आंख खुलते ही राजदान ने रिस्टवॉच पर नजर डाली । साढ़े सात बजे थे । यह देखते ही एक झटके से उठ बैठा वह । बड़बड़ाया ----“उफ्फ! इतनी देर हो गयी ।"
बैड के दूसरे किनारे पर दिव्या पड़ी सो रही थी ।
चेहरे के अलावा उसका सारा जिस्म सिल्क की चादर से ढका हुआ था ।
राजदान ने हाथ बढ़ाकर उसका कंधा पकड़ा। हौले से बोला ----“उठो दिव्या ! क्या हो गया आज ! मैं भी सोता रह गया, तुम भी सोई हुई हो ।”
“ऊं - ---!” - !” वह कुनमुनाई ----
“सोने दो न !”
“साढ़े सात बज गये हैं।”
“तो क्या हुआ?” आंखें खोलकर दिव्या झुंझलाई ---- "तुम्हें उठना है तो उठ जाओ । मुझे नींद आ रही है । "
“अरे! रात को जगी थीं क्या?”
“ और क्या करती ?” इस बार उसने व्यंग्य किया----“रातों में करने के लिए होता ही क्या है मेरे पास !"
घूंसा-सा लगा राजदान के दिल पर ! तिलमिलाकर रह गया वह ! कुछ देर दिव्या की तरफ अजीब नजरों से देखता रहा, फिर धीरे से बोला- -“ओ. के. ।”
दिव्या ने करवट ले ली ।
राजदान उठा ---- जिस्म पर नाइट गाऊन डाला । इन्टरकॉम के जरिए भागवंती से बैड टी लाने के लिए कहा। एक सिगार सुलगाया और सोफे पर बैठ गया | पैर सेन्टर टेबल पर फैला लिए थे उसने । सिगार के धुंवे से घिरा चेहरा भी धुवां - धुवां नजर आ रहा था । ।
जाने क्या सोच रहा था वह ? तंद्रा तब भंग हुई जब किसी ने दस्तक दी ।
राजदान उठा। दरवाजे के नजदीक पहुंचा । चटकनी गिराकर खोला । बाहर एक ट्रे में कप-प्लेट लिए दीनू खड़ा था । प्लेट पकड़ते हुए राजदान ने पूछा---- “छोटे मालिक क्या कर रहे हैं?"
“सो रहे हैं साब ! ”
“सो रहा है?” राजदान सारे घर को? सब सो रहे मगर दिव्या और देवांश... अजीब बात है !" बड़बड़ाया ---- “आज हो क्या गया है हैं। मैंने तो खैर काम्पोज ली थी,
दीनू बेचारा तो भला कहता क्या ? हां - --- सब कुछ सुन रही दिव्या के 'चोर' मन में जरूर खलबली मच गई। दिमाग में विचार उठा ---- 'कहीं दोनों के सोने से वह कोई लिंक न जोड़ ले ।'
उधर राजदान ने दीनू से कहा------ “उसे जगा दो! कहो मैंने कहा है।”
“अच्छा मालिक ।” कहकर वह चला गया ।
राजदान वापस सोफे पर आ बैठा और चाय की चुस्कियां लेने लगा।
वह पुनः जाने किन ख्यालों में डूब गया था । उधर दिव्या को नींद आ रही थी । आती भी क्यों नहीं? देवांश के पास से सुबह पांच बजे आकर सोई थी वह, मगर दिमाग में सरसराती बेचैनी ने सोने नहीं दिया । उसे लगा----अपने बेवकूफाने व्यवहार से वह बेवजह राजदान के दिमाग में 'शंका' पैदा कर रही है ।
उठी!
जिस्म पर वही लिबास था । गुलाबी गाऊन, ब्रा और पेन्टी !
हुक से कोट उतारा, पहना और राजदान की तरफ बढ़ गई।
राजदान चाय खत्म कर चुका था ।
दिव्या उसके पीछे पहुंची। पीछे से ही गले में बांहें डाल दीं।
“अरे!” वह चौंका----“तुम उठ गईं?... नींद आ रही है तो सो जाओ।”
“सॉरी राज ।” गिल्टी-सी फील करती वह उसके सामने आ गई।
राजदान ने उसकी आंखों में गहराई से झांकते हुए पूछा - - - - " सुबह-सुबह किसलिए सॉरी...
