लाश डबलबैड के ठीक ऊपर, पंखे पर लटकी हुई थी ।
रेशम की मजबूत रस्सी का एक सिरा पंखे के मोटर के साथ बंधा था, दूसरा फंदा बनकर रमेश की गर्दन में पड़ा था ।
मगर, न आंखें बाहर निकली हुई थीं, न जीभ ।
साफ जाहिर था कि पंखे पर उसे मारने के बाद लटकाया गया था। फंदे के अलावा गले में एक और डोरी पड़ी थी ।
जैसे माला पड़ी हो ।
डोरी के निचले सिरे पर लेडीज कपड़ों को गट्ठर की शक्ल देकर बांधा गया था और वह गट्ठर रमेश के सीने पर लटक रहा था।
लाश पूरी तरह नग्न थी।
पेट पर स्केच पेन से अ लिखा हुआ था ।
बैड पर बिछी चादर इस तरह अस्त-व्यस्त थी जैसे उस पर कोई पूरी रात सोया हो। सलवटों के बीच कहीं-कहीं अस्पष्ट से जूतों के निशान नजर आ रहे थे ।
मैंने महसूस किया कि बैड की परिक्रमा - सी कर रही विभा ने दूसरी चीजों के अलावा उन निशानों को भी देख लिया था ।
कमरे में कई लोगों की मौजूदगी के बावजूद ऐसी खामोशी थी कि हम एक-दूसरे की सांसों तक की आवाजों को स्पष्ट सुन सकते थे।
बाहर से रुदन की आवाजें आ रही थीं।
वह कुछ महिलाओं का रुदन था ।
उन्हें मैंने उस वक्त देखा था जब हम लॉबी से गुजरकर इस | कमरे की तरफ आ रहे थे । वीणा ने बहुत आहिस्ता- से मेरे कान में बताया था कि सबसे ज्यादा रोने वाली और अभी तक दहशत में नजर आने वाली रमेश भंसाली की पत्नी है ।
वीणा वहां जर्नलिस्ट की हैसीयत से मौजूद थी।
उसके गले में कैमरा लटका हुआ था ।
विभा क्योंकि फोन पर ही उसे अपनी पहचान छुपाए रखने की हिदायत दे चुकी थी इसलिए उसने विभा से कोई बात करना तो दूर विशेष नजरों से उसकी तरफ देखा तक नहीं था ।
अपने कैमरे के साथ वह भी विभा की तरफ ठीक उसी तरह लपकी थी जैसे अन्य जर्नलिस्ट लपके थे। उसी तरह फोटो खींचे थे उसने और उसी तरह चीख-चीखकर सवाल किए थे।
विभा किसी के भी सवाल का जवाब दिए बगैर इस कमरे में आ गई थी । इस वक्त कमरे में हम तीनों के अलावा गोपाल मराठा, पुलिस फोटोग्राफर और पोस्टमार्टम टीम का चीफ था ।
सबकी नजरें विभा जिंदल पर थीं ।
होती भी क्यों नहीं!
सबको मालूम जो था कि वह हस्ती विभा जिंदल ही है जिसकी खातिर घटनास्थल को इतनी देर तक ज्यों का त्यों रखा गया था।
एकाएक वह गोपाल मराठा की तरफ पलटी।
उस वक्त उसकी आंखों में नाचती चिंगारियां देखकर मैं ही नहीं, कमरे में मौजूद हर शख्स चकरा गया था।
उसकी आंखें गोपाल मराठा पर स्थिर थीं और उनसे वह उस पर आग-सी बरसाती महसूस हो रही थी । किसी की समझ में नहीं आया कि अचानक ही वह मराठा पर इतनी कुपित क्यों हो गई है?
सकपकाए- से गोपाल मराठा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि विभा ने बहुत ही गुस्से भरे और तीखे लहजे में कहा ---- “यह तुमने ठीक नहीं किया मराठा ।”
“जी मैंने ?” मराठा बुरी तरह चौंका ---- “मैंने क्या किया?”
“मैंने कहा था कि घटनास्थल से छेड़छाड़ न की जाए !”
