“आओ इंस्पैक्टर ।” ठकरियाल पर नजर पड़ते ही राजदान ने कहा ---- “ सबसे पहले नाश्ता लो ।” "


“नाश्ता तो मेरा आपको जिन्दा देखकर हो गया ।” लॉबी के दरवाजे से चहलकदमी करता वह डायनिंग टेबल के नजदीक आया----“अब आप सुरक्षित हैं! कोई हत्या नहीं कर सकता आपकी!” कहने के साथ उसने बड़ी गहरी नजरों से देवांश की तरफ देखा था ।


उसकी 'खास नजरों' के कारण देवांश को घबराहट सी होने लगी।


“बस... आते ही करने लगे मरने जीने की बातें ।” राजदान हंसा----“और कोई टॉपिक नहीं है तुम्हारे पास ?”


“हम पुलिस वालों के पास और होता ही क्या है राजदान साहब!"


“मगर बात कुछ समझ में नहीं आई।” दिव्या बोली ----“दोनों ही बातें बड़ी अजीब कहीं तुमने ! पहली - - - - नाश्ता तो मेरा आपको जिन्दा देखकर हो गया ।' दूसरी ---- 'अब आप सुरक्षित हैं, कोई हत्या नहीं कर सकता आपकी ।' क्या मतलब हुआ इन बातों का ?”


ठकरियाल ने दिव्या की तरफ देखा । खासतौर पर उसके वक्ष-स्थल की चोटियों की तरफ ! इस वक्त वह जींस और जिस्म से चिपका 'टॉप' पहने हुए थी। टॉप उसके पुष्ट उरोजों के उफान को और उभार रहा था ।


इससे पहले कि दिव्या, देवांश या राजदान में से कोई 'ताड़ ' सके वह क्या देख रहा है, नजरें चोटियों से हटाकर दिव्या की आंखों में डालता बोला ---- “एक पुलिस इंस्पैक्टर को अपने इलाके में हुआ कत्ल कभी अच्छा नहीं लगता । कत्ल भी अगर ऐसे आदमी का हो जाये जिसकी पहले से संभावना हो तो डूबने के लिए चुल्लू भर पानी भी नहीं मिलता इंस्पैक्टर को | इसलिए नाश्ता तो राजदान साहब को जिन्दा देखकर हो गया क्योंकि जाहिर है 'एक्यूज' अभी तक अपने कुत्सित इरादे में कामयाब नहीं हो सका है। रहा दूसरी बात का मतलब - - - - तो इसका मतलब बिल्कुल साफ है दिव्या जी,


अगर अब तक ये कत्ल नहीं हुआ है तो आगे मैं नहीं होने दूंगा।”


“दावे की वजह ?”


“ मैं हमलावर को पहचान चुका हूं।"


“प-पहचान चुके हो?” अपनी घबराहट को चौंकने में छुपाया देवांश ने----“क-कौन है वो ? कहां है ?”


देवांश पर नजरें टिकाये ठकरियाल ने एक झटके से कह दिया ---- “मेरे सामने । "


“स-सामने?” पसीने छूट गये देवांश के ।


--- “सामने से मतलब ---- मैं जान चुका हूं उसे।” भद्दे होंठों पर धूर्त मुस्कान बिखेरे ठकरियाल ने बात बदल दी - प्लान भी समझ में आ गया है मेरी । यकीनन मैं उसे राजदान साहब पर अगला हमला करने से पहले जेल पहुंचा दूंगा | खतरा खत्म | "


“मुझे बताओ इंस्पैक्टर, कौन है वो? क्यों मारना चाहता था भैया को ?”


“नहीं! तुम्हें नहीं बताया जा सकता ।”


“क- क्यों?”


“ मैंने पहले ही कहा ------इंस्पैक्टर को अपने इलाके में कत्ल होना अच्छा नहीं लगता।"


“मतलब?”


“तुम्हारे तेवर बता रहे हैं, अगर मैंने तुम्हें उसका पता- निशान बता दिया तो तुम्हीं 'पत्ता' साफ कर डालोगे उसका! पता लगा ---- उसकी हत्या - उसकी हत्या के इल्जाम में तुम्हें पकड़ता फिर रहा हूं।"


“बिल्कुल ठीक ठकरियाल । बिल्कुल ठीक सोच रहे हो तुम ।” राजदान कह उठा----“अगर सचमुच उसे पहचान चुके हो तो देवांश के सामने हरगिज नाम मत लेना उसका। पता नहीं ये कम्बख्त क्या कर बैठे ? प्यार ही इतना करता है मुझसे । ”


“इसीलिए तो ।” ठकरियाल राजदान से मुखातिब हुआ ---- “इसीलिए तो उसका नाम सबसे पहले आपको बताने का फैसला किया है मैंने ! क्या मैं एकान्त में बात कर सकता हूं ।”


“क्यों नहीं?"


“तो चलिए अपने बैडरूम में ।”


“ बैडरूम में ही क्यों?”