“झुंझलाना नहीं चाहिए था मुझे नहीं कहना चाहिए था वह सब ।”
“क्या कर सकती हो तुम?” राजदान फीके अंदाज में हंसा- “ अपनी जगह तुम्हारी झुंझलाहट भी ठीक है... और वे शब्द भी ।”
“प्लीज!...प्लीज राज ! और जलील मत करो।”
“पगली!” तड़पकर उसका चेहरा राजदान ने अपने दोनों
हाथों में भर लिया ---- “क्या ऐसी उम्मीद है मुझसे ? जलील करूंगा मैं तुम्हें?... नहीं! ऐसा तो ख्वाब में भी नहीं सोच सकता मैं। हां, समझ जरूर सकता हूं तुम्हारी वेदना को । जो कुछ तुम्हारे मुंह से निकला, स्वाभाविक ही तो है वह। मगर् करूं क्या, मैं भी मजबूर हूं अपनी जगह ! जिस नर्क में खुद पड़ा हूं, तुम्हें भी तो नहीं घसीट सकता उसमें ।”
“मेरी बात मान क्यों नहीं लेते तुम ?”
“कौन-सी बात?”
“देवांश से न सही, भट्टाचार्य भाईसाहब से तो जिक्र करना ही चाहिए हमें | क्या पता अभी प्राइमरी स्टेज में हो। कोई इलाज हो सके ।” ।
“पढ़ी-लिखी होकर ये कैसी बात कर रही हो तुम?” देवांश ने टूटे लहजे में कहा ---- “ये कैंसर नहीं है जिसमें स्टेज होती हैं। ये एड्स है दिव्या । एड्स ! अगर आपका ब्लड एच.आई.वीपोजिटिव है, तो है ! फिर कोई इलाज नहीं है उसका। अंजाम एक ही होना है। जो सब को मालूम है । मौत ! मौत भी ऐसी जिसका इंतजार करना पड़ता । इन्तजार करने की हिम्मत नहीं है तो गोली मार लो खुद को।”
“प्लीज राज ! ऐसा मत कहो।” दिव्या ने तड़पकर अपनी अंगुलियां उसके मुंह पर रखीं। राजदान की आंखें छलछला उठी थीं। वह खुद को रोने से रोकने का भरपूर प्रयत्न करता बोला ---- “जिस तरह मैंने इस कठोर सच्चाई को आत्मसात कर लिया है, उसी तरह तुम्हें भी कर लेना चाहिए। तभी मेरी मौत के सदमे को सह सकोगी।”
“तब भी.... तब भी मुझसे वह लम्हा सहन नहीं होगा राज।” कहते वक्त उसने राजदान का चेहरा खींचकर अपने वक्षों में छुपा लिया था। फेस पर कड़वाहट थी मगर आंखों से आंसू टपकाती बोली ---- “तभी तो कहती हूं, तभी तो कहती हूं ‘परहेज’ मत करो । मुझे भी समा लो अपनी दुनिया में, ताकि तुम्हारे साथ मर सकूं। "
“पागल हो तुम !... निरी पागल !” राजदान फफक-फफक कर रो पड़ा ---- “अरे, दोनों ही चले गये तो कौन देखभाल करेगा छोटे की ? कौन शहनाई बजवायेगा उसकी शादी की ? अभी तो कम्बख्त नादान है एकदम ! नासमझ ! अब देखो न, विचित्रा के जाल में फंस गया । ”
“संभालो राज!... संभालो खुद को ।”
“हां!.... संभालना तो होगा ही।” कहने के साथ उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया । आंसुओं से तर था वह ।
बड़े प्यार से उन आंसुओं को पौंछती दिव्या ने कहा---- "तुम फिक्र मत करो। मैं संभाल लूंगी देवांश को । रही विचित्रा की बात ---- सो उसका किस्सा तो तुम रात ही खत्म कर चुके हो ।”
“क्या छोटे से बात हुई तुम्हारी ?”
