एस० पी० मदन पाल वर्मा इंसपेक्टर रंजीत मलिक और एस० आई० मनोज तोमर रिंग रोड पुलिस स्टेशन पहुंचे ।



कार में आते वक्त वे तय कर चुके थे, असगर अली से किस तरह पूछताछ की जायेगी । वर्मा को यह बात अजीब लग रही थी कि असगर अली को खासतौर पर उसी इलाके के पुलिस स्टेशन में लाया गया था जहां रंजीत रहता था ।



पूछताछ की शुरूआत तोमर ने करनी थी । इसे कल रात हसन भाइयों और असगर अली से पैराडाइज क्लब में हुई मुलाकात से जोड़ते हुये और ऐसा जाहिर करते हुये कि असगर अली में उनकी दिलचस्पी क्लब में हुये विस्फोट और वहां लगी आग को लेकर थी ।



रंजीत ने लड़की से बातें करनी थीं । यह एक ऐसा काम था जो उसे कतई पसंद नहीं था । लेकिन उसके आग्रह पर वर्मा उसे असगर अली से पूछताछ के शुरूआती दौर में साथ रखने को रजामंद हो गया था ।



इंटेरोगेशन रूम में दरवाजे पर एक वर्दीधारी कांस्टेबल की निगरानी में मौजूद असगर अली बेहद परेशान नजर आ रहा था । लेकिन तोमर को पहचानते ही उसने गिरगिट की तरह रंग बदल लिया ।



–"अब बात कुछ समझ में आ सकती है ।" वह कुर्सी से उठता हुआ बोला–"मेरा ख्याल है, कल रात भी हम मिले थे ।"



कमरे में एक मेज और चार कुर्सियां थीं ।



वर्मा, मलिक और तोमर बैठ गये ।



–"मैं कल रात ही इस दुनिया में आया था ।" तोमर बोला–"अब तुम एस० आई० तोमर से बात कर रहे हो ।" फिर वर्मा और मलिक का परिचय देकर बोला–"बैठो ।"



असगर अली बैठ गया ।



–"मैं जानना चाहता हूं मुझे और मेरी मंगेतर को यहां क्यों लाया...!"



–"अफरोज तुम्हारी मंगेतर है ?"



–"हां !"



–"सच कह रहे हो ?"



–"बिल्कुल !"



–"क्या तुम जानते हो वह अच्छी औरत नहीं है ?"



असगर ने भौहें चढ़ाकर ऐसा जाहिर किया मानों समझ नहीं पाया था ।



–"मतलब ?"



वर्मा ने गहरी सांस ली ।



–"वह वेश्या है...रण्डी...बाजारू औरत । पेशा करती है । कम से कम पहले तो करती थी ।"



–"आप लोगों को उस पर ऐसा झूठा इल्जाम लगाने का कोई हक़ नहीं है ।"



–"वह तुम्हारी मंगेतर है, इसलिये हम सच्चाई बता रहे हैं ।" रंजीत बोला–"हो सकता है अब उसने खुलेआम धंधा करना बंद कर दिया हो लेकिन अभी भी पेशा करती है । हसन भाइयों के दोस्तों का दिल बहलाती है । सिर्फ दोस्तों के लिये । वैसे उसकी दुश्मनी किसी से नहीं है ।"



–"पहले मैं समझता था औरतों के साथ कोई भी आदमी कुकर्म नहीं करता ।" तोमर ने कहा–"लेकिन जब तुम्हें अरेस्ट करने वाले एस० आई० ने बताया तुम अफरोज के साथ बिस्तर में क्या कर रहे थे तो मुझे मानना पड़ा वैसा भी होता है ।"



असगर अली का चेहरा गुस्से से सुर्ख हो गया ।



–"मुझे बताया गया था कि तुम्हें अपनी किसी इंक्वायरी में हमारी मदद की जरूरत है लेकिन अभी तक किसी ने नहीं बताया वो कैसी इंक्वायरी है या हम क्या मदद कर सकते हैं ?"



