ऊपर का रास्ता बंद होते ही देवराज चौहान और मोना चौधरी ठिठक गए । बाहर से जो थोड़ी-बहुत रोशनी आ रही थी, वो आनी बंद हो गई और वहां घुप्प अंधेरा छा गया । हाथ को हाथ सुझाई न दे रहा था। ऐसे में सीढ़ी का नजराना कैसे संभव हो सकता था ।
"कुछ भी नजर नहीं आ रहा ।" देवराज चौहान के स्वर में सोच के भाव थे ।
मोना चौधरी के कंधों पर मौजूद काली बिल्ली की आंखें अंधेरी में अंगारे की तरह चमक रही थी ।
मोना चौधरी ने कमर में फंसा खंजर निकाला और बुदबुदाई।।
"खंजर रोशनी कर ।"
मोना चौधरी के शब्द पूरे होते ही खंजर में से टॉर्च की तरह तीव्र रोशनी नजर आने लगी । नीचे जाति सीढ़ियां स्पष्ट नजर आने लगी । देवराज चौहान ने मोना चौधरी को देखा फिर हाथ में दबे खंजर को ।
"सीढ़ियां उतरो ।" मोना चौधरी का स्वर गंभीर था ।
देवराज चौहान ने कुछ नहीं कहा और सीढ़ियां उतरने लगा । खंजर से निकलने वाली रोशनी इतनी तीव्र थी कि वो जहां पड़ती, वहां का जर्रा-जर्रा स्पष्ट हो जाता ।
"ये हम कहां जा रहे हैं ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
"मैं नहीं जानता ।" देवराज चौहान का स्वर शांत था ।
"तुम्हें उससे पूछना चाहिए था।"
"मैंने इसकी जरूरत नहीं समझी। तुम्हारी बहन ने कदम-कदम पर मेरी सच्ची सहायता की है। मैं किसी पर विश्वास नहीं करता । जब करता हूं तो फिर अविश्वास नहीं करता । इस बात का मुझे पूरा यकीन है कि बेला कभी भी मुझे बुरे रास्ते पर नहीं डाल सकती।"
मोना चौधरी के होठों पर मुस्कान उभरी।
"बहुत भरोसा है बेला पर ।"
"हां"
"तुमने देखा है उसे ?" मोना चौधरी के होठों पर बराबर मुस्कान थी।
"हां।
"खूबसूरत है वो ?"
"मैं नहीं जानता, खूबसूरत की परिभाषा क्या है ।" देवराज चौहान का स्वर शांत था--- "लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि देखने में मुझे अच्छी लगी। उसके बाद उसके कर्म, कदम-कदम पर मेरी सहायता कर रहे हैं तो मेरे लिए वो बुरी कैसे हो सकती है।
मोना चौधरी ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला कि रुक गई ।
दोनों की निगाहें सीढ़ियों पर सामने थी और सीढ़ियां समाप्त हो रही थी। समाप्त होते ही, आखरी सीढ़ी के पास, लोहे का आदमी, हाथ में तलवार लिए खड़ा था । उसकी आंखें लालसुर्ख सी चमक रही थी और उसका चेहरा इनकी ही तरफ था ।
"ये क्या ?" मोना चौधरी के होठों से निकला ।
देवराज चौहान के होंठ भिंच गए।
उन्होंने आसपास देखा। वो छोटे से कमरे जैसी जगह थी । सीढ़ियां के पार एक रास्ता बाईं तरफ जा रहा था, दूसरा दाईं तरफ ।
"आओ ।" करीब दस सीढ़ियां पार खड़े लोहे के आदमी के होंठ हिले "स्वागत है । कौन से रास्ते पर जाओगे। दाईं तरफ वाले या बाईं तरफ वाले । इस बात का जवाब दिए बिना सीढ़ियां उतरे तो जलकर भस्म हो जाओगे।"
तभी मोना चौधरी के कंधे पर बैठी बिल्ली बोली।
"म्याऊं।"
बेला की फुसफुसाहट देवराज चौहान के कानों में पड़ी ।
"देवा ।"
"हां । "
"यह तुमसे फिर पूछेगा कि कौन से रास्ते पर जाना है । ऐसे में तुमने जवाब देना है दाएं नहीं जाना । बाएं नहीं जाना है। सीधे रास्ते पर जाना है।
"ठीक है।" देवराज चौहान बुदबुदाया ।
"अब क्या करना है ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
लोहे के आदमी के होंठ पुनः हिले ।
"आओ । स्वागत है। कौन से रास्ते पर जाओगे। दाईं तरफ वाले या बाईं तरफ वाले । इस बात का जवाब दिए बिना सीढ़ियां उतरे तो जलकर भस्म हो जाओगे।"
"दांए नहीं जाना है। बांए नहीं जाना है । सीधे रास्ते पर जाना है।" लोहे के आदमी पर निगाह टिकाए देवराज चौहान ने कहा । हाव-भाव में सतर्कता आ गई थी ।
देवराज चौहान के शब्द पूरे होते ही, लोहे के मानव में हलचल हुई । फिर वो सामान्य इंसान की तरह चलकर दीवार के पास खड़ा हुआ ।
"यह क्या हुआ ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
"आओ।"
दोनों ने बाकी की सीढ़ियां तय की और फर्श पर आ गए। वहां पांव रखते ही दाएं-बाएं नजर आने वाले रास्ते बंद हो गए और सामने एक नया रास्ता नजर आने लगा।
दोनों की निगाह मिलीं । चेहरे पर अजीब से भाव थे । फिर सामने देखने लगे। उस रास्ते के पार तीव्र रोशनी नजर आ रही थी ।
"आओ देवा ।" बेला की फुसफुसाहट कानों में पड़ी --- "मिन्नो को साथ ले आओ।"
देवराज चौहान आगे बढ़ा । मोना चौधरी भी। दोनों के उस रास्ते में प्रवेश करते ही वो रास्ता बंद हो गया और वहां घुप्प अंधेरा छा गया । उसी अंधेरे में लोहे का मानव धीमे से चलता हुआ पुनः पहले की तरह, आखिरी सीढ़ी के पास आ खड़ा हुआ।
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यहां करीब तीन कमरों जितना बड़ा हॉल था ।
दो चारपाइयां वहां बिछी हुई थी। बैठने के लिए कुर्सियां और लकड़ी की टेबल मौजूद थी। वहां ताजा हवा थी, परन्तु ताजा हवा कहां से आ रही थी, मालूम नहीं हो पा रहा था, क्योंकि वहां न कोई खिड़की थी और न ही रोशनदान । तीव्र प्रकाश में वहां का जर्रा-जर्रा चमक रहा था ।
मोना चौधरी और देवराज चौहान की निगाहें मुद्रानाथ और बेला पर जा टिकी, जो कि कमरे के बीचोबीच खड़े उन्हें देखते हुए मुस्कुरा रहे थे ।
देवराज चौहान खूबसूरत बेला को तो पहले देख चुका था, परंतु मुद्रानाथ को उसने पहली बार देखा था । मुद्रानाथ उसी रूप में था, जब मोना चौधरी से मिला था । जानने के लिए पढ़ें अनिल मोहन का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'जीत का ताज' सफेद धोती में लिपटा शरीर । गले में मालाएं सिर और दाढ़ी के बाल दूध की भांति सफेद दमकता चेहरा । उम्र का अंदाज लगा पाना संभव नहीं था।
मुद्रानाथ को सामने पाकर मोना चौधरी चौंकी । माथे पर बल पड़ गए ।
तभी बेला मुस्कुराते हुए मोना चौधरी की तरफ बढ़ी ।
"क्यों री मिन्नो। कैसी है तू ?"
