विकास ने देखा कि बार से थोड़ा परे एक दरवाजा था जिस पर आफिस लिखा था। तभी उसने बारमैन को उस दरवाजे से बाहर निकलते देखा। उसकी विकास से निगाह मिली तो उसने फौरन निगाह फेर ली ।
“कोई गड़बड़ है।" - विकास बोला ।
"उठो ।" - मनोहर निर्णयात्मक स्वर में बोला ।
दोनों फौरन उठे । अपने विस्की के गिलास उन्होंने जानबूझकर खाली नहीं किये ताकि ऐसा लगे कि वे अभी जा नहीं रहे थे ।
"पुलिस !" - एकाएक मनोहर के मुंह से निकला ।
विकास ने खिड़की से बाहर देखा। बाहर सड़क पर उसी क्षण एक पुलिस की कार आकर रुकी थी ।
"तुम पिछवाड़े की तरफ कोई निकासी का रास्ता तलाश करो" - मनोहर जल्दी से बोला- "पुलिस को मैं यहां अटकाता हूं।"
बार के पिछवाड़े के एक दरवाजे पर 'टायलेट' लिखा दिखाई दे रहा था । विकास फौरन उसकी तरफ बढा ।
बारमैन उस वक्त शायद पुलिस के स्वागत के लिये दरवाजे की तरफ बढा जा रहा था। उसने विकास को पिछवाड़े की तरफ बढ़ते नहीं देखा ।
मनोहर वापिस अपनी कुर्सी पर बैठ गया । विस्की के दोनों गिलास उसने खुद ही खाली कर दिये ।
विकास दरवाजे से पार हुआ कि हाल में पुलिस ने कदम रखा ।
"कर्नल साहब !" - हाल में से किसी की हैरानी भरी आवाज आई - "आप यहां क्या कर रहे हैं ?"
"इन्स्पेक्टर तिवारी ।" - मनोहर लाल की धीर-गम्भीर आवाज आई - "यह तो बहुत ही अच्छा हुआ कि आप से यूं मुलाकात हो गई । मैं अभी आपको फोन करने ही वाला था ।"
"साहब" - बारमैन का व्यग्र स्वर सुनाई दिया - "आपको फोन मैंने किया था । "
"हूं।" - इन्स्पेक्टर बोला - "कहां है वो ?”
"वह उधर टेबल पर इन साहब के साथ बैठा हुआ था । अखबार में छपे उसके हुलिये से मैंने उसे फौरन पहचान लिया था । अपनी सूरत छुपाने की खातिर हैट लगाये हुए था । लकिन मैंने उसे करीब जाकर खूब अच्छी तरह से देखा था । वह कहां गया, साहब ?" I
- "कौन कहां गया ?" - मनोहर सकपकाकर बोला - "वह नौजवान जो मेरे साथ ड्रिंक कर रहा था ?"
"हां ।”
"वह तो कब का चला गया । बात क्या है ?"
"कर्नल साहब, वह कौन था ?" - इन्स्पेक्टर ने पूछा ।
"मुझे क्या पता वह कौन था । वह तनहा था । मैं तनहा था । अकेले पीने में हम दोनों को ही मजा नहीं आ रहा था। इस बारमैन की राय पर ही हम दोनों ड्रिंक्स शेयर करने की गरज से बैठ गये थे। लेकिन वह तो मेरे साथ एक ही ड्रिंक पीने के बाद उठकर चला गया था । शायद उसे मेरी सोहबत पसन्द नहीं आई थी।"
“आपसे उससे उसका नाम पूछा था ?"
"वह टिकता तो जरूर पूछता ।”
"वह महाजन का हत्यारा था । बारमैन ने उसे पहचान लिया था । इसी ने हमें फोन किया था । हम उड़ते हुए यहां पहुचे हैं । इस वक्त सारी इमारत के गिर्द पुलिस का घेरा है।"
"वह आदमी विकास गुप्ता था ?" - मनोहर सख्त हैरानी और अविश्वास भरे स्वर में बोला ।
"जी हां । "
“कमाल है । ऐसा इत्तफाक तो फिल्मों में ही होती है। यानी कि जिस कत्ल की मैं रिसर्च कर रहा हूं, उसके लिये जिम्मेदार आदमी अभी मेरे साथ बैठा हुआ था ?"
