झूठे आरोप में जेल जाते देख सकूं। जो कि अगर आपने मेरी बात नहीं मानी तो जाकर रहेंगे।”

“नहीं देख सकते तो ईमानदारी से अपना काम करो, तुम्हें सच में मैं कातिल दिखाई देने लगूं तो बेशक मुझे गिरफ्तार कर लेना, लेकिन केस को पहले ढंग से इंवेस्टिगेट तो करो।”

“करने को कुछ रखा ही नहीं है सर, दरवाजे की अंदर से बंद सिटकनी ही आपको कातिल साबित करने के लिए पर्याप्त है, फिर हो सकता है खोजने पर कोई छोटी मोटी ऐसी बात भी निकल आये जो आपके खिलाफ हत्या का मोटिव साबित हो जाये। या कुछ गढ़े हुए सबूत पुलिस को मुहैया करा दिये जायें, जिनके बाद आपका गुनाह मुहरबंद हो जाये।”

“यानि गिरफ्तारी होकर रहेगी?”

“लगता तो यही है, बशर्ते कि फॉरेंसिक वाले कोई ऐसी बात न खोज निकालें जिससे आप बेकसूर साबित हो जायें, हालांकि वैसी कोई उम्मीद करना मूर्खता ही होगी।”

“एक बात बताईये शुक्ला जी।” अलीशा बोली।

“क्या?”

“अगर इस बात में कोई झोल निकल आये कि हत्या बंद कमरे में की गयी थी, तो उसके बाद डॉक्टर साहब के प्रति आपका क्या रवैया होगा?”

“अगर ऐसा कोई हेर फेर करना था मैडम तो इन्हें भीतर से चिटखनी बंद होने वाली बात बतानी ही नहीं चाहिए थी। अब मैं उसे सुनकर अनसुना तो नहीं कर सकता न?”

“मत कीजिए, लेकिन उसके रहते भी अगर थोड़ी बहुत गुंजाईश दिखाई दे जाये कि कातिल कोई और भी हो सकता है, तो आप क्या करेंगे?”

“फैसला अगर मुझे करना होगा, तो जाहिर है फिलहाल इन्हें अरेस्ट नहीं करूंगा, लेकिन ऑर्डर ऊपर से आ गये तो मैं कुछ नहीं कर सकता। वैसे भी मुझे नहीं लगता कि आप कोई लूज प्वाइंट उठा सकती हैं उस मामले में।”

“लूज प्वाइंट तो पहले से मौजूद है।”

“क्या?”

“मुझे यकीन है बीती रात डॉक्टर साहब के अपने बेडरूम में कदम रखने से पहले ही कोमल का कत्ल किया जा चुका था, और अगर मेरा सोचा सही है तो दरवाजे की अंदर से बंद चिटखनी के कोई मायने नहीं रह जाते।”

“ये कैसे पॉसिबल है?”

“क्यों नहीं है, जरा सोचकर देखिये कि कमरे में पहुंचकर इन्होंने मोबाईल की लाईट जलाई, एक बार बीवी को नाम लेकर पुकारा, फिर जवाब न मिलने पर जाकर बेड पर लेट रहे। इसमें ऐसा क्या दिखता है आपको जो अगर कोमल की हत्या पहले कर दी गयी होती तो इन्हें पता लगकर रहता? फिर मकतूला के चेहरे पर जगह जगह खरोंच बने हुए हैं, मतलब उसने हत्यारे के साथ संघर्ष खूब किया था। और उतना सबकुछ अगर डॉक्टर साहब की मौजूदगी के दौरान किया गया होता तो पक्का इनकी नींद उचट जानी थी।”

“वह संघर्ष इनके साथ ही क्यों नहीं हुआ हो सकता?”

“हो सकता है, लेकिन साबित कैसे करेंगे?”

सुनकर शुक्ला ने ध्यान से भाटिया के नाखूनों को देखा, फिर सवाल किया, “आखिरी बार नाखून कब काटे थे डॉक्टर साहब?”

“कल शाम को, क्यों?”

“कहीं आज सुबह तो नहीं काट लिये?”

“अब तुम मेरे नाखूनों के पीछे क्यों पड़ गये?”

“डॉक्टर हैं इसलिए इतना तो जानते ही होंगे कि किसी को खरांचे जाने की स्थिति में उसके स्किन टिश्यूज हमारे नाखूनों में फंस जाते हैं, जिनका सैंपल लेकर भी साबित किया जा सकता था कि वह खरोंचे जो मरने वाली के जिस्म पर दिखाई दे रही हैं, आपके नाखूनों से बनी थीं या नहीं?”

“सही कहा तुमने, मैं डॉक्टर हूं इसलिए तुम्हारे कहे की नॉलेज रखता हूं, साथ में इस बात की भी रखता हूं कि फॉरेंसिक साईंटिस्ट अगर चाहेंगे तो ये पता लगा लेंगे कि नाखून मैंने कई घंटे पहले काटे थे या आज सुबह।”

“मैंने कब कहा कि आज सुबह काटे, जाहिर है कत्ल के फौरन बाद आपने उनसे छुटकारा पा लिया होगा। और आप क्योंकि अभी अभी बताकर हटे हैं कि नाखून कल शाम को ही काटे थे, तो मुझे नहीं लगता कि जांच में कुछ घंटों के वक्फे को पिन प्वाईंट किया जा सकता है।”

“मतलब मुझे कातिल साबित कर के ही मानोगे?”

“ऐसी कोई जिद नहीं है मेरी, आपके साथ दुश्मनी भी नहीं है। और खातिर जमा रखिये, मेरा पेट अपनी तंख्वाह से भरपूर भर जाता है, बल्कि कुछ पैसे हर महीने बचा भी लेता हूं, इसलिए रिश्वत का भूखा भी नहीं हूं।”

“फिर मेरे पीछे क्यों पड़े हो?”

“क्योंकि सबकुछ आपके खिलाफ दिखाई दे रहा है, और जो सामने है उसे मैं ये सोचकर नजरअंदाज नहीं कर सकता कि आपकी नेता जी के साथ ठनी हुई थी, इसलिए कत्ल उन्होंने भी कराया हो सकता है। फिर उनकी दुश्मनी आप से थी तो खत्म आपकी वाईफ को क्यों करा दिया, सीधा आपको ही जहन्नुम का रास्ता दिखाने में क्या प्रॉब्लम थी?”

“बड़ी प्रॉब्लम थी, मैं मर जाता तो वह वसूली नहीं कर पाता।”

“क्यों नहीं कर पाते? आपकी मौत के बाद क्या आपका नर्सिंग होम गायब हो जाता, या आपकी वाईफ उसपर अपना मालिकाना हक नहीं जतातीं? और जतातीं तो वही वसूली उनसे क्यों नहीं की जा सकती थी?”

“मेरे पास तुम्हारी बातों का कोई जवाब नहीं है, लेकिन ये सच है कि मैंने अपनी वाईफ को नहीं मारा है, कोई वजह नहीं थी कि मैं कोमल की हत्या कर देता।”

“बनती कैसी थी आप दोनों में?”

“अच्छी नहीं बनती थी, मगर कोई लड़ाई झगड़ा भी नहीं हुआ कभी। फिर मैं डॉक्टर हूं ना कि प्रोफेशन किलर। मुझे अपनी बीवी से पीछा छुड़ाना होता तो उससे तलाक ले लेता, हत्या क्यों करता उसकी?”

“क्योंकि आप दोनों के बीच कोई तीसरा आ गया था, जो आपकी गैरत को मंजूर नहीं था। और इससे पहले कि आपको बुरा लगे मैं बता दूं कि वह तीसरा कोई औरत भी हो सकती है, मतलब आपका किसी के साथ अफेयर चल निकला जिसकी खातिर आपने अपनी बीवी से पीछा छु़ड़ा लिया। अब कहिये कि ऐसा कोई आपकी जिंदगी में नहीं था।”

डॉक्टर थोड़ा हिचकिचाया, फिर एक नजर अलीशा की तरफ देखकर बोला, “नहीं मेरा किसी दूसरी औरत के साथ कोई चक्कर नहीं चल रहा। ना ही मुझे कोमल के किसी अफेयर की जानकारी थी, इसलिए अटकलें लगाना बंद कीजिए। यही सोचकर कर दीजिए कि मरने वाले के बारे में बुरे बोल नहीं बोलने चाहिए।”

“समझ लीजिए कर दिया।” कहता हुआ वह उठ खड़ा हुआ, क्योंकि तभी फॉरेंसिक टीम को हॉल में दाखिल होते देख लिया था।

घटनास्थल की कार्रवाई करीब एक घंटे तक चलती रही, फिर फॉरेंसिक टीम वहां से जाने लगी तो शुक्ला उनके इंचार्ज सत्यजीत ओबराय के साथ बाहर कंपाउंड में जाकर खड़ा हो गया।

“कुछ पता लगा ओबराय साहब?” उसने पूछा।

“हां कुछ तो यकीनन लगा है।”

“क्या?”

“सबसे पहले तो यही जान लो कि कत्ल हुए 13-14 घंटे गुजर चुके हैं। अभी बारह बजने को है, इस हिसाब से हत्या बीती रात दस से ग्यारह के बीच, या उससे थोड़ा आगे पीछे की गयी होगी। दूसरी और सबसे ज्यादा अहम बात ये है कि मरने वाली के साथ दुष्कर्म किया गया था।”

“व्हॉट?”

“मैं हंड्रेड परसेंट श्योर हूं, मगर वह बात कातिल के खिलाफ किसी सबूत का दर्जा नहीं रखती, क्यों सीमेन बरामद नहीं हुए हैं। जो कि अगर हो गये होते तो कल को सस्पेक्ट के सीमेन के साथ मैच कर के उसके खिलाफ तुम अपना केस पुख्ता कर सकते थे।”

“ऐसा चमत्कार क्यों हुआ?”

“ज्यादा उम्मीद इस बात की है कि उसने कंडोम इस्तेमाल किया था। या अचानक पैदा हुए किसी व्यवधान के कारण, डिस्चार्ज होने से पहले ही महिला से दूर हो गया था।”

“जिसे आप रेप बता रहे हैं, वह नार्मल ढंग से बनाये गये संबंध भी तो रहे हो सकते हैं?”

