यह बात हमारी समझ में आकर नहीं दे रही थी कि इन तीन कहानियों में से सच कौनसी थी ?
सॉरी, शायद मैं भूल रहा हूं कि विभा के मुताबिक छंगा- भूरा द्वारा सुनाई गई कहानी सच थी ।
अगर यह सच था तो चांदनी ने झूठ क्यों बोला?
दो बार में दो झूठ क्यों बोले?
एक वह, जो हमसे कहा ।
दूसरा वह, जो डायरी में लिखा ।
अगर उसे झूठ ही बोलना था तो दोनों बार में एक ही झूठ क्यों नहीं बोला? इतनी विरोधाभासी बातें क्यों कहीं?
किस चक्कर में थी वह?
दिल्ली से गुड़गांव के रास्ते भर हम घुमा-फिराकर इन्हीं सवालों के जवाब पाने के लिए विभा का दिमाग चाटते रहे।
विभा का जवाब एक ही था । यह कि --- अगर कामता प्रसाद सही सलामत हाथ लग गया तो कई सवालों के जवाब मिल जाएंगे।
हमारे कई बार पूछने पर भी वह इस सवाल को गोल कर गई थी कि कामता प्रसाद आखिर है कौन?
उस वक्त हम गुड़गांव की सीमा में दाखिल हुए ही थे कि विभा का मोबाइल गायत्री मंत्र का जाप करने लगा।
कोट की जेब से निकालकर उसने डिसप्ले स्क्रीन पर नंबर देखा, स्पीकर सहित ऑन करती बोली ---- “यस।”
“क्या मैं जिंदलपुरम की बहूरानी से बात कर सकता हूं?”
“बोल रहीं हूं ।”
“मैं यशवीर सलूजा बोल रहा हूं बहूरनी, एस. एस. पी. गुड़गांव | " तुरंत ही सम्मानित लहजे में कहा गया ---- “आपका नंबर मुझे दिल्ली के कमीश्नर साहब ने दिया है।”
“क्या रहा ?” विभा ने काम की बात पूछी ।
“आपरेशन हंडरेट परसेंट सक्सेस ।”
“कितने लोग थे वे ?”
“तीन ।”
“कैदी?”
“सुरक्षित है लेकिन बेहोश ।”
“बेहाश?”
“ये लोग उसे नशे के इंजेक्शंस देते रहे हैं ।”
“ओह ! उसे होश में लाने की कोशिश करो।"
“वही कर रहे हैं बहूरानी, फोन बस इसलिए किया है कि आप बेखटके सीधी मकान पर आ सकती हैं।” कहा गया ---- “इस वक्त यहां हमारा ही कब्जा है ।"
“पंद्रह-बीस मिनट में पहुंच रही हूं।"
“बहुत बेहतर ।" कहकर संबंध विच्छेद कर दिया गया ।
सचमुच हम बीस मिनट बाद वहां पहुंचे ।
चौमारोड के नजदीक स्थित शंकर विहार कॉलोनी का मकान नंबर 456, एक तिमंजला मकान था । बल्कि अगर यह कहा जाए तो ज्यादा मुनासिब होगा कि अच्छी-खासी कोठी थी ।
मकान के बाहर दो पुलिस जीपें और एक एम्बेसडर खड़ी थी ।
गेट पर कई पुलिसवाले भी नजर आ रहे थे ।
लिमोजीन जीप के पीछे रुकी ही थी कि एक हट्टा-कट्टा और चुस्त दुरुस्त नौजवान लपकता हुआ-सा गेट से बाहर निकला और लिमोजीन की तरफ आया । वह वर्दी में नहीं था, इसके बावजूद जाहिर था कि वही यशवीर सलूजा है।
गाड़ी से बाहर निकलती विभा को उसने बहुत सम्मान के साथ, हाथ जोड़कर नमस्ते की और अपना परिचय दिया ।
विभा ने उसे हमारे बारे में बताया ।
वह हमें अंदर ले गया ।
पहले एक कमरे में, फिर दूसरे कमरे में ।
