अगले दिन मैंने सुबह-सुबह ही रहीम को बुलाया और कहा कि गाँव के सबसे गरीब हरिजन लोगों को बुला लाए। रहीम ने पूछा, “कुछ काम है भईया?”

“हाँ, मैं उन्हें एक-एक गाय दान करना चाहता हूँ। मैं ये डेयरी बंद करने की सोच रहा हूँ।”

“पर भईया, आपका जमा-जमाया काम बंद हो जाएगा। इतने साल में मेहनत से आपने ये काम कामयाब किया है, इसे ऐसे ना खत्म करें।”

“रहीम, मैंने सोच-समझकर ये फैसला किया है। मैंने डेयरी इसलिए खड़ी की थी कि मैं निधि के सामने खड़ा हो सकूँ। मैं शायद उसके पैसे से जलता था, पर जब वो जिंदा नहीं है तो डेयरी का क्या फायदा।”

“पर भईया, आप क्या काम करोगे इसके बाद? आप अपने परिवार से क्या कहेंगे?”

“कुछ भी कह दूँगा। तुमसे जितना कहा है उतना करो।” 

रहीम चला गया और थोड़ी देर में गाँव के सबसे गरीब लोगों को बुला लाया। बारह लोग थे जिनको मैंने एक-एक गाय दे दी और उनके बछड़े-बछिया भी।

कुछ लोग सोच रहे थे और कह रहे थे कि हमने ब्राह्मणों को दान देते सुना है, पर ये पहला आदमी है जिसने हरिजनों को दान में गाय दी है। मैंने उनसे ये भी सुना कि बड़ा ही दयालु आदमी है। जब वे लोग चले गए तो मैंने रहीम से कहा कि वो दूसरे गाँव से भी गरीब हरिजन लोगों को बुला लाए। उन्हें भी मैं गाय दान में दूँगा।

सारे गाँव में यह बात फैल गई कि‍ मैंने गरीबों को गाय दान में दी है। कुछ ने मेरा समर्थन किया तो कुछ ने कहा ब्राह्मण लोगों को ही गाय दान में देनी चाहिए, नहीं तो कोई पुण्य नहीं लगता है। यह बात रघुवीर और सत्ते तक भी पहुँची तो वे तुरंत ही डेयरी पर आ गए। सत्ते ने कहा, “तुम जमा-जमाया काम बेकार में बर्बाद कर रहे हो।” 

मैंने कहा, “मैंने जिसके लिए डेयरी लगाई थी वो है ही नहीं तो डेयरी का क्या फायदा।” 

रघुवीर ने मुझे कुछ नहीं कहा। मैंने कुछ और लोगों को भी गाय दान कर दी। तब तक कुल बीस गाय मैं दान कर चुका था।

मैंने नया मोबाइल ले लिया था और उस में पुराना नंबर भी एक्टिवेट करा लिया था। जब मैं बाहर सत्ते और रघुवीर से बात कर रहा था, तब मेरे मोबाइल पर एक फोन आया। मैं फोन नहीं उठा पाया। जब मैं अंदर कमरे में गया तो दोबारा घंटी बजी। मैंने इस बार फोन उठा लिया। जैसे ही मैंने हैलो कहा, उधर से आवाज आई, “कमीने, मेरी माँ मर गई। एक हफ्ते पहले तुमने मेरे पास फोन करने की भी नहीं सोची? तेरे जैसा कमीना मैंने दुनिया में नहीं देखा।” 

वो निधि थी। मैं एकदम से सकपका गया कि वो जिंदा थी। मैं कुछ बोल पाता उससे पहले ही उसने गंदी गालियों की बौछार कर दी। फिर उसने फोन काट दिया। मेरा खुशी से दिमाग खराब हो गया। मारे खुशी के मैंने आधा भगोना तुरंत चाय चढ़ा दी। अभी सत्ते और रघुवीर वहीं थे। मैंने एक लाठी उठाकर उनके पिछवाड़े पर सेंक दी। जब तक वे सँभलते मैंने एक-एक लाठी फिर से उन्हें मार दी। वे दर्द से चीखते हुए भागने लगे। मैं भी उनके पीछे दौड़ा। रघुवीर ने कहा, “भाई बात क्या हो गई क्यों हमे लाठी से पीट रहा है?” 