“नहीं, क्योंकि महिला के प्राईवेट पार्ट पर नाखूनों के निशान मिले हैं, जो उसके साथ किसी जबरदस्ती की तरफ इशारा करते हैं। बशर्ते कि जानबूझकर न बनाये गये हों।”

“मैं समझा नहीं।”

“सपोज करो कि कातिल कोई ऐसा शख्स था जिसके साथ महिला का हमबिस्तर होना बहुत कॉमन बात थी, जैसे कि उसका हस्बैंड, या कोई प्रेमी। जिसने उसके साथ नार्मल ढंग से सैक्स किया, फिर उसके सीने में छुरा भोंकने के बाद जानबूझकर कुछ ऐसे निशान बना दिये, जिसे लगने लगता कि वह जबरदस्ती की कोशिश में बने हैं, मतलब हत्यारे ने जांच को भटकाने के लिए भी वैसा किया गया हो सकता है।”

“संघर्ष के निशान तो उसके चेहरे पर भी हैं।”

“वह भी जानबूझकर बनाये गये हो सकते हैं। जरा सोचकर देखो कि कातिल के साथ अगर उसने संघर्ष किया होता तो क्या निशान बस चेहरे पर ही बने होते, बाकी की बॉडी पर नहीं बनते? फिर मर्द किसी के साथ जबरदस्ती कर रहा होता है तो वह उसे थप्पड़ मारता है, उसका गला थाम लेता है, ना कि अपने नाखूनों से हमला करता है। मगर औरतें बराबर करती हैं, इसलिए कातिल कोई महिला भी रही हो सकती है।”

“क्या ऐसा हो सकता है कि रेप ना किया गया हो, बस प्राईवेट पार्ट को जख्मी भर कर दिया हो कातिल ने, क्योंकि आप अभी अभी बताकर हटे हैं कि सीमेन बरामद नहीं हुए हैं।”

“हो सकता है लेकिन उसके चांसेज सौ में से बस एक फीसदी ही हैं। मामला चाहे राजी से बनाये गये संबंधों का हो, या जबरदस्ती का, इंसानी शरीर अपना काम हमेशा करता है। जो इस मामले में भी पूरा हुआ साफ दिखाई देता है। मरने वाली के प्राईवेट पार्ट में नमी मौजूद है, जो इतनी तो नहीं है कि हम मान लें कि वह ऑर्गेज्म तक पहुंच गयी थी, मगर उसकी वजह सैक्स रहा बराबर हो सकता है। उसका सैंपल भी ले लिया है हमने जिसे लैब में जांच करने के बाद ज्यादा गारंटी से कह पायेंगे कि वह नमी किस चीज की थी, क्योंकि कई बार कुछ मेडिकल ईशूज के कारण भी उस तरह के श्राव हो जाया करते हैं।”

“और कुछ जो आप बताना चाहें?”

“हां एक खास बात और आई है हमारी नॉलेज में।”

“क्या?”

“कातिल कोई ऐसा शख्स हो सकता है जो छह नंबर के जूते पहनता हो। उस हिसाब से अगर उसके कद का अंदाजा लगाया जाये तो वह पांच फीट पांच इंच से लेकर पांच फीट सात इंच के बीच का हो सकता है। या ज्यादा से ज्यादा एक इंच और ऊपर मान लो, यानि हर हाल में पौने छह फीट से नीचे का था।”

“पता कैसे लगा?”

“जूतों के कुछ अस्पष्ट निशान मिले हैं। कहीं उनकी एड़ियों के तो कहीं पंजों के, उन सबको कैल्कुलेट कर के निष्कर्ष निकाला है।”

“ये भी तो हो सकता है कि कातिल ने जानबूझकर अपने साईज से थोड़ा छोटा जूता पहन लिया हो? जिसमें थोड़ी दिक्कत तो बराबर होती है, मगर ऐसा भी नहीं है कि पहना ही न जा सके।”

“हो सकता है, फुट प्रिंट्स क्लियर नहीं हैं, इसलिए मैं गारंटी नहीं कर सकता। मगर बात का दूसरा सिरा पकड़ो तो उसके चांसेज कम हैं। हत्यारा एक बड़ी वारदात को अंजाम देने पहुंचा था, ऐसे में साईज से छोटा जूता पहनना उसके काम के आड़े आ सकता था। उसका बैलेंस बिगड़ सकता था, वह गिर भी सकता था।”

“मैं समझ गया सर, अब इतना और बता दीजिए कि कमरे में किसी के फिंगर प्रिंट मिले या नहीं?”

“बहुतेरे मिले हैं, जिनमें से एक मरने वाली के हैं, और दूसरे के बारे में हमारा ख्याल है कि उसके हस्बैंड के हो सकते हैं, क्योंकि नये पुराने दोनों तरह के हैं, और हर जगह मौजूद भी हैं, इसलिए कातिल के तो नहीं हो सकते, और तीसरा कोई निशान बरामद नहीं हुआ।”

“ठीक है ओबराय साहब थैंक यू।”

जवाब में उसने हौले से सहमति में सिर हिलाया और गेट की तरफ बढ़ गया।

शुक्ला वापिस ड्राईंगरूम में लौटा।

“कोई अच्छी खबर है इंस्पेक्टर साहब?” अलीशा ने पूछा।

“हां है, ये कि फिलहाल मैं डॉक्टर साहब को गिरफ्तार नहीं कर रहा - कहकर उसने भाटिया की तरफ देखा - शहर से बाहर जाने की कोशिश मत करियेगा सर, फिर भी कोई बड़ी जरूरत निकल आये तो मुझे इंफॉर्म कर के जाईयेगा, वरना मजबूरन मुझे आपकी गिरफ्तारी का फैसला लेना पड़ेगा।”

“मैं ध्यान रखूंगा।”

“फॉरेंसिक जांच में कुछ पता चला?” अलीशा ने पूछा।

“हां चला।”

“क्या?”

शुक्ला हिचकिचाया।

“क्या इंस्पेक्टर साहब, ये भी कोई छिप सकने लायक बात है?”

“मैं इसलिए नहीं बताना चाहता मैडम क्योंकि सुनकर डॉक्टर साहब को बहुत बुरा लगेगा।”

“परवाह मत कीजिए, भला इससे बुरा क्या हो सकता है कि कोमल अब इस दुनिया में नहीं रही।” डॉक्टर बोला।

“आपकी वाईफ का कत्ल करने से पहले उनके साथ रेप किया गया था।”

सुनकर दोनों सन्न रह गये।

आगे बहुत देर तक हॉल में सन्नाटा पसरा रहा फिर खामोशी भंग करते हुए शुक्ला ने बाकी की कहानी भी कह सुनाई।

“ये तो कहानी उलझती दिखाई दे रही है।” अलीशा बोली।

“नहीं कोई उलझन नहीं है, क्योंकि वह कारनामा डॉक्टर साहब का भी रहा हो सकता है।”

“अरे मैं अपनी ही बीवी के साथ जबरदस्ती क्यों करूंगा?”

“क्योंकि आप जांच की दिशा भटकाना चाहते हैं।”

“ये तो हद ही हो गयी।”

“जाने दीजिए, उस बात पर हम तब बहस कर लेंगे, जब फॉरेंसिक डिपार्टमेंट की ऑफिशियल रिपोर्ट मुझे हासिल हो जायेगी, तब तक बेशक आप आजाद हैं - फिर क्षण भर की चुप्पी के बाद आगे बोला - यहां बहुत कूड़ा फैला दिख रहा है डॉक्टर साहब, जिससे लगता है कि हाल ही में कई लोगों ने एक साथ यहां खाना पीना किया था। तो क्या बीती रात कोई जश्न हुआ था?”

“हां हुआ था।” कहकर डॉक्टर ने उसे पार्टी के बारे में तो बताया ही बताया, साथ ही उसके कहने पर आमंत्रित मेहमानों की जानकारी भी दे दी।

आगे दस मिनट उसके सवाल जवाब और चले, फिर उसने एक सिपाही को बाहर भेजकर एंबुलेंस के ईएमटी स्टॉफ को अंदर बुलवाया और उन्हें लाश उठाने का आदेश देने के बाद सिपाहियों के साथ बाहर निकल गया।

“थैंक्स गॉड - डॉक्टर दोनों हाथों से अपना सिर थामता हुआ बोला - वरना तो मैं अपनी कल्पना हवालात में करने भी लगा था।”

“ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि जो काम अभी नहीं हुआ वह बाद में कभी भी हो सकता है, इसलिए जरूरी है कि असली कातिल पकड़ा जाये, वक्त रहते पकड़ लिया जाये, वरना आप जेल जाकर रहेंगे।”

“तो जाकर ढूंढती क्यों नहीं उसे?”

“ढूंढ़ूगी, लेकिन पहले आपसे एक सवाल करना चाहती हूं।”

“क्या?”

“कत्ल आपने किया है? अगर किया है तो कबूल कर लीजिए ताकि मैं हत्यारे की तलाश में भटकने की बजाये आपके बचाव के बारे में सोच सकूं। क्योंकि मेरा मिजाज कुछ कुछ वकील लोगों जैसा है। मतलब क्लाइंट ने भले ही दर्जनों जुर्म कर डाले हों वह उसे निर्दोष साबित करने में एड़ी चोटी का जोर लगा देते हैं। ऐसे में सच मुझे बताकर आप अपना ही भला करेंगे - कहकर उसने पूछा - अब बताईये क्या कोमल का कत्ल आपने किया था?”

“नहीं, मैंने नहीं मारा उसे, फिर तुम्हें भी तो लगता है कि हत्या मेरे बेडरूम में पहुंचने से पहले ही की जा चुकी थी। ऐसे में मुझपर शक क्यों कर रही हो।”

“मुझे वैसा कुछ नहीं लगता डॉक्टर, लेकिन पुलिस के सामने वह बात कहनी बहुत जरूरी थी, क्योंकि कोई दूसरा रास्ता आपके बचाव का नहीं दिखाई दे रहा था। बल्कि शुक्ला को ज्यादा इत्तेफाक भी उसी बात से हुआ, इसलिए फिलहाल आपको अरेस्ट करने का इरादा बदल दिया।”

“उसके साथ रेप भी तो किया गया है?”

