सरोज उन्हें एक छोटे से कमरे में ले गई।
"आप यहां बैठिए, मैं डॉक्टर को सूचित करती हूं।" सुनील ने सहमतिसूचक ढंग से सिर हिला दिया।
"यार।" रमाकान्त ने इन्तजार से बोर होकर कहा"यहां सिगरेट पीना बुरा तो नहीं लगेगा।"
"क्या हर्ज है ?" - सुनील बोला- "मुझे भी पिलाओ|"
रमाकान्त ने कैमरा मेज पर रख दिया और जेब से चार मीनार का पैकेट निकालकर एक सिगरेट खुद लिया और एक सुनील को दे दिया ।
"चार मीनार ।" - सुनील आश्चर्य दिखाता हुआ बोला
“क्या करें ?" - रमाकान्त ने दोनों सिगरेटें सुलगाते हुए कहा- "मजा ही इसमें आता है।'
उसी समय सरोज वापिस आ गई।
"आई एम सारी, मिस्टर सुनील ।" वह बोली"डॉक्टर को एक इमरजेन्सी आपरेशन करना पड़ गया है । क्या आप थोड़ी देर और प्रतीक्षा कर सकते हैं ?" -
"कितनी देर ?"
“लगभग एक घन्टा । "
"देखिए, इस समय तो जल्दी है, हम एक घन्टे बाद फिर आ जायेंगे । आप डॉक्टर साहब को बता दीजियेगा ।"
"बहुत अच्छा ।"
"आओ रमाकान्त । "
वे लोग बाहर आकर कार में बैठ गये। रमाकान्त ने कार स्टार्ट की ।
रमाकांत ने अपने फोटोग्राफर मित्र के स्टूडियो के सामने कार रोक दी।
"आओ।" वह सुनील से बोला ।
"सोहन ।" - भीतर जाकर रमाकान्त फोटोग्राफर को कैमरा थमाता हुआ बोला- "इस रील को जितनी जल्दी हो सके धो दो और जितना बड़ा एन्लार्जमेंट निकाल सकते हो निकाल दो।"
सोहन डार्क रूम में चला गया ।
लगभग बीस मिनट बाद वह वापिस आया ।
"क्या ?" - सुनील ने उत्सुकता से पूछा ।
"अभी डिवेल्पर में पन्द्रह-बीस मिनट लगेंगे।" - सोहन बोला- "उसके बाद हाइपो में भी कुछ देर लगेगी । फिर वाशिंग होगी, फिर फिल्म सूखेगी, तब जाकर नैगेटिव तैयार होगा।"
"यानी अभी एक घन्टा और लगेगा।" रमाकान्त ने पूछा ।
"जी हां ।”
"आओ रमाकान्त चलें ।" - सुनील बोला- "एक घन्टे बाद आयेंगे।"
वहां से वे दोनों एक रेस्टोरेन्ट में आकर बैठ गए। मेज पर 'ब्लास्ट' का ईवनिंग एडीशन पड़ा था। पहले ही पृष्ठ पर रमा के कमरे में नैशनल बैंक की चोरी के पच्चीस हजार रुपये पाये जाने का समाचार था। सौ-सौ के बीस नम्बरों की लिस्ट भी छपी थी ।
"रमाकान्त ।" - सुनील उत्साहित होकर बोला - "मैं दावा करता हूं कि जो लिस्ट हमारे कैमरे में है वह सारे नम्बरों की है । "
"यह असम्भव है।" - रमाकान्त निश्चिंत स्वर में बोला "उन नम्बरों की लिस्ट पुलिस की टॉप-सीक्रेट है। अखबार में भी केवल वही नम्बर छपे हैं जो रमा के पास बरामद हुए हैं, बाकी नहीं । "
“तुम शर्त लगाते हो ?"
"कितने की ?"
"सौ रुपये की। जो नम्बर अखबार में छपे हैं, वे भी हमारी लिस्ट में होंगे, फैसला हो जाएगा।"
"सौ की नहीं, बीस की लगाओ। तुम्हारे पास तो हराम
का पैसा आता है। "
"चलो बीस की ही सही। आओ चलें, अब तक नैगेटिव तैयार हो गया होगा।"
उनके स्टूडियो पहुंचने पर फोटोग्राफर बोला- "नेगेटिव लगभग तैयार ही है। आइये देख लीजिए ।"
सोहन उन्हें डार्क रूम में ले गया। उसने एक बार घड़ी देखी और फिर बत्ती जला दी ।
"मैंने एन्लार्जमेंट के लिए सब कुछ तैयार करके रखा हुआ है, बस फिल्म के सूखने की देर है ।”
उसने रील पर से क्लिप हटाया और फिल्म को लम्बाई से पकड़कर रोशनी की ओर कर दिया ।
"अरे ?” वह आश्चर्यचकित होकर चिल्लाया ।
“क्या हुआ ?" - सुनील ने घबराकर पूछा ।
"खुद ही देख लो।" - सोहन रील को सुनील के सामने करता हुआ बोला "फिल्म बिल्कुल काली पड़ी हुई है।"
सुनील ने अपना माथा ठोंक लिया। वह निराश स्वर में रमाकान्त से बोला- "तुम्हारा दिनकर खामखाह रौब झाड़ता था। फोटोग्राफी उसे खाक भी आती नहीं मालूम होती । कैमरा लोड करते समय उसने फिल्म को हवा लगवा दी होगी 1"
"लेकिन यह गड़बड़ हवा लगने के कारण नहीं हुई है ।" - सोहन बोला- "अगर ऐसा होता तो केवल एक-दो स्नैप
ही खराब हुए होते, लेकिन यहां तो सारी रील ही काली हुई पड़ी है जैसे किसी ने कालिख पोत दी हो। यह फिल्म ही खराब होगी ।"
"सब सत्यानाश हो गया।" - सुनील गमगीन स्वर में बोला।
"भाई साहब ।" - वह सोहन को सम्बोधित करता हुआ बोला "मुझे शक करने के लिए क्षमा कीजिएगा। कहीं आपने ही तो कोई गड़बड़ नहीं कर दी है ?"
