दिल्ली

योगराज पासी की ‘जनविकास पार्टी’ के दिल्ली कार्यालय में आयोजित की गयी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पैर रखने को भी जगह नहीं थी।

सभी मीडिया वाले बड़ी बेसब्री से योगराज के आने का इंतजार कर रहे थे। जब से उसका बेटा नीलेश अगवा हुआ था तब से उसके संबंध सरकार से मधुर नहीं चल रहे थे। पीएमओ की तरफ से उसे शांत करने की पूरी कोशिश की गयी लेकिन वह आज आर या पार के मूड में था।

ऐसा मौका उसे फिर नहीं मिलने वाला था।

जहाँ एक तरफ उसे जनता की सहानुभूति मिल रही थी वहीं दूसरी तरफ उसके समर्थन वापसी से केंद्रीय सरकार अल्पमत में आ जाने वाली थी और उसके सहयोग से चल रही महाराष्ट्र की राज्य सरकार भी गिर जाने वाली थी, जहाँ पर वह विपक्ष से साँठ-गाँठ कर अपना मुख्य मंत्री बनने का सपना साकार कर सकता था।

वहीं दूसरी तरफ नीलेश को सुरक्षित रिहा करवाना केंद्रीय सरकार की मजबूरी थी। अगर वे उसे सुरक्षित रिहा नहीं करवा पाते तो केंद्र सरकार वैसे ही नाकाम हो जाती और अगर नीलेश सुरक्षित आ भी जाता तो भी केंद्र सरकार की सुरक्षा में चूक की नाकामी तो उजागर हो ही चुकी थी।

कुछ देर बाद योगराज ने कॉन्फ्रेंस हॉल में कदम रखा। उसके साथ-साथ जिस आदमी ने कॉन्फ्रेंस हॉल में कदम रखा वो था महाराष्ट्र की राजनीति में चाणक्य का दर्जा रखने वाला कद्दावर नेता बसंत पवार।

बसंत पवार और योगराज में यूँ तो सदा से ही छत्तीस का आँकड़ा रहा था। दोनों इस घटना से पहले महाराष्ट्र की राजनीति के दो ध्रुव थे। पर हम सबने सुना है कि राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है, न कोई स्थायी दुश्मन। कोई चीज अगर स्थायी है तो वह है स्वार्थ।

बसंत पवार को योगराज के साथ देखकर मानो पूरे हॉल में वज्रपात हुआ। एक क्षण की स्तब्धता के बाद सभी मीडियाकर्मी आपस में कानाफूसी करने लगे। सवालों को एक दूसरे से पहले दागने की जल्दी में वहाँ पर सारी व्यवस्था गड़बड़ाने लगी तो बसंत पवार अपनी जगह पर खड़ा हुआ और जैसे ही उसने अपना हाथ सभी को शांत रहने के लिए ऊपर उठाया तो हॉल में धीरे-धीरे सभी शांत होने लगे।

“मेरे मीडियाकर्मी साथियो, आज हम सबको यहाँ पर भारत की राजनीति में एक नया अध्याय लिखते हुए और बनते हुए देखने का मौका मिलेगा। हिंदुस्तान की जनता पिछले काफी समय से एक ऐसी सरकार को ढो रही है जो हर क्षेत्र में नकारा साबित हुई है। आप सभी जानते हैं कि महंगाई की आग से भारत की आम जनता बुरी तरह से झुलस रही है। समाज जितना आज के दिन बँटा हुआ है इतना तो इतिहास में कभी नहीं देखा गया। पूरे देश में सांप्रदायिकता बुरी तरह से हावी होती जा रही है। अगर यही हाल रहा तो वह दिन दूर नहीं कि यह सरकार इस देश को गृहयुद्ध की आग में झोंक देगी।

इस देश में कोई भी सुरक्षित नहीं है। हमारे देश के लिए इससे ज्यादा शर्म की बात क्या होगी कि हमारे मित्र योगराज जी का पुत्र इस मुंबई में ही लापता है। मजे की बात यह है कि राज्य और केंद्र में एक ही दल सत्तारूढ़ है और यह नकारा और निकम्मी सरकार अब तक उसे ढूँढ नहीं पाई है। जब उनकी सरकार में सहयोगी रहे योगराज जी के साथ ऐसा हो रहा है तो आप समझ सकते हैं कि इस देश के आम आदमी की जिंदगी कितनी दुश्वार होगी। अब मैं योगराज जी से निवेदन करूँगा कि वो हिंदुस्तान की आम जनता को अपने अहम फैसले से अवगत करवाए।” इस तकरीर के साथ ही बसंत पवार ने योगराज की तरफ इशारा किया।

