दोबारा होश में आने पर विक्रम ने स्वयं को फर्श पर ही पड़ा पाया ।
वह समझ नहीं सका कि कितनी देर बेहोश रहा था । लेकिन अपने सिर के पृष्ठ भाग से शुरू होकर अचानक समस्त शरीर से गुजर गई दर्द की तेज लहर ने उसे न चाहते हुए भी कराहने पर मजबूर कर दिया । साथ ही उसे अपनी वास्तविक स्थिति का भी पता चल गया । उसके हाथ-पैर पीठ के पीछे पहले आपस में फिर परस्पर मजबूती से बंधे थे । उन्हीं बन्धनी से जुड़ा रस्सी का एक मजबूतों फंदा उसके गले के इर्द-गिर्द लिपटा था । और तनिक-सा हिलते ही कसने लगता था जिससे उसे दम घुटता-सा महसूस हो रहा था ।
उसने जरा भी हिले बगैर सामने देखा ।
आफताब आलम उसी कुर्सी पर बैठा मुस्करा रहा था । उसकी आंखों में व्याप्त हिंसक चमक और ज्यादा बढ़ गई थी । वह इस स्थिति से एनज्वॉय करता प्रतीत हो रहा था ।
"तुम इस हाल में बहुत अच्छे लग रहे हो, विक्रम !" वह बोला-"तुम्हारे गले में यह फंदा भी बहुत फब रहा है ।" उसका लहजा ऐसा था मानो कोई टीचर क्लासरूम में लेक्चर दे रहा था-"इस फंदे की खास बात यह है कि तुम्हारे जिस्म की हरेक हरकत के साथ यह कसता चला जाएगा । तुम्हारा दम घुटने लगेगा और तुम मौत की ओर बढ़ते चले जाओगे । इससे बचने के लिए तुम बिना हिलेडुले चुपचाप पड़े रहने की कोशिश करोगे मगर ऐसा कर पाना नामुकिन है । इस तरह तुम्हें तड़प-तड़पकर मरना पड़ेगा । समझ गए ?"
विक्रम ने जवाब नहीं दिया । उसे अपनी मृत्यु साक्षात नजर आने लगी थी ।
"हेरोइन के वे पैकेट कहां हैं विक्रम ?" आफताब आलम की बगल में खड़े जसपाल ने पूछा ।
विक्रम ने बोलने की कोशिश की तो उसके मुंह से बस घुटी-सी आवाज ही निकल सकी । उसने धीरे से सिर हिलाकर इन्कार कर दिया ।
विक्रम को लगा, आफताब आलम ने ठीक ही कहा था-वह सचमुच हर दर्जे का बेवकूफ था । इस बखेड़े को अकेले ही निपटाने के चक्कर में वह सर्वनाश कर बैठा था । अब न तो कोई उसे बचा सकता था और न ही कैपसूल को सही हाथों तक पहुंचाया जा सकता था । उसे अब से पहले ही सान्याल की मदद हासिल कर लेनी चाहिए थी ।
निराशा के घोर अंधेरे में फंसे विक्रम को आशा की हल्की-सी किरण भी दिखाई नहीं दे रही थी । लेकिन हिम्मत हार बैठने में भी उसके विचारानुसार कोई समझदारी नहीं थी । जब तक सांस तब तक आस | उसने मन-ही-मन पक्का फैसला कर लिया कि चाहे कुछ भी हो वह अपने विवेक और धैर्य से काम लेगा । और जिन्दा रहने के लिए आखिरी पल तक संघर्ष करेगा ।
"क्या सोच रहे हो, विक्रम ?" आफताब आलम ने पूछा ।
विक्रम कुछ नहीं बोला ।
"अपनी मौत के बारे में ?" आफताब आलम ने पूछा फिर उसे जवाब न देता पाकर बोला-"अपने इस अंजाम के लिए तुम खुद ही जिम्मेदार हो । तुमने परवेज और जहूर के साथ जो किया उसी की सजा तुम्हें मिल रही है ।" उसके चेहरे पर एक पल के लिए आंतरिक पीड़ा के चिह्न प्रगट हुए-"वे दोनों मेरे छोटे भाई थे । अगर वे इस दुनिया में रहे होते तो आज तुम्हें भी इस तरह मरना नहीं पड़ता । उन दोनों की मौत की वजह तुम हो ।
ठीक उसी क्षणं, सर्वथा अप्रत्याशित रूप से अचानक दरवाजे से एक परिचित नारी स्वर उभरा ।
"परवेज की हत्या विक्रम ने नहीं की थी, आफताब !"