“जैसा की इंस्पेक्टर साहब बोलकर गये हैं, वह आपकी कोई चाल भी रही हो सकती है। बीवी के साथ जबरन संबंध इसलिए बनाये ताकि सारा किया धरा किसी बाहरी शख्स का दिखाई देने लगे।”

“मैडिकल जांच में उसकी पुष्टि नहीं हो जायेगी?”

“नहीं होगी।”

“क्यों?”

“अरे बताया तो था शुक्ला ने कि कातिल ने या तो कंडोम का इस्तेमाल किया था या डिस्चार्ज होने से पहले ही कोमल से दूर हट गया था। ऐसे में जांच से क्या खाक पता चलेगा?”

“छोड़ूंगा नहीं कमीनों को।”

“किसकी बात कर रहे हैं?”

“चरण सिंह और उसके आदमियों की, बदला लेकर रहूंगा कोमल की मौत का, चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़ जाये। गुंडे हॉयर करूंगा, प्रोफेशनल किलर खोज निकालूंगा, मगर चरण सिंह का नामोनिशान मिटा दूंगा।”

“आत्महत्या करने का अच्छा रास्ता है।”

“तो और क्या करना चाहिए मुझे। भूल जाऊं कि किसी कमीने ने मेरी बीवी के साथ जबरदस्ती करने के बाद उसके दिल में छुरा उतार दिया था?”

“हां, अभी अपनी फिक्र कर लीजिए वही बहुत होगा। आप निर्दोष साबित हो गये तो आपकी जगह पुलिस किसी और को गिरफ्तार भी तो करेगी, यानि अपराधी को अपने किये की सजा मिलकर रहनी है। उसके लिए आपका पलटवार करना कतई जरूरी नहीं है।”

“अगर वह चरण सिंह का कोई आदमी था, तो मुझे शक है कि पुलिस उसे गिरफ्तार कर पायेगी।”

“करेगी, इस इलाके की पुलिस उसके प्रभाव में है तो इसका मतलब ये नहीं हो जाता कि मुल्क में गुंडे मवालियों का निजाम स्थापित हो गया है। फिर सबके पापों का घड़ा कभी न कभी भरता ही है, समझ लीजिए चरण सिंह का भी बस भरने ही वाला है।”

“तुम ऐसा इसलिए कह रही हो क्योंकि उसे जानती नहीं हो, जबकि मैं बहुतेरी जानकारियां हासिल किये बैठा हूं, जिनके बूते पर कह सकता हूं कि उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा।”

“थोड़ी देर के लिए आप विधायक को भूलकर किसी और के नाम पर विचार क्यों नहीं करते?”

“क्योंकि है ही नहीं कोई विचार करने के लिए। तुम अच्छी तरह से जानती हो कि मैं सादा और सरल जीवन जीने में यकीन रखता हूं, ऐसे में कोई दुश्मन कहां से पैदा हो गया मेरा?”

“सादा और सरल जीवन जीने वाले ब्लैकमेलिंग के जाल में नहीं फंस जाया करते डॉक्टर साहब।”

“वह एक बड़ी भूल थी मेरी, जो इसलिए हो गयी क्योंकि उस तरह के हालात से कभी दो चार नहीं हुआ था। फिर मुझे क्या सपना आना था कि सड़क पर लिफ्ट मांगती एक खूबसूरत लड़की उतनी कमीनी निकल आयेगी कि...।”

“पहले आपको अपने लटके झटके दिखाकर लुभायेगी, फिर ऐसे फ्लैट में ले जायेगी, जहां एक हिडन कैमरा मौजूद होगा, उसके बाद आपके साथ ऐश करेगी और उस दौरान रिकॉर्ड हुई वीडियो के बूते पर ब्लैकमेल करना शुरू कर देगी।”

“ठीक कहा, मैंने तो उस बात की कल्पना तक नहीं की थी।”

“जबकि करना चाहिए था, और कुछ नहीं तो यही सोच लेते कि एक अंजान लड़की क्यों आप पर मेहरबान हुए जा रही थी, मगर नहीं आपको तो लगा कि वह मर मिटी है। ऊपर से मुफ्त में लजीज खाना हासिल हो रहा हो तो आप जैसे लोग अक्सर उसका लोभ संवरण नहीं कर पाते, सही कहा न मैंने?”

“लोभ जैसी कोई बात नहीं थी यार, वो तो बस मैं..मैं..हे भगवान! कैसे समझाऊं तुम्हें।”

“जाने दीजिए, वैसे भी उस मामले का आपकी बीवी की मौत में कोई दखल नहीं हो सकता। मगर इतना जरूर कहूंगी कि अपना दिमाग दौड़ाईये, सोचिये कि ऐसा कौन शख्स हो सकता है, जो आपको चोट पहुंचाने के लिए इतना बड़ा कांड कर गया? एमएलए के अलावा किसी पर विचार करियेगा।”

“देखो अगर वो सब पार्टी के दौरान किया गया था, और करने वाला चरण सिंह का आदमी नहीं था, तो जाहिर है पार्टी में मौजूद रहा कोई शख्स ही हो सकता है। कोमल साढ़े दस बजे सोने के लिए चली गयी थी, जबकि मैं ग्यारह बजे के बाद गया था। यानि जो किया गया वह साढ़े दस से ग्यारह के बीच किया गया था, और वह वक्फा फॉरेंसिक वालों द्वारा निकाले गये नतीजे से भी मैच करता है।”

“हां इस बार दिमाग बराबर दौड़ाया है आपने। अब जरा याद कर के बताईये कि मेहमानों में से ऐसा कौन था जो थोड़ी देर के लिए - कम से कम पंद्रह मिनट के लिए - पार्टी से गायब हो गया था?”

“नहीं बता सकता।”

“क्योंकि नशे में थे?”

“वो बात तो थी ही लेकिन...”

“क्या लेकिन।”

“कोमल के जाने के बाद मैं खुद भी - वह झिझकता हुआ बोला - थोड़ी देर के लिए पार्टी छोड़कर इधर उधर हो गया था। और वह वक्फा भी करीब करीब पंद्रह मिनटों का ही रहा होगा।”

सुनकर अलीशा के माथे पर बल पड़ गये, “क्या छिपाने की कोशिश कर रहे हैं डॉक्टर साहब?”

“क....कोई बड़ी बात नहीं है।”

“छोटी ही सही, बताईये।”

“सुनकर तुम मुझे जाने क्या समझने लगोगी।”

“वह तो मैं पहले से ही जानती हूं कि आप एक नंबर के दिलफेंक आदमी हैं, इसलिए बात का ताल्लुक अगर वैसी किसी घटना से है तो निःसंकोच बताईये, ना हो तो भी बताईये ताकि मेरे लिए मामले को समझना आसान हो जाये।”

“मैं और अमन सिंह की बीवी मीनू थोड़ी देर के लिए...” उसने अपना वाक्य अधूरा छोड़ दिया।

“क्या थोड़ी देर के लिए, पार्टी से खिसककर रंगरेलियां मनाने में जुट गये थे?”

“नहीं उतनी बड़ी बात नहीं हुई थी।”

“फिर?”

डॉक्टर हिचकिचाया।

“आप जेल जाना चाहते हैं?”

“अरे उस बात का कोमल के कत्ल से कोई लेना देना नहीं हो सकता।”

“अच्छा हो अगर उसका फैसला आप मुझे करने दें।”

“अमन सिंह नशे में टुन्न था, इसलिए सोफे पर जाकर सो गया। उसके बाद मैंने मीनू को इशारा किया और सामने वाले कमरे में चला गया, जो मेरे मां बाप का है। मिनट भर बाद सबकी आंख बचाकर मीनू भी वहां पहुंच गयी, फिर हमने...हमने...”

“आप दोनों वहीं गुत्थमगुत्था हो गये, ये तक नहीं सोचा कि बाहर मौजूद मेहमानों में से कोई वहां अचानक टपक सकता था, तब क्या आपकी वह चोरी पकड़ी नहीं जाती?”

“मैंने इंतजाम किया था।”

“अच्छा, कैसा इंतजाम?”

“इस बात का कि कोई उधर को बढ़ता, तो सूरज चौधरी उसे किसी बहाने बीच में रोककर मुझे आवाज लगा देता, फिर मैं और मीनू थोड़ी देर के अंतराल बाहर आकर पार्टी जॉयन कर लेते।”

“मतलब सूरज को पता है कि आपके और मीनाक्षी के बीच अफेयर चल रहा है?”

“हां पता है, तभी तो मैंने उसे वह काम सौंपा था।”

“गजब के आदमी हैं आप डॉक्टर साहब, यहां हॉल में पार्टी चल रही थी, ऊपर बेडरूम में आपकी बीवी मौजूद थी, और आपको रंगरेलियां मनाना सूझ गया, जैसा दोबारा कभी मौका ही नहीं मिलता, है न?”

“मैं नशे में था यार, इसलिए थोड़ा उतावला हो उठा। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई, उल्टा मूड खराब हुआ सो अलग। मैं पछताया भी कि क्यों वैसा रिस्क भरा कदम उठाने का ख्याल मन में आया।”

“पछताये तो आप मूड खराब होने के बाद होंगे डॉक्टर साहब, पहले तो मन में लड्डू ही फूट रहे होंगे। उस जुआरी की तरह जो जुआ खेलना शुरू करने से पहले संभावित जीत के सपने देखकर खुश हो रहा होता है, लेकिन जब हार जाता है तो खुद को कोसना शुरू कर देता है - कहने के बाद उसने सवाल किया - वैसे मूड क्यों खराब हुआ आपका, लैला ने इंकार कर दिया?”

“वो बात नहीं थी।”

“फिर?”

