रात के बारह बज रहे थे।

देवराज चौहान, टिड्डा, प्रतापी, शेख और पव्वे ने पिछले दो घंटों से कई जगहें बदली थी, परन्तु ऐसा कोई ना दिखा कि जिस पर ये शक होता कि कोई उन पर नजर रख रहा है।
आखिरकार उन्हें विश्वास हो गया कि उन पर कोई नजर नहीं रख रहा है।
"सब ठीक है।" शेख ने कहा।
"अब तो हमें फौरन वैन की तरफ चल देना चाहिए।" पव्वे ने बेचैनी से कहा।
"चलो।" देवराज चौहान ने कहा।
"ये हुई बात।" पव्वा खुश हो उठा।
"तुम सब यहीं रुको।" टिड्डा आसपास देखकर कह उठा--- "मैं कहीं से कार लाता हूँ।"
"मैं तेरे साथ चलता हूँ।" प्रतापी ने कहा--- "उधर गली में मैंने कारें खड़ी देखी हैं।"
टिड्डा और प्रतापी पास की गली की तरफ बढ़ गए।
"हम पर कोई नजर नहीं रख रहा।" शेख देवराज चौहान से बोला--- "तुमने कहा कि जगमोहन ने मजबूरी में...।"
"सोहनलाल की बात जो समझा, वह तुम्हें बता दी। असल बात तो जगमोहन से मिलने पर ही पता चलेगी...।" देवराज चौहान ने कहा--- "आज का दिन बुरा बीता। हम यूँ ही भटकते रहे।"
"वहाँ के क्या हालात हैं, जहाँ पर वैन है?"
"ठीक से नहीं जानता मैं।" देवराज चौहान बोला--- "लेकिन इतना कह सकता हूँ सोहनलाल वैन के लॉक हटाने पर लगा होगा। बाकी सब वैन खुलने का इंतजार कर रहे होंगे।"
"भीतर गनमैन भी है?" पव्वा बोला।
देवराज चौहान ने सिगरेट सुलगाई।
"तुमने कहा था कि सोहनलाल वैन के ताले नहीं खोलेगा?" पव्वा पुनः बोला।
"नहीं खोलेगा। वो मेरे इशारे का इंतजार करेगा।" देवराज चौहान ने कश लिया।
"आखिर इस तरह वो कब तक उन्हें टाल सकेगा?" पव्वे ने कहा।
"वो अपना काम संभाल लेगा। सोहनलाल की फिक्र मत करो।"
कुछ देर में ही टिड्डा और प्रतापी कार ले आये।
कर को प्रतापी ड्राइव कर रहा था।
वे सब भीतर बैठे। प्रतापी ने कार आगे बढ़ाते हुए कहा---
"रास्ता बताते जाना कि किधर जाना है...।"
"आगे मोड़ से बाएं ले लो।" देवराज चौहान जेब से मोबाइल निकालता बोला।
प्रतापी ने ऐसा ही किया।
"तुम्हें ठीक से पता है कि कहाँ पर वैन है?" शेख ने पूछा।
"वैन के बारे में ठीक से नहीं पता। परन्तु हम ठीक उसी इलाके में पहुँच जायेंगे। वैन से ज्यादा दूर नहीं रहेंगे।"
"तो वैन तक कैसे पहुँचेंगे?"
"पहुँच जायेंगे।" कहने के साथ ही देवराज चौहान ने सोहनलाल का नम्बर मिलाया।
बात हो गई।
"बोल मेरी जान।"सोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी--- "मेरे बिना तू बहुत जल्दी उदास हो जाती है नानिया।"
"हमारे पर कोई नजर नहीं रख रहा...।"
"ठीक है। लेकिन खाना बना कर तू क्या करेगी? रात भर तो मैं आने वाला नहीं।" सोहनलाल की आवाज कानों में पड़ी।
देवराज चौहान समझ गया था कि सोहनलाल दूसरों को सुनाने की खातिर ऐसी बातें कर रहा है।
यकीनन उसके पास कोई और भी मौजूद होगा।
"मैं चल रहा हूँ। एक घंटे तक पहुँच जाएंगे। परन्तु हमें ठीक से नहीं पता कि वैन कहाँ पर है। एक घंटे बाद तुम फोन करके वैन की लोकेशन बताना।"
"सुबह तक मैं घर आ जाऊँगा। तू आराम से नींद मार।"
"जगमोहन ठीक है वहाँ?"