विक्रम एक इंच भी नहीं हिल सकता था । वह सिर्फ अपनी निगाहें ही घुमा सका ।
बन्द दरवाजे से पीठ सटाए हाथ में पिस्तौल ताने लीना खडी थी । उसके तमतमाए चेहरे और सुर्ख आंखों से जाहिर था कि वह बहुत ज्यादा पिए हुए थी । उसके होंठ अजीब-सी मुस्कराहट की मुद्रा में खिचे हुए थे । बाल भींगी हुई लटों की शक्ल में लटके हुए थे । उसके गालों पर मौजूद काले निशान कुछ ज्यादा ही उभरे नजर आ रहे थे । कुल मिलाकर उसका चेहरा उसके हाथ में थमी पिस्तौल के मुकाबले ज्यादा खौफनाक नजर आ रहा था ।
आवाज सुनते ही जसपाल और आफताब आलम बुरी तरह चौंके थे । फिर स्वयंमेव ही उनके हाथ अपने कोट का जेबों की ओर लपके । मगर लीना के हाथ में थमी पिस्तौल ने उन्हें फौरन ही अपना इरादा बदलने पर मजबूर कर दिया ।
उन दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा । उनकी निगाहों से साफ जाहिर था-शराब के नशे में चूर एक औरत के हाथ में पिस्तौल थमी होने का रिस्क वे नहीं लेना चाहते थे । इसका एक ही तरीका था-लीना को बातों में उलझाने की कोशिश की जाए । फिर जब वह असावधान नजर आए तो उससे पिस्तौल छीन ली जाए ।
इस मामले में पहल की आफताब आलम ने । वह मुस्कराया । फिर लीना की पिस्तौल की ओर ध्यान न देने का अभिनय करते हुए लापरवाही से पूछा-"क्या कहा था तुमने, लीना ?"
लीना पिस्तौल से उन दोनों को कवर किए मुस्कराई ।
"मुझे बातों में उलझाने की कोशिश करने से कोई फायदा तुम्हें नहीं होगा । तुम्हारी किसी चालाकी में आने वाली मैं नहीं हूं ।"
आफताब आलम ने भौंहे चढ़ा कर उसे घूरा ।
"लेकिन मेरे सवाल का जवाब तो यह नहीं है ।"
"अपने सवाल का जवाब भी सुन लो । विक्रम ने तो परवेज की हत्या नहीं की थी मगर मैं तुम्हारी करने वाली हूं ।"
"क्या बक रही हो ?"
"बक नहीं रही, तुम्हें असलियत बता रही हूं ।" नशे में होने के बावजूद भी लीना सतर्क थी । उसका स्वर स्थिर और लहजा पैना था-"मैंने बहुत पहले कसम खाई थी कि एक दिन तुम्हारी जान लेकर रहूंगी । आज मैं वही करने आई हूं ।" उसने फर्श पर पड़ी जीवन और प्रेमनाथ की लाशों पर निगाह डाली फिर विक्रम की ओर देखा और फिर उसके होंठ गुर्राहटपूर्ण मुद्रा में खिच गए-"तुमने पहले जीवन की हत्या की फिर प्रेमनाथ की और अब तुम विक्रम की जान लेना चाहते हो । तुम इन्सान नहीं शैतान हो ! मैं तुम्हें ज़िन्दा नहीं छोड़ेगी, हरामजादे !"