तोमर गौर से उसे देख रहा था ।



असगर अली अभी भी वही नीला सूट पहने था, जिसमें तोमर ने उसे कल रात देखा था । उसकी खस्ता हालत से जाहिर था रात उस पर बड़ी भारी गुज़री थी । रात में देर तक हसन भाइयों के साथ पीने–पिलाने के दौर...फिर अफरोज जैसी मर्दखोर औरत के साथ होटल में हमबिस्तरी...जब दोपहर बाद उनका पता चला उस वक्त भी वे दोनों बिस्तर में मसरूफ थे । नतीजतन वह अब अपनी उम्र से कई साल ज्यादा का नजर आ रहा था ।



–"तुम असगर अली हो ?" तोमर ने अधिकारपूर्ण स्वर में पूछा ।



–"हां ।"



–"तुम फौज में थे ?"



–"हां ।"



–"तुम्हारा कोर्ट मार्शल हुआ था ?"



–"हां ।"



–"एक्सप्लोसिव्ज और एक्सप्लोसिव मैकेनिज्म चुराने और बेचने के जुर्म में ?"



–"मैंने कोई जुर्म नहीं किया । मैं बेगुनाह था ।"



–"उस वक्त तुम इंजीनियरिंग कोर में कैप्टेन थे ?"



–"हां !"



–"तुम गुनहगार साबित हुये और तुम्हें आर्मी से निकाल दिया गया ?"



–"मुझ पर जो चीजें चुराने और बेचने का इल्जाम लगाया गया था, वो गलत था । मेरे खिलाफ साजिश थी । मुझे बलि का बकरा बनाया गया था । कोर्ट मार्शल ने मुझे दोषी पाया और मैं निकाल दिया गया ।"



–"तुम फारूख हसन और अनवर हसन के साथ काम करते हो ? उनके साथी हो ?"



–"कल रात क्लब में उनके साथ था लेकिन उनका साथी मैं नहीं हूं ।"



–"तो और क्या हो ?"



–"बस उन्हें जानता हूं ।"



–"कितनी अच्छी तरह ?"



–"कभी–कभार उनसे मिल लेता हूं ।"



–"मतलब ? साल में एक बार या महीने में या फिर हफ्ते में ?"



–"ऐसा कोई हिसाब मेरे पास नहीं है ।"



–"तुम उन्हें अच्छी तरह जानते हो । इतनी ज्यादा अच्छी तरह कि तुम्हें पैराडाइज क्लब में इनवाइट किया गया पीने–पिलाने, थोड़ी अय्याशी और तुम्हें डांटने के लिये ।"



–"उन्होंने कल रात मुझे बुलाया था । मुझे और मिस अफरोज को ।"



–"तुम्हारी मंगेतर को ?" रंजीत ने टोका ।



–"हां !"



–"झूठ बोलने से तुम्हें कोई फायदा नहीं होगा ।" तोमर ने पुलिसिया लहज़े में कहना जारी रखा–"हम जानते हैं, तुम अच्छी तरह उन्हें जानते हो । उनसे अक्सर मिलते रहते हो । काफी वक्त उनके साथ गुज़ारते हो । पिछले चार सालों में तुमने बहुत ज्यादा वक्त उनके साथ गुजारा है ।"



–"ठीक है, मान लिया कि मैं उनसे मिलता रहता हूं ।"



–"तुम एक्सप्लोसिव्ज एक्सपर्ट हो ?"



–"आर्मी में मुझे ट्रेनिंग दी गयी थी एक्सप्लोसिव्ज हैंडल करने की ।"



–"सीधा जवाब दो ।" वर्मा बोला–"एक्सप्लोसिव्ज एक्सपर्ट हो या नहीं ?"



