पहले प्यार की दूसरी पारी
किसी अपने के चले जाने के बाद उसकी छुअन का अनकहा-सा दर्द रह जाता है और रह जाती है एक अदृश्य छुरी, जिसकी हर पल, हर समय हमेशा चुभन महसूस होती रहती है। यही चुभन और अनकहा दर्द अब वीर का जीवन बन गया था। वीर अपनी लाइफ़ में आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा था, लेकिन माया की यादें उसका पीछा ही नहीं छोड़ती थी। आज वीर को माया की आवाज तक सुने दो साल से ज़्यादा हो गए थे। माया ने वीर के जन्मदिन पर फ़ोन जरुर किए थे, लेकिन बस कुछ मिनट के लिए। वो कुछ मिनट भी उनकी ख़ामोशी ही खा गई थी। वीर माया की यादों से बाहर निकल ही नहीं पाया था।
यादें पवित्र होती हैं। हर याद की आहट अलग होती है, इसलिए माया की हर याद वीर के सीने पर टिकी रह गई थी। यही यादें वीर की ताक़त भी थी और कमज़ोरी भी थी। वीर ने माया के बिना जीने की कभी कल्पना तक नहीं की थी और आज माया के बग़ैर उसने इतने साल निकाल दिए थे। वीर ने बहुत बार मरने का भी सोचा, लेकिन जो नहीं फेंक पाते ख़ुद को किसी ऊँची इमारत से, जो नहीं लेट पाते रेल की पटरियों पर, जो नहीं छू पाते बिजली की नंगी तारो को, वो मरने का सबसे आसान तरीका चुनते है, वे जीना चुनते हैं। यही जीना वीर ने भी चुन लिया था, लेकिन फिर भी माया की याद वीर के दिल में हमेशा एक खनक करती थी।
वीर अब यही चाहता था कि अब माया की यादों का बोझ बहुत ढो लिया है, अब उसकी याद ना आए, और ना ही याद आए उसके साथ बिताए हुए वो एक-एक पल, ना दिखे माया उसे हर बार जब भी वह अपनी आँखें बन्द करता है। सौंदर्य और प्रेम का याद न आना ही प्रेमी को सरल बना सकता है, लेकिन ऐसा संभव बहुत कम हो पाता है। वीर के मन ही मन में कुछ अरमान करवट लेते थे, इच्छाएं आती थी और चली जाती थीं। माया का चेहरा वीर की स्मृति में उलझा रह गया था, जो न घटता था और न ही बढ़ता था। बस, दाग़ की तरह वीर के दिल पर नक़्श हो गया था।
प्रेम में टूटा हुआ वीर प्रेम से भागता तो ज़रूर था, लेकिन पैरों में प्रेम की ज़ंजीर पहनकर। वह ख़ुद को भ्रम में रखता था कि वह प्रेम और माया की यादों से भाग रहा है, लेकिन कहीं न कहीं उसे उम्मीद रहती थी माया के फिर से लौट आने की, लेकिन वो उम्मीद ही क्या जो पूरी हो जाए? उम्मीदें जड़ों की तरह नीचे-नीचे फैलती रहती हैं। वो घटती नहीं है, बस बढ़ती ही रहती हैं। अगर चाहकर भी उस उम्मीद का गला घोंट दिया जाए तो एक नई ही उम्मीद पैदा होकर साँस लेने लगती थी। यही वीर के साथ हो रहा था। वो हर रात माया से उम्मीद तोड़कर सोता था, लेकिन हर सुबह माया की एक नई उम्मीद पनप जाती थी।
वीर पर माया की यादें और उम्मीदें हावी होने लगती थीं तब वीर माया की तस्वीरें और ख़त निकाल लेता था। वह माया की तस्वीरों को चूमता था और दु:खी हो जाता था। वीर ने तस्वीरें और ख़त बचा लिए थे, लेकिन प्यार नहीं बचा पाया था। वीर माया की तस्वीरों और ख़तों को जलाने की नाकाम कोशिश बहुत बार करता था। वो ख़ुद से कहता था कि आज से माया की यादों को जला दूँगा, उन्हें मिटा दूँगा, प्यार ख़त्म कर दूँगा, लेकिन वो ये भूल जाता था कि प्रेम की केवल एक ही दिशा, एक ही छोर होता है। प्रेम प्रारंभ तो होता है, लेकिन कभी समाप्त नहीं होता।
माया को याद कर वीर की आंखों से आँसू लुढ़क जाते थे। एक हाफ पीने के बाद वह माया की तस्वीर बनाने लगता था। वह तीन महीने से माया की तस्वीर बनाने लग रहा था। उसे उम्मीद थी कि उसका प्यार एक दिन उसकी याद में फिर लौटेगा, जैसे मौसम लौट कर आते है। फिर वीर यह तस्वीर माया को देगा और कहेगा कि इस तस्वीर को उसने बनाया नहीं बल्कि जीया है।
वीर जब माया की आधी बनी तस्वीर को दीवार के सहारे खड़ा होकर देख रहा था तो वीर का फ़ोन बजा। वीर ने देखा कि अंजान नम्बर से फ़ोन आ रहा था।
“हैल्लो।” वीर ने कहा।
‘कैसे हो?” माया ने पूछा।
माया की दो साल बाद आवाज सुनकर वीर एकदम चुप हो गया। वो कुछ भी नहीं बोल रहा था। फ़ोन पर कुछ सेकेंड के लिए ख़ामोशी छा गई थी।
“क्या हुआ? बात नहीं करोगे क्या?” माया ने पूछा।
“आज कैसे फ़ोन किया?” वीर ने अपना दर्द छुपाते हुए पूछा।
“क्यों? नहीं कर सकती क्या ?”
