“आह.....आह......मैं कहां हूं......म......मैं कौन हूं? ” मेडिकल इंस्टीट्यूट के एक बेड पर पड़ा मरीज धीरे-धीरे कराह रहा था। तीन नर्सें और एक डॉक्टर उसे चकित भाव से देखने लगे।
जहां उनकी आंखों में उसे होश में आता देखकर चमक उभरी थी, वहीं हल्की-सी हैरत के भाव भी उभर आए। वे ध्यान से गोरे-चिट्टे गोल चेहरे और घुंघराले बालों वाले युवक को देखने लगे, जिसकी आयु तीस के आस-पास थी। वह हृष्ट- पुष्ट और करीब छ: फुट लम्बा था। उसके जिस्म पर हल्के नीले रंग का शानदार सूट था। सूट के नीचे सफेद शर्ट।
कराहते हुए उसने धीरे-धीरे आंखें खोल दीं, कुछ देर तक चकित-सा अपने चारों तरफ का नजारा देखता रहा। चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कुछ समझ न पा रहा हो। कमरे के हर कोने में घूमकर आने के बाद उसकी नजर डॉक्टर पर स्थिर हो गई। एक झटके से उठ बैठा वह।
एक नर्स ने आगे बढ़कर जल्दी से उसे संभाला, बोली—“प...प्लीज, लेटे रहिए आपके सिर में बहुत गम्भीर चोट लगी है।"
" म...मगर कैसे… क्या हुआ था?”
आगे बढ़ते हुए डॉक्टर ने कहा—“ आपका एक्सीडेण्ट हुआ था मिस्टर, क्या आपको याद नहीं?"
" एक्सीडेण्ट, मगर किस चीज से?"
" ट्रक से, आप कार चला रहे थे।"
" क...कार… मगर, क्या मेरे पास कार भी है?"
" जी हां, वह कार शायद आप ही की होगी।" हल्की-सी मुस्कान के साथ डॉक्टर ने कहा—"क्योंकि कपड़ों से आप कम-से-कम किसी तरह से लोफर तो नहीं लगते हैं!”
युवक ने चौंककर जल्दी से अपने कपड़ों की तरफ देखा। अपने ही कपड़ों को पहचान नहीं सका वह। फिर अपने हाथों को अजनबी-सी दृष्टि से देखने लगा। दाएं हाथ की तर्जनी में हीरे की एक कीमती अंगूठी थी। बाईं कलाई में विदेशी घड़ी। अजीब-सी दुविधा में पड़ गया वह। अचानक ही चेहरा उठाकर उसने सवाल किया—“मैं इस वक्त कहां हूं? और आप लोग कौन हैं?"
" आप इस वक्त देहली के मेडिकल इंस्टीट्यूट में हैं, ये तीनों नर्सें हैं और मैं डाक्टर भारद्वाज, आपका इलाज कर रहा हूं।"
“म....मगर....क....म....मैं....कौन हूं?"
" क्या मतलब?" बुरी तरह चौंकते हुए डॉक्टर भारद्वाज ने अपने दोनों हाथ बेड के कोने पर रखे और उसकी तरफ झुकता हुआ बोला—“क्या आपको मालूम नहीं है कि आप कौन हैं?"
" म...मैं… मैं...!"
असमंजस में फंसा युवक केवल मिमियाता ही रहा। ऐसा एक शब्द भी न कह सका, जिससे उसके परिचय का आभास होता। डॉक्टर ने नर्सों की तरफ देखा, वे पहले ही उसकी तरफ चकित भाव से देख रही थीं। एकाएक ही डॉक्टर ने अपनी आंखें युवक के चेहरे पर गड़ा दीं बोला—“याद कीजिए मिस्टर, आपको जरूर याद है कि आप कौन हैं, दिमाग पर जोर डालिए, प्लीज याद कीजिए मिस्टर कि अपनी कार को खुद ड्राइव करते हुए रोहतक रोड से होकर आप कहां जा रहे थे?"
" रोहतक रोड?"
“हां, इसी रोड पर एक ट्रक से आपका एक्सीडेण्ट हो गया था।”
युवक चेहरा उठाए सूनी-सूनी आंखों से डॉक्टर को देखता रहा....भावों से ही जाहिर था कि वह डॉक्टर के किसी वाक्य का अर्थ नहीं समझ सका है। अजीब-सी कशमकश और दुविधा में फंसा महसूस होता वह बोला—"म......मुझे कुछ भी याद नहीं है डॉक्टर, क्यों डॉक्टर, मुझे कुछ भी याद क्यों नहीं आ रहा है?"
डॉक्टर के केवल चेहरे पर ही नहीं, बल्कि सारे जिस्म पर पसीना छलछला आया था। हथेलियां तक गीली हो गईं उसकी। अभी वह कुछ बोल भी नहीं पाया था कि युवक ने चीखकर पूछा था—“प्लीज डॉक्टर, तुम्हीं बताओ कि मैं कौन हूं?"
" जब आप ही अपने बारे में कुछ नहीं बता सकते तो भला हमें क्या मालूम कि आप कौन हैं?"
" मुझे कौन लाया है यहां, उसे बुलाओ, वह शायद मुझे मेरा नाम बता सके!”
" आपको यहां पुलिस लाई है।"
“प......पुलिस? ”
" जी हां, दुर्घटनास्थल पर भीड़ इकट्ठी हो गई थी। फिर उस भीड़ में से किसी ने पुलिस को फोन कर दिया। ट्रक चालक भाग चुका था। आप बेहोश थे, जख्मी, इसीलिए पुलिस आपको यहां ले आई। इस कमरे के बाहर गैलरी में इस वक्त भी इंस्पेक्टर दीवान मौजूद हैं। वे शायद आपका बयान लेना चाहते हैं, और मेरे ख्याल से आपसे उनका सबसे पहला सवाल यही होगा कि आप कौन हैं।"
" म...मगर मुझे तो आपना नाम भी नहीं पता।" उसकी तरफ देखते हुए बौखलाए-से युवक ने कहा, जबकि डॉक्टर ने तीन में से एक नर्स को गुप्त संकेत कर दिया था। उस नर्स ने सिरिंज में एक इंजेक्शन भरा। डॉक्टर युवक को बातों में उलझाए हुए था, जबकि नर्स ने उसे इंजेक्शन लगा दिया।
कुछ देर बाद बार-बार यही पूछते हुए युवक बेहोश हो गया—" मैं कौन हूं......मैं कौन हूं.....मैँ कौन हूं?"
¶¶
हाथ में रूल लिए इंस्पेक्टर दीवान गैलरी में बेचैनी से टहल रहा था।
एक तरफ दो सिपाही सावधान की मुद्रा में खड़े थे।
कमरे का दरवाजा खुला और डॉक्टर भारद्वाज के बाहर निकलते ही उसकी तरफ दीवान झपट-सा पड़ा, बोला—"क्या रहा डॉक्टर?"
"उसे होश तो आ गया था, लेकिन...।"
"लेकिन?"
“मैंने इंजेक्शन लगाकर पुन: बेहोश कर दिया है।”
"म...मगर क्यों? क्या आपको मालूम नहीं था कि यहां मैं खड़ा हूं? आपको सोचना चाहिए था डॉक्टर कि उसका बयान कितना जरूरी है।"
"मेरा ख्याल है कि वह अब आपके किसी काम का नहीं रहा है?"
“ क्यों?”
"वह शायद अपनी याददाश्त गंवा बैठा है, अपना नाम तक मालूम नहीं है उसे।"
"डॉक्टर?"
"अब आप खुद ही सोचिए कि एक्सीडेण्ट के बारे में वह आपको क्या बता सकता था? वह तो खुद पागलों की तरह बार-बार अपना नाम पूछ रहा था। दिमाग पर और ज्यादा जोर न पड़े, इसीलिए हमने उसे बेहोश कर दिया। दो-तीन घण्टे बाद यह पुन: होश में आ जाएगा और होश में आते ही शायद पुन: अपना नाम पूछेगा। उसकी बेहतरी के लिए उसके सवालों का जवाब देना जरूरी है मिस्टर दीवान, इसीलिए अच्छा तो यह होगा कि इस बीच आप उसके बारे में कुछ पता लगाएं।"
दीवान के चेहरे पर उलझन के अजीब-से भाव उभर आए। मोटी भवें सिकुड़-सी गईं, बोला—" कहीँ यह एक्टिंग तो नहीं कर रहा है डॉक्टर?"
“ क्या मतलब?" भारद्वाज चौंक पड़ा।
"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि एक्सीडेण्ट की वजह से वह घबरा गया हो, पुलिस के सवालों और मिलने वाली सजा से बचने के लिए...।"
"एक्टिंग सिर्फ चेतन अवस्था में ही की जा सकती है—अचेतन अवस्था में नहीं। और वह बेहोशी की अवस्था में भी यही बड़बड़ाए जा रहा था कि में कौन हूं, इस मामले में अगर आप अपने पुलिस वाले ढंग से न सोचें तो बेहतर होगा, क्योंकि वह सचमुच अपनी याददाश्त गंवा बैठा है।"
"हो सकता है!” कहकर दीवान उनसे दूर हट गया, फिर वह गैलरी में चहलकदमी करता हुआ सोचने लगा कि इस युवक के बारे में कुछ पता लगाने के लिए उसे क्या करना चाहिए। दाएं हाथ में दबे रूल का अंतिम सिरा वह बार-बार अपनी बाईं हथेली पर मारता जा रहा था। एकाएक ही वह गैलरी में दौड़ पड़ा—दौड़ता हुआ ऑफिस में पहुंचा।
फोन पर एक नम्बर रिंग किया।
जिस समय दूसरी तरफ बैल बज रही थी, उस समय दीवान ने अपनी जेब से पॉकेट डायरी निकाली और एक नम्बर को ढ़ूंढने लगा, जो उस गाड़ी का नम्बर था, जिसमें से बेहोश अवस्था में युवक उसे मिला था।
दूसरी तरफ से रिसीवर के उठते ही उसने कहा—" हेलो, मैं इंस्पेक्टर दीवान बोल रहा हूं—एक फियेट का नम्बर नोट कीजिए, आरo टीo ओo ऑफिस से जल्दी-से-जल्दी पता लगाकर मुझे बताइए कि यह गाड़ी किसकी है?"
