भूत-बँगला
यह दादीजी थीं जिन्होंने निर्णय लिया कि हमें घर बदल लेना चाहिए।
और यह सब एक प्रेत की वजह से था, एक शरारती भूत जिसने सबका जीना मुश्किल कर दिया था।
प्रेत अक्सर पीपल के पेड़ पर रहते हैं और यही वह जगह थी जहाँ हमारे प्रेत का घर था—पीपल के पेड़ की पुरानी शाखाओं पर जो कि चारदीवारी से बाहर बढ़ गयी थीं और एक तरफ़ बगीचे में फैली थीं और दूसरी तरफ़ सड़क पर।
बहुत सालों तक प्रेत वहाँ बहुत आनन्द से रहा है, बिना घर में किसी को तंग किये हुए। मुझे लगता है कि सड़क के ट्रैफिक ने उसे व्यस्त रखा था। कभी जब कोई ताँगा गुज़र रहा होता तो वह घोड़े को डरा देता होगा और इस वजह से छोटी घोड़ा गाड़ी दूसरी दिशा में डगमगा जाती।
कभी-कभी वह कार या बस के इंजन में घुस जाता, जिससे वह तुरन्त ही बन्द हो जाता और वह साहिबों के सिर से सोला टोपी उड़ा देता, जो कोसते और आश्चर्य करते कि कैसे अचानक हवा बही और उतनी ही तेज़ी से गायब भी हो गयी। हालाँकि प्रेत खुद का अनुभव करा सकते हैं और उन्हें सुना भी जा सकता है, वह इन्सानों की आँखों से अदृश्य था।
रात में लोग उस पीपल के पेड़ के नीचे से गुज़रना टालते। यह कहा जाता था कि अगर आप पेड़ के नीचे जम्हाई लेंगे तो प्रेत आपके गले के अन्दर कूद जायेगा और आपकी पाचन क्रिया को नष्ट कर देगा। हमारा माली मनफूल, जो हमेशा छुट्टियाँ लेता रहता, अपने पेट की सभी समस्याओं के लिए प्रेत को ज़िम्मेदार ठहराता। एक बार जम्हाई लेते समय मनफूल अपने मुँह के आगे हाथ रखना भूल गया और प्रेत बिना किसी दिक्कत के अन्दर आ गया।
लेकिन उसने हमें अकेला छोड़ रखा था, जब तक पीपल का पेड़ काट नहीं दिया गया।
यह हमारी गलती नहीं थी, सिर्फ़ इस बात के अलावा कि दादाजी ने पी.डब्ल्यू.डी. को पेड़ काटने की अनुमति दी थी, जो हमारी ज़मीन पर था। वे सड़क को चौड़ा करना चाहते थे और पेड़ और हमारी दीवार का थोड़ा-सा हिस्सा रास्ते में आ रहा था; इसलिए दोनों को हटाना पड़ा। किसी भी सूरत में भूत तक पी.डब्ल्यू.डी. पर हावी नहीं हो सकता था।
लेकिन मुश्किल से एक दिन बीता होगा, जब हमने पाया कि पेड़ से वंचित प्रेत ने बँगले में अपना आवास बनाने का निर्णय लिया है।
और चूँकि एक अच्छे प्रेत को अपने अस्तित्व का औचित्य साबित कराने के लिए बुरा बनना होता है, उसे घर में हर तरह का उपद्रव करते बहुत देर नहीं लगी।
उसने शुरुआत दादीजी का चश्मा छुपाने से की, जब भी वह उसे उतारतीं।
“मुझे यकीन है कि मैंने चश्मा ड्रेसिंग टेबल पर रखा था,” वह बड़बड़ायीं।
कुछ देर बाद यह बड़े ही जोखिम के साथ बरामदे में सजे जंगली सूअर के खतरनाक सिर के थूथन पर सन्तुलित किया गया था। घर का एकमात्र लड़का होने की वजह से मुझ पर सबसे पहले इल्ज़ाम आया; लेकिन एक या दो दिन बाद, चश्मा फिर से गायब हो गया और इस बार जब तोते के पिंजरे की सलाखों में झूलता मिला तो सब सहमत हो गये कि यह किसी और का काम है।
परेशान होने वालों में अगले दादाजी थे। वह एक सुबह बगीचे में गये तो उन्होंने पाया कि उनके कीमती मीठे मटर के फूल उखड़े हुए हैं और ज़मीन पर पड़े हैं। अंकल केन इस बात पर कायम रहे कि बुलबुलों ने फूलों को नष्ट किया है, लेकिन हमें नहीं लगता था कि बुलबुलें सूरज के उगने से पहले सभी फूलों को खत्म कर सकती थीं।
अंकल केन खुद भी जल्दी ही प्रताड़ित होने वाले थे। वह सोने में माहिर थे और एक बार जब वह बिस्तर पर जाते तो उन्हें उठाये जाने से नफ़रत थी। इसलिये जब वह नाश्ते की मेज़ पर नींद भरी आँखों के साथ दुःखी नज़र आये, तो हमने उनसे पूछा कि वह स्वस्थ महसूस कर रहे हैं या नहीं।
“मैं कल रात एक झपकी भी नहीं ले सका,” उन्होंने शिकायत की, “हर बार जब मैं सोने को होता, बिस्तर की चादर बिस्तर से कोई खींच देता। मुझे उसे ज़मीन पर से उठाने के लिए दर्जनों बार उठना पड़ा।” उन्होंने मुझे कष्ट से घूरा, “तुम कल रात कहाँ सोये थे, बच्चे?”
