जीतसिंह सोकर उठा तो उसने पाया कि दस बज चुके थे।


पिछली रात को वो अपने मालिक के घर नहीं गया था क्योंकि अब उसकी तालों की दुकान की मुलाजमत बेमानी थी । अब तो उन लोगों ने मूर्तियां गाडगिल को सौंपनी थीं, लॉकर खोलकर माल कब्जाना था और उसमें से अपना दस लाख का हिस्सा लेकर फ़ौरन बम्बई के लिए कूच कर जाना था।


पिछली रात कौल की मौत की वजह से आए विघ्न की कहानी उसने ऐंजो की जुबानी सुन ली थी। उसे ऐंजो से ही मालूम हुआ था कि कैसे एडुआर्डो कौल की लाश के सिरहाने थोड़ी देर को अपना आपा खो बैठा था लेकिन बाद में उसने ही एम्बुलेंस वालों को सम्भाला था और कौल की लाश कोल्वा बीच के करीब समुद्र के हवाले की थी ।


यानी कि हालात पूरी तरह से काबू में थे ।


पिछली रात से वो ऐंजो के साथ उसके घर में था । तभी चाय के गिलास और अखबार के साथ ऐंजो ने वहां कदम रखा ।


"गुड मार्निंग, बॉस ।" - वो मुस्कराता हुआ बोला । "वैरी गुड मार्निंग ।" - जीतसिंह बोला ।


"राइज एंड शाइन ।”


जीतसिंह हंसा ।


"चाय पियो ।" - जीतसिंह को चाय का गिलास और अखबार थमाता हुआ वो बोला- "और अखबार पढ़ो । "


" तूने पढ़ लिया ?"


"मैं अखबार नहीं पढ़ता । तुम्हारे वास्ते लाया ।”


"ओह !"


“ मैं अभी आता है तुम्हारे बाथ का इन्तजाम करके ।"


जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया और चाय की एक चुस्की ली। फिर उसने गिलास को अपने करीब फर्श पर रख दिया और अखबार खोला ।


मुखपृष्ठ पर जो पहली चीज उसे दिखाई दी वो गाडगिल की तस्वीर थी ।


वो भौचक्का सा तस्वीर को देखने लगा जिसके साथ खूब मोटी सुर्खी थी:


एंटीक डीलर गिरफ्तार


सी बी आई की रेड में लाखों का चोरी का माल बरामद जिसमें बाघ की दो खालें प्रमुख


बैंक अकाउंट, लॉकर वगैरह सब सील


लॉकर सील !


उसके छक्के छूट गए ।


उसने जल्दी-जल्दी सारी खबर पढ़ी ।


खबर में बॉम्बे मार्केटाइल बैंक के गाडगिल के लॉकर का स्पष्ट जिक्र था ।


हे भगवान । ये कैसा इम्तहान था । ये कैसी विडम्बना थी भाग्य की । क्या उसकी किस्मत में जीत लिखी ही नहीं थी।


"ऐंजो।" - एकाएक वो जोर-जोर से चिल्लाने लगा - "ऐंजो ।”


ऐंजो दौड़ता हुआ वहां पहुंचा।


“क्या हुआ, बॉस ?" - वो बदहवास सा बोला- "बिच्छू ने काटा ? इधर कभी-कभी निकल आता है। "


" अखबार देख ।"


बड़ी मुश्किल से ऐंजो की समझ में आया कि अखबार में जीतसिंह उसे क्या दिखा रहा था और जो उसे दिखा रहा था, उसकी क्या अहमियत थी ।


"सांता मारिया ।" - फिर वो होंठो में बुदबुदाने लगा - “सांता मारिया ।"


"लेकिन बॉस" - फिर वो आशापूर्ण स्वर में बोला - "माल तो, वो मूर्तियां, हमारे पास ही हैं । "


- "हैं ।" - जीतसिंह असहाय भाव से गर्दन हिलाता हुआ बोला "लेकिन अब हम उसे फौरन कैश नहीं कर सकते। और इन्तजार करना मैं अफोर्ड नहीं कर सकता । मेरे पास सिर्फ तीन दिन बाकी हैं। उसके बाद दस लाख रूपया मेरे पास होना, न होना एक बराबर होगा ।”