दिव्या ने सतर्क स्वर में कहा ---- “न- नहीं तो! बात ही कब हो जाती? आपके सामने ही तो अपने कमरे में चला गया था।”
“फिर कैसे कह सकती हो विचित्रा का किस्सा खत्म हो गय है, क्या पता क्या है उसके दिमाग में?”
“आपने इतना बड़ा स्टैप ले लिया । अपने मान-सम्मान की परवाह किये बगैर फोटो तक दिखा दिए उसे । क्या इसके बाद भी वह विचित्रा से सम्बन्ध बनाये रख सकता है ?”
“होना तो नहीं चाहिए।" बड़बड़ाकर राजदान ने जैसे खुद से कहा ।
“बिल्कुल नहीं होगा, विश्वास रखो ।”
“फिर भी तुम टोह लेना दिव्या । जानने की कोशिश करना वह इस बारे में क्या सोच रहा है? अब भी कोई नादानी कर रहा हो तो समझाना उसे ! अगर वही हाथ से निकल गया तो आखिरी उम्मीद पर भी पानी फिर जायेगा। अब उसी को तो देखना है। राजदान एसोसियेट्स का सारा कामकाज । अभी तक कुछ सीखा भी तो नहीं है गधे ने ! जब से कनाडा से आया हूं----लगातार कह रहा हूं मेरे साथ रहे । तभी तो कुछ सीखेगा । मगर वह सुन ही नहीं रहा । इस बारे में भी समझाओ उसे।”
“ब्रेकफास्ट पर मिलेगा वह ! दोनों मिलकर समझाने की कोशिश करेंगे। मगर यह भी तभी होगा जब फ्रैश होकर डायनिंग टेबल पर पहुंचोगे । उठो!” उसने बाजू पकड़कर उठाया था राजदान को ।
***
करीब एक घण्टे बाद वे तीनों लॉबी में मिले। डायनिंग टेबल पर | नौकर दौड़-दौड़कर ब्रेकफास्ट लगा रहे थे। राजदान ने महसूस किया देवांश उससे आंखें नहीं मिला रहा है। थोड़ी चुप्पी के बाद राजदान ने कहा----- -“नजरें चुराने से कुछ नहीं होगा छोटे ।”
देवांश कांटे से मेज के कोने को खुरचने लगा।
“क्या सोचा विचित्रा के बारे में?” राजदान ने पूछा।
देवांश तब भी चुप रहा।
दिव्या ने कहा ---- “जवाब दो देवांश ! क्या अब भी तुम विचित्रा से सम्बन्ध रखोगे ?”
“हां!” देवांश ने एक झटके से चेहरा ऊपर उठाकर कहा ।
“क-क्या?” राजदान के होश उड़ गये ।
इस जवाब की उम्मीद दिव्या को भी नहीं थी । मुंह से हैरानगी भरा लहजा निकला- “ये तुम क्या कह रहे हो देवांश? इतने सबके बावजूद...
“ इतनी आसानी से कैसे भूल सकता हूं उस जहरीली नागिन को? एक ही झटके में कैसे तोड़ सकता हूं सारे सम्बन्ध ?”
वह दांत भींचे, भभकते चेहरे के साथ कहता चला गया ---- “सम्बन्ध तो मेरा और उसका रहेगा। तब तक रहेगा जब तक वह जिन्दा है। उसने मुझे ही नहीं, आपको भी छला है भैया और मैं खुद को धोखा देने वाले को बख्श सकता हूं। आपके साथ दगा करने वाले को नहीं । इन हाथों से... अपने इन हाथों से गला घोटूंगा मैं उसका ।”
“संभाल छोटे!... संभाल खुद को । इन बातों से हमारा भला होने वाला नहीं है !"
