“चार दिसंबर की रात को तुम लोग कहां थे ?” विभा जिंदल ने जब सुधा भंसाली से यह पूछा तो सुधा ने इस तरह और इतनी तत्परता से जवाब दिया जैसे उसे पहले ही से मालूम था कि यह सवाल किया जाएगा और यह भी पहले ही सोचे हुए थी कि जवाब क्या देना है।


जवाब था - - - - “धीरज के आऊट हाऊस पर ।”


“वजह?”


“उसने पार्टी रखी थी ।"


“कैसी पार्टी ?”


“कैसी पार्टी से क्या मतलब ?” वह थोड़ी सकपकाई ।


“मेरा मतलब कोई विशेष ओकेजन था, जैसे धीरज या उसकी पत्नी का बर्थ-डे अथवा मेरिज एनीवर्सरी, या कुछ और ?”


“आप उसे छोटा-सा गेट-टूगेदर कह सकती हैं।"


“कौन-कौन शामिल थे ?”


“मैं, रमेश, धीरज, किरन और..


“किरन ?”


“धीरज की मिसेज । "


“और?”


“अशोक ।”


“और?”


“बस।"


“केवल पांच लोग?”


“वह तीन कपल्स का गेट-टूगेदर था । लेकिन अशोक अकेला आया था | चांदनी तबियत खराब होने की वजह से नहीं आई।”


“तुम्हें अच्छी तरह याद है कि चांदनी नहीं आई थी!” इस सवाल के साथ विभा ने उसकी आंखों में झांका |


“ अजीब बात कर रही हैं आप!” कहते वक्त उसके चेहरे पर हल्की-सी सफेदी थी मगर अपनी बात पूरी मजबूती से कहने की कोशिश की ---- “इतने कम लोगों के गेट-टूगेदर में क्या मुझे यह बात अच्छी तरह मालूम नहीं होगी ! ”


“ रतन और अवंतिका बिड़ला को जानती हो?"


“केवल इतना कि वे भी हमारी तरह देश के एक प्रसिद्ध घराने के बेटे-बहू हैं | अखबरों में पढ़ा कि उनकी हत्या भी लगभग उसी तरह हुई है जैसे रमेश... ।” उसकी आवाज भर्रा गई ।


“वे चार दिसंबर के गेट-टूगेदर में नहीं थे ?”


“अरे!” उसने एक बार फिर हैरत प्रकट की ---- “मैंने बताया कि हमारी उनसे कोई व्यक्तिगत जानकारी नहीं थी । फिर वे..


“संजय कपाड़िया और मंजू कपाड़िया ? ”


“य... ये कौन हुए ?”


“क्या तुम नहीं जानतीं कि वे भी तुम्हारी ही तरह देश के एक प्रसिद्ध घराने के बेटे-बहू हैं?"


“नहीं। मैंने उनका नाम नहीं सुना । "


“क्या हुआ था वहां?”


“ ऐसे गेट टूगेदर में होता ही क्या है !” वह बहुत संभल-संभलकर जवाब दे रही थी ---- “खाना-पीना, तंबोला और डांस आदि ।”


“ये सब कितने बजे तक चला ?”


“दो बजे तक । ”


“ उसके बाद तुम लोग घर लौट गए!”


“ और कहां जाते ?”


“अशोक साथ ही निकला था या कुछ पहले


निकल गया था ? ”


- “बीस पच्चीस मिनट पहले निकला था।”


“वजह?”


“ चांदनी का फोन आया था । ”


“क्या कहा था उसने ?”


“ सुना तो नहीं था हमने । अशोक ने ही बताया था कि चांदनी ने जल्दी आने को कहा है सो, मैं निकल रहा हूं।"


“चांदनी ने उसे कहां बुलाया था ?”


“कहां बुलाने से क्या मतलब ? घर ही बुलाया होगा!”