पहले कमरे में अधेड़ आयु का एक शख्स फोल्डिंग पलंग पर लेटा हुआ था। पुलिसवाले रह-रहकर उसके चेहरे पर पानी के छींटे मार रहे थे। वह शख्स नाईट सूट पहने हुए था और बहुत ही कमजोर नजर आ रहा था । दाढ़ी भी बुरी तरह बढ़ी हुई थी ।
हम बगैर किसी के बताए समझ गए कि वह कामता प्रसाद है ।
दूसरे कमरे में बीस से पच्चीस की आयु के तीन लड़के थे।
तीनों ही जींस और टी-शर्ट पहने हुए । लंबे-लंबे बालों वाले वे लड़के उस वक्त सहमे हुए थे। उन्हें एक ही नजर में देखकर कहा जा सकता कि पुलिस ने अच्छी खातिरदारी की है।
सलूजा ने उनके नाम बब्बन, शब्बन और शूरमा बताए ।
तीनों ही अलग-अलग तीन कुर्सियों के साथ बंधे हुए थे ।
“ इनसे तीन देशी कट्टे, एक फोन और तीन चाकू बरामद हुए हैं बहूरानी।" यशवीर सलूजा ने बताया ---- “पकड़' का नाम कामता प्रसाद बता रहे हैं। उसे इन्होंने फरीदाबाद से किडनेप किया था।”
“फरीदाबाद ?” मेरा दिमाग नाचा ।
“खुद भी वहीं के रहने वाले हैं। वहां के एस. एस. पी. से पूरा रिकार्ड निकलवा लिया है। हालांकि नाम को 'भंसाली शुगर फैक्ट्री ' में काम करते हैं लेकिन वास्तव में अपराध प्रवृति के हैं ।”
“कामता प्रसाद को क्यों किडनेप किया?” विभा ने पूछा ।
“फिरौती के लिए । ”
“झूठ बोल रहे हैं।” विभा बोली- “कामता प्रसाद की हैसियत ही किसी को फिरौती देने की नहीं है और फिर ।” थोड़ी ठहरकर वह सीधी उन तीनों से बोली- “किससे फिरौती मांगी तुमने ?”
तीनों चुप ।
“बोलो ।” यशवीर गुर्राया ----“वरना..
विभा ने हाथ उठाकर उसे चुप रहने का संकेत किया और होठों पर मुस्कान लिए बोली ---- “इस सबकी जरूरत नहीं है। कुछ देर बाद ये खुद ही सारी हकीकत उगलते चले जाएंगे।"
किसी की समझ में नहीं आया कि उसने ऐसा किस बेस पर कहा था, एक बार फिर वह सीधी उन्हीं से बोली“मुझे मालूम है कि तुमने चार दिसंबर की रात को, कामता प्रसाद को उनके घर से उठाया था। उस वक्त वे बेचारे सो रहे थे और ऐसा तुमने किसी फिरौती के लिए नहीं किया बल्कि उनकी बात उनकी बेटी से कराई है। कहो तो उनकी बेटी का नाम भी बताऊं ।”
“च... चांदनी ।” मैंने अनुमान से कहा ---- “शायद वह चांदनी है ! ”
“देखा ! उसका नाम मेरे दोस्त को भी पता है ।” विभा ने उन्हीं तीनों पर नजरें गड़ाए कहा - - - - “जब हमें इतना पता है तो यह भी पता होगा कि कामता प्रसाद का अपहरण तुम लोगों ने सिर्फ इसलिए किया था ताकि चांदनी को धमकाया जा सके, उसे ब्लैकमेल किया जा सके और उससे मनमाफिक काम कराया जा सके ।”
उनके चेहरों पर आश्चर्य के भाव उभर आए थे।
शायद यह सोचकर कि सामने खड़ी लेडी को उनके बगैर बताए इतना सब कैसे मालूम है? जबकि विभा लगातार उनके दिमागों को अपनी बातों की जकड़न में लेती हुई बोली ---- “मजे की बात ये है कि ऐसा तुमने अपने लिए नहीं किया । तुम तो यह तक नहीं जानते कि चांदनी है कौन और करवाने वाला उससे क्या करवाना चाहता था !"
