दिल्ली
कादिर मुस्तफा अपनी कोठरी में बैठा उस समय का इंतजार कर रहा था जिस वक्त वह इस मनहूस चार दीवारी की हद से बाहर होगा। तभी उसकी काल कोठरी का दरवाजा खुला। एक सिपाही ने अंदर आकर उसे इशारा किया। यह उसकी रोज़मर्रा की जिंदगी का एक हिस्सा हो चुका था। दिन में दो बार उसे और उस जैसे उन कैदियों को बाहर की हवा नसीब होती थी जो बेहद संगीन मामलों में तिहाड़ जेल में बंद थे और जिन्हें सुरक्षा की दृष्टि से बाकी कैदियों से अलग रखा जाता था।
कादिर मुस्तफा ने ग्राउंड में आकर हाथ सिर के ऊपर उठा कर ज़ोर से अँगड़ाई ली। ऊपर खुला आसमान देखकर उसने एक कहकहा लगाया। ड्यूटी पर तैनात सिपाहियों के लिए यह कोई नयी बात नहीं थी। इस वक्त वह पागलों की तरह अकेला प्रलाप करता था जिसमें हिंदुस्तान के खिलाफ जहर के सिवाय कुछ नहीं होता था और सिपाही बेबसी से उसकी बकवास सुनते रहते।
“अबे ओ! क्यों पागलों की तरह बत्तीसी बाहर निकाल रिया है। तुझे मालूम ना है, यहाँ और भी लोग बैठे हेंगे।” ग्राउंड में एक भारी भरकम आवाज गूँजी।
कादिर मुस्तफा ने सकपका कर आवाज की दिशा में देखा। उसी की कद काठी का एक कसरती बदन वाला एक आदमी उसकी तरफ खा जाने वाली निगाहों से देख रहा था।
“कौन है ये कमबख्त? जब हम यहाँ पर आते हैं तो आज तक कोई भी हमारे आसपास नहीं होता। सिपाही, यह क्या हरकत है ?” उसने शिकायती अंदाज में अपने से दूर खड़े सिपाही को देख कर कहा। शायद उस सिपाही ने सुना नहीं और वह अपनी बीड़ी के कश लगाने में मशगूल रहा।
कादिर को यूँ बोलने वाले आदमी का नाम दीदार सिंह था। अपने खेत में कब्जा जमाने के लिए आये हुए आदमियों के द्वारा खेत में पकी हुई फसल को आग लगा कर नष्ट कर देने की वजह से पगला कर, आर्मी से सूबेदार के पद से रिटायर हुए दीदार सिंह ने, एक साथ दस आदमियों को मौत के घाट उतार दिया था। इस जुर्म में उसे फाँसी की सजा होने वाली थी। उसे अपनी आने वाली मौत का कोई अफसोस नहीं था
“तेरे आसपास ना होता? क्यूँ नहीं होता भाई! तूने इस जमीन का पट्टा अपने नाम लिखवा रखा है क्या, भूतनी के। जामनगर का बादशाह है तू जो हम तेरे लिए यहाँ पर दरबार लगावेंगे। अरे दो घड़ी घूमण आया है, खुली हवा में दो साँस ले और जा के लौट मार अपनी खटिया में। यहाँ डायलोग मार के क्या फायदा। हमने भी चैन से बैठण दे।” दीदार सिंह ने अपनी नज़र कादिर पर गड़ाए हुए कहा जो अब तक उसके काफी नजदीक आ चुका था।
“एक तरह से बादशाह ही हैं हम, बेवकूफ़ आदमी। हमारे एक इशारे से मौत बरसती है तुम्हारे मुल्क में। वो दिन दूर नहीं जब ये मुल्क किसी शमशान से भी बदतर हालत में होगा। किसी दिन यहाँ पर हमारा ही दरबार लगेगा।” कादिर मुस्तफा ने जहरीले अंदाज में कहा।
“अच्छा! इतना ज़ोर का आदमी है तो भाई हमारे गाँव में पानी की बारिश करवा दे। अब की बार वहाँ बारिश ना हुई। मौत की बारिश से तो सस्ती ही पड़ेगी तुम्हें।” दीदार सिंह मस्त अंदाज में बोला।