"मामी बढ़िया है। फिर फोन करुँगा नानिया। मैं अभी जरा काम में व्यस्त हूँ।" इतना कहने के साथ ही उधर से सोहनलाल ने फोन बंद कर दिया था।
प्रतापी कार दौड़ाये जा रहा था।
◆◆◆
रात के दस बज रहे थे।
चंद्रमा की रोशनी में खेत चमक रहे थे। दो पेड़ों के काले साये स्पष्ट नजर आ रहे थे।
प्यारा,गिन्नी और सोनू खेतों के बीच बनी छोटी मेढ़ पर बढ़े जा रहे थे। सबसे आगे सोनू था। उसने बगल में कोई कपड़ा दबा रखा था। एक हाथ में सूरजभान के गोलगप्पे का लिफाफा था और दूसरे हाथ में बाजार से आठ रुपये की मिलने वाली छोटी-सी टॉर्च पकड़ी हुई थी, जिसकी रोशनी की लकीर दो फीट नीचे जमीन तक भी नहीं पहुँच रही थी। परन्तु उसने टॉर्च पकड़ी हुई थी।
तभी पीछे से प्यारा बोल पड़ा---
"सोनू।"
"बोल प्यारे...।" इस वक्त सोनू खामखाह के जोश में था।
"ये जगह ठीक है। हम काफी आगे आ गये हैं।"
"तुझे कैसा लग रहा है गिन्नी?" प्यारे ने प्यार से पूछा।
"बहुत अच्छा...। अगर लक्ष्मण के साथ मेरी शादी हो जाती तो, मैं जीते जी मर जाती।" गिन्नी ने कहा।
"अभी हमारी शादी भी कहाँ हुई है...।"
"बच्चा ठहरते ही हो जाएगी।"
"चाची तो इस वक्त शादी का मजा ले रही होगी।"
उसी पल सोनू कह उठा---
"ये जगह ठीक नहीं है। थोड़ा और आगे चलते हैं।"
"ये ही खेत ठीक...।"
"तू समझता नहीं प्यारे...।" सोनू ने झल्लाकर कहा--- "ये छोटूराम के खेत हैं। वह पगला-सा है। उसे नींद तो आती नहीं। रात-रात भर खेतों के चक्कर काटता रहता है। ऊपर से वो आ धमका तो?"
"ठीक है, आगे चलते हैं।"
वे तीनों पुनः आगे चल पड़े।
सोनू ने टॉर्च वाला हाथ आगे कर रखा था।
"ये टॉर्च कहाँ से लाया?"
"भगते ने दी है। कहता था कि रात को जब भी पिंकी को खेत में ले जाता था तो यही टॉर्च जलाकर जाता था। उसने ये कह कर मुझे दे दी कि अब उसे टॉर्च की जरूरत नहीं। पिंकी से शादी जो हो गई है उसकी...।"
"भगतो ने बहुत टोटके आजमाए पिंकी पर।" प्यारा बोला।
"तभी तो मैं उसका हर टोटका इस्तेमाल कर रहा हूँ। एक भी टोटका फिट बैठा तो बच्चा ठहरा ही ठहरा, प्यारे...।"
"बगल में क्या दबा रखा है?"