"नम्बर प्लीज।" दूसरी तरफ से कहा गया।
"डीo वाईo एक्स-तिरेपन-चव्वन।" नम्बर बताने के बाद दीवान ने कहा—“ मैं इस वक्त मेडिकल इंस्टीट्यूट में हूं, अत: यहीं फोन करके मुझे सूचित कर दें।" कहने के बाद उसने इंस्टीट्यूट का नम्बर भी लिखवा दिया।
रिसीवर रखकर वह तेजी के साथ ऑफिस से बाहर निकला और फिर दो मिनट बाद ही वह डॉक्टर भारद्वाज के कमरे में उनके सामने बैठा कह रहा था—“ मैं एक नजर उसे देखना चाहता हूं डॉक्टर।”
"आपसे कहा तो था, उसे देखने से क्या मिलेगा?"
"मैं उसकी तलाशी लेना चाहता हूं—ज्यादातर लोगों की जेब से उनका परिचय निकल आता है।"
"ओह, गुड!" डॉक्टर को दीवान की बात जंची। एक क्षण भी व्यर्थ किए बिना वे खड़े हो गए और फिर कदम-से-कदम मिलाते उसी कमरे में पहुंच गए—जहां युवक अभी तक बेहोश पड़ा था।
दीवान ने बहुत ध्यान से युवक को देखा।
फिर आगे बढ़कर उसने बेहोश पड़े युवक की जेबें टटोल डाली, मगर हाथ में केवल दो चीजें लगीं—उसका पर्स और सोने का बना एक नेकलेस।
इस नेकलेस में एक बड़ा-सा हीरा जड़ा था।
दीवान बहुत ध्यान से नेकलेस को देखता रहा, बोला—"इसके पास कार थी, जिस्म पर मौजूद कपड़े, घड़ी, अंगूठी और यह नेकलेस स्पष्ट करते हैं कि युवक काफी सम्पन्न है।”
"यह नेकलेस शायद इसने किसी युवती को उपहार स्वरूप देने के लिए खरीदा था, वह इसकी पत्नी भी हो सकती है और प्रेमिका भी।" थोड़ी-बहुत जासूसी झाड़ने की कोशिश डॉक्टर ने भी की।
“प्रेमिका होने के चांस ही ज्यादा हैं।"
“ऐसा क्यों?"
"आजकल के युवक पत्नी को नहीं, प्रेमिका को उपहार देते हैं और पत्नी को देते भी हैं तो वह इतना महंगा नहीं होता।"
डॉक्टर भारद्वाज और कमरे में मौजूद नर्सें धीमे से मुस्कराकर रह गईं।
"यदि नेकलेस इसने आज ही खरीदा है तो इसकी रसीद भी होनी चाहिए!" कहने के साथ ही दीवान ने उसका पर्स खोला। पर्स की पारदर्शी जेब में मौजूद एक फोटो पर दीवान की नजर टिक गई—वह किसी युवती का फोटो था। युवती खूबसूरत थी।
दीवान ने फोटो बाहर निकालते हुए कहा—"ये लो डॉक्टर, उसका फोटो तो शायद मिल गया है, जिसके लिए इसने नेकलेस खरीदा होगा।"
कन्धे उचकाकर डॉक्टर ने भी फोटो को देखा। दीवान ने उलटकर फोटो की पीठ देखी, किन्तु हाथ निराशा ही लगी—शायद उसने यह उम्मीद की थी कि पीठ पर कुछ लिखा होगा, मगर ऐसा कुछ नहीं था।
दीवान उलट-पुलटकर बहुत देर तक फोटो को देखता रहा। जब वह उससे ज्यादा कोई अर्थ नहीं निकाल सका, जितना समझ चुका था तो शेष पर्स को टटोल डाला। बाइस हजार रुपए और कुछ खरीज के अलावा उसके हाथ कुछ नहीं लगा। नेकलेस से सम्बन्धित रसीद भी नहीं।
अंत में एक बार फिर युवती का फोटो उठाकर उसने ध्यान से देखा। अभी दीवान यह सोच ही रहा था कि इस फोटो के जरिए वह इस युवक के विषय में कुछ जान सकता है कि ऑफिस से आने वाली एक नर्स ने कहा—"ऑफिस में आपके लिए फोन है इंस्पेक्टर।"
सुनते ही दीवान रिवॉल्वर से निकली गोली की तरह कमरे से बाहर निकल गया।
¶¶
अपने कमरे में पहुंचकर डॉक्टर भारद्वाज ने उस युवक के केस के सम्बन्ध में ही अपने तीन सहयोगी डॉक्टरों से फोन पर बात की—बल्कि कहना चाहिए कि इस केस पर विचार-विमर्श करने के लिए उन्होंने इसी समय तीनों को अपने कमरे में आमंत्रित किया था। तीसरे डॉक्टर से सम्बन्ध विच्छेद करके उन्होंने रिसीवर अभी क्रेडिल पर रखा ही था कि धड़धड़ाता हुआ दीवान अन्दर दाखिल हुआ।
इस वक्त पहले की अपेक्षा वह कुछ ज्यादा बौखलाया हुआ था।
"क्या बात है इंस्पेक्टर, कुछ पता लगा?"
"नहीं!" कहने के साथ ही दीवान ' धम्म' से कुर्सी पर गिर गया। डॉक्टर भारद्वाज ने उसे ध्यान से देखा—सचमुच यह बुरी तरह बेचैन, उलझा हुआ और निरुत्साहित-सा नजर आ रहा था। उसे ऐसी अवस्था में देखकर भारद्वाज ने पूछा—"क्या बात है इंस्पेक्टर? फोन सुनने के लिए जाते वक्त तो तुम इतने थके हुए नहीं थे?"
"एसo पीo साहब का फोन था।”
"फिर?"
"इस युवक की कार जिस ट्रक से भिड़ी थी, उस ट्रक के बारे में छानबीन करने पर पता लगा है कि वह ट्रक स्मगलर्स का है।"
"ओह!”
"सारा ट्रक स्मगलिंग के सामान से भरा पड़ा था और उस पर इस्तेमाल की गई नम्बर प्लेट भी जाली थी—इससे भी ज्यादा भयंकर बात यह पता लगी है कि इस युवक की कार से टकराने से पहले रोहतक में यह ट्रक एक बारह वर्षीय बच्चे को कुचल चुका था।"
" ओह, माई गॉड।"
“ इस ट्रक पर लगी नम्बर प्लेट वाला नम्बर बताते हुए हरियाणा पुलिस ने वायरलेस पर सूचना दी है कि उस बारह वर्षीय खूबसूरत बच्चे की लाश अभी तक सड़क पर ही पड़ी है, वह ट्रक उसके सिर को पूरी तरह कुचलकर वहां से भागा था।”
"कैसा जालिम ड्राइवर था वह?"
"क्या तुम समझ रहे हो डॉक्टर कि यह सब मैं तुम्हें क्यों बता रहा हूं?"
“क्यों? ”
"ताकि तुम एहसास कर सको कि इस युवक की याददाश्त समाज, पुलिस और कानून के लिए कितनी जरूरी है—ट्रक में कागजात नहीं हैं, यानि पता नहीं लग सका कि वह किसका है, यदि उसके ड्राइवर का पता लग जाए तो निश्चित रूप से हम उसके मालिक तक पहुंच जाएंगे, और उस ड्राइवर को केवल एक ही शख्स पहचान सकता है, वह युवक।"
"तुम इतने विश्वासपूर्वक कैसे कह सकते हो?"
"हमारे एसo पीo साहब की यही राय है, खुद मेरी भी और हमारी यह राय निराधार नहीं है। उसका आधार है, एक्सीडेण्ट की सिचुएशन, युवक की कार और ट्रक की भिड़न्त बिल्कुल आमने-सामने से हुई है। एक्सीडेण्ट होने से पहले इस युवक ने ट्रक ड्राइवर को बिल्कुल साफ देखा होगा या उसे पहचान सकता है। डॉक्टर, अगर तुम यह न कहो कि उसकी याददाश्त गुम हो गई है तो मैं स्मगलर्स से सम्बन्धित समझे जाने वाले सभी ड्राइवरों के फोटो युवक के सामने डाल दूंगा।”
"म...मगर दिक्कत तो यह है इंस्पेक्टर कि युवक की याददाश्त वाकई गुम हो गई है, तुम ट्रक ड्राइवर की शक्ल की बात करते हो—एक्सीडेण्ट की बात करते हो। उसे तो यह भी याद नहीं है कि उसके पास कोई कार भी थी।"
"उसे ठीक करना होगा, उसकी याददाश्त वापस आने के लिए अपनी एड़ी से चोटी तक का जोर लगाना होगा तुम्हें, यह बहुत जरूरी है। वह स्मगलर ही नहीं, एक ग्यारह वर्षीय मासूम बच्चे का हत्यारा भी है।"
"समझ रहा हूं इंस्पेक्टर। मैं तो खुद ही कोशिश कर रहा हूं। इसी केस पर विचार-विमर्श करने के लिए मैंने अपने तीन सहयोगी डॉक्टर्स को यहां बुलाया है, वे आते ही होंगे।”
कुछ कहने के लिए दीवान ने अभी मुंह खोला ही था कि एक नर्स ने आकर सूचना दी—“एक बार फिर आपका फोन है इंस्पेक्टर।”
बिना किसी प्रकार की औपचारिकता निभाए दीवान वहां से तीर की तरह निकल गया। दौड़कर उसने गैलरी पार की—ऑफिस में पहुंचा-क्रेडिल के पास ही रखे रिसीवर को उठाकर बोला—" इंस्पेक्टर दीवान हियर।"
"वांछित नम्बर की कार का पता लग गया है।"
दीवान ने धड़कते दिल से पूछा—“ क्या है उसका नाम?"
"अमीचन्द जैन—यमुना पार, प्रीत विहार में रहते हैं।"
"ओह।"
"मगर प्रीत विहार पुलिस स्टेशन से पता लगा है कि आज सुबह ही मिस्टर अमीचन्द जैन ने अपनी गाड़ी चोरी हो जाने की रपट लिखवाई थी।”
"क...क्या?” दीवान का दिमाग झन्नाकर रह गया।
“रपट के मुताबिक अमीचन्द ने रात ग्यारह बजे लायन्स क्लब की मीटिंग से लौटकर अपनी गाड़ी अच्छी-भली गैराज में खड़ी की थी, मगर सुबह जाने पर देखा कि गैराज का ताला टूटा पड़ा है और गाड़ी उसके अन्दर से गायब है।"
"यानि गाड़ी रात के ग्यारह के बाद किसी समय चुराई गई?"
