बड़े-बड़े कानों और तोते जैसी नाक वाला शख्स था वह । रंग पीला था।
पतला-दुबला | मुश्किल से पांच फुटा। उसके सिर के पिछले हिस्से में केवल इतने बाल थे जिन्हे आसीन से गिना जा सकता था। बाकी सिर दर्पण की मानिन्द चमक रहा था ।
जिस्म पर वकीलों का लिबास ।
सफेद पैंट। सफेद कमीज । टाई और काला कोट ।
वह मुस्करा रहा था। मुस्कराने के कारण उसके होठों के दोनों सिरे कानों तक फैले नजर आ रहे थे । मारे गुस्से के तमतमा रहे ठकरियाल ने पूछा— “कहिये! कौन हैं आप?”
“बंदे को वकीलचंद कहते हैं।” कहने के साथ वह अपने पेट पर हाथ रखकर ठकरियाल के सम्मान में इस तरह झुका जैसे मोटी टिप मिलने पर वेटर झुकता है— “नाम से भी और पेशे से भी ।... मां-बाप ने शायद पैदा करने से पहले ही वकीलचंद रख दिया। वकीलचंद जैन! लायक बेटा था मां-बाप का इसलिये सपना पूरा कर दिया । एल. एल. बी. में फर्स्ट क्लॉस आया था बंदा।”
“राजदान साहब का क्या फरमान लाये हो ?”
“कुछ भी नहीं।” कहने के साथ उसने दरवाजे के बीचो-बीच खड़े ठकरियाल के दावें-बायें से कमरे में झांकने का प्रयत्न किया।
“क-कुछ भी नहीं?” ठकरियाल चकराया- -“कहा तो यही था तुमने ।”
बड़े आराम से कह दिया वकीलचंद ने – “झूठ बोल दिया था ।”
“झ-झूठ?”
“वैसे झूठ बोलना पाप होता है। मगर मेरे लिये नहीं । वकील हूं न । भगवान महावीर भी बुरा नहीं मानते मेरे झूठ बोलने पर । वे भी समझते हैं—पेशा ही ऐसा है । घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या? बगैर झूठ बोलें चल ही नहीं सकती अपनी दुकान ।.. . अब इसी मामले को लो – मैं वह नहीं कहता जो कहा तो आप कभी लपककर दरवाजा न खोलते।”
“तो फिर क्यों... क्यों आये हो यहां?”
“बंदा मानवाधिकार आयोग की तरफ से ड्यूटी पर है।”
“मानवाधिकार आयोग?”
“पुलिस इंस्पैक्टर हैं आप। जरूर जानते होंगे—यह एक ऐसा डिपार्टमेन्ट है जहां आदमी का कोई भी बच्चा अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए एप्लीकेशन लगा सकता है । वही कर रखा है इस छोटे से बच्चे ने।” कहने के साथ उसने कुर्सी पर बंधे बैठे बबलू की तरफ इशारा किया—“एक एप्लीकेशन लगाई थी इसने मानवाधिकार आयोग में। उसमें लिखा है— पुलिस अपनी कस्टडी में इसे मानसिक और शारीरिक रूप से टॉर्चर कर सकती है, यहां तक कि एनकाऊन्टर तक किया जा सकता है इसे । और आप तो जानते हैं— एक पुलिस इंस्पैक्टर को ऐसा कुछ करने के अधिकार नहीं होते। कहीं आप ऐसा कर ही न डालें – इसके लिए आयोग की तरफ से मेरी ड्यूटी लगाई गई है।”
“फिर भी, आगर मैंने ऐसा किया तो क्या कर लोगे तुम ?”
“रिपोर्ट दे दूंगा आयोग को अपनी । इससे ज्यादा कर भी क्या सकता हूं। वैसे इंस्पैक्टर हैं आप। जानते ही होंगे- -मेरी रिपोर्ट के बाद आप इंस्पैक्टर नहीं रह सकेंगे।”
ठकरियाल के जबड़े भिंच गये । कसमसा उठा वह। जी चाहा- -एक ही घूंसे में तोते जैसी नाक को चपटी कर डाले परन्तु कर नहीं सकता था ऐसा। जानता था – सचमुच ऐसी किसी हरकत का अंजाम नौकरी से हाथ धोना होगा। अब जाकर उसकी समझ में आया— बबलू क्यों बार-बार कह रहा था वह उसे टॉर्चर नहीं कर सकता। बबलू या राजदान की ‘पंशबंदी' ने एक बार फिर तिलमिलाकर रख दिया उसे। वह इन्हीं सब ख्यालों में खोया हुआ कि वकीलचंद चूहे की तरह रेंगकर कमरे के अंदर पहुंच गया। बबलू से बोला— “ठीक तो हो तुम?”
