प्रिया के सेलफोन की घंटी बजी। प्रिया ने फ़ोन उठाया। दूसरी ओर से आवा़ज आई, ‘‘हाय प्रिया! हाउ आर यू?’’
‘‘हे माया! आई एम गुड, हाउ अबाउट यू?’’ प्रिया ने चहकते हुए कहा।
‘‘अच्छी हूँ... तुझे एक गुड न्यू़ज देनी है; मैं लंदन आ रही हूँ, मुझे जॉब मिली है तेरे शहर में।’’
‘‘वाओ! दैट्स ग्रेट... कब आ रही है?’’
‘‘नेक्स्ट सैटरडे।’’
‘‘ब्रिलियंट; मेरा फ्लैट है लंदन में, आई वुड लव यू टू स्टे विद मी।’’
‘‘तुझे कोई प्रॉब्लम तो नहीं होगी?’’
‘‘प्रॉब्लम कैसी? आई विल एन्जॉय योर कंपनी।’’
‘‘आई मीन तेरा कोई बॉयफ्रेंड होगा।’’
‘‘फ्लैट शेयर करने में कोई प्रॉब्लम नहीं है; बस बॉयफ्रेंड से दूर रहना।’’ प्रिया ने ठहाका लगाया।
माया प्रिया की फ्रेंड थी। ग्लासगो में किसी एसेट मैनेजमेंट फ़र्म में कंसलटेंट थी। प्रिया के विपरीत माया बहुत ऐम्बिशस थी। माया के जीवन का लक्ष्य आर्थिक प्रतिष्ठा के उस शिखर पर पहुँचना था, जो प्रिया को धरोहर में मिला हुआ था। अपने लक्ष्य को पाने के लिए माया मेहनत भी बहुत करती थी। प्रेम के लिए उसके पास अधिक वक्त नहीं था। उसे तलाश थी एक ऐसे जीवनसाथी की, जो उसकी तरह ही महत्त्वाकांक्षी हो; जो अमीर तो हो, मगर उसकी सम्पन्नता और समृद्धि की भूख शांत न हुई हो।
प्रिया, उत्सुकता से माया का इंत़जार करने लगी। पराये देश में किसी का साथ हो, और ख़ासतौर पर किसी करीबी दोस्त का; तो घर और देश से दूरी उतनी नहीं खलती। कबीर के प्रेम के बाद माया का साथ... प्रिया के दिन और रातें दोनों ही अच्छे होने चले थे, मगर जब सब कुछ अच्छा होने लगे, तो नियति को उपेक्षा सी महसूस होने लगती है, और वह रूठने लगती है। प्रिया के साथ भी ऐसा ही हुआ। दो दिन बाद उसके घर से फ़ोन आया कि उसकी माँ की तबियत खराब है।
‘कबीर!’ प्रिया ने कबीर को फ़ोन लगाया।
‘‘हाय प्रिया!’’ कबीर का जवाब आया।
‘‘कबीर, मॉम इस नॉट वेल, मुझे इंडिया जाना होगा।’’
‘‘ओह, सॉरी टू हियर प्रिया, क्या हुआ मॉम को?’’
‘‘नथिंग टू सीरियस, बट शी नीड्स मी।’’
‘‘ओके प्रिया, प्ली़ज लेट मी नो, इफ आई कैन बी एनी हेल्प।’’
‘‘इसीलिए तो फ़ोन किया है कबीर।’’
‘‘यस, प्ली़ज टेल मी।’’
‘‘कबीर, सैटरडे को माया आ रही है ग्लासगो से; कैन यू प्ली़ज रिसीव हर।’’
‘‘ओह या, श्योर!’’