"ओह !" - वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला- "लेकिन कोई हल तो होगा । हर प्रॉब्लम का होता है।"


“फटाफट तैयार हो । एडुआर्डो के पास चलते हैं।"


"ठीक है ।"


एडुआर्डो उन्हें मातमी मूड में मिला । जाहिर था कि वो अखबार में गाडगिल की बाबत पढ़ चुका था ।


“इसने भी अभी गिरफ्तार होना था ।" - वो भुनभुनाता सा बोला ।


"सवाल ये है" - जीतसिंह उतावले स्वर में बोला- "कि अब क्या किया जाए ?”


"क्या किया जा सकता हैं ? सिवाए इसके कि कोई नया ग्राहक तलाश किया जाए । या मूर्तियों को सोने के मोल बेचने की कोशिश की जाए।"


" दूसरा काम डेंजर का है।" - ऐंजो बोला ।


" “और उससे हासिल भी आधा रह जाएगा ।" - जीतसिंह बोला ।


" यानी कि ग्राहक तलाश किया जाए ?" - एडुआर्डो बोला। 


"हां।" - जीतसिंह बोला - " और ग्राहक नया नहीं, पुराना, पहले से ही फिट तलाश किया जाए।"


"क्या मतलब ?"


"गाडगिल मूर्तियां किसी और को आगे बेचने वाला था । उसने ये बात अपनी जुबानी मानी थी लेकिन वो ये बताने को तैयार नहीं हुआ था कि उसका वो ग्राहक कौन था क्योंकि उसे अन्देशा था कि ज्यादा रकम के लालच में हम सीधे उसके पास पहुंच सकते थे। इस वक्त वो ही एक शख्स है जोकि हमारा - मेरा खास तौर से बेड़ा पार लगा सकता है ["


"लेकिन उसका पता कैसे लगे ? क्या पता वो गोवा में है या कहीं और । क्या पता वो इतने बड़े हिन्दोस्तान में कहां है । हिन्दोस्तान में है भी या नहीं । "


"उसे गाडगिल तो जानता है।" - ऐंजो बोला ।


"लेकिन वो जेल में है। पुलिस की हिरासत में है । "


"तो क्या हुआ ?" - जीतसिंह बोला- "तुम इतने पहुंचे हुए आदमी हो, इतने बड़े उस्ताद हो, किसी तरह से जेल में गाडगिल से सम्पर्क बनाओ। किसी सिपाही के जरिए, किसी वकील के जरिए, किसी असली या फर्जी रिश्तेदार के जरिए उससे सम्पर्क बनाओ और मालूम करो कि उसका खरीददार कौन है ?"


"वो बताएगा ?"


“आसानी से तो नहीं बताएगा लेकिन किसी तरह तैयार करो उसे बताने के लिए । वो फंसा हुआ आदमी है जिसे अपने भविष्य में इस घड़ी अन्धेरा ही अन्धेरा दिखाई दे रहा होगा । शायद वो परोपकारी मूड में आ जाए और ये छोटी सी जानकारी, जो अब उसके लिए बेकार है, वो हमारे साथ शेयर करने को तैयार हो जाए।"


"हूं।"


"ये हूं-हां का वक्त नहीं है, एडुआर्डो । ये फौरन कुछ करने का वक्त है।"


"ठीक है। मैं कोशिश करता हूं।"


"कोशिश नहीं, तुमने ये काम करके दिखाना है। ये निश्चय करके ये कदम उठाना है कि ये काम तुमने करना ही है । "


"करता हूं, भाई, करता हूं।"


"शुक्रिया | ये सोच के काम करना, उस्ताद जी, कि ये मेरे जीवन-मरण का सवाल है ।”


"अच्छा।"


***

गुरूवार के अखबार के मुखपृष्ठ पर से जीतसिंह ने फिर गाडगिल की तस्वीर अपनी ओर झांकती पायी ।


पिछले रोज उसे एडुआर्डो की दोबारा शक्ल नहीं दिखाई दी थी । सारा दिन वो अपने घर से गायब रहा था । जीतसिंह ने भारी सस्पेंस में पिछला दिन और रात काटी थी ।