“ उसका भी कुछ कारण है ।”


“चलो।” कहने के साथ राजदान खड़ा हो गया ।


उसके पीछे जाते ठकरियाल ने न केवल दिव्या और देवांश की तरफ मुस्कान उछाली बल्कि बकायदा हाथ हिलाकर 'बाय' भी की । 'चोर' आखिर चोर होता है, शायद इसीलिए देवांश का दिमाग बुरी तरह सनसना रहा था । उधर वे 'गुम' हुए इधर दिव्या और देवांश की नजरें मिलीं। बहुत ही धीमे स्वर पूछ दिव्या ने----“विचित्रा के फेर में पड़कर कहीं तुम्हीं तो उन्नीस-बीस हरकत नहीं कर बैठे थे ?”


“क- क्या बात कर रही हो?”- कहते वक्त देवांश पसीने-पसीने हो चुका था ।


उधर बैडरूम में पहुंचते ही ठकरियाल ने दरवाजा अंदर से बंद किया। उसकी इस हरकत से सस्पैंस में डूब गया राजदान । अभी कुछ कहने ही वाला था कि ठकरियाल ने पूछा- “क्या दिव्या जी के पास कोई ऐसा पैन है जिसकी कीमत लाखों में है ?”


उछल पड़ा राजदान ! मुंह से निकला ---- “क्यों?”


“प्लीज राजदान साहब ! सवाल नहीं, केवल जवाब दीजिए ।” ठकरियाल ने अपने मुंह से निकलने वाले एक - एक शब्द को प्रभावशाली बनाते हुए कहा---- “क्या ऐसा कोई पैन है ? "


"हे भगवान!” राजदान बड़बड़ा उठा- -“क्या तुम दिव्या पर शक कर रहे हो ?”


“मुझे अपने सवाल का जवाब चाहिए । ”


एकाएक राजदान के जबड़े भिंच गए ---- "मैं तुम्हारे किसी पागलपन में शामिल होकर दिव्या पर शक नहीं कर सकता। अरे वो मारेगी तुझे? वो?... वो तो कच्चा चबा जायेगी उसे जो मुझे मारने की कोशिश करेगा। तुम शायद पागल हो गये हो जो...


“मैंने कब कहा मैं दिव्या जी पर शक कर रहा हूं?”


“ और क्या मतलब हुआ उसके पैन के बारे में पूछने का?... देखो इंस्पैक्टर, समझाये देता हूं मैं तुम्हें । पागलपन से भरी कोई स्टोरी बनाने की जरूरत नहीं है । दिव्या उन दुर्लभ पतिव्रता औरतों में से एक है जिनकी ख्वाहिश हमेशा अपने पति के साथ प्राण त्यागने की हुआ करती है। उस पर शक करने का मतलब है पाप करना ! गुनाह करना !”


“यानि दिव्या जी के पास ऐसा पैन है ।”


“मगर क्यों?” राजदान आपे से बाहर होकर चीख पड़ा ---- “क्यों पूछ रहे हो तुम?


“मुझे एक किताब मिली है। उसकी कुछ खास लाइनों को ‘खास पैन' से अण्डरलाइन किया गया है। एक्सपर्ट । एक्सपर्ट से बात की थी मैंने। उसका कहना है ---- जिस इंक से लाइनें अण्डरलाइन की गई हैं, वह एक विशेष इंक है जो केवल जापान में बिकने वाले उन कीमती पैनों में इस्तेमाल होती है जो दस लाख से एक करोड़ तक की कीमत के होते हैं । सोने के बने होते हैं वे । डायमंड्स भी लगे होते हैं। जितने कीमती डायमंड्स उतना कीमती पैन।”


“मान लो ऐसा है भी, किसी खास किताब की कुछ खास लाइनें दिव्या ने अपने पैन से अण्डरलाइन की हैं ---- तब भी, क्या नतीजा निकलता है इस बात से ?”


“नतीजा बाद में बताऊंगा। प्लीज-~~-वो पैन मुझे दिखाइए । ” 


राजदान ठकरियाल को इस तरह घूरता राइटिंग टेबल की तरफ बढ़ा जैसे कच्चा चबा जाना चाहता हो । दराज खोली और उसमें पड़ा पैन उठाकर ठकरियाल को देता बोला- “ये है वो पैन । ”


उसे देखते ही ठकरियाल की आंखें जुगनुओं की मानिंद चमकने लगीं। पैन को राजदान से यूं छीना जैसे डर हो कि जरा भी देर की तो राजदान पैन उसे देने का विचार बदल सकता है।


पैन्ट और तोंद के बीच से 'विषकन्या' निकाली। राइटिंग चेयर पर बैठा । किताब का वह पृष्ठ खोला जिस पर अण्डरलाइन लाइनें थीं। पैन खोला ! उसी पृष्ठ पर ऊपर की तरफ खाली स्थान पर छोटी सी रेखा खींची। फिर वह रेखा का मिलान अण्डरलाइन से करने लगा। इस सबके दरम्यान राजदान भी उसकी एक-एक गतिविधि को ध्यान से देखता रहा था । मुश्किल से एक मिनट बाद ठकरियाल झूमता हुआ सा कुर्सी से उठा। बोला ---- “यही है, अण्डरलाइन्स में इसी पैन का इस्तेमाल किया गया है। आप खुद मिला सकते हैं।”


“मैं ये जानना चाहता हूं, ऐसा है भी तो नतीजा क्या निकलता है?”


