ए.सी.पी. कौल ने थके और भारी क़दमों से जेलर के कमरे में कदम रखा और कुर्सी घसीट कर बैठ गया । कोहनी को टेबल पर रखा और उँगलियों से माथा रगड़ने लगा । आँखें बन्द हो गईं थी ।
कमरा खाली था । मिनट भर से ऊपर के पल इसी में बीत गए । उँगलियां माथे पर फिरती रहीं ।
तभी दरवाजे की तरफ से आहट उभरी ।
कोई भीतर आ रहा था ।
परन्तु ए.सी.पी. संजय कौल ने आँखें भी नहीं खोलीं ।
“मैं आपकी कुछ सहायता कर सकता हूँ सर ?” जेलर की आवाज ए.सी.पी. कौल के कानों में पड़ी ।
ए.सी.पी. कौल ने तुरन्त आँखें खोलीं, फिर सिर को हाथों से हटाया और जेलर को देखा ।
“तुम जब्बार मलिक का मुँह खुलवा सकते हो ?” ए.सी.पी. कौल ने देखकर तीखे स्वर में पूछा ।
जेलर सकपकाया, फिर सम्भलता हुआ कह उठा ।
“वो बात नहीं सर...पर... दरअसल आप तीन इंस्पेक्टर के साथ बहुत जोर-शोर से आये के साथ आये थे कि आज जब्बार मलिक को छोड़ने का इरादा नहीं है, इसलिए मैंने पूछा.... ।”
“जब्बार मलिक मुँह खोलने को तैयार नहीं है वो सबकुछ जानता है परन्तु बड़ा खान के बारे में कुछ भी बताने को तैयार नहीं ।” ए.सी.पी. कौल ने झल्लाहट भरे अंदाज में कहा ।
जेलर कुछ कहने लगा कि तभी एक इंस्पेक्टर ने भीतर प्रवेश करते हुए कहा ।
“सर, जब्बार मलिक मुँह नहीं खोलेगा ।”
ए.सी.पी. कौल ने दांत भींचकर इंस्पेक्टर को देखा ।
“जो हम जानना चाहते हैं, उनके जवाब उसके पास हैं, ये बात वो जानता है, परन्तु वो हमें कुछ भी बताने को तैयार नहीं । आज जिस तरह से जवाब देने के लिए टॉर्चर किया है वो कुछ ज्यादा हो गया है । उसे रोक दें क्या ?”
“हाँ ।” ए.सी.पी. कौल ने सिर हिलाया... “वो सब रोक दो । उससे जब्बार पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है ।”
“वो इंस्पेक्टर फौरन बाहर निकल गया ।”
“ सर ।” जेलर कह उठा.... “मैं कुछ.... ।”
“तुम मेरे लिए एक कप चाय मंगवा दो तो मेहरबानी होगी ।”
“अभी लीजिये सर ।”
☐☐☐
पुलिस इंस्पेक्टर के छोटे से रूम में ए.सी.पी. संजय कौल के अलावा तीन इंस्पेक्टर और थे, जिनके साथ कुछ देर पहले ही जब्बार मलिक से मुलाकात कर के जेल से वापस ही लौटे । चारों बैठे थे । चारों के चेहरे पर गंभीरता थी ।
साथ ही सब इंस्पेक्टर राधे श्याम शर्मा सतर्क अवस्था में खड़ा था ।
सब इंस्पेक्टर राधे श्याम शर्मा कौल के लिए एक जिम्मेदार ऑफिसर था ।
“सर ।” एक इंस्पेक्टर ने कहा --- “हम जितनी यातना इस जब्बार मलिक को दे चुके हैं, इतनी यातना में हम कई कैदियों के मुँह खुलवा चुके होते ।”
“परन्तु जब्बार का हम मुँह भी नहीं खुलवा सके, हमारी यातना पर वो तड़पता तो है, परन्तु बोलता कुछ भी नहीं पर इतना बहुत बार कहा कि वो हर बात का जवाब जानता है परन्तु बताएगा कुछ भी नहीं ।”
ए.सी.पी. संजय कौल की गंभीर निगाहें सब पर जा रही थीं ।
“सर, लगता है पुलिस के हाथ इन अपराधियों के सामने कमजोर पड़ने लगे हैं ।”
“नहीं सर, सब इंस्पेक्टर राधे श्याम शर्मा उसी मुद्रा में कह उठा--- “पुलिस के हाथ कभी कमजोर नहीं हो सकते, हमारे हाथ हमेशा मजबूत हैं और मजबूत ही रहेंगे । परन्तु कभी न कभी हमारे सामने जब्बार जैसा खिलाड़ी भी पड़ जाता है जो हमारी बातों में नहीं फँसता ।”
किसी ने सब इंस्पेक्टर शर्मा की बात का जवाब नहीं दिया ।
ए.सी.पी. कौल ने उस पर निगाह भरते हुए कहा ।
“कल दिल्ली पुलिस हेडक्वार्टर से एक शूटर यहाँ भेजा जा रहा है ।”
“वो क्यों ?”
“मैंने हेडक्वार्टर में खबर करना सही समझा कि मुझे एक फोन कॉल पर कहा गया है हम जल्दी ही जब्बार मलिक को यहाँ से निकालने वाले हैं । इस नाते शूटर को यहाँ भेजा जा रहा कि वो उसकी रखवाली कर.... ।”
“जब्बार को हमने इस जगह पर रखा गया कि वहाँ तक कोई नहीं पहुँच.... ।”
“ये बात दिल्ली वाले भी जानते हैं, परन्तु वो ये भी जानते हैं कि हम जब्बार मलिक का मुँह नहीं खुलवा सके । उनका भेजा गया इंस्पेक्टर जब्बार मलिक का मुँह भी खुलवाने की चेष्टा.... ।”
“जब हम नहीं खुलवा सके तो वो क्या खुलवा.... ।”
“तुम जल्दी तैश में न आया करो । दिल्ली वालों को भी मेहनत कर लेने दो ।”
उनके बीच ये बातें चलती रही ।
फिर मीटिंग बर्खास्त हो गई ।
☐☐☐
अगले दिन ।
सुबह साढ़े दस बजे ए.सी.पी. संजय कौल अपने ऑफिस में चहल-पहल करता दिख रहा था । कभी वो टेबल के पीछे मौजूद अपनी कुर्सी पर जा बैठता था । उसकी सोचों का वजह जब्बार मलिक था या फिर वो इंस्पेक्टर जो दिल्ली से आ रहा था । जिसको ट्रेन हर पल जब्बार की तरफ सरकाती आ रही थी ।
कौल ने इंटरकॉम का स्विच दबाकर कहा ।
“इंस्पेक्टर शर्मा को भेजो ।” कहने के पश्चात कौल ने टहलना छोड़ा और अपनी कुर्सी पर आ बैठा था ।
दो मिनट के भीतर ही सब इंस्पेक्टर राधे श्याम शर्मा ने भीतर प्रवेश किया और ए.सी.पी. को सैल्यूट मारा फिर सतर्क स्वर में कहा ।
“हुक्म सर ।”
“बैठ जाओ ।”
सब इंस्पेक्टर शर्मा कुर्सी पर बैठ गया ।
दोनों की निगाहें मिलीं ।
“राधे श्याम शर्मा जी ।” ए.सी.पी. संजय कौल ने गंभीर स्वर में कहा– “मैं तुम्हें कुछ काम सौंपने वाला हूँ ।”
“यस सर ।” सब इंस्पेक्टर शर्मा सतर्क सा नजर आने लगा ।
“दिल्ली से आने वाले इंस्पेक्टर को तुम लेने स्टेशन जाओगे । तुम उसे रिसीव करोगे और.... ।”
“मैं समझ गया सर ।”– सब इंस्पेक्टर शर्मा ने कहा ।
“उस इंस्पेक्टर का नाम सूरजभान यादव है ?”
“जी ।”
“उसकी कोई तस्वीर नहीं है, लेकिन तुम उसे पहचान लोगे ?”
“यस सर ।”
“पैंतीस मिनट ट्रेन आने को रह गए हैं ।”
शर्मा फौरन उठ खड़ा हुआ ।
“तुम इंस्पेक्टर सूरजभान यादव के साथ हर पल रहोगे । उसकी कही हर बात पूरी होनी चाहिए ।”
“जी सर । अब मुझे चलना चाहिए ।” शर्मा बोला ।
ए.सी.पी. कौल ने अपना सोच भरा चेहरा हौले से हिला दिया ।
शर्मा तुरन्त कौल साहब के ऑफिस से बाहर निकल गया ।
☐☐☐
जम्मू रेलवे स्टेशन
दिन के ग्यारह बज रहे थे । हर तरफ भीड़-भाड़ शोर शराबा था । एक दूसरे से टकराते लोग आ-जा रहे थे । उन्होंने सूटकेस-बैग उठा रखे थे । लाल कपड़ों में हर तरफ कुलियों की मौजूदगी का एहसास हो रहा था । ट्रेनों की धड़-धड़ाधड़ और भौंपू की आवाजें बराबर कानों में पड़ रही थीं । इस शोर में कुछ ऊँचे स्वर में बात करना पड़ रहा था ।
प्लेटफॉर्म नम्बर एक पर तो और भी ज्यादा भीड़ थी । खोमचे वाले, ट्राली वाले, चाय बेचने वाले, सामान उठाये दौड़ते कुली और प्लेटफॉर्म पर खड़े लोगों की भीड़ । स्पीकर द्वारा बार-बार घोषणा हो रही थी कि दिल्ली से आने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म नम्बर एक पर पहुँच रही है ।
इस घोषणा के साथ ही प्लेटफॉर्म पर हलचल बढ़ गई थी । लाल कमीज में कुली प्लेटफॉर्म पर ट्रेन के इंतजार में आ पहुँचे थे । ट्रेन अब कभी भी पहुँच सकती थी ।
इसी भीड़ में चार पुलिस वाले खड़े थे । एक सब-इंस्पेक्टर था, एक कॉन्स्टेबल और दो सिपाही थे ।
“हम में से किसी ने इंस्पेक्टर साहब को देखा नहीं ।” एक कॉन्स्टेबल बोला, “उन्हें पहचानेंगे कैसे ?”
“पहचान लेंगे ।” सब-इंस्पेक्टर ने कहा, “पुलिस वाले दूर से ही पहचाने जाते हैं ।”
“अगर सर वर्दी में हुए तो आसानी से पहचान लेंगे ।” दूसरा कॉन्स्टेबल बोला ।
“भला इंस्पेक्टर साहब वर्दी में सफर क्यों करेंगे ?” सब-इंस्पेक्टर ने कहा, “वे साधारण कपड़ों में ही होंगे ।”
तभी ट्रेन का शोर गूँज उठा । ट्रेन धड़धड़ाती हुई प्लेटफॉर्म में प्रवेश कर आई थी । कुली पहले ही ट्रेन पर चढ़ने लगे कि सवारियों से सामान उठाने की बात तय कर लें ।
शोर-शराबा और बढ़ गया । फिर देखते ही देखते ट्रेन प्लेटफॉर्म पर रुक गई ।
कानों को फाड़ देने वाला शोर उठ खड़ा हुआ । लोग नीचे उतरने लगे । कुलियों का रेला हर तरफ दिख रहा था । ट्रेन यहीं तक की थी । ये राहत की बात थी, वरना चढ़ने वालों को और भी मुसीबतें खड़ी कर देनी थी ।
वे चारों पुलिस वाले दो-दो की टोली में इंस्पेक्टर साहब को तलाश करने लगे ।
अगले दस मिनट में ही शोर और भीड़ कम होने लगी । ट्रेन से उतरने वाला देवराज चौहान भी था ।
वह पैंट-कमीज पहने था । सिर के बाल छोटे थे । होंठों पर मूँछें थीं । उसने मीडियम साइज का एक सूटकेस थाम रखा था । उसकी नजरें हर तरफ जा रही थीं । आखिरकार उसकी निगाह दो पुलिस वालों पर जा टिकीं, जो कि परेशानी भरे अंदाज में ट्रेन से उतरने वाले लोगों को देख रहे थे, उन्हें पहचानने की चेष्टा कर रहे थे ।
देवराज चौहान उनके पास पहुँचकर बोला, “किसे ढूंढ रहे हो ?”
दोनों ने देवराज चौहान को देखा ।
“आप कौन हैं ?” हवलदार ने संभले हुए स्वर में पूछा ।
“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ।”
“ओह !” हवलदार ने तुरन्त देवराज चौहान के हाथों से सूटकेस लिया, “हम आपको ही ढूंढ रहे थे ।”
“तो मेरे आने की खबर मिल गई थी ।”
“जी सर ! हम आपको लेने आये हैं । ए.सी.पी. साहब ने हमें आपको रिसीव करने का ऑर्डर दिया ।”
“मेरा भी यही ख्याल था कि तुम लोग मुझे ढूंढ रहे होंगे ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।
तभी सब-इंस्पेक्टर और एक सिपाही वहाँ आ पहुँचे । दोनों ने फौरन देवराज चौहान को सैल्यूट दिया ।
“जम्मू में आपका स्वागत है सर ।” सब-इंस्पेक्टर ने कहा ।
“नाम क्या है तुम्हारा ?” देवराज चौहान ने सिर हिलाकर पूछा ।
“सब-इंस्पेक्टर राधे श्याम शर्मा हूँ सर ।”
“और कितने लोग हैं जो मुझे लेने आये हैं ?”