अब उनके चेहरों पर हैरत ही हैरत गर्दिश करने लगी थी ।
“अब करवाने वाले का नाम भी बताऊं या तुम बताओगे?”
“भ... भंसाली ।” उनमें से एक ने कहा- --- “रमेश भंसाली ।”
“कहां रहता है ?”
“बसंत विहार दिल्ली में ।”
“क्या करता है ?”
“उसके पिता की कई शुगर फैक्ट्रियां और पेपर मिल्स हैं।" उनमें से एक ने बताया---- “एक फैक्ट्री फरीदाबाद में भी है।”
“ओह! तो वहां के वर्कर हो तुम !”
“जी।” “काम क्या है ?”
“यह देखना कि वर्कर्स यूनियन हड़ताल आदि न कर सके।”
“शुद्ध शब्दों में मालिकों के लिए गुंडागर्दी करते हो !”
वे चुप रहे।
“खैर, इस काम के कितने पैसे मिले?”
“पच्चीस हजार पर-डे ।”
“ पर डे से मतलब ?”
"जितने दिन 'पकड़' को कब्जे में रखेंगे हर दिन के पच्चीस ।”
“पैसे किस तरह पहुंचते हैं?”
“हमारे बैंक एकाऊंट में जमा करा दिए जाते हैं। रमेश भंसाली ने कहा था कि इस बारे में उसके बाप तक को भी पता न लगे ।”
“बाप का नाम ?”
“भैरोसिंह भंसाली ।”
“ रमेश का फोन चार दिसंबर की रात को कितने बजे आया ?” “सवा ग्यारह पर।"
“क्या कहा ?”
“कामता प्रसाद का एड्रेस बताया था । कहा था कि घर में वह अकेला होगा । जाकर दबोच लें ।”
“तुमने वही किया ! ”
“हां ।”
“पूरी बात बताओ।"
“कामता प्रसाद को कब्जे में लेते ही हमने रमेश भंसाली को फोन मिलाया । फिर उसी के कहने पर मोबाइल कामता प्रसाद को दिया। भंसाली ने कामता प्रसाद की बात चांदनी से कराई । वह रो रही थी । कामता प्रसाद उससे बात तक करने को तैयार नहीं था । गुस्से और घबराहट में कहने लगा कि ---- 'मुझे उसी दिन अंदेशा था कि एक न एक दिन तू किसी मुसीबत में फंसेगी जिस दिन अपनी हैसियत से बहुत ऊपर के आदमी से शादी की थी, मगर मुझसे अब तेरा मतलब ही क्या है? मुझे क्यों इन गुंडों के चक्कर में फंसाया है?' बस इतना ही कह पाया था कि दूसरी तरफ से चांदनी से फोन छीन लिया गया। फिर भंसाली ने हमसे कहा कि हम उसके अगले आदेश तक कामता प्रसाद को अपने चंगुल में रखें। वहां से हम उसे अपने ठीए पर ले गए | अगले दिन हुक्म हुआ कि उसे फरीदाबाद से कहीं बाहर रखें। सो, यहां ले आए और उसे बता दिया।"
“नशे के इंजेक्शन क्यों लगा रहे थे ?”
“उसे भागने से रोकने के लिए बांधकर रखने और चौबीस घंटे चौकसी करते रहने से ऐसा करना बेहतर लगा ।"
“रमेश भंसाली का मोबाइल नंबर ?”
“इसमें है बहूरानी।” यशवीर सलूजा ने नोकिया का एक हैंडसेट दिखाते हुए कहा- - “इन्हीं का है।”
विभा ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था कि कमरे में दाखिल होते एक पुलिसिए ने कहा -- -- “कैदी को होश आ गया है सर।"
“गुड ।” कहने के साथ विभा तेजी से उस कमरे से निकलकर पहले कमरे की तरफ बढ़ गई।
हम उसके पीछे लपके ।
कामता प्रसाद होश में भले ही आ चुका हो मगर नशे के इंजेक्शन का प्रभाव अब भी उसके दिमाग पर था ।
विभा ने उसी हालत में थोड़ी पूछताछ की।
जितनी बातें तीनों गुंडे बता चुके थे उससे आगे वह कोई खास बात नहीं बता सका यानी उसे नहीं मालूम था कि कौन उसकी बेटी से क्या कराना चाहता था ?