“अरे नामाकूल आदमी। दूर हट यहाँ से वरना खाक में मिला देंगे तुझे। तुझे मालूम नहीं कौन हैं हम। कादिर मुस्तफा! जिसे पकड़ने के लिए आधी फौज लगानी पड़ गयी थी तुम्हारे मुल्क के हुकुमरानों को।” कादिर बड़ी शान से बोला।
“मालूम है मुझे, भूतनी के। हमने बुला लेते, हम यूँ ही ना उठा लेते तन्ने। बता फौज लाने की क्या जरूरत थी। यो सरकार भी फजूल का खर्चा करती फिरे। यहाँ पर, साले, जेल में सरकारी बिरयानी खा-खा के सांड सा पल रहया है और हमने तरकारी भी बड़ी मुश्किल से मिले है। तेरे जैसे के तो यहाँ पर आते ही पिछवाड़े में पिस्तौल खाली कर देनी चाहिए थी। साला, सारा कलेश ख़तम।” दीदार सिंह बोला।
“यह सब करने के लिए मर्द का कलेजा चाहिए। तुम जैसे नामर्दों की जमात सिर्फ़ कुत्तों की तरह मरने के लिए पैदा हुई है, समझे।” कादिर के मुँह से फिर जहर टपका।
इससे पहले की वह आगे कुछ बोलता, दीदार सिंह का फौलादी हाथ कादिर के चेहरे से टकराया। कादिर को ऐसा लगा जैसे कोई हथोड़ा उससे आकर टकराया हो। उसके सिर में तारे चकराने लगे। इससे पहले वह अपने आप को संभाल पाता, दीदार सिंह का दूसरा वार उसके पेट पर पड़ा। दर्द से बिलबिलाता हुआ कादिर दोहरा हो गया। तभी दीदार का घुटना उसके मुँह से आकर टकराया। पीड़ा से कराहता हुआ वह सीधा हुआ तो उसकी आँखों में सारे जहाँ की हैरानी उमड़ रही थी।
इसके बाद गुस्से से पागल हुए दीदार सिंह ने उसके बाद कादिर को संभलने का कोई मौका नहीं दिया। कुछ समय बाद कादिर का लहूलुहान शरीर अचेत होकर जमीन पर गिरा। तब तक सिपाहियों की सीटियों की आवाजें ग्राउंड में गूँजने लगी थी। कुछ सिपाहियों ने बड़ी मुश्किल से दीदार सिंह को काबू किया। वे उसे उसकी कोठरी में बड़ी मुश्किल से लेकर गए।
कादिर मुस्तफा को उठा कर उसके कमरे में पहुँचाया गया। जहाँ पर जेल वार्डन के साथ एक और शख़्स मौजूद था। वह शख़्स अभिजीत देवल थे।
“वार्डन साहब, इस शख़्स की तीमारदारी के बाद रिहाई का इंतजाम करो। इसे किसी अमानत की तरह हमें सही सलामत उस पार पहुँचाना है। ध्यान रखना, फिर किसी दीदार सिंह के फंदे में न आ जाए।” यह कहते हुए अभिजीत देवल उस कमरे से बाहर निकल गए।
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कराची
समद ख़ान सेफ हाउस का एक राउंड लेकर अपनी कुर्सी पर आकर बैठ गया। सब कुछ सही था। उस सेफ हाउस की दो मंज़िला इमारत थी जिसकी छत पर छह आदमी ऑटोमेटिक हथियार लेकर तैनात थे। ये आदमी आम तौर पर नहीं होते थे लेकिन जब अतिरिक्त सतर्कता की आवश्यकता होती थी तो उनकी तैनाती कर दी जाती थी।
इमारत की दीवारें दस फीट ऊँची थी जिन पर कंटीले तार लगे हुए थे। सीसीटीवी कैमरों की निगाहें हर वक़्त चौकस रहती थी। इमारत का दरवाजा लोहे का बना हुआ था जिसके आरपार देखा जाना मुमकिन नहीं था। सेना के दो हथियार बंद आदमी गेट के बाहर सादे कपड़ों में पहरा देते थे। अंदर दोनों मंजिलों पर पाँच-पाँच आदमी लगातार पहरा देते थे। समद ख़ान इन इंतजामों के चलते कुछ निश्चिंत था लेकिन फिर भी उसका हाथ रह-रह कर अपनी कमर में टँगी रिवॉल्वर पर चला जाता था।
