अमरकुमार ने अपना ड्रिंक खत्म करके गिलास मेज पर रख दिया । उठकर ड्राइंग रूम में चहलकदमी करने लगा ।

उसके चेहरे पर गहरे सोच पूर्ण भाव थे ।

अपने अपार्टमेंट में वापस लौटते ही उसने शमशेर सिंह के लिए पी० पी० लाइटनिंग काल बुक करा दी थी । और विराटनगर के लिए एस. टी. डी. सुविधा का लाभ उठाते हुए डायरेक्ट डायलिंग द्वारा भी उससे संबंध स्थापित करने की कोशिश की थी । लेकिन दोनों में से कोई भी कोशिश कामयाब नहीं हुई ।

अपनी मौजूदा मन:स्थिति में डायल घुमाते रहने का काम उसे इतना ज्यादा बोर लगा था चाहकर भी दोबारा इस तरह की कोशिश वह नहीं कर पा रहा था ।

उसने काल मेच्चोर होने का इंतजार करना ही बेहतर समझा ।

वह खिड़की के पास खड़ा हो गया ।

बाहर हल्की–हल्की बारिश हो रही थी ।

उसे याद आया मनमोहन की मौत के बाद जब वह अकेला रह गया था तो उसे भय लगने लगा था । लेकिन वास्तव में भय क्या होता है ? यह उसे अब पता लग रहा था । इस सर्द बरसाती रात में वह स्वयं को बिलकुल अकेला और भयभीत महसूस कर रहा था । अपनी विवशता पर उसे क्रोध भी आ रहा था ।

मनमोहन और शमशेर सिंह के साथ वह खुद को भी कोस रहा था कि इस जंजाल में फंसा ही क्यों । उसे पहली बार शोहरत, दौलत और सुपरस्टार के अपने रुतबे से नफरत होने लगी ।

बरसों बाद, पहली बार उसे याद आया उन दिनों वह कितना सुखी था । जब सुपरस्टार तो क्या मामूली स्टार भी वह नहीं था । छोटे–मोटे क्लबों में गाना गाकर दो वक्त की रोटी कमाकर चैन से सोता था । अपनी मर्जी का खुद मालिक था । जो जी चाहता था, करता था ।

पुराने वक़्तों की याद आते ही उसके जेहन में मोर्ग में पड़े रोशन का मांस के लोथड़े जैसा चेहरा घूम गया । उसने उस चेहरे को दिमाग से झटकने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हो सका ।

अंत में, खिड़की से हटकर वह कोने में बनी बार के पास पहुंचा । अपने लिए एक तगड़ा सा ड्रिंक बना लिया ।

रोशन की मौत से उसे कोई जाती नुकसान हुआ । ऐसा बिल्कुल नहीं था । सच्चाई यह थी कि रोशन से किसी तरह का लगाव उसे नहीं था । वह शुरू से ही उससे नफरत करता था । वह और रोशन एक ही शहर में एक ही मौहल्ले में रहा करते थे । रोशन शुरू से ही घमंडी और हेंकड़ था । आए दिन किसी न किसी तरह उसे सताता रहता था । किशोरावस्था के दिनों का बदला लेने के लिए ही उसने रोशन को अपना बॉडीगार्ड बनाया था । उसने गिन–गिन कर रोशन से बदले चुकाए । उसका घमंड पूरी तरह तोड़ दिया । उसके साथ गुलामों जैसा बर्ताव करने में उसे बड़ा सुख मिलता था । बात–बात में उसकी औकात जताकर उसे अपमानित करना और फिर उसे तिलमिलाते देखने का अपना अलग ही मजा था । वह जानता था रोशन उससे बुरी तरह आजिज आ चुका था । यही वजह थी कि मौका मिलते ही रोशन उसे छोड़कर विश्वासनगर चला गया ।

लेकिन इस सबके बावजूद एक सच्चाई यह भी थी कि रोशन की अपने पास मौजूदगी से वह खुद को पूरी तरह महफूज समझता था ।

मोर्ग में रोशन की लाश देखने के बाद से न जाने क्यों उसके मन में मजबूती से यह बात बैठ गई कि रोशन जैसा अंजाम उसका भी हो सकता है ।

वह स्वयं को एक बार फिर आश्वत कर लेना चाहता था कि शमशेर सिंह की जो नस उसके हाथ में थी उससे वह महफूज रह सकेगा ।