असल में कामता प्रसाद अभी-भी नशे में था, इतना ज्यादा कि उससे ज्यादा पूछताछ नहीं की जा सकती थी ।
साथ ही डरा और सहमा हुआ भी था ।
उसे यकीन ही नहीं आ रहा था कि वह किडनेपर्स के चंगुल से मुक्त हो चुका है । उस वक्त विभा उसे यही यकीन दिलाने की कोशिश कर रही थी कि मोबाइल ने पुनः गायत्री मंत्र का जाप शुरु कर दिया ।
विभा ने जेब से मोबाइल निकाला। डिसप्ले स्क्रीन पर एक नजर डाली, ऑन करने के साथ कान से लगाती बोली- “यस।”
दूसरी तरफ से पता नहीं ऐसा क्या कहा गया जिसे सुनकर वह बुरी तरह चौंकी ---- “य... ये क्या कह रही हो तुम?”
शायद फिर वही कहा गया जो पहले कहा गया था ।
वह बोली ---- “कहां? क्या नाम है उसका?"
उस तरफ से शायद नाम बताया गया ।
इस बार तो विभा के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे थे जैसे किसी ने सिर पर हथौड़ा मार दिया हो । मुंह से निकला ----“क... क्या? क्या नाम लिया तुमने? फिर से तो लेना !”
कदाचित नाम दोहराया गया ।
“ओह नो!” वह कह उठी और कुछ देर तक ऐसी हालत में नजर आई जैसे कोशिश के बावजूद कुछ न बोल पा रही हो, फिर खुद को नियंत्रित करके बोली- - - - “तुम यह बात दावे से कैसे कह सकती हो ?”
जवाब में पुनः दूसरी तरफ से कुछ कहा गया ।
उसे सुनकर विभा के मुंह से एक ही शब्द निकला----“
ओह!”
फिर कुछ देर बाद बोली- -“तुम वहां कैसे पहुंचीं?”
कुछ बताया गया।
“ओ.के.। मैं वहां पहुंच रही हूं लेकिन दो से ढाई घंटे लग जाएंगे। मराठा से कहना कि तब तक... ।” कहती- कहती स्वयं ही रुक गई वह फिर बात बदलकर बोली ---- “या नहीं, तुम उससे कुछ मत कहना । खुद को एक्सपोज मत करना । मैं खुद बात कर लूंगी।”
दूसरी तरफ से शायद सहमति जताई गई ।
विभा ने संबंध-विच्छेद किया ।
एक नजर कामता प्रसाद पर डाली ।
वह पुनः गफलत के-से आगोश में चला गया था। उसे देखती विभा ने यशवीर सलूजा से कहा ---- “नशे के इंजेक्शंस के प्रभाव से निकलने में अभी इन्हें कई दिन लग जाएंगे। उससे पहले ठीक से पूछताछ नहीं की जा सकती। क्या तुम इसे आज ही कमीश्नर साहब कि पास दिल्ली पहुंचा सकते हो ?”
“मैं वही करूंगा जो आपका आदेश होगा मगर..
“मगर?"
" है तो शायद गुस्ताखी ही लेकिन अभी-अभी जाने किससे फोन पर बातें करते वक्त आपने जो प्रतिक्रियाएं व्यक्त की उन्हें देख और सुनकर मन में यह जिज्ञासा पैदा हुई है कि आखिर ऐसा क्या हुआ है जिसने अपको इतना उद्वेलित कर दिया । क्या मैं जान सकता हूं?”