आफताब आलम का चेहरा गुस्से से तमतमा गया था और आंखों से चिंगारियां सी निकल रही थीं ।
"तुम नशे में बहक रही हो, बेवकूफ !"
"यह तेरा वहम है । मैं पूरी तरह होश में हूं ।" लीना ने कहा । एकाएक उसका लहजा सर्द हो गया था-"मैं हमेशा तेरे इशारों पर नाचती रही । तेरी हरेक ज्यादती बरदाश्त की । तेरी खातिर खुद को इस हद तक गिराती रही कि अपना वजूद भी तरकीबन मिटा डाला । मगर शायद मेरे अंदर किसी कोने में गैरत नाम की चीज बची रह गई थी । जिसने मुझे उस वक्त बार-बार ललकारा जब तेरी मौजूदगी में वह हरामजादा जगतार मेरे साथ कुकर्म कर रहा था और मुझे जबरन उसकी घिनौनी हवस का घिनौने ढंग से शिकार होने को जबरन मजबूर किया जा रहा था । और तू मेरी बेचारगी पर कहकहे लगा रहा था । यह ठीक है कि मैं तुम्हारी रखैल हूं । घटिया और बाजारू ही सही, लेकिन हूं तो एक औरत ।" उसने अपने गीले बालों में हाथ फिराया-"तुम शायद नहीं जानते कि जिस्मफरोशी का पेशा अपनाने से पहले ही मैं अपने अंदर की औरत को मारकर इतना गहरा दफना चुकी थी कि मुझे उम्मीद नहीं थी कि वो जिन्दा हो सकेगी । मगर मेरी गैरत की ललकार ने उसे फिर से जिन्दा कर दिया । और अब मेरे अन्दर की वही औरत तेरी जान लेने आई है ।" उसने अपनी गर्दन को झटका दिया-"तूने जीवन की जान लेकर एक और भी ऐसा जुर्म किया है जिसकी सजा मैं तुझे अपने हाथों से मौत देकर देना चाहती हूं । काश ! मैं दो बार तेरी जान ले सकती !"
आफताब आलम बड़ी मुश्किल से जब्त कर पा रहा था-"मैं फिर कह रहा हूं, तुम नशे में हो लीना !" वह बोला-"पिस्तौल को जेब में रखकर मेरी बात सुनो । जीवन की हत्या प्रेमनाथ ने की थी ।" और कुर्सी से उठने का उपक्रम किया-"तुम ख्वामख्वाह मुझ पर...।
"चुपचाप वापस बैठ जाओ आफताब !" लीना उसकी ओर पिस्तौल हिलाती हुई कठोर स्वर में बोली । फिर कनखियों से जसपाल को देखा-"मैं तुम्हारी ओर से भी चौकस हूं इसलिए चालाकी करने की कोशिश मत करना, वरना जान से हाथ धो बैठोगे ।" वह पुनः आफताब आलम से मुखातिब हो गई-"तुम्हें कुछ भी बताने की जरूरत नहीं । असलियत समझने की समझ मुझमें भी है । और ऐसी बातें भी मैं जानती हूं जिनकी जानकारी तुम्हें नहीं है ।"
आफताब आलम ने खा जाने वाले भाव में उसे घूरा ।
"कौन-सी बातें ?"
"मसलन, मैं जानती हूं कि परवेज की हत्या किसने की थी ?"
आफताब आलम के हाथ कुर्सी की बाजुओं पर कस गए और वह तनिक लीना की ओर झुक गया ।
"किसने की थी ?" उसने कड़े स्वर में पूछा ।
लीना ने सिर हिलाकर जसपाल की ओर संकेत किया-"इसने ।"
आफताब आलम के चेहरे पर असमंजसतापूर्ण भाव उत्पन्न हो गए । उसने पहले लीना को घूरा फिर जसपाल की ओर पलट गया-"यह क्या कह रही है ?"