“कर तो सकती हो, लेकिन आज क्यों? इन दो सालों में तुमने मुझे न जिए में याद किया ना मरने में याद किया, तो फिर आज क्यों?” वीर ने बेरुखी से कहा।
“इन दो सालों में मैंने तुम्हें हर पल याद किया है। बस तुम्हें फ़ोन नहीं कर पाई, क्योंकि मेरी मजबूरियाँ ही ऐसी थीं। मैं कुछ समय तक यही सोचती थी कि तुम्हें भूल जाऊँ, लेकिन तुम मुझसे भुलाए नहीं गए तो आज इन मजबूरियों को पीछे छोड़कर अपने दिल के हाथों मजबूर होकर मैंने तुम्हें फ़ोन किया है, लेकिन लगता है कि तुम मुझे भूल गए हो जो इतनी बेरुख़ी से बात कर रहे हो।” माया ने कहा।
“तुम मेरे दिल से निकल जाओ, यह तो असंभव है। मुझे ही पता है कि मैं तुम्हारी यादों के सहारे किस तरह रहा हूँ? किस तरह यह ज़हर मैं रोज़ पीता हूँ कि तुम मेरी नहीं हो। तुम्हारे बिना एक-एक क्षण मुझे तुम्हें खोने की ग़लती का अहसास कराता रहा है।” वीर ने कहा।
“मैं तुमसे ज़्यादा देर बात नहीं कर पाऊँगी। मैं कल तुमसे मिलना चाहती हूँ। आ सकते हो क्या मिलने?” माया ने पूछा।
“तुम कैसे मिल सकती हो मुझसे ? तुम्हारे लाइफ़ में फिर से कोई न कोई प्रॉब्लम खड़ी हो जाएगी।” वीर ने ना चाहते हुए भी यह कहा।
“तुम्हारी ग़ैर मौजूदगी से जो इतने साल तक मेरे दिल में प्रॉब्लम हुई उसका क्या? मैं यहाँ भिवाड़ी में रहती हूँ। यहाँ पर एक कालेज में पढ़ाती हूँ। मनीष शाम को 07:00 बजे तक घर आता है। मैं दोपहर के बाद फ्री हो जाती हूँ तो तुम कल मेरे घर पर आ जाना। मैं तुम्हें पता भेज दूंगी।” माया ने कहा।
“हाँ, आ जाऊँगा।” वीर ने जवाब दिया।
माया के फ़ोन रखने के बाद वीर खिड़की से बाहर की तरफ़ देखने लगा। वीर माया से इतना प्यार करता था कि सही और ग़लत में फैसला करना उसे उचित ही नहीं लगता था। वह अपने दिल के हाथों मजबूर था। वीर ने फ़ैसला कर लिया था कि वह कल माया से मिलने जाएगा।
अगले दिन वीर माया से मिलने के लिए निकल गया। वीर को माया की तरफ़ बढ़ते हुए अपने कदम ऐसे लग रहे थे, जैसे बरसों से वीर को जिस मंज़िल की तलाश थी, वो अब चन्द कदम ही दूर थी। वीर ने भिवाड़ी पहुँचकर माया के फ़्लैट की डोरबेल बजाई। दरवाज़ा खुला तो सामने माया थी। माया ने आज फिर नीले रंग का सूट पहना हुआ था। वीर अन्दर आया और माया दरवाजा बन्द कर किचन में चली गई। वीर भी माया के पास किचन में स्लैब का सहारा लेकर खड़ा हो गया, जहाँ माया खाना बना रही थी।
“नीले रंग का सूट तुमने जानबूझ कर पहना है ना?” वीर ने कहा।
“हाँ, जानबूझ ही सही, लेकिन तुम्हारे लिए ही पहना है। जब हमेशा ही यह रंग केवल तुम्हारे लिए था तो आज भी यह तुम्हारा ही है। वैसे तुम बहुत बदल गए हो।” माया ने वीर की तरफ़ देखकर कहा।
“हाँ, बदल गया हूँ। अब टूटे हुए पत्ते रंग तो बदलेंगे ही।” वीर ने कहा।
माया ने वीर की बात सुनकर अपनी नज़रें नीची कर लीं और खाना बनाने में लग गई।
“खाना तो खाया नहीं होगा तुमने?” माया ने रोटी सेंकतें हुए कहा।
