उसी दिन पाँच बजे शाम को एक गैस-भरा ग़ुब्बारा कर्नल की कोठी के कम्पाउण्ड से आकाश में उड़ रहा था। कम्पाउण्ड में सभी लोग मौजूद थे और इमरान तालियाँ बजा-बजा कर बच्चों की तरह हँस रहा था।

कर्नल के मेहमानों ने उसकी इस हरकत को अच्छी नज़रों से नहीं देखा। क्योंकि उन सबके चेहरे उतरे हुए थे। कर्नल ने आज दोपहर को उन सब के सामने ली यूका की दास्तान दुहरा दी थी। इस पर सबने यही राय दी थी कि उस ख़तरनाक आदमी के काग़ज़ात वापस कर दिये जायें। कर्नल डिक्सन पहले भी ली यूका का नाम सुन चुका था। यूरोप वालों के लिए यह नाम नया नहीं था। क्योंकि ली यूका का कारोबार हर महाद्वीप में फैला था। यह तिजारत सौ फ़ीसदी ग़ैरक़ानूनी थी, मगर फिर भी आज तक कोई ली यूका पर हाथ नहीं डाल सका था। कर्नल डिक्सन और बारतोश ली यूका का नाम सुनते ही सफ़ेद पड़ गये थे। रात के खाने के वक़्त से पहले ही ली यूका की तरफ़ से जवाब आ गया। बिलकुल उसी रहस्यमय ढंग से जैसे सुबह वाला पैग़ाम मिला था। आरिफ़ ने दरवाज़े की चौखट में एक ख़ंजर गड़ा हुआ देखा जिसकी नोक काग़ज़ के एक टुकड़े को छेदती हुई चौखट में घुस गयी थी।

काग़ज़ का यह टुकड़ा दरअस्ल ली यूका का ख़त था जिसमें कर्नल को निर्देश दिया गया था कि वह दूसरे दिन ठीक नौ बजे उन काग़ज़ात को देवगढ़ी वाली मशहूर सियाह चट्टान के किसी कोने में ख़ुद रख दे या किसी से रखवा दे। ली यूका की तरफ़ से यह भी लिखा गया था कि अगर कर्नल को किसी क़िस्म का भय महसूस हो तो वह अपने साथ जितने आदमी भी लाना चाहे ला सकता है। अलबत्ता, किसी तरह की चालाकी की सूरत में उसे किसी तरह भी माफ़ न किया जा सकेगा।

खाने की मेज़ पर इस ख़त के सिलसिले में गर्मा-गर्म बहस छिड़ गयी।

‘क्या ली यूका भूत है?’ कर्नल डिक्सन की लड़की मार्था ने कहा, ‘आख़िर यह ख़त यहाँ कैसे आते हैं। इसका मतलब तो ये है कि ली यूका कोई आदमी नहीं, बल्कि रूह है!’

‘हाँ आँ!’ इमरान सिर हिला कर बोला, ‘हो सकता है। यक़ीनन यह किसी अफ़ीमची की रूह है जिसने रूहों की दुनिया में भी ड्रग्स की तस्करी शुरू कर दी है।’

‘एक तरक़ीब मेरे ज़ेहन में है!’ बारतोश ने कर्नल ज़रग़ाम से कहा, ‘लेकिन बच्चों के सामने मैं इसका ज़िक्र ज़रूरी नहीं समझता!’

‘मिस्टर बारतोश!’ इमरान बोला, ‘आप मुझे तो बच्चा नहीं समझते।’

‘तुम शैतान के भी दादा हो!’ बारतोश अनायास मुस्कुरा पड़ा।

‘शुक्रिया! मेरे पोते मुझे हर हाल में याद रखते हैं।’ इमरान ने संजीदगी से कहा।

कर्नल डिक्सन उसे घूरने लगा। वह अब भी इमरान को कर्नल ज़रग़ाम का प्राइवेट सेक्रेटरी समझता था, इसलिए उसे एक छोटे आदमी का बारतोश जैसे सम्मानित मेहमान से बेतकल्लुफ़ होना बहुत बुरा लगा। लेकिन वह कुछ बोला नहीं।