“बकौल अशोक, उस रात उसने तुम लोगों से झूठ बोला था । चांदनी के पार्टी में न आने की वजह उसकी तबियत खराब होना नहीं बल्कि अपने पिता से मिलने फरीदाबाद जाना थी। वहां से लौटते वक्त उसने अशोक को आश्रम चौक पर बुलाया था । "


“यह सुनकर मुझे आश्चर्य हो रहा है और.. “और?” “यह सुनकर भी कि चांदनी अपने पापा से मिलने गई थी ।” “कारण?” “उसके पापा तो उससे रिश्ता ही तोड़ चुके थे।” “यानी तुम इस बात को जानती हो ?” “सभी दोस्त जानते हैं।” “तब तो उसके पापा का नाम भी पता होगा ?” “हां | उनका नाम कामता प्रसाद है ।” “उस रात कामता प्रसाद से फोन पर रमेश की बात हुई थी ?” “ रमेश की बात कामता प्रसाद से ?” सुधा जरूरत से कुछ ज्यादा ही चौंक पड़ी ---- “ये क्या कह रही हैं आप? रमेश भला कामता प्रसाद से बात क्यों करेंगे? उनका मतलब ही क्या हुआ उनसे? मेरे ख्याल से तो हममें से कोई कभी उनसे मिला तक नहीं था। चांदनी के पापा के रूप में बस नाम भर सुना था उनका ।”


“पार्टी के दरम्यान तुम बराबर रमेश के साथ थीं?” “हां।” “एक मिनट के लिए भी जुदा नहीं हुईं ?” “जुदा होने से मतलब?”


“थोड़ी-बहुत देर के लिए रमेश पार्टी छोड़कर कहीं गया हो!” “हां, गए तो थे लेकिन मुश्किल से पौने घंटे में वापस आ गए थे ।” “कहां गया था?” “उनके मोबाइल पर कोई फोन आया था जिसके बाद उन्होंने कहा कि नारायणा स्थित फैक्ट्री में थोड़ी प्रॉब्लम है। उसे सॉल्व करके फौरन आ रहे हैं। तब तक हम लोग इंज्वॉय करें।”


" ऐसा कहकर वह चला गया ?"


“जी।”


“कितने बजे की बात है ये?”


“करीब ग्यारह बजे की ।”


“ पौने बारह बजे लौटा ?”


“करीब-करीब ।”


“ और सारी गड़बड़ इसी बीच हुई । ”


“कैसी गड़बड़ ?”


“बब्बन, शब्बन और शूरमा को तो जानते होंगे आप?” विभा एकाएक उसी कमरे में मौजूद भैरोसिंह भंसाली से मुखातिब हुई ।


अचानक ही अपने से किए गए सवाल के कारण भैरोसिंह भंसाली हड़बड़ा-से गए----“कौन बब्बन, शब्बन और शूरमा ?”


“आपकी फरीदाबाद वाली फैक्ट्री के वर्कर ।”


“ओह, अच्छा! आप उनकी बात कर रही हैं!" जैसे अचानक ही उनका दिमाग वहां पहुंचा ---- “लेकिन उनका जिक्र यहां..


“इस वक्त वे पुलिस की गिरफ्त में हैं।”


“क्यों? क्या कर दिया उन्होंने ?”


“चार दिसंबर की रात को उन्होंने कामता प्रसाद को किडनेप किया था । वही कामता प्रसाद जिनका अभी जिक्र चल रहा था । "


“चांदनी के पिता ?”


“जी।”


“ पर उनका उनसे क्या मतलब ?”


“ उनसे ऐसा करने के लिए आपके बेटे ने फोन पर कहा था । ”


“क... क्या बात कर रही हैं आप?” भैरासिंह भंसाली से पहले वहीं मौजूद उनकी मिसेज कह उठीं - --- “हमारा बेटा भला ऐसा क्यों कराएगा? सुधा ने अभी-अभी कहा, उसका कामता प्रसाद से..


“इसमें बहस की कोई गुंजाइश नहीं है।” विभा जिंदल ने उनकी


बात काटते हुए कहा- “हमारे पास उन तीनों के बयान भी हैं और उनका वह मोबाइल भी जिसमें रमेश द्वारा की गई कॉल्स का विवरण है। कामता प्रसाद का कहना ये है कि उन तीनों ने उसी मोबाइल पर उनकी बात रमेश से कराई| रमेश ने चांदनी से।”


“च... चांदनी से ?”