लीना की इस बात ने जिन्दगी-मौत के बीच झूलते विक्रम को भी इस बुरी तरह चौंकाया था कि वह जसपाल की ओर निगाहें घुमाने पर विवश हो गया था ।
काफी सर्दी के बावजूद जसपाल के माथे पर पसीना फूट निकला था ।
"नशे में, पता नहीं, क्या बके जा रही है ।" वह चिल्लाता-सा बोला ।
"मुझे नशा तो है लेकिन जो मैं कह रही हूं वो बिल्कुल सही है ।" लीना बोली-"नशे की बकवास नहीं ।"
"तो फिर तुम पागल हो गई हो ।" जसपाल झल्लाकर बोला ।
लीना ने आफताब आलम की ओर देखा ।
"मैं पागल हूं या सयानी । इसका फैसला मेरी बात सुनने के बाद खुद कर लेना ।" वह बोली-"परवेज इसे अपना दोस्त मानता था । तुम भी आज तक इसी भ्रम के शिकार रहे हो । लेकिन यह तुमसे ज्यादा मक्कार, कमीना, खुदगर्ज और लालची है । जाहिरा तौर पर इसने किसी को भी इस बात का यकीन दिलाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी कि यह परवेज का जिगरी दोस्त था । जबकि अन्दर-ही-अन्दर यह उससे बड़ी भारी खुंदक खाता था । उसे अपने रास्ते का कांटा समझता था । और इसकी वजह थी-तुम्हारा परवेज को अलग धन्धा करने के लिए एक पुरा इलाका दे देना । तुम्हारे ऐसा करने से इसका धन्धा चौपट होने लगा था । तब इसने परवेज को अपनी बातों, व्यवहार वग़ैरा से पक्का यकीन दिलाया कि यह उसका सच्चा दोस्त था और इसकी निगाहों में धन्धे से ज्यादा अहमियत दोस्ती की थी । नातजुर्बेकार परवेज इसके झांसे में आकर इस पर आंख भींचकर भरोसा कर बैठा । लेकिन इसे मौके की तलाश थी । इसने मौका मिलते ही इस सफाई से उसे ठिकाने लगा दिया कि कोई इस पर शक तक नहीं कर सका । इसे बस सब्र के साथ इंतजार करते रहना पड़ा । विक्रम द्वारा की गई परवेज की तगड़ी ठुकाई ने इसे मुनासिब मौका प्रदान कर दिया । बड़बोले परवेज ने बाकायदा ऐलान कर दिया था कि वह विक्रम की जान लेकर अपनी दुर्गति का बदला चुकाएगा । उसका यह ऐलान कम-से-कम इस बात का सबूत तो था ही कि इसमें और विक्रम में जानी दुश्मनी थी । यानी दोनों में से एक की हत्या हो जाने पर हत्या का शक सीधा दूसरे पर ही किया जाना था । और यही हुआ भी । परवेज की हत्या के बाद विक्रम पर उसका हत्यारा होने का शक किया गया । असलियत यह थी कि इसने पता लगा लिया था कि परवेज विक्रम की हत्या करने जा रहा था । भरोसेमन्द दोस्त होने के नाते इसके लिए यह पता लगाना जरा-भी मुश्किल नहीं था । बस, इसने परवेज का पीछा किया और मौका पाते ही उसे ठिकाने लगा दिया ।"
जसपाल का पीला पड़ गया चेहरा पसीने से भीग चुका था ।
आफताब आलम को भी उसकी यह हालत साफ नजर आ रही थी ।
उसने जसपाल से निगाहें हटाकर लीना की ओर देखा और बड़े ही विचारपूर्ण स्वर में पूछा-"तुम्हें यह सब कैसे पता चला ?"