‘‘ठीक है, आई विल ड्राप माइ अपार्टमेंट्स की एट योर प्लेस।’’
‘‘डोंट वरी, आई विल कम एंड कलेक्ट।’’
कबीर, माया को लेने एअरपोर्ट पहुँचा। प्रिया ने माया की फ़ोटो कबीर को मैसेज कर दी थी, ताकि वह माया को पहचान सके; मगर कबीर अपने साथ माया के नाम की तख्ती भी ले गया था, कि कहीं कोई ग़लती न हो। तख्ती पर लगी स़फेद काग़ज की शीट पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था, ‘माया मदान’ ग्लासगो से आने वाली फ्लाइट लंदन सिटी एअरपोर्ट पहुँच चुकी थी। कबीर, माया के नाम की तख्ती पकड़े मीटिंग पॉइंट पर उसका इंत़जार कर रहा था, तभी उसे अपनी ओर एक लम्बी, गोरी और खूबसूरत लड़की आती दिखाई दी। लड़की का बदन यूँ तो शेप में था, मगर अपनी लम्बाई की वजह से वह दुबली और छरहरी लग रही थी। लम्बे गोरे चेहरे पर उसने रे-बैन के डार्क ब्राउन पायलट शेप सनग्लास पहने हुए थे। स्ट्रेट किए हुए भूरे बालों की लटें चेहरे को दोनों ओर से घेरे हुए थीं। सनग्लास और बालों के घेर से झाँकते चेहरे को पहचानना आसान नहीं था, फिर भी कबीर को वह माया ही लगी। भूरे रंग के बूटकट क्रॉप ट्राउ़जर्ज, के ऊपर उसने डस्की पिंक कलर का बॉक्सी टॉप पहना था, गले में गहरे लाल रंग का पॉपी प्रिंट फ्लोरल स्का़र्फ और पैरों में ब्राउन फ्लैट स्लाइडर्स। कुल मिलाकर उसका पहनावा का़फी स्टाइलिश और व्यक्तित्व का़फी आकर्षक था। सैंडलवुड कलर के ट्राली सूटकेस को खींचते उसकी सुघड़ चाल से ऊर्जा की एक लपट सी उठती दिख रही थी, जो बिखरने से कहीं ज़्यादा समेटने की चाहत रखती मालूम हो रही थी।
‘‘हाय माया!’’ कबीर के पास पहुँचकर माया ने तपाक से अपना दाहिना हाथ बढ़ाया।
‘‘हाय कबीर!’’ माया से हाथ मिलाते हुए कबीर ने मुस्कुराकर कहा, ‘‘सॉरी, प्रिया को अचानक इंडिया जाना पड़ा, इसलिए...’’
‘‘आई नो; प्रिया ने मुझे बताया था।’’ कबीर का वाक्य पूरा होने से पहले ही माया ने कहा।
‘‘ओके लेट्स गो; ये सूटकेस मुझे दे दें।’’ कबीर ने माया के हाथ में थमे सूटकेस की ओर इशारा किया।
‘‘नो प्ली़ज डोंट वरी, आई एम फाइन टू कैरी दिस।’’ माया ने बेझिझक कहा।
‘‘बट आई डोंट फील फाइन विद दिस; आप इस शहर में हमारी मेहमान हैं।’’ कबीर ने सूटकेस थामने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। माया ने सूटकेस पर अपनी पकड़ ढीली करते हुए उसे कबीर के हाथों में जाने दिया।
‘‘स़फर कैसा रहा?’’ शार्ट स्टे कार पार्क की ओर बढ़ते हुए कबीर ने पूछा।
‘‘डेढ़ घंटे का स़फर था, एक मैग़जीन पढ़ते हुए कट गया।’’
‘‘ओह, किस तरह की मैग़जीन पढ़ती हैं आप?’’