“म... मैंने उसका पालन किया है विभा जी । ”
“नहीं किया।” विभा ने सख्ती के साथ कहा ।
“अ... आप कैसी बात कर रही हैं?”
“बैड पर नहीं चढ़े तुम?"
“ब... बैड पर तो ।” वह अटका-- -“हां, चढ़ा था लेकिन..
“ये घटनास्थल से छेड़छाड़ नहीं हुई? तुम्हारे जूतों के निशानों ने हत्यारे के जूतों के निशानों को मिटा और छुपा दिया है। वे वहां उसके द्वारा लाश को पंखे पर टांगते वक्त बने होंगे ।”
“ओह, आप यह कहना चाहती हैं।" इस बार गोपल मराठा हौले से मुस्कराया ---- “मगर मान गया, आपकी नजर बहुत पैनी है । आते ही जान गईं कि मैं बैड पर चढ़ा था।"
“वही जूते पहने कमरे में खड़े हो और उम्मीद यह करते हो कि मैं इस बात को नहीं जान लूंगी?” लहजा अब भी तीखा था ।
“सॉरी विभा जी ।” वह अपने जूतों की तरफ देखता बोला।
“मुझे अपने सवाल का जवाब चाहिए, क्यों चढ़े बैड पर ?"
“मक्तूल की गर्दन पर कुछ निशान हैं। फर्श से वे अस्पष्ट नजर आ रहे थे। उन्हें नजदीक से देखने के लिए ..
“हत्यारे के फुट-स्टेप्स की परवाह नहीं की ?”
“की।"
“मतलब?”
“आपको दिखाने के लिए यह मैंने बैड पर चढ़ने से पहले ही खिंचवा लिया था ।” कहने के साथ उसने कोट की जेब से एक फोटो निकालकर विभा की तरफ बढ़ा दिया । विभा ने फोटो लिया । मैं और शगुन उसके नजदीक सरक आए । फोटो में जूतों के निशान काफी स्पष्ट थे। उसे देखने के बाद उसने मराठा की तरफ नजर उठाई और बोली "गुड ।”
“थैंक्यू ।” मराठा हौले से मुस्कराया।
“मगर ये निशान तो तुम्हारी पिछली थ्योरी को ठेंगा दिखाते नजर आ रहे हैं। वहां सेंडिल्स के निशान थे, यहां जूतों के हैं। तुम्हारे उस दावे का क्या होगा कि कातिल कोई लड़की है ?”
“क्यों, लड़कियां जूते नहीं पहन सकतीं ?”
“बेशक पहन सकती हैं लेकिन आमतौर पर किसी लड़की के पैर इतने बड़े नहीं होते।” विभा ने कहा----“मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि ये जूता दस नंबर से कम का नहीं है और बिड़ला -हाऊस से मिला सेंडिल का निशान छः नंबर से ज्यादा नहीं था । "
“आप ठीक कह रही हैं ?” मराठा ने ज्यादा बहस नहीं की।
“गर्दन पर कैसे निशान हैं?"
“हत्या गला दबाकर की गई है और हत्यारा गिलब्स पहने था | "
“एक बार फिर साबित होता है कि वह मर्द है ।"
“वह कैसे ?”
“क्या कोई लड़की रमेश भंसाली जैसे कड़ियल नौजवान की हत्या गला दबाकर कर सकती है?"
“आपने शायद गांव की हट्टी-कट्टी लड़कियां नहीं देखीं !”
" सेंडिल्स के निशान वैसी लड़की के नहीं थे जनाब ।”
“मुझे तो लगता है कि बैड पर जूतों के निशान जानबूझकर हमें यानी इन्वेस्टीगेटर्स को भ्रमित करने के लिए छोड़े गए हैं । ”
इस बार उसे बहुत ही दिलचस्प नजरों से देखती विभा जिंदल ने पूछा----“ऐसा क्यों लगता है तुम्हें ?”
“क्योंकि निशान बहुत ही स्पष्ट थे । इतने ज्यादा जैसे हत्यारे ने जान-बूझकर बनाए हों जबकि उसके यहां तक आने के रास्ते में ऐसी कोई जगह नहीं है जहां से जूतों में इतनी मिट्टी लग जाए।"
“ ऐसा क्यों करेगा वह ?"