"जीवन ने बताया था ।"
"आप इस नशे में धुत्त घटिया औरत की बकवास पर ध्यान क्यों दे रहे हैं, आलम साहब ?" जसपाल मुट्टियां भींचकर चिल्लाता हुआ बोला-"यह कुतिया...।"
"इसकी बात मे दम है, जसपाल !" आफताब आलम बोला-"ऐसी अफवाह मैंने भी सुनी थी । कांती और मोती ने भी मुझे ऐसा ही कुछ बताने की कोशिश की थी मगर ध्यान देना तो दूर मैंने उनकी सुनी तक नहीं । लेकिन अब ध्यान देना चाहता हूं ।" उसका कुर्सी के हत्थे पर रखा दायां हाथ उठकर अपने कोट की जेब के पास पहुंच चुका था-"जीवन को यह कैसे पता चला, लीना ?"
लीना हंसी । लेकिन उसके हाथ में थमी पिस्तौल पूर्ववत् उन दोनों को कवर किए रही ।
"जीवन मौका-ए-वारदात पर ही मौजूद था ।"
आफताब आलम चौंका ।
"क्या मतलब ? उसने इसे हत्या करते देखा था ?"
"वह उस गली के बाहर मौजूद रहा था जिसमें परवेज की लाश पड़ी पायी गई थी । उसने पहले परवेज को उस गली में जाते देखा था, फिर इसे और फिर फायर की आवाज सुनी थी । फिर अगले रोज परवेज की लाश मिलने के बारे में जानने के बाद सारा किस्सा उसकी समझ में आ गया ।"
"लेकिन रात में उस वक्त उस गली के बाहर जीवन क्या कर रहा था ?"
'उसे 'फिक्स' लेने के लिए हेरोइन की जरूरत थी । उसी चक्कर में वह इसे ढूंढ रहा था । इसे चोरों की तरह परवेज का पीछा करते देखा तो चकराकर रह जाना पड़ा, एक दोस्त द्वारा दूसरे का इस तरह पीछा किया जाना उसे अजीब लगा । जब यह परवेज के पीछे अन्धेरी गली में दाखिल हो गया तो वह बाहर ही रहकर इसके लौटने का इंतजार करता रहा ।"
"जीवन ने यह बात तुम्हें ही क्यों बताई ?"
"हम दोनों एक-दूसरे को प्यार करते थे । उसे मुझ पर और मुझे उस पर पूरा भरोसा था ।" लीना ने आहसी भरते हुए पीड़ित स्वर में जवाब दिया-"इस बात को वह इसलिए भी गुप्त रखना चाहता था कि उसका इरादा इस आधार पर इसे ब्लैकमेल करने का था । वह अपनी जुबान बन्द रखने की एवज में इससे खासी मात्रा में हेरोइन ऐंठना चाहता था लेकिन अब ऐसा नहीं हो सकेगा । वह इस दुनिया से जा चुका है । तुमने पहले मुझे हमेशा के लिए अपनी 'बांडेड लेबर' बनाया फिर जीवन की हत्या कर दी । लेकिन अब तुम्हारे जाने की बारी है ।"
आफताब आलम की तवज्जो लीना की ओर नहीं थी । उसके चेहरे की मांसपेशियों में खिंचाव पैदा हो गया था । जबड़े भिच गए थे और गर्दन की नसें तन गई थीं । उसकी आंखों से नफरत की चिंगारियां-सी निकल रही थीं । वह अपलक जसपाल को घूरे जा रहा था ।
जसपाल को समझते देर नहीं लगी कि आफताब आलम का गुस्सा कहर बनकर किसी भी क्षण उस पर टूट सकता था । उसका चेहरा कागज की तरह सफेद पड़ गया और आंखों में आतंकपूर्ण भाव उत्पन्न हो गए ।
"य...यह कुतिया झूठ बोल रही है...।" वह बड़ी मुश्किल से, हकलाता-सा बोला-"अ...आप मेरा यकीन कीजिए, अ...आलम साहब...म...मैं...।" शेष वाक्य अधूरा छोड़कर अचानक, बड़ी फुर्ती का प्रदर्शन करते हुए, उसने अपनी जेब से रिवॉल्वर निकाली और लीना पर फायर झोंक दिया ।