“आज मैं अपनी जिंदगी का एक खास फैसला आप लोगों के साथ साझा करना चाहता हूँ। जब मैंने महाराष्ट्र और केंद्रीय सरकार को समर्थन दिया था तो मैंने सोचा था कि हम भारत की तकदीर बदल देंगे लेकिन मेरा वह सपना आज टूट गया है। जब मैं अपने घर को ही नहीं बचा सका तो भला मैं आपके सामने किस मुँह से कह सकता हूँ कि मैं अपने मकसद में कामयाब रहा। आज मैं अपनी गलती को सुधारना चाहता हूँ।

मैं आज इसी वक्त यह घोषणा करता हूँ कि जन विकास पार्टी अभी से महाराष्ट्र सरकार और केंद्रीय सरकार से समर्थन वापस लेती है। यहाँ से मैं तुरंत राष्ट्रपति भवन में अपने समर्थन वापसी का पत्र महामहिम राष्ट्रपति जी को सौंपने जा रहा हूँ। वर्तमान समय में दोनों सरकारें अल्पमत में आ गयी हैं और हम तुरंत संविधान की पालन करते हुए राज्य और केंद्र में मध्यावधि चुनाव करवाने की माँग करते हैं।” योगराज पासी ने यह कहते हुए अपना वक्तव्य समाप्त किया। इसके साथ ही उसने उन अटकलों को भी आज विराम दे दिया जिनकी चर्चा रह-रह कर विभिन्न माध्यमों में चल रही थी।

“योगराज जी, क्या यह आपका स्वार्थ नहीं है कि आप अपने बेटे नीलेश के कारण इस सरकार से समर्थन वापस ले रहें हैं और जनता को गुमराह करने के लिए बातें कुछ और कह रहें हैं?” एक महिला पत्रकार ने प्रश्न दागा।

“अगर आप मुझे पुत्र-मोह से ग्रसित धृतराष्ट्र साबित करना चाहती हैं तो माफ कीजिएगा मेरी आँखें खुली है। मैं अपने पुत्रमोह से ऊपर राष्ट्र को रखता हूँ। शायद आपको पता नहीं है कि मैंने अपने पुत्र नीलेश के जीवन को दाँव पर लगा दिया है। हो सकता है कि अब यह सरकार अपने प्रयासों को ढीला छोड़ दे और मेरे पुत्र के प्राण संकट में पड़ जाएँ। लेकिन यह देश जिस ढंग से असहिष्णु और असुरक्षित होता जा रहा है उससे मैं अपनी आँखें नहीं मूँद सकता। मैं पूरी तरह से अपने राजनैतिक धर्म का पालन कर रहा हूँ।” योगराज ने किसी मँझे हुए कलाकार की तरह अपनी आँखों में सारी भावुकता उड़ेलते हुए जवाब दिया।

तभी कार्यकर्ताओं में से किसी ने ‘जन विकास पार्टी’ और योगराज की जयजयकार का नारा उछाला और नारे लगने लगे। मौका देखकर बसंत पवार और योगराज अपनी जगह से उठ खड़े हुए और प्रेस कॉन्फ्रेंस ख़तम हो गयी।

वहीं दिल्ली से दूर मुंबई में किसी ने अपना फोन निकाल कर एक मैसेज टाइप किया।

“ड़न। काम हो गया।”

उस मैसेज को दूसरी तरफ रिसीव करने वाला जावेद अब्बासी था जो इस समय कराची में मौजूद था।

और इधर दिल्ली में अपने ऑफिस में मौजूद अभिजीत देवल ने योगराज की प्रेस कॉन्फ्रेंस को टीवी पर ख़तम हो जाने के बाद अपने हाथ में थामा हुआ कॉफी का कप अपने सामने रखी हुई टेबल पर रख दिया। उसने अपना चश्मा साफ करके दोबारा अपनी आँखों पर टिकाया और फिर एक विषभरी मुस्कान उसके चेहरे पर तैर गयी।

‘अभी दिल्ली तुम्हारे लिए बहुत दूर है, मेरे दोस्त।’