‘बि़जनेस।’
कबीर की रुचि बि़जनेस में कम ही थी, इसलिए उसने आगे उस टॉपिक पर कोई बात नहीं की।
‘‘प्ली़ज कम इन।’’ प्रिया के अपार्टमेंट का दरवा़जा खोलते हुए कबीर ने माया से कहा, ‘‘प्रिया दस बारह दिन में लौट आएगी, तब तक यह अपार्टमेंट सि़र्फ आपके हवाले है।’’
‘‘हूँ... नाइस अपार्टमेंट; आप कहाँ रहते हैं कबीर?’’ माया ने करीने से सजे लाउन्ज पर ऩजर फेरते हुए कहा।
‘‘यहीं, ईस्ट लंदन में, ज़्यादा दूर नहीं; आप मेरा मोबाइल नंबर ले लें, किसी भी ची़ज की ज़रूरत हो तो फ़ोन करने से हिचकिचाइएगा नहीं।’’
‘थैंक्स।’ कबीर का मोबाइल नंबर नोट करते हुए माया ने कहा।
‘‘आज शाम का क्या प्लान है? अगर प्रâी हों तो बाहर डिनर पर चलें?’’
‘‘आइडिया बुरा नहीं है; वैसे भी आज डिनर करने मुझे बाहर ही जाना होगा, और इस इलाके को मैं अच्छे से जानती भी नहीं हूँ।’’
‘‘ठीक है, मैं आपको सात बजे पिक करूँगा।’’
कबीर, माया को उसी रेस्टोरेंट में ले गया, जहाँ वह प्रिया को ले गया था। उसी डिम लाइट में माया का चेहरा भी प्रिया के चेहरे की तरह चमक रहा था, मगर प्रिया के चेहरे पर एक शीतल आभा थी। स्ट्रिप क्लब की नीली नशीली रौशनी की तरह... जबकि माया के चेहरे से एक आँच सी उठती लग रही थी।
‘‘आपकी जॉब कहाँ है?’’ कबीर चाहकर भी अपनी आँखों को उस आँच से बचा नहीं पा रहा था।
‘‘यहीं सिटी में, इन्वेस्टमेंट फ़र्म है।’’
‘‘वाह... जॉब का़फी चैलेंजिंग होगी?’’
‘‘आइ लाइक चैलेंजेस।’’ माया की आँखों में एक चमक सी कौंधी, ‘‘आप क्या करते हैं कबीर?’’
‘‘फिलहाल तो कुछ नहीं।’’ कबीर ने बे़फिक्री से कहा।
‘‘क्या! आप कोई जॉब नहीं करते?’’ माया चौंक उठी।
‘नहीं।’ कबीर की बे़फिक्री कायम रही।
‘‘आपकी क्वालिफिकेशन क्या है?’’
‘‘कंप्यूटर साइंस में पोस्टग्रैड किया है।’’
‘‘फिर भी कोई जॉब नहीं कर रहे! हमारी फ़र्म को कंप्यूटर इंजिनियर्स की ज़रूरत रहती है; आप कहें तो मैं आपके लिए बात करूँ?’’
‘‘थैंक्स, मगर अभी मेरा जॉब करने का कोई इरादा नहीं है।’’ कबीर ने विनम्रता से कहा।
‘‘आप करना क्या चाहते हैं अपनी ज़िंदगी में?’’ माया की आवा़ज आश्चर्य में डूबी हुई थी।
‘‘उड़ना चाहता हूँ।’’ कबीर ने एक मासूम मुस्कान बिखेरी।
‘‘पायलट बनना चाहते हैं?’’