और अब गाडगिल की तस्वीर के साथ छपी वो सुर्खी उसका दिल बैठाए दे रही थी जिसमें लिखा था :


एंटीक डीलर को अदालत में दिल का दौरा


उसने जल्दी-जल्दी खबर पढ़ी ।


खबर के मुताबिक सी बी आई द्वारा गिरफ्तार गाडगिल को कल पुलिस ने अदालत में पेश किया था । मजिस्ट्रेट ने चौदह दिन के रिमांड का हुक्म सुनाया ही था कि गाडगिल को वहीं दिल का दौरा पड़ गया था । उसे तत्काल हस्पताल ले जाया गया था जहां कि आधी रात के करीब उसकी मृत्यु हो गयी थी |


तौबा !


तभी ऐंजो ने भीतर कदम रखा ।


जीतसिंह ने सिर उठाया तो पाया कि उसके साथ एडुआर्डो भी था ।


"अखबार पढ़ लिया ?" - वो धीरे से बोला ।


जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।


"आपकी उस्तादी काम नहीं आई, उस्ताद जी ।" - वो बोला ।


"अब मैं क्या बताऊं ?" - एडुआर्डो बोला ।


"हां । आप क्या बताएं ?"


"कमबख्त बहुत ही कमजोर दिल निकला। ऊपर से इतना सूरमा बनता था । रिमांड का हुक्म सुनते ही दिल बैठ गया कमबख्त का |


"जेल से दहशत खाता होगा।" ऐंजो बोला । -


"जब गिरफ्तार हुआ था तो क्या फाइव स्टार होटल में रखा जाता ?”


"वो बातें छोडिये ।" - जीतसिंह बोला - "आप ये बताइए कि आपने कुछ किया नहीं या आपके किये कुछ हुआ नहीं ?"


"किया तो बहुत कुछ।"- एडुआर्डो बोला, वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला- "हुआ भी कुछ-कुछ ।"


"क्या मतलब ?"


"वो क्या है कि मैंने उसके वकील को पटाया था। मैंने उसकी मुंह मांगी फीस भरके उससे दरखास्त की थी कि वो गाडगिल से उस आदमी का पता पूछकर बताये जो कि किन्नरियों के नाम से जानी जाने वाली मूर्तियों का ग्राहक था ।”


“वकील को ये भी बता दिया ?"


"न बताता तो हमारा मतलब कैसे हल होता ? गाडगिल के तो दर्जनों ग्राहक होंगे। हमें दर्जनों ग्राहकों की जानकारी तो नहीं चाहिए । हमें तो एक खास ग्राहक की जानकारी चाहिए ।"


“आप ठीक कह रहे हैं । फिर ?”


"फिर अदालत में वो हादसा हो गया । गाडगिल को दिल का दौरा पड़ गया । फौरन वो पुलिस और डॉक्टरों के ऐसे कब्जे में आया कि उसके वकील का उसके करीब भी फटकना नामुमकिन हो गया ।”


"ओह !"


"लेकिन मैंने फिर भी कोशिश न छोड़ी ।"


“अच्छा !" - जीतसिंह आशापूर्ण स्वर में बोला - "और कोशिश क्या की आपने ?"


"मैं उस हस्पताल तक गया जहां कि गाडगिल को ले जाया गया था । वहां मैंने एक नर्स को पटाया जिसकी कि गाडगिल के कमरे में नाईट ड्यूटी थी । मौत की कगार पर खड़ा गाडगिल नर्स के जरिये उस तक पहुंची हमारी बात मानने को भी तैयार हो गया लेकिन हमारा काम मुकम्मल तौर से कर पाने से पहले ही उसका दम निकल गया । मरने से पहले वो बस ये दो नाम बोल पाया जो कि नर्स ने नोट कर लिए और कागज़ मुझे सौंप दिया।"


उसने एक कागज का पुर्जा जीतसिंह की ओर बढाया ।


जीतसिंह ने पुर्जे पर निगाह डाली तो उस पर लिखा पाया : 


जहांगीर ईरानी


प्रभा देवी


"जहांगीर ईरानी।" - ऐंजो ने भी पुर्जे पर से पढ़ा- "प्रभा देवी ।"