मोना चौधरी की उलझन भरी निगाह, बेला पर जा टिकी ।
"पहचाना नहीं क्या?" पास पहुंचकर बेला ठिठकी। मोना चौधरी के कंधे पर प्यार भरा हाथ रखा ।
"कौन हो तुम ?" मोना चौधरी के होठों से निकला।
"मैं बेला हूं । तेरी छोटी बहन । सिर्फ साल भर छोटी हूं और तू मुझ पर हमेशा अपने बड़े होने का रौब झाड़ा करती थी ।" कहकर बेला हौले से खिलखिलाई ।
तभी मोना चौधरी के कंधे पर बैठी काली बिल्ली छलांग मारकर लगाकर नीचे आई और आगे बढ़कर मुद्रानाथ के पैरों में लौटने लगी । मोना चौधरी ने बिल्ली को देखा फिर बेला को ।
"विश्वास नहीं होता तेरे को मेरी बात पर ?" बेला मुस्कुरा रही थी ।
"मेरी कोई बहन नहीं है । फिर... | "
"मैं तेरे पहले जन्म की बात कर रही हूं मिन्नो । इस जन्म की नहीं । " बेला कुछ गंभीर हो उठी--- "तब मैं तेरी बहन थी और सुन, अब झगड़ा नहीं करना । मैं, अपने हाथों से तेरा ब्याह देवा से करवाऊंगी।"
मोना चौधरी ने होंठ सिकोड़कर पास खड़े देवराज चौहान को देखा ।
"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा, तुम क्या कह रही हो ।" मोना चौधरी ने बेला से कहा ।
"बहुत जल्द समझ में आ जाएगा । बापू से नहीं मिलोगी ?" बेला ने मुद्रानाथ की तरफ इशारा किया ।
मोना चौधरी की निगाह मुद्रानाथ की तरफ उठी।
"ये मेरे बापू है ?"
"हां। बीते जन्म में तुम्हारे बापू थे । मुद्रानाथ नाम है इनका । "
"ये मेरे पहले जन्म के बापू नहीं हो सकते ।" मोना चौधरी ने इनकार में सिर हिलाया ।
"क्यों ?"
"ये जब मुझे जंगल में मिले थे तो इन्होंने देवी कह कर मुझे प्रणाम किया था । अगर मैं बीते जन्म की उनकी बेटी होती तो ये मेरे पांवों में प्रणाम क्यों करते।" मोना चौधरी के स्वर में शक के भाव थे ।
बेला मुस्कुराई ।
जवाब दिया मुद्रानाथ ने ।
"तब मैं तुम्हें अपनी बेटी कहता तो तुम कभी भी मुझ पर यकीन नहीं करती बेटी । क्योंकि उस वक्त तुम्हें शक ने घेरा हुआ था कि मैं भी कोई मायावी जादूगर हूं, जो तुम्हें कैद करना चाहता हूं । ऐसे असलियत बताने का क्या फायदा, जिसके बारे में पहले से ही यकीन हो कि सामने वाला विश्वास नहीं करेगा ।" मुद्रानाथ के होठों पर मुस्कान थी--- "और फिर मां-बहन और बेटी को प्रणाम करना, हमारे संस्कारों के विरुद्ध नहीं है । इसलिए देवी कहकर मैंने तुम्हें प्रणाम किया। वैसे भी तुम तिलस्मी नगरी की देवी तो हो ही । "
"मैं देवी?"
"हां । बेशक तुमने पृथ्वी पर जन्म लिया है, परंतु तुम्हारी आत्मा वही है । जो मिन्नो में थी और तो कुदरत का करिश्मा है कि तुम्हारा चेहरा भी वही है । तब तुम सामान्य जीवन, हमारे साथ, परिवार के साथ व्यतीत कर रही थी कि तुम्हें नगरी की कुल देवी की कुर्सी पर बिठा दिया गया । कई अद्भुत शक्तियों की मालकिन बन गई हो तुम । छोटे से घर को छोड़कर महलों में जा पहुंची। नगरी के लोग तुम्हें मिन्नो कम और देवी ज्यादा कहने लगे ।" मुद्रानाथ का स्वर बेहद मीठा था ।
मोना चौधरी के चेहरे पर अजीब से भाव थे।
"तुम लोगों की बातें मेरी समझ से बिल्कुल बाहर है।" मोना चौधरी ने कहा ।
"यही बातें समझाने के लिए तो, तुम्हें यहां बुलाया है ।" मुद्रानाथ मुस्कुराते हुए बोला ।
देवराज चौहान, बेला से बोला ।
"तुम लोग जहां जा रहे हो, वह जगह रहने वाली तो नहीं ?"
