दोपहर के एक बजे ।
उस वक्त देवांश बैठक में था जब ठकरियाल का फोन आया ।
जो हुआ था, सुनकर पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ उसे ।
अनेक सवाल किये ।
ठकरियाल सबके संतुष्टिजनक जवाब देने के बाद बोला--- " अब इन सबको लेकर मुझे कोर्ट जाना है। जेल भेजकर ही विला पर आऊंगा।"
मारे खुशी के झूम उठा देवांश ।
रिसीवर रखने के बाद, एक पल के लिए भी बैठक में बैठा नहीं रह सका । इच्छा हुई --- 'यह खबर फौरन दिव्या को पता लगनी चाहिए।'
वह उठा ।
बैठक का मुख्य द्वार अंदर से बंद किया और भीतरी दरवाजा क्रॉस करके लगभग दौड़ता हुआ दिव्या के कमरे में जा पहुंचा।
वह अभी भी बैड पर बेसुध पड़ी थी ।
जिस्म पर एक चादर थी ।
वह जानता था ---- चादर के नीचे दिव्या अभी भी नग्न अवस्था में है।
नजदीक पहुंचकर आहिस्ता से उसके कंधे पर हाथ रखा। हौले से झंझोड़ते हुए पुकारा | दिव्या कुनकुमाई | देवांश ने पुनः झंझोड़ते हुए पुकारा । काफी प्रयासों के बाद उसने आंखें खोलीं । देवांश को देखते ही चौंकर उठ बैठी। मुंह से निकला --- “त-तुम ?”
देवांश ने उसकी आंखों में अपने लिए उमड़ता नफरत का सागर देखा था ।
एक ही क्षण में सारी खुशी जाने कहां काफूर हो गयी ।
दिव्या ने उसके चेहरे से नजरें हटाई | वाल क्लॉक की तरफ देखा। दिमाग को झटका सा लगा। उफ्फ! दिन का सवा बज गया। फिर, आंखों के सामने रात के दृश्य तैर गये ।
दिलो-दिमाग ग्लानि से भर गया ।
कितनी भयानक रात थी ।
उसका नंगी होकर नाचना ।
शैतानों का उसे देखकर 'शेम - शेम' कहना |
राजदान के ठहाके । सुलगते शब्द |
फिर ।
उसके दोस्तों का थूकना ।
खुद से घृणा होती चली गई दिव्या को । सब कुछ किसी भयानक सपने की तरह याद था उसे । इधर, देवांश को लगा - - - जब तक वह खुशखबरी नहीं देगा तब तक बातें करना तो दूर, दिव्या उसकी तरफ देखना तक गंवारा नहीं करेगी, अतः उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए बोला---“अभी-अभी ठकरियाल का फोन आया था ।”
दिव्या ने बहुत ही उपेक्षित भाव से उसकी तरफ देखा ।
“खुशखबरी सुना रहा था ।" देवांश ने उसकी उत्सुकता जगानी चाही।
वह अब भी चुप रही ।
देवांश ने एक ही झटके में कह दिया--- "हमें कातिल या
गुनेहगार साबित करने वाले चारों के पास जितने भी सुबूत थे सब अवतार के कब्जे में आ चुके हैं। उसकी इन्फॉरमेशन पर ठकरियाल ने भट्टाचार्य के फार्म हाऊस पर छापा मारा। वे चारों वहीं थे। बबलू, उसके मां-बाप और स्वीटी भी । ठकरियाल ने चारों को गिरफ्तार कर लिया है ।”
देवांश को उम्मीद थी, जब वह यह सब बतायेगा तो भले ही दिव्या चाहे जितने विषाद में हो, मारे खुशी के उछल पड़ेगी। मगर, वह अब भी संगमरमर के बुत की तरह एकटक उसकी तरफ देख रही थी। कोई भी तो भाव नहीं उभरा चेहरे पर । न खुशी का न गम का। देवांश को आश्चर्यमिश्रित निराशा हुई । लगा --- बात अभी पूरी तरह शायद दिव्या की समझ में नहीं आई है। सो बोला--- "वह जाल टूटकर पूरी तरह बिखर गया है जो राजदान हमारे चारों तरफ बुन गया था। सारे हालात अब हमारी मुट्ठी में हैं। समझने की कोशिश करो दिव्या--- वह सब हो चुका है जो अवतार को मोहरा बनाकर ठकरियाल करना चाहता था।"
“ अगर वह सब हो भी गया है।" दिव्या ने ताना सा मारा - - - “तो तुमने क्या किया है ?”
