विक्रम के कहने पर, गोपालदास ने होटल विश्राम से कोई दस-बारह गज पहले ही कार रोक दी ।
किरण वर्मा सहित कार से नीचे उतरकर विक्रम ने उसे धन्यवाद दिया और किरण वर्मा को सहारा दिए धीरे-धीरे होटल की ओर चल पड़ा ।
वे दोनों सीढ़ियों की ओर बढ़ गए ।
विक्रम ने ऊपर अपने कमरे में पहुंचकर किरण वर्मा की बरसाती और रेनकप उतारकर कुर्सी पर डाल दीं फिर उसे पलंग पर लिटा दिया ।
इतने ही शारीरिक परिश्रम ने उसे बुरी तरह थका दिया था । वह आंखें बन्द किए चुपचाप लेटी रही ।
"तुम यहां रहकर मेरा इंतजार कर सकती हो ?"
किरण वर्मा आंखें खोलकर एक बार फिर बड़े चित्ताकर्षक ढंग से मुस्कराई ।
"मैं हमेशा तुम्हारा इंतजार करती रह सकती हूं ।"
उसकी मुस्कराहट व कहने के ढंग पर विक्रम के मन में हजार जान से कुर्बान हो जाने वाला भाव उत्पन्न हो गया । वह अपलक उसे देखता रहा । उसके मुंह से बोल तक नहीं फूटा ।
"क्या देख रहे हो ?" किरण वर्मा ने टोका ।
"तुम्हें ।" विक्रम ने जवाब दिया । उसे लगा कि उसकी आवाज कहीं दूर से आ रही थी ।
"मुझमें ऐसा क्या है ?"
"वो सब जो कभी-कभार ही किसी औरत में देखने में आता है ।"
"अच्छा ?" किरण वर्मा शरारती लहजे में बोली-"लगता है, काफी औरतें देखी हैं तुमने ?"
"हां, देखी तो बहुत-सी हैं । मगर समझा सिर्फ एक को है ।"
"कौन है वह खुशनसीब ?"
विक्रम ने आह-सी भरी ।
"है नहीं, थी । वह इस दुनिया में नहीं रही ।"
"ओह, आयम सॉरी ।"
"डोंट माइंड ।" विक्रम गहरी सांस लेकर बोला-"तुम्हें यहां रहने में एतराज तो नहीं है ?"
"नहीं ।" किरण वर्मा ने जवाब दिया फिर संक्षिप्त मौन के बाद पूछा-"तुम्हारा नाम विक्रम है ?"
"तुम्हें कैसे पता चला ?"
"मेरे सामने फोन पर यही बताया था तुमने ।"
"मेरा नाम विक्रम खन्ना है, लोग मुझे विक्की कहते हैं ।"
"मैं भी तुम्हें विक्की कह सकती हूं ?"
"जरूर ।"
"शुक्रिया । अब यह बताओ कि मुझे यहां छोड़कर तुम कहां जा रहे हो ?"
"सॉरी । यह मैं नहीं बता सकता ।" विक्रम ठीक तरह से उसके ऊपर कम्बल डालता हुआ बोला-"बेहतर होगा कि तुम आराम से सो जाओ ।"
"ठीक है ।"
"जाने के बाद दरवाजा भीतर से लॉक कर लेना ।"
"ठीक है ।
लेकिन, विक्की...!"
"बोलो ।"
"उन अंडरग्राउंड मिसाइल्स की लोकेशन का एकमात्र रिकार्ड उस कैपसूल में ही है ।"
"अच्छा ?"
"दोबारा उनकी स्थिति का पता लगाने में कम-से-कम छ: महीने लग जाएंगे और बहुत मुमकिन है कि तब तक काफी देर हो चुकी होगी ।"
विक्रम ने मन-ही-मन कहा-'ऐसा कुछ नहीं होगा । तुम नहीं जानती कि शहर में कहीं एक और आदमी के सिर पर उसी कैपसूल की वजह से मौत का साया मंडरा रहा है । हालांकि अभी उसे इस बात की जानकारी नहीं है मगर वह जान जाएगा ।' लेकिन वह प्रगट में बोला-"आराम से सो जाओ । उसकी कतई फिक्र मत करो ।"
"तुम कहते हो तो नहीं करूंगी ।"
"गुड गर्ल ।" विक्रम उसका गाल थपथपाकर बोला ।
"अकेले ही जाओगे ?"
