अगले दिन योगिता से ही विकास को मालूम हुआ कि उस रोज सुबह दस बजे महाजन के फूल चुने जाने की रस्म अदा होनी थी जिसमें शामिल होने के लिए सुनयना और योगिता ने भी जाना था ।
रिवाल्वर वापिस महाजन की कोठी में पहुंचाने के लिए वह अच्छा मौका साबित हो सकता था ।
साढे नौ बजे योगिता श्मशान घाट के लिए रवाना हो गई।
तुरन्त बाद विकास शबनम के पास उसके कमरे में पहुंच गया ।
शबनम उसे नहा धोकर तैयार हो चुकी मिली। उसने विकास से उस रोज नहीं पूछा कि वह कहां से आया था । शायद वह उसके बताये बिना ही समझ गई थी कि पिछली रात भी उसने योगिता के कमरे में गुजारी थी । उसकी सूरत से यूं लग रहा था जैसे वह योगिता के सन्दर्भ में कोई चुभने वाली बात विकास को न कहने के लिएस दृढ-प्रतिज्ञ थी ।
शबनम के उस रवैये से विकास को राहत महसूस होनी चहिए थी लेकिन न जाने क्यों उसका दिल गुनाह के एक अनजाने अहसास से भर गया ।
शबनम के कमरे से उसने विक्रान्त होटल में मनोहर लाल को फोन किया ।
मनोहर ने उसे बताया कि पुलिस के बैलिस्टिक एक्सपर्ट ने विकास वाली गोली को घातक गोली से मिलाकर देखा था।
यानी कि कत्ल महाजन की रिवाल्वर से ही हुआ था ।
और वह रिवाल्वर उस वक्त विकास के पास थी ।
" पुलिस ने मुझे ताकीद की है" - मनोहर बोला - "कि रिवाल्वर के बारे में गुमनाम काल आते ही मैं फौरन उन्हें खबर करू ।"
"मैं रिवाल्वर वापिस रखने अभी जा रहा हूं" - विकास बोला - "इस काम में कामयाब होते ही मैं तुम्हें खबर कर दूंगा । लेकिन मेरी काल आने से पहले तुम पुलिस से रिवाल्वर के बारे में कोई बात न करना ।"
"ठीक है ।"
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
"मेरे लायक कोई सेवा ?" - शबनम बोली ।
"मुझे यहां से कार तक पहुंचाओ" विकास बोला "तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की साथ होगी तो हर किसी का ध्यान तुम्हारी तरफ होगा ।" - -
"जैसे कल योगिता तुम्हारे साथ थी तो सबका ध्यान उसकी तरफ रहा था ।" - शबनम के मुंह से निकल ही गया ।
विकास खामेश रहा ।
"चलो।" - शबनम तुरन्त गम्भीरता से बोली ।
हैट को तिलांजलि दे दी । वहां से जाने से पहले विकास ने सूट बदल लिया और अब वह खुले गले की पीली कमीज, ब्राउन पतलून और उससे मैच करता हुआ चैक का कोट पहने हुए था ।
फिर वह शबनम के साथ हो लिया ।
शबनम उसे निर्विघ्न कार तक ले आई।
"थैंक्यू ।" - विकास बोला ।
“मैं भी साथ चलूं ?” - वह व्यग्र भाव से बोली- "मुझे कोई काम तो है नहीं ।"
"नहीं। अगर मैं पकड़ा गया तो तुम भी फंस जाओगी।"
"मैं कह दूंगी मुझे नहीं मालूम था कि पुलिस को तुम्हारी तलाश थी ।"
विकास सोचने लगा ।
"मैं "कह दूंगी" - वह आशापूर्ण स्वर में बोली- "कि तुम मुझे एक बार में मिले थे। यानी कि मेरी तुम्हारी कोई पुरानी वाकफियत नहीं थी। कोई साबित कर भी नहीं सकता कि हमारी पुरानी वाकफियत है । विकी, मुझे साथ ले चलो । एक से दो भले । अगर कोई गड़बड़ हो भी गई तो मैं सम्भाल लूंगी । मैंने इससे कहीं बड़ी-बड़ी गड़बड़े सम्भाली हुई हैं । विकी, प्लीज । "
“ओ के ।" - वह निर्णयात्मक स्वर में बोला - “चलो ।”
"थैंक्यू ।" - शबनम बोली और यूं झपट कर कार में सवार हुई जैसे उसे डर हो कि कहीं विकास का इरादा न बदल जाये ।
विकास भी कार में सवार हुआ ।
वे महाजन की कोठी की तरफ रवाना हो गए ।
रास्ते में विकास ने उसे बताया कि क्यों वह उस वक्त महाजन की कोठी खाली होने की उम्मीद कर रहा था ।
शबनम खामोश रही ।
वे महाजन की कोठी पर पहुंचे ।
कोठी सुनसान लग रही थी ।
लेकिन कोठी के कम्पाउण्ड में सुनयना की काली एम्बैसेडर खड़ी थी ।
"सुनयना की गाड़ी तो खड़ी है" - विकास चिन्तित भाव से बोला - "क्या वह श्मशान घाट नहीं गई होगी ?"
