वातावरण शहनाइयों की मधुर ध्वनि से गूंज उठा।


हर तरफ प्रसन्नता में डूबे कहकहे, प्रत्येक मुखड़े पर खुशी और सिर्फ खुशी-ही-खुशी थी । 


रघुनाथ की विशाल कोठी- जो वर्षों से किसी मासूम की किलकारियों के लिए सूनी-सूनी-सी पड़ी थी। आज इस प्रकार जगमगा रही थी - मानो पूनम की रात का धुला आकाश |


रघुनाथ भारतीय केंद्रीय खुफिया विभाग का एक होनहार जासूस था । उसका विवाह रैना से हुए काफी लंबा अरसा बीत गया था, किंतु किसी संतान ने जन्म न लिया ।


लेकिन अब!


मानो विधाता ने समस्त खुशियां एक ही साथ उनकी झोली में डाल दी हों । रघुनाथ की पत्नी ने एक शिशु को जन्म दिया । दुनिया में आने वाले इस नए मेहमान के स्वागत में ही ये शहनाइयां गूंज रही थीं, कोठी दुल्हन बनी हुई थी ।


बड़े-बड़े ऑफिसर्स... शहर के ही नहीं, बल्कि देश के प्रतिष्ठित व्यक्ति भी इसे नए मेहमान को आशीर्वाद देने हेतु पधारे थे ।


और भला ऐसे शुभ अवसर पर विजय चूक जाए वह स्वयं तो इस पार्टी में था ही, साथ ही अपने दोस्तों के रूप में अशरफ, विक्रम, आशा, ब्लैक ब्वाय इत्यादि को भी ले आया था । शहर के इंस्पेक्टर जनरल, विजय के पिता, यानी ठाकुर साहब स्वयं यहां सपरिवार उपस्थित थे। यूं तो उनके परिवार में था ही कौन ? एक उनकी धर्म-पत्नी, एक दस वर्षीय बालिका और तीसरे महाशय थे विजय-- जिन्हें आवारा, गुंडा और बदचलन जैसी अनेक उपाधियों से विभूषित करके घर से निकाल दिया गया था ।


खैर, इस समय ठाकुर साहब भी यहां उपस्थित थे और नौकरों को फुर्ती से कार्य करने के लिए बार-बार कह रहे थे । विजय यह भरसक प्रयास कर रहा था कि वह ठाकुर साहब के सामने न पड़े ।


रघुनाथ और रैना की खुशियों को यहां शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं वे दोनों दरवाजे पर खड़े निरंतर आने वाले मेहमानों का स्वागत कर रहे थे। रैना की गोद में उसका नवजात शिशु था । नन्हा-सा... गोरा-सा मासूम शिशु.. . उसके चौड़े मस्तक पर लगा काला टीका ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो चांद में आज हत्का-सा दाग हो... नयन.. मानो कलियां अभी खिली न हों । अधर ऐसे शांत-मानो गुलाब की दो पंखुड़िया अभी आपस में आलिंगन किए हुए हों, नन्हे-प्यारे दूध-से हाथ-पैर वह कभी-कभी हिला देता था ।


मेहमान आते-उस शिशु को देखते, एक चुंबन उस मासूम के गुदगुदे कपोलों पर अंकित करके अपनी प्रसन्नता प्रकट करते और रैना की झोली मुबारकबाद के शब्दों से भर देते और फिर अपने हाथों में पकड़ा वह उपहार-जो वे इस नवजात शिशु के लिए लाते थे, पास ही खड़े एक नौकर को दे देते थे- जो उन्हें उन हजारों तोहफों में रखकर उनकी संख्या में वृद्धि कर देता था ।


और जब विजय ने मुबारकबाद दी, तो उसका ढंग कुछ इस प्रकार था ।


तब !


जबकि वह आया, रघुनाथ और रैना को दरवाजे पर खड़े पाया । आते ही वह कुछ इस प्रकार जोर से चीखा कि पूर्व उपस्थित समस्त मेहमानों ने चौंककर उस तरफ देखा था। ठाकुर साहब ने भी एक ओर खड़े होकर विजय की ये बेहूदा हरकत देखी थी, किंतु खून का घूंट पीकर रह गेए थे, क्योंकि अवसर ऐसा न था, लेकिन इधर विजय इन सब बातों से बेखबर उछलता हुआ आया और चीखा ।


- ' 'हैलो प्यारे, तुलाराशि!"


क्रोध तो रपुनाथ को भी आया, लेकिन परिस्थिति! रघुनाथ प्रत्यक्ष में मुस्कराया और बोला ।


-' हैलो विजय !"


'अरे वाह तुलाराशि, तुमने तो कमाल कर दिया । क्या मॉडल है?"


'विजय!" रघुनाथ विजय की तरफ झुककर अत्यंत धीमे से फुसफुसाया -' 'मुझ पर रहम करो, इस समय यहां मेरे ऑफिसर भी उपस्थित हैं।"


लेकिन वह विजय ही क्या जो ऐसे अवसर पर चुप हो जाए, वह उसी प्रकार से बोला ।


"मिस्टर सुपर ईडियट, अगर तुम हमसे बात नहीं करना चाहते तो मत करो, हम अपने भतीजे और भाभी से बात करेंगे.. क्यों भाभी?"