खाने के बाद सोफ़िया, मार्था, अनवर और आरिफ़ उठ गये।

कर्नल ज़रग़ाम बड़ी बेचैनी से बारतोश के मशविरे का इन्तज़ार कर रहा था।

‘मैं एक आर्टिस्ट हूँ।’ बारतोश ने ठहरे हुए लहजे में कहा, ‘बज़ाहिर मुझसे इस क़िस्म की उम्मीद नहीं की जा सकती कि मैं किसी ऐसे उलझे हुए मामले में कोई मशविरा दे सकूँगा।’

‘मिस्टर बारतोश!’ कर्नल ज़रग़ाम बेसब्री से हाथ उठ कर बोला, ‘तकल्लुफ़ात किसी दूसरे मौक़े के लिए उठा रखिए।’

बारतोश चन्द लम्हे सोचता रहा फिर उसने कहा, ‘ली यूका का नाम मैंने बहुत सुना है और मुझे यह भी मालूम है कि वह इस क़िस्म की मुहिमों में ख़ुद भी हिस्सा लेता है। उसके बारे में अब तक मैंने जो कहानियाँ सुनी हैं, अगर वे सच्ची हैं तो फिर ली यूका को इस वक़्त सोनागिरी ही में मौजूद होना चाहिए।’

‘अच्छा’...इमरान अपने दीदे फिराने लगा।

‘अगर वह यहीं है तो...हमें इस मौक़े से ज़रूर फ़ायदा उठाना चाहिए।’ बारतोश ने कहा।

‘मैं आप का मतलब नहीं समझा।’ कर्नल बोला।

‘अगर हम ली यूका को पकड़ सके तो यह इन्सानियत की एक बहुत बड़ी ख़िदमत होगी।’

कर्नल घृणास्पद अन्दाज़ में हँस पड़ा, लेकिन इस हँसी में झल्लाहट का तत्व ज़्यादा था। उसने कहा, ‘आप ली यूका को पकड़ेंगे? उस ली यूका को, जिसकी तहरीरें मेरी मेज़ पर पायी जाती हैं। यानी वह जिस वक़्त चाहे हम सबको मौत के घाट उतार सकता है।’

‘च्च-च्च!’ बारतोश ने बुरा-सा मुँह बना कर कहा, ‘आप यह समझते हैं कि ली यूका या उसका कोई आदमी कुदरत की तमाम ताक़त का मालिक है...नहीं, डियर कर्नल...मेरा दावा है कि इस घर का कोई आदमी ली यूका से मिला हुआ है।’ फिर उसने अपनी बात में वज़न पैदा करने के लिए मेज़ पर घूँसा मारते हुए कहा, ‘मेरा दावा है कि इसके अलावा और कोई बात नहीं।’

कमरे में सन्नाटा छा गया। कर्नल ज़रग़ाम साँस रोके हुए बारतोश की तरफ़ देख रहा था।

‘मैं मिस्टर बारतोश से सहमत हूँ।’ इमरान की आवाज़ सुनाई दी। उसके बाद फिर सन्नाटा हो गया।

आख़िर कर्नल ज़रग़ाम गला साफ़ करके बोला, ‘वह कौन हो सकता है?’

‘कोई भी हो!’ बारतोश ने लापरवाही से अपने कन्धे हिलाये। ‘जब वास्ता ली यूका से हो तो किसी पर भी भरोसा न करना चाहिए...’

‘आपसे ग़लती हुई थी कर्नल साहब!’ इमरान ने कर्नल ज़रग़ाम से कहा, ‘आपको पहले मिस्टर बारतोश से बात-चीत करनी चाहिए। ली यूका के बारे में उनकी जानकारी बहुत ज़्यादा है।’

‘बिलकुल? मैं ली यूका के बारे में बहुत कुछ जानता हूँ। एक ज़माने में मेरी ज़िन्दगी इन्तहाई पिछड़े तबक़े में गुज़री है जहाँ चोर, बदमाश और नाजायज़ तिजारत करने वाले आम थे। ज़िन्दगी के उसी दौर में मुझे ली यूका के बारे में बहुत कुछ सुनने को मिला था। कर्नल, क्या तुम यह समझते हो कि ली यूका इन काग़ज़ात को अपने आदमियों के ज़रिये हासिल करेगा। हरगिज़ नहीं। वह उन्हें उस जगह से उठायेगा जहाँ ये रख दिये जायेंगे। ली यूका का कोई आदमी नहीं जानता कि वो कौन है और इन काग़ज़ों में है क्या?’

