राजा हरिश्चन्द्र बनने से काम नहीं चलेगा बबलू के पापा ।” सुजाता ने कहा -“कुछ करना होगा हमें। आखिर बबलू हमारा बेटा है।


“कैसा बेटा है वो मेरा ।” बुरी तरह भन्नाया सत्य प्रकाश चीख पड़ा— “मेरा बेटा होता तो कभी ऐसा काम कर ही नहीं सकता था।” तभी वहां एक नई आवाज गूंजी— “बबलू आप ही का बेटा है अंकल क्योंकि...क्योंकि उसने वैसा कुछ नहीं किया जैसा पुलिस कह रही है ।”


सुजाता और सत्य प्रकाश ने एक साथ पलटकर दरवाजे की तरफ देखा।


वहां एक गुड़िया जैसी लड़की खड़ी थी। स्वीटी थी वह ।


सत्य प्रकाश ने पूछा— “तू कौन है ?”


“दोस्त हूं बबलू की, उसके साथ पढ़ती हूं।” 


“तुझे कैसे मालूम उसने वह सब नही किया और फिर, नहीं किया तो उनके गहने कैसे बरामद हुए बबलू के स्कूल बैग से? कैसे फुट स्टैप्स राजदान के बैडरूम से मिले? कुछ ही देर पहले एस. एस. पी. से हमारी बात हुई है । उसका कहना है— बबलू ने खुद अपना गुनाह कुबूल कर लिया। उस बेक्कूफ ने जो कुछ किया हमारे द्वारा लिये गये कर्जे की चुकाने के लिये किया और अब तो उसकी निशानदेही पर खून से सने कपड़े भी बरामद कर लिये गये हैं।”


“वही सब बताने आई हूं मैं यहां ।” स्वीटी बोली—“बबलू ने कहा था— उसकी गिरफ्तारी आपको बहुत दुखी कर देगी । तब, मुझे सामने आकर आपको सच्चाई बतानी है ताकि आप और ज्यादा दुखी न हों।” 


सत्य प्रकाश ने चौंके हुए स्वर में पूछा – “कहना क्या चाहती है तू?" 


“बता तो मैं दूंगी अंकल लेकिन उससे पहले आपको वादा करना होगा, वे बातें आप किसी और को नहीं बतायेंगे।” 


“बात आखिर है क्या?” उत्कंठा की ज्यादती के कारण सत्य प्रकाश चीखा सा पड़ा । 


“बबलू ने वही किया है जो चाचू ने कहा "


“र - राजदान ने?”


“हां ।”


“क्या कहा उसने ?”


“यह कि पुलिस जो भी चार्ज लगाये वह उस सबको कुबूल कर ले बल्कि एक कहानी भी सुनाई। वही कहानी जो बबलू ने पुलिस स्टेशन में पुलिस को सुनाई होगी। चाचू ने कहा था— 'तुझे हर एक्टिंग से खुद को मेरा हत्यारा साबित करना है। ऐसा कोई प्लाईंट बाकी नहीं रह जाना चाहिये जिसके बेस पर लोग सोच सकें तू झूठ बोल रहा है।”


“य-ये क्या बात हुई भला?” सत्य प्रकाश की खोपड़ी उलट गई— “ऐसा क्यों कहा राजदान ने?”


“उन्हें सबक सिखाने के लिए जो उनका मर्डर कर देना चाहते थे।”


“बात कुछ समझ में नहीं आ रही । बक क्या रही है तू? पूरा किस्सा बता ।”


“पूरा किस्सा तो न मुझे मालूम है न बबलू को।” स्वीटी कहती चली गई—“काफी पूछा मैंने लेकिन चाचू ने नहीं बताया। कहने लगे—‘बस इतना समझ लो, कुछ लोग मेरी हत्या करना चाहते हैं । इस जुर्म में वे तुम्हें (बबलू को) फंसाने की कोशिश करेंगे। तुम्हारा काम होगा — खुद को मेरा हत्यारा साबित करना ताकि 'वे' इस भ्रम में रहें कि उनकी योजना कामयाब हो गयी है।” 


“अजीब बात है, ऐसा क्यों चाहता था राजदान?”


“हमने काफी पूछा। चाचू ने बताया नहीं। कहने लगे— 'मुझसे प्यार करते हो, मुझ पर विश्वास करते हो तो वही करोगे जो मैं कह रहा हूं।”


“और बेवकूफ बना बबलू वह सब करता चला गया । खुद को हत्यारा कह रहा है राजदान का । आखिर ...आखिर ये बात क्या हुई?” कहते-कहते सत्य प्रकाश ने अचानक झपटकर स्वीटी का हाथ पकड़ लिया । कहा – “ -“तुझे हमारे साथ पुलिस स्टेशन चलना होगा। वहां कहना होगा यह सब जो तूने अभी-अभी कहा।”


“नहीं अंकल। मैं वहां नहीं जाऊंगी। वहां नहीं कहूंगी मैं ये सब । इस तरह तो चाचू का पूरा प्लान ही फेल हो जायेगा। नाराज हो जायेगा बबलू मुझसे।”


“राजदान का प्लान आखिर था क्या?”