तभी एक गगनभेदी धमाका हुआ। समद ख़ान अपनी कुर्सी से गिरता-गिरता बचा।
“लाहौल-विला-कूवत। ये क्या कयामत आ गयी! अहमद... बिलाल...” अपने आदमियों को पुकारता वह बाहर गेट की तरफ भागा। बाहर आकर सबसे पहले उसकी निगाह लोहे के गेट पर गयी। गेट को सुरक्षित रूप से बंद पाकर उसने राहत की साँस ली।
“शुक्र मेरे मौला। अहमद, यह धमाका कैसा था। सब लोग अपनी जगह पर मुस्तैद हो जाओ।” वह गेट के पास मौजूद अपने आदमियों को चीखता हुआ बोला।
“सर, अपने यहाँ से दो मकान आगे यह धमाका हुआ है। कोई जीप थी जिसमें यह धमाका हुआ है। आधा मकान उड़ गया है।” अहमद ने हाँफते हुए समद ख़ान को बताया।
“अपने चार आदमी लेकर दरवाजे के बाहर की तैनाती बढ़ा दो। अगर कोई बिना इजाजत अंदर आने की कोशिश करे तो उसे गोली पहले मारना और पता बाद में पूछना। और सुनो, जनाब जावेद अब्बासी को इस बात की इत्तिला कर दो।” समद ख़ान वापस उस कमरे की तरफ बढ़ा जहाँ पर नीलेश को रखा गया था।
नीलेश अपने कमरे में मौजूद था। इस धमाके से वह भी बौखलाया हुआ था और बार-बार दरवाजा पीटे जा रहा था। समद ख़ान ने वह दरवाजा खुलवाया।
“यह धमाका कैसा था? मुझे जल्दी यहाँ से निकालो। देखो, जो भी तुम्हें चाहिए, वह मिल जाएगा। तुम जानते नहीं कि...” नीलेश के आगे के शब्द उसके मुँह में ही रह गए। समद ख़ान का भारी भरकम हाथ उसके चेहरे से टकराया।
“अबे चुप, खबीस की औलाद। जब तक तू यहाँ है, सलामत रहेगा। अगर कुछ भी चालाकी की तो अगला पाँव सीधा जहन्नुम में पड़ेगा।” समद ख़ान एक-एक शब्द चबाता हुआ बोला।
“और तुम दोनों इस बात का ख्याल रखना कि यह कोई भी चालाकी दिखाने की कोशिश करे तो सीधा सिर में गोली मारना। अगर इस सेफ हाउस में कुछ हो गया तो जावेद अब्बासी हम में से किसी को जिंदा नहीं छोड़ेगा। पूरी तलाशी के बाद यह कमरा बंद कर दो। चिड़िया भी इस कमरे में दाखिल न होने पाए।” नीलेश के कमरे के बाहर तैनात अपने दोनों आदमियों को चेतावनी देकर वह दूसरी मंजिल की छत पर पहुँचा।
अपने आदमी से दूरबीन लेकर वह उस घर की दायीं तरफ देखने लगा जहाँ पर धमाका हुआ था। उसके होश उड़ गए। आधी से ज्यादा इमारत उस धमाके से उड़ गयी थी।
“तौबा। लगता है, ये तो पूरी जीप ही बारूद की भरी हुई थी। शुक्र है, दुश्मनों का निशाना हमारी तरफ नहीं था। वर्ना हमारी तबाही यकीनन थी।” समद ख़ान जैसे अपने आप से बोला।
तभी वहाँ पर जैसे एक जलजला आ गया। वहाँ पर सेफ हाउस की बायीं तरफ सटे हुए मकान के गेट के सामने एक और धमाका हुआ। उस धमाके से आग और पत्थर सेफ हाउस की तरफ लपके। चारों तरफ धुआँ और चीख पुकार का माहौल हो गया। अब की बार इस धमाके की चपेट में सेफ हाउस के बाहर खड़े गार्ड भी आ गए। उन्हें संभालने के लिए लोहे का दरवाजा खुला और अंदर मौजूद आर्मी के गार्ड बाहर आए। बाहर मौजूद छह आदमियों में से चार की मौत हो गयी थी और दो बुरी तरह से घायल हो गए थे।