“यही दोनों ग्राहक होंगे उसके ।" - एडुआर्डो बोला - "लेकिन सवाल ये है कि अब ये पता कैसे लगे कि ये दोनों हिन्दुस्तान के कौन से कोने में पाए जाते हैं । "


“उस्ताद जी ।” - जीतसिंह धीरे से बोला- “आप बिल्कुल नाकाम नहीं रहे । "


"क्या मतलब ?" - एडुआर्डो सकपकाया ।


" आप बहुत काफी हद तक कामयाब रहे हैं । "


"अच्छा । वो कैसे ? "


"इस पुर्जे पर दो जनों के नाम दर्ज नहीं है। इस पर एक ही जने का नाम दर्ज है। गाडगिल अपने ग्राहक का नाम हमें बताकर मरा है, ग्राहक का नाम जहांगीर ईरानी है ।"


" और प्रभादेवी ?"


"बम्बई के एक इलाके का नाम है । बम्बई के एक इलाके का नाम है प्रभादेवी जहां कि ये जहांगीर ईरानी रहता है । जिस शख्स की हमें तलाश है, उसका नाम जहांगीर ईरानी है और वो बम्बई के प्रभादेवी के इलाके में रहता है, इतना वो बेचारा गाडगिल हमें बताकर मरा है ।"


"ओह !"


"बॉस !" - ऐंजो बोला- "ओनली बाई नेम किसी को किसी एरिया में तलाश करना पॉसिबल होगा ?"


"पॉसिबल बनाना पड़ेगा।" - जीतसिंह दृढ स्वर में बोला - "भले ही हमें उस इलाके के एक-एक घर का दरवाजा खटखटाना पड़े ।”


"वो कोई चलताऊ आदमी तो होगा नहीं।" - एडुआर्डो बोला "कोई बड़ा आदमी होगा वो ।"


"तो ?"


"बड़े आदमियों का नाम टेलीफोन डायरैक्टरी में दर्ज होता है ।”


" आप ठीक कह रहे हैं । ऐंजो, कहीं से बम्बई की टेलीफोन डायरैक्टरी ला ।”


ऐंजो सहमति में सिर हिलाता बाहर को दौड़ा |


डायरैक्टरी में जहांगीर ईरानी का नाम दर्ज था । नाम के साथ छपे उसके पते के अनुसार वो प्रभा देवी में गोखले रोड की गगनदीप के नाम से जानी जाने वाली एक बहुखंडीय इमारत में रहता था ।


"गुड !" - एडुआर्डो संतोषपूर्ण स्वर में बोला ।


“बम्बई जाना होगा ।" - जीतसिंह बोला ।


"कब ?"


"फौरन । अभी । इसी क्षण | "


***

ठीक शाम चार बजे जीतसिंह बम्बई में जहांगीर ईरानी के फ्लैट की कॉल बैल बजा रहा था ।


उसके पीछे ऐंजो और एडुआर्डो खड़े थे ।


उस घड़ी वो तीनों बड़े सभ्रांत और दुनियादार लग रहे थे ।


“घर पर होगा ?" - ऐंजो फुसफुसाया ।


" 'अभी पता चल जाएगा।" - जीतसिंह बोला ।


" सही आदमी होगा ?" - एडुआर्डो भी वैसे ही फुसफुसाया "वही, जिसकी हमें तलाश है ?"


"वो भी अभी पता चल जाएगा।"


दरवाजा खुला । हमेशा की तरह सजा-धजा ईरानी चौखट पर प्रकट हुआ । उसने प्रश्नसूचक नेत्रों से आगंतुकों की तरफ देखा |


" ईरानी साहब" - जीतसिंह बोला- "जहांगीर ईरानी साहब से मिलना है ।"


"साहबान की तारीफ ?"


"हम गाडगिल के दोस्त हैं ।"


"गाडगिल ?” " जे एन गाडगिल | पणजी वाले ।” "क्यों मिलना है ?"


"कुछ मूर्तियों के बारे में बात करनी है ।"


"कैसी मूर्तियां ?"