“कमीने! बोल रहे थे कि मर गई निधि। क्या उसके भूत का फोन आया था अभी मेरे पास?” 

वे वहीं रुक गए और रुककर हँसने लगे। रहीम मेरे पीछे आ गया और फौरन उसने मेरे हाथ से लाठी छीन ली। 

मैंने रहीम से कहा, “तुम भी इनकी नौटंकी में शामिल हो? तुम्हें मुझ पर जरा भी तरस नहीं आया? हाय मेरी बीस गायें चली गईं। हर महीने एक लाख बचता था उनसे। पूरी बारह लाख की थी वो, बारह लाख का नुकसान करा दिया तुमने।”

ये सुनकर तीनों फिर से हँसने लगे। मैंने रहीम से कहा, “कमीने उन गायों को तो वापस ले आ जो दान कर दी।” ये सुनकर भी वे हँसते रहे। मैंने रघुवीर से पूछा, “वो जो अर्थी निकल रही थी वो किसकी थी?” 

“वो उसकी माँ की अर्थी थी। शादी के दिन सुबह तीन बजे निधि की मम्मी को दिल का दौरा पड़ा था, इसलिए उनकी मौत हो गई थी।”

“पर सत्ते तुम्हें कैसे पता चला?”

“सुबह ही निधि का फोन मेरे पास आ गया था कि‍ उसकी शादी नहीं हो रही है, क्योंकि उसकी मम्मी नहीं रही। पर तुम जब दिल्ली में थे, तब रघुवीर ने भी तुझे ये बताने से मना किया था। जब तुम अस्पताल में थे, मैं ये बताने ही वाला था लेकिन तुम ये कह रहे थे कि निधि मर गई है। तब मैं कहने ही वाला था कि वो नहीं उसकी मम्मी की मृत्यु हुई है, पर रघुवीर ने मुझे आँख मार दी। पर तुम शोक के कारण कुछ देख नहीं पाए। रघुवीर ने सारी योजना बना ली थी। हमने तुम्हें नहीं बताया क्योंकि हम तो चाहते थे कि नाटक अगले दो और दिन तक चलता रहे, पर रघुवीर निधि से नाटक में शामिल होने के लिए नहीं कह पाया। वो अपनी मम्मी के चले जाने से रो रही थी, जब रघुवीर तुम्हारी गाड़ी लेने दिल्ली गया था।”

“पर तुमने मेरी गायों को दान करने क्यों दी? हाय लाखों का नुकसान कर दिया।”

रहीम, सत्ते और रघुवीर पेट पकड़कर हँसने लगे। मैंने उन पर घूसों की बरसात कर दी। रघुवीर ने कहा, “थोड़ा दान करने से तुम्हारा क्या जाता है? गरीब का ही तो भला हुआ है।”

“पूरे बारह लाख की गायें थी वो। कैसे-कैसे मैंने इन्हें इकट्ठा किया था। साथ में कई बछिया भी थी जो कुछ समय में गाय बन जातीं।” 

रहीम रसोई में चला गया जहाँ चाय बन रही थी। उसने सभी को एक-एक कप चाय दी। मैंने सब को कहा, “अभी चाय पियो, रात को शराब की पार्टी करते हैं।”

“ठीक है भाई, पर चिकन भी बनाना।” 

“रहीम चिकन बना देगा।” सत्ते ने कहा। 

“पर अब निधि को कैसे मनाएँ? वो तो रूठी हुई है और वो मेरी शक्ल तक नहीं देखेगी।” 