“ उनके मुताबिक चांदनी से उनकी बात केवल इसलिए कराई गई थी ताकि उसे यकीन हो जाए कि उसके पापा इस वक्त रमेश के आदमियों की गिरफ्त में हैं। उन्हें मार डालने की धमकी देकर शायद वह उससे कोई काम निकालना चाहता था । "


“ पर अभी-अभी तो आपने कहा कि चांदनी अपने पापा से..


“यह बात उसने अशोक से कही थी, लेकिन वास्तव में वहां नहीं गई। ठीक उसी तरह जैसे रमेश ने सुधा से नारायणा वाली फैक्ट्री पर जाने के लिए कहा लेकिन वहां नहीं गया । "


“तो फिर कहां गया था?"


“इस बारे में तो खैर अभी कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन इतना तय है कि कामता प्रसाद द्वारा बताई गई घटना घटी है और उसी टाइम के बीच घटी है जितने टाइम रमेश पार्टी से गायब रहा। उसने अपनी पत्नी से झूठ बोला, चांदनी ने पति से मतलब दोनों कहीं मिले और उनके बीच कुछ ऐसा हुआ जिसके कारण रमेश को चांदनी से अपनी कोई बात मनवाने के लिए उस पर प्रेशर डालना पड़ा । वह प्रेशर उसने उसके पिता को किडनेप करके डाला ।”


“ और हमें यह भी पता है कि उसने चांदनी पर प्रेशर डालकर क्या करवाया ?” रोष भरे लहजे में गोपाल मराठा कह उठा।


“क... क्या करवाया ?” मारे हैरत के भंसाली का बुरा हाल था ।


और फिर ।


गोपाल मराठा को कोई रोक नहीं सका।


विभा भी नहीं ।


गुस्से और जुनून में फंसा वह सबकुछ बताता चला गया।


सुनते-सुनते उन तीनों का मुंह खुला का खुला रह गया था।


चेहरों पर सिर्फ और सिर्फ हैरत और अविश्वास के भाव एक दूसरे से कुश्ती लड़ रहे थे। मराठा के चुप होने के बाद कमरे में काफी देर तक सन्नाटा छाया रहा।


फिर टूटे-से भंसाली बोले---- “अब हमारे बेटे पर चाहे जो, चाहे जो चार्ज लगाता रहे । वह बेचारा तो अपना पक्ष रखने आने से रहा । हमारी समझ में नहीं आ रहा कि बकौल सुधा जिस रतन बिड़ला को ये लोग जानते तक नहीं थे उसकी लाश लेकर वह चांदनी को छंगा-भूरा के पास क्यों भेजेगा? क्यों उसकी हत्या के जुर्म में चांदनी को फंसाने की कोशिश करेगा? और फिर बाद में रमेश ने चांदनी से वह डायरी क्यों लिखवाई जिसमें बकौल आपके उसने झूठ-मूट खुद को रतन और अवंतिका की ही नहीं बल्कि छंगा- भूरा की मौत का भी दोषी बताया ? हजार सवालों का एक सवाल ये है कि अगर यह सब सच है, सारा दोष हमारे बेटे का ही था तो उसकी हत्या किसने कर दी और वह करीब-करीब उसी ढंग से क्यों की गई जिस ढंग से अवंतिका और रतन की, की गई हैं।”


“निश्चितरूप से आपका अंतिम सवाल लाख रुपए का है और इसका जवाब ये है कि शायद रमेश भी किसी वजह से किसी के प्रेशर में था । ठीक उसी तरह जिस तरह चांदनी रमेश के प्रेशर में थी | मेरे कहने का मतलब ये है कि चांदनी से जो काम लिया गया उससे वह काम लेने के लिए हत्यारा खुद सामने नहीं आया बल्कि इसके लिए उसने रमेश का इस्तेमाल किया और जब उसे लगा कि हम रमेश तक पहुंचने वाले हैं तथा उसके जरिए उस तक भी पहुंच सकते हैं तो उसने इस कड़ी को ही खत्म कर दिया यानी रमेश की हत्या कर दी । ”


