शमशेर सिंह का चेहरा पूर्णतया भाव विहीन था । मोती गिडवानी और पीताम्बरदास द्वारा दी गई रिपोर्ट पर उसने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की ।
–'वह बॉक्सर भोलानाथ पांडे ही है ।' गिडवानी बोला–'लेकिन वह अभी भी बद्री प्रसाद सोनी के साथ ही है । इस बारे मैं यकीनी तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता ।'
शमशेर सिंह ने पीताम्बर की ओर देखा ।
–'तुम यकीनी तौर पर कह सकते हो स्पोर्टस क्लब में जिस आदमी की फोटो देखकर आए हो । वह वही था जिसने सौदा करने के लिए तुम्हें अप्रोच किया था ?'
–'जी हाँ ।'
शमशेर सिंह ने डेस्क की ड्राअर से दो लिफाफे निकालकर उनके सामने रख दिए ।
–'यह तुम्हारे वक्त की कीमत है । तुम लोग जा सकते हो ?'
उन दोनों ने एक–एक लिफाफा उठाया और धन्यवाद देकर बाहर निकल गए ।
–'करतार ।' शमशेर सिंह ने हांक लगाई ।
उसका बॉडीगार्ड फौरन अन्दर आ गया ।
–'यस, बॉस ।'
–'विशालगढ़ के लिए जो भी पहली फ्लाइट मिले उसपर मेरे और अपने लिए सीटें बुक करा लो ।'
करतार से हैरानगी से उसे देखा ।
–'आप भी जाएंगे, बॉस ?'
–'इस मामले को मैं खुद ही निपटाऊंगा ।'
–'ओके, बॉस ।'
* * * * * *
दस्तक की आवाज ने बद्री प्रसाद को चौंका दिया ।
मेज पर पड़ा रिवाल्वर उठाकर वह दबे पांच दरवाजे के पास पहुंचा ।
तभी पुनः दस्तक दी गई ।
–'कौन ?' बद्री ने सतर्क स्वर में पूछा ।
–'भोला ।' बाहर से टकरु की आवाज सुनाई दी–'दरवाजा खोलो ।'
बद्रीने ताला खोलकर डोर नॉब के नीचे अड़ी कुर्सी हटा दी । और पीछे हटकर दरवाजे को रिवाल्वर से कवर किए रहा ।
दरवाजा खोलकर टकरु को भीतर आता देखकर बद्री ने बड़ी भारी राहत महसूस की ।
ज्योंहि टकरु ने दरवाजा बन्द किया, बद्री ने डोर नॉब के नीचे कुर्सी अड़ाकर पुनः दरवाजा लॉक कर दिया ।
–'क्या रहा ?' उसने आतुर स्वर में पूछा ।
–'अपार्टमेंट में जितनी भी नगद रकम थी । वो सब में ले आया हूँ ।' टकरु बोला–'लेकिन और किसी चीज को मैंने छुआ तक नहीं ।'
–'क्यों ?'
–'अगर सूट केस पैक करके लाता तो लिफ्टमैन समझ जाता हमने अपार्टमेंट छोड़ दिया है । लेकिन अब वह यही समझेगा हम कहीं चले गए हैं । वापस लौटकर जरूर आएंगे ।'
–'लिफ्टमैन से बातें की थीं ।'
–'नहीं । क्यों ?'
–'मैं जानना चाहता हूं, लिफ्टमैन ने पिछली रात के बाद उसे आस–पास देखा था ?'
