अफरोज शक्ल–सूरत से कोई ज्यादा खूबसूरत नहीं थी । लेकिन जो उसके पास था उसे सही ढंग से इस्तेमाल करना अच्छी तरह जानती थी । सत्ताइसेक वर्षीया और साढे पांच फुट कद वाली अफरोज के मुनासिब कसाव और उत्तेजक सुडौल उभारों वाले जिस्म पर जो पहनती थी वही खूब फब्ता था । अपने शरीर को मर्दों की पसंद और चाहत के मुताबिक इस्तेमाल करना उसकी खास खूबी थी । उसकी मादक चाल और हावभाव में एक नशा था, जो किसी भी मर्द के अन्दर वासना की आग भड़का सकता था ।



पिछले करीब चौबीस घण्टे उस पर बहुत भारी गुज़रे थे । इसके बावजूद रंजीत को वह असगर अली के मुकाबले में बेहतर नजर आयी । आंखों के नीचे हालांकि हल्की स्याह झाईयां उभरी हुई थी जिसकी वजह संभवतया थकान और नींद पूरी न होना थी । लेकिन उन्हें मेकअप की परत के नीचे आसानी से छिपाया जा सकता था और इसके लिये शायद उसे पूरा वक्त नहीं मिल पाया था । फिर भी पुलिस ने उसे कपड़े पहनने और तैयार होने का जितना कम वक्त होटल में दिया था, उसमें भी अफरोज ने खुद को सही ढंग से सँवार लिया था ।



कंधों पर फैले उसके घने बाल साफ और सलीके से संवारे हुये थे । लेकिन बड़ी–बड़ी आंखों में बेचैनी भरी उलझन और भय मिश्रित अविश्वास की झलक साफ नोट की जा सकती थी । वह जीन्स और स्लीवलेस टॉप पहने थी । उसका कोट दूसरी कुर्सी की पुश्त पर रखा था ।



कमरे में एक लेडी कांस्टेबल भी मौजूद थी ।



अफरोज गोद में हाथ रखे कुर्सी में पसरी थी । मेज पर चाय का जूठा प्याला रखा था ।



रंजीत मुस्कराता हुआ धीरे–धीरे मेज की ओर बढ़ा और सामने पड़ी कुर्सी पर बैठ गया । नजरें बराबर अफरोज पर टिकी थीं ।



–"मैं इंसपेक्टर रंजीत मलिक हूं ।"



–"मैं जानती हूँ आप कौन हैं ।" वह जान–बूझकर धीमे स्वर में बोली ताकि दरवाजे में खड़ी कांस्टेबल न सुन पाये–"में रीटा की सहेली हूं ।"



इस सर्वथा अनपेक्षित बात ने रंजीत के दिमाग में खतरे की घण्टी–सी बजा दी । रीटा वो कॉलगर्ल थी जिसके पास उस रात सूजी का फोन आने के बाद वह हमबिस्तरी के लिये गया था और जो उसकी प्लांड मैरिज के अंत की शुरूआत थी । हरएक पुलिस वाले के लिये यह खतरा हमेशा बना रहता था कि कभी भी उस आदमी या पेशेवर लड़की के दोस्त या सहेली से मुलाकात हो सकती थी जिसे वह खास किस्म की प्रोटेक्शन दे रहा था । ऐसी स्पेशल प्रोटेक्शन आमतौर पर सभी दिया करते थे । यह अलग बात थी कि ऐसा करने की वजह कुछ भी हो सकती थी–जानकारी हासिल करना किसी रिश्तेदार को बचाना, सैक्स, शराब वगैरा । इसके पीछे और भी बहुत से मकसद थे फिर भी प्रेशर का खतरा हमेशा बना रहता था और इस बात को दबाये रखने की हर मुमकिन कोशिश की जाती थी ।



वही रंजीत ने किया ।



–"तुम बाहर जाओ ।" वह दरवाजे के अंदर खड़ी कांस्टेबल की ओर गरदन घुमाकर बोला ।



कांस्टेबल तनिक हिचकिचाई मानों प्रतिवाद करना चाहती थी । किसी औरत को मर्द पुलिस ऑफिसर के साथ इंटेरोगेशन रूम में अकेला छोड़ना नियमों के खिलाफ था लेकिन नियमों को पहले भी ताक पर रखे जाते वह देख चुकी थी ।



–"मैं दरवाजे के बाहर रहूँगी, सर ।" वह बोली ।



–"नहीं, तुम जाओ । जरूरत पड़ेगी तो बुला लूँगा ।"



वह बेमन से बाहर निकली । दरवाज़ा बंद करके चली गयी ।



–"सिगरेट पियोगी ?" रंजीत ने पूछा ।



–"जरूर ।"



रंजीत ने विल्स किंग साइज का पैकेट और लाइटर निकालकर मेज पर रख दिये ।



अफरोज ने सिगरेट सुलगाकर गहरा कश लिया । फिर तनिक आगे झुक गयी । इस प्रयास में उसके वक्ष इतने ज्यादा तन गये कि उनके अग्रभाग के सिरे गोल घुंडियों की तरह साफ नजर आने लगे । बारीक कपड़े के टॉप के नीचे कुछ भी वह नहीं पहने थी ।



–"शुक्रिया !" शान्त स्वर में बोली–"अगर आप चाहें तो हम भी आपस में वही सिलसिला कायम कर सकते हैं, जो आपका रीटा के साथ है ।"



–"लेकिन मैंने तो सुना है तुम शादी करने वाली हो ।"



–"किसने कहा ?"