" 'अगर आप "जनाब।" - एडुआर्डो उतावले स्वर में बोला - ईरानी साहब हैं तो आपको मालूम होना चाहिए कैसी मूर्तियां । अगर आप ईरानी साहब नहीं हैं तो जा के ईरानी साहब को हमारी आमद की खबर कीजिये । "


" ऐसी बातें गाडगिल खुद आकर किया करता है । "


"इस बार वो नहीं आ सकता था ।"


" तो फिर कभी सही । "


"लेकिन जनाब..."


"बिरादरान, बातचीत दोस्त से ही बेहतर होती है, न कि दोस्त के दोस्तों से ।"


" इस बार हालात जुदा हैं।" - जीतसिंह बोला - "इस बार दोस्त से बातचीत नहीं हो सकती ।"


"क्यों ?"


“गाडगिल साहब अब इस दुनिया में नहीं हैं।"


"अरे । क्या हुआ उन्हें ?"


"सब कुछ यहीं खड़े-खड़े बताना पड़ेगा ?"


“भाई, कुछ तो बोलो ।"


"दिल का दौरा पड़ गया। अदालत में पुलिस हस्पताल लेकर गयी तो मर गये । "


"अदालत ! पुलिस ! हस्पताल ! ओह माई गॉड ! प्लीज कम इन । आओ । आओ ।"


बौखलाया सा ईरानी एक ओर हटा तो तीनों भीतर दाखिल हुए । तत्काल उसने उनके पीछे दरवाजा बंद कर दिया। फिर उसने उन्हें विशाल ड्राइंग रूम में ले जाकर बिठाया और बोला - "क्या किस्सा है ?”


"तो आप ही ईरानी साहब हैं ?" - जीतसिंह बोला ।


"हां। क्या किस्सा है ?"


जीतसिंह ने किस्सा ब्यान किया ।


"कमाल है !" - ईरानी बोला- "अखबार में तो कुछ नहीं छपा ।”


" गोवा के अखबारों में छपा है। हमें मालूम होता कि आप हमारी जुबान का एतबार नहीं करेंगे तो हम अखबार साथ ले आते ।”


"नहीं.. नहीं । वो बात नहीं... हूं । तो ऐसी बीती गाडगिल के साथ | "


जीतसिंह ने सहमति में सिर हिलाया ।


“वो परेशान तो था । माली दुश्वारियों से हलकान भी था । सी बी आई की अपने पर नजर से बेखबर नहीं था, लेकिन एकाएक ही ऐसे अंजाम तक पहुंच जाएगा, ये मैंने सपने में भी नहीं सोचा था ।”


" तकदीर की बात है । "


"मेरा पता कैसे जाना ?"


"गाडगिल साहब ने बताया ।"


"ओह, नो ।"


"मौत से पहले। ताकि सौदा आगे भी चल सकता । उनकी मौत के बाद भी ।"


"सौदा ?"


"मूर्तियों का ।"


"जोकि हमारे पास हैं।" - एडुआर्डो बोला ।


"आठ ।" - ऐंजो बोला ।


"हूं।" - ईरानी बोला ।


"जो मूर्तियां" - जीतसिंह जीतसिंह बोला बोला - " आपको गाडगिल से हासिल होने वाली थीं, वो अब आप हमारे से हासिल कर सकते हैं ।”


"तुम कौन सी मूर्तियों की बात कर रहे हो ? जरा तफसील से बताओ मुझे क्योंकि मेरी याददाश्त कुछ ऐसी-वैसी ही है । "


“जनाब, ऐसी बात पूछने का क्या फायदा जिसे आप पहले से जानते हैं, हम से बेहतर जानते हैं । "


"मुझे आप लोगों का परिचय हासिल नहीं हुआ।"


"मुझे बद्रीनाथ कहते हैं । "


"मैं एं... एलफ्रेडो ।" - ऐंजो बोला ।


"जोसेफ परेरा।" - एडुआर्डो बोला ।


"वैलकम ।" - ईरानी बोला- "वैलकम, बिरादरान ।”


"हम" - जीतसिंह बोला- "सोने की उन मूर्तियों की बात कर रहे हैं जो कि कुल जमा चौंसठ हैं और जिनमें से आठ हमारे पास हैं।"


जीतसिंह ने किसी प्रतिकिर्या के लिए आशापूर्ण निगाहों से उसकी तरफ देखा । वो सोचने लगा, एक उंगली से कनपटी ठकठकाने लगा और फिर बोला- "सॉरी । आज मेरी याददाश्त मुझे कुछ ज्यादा ही दगा दे रही है ।"


"आप कहीं ये तो नहीं समझ रहे कि मूर्तियों की बाबत हम झूठ बोल रहे हैं ?"


