जगमोहन, कृष्णलाल के पास हीरा पहुंचा आया था और उसे बार बार पक्का करके आया था कि बाकी का चौबीस करोड़ तैयार रख ले। वो कभी भी लेने आ सकता है। उसके बाद जब वापस पहुंचा तो अंधेरा हो चुका था। बंगले पर देवराज चौहान ही था। बाकी सब जा चुके थे।


देवराज चौहान ने उसे देखा।


"कृष्णलाल को हीरा दे आया हूं। हीरे को मिलता पाकर बहुत खुश था।" जगमोहन ने मुंह बनाया और चौबीस करोड़ तैयार नहीं रखा था। बोला एक आध दिन में फोन कर दूंगा।"


देवराज चौहान सिर हिलाकर रह गया।


जगमोहन सामने ही कुर्सी पर बैठा और बोला।


"मोना चौधरी को जब मालूम होगा कि फाइल पर बना नक्शा नकली है तो क्या होगा ?"


"शायद न पता चले। "देवराज चौहान ने कहा।


"वो कैसे?"


"मेरे ख्याल में मोना चौधरी इसी काम के लिए मुंबई आई थी। बंगाली को फाइल मिल चुकी है और अब वह किसी भी वक्त दिल्ली वापस चली जाएगी।" देवराज चौहान ने सोच भरे स्वर में कहा "और बंगाली, बांके के बनाए नक्शे में ही उलझा रहेगा कि उसका सिर-पैर कहां है। सिर्फ एक ही अडचन खड़ी हो सकती है। " 


“क्या?"


"बांके ने कहा है कि उसने बनाए नक्शे में बंगाली के लिए कुछ लिखा है। मालूम नहीं, क्या लिखा है। अगर वो पढ़कर बंगाली की समझ में आ गया कि यह सब नकली है तो।"


"बांके भी बेवकूफ है। उसे क्या जरूरत थी, फाइल में ऐसा कुछ लिखने—।"


तभी फोन की बैल बजी।


जगमोहन उठा। फोन के पास पहुंचा रिसीवर उठाया।


"हैलो।" 


"मैं द्वारका बोलता हूं। तुम कौन?" जगमोहन के कानों में आवाज पड़ी।


"देवराज चौहान की निगाह जगमोहन की तरफ उठी।


"कौन द्वारका ?"


"तू जगमोहन ?"


"मेरे को नेई पहचाना। मैं द्वारका, शंकर भाई का खास।" जगमोहन की आंखें फौरन तिकुड़ीं। 


“पहचाना।


" देवराज चौहान है। "


"मेरे को बोल———!" 


"नहीं। तेरे को नहीं, शंकर भाई ने बात करनी है। देवराज चौहान है या बाद में फोन मारूं।" 


"रुक" कहने के साथ ही जगमोहन ने देवराज चौहान को देखा।


देवराज चौहान की निगाह उसी पर थी।


“शंकर भाई बात करना चाहता है। "


देवराज चौहान के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे इशारे से उसने फोन देने को कहा जगमोहन, देवराज चौहान के पास पहुंचा। फोन उसे थमा दिया।


"एक मिनट देवराज चौहान भाई " द्वारका की आवाज कानों में पड़ी— "लो शंकर भाई से बात करो।"


दूसरे ही पल देवराज चौहान के कानों में शंकर भाई की आवाज पड़ी।


"कैसा है देवराज चौहान ?"


"ठीक हूं। " देवराज चौहान के होंठ सिकुड़े हुए थे।


"तूने मेरी जान दो बार बचाई। याद है मुझे एहसान है तेरा मुझ पर और बदले में तूने एक पैसा भी नहीं लिया। मैं तो समझता था कि तू बोत ग्रेट आदमी है।" शंकर भाई की आवाज में तीखापन था।


“आगे बोल। "


"लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं कि तू मेरा गिरेबान पकड़ ले। बोत गलत किया तूने। यही सोचा होगा कि शंकर भाई तेरे को कुछ नहीं कहेगा। जो मन में आए कर लो। लेकिन ऐसा नेई होता। अपने को अंडरवर्ल्ड में दूसरों को भी मुंह दिखाना है कि जिसने मेरा गिरेबान पकड़ने की कोशिश की, मैंने उसकी बांह ही काट डाली। गर्दन को ही उड़ा दिया। सुन रहा है ?"