बेला के चेहरे पर गंभीरता नजर आई।
"देवा । मिन्नो की गलतियों को हम पिछले डेढ़ सौ बरस से भोग रहे हैं ।" बेला ने गहरी सांस ली ।
"क्या मतलब ?" मोना चौधरी के माथे पर बल उभरे ।
"तुम्हें दालू पर बहुत विश्वास था। हमारे समझाने पर तुम हमें बेवकूफ कहती थी । देवा के साथ लड़ाई में जब तुम घायल होकर मरने की हालत में पहुंच गई तो तुमने दालू को तिलस्म की रखवाली सौंप दी और बापू के, हवाले मेरे हवाले तुमने नगरी की देखभाल सौंप दी । लेकिन दालू का मन तो पापों से भरा हुआ था । वो सिर्फ तिलस्म की रखवाली पर ही कैसे सब्र कर सकता था। उसने षड्यंत्र रच कर हम दोनों की जान लेनी चाही । महल के आदमियों को भी अपनी तरफ कर लिया, का लालच देकर । ऐसे में हम जान बचाकर भागने के अलावा और कर भी क्या सकते थे । तब से मैं और बाबू जान बचाकर भागे फिर रहे हैं और दालू कब से मौके की तलाश में है कि वो हमें खत्म कर सके । यही वजह है कि हमें सावधानी से हर तरह छिपकर रहना पड़ रहा है । "
मोना चौधरी ने अजीब सी निगाहों से देवराज चौहान को देखा ।
देवराज चौहान के चेहरे पर गंभीरता थी ।
"इन बातों पर विश्वास करो मोना चौधरी ।" देवराज चौहान ने कहा--- "मैं भी अपने पूर्व जन्म के परिवार वालों से मिल चुका हूं। मुझे कुछ बातें भी याद आई । हम पृथ्वी से आए हैं, ये सच है और ये भी सच है, जो ये कह रहे हैं । "
"लेकिन ये कैसे कह सकते हैं कि मेरे शरीर में वही आत्मा है जो पूर्व जन्म में थी।" मोना चौधरी बोली ।
"बेटी ।" मुद्रानाथ ने कहा--- "अगर तुम वही मिन्नो न होती तो अपने बुतों से लकीरों वाली चादरें नहीं उतार सकती थी। शुभ सिंह को पत्थर बनाकर दालू ने कैद कर रखा था, तुम उस कैद से मुक्ति न दिला पाती। तिलस्म के कई हिस्सों को तुमने तोड़ा, जिन्हें कुलदेवी मिन्नो ही वापस आकर तोड़ सकती थी और ये तुम्हारी बिल्ली, जब मौत के मुंह में थी तो ये बिल्ली देवा को तुम तक लाए । ताकि तुम्हें बचाया जा सके और मेल करवाया जा सके । दालू ने इसे भी कैद कर रखा था, परन्तु इत्तेफाक से देवा के हाथों, इसके कैद होने का तिलस्म टूट गया और ये आजाद होकर, देवा के साथ हो गई । इंसान तो एक बार धोखा खा सकता है, परंतु जानवर अपने मालिक को पहचानने में धोखा नहीं खा सकता ।"
मोना चौधरी से कुछ कहते न बना।
"मोना चौधरी मैं फिर कहता हूं, इनकी बातों पर विश्वास करो ।" देवराज चौहान बोला।
"लेकिन मैं तो किसी दालू को जानती नहीं और कुछ भी याद नहीं मुझे । ऐसे में...।"
"मिन्नो।" मुद्रानाथ ने शांत स्वर में कहा--- "तेरे को सब कुछ याद दिलाने के लिए तो मैंने यहां बुलाया है । इस वक्त तेरी बहुत जरूरत है नगरी को । दालू ने सिद्धियों युक्त शक्तिशाली ताज के दम पर नगरी का समय चक्र रोक रखा है। इस तरह से नगरी को तबाह करके, संचालन अपने हाथ में ले रखा है। दालू के जुल्मों से नगरी वाले तंग आ चुके हैं । हर कोई दालू से मुक्ति चाहता है, परंतु उसके आगे कोई बोल नहीं सकता । दालू इस वक्त नगरी का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति है, जो भी उसके खिलाफ जाएगा, उसे तबाह कर देगा । सौ बरस पहले गुरुवर से मेरी बात हुई तो उन्होंने कहा, ये सब मिन्नो ही आकर ठीक करेगी और अब तुम आ गई ।"
मोना चौधरी कई सालों तक खामोश रही ।
"क्यों री मिन्नो, तेरे को बापू की बात पर भी विश्वास नहीं जो...।" बेला ने कहना चाहा। "बात विश्वास या अविश्वास ही नहीं है।" मोना चौधरी उलझन में फंसी कह उठी--- 'मैं न तो तुम्हें जानती हूं और न ही बापू को और मुझे ऐसी बातें बताई जा रही है, जो मैंने पहले कभी नहीं---।"
"बेला, मुद्रानाथ की तरफ पलटी ।
"बापू ।" बेला ने कहा--- "पहले मिन्नो को अपना पूर्व जन्म याद आ जाना चाहिए।"
"अवश्य बेटी ।" मुद्रानाथ मुस्कुराया--- "लेकिन पहले इन्हें जलपान तो कराओ । देवा भी साथ है । ये तो जमाई है मेरा। वो बात जुदा है कि रस्में अधूरी रह गई थी।"
देवराज चौहान ने होंठ सिकोड़कर मुद्रानाथ को देखा ।
"कैसे याद दिलाओगे मुझे पूर्व जन्म की बातें ?" मोना चौधरी ने पूछा ।
"अपनी शक्तियों के दम पर ।" मुद्रानाथ ने कहा--- "और जो कमी रह जाएगी, उसे गुरुवर की आज्ञा के अनुसार तुम्हारे में, गुरुवर दी माला डालकर, पूरी कर दी जाएगी ।" बेला ने अपनी शक्तियों के दम पर उनके लिए जलपान की व्यवस्था कर दी ।
जलपान के बाद।
जलपान के दौरान मोना चौधरी के चेहरे पर उलझन बिखरी स्पष्ट नजर आ रही थी। परंतु देवराज चौहान अपेक्षाकृत शांत था । शायद मन ही मन इन सच्चाईयों को स्वीकार कर चुका था ।