“हमें नहीं मालूम।”


“अजीब आदमी था राजदान । पता नहीं बच्चों को किस झमेले में फंसा गया । आ! तुझे पुलिस को यह सब बताना होगा।” कहने के साथ सत्य प्रकाश ने उसे दरवाजे की तरफ घसीटना शुरू कर दिय।


स्वीटी उसके साथ जाना नहीं चाहती थी । वह चीख-चीखकर सुजाता से कहने लगी- “आंटी, बचाओ मुझे। समझाओ अंकल को । मैंने तो पहले ही वादा ले लिया था ये बातें किसी और को नहीं बताई जायेंगी । पुलिस को तो किसी कीमत पर नहीं ।” सुजाता के मुंह से बोल न फूट सका । बुत की मानिन्द खड़ी थी वह पेंचदार बातें उसकी समझ में बिल्कुल नहीं आ रही थीं। समझ नहीं पा रही थी क्या करे, क्या न करे ?


स्वीटी को खींचता सत्य प्रकाश दरवाजे के नजदीक पहुंचा ही था कि ठिठककर रुक जाना पड़ा।


दरवाजे की बीचो-बीच उनका रास्ता रोके एक शख्स खड़ा था ।


उसकी शक्ल नहीं देख सकते थे वे ।


जिस्म पर भारी बूट, काली पतलून, ओवरकोट और हैट था। ओवरकोट के कॉलर खड़े थे । हैट ललाट पर झुका हुआ। दोनों ने मिलकर उसके चेहरे को छुपा रखा था । काफी देर तक सुजाता, सत्य प्रकाश और स्वीटी हकबकाये से उसे देखते रहे। हिम्मत करके सत्य प्रकाश ने पूछा- “क-कौन हो तुम?”


आगे बढ़ने के साथ उसने ओवरकोट के कॉलर गिरा लिये, हैट सीधा कर लिया। “र-राजदान भैया!” सुजाता के हलक से चीख निकल गई। स्वीटी कह उठी— “चाचू”


सत्य प्रकाश इस तरह मुंह बाये उसे देखे चला जा रहा था जैसे उस ‘मैसेज’ पर विश्वास न कर पा रहा हो जो उसकी आंखे दिमाग को दे रही थीं। मुंह से निकला—“अ-आप?...आप जिन्दा हैं?”


“क्या अब भी आपके शक है मास्टरजी ?” वह कुछ और आगे बढ़े।


“म-मगर । य-ये क्या चमत्कार है भैया?” सुजाता कह उठी— “आपकी लाश दूसरे लोगों की तरह हमने भी अपनी आंखों से देखी है। यहां से बबलू को गिरफ्तार करके जब वे विला में ले गये तो हम भी साथ थे | अगर तुम ये हो तो वह लाश किसकी थी?” 


“सुजाता बहन, क्या तुमने उसका चेहरा देखा था?”


“चेहरा और सिर तो गोली लगने के कारण... उफ्फ! तो क्या वह किसी और की लाश थी?”


“इतना तो अब तुम लोग समझ ही सकते हो ।”


“ल-लेकिन।” सत्य प्रकाश ने कहा – “ –“ये चक्कर आखिर है क्या राजदान साहब? बबलू को आपने किस झमेले में फंसा दिया?” 


“क्या आप ऐसा सोच सकते हैं मास्टरजी कि हम बबलू को किसी झमेले में फंसायेंगे?” 


“सोच तो नहीं सकते थे मगर...


“मगर?”


“वह आपकी हत्या के इल्जाम में थाने में है ओर ये लड़की...


“जो कुछ इसने कहा, ठीक कहा ।” राजदान उसकी बात काटकर कह उठा – “बबलू जो भी कर रहा है, वह हम ही ने उससे कहा है। विश्वास रखो, हम फना हो सकते है मगर बबलू का बाल तक बांका नहीं होने दे सकते । अगर यूं कहा जाये तो गलत नहीं होगा- - अगर वक्त रहते हमें दुश्मन का प्लान पता न लग जाता तो आज बबलू सचमुच हमारी हत्या के जुर्म में फंसा होता। इस कदर कि दुनिया की कोई ताकत उसे बचा नहीं सकती थी।”


“हम कुछ समझे नहीं।”


“उनका प्लान हमारा मर्डर करके बबलू को फंसाने का था। ऊपर वाले की कृपा से वक्त रहे हमें पता लग गया। हमने अपना ‘क्लोन’ तैयार किया। उनके हाथों उसकी हत्या होने दी और उन्हीं के प्लान के मुताबिक बबलू को फंसने दिया ताकि वे पूरी तरह इस खुशफहमी के शिकार हो सकें कि वे कामयाब हो गये हैं।”


“कौन लोग हैं वे और आप उन्हें इस भ्रम में क्यों फंसाये रखना चाहते हैं?”


“इस बात को अभी मास्टरजी कि वे कौन हैं? वक्त के साथ बेनकाब होना ही है उन्हें । हम इसी मिशन पर काम कर रहे हैं। हम समझ सकते हैं—आपको बबलू की स्थिति परेशान कर रही है। उसी परेशानी को दूर करने के लिए स्वीटी की ड्यूटी लगाई गई थी लेकिन हमें पहले ही शक था – आप इसकी बातों से संतुष्ट नहीं हो सकेंगे इसलिये खुद सामने आना पड़ा। हमारे ख्याल से आपको यह हकीकत जानने के बाद बेफिक्र हो जाना चाहिये कि जिसकी हत्या के इल्जाम में बबलू गिरफ्तार है वह जिन्दा है और ऐसा शख्स है जो किसी हालत में उस पर कोई आंच नहीं आने देगा ।”


“वो सब तो ठीक है मगर...