"कैसी गड़बड़ ?" - वह नाराज होकर बोला ।
"आप ही ने डार्क रूम में कोई माचिस वगैरह जला ली हो ?"
“देखिए जनाब" - सोहन क्रुद्ध होकर बोला- "मुझे फोटोग्राफी का काम करते हुए पच्चीस साल हो गए हैं। मैंने इतनी फिल्में धोई हैं कि अगर आप एक के साथ एक जोड़ते चले जाएं तो चांद पर पहुंच जाएं। हमारे यहां ऐसी गड़बड़ नहीं होती है।"
"आई एम सॉरी, फ्रेंड।" - सुनील लज्जित होकर बोला
सोहन भी चुप हो गया ।
क्षण भर तक चुप्पी छाई रही, वातावरण भारी हो उठा
पूछा। "तुम्हारे सालूशन ठीक हैं, सोहन ?" - रमाकान्त ने
“बिल्कुल, परफेक्ट ।”
"तुम्हारे पीछे यहां कोई आया तो नहीं ?"
" प्रश्न ही नहीं उठता। मैं यहां से एक सैकेण्ड के लिए भी नहीं हिला । "
"छोड़ो यार।" - सुनील उखड़े हुए स्वर में बोला "चोट तो हो ही गई, आओ चलें ।" -
दोनों ने सोहन से हाथ मिलाया और स्टूडियो से बाहर आ गए।
***
यूथ क्लब पहुंचकर सुनील ने सुपरिंटेंडेंट रामसिंह को फोन किया । रामसिंह उसके अच्छे मित्रों में से था।
"सुपर साहब।" - लाइन कनैक्ट होते ही सुनील बोला - “रमा कौन-सी जेल में है ?"
"वह तो अभी पुलिस कस्टडी में ही है।"
"लेकिन कहां ?"
"उस पुलिस स्टेशन पर जिस पर प्रभूदयाल इन्चार्ज है
"मैं उससे मिलना चाहता हूं।"
"किस कैपेसिटी में ?"
"अगर यही बताना होता तो तुम्हारी क्या जरूरत थी ?" - सुनील चिढ़कर बोला ।
"भई यह तो बहुत मुश्किल है। तुम जानते हो प्रभूदयाल तुमसे बहुत चिढ़ता है।"
"इसीलिए तो तुम्हें फोन किया है।"
"अच्छा मैं कोशिश करता हूं। तुम फोन के पास ही रहना, मैं अभी तुम्हें रिंग करूंगा ।"
"अच्छा ।" कहकर सुनील ने फोन रख दिया । -
"कोई तफरीह का प्रोग्राम है ?" - रमाकांत उसके पास आकर बोला ।
"बात मत करो।" - सुनील जलकर बोला- "मैं इस समय खून करने के मूड में हूं।"
“नलिनी आई हुई है ।"
"ओ यू फूल।" - सुनील चिल्लाया "शट अप एण्ड गो अवे।" -
रमाकान्त चुपचाप वहां से हट गया ।
लगभग आधे घंटे के बाद रामसिंह का फोन आया ।
"सुनील" - वह बोला - "मैंने सब इंतजाम कर दिया है । तुम बीस-पच्चीस मिनट में पहुंच जाना। तुम्हारे पहुंचने तक प्रभू वहां से जा चुका होगा, सब-इंस्पेक्टर तुम्हारा सब इंतजाम कर देगा ।"
"ओ के, थैंक्यू सुपर ।"
आधे घंटे बाद सुनील पुलिस स्टेशन पहुंच गया । सब-इंस्पेक्टर उसे बातचीत के लिये नियुक्त स्थान पर बैठाने के बजाय एक बड़े से कमरे में ले गया। वहां एक बड़ी-सी मेज के दूसरी ओर रमा बैठी थी। सुनील को उसके सामने बैठाकर सब-इंस्पेक्टर बाहर दरवाजे के पास जा बैठा।
प्रभूदयाल थाने में दिखाई नहीं दे रहा था ।
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