“मेरे ख्याल से उसने अखबारों में पढ़ लिया था कि सेंडिल्स के निशानों से हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि हत्या किसी लड़की ने की है इसलिए इस बार उसने भ्रमित करने के लिए ..
“गुड... वैरीगुड मराठा ।" वह कह उठी ।
“ और अगर मैं ठीक सोच रहा हूं तो इस बार पहले से भी ज्यादा पुरजोर अंदाज में साबित होता है कि हत्याएं कोई लड़की ही कर रही है । यदि ऐसा न होता तो उसे हमें भ्रमित करने की यह कोशिश करने की जरूरत ही नहीं थी।”
“ यकीनन तुम्हारे तर्कों में दम है लेकिन मैं ये नहीं मान सकती कि कोई लड़की रमेश जैसे नौजवान को गला दबाकर मार सकती है ।”
“बेहोश करने के बाद तो गला दबा सकती है ?”
“क्या ऐसा हुआ है ?”
“मैंने संभावना व्यक्त की है।”
“बगैर बेस के संभावनाएं व्यक्त करने से केस हल नहीं हुआ करते।” विभा ने कहा- --- “कुछ पता लगा, क्या हुआ था ?”
“रात के करीब दो बजे की बात है।" गोपाल मराठा ने बताना शुरु किया ---- " अचानक सुधा की नींद उचटी ।”
“सुधा?”
“ रमेश भंसाली की पत्नी ।”
“आगे?” "
“उसे लगा ---- किसी ने दरवाजा खटखटाया था । अब वह ध्यान से आवाज सुनने की कोशिश करने लगी। कुछ देर बाद सचमुच पुनः दरवाजा खटखटाया गया। सुधा ने पूछा-- -'कौन?' दूसरी तरफ से शकुंतला भंसाली की आवाज आई ----‘जरा दरवाजा खोलो बेटा ।'
“ये शायद सुधा की सास का नाम है ?”
“जी।”
“उसके बाद ?”
“ सुधा चकराई। इतनी रात को भला उन्हें दरवाजा खुलवाने की क्या जरूरत पड़ गई? पर उठी । बैड के दूसरी तरफ पड़ा रमेश खर्राटे लेता रहा। आगे बढ़कर सुधा ने दरवाजा खोला ही था कि जैसे आफत टूट पड़ी। कुछ समझ भी नहीं पाई थी कि कोई उस पर झपटा। चीखने के लिए मुंह खुला लेकिन आवाज फिजां में न गूंज सकी । हलक ही में घुटकर रह गई । किसी का मजबूत हाथ उसके मुंह पर ढक्कन बनकर चिपक गया था। उसने हमलावर के चंगुल से निकलने के लिए हाथ पैर मारने की कोशिश की मगर यह कोशिश भी ज्यादा देर नहीं कर सकी । हमलावर ने उसकी कनपटी पर वार किया था । सुधा की आंखों के सामने रंग-बिरंगे तारे-से नाच उठे । वह बेहोश होती चली गई । ”
“होश में आने पर?”
“ आंख खुलते ही पहली नजर बैड के ठीक ऊपर लटक रही रमेश की लाश पर पड़ी । कुछ देर तक तो कुछ समझ ही नहीं सकी। किंकर्तव्यविमूढ़-सी पड़ी रह गई और जैसे ही यह समझ में आया कि वह अपने बैड पर है और ठीक ऊपर लटका जिस्म उसके पति का है तो चीख पड़ी । उछलकर बैड से खड़ी हुई । दौड़ती हुई बाहर निकली। आप समझ ही सकती हैं उस वक्त उसकी क्या हालत हुई होगी ! उसकी चीखों से भंसाली-निवास में भगदड़ मच गई।”
“यह सब सुधा ने बताया ?”
“जी।”
“कितने बजे की बात है ?”
“करीब साढ़े दस बजे की ।”
“साढ़े दस बजे ! तब तक कोई और इस कमरे में नहीं आया ?”
“भैरोसिंह भंसाली का कहना है कि रमेश और सुधा को देर तक सोने की आदत थी । उन्हें कोई जगाता नहीं था । खुद ही उठकर बैड-टी के लिए बैल बजाते थे जो किचन में बजती है।”
“देर तक सोने की वजह?”