“आप कुछ भी कहें भैया मगर मैं उसे उसके किये की सजा देकर रहूंगा।"
“खबरदार !” राजदान उससे भी ज्यादा जोर से चीख पड़ा ---- “खबरदार जो बेवकूफी भरी बातें कीं । ”
देवांश उसकी तरफ देखता रह गया | चेहरा अब भी भभक रहा था ।
“अरे ! ” इस बार राजदान का लहजा संयत था------ "है ही क्या वो? दो टके की वैश्या ! उसके खून से अपने हाथ रंगेगा तू? अपनी कीमत तो समझ गधे, कीमत तो समझ अपनी । उसके कत्ल के इल्जाम में तुझे एक घण्टे की भी सजा हो गयी तो हमीं पर भारी पड़ेगा वह कत्ल और कानून में भी तो कमी है ये । मरने वाला चाहे जितना सस्ता हो और मारने वाला चाहे जितना इम्पोटेंट, सजा एक ही है उसके खाते में । इसलिए ... एक बेवकूफी तू कल तक कर रहा था। दूसरी, यानी उसे कोई नुकसान पहुंचाने की बेवकूफी बिल्कुल नहीं करेगा।”
“तो क्या उसे ऐसे ही छोड़ दूं भैया ?”
“मुझ पर छोड़ ये हैडेक । मैं देखूंगा क्या करना है उसका । तू अपना भविष्य संवार । काम देख अपना । आज से तू मेरे साथ ऑफिस चलेगा। विचित्रा को ऐसे भूल जा जैसे जीवन में कभी आई ही नहीं थी । अगर वह फोन भी करे तो बस इतना कहना भैया को सब कुछ पता लग गया है और मुझे भी तेरी सारी हकीकत बता दी है या ला... अपनी जेब में रखा फोन जरा मुझे दे। अभी किस्सा खत्म किये देता हूं।”
देवांश को लगा ---- -कहीं निराशा में डूबी विचित्रा गाड़ी में रखवाये गये बम या जहर वाले प्लान के बारे में न बक बैठे इसलिए बोला----“आप रहने दें! मैं खुद बात कर लूंगा । समझ गया मैं आपका प्वाइंट | बगैर गुस्सा किये पीछा छुड़ा लूंगा उससे ।”
राजदान के कुछ कहने से पहले सीढ़ियों के नजदीक रखा इन्टरकॉम भिनभिनाया! आफताब ने लपककर उसे उठाया ।
दूसरी तरफ की आवाज सुनकर बोला ---- “इंस्पैक्टर टकरियाल मिलने आया है मालिक ।”
देवांश के कंठ में जैसे कुछ अटक गया ।
राजदान के होंठ बड़बड़ा उठे ---- "यहां क्यों आया है वह ?”
“क्या कहूं मालिक ?” आफताब ने पूछा ।
राजदान ने अनिच्छापूर्वक कहा---- “आ ही गया है तो चौकीदार से कहो, भेजे!”
***
विचित्रा के ही क्यों, दरवाजे के उस तरफ खड़ी शांतिबाई के भी होश उड़ गये थे ।
सवाल ही ऐसा पूछ लिया था ठकरियाल ने । उन दोनों में से कोई कल्पना तक नहीं कर सकता था कि उसे 'विषकन्या' के बारे में पता होगा । अंदर ही अंदर बुरी तरह बौखला गई विचित्रा | कोशिश के बावजूद मुंह से आवाज न निकल सकी ।
ठकरियाल ने अपनी भंवें मटकाते हुए कहा--- "मैंने कुछ पूछा है मोहतरमा ।”
“व-विषकन्या कौन?” वह बड़ी मुश्किल से कह सकी ।
“ये लो - - - - तुमने तो हत्थे से ही उखाड़ दिया सारा मामला !” कहने के बाद वह उस दरवाजे की तरफ घूमा जिसके पीछे शांतिबाई खड़ी थी । बोला ---- “मैं समझ सकता हूं बाई जी, इस बार तुम्हारा ध्यान सुरा लाने में नहीं है बल्कि दरवाजे के उस तरफ खड़ी हमारी प्राइवेसी भंग कर रही हो । वापस आओ.. आकर समझाओ अपनी लौंडिया को । ठकरियाल जब कुछ कहता है तो कोई वजह होती है । झूठ तो साला ठहर ही नहीं सकता मेरे सामने । मुंह के बल, सीधा चरणों में गिरता है मेरे ।”
“ये बात तो मेरी भी समझ में नहीं आई टकरियाल साहब!” “क्या मतलब हुआ शांतिबाई वापस कमरे में आती बोलीइस सवाल का कि राजदान की हत्या के लिए विषकन्या कौन बन रही है। होती क्या है विषकन्या ?”