"चादर। भगते ने दी, कहा था कि चादर जरूर ले जाना साथ में। नहीं तो गिन्नी की पीठ छिल जायेगी। उसने बताया कि उसने तो एक चादर खेतों में भी छिपा रखी थी। जब भी पिंकी को ले जाता, चादर बिछा लेता था।"
"भगता बहुत समझदार है।"
"हाँ। वो तो है।"
तीनों आगे बढ़े जा रहे थे।
प्यारे ने गिन्नी का हाथ थाम रखा था।
इस वक्त प्यारा और सोनू छापामार योद्धाओं से कम नहीं लग रहे थे। उनके हाव-भाव से ऐसा लग रहा था जैसे युद्ध पर जा रहे हों। सच में आज की रात उनके लिए युद्ध जैसी ही थी। गिन्नी के बच्चा जो ठहराना था।
काफी आगे जाकर वो ठिठके।
अपनी कॉलोनी से काफी दूर आ गए थे।
हर तरफ खेत ही खेत नजर आ रहे थे।
"ये जगह ठीक है प्यारे...।"
"तेरे को कैसे पता कि ये जगह ठीक है?" प्यारे ने पूछा।
"चेतराम के खेत हैं ये। वो दिन भर पीता रहता है और शाम होते ही लम्बा हो जाता है। उसे होश नहीं रहता। दो-दो दिन तो खेतों में भी नहीं आता। मेरी पहचान है उससे। वो अगर ऊपर से आ भी गया तो, मैं संभाल लूँगा उसे। मेरी इज्जत करता है वो। वैसे भी बंदा ठीक है वो।" सोनू ने आसपास नजरें दौड़ाते हुए कहा--- "अब हम यहाँ कोई जगह ढूँढते हैं, जहाँ चादर बिछाई जा सके। उसके बाद तू आराम से बच्चा ठहरा...।"
फिर सोनू और प्यारे मन-पसन्द जगह तलाश करने में लग गए।
गिन्नी ने प्यारे का हाथ थाम रखा था।
दस-पन्द्रह मिनट के बाद उन्होंने खेतों की समाप्ति पर खुली जमीन को पसंद कर लिया।
"ले चादर बिछा...।" सोनू ने बगल में दबा रखी चादर की तरफ इशारा किया।
प्यारे ने उसकी बगल से चादर निकाली और उसे घास-मिट्टी की जमीन पर बिछाया।
"वाह, अब ठीक है।" सोनू मुस्कुराया।
"तेरी टॉर्च तो बुझ गई।" प्यारा कह उठा।
सोनू ने टॉर्च पर नजर मारी, फिर जेब में हाथ डालता बोला---
"क्या फर्क पड़ता है। अब इसकी जरूरत भी नहीं। जगह तो हमने ढूंढ ली है। भाभी...।"
गिन्नी आसपास देख रही थी।
"भाभी...गिन्नी भाभी...।"
"हाँ, मुझसे कुछ कहा?"
"तेरे से ही तो कह रहा हूँ...।"
"तू भाभी-भाभी कह रहा था तो...।"
"अब तू भाभी ही तो हो जायेगी मेरी। इधर आ, चादर पर बैठ। मैं तेरे को गोलगप्पे खिलाऊँगा।
गिन्नी फौरन चादर पर आ बैठी।
"सोनू गोलगप्पे मैं खिला दूँगा... तू...।"
"वाह, ये कैसे हो सकता है? देवर के हाथों शगुन होता है गोलगप्पे खिलाना।" सोनू पास ही चादर पर बैठकर गोलगप्पे का लिफाफा नीचे रखता कह उठा--- "तू भी बैठ। पानी का लिफाफा निकाल और खोल उसे।"
प्यारे ने ऐसा ही किया।
"ठीक है। दोनों हाथों से लिफाफा खोल कर रख।" सोनू गोलगप्पा तैयार करके उसमें आलू भरता कह उठा--- "सूरजभान से आलू ज्यादा डलवा कर लाया हूँ... कि भाभी को मजा आ जाए।"
उसके बाद सोनू ने गोलगप्पे को पानी वाले लिफाफे में भरा और गिन्नी की तरफ बढ़ाया।
"मुँह खोल भाभी...।"
गिन्नी ने तुरंत मुँह खोला।
इस तरह शुभ मुहूर्त में बच्चा ठहराने की शुरुआत हुई...।
गिन्नी को ऐसे खुले में, इस तरह गोलगप्पे खाने में बहुत मजा आ रहा था।
वो मजे से सारे गोलगप्पे खा गई।
"पानी भी पी ले भाभी। भगता कहता था कि जो पानी बचे, वो गिन्नी को पूरा पिला देना।"
गिन्नी ने प्यारे के हाथ से लिफाफा लिया और मुँह लगाकर सारा पानी पी गई। वैसे भी उसे प्यास लगी थी।
"प्यारे...।" सब कुछ खा-पीकर गिन्नी बोली--- "तूने तो कुछ खाया नहीं...।"
सोनू कह उठा।
"प्यारे की बात छोड़। उसे तेरी फिक्र है।" सोनू उठता हुआ बोला--- "प्यारे, तू अब शुरू हो जा। मैं पहरेदारी करता...।"
"यहीं सिर पर खड़ा रहकर?" प्यारे के होंठों से निकला।
"नहीं, कुछ दूर चला जाता हूँ, फिर तो...।"
"इधर देखना भी नहीं।" प्यारे ने सतर्क किया।
"नहीं देखूँगा। बस आज तू बच्चा ठ... ह...रा...।" सोनू कहते-कहते चुप हो गया।
सोनू की नजरें एक तरफ टिक गई थीं।
चादर पर बैठा प्यारे उसे देखते हुए कह उठा---
"कोई आ रहा है क्या?"