गिलास से तगड़ा घूँट लेकर वह टेलीफोन के पास पहुंचा । रिसीवर उठाकर ट्रंक इनक्वायरी से संबंध स्थापित किया ।

–'यूअर पार्टी इज नाट एवेलेबल, सर ।' आप्रेटर ने उसके सवाल के जवाब में कहा–'वी आर ट्राइंग । वी विल रिंग यू दी मोमेंट वी हैव युअर पार्टी ।'

अमरकुमार ने रिसीवर क्रेडिल पर पटक दिया ।

वह असहाय सा एक कुर्सी में गिर गया, और क्रोधमिश्रित निराशापूर्वक टेलीफोन उपकरणों को ताकने लगा ।

धीरे–धीरे एक घंटा गुजर गया ।

लेकिन टेलीफोन की घंटी नहीं बजी ।

* * * * * *

पंचशील अपार्टमेंट्स के सामने वाली इमारत के पहलू में दीवार से सटा खड़ा वह आदमी अंधेरे का ही एक हिस्सा मालूम पड़ता था । बारिश से बचने के लिए उसने अपनी काली बरसाती के कॉलर ऊपर उठा रखे थे । रेनकैप माथे पर इस ढ़ंग से झुका रखी थी कि उसका चेहरा काफी हद तक छिप गया था ।

बिजली के खंभे की भांति एक ही स्थान पर खड़ा वह पंचशील अपार्टमेंट्स के प्रवेश द्वार को वाच कर रहा था ।

उसे बद्री प्रसाद का इंतजार था । जो कि मदन की सूचना के मुताबिक अपने एक पहलवान दोस्त के साथ उसी इमारत में रह रहा था । इतना ही नहीं मदन ने अपने प्रयत्नों से उस इमारत के केअर टेकर का फोन नम्बर भी पता कर लिया था । फलस्वरूप काली बरसाती वाले को यहां पहुंचने से पहले केअर टेकर को गुमनाम फोन करके यह पता लगाने में, जरा भी दिक्कत पेश नहीं आई, कि बद्री अपने फ्लैट में नहीं था । वह निश्चिंतापूर्वक यहां पहुंचकर इंतजार करने लगा था ।

लेकिन इंतजार की घड़ियां लंबी होती जा रही थी । उसे अपना धैर्य जबाब देता प्रतीत हो रहा था । उसने अपना बांया हाथ ऊपर उठाया । बरसाती की आस्तीन खिसकाकर कलाई पर बंधी मूल्यवान क्वार्टज रिस्ट वॉच पर निगाह डाली तो पता चला उसे वहां खड़े करीब चार घंटे हो चुके थे ।

उसने मन ही मन तय किया सिर्फ आधा घंटा और प्रतीक्षा करेगा । इस बीच अगर बद्री नहीं लौटा तो वह भी वापस चला जाएगा । बद्री के इंतजार में सारी रात बारिश में खड़ा नहीं रह सकता । हो सकता है बद्री ने अपने फ्लैट की जगह कहीं और रात गुजारने का पहले से ही प्रोग्राम बना रखा था । उस हालत में उसका इंतजार करते रहना सरासर बेवकूफी थी । और इस बेहूदा मौसम में रात के समय चार घंटे से भी ज्यादा से अपने फ्लैट से गायब रहने वाले के बारे में यह समझ लेना, कि उसने रात भर नहीं लौटना था, काफी हद तक ठीक ही था ।

अपनी सारी भागदौड़ और चार घंटे की कड़ी मेहनत बेकार जाती नजर जाने के अहसास से उसे क्रोध आने लगा । उसने अपने हाथ बरसाती की जेब में घुसेड़ लिए । दांयी जेब में पड़ी रिवाल्वर के दस्ते का सर्द स्पर्श उसे अजीब सा महसूस हुआ ।