देवांश की जुबान तालू में जा चिपकी ।
कुछ कहते नहीं बन पड़ा उस पर ।
“मेरे सिर में बहुत तेज दर्द है। नहाना चाहती हूं।” कहने के बाद देवांश के जवाब की प्रतीक्षा किये बगैर वह बैड से उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई । *
चादर बैड पर ही पड़ी रह गयी थी ।
इस बात की बाल बराबर परवाह नहीं की उसने कि तन पर एक भी कपड़ा नहीं है । देवांश की आंखों ने उसे बाथरूम की तरफ बढ़ते देखा जरूर था । परन्तु उन्होंने दिमाग को दिव्या के नग्न होने का मैसेज नहीं दिया।
कैसे देतीं?
दिमाग तो दिव्या द्वारा पहुंचाये गये आघात से चोटिल हुआ पड़ा था ।
ठीक ही तो कहा दिव्या ने, उसने क्या किया है?
जी चाहा--- किसी अंधे कुएं में कूदकर अपनी जान दे दे।
बहुत देर तक बैड पर उसी पोजीशन में बैठा रहा ।
दीनू काका आकर यह न कहता कि चार-पांच लोग मिलने आये हैं तो जाने कब तक बैठा रहता । वह उठा और इस तरह कमरे से बाहर निकल गया जैसे कोई अपने सबसे प्रिय की चिता को अग्नि देने के बाद मसान से बाहर निकला हो ।
***
दिव्या सीधी शॉवर के नीचे जाकर खड़ी हो गयी थी ।
ठंडे पानी ने असर दिखाया ।
शरीर की नसों ने खुलना शुरू किया ।
उसे अच्छा क्यों नहीं लग रहा था देवांश का बोलना ? जो उसने कहा, उसे सुनकर खुशी सी तो हुई उसे मगर उस खुशी को जाहिर करने का जी क्यों नहीं चाहा ? दिमाग में एक साथ बहुत से सवाल भी कौंधे थे । वे सवाल जिनके दिमाग जवाब चाहता था परन्तु मन नहीं हुआ देवाश से पूछने का ।
बार-बार एक ही इच्छा हो रही थी---वह उसके सामने से उठकर चला जाये ।
कह न सकी तों... खुद बाथरूम में आ गई थी ।
क्या वह सच कह रहा था?
अवतार कामयाब हो गया है ?
नौबत ऐसी आ गई है कि ठकरियाल उन दरिन्दों को जेल भेजने की तैयारी में जुटा है ?
अगर वाकई ऐसा हो गया तो ?
तो ?
इस 'तो' से आगे वह कोशिश के बावजूद नहीं सोच पाई ।
असल में रात के दृश्य बार-बार उसकी सोचों के बीच अवरोध बनकर आ खड़े होते थे ।
समझ ही नहीं पा रही थी रात जो हुआ, उसके लिए अभी भी दहाड़े मार-मारकर रो पड़ना चाहिए या उस पर खुश होना चाहिए जो कुछ देर पहले देवांश ने बताया ।
कोशिश के बावजूद वह रात के दृश्यों को अपने मस्तिष्क पटल से छिटक नहीं पा रही थी ।
कुछ वैसी ही हालत हो गयी थी जैसी दिव्या और देवांश को साथ देखकर राजदान की हुई थी । ठहाके लगाता राजदान। कानों में गूंजती 'शेम-शेम' । उस पर थूकते अखिलेश, वकीलचंद, अवतार, भट्टाचार्य और समरपाल । उफ्फ! यह सब पीछा क्यों नहीं छोड़ रहे थे उसका ?
एकाएक ख्याल आया ---उसे ठकरियाल से फोन पर बात करनी चाहिए ।
मालूम तो करना चाहिए हुआ क्या है ?
