सुन बे लक्कड़बग्घे
वीर को आज माया के अलावा अपने पुराने दिन के हमसफ़र रेडियो की याद आ गई। एक रेडियो हमेशा वीर के पास रहता था। आज मोबाइल में एस.डी. कार्ड लगाकर उसमें गाने भरकर सुन सकते है लेकिन वीर को रेडियो पर गाने सुनना हमेशा से उत्साहित करता था। लेकिन एक साल से वीर ने अपना रेडियो देखा तक नहीं था कि वो कहाँ पर रखा हुआ है?
वीर बिस्तर से उठा और उसने अपना रेडियो ढूंढ़कर साफ किया। वह नीचे दुकान पर जाकर तीन सेल लेकर आया और रेडियो में डालकर उसे चालू किया, लेकिन रेडियो चालू नहीं हुआ। वीर ने रेडियो के आगे-पीछे हाथ से हल्का-सा मारा, लेकिन वह फिर भी नहीं चला। वीर को लगा कि शायद रेडियो के अन्दर कोई दिक्कत है तो उसने अपना रेडियो खोला और उसे ठीक करने में लग गया।
वीर का मोबाइल बज रहा था। उसने फ़ोन उठाकर देखा तो कोई नए नम्बर से फ़ोन आ रहा था।
“हैल्लो।” वीर ने फ़ोन उठाकर कहा।
“वीर बात कर रहा है क्या?”
“हाँ, आप कौन?” वीर ने पूछा।
“मैं मनीष बोल रहा हूँ।”
“कौन मनीष?” वीर ने दिमाग़ पर जोर डालते हुए पूछा।
“ये सब छोड़। यह बता कि तेरा माया के साथ क्या रिश्ता है?”
“भैंचो, है कौन तू? और माया के साथ मेरा क्या रिश्ता है, इससे तेरे को क्या मतलब?” वीर ने ऊँची आवाज में कहा।
“मैं माया का हसबैंड़ हूँ। तेरा और माया का रिश्ता तो था, लेकिन मैं सिर्फ़ इतना जानना चाहता हूँ कि किस हद तक था?” मनीष ने पूछा।
वीर यह सुनकर चुप रहा। उसके दिमाग़ में यही चल रहा था कि इसको मेरा नम्बर किसने दिया? कहीं माया ने तो मेरा नम्बर इसको नहीं दिया है? माया तो किसी प्रॉब्लम में नहीं है? वीर का दिमाग़ काम ही नहीं कर रहा था।
“अरे, बोल। मुझे सिर्फ यह बता कि तुम दोनों का क्या रिश्ता था?” मनीष ने फिर पूछा।
“तुझे मेरे नम्बर किसने दिए?” वीर ने पूछा।
“बस, कहीं से मिल गए।”
“जिसने भी मेरे नम्बर दिए हैं, उसी से पूछ ले। वो ही बता देगी कि क्या रिश्ता है? वो तो तेरे पास ही होगी।” वीर ने कहा।
“उससे तो मैं पूछूँगा ही, लेकिन आख़िरी बार तुझसे पूछ रहा हूँ। नहीं तो तुम दोनों के लिए ठीक नहीं होगा।” मनीष ने धमकी दी।
“अबे सुन। मेरे तो तू झाँट तक नहीं उखाड़ सकता और माया को तूने कुछ किया ना तो क़सम से तेरे झाँट तक भी नहीं बचेंगे।” वीर ने भी धमकी का जवाब धमकी से दिया।
“अच्छा, ऐसा है क्या? तो मुझे जवाब मिल गया है।”
“जवाब मिल गया है तो ठीक है, लेकिन फिर भी बता देता हूँ कि हम सिर्फ़ दोस्त थे और अब तो शायद वो भी नहीं है।” वीर ने कहा।
“सिर्फ़ दोस्त। उससे आगे क्या?”