"हां । अब मुझे किसी और की मदद नहीं चाहिए ।"
"विश यू बैस्ट ऑफ लक ।"
"थैंक्यू ।"
******
जब तक विक्रम उस कालोनी में पहुंचा बारिश तेज होकर मूसलाधार रूप धारण कर चुकी थी । टैक्सी की डोम लाइट की रोशनी में उसने देखा । उसकी रिस्टवाच एक बजकर पैतीस मिनट होने की सूचना दे रही थी ।
वह सतर्कतापूर्वक आगे बढ़ता रहा ।
जीवन का निवास स्थान एक बहुत ही पुरानी और खस्ता हाल इमारत के बेसमेंट में था ।
विक्रम जान-बूझकर अपोजिट साइड में चलता उसके सामने से गुजरा फिर सड़क क्रॉस करके वापस इमारत की ओर लौटा ।
वह जानता था, अगर कोई प्रवेश-द्वार को वाच कर रहा होगा तो आसानी से उसे गोली का निशाना बना सकता था । लेकिन उसके सामने यह रिस्क लेने के सिवा कोई चारा नहीं था । क्योंकि उस स्थान का निरीक्षण या निगरानी करने लायक पर्याप्त समय उसके पास नहीं था ।
इमारत का प्रवेश-द्वार खुला पड़ा था ।
विक्रम ने जेब से रिवॉल्वर निकाली और सतर्कतापूर्वक दबे पाव भीतर दाखिल हो गया ।
अन्धकारपूर्ण हॉल में दीवार को टटोलता हुआ, वह जीवन के दरवाजे पर जा पहुंचा । उसने यथासम्भव सावधानी बरतते हुए बहुत ही धीरे-धीरे, बन्द दरवाजे का पल्ला पीछे धकेला ।
दरवाजा खुलता चला गया ।
विक्रम ने भीतर झांका, वहां अत्यन्त अस्पष्ट-सा प्रकाश था । वास्तव में बारिश और खिड़की के गन्दे कांच से गुजरकर आती, स्ट्रीट लाइट का वो रिफ्लेक्शन मात्र था-बहुत ही पीला, मरियल और सीमित ।
लेकिन वो पर्याप्त था । विक्रम की आंखें उसमें देखने की अभ्यस्त होती जा रही थीं । चन्द ही क्षणोंपरान्त उसे अपना अनुमान सच साबित होता नजर आ गया ।
जीवन की लाश सामने मौजूद थी । उसकी गर्दन अभी भी उसी अजीब ढंग से मुडी हुई थी ।
जीवन की लाश से कुछेक फुट परे, सोफे की आड़ में लगभग छुपा हुआ-सा एक और आदमी भी औंधे मुंह पड़ा था । उसके पड़े रहने के ढंग से लगता था कि या तो वह बेहोश था या फिर मर चुका था ।
धीरे-धीरे विक्रम को अपेक्षाकृत स्पष्ट नजर आने लगा । उस स्थान की हालत कबाड़ी की दुकान से भी बदतर थी-सोफा फटा हुआ, फर्नीचर टूटा हुआ और सभी चीजें फर्श पर फैली हुई ।
जाहिर था कि उस स्थान की बारीकी से मगर जल्दबाजी में तलाशी ली गई थी । वहां मौजूद चीजों के साथ बड़ी बेरहमी से पेश आया गया था । और तलाशी लेने वाले वापस जा चुके थे ।
विक्रम भीतर दाखिल हुआ और सोफे की आड़ में औंधे पड़े आदमी के पास पहुंचा । उसके निस्पंद शरीर से स्पष्ट था कि वह मर चुका था । वह नीचे झुका और यह जानने के लिए कि मृतक कौन था, उसका सिर एक तरफ घुमाया । गौर से देखने पर वह पहचान गया कि मृतक प्रेमनाथ था । आफताब आलम का वह आदमी जिसे उसने जीवन के निवास स्थान की निगरानी के लिए छोड़ा हुआ था और जिसके बारे में सुलेमान का अनुमान था कि आफताब आलम ने उसे वापस बुला लिया था ।
विक्रम ने उसकी लाश को पीठ के बल उलट दिया ।
उसकी छाती में लम्बे फल वाला चाकू घुसने का जख्म बना हुआ था । जख्म की हालत से स्पष्ट था कि चाकू घुसेड़ने वाला जो भी था, उसे इस काम में महारत हासिल थी । यह काम उसने इतनी सफाई के साथ अंजाम दिया लगता था कि प्रेमनाथ को आखिरी वक्त तक भी पता नहीं लगा होगा कि मौत उसके सिर पर आ पहुंची थी । ठीक दिल के ऊपर किए चाकू के भरपूर वार ने तुरन्त प्रेमनाय का प्राणांत कर दिया था । और हत्यारा चाकू को साथ ही ले गया था ।
इस काम को विक्रम के विचारानुसार, हालात को देखते हुए एक ही आदमी ने अंजाम दिया हो सकता था । और उसका नाम था-करीम खान ।