“बिल्कुल सही वक्त पर पहुंचे वकील अंकल ।” बबलू ने कहा – “थोड़े भी लेट हो जाते तो ये लोग अपना कार्यक्रम शुरू करने वाले थे।”
“इंस्पैक्टर।” दिव्या ने वकीलचंद की तरफ इशारा करके ठकरियाल से कहा – “ये तो बचपन के दोस्त है उनके। राजदान से मिलने विला में भी आये थे।”
“ठीक पहचाना भाभीजान ने ।” वकीलचंद बोला – “मगर उस दिन मैं वकीलचंद जैन की हैसियत से आया था, आज वकीलचंद एडवोकेट की हैसियत से पधारा हूं।”
ठकरियाल ने उसे घूरते हुए पूछा –“आयोग का नियुक्ति पत्र है तुम्हारे पास?”
“मुलाहिजा फरमाईये।” कहने के साथ वकीलचंद ने अपने कोट की जेब से एक कागज निकाल कर ठकरियाल के हाथ में ठूंस दिया। बोला— “आयोग का हुक्म है— जब तक आप इस बच्चे को कोर्ट में पेश नकर दें, तब तक मैं यही का दाना-पानी खाऊं- पियूं ।”
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“नहीं।...अब कुछ नहीं हो सकता । चौबीस घंटों के अंदर मुझे बबलू को कोर्ट में पेश करना होगा और उससे पहले वकील चंद टॉर्चर रूम से टलने वाला नहीं है।" ठकरियाल कहता चलाय गया- -“कमाल का आदमी निकला राजदान कदम-कदम पर उसने ऐसा जाल बिछा रखा है जिसमें फंसे हम केवल कसमसा सकते हैं। कुछ कर नहीं सकते। इतना चतुर, इतना चालाक और इतना बड़ा खिलाड़ी लगता तो नहीं था वह । ”
“भगवान!” दिव्या बड़बड़ा उठी—“मरने से पहले कितने लोगों को पीछे लगा गया वह हमारे । बबलू, उसे फोन करने वाला, वकीलचंद और वह फोटोग्राफर ।”
“हमारे किये अब तक हुआ ही क्या है ।” देवांश बोला— “सब कुछ राजदान के ही प्लान के मुताबिक तो हो रहा है। यहां तक कि. ..जो हम सोच रहे होते हैं कि अपनी प्लानिंग के मुताबिक कर रहे हैं, कुछ ही आगे बढ़ने पर पता लगता है — वही कर रहे हैं जो राजदान मरने से पहले जानता था कि हम करेंगे।”
“तुम भूल रहे हो, उसका मरना भी संदेह के घेरे में आ गया है।”
“नहीं। इस बात को मैं किसी कीमत पर नहीं मान सकता।”
“दावे की वजह ?”
“मुझे अब भी उसके मरने का सीन अच्छी तरह याद है। बल्कि आंखों के सामने घूम रहा है। वे बातें कानों में गूंज रही हैं जो उसने कही थीं। मैं कैसे बताऊ...कैसे समझाऊं इंस्पैक्टर, वे बातें उस अंदाज में दूसरा कोई, भले ही चाहे वह जितना मंजा हुआ स्टेज आर्टिस्ट हो, कर ही नहीं सकता। तुम्हें याद है दिव्या, उस वक्त उसके चहरे पर तड़प और वेदना के कितने गहरे भाव थे जब उसने कहा था— 'क्यूं किया ! क्यूं किया! क्यूं किया ऐसा । अरे ऐसा ही करना था तो मेरी मौत के बाद कर लेते। चैन से मर तो जाने देते मुझे। कम से कम मेरी आंखों को तो न दिखाते वह मंजर ।' उसकी वह तड़प, वह छटपटाहट! नहीं... नहीं ठकरियाल, एक एक्टर के बस का रोग नहीं था वह । बस इतना ही कह सकता हूं – यदि उस वक्त होते तो मेरी तरह दावा कर रहे होते, वह राजदान ही था।”
“मैं ये नहीं कह रहा तुम्हारे दावे में दम नहीं है। समझ सकता हूं— इस स्पॉट पर बबलू के मुंह से यह सब कहलवाना, हमें बौखलने के लिये मरे हुए राजदान की चाल भी हो सकती है,
मगर...
“मगर ?”
“बबलू इतना खुश नजर नहीं आ रहा होना चाहिये था ।”
“मतलब?”