"नहीं।" सोनू उधर देखता बोला--- "वो देख तो... वहाँ रोशनी हो रही है।"
"किधर?" प्यारा उठता हुआ बोला।
"वो जहाँ पुराने मन्दिर का गुम्बद बना है...।"
प्यारा पास आकर खड़ा हो गया और उधर देखने लगा।
गिन्नी चादर पर लेट गई थी।
प्यारे और सोनू को रोशनी दिखाई दे रही थी।
रोशनी ज्यादा दूर नहीं थी। मात्र हजार फीट की दूरी पर थी। परन्तु बहुत कम रोशनी ही उन्हें महसूस हो रही थी। लेकिन रोशनी तेज थी। सोनू कह उठा---
"वहाँ तो पेड़ों का जमघट है। सूनसान जगह है। इतनी रात को वहाँ कौन होगा?"
"कहीं वहाँ पर भी बच्चा ठहराने का प्रोग्राम तो नहीं चल रहा?" प्यारे ने कहा।
"हो सकता है...। मैं देखकर आता हूँ।"
"तू वहाँ देखकर क्या करेगा?"
"शायद कोई नया टोटका पता चल जाये, जो कि तेरे काम आये।"
"तू चला गया तो यहाँ पहरेदारी कौन करेगा।"
"मैं बस अभी गया और वापस आया...।"
"बिना पहरेदारी के मुझे डर लगा रहेगा कि कोई ऊपर से आ न जाये। मैं भी तेरे साथ चलता हूँ।"
"तू?" सोनू ने उसे देखा।
"आना-जाना ही तो करना है। दस मिनट में वापस आ जायेंगे।" प्यारा बोला।
"और गिन्नी?"
"ठहर, मैं गिन्नी से पूछ लेता हूँ।" प्यारा गिन्नी के पास पहुँचा। उसे पुकारा।
परन्तु इतने तक ही गिन्नी नींद में डूब गई थी।
"प्यारे, ये तो सो गई...।"
"बेचारी थक गई होगी। पर अच्छा ही हुआ। थोड़ी देर आराम कर लेगी। भगता बता रहा था कि एक बार तो पिंकी खेतों में ही सो गई थी। ये अच्छा शगुन है। हम वहाँ हो आयें, फिर तू गिन्नी को जगा देना।"
"ये भी ठीक है।"
उसके बाद सोनू और प्यारे रोशनी की तरफ बढ़ गये।
बहुत कम रोशनी थी वहाँ, जो पेड़ों से छनकर बाहर आ रही थी। दोनों के मन में उत्सुकता आ गई थी कि उस सूनसान जगह पर रोशनी कैसे हो रही है?
"प्यारे।" सोनू कह उठा--- "मेरी मान, वहाँ भी बच्चा ठहराने का ही प्रोग्राम चल रहा है।"
"लगता तो ऐसा ही है।"
"वरना इतनी रात को कोई वहाँ क्यों आयेगा? अच्छी जगह चुनी है उन लोगों ने। वहाँ पेड़ बहुत हैं। मुझे पहले क्यों ना ध्यान आया कि वो जगह ठीक रहेगी।" सोनू बोला--- "कहीं अपनी कॉलोनी का ही तो नहीं है कोई यहाँ। भगते ने किसी और को भी शादी करने का टोटका बता दिया हो। भगता है चालू। अब वो सबकी शादी करा देना चाहता है।"
दोनों उस जगह के पास पहुँचे।
"सीधे उनके पास नहीं जाना है।" सोनू बोला--- "व... वरना वो चिढ़ जाएगा कि हमने उसे देख लिया। यूँ ही तांक-झांक कर वापस चल पड़ेंगे। तब तक गिन्नी भी आराम कर लेगी।"
"ठीक है।"
दोनों अब सावधानी से आगे बढ़ने लगे थे।
पेड़ों के झुरमुट के काफी करीब एक पेड़ की ओट में जा खड़े हुए।
उन्हें एक-दो आदमी दिखे। परन्तु स्पष्ट कुछ नहीं दिखा।
"यहाँ तो लंबा ही प्रोग्राम लगता है...। मैंने दो आदमियों को देखा है।" सोनू बोला।
"एक तेरी तरह पहरेदारी के लिए साथ आया होगा।"
"देखते हैं। आ... कुछ और आगे चलें...।"
"वो हमें देख लेंगे तो...।" प्यारे ने कहना चाहा।
""घबरा मत। हमें देख लिया तो कह देंगे कि गिन्नी की पेट में बच्चा ठहराने आये हैं।"
दोनों कुछ और आगे पहुँचे।
अब पहले की अपेक्षा, कई चीजें उन्हें स्पष्ट दिखने लगीं।
दोनों को वहाँ खड़ी D.C.M.B बैंक की वैन खड़ी दिखी हालांकि वैन की साइड में लिखे D.C.M.B लिखे शब्दों पर गोबर थोप रखा था, परन्तु वह समझ गए कि यह बैंक की गाड़ी है।
"मैं D.C.M.B बैंक-वैन को तब कई बार देखा करता था, जब मैं ऑटो चलाता था।" सोनू बोला--- "लेकिन ये वैन यहाँ पर कैसे? ये लोग यहाँ क्या कर रहे हैं?"