–'तुम्हें बताया तो था ।' बद्री खीजता सा बोला–'चेहरे पर चेचक के निशानों वाले उस आदमी को भूल गए । जिसके बारे में मेरा ख्याल था उसने हमारा पीछा किया था । मैंने तुमसे पूछा भी था कि पहले कभी उसे देखा है । उसी ने हमारे बारे में बताया था । उसके अलावा किसी और का यह काम नहीं हो सकता ।'
–'हम पर गोलियाँ उसने नहीं चलाई ।'
–'जानता हूँ ।' बद्री ने कहा और कमरे में चहल कदमी करने लगा ।
उनके पुराने अपार्टमेंट के मुकाबले में यह जगह निहायत घटिया थी । लेकिन जल्दबाजी और रात में बेवक़्त इससे अच्छी जगह उन्हें मिल भी नहीं सकती थी ।
–'हम पर गोलियां चलाने वाला वही आदमी था ।' बद्री रूककर बोला–'जिसने हमसे फिरौती की रकम खरीदी थी ।
टकरु ने अविश्वासपूर्वक उसे देखा ।'
–'लेकिन उसे हमारी जान लेने की कोशिश करने की जरूरत क्यों आ पड़ी ?' उसने जानना चाहा–'उसे तो उस सौदे में मोटा मुनाफा हुआ था । तुमने खुद ही कहा था कि उसने हमें ठग लिया है ।'
–'यह तो मैं नहीं जानता वह हमारी जान लेने की कोशिश क्यों कर रहा है ।' बद्री नर्वस भाव से बोला–'लेकिन यह बिल्कुल सही है हम पर गोलियां चलाने वाला वही था । मैंने उसे साफ पहचाना था । काली बरसाती और रेनकैप पहने वह खुद ही था ।'
–'ओह, अब क्या किया जाए ?'
–'इस मामले में न तो हम किसी से मदद मांग सकते हैं और न ही कोई मदद करेगा । हमारे सामने एक ही रास्ता है कि यहां से कहीं बहुत दूर चले जाएँ । कहकर बद्री ने उसकी और हाथ फैला दिया–'कितनी रकम लाए हो ?'
–'करीब साढ़े चार लाख रुपए है ।' टकरु ने जेबों से नोटों की गड्डियाँ निकालकर उसे दे दी लेकिन अगर वह आदमी हमारे पीछे लग गया है तो इस रकम से कुछ नहीं हो पाएगा । इसमें ज्यादा दिन हम छिपे नहीं रह सकते । हमें पानी की तरह पैसा बहाना पड़ेगा ।
–'वो तो हम अब तक बहाते ही रहे हैं । लेकिन अब अय्याशी की बजाय अपनी जान बचाने के लिए बहाएंगे ।'
–'ठीक है । लेकिन अपार्टमेंट में जो हमारे कपड़े वगैरा हैं । उनका क्या होगा ?'
–'उन्हें भूलना पड़ेगा । दोबारा वहां हम नहीं जाएंगे ।'
–'क्यों ? मैं तो अभी वहां से आया हूँ ।'
–'आज की बात अलग है । आज वारदात हुई है और फिर पुलिस वहां आ पहुंची थी । आज के बाद बराबर हमारे अपार्टमेंट को वाच कराया जाएगा ।' बद्री ने कहा फिर अचानक उसका चेहरा पीला पड़ गया । उसने घबराहट भरे स्वर में पूछा–'तुम्हारा पीछा तो नहीं किया गया ?'
–'नहीं । मैंने पूरी अहतियात बरती थी । चार बार टैक्सी बदलकर यहाँ तक पहुंचा हूं ।'
–'जब तुम वहां पहुंचे पुलिस जा चुकी थी ?'
–'कुछ ही देर पहले गई थी । वहां सब कुछ रोजमर्रा की तरह ही था । बस प्रवेश द्वार का कांच टूट गया था ।' टकरु ने कहा, फिर उलझन भरे स्वर में पूछा–'मेरी समझ में अभी भी नहीं आया कि फिरौती की रकम का खरीदार अचानक हमारा दुश्मन क्यों बन बैठा ?'