वह मन ही मन बुदबुदाया।

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मुंबई

श्रीकांत और आलोक देसाई मलकानी हॉस्पिटल साथ-साथ ही पहुँचे थे। शाहिद रिज़्वी और नैना ने जिस मैसेज को डिकोड किया था उसके अनुसार यहाँ पर मौजूद प्रदीप पर हमला हो सकता था। उस की वजह से ही पर्ल रेसिडेंसी में आतंकवादियों के मंसूबे पूरे नहीं हुए थे। उसका ‘पर्ल रेसीडेंसी’ में बच जाना उसके दुश्मनों को रास नहीं आया था। अब शायद उसकी मौत उसे जिंदगी से महरूम करने के लिए वहाँ पर आने वाली थी।

श्रीकांत के प्लान के मुताबिक आलोक देसाई अपने दो स्नाइपरों के साथ ‘मलकानी हॉस्पिटल’ की छत पर मौजूद था। वे लोग एक टंकी की आड़ में छुपे हुए थे और उनकी नज़र आसपास की इमारतों पर बाज की तरह घूम रही थी। उन्हें किसी स्नाइपर की तलाश थी जो साथ लगती किसी होटलनुमा या रिहाइशी इमारत में घात लगाए हो सकता था।

‘मलकानी हॉस्पिटल’ की छह मंज़िला इमारत चार ब्लॉक में बँटी हुई थी। ब्लॉक ‘ए’ और ‘बी’ में ऑपरेशन थिएटर और जनरल ओपीडी होती थी और साथ में ब्लॉक ‘सी’ और ‘डी’ में मरीजों के लिए एसी रूम थे।

श्रीकांत ‘ड़ी’ ब्लॉक में मौजूद था। उसने आते ही सारे स्टाफ के बारे में छानबीन की थी। पूरे बिल्डिंग में सादा वर्दी में पुलिस के आदमी मौजूद थे जो हर आने-जाने वाले पर नज़र रखे हुए थे। अगर मैसेज वाली बात में कुछ सच्चाई थी तो किसी न किसी को तो प्रदीप के कमरे तक आना ही था। उसके ही इंतजार में श्रीकांत वहाँ पर मौजूद था। प्रदीप की जान को खतरा देख उसे वहाँ से हटा दिया गया था और उसी फ्लोर के आखिरी कमरे, जिसका नंबर ‘पाँच सौ बीस’ था, में शिफ्ट कर दिया गया था।

आलोक देसाई बड़ी बेसब्री से अपने स्नाइपरों की तरफ देख रहा था।

“कुछ पता लगा या हलचल दिखाई दी?” उसने पूछा।

“मुझे सामने की एक बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पर एक चमक दिखाई दी है। जो किसी लॉन्ग रेंज गन के लेंस की लग रही है। कोई वहाँ पर पोजीशन लिए बैठा हो सकता है।” एक स्नाइपर बोला।

“तुम्हें पक्का यकीन है?” आलोक ने उससे पूछा।

“यस सर। अब मैं गन की बैरल भी लोकेट कर सकता हूँ।” वो स्नाइपर अपने लेंस को फोकस करता हुआ बोला।

“ओके। तुम उसे अपना टारगेट बनाए रखो। मैं उस बिल्डिंग की तरफ जाता हूँ। अगर यह हरामजादा जिंदा हाथ में आ गया तो इस केस में यह हमारे लिए बहुत बड़ी सफलता होगी।” यह कहते हुए आलोक देसाई के जबड़े भिंच गए।

इसी के साथ वह तुरंत ‘मलकानी हॉस्पिटल’ की छत से नीचे की तरफ भागा। नीचे जाकर, दो पुलिस वालों को साथ लेकर, वह उस सुनसान बिल्डिंग में पहुँचा जहाँ पर दुश्मन घात लगाए बैठा था।

उधर श्रीकांत पूरी तरह से सतर्क होकर कमरा नंबर ‘पाँच सौ तीन’ पर निगाह रखे बैठा था जहाँ पर पहले प्रदीप को रखा गया था लेकिन दुश्मन को अब यह पता नहीं था कि प्रदीप अब वहाँ से हटा दिया गया था। इसलिए श्रीकांत को पूरी उम्मीद थी कि हमलावर ‘पाँच सौ तीन’ में पहुँचेगा जरूर।

तभी उसे एक वार्ड बॉय ‘पाँच सौ तीन’ की तरफ आता दिखाई दिया। कमरे के बाहर बैठे सिपाही ने उसका आईड़ी कार्ड चेक किया जो उसके गले में टँगा हुआ था। सिपाही ने उसे अंदर जाने दिया।