“हम चार ही हैं सर ।”
“तो हमें अब चलना चाहिए ।” देवराज चौहान बोला, “कहाँ ले जाओगे मुझे ?”
“सर, आपके ठहरने के लिए एक फ्लैट तैयार कर रखा है, वहीं पर... ।”
“मैं पहले ए.सी.पी. साहब से मिलूँगा । उसके बाद फ्लैट पर जाऊँगा ।” देवराज चौहान बोला ।
“जो हुक्म सर ।”
☐☐☐
देवराज चौहान जम्मू पुलिस हैडक्वार्टर पहुँचा ।
देवराज चौहान के कहने पर सब-इंस्पेक्टर राधे श्याम शर्मा उसे रेस्ट रूम में ले गया । जहाँ देवराज चौहान ने हाथ-मुँह धोकर सूटकेस में से वर्दी निकालकर पहनी । बैल्ट लगाई । कैप सिर पर रखी । कमीज की छाती पर इंस्पेक्टर सूरजभान यादव नेम की प्लेट लगी चमक रही थी । मूँछों ने उसके चेहरे का रौब और भी बढ़ा रखा था । कमर पर होलेस्टर लटक रहा था ।
“इंस्पेक्टर शर्मा ।” देवराज चौहान बोला, “अब मैं ए.सी.पी. साहब से मिलने को तैयार हूँ ।”
“जी सर, आइए ।”
दोनों कमरे से बाहर निकले और कॉरिडोर में आगे बढ़ गए ।
सूटकेस कमरे में ही रहा ।
दो मिनट का रास्ता तय करने के बाद सब-इंस्पेक्टर एक कमरे का दरवाजा खोलकर बोला ।
“जाइये सर, ए.सी.पी. साहब आपका इंतजार कर रहे हैं ।”
देवराज चौहान ने सिर हिलाया और भीतर प्रवेश कर गया ।
सब-इंस्पेक्टर शर्मा बाहर ही रहा । दरवाजा बन्द हो गया ।
ये दो कमरों जितना कमरा था । सजा हुआ । बड़ी सी टेबल के गिर्द चार कुर्सियाँ पड़ी थीं । पाँचवीं कुर्सी पीछे दीवार की तरफ थी । दीवार पर महात्मा गाँधी की तस्वीर लगी थी । कुर्सी पर पचपन बरस का चुस्त सा दिखने वाला व्यक्ति, जो कि ए.सी.पी. संजय कौल था, बैठा था । वह क्लीन शेव्ड था ।
ए.सी.पी. संजय कौल ने देवराज चौहान को भीतर प्रवेश करते देखा ।
देवराज चौहान पास पहुँचकर जोरदार सैल्यूट देता कह उठा ।
“सर, इंस्पेक्टर सूरजभान यादव दिल्ली से हाजिर है !”
ए.सी.पी. संजय कौल मुस्कुराया और खड़ा होकर देवराज चौहान की तरफ हाथ बढ़ाया ।
देवराज चौहान ने हाथ मिलाया ।
“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव । एनकाउंटर स्पेशलिस्ट ।” ए.सी.पी. संजय कौल ने कहा, “बहुत नाम सुना था तुम्हारा । तुम्हारे कारनामे मैंने कई बार अखबारों में पढ़े हैं । जब पता चला कि तुम्हें भेजा जा रहा है तो मैं तुमसे मिलने को उत्सुक हो उठा । बैठो ।”
देवराज चौहान टेबल के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया ।
ए.सी.पी. संजय कौल भी बैठा ।
“सफर में कोई परेशानी तो नहीं हुई ?” कौल ने पूछा ।
“नहीं सर ! सब ठीक रहा ।” देवराज चौहान शांत मुस्कान के साथ बोला ।
“तुम तीन दिन पहले आने वाले थे ।”
“यस सर ! तीन दिन पहले मैं दिल्ली से चलने ही वाला था कि घरेलू समस्या की वजह से रुकना पड़ा ।”
“परिवार में कौन-कौन है ?”
“पत्नी है, तीन बच्चे हैं । दो बेटे, एक बेटी । बेटे कॉलेज में हैं । बेटी स्कूल में पढ़ रही है सर ।”
“हूँ !” ए.सी.पी. संजय कौल ने सिर हिलाया फिर मुस्कुराकर बोला, “एनकाउंटरों में आज तक कितनों को मारा तुमने ?”
“बत्तीस को सर ! वह सब नामी खतरनाक लोग थे ।” देवराज चौहान भी मुस्कुराया ।
“कानून की सेवा दिल से कर रहे हो ।”
“वर्दी पहनी ही इसलिए थी सर । मेरे लिए मेरा परिवार और मेरा देश एक समान है ।”
“तुम्हारे विचार जानकर अच्छा लगा मुझे । अपना आई-कार्ड दिखाओ ।”
“जी सर !” देवराज चौहान ने कहा और कमीज की जेब से आई-कार्ड निकाल कौल की तरफ बढ़ा दिया ।
कौल ने कार्ड लेकर देखा ।
देवराज चौहान की पुलिस की वर्दी में वहाँ तस्वीर लगी थी । उस पर पुलिस डिपार्टमेंट की मुहर थी । नाम-पता, रैंक, रजिस्टर्ड नम्बर, हर चीज उस पर दर्ज थी । कौल ने कार्ड को वापस देवराज चौहान को लौटा दिया ।
देवराज चौहान ने कार्ड वापस रखते हुए पूछा, “जब्बार मलिक अब किस हाल में है सर ?”
“वह ठीक है । जेल में पहले की तरह ही है ।” कौल ने बताया ।
“उसे छुड़ाने की कोई कोशिश तो नहीं हुई ?”
“नहीं ! सब ठीक है ।” ए.सी.पी. कौल ने गम्भीर स्वर में कहा, “मैंने दिल्ली पुलिस को खबर दी थी कि बड़ा खान ने फोन पर धमकी दी है कि वह जब्बार मलिक को जल्दी ही जेल से छुड़ा ले जायेगा, तो दिल्ली पुलिस ने एहतियात के तौर पर तुम्हें जम्मू भेज दिया कि तुम भी जब्बार मलिक पर अपने तौर पर नजर रख सको । दिल्ली का ऑर्डर था, इसीलिए मैं उन्हें कुछ नहीं कह सका, जबकि हकीकत में हमने जब्बार मलिक को कड़े पहरे में रखा है । चौबीसों घण्टे उस पर नजर रखी जाती है । उसे ऐसी कोठरी में रखा है कि वहाँ तक साधारण पुलिस वाले भी नहीं जा सकते । बड़ा खान उसे जेल से निकालकर नहीं ले जा सकता । जब्बार मलिक तक पहुँच पाना कोई मजाक नहीं है सूरजभान !”
“मुझे यकीन है कि आपने पुख्ता इंतजाम कर रखे होंगे !” देवराज चौहान ने गम्भीर स्वर में कहा, “उसके खिलाफ दिल्ली में भी केस चल रहे हैं । इसीलिए दिल्ली पुलिस को भी उसकी चिंता है ।”
“मैं समझता हूँ ।” ए.सी.पी. कौल ने कहा ।
“जब्बार मलिक को छः महीने पहले जम्मू पुलिस ने गिरफ्तार किया था ।”
ए.सी.पी. कौल ने सिर हिलाया ।
“तो जब्बार मलिक ने अब तक बड़ा खान के बारे में क्या-क्या जानकारी दी ?”
“कुछ भी नहीं !”
“कुछ भी नहीं ?” देवराज चौहान के माथे पर बल पड़े ।
“वह सख्त जान है । दृढ़ता से भरा हुआ है । बड़ा खान को भगवान की तरह मानता है और उसके खिलाफ मुँह खोलने को तैयार नहीं है । हमने बहुत कोशिश कर ली, लेकिन वह पक्का इंसान है ।”
“कोशिश में क्या किया, मैं जान सकता हूँ सर ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“उसे जेल में, गुपचुप तरीके से हर तरह की यातना दी गई कि वह बड़ा खान के बारे में पुलिस को बताये । उसका ठिकाना बताये । उसके साथियों के नाम बताये । उन लोगों के नाम-पते बताये जो आम लोगों के बीच रहकर बड़ा खान और उसके लोगों के काम आते हैं । हमने यातना का कोई चेहरा नहीं छोड़ा, जो उसे दिखाया न गया हो । परन्तु वह मुँह खोलने को तैयार नहीं । मरने को तैयार है । इस बात पर तो जब्बार मलिक जीत गया और हम हार गए ।”
“क्या कहता है वह ?”
“हर बात पर कहता है कि इसका जवाब मेरे पास है लेकिन बताऊँगा नहीं ।”
“ऐसे लोग भी होते हैं ।” देवराज चौहान ने सिर हिलाया, “दिल्ली से मुझे यह कहकर भेजा गया है कि जब्बार मलिक का मुँह खुलना बहुत जरूरी है । वह बड़ा खान की बहुत बातें जानता है और पुलिस को बड़ा खान के बारे में जानने की जरूरत है, क्योंकि पुलिस उसके बारे में ज्यादा नहीं जानती । दो साल पहले बड़ा खान का नाम अचानक सुनने में आया और उसके बाद हिन्दुस्तान में खौफ की तरह फैलता चला गया ।”
“तुम उसका मुँह खुलवाने के लिये जो कोशिश करना चाहते हो कर सकते हो ।”
“थैंक्यू सर !”
“परन्तु जब्बार मलिक तुम्हारी किसी बात का जवाब नहीं देगा । हमने अंत तक कोशिश कर ली कि वह मुँह खोल दे । ये हम ही जानते हैं कि हमने कितनी कोशिश की ।”
“दिल्ली पुलिस का मानना है कि जब्बार मलिक को फाँसी की सजा दी जायेगी । परन्तु उससे पुलिस और जनता का कोई भला नहीं होगा । भला तब होगा जब बड़ा खान पर हाथ डाला जा सके ।”
“असम्भव !” ए.सी.पी. कौल के होंठों से निकला, “बड़ा खान तक पहुँचना नामुमकिन है ।”
“क्यों ?”
“सबसे बड़ी बात तो ये है कि पुलिस अभी तक बड़ा खान का चेहरा भी नहीं जानती । उसके जो भाषण, धमकियों की सीडी जो भी हमारे पास पहुँची है, उनमें उसने अपने मुँह पर कपड़ा लपेट रखा है । हमें आज तक कोई ऐसा नहीं मिला जिसने बड़ा खान का चेहरा देखा हो । जो भी मिले, सबने ये ही कहा कि बड़ा खान हर वक्त अपने चेहरे पर कपड़ा लपेटकर रखता है । मेरे ख्याल में वह सतर्क रहने वाला इंसान है ।”
“वह हिन्दुस्तान का है या पाकिस्तान का ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“खबर नहीं इस बात की ।”
“जब्बार मलिक उसका चेहरा देखने के बारे में क्या कहता है, क्या उसने चेहरा देखा है ?”
“हाँ ! उसने बड़ा खान का चेहरा देखा है । इस बात को वह स्वीकार करता है । परन्तु पुलिस को बड़ा खान के चेहरे का स्कैच बनवाने को तैयार नहीं । वह कहता है कि तुम लोग मेरी मर्जी के खिलाफ, मुझसे कोई काम नहीं करा सकते । ये बात वह ठीक कहता है । वह जिद्दी है और जान दे देगा, परन्तु बड़ा खान के बारे में कोई जानकारी नहीं देगा !” ए.सी.पी. कौल ने कहा ।
“कितनी अजीब बात है कि पुलिस अभी तक बड़ा खान की राष्ट्रीयता भी नहीं जान सकी ।”
“किसी गलतफहमी में मत रहना इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ।” कौल ने गम्भीर स्वर में कहा, “हमने बड़ा खान के बारे में जानने की बहुत कोशिश की, परन्तु हमें जरा भी सफलता नहीं मिली ।”
देवराज चौहान का चेहरा शांत और गम्भीर था ।
“आप दिल्ली बात कर लें सर ! मेरे को कुछ अधिकार देकर भेजा गया है ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“किस तरह के अधिकार ?”
“यही कि मैं अपनी तरह से, जब्बार मलिक का मुँह खुलवाने की कोशिश कर सकूँ ।”
“इस काम में जम्मू पुलिस तुम्हारे साथ है इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ।”
“थैंक्यू सर ! फिर भी आप दिल्ली बात कर लें तो बेहतर होगा ।” देवराज चौहान मुस्कुराकर कह उठा ।
“मैं दिल्ली बात कर लूँगा । अब तुम क्या चाहते हो ? मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूँ ।”
“अभी तो मैं कुछ देर आराम करूँगा । लंच करूँगा । उसके बाद शाम चार बजे जब्बार मलिक से मिलने जाऊँगा ।”
“तुम्हारे आराम का सब इंतजाम कर रखा है । सब-इंस्पेक्टर शर्मा की ड्यूटी तुम्हारी देख-रेख की है । तुम्हें जिस चीज की भी जरूरत हो, उसे कह दो, पूरी हो जायेगी ।”
“थैंक्यू सर !” देवराज चौहान मुस्कुराया और उठ खड़ा हुआ ।
“तुमसे मिलकर अच्छा लगा एनकाउंटर स्पेशलिस्ट !” कौल भी उठते हुए मुस्कुराया ।
दोनों ने हाथ मिलाये ।
फिर देवराज चौहान ने सैल्यूट दिया और बाहर निकल गया ।
सब-इंस्पेक्टर राधे श्याम शर्मा बाहर ही मौजूद था, उसके इंतजार में ।
“शर्मा !” देवराज चौहान ने कहा, “मेरा सूटकेस लो और जहाँ मुझे ठहराने का इंतजाम कर रखा है, वहाँ चलो !”