“ जी हां।"
कहने के लिए दीवान को एकदम से कुछ नहीं सूझा। उसका दिल ढेर सारे सवाल करने के लिए मचल रहा था, मगर स्वयं ही समझ नहीं पा रहा था कि वह जानना क्या चाहता है। अत: कुछ देर तक लाइन पर खामोशी रही—फिर दीवान ने कहा—" तुम वायरलेस पर प्रीत विहार पुलिस स्टेशन को सूचना दे दो कि वे अमीचन्द से यह कहकर कि उसकी कार मिल गई है, उसे मेडिकल इंस्टीट्यूट भेज दें।"
“ओo केo ।" कहकर दूसरी तरफ से कनेक्शन ऑफ कर दिया गया। दीवान हाथ में रिसीवर लिए किसी मूर्ति के समान खड़ा था—किरर्रर...किर्रर्रर की अवाज उसके कान के पर्दे को झनझना रही थी। वहीं खड़ा वह सोच रहा था कि युवक के बारे में कुछ जानने का यह ' क्लू' भी बिल्कुल फुसफुसा साबित हुआ है-कार चोरी की थी। क्या वह युवक चोर है?
यह विचार उसके कण्ठ से नीचे नहीं उतर सका, क्योंकि आंखों के सामने शानदार सूट, हीरे की अंगूठी, विदेशी घड़ी, बाईस हजार रुपये और हीरा जड़ित वह सोने का नेकलेस नाच उठा।
¶¶
उस वक्त तक युवक बेहोश ही था, जब अमीचन्द जैन वहां पहुंच गया—हालांकि इंस्पेक्टर दीवान को ऐसी कोई उम्मीद नहीं थी कि अमीचन्द जैन युवक के बारे में कुछ बता सकेगा। फिर भी एक नजर उसने अमीचन्द से युवक को देख लेने के लिए कहा।
वही हुआ जो दीवान पहले से जानता था।
यानि अमीचन्द ने कहा—“यह युवक मेरे लिए नितान्त अपरिचित है।"
डॉक्टर भारद्वाज के तीनों सहयोगी डॉक्टर आ चुके थे और अब वे चारों एक बन्द कमरे में उस केस के सम्बन्ध में विचार-विमर्श कर रहे थे। नर्स को निर्देश दे दिया गया था कि युवक के होश में आते ही उन्हें सूचना दे दी जाए।
उस वक्त करीब एक बजा था, जब नर्स ने उन्हें सूचना दी।
वे चारों ही उस कमरे में चले गए, जिसमें युवक था। गैलरी के बाहर बेचैन-सा टहलता हुआ दीवान उत्सुकतापूर्वक उनके बाहर निकलने की प्रतीक्षा कर रहा था। इस वक्त उसके दिमाग में भी केवल एक ही सवाल चकरा रहा था कि वह युवक कौन है?
पता लगाने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था उसे।
दरवाजा खुला, चारों डॉक्टर बाहर निकले और दीवान लपककर उनके समीप पहुंच गया। बोला—“ क्या रहा डॉक्टर?"
"उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा है।" डाक्टर भारद्वाज ने बताया।
"उसके ठीक होने के बारे में आपकी क्या राय है?"
एक अन्य डॉक्टर ने कहा—" अगर ठीक होने से आपका तात्पर्य उसकी याददाश्त वापस आने से है तो हम यह कहेंगे कि उसमें चिकित्सा विज्ञान कुछ नहीं कर सकता।"
"क्या मतलब?" दीवान का चेहरा फक्क पड़ गया था।
अचानक ही डॉक्टर भारद्वाज ने पूछा—“ क्या तुमने कभी कोई खराब घड़ी देखी है इंस्पेक्टर? खराब से तात्पर्य है ऐसी घड़ी देखी है, जो बन्द पड़ी हो अथवा कम या ज्यादा समय दे रही हो?"
" य...ये घड़ी बीच में कहां से आ गई?"
"इस वक्त उस युवक का मस्तिष्क नाजुक घड़ी के समान है। कमानी और घड़ी का संतुलन ही वे मुख्य चीजें हैं, जिनसे घड़ी सही समय देती है, अगर संतुलन ठीक नहीं है तो घड़ी धीमी चलेगी या तेज, जबकि इस युवक के दिमाग रूपी घड़ी की दोनों चीजें खराब हैं साधारण अव्यवस्था होने पर ये सारी चीजें ठीक काम करने लगेंगी, कई बार यह सम्भव होता है कि ऐसी घड़ी साधारण झटके से सही चलने लगती है, मगर ध्यान रहे—यदि झटका आवश्यकता से जरा भी तेज लग जाए तो परिणाम उल्टे और भयानक ही निकलते हैं। यह पागल हो सकता है, अत: उतना संतुलित झटका देना किसी डॉक्टर के वश में नहीं है—वह तो स्वयं ही होगा।"
"कब? ”
"जब प्रकृति चाहे। ऐसा एक क्षण में ही होगा, वह क्षण भविष्य की कितनी पर्तों के नीचे दबा है—या भला कोई डॉक्टर कैसे बता सकता है?"
"म...मेरा मतलब यह झटका उसे किन अवस्थाओं में लगने की सम्भावना है?"
“ विश्वासपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता है, यदि अचानक ही उसके सामने कोई उसका बहुत ही प्रिय व्यक्ति आ जाए तो संभव है।"
इंस्पेक्टर दीवान की आंखों के सामने युवक के पर्स से निकला युवती का फोटो नाच उठा। कुछ देर तक जाने वह किन ख्यालों में गुम रहा—फिर बोला—“ क्या मैं उससे बात कर सकता हूं, डॉक्टर?"
"प्रत्यक्ष में उसे बहुत ज्यादा चोट नहीं लगी है, बयान ले सकते हो, मगर हम एक बार फिर कहेंगे—प्लीज, उसकी याददाश्त के सम्बन्ध में अपने पुलिसिया ढंग से न सोचें, ऐसी कोई बात न करें, जिससे उसके मस्तिक को वह झटका लगे, जिससे वह पागल हो सकता है।"
"थैंक्यू डॉक्टर, मैं ध्यान रखूंगा।" कहकर इंस्पेक्टर दीवान फिरकनी की तरह एड़ी पर घूम गया और अगले ही पल आहिस्ता से दरवाजा खोलकर यह कमरे के अन्दर था।
युवक बेड पर रखे तकिए पर पीठ टिकाए अधलेटी-सी अवस्था में बैठा था। उसके समीप ही स्टूल पर एक नर्स बैठी थी, जो दीवान को देखते ही उठकर खड़ी हो गई। युवक उलझी हुई-सी नजरों से दीवान को देख रहा था।
"हैलो मिस्टर।” उसके पास पहुंचकर दीवान ने धीमे से कहा।
युवक कुछ नहीं बोला, ध्यान से दीवान को केवल देखता रहा।
दीवान स्टूल पर बैठता हुआ बोला—“क्या तुम बोल नहीं सकते?"
"आप वही इंस्पेक्टर हैं न, जो मेरे बारे में पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं?”
"जी हां, मेरा नाम दीवान है।"
युवक ने उत्सुकतापूर्वक पूछा—“ कुछ पता लगा?"
"तुम्हें कैसे मालूम कि मैं...।"
"डॉक्टर ने बताया था, मैं बार-बार उससे पूछ रहा था, उसने कहा कि एक पुलिस इंस्पेक्टर मेरे बारे में पता लगाने के लिए इनवेस्टिगेशन कर रहा है।"
दीवान निश्चय नहीं कर पा रहा था कि युवक को वह कड़ी दृष्टि से घूरे अथवा सामान्य भाव से, कुछ देर तक शान्त रहने के बाद बोला—“देखो, यदि तुम होने वाले एक्सीडेण्ट, पुलिस की पूछताछ या मिलने वाली सजा से आतंकित हो तो मैं स्पष्ट किए देता हूँ कि उस एक्सीडेण्ट में तुम्हारी कोई गलती नहीं थी। तुम अपनी साइड पर ड्राइविंग कर रहे थे, हवा से बातें करते उस ट्रक ने रांग साइड़ में आकर तुम्हारी कार में टक्कर मारी, अत: तुम्हारे लिए डरने जैसी कोई बात नहीं है।”
"मैं विश्वास नहीं कर पा रहा हूं कि एक्सीडेण्ट हुआ था, मैं यहां हूं, सिर में चोट है, पिछली एक भी बात याद नहीं कर पा रहा हूं, डॉक्टर्स, नर्स और तुम भी कह रहे हो कि मेरा एक्सीडेण्ट हुआ था, इसीलिए मानना पड़ रहा है कि जरूर हुआ होगा।"
"क्या तुम्हें कुछ भी याद नहीं है? अपना नाम भी?"
"मैं खुद परेशान हूं।"
"क्या तुम इन चीजों को पहचानते हो?" सवाल करते हुए दीवान ने पर्स और नेकलेस निकालकर उसकी गोद में डाल दिए।
उन्हें देखने के बाद युवक ने इन्कार में गर्दन हिलाई।
अब दीवान ने जेब से युवती का फोटो निकाला और उसे दिखाता हुआ बोला—“ क्या तुम इस युवती को भी नहीं पहचानते? ”
कुछ देर तक युवक ध्यान से फोटो को देखता रहा। दीवान बहुत ही पैनी निगाहों से उसके चेहरे पर उत्पन्न होने वाले भावों को पढ़ रहा था, किन्तु कोई ऐसा भाव वह नहीं खोज सका, जो उसके लिए आशाजनक हो। युवक ने इन्कार में गर्दन हिलाते हुए कहा—" कौन है ये?”
"फिलहाल इसका नाम तो मैं भी नहीं जानता, मगर यह फोटो आपके पर्स से निकली है।"
"मेरे पर्स से?"
"जी हां। यह पर्स आप ही की जेब से निकला है और नेकलेस भी।"
युवक चकित भाव से इन तीनों चीजों को देखने लगा। आंखों में उलझन-सी थी, बोला—"अजीब बात है, इंस्पेक्टर! मैं खुद ही से खो गया हूं।"
अचानक ही दीवान की आंखों में सख्त भाव उभर आए, चेहरा कठोर हो गया और वह युवक की आंखों में झांकता हुआ गुर्राया—"तुम्हारा यह नाटक डॉक्टर्स के सामने चल गया मिस्टर, पुलिस के सामने नहीं...।"
युवक ने चौंकते हुए पूछा—"क्या मतलब?"