“ओह! दूध पीती बच्ची है तू तो अभी! जानती ही नहीं कुछ! खैर! ऐसी बात है तो बता ही देता हूं।” थोड़ा ठहर कर वह पुनः बोला - - - - “ होने को तो अनेक किस्म की होती हैं विषकन्याएं मगर मैं जिस विषकन्या की बात कर रहा हूं वह वो होती है जिसके निप्पल्स पर जहर लगा दिया जाता है 1 उसके बैडरूम में भेज दिया जाता है जिसका 'बेड़ा पार' करना हो। वासना के गर्त में डूबा शिकार जहरीले निप्पल्स को चुसकता है और मुहब्बत के शहीदों में अपना नाम दर्ज करा लेता है।”
“बड़ा अच्छा और आसान तरीका है किसी की हत्या करने का।"
“इसीलिए तुमने भी अपनाया ।” ठकरियाल एक-एक शब्द पर जोर देता कहता चला गया ----- “तूने, तेरी बेटी ने और देवांश ने।”
विचित्रा के रहेसहे कसबल भी निकल गये । यह सवाल चिंघाड़-चिंघाड़ कर उसके जहन में शोर मचा रहा था कि- -'यह सब टकरियाल को पता कैसे है?'
“हुजूर !” शांतिवाई ने कहा था ---- “मुझे लगता है आपको गलतफहमी हो गई है। ऐसा कोई प्लान न हमारा था, न है।"
“मानता हूं अभी रकम तय नहीं हुई। मगर इतना तो तय हो ही चुका है कि जो तुम कर रहे हो उसमें मैं भी पार्टनर हूं अब पर्देदारी ठीक नहीं बाई जी । खुलो ! ताकि प्लान में अगर कोई 'नुक्स' हो तो अपने एक्सपीरियंस के बेस पर उसकी मरम्मत कर सकूं।”
“हमारा प्लान राजदान की हत्या करने का बिल्कुल नहीं है। " शांतिबाई कहती चली गई - - - -“हां, विचित्रा की शादी देवांश से कराकर राजदान की दौलत का एक हिस्सा कब्जाने का प्लान
जरूर है मेरा! उसमें से कितना चाहते हो बता दो ।”
“देवांश के नाम फूटी कौड़ी तक नहीं है जिसे तुम हासिल कर सको।”
“जब हमारे पंजे में फंसा देवांश राजदान से अपना हिस्सा मांगेगा तो उसे आधा हिस्सा देना पड़ेगा | सीधी तरह नहीं देगा तो कोर्ट के जरिए देगा ।”
“जरूरत से कुछ ज्यादा ही चालाक बनने की कोशिश कर रही हो बाई जी । इतनी ज्यादा कि मुझे ही धता बताने की कोशिश कर रही हो । नहीं...!” 'नहीं' शब्द पर जोर देने के बाद उसने थोड़ा ठहरकर कहा ---- “इतने सियाने लोगों के के साथ मेरी पार्टनरशिप नहीं जम सकती और जिनके साथ मेरी पार्टनरशिप नहीं जमती उन्हें हथकड़ियां पहना देता हूं । हवालात में ठूंस देता हूं। खातिर करता हूं उनकी ।”
“ आप तो धमकी देने लगे सरकार ।”
“धमकी नहीं दे रहा बाई जी, आदत बता रहा हूं अपनी ।”
“किस इल्जाम में हथकड़ी पहनायेंगे आप हमें?” शांतिबाई में कहती चली गई----“विचित्रा और देवांश आपस में प्यार करते हैं और प्यार करना कोई ऐसा जुर्म नहीं है जिसमें पुलिस दख्ल दे सके। हां, इतनी बात जरूर है जो इन्फारमेशन आपके पास है उससे आप हमारा खेल बिगाड़ सकते हैं। वैसा न करें, उसकी हम पूरी कीमत देने को तैयार हैं।”
“गलती मेरी है, दरअसल अभी तक ठीक से मैंने तुझे बताया ही नहीं कि मैं कोर्ट को क्या-क्या समझा सकता हूं?”