“बोलता रह।" देवराज चौहान की आवाज बेहद शांत थी। 


'तू तो बहुत घटिया आदमी निकला। मैंने तो सुना था कि देवराज चौहान विश्वास का नाम है और तू तो सिर से पांव तक झूठ के तालाब में नहाया हुआ है। तेरे को इंसान कहूं भी तो किधर से। हम लोगों की दुनिया में भी शराफत होती है। तू तो कमीनो कुत्तों की भी हदों को पार गया। शंकर भाई तेरी पूरी इज्जत करता था। परंतु तू तो ठोकरे खाने के भी लायक नहीं। मालूम हो गया मेरे को। "


देवराज चौहान के दांत भींच गए।


"लगता है अब तेरे दिल में जीने की तमन्ना नहीं रही। " देवराज चौहान कठोर स्वर में कह उठा "या फिर तेरे को अपनी ताकत पर ज्यादा घमंड हो गया है कि जो तू ऐसी बोली बोलने लगा है। " 


"खूब। मेरे को डांट रहा है। मेरे को मारने की धमकी देता है तू। मैं...।" शंकर भाई की आवाज में गुस्सा था--"मैं अभी भी तेरे से इसलिए आराम से बात कर रहा हूं कि तूने दो बार मेरी जान बचाई थी। ये नहीं हुआ होता तो मैंने तेरी जान लेने के आर्डर छोड़ देने थे। " 


"असल बात बोल" देवराज चौहान दरिंदगी से बोला। 


"तेरे को नहीं मालूम क्या सयाना बनता है। "


"बात बोल1"


"अपने आदमियों को लेकर मेरे बंगले पर तूने धावा बोला। मेरे बारह गनमैन मार दिए। मैं तो खुद हैरान था कि ऐसा दमदार कौन पैदा हो गया, जिसने मेरे गिरेबान को पकड़ने की कोशिश की। जब ये मालूम हुआ कि तू है तो मेरी हैरानी हट गई।" शंकर भाई के आते स्वर में गुस्सा था "मेरे बेडरूम से तू मेरी तिजोरी ले गया। बोत कमीना निकला तू एक तरफ से मेरी जान बचाता है। बेशक वो अनजाने में काम किया तूने दूसरी तरफ से मेरी पीठ में छूरा भी मारता है तू कमीना । "


"शंकर भाई।" देवराज चौहान का स्वर शांत था-"जो तू कह रहा है, उसका सबूत है तेरे पास?"


"है। दस बार है। तभी भौंक रहा हूं।"


"मैं तेरे पास आ रहा हूं। "देवराज चौहान के होंठ भिंच गए। 


"मेरे पास?" 


"हाँ।"


"डर नहीं लगता, तेरे को अब मेरे पास आने में मैं तेरे को जिंदा छोडूंगा क्या ?"


"देवराज चौहान को डर नहीं लगता " देवराज चौहान की आवाज में दरिंदगी उभरी "मैं तो सिर्फ वो सबूत देखने आ रहा हूं जिसके दम पर तू इतना बोल रहा है। "


"मतलब कि हैरान हो रहा होगा कि कहां कमी रह गई थी कि जो सबूत छूट गए। आ-जा लेकिन याद रख तेरी लाश ही बाहर जाएगी। शंकर भाई तेरे को ये बात करके दिखाएगा।"


"तुम इस वक्त हो कहां ?" 