"वो देख, पीछे वह आदमी वैन का ताला खोलने में लगा है।" प्यारे ने कहा--- "गड़बड़ लगती है।"
"कार की हैडलाइट ताला खोलने वाले के लिए जला रखी है।"
"ये बच्चा ठहराने के लिए यहाँ नहीं हैं।" बोला प्यारा--- "यहाँ कोई लड़की नहीं है।"
"ये तो डकैती का मामला लगता है।" सोनू कह उठा।
"डकैती?"
"हाँ, भगता अखबार की खबरें मुझे बताता रहता है। भगता कहता है कि देवराज चौहान नाम का आदमी हिन्दुस्तान का माना हुआ डकैती मास्टर है। वो इस तरह नोटों को हथिया लेता है, जैसे मक्खन की टिक्की में से छुरी निकल कर बाहर आ जाती है और किसी को पता भी नहीं चलता। भगता तो देवराज चौहान का फैन है।"
"फैन?"
"मतलब कि दीवाना...।"
"शादी तो उसने पिंकी से की है, फिर वह देवराज चौहान का दीवाना कैसे हो...।"
"समझाकर, वह दूसरी तरह का देवराज चौहान का दीवाना है, जैसे कि तू अक्षय कुमार का दीवाना है।"
"समझा, समझा।" प्यारे ने सिर हिलाया--- "तो तेरा मतलब यहाँ पर वो डकैती मास्टर देवराज चौहान है।"
"मैंने ये नहीं कहा।"
दोनों की नजरें सामने फिर रही थीं।
"प्यारे।" सोनू सोच भरे स्वर में बोला--- "मुझे लगता है कि तेरी समस्या का हल निकल आया है...।"
"कैसा हल... कैसी समस्या?"
"चाची को दिखाने के लिए तेरे को नोट चाहिए। ठीक कहा मैंने...।"
"दिखाने को?" वह तो हरामी है, सारे नोट झटक लेगी।"
"ये बैंक-वैन नोटों से भरी है। ये लोग ताला खोलकर नोट निकालने की तैयारी में हैं।"
"लगता तो यही है। पुलिस को फोन करते हैं, उधर सड़क पर ढाबा है, उसमें फोन लगा...।"
"मैं तेरे भले के लिए सोच रहा हूँ और तू पुलिस को फोन करने...।"
"कैसा भला?"
"उस वैन में नोट भरे पड़े हैं।"
"तो?"
"जब वो वैन खोल देंगे तो हम उनके पास जाकर कहेंगे कि लाख रुपया हमें दे दो। नहीं तो हम पुलिस को खबर कर...।"
"वो हमें गोली मार देंगे।"
"नहीं मारेंगे। हमारी बात सुनकर वह घबरा जाएंगे और लाख के डेढ़ लाख दे देंगे।"
"सच कहता है?"
"तेरे से क्या झूठ बोलूँगा? तू मेरा दोस्त है।"
"तू ठीक ही कहता होगा।"
"लेकिन ये लोग हैं कौन?"
"डकैत होंगे। तू देवराज चौहान को पहचानता है?" प्यारे ने पूछा।
"नहीं। वैसे भी वो यहाँ क्या करेगा? भगता बताता है कि वो बहुत बड़ा डकैत है।" सोनू बोला।
"अब हम क्या करें?"