यह वह सवाल था जो मैं और शगुन भी करना चाहते थे मगर विभा ने उससे बहुत ही सपाट लहजे में कहा ---- “उस मेटर का तुमसे कोई संबंध नहीं है । तुम बस कामता प्रसाद को और उन तीनों को भी दिल्ली पहुंचा देना।" कहने के बाद वह दरवाजे की तरफ लपकी ।
हमें तो उसके पीछे लपकना ही था ।
लिमोजीन आगे बढ़ी ही थी कि मैंने कहा---- - "बहुत सारे सवाल इकट्ठे हो गए हैं विभा, इतने सारे कि मैं उन्हें दिमाग में ठीक से सजा भी नहीं पा रहा हूं । एकाध का तो जवाब दे दो ।”
“मुझसे बात न ही करो तो बेहतर है । "
“वजह?”
“दिमाग में और सवाल जा घुसेंगे। वे भी, जो इस वक्त तक सिर्फ मेरे दिमाग में हैं। तब तो तुम्हारी खोपड़ी का मलूदा ही बन जाएगा।"
“ ऐसी बात है तो मलूदा ही बना दो।" मैंने कहा----“बताओ तुम्हारे दिमाग में ऐसे कौनसे नए सवाल घुस गए हैं जो अभी तक मेरे दिमाग तक नहीं पहुंच पाए हैं?”
"मैं कुछ कहूं?” एकाएक शगुन बोला ।
विभा ने कहा-“फरमाओ छोटे उस्ताद ।”
“छंगा - भूरा का यह बयान सच्चा है कि लाश लेकर चांदनी ही उनके पास पहुंची थी और उसने उनसे खुद को फंसाने वाला बयान देने के लिए कहा था । "
“यह तो पहले ही फरमा चुकी हूं जनाब ।”
“ अब कारण भी सामने है । "
“वो क्या?”
“क्लियर है कि रमेश भंसाली नाम के आदमी ने चांदनी के पिता को मार डालने की धमकी देकर उसे अपनी उंगलियों पर नचाया। वह उसी की भेजी छंगा - भूरा के पास गई थी। उसी के कहने पर अपने ए.टी.एम. से पैसे निकालकर छंगा - भूरा को दिए। कहने का मतलब ये कि उसने अपने पिता को बचाने के लिए खुद को फंसाया था।”
“जीते रहो।”
“ अब तो मैं दावे के साथ यह भी कह सकता हूं कि छंगा- भूरा की खोली पर वह लाश लेकर भले ही पहुंची हो परंतु रतन की हत्या उसने नहीं की।” उत्साहित शगुन ने कहा ---- “हत्या रमेश भंसाली ने की है। तभी तो उसने चांदनी को ब्लैकमेल करके उससे यह सब करवाया!”
“ और डायरी में जो लिखा ?”
“वह भी मजबूर होकर ही लिखा होगा।” मैं बोला ---- “उसके पिता के यहां होने ने हमारे दिमाग साफ कर दिए हैं।"
“लेकिन अगर वह दोनों बार रमेश भंसाली से ही ब्लैकमेल हो रही थी तो दोनों बार अलग-अलग बयान क्यों दिए ? " शगुन ने सवाल उठाया ---- “छंगा- भूरा के मुताबिक उसने उनसे खुद ही अपने खिलाफ बयान देने के लिए कहा था जबकि डायरी में कहती है कि उसने उनसे कुछ नहीं कहा था बल्कि वह तो छंगा-भूरा के बयान से खुद हैरत में थी और बाद में छंगा-भूरा ने उसे बताया कि वह बयान उन्होंने अवंतिका के कहने पर दिया था।”
मैं चुप।
“दो प्यारे लाल।” विभा ने मेरी खिल्ली-सी उड़ाने वाले अंदाज में कहा था----“जवाब दो पुत्तर के सवाल का । ”
जवाब मेरे पास होता तो देता ।
“ इतना आसान नहीं है वेदगुरू ।” मस्ती भरे आलम में आज वह मुझे नए-नए नाम दे रही थी ---- “जिस गुत्थी ने विभा जिंदल के दिमाग का कीमा बना रखा है उसे सुलझाना इतना आसान नहीं है।" मुझसे कहने के बाद वह शगुन की तरफ घूमी ---- “ और अब तुम बताओ पुत्तर, अगर वह रमेश भंसाली से ब्लैकमेल हो रही थी तो यह बात उसने तुम्हारे घर आने पर क्यों नहीं बताई ? क्यों नहीं कहा कि उसके पिता रमेश भंसाली की कैद में हैं और उन्हें वहां से निकलाने के लिए तुम्हारे जरिए मेरी मदद चाहिए ? असल में तो उसे इस काम के लिए तुम्हारे पास आना चाहिए था और गा जाने क्या-क्या गई ?”