"तुमने अमीचन्द के गैराज से गाड़ी चुराई—रात के समय कोई संगीन अपराध किया और फिर सुबह दुर्भाग्य से एक्सीडेण्ट हो गया—तुम चोरी और रात में किए अपने किसी अपराध से बचने के लिए नाटक कर रहे हो।"
"म...मैँ समझ नहीं रहा हूं इंस्पेक्टर? कैसी चोरी? कैसा अपराध और यह अमीचन्द कौन है?"
"वही, जिसकी तुमने गाड़ी चुराई थी।"
"अजीब बात कर रहे हैं आप!"
"जिस ट्रक से तुम्हारी टक्कर हुई थी, उसमें स्मगलिंग का सामान था, वह ट्रक ड्राइवर एक मासूम बच्चे का हत्यारा है—उसे केवल तुम्हीं ने देखा है मिस्टर, सिर्फ तुम ही उसे पहचान सकते हो, उस तक पहुंचने में यदि तुम मेरी मदद करो तो कार चुराने जैसे छोटे जुर्म से मैं तुम्हें बरी करा सकता हूं।"
"मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है, कैसा ट्रक? कैसा ड्राइवर?”
"उफ्फ।" झुंझलाकर दांत पीसते हुए दीवान ने मोटा रूल अपने बाएं हाथ पर जोर से मारा। यह झुंझलाहट उस पर इसीलिए हावी हुई थी, क्योंकि अब वह इस नतीजे पर पहुंच गया था कि युवक की याददाश्त वाकई गुम है।
¶¶
रात के करीब दस का समय था।
हर तरफ खामोशी छाई हुई थी। युवक अधलेटी अवस्था में ही बेड पर पड़ा था और उसके पांयते स्टूल पर बैठी नर्स कोई उपन्यास पढ़ने में व्यस्त थी।
युवक का दिमाग आज दिन भर की घटनाओं में भटक रहा था—ऐसा उसे कोई नहीं मिला था, जो यह बता सके कि वह कौन है?
यह सोच-सोचकर वह पागल हुआ जा रहा था कि आखिर मैं हूं कौन?
इसी सवाल की तलाश में भटकते हुए युवक की दृष्टि नर्स पर ठिठक गई—वह उपन्यास पढ़ने में तल्लीन थी, खूबसूरत थी। बेदाग सफेद लिबास में वो कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी। युवक की नजर उसके जिस्म पर थिरकने लगी—दृष्टि वक्षस्थल पर स्थिर हो गई।
एकाएक ही जाने कहां से आकर युवक के दिमाग में यह विचार टकराया कि यदि इस नर्स के तन से सारे कपड़े उतार दिए जाएं तो यह कैसी लगेगी?
एक नग्न युवती उसके सामने जा खड़ी हुई।
युवक रोमांचित-सा होने लगा।
उसके मन में उठ रहे भावों से बिल्कुल अनभिज्ञ नर्स उपन्यास में डूबी धीमे-धीमे मुस्करा रही थी—शायद वह उपन्यास के किसी कॉमेडी दृश्य पर थी—युवक ने जब उसके होंठों पर मुस्कान देखी तो जाने क्यों उसकी मुट्ठियां कस गईं।
दृष्टि उसके वक्षस्थल से हटकर ऊपर की तरफ चढ़ी।
गर्दन पर ठहर गई।
नर्स की गर्दन गोरी, लम्बी और पतली थी।
युवक के दिमाग में अचानक ही विचार उठा कि अगर मैं इस नर्स की गर्दन दबा दूं तो क्या होगा?
‘यह मर जाएगी।’
‘पहले इसका चेहरा लाल-सुर्ख होगा, बन्धनों से निकलने के लिए छटपटाएगी—मगर मैं इसे छोडूंगा नहीं—इसके मुंह से 'गूं-गूं' की आवाज निकलने लगेगी—इसकी आंखें और जीभ बाहर निकल आएंगीं—कुतिया की तरह जीभ बाहर लटका देगी यह।’
‘तब, मैं इसकी गर्दन और जोर से दबा दूंगा।’
‘मुश्किल से दो ही मिनट में यह फर्श पर गिर पड़ेगी—इसकी जीभ उस वक्त भी मरी हुई कुतिया की तरह निकली हुई होगी, आंखें उबली पड़ी होंगी, चेहरा बिल्कुल निस्तेज होगा— सफेद कागज-सा—उस अवस्था में कितनी खूबसूरत लगेगी यह हां! इसे मार ही डालना चाहिए।’
युवक के दिमाग में रह-रहकर यही वाक्य टकराने लगा—' इसे मार डालो—मरने के बाद फर्श पर पड़ी यह बहुत खूबसूरत लगेगी—इसकी गर्दन दबा दो।'
युवक की आंखों में बड़े ही हिंसक भाव उभर आए, चेहरा खून पीने के लिए तैयार किसी आदमखोर पशु के समान क्रूर और वीभत्स हो गया, आंखें सुर्ख हो उठीं। जाने क्या और कैसे अजीब-सा जुनून सवार हो गया था उस पर, उसका सारा जिस्म कांप रहा था। मुंह खून के प्यासे भेड़िए की तरह खुल गया, लार टपकने लगी—बेड पर बैठा वह धीरे-धीरे कांपने लगा—जिस्म में स्वयं ही अजीब-सा तनाव उत्पन्न होता
चला गया।
बहुत ही डरावना नजर आने लगा वह।
नर्स बिल्कुल बेखबर उपन्यास पढ़ रही थी।
धीरे-धीरे यह उठकर बैठ गया।
बेड के चरमराने से नर्स का ध्यान भंग हुआ।
उसने पलटकर युवक की तरफ देखा और उसे देखकर नर्स के कण्ठ से अनायास ही चीख निकल गई—उपन्यास फर्श पर गिर गया—चीखने के साथ ही वह कुछ इस तरह हड़बड़ाकर उठी थी कि स्टूल गिर पड़ा।
युवक के मुंह से पंक्चर हुए टायर की-सी आवाज निकली।
एक बार पुन: चीखकर आतंकित नर्स दरवाजे की तरफ दौड़ी, मगर अभी वह दरवाजे तक पहुंची भी नहीं थी कि युवक ने बेड ही से किसी बाज की तरह उस पर जम्प लगाई और नर्स को साथ लिए फर्श पर गिरा।
अब, नर्स फर्श पर पड़ी थी और युवक उसके ऊपर सवार उसका गला दबा रहा था—नर्स चीख रही थी—युवक के खुले हुए मुंह से लार नर्स के चेहरे पर गिर रही थी— बुरी तरह आतंकित नर्स छटपटा रही थी।
तभी गैलरी में भागते कदमों की आवाज गूंजी। दरवाजा ' भड़ाक' -से खुला।
हड़बड़ाए-से एक साथ कई नर्सें और डॉक्टर्स कमरे में दाखिल हो गए। कमरे का दृश्य देखते ही वे चौंक पड़े, और फिर इससे पहले कि युवक की गिरफ्त में फंसी नर्स की श्वांस-क्रिया रुके—उन्होंने युवक को पकड़कर अलग कर दिया।
उनके बन्धनों से मुक्त होने के लिए युवक बुरी तरह मचल रहा था और साथ ही हलक फाड़कर चीख रहा था—“ छोड़ो मुझे, मुझे छोड़ दो, मैँ इसे मार डालूंगा—मरी हुई यह बहुत खूबसूरत लगेगी—मुझे छोड़ दो।"
¶¶
"कुछ तो हुआ होगा— ऐसी कोई बात तो हुई होगी, जिसकी वजह से उसे इतना गुस्सा आ गया—इतना ज्यादा कि वह तुम्हारा मर्डर करने पर आमादा हो गया?"
"कुछ नहीं हुआ था। आप मेरा यकीन कीजिए—मैं बिल्कुल खामोश थी—उपन्यास पढ़ने में तल्लीन—उसकी तरफ देखा तक नहीं था मैंने।" लगभग रो पड़ने की-सी अवस्था में नर्स ने चीखकर बताया।
डॉक्टर्स में से एक ने पुन: पूछा—"फिर यह इतने गुस्से में क्यों था?"
"मैं नहीं जानती।"
"अजीब बात है!" बड़बड़ाते हुए भारद्वाज ने अपने अन्य साथियों की तरफ देखा। सभी के चेहरे अजीब उलझन और असमंजस में डूबे थे—डॉक्टर भारद्वाज समेत उस कमरे में पांच डॉक्टर थे—सात नर्सें।
इस कमरे में एक प्रकार से उनकी मीटिंग हो रही थी।
अचानक ही एक नर्स ने डॉक्टर्स से पूछा—" आप लोग उसके दिमाग के बारे में यह घड़ी वाली बात कह रहे थे न?"
"हाँ।"
"कहीं यह पागल ही तो नहीं हो गया है?"
इस वाक्य के जवाब में वहां खामोशी छा गई। फिर डॉक्टर भारद्वाज बोले—" उसकी यह हरकत नि:सन्देह पागल जैसी थी और जिस वक्त हमने उसे पकड़ा था, उस वक्त नि:संदेह उसके जिस्म में वही विशेष शक्ति थी, जैसी किसी पागलों में आ जाती है, मगर उसके इस अवस्था में पहुंचने के लिए झटका लगना जरूरी था और अभी तक शायद ऐसी कोई घटना नहीं हुई है।"
"मेरे ख्याल से इस सम्बन्ध में किसी मनोचिकित्सक की राय महत्वपूर्ण होगी।" एक डॉक्टर ने सलाह दी।
"मैं भी यही सोच रहा था।" कहकर भारद्वाज ने मेज पर रखे फोन से रिसीवर उठाया और ब्रिगेंजा नामक डॉक्टर के नम्बर रिंग किए। सम्बन्ध स्थापित होने पर उसने कहा—" मैं डॉक्टर भारद्वाज बोल रहा हूं ब्रिगेंजा। मेरे पास तुम्हारे लिए एक बहुत ही दिलचस्प केस है, क्या तुम इसी समय यहां आ सकते हो?"
“ क्या केस है?"
"विस्तार से तो फोन पर नहीं बता सकता, क्योंकि कहानी लम्बी है। ठीक है—इतना कह सकता हूं कि मरीज ने बिना किसी वजह के ही एक नर्स की गर्दन दबानी शुरू कर दी.......उसकी चीख सुनकर यदि हम सब सही समय पर वहाँ न पहुंच जाते तो निश्चित रूप से वह नर्स का मर्डर कर चुका था, हम सभी अब तक उससे आतंकित हैं।"
"इस वक्त वह किस अवस्था में है?"