"बंगले पर, मैं --।"


"वहीं रहना।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने फोन बंद करके, जगमोहन को थमाया।


जगमोहन प्रश्नभरी निगाहों से देवराज चौहान को देख रहा था।


देवराज चौहान मुस्कराया और उठ खड़ा हुआ।


"शंकर भाई को किसी वजह से भारी तौर पर गलत फहमी हो गई है कि उसके बंगले पर आकर, उसके गनमैनों को शूट करके तिजोरी ले जाने वाला मैं था। " देवराज चौहान बोला।


"इतनी बड़ी गलतफहमी शंकर भाई को कैसे हो सकती है?"


"इस गलतफहमी का कोई तगड़ा आधार भी होगा। वरना ये बात वो इतने विश्वास के साथ न कहता।"


"तो वहां जाकर तुम क्या करोगे?"


"पहले उसकी गलतफहमी दूर करूंगा। उसके बाद, उसके ठण्डे दिमाग में यह बात डालूंगा कि ये काम मोना चौधरी ने किया है। उसके बाद वो जाने और मोना चौधरी"


"मतलब दोनों को भिड़ा दोगे। "


"ऐसा करने का मेरा कोई इरादा नहीं। लेकिन सच जानने के बाद शंकर भाई, मोना चौधरी को छोड़ेगा नहीं। यह उनका अपना मामला बन जाएगा। मूंछ की बाल जैसे सवाल का मामला । " 


"अब शंकर भाई के यहां जा रहे हो?" जगमोहन ने पूछा।


"हां। "


"मैं भी साथ चलूंगा। वापसी पर 'डिनर' भी ले लेंगे।" 


देवराज चौहान ने सहमति में सिर हिला दिया।


***

पाली की हालत पहले से बेहतर थी। बंगाली डॉक्टर को वहीं ले आया था बैंडिंज चेंज कर दी गई थी। दवा वक्त पर उसे दी जा रही थी।

मोना चौधरी इस काम से फुर्सत पा चुकी थी और उनमें तय हो गया था कि कल सुबह की फ्लाइट से महाजन और पारसनाथ के साथ वो दिल्ली चली जाएगी। महाजन कुछ उखड़ा हुआ अवश्य था कि करोड़ों का हीरा देवराज चौहान को वापस कर दिया गया।

अलबत्ता पारसनाव हमेशा की तरह अपनी सामान्य मुद्रा में था। जब से वे लोग वापस लौटे थे, तब से ही बंगाली उस फाइल में बने नक्शे में उलझा, उसे समझने की चेथ कर रहा था। एक बार भी बंगाली ने सिर ऊपर नहीं उठाया था।

महाजन हाथ में बोतल थामे बंगाली के पास पहुंचा। 

"इसे बाद में देख लेना। रात हो चुकी है। डिनर का इंतजाम कर। " महाजन ने कहा। ।

बंगाली ने सिर नहीं उठाया

"सुना नहीं क्या। कान खोपड़ी सब कुछ खराब हो गई है क्या?" महाजन ने तीखे स्वर में कहा।

'उल्लू का पट्ठा। " बंगाली के भिंचे होंठों से निकला।

"क्या?" महाजन के चेहरे पर अजीब से भाव उभरे। अगले ही पल उसने दांत भींचकर, बंगाली को कॉलर पकड़कर उठाया। महाजन के चेहरे पर गुस्सा था- "मुझे गाली देता है। मैं— ।

"तुम्हें नहीं दे रहा।" बंगाली ने जल्दी से कहा। 

"तो यहां पर तेरा बाप खड़ा है क्या?" 

"बांके कौन है?" बंगाली ने उखड़े स्वर में पूछा। 

"बांके?" महाजन की आंखें सिकुड़ीं। 'क्यों?"