“वह बताने से पहले मैं आपका बाथरूम और चैक करना चाहूंगा।” कहने के बाद वह राजदान के जवाब का इन्तजार किये बगैर बाथरूम के दरवाजे की तरफ बढ़ गया था ।


“अरे - अरे !” उसके पीछे लपकता राजदान बोला ---- "वहां क्या देखना है तुम्हें ?”


बगैर कोई जवाब दिए ठकरियाल दरवाजा खोलकर ड्रेसिंग में पहुंच चुका था। उसने तेजी से चारों तरफ नजर घुमाई । बहुत ज्यादा वक्त नहीं लिया उसने । जैसे जानता हो उसे किस चीज की तलाश है। बौखलाया हुआ राजदान जाने क्या क्या कहता लगातार उसके साथ था । ठकरियाल ने ड्रेसिंग और बाथरूम के बीच में लगा कांच वाला दरवाजा खोला । नजर गुलाबी कलर के गाऊन, पेन्टी और ब्रा पर स्थिर हो गयी । वे तीनों चीजें राजदान के अण्डरवियर और बनियान के साथ टब में पड़ी हुई थीं । टब की तरफ बढ़ते ठकरियाल ने पूछा----“रात दिव्या जी ने यही लिबास पहना था न?”


“मगर क्यों ?... क्या मतलब है तुम्हें उसके लिबास से ?”


“मुझे यह चाहिए ।” कहने के साथ उसने झुककर 'ब्रा' उठा ली।


“दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा !” चीखने के साथ राजदान ने झपटकर 'ब्रा' छीन ली थी ---- “मेरी शराफत का नाजायज फायदा उठा रहे हो । एक तो किसी के नितांत प्राइवेट बाथरूम में घुसे। उसके बाद 'ब्रा' मांग रहे हो । हद हो गई बद्तमीजी की! आखिर मतलब क्या है इस बेहूदा हरकत का?”


“मैं इसे पुलिस लेबोरेट्री में भेजना चाहता हूं।"


"क्यों?”


“इस पर जहर लगा हो सकता है।”


“ज- जहर ? इस पर ! कहना क्या चाहते हो बेवकूफ इंस्पैक्टर ?”


“अब आप इन लाइनों पर गौर फरमायें तो मैं आगे बढूं।" कहने के साथ उसने किताब का खुला पृष्ठ राजदान की तरफ बढ़ा दिया ।


राजदान ने लाइनें उत्तेजित अवस्था में पढ़नी शुरू की थीं मगर पढ़ते-पढ़ते आंखें हैरत से फैल गईं । बोला ---- “इसमें तो किसी औरत द्वारा अपने निप्पल्स पर जहर लगाकर किसी राजा की हत्या करने का जिक्र है ।"


“ये किताब मुझे समरपाल के घर से मिली है ।”


मारे आश्चर्य के बुरा हाल हो गया राजदान का -“समरपाल के घर से ?... मगर, लाइनें अगर दिव्या ने अण्डरलाइन कर रखी हैं तो किताब समरपाल के घर कैसे पहुंच गई ?”


“सोचिए ।” ठकरियाल की मुस्कान गहरी हो गयी -  “आप भी सोचिए ।”


“ दिव्या की किताब समरपाल के घर से मिली है। उनके बीच तो कोई सम्बन्ध ही नहीं है । फिर किताब वहां कैसे पहुंच गई? नहीं! नहीं! इंस्पैक्टर, जो बकवास तुम करना चाहते हो वह किसी हालत में मुमकिन नहीं है । "


“क्या बकवास करना चाहता हूं मैं?”


“मैं सब समझ गया ।” मारे उत्तेजना के राजदान का बुरा हाल था - - - - “तुम यह कहना चाहते हो प्रत्यक्ष में दिव्या और समरपाल के बीच भले ही कोई सम्बन्ध न हो, मगर असल में काफी अंतरंग सम्बन्ध हैं। उन दोनों ने मेरे कत्ल की कोशिश की है। दिव्या अपने निप्पल्स पर जहर लगाकर मुझे मारना चाहती थी!”


“यदि इस ब्रा पर जहर लगा है, तो यह नायाब कोशिश की जा चुकी है। अपने मुकद्दर से ही जिन्दा हैं आप ! नहीं लगा है तो, आगे कोशिश की जाएगी। मगर नहीं, अब मैं हमलावर को ऐसी कोशिश करने का मौका ही कहां देने वाला हूं?"


