दूसरी सुबह मेहमान और घर वाले सभी बड़ी बेचैनी से कर्नल ज़रग़ाम का इन्तज़ार कर रहे थे। वह ली यूका के काग़ज़ात का पैकेट ले कर अकेला देवगढ़ी की तरफ़ गया था। सबने उसे समझाने की कोशिश की थी कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं, मगर कर्नल किसी को भी अपने साथ ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ था। इमरान तो रात ही से ग़ायब था। उन्होंने उसे बड़ी देर तक चट्टानों और गुफाओं में तलाश किया था और फिर थक-हार कर वापस आ गये थे।
सोफ़िया को भी इमरान की इस हरकत पर आश्चर्य था, मगर उसने किसी से कुछ नहीं कहा।
लगभग दस बजे कर्नल ज़रग़ाम वापस आ गया। उसके चेहरे से थकन ज़ाहिर हो रही थी। उसने कुर्सी पर गिर कर अपना जिस्म फैलाते हुए एक लम्बी अँगड़ाई ली।
‘क्या रहा?’ कर्नल डिक्सन ने पूछा।
‘कुछ नहीं! वहाँ बिलकुल सन्नाटा था। मैं पैकेट एक महफ़ूज़ जगह पर रख कर वापस आ गया।’ ज़रग़ाम ने कहा। थोड़ी देर ख़ामोश रहा फिर कहने लगा, ‘वहाँ से सही-सलामत वापस आ जाने का मतलब ये है कि अब ली यूका मुझे या मेरे ख़ानदान वालों को कोई नुक़सान नहीं पहुँचायेगा।’
वह अभी कुछ और भी कहता, लेकिन अचानक उन सबने इमरान का क़हक़हा सुना। वह कन्धे से एयरगन लटकाये हाथ झुलाता हुआ कमरे में दाख़िल हो रहा था। उसके चेहरे पर उस वक़्त सामान्य से ज़्यादा मूर्खता बरस रही थी।
‘वाह कर्नल साहब!’ उसने फिर क़हक़हा लगाया, ‘ख़ूब बेवक़ूफ़ बनाया ली यूका को...नऊज़ुबिल्लाह...नहीं शायद सुब्हानल्लाह कहना चाहिए...वाक़ई आप बहुत ज़हीन आदमी हैं।’
‘क्या बात है?’ कर्नल ज़रग़ाम झुँझला गया।
‘यही पैकेट रखा था न आपने!’ इमरान जेब से भूरे रंग का एक पैकेट निकाल कर दिखाता हुआ बोला।
‘क्या!...यह क्या किया तुमने?’ कर्नल उछल कर खड़ा हो गया।
इमरान ने पैकेट फाड़ कर उसके काग़ज़ात फ़र्श पर डालते हुए कहा।
‘ली यूका से मज़ाक़ करते हुए आपको शर्म आनी चाहिए थी। इसके बावजूद भी उसने आपको ज़िन्दा रहने दिया।’
फ़र्श पर बहुत सारे सादे काग़ज़ात बेतरतीबी से बिखरते हुए थे। कर्नल बौखलाये हुए अन्दाज़ में बड़बड़ाता हुआ काग़ज़ों पर झुक पड़ा।
‘मगर!’ वह चन्द लम्हे बाद बदहवासी में बोला, ‘मैंने तो काग़ज़ात रखे थे। तुमने इसे वहाँ से उठाया ही क्यों?’
‘इसलिए कि मैं ही ली यूका हूँ।’ इमरान ने गरज कर कहा।
‘त-त...तुम!’ कर्नल हकला कर रह गया। बाक़ी लोग भी मुँह खोले हुए इमरान को घूर रहे थे। अब इमरान के चेहरे पर मूर्खता की बजाय ओज बरस रहा था।
‘नहीं...नहीं!’ सोफ़िया ख़ौफ़ज़दा आवाज़ में चीख़ी।
इमरान ने कन्धे से ऐयरगन उतारी और उसे बारतोश की तरफ़ तान कर बोला।
‘मिस्टर बारतोश, पिछली रात तुम मुझे पकड़ने की स्कीमें बना रहे थे। अब बताओ...तुम्हें तो मैं सबसे पहले ख़त्म कर दूँगा।’
‘यह क्या बदतमीज़ी है?’ बारतोश ज़रग़ाम की तरफ़ देख कर ग़ुर्राया, ‘मैं इसे नहीं बर्दाश्त कर सकता।’ फिर वह कर्नल डिक्सन से बोला, ‘मैं किसी होटल में रहना ज़्यादा पसन्द करूँगा। यह बदतमीज़ सेक्रेटरी शुरू ही से हमारा मज़ाक़ उड़ाता रहा है।’
‘जरग़ाम!’ डिक्सन ने कहा, ‘ऐसे बेहूदा सेक्रेटरी से कहो कि वह मिस्टर बारतोश से माफ़ी माँग ले।’
‘मिस्टर बारतोश।’ इमरान चुभते हुए लहजे में बोला, ‘मैं माफ़ी चाहता हूँ। लेकिन तुम असली काग़ज़ात का पैकेट हज़म नहीं कर सकोगे। बेहतर यही है कि उसे मेरे हवाले कर दो।’
‘क्या मतलब?’ कर्नल ज़रग़ाम एक बार फिर उछल पड़ा।
बारतोश का हाथ बड़ी तेज़ी से जेब की तरफ़ गया। लेकिन दूसरे ही पल इमरान की एयरगन चल गयी। बारतोश चीख़ मार कर पीछे हट गया। उसके बाज़ू से ख़ून का फ़व्वारा निकल रहा था।
फिर उसने इमरान पर छलाँग लगायी। इमरान बड़ी फुर्ती से एक तरफ़ हट गया। बारतोश अपने ही ज़ोर में सामने वाली दीवार से जा टकराया। इमरान उसके कूल्हे पर ऐयरगन का कुन्दा रसीद करता हुआ बोला, 'कन्फ्यूशियस ने कहा था...’