“ हम सबने मिलकर बड़ी मुश्किल से उसे बेहोश किया है।"
दूसरी तरफ से पूछा गया—" जब तुमने उसे नर्स से अलग किया, क्या उस समय तुम्हारी गिरफ्त से निकलने की कोशिश करते वक्त उसने कुछ कहा था?"
“हां।"
"क्या?"
भारद्वाज ने वे शब्द बता दिए। सुनकर दूसरी तरफ से हंसी की-सी आवाज आई। फिर पूछा गया—"क्या वह वाकई यह कह रहा था कि मरने के बाद नर्स बहुत ज्यादा खूबसूरत लगेगी?"
“हां—उसने बिल्कुल यही कहा था।"
"केस वाकई दिलचस्प मालूम पड़ता है, भारद्वाज। मैं आ रहा हूं।"
¶¶
नर्स के चुप होने पर कमरे में खामोशी छा गई। वहीं उत्सुक निगाहों से सभी ब्रिगेंजा की तरफ देख रहे थे। काफी प्रतीक्षा के बाद भी जब मिस्टर ब्रिगेंजा कुछ नहीं बोले तो भारद्वाज ने पूछा—“किसी नतीजे पर पहुंचे डॉक्टर?"
"मरीज से बात करने के बाद ही शायद किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है।"
तभी भागकर एक नर्स कमरे में आई। उसकी सांस फूली हुई थी। हड़बड़ाई-सी बोली—" उसे होश आ रहा है, डॉक्टर?"
"चलो!" डॉक्टर ब्रिगेंजा उठकर खड़े हो गए—मगर उस नर्स से बोले—"तुम तब तक उसके कमरे में नहीं जाओगी, जब तक हम न बुलाएं, किसी अन्य के लिए उसके सामने जाने में कोई परहेज नहीं है।"
एक मिनट बाद दो डॉक्टर्स और दो नर्सों के साथ डॉक्टर ब्रिगेंजा युवक वाले कमरे में दाखिल हुए—बिस्तर पर अधलेटी अवस्था में पड़ा युवक इस वक्त शान्त था—उन सबको कमरे में दाखिल होते देखते ही वह सीधा होकर बैठ गया।
उसके चेहरे पर उलझन, हैरत और पश्चाताप के संयुक्त भाव थे।
भारद्वाज और उसके साथी दूर ही ठिठक गए। भयाक्रांत-से वे सभी युवक को देख रहे थे। उसे, जो इस वक्त नि:सन्देह किसी बच्चे जैसा मासूम और आकर्षक लग रहा था।
उसके समीप पहुंचते हुए ब्रिगेंजा ने कहा—" हैलो मिस्टर!"
"हैलो!" युवक ने फंसी-सी आवाज में कहा।
ब्रिगेंजा ने उसकी तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा—" मेरा नाम ब्रिगेंजा है।”
अवाक्-से युवक ने उससे हाथ मिला लिया। उस वक्त ब्रिगेंजा ने बड़े प्यार से पूछा—"तुमने अपना नाम नहीं बताया?"
“म.....मुझे अपना नाम नहीं पता है।" बहुत ही मासूम अन्दाज था उसका।
“अजीब बात है! क्यों?"
"सब लोग कहते हैं कि मेरा एक्सीडेण्ट हो गया था—तब से मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है—मगर वह नर्स कहां गई डॉक्टर भारद्वाज?"
अन्तिम शब्द उसने अचानक ही डॉक्टर भारद्वाज से मुखातिब होकर कहे थे, जिसके कारण भारद्वाज एक बार को तो बौखला गया, फिर शीघ्र ही संभलकर बोला—"वह तुम्हारे साथ रहने के लिए तैयार नहीं है।"
"शायद मेरे व्यवहार के कारण?”
ब्रिगेंजा ने पूछा—“ क्या तुम्हें मालूम है कि उसके साथ तुमने क्या किया था?"
“मैं बहुत शर्मिन्दा हूं, डॉक्टर, प्लीज़—उसे बुलाइए—वह मेरी बहन जैसी है—मैं उससे अपने व्यवहार की क्षमा मांगना चाहता हूं।"
"अगर ऐसा है तो तुमने वह सब किया ही क्यों था?”
"' म...मैँ समझ नहीं पा रहा हूं, मुझे बेहद दुःख है—चकित हूं......जाने मैं यह सब क्यों करने लगा, शायद मुझसे ऐसा करने के लिए किसी ने कहा था।"
"किसने? ”
"मैँ नहीं बता सकता, मगर उस वक्त यहां मेरे और उस नर्स के अलावा कोई था ही नहीं, फिर जाने वह कौन था, जिसने मेरे कान में, दिलो-दिमाग में चीखकर यह कहा कि उसे मार दे—मरने के बाद वह बेहद खूबसूरत लगेगी।"
"क्या तुम्हें खूबसूरत चीजें पसंद हैं?"
"खूबसूरत चीजें भला किसे पसंद न होंगी?"
"क्या वह नर्स जीवित अवस्था में खूबसूरत नहीं लग रही थी?"
"ल...लग रही थी।"
"फिर तुमने उसे मारने की कोशिश क्यों की?"
इस प्रकार ब्रिगेंजा ने कुरेद-कुरेदकर उससे सवाल किए। वह बेहिचक सभी बातों का जवाब देता चला गया… कुछ देर बाद उस कमरे में मौजूद सभी व्यक्ति जान चुके थे कि युवक ने किन विचारों और भावनाओं के झंझावात में फंसकर नर्स को मार डालने की कोशिश की थी। सुनने के बाद ब्रिगेंजा ने पूछा—" तो शुरू में आपकी यह इच्छा हुई कि वह नर्स बिना कपड़ों के ज्यादा सुन्दर लगेगी?"
"ओह नो… मैं शर्मिन्दा हूं, डॉक्टर। बेहद शर्मिन्दा हूं।" चीखते हुए उसने अपने दोनों हाथों से चेहरा ढ़ाप लिया, निश्चय ही इस वक्त शर्म के कारण उसका बुरा हाल था। ब्रिगेंजा ने कहा—“तुम उन्हीं विचारों पर अमल करते चले गए, जो तुम्हारे दिमाग में उठे?"
"हां।"
"कल अगर तुम्हारे दिमाग में यह विचार उठा कि तुम्हें कुएं में कूद जाना चाहिए तो?"
"म....मैं शायद कूद पडूंगा, आप यकीन कीजिए, मेरे अपने ही दिमाग पर मेरा कोई नियन्त्रण नहीं रह गया था। उफ् भगवान! ये मुझे क्या हो गया है? मुझे याद क्यों नहीं आता कि मैं कौन हूं, इतने गन्दे, इतने भयानक विचार मेरे दिमाग में आए ही क्यों? मैं क्या करूं, मैं क्या करूं भगवान?" चीखने के बाद वह अपने घुटनों में सिर छुपाकर जोर-जोर से रोने लगा।
सभी को सहानुभूति-सी होने लगी उससे।
¶¶
भारद्वाज के कमरे में बैठे डॉक्टर ब्रिगेंजा ने कहा—“ वह पागल नहीं है।"
“ फिर? ”
"एक किस्म का जुनून कहा जा सकता है उसे, जुनून-सा सवार हुआ था उस पर… मुझे लगता है कि अपनी पिछली जिन्दगी में उसने कहीं किसी लड़की की लाश देखी है।"
"उसकी पिछली जिन्दगी ही तो नहीं मिल रही है।"
"यह पता लग चुका है कि वह हिन्दू है।"
डॉक्टर भारद्वाज ने कहा—" शायद आप उसके भगवान कहने पर ऐसा सोच रहे हैं?"
"हां, वह शब्द उसके मुंह से बड़े ही स्वाभाविक ढंग से निकला था।"
एक अन्य डॉक्टर ने कहा—"मान लिया कि उस पर जुनून सवार हुआ था, मगर इस अवस्था में उसके पास अकेला रहने की हिम्मत कौन करेगा, डाक्टर? जाने कब उस पर जुनून सवार हो जाए और सामने वाले की गर्दन दबा दे?"
हंसते हुए ब्रिगेंजा ने कहा…" ऐसा नहीं होगा।"
"क्या गारन्टी है?"
"उसके पास किसी लेडीज नर्स को नहीं, पुरुष को छोड़ दो—उसके लिए युवक के जेहन में वैसा कोई विचार नहीं उठेगा, जैसा नर्स के लिए उठा था, वैसे मेरा ख्याल है कि यह जुनून उसे जिन्दगी में पहली बार ही उठा था।"
"क्या गारन्टी है?"
"मेरा अनुभव।" ब्रिगेंजा ने तपाक से कहा—“ ऐसा उसके साथ केवल इसीलिए हो गया कि इस वक्त उसका दिमाग संतुलित नहीं है—दुर्घटना से पहले संतुलित था।"
"म...मगर भविष्य में तो उसे ऐसा जुनून सवार हो सकता है।"
"पूरा खतरा है।" ब्रिगेंजा ने बताया।
¶¶
' ग्रे' कलर की एक चमचमाती हुई शानदार 'शेवरलेट' थाने के कम्पाउण्ड में रुकी, झटके से आगे वाला दरवाजा खुला। बगुले-सी सफेद वर्दी पहने शोफर बाहर निकला और फिर उसने गाड़ी का पीछे वाला दरवाजा खोल दिया।
पहले एक कीमती छड़ी गाड़ी से बाहर निकलती नजर आई, फिर उस पर झूलता हुआ अधेड़ आयु का एक व्यक्ति—वह अधेड़ जरूर था परन्तु चेहरे पर तेज था, उसके अंग-प्रत्यंग से दौलत की खुशबू टपकती-सी महसूस होती थी, चेहरा लाल-सुर्ख था उसका—आँखों पर सुनहरी फ्रेम का सफेद लैंस वाला चश्मा, बालों को शायद खिजाब से काला किया गया था।
हालांकि चलने के लिए उसे सहारे की ज़रूरत नहीं थी, फिर भी, सोने की मूठ वाली छड़ी को टेकता हुआ वह ऑफिस की तरफ बढ़ गया।
एक मिनट बाद अपना हाथ इंस्पेक्टर दीवान की तरफ बढ़ाए वह कह रहा था—" हमें न्यादर अली कहा जाता है। लारेंस रोड पर हमारा बंगला है।"
"बैठिए।" दीवान उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका।
“आज के अखबार में आपने दो फोटो छपवाए हैं। एक युवक का, दूसरा युवती का—उन फोटुओं के समीप लिखे विवरण के अनुसार वह युवक अपनी याददाश्त गंवा बैठा है, और युवती का फोटो उसके पर्स की जेब से निकला है?"