- 'आप ठीक कह रहे हैं विजय भैया ।" रैना ने समर्थन किया |


'हां तो आदरणीय भाभीजी, सर्वप्रथम हम अपने प्यारे-प्यारे भतीजे मियां की सेवा में ये उपहार अर्पित करते है ।" विजय ने एक अत्यंत बड़ा-सा बॉक्स रैना की ओर बढ़ाते हुए कहा था ।


तभी वह नौकर जो उपहार ले रहा था, लेने के लिए आगे बढ़ा, किंतु विजय ने तुरंत हटा दिया और बोला-' 'नहीं मियां बनारसीदास, ये उपहार हम आदरणीय भाभीजी के हाथ में ही देंगे।''


"लेकिन भैया, मेरी गोद में... | " -


"हां...हां भाभीजान, हम देख रहे हैं कि आपकी गोद में आपके सुपुत्र हैं, लेकिन ये जनाब हमारे भी तो कुछ लगते हैं, इनको हमें दो ।"


सभी मेहमान विजय की बातों का आनन्द उठा रहे थे, जबकि ठाकुर साहब अपने क्रोध को न संभालते हुए वहां से हट गए थे ।


और फिर!


विजय ने शिशु को गोद में ले लिया और रैना ने वह विशाल बॉक्स हाथ में लेकर जैसे ही रखना चाहा कि विजय फिर चीखा ।


"नहीं भाभी, ये इस तरह नहीं रखा जाएगा, इसे अभी, सभी मेहमानों के सामने, इसी वक्त खोलो।"


रैना ने मुस्कराकर विजय की ओर देखा, समस्त मेहमानों की रुचि बॉक्स के प्रति बढी - वे धीरे-धीरे सिमटकर रैना के करीब आने लगे... विजय के होंठों पर विचित्र - सी मुस्कान थी ।


और फिर !


रैना ने बॉक्स खोला ।


सब लोगों की उत्सुकता जागी ! आखिर इस बॉक्स में है क्या?


समस्त मेहमान मेज के चारों ओर एकत्रित हो गए। रैना ने बॉक्स खोला, निराशा... किंतु निराशा से अधिक जिज्ञासा !


बाक्स के अंदर कुछ नहीं था, सिर्फ एक अन्य बॉक्स, सबकी जिज्ञासा जागी... आखिर इस बॉक्स में क्या है? बड़ा वाला बॉक्स रैना ने एक ओर रख दिया और फिर दूसरा बॉक्स खोला । अजीब-सी स्थिति हो गई। बॉक्स के अंदर फिर बॉक्स | रैना ने विजय की ओर देखा, विजय रहस्यमय मुस्कान के साथ मुस्कराया। सभी के दिमागों में प्रश्नवाचक चिह्नों के निशान बने !


ये कैसा उपहार है ?


रैना ने दूसरा बॉक्स एक तरफ रखकर तीसरा बॉक्स खोला, किंतु फिर वही बॉक्स! उपस्थित व्यक्तियों के होंठों पर मुस्कान उभरी, साथ ही जिज्ञासा में चार चांद लगने लगे, सभी के दिल धड़के । सबनें विजय की ओर देखा, किंतु विजय उसी रहस्यमय ढंग से मुस्करा रहा था । 


दिल रैना का भी धड़का, वह विजय की आदतों से भली भांति परिचित थी । उसे लगा, जैसे आज विजय कोई बहुत बड़ी शरारत कर रहा है ।


रघुनाथ को डर था कि कहीं विजय की शरारत ऐसी न हो, जिससे उसके ऑफिसरों के सामने उसका कुछ अपमान हो । रैना ने बॉक्स खोलने के लिए फिर हाथ बढ़ाया । जिज्ञासा ने कहा- ' शायद इसी बॉक्स में कुछ हो ।' विचार आते ही रैना के हाथ धीरे से कांपे, सभी ने एक-दूसरे के चेहरों को देखा, शायद यह पूछने के लिए क्या इसी बॉक्स में कुछ है ?


इधर !


बॉक्स खुला, किंतु फिर बॉक्स ।


विचित्र उलझन थी, अजीब कशमकश । विजय के होंठों पर थी रहस्यमय मुस्कान ।


और फिर !


बॉक्स उठने लगे ।


परंतु प्रत्येक बॉक्स में एक अन्य बॉक्स, ठीक किसी जादू की भांति ।


प्रत्येक बॉक्स हटने के साथ लोगों की उत्सुकता बढ़ती जाती थी, उत्सुक-सी निगाहों से वे एक-दूसरे को देखते और फिर नजरों का केंद्र बन जाता विजय, जिसके होंठों पर नृत्य करती रहस्यमय मुस्कान लोगों की उत्सुकता के साथ गहन होती जा रही थी ।


और अंत में !


