देवराज चौहान और नगीना दस बजे तक दिल्ली में पहुंच गये थे। लम्बा सफर था। कार को नगीना ने भी ड्राईव किया और देवराज चौहान ने भी ।
दोनों होटल में ठहरे। देवराज चौहान नहा-धोकर, नाश्ता करने के बाद नगीना को होटल में रहने को कहकर बाहर चला गया और लंच के वक्त वह वापस लौटा।
"कहां गये थे आप ?" नगीना ने पूछा ।
“महाजन के बारे में मालूम करने।" देवराज चौहान बैठते हुए बोला- “पता ठीक है। महाजन वहीं रहता है। उसने राधा नाम की लड़की से तीन-चार महीने पहले ही शादी की है।”
नगीना ने सोच भरे ढंग से सिर हिलाया।
“तुम लंच के लिए ऑर्डर दो। मैं हाथ-मुंह धोकर आता हूं।"
बीस मिनट पश्चात् ही दोनों लंच ले रहे थे ।
देवराज चौहान का चेहरा बता रहा था कि वो गहरी उलझन में फंसा है।
“आप कुछ खास ही सोच रहे हैं ?" नगीना ने पूछा ।
“हां। महाजन हमारे सामने है। लेकिन वो इन्सान किसी भी हालत में मोना चौधरी का पता नहीं बतायेगा ।"
“उसे दौलत का लालच दीजिये। वो "
“नगीना!" खाने के दौरान देवराज चौहान के होंठों पर गम्भीर की मुस्कान उभरी- "क्या जगमोहन दौलत के लालच में किसी को मेरा पता बता सकता है।"
"हरगिज नहीं। असम्भव।” नगीना दृढ़ता भरे स्वर में कह उठी।
“यही बात महाजन पर लागू होती है। मोना चौधरी के साथ उसका कुछ ऐसा ही सम्बन्ध है।" देवराज चौहान ने नगीना के चेहरे पर निगाह मारी- "महाजन से मोना चौधरी के बारे में जानने के लिए हमें साम-दंड-भेद का इस्तेमाल करना पड़ेगा। चालाकी से ही हम लोग मोना चौधरी का पता-ठिकाना जान सकते हैं।"
“वो कैसे ?”
“जो मैंने सोचा है, उसके मुताबिक इस काम में तुम्हें आगे आना होगा।" देवराज चौहान गम्भीर था।
“आप कहिये तो सही कि मुझे क्या करना है।" लंच के दौरान देवराज चौहान, नगीना को बताने लगा कि उसने क्या करना है।
“आपने जैसा कहा है। मैं वैसा ही करूंगी। यकीन कीजिए। अपने काम में सफल भी रहूंगी।" नगीना ने दृढ़ता भरे स्वर में कहा।
“महाजन इतना बेवकूफ नहीं है कि तुम्हें आसानी से सफल होने दें। सावधान रहना।"
नगीना ने देवराज चौहान को देखा, फिर हौले से सिर हिला दिया।
***
शाम के चार बज रहे थे ।
राधा लंच के पश्चात् एक घंटे की नींद लेकर जागी थी। हाथ-मुंह धोने के पश्चात् थोड़ा-सा मेकअप किया। गाऊन उतारकर साड़ी डाली। शीशे में देखा। भारतीय नारी की पूर्णतया सुन्दरता लग रही थी वो । गांग में सिन्दूर की लम्बी रेखा जैसे उसकी पवित्रता की छवि पर मोहर लगा रही थी ।
महाजन दोपहर को बारह बजे गया था और पक्का वायदा करके गया था कि शाम तक लौट आयेगा फिर उसे बाहर घुमाने ले जायेगा। शाम ढलने में बेशक अभी देर थी। परन्तु राधा अभी से ही तैयार होकर बैठ गई थी। खुद को तसल्ली भरी निगाहों से राधा ने शीशे में निहारा ।
तभी कालबेल की आवाज गूंजी।
“कौन आ गया।" राधा शीशे के सामने से हटती हुई बड़बड़ाई-सफाई वाली तो सुबह ही चली गई थी। वो जो वाल की अंग्रेजी पढ़ाने आती है। उसका तो फोन आ गया था कि यो आज नहीं आयेगी। अब कौन आ गया।"
इसके साथ ही राधा कमरे निकली और दूसरे कमरे के दरवाजे के पास जा पहुंची।
उसी वक्त फिर बेल बजी।
"जरा भी सब्र नहीं यहां के लोगों को भला सोचो मैं क्या फुर्सत में बैठी हूं कि एक बार में बेल बजे और मैं झट से दरवाजा खोल दूं। दूसरे को तो लोग खाली बैठा ही समझते।" इसके साथ ही राधा ने दरवाजा खोला।
सामने नगीना खड़ी थी। चेहरे पर घवराहट और पसीना नजर आ रहा था। कमीज-सलवार में थी वो। आगे के बाल उलझे से माथे पर आ रहे थे। राधा के दरवाजा खोलते ही उसने एक-दो बार पीछे की तरफ देखा।
“यस वटवट वॉट यूं।" राधा कह उठी- “कौन हो तुम? किससे मिलना है?"