“उसके भीतर पहुंचते ही मैंने उसके साथ लिपटा झपटी शुरू कर दी, जिसमें उसने पूरा पूरा साथ दिया, काफी देर तक देती रही। मगर जब मैं उसे बेड पर खींचने लगा, तो उसने ये कहकर सत्यानाश लगा दिया कि पीरियड आ रहे थे।”

सुनकर अलीशा अटवाल ने जोर का ठहाका लगाया, तालियां भी पीटीं, फिर जैसे ही उसे कोमल की हत्या वाली बात याद आई, जबरन अपने होंठ भींच लिए, “सॉरी, सॉरी मुझे हंसना नहीं चाहिए था, लेकिन आपकी जो हालत उस वक्त हुई होगी उसका अंदाजा बखूबी लगा सकती हूं। इसे कहते हैं खाया पिया कुछ नहीं और गिलास तोड़ा बारह आने। मतलब इतना रिस्क लेकर आप कमरे में पहुंचे और मजा किरकिरा हो गया च्च...च्च...च्च।”

“अब मुझे क्या मालूम था कि...”

“सही कहा आपको क्या मालूम था कि आपकी लैला को पीरियड आ रहे हो सकते थे। वैसे भी कोई एक हो तो उसका हिसाब रखा जा सकता है, यहां तो लाईन ही लगा रखी है आपने।”

“तुम मेरी बेइज्जती कर रही हो।”

“अरे नहीं साहब, ये तो बहुत तारीफ वाली बात है कि जिसे देखो वही आप पर फिदा हो जाती है, ऐसा कौन सा जादू कर देते हैं आप औरतों पर?”

“रेग्युलर कोई नहीं थी, बस मीनू है।”

“सफाई देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि आपके किरदार से मैं बहुत अच्छी तरह वाकिफ हूं। फिर मेरी तरह से आप दुनिया की तमाम लड़कियों से संबंध बना लीजिए, उसमें मेरे बाप का क्या जाता है। अब उससे आगे की बताईये मतलब जब आप कमरे से निकले तो क्या उस वक्त कोई पार्टी से नदारद दिखाई दिया था?”

“मैं पार्टी में रुका ही नहीं, ना ही उस तरफ मेरा कोई ध्यान गया था।”

“फर्स्ट फ्लोर पर चले गये? जो काम लैला के साथ अधूरा रह गया था, उसे बीवी के साथ निबटाने के लिए? उस बीवी के साथ जिसने सिर में दर्द रहा होने के कारण आपको दूर धकेल दिया। मगर आपकी भूख क्योंकि उस वक्त चरम पर थी, इसलिए उसका इंकार सुनकर रुक जाने की बजाये जबरदस्ती करने लगे, यही बात थी न डॉक्टर?”

“नहीं, मैं ऊपर नहीं गया था। मेरा मूड खराब हो चुका था इसलिए बाहर कंपाउंड में चला गया। जहां से तभी लौटा जब सूरज ने आकर बताया कि सब लोग वापिस जाने के बारे में कह रहे थे। उसके बाद पार्टी खत्म हो गयी, मेहमान विदा हो गये। और मैं बेडरूम में सोने चला गया। बाद में क्या हुआ ये मैं तुम्हें बता ही चुका हूं।”

“अच्छा एक बात का ईमानदारी से जवाब दीजिए।”

“पूछो।”

“क्या पार्टी में मौजूद बाकी तीन औरतों में से भी किसी के साथ आपके रिलेशन हैं, या पहले कभी रहे हों? या आप अभी रास्ता बनाने की कोशिश में जुटे हुए हों?”

“अरे क्यों बेमतलब के सवाल कर रही हो? तुम यकीन करो या न करो मैं दिलफेंक किस्म का इंसान हरगिज भी नहीं हूं। मीनू के साथ मेरे रिलेशन बन गये तो वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि मेरी बीवी को मेरी कद्र नहीं थी। कद्र से मेरा मतलब है जब देखो नखरे दिखाती रहती थी। सेक्स या तो करने नहीं देती थी, या फिर एहसान जताकर करने देती थी, और उस दौरान भी उसका रवैया ऐसा होता था जैसे वह कोई मशीन हो, मतलब जरा भी उत्साह नहीं। उसके साथ संबंध बनाना और किसी लाश के साथ सेक्स करना मेरी निगाहों में एक ही बात थी।”

“कहीं कोमल का भी तो किसी के साथ रिश्ता नहीं बन गया था?”

“नहीं वह वैसी औरत नहीं थी।”

“कैसी नहीं थी, जैसे कि आप हैं?”

सुनकर डॉक्टर ने बड़े ही आहत भाव से उसकी तरफ देखा।

“बुरा मानने की जरूरत नहीं है डॉक्टर साहब, क्योंकि मैं इस वक्त बस अपना काम कर रही हूं। बेड पर जो हाल आप अपनी बीवी का बताते हैं, उसे नार्मल नहीं माना जा सकता। मतलब या तो वह किसी मेडिकल प्रॉब्लम से जूझ रही थी, या फिर खाना बाहर खा लेती थी, इसलिए घर का खाना उसे पसंद नहीं आता था।”

“अरे कहा न कोमल वैसी औरत नहीं थी।”

“आपको क्या पता?”

“पता है, अपनी बीवी को मुझसे ज्यादा भला कौन जानता होगा।”

“यानि उसके किसी अफेयर की कोई गुंजाईश नहीं है?”

“नहीं है।”

“और आपका भी बस मीनू के साथ रिश्ता है।”

“वह भी हालिया बन गया था, दो महीने हुए हैं बस।”

“और दो महीनों के बीच मौका कितनी बार मिला आपको, अपने अरमान पूरे करने का?”

“चार बार, आखिरी बार दस दिन पहले तब लगा था जब वह मुझसे मिलने मेरे नर्सिंग होम पहुंची थी।”

“मतलब वहीं शुरू हो गये?”

“हां हो गया, तुम्हें कोई प्रॉब्लम है?”

“नहीं, क्यों होगी भला? अच्छा ये बताईये कि क्या कभी उसके घर में ट्राई करने की कोशिश नहीं की?”

“पहली बार जो हुआ वह उसके घर में ही हुआ था।”

“और यहां आपके घर में?”

“बस कल रात कोशिश की थी, जो नाकाम रह गयी।”

“कभी किचन, बॉथरूम, टैरिस या कार में ट्राई नहीं किया?”

“शटअप।”

“ठीक है हो गयी। अब बात करते हैं कोमल के सीने में घुसे पड़े छुरे की, जिसके बारे में आपको शक है कि वह आपके किचन से चुराया गया था।”

“मुझे यही लगता है।”

“जो कि अगर सच है डॉक्टर साहब तो कातिल विधायक चरण सिंह का आदमी कैसे हो सकता है?”

“क्यों नहीं हो सकता?”

“इसलिए नहीं हो सकता क्योंकि उसने अगर कोमल का कत्ल करने यहां पहुंचना था तो ये सोचकर खाली हाथ नहीं आ जाता कि किचन में कोई न कोई हथियार उसे मिल ही जायेगा। बल्कि उसके अलावा भी कोई होता तो उसने हथियार के साथ ही यहां पहुंचना था।”

“यानि कातिल मैं?”

“जिससे आप इंकार कर रहे हैं, इसलिए मुझे लगता है कि कोमल का कातिल चाहे जो कोई भी है, वह यहां हत्या की प्लॉनिंग कर के नहीं आया था। बावजूद इसके अगर प्लॉनिंग पहले से थी तो उसका मतलब ये बनता है कि आपके किचन में एक छुरा मौजूद होने की खबर हत्यारे को पहले से थी। वह ये भी जानता था कि यहां किचन क्योंकि सीढ़ियों के करीब ही है इसलिए ऊपर जाने से पहले वह बड़ी आसानी से वहां से छुरा हासिल कर सकता था।”

“छुरा हर किचन में होता है अलीशा, कहीं छोटा होता है तो कहीं बड़ा। इसलिए उस बारे में एडवांस में कोई जानकारी होना कतई जरूरी नहीं था। क्या हो जाता अगर यहां का छुरा छह इंच के फल का होने की बजाये तीन चार इंच का होता, जो कि हर घर में सब्जी वगैरह काटने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। उससे क्या कोमल की जान लेना असंभव बात थी?”

“नहीं थी।” अलीशा को कबूल करना पड़ा।

“तो फिर छुरे के पीछे क्यों पड़ी हो?”

“क्योंकि वह इकलौती ऐसी चीज है जो कत्ल में नेता के आदमियों की इंवॉल्वमेंट को नकारती है। क्योंकि मैं ये मानने को हरगिज भी तैयार नहीं हूं कि उसका भेजा कोई गुंडा आपके किचन में मौजूद चाकू के बूते पर यहां कोमल का कत्ल करने पहुंच गया हो।”

“ये भी तो हो सकता है कि आया वह किसी दूसरे हथियार के साथ हो, मगर यहां पहुंचकर किचन से छुरा इसलिए उठा लिया, क्योंकि उससे कत्ल होने की सूरत में पुलिस का शक मुझपर बढ़ जाना था।”

“आपके पास मेरे हर सवाल का जवाब मौजूद है डॉक्टर साहब, ऐसा क्यों? कहीं पहले से प्रैक्टिस तो नहीं कर रखी है कि किस बात के जवाब में क्या कहना है?”

“बकवास मत करो, मैंने जो कहा है वह बहुत ही कॉमन बात है।”

“चलिए वही सही, अब इजाजत दीजिए।”

“लापरवाही मत बरतना अलीशा, मैं तुमसे बहुत उम्मीदें लगाये बैठा हूं।”

“डोंट वरी, धंधे में लापरवाही मुझे जरा भी पसंद नहीं है।” कहकर वह उठी और घर से बाहर निकलकर गार्ड के पास जा खड़ी हुई, और तब पहली बार ढंग से उसका मुआयना किया।

वह तीसेक साल का, अच्छी लेकिन सांवली शक्लो सूरत वाला युवक था, जिसकी कद काठी और हाईट बहुत अच्छी थी। वर्दी को नजरअंदाज कर दिया जाता तो उसे देखकर कोई कह नहीं सकता था कि वह शख्स किसी के घर की चौकीदारी करता होगा। उसके चेहरे पर एक रूआब सा झलकता था, और हैंडसम तो वह दिख ही रहा था।

“तुम्हारी दिन की ड्यूटी है मोहित?”

“जी मैडम।”

“कब से कब तक?”

“सुबह आठ बजे से लेकर रात आठ बजे तक चलती है।”

“कल देर से गये थे?”

