सुनील क्षण भर कमरे में निरीक्षण करता रहा और फिर रमा से बोला "रमा, तुम अपनी कुर्सी को इधर कोने में ले आओ।" -


रमा कोने में आ गई, सुनील भी वहीं पहुंच गया। सब-इंस्पेक्टर ने जब यह परिवर्तन देखा तो भागता हुआ भीतर आया ।


“आप रमा को वहीं बैठने दीजिये।" - वह बोला । "क्यों ?"


"इन्स्पेक्टर साहब ने ऐसा ही कहा है। रमा को वहीं भेजिये ।"


"यहां क्या फर्क पड़ता है ?"


"मुझे नहीं मालूम।"


"तुम्हें मालूम है। तुम लोगों ने वहां मेज के पास माइक्रोफोन लगाया हुआ है ।"


"यह झूठ है ।"


"तुम इनकार करते हो ।”


सब-इंस्पेक्टर चुप रहा।


"मैं रमा का रिश्तेदार हूं, मुझे उससे अकेले में बात करने का हक है ।"


सब-इंस्पेक्टर कसमसाया, लेकिन वहां से हटा नहीं ।


"अगर तुम रमा को माइक्रोफोन के सामने बैठने पर बाध्य करोगे तो मैं रामसिंह को फोन करने जा रहा हूं।" सुनील ने धमकी दी।


धमकी काम कर गई। सब इंस्पेक्टर हथियार डालता हुआ बोला- "अच्छा जनाब, जो मर्जी कीजिये । हमारी तो दोनों तरह से मुसीबत है, लेकिन आप इतना जरूर याद रखिये की मैंने रमा को अपनी जगह से न हिलने के लिये कहा था। मैंने अपनी ड्यूटी पूरी कर दी है। "


सब-इंस्पेक्टर वहां से हट गया।


"अब शुरू हो जाओ।" - सुनील रमा से बोला "अगर प्रभूदयाल आ गया तो मुश्किल हो जायेगी ।”


"मैं जयनारायण की कोठी पर उससे मिलने गयी थी|"


"क्यों ?"


"क्योंकि मुझे अपने कमरे में तकिये के गिलाफ में सिले हुए पच्चीस हजार रुपये के नोट मिले थे।"


"तुम्हें उस रात से पहले मालूम नहीं था कि वहां नोट छुपे हुए हैं ?"


"सुनील साहब, मैं कसम खाकर कहती हूं मुझे उसी दिन पहली बार नोटों की मौजूदगी का आभास हुआ था ।”


"जिस दिन मैंने तुम्हें ओरिएण्ट ट्रेडिंग कम्पनी से तुम्हारी कार वापस दिलवाई थी, उस दिन तुम पर्स कार में रह


जाने का बहाना करके हमें अकेला छोड़कर वापिस गई थी। तुम क्या ढूंढ रही थी ?”


“अपनी डायरी ।”


"डायरी कहां छुपाई गई थी ?"


"मैं बताना नहीं चाहती।" वह अटककर बोली । "क्यों ?"


"क्योंकि वह अब भी वहीं है । "


"तुम अपने आपको फांसी पर लटकवाया जाना पसंद करोगी ?"


रमा चुप रही।


"तो मैं जो पूछता हूं बताओ... डायरी कहां है ?”


"पिछली सीट के पास बायीं ओर फर्श के नीचे बिछे रबर के नीचे एक खाना है जो आमतौर पर दिखाई नहीं देता है।"


"तुम डायरी में क्या लिखती हो ?"


"सब-कुछ ।"


"सब-कुछ क्या ?"


"जैसे मुझे रुपये कौन देता है ?"


"कौन देता है ?" - सुनील ने उसकी बात काटकर कहा । 


"जयनारायण ।”


"बकवास।" - सुनील को विश्वास नहीं हुआ ।


" मैं सच कह रही हूं।"


"वह तुम्हें रुपया क्यों देता था ?"


"उसे मुझसे और मेरे पिताजी से हमदर्दी थी। असली चोर का पता लगाने के लिये उसके दिमाग में एक स्कीम थी । उसी के अंतर्गत वह मुझे रुपया देता था।"


“क्या तुम्हें कभी यह याद नहीं आया कि जयनारायण भी चोर हो सकता है ?"


"मैं नहीं मान सकती। अगर ऐसा होता तो वह कभी मेरी सहायता नहीं करता ।"


"जो पंद्रह सौ रुपये तुमने मुझे भेजे थे, वह भी तुम्हें जयनारायण से मिले थे ?"


"और कहां से मिलते ?"


"तुमने मुझे कितनी बार पन्द्रह सौ रुपये भेजे थे ?"


"क्या मतलब ?"


"मुझे पंद्रह सौ रुपये दो बार मिले थे।"


"दो बार !" - रमा हैरान होकर बोली- "मैं भला दो बार क्यों भेजती ?"


“तुमने दूसरी बार उन पच्चीस हजार रुपयों में से पंद्रह सौ रुपये नहीं भेजे मुझे ?"


"भगवान कसम नहीं, मैंने तो उन पच्चीस हजार रुपयों को केवल एक बार निकालकर गिना था और मैं उसकी सूचना जयनारायण को देने चली गई थी।"


"फिर ?"


"जब मै कोठी के सामने पहुंची तो मुझे भीतर से आपकी आवाज सुनाई दी थी..."


"तुमने मेरी आवाज पहचान ली थी ?"