मुद्रानाथ ने मुस्कुराकर देवराज चौहान से कहा ।
"इस वक्त हम ऐसी व्यस्तता के दौर से गुजर रहे हैं कि तुमसे अभी बात नहीं कर पा रहे देवा ।"
देवराज चौहान भी मुस्कुराया ।
"मैं इन हालातों को कुछ हद तक समझ रहा हूं । " देवराज चौहान ने कहा ।
मुद्रानाथ ने मोना चौधरी से कहा ।
"मिन्नो मैं तेरे को वहां ले जा रहा हूं जहां तू पहले रहती थी । उस बस्ती में और घर में मैं तेरी मां रौनक देवी और तेरे से एक साल छोटी बेला भी रहती थी । यही घर था हमारा।"
मोना चौधरी की निगाह मुद्रानाथ पर टिकी रही ।
"सब अपनी आंखें बंद कर लो ।"
देवराज चौहान मोना चौधरी और बेला ने अपनी आंखें बंद की तो, मुद्रानाथ भी आंखें बंद करके होठों ही होठों में कुछ बड़बड़ाने लगा।
देवराज चौहान और मोना चौधरी ने अपने शरीरों में हल्का सा झटका महसूस किया ।
उसके बाद तो मुद्रानाथ का स्वर कानों में पड़ा ।
"अब आंखें खोल सकते हो।"
उन तीनों ने आंखें खोली । खुद को उन्हीं कुर्सियों पर मौजूद पाया। परंतु अब वे वहां न होकर किसी बस्ती में थे। लोग आ-जा रहे थे। कोई घोड़े पर सवार था तो कोई पैदल। कहीं बैलगाड़ी जा रही थी तो कहीं घोड़ागाड़ी। बातों का सामान्य सा शोर, उनके कानों में पड़ रहा था ।
देवराज चौहान और मोना चौधरी हैरानी से इधर-उधर देखते हुए कुर्सियों से उठे। बस्ती की सड़कें कच्ची थी । कोई घर पक्का था तो कोई कच्चा । कोई बड़ा घर था तो कोई छोटा |
तभी मुद्रानाथ का स्वर उसके कानों में पड़ा ।
"मिन्नो, इस वक्त तुम उस समय में हो, जब तुम देवी नहीं बनी थी ।"
मोना चौधरी आंखें सिकोड़े इधर-उधर देखने जा रही थी ।
"जाओ।" मुद्रानाथ ने कहा--- "आगे बढ़ो और अपना घर तलाश करो।"
मोना चौधरी ने देवराज चौहान को देखा ।
"देवा हमारे पास ही रहेगा ।"
न समझ में आने वाले भाव चेहरे पर समेटे मोना चौधरी आगे बढ़ी |
मुद्रानाथ, बेला, देवराज चौहान वहीं खड़े रहे।
इधर-उधर देखते हुए कुछ आगे बढ़ने पर मोना चौधरी ने पलटकर देखा तो ठिठक गई । कुछ पीछे जहां वे तीनों खड़े थे, अब कोई भी नहीं था। कहां गए वे तीनों ?
तभी पास से गुजरती बूढ़ी सी औरत उसे देखकर ठिठकी फिर और करीब आ गई ।
"अरी मिन्नो, तू ?" उस बूढ़ी औरत के होठों से हैरत भरा सा निकला ।
मोना चौधरी ने उसे देखा तो उसे लगा जैसे उसका सिर घूम रहा हो ।
"कब आई मिन्नो तू ?"
एकाएक मोना चौधरी को सब कुछ बदला-बदला सा महसूस होने लगा ।
"मौसी तू ।" मोना चौधरी के होठों से निकला और वो खुद नहीं समझ पा रही थी कि ये शब्द उसके मुंह से कैसे निकल रहे हैं। जबकि वो ये भी जानती थी कि सामने मौसी ही है । दो जन्मों के दिमाग आपस मे मिल रहे थे ।
"हाय-हाय, ये क्या मर्दों के कपड़े पहन रखे हैं। लाज नहीं आती तुझे ।" मौसी ने मुंह पर हाथ रखकर कहा--- "तेरे बापू ने तुझे इन कपड़ों में देख लिया तो तेरे को काटकर रख देगा । चल दूसरे कपड़े पहन ले घर जाकर ।"
"तू कहां जा रही है मौसी ?"
"मैं तो लाला की दुकान से चीनी लेने जा रही हूं और सुन ।" मौसी का स्वर धीमा हो गया था--- "घर पर सरसों का साग बना रखा है । तू कपड़े बदल कर आ-जा तब तक घर पहुंचकर तेरे लिए मक्की की रोटी उतार देती हूं।"
"मैं नहीं खाऊंगी मौसी ।" मोना चौधरी ने मुंह बना कर कहा ।
"क्यों री । पहले तो तू...।"
"तू मां को बता देती है और मां मुझे डरती है कि मौसी के यहां से तू खा आती है और घर का खाना बना पड़ा रहता है ।" मोना चौधरी ने शिकायती लहजे में कहा परंतु मस्तिष्क में आंधियां चल रही थी कि वो क्या कह रही है ।
"अच्छा ठीक है । तेरी मां से नहीं कहूंगी । आ जाना तू ।" कहने के साथ ही मौसी आगे बढ़ गई।
मोना चौधरी उसे जाती देखती रही । उसके बाद उसकी निगाहें इधर-उधर गई, फिर वो आगे बढ़ने लगी। जाने क्यों उसे लग रहा था कि ये गलियां, ये मकान-मोहल्ला सब कुछ उसका अपना ही है । अब उसके कदम रास्ते पर इस तरह आगे बढ़ रहे थे, जैसे यहां से रोज का गुजरना हो ।
"मिन्नो ।" तभी एक युवती का स्वर उसके कानों में पड़ा--- "आ गई तू।"
मोना चौधरी ने फौरन गर्दन घुमा कर देखा । कुछ कदमों के फासले पर उसी की हमउम्र युवती खड़ी उसे देख रही थी । मुस्कुरा रही थी और आंखों में आंसू भी थे ।
"सत्तो ।" मोना चौधरी के होठों से बरबस ही निकलना और वो खुद हैरान थी कि ये नाम उसके होठों से कैसे निकल गया--- "कैसी है तू सत्तो । बसंतलाल अब तो तुझे तंग नहीं करता ?"