“मगर?”


“ये चक्कर आखिर है क्या?”


“हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूं आपसे ।” राजदान ने सचमुच हाथ जोड़ लिए— “किसी चक्कर को समझने की कोशिश न करें। कोशिश के बावजूद वे पेंचदार बातें आप जैसे सीधे-सीधे आदमी की समझ में नहीं आयेंगी। बस यूं समझिये, बबलू को इस झमेले में फंसाने के लिए हम इसलिये मजबूर हो गये क्योंकि पहले ही से उनका प्लॉन उसे फंसाने का था । न होता तो वह काम जो हम बबलू से ले रहे हैं, यकीनन किसी और से लेते। बावजूद इसके, आपको बाल बराबर चिंता करने की जरूरत नहीं है। हम जिस क्षण चाहेंगे बबलू को कानून की गिरफ्त से निकाल लायेंगे।”


सत्य प्रकाश और सुजाता चुप रह गये।


राजदान ने अपने म्युजिकल लाईटर से एक सिगार सुलगाया, पूछा— “क्या आपको मुझ पर यकीन नहीं है?” 


“क-कैसी बातें कर रहे हो राजदान भैया?” सुजाता कह उठी – “आप पर यकीन और वो भी बबलू के सम्बन्ध में ?... मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है, आप उसे हम दोनों से ज्यादा प्यार करते हैं। आपके रहते सचमुच कुछ नहीं हो सकता।” 


“बस!...यही विश्वास चाहिये हमें आपका ।” कहने के बाद वह सत्य प्रकाश के नजदीक पहुंचा । बोला – “मास्टर जी! जरा सोचिये, हमें खुद प्रकट होकर आपको यह सब बताने की क्या जरूरत थी? जो चल रहा था चलने देते। दूसरे लोगों की तरह आप भी स्वप्न तक में हमारे जीवित होने की कल्पना नहीं कर सकते थे। केवल आपके दुख को दूर करने, आपको निश्चिंत करने हेतु सामने आना पड़ा और अब...हमें आपका सहयोग चाहिये ।”


“हमारा सहयोग ?”


“केवल इतना- आप वक्त से पहले किसी को हमारे जीवित होने के बारे में नहीं बतायेंगे बल्कि अपनी किसी गतिविधि से भी ऐसा जाहिर नहीं होने देंगे कि आपको बबलू की कोई फिक्र नहीं रही है। चिंताग्रस्त मां-बाप की भूमिका ही निभाते रहना है आपको ।” 


“ल-लेकिन... बबलू पुलिस के चंगुल से कब छूटेगा ?” बड़ी ही रहस्यमय मुस्कान उभरी राजदान के होठों पर । बोला – “यह काम तो आज रात ही होने वाला है।”


******


अपने फ्लैट का दरवाजा खोलते ही ठकरियाल के कानों में राजदान की आवाज पड़ी— “वैलकम! वैलकम ठकरियाल । मैं जानता हूं तुम्हारे दिमाग के पावर हाऊस के बहुत सारे फ्यूज उड़े पड़े होंगे। उन्हीं को जोड़ने के लिये पेश है ये टपरिकार्डर।” 


आवाज बंद हो गयीय ।


ठकरियाल की नजरें घूमकर उस टेपरिकार्डर पर स्थिर हो गयीं जो मुख्य दरवाजे के पीछे एक टेबल पर रखा गया था। उसमें मौजूद केसिट अभी-भी घूम रही थी । ठकरियाल ने एक ही नजर में देख लिया - फ्लैट के मुख्य द्वार से कनेक्टिड एक तार का दूसरा सिरा टेपरिकार्डर के ‘प्ले’ वाले स्विच से जूड़ा थां कुछ इस तरह कि उसके द्वारा दरवाजा खोलते ही टेप ‘ऑन' हो गया था। अभी ठकरियाल उस सारे सिस्टम को समझने की कोशिश कर ही रहा था कि टेप से निकलकर राजदान की आवाज पुनः कमरे में गूंजी – “फिक्र मत करो। तुम्हारी राईटिंग टेबल की सबसे ऊपर वाली दराज में एक कागज है। उसे पढ़ो और जानो । कुछ देर बाद बबलू भी तुम्हारे पंजे से निकल चुका होगा।”


ठकरियाल ने फुर्ती से के साथ अंदर वाले कमरे की तरफ जम्प लगाई।


******


रात का अंधेरा । हर तरफ सन्नाटा ।


थाने में मौजूद लगभग सभी सिपाही अपनी-अपनी कुर्सियों पर पड़े ऊंघ रहे थे। उन्हीं में रामोतार भी था।