श्रीकांत और आलोक उसके अंदर जाने के बाद सतर्क कदमों से दरवाजे की तरफ बढ़े। वह एक झटके से दरवाजा खोलकर ‘पाँच सौ तीन’ में दाखिल हुआ। उसके कमरे में कदम रखते ही मानो कयामत आ गयी।

कहीं दूर से एक बेआवाज गोली चली और उस वार्ड बॉय का सीना चीरती हुई पार निकल गयी जो गलती से गेट के सामने उस वक़्त आ गया था जब श्रीकांत ने दरवाजा खोला था। तभी दूसरी गोली बिस्तर पर रखे तकियों से टकरायी जो किसी मरीज की लेटे हुए होने का आभास देते थे। वार्ड बॉय का हश्र देखकर श्रीकांत ने खुद को तुरंत जमीन पर गिरा दिया। अगर वह ऐसा न करता तो मौत ने उसे अपनी आगोश में ले ही लिया था।

‘मलकानी हॉस्पिटल’ की छत पर तैनात पुलिस के स्नाइपर ने दुश्मन को जब गोलियाँ दागते हुए देखा तो उसने बेझिझक उस दिशा में निशाना लगाया जो सामने वाली इमारत के बाहर झाँकती गन से टकराया। तत्काल फ़ायरिंग रुकी। दुश्मन की स्नाइपर गन तुरंत वहाँ से ओझल हो गयी।

कुछ सेकंड तक जब कोई फायरिंग नहीं हुई तो फर्श पर लेटे श्रीकांत ने अपना सिर उठाकर बाहर झाँकने की बजाय झुके-झुके ही कमरा नंबर ‘पाँच सौ तीन’ से बाहर छलाँग लगा दी। उसने बाहर आकर देखा कि एक लंबा तगड़ा आदमी सिक्योरिटी की वर्दी पहने उस फ्लोर पर दाखिल हुआ और उस तरफ भागा जा रहा था जिस दिशा में कमरा नंबर ‘पाँच सौ बीस’ था।

श्रीकांत हवा के बगोले की तरह उसके पीछे लपका। तब तक वह आदमी कमरा नंबर ‘पाँच सौ बीस’ के दरवाजे तक पहुँच चुका था। उसने लात मार कर दरवाजा खोला। कमरे में उसके सामने वह आदमी लेटा हुआ था जो उसका निशाना था। उसने अपने कमर से साइलेंसर लगी एक पिस्टल बरामद की और सामने लेटे हुए आदमी के सीने में गोलियाँ दाग दी। निशाना अचूक था। बेआवाज गोलियाँ अपने निशाने पर जाकर लगी।

‘काम ख़तम।’

वह मन ही मन संतुष्ट होकर बुदबुदाया।

“बढ़िया निशाना है, भिडु। अपन को पसंद आया।” तभी कमरे में एक आवाज़ गूँजी।

निशानेबाज हकबका कर पीछे घूमा तो उसकी निगाह एक कोने में कुर्सी पर आराम से विराजे शख़्स पर पड़ी। उसके सामने अपने हाथ में अपनी मनपसंद ग्लोक पिस्टल थामे नागेश कदम विराजमान था और उसका मुँह निशानेबाज की तरफ था।

“भिडु, तेरे को तो पाँच सौ तीन में जाने का था। तेरा शिकार तो उधर मिलना था। इधर किधर आकर फँस गया रे तू। इसका मतलब हुआ कि इधर भी तेरे भाई लोग यहाँ के स्टाफ में घुसे पड़े हैं। कोई साला बिक गया तुम्हारे हाथों। तू इधर आ ही गया है तो अब मेरी बात मानने का। तेरे हाथ ऊपर, घुटने जमीन पर। मेरे को यहाँ पर कोई गलाटा नहीं माँगता। मेरी हंबल रिक्वेस्ट। समझा?” नागेश ने अपने अंदाज में कहा।

निशानेबाज़ का जबड़ा भिंच गया और उसका पिस्टल वाला हाथ पलक झपकते ही नागेश को अपना निशाना बनाने के लिए सीधा हुआ। इससे पहले वह आदमी नागेश पर अपना निशाना साध पाता, नागेश की पिस्टल ने आग उगली। एक दहकता शोला सामने वाले के कंधे में पैवस्त हो गया।

“मैं सिर्फ़ एक बार प्यार से बोलता है। बार-बार मेरा समझाने का कोई मूड नहीं होता। क्या? पिस्टल एक तरफ और अब सरेंडर करने का।” नागेश कहर भरे स्वर में बोला।