सत्तो नाम की युवती दौड़ते हुए आई । मोना चौधरी की बांहे खुद-ब-खुद फैलती चली गई । दोनों कसकर गले मिल गई । सत्तो की आंखों में आंसू बह रहे थे । ।
"मुझे तो विश्वास नहीं होता मिन्नो तू लौट आई है ।" सत्तो का भर्राया स्वर उसके कानों में पड़ा।
"मैं आ गई हूं सत्तो । आ गई हूं।" मोना चौधरी के होंठ खुद-ब-खुद ही हिल रहे थे--- "तूने बताया नहीं बसंतलाल अब तो तुझे तंग नहीं करता ।
"नहीं उस दिन तूने उसकी ऐसी ठुकाई की थी कि उसकी बांह भी टूट गई । उसके बाद उसने कभी मुझे टेड़ी आंख से भी नहीं देखा । गुरुवर से विद्या ग्रहण करके तूने बहुत अच्छा किया । अब तो तू योद्धा बन चुकी है। लेकिन कब आई तू वापस ? कहां पर दोबारा जन्म तू लिया । तेरी मां बोलती है कि गुरुवर ने कहा था कि मिन्नो कहीं जन्म लेकर दोबारा यहां आएगी। गुरुवर की बात सच हुई ।"
मोना चौधरी का हाथ उठा । सत्तो की आंखों से बहते आंसू पोछे ।
"सच ही तो कहा था गुरुवर ने ।" मोना चौधरी बोली।
"मां से मिली ?"
"नहीं।" मोना चौधरी के होठों से इस तरह निकला जैसे भूली बात याद आ गई हो --- "आज फिर मां की डांट खानी पड़ेगी। देर करा दी न तूने ।" कहने के साथ ही मोना चौधरी, सत्तो को छोड़कर भाग खड़ी हुई ।
वह उस कस्बे का बड़ा सा मकान था । ठीक सामने खुला-सा आहता पार करके, कमरों के दरवाजे नजर आ रहे थे । बाईं तरफ घोड़ों का अस्तबल था। चार घोड़े अभी भी वहां बंधे नजर आ रहे थे । दाईं तरफ दो भैसें और एक गाय बंधी हुई थी । आहते के ठीक बीचो-बीच आम का काफी बड़ा फैला हुआ पेड़ था । जिस पर कच्चे आम लटकते नजर आ रहे थे।
गेट की बाहरी चौखट पर ही, मोना चौधरी के पांव ठिठक गए । निगाहें भीतर की हर वस्तु पर दौड़ने लगी । सब कुछ अपना था । पहचानती जा रही थी वो। वो मोना चौधरी भी थी और बीते हर पल के साथ मिन्नो भी बनती जा रही थी । एकाएक मोना चौधरी की आंखों में आंसू छलछला उठे।
मोना चौधरी ने पांव आगे बढ़ाया । गेट के भीतर पांव रखते ही उसके शरीर को करंट से भरा जोरों का झटका लगा तीव्र कंपन हुआ और फिर सब थम गया। लेकिन इतने में उसके दिलो-दिमाग में रोम-रोम में पूर्व जन्म की मिन्नो बस गई थी।
दूसरा पांव भीतर रखते ही जैसे वो पूरी तरह पूर्व जन्म की मिन्नो बन गई ।
"मां ।" मोना चौधरी ने जोरों से पुकारा और आम के पेड़ की तरफ दौड़ी । जिसकी मोटीमजबूत शाखा पर रस्सी डालकर झूला डाल रखा था और एक ही झटके में झूले के फट्टे पर जा बैठी।
"मिन्नो ।" भीतर से किसी औरत की चीखने जैसी आवाज आई।
"मां ।" मोना चौधरी के होठों से पुनः तेज पर निकला--- "मुझे भूख लगी है | जल्दी से खाना दे दो। फिर न कहना कि मैं मौसी के घर से खा आई । वैसे भी वहां मक्की की रोटी और सरसों का साग बना है। जल्दी दे दे । नहीं तो मैं चली मौसी के यहां--- हां...।"
तभी भीतर से पचास वर्षीय औरत निकली । जिस्म पर साड़ी डाल रखी थी। सिर पर पल्लू ले रखा था । वह स्वस्थ और सुंदर औरत थी । परंतु इस वक्त उसके चेहरे पर अविश्वास के भाव उतरे हुए थे। चेहरे पर हैरानी का सागर ठाठें मार रहा था ।
"मिन्नो ।" औरत उसके होठों से कंपकंपाता स्वर निकला--- "तू-तू मिन्नो ही है?"