वह, जो वास्तव में नहीं ऊंघ रहा था ।


बल्कि।


केवल एक्टिंग कर रहा था ऊंघने की ।


उसने गर्दन अपनी छाती पर लटकाये एक आंख खोली।


उसी से बाकी सिपाहियों का निरीक्षण किया।


संतुष्ट होने के बाद दूसरी आंख भी खोली।


चेहरा सीधा किया और कुर्सी से उठ खडा हुआ । इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि उसकी किसी हरकत से कोई आहट उत्पन्न न हो सके।


चोरों की मानिन्द दबे पांव टॉर्चर रूम की तरफ बढ़ा ।


बंद दरवाजे के नजदीक पहुंचा। दोनों किबाड़ों के बीच बनी झिर्री से अंदर झांका ।


टॉर्चर रूम में वकीलचंद के खर्राटे गूंज रहे थे। अजीब ढंग के खर्राटे थे उसके। खर्रांटों के साथ होठों में कम्पन हो रहा था। झाग निकल रहे थे।


केवल बबलू था जो ऊंघ नहीं रहा था । कुर्सी पर सीधा बंधा बैठा था वह ।


रामोतार ने उसकी परवाह किये बगैर आहिस्ता से दरवाजा खोला। वकीलचंद ज्यों का त्यों खरींटे मारता रहा । रामोतार और बबलू की नजरें मिलीं।


जाहिर था - - जो हो रहा है, दोनों की मिली भगत से हो रहा है । बबलू की की नजर भी वकीलचंद पर थी, रामोतार की भी। अगले पल, बगैर कोई आवाज पैदा किये रामोतार वकील चंद के नजदीक पहुंच गया। जेब से एक छोटी सी शीशी निकाली।


दोनों के होठों पर मुस्कान उभरी।


कार्क खोला ।


और ।


केवल एक पल के लिये उसे वकीलचंद की नाक के नीचे ले गया। अगले पल–वकीलचंद के खर्राटों ने दम तोड़ दिया।


चेहरा कुछ और ज्यादा छाती पर लुढ़क गया। “बस ।” बबलू ने कहा- -“काम हो चुका है।”


रामोतार ने फुर्ती के साथ शीशी पर कार्क लगाया। वापस जेब के हवाले । लपककर बबलू के नजदीक पहुंचता बोला— “थोड़ा लेट हो गया बाहर वे साले सोये ही नहीं थे।”


बबलू ने केवल इतना ही कहा – “कोई बात नहीं।”


“लो।” रामोतार ने एक ब्लेड निकालकर उसे दिया — “बंधन काट लो ।”


“उसमें टाईम लगेगा, तुम खोल दो न ।”


“ठकरियाल साहब कनकव्वा बना देंगे मेरा । वे समझ जायेंगे...


“इतना ही तो समझेंगे मुझे फरार करने में इस वक्त यहां मौजूद किसी पुलिसिये का हाथ है, वह तुम हो—यह कैसे समझ सकेंगे? सबको कनकव्वा बनाना पड़ेगा उन्हे।”


“ठकरियाल साहब का अभी नाम ही नाम सुना है तुमने । काम से वाकिफ नहीं हो उनके। उन्हें एक बार शक हो गया तुम्हारी फरारी में किसी पुलिसिये का हाथ है तो उनके हाथों को मेरी गर्दन तक पहुंचने में देर नहीं लगेगी। इसलिये वही सही है जो पहले सोचा था। सब सोते रह गये। मैं भी। और तुम अपने पास मौजूद ब्लेड से रस्सियां काटकर उड़नछू हो गये।”


बबलू ने बगैर कुछ कहे दायें हाथ की अगुलियों में फंसे ब्लेड से उसी हाथ के गट्टे पर बंधी रस्सी को काटना शुरू किया। कई बार अंगुलिया चुकी भी। ब्लेड हाथ पर लगा | थोड़ा-बहुत खून भी निकला । रामोतार तो चाहता ही यह था। यह कि जो कहानी वह ठकरियाल को समझाने वाला है, उसके सुबूत भी घटनास्थल पर बिखरे मिलें।


शुरू-शुरू में बबलू को दिक्कत हुई मगर जैसे-जैसे कटने के कारण रस्सी का कसाव ढीला पड़ा, काम आसान होता चला गया। एक हाथ आजाद होने के बाद दूसरे हाथ को और उसके बाद पैरों को आजाद करने के लिये ब्लेड की जरूरत नहीं थी। बबलू कुर्सी से खड़ा हो गया ।


कलाईयां रगड़ीं।


रामोतार ने कहा- -“बाहर जो मेरे संगी-साथी हैं उन्होंने क्लोरोफॉर्म नहीं सूंघा है । जरा सी आहट से चौकस हो सकते हैं अतः बिल्ली की मानिंद निकल जाओ।”


“फिक्र मत करो।” कहने के साथ बबलू दूरवाजे की तरफ बढ़ गया।


रामोतार ने पूछा—“मैं अपनी जगह पर जाऊं?” 


“ओ. के.!”