वह आदमी एक कदम लड़खड़ाया लेकिन उसने नागेश की बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। वह सरपट कमरे के खुले दरवाजे की तरफ भागा और सीधा श्रीकांत की छाती से जा टकराया। श्रीकांत ने अपनी पिस्टल से उसके चेहरे पर ज़ोर से प्रहार किया। वह आदमी कराहता हुआ जमीन पर गिरा। जमीन पर गिरने के बाद भी उसने अपने दूसरे हाथ का सहारा देकर एक फायर श्रीकांत की तरफ झोंक दिया। श्रीकांत ने वक्त रहते अपने आप को दरवाजे के बाहर दीवार की ओट में कर लिया। तभी एक बार फिर नागेश की पिस्तौल ने हरकत की और नागेश की पिस्तौल से निकली गोली उस आदमी के दूसरे कंधे में समा गयी।

दर्द से बिलबिलाता हुआ वह आदमी फर्श पर धराशायी हो गया। नागेश फुर्ती से अपनी जगह से उठा और उस आदमी के हाथ में थमी पिस्तौल को अपने कब्जे में लिया। अपनी पिस्तौल की नाल को उसके कंधे के ज़ख्म में घुसेड़ता हुआ बोला, “सुन बे श्याणे। अबकी बार अगर तूने साँस लेने के अलावा कोई हरकत अपने जिस्म में की तो गोली तेरे भेजे में होगी और तेरी साँस लेने वाली हरकत भी रुक जाएगी। अब मुंडी हिला कर बोल। हाँ या ना।”

उस आदमी का चेहरा बेबसी और क्रोध से काला पड़ गया और इस हालत में भी उसने कहर बरपाती नजरों से नागेश को देखा। नागेश का पिस्तौल वाला हाथ उठा और उस आदमी के चेहरे पर पड़ा।

तब तक श्रीकांत भी उस आदमी के सिर पर पहुँच गया था। उस आदमी का चेहरा देखकर श्रीकांत के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान खिल उठी।

“वेल डन, नागेश। तुम्हें शायद पता नहीं हम लोगों के हाथ कौन लग गया है।” श्रीकांत नागेश का कंधा थपथपाता हुआ बोला।

“कौन है ये भिडु? जिसको देखकर आप ऐसे खुश हो रहें है जैसे आलिया मिल गयी हो !”

“ये आदमी अब्दील राज़िक है। पाकिस्तान से इलाज करवाने के नाम पर भारत की सरजमीं पर आकर आतंक फैलाने की नापाक साजिश रचने वाला अब्दील राज़िक। नीलेश के अपहरण के बाद गायब हो जाने में इसी आदमी का हाथ था। नीलेश इसकी जगह पाकिस्तान पहुँच गया और यह यहाँ पर आतंक फैलाने में जुट गया।” श्रीकांत बोला।

“लगता है भिडु के इलाज में कुछ कमी रह गया होएँगा। लेकिन उस कमी का इलाज करने में अपन टॉप क्लास एक्सपर्ट। अब इसका क्या?” नागेश ने श्रीकांत से पूछा।

“इसको यहाँ से ले जाना होगा लेकिन किसी को इसका पता नहीं लगना चाहिए। पहले इसका इलाज... ” श्रीकांत की बात अधूरी रह गयी।

“वो आप मुझ पर छोड़ दो। मैं संभाल लेगा।”

“ठीक है। मैं बाहर इस वारदात को कवर करता हूँ ताकि मीडिया को इसका पता न चले। आलोक देसाई... वो कहाँ गया?”

इतना कहकर श्रीकांत वहाँ से आगे की कार्यवाही को अंजाम देने बाहर निकल गया।

उधर आलोक देसाई दो पुलिस वालों के साथ मलकानी हॉस्पिटल के सामने वाली बिल्डिंग की सीढ़ियों के मुहाने पर पहुँचा तो वहाँ पर पूरी तरह से सन्नाटा पसरा हुआ था। उस बिल्डिंग में कंस्ट्रक्शन का काम चालू था इसलिए वहाँ पर फिलहाल कोई नहीं था।

वह सतर्कता के साथ सीढ़ियों पर ऊपर की तरफ बढ़ा। तभी उसे तेजी से नीचे आते कदमों की आहट सुनाई देने लगी। वह ठिठका। तभी ऊपर से आलोक के पीछे आते पुलिस वालों पर एक फायर हुआ जो किस्मत से किसी को अपनी चपेट में नहीं ले पाया।