“जी सर !”
दोनों आगे बढ़ गए ।
“दो बजे मेरे लंच का इंतजाम करना है और चार बजे मैं जब्बार मलिक से मिलने जेल जाऊँगा ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“मैं समझ गया सर !”
☐☐☐
सब-इंस्पेक्टर शर्मा और देवराज चौहान जहाँ पहुँचे, वह सजा-सजाया फ्लैट था ।
सब-इंस्पेक्टर शर्मा ने सूटकेस बेडरूम में रख दिया था ।
देवराज चौहान ने पूरे फ्लैट पर नजर मारी । वह खाली था । तीन बेडरूम, बड़ी लॉबी और ड्राइंग हॉल था फ्लैट में । किचन में भी जरूरत का हर सामान मौजूद था ।
“ये फ्लैट किसका है ?” देवराज चौहान ने शर्मा से पूछा ।
“पुलिस डिपार्टमेंट का है सर । कोई ऑफिसर बाहर से आता है तो ये उसे दिया जाता है ।”
“हूँ !” देवराज चौहान ने शांत भाव में सिर हिलाया, “कॉफी बनानी आती है ?”
“यस सर ! अभी बनाता हूँ सर ।” कहकर शर्मा किचन की तरफ बढ़ गया ।
“अपने लिए भी बना लेना ।”
“जी सर !”
देवराज चौहान ने वर्दी उतारी और नाइट सूट पहनकर सिगरेट सुलगाई फिर बन्द खिड़की को खोलकर बाहर देखा । सामने सड़क थी । वहाँ से वाहन आ-जा रहे थे । इसी सड़क पर से वह शर्मा के साथ आया था । दोपहर का डेढ़ बज रहा था । कश लेते हुए देवराज चौहान वहाँ से हटने लगा कि एकाएक ठिठका ।
उसकी निगाह सामने सड़क पार खड़ी हरे रंग की कार पर जा टिकी ।
कार के भीतर कोई बैठा था ।
तो क्या कोई उस पर नजर रख रहा था ?
कौन हो सकता है ?
बड़ा खान या कोई और ?
या यूँ ही वह कार खड़ी है और उसे बिना वजह शक हो रहा है । ये सोचकर देवराज चौहान खिड़की से हट गया कि जो भी सच होगा, जल्दी ही सामने आ जायेगा ।
वह पलटा तो शर्मा को कॉफी के प्याले के साथ करीब आते देखा । देवराज चौहान ने एक प्याला थाम लिया । वह सोफा चेयर पर जा बैठा ।
शर्मा भी एक कुर्सी पर बैठ गया ।
दोनों कॉफी के घूँट भरने लगे ।
“जब्बार मलिक या बड़ा खान के बारे में तुम्हारे पास क्या खबर है शर्मा ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“खास नहीं । जो सब जानते हैं, वह ही मैं जानता हूँ सर !” शर्मा बोला ।
“बताओ क्या जानते हो ? पहले बड़ा खान के बारे में बताओ ।”
“वह खतरनाक है, दरिंदों जैसा है । उसके कारनामों पर निगाह मारी जाये तो ये बात स्पष्ट हो जाती है । दो साल पहले बड़ा खान का नाम सुनने में आया और उसके बाद हर कांड में बड़ा खान का नाम जुड़ने लगा । लम्बे हाथ हैं उसके । उसके आदमी हर जगह पर हैं । हिन्दुस्तान में उसके आदमियों का जाल बिछा है और वह जहाँ चाहता है, वहीं आतंकी कार्यवाही कर देता है । पुलिस अभी तक उसके चेहरे से वाकिफ नहीं हो पाई है । जब्बार मलिक, बड़ा खान के करीबी लोगों में से एक है ।”
“बड़ा खान की पीठ पर किसका हाथ है, इस बारे में सुना कभी ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“नहीं सुना । परन्तु कश्मीर घाटी उसके नाम से कांपती है । पहले से ही मौजूद आतंकवादी दल बड़ा खान का नाम सुनते ही सीधे हो जाते हैं । शुरू-शुरू में एक-दो संगठनों ने बड़ा खान के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की, परन्तु शीघ्र ही वह शांत और चुप हो गए । शायद बड़ा खान ने उन्हें समझा दिया था कि चुप रहने में ही भलाई है ।”
“उन संगठनों से पता करने की कोशिश नहीं की बड़ा खान के बारे में ?”
“पुलिस गुप-चुप तरीके से बड़ा खान के बारे में जानकारी पाने की भरपूर चेष्टा कर चुकी है । लेकिन फायदा नहीं हुआ । जब्बार मलिक को बड़ा खान की जानकारी है, परन्तु वह कुछ नहीं बताता ।”
देवराज चौहान ने कॉफी का प्याला खाली करके टेबल पर रख दिया ।
“सर, मैं आपके लंच का इंतजाम करता हूँ ।” शर्मा उठते हुए बोला, “मैं आधे घण्टे में आया ।”
“बाहर से लाओगे लंच ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“यस सर ! एक जगह पर मैंने तब ही ऑर्डर दे दिया था जब आप कमिश्नर साहब से बात कर रहे थे ।”
देवराज चौहान ने सिर हिलाया और खुली खिड़की पर जा खड़ा हुआ ।
सामने सड़क पार वह हरी कार अब नहीं खड़ी थी ।
सब-इंस्पेक्टर शर्मा लंच लेने चला गया ।
☐☐☐
देवराज चौहान ने लंच किया ।
उसके बाद शर्मा चार बजे आने को कहकर चला गया ।
तीन बज रहे थे ।
देवराज चौहान सिगरेट के कश लेते यूँ ही खुली खिड़की पर पहुँचा कि ठिठक गया । सामने सड़क पार वह हरी कार खड़ी थी । भीतर कोई बैठा भी दिखा ।
देवराज चौहान के होंठ सिकुड़ गए ।
अब शक की कोई गुंजाइश नहीं रही थी कि उस पर नजर रखी जा रही है ।
नजर रखने वाले कौन हो सकते हैं ? ये बात देवराज चौहान समझ नहीं पा रहा था ।
देवराज चौहान खिड़की से हटा और एक तरफ होलेस्टर में रखा रिवॉल्वर चेक किया । गोलियों की मैग्जीन फुल थी । वह रिवॉल्वर वही रखकर बेडरूम में आ गया । चेहरे पर गम्भीरता नजर आ रही थी । वह जानता था कि वह भारी खतरे में कदम रख चुका है । देवराज चौहान के तौर पर कोई भी उसे पहचान सकता था । हर वक्त उसे पुलिस वालों के बीच ही रहना था । कभी भी वह फँस सकता था । अपने बुरे हालातों से वह अच्छी तरह वाकिफ था ।
बेड पर बैठते ही उसका मोबाइल बज उठा ।
मोबाइल बेड पर ही था । उसने फोन उठाया और स्क्रीन पर आ रहा नम्बर देखा । वह नम्बर उसकी समझ में नहीं आया । ये मोबाइल फोन उसका नहीं, इंस्पेक्टर सूरजभान यादव का था ।
“हैलो !” देवराज चौहान ने बात की ।
“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव हो तुम ?” उधर से शांत आवाज कानों में पड़ी ।
“हाँ, तुम कौन हो ?”
“मुझे हैरानी है कि तुम सही-सलामत कैसे जम्मू पहुँच गए । तुम्हें खत्म करने का तगड़ा इंतजाम कर रखा था दिल्ली में ।”
देवराज चौहान के दाँत भींच गए ।
“कौन हो तुम ?” देवराज चौहान सख्त शब्दों में कह उठा ।
“दिल्ली में तुम बच कैसे गए ?” उधर से कहा गया ।
“किस्मत से ।”
“किस्मत बार-बार साथ नहीं देती ।” इस बार कानों में पड़ने वाले स्वर में मुस्कुराहट भरी थी ।
“तो दिल्ली में मुझे मारने के लिए तुमने मुझ पर हमला कराया था ।” देवराज चौहान गुर्रा उठा था ।
“हाँ ! परन्तु हैरानी है कि तुम घायल भी नहीं हुए और जम्मू आ ही पहुँचे । मेरे आदमियों ने बेकार काम किया । नाकारा हो गए हैं वह ।”
“क्यों मारना चाहते थे तुम ?”
“क्योंकि तुम जैसे खतरनाक पुलिस वाले को जब्बार मलिक के पास भेजा जा रहा... ।”
“तुम कौन हो, अपना नाम बताओ ?”
“क्या करोगे जानकर ?” कानों में पड़ने वाले स्वर में मुस्कान थी ।
“बताओ !”
“बड़ा खान !”
पल भर के लिए देवराज चौहान अचकचा उठा ।
“चुप क्यों हो गए इंस्पेक्टर ?”
“मैंने सोचा नहीं था कि तुम बड़ा खान हो सकते हो ।”
“बड़ा खान ही हूँ मैं । सुना है लोग मुझसे डरते हैं । सच में ऐसा है क्या ?”
“वह हरी कार में तुम्हारे आदमी ही मुझ पर नजर रख रहे हैं ?” देवराज चौहान ने कहा ।
“हरी कार, मैं समझा नहीं ?”
“मैं जिस फ्लैट में हूँ उसके बाहर एक हरी कार मुझ पर नजर रख रही है ।”
“हो सकता है कि वह मेरे आदमी हों । दावे के साथ नहीं कह सकता । मुझे बहुत काम रहते हैं और मेरे आदमी भी कामों में व्यस्त रहते हैं । खैर, छोड़ो हमें काम की बात करनी चाहिए ।”
“काम की बात ?”
“जब्बार मलिक को आजाद कराने की बात । इसके बदले तुम्हें बहुत बड़ी रकम मिल सकती है ।”
“तुमने तो धमकी दी है कि तुम जब्बार मलिक को जेल से निकालने वाले हो ।” देवराज चौहान बोला ।
“हाँ, ये सच है !”
“तो फिर मुझे क्यों कह रहे हो कि... ।”
“तुम्हारे द्वारा काम आसानी से हो जायेगा ।”
“मेरे से कोई आशा मत रखो ।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बन्द कर दिया ।
सोच के भाव देवराज चौहान के चेहरे पर नजर आ रहे थे । बड़ा खान का फोन आना मामूली बात नहीं थी ।
उसकी नजर हर तरफ थी । इंस्पेक्टर सूरजभान यादव का फोन उसके पास था । ये अच्छी बात थी कि बड़ा खान उसे इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ही समझ रहा था । उसकी हरकत से वाकिफ नहीं था । बड़ा खान की नजर उस पर यानी कि इंस्पेक्टर सूरजभान यादव पर थी । स्पष्ट था कि बड़ा खान बेहद फुर्तीला और सतर्क रहने वाला इंसान था ।
बड़ा खान जब्बार मलिक को जेल से निकालने की कोशिश में व्यस्त था । साथ ही उसे भी नोटों का चारा डाल रहा था कि उसके माध्यम से, जब्बार मलिक जल्दी आजाद हो जाये ।
देवराज चौहान समझ गया कि उसे बेहद सतर्क रहने की जरूरत थी । वह पुलिस के बीच मौजूद, पुलिस वाला बना हुआ था । कोई भी उसे पहचान सकता था ।
इधर बड़ा खान कभी भी, उसके साथ कुछ भी कर सकता था । खतरा हर तरफ था ।
☐☐☐
जम्मू सेंट्रल जेल के बाहर बनी पार्किंग में सब-इंस्पेक्टर शर्मा ने पुलिस कार रोकी और बाहर निकला । तब तक देवराज चौहान भी बगल का दरवाजा खोलकर बाहर आ गया था । देवराज चौहान वर्दी में था ।
“आइये सर ! जब्बार मलिक इसी जेल में हैं ।” सब-इंस्पेक्टर शर्मा ने कहा, “मैं ए.सी.पी. साहब से, उनके पैड पर स्पेशल ऑर्डर ले आया हूँ कि जेलर साहब आपको जब्बार मलिक से मिलने दें और आपको हर तरह का सहयोग दें ।”
देवराज चौहान ने मुस्कुराकर सिगरेट सुलगाई ।
“कब लाये ऑर्डर ?”
“आपके लंच के बाद मैं ए.सी.पी. साहब के पास ही गया था ऑर्डर लेने ।”
“चलो, भीतर चलें !” देवराज चौहान ने कहा ।
दोनों जेल के बड़े से फाटक की तरफ बढ़ गए ।
फाटक जैसे बड़े गेट के पास चार हथियारबंद पुलिस वाले खड़े थे । वहाँ भीतर जाने वालों की लाइन लगी थी । दो सिपाही भीतर आने-जाने वालों के कागजात देखने और उन्हें संभालने में व्यस्त थे ।
वे सिपाही सब-इंस्पेक्टर शर्मा को जानते थे ।
शर्मा ने उन्हें बताया कि उनके साथ दिल्ली से आये बड़े साहब हैं । उन्होंने देवराज चौहान का आई-कार्ड देखा ।
शर्मा देवराज चौहान के साथ जेल के भीतर प्रवेश कर गया ।
“बेहतर होगा सर कि एक बार जेलर साहब से आप मिल लें ।” शर्मा बोला ।
“जरूर !”