“बहन!" नगीना घबराई सी, हाथ जोड़कर कह उठी- "मेरे पीछे एक वदमाश पड़ा है। भगवान के लिए मुझे बचा लो। बहुत कठिनता से अब तक उससे बचती आ रही हूं।"
"बदमाश ?” राधा ने हर तरफ नजरें दौड़ाईं-“कहां है बदमाश ?”
“यहीं है।" नगीना ने पीछे देखा फिर राधा को-“शायद छिप गया है मुझे तुम्हारे घर के दरवाजे पर खड़ा देखकर। पहले उसने मेरे मां-बाप को मार दिया। अब मेरी जान लेना चाहता है।"
"अन्दर आ-जा बहन।" राधा उसे रास्ता देती हुई तीखे स्वर में कह उठी-“वो जितना भी बड़ा बदमाश हो उससे तो मैं अकेले ही निपट लूंगी।"
नगीना भीतर आ गई।
राधा ने दरवाजा बंद कर लिया।
“आराम से बैठ तू। मेरे होते हुए डरना नहीं।"
“पा-पानी मिलेगा?" नगीना सूखे होंठों पर जीभ फेरती हुई कह उठी।
“पानी क्या, खाना-पीना-सोना भी मिलेगा। बैठ-बैठ तू।" कहने के साथ ही नगीना किचन की तरफ बढ़ गई।
नगीना के होंठ सिकुड़े। छोटे से ड्राईंगरूम में नजरें दौड़ाने लगी।
फौरन ही राधा पानी ले आई। “तू अभी तक खड़ी है।" राधा उसे पानी का गिलास थमाती हुई वोली- "बैठ जा। यहां तेरे को किसी तरह का कोई खतरा नहीं। वो बदमाश आया तो सिर तोड़ दूंगी कवीले से वास्ता रखती थी मैं उसका खतरनाक आदमियों से लड़ना आता है मुझे।"
नगीना पुनः अपने चेहरे पर घबराहट के भाव ले आई थी। वो सिर हिलाते हुए वैठी और एक ही सांस में पानी का गिलास खाली करके टेवल पर रख दिया।
“चाय बनाऊं या कुछ देर में ?” राधा ने पूछा।
“अभी नहीं।”
“ठीक है।" राधा उसके सामने बैठती हुई बोली- "जब तू कहेगी, तब चाय बनाऊंगी। ये वता वो बदमाश कौन है और उसने तेरे मां-बाप को क्यों मारा। तेरे को क्यों मारना चाहता है ?”
“मैं नहीं जानती।” नगीना लम्बी-लम्बी सांसें लेने लगी- "मेरे पापा से उसकी कोई बात रही होगी। अचानक ही उसने ये सब किया और मेरे पीछे पड़ गया। मैं जान बचाती हुई भाग रही हूं।" “उसे तो मेरा पति देख लेगा। वो-"
“पति ?”
“नीलू ।” राधा इस तरह बोली जैसे महाजन तोप हो- “वो बहुत बहादुर है। मैं तो उसे मिनटों में ही चित्त कर देती हूं लेकिन वो बड़े से बड़े बदमाश के भी काबू में नहीं आता। पछाड़ देता है उसे ।”
“लेकिन जो मेरी जान लेना चाहता है। वो बहुत खतरनाक है। तुमने नाम सुना होगा उसका?"
क्या नाम है ?” “देवराज चौहान | वो बहुत बड़ी-बड़ी डकैतियां करता है। सब जानते हैं उसे ।"
“मैंने तो नहीं सुना।
“तो नीलू भी जानता होगा। ठीक कर देगा उसे । आने दे नीलू को।" राधा विश्वास के साथ कह उठी।
“अगर तुम्हारा पति उसका मुकाबला न कर पाया तो ?" “तो मोना चौधरी उसकी गर्दन तोड़ देगी।"
“मोना चौधरी ? ये कौन है ?"
“कमाल है! तू नहीं जानती मोना चौधरी को। वैसे नीलू तो कहता है मोना चौधरी को बहुत सारे लोग जानते हैं और वो किसी से डरती नहीं। उसके आगे देवराज चौहान कहां टिकेगा। मोना चौधरी ने तो तांत्रिक गौणा और देवता शम्बूझा को भी खत्म कर दिया था। जिससे सारी बस्ती के लोग थर-थर कांपते थे।"
“तांत्रिक गौणा-देवता शम्बूझा ? ये कौन हैं ?"