“तब, लगभग दोनों साथ-साथ टॉर्चर रूम से बाहर निकले।”


रामोतार उस कुर्सी की तरफ बढ़ा जिस पर इस कार्यवाही से पहले था, बबलू ऑफिस से बाहर निकलने के लिये दरवाजे की तरफ। जब तक बबलू थाने के आंगन में पहुंचा तब तक रामोतार अपनी कुर्सी पर पड़ा इस तरह ऊंघ रहा था जैसे सदियों से उसकी यही पोजीशन हो।


थाने का मुख्य द्वार क्रास जाने करने के लिये बबलू को मुश्किल से पांच-छः कदम बढ़ाने थे कि कानों में किसी वाहन के इंजन की आवाज पड़ी।


दायीं तरफ से हैड लाईट चमकी ।


मुख्य द्वार पर ऊंघ रहा सिपाही हड़बड़ाकर उठा।


उसी क्षण । बबलू ने आंगन में रखे वाटर कूलर के पीछे जम्प न लगा दी होती तो जीप की हैड लाईट की रोशनी से नहा गया होता। क्योंकि उसी जल रोशनी ने दायीं तरफ से घूमकर थाने के पूरे आगंन को प्रकाशमान कर दिया था। जीप बड़ी तेजी से आंगन में आई थी। टायरों की चरमराहट के साथ रुकी। ठकरियाल बाहर कूदा । मुख्य द्वार पर तैना सिपाही ने बौखलाकर सल्यूट मारा। रात की नीरवता पूरी तरह भंग हो चुकी थी। ठकरियाल ने कड़क आवाज में मुख्य द्वार पर तैनात सिपाही कसे कहा – “तू सो रहा था रामधन?” 


“न-नहीं तो सर ।” उसने हकलाते हुए जवाब दिया।


“सब ठीक है न ?”


“जी।” “गड़बड़ तो नहीं है कोई?” पूछने के साथ ठकरियाल ऑफिस की तरफ बढ़ा। 


“नो सर ।” सिपाही उसके पीछे लपका। 


बबलू को समझते देर नहीं लगी, कुछ देर बाद यहां हंगामा खड़ा होने वाला है। बस ये कुछ ही पल थे उसके पास गायब हो जाने के लिये। उधर वे दोनों ऑफिस के अंदर दाखिल हुए इधर बबलू ने वाटर कूलर की बैक से निकलकर थाने से बाहर की तरफ दौड़ लगा दी।


जीप के इंजन की आवाज, उसकी हैड लाइट और थाने के आंगन से उपजी टायरों की चरमराहट के कारण ऊंघ रहे सभी सिपाही हड़बड़ा गये थे। अभी सम्भलने का प्रयत्न कर ही कर रहे थे कि ठकरियाल जिन्न की तरह अंदर घुस आया। वहां का नजारा देखा उसने ।


एक ही पल में सब समझ गया ।


“तो तुम सब ख्वाबों में ड्यूटी कर रहा थे?” ठकरियाल गुर्राया। रामोतार सहित किसी के मुंह से बोल न फूटा।


चेहरे पर गुस्सा लिये ठकरियाल टॉर्चर रूम की तरफ बढ़ा। दरवाजा खोलते ही बुरी तरह चौंक पड़ा। चीखा – “कहां गया बबलू?” 


“य - यही तो था साब ।” रामोतार ने कहा ।


“कहां है यहां?” दहाड़ता हुआ ठकरियाल टॉर्चर रूम में पहुंचा। झंझोड़कर वकीलचंद को उठाने की कोशिश की।


वह कुर्सी से गिर पड़ा मगर जगा नहीं। सभा पुलिस वाले दंग थे। हैरान! डरे हुए ।


जो नहीं था, वह भी खुद को उन्हीं जैसा दर्शा रहा था ।


उसके बाद जो ठकरियाल ने हंगामा मचाया है तो रामोतार सहित सभी पुलिस वालों की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। यह कहता हुआ वह दौड़कर आंगन में भी पंहुचा कि 'तलाश करो उसे । मुमकिन है अभी यहीं कहीं छुपा हो ।'


सिपाही इधर उधर भागने लगे।


ठकरियाल जीप लेकर खुद थाने के बाहर गया। करीब एक किलोमीटर जाने के बाद वापस आया परन्तु बबलू को न हाथ लगना था, न लगा। मारे गुस्से के ठकरियाल का बुरा हाल था। सिवाहियों का लग राह था- ऐसी शामत पहले कभी नहीं आई जैसी आज आई है।


पन्द्रह मिनट बाद वह पुनः टॉर्चर रूम में मौजूद था । कटी हुई रस्सी और ब्लेड को देखकर रामोतार ने कहा था—“पता नहीं हरामी ने ब्लेड कहां छुपा रखा था।"


“क्या कहना चाहता है?” ठकरियाल गुर्राया।


“लगता तो यही है साब, ब्लेड उस पर पहले से था । मौका लगते ही रस्सी काट और...


“बेहोश किसने कर दिया वकीलचंद को ?”


“ज-जी?”