“रात को देर तक जागना।"
“जागने की वजह ?"
“देर रात पार्टियों से लौटना । "
“इस केस से जुड़े शख्स पार्टियों के रसिया मालूम पड़ते हैं। " विभा न कहा -- -“खैर, भैरोसिंह भंसाली ने और क्या बताया?"
“ उस वक्त वे बॉल्कनी में बैठे अखबार पढ़ रहे थे जब सुधा के चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनीं। दौड़ते हुए यहां आए तो..
“ शकुंतला भंसाली से पूछताछ की ?”
“आपके इंतजार में यही सब कर रहा था । घटनास्थल से तो ज्यादा छेड़छाड़ कर नहीं सकता था। जितनी की, वह भी पकड़ी गई।”
“ उन्होंने क्या बताया ?”
“वे उस वक्त घर में बनाए गए मंदिर में पूजा कर रही थीं।”
“रात के दो बजे इस कमरे का दरवाजा खटखटया था या नहीं?”
“नहीं।”
“यानी हत्यारा आवाज बदलने की कला में माहिर है !”
“लगता तो ऐसा ही है ।”
“ और अपना काम तसल्ली से करने की बीमारी भी है उसे।” विभा कहती चली गई----“मक्तूल के सारे कपड़े उतारना और फिर पेट पर कुछ लिखना, ये सब तसल्ली के काम हैं और यहां तो उसने हत्या करने के बाद लाश पंखे पर भी लटकाई है । जाहिर है कि सुधा को बेहोश करने के बाद उसने यह सारा काम तसल्ली से किया ।”
“ पर विभा जी, हत्यारा ऐसा कर क्यों रहा है? ” गोपाल मराठा ने पूछा ---- “मक्तूल के कपड़े क्यों उतारता है वह ?”
“अगले शिकार की लाश के पास पहुंचाने के लिए ।” विभा ने कहा----“रतन के कपड़े अवंतिका के पास से मिले और..
“नहीं, अवंतिका के तो नहीं हैं ये कपड़े । गिरजा प्रसाद बिड़ला ने बताया था कि लंच के वक्त वह जींस और टॉप पहने हुए थी जबकि ये सलवार कुर्ता हैं । ये कपड़े किसी और के हैं ।”
“हत्यारे के तीसरे शिकार के ।”
“तीसरा शिकार ? वह तो रमेश ही है न!"
“नहीं, यह उसका चौथा शिकार है । "
“तो फिर तीसरा ?”
“यह बात मुझे रमेश की लाश ने बताई है कि चांदनी अब इस दुनिया में नहीं रही। हत्यारे की तीसरी शिकार बन चुकी है । "
कहने के साथ विभा ने बहुत ही गौर से गोपाल मराठा को देखा था।
मराठा के चेहरे पर सकपकाने के भाव उभरे थे 1
कुछ ऐसे भी जैसे धक्का पहुंचा हो और फिर उन सभी भावों को उसने बहुत तेजी से छुपाया। बोला---- “क्या बात कर रही हैं? मैंने तो सुना है कि उसने यमुना में कूदकर आत्महत्या की है !”
“इस लाश के, बल्कि लाश के गले में पड़े कपड़ों की जानकारी होने से पहले मेरा ख्याल भी यहीं था और सच पूछो तो मैं ये उम्मीद भी कर रही थी कि शायद वह मरी न हो, जिंदा ही मिल जाए लेकिन इन कपड़ों के बाद जान चुकी हूं कि वह इस दुनिया में नहीं है।”
“ए... ऐसा आप कैसे कह सकती हैं ?”
“क्योंकि ये कपड़े चांदनी के हैं, वही ---- जो के यमुना में छलांग लगाते वक्त उसके जिस्म पर थे। अगर उसकी लाश कभी मिली तो अवंतिका के कपड़े उसके पास से मिलेंगे।”
“पर कैसे हो सकता है ऐसा ? उसे खुद यमुना में छलांग लगाते कई प्रत्यक्षदर्शियों ने देखा है !”