जाने क्यों दीवान का दिल धड़क उठा, बोला—“ जी.....जी हां।”
"वह युवक हमारा बेटा है।"
“आपका बेटा?"
"जी हां… और वह युवती हमारी बेटी।"
" ब...बेटी?" दीवान के मुंह से अनायास निकल पड़ा—“ यानि वह युवक की बहन है? ”
"हां, सिकन्दर सायरा से बहुत प्यार करता था—दुर्भाग्य ने सायरा को हमसे छीन दिया और सिकन्दर तभी से अपने पर्स में सायरा का फोटो लिए घूमता है।"
"क्या यह लड़की अब इस दुनिया में नहीं है?"
"एक साल पहले वह...।" न्यादर अली की आवाज भर्रा गई।
"स...सॉरी… मगर क्या नाम ले रहे थे आप, सिकन्दर—क्या उस युवक का यही नाम है?"
“ हां इंस्पेक्टर, हमारी एक छोटी-सी कपड़ा मिल है—एक साल पहले तक सिकन्दर हमारे ही व्यापार में हमारी मदद किया करता था, किन्तु सायरा की मृत्यु के बाद जाने क्यों उसे अपना एक अलग बिजनेस करने की धुन सवार हो गई....हमने उसे एक गत्ता मिल लगवा दी—पिछले करीब एक वर्ष से यह प्रतिदिन सुबह नौ बजे ऑफिस जाता और रात आठ बजे लौट आता था—कल रात नहीं लौटा, हम दस बजे तक उसका इन्तजार करते रहे.....जब वह नहीं आया तो हमने गत्ता मिल के मैनेजर को फोन किया—उसके मुंह से यह सुनकर हम चकित रह गए कि सिकन्दर आज ऑफिस ही नहीं पहुंचा था—हम चिंतित हो उठे—उसके और अपने हर परिचित के यहां फोन करके हमने मालूम किया—सिकन्दर कल किसी से नहीं मिला था—बेचैनी और चिंताग्रस्त स्थिति में हमने सारी रात काट दी—सुबह पेपरों में फोटो देखे तो उछल पड़े और उनके समीप लिखी इबारत तो हमारे सीने पर एक मजबूत घूंसा बनकर लगी—यह सब कैसे हो गया, इंस्पेक्टर? सिकन्दर अपनी याददाश्त कैसे गंवा बैठा?"
"एक ट्रक से उसका एक्सीडेण्ट हुआ था।"
"ए...एक्सीडेण्ट? ज्यादा चोट तो नहीं आई उसे? ”
"प्रत्यक्ष में कोई बहुत ज्यादा चोट नहीं लगी है, अपनी याददाश्त जरूर गंवा बैठा है वह.....मगर क्या वह अपने ऑफिस कार से जाता था?"
“हां, उसके पास कैडलॉक है।"
"कैडलॉक?”
"हां।"
"मगर जिस गाड़ी का ट्रक से एक्सीडेण्ट हुआ है, वह फियेट थी।"
" फियेट सिकन्दर के पास कहां से आ गई?"
दीवान ने बताया—"यह जानकर आपको हैरत होगी कि यह फियेट उसने चुराई थी, फियेट के मालिक प्रीत विहार में रहने वाले अमीचन्द जैन हैं।"
"अजीब बात है! सिकन्दर भला किसी की फियेट क्यों चुराएगा और उसकी कैडलॉक कहां चली गई? हमारी समझ में यह पहेली नहीं आ रही है, इंस्पेक्टर?"
“ ऐसी कई पहेलियां हैं, जिन्हें केवल एक ही घटना हल कर सकती है—और यह घटना उसकी याददाश्त वापस लौटना होगी।"
"और क्या पहेली है?"
दीवान ने उस ट्रक और ड्राइवर के बारे में कह दिया— उसके बाद दीवान ने नया प्रश्न किया— “ क्या सिकन्दर की शादी हो चुकी है?"
“नहीं।”
"क्या उसकी कोई गर्लफ्रेंड है?"
"कम-से-कम हमारी जानकारी में नहीं है।"
दीवान ने दराज खोली, नेकलेस निकालकर मेज पर रखता हुआ बोला—" फिर यह नेकलेस उसने किसके लिए खरीदा था, यह उसकी जेब से निकला है।"
"अजीब बात है!"
"यह एक ऐसी पहेली है, जो उसकी याददाश्त वापस आने पर ही सुलझेगी।"
"हम सिकन्दर से मिलना चाहते हैं, इंस्पेक्टर।"
"सॉरी।" कहकर कुछ पल के लिए चुप रहा दीवान, ध्यान से न्यादर अली की तरफ देखता रहा, फिर बोला—" क्या आपके पास इस बात का कोई सबूत है कि वह आपका बेटा सिकन्दर ही है?"
"स...सबूत—कोई किसी का बेटा है, इस बात का क्या सबूत हो सकता है?"
"क्षमा करें, मिस्टर न्यादर अली। हालात ऐसे हैं कि मैं बिना किसी सबूत के आपकी बात पर यकीन नहीं कर सकता—जरा सोचिए—युवक की याददाश्त गुम है—इस वक्त उसे जो भी परिचय दिया जाएगा, उसे स्वीकार करने के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं है।"
" म...मगर कोई गलत आदमी उसे अपना बेटा क्यों कहेगा?"
"बहुत-से कारण हो सकते हैं।"
"जैसे? ”
"मैं इस बहस में नहीं पड़ना चाहता, यदि आपके पास उसे अपना बेटा साबित करने के लिए कोई सबूत है तो प्लीज, पेश कीजिए।"
“अजीब बात कर रहे हैं आप—हमारे नौकर-चाकर और सभी परिचित आपको बता सकते हैं कि सिकन्दर हमारा बेटा है, हमारे साथ उसके अनेक फोटो भी आपको मिल...हां, गुड… उसकी एलबम तो सबूत हो सकती है, इंस्पेक्टर—हमारे पास उसकी एक एलबम है, उसमें सिकन्दर के बचपन से जवानी तक के फोटो हैं।"
"एलबम एक ठोस सबूत है।"
" म...मगर हमें मालूम नहीं था कि यहां सिकन्दर को अपना बेटा साबित करने के लिए भी सबूत की जरूरत पड़ेगी, अत: एलबम साथ नहीं लाये हैं—या जरा ठहरिए, हम अपने नौकर से एलबम मंगा लेते हैं।"
दीवान ने एक सिपाही को आदेश दिया कि वह शोफर को अन्दर भेज दे… तब न्यादर अली ने पूछा—“ इस वक्त सिकन्दर कहां है?"
"मेडिकल इंस्टीट्यूट में।"
"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम वहीं चलें और शोफर एलबम लेकर वहां पहुंच जाए?"
"मुझे इसमें कोई आपत्ति नहीं है।" दीवान ने कहा।
¶¶
बहुत ही धैर्यपूर्वक सब कुछ सुनने के बाद डॉक्टर भारद्वाज ने पूछा—“ यानि वह युवक आपका बेटा है और उसका नाम सिकन्दर है?"
"हां, डॉक्टर। उसे अपना बेटा साबित करने के लिए हमारे पास सबूत भी हैं—हमारा नौकर एलबम लेकर यहां पहुंचने ही वाला होगा।"
"मैं आपसे यह जानना चाहता था कि क्या सिकन्दर को किसी किस्म का दौरा अक्सर पड़ता है?"
"दौरा?"
"जी हां, हालांकि मनोचिकित्सक उसे दौरा नहीं मानता—जो हुआ था, उसे वह जुनून शब्द देता है, फिर भी मैं आपसे जानना चाहता हूं।"
"क्या जानना चाहते हैं?"
"यह कि क्या सिकन्दर ने कभी किसी लड़की को गला घोंटकर मार डालने की कोशिश की हो?"
बुरी तरह चौंकते हुए न्यादर अली ने कहा—"क्या बात कर रहे हैं आप?”
"इसका मतलब ऐसा कभी नहीं हुआ?"
"क्या हमारा सिकन्दर हत्यारा है, जो...? ”
उनकी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि दिलचस्पी लेते हुए दीवान ने पूछा—“ क्या ऐसा कुछ हुआ था, डॉक्टर?—प्लीज, मुझे बताओ कि क्या हुआ था।"
भारद्वाज ने उसके जुनून के बारे में विस्तार से बता दिया। सुनते हुए दीवान के चेहरे पर जहां उलझन के भाव थे, वहीं न्यादर अली का चेहरा हैरत में डूब गया। भारद्वाज के चुप होने पर उनके मुंह से निकला—“अल्लाह—हमारे बेटे को यह क्या हो गया है—सिकन्दर के बारे में आप यह कैसी बात कर रहे हैं?"
उनके इन शब्दों से भारद्वाज समझ सकता था कि कम-से-कम इनके सामने युवक पर कभी वैसा जुनून सवार नहीं हुआ था। अत: उसने अगला सवाल किया—" अच्छा, यह बताइए कि क्या सिकन्दर ने कभी किसी नग्न युवती की लाश देखी थी?"
"न...नग्न युवती की लाश—मगर आप यह सब क्यों पूछ रहे हैं?"
“ आपके सवाल का जवाब मैं बाद में दूंगा—प्लीज, पहले आप मुझे मेरे सवाल का जवाब दीजिए—क्या आपके जीवन में उसने कभी किसी नग्न युवती की लाश देखी है?"
“ हां।”
"कब?"
"आज से करीब एक साल पहले।"
"वह लाश किसकी थी?"
"उसकी बहन की—सायरा की लाश थी वह।" बताते हुए न्यादर अली की चश्मे के पीछे छुपी आँखें भर आईं, आवाज भर्रा गई—" सायरा से बहुत प्यार करता था वह—अपनी बहन की लाश से लिपटकर फूट-फूटकर रोया था सिकन्दर।"
"कहीं किसी ने गला घोंटकर तो सायरा को नहीं मारा था?"
"पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में यही लिखा था, मगर हम आज तक नहीं समझ सके कि किसी जालिम ने हमारी मासूम बेटी की हत्या क्यों की थी—रात को वह अच्छी—भली, हंसती-खेलती हमसे और सिकन्दर से गुडनाइट करके अपने कमरे में सोने चली गई थी—सुबह हमें कमरे के फर्श पर उसकी लाश पड़ी मिली—उसके जिस्म पर कपड़े का एक रेशा भी नहीं था—पता नहीं उसे किस जालिम ने...।"
भारद्वाज की आंखें अजीब-से जोश में चमक रही थीं—" इसका मतलब यह कि डॉक्टर ब्रिगेंजा ने उस जुनून के पीछे छुपी सही थ्योरी बता दी थी?"
"क्या मतलब? ”
डॉक्टर भारद्वाज उन्हें ब्रिगेंजा की थ्योरी के बारे में बताता चला गया और अंतिम शब्द कहते-कहते अचानक ही उसे कुछ ख्याल आया। अचानक ही उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे, बोला—" म...मगर आप तो मुसलमान हैं मिस्टर न्यादर अली, जबकि उस युवक को हिन्दू होना चाहिए—डॉक्टर ब्रिगेंजा और खुद मैं भी यही सोचता हूं।"
"क्या मतलब?"
"यदि मैं बिना कोई चेतावनी दिए अचानक ही आपके चेहरे पर बहुत जोर से घूंसा मार दूं और मुसीबत के ऐसे क्षण में आपको अपने गॉड को याद करना पड़े तो आपके मुंह से क्या निकलेगा?"
"या अल्लाह।”
"जबकि ऐसे ही एक क्षण उसके मुंह से...।"
उसकी बात बीच में ही काटकर न्यादर अली ने कहा—"भगवान निकला होगा?"
"जी...जी हां—मगर—क्या मतलब?"
न्यादर अली के होंठों पर हल्की-सी मुस्कान उभर आई, बोले—" ऐसा होने पर आपने यह अनुमान लगा लिया कि वह हिन्दू है—हालांकि आपका सोचना स्वाभाविक ही था, फिर भी इस मामले में आप चूक गए—वैसे हम खुद भी चकित हैं—पिछले सात-आठ महीने से वह जाने क्यों बहुत ज्यादा हिन्दी बोलने लगा है—अल्लाह के स्थान पर भी वह भगवान ही कहता है—इस बारे में पूछने पर उसने हमेशा यही कहा कि हम खुदा कहें या भगवान, आखिर पुकारते एक ही शक्ति को हैं।"
"बात तो ठीक है।" डॉक्टर भारद्वाज ठहाका लगा उठा, जबकि दीवान सोच रहा था कि अखबार में फोटुओं का प्रकाशन कराकर उसने युवक को भले ही खोज निकाला हो, किन्तु उसकी अपनी समस्या हल नहीं हुई है—यानि सिकन्दर उस ट्रक ड्राइवर को अब भी नहीं पहचान सकेगा।
कुछ ही देर बाद एक कीमती एलबम लिए न्यादर अली का शोफर वहां पहुंच गया और उस एलबम को देखने के बाद कोई नहीं कह सकता था कि न्यादर अली झूठ बोल रहा है—उसमें सचमुच उस युवक के बचपन से युवावस्था तक के फोटो क्रम से लगे हुए थे—कई फोटुओं में वह सायरा और न्यादर अली के साथ भी था।
¶¶
युवक सुबह आठ बजे सोकर उठा।
वह वार्ड-ब्वॉय तब भी कमरे में था, जिसे रात की घटना के बाद यहां उसकी देखभाल करने के लिए छोड़ दिया गया था—उस वार्ड-ब्वॉय को देखकर एक पल के लिए भी उसके दिमाग में कोई बुरा ख्याल नहीं आया था।
उस वक्त साढ़े नौ बजे थे, जब यह बेड पर पड़ा आज के अखबार में डूबा हुआ था। उसने अभी-अभी अपने तथा अपने पर्स से मिली युवती के फोटो के समीप लिखी इबारत पढ़ी थी।
क्या इस विज्ञापन को पढ़कर मेरा कोई अपना मुझे लेने आएगा?
यह विचार अभी उसके दिमाग में उभरा ही था कि उसके कान में किसी की आवाज पड़ी। किसी ने जाने किसको ‘सिकन्दर' कहकर पुकारा था।
उसने अखबार एक तरफ हटाकर कमरे के दरवाजे की तरफ देखा, क्योंकि आवाज उसी दिशा से आई थी—वहां एक बहुत अमीर नजर आने वाला अधेड़ व्यक्ति खड़ा था।
उसके दाएं-बाएं इंस्पेक्टर दीवान और भारद्वाज भी थे।
अधेड़ के चेहरे पर वेदना थी, आंखों में वात्सल्य का सागर।
युवक प्रश्नवाचक नजरों से उनकी तरफ देखने लगा, जबकि अधीरतापूर्वक उसकी ओर लपकते-से अधेड़ ने कहा—" तुझे क्या हो गया है बेटे? ”
युवक के चेहरे पर उलझन के भाव उभर आए।
न्यादर अली ने बांहों में भरकर उसे अपने सीने से चिपटा लिया था। हालांकि युवक की समझ में कुछ नहीं आ रहा था, मगर उसे देखते ही न्यादर अली के धैर्य का बांध मानो टूट पड़ा। फफक-फफककर रोते हुए उन्होंने कहा—" यह सब कैसे हो गया, सिकन्दर? तू कल मिल क्यों नहीं गया था, बेटे? तेरी कैडलॉक कहां है, किसी अमीचन्द की फियेट भला तेरे पास कहां से आ गई, जिससे बाद में एक्सीडेण्ट?"
इस प्रकार भावुकता में डूबे मिस्टर न्यादर अली जाने क्या-क्या कहते चले गए, जबकि प्लास्टिक के बने किसी बेजान खिलौने की तरह युवक खामोश रहा। उसके चेहरे और आंखों मेँ एक ही भाव था—उलझन!
सवालिया निशान।
चश्मा उतारकर न्यादर अली ने आंसू पौंछे, चश्मा पुन: पहना और खुद को थोड़ा संभालकर बोले—“ क्या तुमने हमें भी नहीं पहचाना बेटे?"
अपनी सूनी आंखों से उन्हें देखते हुए युवक ने इन्कार में गर्दन हिलाई।
" क्या कह रहा है, बेटे?" न्यादर अली के लहजे में तड़प थी—"क्या हो गया है तुझे? क्या तू हमें भी नहीं पहचानता, हम तेरे अब्बा हैं!"
“ अ......अब्बा?"
“हां, याद करने की कोशिश कर—तेरा नाम सिकन्दर है, तेरी बहन का नाम सायरा था—तेरी एक गत्ता मिल है—तेरे पास कैडलॉक गाड़ी थी।"
"म...मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है।"
“तू.......तू फिक्र मत कर, सब याद आ जाएगा—तू ठीक हो जाएगा बेटे—तेरे इलाज के लिए डॉक्टरों की लाइन लगा देंगे हम, अगर जरूरत पड़ी तो हम तुझे विदेश...।"
“म......मगर....?"
“हां-हां—बोल, क्या बात है?"
"मैँ कैसे विश्वास करूं कि आप ही मेरे पिता हैं?"
एक बार फिर फूट-फूटकर रो पड़े मिस्टर न्यादर अली, बोले—"कैसे अभागे बाप हैं हम कि कदम-कदम पर तुम्हें अपना बेटा साबित करना पड़ रहा है—खैर, हमारे पास सबूत है, बेटे। यह एलबम देखो—तुम्हारे फोटुओं से भरी पड़ी है यह।"
युवक एलबम को देखने लगा।
उस एलबम की मौजूदगी में उसे मानना पड़ा कि वह वही है जो यह बूढ़ा कह रहा है, मगर उलझन के ढेर सारे भाव युवक के चेहरे पर अब भी थे।
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"मैं सिकन्दर को यहां से ले जाना चाहता हूं, डॉक्टर।"
"वैसे तो वही होगा, जो आप चाहते हैं, मगर मेरा ख्याल था कि यदि वह हफ्ता-दस दिन यहीं रहता तो उचित था—शायद इलाज से अपनी सामान्य स्थिति में आ सके।"
"मैं उसका इलाज अपनी कोठी पर ही कराना चाहता हूं।"
कन्धे उचकाकर डॉक्टर भारद्वाज ने कह दिया—“ जैसी आपकी मर्जी।"
"क्षमा कीजिए, मिस्टर न्यादर अली।" इंस्पेक्टर दीवान ने कहा—"फिलहाल वह पुलिस कस्टडी में है, एक्सीडेण्ट करने और कार चुराने के जुर्म में, अत: उसे घर ले जाने के लिए पहले आपको उसकी जमानत करानी होगी।"
“ मैं जमानत कराने के लिए तैयार हूं।"
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जब चारों तरफ छाई खामोशी युवक को बहुत ज्यादा चुभने लगी तो एक नजर उसने अपने पांयते पड़ी गद्देदार कुर्सी में धंसे सांवले रंग के परन्तु आकर्षक युवक को देखा।
वह उपन्यास पढ़ने में मशगूल था। एकाएक युवक ने उसे पुकारा—“सुनो।"
आवाज सुनते ही वह चौंक पड़ा, न केवल उपन्यास बन्द कर दिया उसने, बल्कि एकदम से खड़ा होकर ससम्मान बोला—“जी, हुक्म कीजिए।"
"क्या नाम है तुम्हारा?" युवक ने पूछा।
“रू.....रूपेश, सर।"
"क्या तुम्हें हमेशा चुप रहना अच्छा लगता है?”
"ज....., जी मैं समझा नहीं, सर?"
"मुझे यहां आए चार दिन गुजर गए हैं और तुम्हें मेरे पास तीन दिन—लगभग चौबीस घंटे यहां मेरे पास रहते हो गए, लेकिन तुमने कभी कोई बात नहीं की—यहां तक कि तुम्हारा नाम भी मैं पिछले ही क्षण जान सका हूं।"
"म.....मुझे सेठजी ने आपकी सेवा के लिए रखा है।"
"कब? ”
"तीन दिन पहले ही, अखबार में उन्होंने इस आशय का विज्ञापन दिया था कि एक मरीज की सेवा करने के लिए ऐसे पढ़े-लिखे युवक की जरूरत है, जो कम- से-कम बीस घंटे की ड्यूटी दे सके।"
"क्या तुम मेरे बारे में कुछ जानते हो?"
"सिर्फ इतना ही कि आपका नाम सिकन्दर बाबू है, आप सेठ जी के लड़के हैं—एक एक्सीडेण्ट में आपकी याददाश्त गुम हो गई है और सेठ जी उसे वापस लाने के लिए धरती-आकाश एक किए हुए हैं।"
"यह सब तुमसे किसने कहा?"