“हकीकत वो नहीं है जो मुझे दिखाने की कोशिश की जा रही है” ठकरियाल गुरार्या—“हकीकत ये है कि तुममें से कोई न कोई यकीनी तौर पर उस लड़के से मिला हुआ था। उसी ने मदद की है उसे यहां से निकालने में।” 


अवाक् रह गये सब।


होश फाख्ता ।


सबने एक-दूसरे की तरफ देखा — जैसे गद्दार को तलाश करने की कोशिश कर रहे हों ।


खुद रामोतार की हालत भी बैरंग थी ।


यह सोचकर कि असलियत ताड़ ही गया ठकरियाल ।


वह ठकरियाल जिसने वहां मौजूद एक-एक सिपाही को कच्चा चबा जाने वाली नजरों से घूरते हुए कहा – “सजा सबको मिलेगी। सभी गुनेहगार हो तुम। ड्यूटी के नाम पर सोते रहे और कैदी फरार हो गया मगर तुममें से कोई एक खास गुनाहगार है। वह, जिसने वकीलचंद को बेहोश किया। बबलू को ब्लेड मुहैया कराया | बेहतर है, वह खुद आगे आकर अपना गुनाह कुबूल कर ले । मैंने तुम लोगो के बीच से खोजकर निकाला तो ऐसी हालत कर दूंगा जैसी आज तक किसी पुलिस वाले की नहीं हुई होगी।” सन्नाटा खिंचा रहा।


क्या बोलता कोई?


सभी की टांगें कांप रही थीं ।


एक पुराने हवलदार ने कहा – -“सर, इजाजत दें तो मैं कुछ पूछ लूं?”


ठकरियाल जानता था, वह एक ईमानदार हवलदार है । बोला— “क्या जानना चाहते हो?”


“अ - आपको कैसे विश्वास है , हम में से कोई...


“रहमत खन, वकीलचंद के बेहोश पाये जाने से सारी तस्वीर साफ है ।” ठकरियाल गुर्राया— “अगर उस लड़के पास पहले से ब्लेड था और वकीलचंद के ऊंघते उसने अपनी रस्सी काटी तो रस्सी कटने के बाद वकीलचंद को बेहोश करने की जरूरत नहीं थी। यहां से भी उसी तरह निकल जाता जैसे तुम सबके ऊंघते निकल गया । जाहिर है — वकीलचंद को रस्सी काटने से पहले बेहोश किया गया क्योंकि ऊंघता हुआ आदमी वैसी आहटों से जाग सकता है और ... बंधा हुआ वह लड़का तो यह काम कर नहीं सकता। स्पष्ट है, तुम्हीं लोगों में से किसी ने किया होगा।”


“तो फिर ब्लेड की क्या जरूरत थी सर, जो मिला हुआ था- वह हाथों से ही खोल देता ।”


“इस दृश्य को देखकर तो कोई भी पुलिस वाला पहली नजर में समझ जाता बबलू किसी पुलिस वाले की मदद से भागा है इसलिये मददगार ने वैसा नहीं किया। यह तरकीब इसलिये इस्तेमाल की ताकि उसी तर्क के साथ बच सके जो तुम दे रहे हो । तरकीब थी भी बेहतरीन। अगर मैं इस वक्त न आ जाता सुबह ही बबलू की फरारी का पता लगता तो वही समझा जाता जो तुम कह रहे हो क्योंकि तब तक वकीलचंद को होश आ चुका होता । वह खुद नहीं जान पाता— ऊंघने के बीच कुछ देर के लिए बेहोश भी हुआ था। गड़बड़ यही हो गयी। यह कि मैं इस वक्त आ टपका। तब, जबकि वकीलचंद बेहोश है। मेरे असमय आने के कारण ही तुममें से किसी का प्लान चौपट हुआ है।”


रहमत खान या किसी और की समझ में कुछ आया हो या न आया हो परन्तु रामोतार जान चुका था—ठकरियाल सब कुछ समझ चुका है। अब तो बस एक ही आसरा था— इतने स्टाफ के बीच से उसे... अकेले उसी को भला कैसे छांटा जा सकता था? एक बार फिर टॉर्चर रूम में सन्नाटा छा गया था। ठकरियाल ने एक-एक को घूरते हुए कहा – “यानी तुम्हारे बीच छुपा बबलू का मददगार खुद सामने आने को तैयार नहीं है?”


पुनः • ब्लेड की धार जैसा सन्नाटा छाया रहा।


“ओ. के.!” ठकरियाल के जबड़े कस गये – “गोपी को छोड़कर सब बाहर चले जायें।”


“म-मैं सर ?” गोपी नामक पुलिसिये का चेहरा पीला पड़ गया।


“हां तुम "


घिग्घी बंध गई उसकी। गिड़गिड़ उठा – “अ- अपने बच्चों की कसम साब। मैंने कुछ नहीं किया ।”


“मैंने कब कहा तुमने किया है ?"


“फ-फिर साब! मुझी को क्यों रोक रहे हैं आ...


“शटअप!” ठकरियाल जोर से दहाड़ा ।


गोपी सहमकर चुप रह गया ।


“बाकी सब बाहर जाओ और ... नजर रखना एक-दूसरे पर । तुम्हारे बीच कोई एक गद्दार है। वह नहीं पकड़ा गया तो सभी गुनाहगार माने जाओगे।”


सिर लटकाये सब बाहर चले गये ।


गोपी अपने स्थान पर खड़ा सूखे पत्ते की मानिन्द कांप रहा था।


ठकरियाल ने हुक्म दिया— “दरवाजा अंदर से बंद कर लो।”


गोपी दरवाजे की तरफ यूं बढ़ा जैसे पैरों में मन-मन भर वजन बंधा हो ।


हालत खराब थी उसकी ।


जैसे अब रोया... कि अब रोया ।


दरवाजा बंद करते ही पलटा और दौड़कर ठकरियाल के कदमों से जा लिपटा । रोता हुआ कहता चला गया वह- "म-मेरा विश्वास करो साब, मैंने कुछ नहीं किया।”


ठकरियाल ने उसका कॉलर पकड़ा। ऊपर उठाता बोला— “ड्यटी कहां थी तेरी?” 