भैरोसिंह भंसाली के चेहरे पर थोड़ी राहत के भाव आए।


“आपके द्वारा उठाए गए बाकी सवाल भी बेहतरीन हैं।” विभा कहती चली गई ----“वे ही सवाल हमारे दिमागों में भी घुमड़ रहे हैं। अगर अभी तक हमें उनके जवाब नहीं मिले हैं तो उसका सबसे बड़ा कारण ये है कि इस किस्से से जुड़े ज्यादातर लोग झूठ बोल रहे हैं। उन्हीं झूठों में आपकी यह बहू, सुधा भंसाली भी शामिल है।”


“म... मैंने ?” सुधा तमक उठी ---- “मैंने क्या झूठ बोला ?”


“यह कि तुम रतन और अवंतिका बिड़ला को नहीं जानतीं।”


“अ... अरे! इसमें भला क्या झूठ हो गया ?”


“तीन हत्याएं एक ही तरीके से हुईं । मतलब उनका कातिल भी एक है और कत्ल की वजह भी एक । सो जाहिर है कि मरने वाले तीनों लोगों का आपस में कोई न कोई संबंध जरूर रहा होगा!”


भैरासिंह भंसाली चुप ।


“इसमें कोई शक नहीं कि चांदनी रतन की लाश को छंगा - भूरा के पास रमेश के प्रेशर में लेकर गई थी । क्या इससे साबित नहीं होता कि रतन बिड़ला का रमेश से कोई न कोई संबंध जरूर था?”


भैरासिंह भंसाली अब भी चुप ।


“ और आपकी ये बहूरानी कह रही हैं कि रतन और अवंतिका बिड़ला से इनका कोई संबंध नहीं था !”


“हो सकता है रमेश का कोई संबंध रहा हो ।” सुधा अपनी जान बचाती नजर आई-- “मगर मेरी नॉलिज में वह नहीं था ।”


“मैं ये नहीं मान सकती । पति-पत्नि को एक-दूसरे के अधिकांश परिचितों की जानकारी होती है। वे केवल उन संबंधों को आपस में शेयर नहीं कर पाते जिन्हें अवैध संबंध कहा जा सकता है ।”


“मेरा बेटा किसी से अवैध संबंध बनाने वाला नहीं था ।” मिसेज भंसाली के मुंह से मां की ममता बोली ।


“अर्थात् रमेश का रतन और अवंतिका बिड़ला से जो भी संबंध था, सुधा को उसकी जानकारी है लेकिन ये बता नहीं रही ।”


सुधा के चेहरे पर हवाईयां उड़ती नजर आने लगीं।


“ बता दे बेटा ।” मिसेज भंसाली ने सुधा से कहा ---- “अगर तुझे कुछ मालूम है तो बता दे। उससे रमेश के हत्यारे को ढूंढने में इन लोगों को मदद ही मिलेगी ।”


“क्या बता दूं मांजी ?” वह रोने को तैयार हो गई - “जब मुझे कुछ मालूम ही नहीं है तो क्या बता दूं?”


“यही तो।” विभा ने कहा ---- “यही तो समझ में नहीं आ रहा कि इस किस्से से जुड़े लोग लगातार झूठ क्यों बोल रहे हैं?”


“और किसने झूठ बोला ?” भैरोसिंह भंसाली ने पूछा ।


“संजय कपाड़िया झूठ बोल रहा है। मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि उसकी कार गुलमोहर से नहीं चुराई गई । ”


“ उसे इस केस से किस आधार पर जोड़ रही हैं आप?”


“संजय और रतन दोस्त थे । एक दोस्त की लाश ठिकाने लगाने के लिए दूसरे दोस्त की गाड़ी चुराई गई, यह कुछ ज्यादा ही बड़ा संयोग है। इतना बड़ा कि मुझसे हजम नहीं हो रहा । "


“ओह!”