"सेठ जी और यहां पहले से काम करने वाले नौकरों के अलावा मैं यह भी देखता-सुनता रहता हूं कि आपको देखने बम्बई तक से डाक्टर आ चुके हैं।"
"क्या मेरा कोई दोस्त नहीं है?"
"क्या मतलब सर?"
"अगर मैं सेठ जी का लड़का हूं तो इसका मतलब बहुत ज्यादा धनवान भी हूं—और धनवान आदमी का सामाजिक दायरा कुछ ज्यादा ही बड़ा बन जाता है। क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है रूपेश कि मैं चार दिन से यहां पड़ा हूं—मगर मुझे देखने, मेरी खैरियत पूछने कोई नहीं आया है!"
"पता नहीं आप क्या कहना चाहते हैं, सर? सम्भव है कि आपके परिचित आते हों, लेकिन आपकी हालत देखकर बाहर ही से लौटा दिए जाते हों?"
"क्या ऐसा है?”
"मैं भला विश्वासपूर्वक कैसे कह सकता हूं?"
रूपेश के इस जवाब पर कुछ देर तक युवक खामोश रहा। बड़े ध्यान से वह रूपेश को देख रहा था, जैसे सोच रहा हो कि यह आदमी विश्वसनीय है या नहीं, फिर अचानक ही उसने सवाल कर दिया— “ क्या मैं तुम पर विश्वास कर सकता हूं, रूपेश?"
"क्यों नहीं, सर।" रूपेश ने एक मुस्तैद नौकर की तरह ही कहा।
"सबसे पहले तुम मुझे ' सर' कहना बन्द करो—मेरे हमउम्र हो तुम और मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूं।"
रूपेश चाहकर भी कुछ कह नहीं सका—फिर युवक ने आगे कहा—“ जानते हो इस वक्त मैं क्यों दोस्त की जरूरत महसूस कर रहा हूं?"
"नहीं, सर।"
"मैं तुम्हें अपने दिल की बात बताना चाहता हूं। सच कहता हूं, रूपेश—एक्सीडेण्ट के बाद जब से होश में आया हूं, तब से सैंकड़ों विचार मेरे दिलो-दिमाग में उठ रहे हैं, मगर एक भी शख्स ऐसा नहीं मिला जिससे उन विचारों पर बात करके अपना मन हल्का कर सकूं—जाने क्यों मुझे लग रहा है कि तुम पर विश्वास किया जा सकता है।"
"जरूर।”
“ तुम सेठ न्यादर अली के नौकर हो सकते हो, मेरे नहीं—मेरे केवल दोस्त हो—और इसी दोस्ती की कसम खाकर वादा करो कि मेरे और अपने बीच होने वाली बातों का जिक्र किसी से नहीं करोगे।"
"मैं वादा करता हूं।"
युवक के चेहरे पर पहली बार संतोष के भाव थे—ऐसे, जैसे उसे मनचाही मुराद मिल गई हो, और फिर अचानक ही युवक ने उस पर एक प्रश्न ठोक दिया—" अगर तुम मेरी जगह होते तो क्या करते?"
"मैं समझा नहीं।”
"मेरे साथ जो हो रहा है, मुझे जो भी सुनाया जा रहा है—नहीं जानता कि वह सच है या झूठ—कैसे मान लूं रूपेश कि सच्चाई वही है, जो ये लोग कह रहे हैं—क्या मैं वही हूं जो ये बता रहे हैं या मुझे ऐसा परिचय दिया जा रहा है, जिसका मुझसे दूर-दूर तक भी सम्बन्ध नहीं है।"
"इन बातों का अर्थ तो यह निकलता है कि आपको अपने सिकन्दर होने पर शक है, आप समझते हैं कि आपको एक गलत नाम और परिचय दिया जा रहा है?"
"क्यों नहीं हो सकता?"
"आपको ऐसा क्यों लग रहा है?"
"कुछ सवाल बिल्कुल अनुत्तरित होते हैं।"
“जैसे? ”
"यदि मैँ सिकन्दर हूं और वहां से कैडलॉंक लेकर ऑफिस के लिए निकला था तो मैं फियेट में कैसे मिला? मेरी कैडलॉंक कहां गई, और यदि मैं इतना धनवान हूं तो किसी अमीचन्द की गैराज का ताला तोड़कर मुझे फियेट चुराने की क्या जरूरत थी?”
"और?"
"वह नेकलेस मैंने किसके लिए खरीदा था—यदि मैं सिकन्दर हूं तो मेरे दायरे के वे लोग कहां हैं, जो सिकन्दर जैसे व्यक्ति के होने ही चाहिए?"
"आप तो निगेटिव ढंग से सोच रहे हैं—पॉजिटिव ढंग से क्यों नहीं सोचते?"
"पॉजिटिव से तुम्हारा मतलब यही है न कि मैं खुद को सिकन्दर मानकर सोचूं?"
'“मेरे ख्याल से चारों तरफ इस पक्ष में सबूत कुछ ज्यादा ही बिखरे हुए हैं।"
"तुम्हारा इशारा किस किस्म के सबूतों की तरफ है?”
“जैसे वह एलबम, इस कमरे की हर अलमारी में आपके कपड़े, जूते—हर नौकर आपको सिकन्दर बाबू कहकर पुकारता है—जोकि सामान्य अवस्था में लाने के लिए सेठजी सचमुच उस पिता की तरह ही प्रयत्नशील हैं, जैसे एक प्यार करने वाला पिता होता है।"
"यदि मैं सिकन्दर नहीं हूं और मुझे सिकन्दर बनाने की कोशिश की जा रही है तो निश्चय ही इसके पीछे कोई बड़ा मकसद होगा, अपने मकसद को पूरा करने के लिए इन्होंने वे सारे सबूत बिछाए होंगे जिनका तुम जिक्र कर रहे हो, उदाहरण के लिए, एलबम। किसी अन्य के फोटो पर मेरा चेहरा चिपकाकर यानि ट्रिक फोटोग्राफी से तैयार हो सकती है।”
"हो तो सकती है, मगर घूम-फिरकर बात वहीं आ जाती है—हमारे सामने प्रश्न यह खड़ा हो जाता है कि भला आपको सिकन्दर सिद्ध करने से लाभ क्या है?"
"यही तो पता लगाना है।"
"कैसे? ”
"उस तरकीब को निकालने के लिए ही तो तुमसे विचार-विमर्श कर रहा हूं।" युवक ने कहा—"हॉस्पिटल से निकालकर मुझे यहां ले आया गया है—लारेंस रोड पर स्थित इस विशाल बंगले में—जहां पचासों कमरे हैं, हॉल हैं, किसी मैदान जैसा लॉन है और कहा जा रहा है यह सब कुछ मेरा है—यह कोई सुनहरा जाल हो सकता है?"
"अब आखिर आप चाहते क्या हैं?"
"अब तक मैंने उस हर बात को स्वीकार किया है, जो डॉक्टर भारद्वाज, इंस्पेक्टर दीवान और सेठ न्यादर अली आदि कहते रहे हैं, मगर अब अपने बारे में थोड़ी-सी खोजबीन मैं खुद करना चाहता हूं।"
"मैं कुछ समझा नहीं?"
"एक अच्छा इन्वेस्टिगेटर वह होता है, जो छोटे-छोटे प्वॉइंट्स के आधार पर आगे बढ़कर किसी गुत्थीदार केस को सुलझाता है-स्वयं मैं ही अपने लिए एक रहस्य बन गया हूं—मेरा लक्ष्य है, यह पता लगाना कि मैं सिकन्दर हूं या नहीं—अगर हूं तो अनुत्तरित सवालों का जवाब खोजना है—य...यदि नहीं हूं तो पता लगाना है कि कौन हूं—और ये लोग मुझे सिकन्दर क्यों सिद्ध करना चाहते हैं? क्या तुम मुझे कोई ऐसा प्वॉइंट बता सकते हो रूपेश, जिसे पकड़कर मैं आगे बढ़ सकूं?"
“ आपके जो कपड़े यहां हैं, उन पर टेलर की चिट जरूर लगी होगी, यदि उस टेलर से पूछताछ की जाए तो?"
"उसे तो इन्होंने उसी तरह पढ़ा रखा होगा, जिस तरह इस घर के हर नौकर को पढ़ा रखा है।"
"वाह!" रूपेश एकदम चुटकी बजा उठा—“ दिमाग में बड़ा अच्छा आइडिया आया है, हमें इस कमरे से पता लग सकता है कि आप सिकन्दर हैं कि नहीं।"
"कैसे?" युवक ने अधीरतापूर्वक पूछा।
"वे कपड़े कहां हैं, जो होश में आने पर आपने अपने जिस्म पर देखे थे?"
"उस सेफ में।"
"टेलर की चिट उन पर भी लगी होगी, अगर आप सिकन्दर हैं तो उन पर भी उसी टेलर की चिट होगी, जिसकी इस कमरे में मौजूद आपके ढेर सारे कपड़ों पर है—और अगर टेलर अलग है तो निश्चय ही आप सिकन्दर नहीं हैं।"
"वैरी गुड।" कहने के साथ ही युवक बिस्तर से उछल पड़ा, रूपेश द्वारा बताया गया प्वॉइंट उसे जंचा था। जल्दी से सेफ खोलते हुए उसने कहा—"तुम इस कमरे में मौजूद मेरे ढेर सारे कपड़ों पर लगी चिट देखो, रूपेश। मैं उन कपड़ों पर लगी चिट देखता हूं, जो होश में आने पर मेरे जिस्म पर थे।"
रूपेश ने उसकी आज्ञा का पालन किया।
कपड़े क्योंकि बहुत ज्यादा थे, इसीलिए उसे सभी को संभालने में तीस मिनट लग गए, जबकि गठरी-से बंधे वे कपड़े लेकर युवक पलंग पर आ बैठा था, जो सबसे पहले उसने अपने जिस्म पर देखे थे। रूपेश बोला—“ सब एक ही टेलर द्वारा तैयार किए गए कपड़े हैं, कनाट प्लेस पर कोई टेलर है।"
युवक की आंखें अजीब-से अन्दाज में चमकने लगीं। अपने साथ में दबी गठरी की तरफ इशारा करके वह बोला—“ ये कपड़े गाजियाबाद के किसी "बॉनटेक्स' नामक टेलर ने तैयार किए हैं।"
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