इस बार शगुन चुप ।
विभा कहती चली गई ---- “और यह तब हुआ जब बकौल अपने उस वक्त वह वहां सबसे छुपकर पहुंची थी। वहां हकीकत बताने से कौन रोक रहा था उसे ? क्यों इतने लंबे-लंबे झूठ बोले? उस वक्त तो पट्ठी ने यह कहा था कि वह छंगा- भूरा को जानती तक नहीं है !”
शगुन अब भी चुप ।
मैं बोला----“जैसे-जैसे किस्सा आगे बढ़ रहा है, वह लड़की तो पहेली में बदलती जा रही है । पहेली भी ऐसी जो सुलझाए नहीं सुलझ रही । कहीं कुछ कहती है, कहीं कुछ ।”
“अब मैं तुम्हारे दिमागों में नया धमाका करने वाली हूं।” कहने के साथ उसने अपने मोबाइल पर कोई नंबर पंच करना शुरु कर दिया।
“कैसा धमाका?” शगुन ने पूछा ।
वह फोन पर बोली -- -- “विभा जिंदल बोल रही हूं मराठा।”
“ आपकी उम्र बहुत लंबी है विभा जी ।" मोबाइल का स्पीकर ऑन होने के कारण मराठा की आवाज मुकम्मल गाड़ी में गूंजी----“मैं आप ही को फोन मिलाने वाला था।”
“वजह?”
“ उसी श्रंखला का एक और मर्डर हो गया है ।"
“ रमेश भंसाली की बात कर रहे हो न !”
“जी। मगर... ।” चौंका हुआ स्वर ---- “आपको कैसे मालूम ?”
“उसे उसी श्रंखला का मर्डर तुम इसलिए कह रहे हो क्योंकि लाश के पास से किसी लेडीज के कपड़े मिले हैं। उसकी अपनी लाश पूरी तरह नंगी है और उसके पेट पर अंग्रेजी का अ अक्षर लिखा है।"
“अ... आप तो कमाल कर रही हैं विभा जी!” आवाज ही बता रही थी कि मारे हैरत के गोपाल मराठा का बुरा हाल -“सबकुछ इस तरह बता रही हैं जैसे लाश के सामने खड़ी थाहों! "
“मैं इस वक्त गुड़गांव में हूं और वहीं के लिए निकल चुकी हूं।” उसकी हैरत पर ध्यान दिए बगैर विभा कहती चली गई ---- “मेरे वहां पहुंचने से पहले न लाश उठे, न ही घटनास्थल से छेड़छाड़ हो ।”
“जी । ऐसा ही होगा।”
इतना सुनने के बाद विभा ने संबंध - विच्छेद कर दिया ।
उसने हमारी तरफ देखा तक नहीं था । वह कोई दूसरा नंबर पंच करने में व्यस्त थी जबकि हम उसे यूं देख रहे थे जैसे अचानक उसके सिर पर सींग नजर आने लगे हों ।
मराठा से हुई उसकी बातें हमने सुनीं भी और समझीं भी लेकिन अभी तक अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
शायद इसीलिए शगुन ने कहा ---- “ये आप क्या बातें कर रही थीं आंटी, क्या वाकई रमेश भंसाली का मर्डर हो गया है ?”