बंगाली के चेहरे पर क्रोध नाच रहा था।

"उसे गाली दे रहा हूं।" बंगाली एक एक शब्द चबाकरे कह उठा।

‘‘लेकिन बांके है कौन?" महाजन उसे देख रहा था। "देवराज चौहान का ही कोई आदमी होगा।" महाजन फौरन समझा कि ये, बांकेलाल राठौर की बात कर रहा।

“क्यों उसने तेरा क्या तोड़ लिया जो--।"

"ये फाइल गलत है। नकली है। ये वो नहीं जो मुझे चाहिए थी। इसके पांच पेजों को नक्शे जैसा रूप दिया गया है, जबकि हकीकत में ये कोई नक्शा है ही नहीं। बेवकूफ बना दिया है देवराज चौहान ने। और इन पांच पेजों को नक्शे जैसा रूप किसी बांके ने दिया है। " बंगाली ने महाजन को देखते हुए गुस्से से कहा।

महाजन आंखें सिकोड़े उसे देखता रहा। पता कि।"

“ये बात तेरे को कैसे "इस फाइल के पांच पेज हैं। हर पेज पर एक शब्द लिखा है। मिलाकर पांच शब्द ये हैं कि बंगाली तू गधा है, बांके।" बंगाली ने उसे घूरा।

"दिखा मुझे।"

बंगाली ने फाइल उसके सामने करके हर पेज पर लिखा एक-एक शब्द पढ़ाया। वो ठीक कह रहा था। महाजन का चेहरा गंभीर हो उठा। देवराज चौहान की तरफ से गड़बड़ की गई है और यह जानते ही मोना चौधरी देवराज चौहान को छोड़ने वाली नहीं।

"अब बोल, क्या कहता है। "बंगाली ने दांत भींचकर कहा। 

महाजन ने गहरी सांस ली। 

"मैंने क्या कहना है?" 

"तो कौन कहेगा ?"

"बेबी से बात कर जो कहना है, वही कहेगी।" कहकर महाजन ने घूंट भरा।

बंगाली, फाइल थामे कमरे से बाहर निकलता चला गया। महाजन चेहरे पर गंभीरता लिए, दूसरे कमरे में जा पहुंचा।

मोना चौधरी का चेहरा तप रहा था। आंखों में जैसे अंगारे भरे पड़े थे। भींचे होंठ, पूरे जिस्म में गुस्से से भरा तनाव। क्रोध भरी निगाहों से उसने महाजन और पारसनाथ को देखा।

पारसनाथ का खुरदरा चेहरा सपाट था।

महाजन के चेहरे पर गंभीरता और आंखों में बेचैनी थी।

"देवराज चौहान ने हीरा लेने की खातिर हमसे धोखा किया है। " मोना चौधरी के होंठों से गुर्राहट भरे शब्द निकले–“अब यो जिंदा नहीं बचेगा।"

"बेबी।" महाजन ने टोका–"एक मिनट जरा सब के साथ सोचो कि हो सकता है, ये नक्शा सही हो। "

"उन पर लिखे शब्द तुमने पढ़े नहीं क्या?" मोना चौधरी ने उसे घूरा।

"पढ़े हैं। हो सकता है, बांकेलाल राठौर ने वहां पर ये शब्द लिख दिए हों। नक्शा सही हो। "

मोना चौधरी के चेहरे पर जहरीली मुस्कान नाच उठी।

"महाजन जिस पैन से वो नक्शा बनाया है, उसी पैन से ही वो शब्द लिखे गए हैं। ये स्पष्ट नजर आता है। यानी कि कागजों पर ये नक्शा उतारकर, हमें दे दिया गया और हीरा ले लिया।"

महाजन ने बेचैनी से पहलू बदला।

इससे तो एक बात सामने आती है। " पारसनाथ ने सपाट स्वर में कहा।

तीनों की निगाहें उस पर गई। "फाइल में से असली नक्शा निकाल लिया गया है और उस वक्त हमें बेवकूफ बनाने के लिए, ये नकली नक्शा कागजों पर बनाकर हमारे सामने पेश कर दिया गया। बांके ने जो शब्द लिखे हैं, उसी स्याही से फाइल पर नक्शा बनाया गया है और अब स्पष्ट महसूस हो रहा है कि स्याही ताजा है। हाल ही में फाइल के कागजों पर नक्शा बनाया गया है।" पारसनाथ ने अपने खुरदरे चेहरे पर हाथ फेरा । फाइल उसके सामने टेबल पर पड़ी थी।