“यह तो वक्त ही बताएगा कि वह हत्यारे की तीसरी शिकार कैसे बनी? यमुना में खुद कूदी थी या किसी ने मजबूर किया था ।”
कई पल के लिए कमरे में सन्नाटा छा गया । फिर मराठा ने ही उस सन्नाटे को तोड़ा-- -- “पर सवाल फिर वही है विभा जी, हत्यारा ये सब क्यों कर रहा है? अपने शिकार के कपड़े क्यों उतारता है वह ? क्यों उन्हें अपने अगले शिकार के पास छोड़ता है और क्यों उसके पेट पर कुछ न कुछ लिखता है ? इन लिखे हुए शब्दों का मतलब क्या है ?”
“ उसकी एक और चालाकी दिमाग में नोट कर लो।"
“वह क्या?”
“हत्यारा जो स्केच पेन से पेट पर ये अक्षर लिखता है, अपने उस हाथ से नहीं लिखता जिससे स्वाभाविक रूप से काम करता है बल्कि विपरीत हाथ से लिखता है । कहने का मतलब ये कि अगर वह राइटहेंडर है तो इन अक्षरों को लिखने में लेफ्टहेंड का प्रयोग कर रहा है और यदि लेफ्टहेंडर है तो राइटहेंड का । ” -
“यह बात आपने कैसे ताड़ी?”
“लिखावट से, अक्षर फ्लो में लिखे हुए नहीं होते।”
" पर ऐसा वह क्यों कर रहा है ?”
“पकड़े जाने पर राइटिंग- एक्सपट्र्स से बचने के लिए । ”
“मैं कहता हूं उसे अक्षर लिखने की जरूरत ही क्या है?”
“ वह शायद कोई संदेश देना चाहता है जिसे अभी हम समझ नहीं पा रहे हैं।” विभा ने कहा ---- “लाश उतरवाओ।”
चांदनी के कपड़ों का गट्ठर जब खोला गया तो उसमें एक जोड़ी सेंडिल्स भी थीं । विभा और मराठा ने उनके तलों को देखा तो देखते ही रह गए। अंततः विभा जिंदल ने कहा ---- “ये लो, हत्यारे ने तुम्हारी हत्यारी की सेंडिल्स भी पेश कर दीं ।”
गोपाल मराठा कुछ बोला नहीं ।
वह अभी भी सेंडिल्स के तलों को देख रहा था जबकि विभा ने कहा ---- “क्या तुम्हें इस बात में कोई शक है कि ये सेंडिल्स वे हैं जिनके निशान अवंतिका के कमरे में पाए गए थे ?”
“ यकीनन वे इन्हीं सेंडिल्स के थे । ”
“तब तो अवंतिका की हत्यारी..
“नहीं, ये सेंडिल्स चांदनी की नहीं हो सकतीं ।”
“क्या कहना चाहते हो?”
“चांदनी के कपड़ों के बीच हत्यारे ने अपने सेंडिल्स लपेट दिए हैं ताकि हम इन्हें भी चांदनी की ही समझें ।”
“यह तो पता लग जाएगा कि सेंडिल्स चांदनी के हैं या नहीं।”
“जब पता लगेगा, तब का तब सोचूंगा । ”
“ मैं जब-तब में विश्वास नहीं रखती। जो करना होता है कर डालती हूं ।” कहने के साथ उसने मोबाइल के बटन दबाए ।
“किसे फोन मिला रही हैं?”
विभा जिंदल ने उसके सवाल का जवाब देने की जगह मोबाइल पर कहा - - - - “क्या तुमने चांदनी के सेंडिल्स पर ध्यान दिया था ? " 37
दूसरी तरफ से शायद सकारात्मक जवाब दिया गया, तभी तो विभा का दूसरा सवाल था ---- “कैसे थे वे ?”