विक्रम ने चारों ओर निगाहें दौडाई । उसने नोट किया कि उस स्थान पर भी उसी ढंग से तलाशी ली गई थी जैसे कि मिलन रेस्टोरेंट में । ऐसी कोई जगह अछूती नहीं बची थी जहां किसी चीज को छुपाया जा सकता था ।
लेकिन, साथ ही यह भी स्पष्ट था कि जिस चीज की तलाश थी, वह मिली नहीं थी । क्योंकि एक तरफ से आरम्भ करके सारे कमरे की तलाशी ली गई थी । और आखिर में यह सिलसिला दरवाजे की बगल में जाकर खत्म हुआ था । जहां एक टूटी तिपाई उलटी पड़ी थी ।
विक्रम यह सोचकर मन-ही-मन मुस्कराया कि अभी बहुत ज्यादा देर नहीं हुई थी । साथ ही इस बात का भी उसे लगभग पूरा यकीन था कि तलाशी लेने वाले को खाली हाथ निराश लौटना पड़ा था । अगर उसे वांछित वस्तु मिल गई होती तो कमरे की यह हालत हरगिज नहीं होनी थी ।
इसका सीधा-सा मतलब था-उस तमाम बखेड़े की जड़ वो कैपसूल वहीं कहीं छुपा हुआ था ।
विक्रम यकीनी तौर पर कह सकता था कि कमरे की उस हालत के लिए करीम खान ही जिम्मेदार था । और करीम खान ने उस मामले में वही गलती की थी जो सामान्यतः किसी से भी अपेक्षित थी । तलाशी लेते समय उसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात रही थी कि आम आदमी किसी बेहद कीमती या विस्फोटक वस्तु को किस जगह छुपा सकता था । बस यहीं वह गच्चा खा गया । क्योंकि वह नहीं जानता था कि उसका साबिका आम आदमी की बजाय एक हेरोइन एडिक्ट से पड़ा था । जिसके लिए 'फिक्स' दुनिया की किसी भी चीज से ज्यादा जरूरी था । और उस 'फिक्स' के लिए हेरोइन की जो डोज उससे एमरजेंसी में इस्तेमाल की खातिर रख छोड़ी थी, उसे लाजिमी तौर पर ऐसी जगह रखी होगी जहां उसके विचारानुसार कोई नहीं पहुंच सकता था । वो उसके लिए जान से भी ज्यादा अजीज थी । उस जानलेवा स्लो पॉइजन की हिफाजत की खातिर उसने अपनी जान गंवा देनी थी ।
विक्रम को अपनी पुलिस नौकरी के दौरान अक्सर ड्रग एडिक्ट्स से साबिका पड़ता रहा था । इसलिए वह जानता था कि वे लोग अपने प्रयोग की ड्रग्स छुपाने के लिए कैसी-कैसी जगहों का इस्तेमाल किया करते थे । इसके पीछे उन सबकी थ्योरी एक ही होती थी-देखने में वो जगह इतना मामूली नजर आए कि उस पर शक न किया जा सके ।
फर्श पर बिखरी चीजों में, विक्रम को ऐसी ही एक चीज नजर आई । वो न सिर्फ मामूली थी बल्कि सही-सलामत भी थी । वो चीज थी-पाइप ।
विक्रम ने नीचे झुककर उसे उठा लिया ।
पाइप पुराना और काफी इस्तेमाल किया गया लगता था । प्रत्यक्षत: उसमें खास बात नजर नहीं आती थी । सिवाय इसके कि वह आयातित और बढ़िया क्वालिटी का था । लेकिन विक्रम उसे बड़ी गौर से देख रहा था । उसे अच्छी तरह याद था, हू-ब-हू वैसा ही पाइप उसके एक दोस्त के पास था । देखने में वन पीस नजर आने वाले उस पाइप के वास्तव में दो हिस्से थे । अगला हिस्सा यानी जिसमें तम्बाकू भरा जाता था, उस नली से अलग था । जिसके ऊपरी सिरे को मुंह में दबाकर कश किया जाता था । लेकिन उस नली का नीचे की ओर मोटा होता चला गया निचला भाग वास्तव में, चूड़ियों द्वारा, तम्बाकू भरे जाने वाले भाग से इतनी सफाई के साथ जुड़ा हुआ था कि जोड़ नजर ही नहीं आता था ।
विक्रम ने रिवॉल्वर जेब में रखे बगैर एक हाथ में पाइप का तम्बाकू भरा जाने वाला भाग थामा और दूसरे हाथ से नली को घुमाने लगा ।
पाइप के दोनों हिस्से अलग हो गए ।
उसने नली के निचले भाग पर निगाह डाली । फिर उसे अपनी दूसरी हथेली पर ठकठकाया !