“हाँ, नहीं खाया। तुमसे मिलने की उत्सुकता ही इतनी थी कि बस भूखा ही चला आया।” वीर ने कहा।
“ठीक है, तो नीचे जाओ और दही ले आओ। फिर खाना खा लेना।” माया ने कहा।
वीर नीचे दही लेने चला गया। वीर ने आते वक़्त यही सोचा था कि आज माया को अपनी सारी शिकायतें बताऊँगा कि कैसे उसने धोखा देकर क्या कर दिया है? वीर जब दही लेकर आया तो माया ने वीर को खाना परोस दिया। वीर वहीं किचन में माया के पास खड़ा होकर खाना खा रहा था और माया को देख रहा था। इस तरह माया को देखने की आरजू वीर की कब से थी, लेकिन अपने घर के किचन में।
वीर माया से बहुत कुछ कहने की सोच रहा था, लेकिन माया को देखकर वो पुराने वाला वीर फिर से जाग उठा था। वीर ने खाना खाने के बाद माया के हाथ को पकड़ा और उसे चूम लिया। जब वीर ने माया के हाथ को चूमा तो माया ने वीर की तरफ़ देखा और कुछ पल के लिए वीर को लगातार देखती रही और फिर माया वीर के करीब आकर उससे लिपट गई।
“तुम मेरे क्यों नहीं हो पाए, वीर? मैं तुमसे अब भी बहुत प्यार करती हूँ। शायद तुम मुझे अब उतना प्यार नहीं करते।” माया ने रोते हुए कहा।
वीर कुछ देर तक शान्त खड़ा रहा। माया वीर से लिपट कर रो रही थी। कभी-कभी जिंदगी भर की धूल सिर्फ़ एक मूसलाधार बारिश से धुल जाती है। वीर अपनी बहुत सारी शिकायतें लेकर आया था, लेकिन माया और उसके आँसुओं को देखकर उससे कुछ कहना ही नहीं चाहता था। वीर ने अपनी चुप्पी को तोड़ते हुए माया की ठोढ़ी को पकड़कर उसके चेहरे को ऊपर किया। वीर ने माया की आंखों में देखा और कहा कि जितना मुझे तुम्हें अपना ना बनाने का मलाल है ना, उतना तो शायद कृष्ण को राधा का भी नहीं रहा होगा। मैंने तुम्हें उस दिन से भी ज़्यादा चाहा है जब मुझे मालूम हुआ कि तुम मेरी नहीं हो पाओगी। यह सुनते ही माया की आंखों से दोबारा आंसू निकल पड़े। वीर माया को दोबारा इतने करीब पाकर धीरे-धीरे होश खो रहा था। माया के चेहरे पर आँख से लुढ़क कर आए आँसुओं को वीर ने अपने होंठों से पी लिया और दोनों फिर वही किचन में ही किस करने लग गए। वीर को माया के जिस्म की वही खुशबू फिर महसूस हुई जो उसे पागल बना देती थी। वीर फिर से उसी मैदान में दौड़ना चाहता था। फिर से वीर एक लंबी पारी खेलना चाहता था, अपने पहले प्यार की दूसरी पारी। वीर ने माया को अपनी बाँहों में उठा लिया और बिस्तर तक ले गया। वीर और माया कुछ समय के लिए एक-दूसरे में खो गए थे।
शाम को वीर माया के फ़लैट से वापिस दिल्ली आ रहा था। रास्ते भर वह माया के बारे में सोच रहा था कि क्या दोनों का फिर से मिलना, फिर से वही सब करना सही था या ग़लत? लेकिन अब वीर को इसकी परवाह नहीं थी। उसे अपना खोया हुआ प्यार दोबारा से मिला था। दोबारा से जिंदगी ने उसे जीने का रास्ता दिया था तो वह तो बस उस रास्ते पर ही चलना चाहता था।
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