–"आर्मी में मुझे एक्सप्लोसिव्ज हैंडल करने की ट्रेनिंग दी गयी थी ।" असगर अली ने दोहरा दिया ।



–"तुम बेकार बात को घुमा रहे हो ।" तोमर बोला–"तुम्हारा आर्मी रिकार्ड हमने देखा है । उसके मुताबिक तुम ट्रेंड एण्ड स्किल्ड डिमोलीशन ऑफिसर थे । एक्सप्लोसिव्ज और एक्सप्लोसिव डिवाइसिज के बारे में तुम सब कुछ जानते हो । हर तरह के बम बना सकते हो । एक्सप्लोसिव डिवाइसिज को डिफ्यूज कर सकते हो । अपने बनायें बम से किसी बड़ी इमारत को भी तबाह कर सकते हो । क्या तुम्हारा यह आर्मी रिकार्ड गलत है ।"



–"नहीं ।"



–"यानी तुम मानते हो, एक्सप्लोसिव्ज के फील्ड में तुम्हें महारत हासिल है ?"



–"है नहीं थी ।"



–"मतलब ?"



–"इन तमाम चीजों से दूर हुये चार साल हो गये हैं और इतना अर्सा काफी लम्बा होता है । मैं नहीं जानता अब इन चीजों को किस ढंग से हैंडल कर सकता हूं ?"



–"तुम्हारे अंदर कभी प्रैक्टिस करने की ख़्वाहिश पैदा होती है ?" वर्मा ने टोका ।



–"आर्मी की बात और है । सिविलियन जिंदगी में एक्सप्लोसिव्ज की प्रेक्टिस नहीं की जाती ।"



–"फिर भी किसी ने तो की थी ।" रंजीत ने कहा ।



असगर अली पूर्णतया अविचलित प्रतीत हुआ ।



–"हां, कल रात मिस्टर तोमर ने बताया था पुलिस कार पर बम फेंका गया था ।"



–"में उस वारदात की बात नहीं कर रहा हूं ।"



–"फिर ?"



–"तुमने आज का अखबार देखा है ?"



–"नहीं !"



–"रेडियो या टी. वी. पर न्यूज़ सुनी है ?"



–"नहीं ! हम देर तक सोते रहे थे ।"



–"ओह, हां ! मैं भूल गया था । तुम कल रात फारूख हसन, अनवर हसन, अफरोज, टीना और माला के साथ थे । किस वक्त तक रहे उनके साथ ?"



–"करीब आधी रात तक शायद साढ़े बारह बजे तक ।"



–"और यह पूरा वक्त तुमने पैराडाइज क्लब में ही गुजारा था ?"



–"हां…क्यों पूछ रहे हो ?"



–"सिर्फ सवालों के जवाब दो । हम जानते हैं दोनों हसन भाई माला और नजमा के साथ अपनी इम्पाला में गये थे । क्या उन्होंने तुम्हें लिफ्ट दी थी ?"



–"हम टैक्सी से गये थे ।"



–"कहां ?"



–"होटल !"



–"सीधे ?"



–"हां ?"



–"जहां से आज पुलिस तुम्हें लायी थी ?"



–"हां । मैं वहां...मेरा मतलब है हम वहीं रहते हैं ।"



–"कब से ?"



–"करीब दो महीने से ।"



–"कल रात पैराडाइज क्लब से जाने के बाद से आज पुलिस के होटल पहुँचने तक अफरोज पूरे दौर में तुम्हारे साथ रही थी ?"



–"तकरीबन ।"



–"मतलब ?"



–"बाथरूम में वह मेरे साथ नहीं रही ।"



–"कल रात, तुम पैराडाइज क्लब में कोई चीज छोड़ आये थे ?"



–"मुझे तो नहीं लगता । कैसी चीज ?"



–"थोड़ा मैग्नीशियम, एल्युमीनियम पाउडर, आयरन ऑक्साइड और कुछ काला पाउडर...और एक इलेक्ट्रिक डेटोनेटर भी ।"



–"कहना क्या चाहते हो ?"



–"मैंने जो चीजें बतायीं तुमने सुन लीं ?"