“जरा सोचो, कितना खुश है वह लड़का । बल्कि मस्त है । मजा ले रहा है हमारी अवस्था का । हालात को पूरी तरह इन्जवॉय कर रहा है। अगर उसे पता होता- -राजदान सचमुच मर चुका है तो क्यो ऐसी ही अवस्था में होता – राजदान सचमुच मर चुका है तो क्या ऐसी ही अवस्था में होता वह ? उसे तो दुख में डूबा होना चाहिये था। जितना प्यार वह राजदान से करता था, उसकी रोशनी में देखें तो...
“बात मे दम है देव ।” चेहरे पर खौफ लिये दिव्या कह उठी- -“सचमुच उसके चेहरे पर दुख का वैसा कोई लक्षण नहीं है जैसा राजदान की मौत पर होना चाहिये था। कम से कम उसे तो एक्टर मान नहीं सकते हम । उसकी हर हरकत से केवल एक ही बात टपक रही है - - यह कि राजदान जिन्दा है । "
“कैसे हो सकता है ऐसा?” देवांश अविश्वसनीय स्वर में बड़बड़ाया – “कैसे?”
दिव्या बोली— “हमारे पास बबलू से बरामद तुम्हारा मोबाईल है। बकौल बबलू, और ... इसकी इनकमिंग लिस्ट भी बता रही है, रात दो पचपन पर राजदान के मोबाईल से इस पर फोन किया गया। क्यों न हम इससे उसी नम्बर अर्थात् राजदान के मोबाईल पर फोन करें? मुमकिन है वह शख्स जिसके पास इस वक्त राजदान का मोबाईल है, अभी तक इस भ्रम में हो कि यह फोन बबलू के पास है और वह उससे कॉन्टेक्ट करने की कोशिश कर रहा है, कॉल रिसीव करे”
“नहीं।” ठकरियाल ने विरोध किया— “वह जो भी है, राजदान या कोई और, इस भ्रम में नहीं हो सकता कि यह फोन अभी तक बबलू के पास है, बल्कि वह पक्के तौर पर जानता होगा— फोन इस वक्त हमारे कब्जे में है।”
“यह बात इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो?”
“फोन खुद बबलू ने अपने पास हमें बरामद कराया है अर्थात् एक तरह से यूं कहा जा सकता है— इस वक्त फोन हमारे पास उन्हीं की प्लानिंग के मुताबिक है।”
“फिर क्या करें?”
“मेरे ख्याल से राजदान के मोबाईल पर फोन तो किया जाना चाहिये मगर उस पी. सी. ओ. से ।” ठकरियाल ने गाड़ी की विंड स्क्रीन के पार काफी दूर नजर आ रहे पी. सी. ओ. की तरफ अंगुली से इशारा करने के साथ कहा – “राजदान का फोन जिस किसी के पास भी है, उसकी स्क्रीन पर एक अंजाना नम्बर देखकर वह कॉल जरूर रिसीव करेगा।”
“बात में दम है।” दिव्या बड़बड़ाई |
तब तक वे पी. सी. ओ. के नजदीक पहुंच चुके थे।
‘जेन’ ड्राईव करते देवांश ने गाड़ी पी. सी. ओ. के नजदीक रोक दी।
उनके पीछे-पीछे चली आ रही पुलिस जीप भी रुक गई । उसे थाने का ड्राईवर चला रहा था। ठकरियाल की तरफ से यही निर्देश थे उसे । यह कि 'जेन' के पीछे-पीछे चलता रहे। यह निर्देश उसे ठकरियाल ने थाने से चलते वक्त दिये थे। असल में दिव्या और देवांश को विला पहुंचाना था। ठकरियाल को अपने क्वार्टर पर । एक चौराहे से उनके रास्ते अलग-अलग हो जाने वाले थे। ठकरियाल ने सोचा था — वहां से वह अपनी जीप में बैठ जायेगा। वहां तक दिव्या और देवांश के साथ उन्हीं बातों पर करना चाहता था जिन पर कर रहा था । —
दिव्या जेन की पिछली सीट पर बैठी थी ।
ठकरियाल ड्राईव करते देवांश की बगल वाली सीट पर ।
अभी उन्होंने अपनी-अपनी साईड का दरवाजा खोलने के लिये हाथ बढ़ाये थे कि देवांश की जेब में पड़ा मोबाईल बज उठा। तीनों चौंके।
देवांश ने हाथ बढ़ाकर मोबाईल निकाला।
स्क्रीन पर नजर आ रहे नम्बर को पढ़ा।
और।
उछल पड़ा वह। मुंह से चीख सी निकली – “य - यह तो उसी का नम्बर है ।”
ठकरियाल ने झपट्टा सा मारकर मोबाईल उसके हाथ से छीन लिया। स्क्रीन पर सचमुच राजदान के मोबाईल का नम्बर नजर आ रहा था। पिछली सीट पर से अधखड़ी हो चुकी दिव्या ने भी उस नम्बर को देख लिया था । चेहरा पलक झपकते ही ऐसा हो गया जैसे किसी अज्ञात शक्ति ने हल्दी पाते दी हो । फोन वापस देवांश की तरफ बढ़ाते ठकरियाल ने कहा – “बात करो।” — “म-मैं?” देवांश के हलक से बकरी की सी मिमियाहट निकली।
फोन लगातार बज रहा था ।
देवांश की हालत देखकर ठकरियाल गुर्रा उठा—— -“बात करो देवांश !”