‘‘उहूँ, चील की तरह उड़ना चाहता हूँ पंख फैलाकर... ऊँचे, खुले आसमान में।’’
‘‘सच कहूँ तो आप मुझे किसी बड़े बाप की बिगड़ी औलाद लगते हैं।’’ माया के स्वर में म़जाक था या व्यंग्य, कबीर ठीक से समझ नहीं पाया।
‘‘बड़ा बाप ही क्यों, बड़ी माँ क्यों नहीं?’’ कबीर ने भी कुछ उसी अंदा़ज में पूछा।
‘‘वाजिब सवाल है, मगर कहावत तो यही है।’’
‘‘इसे ही तो बदलना है; जब आपके बच्चे हो जाएँ तो उन्हें बिगाड़कर नई कहावत बनाइएगा।’’ कबीर ने ठहाका लगाया।
‘‘मैं बच्चे नहीं चाहती।’’
‘क्यों?’ कबीर ने चौंकते हुए पूछा।
‘‘मुझे ज़िंदगी में बहुत कुछ हासिल करना है; बच्चों की परवरिश के लिए मेरे पास वक्त नहीं रहेगा।’’
कबीर ने आगे कुछ नहीं कहा। उसे माया में वह नेहा दिखाई दी, जिसने अपने डैड की बात मान ली थी, और सफलता और समृद्धि की राह पर अपनी ज़िंदगी की फरारी सरपट दौड़ा दी थी। नेहा भी रेस ट्रैक पर थी, मगर बेमन से; उसकी ऩजरें मंज़िल पर नहीं थीं। उसे तो पता भी नहीं था कि उसे कहाँ जाना था... मगर माया अपनी मंज़िल जानती थी। क्या माया अपनी मंज़िल तक पहुँच पाएगी? ईश्वर न करे कि वह नेहा की तरह किसी दुर्घटना का शिकार हो।
खाना खत्म होने पर वेटर बिल ले आया।
‘‘लेट मी पे।’’ बिल पर लगभग झपटते हुए माया ने कहा।
‘‘नहीं माया, आप मेरी मेहमान हैं।’’ कबीर ने टोका।
‘‘मगर कबीर, तुम तो कुछ कमाते भी नहीं हो।’’
कबीर ने माया के उसे ‘तुम’ कहने पर गौर किया। क्या माया का ‘आप’ से ‘तुम’ पर आना औपचारिकता को त्यागना था; या फिर ये जानकर, कि वह कुछ कमाता नहीं था, माया की ऩजरों में उसका सम्मान कम हो गया था।
‘‘बड़ी माँ की बिगड़ी औलाद हूँ, इतने पैसे तो हैं मेरे पास।’’ कबीर ने हँसते हुए माया के हाथ से बिल लेना चाहा।
‘‘नो कबीर, आई इंसिस्ट।’’ माया ने अपना हाथ पीछे खींचा।
‘‘इस बार तो नहीं, फिर कभी।’’ कबीर ने अपने वॉलेट से कार्ड निकालकर वेटर को थमाया, ‘‘प्ली़ज चार्ज द अमाउंट ऑन माइ कार्ड।’’
उसके बाद लगभग एक सप्ताह कबीर और माया की बातचीत या मिलना न हुआ। माया, नई जॉब में कड़ी मेहनत कर रही थी... सीनियर मैनेजमेंट में इम्प्रेशन की गहरी जड़ें जमाने और उन पर सफलता के विशाल वृक्ष के विस्तार की कामना में। अगले रविवार कबीर ने सुबह-सुबह माया को फ़ोन किया,
‘‘हाय माया! हाउ आर यू?’’
‘‘आइ एम फाइन कबीर, हाउ अबाउट यू?’’ माया ने जवाब दिया।
‘‘आई एम गुड; प्रिया का फ़ोन आया था, उसकी मॉम की तबीयत अभी भी ठीक नहीं है, उसे कुछ और भी समय लगेगा आने में; मगर वह मुझसे नारा़ज है कि मैं तुम्हें वक्त नहीं दे रहा हूँ।’’
‘‘डोंट से दिस कबीर, इट्स मी, हू इ़ज बि़जी।’’ माया ने विनम्र स्वर में कहा।
‘‘आज अगर प्रâी हो तो तुम्हें लंदन घुमाया जाए।’’
‘‘थैंक्स कबीर; हाँ आज प्रâी हूँ।’’
‘‘ओके, आई विल कम इन ए बिट।’’
आसमान सा़फ था। धूप खिली हुई थी और हवा गुनगुनी थी। माया के साथ कबीर, पिकाडिली सर्कस पहुँचा। पिकाडिली सर्कस किन्हीं करतब दिखाने वाले जानवरों और आदमियों का सर्कस नहीं है; पिकाडिली सर्कस में सर्कस का अर्थ है, चौक या चौराहा... फिर भी पिकाडिली सर्कस में दर्शकों की भीड़ से घिरे कोई न कोई करतब दिखाते कुछ लोग अक्सर मिल जाते हैं। पिकाडिली सर्कस, उस पिकाडिली मार्ग पर बना है, जिसके बारे में चाल्र्स डिकेन्स ने ‘डिकेन्स डिक्शनरी ऑ़फ लंदन’ में लिखा है, ‘पिकाडिली वह एकमात्र विशाल मार्ग है, जिसकी तुलना लंदन इतराकर पेरिस के मार्गों से कर सकता है।’ उस दिन भी पिकाडिली सर्कस उतना ही व्यस्त था, जितना किसी भी अन्य दिन होता है। माया और कबीर पिकाडिली सर्कस मेट्रो स्टेशन से बाहर निकले। सामने शैफ्ट्सबरी अवेन्यू और ग्लास हाउस स्ट्रीट के मोड़ पर बनी इमारत पर लगे बड़े-बड़े बिलबोर्ड पर निऑन लाइटें चमक रही थीं। पास ही कहीं कोई भीड़ से घिरा, साइकिल पर करतब दिखा रहा था। अचानक माया की ऩजर हाथों में मैप लिए बारी़की से कुछ तलाशते हुए बच्चों के कुछ समूहों पर गई।
‘‘ये बच्चे यहाँ क्या ढूँढ़ रहे हैं?’’ माया ने कबीर से पूछा।
‘‘ये ट्रे़जर हंट खेल रहे हैं... खज़ाने की तलाश में हैं।’’
‘खज़ाना?’
‘‘हाँ ये एक खेल है; इन्हें मैप के साथ कुछ क्लू दिए जाते हैं, जिनके सहारे इन्हें खज़ाने तक पहुँचना होता है... तुम खेलना पसंद करोगी?’’
‘‘अब इस उम्र में क्या ये बच्चों का खेल खेलेंगे?’’ माया ने अरुचि जताई।
‘‘बड़े होकर हमारी दुनिया कितनी छोटी हो जाती है न माया! बचपन में हमारा सपना होता है कि घोड़े पर सवार होकर कहीं दूर किसी खज़ाने की खोज में निकल पड़ें; किसी मायावी संसार में पहुँचें; किसी तिलिस्म को तोड़ें, किसी ड्रैगन से लड़ें; बड़े होकर ये सारे सपने पता नहीं कहाँ चले जाते हैं।’’
‘‘बड़े होकर हम प्रैक्टिकल हो जाते हैं, और इन किस्से-कहानियों की बातों पर विश्वास करना बंद कर देते हैं।’’
‘‘मैं अब भी किस्से-कहानियों में यकीन रखता हूँ माया; सपने पूरे होने के लिए ही होते हैं, मगर हम ही उन्हें अधूरा छोड़ देते हैं। किस्से-कहानियाँ हमें सि़र्फ यही नहीं बताते, कि ड्रैगन होते हैं; वे हमें ये भी बताते हैं कि ड्रैगन से लड़कर उसे हराया भी जा सकता है।’’
‘‘फ़िलहाल तो तुम्हें ये मुंगेरीलाल के हसीन सपने छोड़कर कुछ काम करने की ज़रूरत है... बिना कुछ किए कोई सपना सच नहीं होता।’’ माया ने हँसते हुए कहा। माया के चेहरे पर दर्प था। कबीर को उसमें लूसी के गुरूर की झलक दिखाई दे रही थी।
पिकाडिली सर्कस के बाद माया और कबीर टावर ऑ़फ लंदन के करीब थेम्स नदी पर बने टावर ब्रिज पहुँचे। खूबसूरत, टावर ब्रिज के नीचे बहते थेम्स के पारदर्शी प्रवाह को देखते हुए कबीर ने कहा।
‘‘माया! पता है; यहाँ थेम्स नदी को फादर थेम्स कहते हैं, जबकि हमारे भारत में नदियों को माँ कहा जाता है।’’
‘‘हम लोग नदियों को माँ कहकर भी उन्हें सा़फ तक नहीं रखते, जबकि ये लोग फादर कहकर भी नदियों को कितना सा़फ और खूबसूरत बनाकर रखते हैं।’’ माया की ऩजरें थेम्स के सौन्दर्य को निहार रही थीं।
‘‘मगर, नदी मुझे हमेशा माँ का रूप ही लगती है; पावन, शीतल और सौम्य। माँ शब्द की बात ही कुछ और है। दुनिया में जितनी भी ख़ूबसूरती है, वो सब, इस एक शब्द में समाई हुई है।’’ कबीर, कहते हुए कुछ भावुक हो उठा, मगर फिर उसे ध्यान आया कि माया ने कहा था कि वह माँ नहीं बनना चाहती। उसने माया के चेहरे पर गौर किया, जिस पर थोड़ी बेचैनी के भाव थे। अचानक कबीर की ऩजर सड़क के किनारे मस्ती में झूमकर गिटार बजाते आदमी पर पड़ी।
‘‘माया, बताओ ये किस गाने की धुन बजा रहा है?’’ कबीर ने विषय बदलने के इरादे से कहा।
‘‘हम्म.. आई थिंक इट्स द येलो रो़ज ऑ़फ टेक्सस बाय एल्विस।’’ माया ने सोचते हुए कहा.