"शायद वह किसी और की गाड़ी में बैठकर गई हो ।” शबनम ने राय पेश की।
"शायद !" - विकास संदिग्ध भाव से बोला ।
वह गाड़ी आगे निकालकर ले गया ।
काफी आगे जाकर उसने कार रोकी ।
"तुम कार में ही बैठना ।" - वह शबनम से बोला ।
शबनम ने सहमति में सिर हिला दिया ।
उसने कार के डैशबोर्ड में बने खाने में से रिवाल्वर निकाली उसे पतलून की बैल्ट में खोंसा और कार से बाहर निकला।
वह फिर कोठी के सामने पहुंचा ।
इस बार भी उसने सबसे पहले भीतर जाकर कालबैल ही बजाई । जब कोई उत्तर न मिला तो उसने चाबी लगाकर ताला खोला और दरवाजे को भीतर को धक्का दिया ।
दरवाजा न खुला ।
दरवाजा भीतर की तरफ से भी बन्द था ।
उसके चेहरे पर उलझन के भाव आये ।
वह घूमकर पिछवाड़े में पहुंचा ।
पिछवाड़े के दरवाजे का ताला भी बन्द था ।
विकास ने वही चाबी उस ताले के छेद में फिराई लेकिन वह ताले में घूमी तक नहीं ।
उसने अपने आसपास निगाह दौडाई ।
पिछवाड़े में कोई अड़ोसी-पड़ोसी उसे देख नहीं रहा था । उसने अपनी जेब से एक निहायत पतले फल वाली रेती निकाली । वह रेती उसके धन्धे का एक औजार थी जिसे वह हर क्षण अपने पास रखता था । उसे रेती की सहायता से वह ताला खोलने की कोशिश करने लगा ।
आधे घन्टे की अनथक मेहनत के बाद ताला खुला ।
वह भीतर दाखिल हुआ । तब तक ग्यारह बज चुके थे ।
वह महसूस कर रहा था कि ताले के चक्कर में बहुत वक्त बरबाद हो गया था । अब उसने जो करना था बहुत जल्दी करना था ।
वह महाजन के बैडरूम में पहुंचा ।
उसने रिवाल्वर को अच्छी तरह पोछ कर उस पर से उंगलियों के निशान साफ किये और उसे मेज के निचले दराज में यथास्थान रख दिया । फिर उसने दराज बन्द करके उसके हैण्डल पर भी रूमाल फेर दिया ।
बैडरूम में फोन था ।
उसने वहीं से मनोहर लाल को फोन किया ।
“काम हो गया है" - वह बोला - "अब पुलिस को खबर कर दो कि पहले जैसी ही गुमनाम काल तुम्हारे पास फिर आई है और तुम्हें बताया गया है कि घातक रिवाल्वर महाजन के घर में उसके बैडरूम की मेज के निचले दराज में मौजूद है । ओ के ?"