"नहीं, वो बात नहीं । "


"पांच मूर्तियों का सौदा आप गाडगिल से कर चुके हैं।"


“अच्छा !"


"क्या ऐसा नहीं है ?"


"सोचना पड़ेगा ।"


जीतसिंह ने उलझनपूर्ण भाव से अपने जोड़ीदारों की तरफ देखा । ईरानी का व्यवहार उसकी समझ से परे था ।


"लगता है हम बेकार आये।" - एडुआर्डो तिक्त भाव से बोला ।


"यस" - ऐंजो बोला - "आप ही तो अकेले खरीददार नहीं हैं |"


"दुरुस्त ।" - ईरानी बोला- "खरीददारों का क्या घाटा है । बेचने वालों का भी क्या घाटा है ।”


एडुआर्डो और ऐंजो दोनों सकपकाकर चुप हो गए ।


"जनाब" - जीतसिंह बोला "आपका व्यवहार हमारी समझ से परे है ।" -


"दैट्स टू बैड ।" - ईरानी बोला ।


"लगता है आप वो शख्स नहीं हैं जिन से गाडगिल की बात हुई थी ।"


ईरानी केवल मुस्कुराया ।


"लेकिन खरीददार तो आप फिर भी हो सकते हैं । "


"जरूरी नहीं ।”


" आप बिना सोचे समझे जवाब दे रहे हैं। अगर गाडगिल वाले खरीददार आप नहीं हैं तो फिर तो आपको खबर भी नहीं होगी कि हमारे पास बेचने के लिए क्या उपलब्ध है।"


"मूर्तियां हैं। अभी तुम्हीं ने तो बताया था ।"


"लेकिन आपको ये नहीं मालूम कि वो कैसी हैं और क्यों बेशकीमती हैं ।"


"वो तो है । तुम्हारे पास उनकी कोई तस्वीरें हैं ?" 


"नहीं ।”


"बड़े आर्ट डीलर ऐसी चीजों की फुल डिटेल रखते हैं । तस्वीरें तो जरूर ही रखते हैं । "


"हम न बड़े हैं, न आर्ट डीलर हैं ।" 


"तो कौन लोग हो तुम भई, तुम ?"


"आपको मालूम होना चाहिए।"


"मुझे नहीं मालूम । मेरी याददाश्त... अब क्या कहूं ? बहुत ही खराब हो गयी है । शर्म आ रही है मुझे अपने आपसे । लेकिन क्या करू ? उम्र का भी तो तकाजा है न ?”


कोई कुछ न बोला ।


"मेरे ख्याल से मैंने आप लोगों को काफी वक्त दे दिया है। इसलिए अब अगर...."


उसने जानबूझ कर वाक्य अधूरा छोड़ दिया ।


उस घड़ी एकाएक जीतसिंह को गाडगिल से अपनी पहली मुलाकात याद आई जबकि उसके आदमी उससे मिलवाने के लिए उसे जबरन अगवा करके ले गए थे। तब वो भी वाल्ट खोला होने से इसीलिए इन्कार करता रहा था क्योंकि वो समझ रहा था कि वो पुलिस के पास पहुंच गया था । जरूर यहां भी यही वजह थी । जरूर ईरानी उन्हें पुलिस वाला समझ रहा था इसलिए सावधानीवश ऐसे गोलमोल जवाब दे रहा था जिससे ये स्थापित न हो सकता कि वो चोरी के माल का खरीददार था ।


" ईरानी साहब" - वो बोला- "हम पुलिस वाले नहीं हैं । "


“अच्छा !" - वो भवें उठाता हुआ बोला ।


"जी हां । हम सादे कपड़ों में ऐसे पुलिस वाले नहीं है जो कि गाडगिल से आपके मूर्तियों के सौदे का जिक्र करके आपको किसी जाल में फंसाने आये हों । "


"जानकार खुशी हुई।"


"तो फिर..."