अपनी जवानी के दौर में वह बढ़िया गनमैन हुआ करता था । मारा मारी के अपने दर्जनों बखेड़े उसने खुद ही निपटाए थे । लेकिन अब पचास पार कर चुका था और बरसों पहले उसने स्वयं को एक ऐसे बिजनेसमैन के रूप में स्थापित कर लिया था । जिसे ऐसे बखेड़ों में पड़ने की कोई जरूरत नहीं रह गई थी । बरसों की विलासपूर्ण जिंदगी उसकी तमाम कठोरता और ऐसे कामों के लिए जरूरी हौसला, जोश, फुर्ती, वगैरा सबको निगल चुकी थी । कद तो उसका पहले भी ज्यादा नहीं था मगर अब उसके कसरती जिस्म पर चर्बी भी चढ़ गई थी । गनीमत सिर्फ इतनी थी कि उसके शरीर में मोटापे की वजह से थुलथुलापन नहीं आया था ।

अपनी इन तमाम कमियों से वह भी बखूबी वाकिफ था । लेकिन उसके सामने अपनी जिंदगी और मौत का सवाल था । जो कि इसी काम की कामयाबी पर मुन्हसिर था जिसे अंजाम देने वह आया था । इससे भी सबसे बड़ी बात थी कि किसी को अपना राजदार तक वह नहीं बना सकता था । उसे खुद ही यह काम करना था और फिर चुपचाप यहाँ से गोल हो जाना था । ताकि बाद में इससे किसी तरह का कोई रिश्ता उसके साथ न जोड़ा जा सके ।

आरम्भ में उसे स्वयं पर पूरा भरोसा था कि इस काम को सही ढंग से अंजाम दे सकेगा । लेकिन खराब मौसम में लंबे इंतजार से अपना आत्मविश्वास हिलता सा प्रतीत होने लगा । रिवाल्वर के दस्ते को मजबूती से थामे वह मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर रहा था बद्रीप्रसाद और उसका दोस्त जल्दी से आ जाएं ताकि वह इस काम को निपटाकर अपने सर पर मंडराते मौत के साए से छुटकारा पा सके ।

उसने सुनसान सड़क पर दोनों ओर निगाहें दौड़ाई । लेकिन कोई भी वाहन आता दिखाई नहीं दिया । जब से वह यहां पहुंचा था मुश्किल से पांच–सात वाहन ही उसके सामने से गुजरे थे । वह नहीं जानता था इसकी वजह मौसम की खराबी थी या फिर रात में उस सड़क पर इतनी ही आमदरफ्त रहा करती थी । वजह जो भी थी । वह इससे खुश था । क्योंकि अचानक किसी और के आ पहुंचने की उम्मीद नहीं के बराबर थी हालांकि सामने मौजूद स्ट्रीट लाइट की रोशनी सीमित और मरियल थी । लेकिन अपने शिकार को पहचानने और ठिकाने लगाने में इससे कोई असुविधा से नहीं होनी थी ।

उसने पुन: अपनी रिस्ट वॉच पर दृष्टिपात किया । आधा घंटे में से अब सिर्फ आठ मिनट बाकी थे ।

सहसा, एक कार के इंजिन की आवाज उसके कानों में पड़ी । वह फौरन सतर्क हो गया । उसने आवाज की दिशा में देखा ।

मोड़ पर घूमकर एक कार उधर ही आ रही थी ।

वह दम साधे व्याकुलतापूर्वक प्रतीक्षा करता रहा ।

कार की रफ्तार लगातार धीमी होती जा रही थी ।

अंत में, कार जो कि वास्तव में टैक्सी थी, सामने वाली इमारत के सम्मुख आ रुकी ।

दीवार से चिपके काली बरसाती वाले की व्याकुलता मिश्रित उत्सुकता अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी ।

टैक्सी से उतर कर दो आदमियों ने भाड़ा चुकाया ।

ड्राइवर ने पुन: गियर फंसाकर टैक्सी आगे बढ़ायी और तेजी से चला गया ।

काली बरसाती वाले ने टैक्सी से उतरी दोनों सवारियों को साफ पहचाना–वे बद्री और टकरु थे ।

वे दोनों इमारत के प्रवेश द्वार की ओर जा रहे थे । उनकी चाल के जाहिर था खासी पिए हुए थे ।