गोली लीना का पेट फाड़ती हुई गुजर गई ।
लीना बायें हाथ से अपना पेट दबाए नीचे झुकती चली गई ।
जसपाल के रिवॉल्वर से हुए फायर की गूंज अभी खत्म भी नहीं हो पाई थी कि आफताब आलम ने अपनी जेब से रिवॉल्वर निकालकर उस पर फायर कर दिया ।
गोली जसपाल की कनपटी फाड़ती हुई गुजर गयी । उसके भेजे के चिथडे उड गए और उसका बेजान शरीर नीचे जा गिरा ।
आफताब आलम ने हिकारत भरी निगाहों से उसे घूरा फिर उस पर थूकता हुआ कुर्सी से उठ गया ।
वह विक्रम के पास पहुंचा ।
"मुझे अफसोस है, विक्रम !" बड़े ही सर्द लहजे में वह कुटिलतापूर्वक बोला-"तुम इतना ज्यादा जान चुके हो कि अब तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ा जा सकता ।" और रिवॉल्वर उस पर तान दी ।
विक्रम के सामने मौत खड़ी थी । लेकिन वह विवश था, अपने बचाव में कुछ भी नहीं कर सकता था ।
उसने आफताब आलम के सामने गिड़गिड़ाकर जिंदगी की भीख मांगने की बजाय जान देना बेहतर समझा । और खामोशी के साथ आंखें बन्द कर लीं ।
अगले ही क्षण फायर की आवाज गूंज गई ।
लेकिन सांस रोके मौत का इंतजार करते विक्रम को किसी प्रकार की पीड़ा का जरा भी अहसास नहीं हुआ । एकाएक वह समझ नहीं सका कि वह मर चुका या जीवित था । फिर उसने धीरे-धीरे जबरन आंखें खोली और निगाहें ऊपर उठाई तो आश्चर्य एवं अविश्वास के कारण उसकी आंखें फट पड़ीं । वह देखता ही रह गया ।
उसके सिर पर खड़े आफताब आलम को आंखें फटी जा रही थीं । उसकी गर्दन में बने सुराख से खून की नाली सी बह रही थी । उसके हाथ से रिवॉल्वर छूट गयी फिर अचानक उसका जिस्म लहराया । कटे पेड़ की तरह नीचे जा गिरा और निःस्पंद पड़ा रहा ।
वह मर चुका था ।
उसके पीछे फर्श पर घुटनों के बल बैठी लीना के दायें हाथ में थमी पिस्तौल से धुआं उठ रहा था । उसने अभी भी पेट को दबाया हुआ था । हाथ समेत उसके जिस्म का सामने वाला भाग खून से लथपथ था । फर्श पर भी काफी खून फैला हुआ था ।
लीना का पीड़ा से विकृत चेहरा प्रतिपल सफेद पड़ता जा रहा था । पता नहीं वह उसकी दृढ़ इच्छा-शक्ति थी या फिर आफताब आलम के प्रति मन में छुपी बेइंतिहा नफरत कि उसकी जान लेकर उसने अपना सारा हिसाब उससे चुका लिया था और अभी भी जीवित थी ।
विक्रम चाहकर भी, हर पल मौत की ओर बढती लीना से अपनी मदद के लिए नहीं कह सका ।
लेकिन लीना न सिर्फ जिन्दा थी बल्कि उसके होशोहवास भी पूरी तरह कायम थे । इतना ही नहीं यह भी वह जानती थी कि अभी उसने एक और काम भी अंजाम देना था ।
उसने विक्रम को देखा फिर किसी प्रकार इंच-इंच कर के फर्श पर उसकी ओर घिसटने लगी ।
वह विक्रम के पास जा पहुंची और उसके आस-पास फर्श पर फैली चीजों में से टटोलकर एक छोटा-सा चाकू ढूंढ़ निकाला ।