“व-वायरलैस पर सर ।"


“सो रहा था या जग रहा था ?”


वह फफक पड़ा—“स- सो रहा था साब।”


“जेब का सामान निकालकर यहां रख दे।” ठकरियाल ने उस कुर्सी की तरफ इशारा किया जिस पर कुछ पहले बबलू बंधा था। गोपी उसके आदेश का मतलब नहीं समझ सका । इसलिये पूछा— “जी?” 


“सीधी-सीधी बात समझ में नहीं आती क्या तेरे ? सब जेबों का सामान निकालकर यहां रख दे ।” समझ गोपी अब भी कुछ नहीं सका मगर, लगा- इस बार अगर उसने हुक्म का पालन नहीं किया तो मुमकिन है, गद्दी पर ठकरियाल का घूंसा आ लगे अतः कुछ इस तरह अपनी सभी जेबों का सामान निकालकर कुर्सी पर रख दिया जैसे वीडियो फिल्म को ‘फास्फोरवर्ड’ पर सैट कर दिया गया हो । ठकरियाल ने सामान पर नजर डाली । एक माचिस, बीड़ी का बण्डल, कुछ रुपये, रेजगारी और चंद मुड़े - तुड़े कागजों के अलावा कुछ नहीं था। “अब तू जा । और सुन... कोई भी पूछे, मैंने तुझसे क्या पूछा | क्या कराया तो कुछ नहीं बतायेगा।” 


“ज- जी ।”


“किश्नपाल को भेज । "


वह इस तरह दरवाजे की तरफ लपका जैसे शेर के पंजे से निकलकर हिरन भागा हो। कुछ देर बाद ।


किशनपाल आया।


ठकरियाल ने पूछा


“जी।"


-“बाहर गोपी से किसी ने कुछ पूछा?”


"जी।"


“क्या पूछा?”


“यही...कि आपने क्या पूछा?”


“किसने पूछा?”


“रामोतार ने।”


ठकरियाल की आंखे चमक उठीं। बोला— “कुछ बताया गोपी ने?”


“नहीं ।” 


“तू जा ।... रामोतार को भेज दे।” 


“ज-जी?” किशनपाल को आश्चर्य हुआ । शायद इसलिये क्योंकि एक तरह से उससे कुछ भी नहीं पूछा गया था । जब ठकरियाल ने उससे दूसरी बार जाने को कहा तो वह दरवाजे की तरफ बढ़ गया। कुछ देर बाद रामोतार अंदर आया । कुर्सी पर रखे गोपी की जेब के सामान पर नजर पड़ते ही झटका सा लगा उसे। दिमाग मे सवाल उभरा – क्या ठकरियाल सबकी तलाशी ले रहा है ? उफ्फ!...क्लोरोफॉर्म की शीशी अभी तक उसकी जेब में है। उसे ठिकाने लगाने का न तो मौका मिला, न ही ख्याल आया। हे भगवान्! क्या वह पकड़ा गया ? उसे घूरते हुए ठकरियाल ने हुक्म दिया— “जेबों से सामान निकालकर यहां रख दे रामोतार।” वह समझ गया — खेल खत्म हो चुका है। सो, बोला— “बबलू की मदद मैंने की है साब।” 


“ये नहीं पूछा मैंने।” ठकरियाल के जबड़े कस गये। दांत भंचकर गुर्रा उठा वह — “जेबों से सामान निकालकर इस कुर्सी पर रखने के लिये कहा है।” रामोतार ने सामान निकालकर कुर्सी पर रख दिया। उसमें क्लोरोफॉर्म की शीशी भी थी । ठकरियाल ने शीशी उठाई। उसे अपनी अंगुलियों के बीच घुमाता बोला— “क्यों किया ऐसा?” 


“दो-दो लाख की खातिर ।” 


“किसने दिये पैसे ?” “राजदान साहब ने ।” 


“र-राजदान ने?...वह तो मर चुका है ।”


“वे जिन्दा है साब ।”


“मतलब?”


“आज शाम मेरे क्वार्टर पर आये थे।”


“आज शाम ? जबकि वह कल रात मर चुका है।”


“मरने वाला कोई और होगा साब । वे 'वे' ही थे ।”


“खैर! सौदा क्या हुआ तेरा उससे?”