उस तरफ से बताया जाने लगा ।
विभा बार-बार सेंडिल्स को देख रही थी ।
शायद वह दूसरी तरफ से बताए जाने वाले शब्दों का मिलान कर रही थी | मेरी और शगुन की नजरें मिलीं ।
हम समझ चुके थे कि वह वीणा से बात कर रही है ।
वह काफी देर तक 'हूं - हां' उसकी आंखों में वही चमक करती रही और वही करते-करते मैंने देखी ... वही, जो उसकी आंखों में केवल तब उभरती है जब उसे कोई मार्के की बात पता लगती है।
संबंध - विच्छेद करते वक्त उसके चेहरे पर परम- संतुष्टि के ऐसे भाव थे जैसे मलाई से भरा कटोरा चाटने के बाद बिल्ली के चेहरे पर होते हैं। मोबाइल जेब में रखते वक्त उसने बहुत ही... बहुत ही खास नजरों से गोपाल मराठा की तरफ देखा था ।
जबकि मराठा के चेहरे पर उसकी एक्टीविटीज को देखकर परम हैरत के भाव थे । जैसे समझ न पा रहा हो कि वह उसकी तरफ इस तरह क्यों देख रही है ।
पहला मौका मिलते ही उसने पूछा ---- “किससे बातें कीं आपने ?”
“एक ऐसे प्रत्यक्षदर्शी से जिसने चांदनी को यमुना में कूदते देखा था और उसके मुताबिक ये सेंडिल्स चांदनी के ही हैं । "
“तब तो मुझे अपना विचार बदलना पड़ेगा ।”
“कौनसा विचार ?”
“कि हत्यारी कोई लड़की है ।"
“क्यों? चांदनी क्यों नहीं हो सकती ?”
“मैंने कहा न!” अचानक वह उत्तेजित नजर आने लगा---- “वह नहीं हो सकती । वह ये सब कर ही नहीं सकती ।”
“ अवंतिका के घर में इन्हीं सेंडिल्स के इतने स्पष्ट निशान मिले, उन्हीं के बेस पर तुम बार-बार दावा कर रहे थे कि हत्यारी वही सेंडिल वाली लड़की है तो फिर अब यह कैसे कह रहे हो कि वह चांदनी नहीं हो सकती? उसका नाम आते ही तुम्हारा ख्याल कैसे बदल गया ?”
“निशानों से सिर्फ यह साबित होता है कि वह वहां गई थी। चांदनी अगर गई भी होगी तो किसी और कारण से गई होगी। आप यकीन कीजिए मेरा, वह किसी हालत में हत्यारी नहीं हो सकती ।”
“ मैं कारण पूछ रही हूं।"
“कारण तो आप खुद ही बता चुकी हैं। भला वह कातिल कैसे हो सकती है जिसका खुद ही कल हो चुका है।"
“बड़े शानदार ढंग से हुआ है कत्ल । ऐसा कि जो पहले आत्महत्या नजर आया । केवल ये कपड़े इंगित करते हैं कि चांदनी का कत्ल हो गया है। लाश नहीं मिली है अभी तक और... जब तक लाश न मिल जाए तब तक कानून किसी को मरा नहीं मानता ।”
“कहना क्या चाहती हैं आप?”
“ ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि हत्याएं वहीं कर रही हो और अपने कत्ल का ये सारा ड्रामा यह सोचकर खुद उसी ने रचा हो कि इस तरह हमेशा के लिए सबके संदेह के दायरे से बाहर निकल जाएगी। सब वही सोचेंगे जो तुम सोच रहे हो। यह कि जो खुद कत्ल हुई है वह कातिल हो ही नहीं सकती। खुद को बचाए रखने का यह नायाब तरीका है। "
“नहीं विभा जी, ऐसा नहीं हो सकता ।”
“ मैंने पूछा, क्यों नहीं हो सकता ?”
“क्योंकि सबके संदेह के दायरे से बाहर रहने का ऐसा नायाब तरीका आपके दिमाग में आ सकता है लेकिन चांदनी के दिमाग में नहीं आ सकता । वह एक सीधी-सादी लड़की है । "
“बड़ी पैरवी कर रहे हो चांदनी की !” ऐसा कहने के साथ विभा जिंदल ने उसे चुभती नजरों से देखा ।
वह सकपकाया, संभलकर बोला ---- -“मैं पैरवी नहीं कर रहा हूं बल्कि यह बता रहा हूं कि वह इतनी तेज लड़की नहीं है ।”
“कैसे जानते हो ?”