विक्रम ने अपनी गर्दन पर, उसकी सर्द कांपती उंगलियों का स्पर्श महसूस किया । फिर उसकी गर्दन पर लिपटा फंदा काटकर अलग कर दिया गया । फिर उसने शरीर की अंतिम बची-खुची ताकत इकट्ठी करके कलाइयों और टखनों के बन्धन भी काट दिए ।
इस पूरे दौर में उसकी सांसें लूहार को धौंकनी की तरह चलती रही थीं । उसके पेट से बराबर खून बह रहा था । पीड़ा के कारण वह रह-रहकर होंठ काट रही थी । बुझी-बुझी-सी आंखें बार-बार मुंदने लगती थीं ।
उसने मुस्कराने की कोशिश की और स्वयं को सम्भाले रखने का प्रयत्न करने के बावजूद पीठ के बल लुढ़क गई ।
मौत के मुंह से बचा और बन्धनमुक्त हो चुका विक्रम अपने जीवित बच जाने को बड़ा भारी चमत्कार समझ रहा था । अपने भाग्य से उसे स्वयं ही ईर्ष्या हो रही थी । लेकिन लीना की हालत का भी बड़ा पूरा अहसास उसे था । देर तक बंधा रहने की वजह से हालांकि उनके हाथ-पैर सुन्न से हो रहे थे लेकिन उसकी ओर ध्यान देने की बजाय वह लीना के ऊपर झुक गया ।
"चुपचाप लेटी रहो लीना ! मैं किसी डॉक्टर को बुलाता हूं ।"
लीना ने जबरन आंखें खोलीं । बुझी-बुझी-सी नजर आने के बावजूद उनमें अजीब-सी एक चमक थी ।
"नहीं, विक्रम, बेकार है ।" वह मुस्कराने की कोशिश करती हुई क्षीण स्वर में बोली-"मैं मर रही हूं ।"
"ऐसा मत कहो, लीना !"
"न...नहीं । अब...मेरे...जी...ने का...कोई मकसद बाकी नहीं रह गया है...।"
अचानक वह खामोश हो गई । उसकी आंखें मुंद गई थीं । हाथ पेट से खिसक कर नीचे जा गिरा । और एक अजीब-सी ऐंठन उसके जिस्म में होने लगी । वह बेहोशी की हालत में दम तोड़ती नजर आ रही थी ।
विक्रम ने उसकी पलकें उठाकर देखा-लीना की पुतलियां चढ़ गई थीं । कुछ देर उसी तरह छटपटाती रहने के बाद सहसा उसकी गर्दन एक तरफ लुढ़क गई और शरीर शांत हो गया ।
उसके प्राण-पखेरू उड़ चुके थे ।
विक्रम एक गहरी सांस लेकर सीधा हुआ और ऊपर उठ गया ।
उसने फर्श पर बिखरी चीजों पर निगाह डाली । कैपसूल वहीं पड़ा था, जहां उसने गिराया था ।
उसने कैपसूल उठाकर खोला और चैक किया ।
माइक्रो फिल्म की स्ट्रिप उसी में पाकर उसने बड़ी भारी राहत महसूस की ।
ठीक तभी बाहर कहीं पास ही पुलिस साइरन की तेज चीख सुनाई दी तो विक्रम बुरी तरह चौंक गया ।
उसे समझते देर नहीं लगी कि फायरों की आवाज सुनकर किसी ने पुलिस को फोन कर दिया था । लेकिन वह पुलिस के झमेले में पड़कर वक्त जाया करना नहीं चाहता था । क्योंकि एक हत्यारा अभी भी खुला घूम रहा था । और पुलिस के चक्कर में पड़ने से सारा मामला चौपट हो सकता था ।
उसने कैपसूल अपनी टिकिट पॉकेट के हवाले किया और दरवाजे की ओर झपटा ।
लेकिन जल्दबाजी में वह उस कुर्सी से टकराया, जिस पर आफताब आलम बैठा था, और फिर कुर्सी को लिए-दिए फर्श पर जा गिरा ।
उसी क्षण, इमारत के बाहर साइरन की अन्तिम चीख और ब्रेकों की चरमराहट का मिला-जुला शोर सुनाई दिया ।
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