इस धमाके से बौखलाया समद ख़ान नीचे की तरफ भागा। सीढ़ियों में उसे अहमद आता हुआ मिला।
“सर, जावेद साहब लाइन पर है।” हाँफते हुए अहमद ने कहा और वायरलेस सेट समद ख़ान को थमा दिया। चारों तरफ मची अफरातफरी में हकबकाए हुए समद ख़ान ने रिसीवर थामते हुए कहा, “समद ख़ान रिपोर्टिंग सर... ”
“ख़ान, कराची में आज हमारे इलाके समेत छह जगहों पर फ़िदाईन हमला हुआ है। मैं सेफ हाउस की तरफ एक बख्तरबंद गाड़ी नीलेश को ले जाने के लिए भेज रहा हूँ। उसे तुम उसमें बैठा कर कराची एयर बेस की तरफ रवाना कर दो। साथ में अपने कुछ आदमी भी तैनात कर देना।”
“सर, हमारे चार आदमी मारे जा चुके हैं और दो बुरी तरह से घायल हैं। अगर यहाँ पर हमला होता है तो हमें और फोर्स की जरूरत पड़ेगी।” समद ख़ान बौखलाया हुआ बोला।
“नीलेश को वहाँ से रवाना करने के बाद हम उस सेफ हाउस को कुछ वक्त के लिए खाली कर सकते हैं। वहाँ पर रुकने की कोई जरूरत नहीं है। नीलेश के रवाना होने के बाद तुम भी अपने आदमियों को लेकर हेडक्वार्टर पर पहुँचो। ओवर एंड आउट।” जावेद अब्बासी की दूसरी तरफ से आवाज आयी और लाइन कट गयी।
समद ख़ान ने नीलेश को वहाँ से रवाना करने की बात सुनकर राहत की साँस ली। उसने अहमद को सब गार्डों को इमारत खाली करने की तैयारी करने को कहा। बिलाल को कुछ हिदायत देकर नीलेश के कमरे की तरफ भेज दिया।
समद ख़ान के लिए अगले पाँच मिनट बड़े मुश्किल से गुजरे। तभी उसे एक बख्तरबंद गाड़ी आती दिखाई दी। उसने राहत की साँस लेते हुए नीलेश को लाने के लिए बिलाल को ऊपर भेजा। नीलेश जब नीचे आया तो उसके हाथ पीछे बँधे हुए थे और मुँह पर टेप लिपटी हुई थी।
बख्तरबंद गाड़ी से आर्मी लेफ्टिनेंट की वर्दी पहने हुए एक आदमी नीचे उतरा। नीचे उतर कर उसने समद ख़ान को सेल्यूट करते हुए कहा, “लेफ्टिनेंट यासिर ख़ान रिपोर्टिंग सर। आई एम हेयर फॉर अ कनसाइनमेंट ऑर्डरड बाई कर्नल अब्बासी।”
“येस लेफ्टिनेंट। मेरे चार आदमी भी तुम लोगों के साथ एयर बेस तक जाएँगे। कोई प्रॉब्लम?” समद ख़ान बोला।
“नो प्रॉब्लम, सर। कर्नल अब्बासी हैज ऑलरेडी टोल्ड मी अबाउट दिस।” यासिर ख़ान बिना पलक झपकाए बोला।
तब तक बिलाल नीलेश को लेकर नीचे आ गया था। उसके साथ चार आर्मी के जवान भी बख्तर बंद गाड़ी में सवार हो गए।
यासिर ख़ान फिर एक बार समद ख़ान को सैल्यूट मार कर बख्तर बंद गाड़ी में पीछे सवार हो गया। सब कुछ ठीक लग रहा था। फिर भी न जाने क्यों बख्तरबंद गाड़ी के गेट की तरफ रवाना होते ही समद ख़ान का दिल धड़का।