अचानक, राजदान के चेहरे पर एक अजीब सी दृढ़ता नजर आने लगी । बोला ---- “तुम एक ऐसे शख्स हो ठकरियाल जो प्यार, विश्वास, आस्था और श्रद्धा के आधार पर कहे गये शब्दों पर कभी यकीन नहीं कर सकते यानी अगर मैं ये कहूं - --- मुझे अपनी दिव्या पर पूरा भरोसा है, समरपाल की बात तो छोड़ ही दो । उसका मेरे अलावा दुनिया के किसी मर्द से सम्बन्ध नहीं हो सकता और यह सोचना तो मेरे लिए हद दर्जे की नीचता होगी कि वह देवी मेरे कत्ल के बारे में सोच सकती है, तो तुम एक से लाख मेरी बातों पर ध्यान नहीं दोगे। सोचोगे---- ऐसा विश्वास तो हर पति को होता है इसलिए मैं यह सब न कहकर वह कहूंगा जो एक ही झटके में तुम्हारी मूर्खता भरी थ्योरी के परखच्चे उड़ा देगा । जो तुम सोच रहे हो बेवकूफ इंस्पैक्टर ! उस तरीके से कम से कम दिव्या तो मेरे कत्ल के बारे में सोच नहीं सकती ।”


"वजह?”


“वह जानती है, मैं इस तरीके से नहीं मर सकता।"


“ अजीब बात कर रहे हैं आप?... क्यों?”


“मुझे एड्स है । "


“क-क्या?” अब उछल पड़ने की बारी ठकरियाल की थी।


“ और यह बात मेरे अलावा केवल दिव्या को मालूम है।


सोचा था ----यह भेद किसी बाहरी आदमी को नहीं बताऊंगा । मगर दिव्या पर लांछन लगाकर तुमने मुझे मजबूर कर दिया। मैं सब कुछ सह सकता हूं, ये नहीं सह सकता उस देवी के बारे में कोई गलत सोचे । अब सोचो इंस्पैक्टर, अपने सड़े हुए दिमाग पर जोर डालकर सोचो, क्या वो पत्नी जिसे मालूम है पति को एड्स है, जो जानती है पति उसके साथ सोता ही नहीं है, क्या वह अपने निप्पल्स पर जहर लगाकर पति का कत्ल करने की कल्पना भी कर सकती है ?"


“न- नहीं! नहीं कर सकती ।" ठकरियाल के मुंह से बड़ी मुश्किल से शब्द निकले ---- “ऐसी पत्नी को अगर कत्ल करना ही होगा तो कोई और तरीका इस्तेमाल करेगी ।”


“ उड़ गये न तुम्हारी थ्योरी के परखच्चे?” दांत भींचकर राजदान ने कहा----“मगर तुमने मेरे मुंह से वह कहलवा लिया जो दिव्या के अलावा किसी से नहीं कहना चाहता था । अब तुम यहां से जा सकते हो, याद रखना ---- मेरी दिव्या पर शक मत करना कभी ।”


“मुझे दुःख है आप अधूरी बात सुनकर यह सब बता बैठे।”


“अधूरी बात?”


“यह किताब, दिव्या जी के पैन से हुई अण्डरलाइन्स और और इसका समरपाल के यहां होना या मेरा ब्रा पर जहर होने का शक जो कहानी सुना रहे हैं वह सच्ची नहीं, बल्कि वह कहानी है जो हत्यारा हमें सुनाना चाहता है। यह बात में शुरू से जानता हूं। यहां आने से पहले से। दरअसल उसका उद्देश्य ---- झूठी कहानी को सच्ची साबित करके आपकी हत्या के इल्जाम में बेगुनाहों को फंसाना और खुद को बचाये रखना है।”


“क्या तुम उसे जानते हो?”


"यह बात तो मैंने लॉबी में ही कही थी।”


“कौन है वो ?”


“नाम सुनकर आप चौंक पड़ेंगे।”


राजदान ने बहुत ही ध्यान से देखा ठकरियाल को। आंखें सुकड़कर गोल हो गयी थीं। बोला- “कहीं तुम छोटे का नाम तो नहीं लेने वाले ।”


ठकरियाल ने बहुत सावधानी से कहा  -"क्या आप ऐसा सोच सकते हैं।”


“हां !” राजदान बोला- - “मुझे ऐसा सोचना पड़ सकता है। "


“कारण?”


“ उसका विचित्रा से सम्बन्ध !”


“ओह !... तो आपको मालूम है ?”