बेचैन सी हो गयी वह ।
नहाने में भी मन नहीं लगा ।
शॉवर बंद करके ड्रेसिंग में आयी ।
टॉवल से जिस्म पौंछा।
वार्डरोब खोली | राजदान द्वारा खरीदा गया एक से एक कीमती लिबास सामने था। हाथ बढ़ाया। याद किया - - - अब यह सब कहां पहन सकती है वह । उसे तो सफेद साड़ी पहननी है। सफेद ब्लाऊज ।
यदि कुछ और पहना और किसी ने देख लिया तो?
यह सोचकर खीझ सी हुई कि देखने वाला क्या सोचेगा?
फिर ।
मन विद्रोही हो उठा।
कमरे से बाहर ही क्यों निकलेगी वह?
कौन आ रहा है यहां देखने ?
सो ।
उसने एक चुस्त जींस और ढीला-ढाला टॉप पहन लिया।
बाल संवारे और ड्रेसिंग का दरवाजा खोलकर कमरे में कदम रखा ही था कि ठिठक जाना पड़ा। नजर बैड के नजदीक पड़ी चेयर पर चिपककर रह गयी थी ।
वहां कोई बैठा था | बाथरूम के दरवाजे की तरफ पीठ थी उसकी । दायें हाथ के बीच सुलगी हुई सिगरेट । धुवां एक टेढ़ी-मेढ़ी लकीर की शक्ल में उठ रहा था । “कौन है?” दिव्या ने कहा । एक झटके से खड़ा होने के साथ वह पलट भी गया । अवतार था वह । मगर वह अवतार बिल्कुल नहीं जिसे उसने पहली बार देखा था। नहाया - धोया था ।
रेशमी बाल सलीके से कढ़े हुए।
जिस्म पर हल्के पीले रंग की टी-शर्ट | काली पैंट और कुछ ही देर पहले की गई पॉलिश से चमचमा रहे जूते । उसके होंठ सुर्ख और बहुत रसीले थे । सीना बाहर । पेट अंदर । ब्राउन आंखों में जगमगाहट ।
एक पल को तो अवाक् सी खड़ी रह गयी दिव्या ।
अगले पल मुंह से निकला --- “त-तुम?”
“जी ।” बहुत शालीनतापूर्वक कहा उसने
दिव्या ने खुद को नियंत्रित किया । आवाज में कड़ाई लाती हुई बोली- - - “ यहां क्यों आये हो ?”
“तुमसे माफी मांगने ।”
“माफी ?”
“रात मैं भी था उन लोगों के बीच ।”
"फिर ?”
“ उसी के लिए माफी मांगने आया हूं।”
“क्या जरूरत थी इसकी ?” विषाद की ज्यादती के कारण दिव्या का चेहरा बिगड़ने सा लगा था ।
“मुझे वह सब अच्छा नहीं लग रहा था । ”
“झूठ बोल रहे हो । ”
“मेरा सच अगर तुम्हें झूठ लगता है तो झूठ ही सही । ”
“अगर सच है तो देख क्यों रहे थे? आये ही क्यों थे उनके साथ ? तुम्हें तो पहले ही मालूम था तुम लोग मुझे नंगी नचाने आ रहे हो ?”
“हां, मालूम था ।”
“फिर?”
“मजबूर था। उस वक्त उनके सामने खड़ा हो जाता तो मेरा मिशन पूरा नहीं हो सकता था । ”
“मिस्टर गिल!” एकाएक दिव्या का लहजा कुछ ज्यादा ही कठोर हो उठा--- "प्रभावित करने की कोशिश मत करो मुझे । मैं तुम्हारी फितरत से अच्छी तरह वाकिफ हूं। उन सबसे ज्यादा हरामी हो तुम। हत्यारे । बैंक लुटेरे। कॉल गर्ल्स का धंधा करने वाले । जब तुम्हारे होटल में वो धंधा होता था तो कैबरे भी जरूर होता होगा ।”
“ होता था ।”
“तब तो आदत पड़ी हुई होगी तुम्हें औरत का नंगा जिस्म देखने की ?”