देवांश ने फोन लिया। हाथ बुरी तरह कांप रहा था। उसे ‘ऑन' करते वक्त सारा चेहरा पसीने से तर हो चुका था । जब 'हैलो' कहा तो अपनी ही आवाज किसी अंधकूप से निकलती सी लगी उसे।
— जवाब में दूसरी तरु से आवाज उभरी – “तुमने पी. सी. ओ. के नजदीक गाड़ी रोकी । सोचा—क्यों न मैं ही फोन मिला दूं?” - मुझे लगा शायद मुझ ही से बात करना
चाहते हो।
“भ-भैया!” देवांश के हलक से चीख सी निकली।
“भैया कहां- -आजकल तो सीधे-सीधे राजदान कहता है तू मुझे ।" आवाज राजदान की ही थी— “वह कह! वही कह छोटे! तेरे मुंह से अपने लिये इज्जत सूचक शब्द सुनकर अब मुझे खीझ सी होती है।”
“म-मगर ! आप जिन्दा कैसे हो सकते हैं?”
“क्यो, बताया नहीं बबलू ने?”
“वह झूठ है । वह झूठ है ।" देवांश पागलों की तरह चिल्ला उठा – “ऐसा हो ही नहीं सकता।”
दूसरी तरफ से ठहाका लगाने की आवाज उभरी। ऐसी, जो देवांश की रीढ़ की हड्डी में सिर दर्द लहर बनकर दौड़ती चली गई।
हंसने के बाद दूसरी तरफ से कहा गया – “फोन जाने जिगर को दे अपनी । जानता है न, कौन ही तेरी जाने जिगर?” फोन दिव्या की तरफ बढ़ाते देवांश ने कांपती आवाज में कहा – “त- तुमसे बात करना चाहता है ।” “म-मुझसे?” दिव्या की हालत वैसी ही थी जैसी रात के बारह बजे श्मशान भूमि में भूतों का ताण्डव देख रहे 'कमजोर दिल’ व्यक्ति की हो सकती है ।
मोबाईल से निकलकर राजदान की आवाज मुकम्मल कार में गूंजी— “हां मेरी जान, तुम्हीं से बात करना चाहता हूं मैं। फोन अपने कोमल हाथ में लेकर सुरीली आवाज में कम से कम ‘हैलो’ तो कहो।”
फोन देवांश के हाथ से लेकर अपने कान की तरफ ले जा रही दिव्या की हालत उस रोबोट जैसी थी जिसे वैज्ञानिक अपने आदेश के मुताबिक गतिमान कर सकता है। दूसरी तरफ से कहा गया— “दिव्या, मेरी देवीं बहुत तेज चला है तेरा दिमाग तो, फिर समझाती क्यों नहीं अपने आशिक को — दुनियां में कोई मूर्ख ऐसा नहीं है जिसे पता लग जाये कि फलां-फलां उसके कत्ल के तलबगार हैं और वह उन्हीं के सामने सुसाईड कर ले।”
“तो मरने वाला क्या सचमुच आपके मेकअप में कोई स्टेज आर्टिस्ट...
ठकरियाल ने दिव्या का वाक्य पूरा होने से पहले ही झपटकर फोन उसके हाथ से लिया और गुर्राया— “तू जो भी है, कान खोलकर सुन हरामजादे । अपनी लाईफ में मैंने ऐसे हजारों ‘आर्टिस्ट’ देखे हैं जो दूसरों की आवाज की हूबहू नकल कर सकते है। तू जो खुद को राजदान साबित करके हमें डराने की कोशिश कर रहा है, बहुत ही बचकाना हरकत है ये।”
राजदान के हंसने की आवाज उभरी । उसके बाद कहा गया— “जानता हूं इंस्पैक्टर । जानता हूं इन दोनों के मुकाबले तू कुछ ज्यादा ही घुटा हुआ है मगर सोच, कोई और क्यों खुद को राजदान साबित करना चाहेगा?”