“यह भी मालूम है कि तुम्हें भी मालूम है और यह भी सोच सकता हूं तुम छः साल पहले के मेरे और विचित्रा के सम्बन्ध भी मालूम कर सकते हो । ”


“आप ठीक सोच रहे हैं राजदान साहब ! यह किताब हाथ में आने और अपने एक कांस्टेबिल के मुंह से छः साल पुरानी घटना सुनते ही मैं समझ गया था यह मामला विचित्रा और उसकी मां द्वारा आपसे बदला लेने और दौलत हड़पने की कोशिश का है। समझ में नहीं आ रही थी तो सिर्फ यह बात कि ये लोग विषकन्या किसे बना रहे हैं? यह जानने शांतिबाई के कोठे पर गया । ऐसा प्रदर्शित किया जैसे मैं एक 'हिस्सा' लेकर उनका साथ देने को तैयार हूं | उद्देश्य था ---- उन्हें अपने समक्ष पूरी तरह खोल लेना । मगर, काफी चालाक है वो जिसका नाम शांतिबाई है। मेरे झांसे में आकर वह खुली नहीं! हां, खुद को मेरी बातों को मेरी बातों के जाल से निकालने के फेर में एक ऐसी बात जरूर कह बैठी जिससे एक ही झटके में मेरे दिमाग के सारे 'बंद' खुल गये । उसने कहा ---- 'एक तरफ तुम कह रहे हो हमारा मकसद राजदान और दिव्या को एक साथ रास्ते से हटाना है ताकि जायदाद देवांश की हो जाये । दूसरी तरफ आरोप लगा रहे हो हम राजदान को विषकन्या से मरवाना चाहते हैं, इससे तो सिर्फ राजदान मरेगा। दिव्या के रहते हमारा कथित उद्देश्य पूरा ही कहां हो रहा है।' ... बस, इतना सुनते ही मेरे जहन में बिजली सी कौंध गई! दिमाग में तुरन्त यह बात आई कि विषकन्या दिव्या होगी ताकि वह पकड़ी जाये । किताब के जरिए समरपाल से उसके सम्बन्ध जुड़ें। उसके बाद कोर्ट में यह साबित होने में देर नहीं लगेगी दिव्या और समरपाल आशिक- माशूक हैं। हत्या इन्हीं दोनों ने मिलकर की है। उस अवस्था में फांसी से कम सजा नहीं होती उन्हें । अतः रास्ता साफ । यह बात समझ में आते ही मैंने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। यहां आया। ये पैन और ब्रा बरामद की ताकि 'श्योर' हो सकूं सच वही है जो मैंने सोचा है ।”


“आखिर वही हुआ जिसका मुझे डर था ।” राजदान अफसोसनाक स्वर में कहता चला गया ---"इस डर ने मेरे मन में उसी क्षण अपना फन खड़ा कर लिया था जिस क्षण छोटे और विचित्रा के सम्बन्धों का पता लगा । उसी क्षण से मुझे शक था गाड़ी में बम भी विचित्रा के रूपजाल में फंसे छोटे ने ही रखवाया होगा । बात भी की उससे । लगातार इंकार करता रहा गधा और अब ! अब ये सब ! मुझे कोई संदेह नहीं है ठकरियाल, ये सब छोटे ने ही किया होगा । दिव्या के पैन से अण्डरलाइन करके किताब समरपाल के घर पहुंचाना सबसे आसान उसी के लिए है । आफताब कह भी रहा था, जब वह छोटे से खाने के लिए पूछने आया तो छोटा दिव्या की सारी ज्वैलरी बैड पर फैलाये बैठा था। उसी बात पर नाराज होकर उसने आफताब की छुट्टी कर देने का हुक्म जारी किया था। बाद में मैंने भी डांट दिया था आफताब को । कहा था - - - - बगैर इजाजत कमरे में जाने की बेवकूफी उसने की ही क्यों? वह माफी मांगने लगा। वापस रख लिया । उस वक्त इस बात पर मैंने खास ध्यान नहीं दिया कि छोटा दिव्या की ज्वैलरी पलंग पर क्यों फैलाये हुए था? कोई कारण ही नहीं था सोचने का । बहरहाल, ये घर जितना मेरा और दिव्या का है, उतना उसका भी है। मगर अब समझ में आ रहा है ---- उस वक्त वह पैन ढूंढने की कोशिश कर रहा होगा। मगर... ।” कहता - कहता चुप हो गया राजदान ।


ठकरियाल ने कहा-- “मगर ?”


“दिव्या की नॉलिज में लाये बगैर भला वह उसके निप्पल्स पर जहर कैसे लगा सकता था ?”


“ इस बात को जब तक हम ' इस' कोण से सोचते रहते हैं तब तक ये काम नामुमकिन लगता है, मगर जैसे ही कोण को उलटकर सोचते हैं तो बेहद आसान नजर आने लगता है। यानी जहर डायरेक्ट निप्पल्स पर नहीं बल्कि 'ब्रा' पर

लगाया जाये। निप्पल्स पर खुद-ब-खुद लग जायेगा ।"


“व-वाकई ।”


“यह काम भी देवांश के लिए करना बेहद आसान था । ”


“उफ्फ!” राजदान कसमसा उठा--- “ये क्या कर बैठा बेवकूफ ! इतना गहरा षड्यंत्र ! मेरी हत्या के इल्जाम में अपनी सीता सी भाभी को फंसाने के मंसूबे !”