“क्या समझा सकते हैं?"
"पहले तुझे ही समझा देता हूँ।" करने के साथ उसने गिलास विचित्रा की तरफ बढ़ाया "ले! तू ही भर ला इसे तब । तक मैं तेरी 'मेहतारी' को वह समझाता हूं जो सीधी अंगुली से इसकी समझ में नहीं आ रहा।"
विचित्रा ने सवालिया नजरों से शांतिबाई की तरफ देखा।
शांतिबाई ने उसे वह करने का इशारा किया जो ठकरियाल कह रहा था ।
विचित्रा गिलास लेकर अंदर वाले कमरे की तरफ बढ़ी | ठकरियाल ने कहना शुरू किया ---- "तुम मां-बेटियों का टार्गेट है ---- देवांश को काला कुत्ता बनाकर उसके हाथों राजदान का क्रियाकर्म कराना । उसके साथ ही दिव्या को भी शहीद करा देना चाहती हो तुम जिससे सारी जायदाद का मालिक अकेला देवांश बन जाये । इसमें सबसे बड़ी अड़चन यह थी कि उन दोनों के मरते ही पुलिस का सीधा शक देवांश पर जाता। मैं मानता हूं ---- उस शक से बचने का बड़ा ही शानदार प्लान बनाया गया । चेहरे पर नकाब डालकर देवांश कम्मो और बुग्गा से मिला । समरपाल को फंसवाने के लिए उनके सामने लंगड़ाकर चला । खुद गाड़ी में बम रखवाया और खुद ही उसके फटने से पहले बाहर फिंकवा दिया। 'एलीबी' तैयार ! अब जब वास्तव में राजदान का मर्डर होगा तो देवांश पुलिस के शक से कोसों दूर रहेगा ।
न.. न... न... बीच में बोलने की कोशिश मत करो बाई जी! मेरे पास हर सवाल का जवाब है। उसके बाद शुरू होता है --राजदान के असली मर्डर के प्लान पर अम्ल ! असल में यह मर्डर विषकन्या द्वारा होना है। और पकड़ा जाने वाला है समरपाल ।”
'आखिर इन सब बातों का बेस क्या है तुम्हारे पास?"
“ये रहा बेस !” कहने के साथ ठकरियाल ने अपनी पेंट और 'तोंद' के बीच से 'विषकन्या' नामक किताब निकालकर शांतिबाई के हाथों में पटक दी ।
ठर्रा से भरा गिलास हाथ में लिए विचित्रा ने अभी-अभी कमरे में कदम रखा था । किताब पर नजर पड़ते ही वह जहां की तहां ठिठकी रह गई । दिमाग चीख-चीखकर पूछ रहा था ---- 'ये किताब ठकरियाल पर कहां से आ गयी ?”
इधर, शांतिबाई ठकरियाल को इस तरह देख रही थी जैसे लोग हवा में से कबूतर पैदा करने वाले जादूगर को देखते हैं।
ठकरियाल पूरी तरह मस्त नजर आ रहा था । उसने विचित्रा से कहा----“अरी आ ना ! तू वहां कहां इस तरह खड़ी रह गई जैसे किसी साधु ने पत्थर की बन जाने का श्राप दे दिया हो । जल्दी आ ! काफी बुलवा दिया तेरी 'मेहतार्ग' ने। गला खुश्क हो गया है।”
झटका सा लगा विचित्रा के दिमाग को। वह आगे बढ़ी, - ठकरियाल के नजदीक पहुंची। ठकरियाल ने गिलास लिया और उसे भी एक ही सांस में पीने के बाद बोला- “घुसी वात भेजे में?”