दोनों जेलर के शानदार ऑफिस में पहुँचे ।
जेलर सुधीर लाल व्यस्त था और जेल के तीन कर्मचारियों और एक कैदी से बात कर रहा था । देवराज चौहान और सब-इंस्पेक्टर शर्मा जेलर से हैलो कहने के बाद कुर्सियों पर बैठ गए ।
जेलर सुधीर लाल ने उन्हें जल्दी निबटाकर भेज दिया फिर सब-इंस्पेक्टर शर्मा से बोला ।
“कैसे हो शर्मा ?” उसने एक नजर देवराज चौहान पर मारी ।
“ठीक हूँ सर ! ये इंस्पेक्टर सूरजभान यादव हैं और दिल्ली से, जब्बार मलिक के लिए भेजे गए हैं ।” शर्मा ने जेब से ए.सी.पी. साहब का लैटर निकालकर जेलर की तरफ बढ़ाया, “ये ए.सी.पी. साहब का लैटर है, आपके लिए ।”
लैटर थामते ही जेलर सुधीर लाल कह उठा ।
“ए.सी.पी. साहब का फोन आ गया था इस बारे में ।” उसने लैटर खोलकर पढ़ा और उसे एक तरफ पेपरवेट के नीचे रखकर, देवराज चौहान को देखकर कहा, “इंस्पेक्टर सूरजभान यादव, मुझे ऐसा क्यों लगता है कि तुम्हें कहीं देखा है ?”
देवराज चौहान संभला ।
“जरूर ऐसा लग रहा होगा सर !” देवराज चौहान मुस्कुराकर कह उठा, “मेरी तस्वीरें कई बार अखबारों में छपी हैं ।”
“ये दिल्ली में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट हैं सर !” शर्मा फौरन कह उठा ।
“ओह, तो तुम वह सूरजभान यादव हो !” जेलर सुधीर लाल ने सिर हिलाया, “मैंने तुम्हारे बारे में अखबारों में पढ़ा है । तुमसे मिलकर सच में बहुत खुशी हुई । छः महीने पहले तुमने एनकाउंटर में सुखदेव सिंह को मारा था । परन्तु अखबार वालों ने लिखा कि तुमने आराम से, तसल्ली से उसकी हत्या की । काफी हो-हल्ला मचा था इस बारे में ।”
“अखबार वालों को तो मौका चाहिए, साधारण खबर को मसालेदार बनाने के लिए ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।
जेलर सुधीर लाल हौले से हँसा फिर बोला- “जब्बार मलिक का तुम क्या करोगे ?”
“उस पर निगरानी रखने के लिए मुझे भेजा गया है । क्योंकि बड़ा खान ने उसे जेल से निकाल ले जाने की धमकी दी है ।”
“जब्बार मलिक को जेल से फरार नहीं करवाया जा सकता ।”
सुधीर लाल ने इंकार में सिर हिलाया- “तुम अभी देखोगे कि वह कितने सख्त पहरे में है । उस तक तो जेल के कर्मचारी भी नहीं पहुँच सकते । बिना जरूरी काम के उस तरफ जाने की मनाही है । तीन परतों में जेल में गनमैन जब्बार मलिक पर पहरा देते हैं ।”
“मैं जानता हूँ कि जब्बार मलिक को यहाँ से आजाद नहीं करवाया जा सकता ।” देवराज चौहान ने कहा, “लेकिन जिस ड्यूटी के लिए मुझे भेजा गया है, उसे तो पूरा करना ही है ।”
“क्यों नहीं ! वैसे तुम किस तरह जब्बार मलिक पर नजर रखना चाहोगे ?”
“अभी मैंने सोचा नहीं । जब्बार मलिक से मिलने के बाद ही कोई फैसला ले सकूँगा ।”
जेलर सुधीर लाल ने टेबल के नीचे लगे बेल का बटन दबाया ।
बाहर बेल बजने की आवाज आई ।
फिर एक सिपाही ने भीतर प्रवेश किया ।
“जी साब ?”
“कबीर को भेजो ।”
सिपाही वापस चला गया ।
“कुछ खबर है कि जब्बार ने बड़ा खान के बारे में बताया हो ?”
“नहीं !” सुधीर लाल ने कहा, “वैसे ये बात पुलिस बेहतर जानती है ।”
“उसने कभी जेल के कर्मचारी से कोई बात की हो ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“जब्बार मलिक इस बारे में बहुत सतर्क रहता है । वह जेल वालों से फालतू बात नहीं करता । मेरे इशारे पर एक पुलिस वाले ने उससे दोस्ती करने की कोशिश की कि शायद वह अपने मुँह से कुछ निकाले । परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ ।”
देवराज चौहान चुप रहा ।
“अगर तुम सोचते हो कि वह कुछ बताएगा तो तुम गलत सोचते हो ।”
“मैं अपनी कोशिश तो करूँगा ही ।”
“जरूर करो । मैं तुम्हारे साथ हूँ । मुझे ऑर्डर मिल चुके हैं कि तुम्हारा पूरा साथ दिया जाये ।” सुधीर लाल ने कहा ।
“धन्यवाद !”
तभी पचास बरस के एक आदमी ने भीतर प्रवेश किया ।
“सर !” उसने सिर हिलाकर जेलर को देखा ।
“कबीर, इनसे मिलो ! ये दिल्ली से आये इंस्पेक्टर सूरजभान यादव हैं । जब्बार मलिक के लिए आये हैं ।”
“जी सर !”
“इन्हें जब्बार तक ले जाओ और तुम्हें इनकी बात माननी है !” सुधीर लाल ने कहा फिर देवराज चौहान से बोला- “जब्बार मलिक की देख-रेख का काम कबीर अली के हवाले है ।”
देवराज चौहान ने कबीर को देखा फिर खड़ा हो गया ।
शर्मा भी उठा ।
जेलर से विदा लेकर देवराज चौहान और शर्मा कबीर के साथ उस कमरे से निकले और आगे बढ़ गए ।
“जब्बार मलिक की निगरानी तुम्हारे हवाले है ?” देवराज चौहान ने कबीर से पूछा ।
“निगरानी नहीं, देखरेख !” कबीर बोला, “उसके पास जेल के हर कर्मचारी का जाना मना है । सिर्फ एक की ही ड्यूटी लगती है, जो कि जब्बार मलिक की देखरेख करता है । दो महीनों से मेरी ड्यूटी लगी हुई है ।”
“तुम मुसलमान हो ।”
“तो ?”
“जब्बार मलिक भी मुसलमान है । इस नाते तुम्हारे दिल में उसके लिए नरमी होगी ।” देवराज चौहान ने कहा ।
कबीर मुस्कुराया ।
“नाम क्या है तुम्हारा, पूरा नाम ?”
“कबीर अली !” बातों के दौरान वे आगे बढ़ते जा रहे थे । जेल के कई ऐसे गेटों को उन्होंने पार किया, जहाँ हर कोई नहीं आ सकता था, “इंसान से सबसे पहले उसका धर्म नहीं पूछा जाता सर । ये पूछा जाता है कि वह किस देश का है । मैं हिन्दुस्तानी हूँ । उसके बाद मुसलमान । मैं कानून का कर्मचारी हूँ और अपने फर्ज को कैसे पूरा करना है, जानता हूँ । जब्बार मलिक आतंकवादी है । उसका और मेरा कानून और अपराध का रिश्ता है ।”
“धर्म के नाते जब्बार मलिक ने तुम्हें दाना डालने की कोशिश की ?”
“की ।”
“क्या बोला ?”
“वह यहाँ से निकलना चाहता है ।”
“इस बारे में तुम्हारी सहायता मांगी उसने ?”
“हाँ ! उसने कहा बदले में वह मुझे मालामाल कर देगा ।” कबीर अली सहज स्वर में बोला, “ये बात मैंने जेलर साहब को बता दी थी । मैं धोखेबाज मुसलमान नहीं हूँ । अपने देश और जनता के प्रति वफादार हूँ ।”
“कैसा इंसान है जब्बार मलिक ?”
“जिद्दी, सख्त, कुछ भी कर देने वाला ।”
“तुमसे उसने बातें की ?”
“कई बार ।”
“क्या बातें ?”
“इधर-उधर की बातें । वह अपने बारे में या बड़ा खान के बारे में कोई बात नहीं करता ।”
“कोशिश की तुमने बड़ा खान के बारे में बात करने की ?”
“कई बार । लेकिन वह चुप हो जाता है । कुछ भी नहीं कहता । या फिर मुस्कुरा देता है ।”
बातों के दौरान देवराज चौहान रास्तों को भी देखता जा रहा था । वह सुरक्षा भरे ऐसे रास्ते थे कि जिन्हें पार कर पाना आसान नहीं था ।
“जब्बार मलिक कब से जेल में है ?”
“छः महीनों से ।”
“इस दौरान उससे कोई मिलने आया ?”
“नहीं ! और आएगा भी नहीं । क्योंकि जो उससे मिलने आएगा पुलिस उसे वहीं पकड़ लेगी ।”
“जब्बार मलिक कहाँ का है ?”
“पास ही कठुआ नाम की जगह है, वहाँ का है ।”
वे जेल के भीतरी हिस्सों में से गुजर रहे थे ।
“यहाँ तक कोई बाहरी व्यक्ति नहीं आ सकता ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“किसी भी हाल में नहीं ।”
“फिर बड़ा खान कैसे कहता है कि वह जल्दी ही जब्बार मलिक को जेल से निकाल ले जायेगा ?”
“वह ही जाने ।”
अब वहाँ हर पंद्रह कदमों पर एक पहरेदार नजर आ रहा था । ये चार फुट चौड़ी गैलरी थी । जिसके आस-पास दीवारें और ऊपर छत थी । अब वे लाइन बनाकर चलने लगे थे । आगे कबीर, फिर देवराज चौहान, पीछे सब-इंस्पेक्टर शर्मा ।
जब भी उस रास्ते पर पहरेदार आता तो वहाँ से सरककर निकलना पड़ता था । पहरेदार देवराज चौहान और शर्मा को पहचान भरी नजरों से देख रहे थे ।
जल्दी ही वह रास्ता बरामदे जैसी जगह में जा पहुँचा । पंद्रह बाई पंद्रह की वह जगह बरामदे जैसी ही थी । ऊपर छत थी । हर तरफ दीवारें थीं और सामने एक कोठरी नजर आ रही थी । जिस पर मोटी-मोटी सलाखों का मजबूत दरवाजा लगा था । वहाँ छः गनमैन अलग-अलग जगहों पर पहरा दे रहे थे । लाइट जल रही थी ।
“उसी कोठरी में है जब्बार मलिक ।” कबीर अली ने कहा ।
“यहाँ तक पहुँचने के कितने रास्ते हैं ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“जिस रास्ते से हम आये हैं, ये ही रास्ता है । दूसरा कोई रास्ता नहीं ।”
तीनों ठिठक गए ।
तभी एक पहरेदार बोला ।
“ये दोनों कौन हैं कबीर ?”
“बड़े साहब हैं । दिल्ली से आये हैं, जब्बार पर नजर रखने को भेजा गया है ।” कबीर ने कहा ।
“ये यहाँ भी रह सकते हैं या कहीं भी, इन्हें हर वक्त यहाँ आने-जाने की इजाजत है ।” कबीर बोला ।
“ठीक है ! हम समझ गए !” गनमैन ने कहा ।
“जब तुम्हारी ड्यूटी बदले तो नए पहरेदारों को भी ये बात बता देना ।”
“बता दूँगा ।”
कबीर ने देवराज चौहान से कहा ।
“जब्बार मलिक से मिलना चाहोगे ?”
“क्यों नहीं ! मिलूँगा, बातें भी करूँगा ।” देवराज चौहान ने शांत स्वर में कहा ।
कबीर आगे बढ़ा और सलाखों वाले दरवाजे पर जा पहुँचा ।
“जब्बार !” कबीर ने पुकारा ।
वह छोटी सी कोठरी थी । एक तरफ लेटे जब्बार की टाँगे दिख रही थीं ।
“क्या है ?” भीतर से मर्दाना आवाज आई , “तू फिर आ गया !”
“किसी को तेरे से मिलाने लाया हूँ ।”
जब्बार मलिक फौरन उठा और सलाखों वाले दरवाजे पर आ पहुँचा ।
वह करीब छः फुट लम्बा, सामान्य काठी का व्यक्ति था । उसने जेल के कपड़े पहन रखे थे और कुर्ते पर 115 लिखा था । दोनों हाथों से उसने सलाखों को थाम लिया था । नजरें सामने खड़े देवराज चौहान पर जा टिकीं थीं । उसकी आँखों में किसी तरह का भाव नहीं था ।
देवराज चौहान और शर्मा भी उसे ही देख रहे थे ।
“ये किन पुलिस वालों को पकड़ लाया तू ?” जब्बार मलिक कह उठा ।
“ये साहब दिल्ली से आये हैं तेरे लिए । इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ।” कबीर बोला ।
“क्यों ?”