“अब मेरे पास पुख्ता सबूत हैं राजदान साहब । 'ब्रा' पर जहर लगा मिला तो केस और पुख्ता हो जायेगा । देवांश, विचित्रा और शांतिबाई को उम्रकैद से कम सजा..


“नहीं!” राजदान कह उठा  ---- “नहीं इंस्पैक्टर ! ऐसा मत सोचो।”


"म-मतलब?” उछल पड़ा ठकरियाल ।


“देखो इंस्पैक्टर, कोशिश करो समझने की ।” राजदान लहजे में विनती का सा भाव था ---- “यह सब छोटे ने नहीं किया। विचित्रा के शबाब ने कराया है उससे । उसका जहर है ही इतना जहरीला कि अच्छे भले आदमी की मति मारी जाती है। जब एक समय उन्होंने मेरे ही दिमाग को इतना ‘वश' में कर लिया था कि मैं छोटे को, अपने जिगर के टुकड़े को खुद से अलग करने को तैयार हो गया तो... तो छोटे ने ही यह सब कर दिया तो क्या आश्चर्य? क्या दोष है उसका?... नहीं, उसका कोई दोष नहीं है। वह बेचारा तो बहक गया था । बहक तो मैं भी गया था एक बार | वह दोषी है तो मैं भी दोषी हूं।”


हैरत से फटी रह गयीं ठकरियाल की आंखें । मुंह से निकला- “अ - आप... आप देवांश को बचाने की कोशिश कर रहे हैं? उस शख्स को जिसने आपकी हत्या करने की कोशिश की? उस शख्स को जिसने आपकी हत्या के इल्जाम में उसे फांसी कराने के मंसूबे बनाये जिससे आप सबसे ज्यादा प्यार करते हैं?”


“कहा तो है इंस्पैक्टर ! बात की गहराई को समझ नहीं रहे तुम ! वो सब छोटे ने नहीं, विचित्रा के शबाब के नशे ने किया है। जीवन में कभी न कभी हर शख्स बहक जाता है।"


“देवांश की मुहब्बत में अंधे हो गये लगते हैं आप और ये अंधापन आपसे ऐसी बेवकूफी करा रहा है जिसके परिणाम बहुत भयंकर हो सकते हैं । जो शख्स एक बार बहक कर इतनी 'नीचता' पर उतर आया, क्या जरूरी है वह आगे भी...


“नहीं ! आगे ऐसा कोई काम नहीं कर सकता वह । विचित्रा का जहर मैं पिछली रात उसके दिमाग से उतार चुका हूं। अब वह विचित्रा से इतनी नफरत करता है कि खुद अपने हाथों से उसका गला घोंटने को तैयार है, बड़ी मुश्किल से रोका है मैंने उसे ।”


“ओह !” ठकरियाल सोच में में डूब गया। कुछ देर चुप रहने के बाद बोला ---- “फिर भी, मैं आपको यह चेतावनी जरूर दूंगा, ऐसा करके आप ठीक नहीं कर रहे।”


“छोटे गलतियां करते हैं इंस्पैक्टर, बड़ों का काम है उन्हें माफ करना । भारतीय संस्कृति हमें यही सिखाती है।” कहने के साथ राजदान ने 'ब्रा' एक नल के नीचे डाली और ठकरियाल के कुछ समझने से पहले नल ऑन कर दिया ।


पलक झपकते ही ब्रा भीगती चली गई ।


उस पर नजरें गड़ाये ठकरियाल ने कहा -- -- “पैंतालीस साल का हो गया हूं मैं। अपनी बीस साल की सर्विस में दुनिया देखी है। मगर आप जैसा भाई नहीं देखा राजदान साहब ।”


“मुझे महान कहने की कोशिश मत करो इंस्पैक्टर | ऐसा कोई काम नहीं किया है मैंने पहली बात ---- मैं जानता हूं दोषी । 'वह' नहीं है। दूसरी बात - - मजबूर हूं अपनी जगह । बता ही चुका हूं, बहुत जल्द मेरी मौत निश्चित है। कौन सम्भालेगा इतना बड़ा एम्पायर ? वही नहीं रहेगा तो राजदान एसोसियेट्स का तो सितारा ही डूब जायेगा । मुझे उसकी रक्षा करनी होगी इंस्पैक्टर और छोटे को रात वह 'ठोकर' लग चुकी है जिसके बाद अब वह कोई गलती नहीं करेगा ।”


“कितना बड़ा गधा था देवांश, उस दौलत के लिए भाई की हत्या करनी चाहता था जिसे उसके सुपुर्द करने के लिए भाई मरा जा रहा है मगर...


“मगर?”


“आपकी भावनाएं अपनी जगह हैं, कानून अपनी जगह।” ठकरियाल का लहजा थोड़ा सख्त होने लगा था ---- “व्यक्तिगत स्तर पर मैं आपकी भावनाओं की कद्र करता हूं। बल्कि तहेदिल से सैल्यूट करता हूं आपको । परन्तु कानून नहीं तोड़ सकता।”


“मतलब?”