–'यह तो मैं भी नहीं जानता और न ही इसका पता लगाने के लिए यहाँ रुके रहने का मेरा कोई इरादा है ।' बद्री कराहता सा बोला–'दो–चार दिन में यह मामला ठंडा पड़ जाएगा । इस बीच यहाँ से बाहर कहीं हम नहीं जाएंगे ।'
टकरु ने कहा तो कुछ नहीं । लेकिन उसके चेहरे पर व्याप्त भावों से स्पष्ट था बद्री की अंतिम बात उसे जरा भी पसंद नहीं आयी थी ।
* * * * * *
होटल प्लाजा में अपने कमरे की खिड़की के पास खड़ा वह नर्वस भाव से सिगरेट फूंक रहा था ।
पिछली रात की घटना ने उसके छक्के छुड़ा दिए थे । वह यकीनी तौर पर कह सकता था पिछली रात बद्री ने उसे पहचान लिया था । और वह यह भी अच्छी तरह जानता था इस मामले को लेकर अगर शमशेर सिंह से आमना–सामना हुआ तो शमशेर सिंह ने जरा सा भी रहम उस पर नहीं करना था ।
वह खिड़की के पास से हटकर कमरे में मौजूद इकलौती कुर्सी पर आ बैठा ।
उसने बेचैनी से पहलु बदलते हुए सोचा अब तक शमशेर सिंह के सभी बड़े शहरों में मौजूद सोर्सेज पूरी तरह हरकत में आ गए होंगे । उनके जरिए उसे किसी भी समय ऐसे किसी व्यक्ति का पता लग सकता था जिसे रकम खरीदने के लिए कांटेक्ट किया गया था । एक बार यह पता लगते ही रकम बेचने की कोशिश करने वाले को भी उसने ढूंढ़ निकालना था । और फिर उसके जरिए रकम के असली खरीददार का पता लगा कर शमशेर सिंह ने कहर बनकर उस पर टूट पड़ना था ।
वह झुरझुरी सी लेकर रह गया । उसने याद करने की कोशिश की कि उसे किस तरह कांटेक्ट किया गया था । आरंभ में फोन पर बातें हुई थीं । फिर बॉक्सर से उसकी मुलाकात हुई । बद्री प्रसाद से सिर्फ एक ही बार मुलाकात हुई वो भी तभी जब रकम खरीदने के लिए रजामंद होने के बाद टर्म डिस्कस करनी थीं । इस सौदे के शुरुआती दौर में एक बार भी न तो उसने बद्री का नाम सुना और न ही उसकी शक्ल देखी थी । बद्री सब कुछ तय हो जाने के बाद ही पिक्चर में आया था ।
बॉक्सर और बद्री की बातों से जाहिर था उससे पहले अन्य लोगों को भी कांटेक्ट उन्होंने किया था । लेकिन अगर बद्री के कांटेक्ट करने का ढ़ंग उन लोगों के साथ भी यही रहा था तो उस तक आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता । इसका मतलब उसके लिए अभी भी चांस है ।
उसे अपना यह विचार काफी हद तक तर्क संगत तो लगा । लेकिन इससे संतुष्ट वह नहीं हुआ ।
पिछली रात की अपनी नाकामयाबी पर हालांकि उसे बेहद अफसोस था । इसके बावजूद वह खुद को खुशकिस्मत समझ रहा था । बॉक्सर द्वारा किए गए जबाबी हमले में अगर उसका निशाना नहीं चूकता तो इस वक्त उसकी अपनी लाश भी मोर्ग में पड़ी होती ।
वह जानता था उसकी नाकामी की वजह थी–बरसों तक रियल एक्शन से दूर रहने के कारण चुस्ती–फुर्ती में आ गई बड़ी भारी कमी और प्रैक्टिस का सरासर अभाव ।
उसने अपने कोट की जेबों में हाथ घुसेड़कर सिल्क के पतले दस्ताने बाहर निकाल लिए और यह सोचकर बड़ी भारी तसल्ली महसूस की कि पिछली रात दस्ताने पहनने की अहतियात बरतना नहीं भूला । किसी अनाड़ी और भयभीत आदमी की तरह रिवाल्वर को घटनास्थल पर गिर आने का कोई अफसोस उसे नहीं था । उस रिवाल्वर का किसी भी प्रकार का कोई रिश्ता उसके साथ नहीं जोड़ा जा सकता । और फिंगर प्रिंट्स के अभाव में यह सरासर नामुमकिन था ।
अंत में उसने यह सोचकर खुद को तसल्ली देने की कोशिश की कि पिछली रात बदकिस्मती से मार खा गया था । लेकिन अगली बार किसी भी किस्म की कोई चूक वह नहीं होने देगा ।
0 Comments