"वैन खुलने का इंतजार करते हैं। तब सामने जाएंगे।"
"अगर हम यहाँ पर ज्यादा देर रहे तो, वो लोग हमें देख लेंगे।"
"बात तो तेरी ठीक है प्यारे...।" सोनू ने आसपास देखा--- "किसी पेड़ पर चढ़ जाते हैं।"
"ये ठीक रहेगा।"
प्यारा और सोनू पेड़ पर चढ़ गए।
पेड़ पर से उन्हें वहाँ की हर चीज स्पष्ट नजर आने लगी।
"अब इनमें से कोई भी हमें देख नहीं सकेगा।" सोनू बोला।
"मुझे गिन्नी की चिंता हो रही है...।" प्यारे ने कहा।
"ओह, उसे तो मैं भूल ही गया...। ठहर मैं उसे देख कर आता हूँ...।"
"मैं जाता हूँ।" प्यारे बोला।
"तू क्या करेगा जाकर? मैं ही हो आता हूँ। वो नींद से उठ बैठी होगी तो क्या करुँ गिन्नी का?"
"उसे कहना हम अभी आ जाएंगे। वो एक और झपकी ले ले।"
"अभी वापस लौटता हूँ।" सोनू ने कहा सावधानी से पेड़ से नीचे उतरने लगा।
आधे घंटे बाद सोनू लौटा और पेड़ पर चढ़ आया।
"मैं उधर वाले पेड़ पर चढ़ गया था। अंधेरे में पेड़ पहचानना भी कठिन हो जाता है...।" सोनू बोला।
"गिन्नी ने क्या कहा?" प्यारे ने पूछा।
"कुछ नहीं। वो नींद में थी। मैं चुपचाप वापस लौट आया।
प्यारे ने सिर हिलाया।
"यहाँ की कोई नई बात?"
"नहीं। अभी उनसे वैन का ताला नहीं खुला। तुझे विश्वास है कि ये लोग हमें लाख रुपया दे देंगे?"
"लाख का डेढ़ लाख देंगे। घबरा जायेंगे। हाथ-पाँव फूल जायेंगे। कितने आदमी हैं?"
"छः-सात हैं। वैन में कितना पैसा होगा?" प्यारे ने पूछा।
"दस-बीस लाख तो होगा ही...।"
"साले, बहुत मोटा हाथ मार रहे हैं। मैंने सुना है कि ऐसे लोगों की पुलिस को खबर करो तो इनाम मिलता है।"
"इनाम में डंडे मिलते हैं।" सोनू ने मुँह बनाकर कहा--- "कुछ नहीं मिलता पुलिस से। अखबारों में छप जाता है कि ईनाम दिया गया। और सच में कुछ नहीं मिलता।"
"तेरे को यह बात कैसे पता है?"
"भगते ने बता रखी हैं सब बातें मुझे...।" सोनू बोला।
"भगता बहुत समझदार है।"
"क्यों न होगा! सारा दिन दुकान पर बैठा अखबार पढ़ता रहता है। बहुत जानकारी है उसे।"
तभी उनके कानों में इंजन की आवाज पड़ी।
दोनों ने एक दूसरे को देखा।
"कोई आ रहा है।" सोनू बोला।
"पुलिस होगी...।"
"हो सकती है।" सोनू घबराकर बोला--- "हम चुपचाप पेड़ पर बैठे रहेंगे। नहीं तो वह हमें भी पकड़ ले जाएगी।"
"सोनू, मुझे तो डर लग रहा है...। प्यारे ने कहा।
"घबराता क्यों है? हमने तो कुछ भी नहीं किया।"
"लेकिन पुलिस...।"
"चुप कर। इंजन की आवाज पास आ गई।" सोनू दबे स्वर में बोला।
"हम तो गिन्नी के बच्चा ठहराने आए थे। यहाँ कहाँ फँस गए? क्या भगते के साथ भी ऐसा हुआ था?"
"नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ...।"
"फिर हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है?"
"ये भी कोई टोटका होगा। तेरे जुड़वा बच्चे हो सकते हैं।"
"होता है ऐसा?"
"टोटके का क्या भरोसा, कुछ भी हो जाए। अब चुप कर। वो देख, दो आदमी उस तरफ जा रहे हैं।"
◆◆◆