तब, जबकि लगभग तीस बॉक्स हटाए जा चुके थे । एक खासा स्थान तो बॉक्सों ने ही घेर लिया था । अब रैना के हाथ में था, एक छोटा-सा बॉक्स ।


लोगों की उत्सुकता चरम सीमा को स्पर्श कर चुकी थी । - "मिस्टर विजय ! " एक सुंदर-सी लड़की अपनी आवाज 

में बड़ी लोच और अदा उत्पन्न करके बोली- आखिर इस बॉक्स में है क्या?" 


'देवीजी!'' विजय ठीक उसी की नकल करता हुआ बोला- ' 'कुछ देर बाद आप स्वयं देख लेंगी ।"


और विजय के कहने का ढंग कुछ ऐसा था कि समस्त मेहमानों ने एक जोरदार कहकहा लगाया ।


रैना और रघुनाथ भी अपना कहकहा न रोक सके थे, जबकि वह लड़की जल गई थी, किंतु सिर्फ नाक सिकोड़कर रह गई


कहकहे के बाद ।


रैना ने वह छोटा-सा बॉक्स भी खोला ।

उत्सुकतावश सब मेहमान मेज पर झुक गए !


सभी की जिज्ञासा का समाधान होने जा रहा था ।


और तब, जबकि अंतिम बॉक्स खोला गया ।


सारा हॉल कहकहों से गूंज उठा। वहां खड़ा कोई भी बिना हंसे न रह सका । सभी के होंठों से बरबस ही कहकहे निकले थे । कोई भी मेहमान ऐसा न था, जो हंस न रहा हो ।


सभी लोटपोट थे । स्वयं रैना और रघुनाथ भी - "बहुत खूब मिस्टर विजय ! बहुत खूब । " स्त्री-पुरुषों के मुख से निकला, लेकिन एक विजय था कि संसार के महानतम मूर्ख की भांति पलकें झपका रहा था और उसकी ये हरकत देखकर मेहमानों के पेट में बल पड़ गए ।


इस छोटे-से बॉक्स में एक फोटो था । सिर्फ एक फोटो! रैना के पुत्र-मासूम शिशु का फोटो ।


इतनी मेहनत, इतनी जिज्ञासा, लेकिन साथ में लगा एक वल फोटो!


इस फोटो पर कुछ शब्द लिखे थे । शब्द इस प्रकार थे : 'आदरणीय भाभी.. .इससे बड़ा उपहार तुम्हारे भैया नहीं दे सकते.. मैं सच्चे हृदय से कामना करता हूं कि तुम्हारा ये पुत्र ये धरती का चांद बने... तुम्हारी और


तुम्हारे सुहाग की हमेशा रक्षा करे ।'


वाक्य पढ़कर सभी दंग रह गए ।


इस दिलचस्प मजाक के पीछे विजय ने कितनी गंभीर भावना छिपा ली थी । आज विजय के मजाक से रघुनाथ का सीना गर्व से चौड़ा हो गया ।


बहुत देर तक लोग इस दिलचस्प मजाक पर कहकहे लगाते रहे, कुछ मनचली लड़कियां विजय को प्यार भरी निगाहों से देखने लगी थी, जबकि विजय रैना से कह रहा था ।


- "भाभी !''


- "क्या अब भी कोई शरारत शेष है? " हंसती हुई रैना बोली |


रैना की बात पर फिर कहकहा लगा, लेकिन विजय बोला'भाभी, हमारे भतीजे का लेबल क्या है ?" I


- "क्या मतलब?" रैना उलझी ।


उलझन के भाव अन्य मेहमानों के चेहरों पर भी आए थे ।


"मेरा मतलब नाम से है । "


फिर एक मिश्रित कहकहा ।


कहकहे के बाद रैना ने बताया ।


- "विकास !" 


"वाह भाभी, वाह! " विजय उछलकर बोला-' 'क्या नाम रखा है विकास, यानी हमारी ही राशि है । अब अगर भाभी, विकास हमारी ही राशि है तो निश्चित रूप से हमारे जैसा ही महान बनेगा और अपने नाम के अनुसार दिन पर दिन विकास करेगा ।' "


रैना मुस्कराई और बोली- ' 'लेकिन तुम जैसा शरारती नहीं बनना चाहिए ।"


वातावरण में फिर एक कहकहा उभरा ।


और यह था विजय के मुबारकबाद देने का ढंग । इस हरकत से विजय पार्टी का हीरो बन गया था ।


पार्टी की रंगीनियां बढ़ती गई । वातावरण यूं ही रंगीन रहा।


और तब!


जबकि खाने का समय हुआ ।


लोग उस विशाल हॉल में एकत्रित हो गए। विजय, अशरफ, विक्रम, आशा, ठाकुर साहब इत्यादि सभी अपनी सीटें संभाल चुके थे। बैरे तत्परता के साथ इधर-उधर घूम रहे थे ।


रघूनाथ और रैना पास ही बैठे थे।


विकास महाशय रैना की गोद में थे ।


और ठीक तब, जबकि खाना प्रारंभ होने वाला था ।