“एक बात बताऊँ, मैंने तुम्हें नहीं बताई कि निधि की मम्मी को हार्ट अटैक इसलिए आया था क्योंकि शादी के एक दिन पहले निधि के घरवालों को पता चला कि‍ लड़का डॉक्टर नहीं है। वो निधि के पापा से एक करोड़ शादी से एक दिन पहले माँग रहा था। निधि को जब पता चला तो उसने शादी करने से इनकार कर दिया। निधि के पापा के पास इतने पैसे नहीं थे, ये सब बात निधि ने मुझे बताई थी। जब लड़के का डॉक्टर होना झूठ निकला तो शादी को निधि ने कैंसिल कर दिया। लड़का भी कनाडा में कोई छोटा-मोटा काम करता था। ऐसे में निधि के पास यही ऑप्शन था कि वो शादी ना करे। लेकिन उसकी मम्मी ये सदमा बर्दाशत नहीं कर पाई और रात को उसे हार्ट अटैक आ गया। सुबह तक उसके प्राण नहीं बच सके।”

“अब कैसा माहौल है वहाँ?” 

“अभी बाप बेटी सदमें से नहीं उबरे हैं, इसलिए राघव तुम पार्टी अभी कुछ दिन बाद ही देना।” रघुवीर ने कहा।

“ठीक है भाई।”

सत्ते और रघुवीर के चले जाने के बाद मैंने कई फोन निधि को किए, पर उसने एक बार भी मेरा फोन नहीं उठाया। बड़ी मुश्किल से शाम को उसने फोन उठाया और चीख पड़ी, “अब क्या कहना चाहते हो जल्दी कहो।” 

“मुझे माफ कर दो! मुझे सच में पता नहीं था कि‍ तुम्हारी मम्मी गुजर गई हैं। तुम सत्ते और रघुवीर से पूछ लो नहीं तो जिससे चाहो पूछ लो।” 

“तुम तो सोच रहे होंगे कि पीछा छूटा, मेरी शादी हो चुकी होगी। कमीने, जब प्यार निभाना नहीं था तो किया ही क्यों था। मैं शादी के एक दिन पहले तक तुम्हारा इंतजार करती रही।”

“मैं शादी के दिन आया था, तुमसे मिलने।”

“फिर क्या हुआ? तुम्हें पता चल गया होगा कि शादी रुक गई है। एक बार मिल भी सकते थे मेरी मम्मी के गुजर जाने के बाद भी। क्यों तुम मेरे से मिले नहीं? तुमने सोचा होगा कि तुम्हारी नाक नीची हो जाएगी। मैं ही तुम्हें इतने सालों में पहचान नहीं पाई। अब मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी है, फोन काटो।” 

“मैं तुझसे मिलने आ रहा हूँ।” मेरी बात पूरी होने से पहले ही उसने फोन काट दिया। 

मैंने कई बार दोबारा फोन किए पर उसने नहीं उठाया। मैं उदास सोचता रहा कि वो मान जाएगी या अपनी माँ के बाद वो मुझे भुला देगी। मैंने रघुवीर को फोन किया और उसे सब बताया। उसने कहा कि परेशान मत हो। कुछ ही देर में वो मेरे पास आ गया, “तुम फिकर मत करो, हम अभी उसके घर चलते हैं।” 

मैंने उसके घर जाने के लिए कपड़े बदले। कोई डेढ़ घंटे में हम निधि के पुराने घर पर थे, जो महरौली में था। मैंने अंकल से माफी माँगी तो उन्होंने कहा, “बेटा तुम्हारी कोई गलती नहीं है, जो होना था हो गया।”

मैं और रघुवीर निधि के कमरे में गए। मैंने निधि से कहा, “प्लीज मुझे माफ कर दो!”

“तुम यहाँ से चले जाओ, मैं तेरा चेहरा भी नहीं देखना चाहती हूँ।” निधि मुझे देखते ही फट पड़ी और रोते हुए कहने लगी, “अगर तुम मान जाते तो उस कनाडा वाले से शादी की नहीं सोचती और न ही मम्मी चली जाती।” 

मैं कुछ नहीं बोल सका। तभी अंकल वहाँ आ गए। उन्होंने निधि को समझाया, “बेटा, ये सब तो बहाना है, सबकी जिंदगी भगवान के हाथ में है।” 