“जी हां, पार्टी थी न इसलिए साहब ने पहले ही बोल दिया था कि खाना खाकर जाऊं।”

“कितने बजे खाया था?”

“नौ बजे, उसके बाद दूसरा गार्ड रमेश भीतर खाने के लिए चला गया, तो उसके आने तक मैं यहीं रुका रहा था।”

“कितनी देर?”

“बीस मिनट।”

“उस दौरान किसी को घर के आस-पास मंडराते देखा था?”

“नहीं मैडम।”

“क्या ऐसा हो सकता है कि तुम्हारी ड्यूटी के दौरान कोई बाउंड्री लांघकर भीतर दाखिल हो गया हो, और तुम्हें खबर न लगी हो?”

“नहीं हो सकता मैडम, बात अगर बारह एक बजे रात की होती तो एक बार को मैं मान भी लेता कि आंख लग गयी होगी। साढ़े नौ दस बजे वैसा होने का तो कोई मतलब ही नहीं बनता। फिर कल रात भीतर पार्टी चल रही थी इसलिए हर वक्त मैं एक पांव पर खड़ा रहा था।”

“गये कितने बजे थे?”

“पौने दस के आस-पास निकल गया था।”

“उससे पहले कुछ और देखा सुना हो?”

“नहीं मैडम जी।”

“जिस वक्त तुम अंदर थे, उस वक्त कुछ खास नोट किया हो?”

“नहीं, ऐसा कुछ तो नहीं देखा था।”

“जो लोग पार्टी में आये थे उन्हें पहचानते हो तुम?”

“अमन सिंह साहब को जानता हूं, क्योंकि वह पहले भी कई बार यहां आ चुके हैं। बल्कि कल रात उनके लड़के स्वराज से भी बातचीत हुई थी। वह मेरे साथ ही खड़े होकर खाना खा रहा था।”

“कल से पहले कभी अमन सिंह की बीवी मीनाक्षी को यहां आते देखा था?”

“मैं उन्हें पहचानता ही नहीं हूं मैडम, इसलिए नहीं बता सकता।”

“अच्छा, जरा पिछले महीने भर के वक्फे को याद कर के बताओ कि क्या साहब की अनुपस्थिति में बाहर का कोई यहां आया था? या कोई ऐसा जो अक्सर आता जाता रहता हो?”

“साहिल साहब कभी कभार चले आते हैं, और तो कोई याद नहीं आ रहा।”

“साहिल साहब कौन हैं?”

“रिश्ते में मैडम उनकी बहन लगती थीं।”

“कैसे पता?”

“पहली बार जब वह मेरी दिन की ड्यूटी के दौरान यहां पहुंचे थे, तो मैंने उनका नाम पूछ लिया, तभी बताया था।”

“तब डॉक्टर साहब के मां बाप घर में ही थे?”

“जी हां।”

“और बाद में जब साहिल साहब ने यहां का फेरा लगाया था, क्या तब भी दोनों यहीं थे?”

“एक दो बार ऐसा हुआ होगा जब घर में मैडम के अलावा कोई नहीं था, वरना तो साहब के माता पिता हमेशा यहीं होते थे।”

“रहते कहां हैं ये साहिल साहब?”

“मैं नहीं जानता।”

“इधर के विधायक जी को पहचानते हो?”

“जी नहीं, लेकिन नाम सुना है।”

“कैसे सुना है?”

“एक बार उनका कोई आदमी यहां साहब से मिलने आया था, तब साहब घर में नहीं थे, इसलिए वापिस लौट गया।”

“कब की बात है?”

“दस पंद्रह दिन तो हो ही गये होंगे।”

“तुमने साहब को बताया था उस बारे में?”

“जी बता दिया था।”

“ठीक है मोहित थैंक यू।” कहकर वह अपनी कार में सवार हो गयी।

एक बजे के करीब अलीशा अटवाल सैक्टर 91 के इलाके में स्थित सूर्या नगर पहुंची, जहां टू बीएचके के एक फ्लैट में अमन सिंह अपने परिवार के साथ रहता था। बिल्डिंग तीन मंजिलों तक उठी हुई थी जबकि उसका फ्लैट पहली मंजिल पर था।

कॉलबेल के जवाब में एक खूबसूरत युवती ने दरवाजा खोला, जो उस वक्त पीले रंग का सलवार कुर्ता पहने थी, लेकिन दुपट्टा नहीं डाल रखा था। उसके बायें हाथ में टीवी का रिमोट और दायें में आधा खाया हुआ सेब थमा हुआ था।

अलीशा उसे बीते रोज पार्टी में देख चुकी थी, इसलिए समझ गयी कि वही मीनाक्षी उर्फ मीनू थी, डॉक्टर भाटिया की दो महीने पुरानी गर्लफ्रैंड। बरबस ही उसकी आंखों के सामने भाटिया द्वारा बयान किया गया किस्सा किसी न्यूज रील की तरह प्ले होता चला गया। जिसके कारण वह बेध्यानी में ही मुस्करा उठी।

“हॉय।”

“हॉय, पहचाना?”

“कल लवलेश की पार्टी में देखा था तुम्हें, मगर नाम नहीं जानती।”

“अलीशा अटवाल, प्राईवेट डिटेक्टिव हूं।”

“प्राईवेट डिटेक्टिव, वह भी एक लड़की, वॉव।”

“थैंक यू।”

“प्लीज कम - कहते हुए उसने एक तरफ होकर उसे अंदर आने का रास्ता दे दिया, फिर सोफे की तरफ इशारा कर के बोली - बैठो।”

अलीशा बैठ गयी।

“अब बताओ कैसे आना हुआ?”

“कुछ पूछना था।”

“लवलेश के बारे में?” उसका माथा थोड़ा सिकुड़ सा गया।

“उनके बारे में भी।”

“क्या?”

“पहले एक बुरी खबर देना चाहती हूं।”

“डराओ मत यार, साफ साफ कहो क्या बात है, कहीं लवलेश को तो कुछ नहीं हो गया?”

“तुम्हें फिक्र है उनकी?”

“हां, मेरे हस्बैंड का दोस्त जो है।”

“बड़ी केयरिंग हो यार, जो हस्बैंड के दोस्तों तक का ख्याल रखती हो।”

मीनाक्षी ने घूर कर उसे देखा।

“नहीं, डॉक्टर को कुछ नहीं हुआ है।”

“ओह, फिर कौन सी बुरी खबर देने आई हो?”

“कोमल भाटिया का कत्ल हो गया।”

“व्हॉट?” मीनाक्षी इतनी बुरी तरह चौंकी जैसे गलती से करेंट का तार छू गया हो। और अलीशा इस बात के प्रति श्योर थी कि वह उसका नाटक नहीं था। जिसका मतलब ये बनता था कि मीनाक्षी को कोमल के कत्ल की खबर नहीं थी।

“यकीन न आ रहा हो तो डॉक्टर को फोन कर लो।”

“इट्स ओके, तुम झूठ क्यों बोलोगी - कहकर उसने पूछा - कब हुआ?”

“बीती रात किसी वक्त।”

“क....किसने किया?”

“क्या पता किसने किया, वही जानने की कोशिश में निकली हूं।”

“मुझे भला क्या मालूम हो सकता है?”

“बीती रात वहां कुछ देखा सुना हो सकता है।”

“पार्टी देखी थी, पार्टी में मौजूद लोग देखे थे, और था ही क्या वहां देखने लायक। फिर वहां मैं एन्जॉय करने गयी थी, या बेवजह की बातों पर दिमाग खपाने, जिनका तब कोई मतलब भी नहीं था।”

“तुम्हारे हस्बैंड कहां हैं?”

“शॉप पर गये हैं।”

“और बच्चे?”

“स्कूल।”

“कितने हैं?”

“बस एक, ग्यारहवीं में पढ़ता है।”

“कमाल है, तुम्हें देखकर जरा भी नहीं लगता कि तुम्हारा उतना बड़ा बेटा भी हो सकता है। ज्यादा से ज्यादा 28-30 की दिखती हो।”

“छत्तीस की हूं।”

“सच में?”

“और क्या अपनी उम्र बढ़कर बताऊंगी?”

“नहीं, वैसा तो खैर कोई नहीं करता, उल्टा कम करने की कोशिश में जरूरत जुट जाते हैं लोग बाग, खासतौर से हम लेडिज।”

“मैं ऐसा नहीं सोचती, अब जो उम्र है वह है, छिपाना क्या।”

“डॉक्टर साहब को कैसे जानती हो?”

“मैं कहां जानती हूं, अमन जानता है।”

“वही सही, कैसे जानते हैं अमन साहब?”

“उसके नर्सिंग होम में आते जाते पहचान हुई और दोनों दोस्त बन गये।”

“फिर तो डॉक्टर साहब यहां भी आते होंगे?” वह मीनाक्षी की आंखों में आंखे डालकर बोली।

“कभी कभार, जब घर में कोई पार्टी वगैरह हो।”

“आखिरी बार कब आये थे?”

“बहुत टाईम हो गया, मेरे ख्याल से डेढ़ दो महीने पहले।”

“कल रात मैं साढ़े दस बजे के करीब डॉक्टर के घर से निकल गयी थी, इसलिए नहीं जानती कि बाद में वहां क्या हुआ था। तुम बता सकती हो?”

“बताने लायक तो कुछ भी नहीं है।”

“दिमाग पर जोर डालोगी तो निकल आयेगा, जैसे कि साढ़े दस बजे कोमल भाटिया मेहमानों को सॉरी बोलकर अपने बेडरूम में चली गयी थी। जो कि मेरी निगाहों में सरासर गेस्ट्स की तौहीन करने जैसा था।”

“कहकर तो खैर ये गयी थी कि उसके सिर में बहुत दर्द हो रहा था, लेकिन मुझे लगा जैसे वह मेहमानों की मौजूदगी पसंद नहीं कर रही थी, इसलिए चली गयी। वैसे भी पार्टी में जितने भी लोग आये थे, उनमें से अधिकतर लवलेश के फ्रैंड थे ना कि कोमल के, शायद इसी वजह सिर दर्द का बहाना कर के वह अपने बेडरूम में चली गयी।”

“उसके पीछे पीछे कोई और भी ऊपर जाता दिखाई दिया था? या थोड़ा ठहर कर गया हो?”