आलोक ने बिना देर लगाए ऊपर की दिशा में एक गोली दागी। अब ऊपर से कदमों की आवाज उनसे दूर जा रही थी। आलोक और उसके साथियों ने सतर्कता से ऊपर की दिशा में आगे बढ़ना शुरू किया। आलोक ने अपने वायरलेस से ‘मलकानी हॉस्पिटल’ की छत पर मौजूद दोनों स्नाइपरों से संपर्क साधा।

“हैलो अल्फा, हम इस बिल्डिंग में ऊपर जा रहें हैं। टारगेट सीढ़ियों से ऊपर की तरफ जा रहा है और फ़ायरिंग कर रहा है। क्या तुम उसे लोकेट कर सकते हो। ओवर।”

“रोजर दैट, मैं उसके लोकेट होते ही बताता हूँ। ओवर।” दूसरी तरफ से आवाज आयी।

आलोक ने उस बिल्डिंग में ऊपर चढ़ना जारी रखा। अभी तक ऊपर से कोई दूसरा फायर नहीं हुआ था। वह आदमी घात लगाकर हमला करने में माहिर था। जैसे ही आलोक टॉप फ्लोर पर पहुँचा, एक गोली उसकी बाजू को छीलती हुई निकल गयी। उनका टारगेट छत पर जाने की बजाय उस फ्लोर के अंदर घुसने में कामयाब हो गया था। उस फ्लोर पर फ्लैट् बनाने के लिए जो खम्भे खड़े किए गए थे, उनमें से वह किसी की आड़ लिए हुए था और सीढ़ियों से अंदर आने वाले के इंतजार में दरवाजे पर निशाना लगाए हुए था।

तभी वायरलेस में हरकत हुई।

“हैलो चार्ली। टारगेट लोकेट हो गया है। टॉप फ्लोर पर है लेकिन पिलर्स की वजह से क्लियर शॉट नहीं है। ओवर।” स्नाइपर की आवाज आयी।

“गुड़। हम इस फ्लोर की एंट्रेंस के पास हैं। क्लियर शॉट नहीं है तो भी तुम फायर करो। उसका ध्यान भटकने से हमें अंदर जाने का मौका मिल जाएगा। ओवर।” आलोक ने दबी आवाज में कहा।

तभी उसे अंदर से गालियों की आवाज आयी जो अंदर छुपे आदमी की मुँह से निकली थी। मलकानी हॉस्पिटल की छत से चली गोलियाँ फ्लोर के उन पिलरों से टकरायी, जहाँ वह छुपा हुआ था। उसकी इस गफलत का फायदा उठा कर आलोक ने अंदर छलाँग लगा दी और तुरंत एक पिलर की आड़ में हो गया जिसका आभास उस आदमी को नहीं हुआ। उसके साथ आये दोनों पुलिस वाले गेट पर मोर्चा संभाले हुए थे।

‘मलकानी हॉस्पिटल’ की तरफ से आयी गोलियों की बौछार ने उस आदमी को अपनी जगह बदलने पर विवश कर दिया। जैसे ही वह अपनी जगह बदलने के लिए पिलर की आड़ से बाहर निकला, आलोक की रिवॉल्वर से निकली गोली उसका दायाँ घुटना फोड़ते हुए निकल गयी, वह लड़खड़ाकर कर नीचे गिरा।

“जिंदा रहना चाहते हो तो कोई हरकत नहीं। समझे। अपनी पिस्तौल को नाल से पकड़कर मेरी तरफ सरकाओ। कोई बेजा हरकत की तो गोली तेरे पीछे से तेरी मौत का संदेशा लेकर आएगी।”

दर्द से बिलबिलाते उस आदमी ने सिर हिलाते हुए अपनी पिस्तौल आलोक की तरफ सरकाई। आलोक ने राहत की साँस लेते हुए अपने आदमियों को उसे अपने कब्जे में लेने का इशारा किया।

श्रीकांत के कहे अनुसार जारी किए पुलिस के प्रेस-नोट के मुताबिक मुंबई के गैंगस्टरों की आपसी रंजिश की वजह से ‘मलकानी हॉस्पिटल’ के कमरा नंबर ‘पाँच सौ तीन’ के मरीज पर गोली चलाई गयी थी जिसकी चपेट में आकार हॉस्पिटल का वार्ड बॉय मारा गया था। शूटर ने मलकानी हॉस्पिटल के पास की बिल्डिंग से गोली चलाई थी और उसे वहाँ से गिरफ्तार कर लिया गया था। इस रिपोर्ट में किसी और आदमी का कोई जिक्र नहीं था।

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