रघुवीर ने मुझे कहा, “तुम थोड़ी देर बाहर रहो, मैं बात करता हूँ।” उसने कमरा बंद कर लिया। कोई एक घंटे तक कमरा बंद रहा, फिर रघुवीर ने कमरा खोला। उसने निधि से सब बताया जो मेरे साथ हुआ। मैं उसकी शादी रोकने भी आया था, ये भी बताया। 

मैंने जैसे ही निधि को देखा वो मेरी तरफ देखकर रोने लगी। मेरे भी आँसू निकल आए। मैंने निधि के पास जाकर उसे गले लगाया और रोते-रोते ही उससे कहा, “निधि, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।” 

ये सुनकर भी वो कुछ नहीं बोली, बस रोती रही। लगभग पाँच मिनट बाद उसने कहा, “राघव, मैं यही सुनने को आठ साल से तड़प रही थी। तुम बहुत देर से बोले, मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी।” 

मैंने कहा, “कब शादी करोगी मुझसे?” 

“पापा से पूछ कर करूँगी।” वो रोती रही मेरी बाँहों में। कमरे में कोई नहीं था, सब हमें अकेला छोड़कर बाहर चले गए थे। निधि रोते-रोते मेरी बाँहों में ही सो गई।

लगभग एक साल बाद हमारी शादी का दिन आया। हम शादी के लिए गोवा निकले। ये डेस्टिनेशन मैरिज थी। हमने पूरा एक हवाई जहाज ही बुक कर लिया था। उस में सौ लोग हमारी तरफ से और सौ लोग निधि के परिवार की तरफ से शामिल हुए थे। हम वहाँ तीन दिनों के लिए गए थे। मैंने दस आदमी हरि‍जन लोग के भी गागोली गाँव से बुलाए थे। हम एक होटल में रुके और तीन दिन तक हमने वहाँ कई फंक्शन अटेंड किए। बहुत ही खूबसूरत अंदाज में हमारी शादी हुई। शादी के तीन दिन के बाद हम दोनों के परिवार के लोग अपने-अपने घर चले गए। मेरे परिवार के साथ रिश्ता जुड़ने से गुप्ता अंकल बहुत खुश थे।

मैं और निधि गोवा से ही पूरे देश में एक महीने के लिए हनीमून पर निकल गए। जब हम देशभर में घूम रहे थे, तब मुझे कश्मीर में बाबाजी भी मिले। उन्होंने हमें आशीर्वाद दिया। मैंने बाबाजी से उनका नाम पूछा तो वे हँसने लगे और कहा, “सब माया है!” उनके पास फोन भी नहीं था जो मैं कभी उनसे बात करता।

लगभग पाँच साल बाद मैं निधि के साथ अपने बंगले में रहता हूँ। मेरे दो बच्चे हैं। लड़की बड़ी है जिसका नाम राशि है। लड़के का नाम मैंने हिमांशु रखा है। हम लोग एक परिवार के रूप में बहुत खुश थे। 

अब वंश मुझे नहीं जलाता है, क्योंकि वो पाँच साल पहले ही दिमाग से निकल गया था। मुझे अब वो न ही सपने में डराता था, न ही असली जिंदगी में। मैंने उसे माफ कर दिया था। मेरी उससे कोई दुश्मनी नहीं रह गई थी। मैं अब महरौली जाने पर उससे बात भी कर लेता हूँ। मैं सोनू, भोपले और देव से मिलता रहता हूँ। मैंने बीते पाँच साल में भी निधि से कभी नहीं पूछा कि उसके और वंश के बीच क्या हुआ था। 

हाँ, अब निधि की कमर पर बसमेरा अधिकार है। मेरा खाना अब रहीम नहीं बनाता है, वो अपने प्यार भरे हाथों से निधि ही बनाती है। 

मेरा मानना है कि जब शादी से पहले लड़के से नहीं पूछा जाता कि उसका क्या अतीत है, तो फिर लड़की से भी नहीं पूछना चाहिए। अतीत बस अतीत होता है, वो चाहे अच्छा हो या बुरा, उसे पकड़े रहकर अपना भविष्य नहीं बिगाड़ना चाहिए।