"तुम तीन जने यहां आये हो । एक जना मेरे से सवाल करता है और दो जने बतौर गवाह मेरे जवाब सुनते हैं । ऐसा तो पुलिस वाले ही करते हैं। चोर बहकाने के लिए "


"हम पुलिस वाले नहीं हैं। हम वो लोग हैं जिन्होंने पणजी के डबल बुल कैसिनो का वाल्ट खोलकर उसमें से किन्नरियों के नाम से जानी जाने वाली सोने की आठ मूर्तियां चुराई थीं और जो अब हमारे कब्जे में हैं । "


“अपने बारे में” - एडुआर्डो बोला- “इतना साफ बोलने में हमें भी बहुत खतरा है । हमारी पोल आपके सामने खुल रही है।"


“आप तो” - ऐंजो बोला- "मूर्तियों के बायर होने को यस नहीं बोल रहे, जबकि हम उनके चोर होने को यस बोल रहे हैं ।"


"तुम्हारे इकबाल को सुनने के लिए" - ईरानी बड़े अर्थपूर्ण स्वर में बोला- "यहां कोई गवाह नहीं है ।"


"मैं समझ गया आपकी बात ।" - जीतसिंह जल्दी से बोला, फिर वो अपने साथियों से संबोधित हुआ- "तुम लोग बाहर जाओ। मैं दस मिनट में यहां से बाहर न निकलूं तो जो जी में आये करना ।"


दोनों सहमति में सिर हिलाते हुए वहां से बाहर निकल गये।


"अब ठीक है ?" - जीतसिंह बोला । 


"आओ" - ईरानी उठता हुआ बोला- "बाल्कनी में चलें ।” 


"वहां क्या है ?" - जीतसिंह संदिग्ध भाव से बोला । 


"ठंडी हवा ।"


"जीतसिंह अनिश्चित सा उठा और उसके साथ हो लिया । वे बाल्कनी में पहुंचे तो ईरानी बोला- "जरा हाथ पहलू से दूर करो।"


"वो किसलिए ?" - जीतसिंह सकपकाया ।


"साइंस ने बहुत तरक्की कर ली है, बिरादर । सुना है ऐसे मिनियेचर टेप रिकार्डर बन गये हैं कि वो बड़ी आसानी से जेब में कहीं भी छुपाये जा सकते हैं ।"


"यानी कि आपको अभी भी यकीन नहीं आया कि मैं पुलिस से नहीं हूं ?"


वो खामोश रहा ।


"ठीक है।" - जीतसिंह हाथ कन्धों से ऊपर उठाता हुआ बोला - "लीजिये तलाशी । कीजिये अपनी तसल्ली ।"


ईरानी ने बिना कोई मुलाहजा किये बड़ी बारीकी से उसकी जेबों को और जिस्म को टटोला ।


"अब राजी ?" - जीतसिंह बोला ।


ईरानी ने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।


"तो फिर ?"


"तो फिर क्या ?"


"अब कबूल कीजिये कि गाडगिल वाले खरीददार आप हैं ?"


“मूर्तियां अभी भी तुम्हारे पास क्यों हैं ? अगर तुम लोग वाल्ट खोलने में कामयाब रहे हो तो वो तो गाडगिल के पास होनी चाहिए थीं ।”


"उसी के पास होतीं, अगर वो एकाएक गिरफ्तार न हो गया होता और दिल के दौरे से मर न गया होता । मूर्तियां उस तक नहीं पहुँचीं इसलिए पैसा हम तक नहीं पहुंचा । अब प्रॉब्लम ये है कि पैसा उसके लॉकर में बंद है, लॉकर को पुलिस वालों ने सील कर दिया है और वो खुद मर गया है ।"


" यानी कि लॉकर नहीं खुल सकता ।"


"यही तो ट्रेजडी है । चाबी हमारे पास है लेकिन वो हमारे किसी काम की नहीं । जो चाबी पहले हमारे लिए साठ लाख रूपये की थी अब उसकी दो कौड़ी भी कीमत नहीं।"


"गुनाह बेलज्जत । "


“फिलहाल । लेकिन लज्जत आपके लाये लौट सकती है। इसीलिए हम आपके पास आये हैं ।"


"मेरा नाम-पता वाकई गाडगिल से जाना ?"