–"हां, मगर...!"



–"अगर ये तमाम चीजें तुम्हारे पास होती तो तुमने किसलिये उन्हें इस्तेमाल करना था ?"



–"मैंने कई साल से ऐसी चीजों को हैंडल नहीं किया है ।"



–"मैंने पूछा है अगर तुम्हारे पास होती तो तुम क्या करते उनका ?"



–"कुछ भी नहीं ।"



–"मैं दूसरी तरह पूछता हूं ।" तोमर बोला–"अगर तुम पुलिसमैन होते और किसी को उन चीजों के साथ पकड़ते तो क्या नतीजा निकालते ? तुम्हारे विचार से उसने किसलिये उन्हें इस्तेमाल करना था ?"



–"कोई आग लगाने वाली डिवाइस बनाने के लिये ।"



–"हमारा भी यही ख्याल है ।"



रंजीत अपने कैरियर में बहुत बार पूछताछ के ऐसे दौरे से गुजर चुका था । उसके पेशे का यह अहम हिस्सा था । बड़ी सावधानी के साथ सर खपाई करता था । नपे–तुले सवालों के साथ घुमा–फिराकर सवाल करना, कान हर वक्त खुले रखकर हर एक जवाब नोट करना, आंखें खुली रखकर हर एक तब्दीली पर ध्यान देना और दूर की चीजों को भी सूंघलेना । वक्त गुजरने के साथ–साथ तजुर्बे से एक ऐसी स्पेशल सैंस विकसित हो जाती है, जो आसानी से लोगों और चीज को भांपने लगती है । उसी के आधार पर वह यकीन के साथ कह सकता था असगर अली ने और चाहे जो भी किया हो लेकिन पैराडाइज क्लब की तबाही से उसका कोई वास्ता नहीं था । पुलिस कार पर हुये विस्फोट में राकेश मोहन और चार पुलिस कर्मियों की मौत का मामला बिल्कुल अलग था ।



लेकिन तोमर अभी भी इसी बात से चिपका हुआ था ।



–"आज सुबह–सवेरे पांच बजे पैराडाइज क्लब में एक विस्फोट हुआ । विस्फोट से आग लगी और भारी तबाही हो गयी । छानबीन से यह साबित हो चुका है शुरूआती विस्फोट क्लॉक रूम में हुआ था और लगभग पूरे यकीन के साथ कहा जा सकता है कोई वहां एक पैकेट छोड़ गया था । क्या वह कोई तुम थे, असगर अली ?"



–"मैंने ऐसा क्यों करना था ?"



–"यही तो हम जानना चाहते हैं ।"



–"मैं ऐसा सोच भी नहीं सकता ।"



–"क्यों ?"



–"फारूख और अनवर हसन मेरे दोस्त हैं ।"



असगर अली कह तो गया मगर, फिर फौरन ही गलती का अहसास हो गया ।



तोमर को ऐसे ही किसी पल का इंतजार था । उसने तुरंत बात पकड़ ली ।



–"दोस्त ? लेकिन अभी तो तुमने बताया था बस उन्हें जानते हो । उनके साथी तुम नहीं हो । फिर अचानक वे दोस्त कैसे हो गये ?"



असगर अली संभल चुका था ।



–"परिचित भी एक किस्म के दोस्त ही होते हैं ।"



–"अजीब बात है ?" वर्मा आगे झुककर बोला ।



–"क्या ? कैसे ?"



–"तुम पैराडाइज क्लब की तबाही के सम्बन्ध में उनका जिक्र कर रहे हो । जबकि हमारी जानकारी के मुताबिक पैराडाइज क्लब का मालिक और मैनेजर बलदेव मनोचा है । फिर तुम फारूख ओर अनवर का जिक्र क्यों कर रहे हो ?"



असगर अली ने एकदम से जवाब नहीं दिया ।



–"मेरा ख्याल था उनका भी उस क्लब में कोई इंट्रेस्ट है । यह मेरा अंदाज़ा था और यह गलत भी हो सकता है ।"



–"तुम क्या काम करते हो ?"