मराठा चुप ।
सन्नाटे-से में आ गया लगता था वह ।
विभा लगातार चुभते अंदाज में उसकी आंखों में झांक रही थी । फिर एक-एक शब्द को जमाती बोली ---- “इसीलिए न क्योंकि वह न तुम्हारी बहन है ? एकदम सगी बहन । ”
हम बुरी तरह चौंक पड़े।
मराठा के चेहरे पर तो जैसे भूकम्प ने कब्जा जमा लिया ।
हैरत का सागर उमड़ा पड़ रहा था उस पर ।
साफ नजर आ रहा था कि वह जाने क्या-क्या कहना चाहता है लेकिन उत्तेजना की ज्यादती के कारण मुंह से एक लफ्ज भी नहीं निकाल पा रहा है। रंगे हाथों पकड़े गए चोर जैसी हालत हो गई थी उसकी । विभा को यूं देखता रह गया था जैसे मिश्र के पिरामिडों को देख रहा हो। जैसे हिरन अचानक सिंहनी के सामने फंस गया हो ।
“बोलो ।” महामाया ने पूछा- --- “चांदनी तुम्हारी बहन है न !”
वह बड़ी मुश्किल से पूछ सका ---- “अ... आपको कैसे पता ?”
“पहले यह बताओ, इस बात को छुपा क्यों रहे थे ?”
“पापा ने अपनी कसम दी थी ।”
“क्यों?”
“क्योंकि उसने घर से भागकर शादी की थी। उन दिनों मैं ट्रेनिंग पर था। न उनकी मुहब्बत के बारे में पता लगा, न शादी के बारे में। पापा ने बताना मुनासिब नहीं समझा था । मुझे तो झटका तब लगा जब ट्रेनिंग पूरी करके घर पहुंचा । यह कहकर पापा को समझाने की कोशिश की कि ---- उन्हें इस बात को इतनी बड़ी करके नहीं लेना चाहिए। उनके जमाने में लव- मेरिज करना भले ही अपराध रहा हो लेकिन आज के जमाने में ऐसा नहीं है। वे मुझी पर भड़क गए। कहने लगे कि चांदनी ने यदि लव- मेरिज भी की होती तो शायद वे माफ कर देते लेकिन उसने तो घर से भागकर शादी की है। उसके इस गुनाह को वे माफ नहीं कर सकते। चांदनी से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया है उन्होंने । यह मान लिया है कि वह मर चुकी है बल्कि उनकी कभी कोई बेटी पैदा ही नहीं हुई थी। उन्होंने यह भी साफ-साफ कहा कि अगर मैंने चांदनी से कभी कोई रिश्ता रखा या जीवन के किसी मोड़ पर किसी को यह बताया भी कि वह मेरी बहन है तो वे मुझसे भी हमेशा के लिए नाता तोड़ लेंगे | मरा मान लेंगे मुझे भी। सोच लेंगे कि उनकी कभी कोई औलाद हुई ही नहीं थी ।”
यह सब उसने इतने उत्तेजनात्मक अंदाज में कहा था कि काफी देर तक कोई कुछ नहीं बोल सका। काफी लंबी खामोशी के बाद विभा बोली- - - - “तुम्हारे पिता यानी कामता प्रसाद फरीदाबाद में रहते हैं न !”
“हां । पर आपको इतना सब कैसे मालूम ?”
“कब से नहीं गए फरीदाबाद ?”
“एक महीने से । फुर्सत ही नहीं मिली । ”
“इसीलिए तुम्हें उनके साथ हुए हादसे के बारे में पता नहीं लगा ।”
“हादसा ?” वह चौंका ---- “उनके साथ क्या हादसा हो गया?'