‘‘सही गेस किया है।’’ कबीर ने हँसते हुए कहा, ‘‘और पता है, कि फेमस हिंदी सांग ‘‘तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई..।’’ इसी गाने से इंस्पायर्ड है।’’
‘‘सॉरी, आई डोंट वॉच बॉलीवुड।’’ माया की आवा़ज में थोड़ी बेरु़खी थी।
‘‘पर गाने तो सुनती होंगी।’’
‘‘सारे वेस्टर्न गानों से लिफ्ट किए हुए तो होते हैं।’’
‘‘लिफ्ट नहीं इंस्पायर्ड।’’ कबीर ने एक बार फिर हँसते हुए कहा; ‘‘आओ तुम्हें इस सांग का हिंदी वर्जन सुनाया जाए।’’
‘‘तुम गाते हो?’’ माया ने आश्चर्य से पूछा।
‘‘गाता नहीं बजाता हूँ; वेट ए मिनट।’’ कबीर ने गिटार बजा रहे आदमी के पास जाकर पूछा, ‘‘हाय जेंटलमैन! कैन आई बारो योर गिटार फॉर ए फ्यू मिनट्स?’’
‘‘श्योर; यू वांट टू प्ले फॉर दैट ब्यूटीफुल लेडी?’’ उसने माया की ओर इशारा करते हुए कहा।
‘‘ओह येह।’’ कबीर ने उसके हाथ से गिटार लेकर उसके तार छेड़ने शुरू किए। हिंदी फिल्म ‘आ गले लग जा’ के गीत ‘तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई..’ की धुन हवा में तैर उठी। गीत की धुन पर माया के साथ राह चलते लोग भी झूम उठे। माया, धुन का आनंद ले रही थी, और वह कबीर के टैलेंट से भी प्रभावित थी, मगर फिर भी उसे कबीर का आवारा मि़जाज खल रहा था।
‘‘कबीर, यू आर सो ब्राइट एंड टैलेंटेड; तुम इस तरह अपना वक्त क्यों बरबाद कर रहे हो?’’ धुन पूरी होने के बाद माया ने कबीर से कहा।
‘‘किस तरह?’’ कबीर ने कुछ बेपरवाही से पूछा।
‘‘यही, सड़कों पर गिटार बजाकर।’’
‘‘मुझे यह वक्त की बरबादी नहीं लगता माया, आई एन्जॉय इट।’’
‘‘नो कबीर, यू नीड टु टेक योर लाइफ सीरियसली; ऐसा करो, कल मुझे मेरे ऑफिस में मिलो।’’ माया का लह़जा थोड़ा सख्त था, जैसे कि वह किसी बिगड़े बच्चे पर लगाम कस रही हो।
‘‘तुम्हारे ऑफिस में?’’
‘‘हाँ, और अपना सीवी लाना मत भूलना'।
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