"वाह मां । खाने को मांगा तो पूछती है मिन्नो ही हूं या कोई और ।" झूले पर धीमे-धीमे झूलती मोना चौधरी मजाक भरे स्वर में कह उठी--- "एक-दो सूट सिलवाने को बोल दिया तौ तू कहेगी, मैं तेरी बेटी ही हूं नहीं। कोई बात नहीं मौसी के घर रह लूंगी--- हां "
वो औरत, जो मिन्नो की मां रौनक देवी थी, पास पहुंच कर खड़ी हो गई । आंखों से अभी भी आंसू बह रहे थे । कांपते होठों के साथ वो, मोना चौधरी को देखे जा रही थी ।
मोना चौधरी ने उसे देखा । नजरें मिली । पांव नीचे लगाकर, मोना चौधरी ने झूला रोका और फट्टे से नीचे उतर आई । उसकी आंखें पुनः गीली होने लगी।
"मां ।" मोना चौधरी के होंठो से तड़पता स्वर निकला ।
"मिन्नो। मेरे कलेजे के टुकड़े ।" कहते हुए रौनक देवी ने दोनों बाहें फैला दी।
मोना चौधरी दौड़ी और रौनक देवी की बांहों में समा गई ।
"मां।" मोना चौधरी की आंखों से बहते आंसू तेज हो गए । "बेटी । मेरी जान।"
दोनों जाने कब तक लिपटी खड़ी, आंसू बहाती रही ।
"म्याऊं।"
बिल्ली की आवाज पर जैसे उन्हें होश आया । वे अलग हुई । मोना चौधरी ने देखा, वही काली बिल्ली, झूले के लकड़ी के फट्टे पर बैठी चमक भरी निगाहों से उसे देख रही थी ।
"तू कब आई बेटी ।" रौनक देवी का स्वर अभी भी कांप रहा था ।
"अभी आई हूं मां ।" मोना चौधरी की निगाह रौनक देवी के आंसुओं भरे चेहरे पर गई । उसके आंसू पोंछती मोना चौधरी तड़प भरे स्वर में कह उठी--- "रो मत मां । अब तो मैं आ गई हूं।"
"हां-हां, अब मैं क्यों रोऊंगी।" कहते हुए रौनक देवी की आंखों से आंसू बहने लगे--- "मेरी बेटी वापस आ गई है । डेढ़ सौ बरस हो गए तेरे इंतजार में । गुरुवर कभी झूठ नहीं बोलते। ठीक ही तो कहा था उन्होंने। मिन्नो आएगी। दोबारा जन्म लेकर, उसी रूप में तू सबके सामने आएगी।"
मोना चौधरी के मस्तिष्क में दो दिमाग चल रहे थे । एक उसका अपना और दूसरा मिन्नो का। जैसे एक जिस्म में दो जानें हों ।
"अपने बापू से मिली ?"
"हां मां | बेला भी साथ थी और वो-वो देवा भी तो साथ है । "
"देवा भी आया है ?" रौनक देवी के चेहरे पर खुशी और गहरी नजर आने लगी ।
"हां मां, देवा भी है।"
"तो वो तेरे साथ क्यों नहीं आया ?"
"बापू ने उसे रोक लिया । बापू को ही पता होगा कि देवा को मेरे साथ क्यों नहीं भेजा ।"
"आ भीतर आ । यहीं खड़ी रहेगी क्या ?"
"मां । भीतर बाद में मैं तो चली मौसी के यहां मौसी मिली थी । उसने साग बना है, कह रही थी मक्की की रोटी उतार दूंगी । जल्दी से आ-जा । मुझे भूख भी जोरों से लगी है ।" मोना चौधरी जल्दी से बोली ।
"खाना मैं बनाती... | .["
"न मां ।" मोना चौधरी ने चंचलता से कहा--- "जो मजा मौसी के हाथ का खाने में है, वो मजा कहीं भी नहीं । "
"अभी तो तेरे को जी भरकर देखा भी नहीं। दो बातें भी नहीं की और तू...।"
"बस मां गई और आई । मक्के की रोटी और सरसों का साग, मौसी के हाथ का खाकर ।" कहने के साथ ही मोना चौधरी पलटी और वापस गेट के तरफ भागी।
जबकि मोना चौधरी का मस्तिष्क कह रहा था कि इतने बरसों बाद लौटी है, मां के पास रहना चाहिए, परंतु चंचल मिन्नो का मस्तिष्क कह रहा था कि सरसों का साग और मक्की की रोटी खा कर फिर मां से जी भरकर बातें करेगी।
"आराम से खा । आराम से । साग और मक्की की रोटी कहीं भागी नहीं जा रही । देसी घी और डाल ले । तभी तो साग का मजा आएगा ।" मौसी की आंखें गीली थी । वो चूल्हे के पास बैठी, मक्की की रोटी बना रही थी और पास ही बिछी बोरी पर आलथी-पालथी मारे मोना चौधरी जल्दी-जल्दी खाने में लगी थी।
मौसी की बातें सुनकर मोना चौधरी हाथ हिलाकर कह उठी ।
"देख मौसी, तेरे को कितनी बार कहा है, खाते हुए मुझे मत टोका कर । जो कहना हो या तो पहले कह ले या फिर बाद में बोला कर । अब आराम से खाने दे---हां।" तवे पर रोटी पलटकर, मौसी ने मोना चौधरी को देखा ।
जरा भी नहीं बदली । कौन कहता है कि तू दोबारा जन्म देकर आई है ।" मौसी का स्वर भर्रा उठा ।
जवाब में मोना चौधरी सिर्फ मुस्कुराकर रह गई ।
"कभी तुझे मौसी की याद आती थी ?" मौसी ने ऊंचे स्वर में पूछा ।
"नहीं।"
"क्या कहा।"मौसी का स्वर तेज हो गया--- "मेरे हाथ की खा-खाकर इतनी बड़ी हुई और कहती है कि मेरी याद नहीं आई। फिर क्या अपनी मां रौनक की याद करती थी ।"
"किसी की भी नहीं।" मोना चौधरी का मुंह तेजी से चल रहा था--- "याद आती भी कैसे ? मैं तो मर गई थी। दोबारा जन्म लिया । बिता जन्म तो भूल गई । "
"तो अब मौसी की रोटी की याद कैसे आ गई ?"
मोना चौधरी का चलता मुंह रुका । दुख भरी निगाहों से मौसी को देखा। "मैं नहीं जानती मौसी, कैसे सब कुछ याद आ गया । लेकिन अभी भी पूरा याद नहीं आया । कई बातें अभी भी धुंधली-धुंधली सी हैं । "
"अच्छा अच्छा खाना खा । सब याद आ जाएगा । तेरा बाप तेरे को सब याद दिला देगा । अब वी कई विधाओं का ज्ञाता है। लेकिन याद रख, तूने अब दालू को माफ नहीं करना ।"
"दालू ?" मोना चौधरी के चेहरे पर उलझन नजर आने लगी ।
"खाना तो खा । मेरा मुंह देखे जा रही है । "
मोना चौधरी पुनः खाने में लग गई
"और सुन।" मौसी अपनी आदत के मुताबिक पुनः कह उठी--- "बात-बात पर गुस्सा करना छोड़ दे । बच्ची नहीं रही तू । तेरे गुस्से ने ही सब कुछ बरबाद कर दिया था ।"
"मैंने क्या किया था मौसी ?"