‘जहाँ तक मेरा ख़याल है इनमें से कोई ऐसी चीज़ नहीं जिससे ली यूका की शख़्सियत पर रोशनी पड़ सके।’ कर्नल ज़रग़ाम ने कहा।

‘वाह!’ इमरान गर्दन झटक कर बोला, ‘जब आप चीनी और जापानी ज़बानों से वाक़फ़ नहीं हैं तब यह बात इतने भरोसे के साथ कैसे कह रहे हैं?’

‘चीनी और जापानी ज़बानें।’ बारतोश किसी सोच में पड़ गया। फिर उसने कहा, ‘क्या आप मुझे वे काग़ज़ात दिखा सकते हैं?’

‘हरगिज़ नहीं।’ कर्नल ने इनकार में सिर हिला कर कहा, ‘यह नामुमकिन है। मैं उन्हें एक पैकेट में रख कर सील करने के बाद ली यूका की बताई हुई जगह पर पहुँचा दूँगा।’

‘आप इन्सानियत पर ज़ुल्म करेंगे।’ बारतोश पुरजोश लहजे में बोला, ‘बेहतर तरीक़ा यह है कि आप ख़ुद को पुलिस की हिफ़ाज़त में दे कर काग़ज़ात उसके हवाले कर दें!’

‘मिस्टर बारतोश, मैं बच्चा नहीं हूँ।’ कर्नल ने तल्ख़ लहजे में कहा, ‘काग़ज़ात बहुत दिनों से मेरे पास महफ़ूज़ हैं। अगर मुझे पुलिस की मदद हासिल करनी होती तो कभी का कर चुका होता।’

‘फिर आख़िर उन्हें इतने दिनों रोके रखने का क्या मक़सद था?’

‘मक़सद साफ़ है।’ कर्नल डिक्सन पहली बार बोला। ‘ज़रग़ाम सिर्फ़ इसीलिए अभी तक ज़िन्दा है कि वे काग़ज़ात अभी तक उसके क़ब्ज़े में हैं। अगर ली यूका का हाथ उन पर पड़ गया होता तो ज़रग़ाम हम में न बैठा होता...’

‘ठीक है।’ बारतोश ने कुछ सोचते हुए सिर हिलाया।

‘लेकिन तुम्हारी स्कीम क्या थी?’ कर्नल ज़रग़ाम ने बेसब्री से कहा।

‘ठहरो, मैं बताता हूँ।’ बारतोश ने कहा। चन्द लम्हे ख़ामोश रहा फिर बोला, ‘ली यूका बतायी हुई जगह पर अकेला आयेगा। मुझे यक़ीन है...अगर वहाँ कुछ लोग पहले ही छुपा दिये जायें तो।’

‘तजवीज़ अच्छी है!’ इमरान सिर हिला कर बोला, ‘लेकिन अभी आप कह चुके हैं कि...ख़ैर, हटाइए उसे...मगर बिल्ली की गर्दन में घण्टी बाँधेगा कौन? कर्नल साहब पुलिस को इस मामले में डालना नहीं चाहते और फिर यह भी ज़रूरी नहीं कि वह बिल्ली चुपचाप गले में घण्टी बँधवा ही ले।’

‘तुम मुझे वह जगह दिखाओ...फिर मैं बताऊँगा कि बिल्ली के गले में घण्टी कौन बाँधेगा।’ बारतोश ने अकड़ कर कहा।