“उसी ने कुछ पैसे देकर नियुक्त किया होगा तुझे इस काम पर ।”
पुनः हंसने की आवाज उभरी। कहा गया— “ठीक उसी तरह न, जैसे मैंने पांच लाख तुझ तक पहुंचाकर तुझे इन दोनों को जेल में ठूंसने पर नियुक्त किया था । मगर, जरा सोच ठकरियाल—कितनी गहराई तक जानता था मैं तुझे। अच्छी तरह जानता था, एक नम्बर का हरामी और लालची है तू । इतना दीवान है दौलत का कि मैं अच्छी तरह जानता था, पांच करोड़ नजर आते ही तू राल टपका बैंठेगा। वही हुआ। अब तुझे भी इनकी तरह अपनी करतूतों का अंजाम भुगतना होगा। चाहे जितने हाथ-पैर मार लेना मगर तुममें से कोई भी, मेरे जाल से बच नहीं सकेगा।” कहने के बाद दूसरी तरफ से सम्बन्ध विच्छेद कर दिया गया।
कुछ कहने के लिये ठकरियाल का मुंह खुला था मगर खुला ही रहा गया। जबड़े कसे थे उसके। चेहरा भभक रहा था ।
दिव्या और देवांश की तरफ डरा हुआ बिल्कुल नजर नहीं आ रहा था वह । वापस राजदान का नम्गर रिंग किया ।
इरादा स्पष्ट था— दूसरी तरफ जो भी कोई था, उससे वह और बातें करनी चाहता था परन्तु कामयाब न हो सका । दूसरी तरफ के मोबाईल का स्विच ऑफ हो चुका था।
"उल्टा मुझ ही से डर गया साला ।” ठकरियाल बड़बड़ाया — “फोन ऑफ कर दिया है उसने ।”
न दिव्या कुछ कह सकी, न देवांश ।
उन्हें होश ही कहां था कुछ कहने का। चेहरों पर हवाईयां उड़ रही थीं।
“इस कदर क्यों होश फाख्ता हैं तुम्हारे ?” ठकरियाल गुर्राया— “सम्भालो खुद को । यूं कमजोर पड़ जाने से काम नहीं चलेगा। मुकाबला करना होगा उसका।”
देवांश बड़ी मुश्किल से पूछ सका- -“क- क्या वह वही है ?”
“हमें इस फेर में नहीं पड़ना।” ठकरियाल कहता चला गया — “भले ही वह राजदान हो या कोई और, टकराना तो पड़ेगा ही उससे ।”
“उसे मालूम था हमने अपनी गाड़ी पी. सी. ओ. के नजदीक रोकी है ।” देवांश की आवाज अभी भी कांप रही थी— “इसका मतलब, वह यहीं-कही हमारे आसपास है।” कहने के साथ उसकी सहमी हुई नजरें अपने चारों तरफ का निरीक्षण करने लगी थीं। ठकरियाल और दिव्या की नजरों ने भी वैसा ही किया ।
वह एक व्यस्त सड़क थी । अनेक वाहन तेजी से आ जा रहे थे । करीब एक फर्लांग दूर एक चौराहा भी था जहां लाईटें नियमित रूप से लाल ओर हरी हो रही थीं । ठकरियाल बोला – “इस तरह कुछ पता नहीं लग सकेगा।”
“लेकिन।” दिव्या ने कहा – “यह तो पता लगना चाहिये — वह वही है या उसके द्वारा नियुक्त किया गया कोई ‘आर्टिस्ट’ । इसी के आधार पर तो हम उससे टकराने की रणनीति बना सकेंगे।”
देवांश बोला- –“इसका फैसला तो तभी हो सकता है जब एक बार फिर राजदान की लाश सामने आये और... हम इस नजरिये से उसकी जांच-पड़ताल करें।”
“तुम ठीक कह रहे हो देवांश । फिलहाल हमारे पास इस भ्रमजाल से निकलने का एक ही तरीका है।” ठकरियाल कहता चला गया—“पोस्टमार्टम से लाश मिलने के बाद, शवयात्रा से पहले जब रस्म के मुताबिक उसे नहलाया जा रहा होगा तो उस वक्त मैं वहां खुद मौजूद रहूंगा। फेस चैक करूंगा उसका । खाल की जगह प्लास्टिक के रेशे हुए तो साफ हो जायेगा वह जिन्दा है।” दोनों में से कोई कुछ कह नहीं सका।
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