उसने जावेद अब्बासी को नीलेश की रवानगी के बारे में बताने के लिए अपने हाथ में लिए हुए ट्रांसमीटर का बटन दबाने के लिए हाथ ऊपर उठाया ही था कि उसे अपने ऊपर आसमान में किसी चीज के मंडराने का आभास हुआ। समद ख़ान ने सिर उठाकर कर ऊपर देखा तो एक ड्रोन उसके सिर पर मंडरा रहा था। उसकी आँखें आश्चर्य और दहशत के मारे फट पड़ी। उसने अपनी कमर में ठुँसी हुई रिवॉल्वर को निकाल कर ड्रोन पर निशाना लगाना चाहा लेकिन उससे पहले ही आसमान से कयामत बरस पड़ी। ड्रोन ने अचानक ऊपर उड़ना बंद कर दिया और सीधा जमीन से आकर टकराया।
एक भयानक विस्फोट हुआ और उस विस्फोट की चपेट में आकर सेफ हाउस की इमारत धराशाई हो गयी। समद ख़ान समेत सारे जवान उस धमाके की चपेट में आ गए। समद ख़ान धमाके की वजह से उछल कर इमारत के खुले हुए लोहे के गेट के पास जाकर गिरा। अपने अंतिम समय में उसे एहसास हुआ कि वह मौत के जाल में फँसा लिया गया था। उसने अपनी जिंदगी का सबसे बड़ा धोखा खाया था। उसके सामने यासिर ख़ान का चेहरा घूमा।
तभी मौत की आहट से उनींदी होती हुई उसकी आँखों ने बख्तरबंद गाड़ी को एक पल के लिए रुकते हुए देखा। उसका पिछला दरवाजा खुला। यासिर ख़ान और जुबेर ख़ान की गोलियों से छलनी हुए बिलाल और उसके साथियों के शरीर समद ख़ान की आँखों के सामने सड़क पर आ गिरे। अपनी नाकामयाबी का अफसोस मनाता हुआ समद ख़ान इस खूनी मंजर को देखकर फ़ानी दुनिया से रुखसत हुआ।
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मुंबई
अब्दील राज़िक ने कराहते हुए अपनी आँखें खोली। दवाइयों के नशे में आँखें खोलना उसे भारी मशक्कत का काम मालूम हुआ। जब उसकी आँखों में छाया हुआ धुँधलका साफ हुआ तो उसने पाया कि वह एक कमरे में मौजूद था जिसमें उसकी तीमारदारी का पूरा प्रबंध था। उसने धीरे-धीरे अपने चारों तरफ नजरें घुमाई। एक नर्स उसके सिरहाने मौजूद थी। उसके होश में आते ही वह दरवाजे के पास जाकर खड़ी हो गयी। उसके चेहरे पर कुछ घबराहट के निशान मौजूद थे।
अब्दील राज़िक ने कमरे में दूसरी तरफ देखा। उसे नर्स की घबराहट का माजरा समझ में आया। कमरे में उसके और नर्स के अलावा दो शख़्स और मौजूद थे। इसमें से एक वो शख़्स था जिसकी गोली उसे कंधे में लगी थी और दूसरा वह जो उससे दरवाजे पर टकराया था। यह दोनों नागेश और श्रीकांत थे।
श्रीकांत ने नर्स को कमरे से बाहर जाने का इशारा किया। उसके बाहर जाते ही नागेश अपनी कुर्सी से उठा और उसके पास आते हुए बोला, “होश में आ गया अपना परदेसी पोपट। बड़ी देर लगाई तूने भिडू, होश में आते-आते।”
“अब्दील, तुम्हें अब तो यह यकीन हो जाना चाहिए कि तुम्हारे पास बचने का कोई रास्ता नहीं बचा है। तुम हमें सिर्फ उस्मान उर्फ प्रोफेसर का पता बता दो। तुम्हारे सारे गुनाह कम कर दिये जाएँगे। सिर्फ़ गैरकानूनी ढंग से बिना वीसा के भारत में रुकने के जुर्म में तुम्हें मामूली सी सजा होगी जो उम्रक़ैद या मौत की सजा से मुनासिब ही होगी।”
अब्दील ने घृणा से श्रीकांत की तरफ थूका।
“ये है मेरा जवाब। मुझे मौत का खौफ दिखा रहे हो। मैं तो कब से चाहता हूँ कि मुझे...”