"ओ के ।"
"मैं शाम को तुम्हें फोन करूंगा। तब तक अगर पुलिस ने सुनयना को गिरफ्तार कर लिया हुआ तो मैं अपने आपको पुलिस के हवाले कर दूंगा ।"
"ठीक है । तुम ठीक छ: बजे फोन करना ।”
"ओ के ।"
उसने रिसीवर रख दिया और उस पर से अपनी उंगलियों के निशान पोंछे ।
फिर वह वहां से कूच करने की नीयत से आगे बढा ।
दरवाजे के पास पहुंचते की एकाएक वह थमक कर खड़ा हो गया ।
नीचे से पहले पिछवाड़े का दरवाजा खुलने की और फिर चलते कदमों की अवाज आई।
विकास कान लगा कर सुनने लगा ।
"शुक्रिया, गौतम साहब" - नीचे से सुनयना की आवाज आई - "जी नहीं, मैं बिल्कुल ठीक हूं।... नहीं, नहीं । मैं थोड़ी देर आराम करना चहती हूं। आपने बहुत जहमत उठाई मेरी खातिर । ... शुक्रिया ... नमस्ते ।
फिर दरवाजा बन्द होने की आवाज आई ।
फिर एक कार स्टार्ट होने की आवाज ।
नीचे के गलियारे में पड़ते कदमों की आवाज सीढियों की तरफ बढती मालूम हो रही थी ।
फिर सीढियां चढ़ते कदमों की आवाज आई ।
विकास दरवाजे से पीछे होकर उसकी बगल की दीवार के साथ चिपक गया ।
उसका दिल एकाएक बड़ी जोर से धड़कने लगा था ।
कदमों की आवाज ऊपर पहुंची ।
सुनयना ऊपर मौजूद अन्य तीन कमरों में से भी किसी में जा सकती थी - विकास ने सोचा उसके ऐसा करने पर उसे यहां से खिसक जाने का मौका मिल सकता था ।
लेकिन ऐसा न हुआ ।
वह सीधी उसे कमरे में घुस आई ।
विकास के समीप से गुजरती हुई वह सीधी मेज तक पहुंची । उसने निचला दराज खोला और भीतर से रिवाल्वर निकाल ली ।
"यह तो वापिस आ गई !" - उसके मुंह से निकला । विकास दबे पांव दरवाजे की ओर लपका ।
उसका अभी एक ही पांव कमरे से बाहर गलियारे में पड़ा था कि पता नहीं कैसे सुनयना को उसकी वहां उपस्थिति का आभास मिल गया ।
“खबरदार !" - वह चिल्लाई ।
विकास ठिठक गया ।
“वापिस घूमो ।”
वह घूमा ।
दोनों की निगाहें मिली ।
"ओहो !" - सुनयना ने उसे फौरन पहचान लिया - "तुम तो वही आदमी हो जिसने मेरे पति का खून किया था |"
"म.. मैं... मैं..."
"मिमियाओ नहीं।" - वह हाथ में थमी रिवाल्वर उसकी ओर तानती हुई बोली- "और हाथ सिर से ऊंचे, खूब ऊंचे उठा लो ।"
उसने हाथ ऊपर न उठाये । वह उन्हें अपने दोनो पहलुओं में लटकाये रहा । उसने बड़ी गौर से सुनयना को देखा ।
उस वक्त वह एक सादा, सफेद परिधान पहने थी, न उसके चेहरे पर मेकअप था और न जिस्म पर कोई जेवर लेकिन वह फिर भी कोई मातमजदा औरत नहीं लग रही थी । अपनी उस पोशाक में भी वह देवताओं की तपस्या भंग कर देने वाले हुस्न की मलिका लग रही थी ।
फिर वह उसकी तरफ बढा ।
"खबरदार !" - सुनयना ने उसे चेतावनी दी । उसकी उंगलियां और मजबूती से रिवाल्वर पर कस गई ।
तब विकास उससे केवल तीन कदम परे था । वह ठिठक गया ।
“अगर तुम समझते हो" - वह चेतावनी भरे स्वर में बोला- "कि मैं तुम पर गोली चलाने से हिचकिचाऊंगी तो एक कदम और बढ़ा कर देखो ।"
विकास ने एक बार अपने सामने तनी रिवाल्वर की नाल में झांका और फिर बोला- "यह लो।"
उसने एक कदम आगे बढाया ।
सुनयना ने दांत भींच लिए और रिवाल्वर का घोड़ा खींचा।
रिवाल्वर एक हल्की सी क्लिक की आवाज करके रहगई।
तुरन्त सुनयना के चेहरे पर आशंका के भाव आये ।
उसके दोबारा घोड़ा दबा पाने से पहले ही विकास ने हाथ बढा कर रिवाल्वर उसके हाथ से झटक ली ।
"मुझे नाल में से दिखाई दे गया था कि नाल के आगे खाली चैम्बर था" - वह मुस्कराता हुआ बोला- "लेकिन अब भरा हुआ चैम्बर नाल के सामने आ चुका था । एक बार और घोड़ा दबातीं तो मेरा काम हो जाता । फालोड ?"