"नाम उससे जाना, पता खुद तलाश किया ।”


"कैसे ?”


जीतसिंह ने बताया ।


“होशियार आदमी हो । "


"तारीफ का शुक्रिया । अब बात को आगे भी तो बढाइये।" 


“आगे ?"


“हां । हमारे पास आठ मूर्तियां हैं और आप उनके खरीददार हैं। "


"सबका नहीं । पांच का । सिर्फ पांच का । मेरा गाडगिल से सिर्फ पांच मूर्तियों का सौदा हुआ था ।”


"वो तो हमसे आठों लेने वाला था ।"


"होगा लेने वाला । बाकी तीन का वो क्या करने वाला था, मुझे नहीं मालूम ।"


" पांच मूर्तियों का आपसे कितने में सौदा हुआ था ?" ईरानी एक क्षण हिचकिचाया एयर फिर बोला - "पचास लाख में ।' "


"किसे उल्लू बना रहे हो, साहब ? साठ तो वो हमें दे रहा था ।”


"आठ के।"


“आप आठ ले लीजिये ।"


"मुझे आठ नहीं चाहिए।"


"तो फिर रकम के बारे में बोलिये । हमें नहीं पता कि गाडगिल का आपसे कितने में सौदा हुआ था इसलिए कोई छोटी-मोटी थूक भले ही लगा लीजिये लेकिन हमारी गिरह तो न काटिये ।"


"तुम क्या चाहते हो ?"


"अस्सी ।"


“पागल हुए हो । गाडगिल से तुम्हारा करार साठ में था । वो साथ भी गाडगिल की मौत की वजह से तुम्हें हासिल नहीं हो रहे । ऊपर से लालच करके दिखा रहे हो ।"


"ठीक है। हमें वही रकम कबूल है जो कि हमें गाडगिल से मिलने वाली थी । लेकिन इससे कम हरगिज नहीं ।"


"आठ मूर्तियों की ?”


" पांच की । गाडगिल से आपका पांच का सौदा था । आप इस बात से फिरेंगे तो मुझे कहना पड़ेगा कि अब आप लालच कर रहे हैं । "


“ओके । जन्नतनशीन गाडगिल की याद में मुझे ये सौदा कबूल है । पांच मूर्तियां । साठ लाख रूपये ।" "शुक्रिया।"


"जरा यहीं ठहरो ।”


वो भीतर गया और पांच रंगीन तस्वीरों के साथ वापिस लौटा ।


"ये उन पांच मूर्तियों की तस्वीरें हैं।" - वो तस्वीरें जीतसिंह को सौंपता हुआ बोला - “जो कि मुझे चाहिए।"


"ये उन आठ में होंगी ?" - जीतसिंह संदिग्ध भाव से बोला। 


“जरूर होंगी । इस बाबत पूरी रिसर्च पहले ही की जा चुकी थी।”


"न हुई तो ?"


"तो सौदा खलास । तो मेरे पास फटकने की जहमत न करना ।"


जीतसिंह हड़बड़ाया ।


"लेकिन, इंशाअल्ला, ये मूर्तियां उनमें जरूर होंगी ।"


"आपके मुंह में घी-शक्कर, साहब ।”


"मूर्तियां यहां बम्बई में डिलीवर करनी होंगी।”


"ठीक ।"


"सौदा उस हाथ दे उस हाथ ले वाला होगा।"


"हम भी यही चाहते हैं । "


"बढ़िया । ये मेरा कार्ड रख लो।" - उसने एक विजिटिंग कार्ड जीतसिंह को थमाया - "उस पर मेरे फोन नम्बर लिखे हैं । आइंदा जो भी प्रोग्राम होगा, वो हम पहले फोन पर तय करेंगे।”


"ठीक हैं । "


"आओ तुम्हें बाहर का रास्ता दिखाऊं ।”


जीतसिंह उसके साथ हो लिया ।


***