“पहले तो उन्हें अपने सामने देखपकर घिग्घी ही बंध गई मेरी । आप समझ सकते है, सारे दिन जो आदमी जिस शख्स की लाश के आसपास रहा हो। जिसकी लाश को खुद पोस्टमार्टम पहुंचाकर घर पहुंचा हो उसे अपने सामने जीता-जागता खड़ा देखकर क्या हालत हुई होगी। बड़ी मुश्किल से विश्वास कर सका, वे राजदान ही थे। बोले- – 'मैं जिन्दा है, उसकी हत्या के आरोप में पकड़ा गया शख्स भला कुसूरवार कैसे हो सकता है।' मैंने पूछा— 'यहां क्यों आयें है आप? बोले – ‘रात को किसी भी तरह तुम्हें बबलू को थाने से फरार करना है।' मैंने कहा – –'मैं भला ऐसा कैसे कर कर सकता हूं।' तब उन्होंने दो लाख की पेशकश की। मेरे लिये दो लाख काफी थे। लालच आ गया साब। सोचा — 'मैं भला ऐसा कैसे कर सकता हूं जब रात के वक्त ड्यूटी पर मौजूद सभी पुलिस वाले ऊंघ रहे होंगे।’ वह दृश्य आज ही का नहीं, हर रात का होता है साब। कौन थाने में सारी रात जागकर ड्यूटी देता है। फिर भी कहा - -'मैंने अगर सीधे-सीधे बबलू फरार किया तो पकड़ा जाऊंगा ।' तब उन्होंने मुझे क्लोरोफॉर्म की यह शीशी और ब्लेड दिया। सारी योजना समझाई। मुझे लगा—मेरा उससे ज्यादा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है जितना दूसरे सिपाहियों का बिगड़ेगा। दो लाख कमाने के इस मौके को मैंने न गंवाना मुनासिब समझा।"


“रकम मिली?”


“आधी उन्होंने तभी दे दी थी । आधी अब... यानी काम होने के बाद घर पहुंच गई होगी।” 


“तेरी बीवी के पास?”


“जी।"


“यानी वो भी शामिल है तेरी काली करतूत में?” 


“बीवी से भला क्या छुपा रह जाता है साब?” कुछ देर उसे घूरता रहा ठकरियाल । फिर बोला -“तो आज तू अपनी नौकरी गंवाने और जेल जाने को तैयार है?”

रामोतार ने बहुत आराम से कहा – “नहीं साब।” 


“क्या...क्या तू सोचता है मैं तुझे छोड़ दूंगा? माफ कर दूंगा इतना बड़ा गुनाह ?” 


“जी साब ।” रामोतार ने अजीब स्वर में कहा- -“सोचता तो मैं कुछ ऐसा ही हूं।" 


ठकरियाल गुर्रा उठा— “दिमाग खराब हो गया है क्या तेरा ?” 


“साब।... वजह है मेरे ऐसा सोचने की ।”


“क्या वजह है ?”


“आपने मेरी पोल खोली तो मैं आपकी पोल खोल दूंगा।” 


“मेरी पोल?”


“मैंने तो एक छोटे से बच्चे को फरार ही किया है साब, आपने तो क्रियाकर्म ही कर दिया दो बालिग हस्तियों का । शांतिबाई और विचित्रा था उनका नाम । (पढ़े- -'कातिल हो तो ऐसा') उस काम के पच्चीस लाख कमाये थे आपने। मुझे या थाने के किसी अन्य स्टाफ को उसमें से इकन्नी नहीं मिली। उनके बाद आप मेरे और थाने के दूसरे स्टाफ के सामने दूध के धूले के धूले ही बने रहे।” 


“ओह! तो तू ये सब जानता है ?”


“हां साब ।”


“कैसे?”


“कैसे क्या साब? इसी थाने में तैनात हूं। आंखें खुली रखता हूं, इसलिये जान गया | उनकी गिरफ्तारी पर ही समझ गया था कोई न कोई घुटाला होने वाला है। पिछली बार उनसे पीछा छुड़ाने के राजदान साहब ने पचास लाख दिये थे। इस बार भी कुछ देना ही था, सो दिया और आपने पल्ला पसार कर लिया ।”


ठकरियाल घूरता रह गया उसे ।


रामोतार कहता चला गया— “साब, क्या मेरी यही शराफत काफी नहीं है कि आज से पहले मैंने इस सम्बन्ध में आपसे कोई बात नहीं की? फूटी कौड़ी की डिमांड नहीं की पच्चीस लाख में से?”


“अब क्या चाहता है ?”


“चाहता क्या साब। इसके अलावा और चाह भी क्या सकता हूं—दो लाख मुझे भी कमाने दीजिये। जरूरत से ज्यादा दिमाग घुमाने की जरूरत ही क्या है आपको? बस इसी कहानी को फाईनल रहने दीजिये – बबलू ने पहले ही से अपने पास कहीं ब्लेड छुपा रखा था। वकीलचंद के ऊंघने का फायदा उठाकर रस्सी काटी और हमारे ऊंघने का फायदा उठाकर फरार हो गया । आपके अलावा सारे थाने की लापरवाही के खिलाफ जांच होगी। होती रहे । रोज होती हैं ऐसी जांचे। सारा स्टाफ चंदा करके जांच करने वाले के हलक में उतार देगा। निकल जायेगी जांच की कांच ।”


कुछ देर ठकरियाल उसे घूरता रहा। फिर आंखों में मौजूद सख्ती नम पड़ती चली गई । होठ मुस्करा उठे | बोला- –“मानना पड़ेगा रामोतार, खिलाड़ी तू भी पक्का है ।” 


रामोतार ने हाथ जोड़कर कहा – -“शिष्य हूं साब आपका! कच्चा कैसे हो सकता हूं?