"ऐसा ही मालूम होता है।"
"मुझे विश्वास नहीं होता ।"
“हत्यारे के हुलिये की वाकफियत तो आपको भी थी । आप बताइये वह आदमी हत्यारा था या नहीं ।"
मनोहर कुछ क्षण सोचने का अभिनय करता रहा और बोला - “भई, इन्स्पेक्टर साहब, अखबार में छपे हुलिये जैसा लगता तो वह जरूर था ।"
"वह वही था ।" - बारमैन पूरे विश्ववास के साथ बोला =
“शायद वह अभी यहीं हो" - इन्स्पेक्टर बोला- "उसे तलाश करो । "
हाल के फर्श पर भारी कदमों के पड़ने की आवाज आई।
विकास दरवाजे के पास से हट गया ।
उसने देखा वह उस वक्त एक छोटे से गलियारे में था जिसकी बाई तरफ टायलेट था । दाई तरफ दो दरवाजे और थे जिनमें से एक तो ताला लगा हुआ था लेकिन दूसरे की केवल कुंडी लगी दिखाई दे रही थी ।
वह दूसरे दरवाजे की तरफ बढा ।
"आप वक्त बरबाद कर रहे है, इन्स्पेक्टर साहब ।" - मनोहर की आवाज आई- "मेरे साथ जो नौजवान था, वह मेरे सामने उस सामने वाले दरवाजे से बाहर गया था। अगर वही हत्यारा था तो आपको उसे आस-पास के इलाके में तलाश करना चाहिए । आप यहां वक्त बरबाद करेंगे तो वह हाथ से निकल जायेगा ।"
कुछ क्षण सन्नाटा रहा।
"वह यहां नहीं मालूम होता" - अन्त में इन्स्पेक्टर का निर्णयात्मक स्वर सुनाई दिया- "बाहर चलो और उसकी तलाश में आसपास फैल जाओ।"
इस बार विकास को अपने सामने वाले दरवाजे से परे जाते कदमों की आवाज आई।
उसकी जान में जान आई ।
“बारमैन” - इन्स्पेक्टर बोला - "वह क्या पहने हुए था ?"
"नीला सूट" - बारमैन तत्पर स्वर में बोला- "सफेद कमीज, नीली टाई, नीला हैट ।”
थोड़ी देर तक बाहर का हाल बाहर जाते कदमों से गूंजता, फिर सन्नाटा छा गया ।
"कर्नल साहब" - फिर इन्स्पेक्टर की आवाज आई“आप कह रहे थे कि आप मुझे फोन करने वाले थे ?" -
“जी हां । "
"किसलिए ?"
"इन्स्पेक्टर साहब, आज कोई मेरे होटल के कमरे में पहले एक सादा बन्द लिफाफा डाल गया और फिर मुझे फोन करके बोला... चलिए बाहर चलकर बात करते हैं । इससे आपके काम का भी हर्जा नहीं होगा । बारमैन, कितना बिल हुआ हमारा ?"
फिर कुछ क्षण की खामोशी के बाद हाल से बाहर निकलते दो जोड़ी कदमों की आवाजें आई ।
फिर खामोशी ।
विकास बिना ताले वाले दरवाजे के पास पहुंचा। उसने उसकी कुण्डी खोलकर भीतर झांका । भीतर पुराना टूटा-फूटा फर्नीचर पड़ा था। कमरे से पार एक खिड़की थी जो बन्द थी । वह बड़ी कठिनाई से उस खिड़की के पास पहुंचा । कुछ फर्नीचर खामोशी से इधर-उधर सरकाकर उसने खिड़की खोली ।
खिड़की खुलती तो बाहर एक गली में थी लेकिन उस पर लोहे की मजबूत ग्रिल लगी हुई थी ।
उसने खिड़की बन्द कर दी ।
यानी कि बार वाले हाल में से गुजरे बिना बाहर निकलने का कोई तरीक नहीं था ।
और बाहर सड़क पर अड़ोस-पड़ोस में उसकी तलाश में पुलिस मंडरा रही थी ।
वह वहीं एक कुर्सी पर बैठ गया ।
वहां से सुरक्षित निकलने की खातिर अब एक लम्बी इन्तजार जरूरी थी ।
सात बजे के बाद बार ग्राहकों से भरने लगा ।
बाहर की सारी आवाजें फर्नीचर वाले कमरे में विकास तक पहुंच रही थीं।
“आज यहां बहुत हंगामा मचा" - बारमैन अपने किसी ग्राहक को बता रहा था - "यहां महाजन का हत्यारा पहुंच गया । मैंने फौरन पहचान लिया पट्ठे को और ऑफिस से खड़का दिया पुलिस को फोन लेकिन साला पता नहीं कैसे पुलिस के आने से पहले ही खिसक गया।"
"अच्छा !" - ग्राहक बोला ।
फिर कोई और ग्राहक आ गया ।
“आज यहां बहुत हंगामा मचा । यहां महाजन का हत्यारा..."