“पहले तो मुझे संदेह हुआ था, लेकिन अब जब प्रभूदयाल ने मुझे बताया था कि उस समय आप वहां मौजूद थे तो मुझे विश्वास हो गया था कि मैंने ठीक पहचाना था।"


"फिर ?"


"फिर मैंने सोचा कि शायद जयनारायण आपके सामने मुझसे मिलना पसंद ना करे, इसलिए मैं कोठी के पिछवाड़े जाकर आपके जाने की प्रतीक्षा करने लगी। जब मैंने आपके जाने की आवाज सुनी तो मैंने उसका ध्यान आकर्षित करने के लिये खिड़की का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसी समय मुझे वह किचन के फर्श पर मरा पड़ा दिखाई दे गया और मैं खिड़की से कूदकर भीतर घुस गई।" 


"मेरे जाने के कितनी देर बाद तुम भीतर घुसी थीं ?"


"आपकी कार स्टार्ट होने की आवाज सुनते हीं।"


"मेरे जाने और तुम्हारे भीतर घुसने में लगभग कितने समय का अंतर था ?" - सुनील ने पूछा । उसकी दृष्टि में यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि अगर रमा ने उसे नहीं मारा था तो कत्ल उतने ही समय में हुआ था ।


"मैंने पुलिस को दो मिनट का समय बताया था।"


"पुलिस को बताया था, तो क्या वास्तव में समय दो मिनट नहीं था ?"


"नहीं, केवल तीस सैकेण्ड। मैंने तो आपको सेफ पोजीशन में रखने के लिये पुलिस को अधिक समय बताया था।"


सुनील यह जानकार हैरान रह गया कि रमा उसे हत्यारा समझ रही थी ।


"क्या तुमने पुलिस को यह बताया है कि तुम्हें जयनारायण रुपया देता था ?"


"अभी तो नहीं लेकिन बताना ही पड़ेगा... वे लोग समझते हैं की हत्या मैंने की है ......मुझे प्रभूदयाल कहता है है कि अगर मैं उसकी एक बात मानूं तो वह मुझे बचा सकता है|"


"क्या ?"


"वह कहता है कि अगर मैं यह बयान दूं कि मुझे जयनारायण की कोठी पर आपने बुलाया था और बाद में मुझे खिड़की का ड्रैप गिराकर संकेत भी दिया था, तो मुझे बचा सकता है। "


"अब तुम्हारा क्या इरादा है ?"


क्षण भर वह चुप रही, फिर उसकी आंखें भर आयीं । वह भारी आवाज में बोली- "मिस्टर सुनील... मैं... मैं अभी मरना नहीं चाहती। मुझे उनकी बात माननी ही पड़ेगी ।"


"लेकिन हत्या में सहायता करने के अपराध में सजा तो तुम्हें तब भी होगी।" #


"होगी, लेकिन मौत की सजा नहीं।"


"जयनारायण को मृत पाने के बाद तुम कहां गई थी?"


"मैंने डॉक्टर स्वामी से सम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा की थी ।"


"कैसे ?"


"फोन द्वारा । लेकिन रात को सारी कॉल सरोज सुनती है। उसने मुझे बताया था कि डॉक्टर साहब किसी रोगी को देखने के लिये शहर से बाहर गये हुए हैं। "


“सरोज के विषय में तुम्हारे क्या विचार हैं ?"


"मुझे उसकी शक्ल से नफरत है । "


"और उसे ?"


"उसे भी मेरी शक्ल से नफरत है।"


"डॉक्टर स्वामी से तुम्हारे सम्बन्ध कैसे हैं ?"


"मैं उनकी पूजा करती हूं।"


"फिर भी तुमने उन्हें यह नहीं बताया कि तुम्हें जयनारायण रुपया देता है ।"


"मैंने प्रतिज्ञा की थी, मिस्टर सुनील, कि मैं इस विषय में किसी को कुछ नहीं बताऊंगी और इसीलिए मैं डायरी लिखती थी। अगर मैं कभी अचानक मर जाऊं तो संसार को कम से कम यह मालूम हो जाए कि मैं चोरी के रुपये नहीं खर्च कर रही थी। लोग समझते हैं कि चोरी का सारा रुपया मेरे पिताजी मुझे दे गए हैं । "


"तुमने किसी न किसी को तो डायरी छुपाने की जगह बताई ही होगी ?"


"मैंने डॉक्टर को बताया था। किसी न किसी को तो बताना ही पड़ता वर्ना डायरी वहीं दफन रह जाती और मेरा डायरी लिखने का परपज हीं समाप्त हो जाता ।"


"अच्छा ।" - सुनील ने उठते हुए कहा- "तुम पुलिस को जैसा मर्जी बयान दो, मैंने तुमसे रुपये लिये हैं, मैं तो अपना कर्त्तव्य-पालन करूंगा ही। वैसे मेरी एक नेक सलाह यही है कि तुम सच बोलो।"


सुनील जब अपने फ्लैट में घुसा तो फोन की घंटी बज रही थी। सुनील ने फोन उठाया, रमाकांत था ।


"सुनील ।" - रमाकांत बोला- "बधाई हो । ”


"हां बेटा, बधाई क्यों न हो ?" - सुनील जल कर बोला "यहां गर्दन बचनी दुश्वार हो रही है, इसे बधाई सूझ रही है।"


"साले, तू बीस रुपये जीत गया है । "


"कौन से ?"


"तुमने मेरे से उन नंबरों की लिस्ट के बारे में शर्त नहीं लगाई थी ?"


"लेकिन फैसला कैसे होगा, लिस्ट तो नष्ट हो गई । "