“मैंने ध्यान नहीं दिया।”

“किसी ने बताया है कि तुम भी थोड़ी देर के लिए पार्टी से गायब हो गयी थी।”

सुनकर वह एकदम से हड़बड़ा गयी, फिर जल्दी से बोली, “नहीं मैं कहीं नहीं गयी थी, ऊपर तो हरगिज भी नहीं।”

“चलो वही सही, लेकिन पार्टी में मौजूद मेहमान बस एक जगह पर ही तो खड़े नहीं रहे होंगे, जैसे कोई बॉथरूम गया हो, या कंपाउंड में सिगरेट पीने चला गया हो?”

“हां बॉथरूम जाते देखा था, कई लोगों को देखा था।”

“और बॉथरूम कहां है उस घर में?”

“सीढ़ियों के बगल में एक छोटा सा गलियारा है, उसी के आखिरी सिरे पर।”

“कोमल के ऊपर चले जाने के तुरंत बाद कौन बॉथरूम जाता दिखा था?”

“तुरंत का मुझे नहीं पता, लेकिन पौने ग्यारह के करीब नूरजहां उधर को बढ़ती दिखी थी, उसके थोड़ी देर बाद मैं भी गयी थी, तब जब नूरजहां वापिस लौट रही थी। आगे का ध्यान नहीं है मुझे, क्योंकि तब तक सब लोग पार्टी से निकलने के बारे में बातें करने लगे थे।”

जाहिर था साढ़े दस और पौने ग्यारह बजे के बीच की कोई खबर उसे नहीं थी, क्योंकि उस दौरान वह डॉक्टर के साथ उसके पेरेंट्स के कमरे में प्रेमालाप कर रही थी।

“तुम बैठो मैं चाय बनाकर लाती हूं।” मीनाक्षी बोली।

“नहीं रहने दो, मैं थोड़ी देर पहले ही पीकर हटी हूं।”

“श्योर?”

“हां भई।”

तभी दरवाजा खुला और स्कूल ड्रेस पहने पंद्रह सोलह साल का एक लड़का भीतर आ गया। मीनाक्षी ने एक नजर उसकी तरफ देखा, फिर बोली, “स्वराज, मेरा बेटा - कहकर उसने लड़के की तरफ देखा - ये अलीशा आंटी हैं, नमस्ते करो।”

“नमस्ते आंटी।” वह मुस्कराता हुआ बोला, और अपनी मां के बगल में बैठ गया।

“नमस्ते बेटा।”

“इसकी निगाहें बहुत तेज हैं - मीनाक्षी हंसती हुई बोली - अगर वहां कोई खास बात हुई होगी, तो पक्का इसे मालूम होगा। चाहो तो पूछ सकती हो।”

“थैंक यू।”

“किस बारे में?”

“कोमल आंटी का किसी ने कत्ल कर दिया।”

“क्या?” वह हकबकाया सा अपनी मां की शक्ल देखने लगा।

“अलीशा आंटी जासूस हैं, इसलिए पूछताछ करने आई हैं।”

“बुरा हुआ।”

“बेशक बुरा हुआ बेटा - अलीशा बोली - ये बताओ कि पार्टी में तुमने किसी को कोमल आंटी के पीछे ऊपर जाते देखा था, या ऊपर से नीचे आते देखा हो?”

“नहीं, लेकिन किसी को सीढ़ियों पर जरूर देखा था।”

“किसे?”

“मेरे ख्याल से राशिद अंकल थे।”

“पक्का नहीं मालूम?”

“नहीं, क्योंकि उस वक्त मैं डांस कर रहा था। और आप पार्टी में गयी थीं, इसलिए जानती ही होंगी कि वहां कोई बल्ब वगैरह नहीं जल रहा था। जो रोशनी थी वह म्यूजिक सिस्टम से निकल रही थी और रंग बिरंगी थी। ऊपर से पार्टी हॉल के दायें हिस्से में चल रही थी, जबकि सीढ़ियां एकदम बाईं तरफ को बनी हुई हैं।”

“कोमल के जाने के कितनी देर बाद तुमने राशिद शेख को वहां देखा था?”

“थोड़ी देर बाद, ज्यादा से ज्यादा पांच मिनट गुजरे होंगे। उनको वहां खड़ा देखकर तब मुझे यही लगा था जैसे वह गलती से दो तीन सीढ़ी चढ़ गये हों, बल्कि वही बात थी क्योंकि बाद में उन्होंने तेज आवाज में पूछा भी था कि ‘कोई वॉशरूम के बारे में बता दो यारों’, फिर नूरजहां आंटी ने उनके सवाल का जवाब दिया, तो नीचे उतरकर बॉथरूम की तरफ बढ़ गये।”

“आवाज से तो तुमने पहचान ही लिया होगा कि वह राशिद शेख ही थे?”

“नहीं, क्योंकि म्युजिक के शोर में ढंग से कुछ सुनाई नहीं दे रहा था।”

“और कोई खास बात नोट की हो?”

“कल रात लवलेश अंकल कुछ बेचैन दिखाई दे रहे थे, कई बार वह सीढ़ियों तक जाकर वापिस लौट आये थे, जैसे फैसला न कर पा रहे हों कि ऊपर जायें या न जायें। मगर वैसा उन्होंने आंटी के ऊपर जाने से पहले किया था, ना कि बाद में।”

“गार्ड को आखिर बार कब देखा था?”

“खाने खाते वक्त एक गार्ड मेरे बराबर में ही खड़ा था, फिर वह चला गया तो दूसरा गार्ड वहां पहुंचकर खाने में जुट गया, मगर वह भी जल्दी ही वापिस लौट गया था।”

“मतलब खाना खत्म करते ही बाहर निकल गया था?”

“मेरे ख्याल से तो हां, लेकिन मैंने उसे जाते नहीं देखा था। बहुत बाद में निगाह गयी तो पाया कि वह पहले वाली जगह पर मौजूद नहीं था।”

“क्या कोई ऐसा भी था जो थोड़ी देर के लिए पार्टी में दिखाई देना बंद हो गया हो?”

“वो तो मम्मी ही थीं।”

मीनाक्षी एक बार फिर हड़बड़ा उठी, “मैं बॉथरूम गयी थी, तब की बात कर रहा है शायद।”

“मैं कौन सा कह रहा हूं कि आप कोमल आंटी का कत्ल करने गयी थीं।”

“बोला तो तूने इसी तरह से था, जैसे मुझपर इल्जाम लगा रहा हो।”

“डोंट वरी मॉम, आपने कत्ल किया भी हो तो मैं किसी को नहीं बताने वाला, आखिर मां हैं आप मेरी।” कहकर वह सोफे से उठा और सामने दिखाई दे रहे एक कमरे की तरफ बढ़ गया।

उसके पीछे कुछ क्षणों के लिए वहां सन्नाटा सा पसर गया, फिर अलीशा बोली, “तुम्हें क्या लगता है, किसने मारा होगा कोमल को?”

“क्या पता किसने मारा, वैसे सुना है चरित्र की कोई अच्छी औरत नहीं थी वह।”

अलीशा ने हैरानी से उसकी तरफ देखा, क्योंकि वह बात एक ऐसी औरत कह रही थी जो अपने पति और बेटे की मौजूदगी को नजरअंदाज कर के डॉक्टर के साथ कमरे में बंद हो गयी थी। दिल हुआ कह दे कि अगर कोमल का चरित्र अच्छा नहीं था, तो उसके खुद के चरित्र को किस श्रेणी में रखा जाना चाहिए, मगर किसी तरह जब्त कर गयी।

“किसी के साथ अफेयर था उसका?” प्रत्यक्षतः उसने पूछा।

“कईयों के साथ।”

“पता कैसे लगा?”

“ल...अमन ने बताया था।”

अलीशा समझ गयी कि पहले वह लवलेश का नाम लेने जा रही थी, मगर बात बदलकर अपने पति का नाम सामने ले आई।

“अमन जी को भी कैसे खबर लगी होगी?”

“मेरे ख्याल से तो लवलेश के जरिये ही पता चला होगा। और एक बात का ध्यान रखना अलीशा कि अगर तुम मेरे हस्बैंड से मिलो तो उन्हें ये मत बताना कि कोमल के अफेयर के बारे में मैंने तुम्हें बताया था, वरना जान ले लेगा वह मेरी।”

“नहीं बताऊंगी, प्रॉमिस।”

“थैंक यू।”

“लेकिन किसी के साथ अगर कोमल का अफेयर था भी तो वह घर में घुसने में कैसे कामयाब हो गया?”

“मैं नहीं जानती, ये भी हो सकता है कि अमन ने सुनी सुनाई बात मेरे आगे दोहरा दी हो।”

“किसी का नाम भी लिया था?”

“नहीं।”

“ठीक है मीनाक्षी, थैंक यू।” कहकर वह उठ खड़ी हुई।

राशिद शेख की रिहाईश सैक्टर चौदह के इलाके में थी, जहां वह तीन मंजिला मकान में रहता था, ग्राउंड और फर्स्ट फ्लोर उसके खुद के पजेशन में थे, जबकि दूसरी और तीसरी मंजिल किराये पर दे रखी थी।

अलीशा ने कॉलबेल बजाई तो दरवाजा आठ दस साल के एक लड़के ने खोला, जो उसका नाम पूछकर अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद नूरजहां दरवाजे पर आ खड़ी हुई।

“आप यहां?”

“यानि पहचान लिया?”

“हां, कल डॉक्टर साहब की पार्टी में देखा था आपको।”

“पांच मिनट बात कर सकती हूं तुमसे?”

“अरे दस मिनट करो, घंटा भर करो, मुझे कौन से भुट्टे भूनने हैं।” कहते हुए वह दरवाजे से हटकर खड़ी हो गयी।

अलीशा भीतर दाखिल हुई तो नूरजहां ने गेट बंद किया और सोफे की तरफ इशारा कर के उसे बैठने के लिए कहने के बाद बोली, “मैं आपके लिए चाय बनाकर लाती हूं।”

“रहने दो, जरूरत नहीं है।”

“कैसे नहीं है, पहली बार आप हमारे घर आई हैं।”

“यानि दूसरी बार आई तो चाय नहीं पूछोगी?”