तभी देवराज चौहान ने इशारों से कबीर अली को पास बुलाया ।
“अपना परिचय मैं इसे अच्छी तरह दे दूँगा । लॉकअप की चाबी किसके पास है ?”
“वह तो जेलर साहब के पास ही... ।”
“चाबी लेकर आओ !” देवराज चौहान ने कहा ।
“जेलर साहब जब्बार मलिक के लॉकअप की चाबी किसी को नहीं देंगे ।”
“उनसे कहो, मैंने मंगवाई है ।”
“ठीक है सर !” कबीर ने कहा और पलटकर तेज-तेज कदमों से वह वहाँ से चला गया ।
देवराज चौहान सिगरेट सुलगाकर एक गनमैन के पास पहुँचा ।
“कुर्सियाँ नहीं हैं यहाँ बैठने को ?”
“उस कमरे में पड़ी हैं ।” गनमैन ने पास ही के एक दरवाजे की तरफ इशारा किया । जिस पर बाहर से कुंडी लगी थी ।
“ये क्या जगह है ?”
“गनमैनों के लिए स्टोर है । अपनी जरूरत का थोड़ा सा सामान हम यहाँ रख देते हैं ।” गनमैन बोला ।
देवराज चौहान ने सिर हिलाया और कश लेता वहाँ से हट गया ।
जब्बार मलिक अभी तक सलाखों को दोनों हाथों से थामे, देवराज चौहान को देख रहा था ।
“आप !” शर्मा पास आकर धीमे स्वर में बोला, “क्या करना चाहते हैं सर ?”
“इससे बात करूँगा ।” कहते हुए देवराज चौहान की निगाह, जब्बार मलिक की कोठरी की तरफ गई ।
“त...तो चाबी की क्या जरूरत है ?”
“बात करने का मेरा अपना ढंग है ।”
शर्मा ने फिर कुछ नहीं कहा ।
दस मिनट में कबीर अली चाबी के साथ लौटा ।
“जेलर साहब ने कहा कि आप ये चाबी किसी और को न दें ।” कहते हुए कबीर ने उसे मोटी सी चाबी थमाई, “आप क्या जब्बार की कोठरी का दरवाजा खोलने का इरादा रखते हैं ?”
“हाँ !”
“ऐसा मत कीजियेगा सर । ये दरवाजा नहीं खोला जाता । खाना-पीना, सलाखों से ही दिया जाता है । सलाखों से ही बर्तन ले लिए जाते हैं । जरूरत पड़ने पर दरवाजा जबरदस्त पहरेदारी में खोला जाता है ।”
देवराज चौहान ने कबीर अली को देखा फिर मुस्कुराकर बोला ।
“फिक्र मत करो । मैं अकेले में जब्बार मलिक से बात करूँगा । तुम सब-इंस्पेक्टर शर्मा के साथ जाओ यहाँ से ।” शर्मा !” उसने शर्मा को आवाज लगाया ।
“जी सर !”
“जेलर के ऑफिस में मेरा इंतजाम करो !”
“यस सर । !”
कबीर और शर्मा चले गए ।
चाबी थामे देवराज चौहान जब्बार मलिक की कोठरी तक पहुँचा और दरवाजे के की-होल में चाबी डालकर चाबी घुमाने लगा ।
जब्बार अभी तक सलाखें थामे खड़ा था । उसकी आँखें सिकुड़ गई थीं ।
“सर, आप ये क्या कर रहे हैं ?” पीछे से एक गनमैन की आवाज आई ।
देवराज चौहान ने पलटकर गनमैनों को देखा फिर बोला ।
“अपनी ड्यूटी कर रहा हूँ ।”
“इस तरह दरवाजा मत खोलिये । ये खतरनाक है ।” दूसरे गनमैन ने कहा ।
“इसने खतरनाक जैसा कोई काम किया तो तब तुम इसे संभालना । ये ही तुम लोगों की ड्यूटी है ।”
“दरवाजा खोलना आपके लिए खतरनाक हो सकता है ।”
देवराज पलटकर पुनः चाबी घुमाने लगा ।
उसने चार बार चाबी घुमाई और लॉक खुल गया । जब्बार मलिक अभी तक दोनों हाथों से सलाखें थामे खड़ा था ।
“दरवाजा खुल चुका है ।” देवराज चौहान ने कहा, “पीछे हटो !”
“तुम्हें मुझसे डर नहीं लगता ?” जब्बार मलिक कठोर स्वर में बोला ।
“नहीं ! क्योंकि मैं तुमसे भी ज्यादा खतरनाक हूँ ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।
“खतरनाक हो ! मुझसे ज्यादा ?”
“हाँ !” आजमा लेना । मैं तुम्हें कई मौके दूँगा आजमाने के !” देवराज चौहान का स्वर सरल था ।
“पागल लगते हो तुम मुझे । छः महीनों में दो बार ये दरवाजा खोला गया है और दोनों बार यहाँ ढेर सारे गनमैन थे । तब मुझे खुशी हुई कि मुझसे सब लोग कितना डर रहे हैं । लेकिन तुम अकेले रहकर ही दरवाजा खोल रहे.... ।”
“क्योंकि तुम्हारी भाषा में मैं पागल हूँ ।” देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।
जब्बार मलिक देवराज चौहान को घूरता रहा ।
“पीछे हटो । दरवाजा खोलो !”
जब्बार मलिक सलाखें छोड़कर पीछे हट गया ।
देवराज चौहान ने धकेला तो वह भारी दरवाजा थोड़ा सा भीतर को खुला । एक ही बार में धकेलकर देवराज चौहान ने दरवाजा खोला और भीतर प्रवेश कर गया । जब्बार मलिक की कठोर निगाह उस पर थी । होंठ भींच चुके थे ।
देवराज चौहान ने कोठरी में नजर मारी ।
ये आठ फुट चौड़ी और आठ फुट लम्बी कोठरी थी । एक तरफ सीमेंट का चबूतरा बना हुआ था जो कि जब्बार मलिक का बेड था । तकिया-चादर जैसी कोई चीज नहीं थी वहाँ । ओढ़ने के लिए कम्बल अवश्य रखा हुआ था ।
एक तरफ बिना दरवाजे का टॉयलेट-बाथरूम था जो कि तीन फुट चौड़ा, तीन फुट लम्बा था ।
बस, यही कुछ था वहाँ ।
“तुमने कभी सोचा था कि ऐसी जगह रहोगे ?” देवराज चौहान बोला ।
इस वक्त देवराज चौहान की पीठ उसकी तरफ थी ।
देवराज चौहान इन शब्दों के साथ पलटने ही जा रहा था कि जब्बार मलिक बाज की तरह उस पर झपट पड़ा । वेग के साथ देवराज चौहान से टकराया और देवराज चौहान की कमर पर सख्ती से बाँह लपेट ली और होलेस्टर पर हाथ मारकर फुर्ती से रिवॉल्वर निकालकर देवराज चौहान की कनपटी पर लगा दी ।
“अब तू तो गया इंस्पेक्टर !” जब्बार मलिक गुर्रा उठा ।
उसकी बाँह के लपेटे में फँसा देवराज चौहान शांत स्वर में बोला ।
“ऐसा करने का मौका मैंने तुम्हें दिया है । मैंने जान बूझकर तेरी तरफ पीठ की ।”
“बकवास मत कर !”
“मैंने तेरे को पहले ही कहा था कि तुम्हें कई मौके दूँगा ।”
“जुबान बन्द रख !” जब्बार मलिक गुर्रा उठा, “अब मैं तुझे कवर करके यहाँ से निकल जाऊँगा ।”
“नहीं कर पायेगा ऐसा तू !”
“अभी तू मुझे जानता ही कहाँ है इंस्पेक्टर ।” जब्बार मलिक ने दाँत पीसे, “चल, बाहर चल !”
जब्बार मलिक एक बाँह उसकी कमर पर लपेटे, कनपटी पर रिवॉल्वर रखे उसे कोठरी से बाहर लाया । ये नजारा देखकर सब गनमैन चौंके । उनकी गनें इनकी तरफ तन गईं । जब्बार मलिक की खतरनाक निगाह गनमैनों पर फिर रही थी ।
“रिवॉल्वर फेंक दे जब्बार ।” एक गनमैन ने कठोर स्वर में कहा, “तू यहाँ से निकल नहीं सकता !”
“कोई आगे बढ़ा तो मैं इस पुलिस वाले की खोपड़ी उड़ा दूँगा ।” जब्बार गुर्राया ।
“तू भी नहीं बचेगा !”
“मुझे अपनी परवाह नहीं है । इस कैद से मैं तंग आ चुका हूँ । तुम लोग गनें फेंक दो ।”
वहाँ सन्नाटा सा छा गया । सभी गनमैनों की निगाह जब्बार मलिक और देवराज चौहान पर थी ।
इस स्थिति में भी देवराज चौहान शांत खड़ा था ।
“गनें फेंको, वरना मैं इसे शूट कर दूँगा ।” जब्बार मलिक गुर्राया ।
गनमैनों के लिए ये दुविधा का वक्त था ।
“फेंको !” उसी लहजे में जब्बार मलिक ने कहा ।
“मत फेंकना !” देवराज चौहान ने ऊँचे स्वर में कहा ।
“चुप कर हरामजादे, क्यों बेमौत मरना चाहता है ।” जब्बार मलिक ने दाँत किटकिटाये ।
तभी देवराज चौहान ने बिजली की सी तेजी के साथ हरकत की ।
दायीं कोहनी पूरी ताकत के साथ पीछे की तरफ, जब्बार मलिक के पेट में मारी ।
जब्बार मलिक कराह उठा । कनपटी पर रखा रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे की तरफ हुआ तो देवराज चौहान ने उसकी कलाई पकड़ी और आगे को झटका दिया । कमर पर लिपटी जब्बार की बाँह खुल गई । वह लड़खड़ा कर आगे को हुआ और तुरन्त ही पलटा । रिवॉल्वर वाला हाथ पुनः देवराज चौहान की तरफ उठ चुका था ।
अब जब्बार खुले में था । कोई भी गनमैन उसे शूट कर सकता था ।
“कोई भी जब्बार पर गोली नहीं चलाएगा ।” देवराज चौहान ने उसी पल ऊँचे स्वर में कहा ।
जो गनमैन जब्बार मलिक की टांगो का निशाना लेने जा रहा था वह इन शब्दों पर रुक गया ।
जब्बार मलिक देवराज चौहान पर रिवॉल्वर ताने खूनी निगाहों से उसे घूर रहा था ।
देवराज चौहान उसे देखकर शांत भाव में मुस्कुराकर बोला- “मैंने तुमसे कहा था कि मैं तुमसे ज्यादा खतरनाक हूँ । परन्तु तुमने मेरी बात का यकीन नहीं किया ।”
“तू इस वक्त मेरे निशाने पर है ।” जब्बार मलिक दहाड़ा ।
“बढ़िया खिलाड़ी वह होता है जो रिवॉल्वर हाथ में आते ही वजन से महसूस करके बता देता है कि इसमें कितनी गोलियाँ बाकी हैं ।”
जब्बार मलिक के दाँत भिंच गए । उसने हाथ में दबी रिवॉल्वर को देखा ।
एकाएक उसे महसूस हुआ कि रिवॉल्वर का वजन कम है ।
जब्बार ने फौरन रिवॉल्वर के उस हिस्से को देखा जहाँ गोलियों की मैग्जीन डाली जाती थी । वह जगह खाली थी ।
स्पष्ट था कि उसके हाथ में थमी रिवॉल्वर खाली है ।
जब्बार मलिक ने गुस्से में काँपते, हाथ में दबी रिवॉल्वर को देवराज चौहान पर मारा ।
देवराज चौहान खुद को बचा गया ।
“अब तो तुम्हें यकीन हो गया होगा कि ये सब करने का मौका, मैंने तुम्हें दिया है ।”
तभी जब्बार मलिक ने पागलों की तरह उस पर छलांग लगा दी ।
देवराज चौहान ने फुर्ती से खुद को बचाया और जोरदार घूंसा जब्बार मलिक के पेट में मारा ।
पेट पकड़कर जब्बार चीखा और दोहरा होता चला गया ।
देवराज चौहान ने गनमैनों को देखकर कहा ।
“सब ठीक है । रिवॉल्वर खाली थी । मैं इसे चैक कर रहा था कि ये क्या कर सकता है ।”
गनमैन सतर्कता से वापस अपनी जगहों पर पहुँच गए ।
जब्बार मलिक ने सीधा होकर देवराज चौहान को मौत भरी निगाहों से देखा ।
“गुस्सा आ रहा है जब्बार ?” देवराज चौहान मुस्कुराया, “आना भी चाहिए । तुम्हारी जगह मैं होता तो मुझे भी गुस्सा आता । लेकिन मैं तुम्हारी तरह सामने वाले को बेवकूफ नहीं समझता । ये जरूर सोचता कि सामने वाला अगर रिवॉल्वर पर हाथ डालने का मौका दे रहा है तो वह खाली भी हो सकती है ।”
“क्या चाहते हो ?” जब्बार मलिक खतरनाक स्वर में कह उठा ।
“तुमसे बात करने आया हूँ ।”
“बड़ा खान के बारे में पूछेगा तू, यही न ?”