"नहीं याद तेरे को ?"
"नहीं।"
"मौसी की बनाई मक्की की रोटी और सरसों का साग याद रह गया । अपने मतलब की बात तो सब याद रखते हैं । जो भी पूछना हो अपनी मां से पूछना। उसे बोल आई है, मेरे पास आ रही है । "
"हां और मौसी, मां ने जरा भी नहीं डांटा ।" खाते-खाते मोना चौधरी के होठों से निकला ।
"अब वो डांटने लायक रह ही कहां गई है ? डेढ़ सौ बरस से तेरे इंतजार में बैठी थी । पास में पति भी नहीं और बेला भी नहीं । वो दोनों तो दालू के डर से छिपे फिर रहे हैं । मुद्रानाथ या बेला यहां कभी आते भी होंगे तो छिपकर ।" मौसी ने थके स्वर में कहा ।
"मौसी।" मिन्नो ने एकाएक कहा--- "लस्सी नहीं बनाई ?"
"नहीं ।" कल तेरी मां से दूध लाना भूल गई थी। मुझे मालूम होता कि तू आ रही है तो तीन घड़े भर देती लस्सी के तेरे लिए। कल आना, पेट भरकर लस्सी पिलाऊंगी।"
मोना चौधरी सिर हिलाकर खाने में व्यस्त हो गई ।
"कितना खाएगी। पेट में दर्द मत कर बैठना।" मौसी ने मुंह बनाकर कहा ।
"मौसी फिर बोली तू । मुझे आराम से खाने दे।" मोना चौधरी ने मुंह फुलाकर कहा ।
"खा-खा पेट फाड़कर खा । मेरा क्या जाता है ।" मौसी ने हाथ हिलाकर कहा--- फिर मुंह को थोड़ा सा उसकी तरफ करके बोली--- "गुरुवर कहते थे, देवा भी आएगा । वो आया क्या ?"
"हां।"
"मिला ?"
"हां मौसी, मिला ?"
"हूं । तो॒ तू देवा से भी मिल चुकी है । अब एक बात कान खोलकर सुन ले । देवा से ब्याह करना है तो कर ले । बेला को कोई एतराज नहीं। बेला अब सुख-शांति चाहती है । "
"मैं देवा से शादी नहीं करना चाहती थी ?" मोना चौधरी ने मौसी को देखा ।
"देख तो, बड़ी भोली बनती है । जाकर अपनी मां से पूछना ये बातें ।" मौसी ने तीखे स्वर में कहा ।
"मौसी अच्छा किया जो साग में मिर्च कम डाली ।" मोना चौधरी बोली ।
"लेकिन तू तो मिर्च तेज खाती है । "
"तभी तो कह रही हूं अच्छा किया जो कम डाली । बाकी कि मिर्च तेरी बातों में जो भरी पड़ी है।" मोना चौधरी ने मुंह बनाकर कहा--- "खाना भी खिलाये जा रही है और तीखी बातें भी किए जा रही है । "
"मैं तो ऐसी ही बातें करती हूं।" मौसी ने हाथ नचाकर कहा--- "मत आया कर खाने । एक तो बनाकर खिलाऊं और ऊपर से तेरे नखरे उठाऊं ।"
"मैं तो आऊंगी खाने। तुम नखरे उठाओ या न उठाओ, मुझे क्या ?"
"जुबान तेरी वैसी ही चलती है । दोबारा जन्म लेकर भी जुबान को काबू में नहीं रखा । " मौसी की आंखें भर आई ।
मोना चौधरी ने मौसी को देखा। मुस्कुरा पड़ी ।
"एक बात कहूं मौसी ।"
"कह ।"
"तू भी नहीं बदली। वैसे ही मुंह पर बातें मारती है । "
मौसी ने गीली आंखों को पोंछा ।
"मैं कैसे बदलूंगी। " मौसी का स्वर भारी था --- - "मैं तो वही हूं । वही जन्म है मेरा । मैं कहां मरी जो दोबारा पैदा पैदा होकर बदल जाती । दालू ने नगरी का समय चक्र रोक रखा है। सब कुछ अपने काबू में कर रखा है। किसी को मरने नहीं देता। किसी को जीने नहीं देता। तूने कभी भी नीलसिंह की बात नहीं मानी ।"
मोना चौधरी की निगाह तुरंत उस टूटे-फूटे मकान पर घूमी।
"नील कहां है । नजरे नहीं...।" अगले ही पल उसने होंठ बंद कर लिए । महाजन का चेहरा आंखों के सामने नाच उठा । फकीर बाबा महाजन को ही नीलसिंह कहता था ।
मौसी की निगाहें मोना चौधरी पर जा टिकीं ।
"याद आ गया ना नीलसिंह कहां है ।" मौसी का स्वर भर्रा उठा था--- "तू तो उसे अपने साथ ही ले मरी थी । खुद तो मरी ही मरी । उसे भी ले डूबी । एक ही तो बेटा था मेरा। तेरे झगड़े में वो भी पिस गया था ।"
मोना चौधरी के चेहरे पर सोच के भाव थे । निगाहें मौसी पर थी ।
"मुझे तो कुछ याद नहीं ।"
"आदमी तो मेरा पहले ही नहीं था । बेटा भी तूने हाथ से गंवा दिया।" मौसी की आंखें गीली हो गई ।
"मौसी। नील भी आया है मेरे साथ |"
"क्या ?" मौसी हक्की-बक्की रह गई --- "न... नील-नील भी आया है म-मेरा...।"
"हां मौसी । वो बिल्कुल ठीक है ।"
"कहां है नील, बता कहां है वो । एक बार उसे छाती से लगा...।"
"मैं नहीं जानती, नगरी में इस वक्त वो कहां है । लेकिन इसी नगरी में है। मैं, तुम्हें उससे अवश्य मिलवाऊंगी मौसी ।" मोना चौधरी ने विश्वास भरे स्वर में कहा ।
"सच कह रही है । कहीं मौसी का दिल रखने के लिए तो नहीं कह रही तू ।" मौसी की आवाज कांप उठी ।
"सच कह रही हो मौसी । बिल्कुल सच - हां ।" कहते हुए खाना समाप्त करते हुए मोना चौधरी उठी-"अब मैं चली। मां इंतजार कर रही होगी। देर हो गई तो फिर डांट पड़ेगी ।" कहने के साथ ही मोना चौधरी भागते हुए बाहर निकल गई।
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मोना चौधरी, रौनक देवी के साथ, कमरे में चारपाई पर लेटी थी । मोना चौधरी बार-बार रौनक देवी को बांहों में भींच लेती। दोनों बेहद खुश नजर आ रही थीं। उनकी बातें कुछ इस तरह हो रही थी
"मां।" मोना चौधरी के होठों से निकला--- "कल बेला को बोल देना कि सब्जी वो बना ले । आकर मैं रोटियां उतार दूंगी--- हां। सब्जी बनाने का वक्त नहीं मिलेगा मुझे ।"
"क्यों-कहां जाना है तूने ?" रौनक देवी ने पूछा ।
"सत्तो के साथ जाना है। अब ये मत पूछने लग जाना कि कहां जाना है। मेरे अपने भी कुछ काम है । बताने जरूरी तो नहीं कि हर बात का ढोल पीटती फिरूँ ।" मोना चौधरी कह उठी ।
"तेरे बापू से बोल दूंगी, मिन्नो ऐसा कहती है । तब बापू को जवाब देना।"
मोना चौधरी खुद नहीं जानती थी कि ये बातें उसके मुंह से कैसे निकल रही है।वह खुद को रोकना चाहती थी परंतु उसके दिलो-दिमाग में मौजूद मिन्नो, उसके अस्तित्व पर हावी हो चुकी थी।
"बापू से मत कहना ।" मोना चौधरी ने जल्दी से कहा।
काली बिल्ली कमरे के कोने में आंखें बंद किए पड़ी थी।
"तो बता कहां जाना है ?"