“अवंतिका ने तो हैरतअंगेज झूठ बोला । मेरे ख्याल से उसकी स्थिति भी रमेश से अलग नहीं थी। शायद वह भी हत्यारे द्वारा ब्लैकमेल होने के कारण ही झूठी रिपोर्ट लिखवाने के लिए बाध्य हुई । वरना कोई यूंही थाने में जाकर ये गलतबयानी नहीं कर देगी कि उसका पति उसके साथ था और उसे फलां हुलिए के गुंडों ने किडनेप किया है। उसे भी रमेश की तरह ठीक उस वक्त कत्ल कर दिया गया जब हम उस तक पहुंचने वाले थे मतलब जैसे ही हत्यारे को लगता है कि हम फलां के जरिए उस तक पहुंचने वाले हैं, वह तुरंत उसे खत्म कर देता है । "


“पर आप मुझे उस कड़ी से क्यों जोड़ रही हैं?"


“संजय यह साबित नहीं कर पा रहा है कि चार दिसंबर की रात को वह अपनी पत्नी के साथ कहां था, इसलिए मुझे डाऊट है कि वे भी तुम्हारे गेट-टूगेदर में ही थे। जबकि तुम..


“बड़ी अजीब बात कर रही हैं आप! दिल्ली इतना बड़ा शहर है । जो कोई यह साबित नहीं कर पाएगा कि चार दिसंबर की रात को वह कहां था, उसे हमारे गेट-टूगेदर में शामिल मान लेंगी ?”


“बेस अपराध में इस्तेमाल हुई उसकी गाड़ी है ।”


इस बार सुधा कुछ बोली नहीं।


“मेरी बात समझने की कोशिश करो सुधा ।” विभा जैसे उसे तोड़ डालना चाहती थी - - - - “मुझे लगता है कि तुम्हारा पूरा ग्रुप किसी से ब्लैकमेल हो रहा है । मुमकिन है तुम्हारी स्थिति भी यही हो । अगर ऐसा है तो डरो मत । हमें खुलकर बताओ क्या बात है? यहां कोई भी बाहर का आदमी नहीं है। जो कहोगी इसी कमरे तक सीमित रहेगा।"


“प... पता नहीं आप क्या कहे चली जा रही हैं?” वह अजीब-सी बौखलाहट भरी अवस्था में कह उठी---- “मैं किसी से ब्लैकमेल नहीं हो रही । किसी का कोई प्रेशर नहीं है मुझ पर। मैं आपको जो भी बता रही हूं, अपने संज्ञान के मुताबिक सच बता रही हूं।"


विभा ऐसी मुद्रा में नजर आई जैसे अफसोस हो कि सुधा सच क्यों नहीं बोल रही । उस मुद्रा में कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि वातावरण में गायत्री मंत्र का जाम गूंज उठा।


उसने कॉल रिसीव करके मोबाइल कान से लगाया । दूसरी तरफ वाले की बात सुनी और और इतना ही कहा ----“ओह!”


दूसरी तरफ से पुनः कुछ कहा गया ।


“जी | मैं वहीं पहुंच रही हूं।" कहने के बाद उसने मोबाइल वापस ।


जेब में रखा और बोली ---- “आओ मराठा ।"


“कहां?” गोपाल मराठा ने पूछा ।


“एक लाश मिली है।" कहने के साथ वह दरवाजे की तरफ बढ़ गई ---- “तुम्हें शिनाख्त करनी होगी । ”


यमुना के सूखे रेत पर पड़ी थी वह पूरी तरह नग्न । कुरूप अवस्था में सिर पर किसी घातक चोट का निशान था । जगह-जगह से उसके गोश्त को मांसाहारी मछलियों ने खा रखा था। इस कदर कि कई जगह से तो हड्डियां भी चमक रही थीं ।


गले में रेशम की वैसी ही डोरी की माला थी जैसी रमेश के गले में पाई गई थी और विभा के अनुमान के मुताबिक उसमें अवंतिका के कपड़े बंधे थे । पेट का कुछ हिस्सा भी मछलियां खा चुकी थीं।