थोड़ी देर ख़ामोशी रही फिर वे सरगोशियों में मशविरा करने लगे...आख़िर यह तय पाया कि वे लोग उसी वक़्त चल कर देवगढ़ी की सियाह चट्टान का जायज़ा लें। कर्नल ज़रग़ाम हिचकिचा रहा था। लेकिन इमरान की सरगर्मी देख कर उसे भी हाँ-में-हाँ मिलानी पड़ी। वह अब इमरान की मूर्खताओं पर भी भरोसा करने लगा था।

रात अँधेरी थी। कर्नल ज़रग़ाम, कर्नल डिक्सन, बारतोश और इमरान मुश्किल रास्तों पर चक्कर खाते हुए देवगढ़ी की तरफ़ बढ़ रहे थे। उनके हाथों में छोटी-छोटी टॉर्चें थीं जिन्हें वे अक्सर रोशन कर लेते थे। डिक्सन, ज़रग़ाम और बारतोश के पास हथियार थे। इमरान के बारे में भरोसे से कुछ नहीं कहा जा सकता था, क्योंकि वैसे तो उसके हाथ में एयरगन नज़र आ रही थी, लेकिन एयरगन ऐसी कोई चीज़ नहीं जिसकी मौजूदगी में किसी आदमी को हथियारबन्द कहा जा सके।

काली चट्टान के क़रीब पहुँच कर वे रुक गये। यह एक बहुत बड़ी चट्टान थी। अँधेरे में वह बहुत ख़ौफ़नाक नज़र आ रही थी। उसकी बनावट कुछ इस क़िस्म की थी कि वह दूर से किसी बहुत बड़े अजगर का फैला हुआ मुँह मालूम होती थी।

तक़रीबन आधे घण्टे तक बारतोश उसका जायज़ा लेता रहा। फिर उसने आहिस्ता से कहा, ‘बहुत आसान है, बहुत आसान है। ज़रा उन गुफ़ाओं की तरफ़ देखो। इनमें हज़ारों आदमी एक समय में छुप सकते हैं। हमें ज़रूर इस मौक़े से फ़ायदा उठाना चाहिए।’

‘ली यूका के लिए सिर्फ़ एक आदमी काफ़ी होगा।’ इमरान ने कहा।

‘मैं आज तक समझ ही नहीं सका कि तुम किसके आदमी हो।’ बारतोश झुँझला गया।

‘क्या मैंने कोई ग़लत बात कही है?’ इमरान ने संजीदगी से कहा।

‘फ़िजूल बातें न करो।’ कर्नल डिक्सन ने कहा।

‘अच्छा तो आप हज़ारों आदमी कहाँ से लायेंगे, जबकि कर्नल ज़रग़ाम पुलिस को भी बीच में नहीं लाना चाहते।’

‘पुलिस को बीच में लाना पड़ेगा।’ बारतोश बोला।

‘हरगिज़ नहीं।’ कर्नल ज़रग़ाम ने सख़्ती से कहा, ‘पुलिस मुझे या मेरे घर वालों को ली यूका के इन्तक़ाम से नहीं बचा सकेगी।’

‘तब तो फिर कुछ भी नहीं हो सकता।’ बारतोश मायूसी से बोला।

‘मैं यही चाहता कि कुछ न हो।’ कर्नल ज़रग़ाम ने कहा।

थोड़ी देर तक ख़ामोशी रही फिर अचानक इमरान ने क़हक़हा लगा कर कहा।

‘तुम सब पागल हो गये। मैं तुम सब को गधा समझता हूँ।’

फिर उसने एक तरफ़ अँधेरे में छलाँग लगी दी। उसके क़हक़हे की आवाज़ सन्नाटे में गूँजती हुई आहिस्ता-आहिस्ता दूर होती चली गयी।

‘क्या यह सचमुच पागल है?’ कर्नल डिक्सन बोला, ‘या फिर ख़ुद ही ली यूका था।’

किसी ने जवाब न दिया...उनकी टॉर्चों की रोशनियाँ दूर-दूर तक अँधेरे के सीने को चीर रही थीं, लेकिन उन्हें इमरान की परछाईं भी नहीं दिखाई दी।