बारतोश फिर पलटा...लेकिन इस बार उसका रुख़ दरवाज़े की तरफ़ था!...
‘यह क्या बेहूदगी है?’ कर्नल ज़रग़ाम हलक़ फाड़ कर चीख़ा। ठीक उसी वक़्त इन्स्पेक्टर ख़ालिद कमरे में दाख़िल हुआ और उसने भागते हुए बारतोश की कमर पकड़ ली। हालाँकि बारतोश के बाज़ू की हड्डी टूट चुकी थी, लेकिन फिर भी उसका झटका इतना ज़ोरदार था कि ख़ालिद उछल कर दूर जा गिरा।
इस बार इमरान ने राइफ़ल का कन्धा उसके सिर पर रसीद करते हुए कहा, ‘कनफ़्यूशियस इसके अलावा और क्या कहता!’
बारतोश चकरा कर गिर पड़ा...इमरान उसे गिरेबान से पकड़ कर उठाता हुआ बोला।
‘ज़रा ली यूका की शक्ल देखना। वह ली यूका जिसने दो सौ साल से दुनिया को चक्कर में डाल रखा था!’
‘क्या तुम पागल हो गये हो!’ कर्नल डिक्सन चीख़ कर बोला...
इमरान ने उसकी तरफ़ ध्यान दिये बग़ैर इन्स्पेक्टर ख़ालिद से कहा।
‘उसके पास से असली काग़ज़ात का पैकेट बरामद करो।’
इस दौरान वर्दीधारी और हथियारबन्द कॉन्स्टेबलों के जत्थे इमारत के अन्दर और बाहर इकट्ठा होते जा रहे थे!’
इमरान ने ली यूका या बारतोश को एक आराम-कुर्सी में डाल दिया।
उसके कपड़ों की तलाशी लेने पर वाक़ई उसके पास से ख़ाकी रंग का सील किया हुआ पैकेट बरामद हुआ। ख़ालिद ने उसे अपने क़ब्ज़े में कर लिया।
बारतोश पर बेहोशी छाने लगी थी। फिर अचानक उसकी आँखें बन्द हो गयीं।
‘तुम्हारे पास क्या सबूत है कि यह ली यूका है?’ कर्नल डिक्सन ने कहा।
‘आहा...कर्नल!’ इमरान मुस्कुरा कर बोला, ‘कल रात उसने क्या कहा था...ली यूका काग़ज़ात ख़ुद हासिल कर लेगा। उसने ठीक ही कहा था। हासिल कर लिये उसने। उसके अलावा दुनिया का कोई आदमी ली यूका नहीं हो सकता। पिछली रात उसने इस क़िस्म की बातें कर्नल का भरोसा हासिल करने के लिए की थीं। क्यों कर्नल! आपने उसी के सामने काग़ज़ात का पैकेट बनाया था?’
‘ये सभी मौजूद थे।’ कर्नल ज़रग़ाम सूखे होंटों पर ज़ुबान फेर कर बोला।
‘मुझे इस पर उसी दिन शक हो गया था जब यह मुझे जड़ी-बूटियों की तलाश के बहाने चट्टानों में ले गया था और वापसी पर मैंने सोफ़िया को ग़ायब पाया था। बहरहाल, कल रात को उसने काग़ज़ात अपने क़ब्ज़े में कर लिये थे और उनकी जगह सादे काग़ज़ात का पैकेट रख दिया था। क्यों कर्नल डिक्सन, यह तुम्हारा दोस्त कब बना था?’
‘आज से तीन साल पहले! जब यह लन्दन में रहता था!;
‘शिफ़्टेन को ले जाओ इन्स्पेक्टर!’ इमरान ने ख़ालिद से कहा, ‘शिफ़्टेन या ली यूका...तुमने आज एक बहुत बड़े मुजरिम को गिरफ़्तार किया है। वह मुजरिम जो दो सौ साल से सारी दुनिया को उँगलियों पर नचाता रहा है।’
‘दो सौ साल वाली बात मेरी समझ में नहीं आती।’ ख़ालिद ने कहा।
‘तुम इसे फ़िलहाल ले जाओ। दो घण्टे बाद मुझसे मिलना रिपोर्ट तैयार मिलेगी। इमरान बोला, ‘बहरहाल, ली यूका को तुमने गिरफ़्तार किया है। अली इमरान एम.एस-सी., पी-एच.डी. का नाम कहीं नहीं आना चाहिए।’
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