सुनकर वह हंसी फिर ‘अभी आई’ कहकर किचन की तरफ बढ़ गयी।

चाय के साथ वापिस लौटने में उसे पांच मिनट से कहीं ज्यादा का वक्त लग गया, क्योंकि चाय के अलावा नमकीन, बिस्कुट और समोसे भी एक ट्रे में रख लाई थी। समोसे उसी वक्त अपने बेटे को बाहर भेजकर मंगवाये थे।

“अब बताइये क्या बात है?” वह चाय का कप उसकी तरफ खिसकाती हुई बोली।

“डॉक्टर लवलेश भाटिया को कैसे जानती हो तुम?”

“मेरे मियां के साथ दोस्ती है, इसलिए जानती हूं।”

“नई दोस्ती है?”

“नहीं, राशिद उन्हें तब से जानते हैं, जब डॉक्टर साहब दिल्ली में रहते थे। हम वहां भी साल छह महीने में चले ही जाया करते थे। डॉक्टर साहब भी कई बार यहां आ चुके हैं, आखिरी बार बिट्टू के बर्थडे पर आये थे।”

“कल पार्टी में तुम अपने बेटे को लेकर नहीं गयी थीं?”

“आज स्कूल में उसका कोई टेस्ट था जिसकी तैयारी कर रहा था, इसलिए जाने से मना कर दिया। मैंने कहा भी था कि बस दो तीन घंटे की तो बात थी, मगर वह नहीं माना, तब मैं और राशिद उसे यहीं छोड़कर चले गये - कहकर उसने पूछा - इतने सवाल क्यों?”

“कल रात कोमल का किसी ने कत्ल कर दिया।”

“या खुदा - उसने क्षण भर के लिए आंखें बंद कर लीं, फिर बोली - किसने किया?”

“अभी कुछ पता नहीं लग पाया है।”

“बहुत बुरा हुआ बेचारी के साथ, कल मैरिज एनिवर्सरी और आज उसकी मौत की खबर, फिर आप कह रही हैं कि कत्ल कल रात ही कर दिया गया था।”

“लगता तो यही है।”

“बेचारे डॉक्टर साहब, उनका तो बहुत बुरा हाल हो रहा होगा, नहीं?”

“हां गमजदा तो बराबर हैं।”

“आप पुलिस में हैं?”

“नहीं प्राईवेट जासूस हूं, डॉक्टर साहब चाहते हैं कि मैं उनकी बीवी के कातिल का पता लगाऊं, इसलिए हर किसी से पूछताछ करती फिर रही हूं। थोड़ी देर पहले मीनाक्षी से भी मिली थी।”

“पुलिस कुछ नहीं कर रही?”

“कर रही है, आगे भी करेगी, लेकिन हत्या इस ढंग से की गयी है कि शक सीधा डॉक्टर साहब पर ही जाता है। तुम तो उन्हें अच्छी तरह से जानती होगी, क्या ये हो सकता है कि कोमल का कत्ल उन्होंने ही कर दिया हो?”

“कैसी बात करती हैं आप, भला लवलेश जी उनका कत्ल क्यों करेंगे?”

“क्या पता कोई वजह रही हो?”

“कैसी वजह?”

“सुना है किसी दूसरी औरत के साथ उनका अफेयर चल रहा था।”

“डॉक्टर साहब का?”

“हां, तुम्हें कुछ पता है उस बारे में कुछ?”

“नहीं, लेकिन राशिद को शक पक्का है।”

“अफेयर का?”

“जी, एक रोज कह रहे थे कि अमन सिंह की बीवी मीनाक्षी कुछ ज्यादा ही चिपकती दिखती है लवलेश के साथ, लेकिन मुझे यकीन नहीं आया था। भला कोमल क्या कम सुंदर थी जो डॉक्टर साहब दूसरे की बीवी के साथ रिलेशन बना लेते।”

“मर्द ऐसे ही होते हैं यार।”

“सब तो ऐसे नहीं होते, जैसे कि इन्हीं को ले लो, कोई औरत कह नहीं सकती कि उसकी तरफ नजर उठाकर भी देखा हो राशिद ने।”

“ठीक कहा, सब एक जैसे नहीं होते।”

“एक सुनी सुनाई बात बताऊं आपको, क्या पता कुछ मदद मिल जाये।”

“जरूर बताओ?”

“कोमल का भी किसी के साथ चक्कर चल रहा था।”

“अच्छा, कैसे पता?”

“मुक्ता ने बताया था।”

“मुक्ता, अनिकेत त्रिपाठी की वाईफ?”

“वही।”

“क्या बताया था?”

“एक बार वह डॉक्टर साहब के क्लिनिक पर गयी थी, तो वापसी में सोचा कोमल से मिलती चले। उसके घर पहुंची तो ससुर ने बताया कि ऊपर अपने बेडरूम में थी। जहां उसका कोई रिश्ते का भाई भी मौजूद था। मुक्ता कहती है कि उन दोनों के चेहरे के भाव देखकर ऐसा लग रहा था जैसे तभी लिपटा झपटी कर के हटे हों। अब उसका अंदाजा सही था या नहीं, इस बारे में गारंटी तो हम दोनों ही नहीं कर सकते।”

“भाई का नाम?”

“बताया था मुक्ता ने, लेकिन इस वक्त याद नहीं आ रहा।”

“कहीं साहिल तो नहीं था?”

“हां यही नाम था, कहती थी कि उस लड़के पर एक नजर पड़ते ही उसके दिल से आवाज आई थी कि उनके बीच जरूर कोई खिचड़ी पक रही थी।”

“गार्ड ने बताया था कि कोमल उसके फूफा की लड़की थी, फिर कैसे मुमकिन है कि दोनों के बीच कुछ ऐसा वैसा रहा हो?”

“तो नहीं रहा होगा, सुनी सुनाई बातों पर क्या यकीन करना। फिर मुक्ता को बातें बनाने की आदत भी तो है।”

“अच्छा ये बताओ कि सिर दर्द बताकर जब कोमल ऊपर चली गयी थी, तो उसके बाद कोई और भी सीढ़ियां चढ़ता दिखाई दिया था?”

“मैंने ध्यान नहीं दिया, हां वॉशरूम क्योंकि सीढ़ियों के उस पार है, इसलिए वहां तक जाते कई लोग दिखाई दिये थे। मैं खुद भी गयी थी एक बार, और वहां से निकलकर कुछ देर तक सीढ़ियों के पास खड़ी भी हो गयी थी, क्योंकि तेज म्यूजिक मुझे जरा भी पसंद नहीं आता। डांस करना भी नहीं आता, जबकि मुझे छोड़कर वहां हर कोई नाचा था।”

“बीच में कोई पार्टी से गायब दिखाई दिया था?”

“हां, एक बार मेरा ध्यान इस बात की तरफ बराबर गया था कि डॉक्टर साहब और मीनाक्षी पार्टी में नहीं थे, तब मुक्ता की कही बात मुझे याद आ गयी, और मैं ये कल्पना तक कर बैठी कि कहीं उस वक्त दोनों ऊपर के किसी कमरे में मौज तो नहीं कर रहे थे, मगर बाद में जैसे ही ये ध्यान आया कि कोमल भी ऊपर ही थी, मेरा शक दूर हो गया। भला बीवी के रहते डॉक्टर साहब उसके साथ क्या कर पाते।”

“कोई ऐसा जो सीढ़ियां चढ़ता या उतरता दिखा हो?”

“मेरे हस्बैंड दिखे थे, उन्हें नहीं मालूम था कि वहां बॉथरूम कहां है, सूरज भाई से पूछा तो उन्होंने सीढ़ियों की तरफ इशारा कर दिया। तब राशिद नशे में थे इसलिए बेध्यानी में सीढ़ियां चढ़ने लगे, मगर ऊपर नहीं गये, जल्दी ही उन्हें एहसास हो गया कि बॉथरूम नीचे भी होना चाहिए था। तब वहीं खड़े होकर गाना गाना शुरू कर दिया।”

“गाना?”

“हां, ‘बॉथरूम किधर है बता दो यारों, अंधे को राह सुझा दो यारों’ जिसके बाद मैंने ऊंची आवाज में बोलकर उन्हें बताया कि बॉथरूम सीढ़ियों के दूसरी तरफ था ना कि ऊपर।”

“कोमल की किसी के साथ कोई रंजिश वगैरह रही हो?”

“मुझे ऐसी कोई जानकारी नहीं है, लेकिन मुक्ता से उसकी अच्छी बनती थी, एक बार बात कर के देख लो।”

“मैं जरूर मिलूंगी - कहकर उसने पूछा - राशिद साहब को कोई जानकारी हो सकती है?”

“उम्मीद तो कम है, उन्हें पता होता तो मुझे भी मालूम होता। हां सूरज भाई को मालूम हो सकता है, क्योंकि वह डॉक्टर साहब के बहुत करीब हैं, रोज ही मिलना जुलना हो जाया करता है, फिर घर भी तो उनका अशोका इंक्लेव में ही है।”

“और कोई खास बात याद आ रही हो?”

“नहीं।”

“ठीक है नूरजहां, अब मैं चलती हूं, चाय के लिए थैंक यू।”

तत्पश्चात वह अलीशा के साथ चलती गेट तक पहुंची और उसके बाहर निकलने के बाद बाय कहकर दरवाजा बंद कर लिया। तत्पश्चात वापिस पहले वाली जगह पर बैठकर उसने अपने हस्बैंड को फोन लगाया, और जल्दी जल्दी घटना की जानकारी देने में जुट गयी।

राशिद शेख के घर से निकलकर अलीशा सीधा ऑफिस पहुंची और अपने असिस्टेंट गजानन को सामने बैठाकर कोमल भाटिया के कत्ल से रिलेटेड स्टोरी विस्तार से कह सुनाई।

“कातिल अगर भाटिया साहब ही नहीं हैं अलीशा - पूरी बात सुनकर वह बोला - तो साफ दिखाई दे रहा है कि पार्टी में मौजूद दस लोगों में से ही कोई एक हत्यारा है। और उन दसों में भी क्योंकि दो बच्चे थे, इसलिए हम बाकी आठों को सस्पेक्ट मान सकते हैं।”

“बड़ी लिस्ट है, छोटी करनी होगी।”

“अमन सिंह कातिल नहीं रहा हो सकता क्योंकि वह नशे में धुत्त सोफे पर सो रहा था। और कत्ल अगर पार्टी के दौरान ही हुआ था तो हम मीनाक्षी को भी शक से परे रख सकते हैं। यानि बाकी बचे छह लोग जिनपर ध्यान देने की जरूरत है।”

“मामले का दूसरा सिरा क्यों न पकड़ूं मैं?”