“क्या चाहते हो ?" - वह भयभीत भाव से बोली ।
“कुछ भी नहीं । मुझे तो अफसोस है कि मेरा तुमसे आमना-सामना हुआ । बहुत जल्दी लौट आई तुम ?"
"तुम मेरे घर में क्या कर रहे हो ?"
"तुम्हारे पति की यह रिवाल्वर यहां वापिस रखने आया था । मैं चाहता था कि मेरे यहां से निकल जाने के बाद पुलिस यहां पहुंचे लेकिन लगता है अब मुझे अब मुझे पुलिस के आने तक यहीं रूकना पड़ेगा । अब अगर मैं यहां से चला गया तो तुम जरूर पुलिस के आने से पहले ही रिवाल्वर यहां से गायब कर दोगी।"
"तो रिवाल्वर यहां से तुमने गायब की थी !" - वह उसे घूरती हुई बोली- "क्यों किया तुमने ऐसा ? मेरे पति ने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा ?"
"क्या मतलब ?"
"तुमने उसी की रिवाल्वर चुराकर उसका कत्ल किया । इसी से जाहिर होता है कि कत्ल का इरादा तुमने बहुत पहले से बनाया हुआ था। इसका मतलब यह भी है कि कत्ल के पीछे वजह वह नहीं थी जो अखबार में छपी है । तुमने योजनाबद्ध तरीके से मेरे पति का कत्ल किया और फिर कत्ल का इल्जाम मुझ पर थोपने की कोशिश की । मैं पूछती हूं क्यों ? ऐसा क्यों किया तुमने ?"
"तुम यह समझ रही हो कि मैं कत्ल से पहले यहां से रिवाल्वर चुराकर ले गया था ?”
" और नहीं तो क्या ?"
"मैंने यह रिवाल्वर यहां से कल चुराई थी । और वह भी किसी का कत्ल करने के लिये नहीं बल्कि इसमें से एक टैस्टबुलेट चलाने के लिये ताकि मुझे यह मालुम हो पाता कि तुम्हारे पति का कत्ल इसी रिवाल्वर से हुआ था या नहीं । अब मुझे मालूम है कि कत्ल इसी रिवाल्वर से हुआ था । अब मैं इसे यहां वापिस रखने आया था ताकि यह पुलिस के हाथ लग पाती । असल बात यह है । तुम मुझे कौन सी पट्टी पढाने की कोशिश कर रही हो ?"
"तुम यह कहना चाहते हो" - वह अविश्वास पूर्ण स्वर में बोली- "कि तुमने मेरे पति का कत्ल नहीं किया।"
"कत्ल की जिम्मेदारी यूं मुझ पर लादने से बात नहीं बनेगी मेम साहब । कत्ल तुमने किया है । कत्ल तुम्हारे पति की रिवाल्वर से हुआ है ओर वह तुम्हारे जितनी सहूलियत से और किसी को उपलब्ध नहीं थी ।"
"मैंने कत्ल नहीं किया" - वह तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोली-" और रिवाल्वर कत्ल से पहले ही घर से गायब थी । कत्ल से पहले जिस दिन मेरे पति को धसकी भरी चिट्ठी मिली थी उस दिन उसने रिवाल्वर को यहां खूब तलाश किया था । रिवाल्वर यहां नहीं थी । "
"कैसे होती ? तुमने इसे पहले ही कहीं छुपा जो दिया था।"
“लेकिन...”