"बापू से तो नहीं कहेगी ।" मोना चौधरी बोली।
"नहीं कहूंगी।"
"पास के गांव में कल सुबह नौ बजे दंगल हो रहा है। कुश्ती का मुकाबला है। एक तरफ देवा है और दूसरी तरफ परसू। उनका मुकाबला देखने जाना है।" मोना चौधरी बोली ।
"उस दंगल को देखने के लिए बेला मुझे पहले ही कह चुकी है।"
मोना चौधरी के चेहरे पर तीखे भाव उभरे ।
"बेला को कोई जरूरत नहीं । दंगल देखने जाने की । वो घर बैठकर सब्जी बनाए । "
"एक बात कहूं तेरे से।" रौनक देवी का स्वर धीमा हो गया ।
"क्या ?"
"बेला, दंगल देखने नहीं, देवा को देखने जा रही है। मैं सब जानती हूं ।" रौनक देवी बोली।
देवा को देखने ?" मोना चौधरी के माथे पर बल पड़ गए । वो उठ कर बैठ गई।
"हां। देवा कभी घर आता है तो बेला के पांव जमीन पर नहीं टिकते । बेला, देवा को चाहती है ।'
"मां । होश में रह कर बात कर।" मोना चौधरी का चेहरा गुस्से से लाल होने लगा--- "और बेला को समझा दे कि देवा की तरह आंख भी न करे । नहीं तो मेरे से बुरा कोई नहीं होगा ।"
रौनक देवी भी उठ बैठी और हैरानी से मोना चौधरी को देखने लगी ।
"ये तू क्या कह रही है मिन्नो ? "
"क्यों, मेरी बात सुनकर तू क्यों तड़प उठी मां ।" मोना चौधरी गुस्से में आ चुकी थी।
रौनक देवी ने गहरी निगाहों से मोना चौधरी को देखा ।
मोना चौधरी को लग रहा था जैसे ये बातें, वो पहले भी कर चुकी है ?
"देवा से तेरी कोई बात है क्या ? सच बता, मैं बेला से भी बात करूंगी ।"
"देख मां । देवा मुझे अच्छा लगता है। गुरुवर के यहां युद्ध कौशल की हमने एक साथ शिक्षा ली है और मैं जब भी ब्याह करूंगी, देवा से ही करूंगी हां। एक बार सुन ले, लाख बार सुन ले । बापू का डर मत दिखाना, इस बारे में । देवा के मामले में तो मैं बापू से भी साफ-साफ कह दूंगी। बेशक वो छड़ी से ही क्यों न मुझे पीटें । " रौनक देवी के चेहरे पर गंभीरता नजर आने लगी ।
"देवा ने कभी तेरे से ब्याह के बारे में बात की है ?"
"शरीफ लोग क्या ब्याह की बात खुद करते हैं । उनके बड़े-बूढ़े करते हैं । बात भी हो जाएगी सुना है की नगरी में कुलदेवी के चुनाव का आयोजन होने वाला है। कुलदेवी बनने के लिए मैं उस आयोजन में हिस्सा लूंगी । उसके बाद मेरा रिश्ता लेकर, देवा के यहां जाना ।"
"कुलदेवी बनने के लिए तू आयोजन में हिस्सा लेगी ?" रौनक देवी ने हैरानी से कहा ।
"हां ।"
"पागल हो गई है तू । इस आयोजन में तो बड़े-बड़े जमींदार, पटवारी और रसूख वालों की बेटियां आएंगी। हम लोगों की क्या बिसात उनके सामने जाने की । चुपचाप घर बैठ ।" "मां । ये रिवाज है कि नगरी की कुलदेवी बनने के लिए, कोई भी युवती हिस्सा ले सकती है और कुलदेवी वही बन सकती है, जो परीक्षा में खरी उतरे । इसमें पागल बनने की क्या बात आ गई।"
"मैं नहीं जानती इस बारे में।" रौनक देवी ने खड़े स्वर में कहा--- "अपने बापू से बात करना । कुलदेवी बनेगी तू नगरी की । जमीन पर रहकर, आसमान पर बैठने का सपना देखती है।"
मोना चौधरी के मस्तिष्क में उलझन-दर-उलझन घर करती जा रही थी। इस बात का उसे स्पष्ट एहसास हो रहा था कि कभी- पहले इन बातों के दौर से वो गुजर चुकी हैं ?
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