काली बरसाती वाला रिवाल्वर हाथ में थामे तेजी से उनकी ओर बढ़ रहा था ।

–'बद्री !' अचानक उसने पुकारा ।

प्रवेश द्वार के सामने पहुंच चुके वे दोनों आवाज सुनते ही पलट गए ।

काली बरसाती वाले ने रिवाल्वर उन पर तानकर फायर करने आरम्भ कर दिए । लेकिन असीमित उत्तेजना वश उसका हाथ तरह काँप रहा था । फलस्वरूप रिवाल्वर से निकली गोलियाँ उन दोनों के पास से गुजरती हुई प्रवेश द्वार के कांच के पल्ले से जा टकराई । और उससे टूटकर कांच के टुकड़े नीचे बिखर गए ।

बद्री और टकरु ने तुरन्त स्वयं को नीचे गिरा दिया था । टकरु ने अपनी रिवाल्वर निकालकर काली बरसाती वाले पर फायर झोंक दिए ।

नाकामयाबी के अहसास और सर के ऊपर से गुजरी गोलियों ने उसे इस कदर आतंकित कर दिया कि ट्रीगर पर उसकी उंगली जमकर रह गई । तभी एक गोली उसके कंधे से रगड़ती हुई गुजर गई । काली बरसाती वाला पूरी तरह बदहवास हो चुका था । उसने अपनी रिवाल्वर वहीं फेंकी, वह पलटा और खुद को इमारत की आड़ में रखने की कोशिश करता हुआ अँधा–धुंध भागता चला गया ।

चंद क्षणोपरांत, पास ही कहीं साइरन की आवाज गूंजनी आरम्भ हो गई ।

–'यहां से फौरन निकल चलो ।' बद्री बोला–'आओ ।'

वह उठा और इमारत की बगल वाली अंधेरी गली में दौड़ता चला गया ।

टकरु ने भी उसका अनुकरण किया ।

कुछ ही सेकंड पश्चात एक पुलिस जीप गली के दहाने पर आ रुकी । एक एस० आई० कांस्टेबल सहित नीचे कूदा ।

अंधेरी गली में भागते कदमों की हल्की सी आहट उन्हें सुनाई दी । एस० आई० ने अपनी सर्विस रिवाल्वर निकालकर चेतावनी दी । फिर फायर किया और फिर कांस्टेबल सहित गली में दौड़ पड़ा ।

जब तक वे गली के दूसरे सिरे पर पहुंचे । उस इलाके से पूरी तरह वाकिफ बद्री और टकरु सड़क पर पहुंचकर गायब हो चुके थे ।

एस० आई० और कांस्टेबल कुछ देर इधर–उधर भटकने के बाद वापस लौट आए ।

गश्ती पुलिस कार से उतरा इंस्पैक्टर इमारत के बदहवास लिफ्टमैन से, जो उस वाकए का काफी हद तक चश्मदीद गवाह था, पूछताछ कर रहा था ।

–'तुमने उन दोनों आदमियों को नहीं पहचाना ?' इंसपैक्टर पूछ रहा था ।

–'म...मैंने ?' लिफ्टमैन हकलाता सा बोला–'जी नहीं । फायरों की आवाज सुनते ही मैंने खुद को लिफ्ट में बंद कर लिया था ।

–'तुमने गोलियां चलाने वाले को भी नहीं देखा ?'

–'जी नहीं । मैंने कुछ नहीं देखा । बस गोलियां चलने और कांच टूटने की आवाजें ही सुनी थी ।'

इंस्पैक्टर ने घुमा फिराकर कई सवाल किए । लेकिन बदहवास नजर आता लिफ्टमैन अपनी इन्हीं दो बातों पर जमा रहा ।

–'रहजनी या आपसी दुश्मनी में जान लेने की कोशिश का मामला लगता है । जो कामयाब नहीं हो सका । इंस्पैक्टर ने कहा, फिर एस० आई० और कांस्टेबल की ओर देखा–'कुछ पता चला ?'

–'नो सर ।' एस० आई० ने जवाब दिया–'वे भागने में कामयाब गए ।'

–'भागकर कहाँ जाएंगे ? हम उन्हें पकड़ ही लेंगे ।' इन्सपैक्टर बोला–'उनमें से एक की रिवाल्वर यहीं रह गई थी । उस के जरिए उसका पता लगा लेंगे । फिर बाकी दोनों का पता वह खुद ही बता देगा । मैं कंट्रोल रूम को इत्तिला देता हूं । तुम आस पास की इमारतों में सबसे पूछताछ करो । हो सकता है, किसी ने कुछ देखा हो ।'

–'ओके सर ।' एस० आई० बोला ।