बारमैन ने वह बात दर्जनों बार दोहराई । हर नये आने वाले के साथ वह नये सिरे से वह कहानी लेकर शुरू हो जाता था ।
तब तक बार पूरी तरह से भर चुका था और शायद वहां ऐसा कोई आदमी बाकी नहीं बचा था जिसे बारमैन अपनी कहानी नहीं सुना चुका था ।
फिर शायद पहली बार उसे मनोहर लाल द्वारा ठगे जाने की बात याद आई ।
"मैं आपसे दस रुपये की शर्त लगाता हूं" - वह किसी से कह रहा था - " अगर आप मुझे बीस रुपये दोगे तो मैं आप को पचास रुपये दूंगा ।”
लेकिन बारमैन आखिर बारमैन था । बातों से दूसरे को विश्वास जीत लेने वाला मनोहर लाल जैसा गुण उसमें कहां था ! कोई भी बारमैन के साथ शर्त लगाने को तैयार न हुआ । उसने शर्त कई लोगों के सामने दोहराई लेकिन कोई न फंसा । उसमें भेद क्या था, यह तो किसी को न सूझा लेकिन फिर भी कोई किसी चाल में फंसकर बेवकूफ बनने को तैयार नहीं था । उस शर्त में बारमैन लोगों को उनका फायदा समझा रहा था लेकिन फिर भी वह किसी को इतना आश्वस्त न कर सका कि कोई शर्त लगा लेता ।
नौ बज गये ।
तब विकास ने वहां से निकलने का फैसला कर लिया ।
दरवाजे के पास आकर उसने उसे थोड़ा-सा खोला और सावधानी से बाहर झांका ।
गलियारा खाली था ।
वह वहां से बाहर निकला और बार के दरवाजे की तरफ बढा ।
दरवाजे के समीप पहुंच कर उसने उसे खोलने के लिए हाथ बढाया ही था कि दरवाजा दूसरी तरफ से पहले खुल गया और बारमैन ने भीतर कदम रखा ।
विकास पर निगाह पड़ते ही उसके नेत्र फट पड़े ।
“तुम !" - उसके मुंह से निकला ।
विकास बाज की तरह उस पर झपटा । उसने उसे गिरहबान से पकड़कर अपनी तरफ घसीट लिया । उसके पीछे स्प्रिंग लगा दरवाज अपने आप बन्द हो गया । विकास ने अपने दायें हाथ की हथेली के दो शक्तिशाली प्रहार उसकी गरदन पर किये ।
फौरन बारमैन की टांगे मुड़ गई । विकास उसे घसीटता हुआ फर्नीचर वाले कमरे में ले आया । उसने बेहोश बारमैन को वहां पटका और बाहर से कुण्डी लगा दी ।
वह फिर दरवाजे की तरफ बढा ।
अभी वह आधे रास्ते में ही था कि दरवाजा फिर खुला ।
विकास ठिठक गया ।
एक आदमी भीतर आया । उसने विकास की तरफ निगाह भी नहीं उठाई और सीधा टायलेट में घुस गया ।
विकास आगे बढा ।
धड़कते दिल के साथ उसने हाल में कदम रखा ।
हाल पूरी तरह पैक था और वातावरण सिगरेट के धुएं की वजह से धुंधलाया हुआ था ।
किसी को विकास की तरफ ध्यान देने की फुरसत नहीं थी। मेजों के बीच में से गुजरता हुआ वह बाहर की तरफ बढा ।
सड़क पर कदम रखने से पहले एक बार फिर उसका दिल लरज गया ।
क्या बाहर पुलिस अभी भी मौजूद होगी ?