“स्टाम्प पेपर पर लिखकर दूं!” नंबर पंच करती विभा बोली ।
“और उसकी लाश भी नग्न अवस्था में पाई गई है!” मैं अपने आश्चर्य पर काबू नहीं पा, पा रहा था ---- “उसके पास से किसी लेडीज के कपड़े मिले हैं और उसके पेट पर अंग्रेजी का ..
“वे कपड़े चांदनी के हैं।" उसने मोबाइल कान से लगाया।
“च... चांदनी के?” हम दोनों उछल पड़े।
वह मोबाइल पर कह रही थी ---- “मणिक, वहां की निगरानी छोड़ कर अब तुम दिल्ली आ जाओ।”
दूसरी तरफ से जाने क्या कहा गया?
उसे सुनने की जरा भी कोशिश किए बगैर विभा ने संबंध विच्छेद कर दिया था और तब वह हमारी तरफ देखती बोली ---- “हां, चांदनी के कपड़े हैं वे इस बात को अभी मराठा भी नहीं जानता।” 1
“तुम कैसे जानती हो ?”
“जादू की छड़ी से।" उसने शरारती अंदाज में भंवें मटकाईं ।
“प्लीज विभा ।” मैं बुरी तरह बेचैन था ---- “मजाक मत करो।”
“आप ऐसे हालात में मजाक कर भी कैसे सकती हैं ?” शगुन के चेहरे पर आश्चर्य गर्दिश कर रहा था ।
“मुझे ऐसे ही हालात में मजाक करने का शौक है ।”
“बताओ न विभा, तुम्हें कैसे पता कि वे कपड़े चांदनी के हैं?”
“वीणा ने बताया । ”
“वीणा ने ?”
“वह वहीं है।"
“वो वहां कैसे पहुंच गई?”
“भूल गए ! मैंने उसे मराठा के पीछे लगाया था।”
“तो?”
“मराठा रमेश भंसाली की लाश के इर्दगिर्द है तो जाहिर है कि वह भी वहीं होगी। भंसाली की लाश के पास से पाए गए कपड़ों को मराठा भले ही न पहचानता हो लेकिन वीणा पहचान चुकी । बहरहाल उसने अपनी आंखों से चांदनी को यमुना में कूदते देखा था । "
“तो फिर वे कपड़े भंसाली की लाश के पास कैसे पहुंचे ?”
“जैसे रतन के कपड़े अवंतिका की लाश के पास पहुंचे थे।”
“वे तो हत्यारे ने पहुंचाए थे ।”
“वे भी उसी ने पहुंचाए होंगे।”
“मगर क्यों और कैसे ? उसने तो आत्महत्या की है । "
“वीणा के यह सब बताने से पहले आइडिया मेरा भी यही था । ” विभा बोली----“मगर अब लगता है, आइडिया गलत था । वह सुसाईड नहीं, मर्डर था और हत्यारा वही है जिसने रतन बिड़ला, अवंतिका और अब रमेश भंसाली की हत्या की है ।”
“अरे!” शगुन के चेहरे से जाहिर था कि उसकी खोपड़ी बुरी तरह नाच रही है----“मर्डर कैसे हो सकता है वह ?”
“अगर कोई किसी को आत्महत्या करने के लिए मजबूर कर दे तो वह भी हत्या ही होती है ।”
मैंने हैरतभरे लहजे में पूछा ---- “क्या तुम यह कहना चाहती हो कि चांदनी ने अपनी मर्जी से यमुना में छलांग नहीं लगाई बल्कि किसी ने उसे ऐसा करने के लिए मजबूर किया था ?”
“फिलहाल तो यही लग रहा है । "
“उसे मजबूर करने वाला तो रमेश भंसाली था ।”
“वह बेचारा तो खुद भी उसी हत्यारे के हाथों मर चुका है।"
“इसका मतलब तो ये हुआ कि हत्यारे ने यमुना से चांदनी की लाश ढूंढी । उसके कपड़े उतारे और भंसाली की लाश के पास छोड़े!”
“काफी समझदार हो गए हो । ”
“पर ये काम तो मुश्किल है।" शगुन बोला ---- “जो लाश इतने गोताखोरों को नहीं मिली, उसे उसने ढूंढ लिया और..