"मैं इन्हीं की बस्ती की तो हूं। वहीं से लाकर नीलू ने मेरे से ब्याह किया।" इसके साथ ही राधा ने अपनी बस्ती के बारे में बताया।
इन सब बातों को जानने के लिए पढ़ें 'रवि पॉकेट बुक्स' में पूर्व प्रकाशित अनिल मोहन का मोना चौधरी सीरीज का उपन्यास "खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे।"
सब कुछ बताने के बाद बोली ।
"मोना चौधरी मेरी बहन जैसी है। वो मेरा ख्याल रखती है। नीलू तो डरता है उससे । मोना चौधरी ने मुझे कह रखा है कि अगर नीलू तेरे को कुछ कहे मुझे फोन कर देना। मैं सीधा कर दूंगी उसे। लेकिन क्या करूं। नीलू मुझे कुछ कहता ही नहीं। मोना चौधरी से शिकायत करूं भी तो क्या ?”
“मोना चौधरी को बुलाकर तुम मेरी सहायता कर दो।" नगीना जल्दी से कह उठी।
“तुम्हारी सहायता ?”
“वो मोना चौधरी, देवराज चौहान से मुझे बचा लेगी।"
“उसकी तुम फिक्र मत करो। नीलू को आ जाने दो। वो सब ठीक कर लेगा।”
“कहीं वो बदमाश न आ जाये। तुम मोना चौधरी को - ।”
“ मैंने पहले ही कहा है। मेरे होते हुए तुम डरो मत । वैसे भी मैं मोना चौधरी को इस तरह फोन नहीं करूंगी। नीलू ने मुझे मना कर रखा है कि किसी के कहने पर मोना चौधरी को फोन नहीं करना। उसके बहुत दुश्मन हैं।” राधा भोलेपन से भरे स्वर में कह उठी- “नीलू की तो मैं हर बात मानती हूं।"
नगीना समझ गई कि राधा, मोना चौधरी को फोन नहीं करने वाली ।
“तुम मुझे फोन नम्बर दे दो। मैं हाथ जोड़कर मोना चौधरी से सहायता - ।"
“फोन नम्बर तुम्हें देना हो तो क्या मैं फोन नहीं कर सकती।" राधा ने उसी लहजे में कहा-“तुम घबराओ मत। नीलू के आते ही सब ठीक हो जायेगा।"
नगीना को समझते देर न लगी कि राधा की बातों में भोलापन अवश्य है लेकिन समझदारी की कोई कमी नहीं है।
“बाहर देख लो कहीं वो देवराज चौहान बाहर ही न खड़ा हो।" नगीना सहमे से स्वर में कह उठी।
“उसकी तो ऐसी-तैसी ।” राधा दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए बोली- “वो नजर आया तो मैं उसकी टांग पकड़कर घसीटकर, अन्दर लाकर बाथरूम में बंद कर दूंगी।" कहने के साथ ही दरवाजा खोला और बाहर देखते हुए बोली- "देखने में कैसा है वो ?”
“लम्बा - ऊंचा।” नगीना का स्वर कानों में पड़ा।
"कोई और निशानी बता ।"
“ऐसा कि देखते ही उस पर दिल आ जाता है।" ये सुनते ही राधा फौरन पलटी और सहमी सी बैठी नगीना को देखा।
“तू उसका हुलिया बता रही है या गुणगान कर रही है।"
“उसकी निशानी बता रही हूं कि तुम उसे देखते ही पहचान सको।” नगीना ने कहा।
“तूने नीलू को देखा है ?"
“कौन नीलू ?”
“मेरा मर्द ।”
“नहीं देखा।”
“वो भी ऐसा ही है।” राधा के होंठों पर मुस्कान उभरी- “मैंने तो उसे देखते ही दिल दे दिया था ।”
नगीना ने अपने चेहरे पर घबराहट बनाई रखी। "मजाक मत करो। वो-वो देवराज चौहान, मेरी जान ले लेगा।" राधा ने पुनः बाहर देखा।
“मुझे तो ऐसा कोई इन्सान नजर नहीं आ रहा, जो बाहर खड़ा होकर, इधर देख रहा हो।” इसके साथ ही दरवाजा बंद किया राधा ने- “मैं तेरे लिए चाय बनाती हूं। कुछ खाना हो तो बता दे । डरना छोड़ दे। नीलू आयेगा तो वो देवराज चौहान को डण्डा बना देगा। देवराज चौहान को अगर पता होगा कि ये नीलू का घर है तो वो डण्डा बनकर भाग गया होगा। नींद लेने का मन हो तो एक-दो घंटे की नींद भी ले लेना।"
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