“नहीं ! ऐसा कुछ भी नहीं है । मैं बड़ा खान के बारे में कुछ नहीं पूछूँगा ।” कहकर देवराज चौहान ने नजरें घुमाई और कुछ दूर पड़ी रिवॉल्वर उठा लाया । जेब से गोलियों की मैग्जीन निकालकर उसमें फिक्स की और रिवॉल्वर वापस होलेस्टर में डालता, जब्बार से मुस्कुराकर बोला, “अब ये भरी हुई है ।”
“हरामजादा । !” जब्बार मलिक शब्दों को चबाकर कह उठा ।
देवराज चौहान मुस्कुराया ।
तभी दूर खड़े एक गनमैन ने कहा ।
“सर, इसे वापस कोठरी में बन्द कर दीजिये ।”
“अब ये मेरी जिम्मेदारी है । मैं संभाल लूँगा इसे ।” देवराज चौहान ने कहा फिर जब्बार मलिक से बोला, “मेरा शुक्रिया कहो कि मैंने तुम्हें बन्द कोठरी से बाहर निकाला । खुले में घूमने का मौका दिया । वह देखो !” देवराज चौहान ने लकड़ी के दरवाजे की तरफ इशारा किया, “वह स्टोर है, उसमें से दो कुर्सियाँ ले आओ । हम आराम से बातें करेंगे ।”
जब्बार मलिक मौत-सी निगाहों से देवराज चौहान को देखता रहा ।
“या तुम कोठरी के भीतर रहना पसन्द करोगे । तब मैं सलाखों के दरवाजे के बाहर कुर्सी रख के बैठ जाऊँगा । तुमसे बात करने के लिए । मेरे ख्याल में तो तुम्हें कुछ वक्त खुले में बिताना चाहिए ।”
जब्बार मलिक बिना कुछ कहे स्टोर की तरफ बढ़ गया ।
वहाँ फैले गनमैन सतर्क हो गए ।
देवराज चौहान जब्बार मलिक को देखता रहा ।
जब्बार मलिक ने दरवाजा खोला और भीतर चला गया । मिनट भर बाद बाहर आया तो उसने दो कुर्सियाँ उठा रखी थीं । वह कुर्सियाँ थामे देवराज चौहान के पास आया । दोनों कुर्सियों को आमने-सामने रखा ।
देवराज चौहान बैठ गया जबकि जब्बार मलिक उसे घूर रहा था ।
“बैठ जाओ ! खुद को तनावमुक्त कर लो । मेरा इरादा तुम्हें परेशान करने का नहीं है ।” देवराज चौहान ने कहा ।
जब्बार मलिक कुर्सी पर बैठ गया ।
“तुम सोच रहे होगे कि अगर रिवॉल्वर भरी होती तो यहाँ से निकल जाते, मुझे कवर करके ।”
जब्बार मलिक के दाँत भिंच गए ।
देवराज चौहान ने होलेस्टर से रिवॉल्वर निकाली और उसकी तरफ बढ़ाई ।
“लो, अब ये भरी हुई है !”
जब्बार की आँखें सिकुड़ी ।
“तुम गोली चलाकर चेक कर लो ।” देवराज चौहान थोड़ा रुका और फिर पुनः बोला, “और यहाँ से निकलने की कोशिश करो ।”
जब्बार मलिक ने तुरन्त रिवॉल्वर थाम ली ।
रिवॉल्वर हाथ में आते ही जब्बार ने महसूस किया कि पहले की अपेक्षा रिवॉल्वर अब भारी है ।
“अब तुम मुझे कवर करके यहाँ से निकलने की कोशिश कर सकते हो । परन्तु तुम किसी भी सूरत में सफल नहीं हो सकते । ये मेरा दावा है, क्योंकि यहाँ के इंतजाम ही ऐसे हैं । ज्यादा देर तक मुझे कवर करने में तुम सफल नहीं रह सकते ।”
“मैं तुम्हें शूट तो कर सकता हूँ ।” जब्बार मलिक गुर्राया ।
“तुम मुझे शूट नहीं करोगे ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।
“क्यों ?”
“क्योंकि मेरे मरने से तुम्हें कोई फायदा नहीं होने वाला, बल्कि तुम पर सख्तियाँ और बढ़ जाएँगी ।”
जब्बार मलिक कुछ पल देवराज चौहान को देखता रहा फिर रिवॉल्वर उसकी तरफ बढ़ाई ।
देवराज चौहान ने रिवॉल्वर लेकर होलेस्टर में रखी और बोला ।
“एहसास हो गया होगा इस बात का कि मैं तुमसे खतरनाक हूँ ।”
“तुम मुझसे ज्यादा खतरनाक नहीं हो सकते ।” जब्बार मलिक ने कठोर स्वर में कहा ।
“ठीक है ! तुम ज्यादा खतरनाक सही । मुझे दिल्ली से तुम्हारे लिए भेजा गया है ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“मुझे चाय मिल सकती है ?” जब्बार मलिक ने कहा ।
देवराज चौहान ने गनमैन से चाय लाने को कहा ।
परन्तु गनमैन ने ये कहकर मना कर दिया कि वह अपनी ड्यूटी छोड़कर नहीं जा सकता ।
देवराज चौहान ने सब-इंस्पेक्टर शर्मा को फोन करके कहा कि कबीर के हाथ दो चाय भिजवा दें ।
फिर देवराज चौहान ने पैकिट निकालकर उसकी तरफ बढ़ाया ।
“नहीं । मैं सिगरेट नहीं पीता । इससे फेफड़े खराब हो जाते हैं ।” जब्बार मलिक ने कहा ।
“फेफड़ों के खराब होने की चिंता है, लेकिन जेल में जो जिंदगी का कीमती वक्त खराब हो रहा है, उसकी चिंता नहीं है ।”
“चिंता है !” जब्बार मलिक गुर्राय, “मैं जल्दी ही जेल से निकल जाऊँगा ।”
“तुम कभी सफल नहीं हो सकते । तुम जेल से फरार नहीं हो सकते ।”
जब्बार मलिक ने देवराज चौहान को घूरा फिर बोला ।
“क्या नाम है तुम्हारा ?”
“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ।” देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगा ली ।
“तुम मेरे लिए दिल्ली से आये हो ?”
“हाँ !”
“क्यों ?”
“बड़ा खान ने धमकी दी है कि तुम्हें जेल से जल्दी निकाल लेगा ।”
जब्बार मलिक की आँखें चमक उठी ।
“हाँ, बड़ा खान सच में मुझे यहाँ से निकाल लेगा !”
“मुझे दिल्ली से इसलिए भेजा गया है कि इस बात का ध्यान रखूँ कि तुम जेल से फरार न हो सको । बड़ा खान अगर कोई कोशिश करता है तो सफल न हो सके ।” देवराज चौहान ने कहा, “जबकि मैं इस तरह के काम हाथ में नहीं लेता । डिपार्टमेंट मुझे इस तरह के काम देता भी नहीं है । दिल्ली में मुझे एनकाउंटर स्पेशलिस्ट के तौर पर जाना जाता है । मैंने आज तक एनकाउंटर में बत्तीस ऐसे अपराधियों को मारा है, जो कि बेहद खतरनाक माने जाते थे । जबकि सच बात तो ये है कि 32 में से 20 को तसल्ली से शूट किया और कह दिया कि एनकाउंटर हुआ था ।”
जब्बार मलिक देवराज चौहान को घूर रहा था ।
देवराज चौहान ने कश लिया और पुनः बोला ।
“तुम्हारे लिए मुझे जम्मू भेजने के ऑर्डर आये तो मैंने ये काम हाथ में लेने से मना कर दिया । परन्तु ये कहकर मुझे तैयार किया गया कि हो सकता है जब्बार मलिक का एनकाउंटर करने का मौका मिल जाये ।”
“तो मुझे मारने आये हो ।” जब्बार मलिक गुर्रा उठा ।
“तुम्हें क्या लगता है जब्बार ।”
जब्बार मलिक देवराज चौहान को घूरता रहा ।
“मैं यहाँ सिर्फ तुम्हारी देख-रेख के लिए आया हूँ । तुम्हें मारने नहीं । मैंने अपना परिचय तुम्हें ये समझाने के लिए दिया है कि मुझसे पंगा लेने की कोशिश मत करना । जैसा कि तुम कर चुके हो अभी ।”
जब्बार मलिक देवराज चौहान को देखता रहा फिर कह उठा ।
“तुम जैसा पुलिस वाला मैंने पहले कभी नहीं देखा ।”
“दोबारा देखोगे भी नहीं ।” देवराज चौहान ने सिगरेट एक तरफ फेंकी और जेब से तह किया कागज निकालकर खोला, “मैं तुम्हें तुम्हारे जुर्म बताने जा रहा हूँ जो कि पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज हैं ।”
“जो बात मैं जानता हूँ, वह बताने का क्या फायदा ?” जब्बार मलिक ने कहा ।
“मैं तुम्हें तुम्हारा पुराना वक्त याद कराना चाहता हूँ ।” कागज पर निगाह मारते देवराज चौहान ने कहा, “पच्चीस साल की उम्र में तुम कठुआ के प्राइमरी स्कूल में टीचर थे । तुम्हारी पत्नी है, दो बच्चे हैं । स्कूल की नौकरी करते-करते तुम अचानक ही गायब हो गए और तीन साल बाद जब दिखे तो कानून ने तुम्हें एक आतंकवादी संगठन से जुड़े पाया ।”
“जश्न-ए-आजादी ।” जब्बार मलिक कड़वे स्वर में बोला ।
“हाँ, उस संगठन का नाम ये ही था ! पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है कि तुमने श्री नगर में चार जगह बम विस्फोट किये, जिसमें 11 सैनिक और 16 मासूम नागरिक मारे गए ।”
“मेरी आशा से कहीं कम लोग मरे ।” जब्बार मलिक हँस पड़ा ।
“ऐसा तुमने क्यों किया ?”
“कश्मीर के मुसलमान भाइयों को आजाद करवाने के लिए ।”
“आजाद ? किससे आजाद करवाना चाहते हो ?”
“हिन्दुस्तान से ।”
“कश्मीर तो पहले ही आजाद है और हिन्दुस्तान का हिस्सा है ।”
“ये ही तो लड़ाई है हमारी कि कश्मीर हिन्दुस्तान का हिस्सा नहीं है । उसकी आजादी चाहिए हमें ।”
“ये तुम कहते हो, खामख्वाह के पैदा हो चुके संगठन कहते हैं ।”
“हम सब आजादी के दीवाने हैं ।”
“तीन साल के लिए तुम कहाँ गायब हो गए थे ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“पाकिस्तान गया था । वहाँ ट्रेनिंग ली । ट्रेनिंग के दौरान मेरी आँखें खुली कि कश्मीर के मुसलमानों पर कितना जुल्म कर रही है हिन्दुस्तान सरकार । मैंने कसम ली कि कश्मीर को आजाद करा के रहूँगा ।”
“ये शिक्षा तुम्हें पाकिस्तान से मिली ?”
“हाँ ! वहाँ मेरे मुसलमान भाई रहते हैं । हमारे हमदर्द हैं । वह हमें पैसा, हथियार और सहायता देते हैं कश्मीर को आजाद.... ।”
“परन्तु कश्मीर के मुसलमान तो खुश हैं । वह अपने को आजाद कहते हैं ।”
“बकवास ! पूरे कश्मीर को मिलिट्री ने घेर रखा है, वह लोग... ।”
“अगर कश्मीर में मिलिट्री न होती तो पाकिस्तान से आने वाले लोगों ने कश्मीर को खा लिया होता । कश्मीर के तुम्हारे मुसलमान भाई पूरी तरह बर्बाद हो चुके.... ।”
“चुप रहो !” जब्बार मलिक गुर्रा उठा, “मिलिट्री की वजह से कश्मीर बर्बाद हुआ है ।”
“तुम भूल रहे हो कि कश्मीर में पहले कितना अमन-चैन था । तगड़ा पर्यटक स्थल था । लोग वहाँ घूमने जाते तो वहाँ के स्थानीय लोगों को गर्मियों में इतना पैसा मिल जाता कि अगली गर्मियों तक आराम से पेट भर खाते । परन्तु पाकिस्तान की तरफ से जब कश्मीर में आतंकवाद उभरा तो वहाँ के लोग भूखे मरने लगे और.... ।”
“तुम ये सब बातें कहकर मुझे ये समझाना चाहते हो कि मैं गलत रास्ते पर हूँ ?” जब्बार मलिक का चेहरा लाल हो उठा ।
“हाँ, तुमने गलत राह पकड़ी !”
“मुझे समझाने की कोशिश मत करो । मैं कश्मीर को आजादी दिलाने वाला सिपाही... ।”
“छोड़ो इन बातों को ।” देवराज चौहान ने पुनः कागज पर नजरें टिका दीं, “उसके बाद तुमने जम्मू में बम ब्लास्ट किये ।”
“उन्नीस धमाके किये जम्मू में ।” जब्बार मलिक ने दाँत भींचकर कहा, “207 लोगों को मारा । हिन्दुस्तानियों को मारा ।”
“और तुम्हें गर्व है इस बात का ।” देवराज चौहान ने उसे घूरा ।
“क्यों न होगा !”