“ हत्यारा मुश्किल काम करने का एक्सपर्ट मालूम पड़ता है। "
“ अब तो कुछ भी ... भी... कुछ भी समझ में नहीं आ रहा विभा कि ये ये सब हो क्या रहा है ?"
“तभी तो कहा था हुजूर, मुझसे बात मत करो वरना वे सवाल भी जेहन में जा घुसेंगे जो सिर्फ मेरे दिमाग में थे लेकिन तुमने कहा कि बना ही दो दिमाग का मलूदा, मैंने बना दिया ।”
“वह कौन है जिसे आपने दूसरा फोन किया ?” शगुन ने पूछा।
“ शायद ध्यान से नहीं सुना तुमने, मैंने मणिक का नाम लिया था । फरीदाबाद में वह कामता प्रसाद के घर की निगरानी कर रहा था । वही घर जिसके बाहर ताला लटका हुआ है। ऐसा इसलिए कराया था ताकि कामता प्रसाद या उनके किडनेपर्स का पता लग सके। वापस आने के लिए इसलिए कहा क्योंकि सबकुछ पता लग चुका है।"
“ पर आपको कामता प्रसाद के बारे में पता ही कैसे लगा ?” शगुन का सवाल ---- "कैसे पता लगा कि वे चांदनी के पिता हैं, कहां रहते हैं और किसी ने उन्हें किडनेप कर रखा है ?"
- विभा ने अपनी कनपटी ठकठकाई- “यहां से काम लिया जाए तो बहुत सी बातें काफी पहले पता लग जाती हैं। मणिक को चांदनी की जन्म कुंडली निकालने के काम पर मैंने उसी दिन लगा दिया था जिस दिन तुम जिंदलपुरम पहुंचे थे। उसने खबर दी कि उसके पैतृक घर पर ताला लगा हुआ है। मेरे दिमाग में किसी गड़बड़ का खुटका हुआ। सो, उसे वहीं तैनात रहने के लिए कहा। बाद में, जब छंगा-भूरा से पता लगा कि चांदनी ने उन्हें खुद ही खुद को फंसाने वाला बयान देने के लिए कहा था तो दिमाग में तुरंत यह बात आई कि ऐसी विचित्र हरकत तो कोई सख्त किस्म की मजबूरी में ही कर सकता है। मुझे उसके पैतृक घर पर लटके ताले और मजबूरी में कोई संबंध नजर आया यानी शक हुआ कि कहीं कोई कामता प्रसाद को मार डालने की धमकी देकर चांदनी को मजबूर तो नहीं किए हुए है! पपीते के अंदर से बरामद कागज पर लिखे एड्रेस को देखते ही समझ गई कि यही वह एड्रेस होगा जिस पर चांदनी के पिता हो सकते हैं ।”
“ एकदम से इस नतीजे पर कैसे पहुंच गईं तुम ?”
“याद करो, चांदनी ने कहा था कि उसे लगता है ---- उसे फंसाने वाले और बचाने वाले के बीच कोई जंग चल रही है । यह मैसेज उसे बचाने वाले ने दिया लगता है। एक तरफ उसके पिता के घर पर लटका ताला, दूसरी तरफ पपीते के अंदर छुपाया गया ये एड्रेस | दोनो के कंबीनेशन से मुझे लगा कि चांदनी ठीक ही सोच रही थी । ”
शगुन बोला----“लेकिन हमारे पास आकर कही गई चांदनी की सभी बातें झूठी साबित हो चुकी हैं । ”
“सभी बातें नहीं बच्चे, सभी बातें झूठी नहीं थीं। मेरा अब भी यह मानना है कि उसने जो कहा झूठ को सच में मिक्स करके कहा। "
“पर क्यों?”
“सही जवाब ये है कि अभी ठीक से नहीं पता ।" विभा ने दिमाग को आराम देने के लिए आंखें बंद करते हुए कहा ---- “अगर रमेश भंसाली की लाश कुछ बता सके तो उसकी बड़ी मेहरबानी होगी।”
0 Comments