“मतलब?”

“साहिल का नाम मेरे जेहन में कुछ खटक सा रहा है।”

“मान लीजिए अगर उसका कोमल के साथ अफेयर था भी, तो बीच में कत्ल की बात कहां से आ घुसी, फिर घर में किसी की निगाहों में आये बिना वह फर्स्ट फ्लोर तक भी कैसे पहुंच सकता था?”

“क्या पता लगता है, जब मुट्ठी भर मेहमानों को एक दूसरे की ही खबर नहीं थी तो साहिल की तरफ कौन ध्यान देता? हो सकता है वह उस वक्त वहां पहुंचा हो जब डॉक्टर साहब मीनाक्षी के साथ प्रेमालाप में जुटे हुए थे। और उनके फारिग होने से पहले कत्ल कर के वापिस भी लौट गया हो?”

“पंद्रह मिनट में एक जवान औरत के साथ जबरदस्ती और उसका कत्ल कर के निकल जाना, कुछ समझ में नहीं आता। कैसे इतने आनन फानन में वह दोनों काम निबटा पाया होगा। और उससे भी बड़ी बात ये कि अगर कोमल के साथ उसका अफेयर चल रहा था, तो रेप करने की क्या जरूरत थी?”

“डॉक्टर को भी क्या जरूरत थी गजानन जी?”

“तो नहीं किया होगा डॉक्टर ने अपनी बीवी का मर्डर, वैसे भी जब तक हम उन्हें बेगुनाह नहीं मान लेते, आगे बढ़ पाना पॉसिबल नहीं होगा।”

“वो तो खैर मैं माने ही बैठी हूं, तभी तो दायें बायें झांक रही हूं। मगर दिल के किसी कोने में ये बात दस्तक बराबर दे रही है कि कत्ल डॉक्टर ने भी किया हो सकता है।”

“फिर तो कोई नतीजा सामने आयेगा मैडम तो वह मेहमानों से पूछताछ कर के ही आयेगा, दूसरा कोई रास्ता नहीं दिखाई देता।”

“एक काम करो तुम।”

“क्या?”

“कल से मीनाक्षी सिंह की निगाहबीनी शुरू कर दो। और ये काम क्योंकि बस दिन दिन में ही करना है, इसलिए अकेले भी बखूबी कर सकते हो।”

“कर सकता हूं, लेकिन हासिल क्या होने की उम्मीद कर रही हैं आप?”

“सच पूछो तो मैं नहीं जानती, लेकिन मुझे लगता है कि डॉक्टर के साथ उसके अफेयर का कोई न कोई रोल तो कोमल के कत्ल में जरूर होना चाहिए।”

“अगर आप ऐसा समझती हैं तो बतौर कातिल आपका ध्यान अमन सिंह की तरफ क्यों नहीं जाता?”

“क्योंकि वह नशे में धुत्त सोफे पर सो रहा था।”

“बाद में उठकर वहां से गया कैसे?”

“मतलब?”

“अगर इतना ही धुत्त था तो घर कैसे गया होगा?”

“बीवी और बेटा लेकर गये होंगे, और कैसे जाता?”

“मतलब कंफर्म नहीं है?”

“क्या कहना चाहते हो?”

“कहना नहीं चाहता, सोच रहा हूं कि क्या ऐसा रहा हो सकता है कि अमन सिंह वहां से अपनी बीवी और बेटे के साथ निकलने के बाद वापिस लौट आया हो?”

“कोमल का कत्ल करने के लिए?”

“हां।”

“अगर ऐसा था तो उसका मतलब बनता है कि कत्ल पार्टी के बाद किया गया था। जबकि डॉक्टर साहब कहते हैं कि उन्होंने बेडरूम में दाखिल होकर दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था, ऐसे में अमन सिंह भीतर कैसे जा पाया होगा?”

“क्या पता न किया हो?”

“तो दरवाजा सुबह बंद कैसे मिला?”

“रात को नींद में उठकर किसी वक्त सिटकनी चढ़ा दी होगी। जिसके बारे में उन्हें लग रहा होगा कि उस काम को कमरे में दाखिल होते के साथ ही कर दिया था, आखिर नशे में तो थे ही भाटिया साहब।”

“नहीं, डॉक्टर से मैं इतनी गलफत की उम्मीद नहीं कर सकती। जरा पेशा तो देखो उसका, क्या कोई गायब ख्याल आदमी डॉक्टरी कर सकता है?”

“आप उनके नशे में होने पर ध्यान नहीं दे रहीं।”

“नहीं बहुत ज्यादा नशे में तो नहीं था वह, हां मेरे वहां से निकल जाने के बाद और चढ़ा ली हो, या पार्टी खत्म होने के बाद बोतल मुंह में घुसेड़ ली हो तो नहीं कह सकती।”

“पूछा नहीं आपने?”

“ख्याल ही नहीं आया, लेकिन कल जरूर पूछूंगी, अब जरा एमएलए चरण सिंह की बात करते हैं। डॉक्टर को शक है कि कोमल की हत्या उसी ने कराई है, और शक क्यों है वो बात मैं तुम्हें बता ही चुकी हूं, ठीक?”

“ठीक।”

“अब तुम बताओ कि नेता के बारे में क्या जानते हो?”

“दबदबे वाला है, इलाके पर मजबूत पकड़ है उसकी। चार बार से लगातार इलेक्शन जीतता आ रहा है। पिछले इलेक्शन में अपने एक प्रतिद्वंदी का कत्ल करा दिया था, इसलिए खतरनाक भी बराबर है।”

“जो कि हर नेता होता है।”

“भू माफिया है, गुंडों की फौज इकट्ठी कर रखी है। सुनने में तो ये भी आता है कि पचास के करीब लड़के उसके लिए महाना तंख्वाह पर काम करते हैं। संख्या उतनी बड़ी ना भी हो तो दस-पंद्रह आदमियों की तो मैं गारंटी कर सकता हूं।”

“ओमकार सिंह के बारे में क्या जानते हो?”

“सजायाफ्ता है, पंद्रह साल पहले फर्स्ट टाईम वह नेता के साथ चुनाव प्रचार में दिखाई दिया था, उसके बाद दोनों का चोली दामन का साथ बन गया। विधायक के तमाम गलत काम वही करता या करवाता है, जिसमें सबसे अहम दबंगई वसूल करना है। वैसे नेता के काले कारनामों का कोई ओर छोर नहीं है और वह सब ओमकार के ही जिम्मे हैं।”

“और कुछ?”

“ओमकार के बाद नेता के दो खास आदमियों के नाम बता सकता हूं।”

“बताओ।”

“जल्ली और निन्नी। उदाहरण के लिए मान लो कि नेता को किसी का कत्ल करवाना है, तो वह ओमकार सिंह को हुक्म देगा। ओमकार जल्ली और निन्नी को, जो आगे या तो खुद उस काम को अंजाम देंगे, या फिर दूसरे आदमियों के जरिये पूरा करा देंगे। इस तरह से देखो तो नेता का खास हुआ ओमकार सिंह, और ओमकार के खास हुए जल्ली तथा निन्नी।”

“इसके अलावा कोई जानकारी?”

“आदमी जब पॉवर में होता है अलीशा तो उसके दोस्त और दुश्मन दोनों बनते हैं। चरण सिंह के ऐसे ही एक दुश्मन का नाम है एमपी हर्ष देव खट्टर। एकदम कांटे की दुश्मनी है, दोनों का बस चले तो आज ही एक दूसरे की गर्दन धड़ से अलग कर दें। नहीं करते तो सिर्फ इसलिए क्योंकि जानते हैं एक का कत्ल हुआ तो सीधा शक दूसरे पर जायेगा। बावजूद इसके दोनों के आदमियों में आये दिन पंगे होते रहते हैं। एक दूसरे के कामों में रोड़ा डालने का भी कोई मौका नहीं गंवाते। इसलिए कई बार उनके बनते काम बिगड़ भी जाया करते हैं।”

“हर्ष देव खट्टर भी चरण सिंह के मिजाज वाला ही है?”

“मिजाज तो खैर वैसा ही है, लेकिन वह खानदानी रईस है, इसलिए नेता जितनी गुंडागर्दी करता तो नहीं ही दिखता। ना ही किसी गलत धंधे में कभी उसका नाम सामने आया।”

“विधायक का आया है?”

“कई बार, कभी उसके किसके गोदाम से हथियार बरामद हो गये, तो कभी नशीले पदार्थ, मगर पुलिस प्रशासन चाहकर भी उसे कटघरे तक नहीं पहुंचा पाया। मगर वह सब पुरानी बातें हैं, आज का हाल तो ये है कि पूरे फरीदाबाद की पुलिस उसकी जेब में है। खासतौर से सैक्टर 37 का थाना तो काम ही उसके इशारे पर करता है। कहने का मतलब ये है कि अगर कोमल भाटिया का कत्ल विधायक ने कराया है तो उसके खिलाफ कुछ साबित कर पाने की बात तो तुम भूल ही जाओ।”

“अगर डॉक्टर फंसता दिखाई देगा तो कुछ तो हमें करना ही पड़ेगा गजानन, भला अपने क्लाईंट का बुरा होते हम कैसे देख सकते हैं।”

“देखना पड़ेगा, वरना ना तो ये ऑफिस बचेगा, ना ही मैं और तुम जिंदा रह पायेंगे। यानि हर हाल में डॉक्टर का हश्र वही होगा, जो नेता को मंजूर होगा।”

“देखेंगे - कहती हुई वह उठ खड़ी हुई - चलो अब ऑफिस बंद करने का वक्त हो गया है।”

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