अगले ही क्षण विक्रम का मन-मयूर कामयाबी से नाच उठा । नली से निकलकर कैपसूल उसकी हथेली पर आ गिरा ।
कैपसूल !
जिसकी वजह से कई लोगों की जानें जा चुकी थीं । और देश की सुरक्षा को खतरा पैदा हो सकता था ।
उसने पाइप के दोनों हिस्से नीचे गिरा दिए ।
ठीक तभी दरवाजे की ओर से परिचित ठोस पुरुष स्वर उभरा-
"हिलना मत विक्रम ! वरना मैं बेहिचक शूट कर दूँगा । अपनी रिवॉल्वर सामने मेज पर डाल दो और अगर जान प्यारी न हो तो शौक से चालाकी भी कर सकते हो ।"
सत्यानाश !
विक्रम की तमाम खुशियों पर पानी फिर गया । उसने धीरे-धीरे गर्दन घुमाकर आवाज की दिशा में देखा ।
दरवाजे में करीब पचास वर्षीय कद्दावर और स्वस्थपुष्ट शरीर वाला एक आदमी मौजूद था । उसके कठोर चेहरे पर हिंसक भाव थे । आंखों में बदले की आग सुलगतीसी नजर आ रही थी । उसके दायें हाथ में थमी रिवॉल्वर का रुख सीधा विक्रम की छाती की ओर था ।
वह और कोई न होकर आफताब आलम था । वही जो अपने भाइयों की मौत का बदला उससे लेने को मरा जा रहा था । और जिससे वह अब से पहले तक किसी प्रकार बचता रहा था ।
विक्रम जानता था उसने सचमुच उसे बेहिचक शूट कर डालना था । जबकि वह किसी भी कीमत पर मरना नहीं चाहता था । इसलिए उसे आदेशपालन में ही कुशलता दिखाई दी ।
लेकिन पहले उसने कैपसूल की हिफाजत का वक्ती तौरपर कोई मुनासिब इन्तजाम करना ज्यादा जरूरी समझा । कैपसूल उसके बायें हाथ में था । उसने बड़ी सफाई के साथ उसे नीचे फर्श पर गिरा दिया । उसे यकीन था कि कैपसूल पर आफताब आलम की निगाह नहीं पड़ी होगी ।
फिर उसने जान-बूझकर बड़ी पूरी सावधानी बरतते हुए कि आफताब आलम उसकी प्रत्येक हरकत को साफसाफ देख सके, अपनी रिवॉल्वर मेज पर डाल दी और फिर स्वयं भी पूरी तरह दरवाजे की तरफ घूम गया ।
तब उसे पहली दफा दिखाई दिया कि आफताब आलम अकेला नहीं था । जसपाल भी उसके साथ था । उसके हाथ में रिवॉल्वर थमी थी और होंठों पर क्रूरतापूर्ण मुस्कराहट पुती हुई थी । उसकी आंखों में व्याप्त कमीनगी भरे भावों से जाहिर था कि वह भी विक्रम से अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए आतुर था ।
आफताब आलम ने उसकी ओर हाथ हिलाया ।
"जाओ, खिड़की पर पर्दा खींच दो ।"
जसपाल कमरे में आगे आया । विक्रम की बगल से गुजरकर वह खिड़की के पास पहुंचा और वहां झूलता भारी पर्दा खिड़की पर सही ढंग से खींच दिया । स्ट्रीट लाइट का अस्पष्ट प्रकाश भी अन्दर आना बन्द हो जाने की वजह से कमरे में अंधेरा छा गया ।
विक्रम उस अंधेरे का फायदा उठाने के बारे में सोच भी नहीं पाया था कि आफताब आलम ने लाइट स्विच ऑन कर दिया ।
कमरे में रोशनी फैल गई ।
आफताब आलम ने पांव की ठोकर से दरवाजे का पल्ला बन्द कर दिया ।
"मैं जानता था, तुम वापस आओगे विक्रम !" वह बोला-"मुझे यकीन था, आखिरकार तुम मेरे चंगुल में आ ही फंसोगे ।"
"मैं वाकई बेबकूफ हूं ।" विक्रम स्वीकार करता हुआ बोला ।
"तुम हद दर्जे के बेवकूफ हो । हम ऊपर सीढ़ियों में तुम्हारा इंतजार कर रहे थे ।" आफताब आलम कटुता से पगे स्वर में बोला-"जीवन का खून करके तुमने निहायत बेवकूफाना हरकत की थी विक्रम ! तुमने सोचा था कि जीवन की लाश को मिलन रेस्टोरेंट में छोड़कर हमें उसकी हत्या के इल्जाम में फंसा दोगे, क्यों ?"