“उसके आगे क्या? यह तो ख़ुद भगवान भी आकर मेरे अन्दर दफ़न राज को बाहर नहीं निकाल सकता, तो तू क्या चीज़ है?” वीर ने तेज़ आवाज़ में कहा।
मनीष ने फ़ोन काट दिया। वीर ने फ़ोन रखने के बाद काफ़ी देर और दूर तक अपने दिमाग़ के घोड़े दौड़ाए, लेकिन फिर भी उसे यह समझ नहीं आया कि उसके नम्बर मनीष को किसने दिए और अगर माया ने दिए हैं तो उसने क्यूँ दिए? कहीं वो किसी परेशानी में ना हो। वीर काफ़ी देर तक इस जद्दोजहद में लगा रहा।
वीर का मोबाइल दोबारा बजा। उसने देखा कि माया का कॉल आ रहा था। वीर ने फ़ोन उठाया।
“तुम मेरा और कितना जीना हराम करोगे? मुझे चैन से जीने क्यूँ नहीं देते? क्या बिगाडा है मैंने तुम्हारा?” माया ने चिल्लाकर कहा।
“लेकिन, मैंने क्या किया है?” वीर ने पूछा।
“तुमने ही सब कुछ किया है। तुमने मनीष से बात क्यूँ की? उसके पास क्यूँ फ़ोन किया? मेरा घर बर्बाद करना चाहते हो क्या?” माया ने कहा।
“पहली बात तो यह है कि मैंने उसके पास कोई फ़ोन नहीं किया। उसने ख़ुद मेरे पास फ़ोन किया था और दूसरा यह कि मुझे ख़ुद भी नहीं पता कि मेरे नम्बर उसके पास कैसे आए तो मुझ पर चिल्लाना बन्द कर और मुझे तुम्हारा घर बर्बाद नहीं करना है।” वीर ने कहा।
“तुमने ही फ़ोन किया था। एक नई प्रॉब्लम तूने फिर खड़ी कर दी है मेरी लाइफ़ में। और जब कुछ करना ही है तो पूरा कर। उसे सब कुछ पूरा बता। मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।” माया ने गुस्से से कहा।
“फ़र्क तो हर किसी को पड़ता है, लेकिन मैंने कह दिया है कि मैंने उसके पास फ़ोन नहीं किया था। मैं तो यह सोच रहा था कि शायद तूने ही नम्बर दिए हैं।” वीर ने कहा।
माया ने बिना जवाब दिए ही फ़ोन रख दिया। माया के फ़ोन रखने के बाद वीर यही सोच रहा था कि मनीष को अगर माया ने नम्बर नहीं दिए तो फिर उसे किसने नम्बर दिए? वीर ने एक सिगरेट सुलगाई और बालकनी में आकर खड़ा हो गया। कुछ देर बाद वीर ने अजय को फ़ोन किया।
“यार, आज माया का फ़ोन आया था। उसकी आवाज़ सुनते ही साला जिस्म में सिहरन-सी दौड़ गई। जब उससे बात हुई तो पता चला कि वो अब मेरी नहीं रही। बहुत बार हमारे झगड़े हुए, वो नाराज़ भी रही, बहुत बार मुझे सुनाती भी थी, लेकिन फिर भी उसकी आवाज़ में हमेशा मेरे लिए एक अपनापन होता था, लेकिन आज वो आवाज ही अलग थी। उसकी आवाज़ सिर्फ़ मेरे कानों तक ही रही, दिल में नहीं उतरी। बदल गई है भाई वो।” वीर ने कहा।
“बदलना तो था ही उसे। उसके बदलाव तो मुझे पहले ही पता थे, लेकिन तुझे आज समझ आए है। वैसे किसलिए फ़ोन किया था आज उसने?” अजय ने पूछा।
“उसके हसबैंड़ का फ़ोन आया था। पूछ रहा था कि हमारे बीच में क्या रिश्ता था? लेकिन एक बात समझ में नहीं आ रही कि उसको मेरे नम्बर किसने दिए? पहले मैं सोच रहा था कि माया ने दिए होंगे, लेकिन माया ने तो मना किया है कि उसने नम्बर नहीं दिए और माया को वो कह रहा है कि मैंने उसके पास कॉल किया था। इसके तो यही स्पष्ट होता है कि माया ने नम्बर नहीं दिए। फिर साला उसके पास मेरे नम्बर कहाँ से आए और किसने उसे हमारे रिश्ते के बारे में अधूरा बताया? अब बताना ही था तो पूरा बताना था ना, यही समझ नहीं आ रहा।” वीर ने कहा।
“वीर, मेरे दोस्त। माया के हसबैंड़ को तेरे नम्बर मैंने दिए है।” अजय ने लड़खड़ाती आवाज से कहा।
“तूने नम्बर क्यों दिए हैं? पागल है क्या तू भैंचो?” वीर ने अचंभित होकर ऊँची आवाज़ में कहा।