“उन्हें किडनेप कर लिया गया था ।” विभा जिंदल एक ही सांस में कह गई----“और किडनेप करने वाले थे इसी शख्स के लोग जिसके कातिल की तुम खोज करने की कोशिश कर रहे हो ।”
— “य... ये आप क्या कह रही हैं ?” मारे हैरत के उसका बुरा हाल हो गया- “भला इसका उनसे क्या मतलब ? ”
जवाब में विभा, चांदनी के हमारे घर आने के अलावा सबकुछ बताती चली गई । यह भी कि उसने वीणा को उसके पीछे क्यों लगाया था और उसके पिता का नाम कुछ देर पहले वीणा ने ही बताया है।
सुनते-सुनते आश्चर्य के कारण जहां उसका बुरा हाल हो गया था वहीं, विभा के चुप होने पर उत्तेजना की ज्यादती के कारण बुरी तरह कांपने लगा। उसके मुंह से लफ्ज नहीं अंगारे निकले थे ---- “नहीं छोडूंगा। अपने पिता का वो हाल करने वालों को और अपनी बहन को इस कदर मजबूर करने वालों को मैं किसी हालत में जिंदा नहीं छोडूंगा । एक - एक को चीर-फाड़कर सुखा दूंगा।"
“किसका क्या करोगे तुम? जिसने ये दोनों काम किए थे, वह तो पहले ही मरा पड़ा है। अब तो सिर्फ इसके प्यादे बाकी हैं । किराये के उन टट्टूओं की लाशें बिछाकर तुम्हें मिलेगा भी क्या ?”
“आप यह जानने के बावजूद चांदनी को हत्यारा कह रही थीं कि उसे ये हरामजादा किस कदर कठपुतली बनाकर नचा रहा था?”
“ अभी तो यही क्लियर नहीं है कि चांदनी ने ब्लैकमेल होकर खुद को रतन की हत्या के इल्जाम में फंसाया या डायरी में लिखा?”
“छंगा-भूरा साले अवस्था में थाझूठ बोल रहे होंगे।” मराठा अब भी उत्तेजित -“उनसे सच उगलवाना होगा ।"
“उनके पास झूठ बोलने की कोई वजह नहीं है।"
मैंने पूछा ---- “तो क्या तुम अब भी यही कहना चाहती हो विभा कि अपनी हत्या का यह ड्रामा खुद चांदनी ने ही रचा है ?”
“हालांकि मराठा के इस तर्क में वजन है कि खुद को सबके संदेह के दायरे से दूर रखने का इतना नायाब तरीका मुझ जैसी लेडी के दिमाग में तो आ सकता है जो क्राइम की बारीक जानकारी रखती है लेकिन चांदनी के जेहन में नहीं आ सकता लेकिन फिर भी..
“फिर भी?” मराठा ने पूछा ।
“एक इन्वेस्टीगेटर के नाते मैं किसी को भी संदेह के दायरे से बाहर नहीं रख सकती। चांदनी की लाश मिलने से पहले तो हरगिज नहीं। पता नहीं कौन छुपा रुस्तम निकल आए ! पर एक बात तय है।"
“वह क्या?”
“तुम्हारे इस पुत्तर की मेहरबानी से इस बार मैं काफी दिलचस्प मामले में फंसी हूं। किस्सा ही समझ में आकर नहीं दे रहा। पहले रतन, फिर अवंतिका, चांदनी को बीच में से निकाल भी दिया जाए तो फिर रमेश । क्यों हो रही हैं ये हत्याएं? वह चांदनी हो या कोई और ... क्यों एक-एक करके सबको मार रहा है ?”
“" इतना तो तय है विभा जी कि मरने वालों का आपस में कोई संबंध है।" मराठा ने कहा- -“इन लोगों के साथ अतीत में कोई ऐसी घटना घटी है जिसकी वजह से ये हत्याएं हो रही हैं ।” ====
“जहां तक संबंधों की बात है, रतन - अवंतिका तो पति-पत्नि ही थे। चांदनी को भी मरी मान लिया जाए तो ----यह भी सभी जानते हैं कि बजाज और बिड़ला परिवार पूर्व-परिचित हैं लेकिन अभी तक हमें यह नहीं मालूम है कि भंसाली परिवार का भी कोई मेंबर बिड़ला या बजाज परिवार के किसी मेंबर का परिचित था या नहीं?”
“ इस बारे में तो इसी परिवार के लोग बता सकते हैं । ”
“तभी तो मेरा कहना ये है कि यहां खड़े रहकर अब हम समय बरबाद कर रहे हैं।” विभा बोली----“हमें उनसे बात करनी चाहिए।”
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