“तुम भी तो हिन्दुस्तानी हो ।”
“मैं हिन्दुस्तानी नहीं, कश्मीरी हूँ ।”
“कश्मीर के लोग हिन्दुस्तानी ही तो हैं । कश्मीर हिन्दुस्तान का ही तो है !”
“कश्मीर आजाद देश है, हिन्दुस्तान ने तो जबरन उस पर कब्जा कर रखा है ।”
“ये बातें तुम्हें पाकिस्तान वालों ने बताईं ?”
“हाँ, तभी तो मेरी आँखें खुलीं !”
मुस्कुराया देवराज चौहान ।
“पाकिस्तान को बहुत चिंता है कश्मीर की ।”
“क्योंकि वहाँ मुसलमान भाई रहते हैं ।”
“मुसलमान भाई पूरे हिन्दुस्तान में रहते हैं । जितने पाकिस्तान में है, उससे ज्यादा हिन्दुस्तान में है और वे सब खुश हैं । वे जानते हैं कि पाकिस्तान ही कश्मीर में शह देकर, आतंकवादी संगठन खड़े करता है । हिन्दुस्तान में तो मुसलमान फल-फूल रहे हैं । हिन्दुस्तान के ही तो हैं वह । तुम जैसे लोग ही हिन्दुस्तान में मजहब की दीवार खड़ी करने की कोशिश.... ।”
“मैं सिर्फ कश्मीर को आजाद देखना चाहता हूँ और मरते दम तक आजादी के लिए लड़ूँगा ।”
“आजाद को तुम लोग क्या आजाद कराओगे । तुमसे बात करने का कोई फायदा नहीं ।” देवराज चौहान ने कागज पर नजर मारते हुए कहा, “फिर तुमने संगठन बदल लिया और दूसरे संगठन से छः साल तक जुड़े रहे । एक बार तो तुमने जम्मू से कश्मीर जा रहे मिलिट्री के जवानों से भरे ट्रक को उड़ा दिया । तब 45 जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी ।”
जब्बार मलिक के होंठों पर खतरनाक मुस्कान नाच उठी ।
“तुम्हें अपने किये का पछतावा क्यों नहीं है ?”
“ये आजादी की जंग है । पछतावा कहाँ से आ गया ?” जब्बार मलिक ने गर्व भरे स्वर में कहा, “उस ट्रक को उड़ाने में मैंने बहुत मेहनत की थी । सफल होने पर मुझे बहुत खुशी हुई थी ।”
देवराज चौहान जब्बार मलिक को घूरता रहा फिर शांत स्वर में बोला ।
“तुम्हारी गिरफ्तारी के वक्त मैं पुलिस टीम में होता तो तुम्हारा एनकाउंटर कर देता ।”
“जानते हो मुझे जिन्दा क्यों रखा गया है ?”
“ताकि तुम पुलिस को अपने साथियों के बारे में बताओ ।”
“इसी कारण तो मुझे जिन्दा गिरफ्तार किया गया । लेकिन तुम्हारी पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा । मैं अपना मुँह नहीं खोल रहा और खोलूँगा भी नहीं । बड़ा खान जल्दी ही मुझे यहाँ से निकाल लेगा ।”
“तुम यहाँ से बाहर नहीं जा सकते ।”
जब्बार मलिक ने देवराज चौहान को घूरा ।
“मैं निकल जाऊँगा इंस्पेक्टर ।”
“निकल के दिखाना । अब तो मैं तुम्हारी सेवा में मौजूद रहूँगा ।” देवराज चौहान सामान्य लहजे में कह उठा ।
“देखूँगा तुम्हें भी ।”
“तो 34 साल की उम्र में तुम बड़ा खान के संगठन में शामिल हो गए । यानी कि दो साल पहले । डेढ़ सालों में तुमने बड़ा खान के इशारे पर दिल्ली तक पहुँचकर तबाही मचाई ।”
“दिल्ली के एक मंत्री को बम से उड़ा दिया था ।” जब्बार मलिक गुर्रा उठा, “साले की सिर्फ एक टांग की मिल पाई थी । मैं कभी भी पकड़ा नहीं गया । हर जगह से बच निकलता था ।”
“लेकिन छः महीने पहले पकड़े गए ।”
“परवाह नहीं । मैं यहाँ से जल्दी ही निकल जाऊँगा ।”
“बड़ा खान के सम्पर्क में तुम कैसे आये ?”
“वह खुद मुझे मिला था । उसने मुझे अपने संगठन में शामिल किया । वह अच्छा इंसान है ।”
“क्या देता था वह तुम्हें ?”
“क्या मतलब ?”
“तुम उसके काम करते हो वह तुम्हें कितना पैसा देता था ?”
“बहुत । पैसे के साथ दुनिया भर के ऐश-आराम भी देता था । तुम देखना वह मुझे जेल से निकाल लेगा । क्योंकि मुझे एक ऐसा बड़ा काम करना है जिसकी प्लानिंग बन चुकी है । वह काम मैं ही पूरा कर सकता हूँ । ये ही कारण है कि बड़ा खान मुझे जेल से निकालकर रहेगा । मैं बहुत जल्दी आजाद हो जाऊँगा ।”
तभी कबीर अली वहाँ पहुँचा ।
वह एक प्लेट में दो गिलासों में चाय लाया था । देवराज चौहान और जब्बार मलिक को इस तरह बाहर कुर्सियों पर बैठे देखा तो चेहरे पर हैरानी उभरी । परन्तु कहा कुछ नहीं ।
कबीर चाय देकर चला गया ।
जब्बार मलिक ने चाय का घूँट भरा फिर कह उठा ।
“शुक्र है, ढंग की चाय तो मिली ।”
देवराज चौहान ने भी चाय का घूँट भरा और कह उठा ।
“तुमने अपने जीवन में एक भी काम अच्छा नहीं किया जो.... ।”
“मैंने हर काम अच्छा किया है । हिन्दुस्तान से कश्मीर को आजाद कराना है । ये लड़ाई तब तक चलेगी, जब तक कश्मीर आजाद नहीं होगा । मेरे मुसलमान भाई आजादी की साँस नहीं लेते, तब तक... ।”
तभी देवराज चौहान का मोबाइल बजने लगा ।
देवराज चौहान ने चाय का गिलास नीचे रखा और फोन निकालकर बात की ।
“हैलो !”
“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव ।” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।
“ओह, तुम !” देवराज चौहान की निगाह जब्बार मलिक की तरफ उठी ।
जब्बार मलिक उसे ही देख रहा था ।
“इंस्पेक्टर !” बड़ा खान की आवाज पुनः कानों में पड़ी, “मेरी उन लोगों से बात हुई है, जिन्होंने दिल्ली में तुम पर हमला किया था । वे कहते हैं उस हमले में तुम बच नहीं सकते । बच भी गए तो हाथ-पाँव सलामत नहीं रह सकते ।”
“लेकिन मैं तो पूरी तरह सलामत जम्मू में मौजूद हूँ ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“मेरे आदमी गलत नहीं हो सकते इंस्पेक्टर ।”
“तो मैं भी गलत नहीं हूँ । तुम जानते हो कि मैं जम्मू में हूँ ।”
“मुझे लगता है कि कुछ तो गड़बड़ है कि हमले में तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगड़ा । जिन्होंने हमला किया, वे लोग ये मानने को तैयार नहीं हैं कि तुम पूरी तरह सलामत हो सकते हो ।”
“मुझे तुम्हारी या तुम्हारे आदमियों की परवाह नहीं है । जानते हो इस वक्त मैं कहाँ हूँ ।”
“बोलो !”
“जेल में, जब्बार मलिक के पास बैठा उससे बातें कर रहा हूँ ।”
“झूठ !” बड़ा खान की संभली आवाज कानों में पड़ी ।
देवराज चौहान के चेहरे पर मुस्कान नाच उठी ।
“तुम्हें जब्बार से बात करनी है तो कहो ।”
“कराओ !”
जब्बार मलिक की आँखें सिकुड़ चुकी थीं । वह देवराज चौहान को देखे जा रहा था ।
देवराज चौहान ने कान से फोन हटाया और जब्बार मलिक की तरफ बढ़ाया ।
परन्तु जब्बार मलिक ने फोन लेने की कोशिश नहीं की ।
“बात करो !” देवराज चौहान बोला ।
“मुझे पुलिस वालों से बात करना पसन्द नहीं ।”
“बड़ा खान से तो बात करना पसन्द है ?” देवराज चौहान मुस्कुरा पड़ा ।
जब्बार मलिक चौंका और झपटने के ढंग में उसने मोबाइल लेकर बात की ।
“ब...बड़ा खान ?” जब्बार मलिक के होंठों से निकला ।
“आह !” बड़ा खान की आवाज जब्बार के कानों में पड़ी, “तुम्हारी आवाज सुनकर सुकून मिला मुझे ।”
“मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि मैं आपसे बात कर रहा हूँ ।” जब्बार मलिक कह उठा ।
“मेरा भी यही हाल है जब्बार । तुम्हारे कारनामे बहुत याद आते हैं । याद है तुम्हारा एक काम अधूरा है ।”
“जिसकी तैयारी हम कर चुके थे !” जब्बार मलिक का चेहरा खुशी से चमक रहा था ।
“हाँ, उसी की बात कर रहा हूँ !”
“मेरा यहाँ दिल नहीं लगता । आप मुझे यहाँ से बाहर निकालो ।” जब्बार मलिक तड़पकर बोला ।
“तुम्हें निकालने की कोशिश में लगा हूँ । जिससे तुमने फोन लिया इसका नाम क्या है ?”
“इंस्पेक्टर सूरजभान यादव । मेरे लिए दिल्ली से आया है ।”
“हैरानी है ! जबकि मेरे आदमी कहते हैं कि इसे अब तक जिन्दा नहीं होना चाहिए । या फिर इसे मरने के किनारे पर होना चाहिए ।”
“ये तो एकदम ठीक है । आप मुझे यहाँ से बाहर निकालो बड़ा खान ।”
“कोशिश कर रहा हूँ । तुम्हें जेल में जबरदस्त पहरे में रखा है । वहाँ से तुम्हें निकाल पाना आसान नहीं रहेगा । परन्तु मेरी कोशिशें चल रही हैं । मेरे आदमियों ने जेल के भीतर पैठ बना ली है । वह कभी भी तुम्हें वहाँ से ले जाने की कोशिश करेंगे ।”
“उस वक्त का मुझे बेसब्री से इंतजार... ।”
तभी देवराज चौहान ने उससे फोन ले लिया ।
जब्बार मलिक ने अचकचाकर देवराज चौहान को देखा ।
“मत भूलो कि तुम कैदी हो । तुम्हें चाय पिला दी । फोन पर बात करा दी ये ही बड़ी बात हो चुकी है ।” कहकर देवराज चौहान ने फोन कान से लगाकर कहा, “जब्बार से बात करके तुम्हें अच्छा लगा होगा ।”
“शुक्रिया !” बड़ा खान की आवाज कानों में पड़ी ।
“ये कभी भी मारा जा सकता है । जिन्दा बचने वाला नहीं ।” देवराज चौहान का स्वर शांत था ।
“मैं तुम्हें मुँह मांगी दौलत दूँगा अगर तुम जब्बार को जेल से निकाल दो ।”
“लालच मत दो बड़ा खान ।” देवराज चौहान मुस्कुराया, “मैं बिकने वाला नहीं ।”
“तुम सोच भी नहीं सकते कि तुम्हें कितनी दौलत दूँगा । एक बार जब्बार को... ।”
“बेकार है, किसी और को ढूँढो ।” देवराज चौहान ने कहा और फोन बन्द कर दिया ।
जब्बार मलिक व्याकुल सा देवराज चौहान को देख रहा था ।
देवराज चौहान ने फोन वापस जेब में रखा ।
“इंस्पेक्टर !” जब्बार मलिक कह उठा, “बड़ा खान से बात करके मेरा हौसला दुगुना हो गया है । तुमने बहुत अच्छा काम किया जो मेरी बात करा दी । जानते हो मुझे बाहर निकालने पर तुम्हें कितना पैसा मिलेगा ?”
“मैं वर्दी को बेचता नहीं हूँ ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“मुझे जेल से बाहर निकालने के बदले तुम अपनी और अपने परिवार की जिंदगी चमका सकते हो ।”
देवराज चौहान ने सिर आगे किया और कह उठा ।
“सच बात तो ये है कि मैं तुम्हें बहुत आसानी से जेल से बाहर ले जा सकता हूँ ।”
जब्बार मलिक की आँखें चमक उठीं ।
“परन्तु ये काम मैं सपने में भी नहीं करूँगा ।”
“तुम बेवकूफ हो ।”
“वर्दी पहनकर मैं कानून के साथ इतना बड़ा धोखा करने का, दिल नहीं रखता । मैं सिर्फ एनकाउंटर करना ही जानता हूँ । आज तक मैंने किसी भी हाथ आये मुजरिम को छोड़ा नहीं है । फिर तुम तो पहले से ही पिंजरे में बन्द हो ।”
जब्बार मलिक के होंठ भिंच गए, बोला- “तुम पैसा कमाने का बहुत शानदार मौका गँवा रहे हो इंस्पेक्टर ।”
“मैं पहले भी ऐसे कई मौके गँवा चुका हूँ, परन्तु इस बात का कभी दुःख नहीं हुआ ।”
“सच में पागल हो तुम ।” जब्बार मलिक उठा ।
“उठो !” कहकर देवराज चौहान भी उठा ।
परन्तु जब्बार मलिक कुर्सी पर बैठा देवराज चौहान को घूरता रहा । फिर बोला- “मेरी बात पर तुम सोचना ।”
देवराज चौहान मुस्कुराया ।
जब्बार मलिक ने चाय का खाली गिलास नीचे रखा और खड़ा हुआ ।
“अपनी कोठरी में चलो ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“तुम्हें बड़ा खान ने भी कहा मुझे यहाँ से निकालने को ?” जब्बार बोला ।
“हाँ !”