विक्रम कुछ कहने की बजाय सिर्फ मुस्करा दिया । जाहिर था, असलियत से नावाकिफ होने की वजह से वह उसी को हत्यारा समझ रहा था ।
"लेकिन हमने तुम्हारी यह चाल नाकामयाब कर दी ।" आफताब आलम पूर्ववत् स्वर में कह रहा था-"जसपाल और मैं जीवन की लाश को यहां ले आए । फिर तुमने प्रेमनाथ की चाकू घोंपकर हत्या करके हमारे लिए और आसानी कर दी । क्योंकि दोनों लाशें यहां से बरामद होने पर पुलिस ने यही समझना था कि जीवन ने प्रेमनाथ पर चाकू से घातक वार किया था । मगर प्रेमनाथ ने मरने से पहले जीवन की गर्दन तोड़कर उसे मार डाला ।"
हालात की नजाकत से बखूबी वाकिफ होने के बावजूद विक्रम हंसे बिना नहीं रह सका ।
"तुम्हारी समझदारी का भी जवाब नहीं है ।"
"क्या बक रहे हो ?" आफताब आलम गुर्राया ।
"अर्ज करना चाहता हूं, पुलिस वाले बेवकूफ नहीं होते ।"
"पुलिस वाले आम तौर पर मेरी निगाहें क्या चीज हैं, तुम भी जानते हो । लेकिन तुम क्या कहना चाहते हो ?"
"यही कि वो चाकू कहां है जिससे प्रेमनाथ की हत्या की गई थी ? अगर जीवन द्वारा प्रेमनाथ की और प्रेमनाथ द्वारा जीवन की हत्या की जाने की तुम्हारी बात को सही मान लिया जाए तो वो चाकू, जिससे हत्या की गई थी, प्रेमनाथ की छाती में घुसा होना चाहिए । जबकि वो उसकी छाती में तो दूर रहा, इस कमरे में भी कहीं नहीं है । वो चाकू कहां है ?"