"हां"
“फिर काहे की माफी मांगने चले आये ? नया क्या हो गया तुम्हारे लिए ? ”
“वे जो होटलों में कैबरे करती हैं। वे, जिनके नंगे बदन को देखने में मैं पूरा-पूरा लुत्फ लेता हूं। या अगर यूं भी कहूं, उन जिस्मों को देखने का मुझे चस्का लग चुका है तो गलत है नहीं होगा मगर, वे जो भी करती हैं---अपनी मर्जी से करती हैं। खुशी से करती हैं। प्रोफेशन है उनका । वो सब करते वक्त वे अंदर से तड़प नहीं रही होतीं। आंखों में आंसू नहीं होते उनकी । वे घरेलू नहीं, बाजारू होती हैं। या हो चुकी होती हैं। बस ! यही नया था और शायद यही नयापन मुझे अच्छा नहीं लगा ।”
“कह चुके जो कहना था ?”
“जी।"
“ अब तुम जा सकते हो ।”
“ओ. के. ।” हल्की सी मुस्कान के साथ कहा उसने । सिगरेट का अंतिम सिरा सेन्टर टेबल पर रखी ऐशट्रे में कुचला और कमरे की खुली खिड़की की तरफ बढ़ गया ।
“रास्ता उधर है ।" दिव्या ने कहा ।
वह टिठका | बोला --- “मैं इधर से ही आया था । "
“क्यों?” दिव्या की आंखें सुकड़ीं।
“उधर से आता तो बैठक में बैठा देवांश रोक लेता और माफी मुझे उससे नहीं, तुमसे मांगनी थी।" कहने के बाद वह खिड़की पर पैर रखकर दूसरी तरफ कूदने ही वाला था कि दिव्या ने कहा -- “एक मिनट मिस्टर गिल ।”
वह पुनः ठिठका | पलटा। ।
“सुना है रात तुम कामयाब हो गये?”
“ठकरियाल या देवांश बता ही चुके होंगे।”
“इतनी जल्दी कैसे मिल गई कामयाबी ?”
एक बार फिर उसके सुर्ख और रसीले होठों पर मुस्कान फैल गई | बोला- -- “मैं सच बोलूंगा तो तुम्हें झूठ लगेगा।”
“मतलब?”
“केवल तुम्हारी वजह से इतनी जल्दी कामयाबी मिल पाई। ”
“मेरी वजह से ?”
“यकीनन ।”
“ बनाने की कोशिश कर रहे हो मुझे। मैं तो उस वक्त तुम्हारे आस-पास भी नहीं थी। धुत्त पड़ी थी नशे में । "
“कारण बनने के लिए किसी का आसपास होना जरूरी नहीं होता।"
“मतलब?”
“ यहां से लौटते वक्त गाड़ी में मैंने अखिलेश से वही कहा जो कुछ देर पहले तुमसे कहा है। यह कि जो हम करके आये हैं बहुत घृणित था वह । मुझे अच्छा नहीं लगा । सुनकर भड़क उठा अखिलेश । बोला --- 'तुझे कुछ मालूम भी है दिव्या और देवांश ने क्या किया है?” मैं बोला---'कुछ भी किया हो मगर वह इतना घृणित नहीं हो सकता।' उसे तैश आ गया । अच्छे भले होटल जा रहे थे। समरपाल से गाड़ी भट्टाचार्य के फार्म हाऊस की तरफ मोड़ने को कहा। हालांकि वह सब कहते वक्त मुझे इस बात का कोई इल्म नहीं था । परिणाम ये निकलेगा | इतनी जल्दी उस 'खजाने' तक पहुंच जाऊंगा। जिसकी मुझे तलाश थी। मैंने तो दिल की बात कही थी 1 उसने मंजिल तक पहुंचा दिया ।... अब कहो, इतनी जल्दी कामयाबी तुम्हारी वजह से मिली या नहीं ?”
“वहां ले जाकर उसने तुम्हें क्या दिखाया ?"
"वह फिल्म जिसमें वह सब था जो उनतीस अगस्त की रात को राजदान के बैडरूम में हुआ। तुम दोनों का उस कमरे में जाना । उसके और तुम्हारे बीच हुई बातचीत । तुम्हारे द्वारा उसे हार्ट अटैक से मार डालने की कोशिश और अंततः उसके द्वारा की जाने वाली आत्महत्या"
“व- वो सब भी 'शूट' था ?” मारे आश्चर्य के दिव्या का बुरा हाल हो गया ।
मुंह से स्वतः अनेक सवाल निकलने लगे ।
अवतार बेहिचक सबके जवाब देता चला गया ।
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