शांतिबाई ने किताब को उलट-पुलट कर देखते हुए कहा- “कोई सबूत तो नहीं हो सकती ये किताव ?”
“ फिलहाल सुबूत नहीं, हालात कह रहे हैं सवकुछ !” ठकरियाल बोला ---- “बुग्गा के बयान ने मेरा दिमाग समरपाल की लंगड़ाहट में अटका दिया था । उससे मिला और इस नतीजे पर पहुंचा कि नकाबपोश और चाहे जो हो मगर समरपाल नहीं हो सकता । पहला कारण ---- उसकी कद-काठी देवांश जैसी बिल्कुल नहीं । दूसरा कारण----यदि वह नकाबपोश होता तो अपने चेहरे से पहले लंगड़ाहट छुपाता ---- अब यह क्लियर था ---- -नकाबपोश जो भी है, समरपाल की गर्दन लम्बी कराना चाहता है । कद-काठी के हिसाब से बुग्गा का बयान देवांश की तरफ इशारा करता था। मुझे उस पर शक हुआ। यहां तुम सवाल उठा सकती हो ---- जो खुद उस गाड़ी में था, भला उस पर शक कैसे किया जा सकता था? इसके भी दो कारण थे । पहला ---- जब बुग्गा ने लंगड़ाहट का जिक्र किया तो देवांश का ध्यान उस समरपाल पर क्यों नहीं गया जिस पर मेरा ध्यान घटनास्थल पर ही तुरंत चला गया था । दूसरा----बम के साथ जुड़ी घड़ी की आवाज उसी के कानों तक क्यों पहुंची? अतः खोज खबर निकालता ताज के सुइर्ट में पहुंचा। वहां पहुंचकर तो मेरे दिमाग की घण्टी इस तरह बजने लगी जैसे कोई उसके स्विच पर अंगूठा रखकर भूल गया हो। पूछो अपनी साहबजादी से, मैंने उसी वक्त कह दिया था ----यह जुगलबंदी मेरे हलक में अटक गई है। उसके बाद देवांश को रास्ते में रोका । थाने ले गया । कोशिश 'टोह' लेने की थी । मगर इस तरह जैसे मैं उसे समझा रहा हूं। फिर आज सुबह छः बजे समरपाल खुद थाने आया । बोला ---- 'इंस्पैक्टर साहब, आपने मुझसे कहा था अगर मेरे साथ कोई असामान्य बात हो तो उसकी सूचना जरूर दूं । उसी लिए आया हूं। मैंने असामान्य घटना के बारे में पूछा । उसने कहा---- 'पता नहीं आपके हिसाब से यह असामान्य घटना है या नहीं, मगर मुझे बड़ी अजीब लग रही है। अपने बैड के गद्दे के नीचे से मुझे एक ऐसी किताब मिली जो मेरी नहीं है, बल्कि हो ही नहीं सकती क्योंकि जिस टॉपिक पर वह है, उसमें मेरा कभी इन्ट्रेस्ट नहीं रहा। समझ में नहीं आ रहा यह किताब मेरे गद्दे के नीचे कब, किसने और क्यों रख दी ? मैंने किताब मांगी, उसने दी ! इसे देखते ही समझ गया ----प्लानर ने समरपाल की गर्दन नपवाने का पूरा इंतजाम कर दिया है और राजदान की हत्या विषकन्या द्वारा होने वाली है। उस वक्त रामोतार भी वहां था। मेरे और समरपाल के बीच देवांश का नाम आने पर वह बोला ---- 'सर, आप मुझे डांटें नहीं तो एक इन्फारमेशन है ।' मैंने ग्रीन सिग्नल दिया। तब उसने मुझे छः साल पुरानी घटना सुनाई। उसके बाद तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं रह गई । ”
“ और आप यहां धमक पड़े ?”
“गलती की कुछ ?”
“जो आपने कहा, वह सिर्फ कह रहे हो । साबित नहीं कर सकते उसे। कोई सुबूत...