महाजन रह-रहकर बोतल से घूंट भर रहा था। उसे महसूस हो रहा. था कि देवराज चौहान और मोना चौधरी की लड़ाई टलने वाली नहीं । पहले तो यही लग रहा था कि जैसे सब कुछ ठीक-ठाक निपट गया है। लेकिन अब नजर आ रहा था कि मामला और भी गंभीर हो उठा है। "मोना चौधरी—।" बंगाली बोला। उसके चेहरे पर गुस्से से भरे भाव थे "तुमने कहा था कि अगर मेरी गलती से मामला बिगड़ा तो मेरा करोड़ गया। लेकिन यहां मेरी कोई गलती नहीं। जो फाइल तुमने मुझे दी, वो सिरे से ही नकली है। उसमें असल तो दूर-दूर तक है ही नहीं। "

मोना चौधरी के दांत भींच गए।

महाजन ने खा जाने वाली निगाहों से बंगाली को घूरा।

मोना चौधरी ने बंगाली की आंखों में झांका। "बंगाली। अब बात मेरे करोड़ की नहीं। उस फाइल की नहीं। तेरे को फाइल न मिली तो, तेरे को करोड़ मिल जाएगा। अब तो बात. देवराज चौहान की और मेरी हो गई है। देवराज चौहान ने मेरे साथ धोखा किया तो इस धोखे का जवाब अब मुझे देना है। अपने आप को तू इस मामले से बाहर समझ। ये तेरा मामला नहीं रहा।' "लेकिन मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगा 

"क्यों?"

"अगर कहीं से फाइल तुम्हें मिल गई तो वो मैं ले सकूं। " बंगाली ने कहा।

“मेरे और देवराज चौहान के झगड़े में, तेरे को जान का नुकसान भी हो सकता है। " मोना चौधरी बोली।

"मोना चौधरी " बंगाली दांत भींचकर कह उठा "सारी जिंदगी बीत गई। अंडरवर्ल्ड की दुनिया में रहते रहते। मेरी जान इतनी आसानी से निकलने वाली नहीं।

"मर्जी तुम्हारी तुम्हारे पास देवराज चौहान का फोन नंबर है?" 

मोना चौधरी का स्वर सख्त था।

"है। " बंगाली ने सिर हिलाया। 

"तो मालूम करो वो कहां लगा है। देवराज चौहान किधर रहता है। " मोना चौधरी की आवाज में दरिंदगी आ गई—"कब तक मालूम हो जाएगा?" देवराज चौहान का अता-पता सामने होगा।"

एक घंटे में बंगाली ने दृढ़ता से कहा। 

मोना चौधरी ने महाजन और पारसनाथ पर निगाह मारी। “तुम दोनों तैयार हो ?"

"तैयार हैं बेबी। " महाजन ने गहरी सांस ली। पारसनाथ के खुरदरे चेहरे पर मुस्कान उभरी गर्दन सहमति से हिली। "आज की रात देवराज चौहान की जिंदगी की आखिरी रात होगी। " मोना चौधरी फुंफकार उठी। 

बंगाली वहां से बाहर निकलता चला गया। फिर फौरन ही
पलटकर वापस आया।

"मैं अपने आदमी को तुम्हारे साथ कर—।"

"नहीं। सिर्फ तुम चलोगे और ड्राइवर, देवराज चौहान के ठिकाने तक। " मोना चौधरी एक-एक शब्द चबाकर कह उठी- "और बाहर कार में ही रहोगे। भीतर का मामला हम ही निपटाएंगे।"

बंगाली फौरन बाहर निकल गया।

***