उसके अगले शब्द अब्दील राज़िक के मुँह में ही रह गए। नागेश बिजली की तरह उस पर झपटा। जब तक श्रीकांत उसे रोकता तब तक नागेश के दो जबर्दस्त प्रहार अब्दील के चेहरे को लहू लुहान कर चुके थे।
“क्या कर रहे हो नागेश? ये पहले ही घायल है और अगर हम इस तरह से इसे मारेंगे तो यह मर जाएगा। ये जान-बूझ कर हमें उकसा रहा है ताकि इसे छुटकारा मिल सके। इसकी मौत का आसान मत बनाओ।” श्रीकांत नागेश को अब्दील से दूर करते हुए बोला।
“तो फिर काहे को इसे बक-बक करना का मौका दे रहे हो आप! ये हलकट अपन लोगों को कुछ नहीं बताने वाला। इसकी मन की पूरी करो। इसके पीछे क्यों फालतू टाइम खोटी करने का?” नागेश फुफकारता हुआ बोला।
“देखो, तुम जानते हो कि तुम यहाँ पर फँस चुके हो। अगर तुम हमारी बात मानोगे तो हो सकता है तुम्हें कम तकलीफ हो। इस वक्त तुम किसी हस्पताल या जेल में नहीं हो। तुम एक ऐसी जगह मौजूद हो जहाँ पर बड़े-बड़े तीसमार ख़ान अपना मुँह नहीं बंद रख पाते। हमें बता दो कि उस्मान ख़ान कहाँ पर छिपा है।”
“तुम कितने भी पैंतरे आजमा लो। मेरे मुँह से तुम एक भी शब्द नहीं निकलवा पाओगे। प्रोफेसर जहाँ भी है तुम्हारे लिए कयामत का इंतजाम कर रहा है।” अब्दील पूरी ढिठाई से बोला।
“नागेश, यह नहीं मानेगा। तुम ‘उसे’ अंदर लेकर आओ।” श्रीकांत ने नागेश को इशारा कर के कहा।
नागेश सहमति में सिर हिलाता हुआ कमरे से बाहर चला गया और फिर प्रदीप को लेकर कमरे के अंदर दाखिल हुआ। प्रदीप को अपने सामने देख कर अब्दील किसी पागल सांड की तरह लहराता हुआ अपनी कुर्सी से खड़ा हुआ और उसकी तरफ लपका।
लेकिन बीच में श्रीकांत आ गया और उसका एक झन्नाटेदार थप्पड़ अब्दील के चेहरे पर पड़ा। अब्दील अपना संतुलन खो बैठा और कुर्सी समेत लुड़ककर नीचे जा गिरा।
“नागेश, इस सिरफिरे को कुर्सी के साथ जकड़ दो। यह हमारे लिए फिर कोई मुसीबत नहीं खड़ी करेगा।” श्रीकांत ने नागेश को कहा। नागेश ने उसके हाथ और पैर हथकड़ियों से कुर्सी के साथ जकड़ दिये।
“तुझे हम जिंदा नहीं छोड़ेंगे, काफिर की औलाद। अगर मैं तेरा काम तमाम नहीं कर सका तो कोई और करेगा। लेकिन इतना यकीन रख कि तू जिंदा नहीं रह पाएगा।” अब्दील हथकड़ियों में कसमसाता हुआ बोला।