“दादाजी के कमरे में,” मैंने कहा।
“यह सही है,” दादाजी ने कहा, “और मेरी नींद हल्की है। मैं उठ गया होता अगर यह नींद में चल रहा होता।”
“यह पीपल के पेड़ का भूत है,” दादी माँ ने दृढ़तापूर्वक कहा, “यह घर में आ चुका है। पहले मेरा चश्मा, फिर मीठी मटर और अब केन के बिस्तर की चादर! मुझे चिन्ता है कि वह आगे पता नहीं क्या करने वाला है?”
हमें बहुत ज़्यादा दिन नहीं सोचना पड़ा। उसके बाद आपदाओं का एक हफ़्ता गुज़रा। मेज़ से गुलदान गिरने लगे, तोते के पंख चाय की केतली में मिलने लगे, जबकि तोता खुद आधी रात में गुस्से में कर्कश आवाज़ें निकालता रहा। खिड़कियाँ जो बन्द की गयी थीं, खुली मिलीं और खुली खिड़कियाँ बन्द। अंकल केन को अपने बिस्तर में कौवे का घोंसला मिला और जब अंकल केन उसे खिड़की से बाहर फेंक रहे थे तो दो कौवों ने उन पर आक्रमण कर दिया।
जब मेबेल आंटी रहने आयीं, चीज़ें और बिगड़ गयीं। ऐसा लगा कि प्रेत ने उन्हें तुरन्त ही नापसन्द कर दिया। वह एक अधीर और शीघ्र उत्तेजित होने वाली युवती थीं, एक द्वेषपूर्ण भूत के लिए बिलकुल सही शिकार। किसी तरह उनका टूथपेस्ट दादा जी के शेविंग क्रीम के ट्यूब से बदल गया; और जब वह बैठक में आयीं, मुँह से झाग निकालते हुए तो हम अपनी जान बचाकर भागे। अंकल केन यह चिल्लाते हुए कि आंटी को रेबीज़ हो गया।
दो दिनों बाद मेबेल आंटी ने शिकायत की कि एक चकोतरे से उनकी नाक पर मारा गया है जो कि बेवजह भंडारघर के ताक से उछला और कमरे को पार करते हुए उन्हें पूरे वेग से आ लगा। उनकी घायल और फूली हुई नाक इस आक्रमण की गवाही दे रही थी।
“हमें यह घर छोड़ना ही होगा,” दादीजी ने कहा, “अगर हम ज़्यादा दिन यहाँ रहे तो केन और मेबेल दोनों को नर्वस ब्रेकडाउन हो जायेगा।”
“मुझे लगा मेबेल आंटी का बहुत पहले ही नर्वस ब्रेकडाउन हो गया है,” मैंने कहा।
“तुम्हें क्या मतलब,” मेबेल आंटी मुझे काटने दौड़ीं।
“कोई बात नहीं, मैं घर बदलने को लेकर सहमत हूँ,” मैंने उत्तेजना से कहा, “मैं अपना गृहकार्य भी नहीं कर पाता। स्याही की बोतल हमेशा खाली मिलती है।”
“कल रात सूप में स्याही थी,” अंकल केन ने शिकायत की।
“हमें जाना ही होगा, मुझे लगता है,” दादाजी ने कहा, “यह भले ही कुछ हफ़्तों के लिए हो। शायद भूत चला जाये। मेरे भाई का घर बार्लोगंज में है। वह उसे कुछ महीनों तक नहीं इस्तेमाल कर रहा है। हम अगले हफ़्ते ही चले जायेंगे।”
और इस तरह कुछ दिनों और कई आपदाओं के बाद, हमने घर बदल लिया।
फ़र्नीचर और भारी सामानों से भरी बैलगाड़ी आगे भेज दी गयी। हमारी पुरानी फोर्ड गाड़ी की छत बैग और रसोई के बर्तनों से भरी थी। सब किसी तरह कार में अंट गये, दादा जी ने चालक की सीट पकड़ी।
“क्या तोता सामान के रैक पर बाहर है,” दादाजी ने कहा।
“नहीं,” दादी माँ ने कहा, “वह मनफूल के साथ बैलगाड़ी पर है।”
दादाजी ने कार रोकी, बाहर निकले और छत के ऊपर देखा।
“ऊपर कोई नहीं है,” उन्होंने अन्दर आकर इंजन चालू करते हुए कहा, “मैंने सोचा कि तोता बोल रहा है।”
दादाजी हमें लेकर सड़क पर कुछ फ़र्लांग ही चले थे जब दबी हँसी फिर से शुरू हो गयी, शुद्ध हिन्दी में बकबक करती हुई। हम सबने उसे सुना और समझा कि वह क्या कह रहा था। वह प्रेत था जो खुद से बातें कर रहा था।
“चलो—आओ चलें!” उसने आनन्दित होते हुए कहा, “नया घर—एक नया घर! कितना मज़ा आयेगा… मुझे कितना मज़ा आने वाला है!”
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