"सुनो, सुनो । अगर तुम समझती हो कि पुलिस तुम्हारी इस कहानी पर विश्वास कर लेगी कि मैं तुम्हारे पति की हत्या के लिए रिवाल्वर चुराने की खातिर हत्या से पहले रिवाल्वर चोरी करने तुम्हारे घर में घुसा था तो यह तुम्हारी खामख्याली है। पुलिस की थ्योरी यह है कि मैंने ठग के तौर पर गिरफ्तारी से बचने के लिए तुम्हारे पति को गोली मारी थी । इस बात पर वे कभी विश्वास नहीं करेंगे कि तुम्हारे पति के शो रूम में मैं गया ही उसकी हत्या करने था जब कि रिवाल्वर का हत्या से पहले चोरी होना इसी बात की तरफ इशारा होगा। यूं पूर्व-नियोजित ढंग से हत्या किसी उद्देश्य की खातिर की जाती है जब कि तुम्हारे पति की हत्या का मेरे पास कोई उद्देश्य नहीं । उसकी मौत से पांच मिनट पहले तक मैंने जिन्दगी में कभी महाजन की सूरत तक नहीं देखी थी । लेकिन मेम साहब तुम्हारे पास अपने पति की हत्या का उद्देश्य था ।"
"मेरे पास क्या उद्देश्य था ? "
"क्या तुम्हारा पति तुम पर चरित्रहीनता का लांछन लगा कर तुम्हें तलाक नहीं दे रहा था ?
"तुमने वाकई मेरे पति का कत्ल नहीं किया ?"
"मैंने नहीं किया । और यह बात तुमसे बेहतर किसी को नहीं मालूम । इसलिए नहीं मालूम क्योंकि अपने पति का कत्ल तुमने किया है ।"
"मैंने नहीं किया । तुम मुझ पर जबरन यह इलजाम थोप रहे हो । बिल्कुल वैसे ही जैसे यह इलजाम पहले बख्तावर सिंह पर और फिर तुम पर थोपा जा रहा था ।"
"हम तीनों में सबसे बढ़िया कैन्डीडेट हर लिहाज से तुम हो। "
वह खामोश रही ।
“अगर तुम अपराधी नहीं हो तो तुमने पुलिस के सामने यह झूठ क्यों बोला कि शनिवार को यानी कि हत्या वाले दिन तुम सारा दिन घर से बाहर नहीं निकली थी ? क्या मैंने अपनी आंखों से हत्या से पांच मिनट पहले तुम्हें अपने पति के शोरूम के ऑफिस में उससे लड़ते-झगड़ते नहीं देखा था ?"
"वह झूठ मैंने तुम्हारी खातिर बोला था ।" - वह धीरे से बोली ।
"क्या ?" - विकास हैरानी से बोला ।
"मैं सच कह रही हूं।"
"लेकिन क्यों ?"
"क्योंकि मैंने सोचा था कि इससे तुम्हारा भला होगा । मेरे पति का कत्ल करके एक तरह से तुमने मुझ पर मेहरबानी की थी । उसी का बदला मैं तुम्हारे खिलाफ यह बयान देने से बचकर चुकाना चाहती थी कि मैंने हत्या के समय के आस-पास तुम्हें वहां देखा था ।”
“नानसैंस ।”
“बाई गॉड यही बात थी ।”
"लेकिन मैं हत्यारा नहीं ।”
"जरूर नहीं होगे लेकिन तब तो मुझे यह बात नहीं मालूम थी न ।”
"देखो !" - सुनयना उसके समीप आकर उसके कन्धे पर अपना हाथ रखती हुई बोली- "मैं कसम खाकर कहती हूं कि मैंने अपने पति का खून नहीं किया । आज सुबह तक तो मुझे यही नहीं सूझा था कि उसकी हत्या उसी की रिवाल्वर से हो सकती थी ।"
"आज कैसे सूझा ?"