“अरे भिडु, ये फिल्मी डाइलॉग अब पुराने हो गए हैं। तू शुक्र मना कि श्रीकांत सर यहाँ पर मौजूद है। नहीं तो, अब तक तू ऊपर अपने दोस्तों से हाथ मिला रहा होता।” नागेश अपने कमर पर बँधे होल्स्टर पर हाथ रखता हुआ बोला।
“नागेश, यहाँ पर ज्यादा वक्त बर्बाद करने का कोई फायदा नहीं है। इसके ‘नार्को एनालिसिस टेस्ट’ के लिए जो एक्सपर्ट हमने बुला रखे हैं, उन्हें अपने काम पर लगाओ। थर्ड डिग्री का हमारे पास वक़्त नहीं है।” श्रीकांत बेसब्री से बोला।
‘नार्को एनालिसिस टेस्ट’ का नाम सुनकर अब्दील कुर्सी पर बैठा बेचैनी से कसमसाने लगा।
जब उसका टेस्ट हुआ तो उस वक्त कमरे में सिर्फ़ डॉक्टर, श्रीकांत, प्रदीप और नागेश मौजूद रहे। श्रीकांत के सवालों के जवाब में जो खुलासे आए, उसे सुनकर वे लोग दंग रह गए।
उस कमरे में ऐसा सन्नाटा छा गया जिसका शोर उनकी बर्दाश्त के बाहर था। अब्दील के मुँह से जो निकला, उसकी तस्दीक़ प्रदीप ने की।
आखिर वही तो काला सच था जिसकी वजह से प्रदीप की जान उनके लिए बड़ी खतरनाक बन गयी थी।
तभी नागेश के फोन की घंटी बजी। वो कॉल सिनलाइफ बार के मालिक गिरिजा की थी। नागेश वो फोन सुनने के लिए कमरे से बाहर निकल कर बाहर आ गया।
“भाऊ, किधर गुम है तुम। मैं कब से तुम्हें फोन किए जा रहा हूँ।” गिरिजा की आवाज आयी।
“आमची मुंबई के अंदर बहुत लोचा चल रहा है, गिरिजा। पिछले दिनों मैंने जो आतिशबाज़ी देखी वो साला मैं अक्खा जिंदगी नहीं देखा।” नागेश ने जवाब दिया।
“भाऊ, एक सॉलिड इन्फोर्मेशन है मेरे पास। तुम्हारा एक आदमी इस वक्त बिल से बाहर आ गया है जिसकी तुम्हें बेसब्री से तलाश थी।” गिरिजा की आवाज आयी।
“कौन?”
“दिलावर टकला।”
“दिलावर! वो अभी इधरिच है! पर मैंने तो सुना था कि वो नेपाल भाग गया था।”
“नहीं। अब से कुछ देर पहले वो अपने बिल से बाहर निकला है और मुंबई की सड़कों पर आराम से घूम रहा है।”
“अब पहेलियाँ ही बुझाएगा या कुछ बताएगा कि किधर मिलेगा वो हरामी?”
गिरिजा ने उसे बताया। नागेश के चेहरे पर एक विषभरी मुस्कान उभरी।
नागेश वापस कमरे में गया और श्रीकांत को उसने बताया। नागेश ने आलोक देसाई को इस बारे में सूचना दी। इसके बाद तुरंत आलोक देसाई के साथ एटीएस की एक टुकड़ी उस दिशा की तरफ दौड़ पड़ी जहाँ पर दिलावर टकला मौजूद था।
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