“बड़ा खान तुम्हें दौलत के ढेर पर बिठा देगा । एक बार उसकी बात मानकर देखो तो !”
“कोठरी में चलो ।” देवराज चौहान ने उसकी बाँह पकड़ी और कोठरी की तरफ बढ़ने लगा ।
जब्बार खान जैसे बहुत बातें करना चाहता था ।
परन्तु देवराज चौहान कोई बात करने के मूड में नहीं था । उसने जब्बार को कोठरी में डाला और चाबी को चार बार घुमाकर दरवाजा बन्द कर दिया ।
सलाखों को दोनों हाथों में थामे जब्बार मलिक उसे ही देखे जा रहा था ।
“तुम दोबारा आओगे यहाँ ?” जब्बार बेसब्री से बोला ।
“हाँ, तुमसे मिलना तो लगा ही रहेगा !” देवराज चौहान मुस्कुराया ।
“मुझे यहाँ से निकालकर बड़ा खान से पैसा लो । इस बारे में सोचना इंस्पेक्टर ।”
“मुझे आज तक कोई खरीद नहीं सका ।”
“मेरी बात को फुर्सत में सोचना । पुलिस की नौकरी में क्या रखा है, हर समय जान पर बनी रहती... ।”
“एक बार ये वर्दी पहनकर देखो ।” देवराज चौहान ने कहा, “तब पता चलेगा कि फर्ज निभाने में कितना मजा आता है ।”
“बकवास मत करो । नोटों के बारे में... ।”
देवराज चौहान पलटा और आगे बढ़ता चला गया ।
सलाखें थामे खड़े जब्बार मलिक की निगाह देवराज चौहान की पीठ पर ही रही, जब तक कि वह गैलरी में मुड़ नहीं गया । उसके बाद भी जब्बार मलिक देर तक सलाखें थामे बेचैन-सा खड़ा था ।
☐☐☐
सब-इंस्पेक्टर शर्मा जेलर के ऑफिस के बाहर ही टहलता मिला ।
“जब्बार मलिक से बात हो गई सर ?” उसे देखते ही शर्मा पास आया ।
“हाँ !”
“कुछ बताया उसने बड़ा खान के बारे में ?”
“नहीं !” देवराज चौहान ने मुस्कुराकर कहा और जेलर के ऑफिस में प्रवेश कर गया ।
जेलर भीतर ही मिला ।
शर्मा भी पीछे-पीछे आ गया ।
“कहिये, यादव साहब !” जेलर देवराज चौहान को देखकर कह उठा, “बातचीत में सफलता मिली ?”
“जब्बार मलिक टेढ़ा बन्दा है ।” देवराज चौहान मुस्कुराया ।
“काफी टेढ़ा है ।” जेलर बोला ।
“वक्त लगेगा, परन्तु मैं उसे सही रास्ते पर ले आऊँगा । मुझे आपके सहयोग की जरूरत होगी ।”
“मुझसे जो बन पड़ेगा, मैं करूँगा ।”
“ये जब्बार के लॉकअप की चाबी ।” देवराज चौहान ने चाबी उसकी तरफ बढ़ाई ।
चाबी थामते जेलर ने पूछा ।
“तुम लॉकअप खोलकर भीतर गए थे क्या ?”
“भीतर भी गया और उसे बाहर भी लाया ।”
“ओह, वह खतरनाक है !”
“उसने कोशिश की, परन्तु सफल नहीं हो सका ।” देवराज चौहान ने कहा ।
जेलर सिर हिलाकर रह गया । फिर बोला ।
“बैठो, चाय मँगवाता हूँ !”
“शुक्रिया, अब तो मैं आता ही रहूँगा । आपके साथ चाय जरूर पियूँगा । अब इजाजत दीजिये ।”
देवराज चौहान शर्मा के साथ जेलर के ऑफिस से निकला और आगे बढ़ गया ।
“जब्बार मलिक से क्या बात हुई सर ?”
“खास नहीं । आज तो उसकी सलामती के बारे में ही पूछा है ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“बड़ा खान के बारे में उसने कोई बात नहीं की ?”
“की । परन्तु उसके बारे में बताया कुछ नहीं ।”
“वह बताएगा भी नहीं । उस पर बहुत कोशिश की जा चुकी है ।” शर्मा ने साथ चलते हुए कहा ।
वह जेल के प्रवेश फाटक से बाहर निकले । बाहर अभी भी भीड़ थी ।
“अब किधर जाना चाहेंगे सर ?”
“ए.सी.पी. साहब के पास । वह इस वक्त कहाँ होंगे ?” देवराज चौहान ने पूछा ।
“इस वक्त अपने ऑफिस में ही होंगे ।”
“तो वहीं चलो !”
दोनों एक तरफ पार्किंग में खड़ी कार की तरफ बढ़े ।
अगले ही पल देवराज चौहान ठिठक गया । शर्मा भी ठिठका । देवराज चौहान की निगाह उस हरी कार पर टिक चुकी थी जो कि डेढ़ सौ कदमों की दूरी पर खड़ी थी ।
“क्या हुआ सर ?” शर्मा ने पूछा ।
“वह हरी कार । उधर देख रहे हो, वह हम पर नजर रख रही है ।”
“आपको कैसे पता सर ?”
“जिस फ्लैट में मैं ठहरा हूँ, उसके बाहर भी इसी कार को दो बार देख चुका हूँ ।”
“ओह !” शर्मा बोला, “मैं उन्हें देखता हूँ सर ।” कहकर वह आगे बढ़ गया ।
“रहने दो । उन्हें देखने का अभी वक्त नहीं आया ।”
“आप फिक्र मत करें सर । ये जम्मू है । मैं जानता हूँ कि उन्हें कैसे संभालना है ।” शर्मा कार की तरफ बढ़ता चला गया ।
शर्मा उस हरी कार के पास पहुँचा ।
भीतर दो लोग बैठे थे । एक पच्चीस बरस का, दूसरा पचास बरस का ।
“तुम जैसे बेवकूफों को पीछा करना भी नहीं आता ।” शर्मा ने दोनों से कहा ।
“क्या हो गया ?”
“वह जानता है कि तुम पीछे हो ।” शर्मा ने उनसे कहा ।
“हमने खुद को छिपाने की जरूरत नहीं समझी ।”
“मरना चाहते हो ?” शर्मा झल्लाया, “वह एनकाउंटर स्पेशलिस्ट है । सीधे गोली मारता है । बात नहीं करता । चले जाओ यहाँ से और अब खुद को छिपाकर उस पर नजर रखो । कार बदल लो । इस तरह तेज रंग की कार इस्तेमाल मत करो कि कार फौरन नजर में आ जाये । अब उसे पता नहीं चलना चाहिए कि तुम लोग उस पर नजर रख रहे हो । दोबारा तुम लोगों ने सावधानी नहीं बरती तो मैं बड़ा खान से तुम्हारी शिकायत करूँगा ।” कहने के साथ ही शर्मा पलटा और वापस चल पड़ा ।
कुछ कदमों के पश्चात शर्मा को कार स्टार्ट होने की आवाज सुनाई दी ।
शर्मा ने चलते-चलते पलटकर पीछे देखा ।
वह हरी कार मुड़कर अब वापस जा रही थी ।
शर्मा देवराज चौहान के पास पहुँचा और उधर देखा, जहाँ हरी कार खड़ी थी । वह कार अब कहीं भी नजर नहीं आ रही थी ।
देवराज चौहान ने मुस्कुराकर शर्मा से कहा ।
“तुमने तो इन्हें दौड़ा दिया ।”
“मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि इन लोगों से कैसे निबटा जाता है ।” शर्मा ने कहा ।
“तुमने क्या कहा ?”
“सीधे-सीधे कहा कि दोबारा नजर मत आना । पीछा करने की सोचना भी मत, वरना अंदर कर दूँगा ।”
देवराज चौहान पुलिस मुख्यालय में ए.सी.पी. संजय कौल से मिला ।
“आओ सूरजभान !” कौल ने भीतर आते पाकर कहा, “जब्बार से मिल लिए ?”
देवराज चौहान ने सैल्यूट दिया फिर कुर्सी पर बैठता कह उठा- “यस सर, जब्बार मलिक से जेल से मिलकर ही आ रहा हूँ ।”
“कैसा लगा वह ?”
“खतरनाक है । उसने मुझ पर काबू पाने की चेष्टा की ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“क्या तुमने उसे लॉकअप से बाहर निकाला या खुद भीतर गए ?”
“दोनों ही बातें हुईं ।”
“तुम्हें ऐसा रिस्क नहीं लेना चाहिए था ।” कौल बोला ।
“मैं उससे अपने ढंग से बात करना चाहता था । हम बाहर कुर्सियाँ रखकर बैठे थे ।”
“ओह !”
“उसने मेरी रिवॉल्वर पर कब्जा करके, नाल मेरे सिर से लगा दी ।”
“फिर ?” कौल के माथे पर बल पड़े ।
“रिवॉल्वर खाली थी सर ।”
कौल कुछ पल देवराज चौहान को देखता रहा-
“तुम्हें ऐसा खतरा नहीं उठाना चाहिए था ।”
“सामने वाले पर प्रभाव जमाने के लिए ये सब करना जरूरी था ।”
“मुँह खोलने को तैयार हुआ वह ?”
“मैंने उसका मुँह खुलवाने की चेष्टा नहीं की । इधर-उधर की ही बातें की । मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहता हूँ ।”
“जैसा तुम ठीक समझो ।”
“वह तीन साल पाकिस्तान में ट्रेनिंग के दौरान रहा और वहाँ ये बात उसके दिमाग में ठूस-ठूसकर भर दी गई कि इसके कश्मीरी भाई मुसीबत में हैं । मिलिट्री वाले वहाँ के लोगों को तंग कर रहे हैं और वह कश्मीर को हिन्दुस्तान से आजाद करवाना चाहता है ।”
“दिमाग खराब है उसका ।” कौल ने एकाएक मुँह बनाकर कहा ।
“मैंने उसे समझाने की चेष्टा की परन्तु कोई फायदा नहीं हुआ ।”
“होगा भी नहीं । पहले ये लोग आतंकवाद का रास्ता ये कहकर पकड़ते हैं कि कश्मीर के मुसलमानों को हिन्दुस्तान की सरकार तंग कर रही है फिर आतंकवाद ही इनका बिजनेस बन जाता है । पैसा लेते हैं संगठनों से और उनके इशारे पर आतंकवाद फैलाते हैं । कई बड़े संगठन लोगों को किराये पर लेते हैं और अपने नाम पर धमाके कराते हैं ।”
“इन लोगों के पास आतंक फैलाने के अलावा और कोई काम नहीं है ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“है क्यों नहीं, बहुत काम हैं । मेहनत करके अच्छी जिंदगी बिताई जा सकती है । परन्तु इनके मुँह पर आतंक फैलाने का स्वाद लग चुका है । इस काम से आसानी से पैसा मिल जाता है, परन्तु देर-सवेर में पुलिस मुठभेड़ में या मिलिट्री से टकराकर मारे जाते हैं ये लोग । पहले से अब हालात बेहतर हुए हैं । कश्मीर के लोगों को समझ आ गई है कि सीमा पार से आये आतंकवादियों का साथ देने में कुछ नहीं रखा । कश्मीर को चैन-अमन की जरूरत है । ड्रग्स की तरह है आतंकवाद । एक बार आतंक का स्वाद लग जाये तो मौत आने तक ये काम बहुत आसान लगता है ।”
“हमने अपने देश से आतंकवाद मिटा देना है सर !”
“जरूर । और क्या बोला जब्बार ?”
“उसका कहना है कि बड़ा खान के साथ ऐसे काम की प्लानिंग कर चुका है जो कि सिर्फ वह ही कर सकता है । इसलिए बड़ा खान उसे हर हाल में जेल से बाहर निकलवा के ही रहेगा ।” देवराज चौहान ने कहा ।
“ये मुमकिन नहीं ।” कौल ने इंकार में सिर हिलाया, “जब्बार को जबरदस्त पहरे में रखा गया है ।”
“सर, मैं जब्बार का मुँह खुलवा लूँगा । जो भी मैं करना चाहता हूँ, उसकी इजाजत मुझे दी जाये ।”
“तुम्हें पूरा सहयोग मिलेगा सूरजभान ।”
☐☐☐
0 Comments