“आज योगिता ने सुझाया । योगिता मेरे मेरे पति की सौतेली बेटी है ।"
"मुझे मालूम है ।"
"वह मुझसे नफरत करती है लेकिन मुझे यह नहीं मालूम था कि वह श्माशान घाट पर ही मेरी मिट्टी पलीत करके रख देगी ।"
"उसने तुम्हारी मिट्टी पलीत की ?"
"हां"
“या तुमने उसकी ?”
"मैं तो उससे एक लफ्ज भी नहीं बोली थी।"
"क्या कहा उसने ?"
"उसने बहुत बुरा-भला कहा मुझे । कहने लगी कि खुद ही अपने पति का खून करके अब मैं उसकी चिता की राख में झूठे टसुवे बहा रही थी । उसी ने मुझ पर यह इल्जाम लगाया था कि मैंने अपने पति की रिवाल्वर से ही उसकी हत्या की थी और यह कि जब पुलिस रिवाल्वर चैक करेगी तो असलियत उनके सामने आ जायेगी और फिर मुझे अपनी करनी की सजा मिले बिना नहीं रहेगी ।"
बरामद करेगी ?" “उसने तुमसे कहा था कि पुलिस रिवाल्वर यहां से “हां । तभी तो मैं यह देखने के लिए दौड़ी-दौड़ी यहां आई थी कि रिवाल्वर अभी भी गायब थी या नहीं । रिवाल्वर को वापिस मेज की दराज में पड़ा देखकर मेरे तो छक्के ही छूट गये थे । उसने कई लोगों के सामने यह भी कहा कि मैंने अपने पति की दौलत की खातिर उससे शादी की थी और सीधे तरीके से दौलत हाथ आती न पाकर मैं उसकी हत्या पर उतारु हो गई थी।"
"देखो" - विकास निर्णयात्मक स्वर में बोला - "मुझे इस बात से कोई मतलब नहीं कि तुम्हारे पति की हत्या किसने की। मुझे सिर्फ इस बात से मतलब है कि उसकी हत्या का इल्जाम मुझ पर न आये क्योंकि हत्या मैंने नहीं की । पुलिस रिवाल्वर की असली जगह से ही इसे बरामद करेगी । अब यह सोचना तुम्हारा काम है कि तुम कैसे अपने आपको बेगुनाह साबित करके दिखाती हो ।”
विकास ने उसे परे धकेला, रिवाल्वर को फिर से पोंछा और उसे वापस मेज के दराज में रख दिया। फिर उसने मजबूती से सुनयना की बांह थामी और उसे दरवाजे की तरफ ले चला ।
"कहां जा रहे हो ?" - वह उसकी पकड़ से छूटने की कोशिश करती हुई बोली ।
"नीचे" - विकास बोला- "पुलिस का इन्तजार हम वहीं बैठ कर करेंगे । रिवाल्वर से दूर । रिवाल्वर वाली जगह से दूर ! तुम्हारी जानकारी के लिए पुलिस को घातक रिवाल्वर की यहां मौजूदगी की खबर पहले ही मिल चुकी है । पुलिस बस यहां पहुंचती ही होगी ।"
सुनयना ने बांह छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब न हो सकी । विकास ने नीचे ड्राईग रूम में पहुंचकर ही उसकी बांह छोड़ी । वह कहर - भरी निगाहों से उसे घूरती हुई अपनी बांह मसलने लगी ।
"अब पुलिस के आने तक तुमने यहीं, मेरी आंखो के सामने रहना है ।" - विकास कठोर स्वर में बोला ।
उसने एक तिरस्कारपूर्ण निगाह विकास पर डाली और सड़क की ओर वाली खिड़की पर आ खड़ी हुई ।
विकास भी उसके पास पहुंच गया ।
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