“सुबूत हाथ लगने तक बहुत देर हो चुकी होगी बाई जी ।” ठकरियाल ने उसकी आंखों में आंखें डालकर -“उसके बाद दुनिया की कोई ताकत तुम्हें बचा नहीं कहासकेगी।”
“क्या मतलब ?”
“उधर जहर चुसककर राजदान मरा, इधर तुम नपीं ।”
अंदर ही अंदर कांपकर रह गयीं शांतिबाई और विचित्रा ।
उन्हें लगा ---- अगर देवांश कामयाब हो गया होगा तो वाकई दुनिया की कोई ताकत उन्हें ठकरियाल के कहर से नहीं बचा सकती। वह वक्त से पहले उस प्लान को समझ चुका है जो बनाया गया था । वही कहा भी ठकरियाल ने- “अगर राजदान जहर से मरा तो जो मैं कह रहा हूं उसे चुटकी बजा बजाकर कोर्ट में साबित कर दूंगा ।”
विचित्रा पूरी तरह पस्त हो चुकी थी । शांतिबाई ने खुद को नियंत्रित किया । बोली---- “मेरे ख्याल से आप कुछ साबित नहीं कर सकते । ”
“खुशफहमी की वजह ?”
“असल में आपको खुद नहीं मालूम आप कह क्या रहे हैं।” बड़ी ही गहरी मुस्कान के साथ कहना शुरू किया शांतिबाई ने ---- “कुछ देर पहले कह रहे थे ---- हम राजदान और दिव्या, दोनों की हत्या करना चाहते हैं ताकि दौलत देवांश की हो जाये । अब कह रहे हो, राजदान की हत्या विषकन्या से होने वाली है। मतलब केवल राजदान मरेगा। उद्देश्य ही कहां पूरा हो जायेगा हमारा ? दौलत तो तब भी दिव्या..
“वो मारा !... वो मारा पापड़ वाले को ।” अचानक ठकरियाल खुशी से उछल पड़ा । ऐसा लगा जैसे यकायक उसके दिमाग का कोई 'बंद' खुल गया हो । खुशी से पागल सा हुआ वह कहता चला गया ---- “शुक्रिया “शुक्रिया शांतिबाई । समझाने के लिए शुक्रिया जो अब तक मेरी समझ में नहीं आ रहा था।"
विचित्रा और शांतिबाई हकबकाई सी उसे देख रही थीं। उनकी समझ में नहीं आ रहा था अचानक हो क्या गया है ठकरियाल को ? इतना खुश क्यों हो उठा है वह जितना खजाने को देखकर अलीबाबा भी नहीं हुआ होगा। झूमते हुए से ठकरियाल ने जोर से रामोतार को आवाज लगाई। रामोतार तुरन्त 'जिन्न' की तरह दरवाजे पर नमूदार हुआ। उसकी 'यस सर' के जवाब में ठकरियाल ने कहा----“अबे, इसका मतलब तू फिर हमारी प्राइवेसी भंग कर रहा था ?”
“इस बार तो जो कर रहा था, आपके हुक्म पर ही कर रहा था सर !” रामोतार ने कहा ---- “आप ही ने तो कहा था ---- सरकारी कंगन लेकर तैयार रहूं, इन्हें पहनाने पड़ेंगे।"
“तो वहां खड़ा क्या धार दे रहा है? बढ़ता क्यों नहीं आगे? कंगन पहना इन्हें !”
रामोतार अपनी पेन्ट से हथकड़ी निकालता विचित्रा और शांतिबाई की तरफ बढ़ा। दोनों के होश फाख्ता थे। समझ नहीं पा रही थीं, अच्छे भले बात करते ठकरियाल को हो
क्या गया है? उस वक्त रामोतार उन्हें हथकड़ी पहना रहा था जब शांतिबाई ने कहा ---- “मेरी बात तो सुनिए ठकरियाल साहब! ये क्या गजब कर रहे हैं आप? मैं तो आपको मुंहमांगी कीमत देने को तैयार हूं।”
“चुप्प !” रामोतार ने उसे डांटा ---- "रिश्वतखोर समझ रखा है हमारे साहब को ?”
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