"उससे कोई फर्क नहीं पड़ता । हम प्रेमनाथ के जख्म में कोई और चाकू घुसेड़ देंगे ।" आफताब ने कहा और दरवाजे के पास से हटकर दीवार के पास पड़ी एक पुरानी कुर्सी को उठाकर सीधा करके उस पर बैठ गया-"ये सब हमारे सोचने और करने की बातें हैं । तुम सिर्फ अपनी फ़िक्र करो ।" वह हंसा-"ईमानदार और कानून के सच्चे हिमायती होने की अपनी शोहरत के ऊंचे-ऊंचे झंडे गाड़ने के जोश में तुमने पुलिस की नौकरी से तो इस्तीफा दे दिया । लेकिन जब खर्चे-पानी की फिक्र ने सताना शुरू किया तो तुम अपने असली रूप में आ गए । तुमने भी जुर्म को अपना पेशा बना लिया । इस फर्क के साथ कि हम जो करते हैं; खुलकर करते हैं । जबकि तुम छुपे रुस्तम बने रहना चाहते हो ।" उसने तनिक रुकने के बाद कहा लेकिन हम अच्छी तरह जान गए हैं, तुम्हारा ईमानदार और कानून के हिमायती तथा मुहाफिज होने का दावा करना महज एक दिखावा है, ढोंग है । असलियत यह है कि तुम बेईमान, लालची और खुदगर्ज हो । और ड्रग्स के धंधे को पेशे के तौर पर अपना चुके हो । क्योंकि इस धन्धे में सबसे ज्यादा पैसा है । पुलिस की नौकरी कर चुके होने की वजह से इस धन्धे में लगे लोगों को भी तुम जानते हो । इस शहर में तुम्हारे अपने कांटेक्ट्स भी हैं । जिनसे पूरा पूरा फायदा तुम उठा सकते हो । तुम्हें किसी तरह पता लग गया था कि जीवन मिलन रेस्टोरेंट में जसपाल का स्टॉक चुराने वाला था । इसलिए तुम वहां जा पहुंचे और रंगे हाथों उसे पकड़ लिया । तुम जानते हो कि जीवन एडिक्ट होने के साथ ड्रग पैडलर भी था । इसलिए तुमने सोचा, मुमकिन है कि उसने यहां भी 'माल' छुपाया होगा । और तुम उसकी तलाश में यहां आ पहुंचे । लेकिन यहां आकर तुम्हें सबसे पहले प्रेमनाथ की हत्या करनी पड़ी ।" उसने धीरे-धीरे कमरे में चारों ओर निगाहें दौड़ाई फिर पुनः विक्रम को देखा-"लगता है जीवन ने 'माल' को बड़ी सफाई के साथ छुपाया था । मगर मुझे यकीन है, अगर जसपाल इस स्थान की बारीकी से तलाशी ले तो उसे जरूर ढूंढ़ निकालेगा । क्योंकि मुफ्त में हाथ आने वाले किसी भी माल को छोड़ना जसपाल की फितरत नहीं है । और जहां तक मेरा सवाल हैं, मुझे तो मिल गया जिसकी तलाश थी-यानी तुम !"
"मैं समझता हूं, हेरोइन के वे पैकेट इसने कहीं छुपा दिए हैं ।" जसपाल हस्तक्षेप करता हुआ बोला-"इसलिए जब तक यह उनका पता नहीं बता देता, आपने इसे जिन्दा ही रहने देना है, आलम साहब !" उसने विक्रम को घूरा-"तुम खुद ही बताने को तैयार हो या मैं अपने ढंग से पूछताछ करूं ?"
जाहिर था कि आफताब आलम की मौजूदगी में जसपाल भी खुद को तीस मारखां साबित करने पर तुला हुआ था । विक्रम के जी में आया कि उसे उसकी औकात बता दे मगर हालात की नजाकत को देखते हुए उसे ऐसा न करना ही ठीक लगा । उन दोनों पर निगाहें जमाए किसी सही मौके का इंतजार करना उसने बेहतर समझा ।
"तुम्हारा वो कबाड़ मेरे पास नहीं है ।" वह लापरवाही से बोला ।
"तुम नहीं बताओगे । मुझे अपने ढंग से ही मालूम करना पड़ेगा ।" जसपाल दांत पीसता हुआ बोला-"इस तरह तुमसे एक और हिसाब चुकाने का मौका भी मिल जाएगा ।"
विक्रम मुस्कराया !
"तुम जो चाहो कर सकते हो, जसपाल ! क्योंकि इस वक्त बाजी तुम्हारे हाथ में है ।" वह बोला-"वरना तुम खुद भी बखूबी जानते हो कि हिसाब चुकाने जैसी न तो तुम्हारी औकात है और न ही इतना हौसला तुममें है ।"
"तुम्हें अभी पता लग जाएगा कि मेरी औकात क्या है और कितना हौसला तुममें है ।" जसपाल गुर्राकर बोला ।
वह सधे हुए कदमों से चलता हुआ विक्रम के पीछे पहुंचा और इससे पहले कि विक्रम संभल पाता या उसकी ओर पलटता, उसने हाथ में पकड़े रिवॉल्वर के दस्ते का वार उसकी खोपड़ी पर कर दिया ।
विक्रम की आंखों के आगे एक पल के लिए असंख्य रंग-बिरंगे सितारे झिलमिला गए । फिर वे अंधेरे की एक मोटी चादर में बदलते चले गए ।
वह खड़ा नहीं रह सका । उसके घुटने मुड़े और वह औंधे मुंह नीचे जा गिरा ।
वह होश गंवा चुका था ।
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