लेकिन कभी तो उसने बाहर निकलना ही था ।
वह बाहर निकला ।
किसी ने उसे आवाज नहीं दी। कोई उस पर झपटा नहीं ।
उसकी किराये की सलेटी रंग की एम्बैसेडर भी वहीं खड़ी थी, जहां वह उसे खड़ी छोड़कर गया था ।
लेकिन शान्ति की सांस उसने तभी ली जब वह कार पर सवार होकर वहां से रवाना हो गया ।
उस इलाके से काफी दूर निकल आने के बाद एक पब्लिक टेलीफोन बूथ पर उसने कार रोकी ।
उसने रिवर व्यू होटल फोन किया ।
शबनम अपने कमरे में नहीं थी ।
लेकिन योगिता उसे अपने कमरे में मिल गई ।
“क्या हुआ ?" - उसकी आवाज पहचानते ही वह व्यग्र स्वर में बोली- "कैसी बीती ?"
"तुम्हारे पापा के घर में तो ठीक ही बीती" - वह बोला - "लेकिन एक और मुसीबत गले पड़ गई है ।"
"क्या ?"
"मुझे किसी ने पहचान लिया, फिर पुलिस को खबर कर दी ।"
'ओह माई गाँड ! फिर क्या हुआ ?"
“बहरहाल जान बच गई। लेकिन अब समस्या यह हो गई है कि पुलिस को मेरी मौजूदा पोशाक की खबर है और वह मेरी तलाश में शहर छान रही है। अब मुझे फिर छुपने की कोई जगह चाहिए | "
“यह क्या समस्या है ? मेरे पास तुम्हारा सदा स्वागत है।"
"लेकिन मेरा दर्जा इस वक्त एक फरार अपराधी जैसा है। किसी फरार अपराधी को पनाह देने वाला भी कानूनन मुजरिम माना जाता है। "
"मुझे यह सब मत सुनाओ।"
"लेकिन...
"तुम जानते हो मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करने को तैयार हूं।"
"लेकिन फिर भी..."
" और फिर मैं जानती हूं तुम बेगुनाह हो । "
“अच्छी बात है। मैं कैसे आऊं ?"
"वैसे ही जैसे पहले आये थे ।"
"ठीक है । पन्द्रह मिनट में पहुंच रहा हूं।"
उसने रिसीवर रख दिया ।
कार पर सवार होकर वह होटल रिव रव्यू पहुंचा।
योगिता उसे पहले की ही तरह पिछवाड़े के दरवाजे के भीतर लिफ्ट के पास मिली ।
वह उसके साथ निर्विघ्न उसके कमरे में पहुंच गया ।
"अब जान में जान आई है।" - वह बोला ।
"मेरी भी” - योगिता बोली- "सारा दिन मुझे यही सूझता रहा कि तुम पुलिस की पकड़ में आ गये हो । पुलिस की नहीं तो बख्तावर सिंह के आदमियों की पकड़ में आ गये हो । जब तक वह बखेड़ा खतम नहीं हो जाता तब तक तुम यहीं क्यों नहीं ठहरते हो ?"
'आफर तो बुरी नहीं। लेकिन मैं यहां ठहरा तो यह बखेड़ा कभी खतम नहीं होगा। कल यहां से फिर निकलना पड़ेगा मुझे ।"
"क्यों ?"
"क्योंकि तुम्हारे पापा की रिवाल्वर न चाहते हुए भी मेरे गले पड़ गई है। रिवाल्वर इस वक्त मेरी किराये की कार में मौजद है। मेरा एक दोस्त उसमें से चलाई गई एक टैस्ट बुलेट का घातक गोली से मिलान करवा रहा है । अगर दोनों गोलियां मिलती पाई गई तो रिवाल्वर वापस यथास्थान रखकर आनी होगी।
" उसके बाद क्या होगा ?"
"उसके बाद रिवाल्वर के बारे में पुलिस को जो सफाई देनी होगी, वह सुनयना देगी । फिर शायद पुलिस को विश्वास हो जाये कि तुम्हारे पिता का कातिल मैं नहीं ।”
"लेकिन अगर ऐसा कर पाने से पहले ही तुम पकड़े गये तो ? अगर पुलिस ने मर्डर वैपन तुम्हारे पास से बरामद किया तो ?"
"अभी तो इसी बात की कोई गारन्टी नहीं कि जो रिवाल्चर मेरे पास है, वह मर्डर वैपन है । "
"लेकिन अगर यह हुआ और तुम इसके साथ पकड़े गये तो ?"
“तो कहानी खतम । तो फिर तुम याद किया करना कि कभी कोई विकास गुप्ता हुआ करता था जो बेचारा बेगुनाह फांसी पर चढ गया ।"
बन्द कर दिया । योगिता ने व्याकुल भाव से हाथ बढाकर उसका मुंह
विकास ने उसे अपने अंक में घसीट लिया ।
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