“देवांश, विचित्रा और शांतिबाई ने मिलकर आपकी हत्या की कोशिश की है। दिव्या जी को फंसाने की साजिश रची है । कोर्ट में तो ले ही जाना पड़ेगा मुझे यह केस । 'ब्रा' नहीं है तो न सही। दूसरे ऐसे अनेक प्रमाण हैं जिनके बेस पर...


"नहीं इंस्पैक्टर, तुम ऐसा नहीं करोगे ।”


“क्यों नहीं करूंगा ?”


“मेरी रिक्वेस्ट है तुमसे।”


“काफी समझदार हैं आप | मेरी 'क्यों' का मतलब समझने कोशिश करें । समस्या रिक्वेस्ट से हल नहीं होगी।”


हकबकाया सा राजदान उसकी तरफ देखता रह गया । - ठकरियाल के भद्दे होठों पर उस वक्त कुटिल मुस्कान थी। अचानक बिजली-सी कौंधी राजदान के दिमाग में । मुंह से निकला ----“ओह!” फिर उसने जेब से सिगार निकाला । म्यूजिकल लाइटर से सुलगाया और कश के बाद ढेर सारा धुआं छोड़ता बोला----“क्या चाहिए?”


“वही, जो इंस्पैक्टर कामथ को दिया था । ”


“वो मामला मेरे फोटोग्राफ्स का था । ”


“ और ये मामला आपके छोटे भाई की जिन्दगी का है। उसकी जिन्दगी का जिसकी जिन्दगी आपको अपने मान-सम्मान से कहीं ज्यादा प्यारी है। "


***


“अभी बताता हूं तुझे .... अभी बताता हूं मैं क्या चीज हूं !” चीखते हुए राजदान का गुस्से की ज्यादती के कारण बुरा हाल था । लॉबी में कदम रखते ही वह डायनिंग टेबल की तरफ बढ़ता बोला--- “एस. एस. पी. को फोन लगा छोटे । अभी छुट्टी कराता हूं मैं इस शहर से इसकी, बल्कि नौकरी ही खत्म करा देता हूं साले की ।”


“पप्लीज | प्लीज राजदान साहब । माफ कर दीजिए मुझे।” राजदान के पीछे लपकता ठकरियाल बुरी तरह गिड़गिड़ा रहा था---“अब कभी ऐसी जुर्रत नहीं करूंगा।" ....


“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे रिश्वत मांगने की ?” राजदान उसकी तरफ पलटकर गुर्राया |


“कान पकड़ता हूं। हाथ जोड़ता हूं। कहें तो आपके कदमों में गिरकर माफी मांग लेता हूं। बस पहली और आखिरी बार माफ कर दीजिए। फिर कभी ऐसी गलती नहीं होगी।”


भभकते अंदाज में राजदान ने उसे घूरा । वे क्षण ऐसे थे जैसे गुस्से को पीने की कोशिश कर रहा हो। फिर गुर्ग़या---“खैरियत चाहते हो तो निकल जाओ यहां से । फिर कभी इधर का रुख करने की कोशिश मत करना ।”


“ब - बिल्कुल नहीं आऊंगा राजदान साहव बिल्कुल नहीं आऊंगा । मगर प्लीज! ये चैप्टर यहीं का यहीं क्लोज कर दीजिए। एस. एस. पी. साहब तक नहीं ले जाइएगा बात को।”


“गेट आऊट !” राजदान हलक फाड़कर चीख पड़ा।


“थैंक्यू राजदान साहब | थैंक्यू वैरी मच ।” कुछ इस तरह कहता हुआ वह दरवाजे की तरफ बढ़ा जैसे 'अभयदान' मिल गया हो। अगले पल वह लॉबी से बाहर जा चुका था।


यह सबकुछ इतनी तेजी से और आनन-फानन में हुआ कि दिव्या और देवांश को कुछ बोलने का तो दूर, समझने तक का मौका नहीं मिला। लॉबी में मौजूद नौकरों की तो खैर बिसात ही क्या थी? वे तो कांपकर रह गये थे। राजदान को इतने गुस्से में कम ही देखा जाता था। उस वक्त भी वह गुस्से के कारण कांप रहा था जब हिम्मत करके दिव्या ने पूछने की कोशिश की ---“हुआ क्या है, आप इस तरह...


“सुनो तो उस दो टके के इंस्पैक्टर की !” राजदान दिव्या की बात पूरी होने से पहले ही चीख पड़ा--- "मुझे ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहा था कमीना । रिश्वत मांग रहा था मुझसे । मेरी एप्रोच का अंदाजा नहीं है उसे।"


“मगर बात क्या हुई भैया?”