–"तुम्हारे दोस्त असगर अली ने ! उसका कहना है तुम उसकी मंगेतर हो ।"



–"वह बेवकूफ़ है ।"



–"कैसे ?"



–"मुझ जैसी लड़कियों के साथ ऐश तो हर मर्द करना चाहता है लेकिन हमेशा के लिये साथ बांधकर कोई नहीं रखना चाहता । वैसे भी किसी एक औरत के साथ बंधकर रहना मर्दों की फितरत नहीं होती ।"



–"तो तुम असगर अली की मंगेतर नहीं हो ?"



–"बिल्कुल नहीं !"



–"लेकिन उसके साथ रहती हो ।"



–"हां ! क्योंकि वो मेरा पेशा है । वैसे भी अकेली लड़की के लिये दुनिया में जीना बहुत मुश्किल है ।"



–"लेकिन फारूख और अनवर के लिये काम करना और ज्यादा मुश्किल है और किसी हद तक खतरनाक भी ।"



–"हो सकता है ।"



–"फिर क्यों उनके लिये काम करती हो ?"



–"इसलिये कि सड़कों पर घूम–फिरकर जिस्मफरोशी के मुकाबले में यह कहीं ज्यादा बेहतर है । रेगुलर और मोटी आमदनी है । बगैर सरदर्दी के ग्राहक भी अच्छे मिलते हैं और किसी हद तक महफूजियत भी है । जबकि सड़कों पर भटकने में घटिया और सस्तापन है । कोई महफूजियत नहीं । बेवजह की दुश्वारियां ज्यादा है । इस बात का भी पता नहीं होता अगला ग्राहक कौन और कैसा होगा । किस गंदगी के ढेर, पागल या बदमाश के साथ रात गुजारनी पड़ेगी ।"



–"फिर भी मेरे ख्याल से इन खतरों के मुकाबले में हसन भाइयों के लिये काम करना ज्यादा खतरनाक है ।"



अफरोज ने पुन: गहरा कश लिया । वह कुछ नहीं बोली ।



–"तुमने हमीदा बानो का नाम सुना है ?" रंजीत ने टोका ।



–"उसके बारे में मैं सब जानती हूं और इससे भी बखूबी वाक़िफ़ हूं कि किन हालात में हूं । लेकिन मेरे पास और कोई चारा भी तो नहीं है ।"



–"मुझे तुम्हारी बात पर यकीन है । तुम्हारी पोजीशन को भी समझ सकता हूं और तुम्हें यकीन दिलाता हूं तुम बिना कोई लिखित बयान दिये यहां से जा सकती हो । इस कमरे में न कोई गुप्त माइक है और न ही कैमरा । हमारी बातें सिर्फ हम दोनों तक ही रहेंगी । किसी को भी पता नहीं चलेगा हमारे बीच क्या बातें हो रही हैं ।"



–"आप बस मुझसे कुछ जानना चाहते हैं और हो सकता है एक वादा भी...और शायद यह भी कि जब कभी जरूरत या अकेलासपन महसूस करो तो मेरे साथ रात गुजार सको ।"



–"ऐसा ही कुछ समझ लो ।"



वह तनिक मुस्करायी ।



–"आप मुझ जैसी लड़कियों को जानते हैं । हम सभी को कभी–कभार पुलिस वालों और फारूख और अनवर जैसे लोगों का पहलू आबाद करना ही पड़ता है । यह हमारे लिये जरूरी है । ठीक वैसे ही जैसे जिंदा रहने के लिये हवा की जरूरत होती है ।"



–"तुम गलत समझ रही हो । तुम्हारा जिस्म मुझे नहीं चाहिये...।"



अफरोज को एकाएक यकीन नहीं आया ।



–"कमाल है ।"



–"कैसे ?"



–"मैं पहली बार किसी आदमी के मुंह से अपने लिये इंकार सुन रही हूं । क्या मैं इतनी बुरी हूं कि आपको पसंद नहीं ?"



–"ऐसी बात नहीं है...।"



–"ओह, समझी, आपको रीटा ही पसंद है ।"



–"ऐसा भी नहीं है । दरअसल यह मेरा शौक नहीं है । ऐसे पचड़ों से दूर ही रहता हूं । आमतौर पर इसकी जरूरत नहीं होती ।"



–"लेकिन मुझे सही–सलामत जिंदा रहने की जरूरत है ।"



–"तुम जिंदा रहोगी और सही–सलामत भी ।"



–"वादा ?"