–"काम ?"



–"रोजी–रोटी कमाने का ज़रिया ? पेशा ?"



–"मैं सैल्फ एम्प्लायड हूं ।"



–"किस किस्म के फील्ड में ? जाहिर है मोटा पैसा कमा लेते हो । तभी तो महंगे होटल में रह रहे हो ?"



–"कोई खास मोटी कमाई मेरी नहीं है । बस गुजारा हो जाता है ।"



–"कैसे ? ऐसा क्या करते हो ?"



–"मुझे ज्यादा कुछ करना नहीं पड़ता । मेरे लिये किया जा चुका है ।"



–"क्या ? तुम सैल्फ एम्प्लायड हो तो कैसे किया जा चुका है ?"



–"आर्मी छोड़ने से दो साल पहले मेरे हाथ पैसा लग गया था ।"



–"काफी मोटा ?"



–"खासी रकम थी ।"



–"कहां से मिली ?"



–"विरासत में । दिल्ली में मेरी एक आंटी रहती थीं ।"



–"उसके पास कहां से आया ?"



–"उसका मरहूम शौहर दौलतमंद था । जायदाद और नकदी के अलावा स्टॉक्स और शेयर्स भी छोड़ गया था । आंटी की मौत के बाद वो सब मुझे मिल गया । मैंने उसे समझदारी से इन्वेस्ट कर दिया । यकीन नहीं है तो मेरे बैंक से पता कर लो ।"



–"जरूर करेंगे ।"



–"उसी से मुझे रेगुलर इनकम होती है ।"



–"एक निश्चित रकम की ?"



–"हाँ ।"



–"तेजी से बढ़ती महँगाई के दौर में वो निश्चित रकम भी सिकुड़ गयी होगी ।"



–"सिकुड़ने के बावजूद भी काफी है । मैं धंधा करने के बारे में भी सोच रहा हूं ।"



–"कैसा धंधा ?"



–"केटरिंग बिज़नेस । रेस्टोरेंट वगैरा, इसलिये हसन भाइयों के साथ वक्त गुजारता हूं । इस धंधे की उन्हें काफी समझ है ।"



–"उन्हें बहुत धंधों की समझ है । बहुत जगह दखल है उनका ।"



–"मुझे सिर्फ केटरिंग के धंधे में उनकी समझ और रसूखात की जानकारी है ।"



–"वे बहुत ही जरूरियात के लिये केटरिंग करते हैं ।"



–"रेस्टोरेंटों और क्लबों में तो करते ही हैं ।"



वर्मा के संकेत पर तोमर चुप रहा ।



–"क्या तुम यकीन के साथ कह सकते हो ?" वर्मा ने पूछताछ की बागडोर संभालते हुये पूछा–"जबसे हसन भाइयों को जानते हो, कभी उनके लिये काम नहीं किया ?"



–"वो मेरे दोस्त और सलाहकार हैं ।"



–"और चार साल से सलाह दे रहे हैं ?"



–"कभी–कभी । जब जरूरत पड़ती है ।"



रंजीत समझ गया, असगर अली से पूछताछ का कोई ठोस नतीजा नहीं निकलना था । शायद इतना हो सकता था कि एक्सप्लोसिव्ज एक्सपर्ट हसन भाइयों का कोप भाजन बन जाये । जितनी ज्यादा देर वर्मा और तोमर ने उसे पुलिस स्टेशन में रोकना था उतनी अनिश्चितताएं ओर आशंकायें हसन भाइयों के मन में पनप जायेंगी । पुलिस द्वारा इंटेरोगेट किये गये लोगों पर भरोसा न करना और शक करना उनकी आदत बन चुकी थी ।



वहां बैठने के बजाये उसने अफरोज से बातें करना बेहतर समझा । वह उठा ओर वर्मा को इशारे से बताकर बाहर निकल गया ।