“कहता है मेरी हत्या की कोशिश तू कर रहा था । तूने रखवाया गाड़ी में बम | पूरी कहानी 'गढ़े' घूम रहा हरामजादा! उसे विचित्रा से तेरे आज के और मेरे छह साल पुराने सम्बन्ध क्या पता लगे, कहने लगा विचित्रा और उसकी मां तेरे जरिए मेरी हत्या कराने और दौलत हड़पने के प्लान पर काम कर रही हैं । 'विषकन्या' नाम की एक किताब लिए घूम रहा है। कहता है - - - वह उसे समरपाल ने दी है। यह कहकर कि किताब उसकी नहीं है। मगर उसे अपने बैड के गद्दे के नीचे से मिली।” ।


होश उड़ गये देवांश के। बड़ी मुश्किल से कह सका --- “य - ये क्या बात हुई? किताब अगर समरपाल की नहीं है तो उसके गद्दे के नीचे से कैसे मिली ?”


“कहता है तूने पहुंचाई वहां ।”


“म-मैंने? म-मैं क्यों पहुंचाने लगा ?”


“बेवकूफ है साला! कहता है, नकाबपोश भी तू ही है। तू किसी विषकन्या के द्वारा मेरी हत्या कराकर समरपाल को फंसाना चाहता था। मैंने अनेक बार कहा - - - ये मान सकता हूं विचित्रा और शांतिबाई के दिल में मुझसे बदला लेने की आग हो और इसके लिए वे कुछ कर भी रही हों मगर तू उनके षड्यंत्र में शामिल हो, ऐसा हरगिज नहीं हो सकता । मगर वह मान ही नहीं रहा था। कहने लगा---पचास लाख दो, नहीं तो तुझे मेरी हत्या की कोशिश करने के इल्जाम में जेल में भेज देगा। जलील कहीं का --- एक भाई के प्यार का नाजायज फायदा उठाना चाहता था । जब मैंने एसएस.पी. से शिकायत करने की धमकी दी, तब कहीं जाकर सीधा हुआ।”


“ल- लेकिन उसके पास सुबूत क्या है कि किताब मैंने समरपाल के घर पहुंचाई ?”


“कुछ भी नहीं । बस कहानियां गढ़ने का शौक है कमीने को ।


बम ब्लास्ट के वक्त तुझे और दिव्या को लेकर शर्मनाक कहानी गढ़ रहा था, अब तुझे विचित्रा और उसकी मां के साथ जोड़कर शुरू हो गया । मुझे पहले ही अंदेशा था, तेरे और विचित्रा के सम्बन्धों का पता लगने पर ऐसा ही कुछ सोचेगा। दरअसल ये सम्बन्ध ही उसके भेजे में भरे कूड़े का कारण है।” I


दिव्या बोली- -- “ऐसे आदमी की कम्पलेंट तो एस. एस. पी. से कर ही देनी चाहिए।"


“क्या फायदा?” दूरगामी परिणामों से आतंकित देवांश राजदान से पहले कह उठा - - - " कीचड़ में पत्थर मारने से अपना ही दामन दागदार होता है ।”


दिव्या ने चौंककर देवांश की तरफ देखा ।


"छोटा ठीक कह रहा है दिव्या ।” राजदान बोला --- “जरूरत केवल ठकरियाल की अक्ल दुरुस्त करने की थी| वह हो चुकी है।” कुछ देर ठहरकर उसने आगे कहा --- “सुबह-सुबह आकर मूड चौपट कर दिया कम्बख्त ने।”


“ उसके ख्याल से विषकन्या कौन बनने वाली थी ?” दिव्या ने पूछा।


“ उसे कुछ नहीं पता। ... पता तो तब होता जब उसकी सोच में कुछ सच्चाई होती । कपोल कल्पित कहानियां गढ़ने में महारत हासिल है उसे ।”


दिव्या और देवांश चुप रह गये ।


जैसे दिमागों में कोई सवाल नहीं रह गया था । अंदर ही अंदर देवांश की हालत बेहद खस्ता थी । उसे लग रहा था - - - दिव्या और राजदान के सामने नंगा होने से वह बाल-बाल बचा है। वह भी केवल राजदान के अंधविश्वास के कारण । वरना, ठकरियाल तो लगभग सबकुछ जान चुका था । वह यही सबकुछ सोच रहा था जब राजदान ने कहा --- “अब वह स्वप्न तक में भी इस बारे में कुछ नहीं सोचेगा । हमें भी यह सब भूल जाना चाहिए । ”


दिव्या और देवांश अब भी चुप रहे ।


“आ छोटे ! तुझे मेरे साथ ऑफिस चलना है।” कहने के साथ राजदान दरवाजे की तरफ बढ़ गया | देवांश ने कहा- "तुम चलो भैया, मैं 'जेन' से आता हूं।”


“जल्दी आना ।” कहकर वह बाहर निकल गया । देवांश ने दिव्या की तरफ देखा । वह पहले ही से उसकी तरफ


देख रही थी। दोनों की नजरें मिलीं। उनमें बातें करने की चाहत थी परन्तु नौकरों की मौजूदगी के कारण ऐसा सम्भव न हो सका ।