–"पक्का वादा !"



–"ओ० के० ! क्या जानना चाहते हो ?"



–"तुम अभी भी धंधा करती हो ?"



–"हां, लेकिन प्राइवेटली ।"



–"कितना प्राइवेटली ?"



–"मैं पैराडाइज क्लब में होस्टेस का काम करती हूं ।"



–"तुम्हारा मतलब है, करती थी ।"



अफरोज की आँखें सिकुड़ गयीं ।



–"क्या ? में समझी नहीं ।"



–"मैं भूल गया था, तुमने खबर नहीं सुनी...!"



–"कैसी खबर ?" फौरन पूछा ।



–"पैराडाइज क्लब आज सुबह तबाह हो गया । रात में किसी ने बम रख दिया था ।"



–"ओह !"



–"वहां फिलहाल कोई काम नहीं करेगा ।"



अफरोज ने सिगरेट का अवशेष चाय के प्याले में झोंक दिया ।



–"तो फिर मुझे किसी दूसरे क्लब में भेज दिया जायेगा ।" गहरी सांस लेकर बोली ।



–"तुम सिर्फ होस्टेस हो ? ग्राहकों से गपशप करके उनका दिल बहलाती हो ?"



–"नहीं, इस काम के लिये दूसरी लड़कियाँ हैं । मुझे खास दर्जा मिला हुआ है ।"



–"खास ग्राहकों, हसन भाइयों के दोस्तों वगैरा के लिये रिजर्व रहती हो ?"



–"ऐसा ही कुछ है ।"



–"और वहां काम करने वालों के लिये भी ?"



–"अब से पहले मैं दोनों भाइयों के साथ भी जा चुकी हूं ।"



–"बढ़िया गुजरी होगी ?"



–"ऐसा नहीं था । मेरा ख्याल है, वे मेरा इम्तहान ले रहे थे । मैं उसमें पास हो गयी तो खास दर्जा मिल गया । वे मेरे साथ अच्छा बर्ताव करते हैं । कोई कमी मुझे नहीं होती ।"



–"पैसे के लिहाज से ?"



–"हाँ ।"



–"लेकिन तुम पढ़ी–लिखी, जवान, खूबसूरत और समझदार लड़की हो । इसमें फ्युचर नाम की कोई चीज नहीं है ।"



–"जानती हूं । आप कुछ और पूछना चाहते हैं ।"



–"राकेश मोहन को जानती हो ?"



–"जी नहीं !"



–"उससे कभी मिली नहीं ?"



–"नहीं !"



–"नाम सुना है ?"



–"नहीं !"



रंजीत को वह सच बोलती नजर आयी ।



–"कुछ नाम और हैं–विक्टर, लिस्टर, दिनेश और अब्दुल तारिक !"



–"पहले दो नामों से वाक़िफ़ हूं । लेकिन भूल जाइये कि मैंने आपको बताया है ।"



–"ठीक है ! अगर मैं तुम्हें एक टेलीफोन नम्बर दूं तो क्या तुम मुसीबत में होने पर या कुछ बताना चाहो तो मुझे फोन करोगी ?"



अफरोज ने धीरे से सर हिलाकर हां कर दी । रंजीत ने अपनी नोट बुक निकाली ।



–"बस बता दो, मुझे याद रहेगा ।" अफरोज ने कहा–"अपने बैग में ऐसे कागज रखना मुझे पसंद नहीं है ।"



रंजीत ने हैडक्वार्टर्स का नंबर बता दिया, जहां से कोई भी मैसेज उसे पास किया जा सकता था ।



अफरोज ने नोट बुक अपनी ओर खिसका ली ।



–"पैन दीजिये ।"



रंजीत ने दे दिया ।



अफरोज ने खाली पेज पर एक नम्बर लिख दिया ।



–"अगर इस पर फोन करके कहोगे कि राजेश बोल रहा हूं तो मैं समझ जाऊंगी कि आप बोल रहे हैं ।"



–"थैंक्यू ।"



रंजीत उठकर दरवाजे की ओर बढ़ गया । फिर दरवाज़ा खोलने से पहले उसकी ओर पलटा ।



–"डॉन को जानती हो ?"



–"अमिताभ बच्चन की पुरानी फिल्म का नाम है ।"



–"पूरा नाम है–डॉन पीटर डिसूजा ! सुना है ?"



–"नहीं ।"



–"अपनी आँखें और कान खुले रखना । अगर कुछ...!"



–"ठीक है । और कुछ ?"



–"अच्छी लड़की बनने की कोशिश करो ।"



–"मैं बहुत अच्छी हूं । सबसे अच्छी ।"



रंजीत ने दरवाज़ा खोलकर लेडी कांस्टेबल को पुकारा ।



–"मैडम जा सकती हैं । बाहर पहुंचा दो ।"