“मेरे से तेरी यह तड़प, प्यार और तेरी बर्बादी देखी नहीं जाती। मुझे पता है कि तू कभी भी उसे भूल नहीं पाएगा और भूलना तो छोड़, तू Move On भी नहीं कर पाएगा। तो मुझे लगा कि उसके हसबैंड़ को तेरे नम्बर भेज देता हूँ बाक़ी तो वो समझ ही जाएगा। फिर हो सकता है कि माया तेरे पास वापिस लौट आए। बस, इसलिए ही मैंने ये कांड़ कर दिया।” अजय ने अपनी बात रखी।
“बहुत ग़लत किया तूने। अबे उसकी पूरी लाइफ़ ख़राब हो जाएगी इस तेरी एक ग़लती से। तुझे मालूम है न कि माया किस टाइप की लड़की है? वो ग़लत कारणों से कभी भी लौट कर नहीं आएगी। मेरे से बिना पूछे तूने उसे नम्बर ही क्यूँ दिए, भसड़ हो जाएगी अब? और उस मनीष के नम्बर तेरे पास कहाँ से आए?” वीर ने गुस्से से कहा।
“जब उसकी शादी में गए थे तो मैं थोडी देर के लिए वापिस गया था ना। तब किसी से उसके नम्बर लिये थे। वही सोच लिया था कि एक दिन उस माया की वॉट ज़रूर लगाऊंगा, जिसने तेरे साथ ऐसा किया है।” अजय ने कहा।
वीर ने इतना सुनते ही फ़ोन रख दिया। अजय ने वीर के पास दो बार वापिस कॉल किया, लेकिन वीर ने फ़ोन नहीं उठाया। वीर को अजय पर बहुत तेज़ गुस्सा आ रहा था। अजय ने तो वीर का सोच कर यह कांड़ कर दिया, लेकिन किया तो ग़लत ही। अब तो माया के हसबैंड़ को सब पता चल चुका था। अब माया किस प्रॉब्लम में होगी? वो मेरे बारे में क्या सोच रही होगी? बहुत ग़लत कर दिया है अजय ने। वीर यही सोच-सोचकर परेशान हो रहा था।
दो दिन बाद मनीष ने दोबारा वीर के पास कॉल किया। वीर को लगा कि उसका फ़ोन ना उठाए, लेकिन फिर भी वीर ने स्थिति को जानने के लिए फ़ोन उठा लिया।
“हैल्लो।” वीर ने कहा।
“तू मुझे अब भी बता रहा है या कुछ करना ही पड़ेगा।” मनीष ने कहा।
“मैं तो पहले ही बता चुका हूँ जो था। बाक़ी तेरे को अगर लगता है कि तू कुछ मेरा कर भी सकता है तो कोशिश कर ले।” वीर ने कहा।
“मुझे तुम लोगो के रिश्ते के बारे में सब कुछ मालूम हो गया है। तुम्हारा रिलेशनशिप किस हद तक और कितना गहरा था, ये मालूम हो गया है मुझे। इसलिए मैंने तुम दोनों को सबक सिखाने का फैसला ले लिया है।” मनीष ने कहा।
“और वो क्या लिया है?” वीर ने पूछा।
“मैं माया को छोड़ रहा हूँ। वो तेरे साथ ही खुश रहेगी। उसको तू ही रखना अब। मेरा उससे कोई मतलब नहीं है।” मनीष ने कहा।
“सुन बे लक्कड़बग्घे। मुझसे तो तू कभी भी टकराने की कोशिश मत करना। मैं टूटा हुआ हूँ। चुभ जाऊँगा तुझे। और रही बात माया को छोड़ने की, तो अगर तूने ऐसा किया तो तुझे मालूम हो ही चुका हमारे रिलेशनशिप के बारे में तो माया की क़सम तुझे घर में घुस कर मार डालूंगा। ऐसा करना तो छोड़, अगर ऐसा सोचा भी तो फिर बचेगा नहीं तू, समझा?” वीर ने चिल्लाकर कहा।
“तेरी हिम्मत कैसे हुई माया की क़सम लेने की? और मैं कुछ भी सोचूँ और कँरूं, जीतूंगा तो मैं ही।” मनीष ने कहा।
“हिम्मत....क्या बात है? मैंने उसे अपना बनाकर छोड़ा है, उसे हासिल करने वाले तुझे तेरी जीत मुबारक हो। चल तो फिर कर के देख लेना एक बार।” वीर ने कहा।
“ठीक है, तो दिखाता हूँ तुझे।” मनीष ने कहकर फ़ोन काट दिया।
फ़ोन रखने के बाद वीर का अजय पर गुस्सा और तेज़ हो गया। वो माया के बारे में सोचने लगा कि माया के साथ कहीं ग़लत हो रहा है, लेकिन वीर अब इसमें कुछ नहीं कर सकता था। वीर को मालूम था कि उस लक्कड़बग्घे में इतना गूदा नहीं है कि वो जो बोल रहा है, वो कर भी सके और माया में इतनी हिम्मत है कि वो ख़ुद पर कुछ भी ग़लत सहन नहीं करेगी। लेकिन फिर भी वीर को माया की चिंता हो रही थी। वीर ने आज पहली बार माया के दिल में ख़ुद के लिए इतनी कड़वाहट देखी थी, जो उसे सहन ही नहीं हो रही थी। वीर ने उनकी बातो को साइड़ में किया और अपना रेडियो हाथ में लेकर एक सिगरेट सुलगा ली।
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